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Incest आह..तनी धीरे से.....दुखाता.

Lovely Anand

Love is life
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आह ....तनी धीरे से ...दुखाता
(Exclysively for Xforum)
यह उपन्यास एक ग्रामीण युवती सुगना के जीवन के बारे में है जोअपने परिवार में पनप रहे कामुक संबंधों को रोकना तो दूर उसमें शामिल होती गई। नियति के रचे इस खेल में सुगना अपने परिवार में ही कामुक और अनुचित संबंधों को बढ़ावा देती रही, उसकी क्या मजबूरी थी? क्या उसके कदम अनुचित थे? क्या वह गलत थी? यह प्रश्न पाठक उपन्यास को पढ़कर ही बता सकते हैं। उपन्यास की शुरुआत में तत्कालीन पाठकों की रुचि को ध्यान में रखते हुए सेक्स को प्रधानता दी गई है जो समय के साथ न्यायोचित तरीके से कथानक की मांग के अनुसार दर्शाया गया है।

इस उपन्यास में इंसेस्ट एक संयोग है।
अनुक्रमणिका
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भाग 126 (मध्यांतर)
 
Last edited:

Lovely Anand

Love is life
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Lali ya sugna ko sonu ke dosto ke bich mat baatna bhai
लाली और सुगना आह तनी धीरे से .....की मुख्य नायिका है अब तक ....आपकी इच्छा का मान रखा जाएगा....
 

Lovely Anand

Love is life
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हॉस्टल के बिस्तर पर लेटा हुआ सोनू आज के सुखद और दुखद पलों को याद कर रहा था। विकास ने आज उसके साथ जो बर्ताव किया था उसकी उम्मीद उसे न थी।

माना कि उसकी हैसियत मोटरसाइकिल खरीदने की न थी। पर सोनू काबिलियत में विकास से बेहतर था। विकास तो अपने माता पिता की दौलत की वजह से अय्याशी की जिंदगी व्यतीत करता था। परंतु सोनू अपनी जिम्मेदारियों को बखूबी समझते हुए कम खर्च में अपनी पढ़ाई पूरी कर रहा था।

लाली दीदी के घर पहुंच कर उसने अपनी घड़ी पर निगाह डाली 11:00 बज चुके थे निश्चय ही देर हो गई थी। राजेश के जाने के पश्चात लाली धीरे-धीरे कदम बढ़ाते हुए अपने घर की तरफ बढ़ने लगी कमर में आई चोट अपना प्रभाव दिखा रही थी लाली के कदम गर्भवती महिला की तरह धीरे धीरे पड़ रहे थे। एक पल के लिए सोनू को बेहद अफसोस हुआ। उसने लाली दीदी को अनजाने में ही कष्ट तो दे ही दिया था।

सोनू ने लाली के हाँथ पकड़ लिए और सहारा देते हुए घर के अंदर ले आया लाली के कोमल हाथों का स्पर्श पाकर सोनू खुश हो गया परंतु लाली के चेहरे पर तनाव था। शायद दर्द कुछ ज्यादा था।

इस स्थिति में लाली को छोड़कर जाना उचित न था परंतु विकास की मोटरसाइकिल वापस करना भी उतना ही जरूरी था।

सोनू ने स्थिति की गंभीरता को समझते हुए लाली से कहा

"दीदी मुझे मोटरसाइकिल वापस करने जाना पड़ेगा।"

लाली ने अपने दर्द को छुपाते हुए कहा

"सोनू बाबु कुछ खाना खा ले तब जाना"

" नहीं दीदी मैं हॉस्टल में खा लूंगा. मुझे पहले ही बहुत देर हो चुकी है"

"सोनू, ऐसे खाली पेट कैसे जाएगा? मुझे अच्छा नहीं लगेगा"

"नहीं दीदी मुझे जाना होगा"

लाली ने कोई और रास्ता ना देख कर फटाफट बाजार से खरीदी हुई मिठाई सोनू के मुंह में जबरदस्ती डाल दी और पास बड़ी बोतल उठाकर उसके हाथों में पकड़ा दी "सोनू बाबू थोड़ा पानी तो पी ले" लाली बड़ी बहन की भूमिका बखूबी निभा रही थी।

सोनू फटाफट मिठाई खाते हुए पानी पीने लगा. तभी लाली ने पीछे मुड़कर अपनी चुचियों के बीच फंसे 100 -100 के दो नोट निकाले( जिसे सोनू ने निकालते हुए देख लिया) और सोनू को देते हुए बोली..

"यह अपने पास रख ले खर्च में काम आएंगे"

"नहीं दीदी इसकी कोई जरूरत नहीं है"

" मैंने कहा ना रख ले"

सोनू को निश्चय ही पैसों की जरूरत थी। अभी राजदूत में तेल फुल करवाना था। उसने लाली के सामने ही उन रुपयों को लिया और चूम लिया।

लाली को एक पल के लिए लगा जैसे सोनू ने उसके उभरे हुए उरोजों को ही चूम लिया. लाली अपना दर्द भूल कर एक बार फिर शर्म से लाल हो गई। उसने अपनी निगाहें झुका ली और सोनू ने अपने कदम दरवाजे से बाहर की तरफ बढ़ा दिए। जब लाली ने अपनी नजरें उठाई वह अपने मासूम और अद्भुत प्रेमी को राजदूत की तरफ बढ़ते हुए देख रही थी।

लाली को भी आज सुख और दुख की अनुभूति एक साथ ही मिली थी। नियति सामने मुंडेर पर बैठे मुस्कुरा रही थी। लाली का यह दर्द शीघ्र ही सुख में बदलने वाला था।

सोनू राजदूत लेकर फटाफट पेट्रोल पंप पर पहुंचा और पेट्रोल फुल करवाया इसके बावजूद उसके पास ₹50 शेष रह गए जो उसके कुछ दिनों के खर्चे के लिए पर्याप्त थे। उसने लाली दीदी को मन ही मन धन्यवाद दिया और उनके स्वस्थ होने की कामना की और मोटरसाइकिल को तेजी से चलाते हुए हॉस्टल की तरफ बढ़ चला।

हॉस्टल की लॉबी में पहुंचते ही उसकी मुलाकात विकास और भोलू से हो गई

"अबे साले तू तो 9:00 बजे तक आने वाला था? टाइम देख कितना बज रहा है"

सोनू ने अपनी घड़ी देखी और मैं दिमाग मैं उचित उत्तर की तलाश में लग गया

"पहले बता कहां गया था?"

विकास के प्रश्न लगातार आ रहे थे अंततः सोनू ने संजीदगी से कहा

"कुछ नहीं यार ऐसे ही अपने रिश्तेदार के यहां गया था" सोनू का उत्तर सुनकर भोलू ने अपनी नजरें झुका ली और मन ही मन मुस्कुराने लगा।

"सच-सच बता किस रिश्तेदार के यहां गया था?"

"अरे मेरी एक बहन यहां रहती हैं उनके पास ही गया"

"अच्छा बेटा तो ये बता मोटरसाइकिल पर लाल सूट में कौन लड़की बैठी थी?"

सोनू पूरी तरह आश्चर्यचकित हो गया उसे कोई जवाब नहीं सूझ रहा था अब झूठ बोलना संभव नहीं था। उसने विकास और भोलू को सारी बातें साफ-साफ बता दी सिर्फ उस बात को छोड़ कर जिसके बारे में उसके दोस्त सुनना चाहते थे।

विकास ने चुटकी लेते हुए कहा

"यार जिसने तुझे और उस लड़की मेरा मतलब तेरी लाली दीदी को देखा था वह कह रहा था कि भगवान ने उसे बड़ी खूबसूरती से बनाया है तू सच में तो उसे बहन तो नहीं मानता?"

"अरे बहन है तो बहन ही मानूँगा ना। "

"तो ठीक है बेटा आज से मुझे अपना जीजा मान ले।. इतनी गच्च माल को मैं तो नहीं छोडूंगा पक्का उसे पटाउंगा और …...।"

"ठीक है यदि तू उसे पटा कर सका तो मुझे तुझे जीजा बनाने में कोई दिक्कत नहीं।"

लाली को ध्यान में रखते हुए सोनू ने यह बात कह तो दी परंतु नियति ने सोनू की यह बात सुन ली. विकास सोनू का जीजा…... नियति मुस्कुरा रही थी…

बनारस महोत्सव करीब आ रहा था. दो अनजान जोड़े मिलन के लिए तैयार हो रहे थे। सोनू की बहन सोनी अपनी जांघों के बीच उग रहे बालों से परेशान हो रही थी उसकी खूबसूरत बुर को चूमने और चोदने वाला उसके भाई सोनू से बहस लड़ा रहा था।

सोनू ने उस समय तो बात खत्म कर दी थी परंतु अब हॉस्टल के बिस्तर पर लेटे हुए हुए उसी बात को मन ही मन सोच रहा था। विकास ने कैसे उससे लाली दीदी के बारे में वैसी बात कह दी थी। कितना दुष्ट है साला वो। उसके मन में तरह-तरह के गलत ख्याल आ रहे थे वह विकास से अपनी दोस्ती तोड़ने के बारे में भी सोच रहा था। तभी विकास और भोलू कमरे में आ गए सोनू को उदास देखकर वह दोनों बोले...

"यार तू गुमसुम यहां बैठा है"

"हां मन नहीं लग रहा था" सोनू ने बेरुखी से जवाब दिया

"क्यों क्या बात है?"

"कुछ नहीं, मुझे बात नहीं करनी है तुम लोग जाओ"

विकास सोनू के मन की बात जानता था उसने विकास का हाथ पकड़कर उठाते हुए कहा ...

"अरे भाई माफ कर दे उस समय मैं कुछ ज्यादा ही बोल गया, तेरी लाली दीदी मेरी भी लाली दीदी है मेरी बात को गलत मत लेना"

विकास के मनाने पर सोनू का गुस्सा काफूर हो गया।

उघर लाली का दर्द बढ़ गया था उसने पड़ोसियों की मदद से दर्द निवारक दवा मंगवा ली थी और चोट लगी जगह पर मलने के लिए एक क्रीम भी. उसने दवा तो खा ली पर अपने हाथों से अपनी ही कमर के ऊपर क्रीम लगाना इतना आसान न था। वह राजेश को बेसब्री से याद कर रही थी कि काश वह रात में आ जाता। परंतु रेलवे की टीटी की नौकरी का कोई ठिकाना न था। राजेश रात को नही लौटा और लाली राजेश को याद करती रही। उसके मन में सोनू के प्रति कोई गुस्सा न था सोनू उसे पहले भी प्यारा था और अब भी.

उधर अगली सुबह सरयू सिंह सुबह-सुबह नित्य कर्मों से निवृत्त होकर दालान में पहुंचे। आज उनके चेहरे पर खुशी स्पष्ट देखी जा सकती थी। आगन से सुनना गिलास में चाय लिए हुए हाजिर हो गई उसने सरयू सिंह के चरण छुए और बेहद आत्मीयता से बोली

"बाबूजी आज राउर जन्मदिन ह"

सरयू सिंह ने सुगना द्वारा लाई गई चाय एक तरफ रख दी और उसे अपनी गोद में खींच लिया। अपनी दाहिनी जांघ पर बैठाते हुए वह सुगना के कोमल गालों को चुमें जा रहे थे और सुगना उनकी बाहों में पिघलती जा रही थी।

सुगना ने भी उन्हें चूमते हुए कहा

"बाबूजी पहले चाय पी ली ई कुल काम दोपहर में"

सुगना ने कजरी को सब कुछ साफ-साफ बता दिया था. आज सरयू सिंह के जन्मदिन के विशेष उपहार के रूप में कजरी ने भी सुगना को चुदने की इजाजत दे दी थी थी.

सरयू सिंह बेहद प्रसन्न थे। उन्होंने पिछले तीन-चार महीनों से सुगना से संभोग का इंतजार किया था तो तीन चार घंटे और भी कर सकते थे। उन्होंने सुगना की बात मान ली और वह अपनी नजरों से सुगना के खूबसूरत जिस्म का और होठों से चाय का आनंद लेने लगे।

सुगना अपने बाबूजी की कामुक निगाहों को अपनी चूचियां और जांघों के बीच टहलते हुए देखकर रोमांचित हो रही थी और होठों पर मुस्कान लिए उनकी चाय खत्म होने का इंतजार कर रही थी.

कजरी ने अपने कुँवर जी के जन्मदिन के विशेष अवसर पर तरह-तरह के पकवान बनाए और सरयू सिंह का पसंदीदा मालपुआ भी बनाया। परंतु सरयू सिंह को जिस मालपुए की तलाश थी उसके सामने यह सारे पकवान फीके थे। सुगना का मालपुआ रस से सराबोर अपने बाबूजी के होठों और मजबूत लण्ड का इंतजार कर रहा था।

समय काटने के लिए सरयू सिंह ने अपनी कोठरी की साफ सफाई शुरू कर दी। इसी कोठरी में आज वह अपनी प्यारी बहू सुगना को जम कर चोदना चाहते थे। उनका लण्ड भी नए छेद के लिए तड़प रहा था। कितनी कसी हुई होगी सुगना की कोमल गांड उसकी कल्पना मात्र से ही उनका लण्ड में तनाव आ रहा था। वह बार-बार उसे समझाते परंतु वह मानने को तैयार ना था। इंतजार धीरे धीरे बेसब्री में बदल रहा था। काश सरयू सिंह के पास दिव्य शक्ति होती तो वह समय को मुट्ठी में सिकोड़ कर समय को पीछे खींच लेते लेते।

साफ सफाई के दौरान सरयू सिंह को शिलाजीत रसायन की 2 गोलियां मिल गयीं। सरयू सिंह की आंखों में चमक आ गई। गोलियों के प्रभाव और दुष्प्रभाव से वह बखूबी परिचित थे उनके मन में कामेच्छा और डॉक्टर के निर्देश दोनों के बीच द्वंद्व शुरू हो गया। उस गोली को वह खाएं या ना खाएं इसी उहापोह में कुछ पल बीत गए। विजय लंड की ही हुई।

शरीर का सारा रक्त लण्ड में भर चुका था और दिमाग के सोचने की शक्ति स्वाभाविक रूप से कम हो गई थी। सरयू सिंह ने एक गोली घटक ली। और दूसरी गोली अपने बैग में रख लीजिए वह हमेशा अपने साथ रखते थे। सुगना के दोनों अद्भुत छेदों का आनंद लेने के लिए सरयू सिंह ने डॉक्टर के सुझाव को दरकिनार कर दिया था।

अंदर सुगना नहा धोकर तैयार हो रही थी। आज उसे दीपावली के दिन की याद आ रही थी जब मन में कई उमंगे और अनजाने डर को लिए हुए वह अपने जीवन का पहला संभोग सुख लेने जा रही थी। आज उसके मन में बार-बार उसकी छोटी सी गांड का ख्याल आ रहा था जिसे आज एक नया अनुभव लेना था। परंतु उसके डर पर उसकी बुर की उत्तेजना हावी थी वह अपने बाबूजी सरयू सिंह से बेतहाशा चुदना चाहती थी उसकी तड़प भी अब चरम पर पहुंच चुकी थी।

कजरी भी पूरी तरह मन बना चुकी थी। उसने भगवान से प्रार्थना की कि उसके कुंवरजी सरयू सिंह का स्वास्थ्य कायम रहे। सुगना को मुखमैथुन पर विशेष जोर देकर और सरयू सिंह से कम से कम मेहनत कराने की बात समझा कर वह अपनी बहू को लेकर उनकी कोठरी में आ गई। सुगना ने अपने हाथ में पूजा की थाली ली हुई थी और कजरी ने अपनी थाली पर पकवान रखे हुए थे।

दोनों ने उनके जन्मदिन के अवसर पर औपचारिकताएं पूरी कीं। कजरी ने सरयू सिंह को आरती दिखायी और माथे पर तिलक लगाया। सरयू सिंह के मन में एक बार यह ख्याल आया जैसे वह जंग पर जाने वाले वीर सिपाही हों। अपनी कोमलांगी बहु सुगना के कोमल छेद के भेदन के लिए इतनी तैयारी…. सरयू सिंह मुस्कुरा रहे थे।

उनकी निगाहें सुगना की ब्लाउज से झांकती हुई चुचियों पर गड़ी हुई थी। सुगना ने अपने हाथों से उन्हें मालपुआ खिलाया और उन्होंने उसकी उंगलियों को अपने होठों से पकड़ लिया। कजरी अपनी बहू और कुँवरजी की अठखेलियां देख रही थी और शीघ्र ही वहां से हटने की सोच रही थी तभी गांव का चौकीदार भागता हुआ आया….

सरयू भैया सरयू भैया चलये मनोरमा मैडम ने आपको तुरंत बुलाया है।

सरयू सिंह भौचक रह गए

"अचानक कैसे आ गई मनोरमा मैडम?"

उन्हीं से पूछ लीजिएगा? कुछ जरूरी काम होगा तभी ढेर सारे पटवारी भी उनके साथ हैं"

"जा बोल दे मेरी तबीयत खराब है मैं नहीं आ सकता" सरयू सिंह किसी भी हाल में सुगना का साथ नहीं छोड़ना चाह रहे थे…

सुगना और कजरी मुस्कुरा रही थीं। सुगना के मन में एक अनजाना डर समा गया एक पल के लिए उसे लगा जैसे नियति ने आज भी उसके काम सुख पर ग्रहण लगा दिया था परंतु उसके बाबूजी अभी मोर्चा लिए हुए थे।

चौकीदार ने कहा

"छुट्टी तो नहीं लिया है ना आपने, चुपचाप जाकर मिल लीजिए बाकी आप जानते हैं मैडम कैसी हैं"

सरयू सिंह के दिमाग में मनोरमा का चेहरा घूम गया। वो बेहद कड़क एसडीएम थीं। जितनी कड़क उतनी ही सुंदर । 5 फुट 6 इंच की ऊंचाई भरा पूरा शरीर और सुंदर मुखड़ा तथा वह सरयू सिंह से बेहद तमीज से पेश आती थी।

सरयू सिंह इस बात को बखूबी मानते थे कोई भी सुंदर और युवा औरत उनकी कद काठी देखकर उन पर आसक्त तो हो सकती थी पर उनसे क्रोधित होना शायद सुंदर नारियों के के वश में न था।

इसके बावजूद ओहदे की अपनी चमक होती है। सरयू सिंह के मन में उसका खौफ हमेशा रहता था किसी महिला से डांट खाना उन्हें कतई गवारा ना था।

चौकीदार से हो रही इतनी देर की बहस में ही सरयू सिंह की उत्तेजना पर ग्रहण लग चुका था उन्होंने मनोरमा से मिलना ही उचित समझा और अपनी सजी-धजी प्रियतमा सुगना को देखते हुए बोले

"सुगना बेटा थोड़ा इंतजार करो मैं आता हूं"

चौकीदार ससुर और बहू के बीच में यह संबोधन देखकर वह सरयू सिंह से प्रभावित हो गया।

उधर प्राइमरी स्कूल पर खड़ी एसडीएम मनोरमा परेशान थी उसने प्राइमरी स्कूल के टॉयलेट का प्रयोग करने की सोची पिछले दो-तीन घंटों से लगातार दौरा करते हुए उसे जोर की पेशाब लग चुकी थी परंतु स्कूल का टॉयलेट देखकर वह नाराज हो गई। तुरंत इतनी जल्दी इसकी सफाई हो पाना भी असंभव था।

स्कूल के प्रिंसिपल ने हाथ जोड़कर कहा

मैडम जी सरयू सिंह जी का घर बगल में ही है आप वहीं चली जाए। मनोरमा के दिमाग में सरयू सिंह का मर्दाना और बलिष्ठ शरीर घूम गया। उनके पहनावे और चेहरे की चमक को देखकर मनोरमा जानती थी कि वह एक संभ्रांत पुरुष है। वह तैयार हो गई सरयू सिंह अपने दरवाजे से कुछ ही दूर आए होंगे तभी मनोरमा अपने काफिले के साथ ठीक उनके सामने आ गई।

सरयू सिंह ने दोनों हाथ जोड़कर मनोरमा का अभिवादन किया और मनोरमा ने भी अपने चेहरे पर मुस्कान ला कर उनका अभिवादन स्वीकार किया।

साथ चल रहे पुलिस वाले ने सरयू सिंह के कान में सारी बात बता दी और सरयू सिंह उल्टे पैर वापस अपने घर की तरफ आने लगे। उनके चेहरे पर मुस्कान थी मनोरमा मैडम ने उनके घर आकर निश्चय ही उन्हें इज्जत बख्शी थी। रास्ते में चलते हुए मनोरमा ने कहा..

आप भी बनारस चलने की तैयारी कर लीजिए दो-तीन दिनों का काम है बनारस महोत्सव की तैयारी करनी है

सरयू सिंह आज किसी भी हाल में सुगना को छोड़ने के मूड में नहीं थे मुंह में हिम्मत जुटा कर कहा

"मैडम मैं परसों आता हूं मेरे परिवार वाले भी उस महोत्सव में जाना चाहते हैं"

"फिर तो बहुत अच्छी बात है आप मेरे साथ चलिए और वहां महोत्सव की तैयारियां कराइये मैं परसों अपनी गाड़ी भेज कर इन्हें बुलवा लूंगी।"

मनोरमा ने शरीर सिंह के घर में जाकर उनका बाथरूम प्रयोग किया। सुगना और कजरी ने मनोरमा का दिल खोलकर स्वागत किया सुगना की खूबसूरती और कजरी की आवभगत देखकर मनोरमा बेहद प्रसन्न हुई। सुगना की खूबसूरत और कुंदन जैसी काया देखकर मनोरमा उससे बेहद प्रभावित हो गई गांव की आभाव भरी जिंदगी में भी सुगना ने इतनी खूबसूरती कैसे कायम रखी थी यह मनोरमा के लिए आश्चर्य का विषय था । वह उससे ढेर सारी बातें करने लगी सुगना ने कुछ ही पलों में अपना प्रभाव मनोरमा पर छोड़ दिया था।

उधर सरयू सिंह पर शिलाजीत रसायन का असर था जब जब वह सुगना को देखते उनका लण्ड उछल कर खड़ा हो जाता परंतु आज उन्हें सुगना से दूर करने के लिए नियति ने मनोरमा को भेज दिया था।

ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे नियति बनारस महोत्सव को रास रंग का उत्सव बनाने की तैयारी में थी। कजरी ने सरयू सिंह के कपड़े तैयार किये और कुछ ही देर में सरयू सिंह मनोरमा के पीछे पीछे जीप की तरफ चल पड़े। सुगना अपनी जांघों के बीच अपनी उत्तेजना को दम तोड़ते हुए महसूस कर रही थी।

सुगना और कजरी को एक ही बात की खुशी थी कि बनारस महोत्सव जाने का प्रोग्राम पक्का हो गया था वह भी एसडीएम द्वारा भेजी जा रही गाड़ी से। यह निश्चय ही सम्मान का विषय था। मनोरमा के आगमन से सुगना और कजरी दोनों की प्रतिष्ठा और बढ़ गई थी।

सुगना ने अपनी बुर को दो-चार दिन और इंतजार करने के लिए समझा लिया।

परंतु बनारस में सोनू के दिमाग में बार-बार लाली का चेहरा आ रहा था उस को लगी चोट सोनू को परेशान कर रही थी। लाली दीदी कैसी होंगी? क्या आज ठीक से चल पा रही होंगी ? यह सब बातें सोच कर उसका मन नहीं लग रहा था अंततः वह हॉस्टल से बाहर आया और लाली के घर की तरफ चल पड़ा.

लाली का पुत्र राजू स्कूल गया हुआ था और लाली बिस्तर पर पड़ी टीवी देख रही थी उसने दरवाजा जानबूझकर बंद नहीं किया का बार-बार चलने में उसे थोड़ा कष्ट हो रहा था। राजेश दोपहर के बाद आने वाला था इसीलिए उसने दरवाजा खुला छोड़ दिया था।

लाली के दरवाजे पर पहुंचकर सोनू ने दरवाजा खटखटाया। अंदर से लाली ने आवाज दी

"आ जाइए दरवाजा खुला है"

सोनू थोड़ा आशंकित हो गया। क्या लाली की सच में तबीयत ज्यादा खराब है? लाली हाल में नहीं थी वह अंदर कमरे में आ गया। लाली पेट के बल लेटी हुई थी। उसने आगंतुक को देखे बिना ही कहा थोड़ा आयोडेक्स लगा दीजिए। इतना कहते हुए उसने अपनी ब्लाउज और पेटीकोट के बीच नंगी पीठ को खोल दिया।

सोनू लाली की नंगी पीठ को अपनी आंखों के सामने देखकर मंत्रमुग्ध हो गया उसमें कोई आवाज न कि और पास पड़े आयोडेक्स को उंगलियों में लेकर लाली दीदी की पीठ को छू लिया। सोनू की उंगलियों के स्पर्श को लाली तुरंत पहचान गई और अपनी गर्दन घुमाते हुए बोली

"अरे सोनू बाबू…. मैं समझी कि वो आए हैं"

"कोई बात नहीं दीदी दवा ही तो लगानी है मैं लगा देता हूँ"

लाली ने अपनी शर्म को छुपाते हुए कहा

"छोड़ दे ना वह आएंगे तो लगा देंगे तेरे हाथ गंदे हो जाएंगे"

"अब तो हो गए दीदी" सोनू ने अपनी दोनों उंगलियां (जिस पर आयोडेक्स लिपटा हुआ था) लाली को दिखा दीं।

लाली मुस्कुराने लगी और वापस अपना चेहरा तकिये में छुपा लिया। सोनू की उंगलियां लाली की पीठ के निचले हिस्से पर दर्द के केंद्र की तलाश में घूमने लगीं। लाली दाएं बाएं ऊपर नीचे शब्द बोल कर सोनू की उंगलियों को निर्देशित करती रही और अंततः सोनू ने वह केंद्र ढूंढ लिया जहां लाली को चोट लगी थी।

सपाट और चिकनी कमर जहां दोनों नितंबों में परिवर्तित हो रही थी वही दर्द का केंद्र बिंदु था। लाली का पेटीकोट सोनू की उंगलियों को उस बिंदु तक पहुंचने पर रोक रहा था। सोनू अपनी उंगलियों में तनाव देकर उस जगह तक पहुंच तो जाता पर जैसे ही वह अपनी उंगलियों का तनाव ढीला करता पेटीकोट की रस्सी उसे बाहर की तरफ धकेल देती।

शायद पेटिकोट की रस्सी लक्ष्मण रेखा का काम कर रही थी। तकिए में मुह छुपाई हुई लाली नसोनू की स्थिति बखूबी समझ रही थी। यही वह बिंदु था जिसके आगे सोनू के सपने थे। लाली मुस्कुराती रही परंतु उसके सीने की धड़कन तेज हो गई थी उसके हाथ नीचे की तरफ बढ़ते गए। पेटीकोट की रस्सी लाली के हाथों में आ चुकी थी।

उत्तेजना और मर्यादा में एक बार फिर उत्तेजना की ही जीत हुई और पेटीकोट की रस्सी ने अपना कसाव त्याग दिया। सोनू की उंगलियां एक बार फिर उस बिंदु पर मसाज करने पहुंची। पेटिकोट की रस्सी अपना प्रतिरोध खो चुकी थी सोनू की उंगलियां जितना पीछे जाती वह सरक पर और दूर हो जाती। लाली के दोनों नितम्ब सोनू को आकर्षित करने लगे थे। एकदम बेदाग और बेहद मुलायम। यदि नितंबों पर एक निप्पल लगा होता तो सोनू जैसे युवा के लिए चुचियों और नितंबों में कोई फर्क ना होता। सोनू ने न अपना दूसरा हाथ भी लाली की सेवा में लगा दिया।

लाली को दर्द से थोड़ा निजात मिलते ही उसका ध्यान सोनू की हरकतों की तरफ चला गया। सोनू लाली के नितंबों से खेलने लगा। पेटिकोट ने नितंबों का साथ छोड़ दिया था और उसकी जांघों के ऊपर था। सोनू बीच-बीच में दर्द को के केंद्र को सहला था और अपने इस अद्भुत मसाज की अहमियत को बनाए रखा था।

परंतु उसका ज्यादा समय लाली के नितंबों को सहलाने में बीत रहा था। सोनू के मन में शरारत सूझी और उसने लाली के दोनों नितंबों को अलग कर दिया लाली की बेहद सुंदर गांड और बुर का निचला हिस्सा सोनू को दिखायी पड़ गया। बुर पर मदन रस चमक रहा था।

लाली की का गांड पूरी तरह सिकुड़ी हुई थी। नितंबों पर आए तनाव को देखकर उन्होंने यह महसूस कर लिया। लाली ने जानबूझकर अपनी गांड छुपाई हुई थी। सोनू ने नितंबों को सहलाना जारी रखा। उसे पता था लाली ज्यादा देर तक उसे सिकोड़ नहीं पाएगी।अंततः हुआ भी वही, लाली सामान्य होती गई परंतु उसकी बुर पर आया मदन रस धीरे धीरे लार का रूप लेकर चादर पर छूने लगा।

सोनू वह खूबसूरत दृश्य मंत्रमुग्ध होकर देख रहा था। गांव की बछिया और गायों की सेवा करते करते बुर से बहने वाली लार का मतलब उसे पता था…..

शेष अगले भाग में।


 

pprsprs0

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हॉस्टल के बिस्तर पर लेटा हुआ सोनू आज के सुखद और दुखद पलों को याद कर रहा था। विकास ने आज उसके साथ जो बर्ताव किया था उसकी उम्मीद उसे न थी।

माना कि उसकी हैसियत मोटरसाइकिल खरीदने की न थी। पर सोनू काबिलियत में विकास से बेहतर था। विकास तो अपने माता पिता की दौलत की वजह से अय्याशी की जिंदगी व्यतीत करता था। परंतु सोनू अपनी जिम्मेदारियों को बखूबी समझते हुए कम खर्च में अपनी पढ़ाई पूरी कर रहा था।

लाली दीदी के घर पहुंच कर उसने अपनी घड़ी पर निगाह डाली 11:00 बज चुके थे निश्चय ही देर हो गई थी। राजेश के जाने के पश्चात लाली धीरे-धीरे कदम बढ़ाते हुए अपने घर की तरफ बढ़ने लगी कमर में आई चोट अपना प्रभाव दिखा रही थी लाली के कदम गर्भवती महिला की तरह धीरे धीरे पड़ रहे थे। एक पल के लिए सोनू को बेहद अफसोस हुआ। उसने लाली दीदी को अनजाने में ही कष्ट तो दे ही दिया था।

सोनू ने लाली के हाँथ पकड़ लिए और सहारा देते हुए घर के अंदर ले आया लाली के कोमल हाथों का स्पर्श पाकर सोनू खुश हो गया परंतु लाली के चेहरे पर तनाव था। शायद दर्द कुछ ज्यादा था।

इस स्थिति में लाली को छोड़कर जाना उचित न था परंतु विकास की मोटरसाइकिल वापस करना भी उतना ही जरूरी था।

सोनू ने स्थिति की गंभीरता को समझते हुए लाली से कहा

"दीदी मुझे मोटरसाइकिल वापस करने जाना पड़ेगा।"

लाली ने अपने दर्द को छुपाते हुए कहा

"सोनू बाबु कुछ खाना खा ले तब जाना"

" नहीं दीदी मैं हॉस्टल में खा लूंगा. मुझे पहले ही बहुत देर हो चुकी है"

"सोनू, ऐसे खाली पेट कैसे जाएगा? मुझे अच्छा नहीं लगेगा"

"नहीं दीदी मुझे जाना होगा"

लाली ने कोई और रास्ता ना देख कर फटाफट बाजार से खरीदी हुई मिठाई सोनू के मुंह में जबरदस्ती डाल दी और पास बड़ी बोतल उठाकर उसके हाथों में पकड़ा दी "सोनू बाबू थोड़ा पानी तो पी ले" लाली बड़ी बहन की भूमिका बखूबी निभा रही थी।

सोनू फटाफट मिठाई खाते हुए पानी पीने लगा. तभी लाली ने पीछे मुड़कर अपनी चुचियों के बीच फंसे 100 -100 के दो नोट निकाले( जिसे सोनू ने निकालते हुए देख लिया) और सोनू को देते हुए बोली..

"यह अपने पास रख ले खर्च में काम आएंगे"

"नहीं दीदी इसकी कोई जरूरत नहीं है"

" मैंने कहा ना रख ले"

सोनू को निश्चय ही पैसों की जरूरत थी। अभी राजदूत में तेल फुल करवाना था। उसने लाली के सामने ही उन रुपयों को लिया और चूम लिया।

लाली को एक पल के लिए लगा जैसे सोनू ने उसके उभरे हुए उरोजों को ही चूम लिया. लाली अपना दर्द भूल कर एक बार फिर शर्म से लाल हो गई। उसने अपनी निगाहें झुका ली और सोनू ने अपने कदम दरवाजे से बाहर की तरफ बढ़ा दिए। जब लाली ने अपनी नजरें उठाई वह अपने मासूम और अद्भुत प्रेमी को राजदूत की तरफ बढ़ते हुए देख रही थी।

लाली को भी आज सुख और दुख की अनुभूति एक साथ ही मिली थी। नियति सामने मुंडेर पर बैठे मुस्कुरा रही थी। लाली का यह दर्द शीघ्र ही सुख में बदलने वाला था।

सोनू राजदूत लेकर फटाफट पेट्रोल पंप पर पहुंचा और पेट्रोल फुल करवाया इसके बावजूद उसके पास ₹50 शेष रह गए जो उसके कुछ दिनों के खर्चे के लिए पर्याप्त थे। उसने लाली दीदी को मन ही मन धन्यवाद दिया और उनके स्वस्थ होने की कामना की और मोटरसाइकिल को तेजी से चलाते हुए हॉस्टल की तरफ बढ़ चला।

हॉस्टल की लॉबी में पहुंचते ही उसकी मुलाकात विकास और भोलू से हो गई

"अबे साले तू तो 9:00 बजे तक आने वाला था? टाइम देख कितना बज रहा है"

सोनू ने अपनी घड़ी देखी और मैं दिमाग मैं उचित उत्तर की तलाश में लग गया

"पहले बता कहां गया था?"

विकास के प्रश्न लगातार आ रहे थे अंततः सोनू ने संजीदगी से कहा

"कुछ नहीं यार ऐसे ही अपने रिश्तेदार के यहां गया था" सोनू का उत्तर सुनकर भोलू ने अपनी नजरें झुका ली और मन ही मन मुस्कुराने लगा।

"सच-सच बता किस रिश्तेदार के यहां गया था?"

"अरे मेरी एक बहन यहां रहती हैं उनके पास ही गया"

"अच्छा बेटा तो ये बता मोटरसाइकिल पर लाल सूट में कौन लड़की बैठी थी?"

सोनू पूरी तरह आश्चर्यचकित हो गया उसे कोई जवाब नहीं सूझ रहा था अब झूठ बोलना संभव नहीं था। उसने विकास और भोलू को सारी बातें साफ-साफ बता दी सिर्फ उस बात को छोड़ कर जिसके बारे में उसके दोस्त सुनना चाहते थे।

विकास ने चुटकी लेते हुए कहा

"यार जिसने तुझे और उस लड़की मेरा मतलब तेरी लाली दीदी को देखा था वह कह रहा था कि भगवान ने उसे बड़ी खूबसूरती से बनाया है तू सच में तो उसे बहन तो नहीं मानता?"

"अरे बहन है तो बहन ही मानूँगा ना। "

"तो ठीक है बेटा आज से मुझे अपना जीजा मान ले।. इतनी गच्च माल को मैं तो नहीं छोडूंगा पक्का उसे पटाउंगा और …...।"

"ठीक है यदि तू उसे पटा कर सका तो मुझे तुझे जीजा बनाने में कोई दिक्कत नहीं।"

लाली को ध्यान में रखते हुए सोनू ने यह बात कह तो दी परंतु नियति ने सोनू की यह बात सुन ली. विकास सोनू का जीजा…... नियति मुस्कुरा रही थी…

बनारस महोत्सव करीब आ रहा था. दो अनजान जोड़े मिलन के लिए तैयार हो रहे थे। सोनू की बहन सोनी अपनी जांघों के बीच उग रहे बालों से परेशान हो रही थी उसकी खूबसूरत बुर को चूमने और चोदने वाला उसके भाई सोनू से बहस लड़ा रहा था।

सोनू ने उस समय तो बात खत्म कर दी थी परंतु अब हॉस्टल के बिस्तर पर लेटे हुए हुए उसी बात को मन ही मन सोच रहा था। विकास ने कैसे उससे लाली दीदी के बारे में वैसी बात कह दी थी। कितना दुष्ट है साला वो। उसके मन में तरह-तरह के गलत ख्याल आ रहे थे वह विकास से अपनी दोस्ती तोड़ने के बारे में भी सोच रहा था। तभी विकास और भोलू कमरे में आ गए सोनू को उदास देखकर वह दोनों बोले...

"यार तू गुमसुम यहां बैठा है"

"हां मन नहीं लग रहा था" सोनू ने बेरुखी से जवाब दिया

"क्यों क्या बात है?"

"कुछ नहीं, मुझे बात नहीं करनी है तुम लोग जाओ"

विकास सोनू के मन की बात जानता था उसने विकास का हाथ पकड़कर उठाते हुए कहा ...

"अरे भाई माफ कर दे उस समय मैं कुछ ज्यादा ही बोल गया, तेरी लाली दीदी मेरी भी लाली दीदी है मेरी बात को गलत मत लेना"

विकास के मनाने पर सोनू का गुस्सा काफूर हो गया।

उघर लाली का दर्द बढ़ गया था उसने पड़ोसियों की मदद से दर्द निवारक दवा मंगवा ली थी और चोट लगी जगह पर मलने के लिए एक क्रीम भी. उसने दवा तो खा ली पर अपने हाथों से अपनी ही कमर के ऊपर क्रीम लगाना इतना आसान न था। वह राजेश को बेसब्री से याद कर रही थी कि काश वह रात में आ जाता। परंतु रेलवे की टीटी की नौकरी का कोई ठिकाना न था। राजेश रात को नही लौटा और लाली राजेश को याद करती रही। उसके मन में सोनू के प्रति कोई गुस्सा न था सोनू उसे पहले भी प्यारा था और अब भी.

उधर अगली सुबह सरयू सिंह सुबह-सुबह नित्य कर्मों से निवृत्त होकर दालान में पहुंचे। आज उनके चेहरे पर खुशी स्पष्ट देखी जा सकती थी। आगन से सुनना गिलास में चाय लिए हुए हाजिर हो गई उसने सरयू सिंह के चरण छुए और बेहद आत्मीयता से बोली

"बाबूजी आज राउर जन्मदिन ह"

सरयू सिंह ने सुगना द्वारा लाई गई चाय एक तरफ रख दी और उसे अपनी गोद में खींच लिया। अपनी दाहिनी जांघ पर बैठाते हुए वह सुगना के कोमल गालों को चुमें जा रहे थे और सुगना उनकी बाहों में पिघलती जा रही थी।

सुगना ने भी उन्हें चूमते हुए कहा

"बाबूजी पहले चाय पी ली ई कुल काम दोपहर में"

सुगना ने कजरी को सब कुछ साफ-साफ बता दिया था. आज सरयू सिंह के जन्मदिन के विशेष उपहार के रूप में कजरी ने भी सुगना को चुदने की इजाजत दे दी थी थी.

सरयू सिंह बेहद प्रसन्न थे। उन्होंने पिछले तीन-चार महीनों से सुगना से संभोग का इंतजार किया था तो तीन चार घंटे और भी कर सकते थे। उन्होंने सुगना की बात मान ली और वह अपनी नजरों से सुगना के खूबसूरत जिस्म का और होठों से चाय का आनंद लेने लगे।

सुगना अपने बाबूजी की कामुक निगाहों को अपनी चूचियां और जांघों के बीच टहलते हुए देखकर रोमांचित हो रही थी और होठों पर मुस्कान लिए उनकी चाय खत्म होने का इंतजार कर रही थी.

कजरी ने अपने कुँवर जी के जन्मदिन के विशेष अवसर पर तरह-तरह के पकवान बनाए और सरयू सिंह का पसंदीदा मालपुआ भी बनाया। परंतु सरयू सिंह को जिस मालपुए की तलाश थी उसके सामने यह सारे पकवान फीके थे। सुगना का मालपुआ रस से सराबोर अपने बाबूजी के होठों और मजबूत लण्ड का इंतजार कर रहा था।

समय काटने के लिए सरयू सिंह ने अपनी कोठरी की साफ सफाई शुरू कर दी। इसी कोठरी में आज वह अपनी प्यारी बहू सुगना को जम कर चोदना चाहते थे। उनका लण्ड भी नए छेद के लिए तड़प रहा था। कितनी कसी हुई होगी सुगना की कोमल गांड उसकी कल्पना मात्र से ही उनका लण्ड में तनाव आ रहा था। वह बार-बार उसे समझाते परंतु वह मानने को तैयार ना था। इंतजार धीरे धीरे बेसब्री में बदल रहा था। काश सरयू सिंह के पास दिव्य शक्ति होती तो वह समय को मुट्ठी में सिकोड़ कर समय को पीछे खींच लेते लेते।

साफ सफाई के दौरान सरयू सिंह को शिलाजीत रसायन की 2 गोलियां मिल गयीं। सरयू सिंह की आंखों में चमक आ गई। गोलियों के प्रभाव और दुष्प्रभाव से वह बखूबी परिचित थे उनके मन में कामेच्छा और डॉक्टर के निर्देश दोनों के बीच द्वंद्व शुरू हो गया। उस गोली को वह खाएं या ना खाएं इसी उहापोह में कुछ पल बीत गए। विजय लंड की ही हुई।

शरीर का सारा रक्त लण्ड में भर चुका था और दिमाग के सोचने की शक्ति स्वाभाविक रूप से कम हो गई थी। सरयू सिंह ने एक गोली घटक ली। और दूसरी गोली अपने बैग में रख लीजिए वह हमेशा अपने साथ रखते थे। सुगना के दोनों अद्भुत छेदों का आनंद लेने के लिए सरयू सिंह ने डॉक्टर के सुझाव को दरकिनार कर दिया था।

अंदर सुगना नहा धोकर तैयार हो रही थी। आज उसे दीपावली के दिन की याद आ रही थी जब मन में कई उमंगे और अनजाने डर को लिए हुए वह अपने जीवन का पहला संभोग सुख लेने जा रही थी। आज उसके मन में बार-बार उसकी छोटी सी गांड का ख्याल आ रहा था जिसे आज एक नया अनुभव लेना था। परंतु उसके डर पर उसकी बुर की उत्तेजना हावी थी वह अपने बाबूजी सरयू सिंह से बेतहाशा चुदना चाहती थी उसकी तड़प भी अब चरम पर पहुंच चुकी थी।

कजरी भी पूरी तरह मन बना चुकी थी। उसने भगवान से प्रार्थना की कि उसके कुंवरजी सरयू सिंह का स्वास्थ्य कायम रहे। सुगना को मुखमैथुन पर विशेष जोर देकर और सरयू सिंह से कम से कम मेहनत कराने की बात समझा कर वह अपनी बहू को लेकर उनकी कोठरी में आ गई। सुगना ने अपने हाथ में पूजा की थाली ली हुई थी और कजरी ने अपनी थाली पर पकवान रखे हुए थे।

दोनों ने उनके जन्मदिन के अवसर पर औपचारिकताएं पूरी कीं। कजरी ने सरयू सिंह को आरती दिखायी और माथे पर तिलक लगाया। सरयू सिंह के मन में एक बार यह ख्याल आया जैसे वह जंग पर जाने वाले वीर सिपाही हों। अपनी कोमलांगी बहु सुगना के कोमल छेद के भेदन के लिए इतनी तैयारी…. सरयू सिंह मुस्कुरा रहे थे।

उनकी निगाहें सुगना की ब्लाउज से झांकती हुई चुचियों पर गड़ी हुई थी। सुगना ने अपने हाथों से उन्हें मालपुआ खिलाया और उन्होंने उसकी उंगलियों को अपने होठों से पकड़ लिया। कजरी अपनी बहू और कुँवरजी की अठखेलियां देख रही थी और शीघ्र ही वहां से हटने की सोच रही थी तभी गांव का चौकीदार भागता हुआ आया….

सरयू भैया सरयू भैया चलये मनोरमा मैडम ने आपको तुरंत बुलाया है।

सरयू सिंह भौचक रह गए

"अचानक कैसे आ गई मनोरमा मैडम?"

उन्हीं से पूछ लीजिएगा? कुछ जरूरी काम होगा तभी ढेर सारे पटवारी भी उनके साथ हैं"

"जा बोल दे मेरी तबीयत खराब है मैं नहीं आ सकता" सरयू सिंह किसी भी हाल में सुगना का साथ नहीं छोड़ना चाह रहे थे…

सुगना और कजरी मुस्कुरा रही थीं। सुगना के मन में एक अनजाना डर समा गया एक पल के लिए उसे लगा जैसे नियति ने आज भी उसके काम सुख पर ग्रहण लगा दिया था परंतु उसके बाबूजी अभी मोर्चा लिए हुए थे।

चौकीदार ने कहा

"छुट्टी तो नहीं लिया है ना आपने, चुपचाप जाकर मिल लीजिए बाकी आप जानते हैं मैडम कैसी हैं"

सरयू सिंह के दिमाग में मनोरमा का चेहरा घूम गया। वो बेहद कड़क एसडीएम थीं। जितनी कड़क उतनी ही सुंदर । 5 फुट 6 इंच की ऊंचाई भरा पूरा शरीर और सुंदर मुखड़ा तथा वह सरयू सिंह से बेहद तमीज से पेश आती थी।

सरयू सिंह इस बात को बखूबी मानते थे कोई भी सुंदर और युवा औरत उनकी कद काठी देखकर उन पर आसक्त तो हो सकती थी पर उनसे क्रोधित होना शायद सुंदर नारियों के के वश में न था।

इसके बावजूद ओहदे की अपनी चमक होती है। सरयू सिंह के मन में उसका खौफ हमेशा रहता था किसी महिला से डांट खाना उन्हें कतई गवारा ना था।

चौकीदार से हो रही इतनी देर की बहस में ही सरयू सिंह की उत्तेजना पर ग्रहण लग चुका था उन्होंने मनोरमा से मिलना ही उचित समझा और अपनी सजी-धजी प्रियतमा सुगना को देखते हुए बोले

"सुगना बेटा थोड़ा इंतजार करो मैं आता हूं"

चौकीदार ससुर और बहू के बीच में यह संबोधन देखकर वह सरयू सिंह से प्रभावित हो गया।

उधर प्राइमरी स्कूल पर खड़ी एसडीएम मनोरमा परेशान थी उसने प्राइमरी स्कूल के टॉयलेट का प्रयोग करने की सोची पिछले दो-तीन घंटों से लगातार दौरा करते हुए उसे जोर की पेशाब लग चुकी थी परंतु स्कूल का टॉयलेट देखकर वह नाराज हो गई। तुरंत इतनी जल्दी इसकी सफाई हो पाना भी असंभव था।

स्कूल के प्रिंसिपल ने हाथ जोड़कर कहा

मैडम जी सरयू सिंह जी का घर बगल में ही है आप वहीं चली जाए। मनोरमा के दिमाग में सरयू सिंह का मर्दाना और बलिष्ठ शरीर घूम गया। उनके पहनावे और चेहरे की चमक को देखकर मनोरमा जानती थी कि वह एक संभ्रांत पुरुष है। वह तैयार हो गई सरयू सिंह अपने दरवाजे से कुछ ही दूर आए होंगे तभी मनोरमा अपने काफिले के साथ ठीक उनके सामने आ गई।

सरयू सिंह ने दोनों हाथ जोड़कर मनोरमा का अभिवादन किया और मनोरमा ने भी अपने चेहरे पर मुस्कान ला कर उनका अभिवादन स्वीकार किया।

साथ चल रहे पुलिस वाले ने सरयू सिंह के कान में सारी बात बता दी और सरयू सिंह उल्टे पैर वापस अपने घर की तरफ आने लगे। उनके चेहरे पर मुस्कान थी मनोरमा मैडम ने उनके घर आकर निश्चय ही उन्हें इज्जत बख्शी थी। रास्ते में चलते हुए मनोरमा ने कहा..

आप भी बनारस चलने की तैयारी कर लीजिए दो-तीन दिनों का काम है बनारस महोत्सव की तैयारी करनी है

सरयू सिंह आज किसी भी हाल में सुगना को छोड़ने के मूड में नहीं थे मुंह में हिम्मत जुटा कर कहा

"मैडम मैं परसों आता हूं मेरे परिवार वाले भी उस महोत्सव में जाना चाहते हैं"

"फिर तो बहुत अच्छी बात है आप मेरे साथ चलिए और वहां महोत्सव की तैयारियां कराइये मैं परसों अपनी गाड़ी भेज कर इन्हें बुलवा लूंगी।"

मनोरमा ने शरीर सिंह के घर में जाकर उनका बाथरूम प्रयोग किया। सुगना और कजरी ने मनोरमा का दिल खोलकर स्वागत किया सुगना की खूबसूरती और कजरी की आवभगत देखकर मनोरमा बेहद प्रसन्न हुई। सुगना की खूबसूरत और कुंदन जैसी काया देखकर मनोरमा उससे बेहद प्रभावित हो गई गांव की आभाव भरी जिंदगी में भी सुगना ने इतनी खूबसूरती कैसे कायम रखी थी यह मनोरमा के लिए आश्चर्य का विषय था । वह उससे ढेर सारी बातें करने लगी सुगना ने कुछ ही पलों में अपना प्रभाव मनोरमा पर छोड़ दिया था।

उधर सरयू सिंह पर शिलाजीत रसायन का असर था जब जब वह सुगना को देखते उनका लण्ड उछल कर खड़ा हो जाता परंतु आज उन्हें सुगना से दूर करने के लिए नियति ने मनोरमा को भेज दिया था।

ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे नियति बनारस महोत्सव को रास रंग का उत्सव बनाने की तैयारी में थी। कजरी ने सरयू सिंह के कपड़े तैयार किये और कुछ ही देर में सरयू सिंह मनोरमा के पीछे पीछे जीप की तरफ चल पड़े। सुगना अपनी जांघों के बीच अपनी उत्तेजना को दम तोड़ते हुए महसूस कर रही थी।

सुगना और कजरी को एक ही बात की खुशी थी कि बनारस महोत्सव जाने का प्रोग्राम पक्का हो गया था वह भी एसडीएम द्वारा भेजी जा रही गाड़ी से। यह निश्चय ही सम्मान का विषय था। मनोरमा के आगमन से सुगना और कजरी दोनों की प्रतिष्ठा और बढ़ गई थी।

सुगना ने अपनी बुर को दो-चार दिन और इंतजार करने के लिए समझा लिया।

परंतु बनारस में सोनू के दिमाग में बार-बार लाली का चेहरा आ रहा था उस को लगी चोट सोनू को परेशान कर रही थी। लाली दीदी कैसी होंगी? क्या आज ठीक से चल पा रही होंगी ? यह सब बातें सोच कर उसका मन नहीं लग रहा था अंततः वह हॉस्टल से बाहर आया और लाली के घर की तरफ चल पड़ा.

लाली का पुत्र राजू स्कूल गया हुआ था और लाली बिस्तर पर पड़ी टीवी देख रही थी उसने दरवाजा जानबूझकर बंद नहीं किया का बार-बार चलने में उसे थोड़ा कष्ट हो रहा था। राजेश दोपहर के बाद आने वाला था इसीलिए उसने दरवाजा खुला छोड़ दिया था।

लाली के दरवाजे पर पहुंचकर सोनू ने दरवाजा खटखटाया। अंदर से लाली ने आवाज दी

"आ जाइए दरवाजा खुला है"

सोनू थोड़ा आशंकित हो गया। क्या लाली की सच में तबीयत ज्यादा खराब है? लाली हाल में नहीं थी वह अंदर कमरे में आ गया। लाली पेट के बल लेटी हुई थी। उसने आगंतुक को देखे बिना ही कहा थोड़ा आयोडेक्स लगा दीजिए। इतना कहते हुए उसने अपनी ब्लाउज और पेटीकोट के बीच नंगी पीठ को खोल दिया।

सोनू लाली की नंगी पीठ को अपनी आंखों के सामने देखकर मंत्रमुग्ध हो गया उसमें कोई आवाज न कि और पास पड़े आयोडेक्स को उंगलियों में लेकर लाली दीदी की पीठ को छू लिया। सोनू की उंगलियों के स्पर्श को लाली तुरंत पहचान गई और अपनी गर्दन घुमाते हुए बोली

"अरे सोनू बाबू…. मैं समझी कि वो आए हैं"

"कोई बात नहीं दीदी दवा ही तो लगानी है मैं लगा देता हूँ"

लाली ने अपनी शर्म को छुपाते हुए कहा

"छोड़ दे ना वह आएंगे तो लगा देंगे तेरे हाथ गंदे हो जाएंगे"

"अब तो हो गए दीदी" सोनू ने अपनी दोनों उंगलियां (जिस पर आयोडेक्स लिपटा हुआ था) लाली को दिखा दीं।

लाली मुस्कुराने लगी और वापस अपना चेहरा तकिये में छुपा लिया। सोनू की उंगलियां लाली की पीठ के निचले हिस्से पर दर्द के केंद्र की तलाश में घूमने लगीं। लाली दाएं बाएं ऊपर नीचे शब्द बोल कर सोनू की उंगलियों को निर्देशित करती रही और अंततः सोनू ने वह केंद्र ढूंढ लिया जहां लाली को चोट लगी थी।

सपाट और चिकनी कमर जहां दोनों नितंबों में परिवर्तित हो रही थी वही दर्द का केंद्र बिंदु था। लाली का पेटीकोट सोनू की उंगलियों को उस बिंदु तक पहुंचने पर रोक रहा था। सोनू अपनी उंगलियों में तनाव देकर उस जगह तक पहुंच तो जाता पर जैसे ही वह अपनी उंगलियों का तनाव ढीला करता पेटीकोट की रस्सी उसे बाहर की तरफ धकेल देती।

शायद पेटिकोट की रस्सी लक्ष्मण रेखा का काम कर रही थी। तकिए में मुह छुपाई हुई लाली नसोनू की स्थिति बखूबी समझ रही थी। यही वह बिंदु था जिसके आगे सोनू के सपने थे। लाली मुस्कुराती रही परंतु उसके सीने की धड़कन तेज हो गई थी उसके हाथ नीचे की तरफ बढ़ते गए। पेटीकोट की रस्सी लाली के हाथों में आ चुकी थी।

उत्तेजना और मर्यादा में एक बार फिर उत्तेजना की ही जीत हुई और पेटीकोट की रस्सी ने अपना कसाव त्याग दिया। सोनू की उंगलियां एक बार फिर उस बिंदु पर मसाज करने पहुंची। पेटिकोट की रस्सी अपना प्रतिरोध खो चुकी थी सोनू की उंगलियां जितना पीछे जाती वह सरक पर और दूर हो जाती। लाली के दोनों नितम्ब सोनू को आकर्षित करने लगे थे। एकदम बेदाग और बेहद मुलायम। यदि नितंबों पर एक निप्पल लगा होता तो सोनू जैसे युवा के लिए चुचियों और नितंबों में कोई फर्क ना होता। सोनू ने न अपना दूसरा हाथ भी लाली की सेवा में लगा दिया।

लाली को दर्द से थोड़ा निजात मिलते ही उसका ध्यान सोनू की हरकतों की तरफ चला गया। सोनू लाली के नितंबों से खेलने लगा। पेटिकोट ने नितंबों का साथ छोड़ दिया था और उसकी जांघों के ऊपर था। सोनू बीच-बीच में दर्द को के केंद्र को सहला था और अपने इस अद्भुत मसाज की अहमियत को बनाए रखा था।

परंतु उसका ज्यादा समय लाली के नितंबों को सहलाने में बीत रहा था। सोनू के मन में शरारत सूझी और उसने लाली के दोनों नितंबों को अलग कर दिया लाली की बेहद सुंदर गांड और बुर का निचला हिस्सा सोनू को दिखायी पड़ गया। बुर पर मदन रस चमक रहा था।

लाली की का गांड पूरी तरह सिकुड़ी हुई थी। नितंबों पर आए तनाव को देखकर उन्होंने यह महसूस कर लिया। लाली ने जानबूझकर अपनी गांड छुपाई हुई थी। सोनू ने नितंबों को सहलाना जारी रखा। उसे पता था लाली ज्यादा देर तक उसे सिकोड़ नहीं पाएगी।अंततः हुआ भी वही, लाली सामान्य होती गई परंतु उसकी बुर पर आया मदन रस धीरे धीरे लार का रूप लेकर चादर पर छूने लगा।

सोनू वह खूबसूरत दृश्य मंत्रमुग्ध होकर देख रहा था। गांव की बछिया और गायों की सेवा करते करते बुर से बहने वाली लार का मतलब उसे पता था…..

शेष अगले भाग में।
Mast likha hai🔥🔥🔥🔥🔥
 

xxxlove

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Bahut hi unmda update lovely Anand bhai.Saryu Singh ka Sugna àdhura rah gaya shayad Niyati uske liye ek nayi boor ka intzaam kar rahi hai aur lagta hai ki Niyati shayad sonu ka intzaar khatam karne wali hai.
Excellent update bhai......
 

komaalrani

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कहानी में ट्विस्ट डालना तो कोई आपसे सीखे, ...अब ये मनोरम देह की स्वामिनी मनोरमा जी आ गयीं और हम सब बेचैन मनोरमा जी के साथ मनोरम रमण का दृश्य बनेगा नहीं।

लेकिन अभी लाली का जो आप चित्र खींचते हैं वो अद्भुत है तन के साथ मन के मंथन की, मदन उसे मथ रहा है , पर ,...

बहुत अच्छा अपडेट
 
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