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Incest आह..तनी धीरे से.....दुखाता.

Lovely Anand

Love is life
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आह ....तनी धीरे से ...दुखाता
(Exclysively for Xforum)
यह उपन्यास एक ग्रामीण युवती सुगना के जीवन के बारे में है जोअपने परिवार में पनप रहे कामुक संबंधों को रोकना तो दूर उसमें शामिल होती गई। नियति के रचे इस खेल में सुगना अपने परिवार में ही कामुक और अनुचित संबंधों को बढ़ावा देती रही, उसकी क्या मजबूरी थी? क्या उसके कदम अनुचित थे? क्या वह गलत थी? यह प्रश्न पाठक उपन्यास को पढ़कर ही बता सकते हैं। उपन्यास की शुरुआत में तत्कालीन पाठकों की रुचि को ध्यान में रखते हुए सेक्स को प्रधानता दी गई है जो समय के साथ न्यायोचित तरीके से कथानक की मांग के अनुसार दर्शाया गया है।

इस उपन्यास में इंसेस्ट एक संयोग है।
अनुक्रमणिका
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भाग 126 (मध्यांतर)
 
Last edited:

snidgha12

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रक्त समूह के सीमित पैटर्निटी टेस्ट के बाद पद्मा से सम्भोग की तिथि और सुगना के जन्म की तिथि के साथ अब सरजू सिंह और सुगना का पिता पुत्री का रिश्ता जो नियति ने तय कर रखा था, बहुत तार्किक ढंग से रख दिया, और अब यह कहानी पिता पुत्री के ( बायोकोजिकल , एक्सीडेंटल ही सही ) संबंधों की ओर मुड़ चुकी है. यह संबंध जो वर्जना की सभी चारदीवारियों को तोड़ता है , लेकिन यह बहुत नाटकीय ढंग से लेखक ने पूरे तानेबाने के साथ प्रस्तुत किया है जो उनकी रचना धर्मिता का सशक्त प्रमाण है.

लेकिन इस तरह के संबंध आत्मग्लानि को अवसाद को और अक्सर दुखांत को ही जन्म देते हैं और शायद यही उनका तार्किक अंत है. और ग्लानि के कुछ चिन्ह इस पोस्ट में भी परिलक्षित हो रहे हैं.

इन्सेस्ट, खासतौर से पिता पुत्री के बीच का मुझे कुछ अच्छा नहीं लगता, पर ये मेरी निजी सोच है, मैं गाँव गंवई माहौल की, गोबर मिटटी वाली, ननदों को सादी बियाह में गारी गाने, भौजाइयों से गारी सुनने सुनाने में, रतजगे में भी, चिढ़ाने में भी कुछ संबध वर्ज्य रहते हैं और पिता पुत्री का संबंध उनमे से है.

भिखारी ठाकुर, जो किसी परिचय के मोहताज़ नहीं है का एक नाटक याद आता है इसमें एक व्यक्ति कमाने गया है और बरसों बाद लौटता है और उसकी पत्नी ने एक पुत्र को जन्म दिया है अब प्रश्न यह है की बच्चा किसका है,

पति कहता है की स्त्री उसकी ब्याहता है इसलिए बच्चा उसका है,

वह व्यक्ति जिसके वीर्य से वह बच्चा पैदा हुआ कहता है , बच्चा उसका है.

पर मुझे सबसे तगड़ा तर्क उसकी माँ का लगा, जो कहती है की मेरे पास दूध था, मैं दही चाहती थी। मैंने पडोसी के घर से थोड़ा सा दही का जामन लिया, और दही जमा ली। तो क्या कहतरी भर दही उसकी होगयी जिसने थोड़ा सा जामन दिया।

नियति ने जो कुछ नियत कर दिया उसमें कौन क्या कह सकता है , लेकिन कुछ सवाल उमड़ते घुमड़ते हैं,

जैसे उस गहरी काली अमावस की रात, जब सुगना नियति के अनुसार पद्मा की कोख में आयी तो पद्मा विवाहिता थी या कुंवारी ? अगर कुँवारी भी रही होगी तो निश्चित तौर पर कुछ दिन के बाद उसकी शादी हो गयी होगी , उसके और भी बच्चे हैं।

और कुँवारी माँ तो वो निश्चित नहीं थी।

गर्भवती होने के दो तीन महीने बाद गर्भ के लक्षण दिखने लगते हैं, और गाँव देहात में अगर किसी नयी बहू के पांच छह महीने बाद प्रसव जो जाए , हम सब कल्पना कर सकते हैं, फिर गाँव के घर में रजस्वला होने या न होने की बाद भी घर में नहीं छुपती।

पद्मा के पति का जिक्र कहानी में नहीं आया है, शायद।

बस एक बात और,

कर्ण को हम सूर्य पुत्र कहते हैं

पर युधष्ठिर, भीम, अर्जुन, नकुल, सहदेव को, यम, वायु, इंद्र और अश्विनी पुत्र नहीं कहते पाण्डु पुत्र ही कहते हैं क्योंकि उनके जन्म के समय कुंती और माद्री दोनों पांडू की धर्म से विवाहित पत्नियां थीं।

लेकिन मैं जानती हूँ इस तरह के फालतू के सवाल कथा की गति में बाधा डालते हैं , रस भंग करते हैं और पाठकों के आनंद में विघ्न उत्पन्न करते हैं , इसलिए आखिर बार इस तरह की पोस्ट, वरना मैं भी मानती हूँ , जानती हूँ की यह एक कहानी है , कहानी में थोड़ा सस्पेंशन आफ डिसबिलिफ होता है, कभी कभी ज्यादा भी हो जाता है,

मेरी सहानुभूति पति परित्यक्ता सुगना के साथ है, पर वह भी कहानी का एक चरित्र है और नियति ने जो उसकी भूमिका लिखी होगी वह उसी प्रकार से,


कहानी की गति, प्रस्तुति और तेज घटनाक्रम अद्भुत है और मैं भी कहानी के आगे बढ़ने का लाखों पाठकों के साथ इन्तजार करुँगी इस वायदे के साथ की इस तरह के सवाल अब और नहीं, बस नियति ने नियत किया है उस का रसास्वादन करुँगी,
Dear Komal... I can not as good in Hindi... But I am not agree with you on your thoughts on Incest between a Father & her daughter.

Till saryu singh fucked sugna as her daughter in law or any body is having physical relationship with other women , you have no regrets or any kind of discomfort as a reader ....

Here I also mention that you are a very good writer ... And your all stories contains incest sex between brother and sister (you also write on virgin defloration with or without their consent... You wrote on BDSM, & wife sharing) ... I mean as a writer , I hope you read all literature before write... And as per my knowledge all ancient books contains incest.

So when you read an write on such subject... You can't create issues on father & daughter sexual relationship...

It is purely writers matter of concern what he should write...

I saw writer is so very humble that he always asks readers what they want to read, what they like ... After he create such character and plot...

Writer is also reading all messages written by reader and if any concerns he is humbly resolve them.

Request you to please read the story by open heart and mind...
 

komaalrani

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Dear Komal... I can not as good in Hindi... But I am not agree with you on your thoughts on Incest between a Father & her daughter.

Till saryu singh fucked sugna as her daughter in law or any body is having physical relationship with other women , you have no regrets or any kind of discomfort as a reader ....

Here I also mention that you are a very good writer ... And your all stories contains incest sex between brother and sister (you also write on virgin defloration with or without their consent... You wrote on BDSM, & wife sharing) ... I mean as a writer , I hope you read all literature before write... And as per my knowledge all ancient books contains incest.

So when you read an write on such subject... You can't create issues on father & daughter sexual relationship...

It is purely writers matter of concern what he should write...

I saw writer is so very humble that he always asks readers what they want to read, what they like ... After he create such character and plot...

Writer is also reading all messages written by reader and if any concerns he is humbly resolve them.

Request you to please read the story by open heart and mind...
yes i agree with you, and on the points of disagreement, let us agree to disagree.

as for as this writer and his writings are concerned, i just adore his work , one of his biggest fans,... there are very few stories where i share my comments and this is the only one where i am regular,... now let me quote from the post in question,...

यह बहुत नाटकीय ढंग से लेखक ने पूरे तानेबाने के साथ प्रस्तुत किया है जो उनकी रचना धर्मिता का सशक्त प्रमाण है.


कहानी की गति, प्रस्तुति और तेज घटनाक्रम अद्भुत है और मैं भी कहानी के आगे बढ़ने का लाखों पाठकों के साथ इन्तजार करुँगी

so, dramatization, structure of the story, creativity, speed. presentation and the way things unfold, the story is second to none and has an exceptional quality , i have lauded it for it and i still say there are very few stories which match it.

I also agree with you that its purely writers matter of concern what he should write .

I am also in full agreement with you that writer is very humble and to me it shows his innate good nature, care for fellow being which is also reflected here.

I agree with you about reading the story, and i have declared my intent saying, और मैं भी कहानी के आगे बढ़ने का लाखों पाठकों के साथ इन्तजार करुँगी

Now the points of disagreement, please don't mention my stories in the same breath as this story. I am not even a patch, its like comparing the mighty sun with a fledgling twinkling weak short lived earthen lamp.

Your are an avid reader of my stories too and i am your admirer so some of the issues you raised about my stories i will certainly made clarifications on my thread, as discussing my predilections here is in total bad taste.

I respect you for flagging the issues you raised and i anticipated it hence i wrote,...

लेकिन मैं जानती हूँ इस तरह के फालतू के सवाल कथा की गति में बाधा डालते हैं , रस भंग करते हैं और पाठकों के आनंद में विघ्न उत्पन्न करते हैं , इसलिए आखिर बार इस तरह की पोस्ट, वरना मैं भी मानती हूँ , जानती हूँ की यह एक कहानी है , कहानी में थोड़ा सस्पेंशन आफ डिसबिलिफ होता है,....और मैं भी कहानी के आगे बढ़ने का लाखों पाठकों के साथ इन्तजार करुँगी इस वायदे के साथ की इस तरह के सवाल अब और नहीं, बस नियति ने नियत किया है उस का रसास्वादन करुँगी,

yes i have reservations of father daughter incest

but the way it has been structured here is totally different from hundreds of incest stories which abound every forum. Here it is accidental with a sense of guilt and that is why in one of earlier posts i had said, it reminded me of Greek Tragedies and here again in this post i alluded to that,

लेकिन इस तरह के संबंध आत्मग्लानि को अवसाद को और अक्सर दुखांत को ही जन्म देते हैं और शायद यही उनका तार्किक अंत है. और ग्लानि के कुछ चिन्ह इस पोस्ट में भी परिलक्षित हो रहे हैं.

I am so sorry that my post caused anguish to you, i am a great admirer of this story and will remain so.

But no more discussion on these unrelated issues, let us enjoy the story and wait for more posts.
 

Lovely Anand

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रक्त समूह के सीमित पैटर्निटी टेस्ट के बाद पद्मा से सम्भोग की तिथि और सुगना के जन्म की तिथि के साथ अब सरजू सिंह और सुगना का पिता पुत्री का रिश्ता जो नियति ने तय कर रखा था, बहुत तार्किक ढंग से रख दिया, और अब यह कहानी पिता पुत्री के ( बायोकोजिकल , एक्सीडेंटल ही सही ) संबंधों की ओर मुड़ चुकी है. यह संबंध जो वर्जना की सभी चारदीवारियों को तोड़ता है , लेकिन यह बहुत नाटकीय ढंग से लेखक ने पूरे तानेबाने के साथ प्रस्तुत किया है जो उनकी रचना धर्मिता का सशक्त प्रमाण है.
आप ने सच कहा मैंने इस संबंध को दिखाने के लिए मेडिकल साइंस का सहारा कम लिया ताकि यह कहानी कहानी ही रहे अन्यथा चंद घंटों में डीएनए टेस्ट की जरूरत और टेस्ट रिपोर्ट आने में लगने वाला समय कहानी को धीमा करता .


लेकिन इस तरह के संबंध आत्मग्लानि को अवसाद को और अक्सर दुखांत को ही जन्म देते हैं और शायद यही उनका तार्किक अंत है. और ग्लानि के कुछ चिन्ह इस पोस्ट में भी परिलक्षित हो रहे हैं.

इन्सेस्ट, खासतौर से पिता पुत्री के बीच का मुझे कुछ अच्छा नहीं लगता, पर ये मेरी निजी सोच है, मैं गाँव गंवई माहौल की, गोबर मिटटी वाली, ननदों को सादी बियाह में गारी गाने, भौजाइयों से गारी सुनने सुनाने में, रतजगे में भी, चिढ़ाने में भी कुछ संबध वर्ज्य रहते हैं और पिता पुत्री का संबंध उनमे से है.
इन्सेस्ट मेरे लिए हमेशा से घृणित सब्जेक्ट है पर मैं परिस्थितिजन्य सेक्स पर लिख कर इस कहानी में इन्सेस्ट को कछ हद तक जीवित रहूंगा
भिखारी ठाकुर, जो किसी परिचय के मोहताज़ नहीं है का एक नाटक याद आता है इसमें एक व्यक्ति कमाने गया है और बरसों बाद लौटता है और उसकी पत्नी ने एक पुत्र को जन्म दिया है अब प्रश्न यह है की बच्चा किसका है,

पति कहता है की स्त्री उसकी ब्याहता है इसलिए बच्चा उसका है,

वह व्यक्ति जिसके वीर्य से वह बच्चा पैदा हुआ कहता है , बच्चा उसका है.

पर मुझे सबसे तगड़ा तर्क उसकी माँ का लगा, जो कहती है की मेरे पास दूध था, मैं दही चाहती थी। मैंने पडोसी के घर से थोड़ा सा दही का जामन लिया, और दही जमा ली। तो क्या कहतरी भर दही उसकी होगयी जिसने थोड़ा सा जामन दिया।

नियति ने जो कुछ नियत कर दिया उसमें कौन क्या कह सकता है , लेकिन कुछ सवाल उमड़ते घुमड़ते हैं,

आपके इस उद्धरण पर निश्चित ही इस कहानी में कई बार यह प्रश्न आएंगे और उनका समुचित उत्तर भी मैं अपने अनुकूल दूंगा क
जैसे उस गहरी काली अमावस की रात, जब सुगना नियति के अनुसार पद्मा की कोख में आयी तो पद्मा विवाहिता थी या कुंवारी ? अगर कुँवारी भी रही होगी तो निश्चित तौर पर कुछ दिन के बाद उसकी शादी हो गयी होगी , उसके और भी बच्चे हैं।

और कुँवारी माँ तो वो निश्चित नहीं थी।

गर्भवती होने के दो तीन महीने बाद गर्भ के लक्षण दिखने लगते हैं, और गाँव देहात में अगर किसी नयी बहू के पांच छह महीने बाद प्रसव जो जाए , हम सब कल्पना कर सकते हैं, फिर गाँव के घर में रजस्वला होने या न होने की बाद भी घर में नहीं छुपती।

पद्मा के पति का जिक्र कहानी में नहीं आया है, शायद।
मुझे लगता है कहानी के शुरुआती भाग आपने ध्यान से नहीं पड़े हैं यदि समय हो तो भाग 8 पढियेगा। आपके सारे प्रश्नों के उत्तर उसी भाग में उपलब्ध हैं और पहले से ही उपलब्ध है मैंने कोई एडिटिंग नहीं की है।
बस एक बात और,

कर्ण को हम सूर्य पुत्र कहते हैं

पर युधष्ठिर, भीम, अर्जुन, नकुल, सहदेव को, यम, वायु, इंद्र और अश्विनी पुत्र नहीं कहते पाण्डु पुत्र ही कहते हैं क्योंकि उनके जन्म के समय कुंती और माद्री दोनों पांडू की धर्म से विवाहित पत्नियां थीं।

लेकिन मैं जानती हूँ इस तरह के फालतू के सवाल कथा की गति में बाधा डालते हैं , रस भंग करते हैं और पाठकों के आनंद में विघ्न उत्पन्न करते हैं , इसलिए आखिर बार इस तरह की पोस्ट, वरना मैं भी मानती हूँ , जानती हूँ की यह एक कहानी है , कहानी में थोड़ा सस्पेंशन आफ डिसबिलिफ होता है, कभी कभी ज्यादा भी हो जाता है,
ऐसा ना कहें पाठकों के प्रश्न और उनके विचार भी इस कहानी को आगे बढ़ाएंगे अन्यथा मेरे लिए इस कहानी में कुछ भी नहीं बचेगा
मेरी सहानुभूति पति परित्यक्ता सुगना के साथ है, पर वह भी कहानी का एक चरित्र है और नियति ने जो उसकी भूमिका लिखी होगी वह उसी प्रकार से,


कहानी की गति, प्रस्तुति और तेज घटनाक्रम अद्भुत है और मैं भी कहानी के आगे बढ़ने का लाखों पाठकों के साथ इन्तजार करुँगी इस वायदे के साथ की इस तरह के सवाल अब और नहीं, बस नियति ने नियत किया है उस का रसास्वादन करुँगी,
धन्यवाद इसी तरह अपनी प्रतिक्रियाएं देते हुए और कहानी पर प्रश्न उठा कर मुझे इस कहानी को और प्रमाणित करने का मौका दे तेरे अच्छा लगता है जब कोई प्रश्न उठाता है और कहानी में मैंने उसका उत्तर पहले ही दिया रहता है एक बात ध्यान रखिएगा मैंने कहानी की रूपरेखा पहले ही तय की हुई है पात्रों का सृजन और चरित्र निर्माण उसी दिशा में धीरे-धीरे हो रहा है क्या होना है और क्या नहीं मेरे पाठकों से प्रश्न भी उसी दिशा में रहेंगे परंतु कहानी के मूल स्वरूप में कोई बदलाव नहीं हो सकता क्यों की कहानी आगे बढ़ चुकी है फिलहाल कहानी का मध्यांतर हो चुका है
 

Lovely Anand

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Dear Komal... I can not as good in Hindi... But I am not agree with you on your thoughts on Incest between a Father & her daughter.

Till saryu singh fucked sugna as her daughter in law or any body is having physical relationship with other women , you have no regrets or any kind of discomfort as a reader ....

Here I also mention that you are a very good writer ... And your all stories contains incest sex between brother and sister (you also write on virgin defloration with or without their consent... You wrote on BDSM, & wife sharing) ... I mean as a writer , I hope you read all literature before write... And as per my knowledge all ancient books contains incest.

So when you read an write on such subject... You can't create issues on father & daughter sexual relationship...

It is purely writers matter of concern what he should write...

I saw writer is so very humble that he always asks readers what they want to read, what they like ... After he create such character and plot...

Writer is also reading all messages written by reader and if any concerns he is humbly resolve them.

Request you to please read the story by open heart and mind...
आज इस कहानी पर कोमल जी की पोस्ट पर विस्तृत प्रतिक्रिया देख कर मुझे ऐसा एहसास हो रहा है जैसे आप भी एक पढ़ी लिखी और जागरूक पाठिका हैं..

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भाग-61

कामुकता का जैसे अकाल पड़ गया था।

सारा दारोमदार सोनी पर आ गया था। सोनी की बहन मोनी अभी भी धर्म परायण थी और अपने शरीर में छुपे हुए खजाने से अनजान अपनी मां का हाथ बटाने में लगी रहती थी।

सोनी बिस्तर पर लेटी विकास के साथ बिताए पल याद कर रही थी उसकी हथेलियां स्तनों पर रेंग रही थी और जांघो के बीच फसा तकिया हिल रहा था…

जैसे जैसे तकिए की रगड़ जांघों के जोड़ पर बढ़ती गई सोनी की हथेलियां सूखी चुचियों को छोड़कर रसीली बुर की तरफ बढ़ गई। सोनी को अपनी रसीली बूर् को सहलाने में बेहद आनंद आता था..जैसे ही उंगलियों ने रसीले छेद पर छलके चिपचिपे रस को छुआ .तभी


"सोनी ए सोनी…." सोनू ने आवाज लगाई

अब आगे..

"आई भैया" सोनी चिल्लाई

जब तक सोनी की आवाज बाहर पहुंचती सोनू कमरे में दाखिल हो चुका था यह तो शुक्र था कि सोनी के हाथ उसके लहंगे से बाहर आ चुके थे परंतु उंगलियों में रस अभी भी लगा हुआ था. सोनी ने उस रस को अपने नितंबों को ढक रहे घागरे में पोछने की कोशिश की और बोली..

"का चाहीं"

"थोड़ा बोरोप्लस लगा दे देख यहां का कटले बा"

सोनी ने देखा सोनू की नाक के नीचे एक कीड़े ने काट लिया था चमड़ी छिली हुई प्रतीत हो रही थी। सोनू के दोनों हाथ भैंसों के चारे से लथपथ थे शायद वह भैंसों के नाद ( जिसमेँ भैसें खाना खाती हैं) में चारा डाल कर उसे मिला रहा था।

सोनी ने दीवाल पर टंगे शीशे के साथ लगी प्लेट में रखा बोरोप्लस उठाया और अपनी उंगलियों में लेकर सोनू की नाक के ठीक नीचे लगे जख्म पर लगाने लगी एक पल के लिए सोनी यह भूल गई की उसकी उंगलियां प्रेम रस से संनी हुई थीं।


यद्यपि उसने उस रस को अपने घागरे में पोंछ लिया था परंतु कुवारी चूत की खुशबू अभी भी उसकी उंगलियों में समाहित थी।

जिस तरह कस्तूरी मृग अपनी नाभि में छुपे सुगंध को नहीं पहचान पाता उसी प्रकार सोनी भी उस खुशबू से अनभिज्ञ थी। परंतु सोनू वह तो इस काम रस की खुशबू से अभी हाल में ही वाकिफ हुआ था और उसकी मादक खुशबू को बखूबी पहचानता था।

अपनी लाली दीदी की चूत में उंगली घुमा कर उसने न जाने कितनी बार अपनी उंगलियों को प्रेम रस से सराबोर किया था और उन पर आई मदन रस को न जाने कितने घंटों तक सहेज कर उसकी मादक खुशबू का आनंद लिया था।


जैसे ही सोनी की उंगलियां सोनू की नाक के नीचे पहुंची सोनू की घ्राणेन्द्रियों ने उन्होंने सोनी की उंगलियों में लगी उसकी कुंवारी चूत की खुशबू बोरोप्लस की खुशबू पर भारी पड़ गयी। सोनू ने उसे अपने संज्ञान में ले लिया वह खुशबू उसे जानी पहचानी लगी ….

बनारस महोत्सव ने सोनू को स्त्रियों के यौन अंगों और उनसे रिसने वाले काम रस से भलीभांति परिचित करा दिया था.

यदि सामने सोनी की जगह लानी होती तो सोनू निश्चित ही यकीन कर लेता की उसके दिमाग में आए खयालात पूरी तरह सच है परंतु चूंकि यह उसकी छोटी बहन सोनी थी, सोनू का दिल यह बात मानने को तैयार न था की वह खुशबू सोनी की नादान चूत की ही थी। सोनू की निगाह में अब भी सोनी एक किशोरी ही थी उसे क्या पता था लड़कियां ज्यादा जल्दी जवान होती हैं और जांघों के बीच भट्टी जल्दी सुलगने लगती है..

सोनू ने उंगलियों को सुघने के लिए कुछ ज्यादा ही प्रयास किया जिसे सोनी ने महसूस कर लिया और उसे यह बात ध्यान आ गई उसने फटाक से अपने हाथ नीचे खींच लीयेऔर बोली

"लग गया…" और शर्माती लजाती तेजी से कोठरी से बाहर निकल गयी…..

सोनू भी वहां से हट गया पर अभी भी उस भीनी भीनी खुश्बू की तस्दीक कर रहा था कि क्या सोनी की उंगलियों पर कुछ और भी लगा था?


यह पहला अवसर था जब सोनू के मन में सोनी की युवा अवस्था का ख्याल आया अन्यथा आज तक तो वह उसकी प्यारी गुड़िया ही थी।

एक-दो दिन बाद सोनू वापस बनारस आ कर अपनी पढ़ाई में लग गया।

बनारस महोत्सव ने कईयों के अरमान पूरे किए थे और कईयों को उनकी किए की सजा भी दी थी एक तरफ सोनू ने इस महोत्सव में लाली की चूत में डुबकी लगाई थी वही विकास ने सोनी के जाँघों के बीच छलकती पहाड़ी नदी और उसकी उष्णता का आनंद लिया था। वहीं दूसरी तरफ सरयू सिंह को इस महोत्सव में ऐसी स्थिति में ला दिया था जहां वह न सिर्फ पश्चाताप की अग्नि में जल रहे थे अपितु अब उन्हें अपना जीवन बोझ लगने लगा था।

सोनू और विकास दोनों ही हॉस्टल के कमरे में अपने बिस्तर पर लेटे छत को देख रहे थे आंखें छत से चिपकी हुई थी पर दिमाग चूत पर टिका था।

कितना अद्भुत सृजन है नियति का एक छोटा पर अद्भुत छेद … लगता है जैसे सारी संवेदनाएं और भावनाएं उस अद्भुत कलाकृति के इर्द-गिर्द ही घूमती है। वही प्रेम का चरम है वही जन्म का स्त्रोत है वही रिश्तो की जनक है वही पवित्र है वही पाप है…..

विकास अपने पहले अनुभव को साझा करना चाहता था। उसने बात शुरू करते हुए से सोनू से कहा...

इस बार तो तू अपनी लाली दीदी से चिपका रहा?

सोनू ने विकास की तरफ देखा परंतु कुछ बोला नहीं

" बेटा मैं जानता हूं कि वह गच्च माल तेरी असली दीदी नहीं है…"


"सच कहूं तो भगवान को ऐसी सुंदर और गदराई माल का कोई भाई नहीं होना चाहिए …तू कैसे उसे अपनी दीदी मां पाता है?" विकास मैं अपनी कही गई बात पर बल देते हुए कहा।

सोनू से अब और बर्दाश्त ना हुआ वह अपनी सफलता अपने दोस्त से साझा करना चाहता था उसने मुस्कुराते हुए कहा..

"दीदी है ना तभी तो दे दी…."

विकास बिस्तर पर उठ कर बैठ गया और उत्सुकता से पूछा…

"तू क्या तूने चोद लिया"

" हां, चोद लिया" सोनू ने शर्माते हुए कहा.. वह भी अपने प्रथम संभोग की बातों को साझा कर अपनी मर्दानगी का बखान करना चाहता था..

" बता...ना कैसे कैसे हुआ?"


सोनू ने लाली के साथ बिताए गए पलों को विकास से पूरी तरह साझा कर लिया जैसे-जैसे सोनू की कहानी संभोग के करीब पहुंची वैसे वैसे उसने अपनी कहानी से राजेश को दूर कर दिया सोनू को यह बात अब भी समझ नहीं आ रही थी कि आखिर राजेश जीजु उसे लाली के समीप आने पर रोक क्यों नहीं रहे थे परंतु सोनू तो लाली का आम चूसने में व्यस्त था उसे गुठलियों से क्या मतलब था।

संभोग का विवरण सुनते सुनाते दोनों युवा एक बार फिर उत्तेजित हो गए और उनके लण्ड एक बार फिर हथेलियों का मर्दन झेलने लगे। यह भी एक विधि का विधान है जब वह अंग सबसे कोमल रहता है तब उसे सख्त हथेलियों के मर्दन का शिकार होना पड़ता है।

अब बारी विकास की थी उसने जैसे-जैसे सोनी के शरीर और उसके कामांगो के बारीक विवरण प्रस्तुत किए सोनू के दिमाग में उस किशोरी की छवि बनती चली गई। जैसे-जैसे विकास के विवरण में उस किशोरी की कुंवारी चूत का अंश आने लगा सोनू भाव विभोर हो गया। उसका लण्ड उसकी कठोर हथेलियों के मर्दन से तंग आ चुका था और शीघ्र स्खलित हो कर अपने कर्तव्य का निर्वहन करना चाहता था।

विकास ने बताया..

"यार चूत की खुशबू क्या नशीली होती है, मैं तो उसे रात तक सूंघता रह गया था…"

सोनू के दिमाग में बरबस सोनी का ख्याल आ गया सोनी की उंगलियों में बसी बुर की खुशबू को सोनू ने अपने दिलो-दिमाग में बसा लिया था।

अपनी लाली दीदी की फूली हुई चूत रूपी ग़ुलाब को छोड़कर अचानक सोनू के दिमाग में गुलाब की कली का ध्यान आ गया। एक पल के लिए सोनू यह भूल गए कि जिस कली को वह मसलने की सोच रहा है वह उसकी अपनी छोटी बहन सोनी थी। उत्तेजना ने पराकाष्ठा प्राप्त की और सोनू के लण्ड ने अपना तनाव त्यागना शुरू कर दिया और अपनी दुग्ध धारा खुले आसमान की तरफ छोड़ दी। उधर विकास में भी अपना स्खलन प्रारंभ कर दिया था।


दोनों ही युवा पुरुषों से निकल रही वीर्य धारा एक दूसरे से होड़ लगा रही थी। परंतु सोनू था गांव का गबरु जवान और सरयू सिंह की प्रतिमूर्ति और विकास शहर का सामान्य युवक …. लण्ड की धार चाहे जैसी भी रही हो तृप्ति का एहसास उन दोनों के चेहरे पर था।

विकास को क्या पता था जिस किशोरी का उसने वर्णन किया था वह सोनू की अपनी बहन सोनी थी।

समय बीतते देर नहीं लगती। उधर सलेमपुर में जैसे ही स्थितियां सामान्य हुई सुगना ने सूरज द्वारा जीते गए पैसों से गंगा नदी के किनारे उसी सोसाइटी में एक मकान खरीदा जिसके काउंटर के बगल में लॉटरी की टिकट बिक रही थी।


उसने लाली और राजेश को भी उसी सोसाइटी में मकान खरीदने के लिए मना लिया। सुगना के समीप रहने की बात सोच कर राजेश बेहद उत्साहित हो गया अपने प्रोविडेंट फंड के पैसे निकालकर वह उस सोसाइटी में मकान खरीदने के लिए तैयार हो गया।

पैसों की तंगी राजेश और लाली के पास भी थी। यह तो सुगना की दरिया दिली थी कि उसने अपने जीते हुए पैसों का कुछ भाग राजेश और लाली को भी दे दिया ताकि वह उसी सोसाइटी में उसके ठीक बगल का मकान खरीद पाए। राजेश ने बाकी पैसे अपने लोन से उठा लिए।

सरयू सिंह सुगना की दूरदर्शिता से पूरी तरह प्रभावित थे। बनारस शहर में मकान खरीदने का निर्णय सुगना ने किया था और वह तुरंत ही उसकी बात मान गए थे। क्योंकि वह पूरी तरह स्वस्थ न थे उन्होंने इस विशेष कार्य के लिए रतन और राजेश पर विश्वास कर लिया था और अपने संचित धन का महत्वपूर्ण हिस्सा उस घर पर लगा दिया। सरयू सिंह अपनी इस आकस्मिक पुत्री के जीवन में खुशियां लाना चाहते थे और उसकी हर इच्छा पूरी करना चाहते थे। राजेश ने भी सुगना को खुश करने के लिए घर के लिए आवश्यक साजो सामान खरीदने में अपने संचित धन का प्रयोग किया और कुछ ही दिनों में घर रहने लायक स्थिति में आ गया।

सुगना ने एक और कार्य किया उसने सोनू की मदद से जीते हुए पैसों से दो मोटरसाइकिल खरीदी और एक राजेश को तथा एक अपने पति रतन को उपहार स्वरूप दे दिया। फटफटिया की अहमियत के बारे में लाली उससे कई बार बातें कर चुकी थी सुगना मन ही मन यह सोच चुकी थी कि लॉटरी में जीते गए पैसे पर लाली का भी उतना ही अधिकार है जितना उसका। आखिर वह टिकट राजेश ने हीं खरीदी थी।

रतन और राजेश फटफटिया देखकर बेहद प्रसन्न हो गए यह अलग बात थी कि वह अपनी इस आकांक्षा को पूरा तो करना चाहते थे परंतु उन्हें कभी कभी यह फिजूलखर्ची लगती थी परंतु जब सुगना ने सामने से ही मोटरसाइकिल खरीदने का निर्णय कर लिया था तो वह उसके निर्णय के साथ हो गए थे और भौतिकता के इस उपहार का आनंद लेने के लिए सहर्ष तैयार हो गए थे ।

वह दोनों न सिर्फ सुगना की कामुकता के कायल थे अपितु उसकी दरियादिली के भी। सच सुगना बेहद समझदार थी और पूरे परिवार को साथ लेकर चलने वाली थी।

कुछ ही दिनों में बनारस का मकान पूरी तरह तैयार हो गया। सुगना और लाली का परिवार बेहद प्रसन्न था।

राजेश की मदद से रतन को भी बनारस में उसी होटल में की नौकरी मिल गई जिसमे सुगना के दूसरे छेद का उदघाटन हुआ था।

नए मकान का गृहप्रवेश था। सलेमपुर गांव से कई सारे लोग सुगना और लाली के गृह प्रवेश में आए हुए थे गृह प्रवेश की पूजा में लाली और राजेश तथा सुगना और रतन जोड़ी बना कर बैठे थे रतन और सुगना को एक साथ बैठे देख कर कजरी का मन फूला नहीं समा रहा था वह बेहद प्रसन्न थी। आखिर भगवान ने उसकी सुन ली थी।

पूजा-पाठ का दौर खत्म होते ही खानपान का कार्यक्रम प्रारंभ हो गया सभी सुगना और सूरज की तारीख करते नहीं थक रहे थे कितना भाग्यशाली था सूरज लाटरी के जीते हुए पैसे ने सुगना और उसके परिवार को एक नई ऊंचाई पर ला दिया था।

अकस्मात आया धन अपने साथ दुश्मन लेकर आता है। घर के बाहर पंगत में बैठे लोग वैसे तो सुगना और उसके परिवार के शुभचिंतक थे परंतु उनमें से कई ऐसे भी थे जो इस इस प्रगति से ज्यादा खुश न थे।

रतन और बबीता की पुत्री मिंकी पंगत में पानी के गिलास रख रही थी मिंकी का चेहरा उसके पिता रतन से मिलता था गांव के ही एक व्यक्ति ने मिंकी को देखकर पूछा..

"ई केकर लईकी ह"

सरयू सिंह जो पास में है खड़े थे और पंगत की व्यवस्था देख रहे थे उन्होंने उत्तर दिया

"मिन्की बेटा जा होने गिलास दे आव"

"रतन के दोस्त के लईकी ह, एकर माई बाबूजी दोनों नई खन"

सरयू सिंह ने अपने परिवार की इज्जत का ख्याल कर रतन की दूसरी शादी की बात को छुपा लिया परंतु मिंकी के चेहरे पर रतन के प्रभाव को वह समझा पाने में नाकाम थे। जाकी रही भावना जैसी... पंगत में बैठे लोगों ने सरयू सिंह की बात को सुना और अपनी अपनी मनोदशा के अनुसार उनकी बात पर यकीन कर लिया।

सरयू सिंह ने उन सभी को यह बातें स्पष्ट कर दी कि अब मिंकी उनके ही परिवार का अंग है और रतन और सुगना ने उसे पुत्री रूप में अपना लिया है।

सुगना बेहद प्रसन्न थी। मिन्की सुगना से पूरी तरह हिल मिल गई थी वह हमेशा सुगना के आसपास ही रहती और छोटी-छोटी मदद करती रहती सुगना उसे अपनी सूज बुझ के अनुसार पढ़ाती तथा प्लेट पर क ख ग घ लिखना सिखाती। सुगना के मृदुल व्यवहार ने मिंकी का मन मोह लिया था वह सुगना को अपने मां के रूप में स्वीकार कर चुकी थी।

सुगना के सारे मनोरथ पूरे हो रहे थे। पेट में आया गर्भ अपना आकार बड़ा रहा था। पूजा की शाम को वह सरयू सिंह के समीप गई और उनके चरण छूने के लिए झुकी...

सरयू सिंह पूरी तरह सुगना को अपनी बेटी मान चुके थे उन्होंने अपनी अंतरात्मा से उसे आशीर्वाद दिया

"खुश रहो बेटी भगवान तोहर मनोकामना पूरा करें और सूरज के जइसन एगो और भाई होखे"

"बाबूजी हमारा लईकी चाहीं…" सुगना ने चहकते हुए कहा..


सुगना उठ कर खड़ी हो चुकी थी और सरयू सिंह के आलिंगन में जाने का इंतजार कर रही थी। पिछले दो-तीन माह से उसे सरयू सिंह की अंतरंगता और आलिंगन का सुख नहीं मिला था। परंतु आज खुशी और एकांत में सुगना की कामुकता जवान हो उठी थी वह स्वयं उठकर अपने बाबुजी के आलिंगन में आ गए अपनी चूचियां उनके सीने से रगड़ ती हुई बोली ..

"हमार पेट फुला के त रहुआ भुला गईनी... लागा ता ई हो बूढा गईल बा…"

सुगना की निगाहें सरयू सिंह के चेहरे से हटकर उनके लण्ड की तरफ बढ़ने लगीं और हाथों ने उन निगाहों का अनुकरण किया । जब तक की सुगना के हाथ सरयू सिंह के लटके हुए लण्ड को छूने का प्रयास करते सरयू सिंह ने सुगना का हाथ पकड़ लिया और उसे उसके गालों पर लाते हुए बोले..

"अब ई सब काम मत कर….बच्चा पर ध्यान द... और एक बात कही..?"

"ना पहले ई बतायी रहुआ हमरा से दूर काहे भाग तानी"

सुगना ने अपनी चुचियों को ब्लाउज से आजाद कर दिया और बोली..

"यह दोनों हमेशा राहुल इंतजार करेले सो डॉक्टर खाली उ सब काम के मना कइले बा ई कुल खातिर नाहीं…"

सुगना ने अपनी चूचियां खोल कर उन्हें मीसने का खुला निमंत्रण सरयू सिंह को दे दिया था।

सरयू सिंह ने अपनी आंखें बंद कर लीं। वह अपनी पुत्री को अपने मन की व्यथा समझा पाने में पूरी तरह नाकाम थे।

सुगना ने अपनी कामकला का पाठ उन से ही सीखा था और उसे सरयू सिंह की यह बेरुखी बिल्कुल रास ना आ रही थी । यद्यपि यह बात वह जानती थी कि सरयू सिंह अभी उस दिन के सदमे से उबर रहे थे परंतु वह उनके कामुक स्पर्श के लिए बेताब और बेचैन थी।


उसे यह बात कतई समझ ना आ रही थी की सरयू सिंह की उत्तेजना को क्या हो गया था? जो व्यक्ति दिन में एक दो नहीं कई बार एकांत में उसे देखकर अपने आलिंगन में भर लेता और यथासंभव अपना स्पर्श सुख देता वह पिछले कई दिनों से उसी से दूर दूर रह रहा था।

सुगना को अचानक अपनी जांघों के बीच गिरे राजेश के वीर्य का ध्यान आया कहीं उसके बाबूजी मैं उसे गलत तो नहीं समझ लिया? सुगना परेशान हो गई उसने अपने मन में सोची हुई बात पर यकीन कर लिया और सरयू सिंह की नाराजगी के कारण को उससे जोड़ लिया।

उसने सरयू सिंह को मनाने की सोची… और घुटनों के बल आने लगी उसकी मुद्रा से सरयू सिंह ने आगे के घटनाक्रम का अंदाजा लगा लिया और वह पलट गए खिड़की की तरफ देखते हुए उन्होंने सुगना से कहा ..

"सुगना बेटा हमार ए गो बात मान ल…"

"बाउजी जी हम तो राउरे बानी आप जैसे कहब हम करब हमरा से नाराज मत होखी.. कौनो गलती भईल होखे तो हमार मजबूरी समझ के माफ कर देब"

सुगना ने अपने मनोदशा के अनुसार उस कृत्य के लिए सरयू सिंह से माफी मांग ली.

सरयू सिंह के मन में कुछ और ही चल रहा था उन्होंने सुगना को अपने सीने से लगा लिया परंतु यह आलिंगन में कामुकता कतई न थी सिर्फ और सिर्फ प्यार था. सुगना उनके आलिंगन में थी परंतु स्तनों ने जैसे अपना आकार सिकोड़ लिया था। उत्तेजना से सुगना के सख्त हो चुके निप्पलों ने भी इस नए प्रेम को पहचान लिया और उन्होंने अपना तनाव त्याग दिया। सुगना अपने पिता के आलिंगन में आ चुकी थी। सरयू सिंह का यह रूप उसे बेहद अलग प्रतीत हो रहा था परंतु भावनाएं प्रबल थी उसे सरयू सिंह के आलिंगन में अद्भुत सुख मिल रहा था।

सुगना ने पुरुष का यह रूप शायद पहली बार देखा था वह भावविभोर थी और आँखों मे अश्रु लिए सरयू सिह से सटती जा रही थी।

सरयू सिंह ने सुगना के कोमल गालों को अपने हाथों में लेते हुए उसके माथे को चूम लिया और बेहद प्यार से बोले ..

"बेटा हमार बात मनबु?

"हा बाबूजी" सुगना ने अपनी पलकों पर छलक आए आंसू को पूछते हुए कहा

"हमरा खातिर रतन के माफ कर द…"

सुगना ने कोई उत्तर न दिया…

सरयू सिंह ने फिर कहा..

"जीवन ने सब कुछ अपना मर्ज़ी से ना होला..हम सब कहीं न कहीं गलती कइले बानी जा… पर अब गलती के ठीक करके बा"

सुगना को अपनी गलती का प्रायश्चित करने का विचार आ चुका था…

"ठीक बा बाबूजी… पर का उ अब हमारा के अपना पइहें"

"बेटा उ सब कुछ छोड़ के तहरे पास आइल बा….उ..अब हमारा सुगना बेटा के तंग करी त लाठी से पीटब"

सुगना के होंठो पर मुस्कुराहट आ गयी। चेहरा कांतिमान ही गया। नियति सुगना को देख रही थी और सुगना के भविष्य का ताना बाना बुन रही थी।


रतन सचमुच सुगना से प्यार करने लगा था उसे पता था कि सूरज और उसके गर्भ में पल रहा दूसरा बच्चा भी उसका नहीं था परंतु वह इन सब बातों से दूर सुगना पर पूरी तरह आसक्त हो चुका था वह एक पति की तरह उसका ख्याल रखता और हर सुख दुख में उसका साथ देता.

कुछ ही दिनों में लाली और सुगना दोनों ही अपने नए घर में पूरी तरह सेट हो गई। उनका गर्भ लगभग 6 माह का हो चुका था। दोनों ही एक साथ गर्भवती हुई थी दोनों साथ बैठती और अपने गर्भ के अनुभव को साझा करती…

एक दिन लाली ने सुगना का फूला हुआ पेट सहलाते हुए पूछा

"ए में केकर बीज बा तोर जीजाजी कि रतन भैया के…?"

"जब होइ त देख लीहे…"

सुगना इस प्रश्न का उत्तर स्पष्ट तौर पर दे सकती थी उसका संशय तो राजेश और बाबूजी के बीच था, रतन तो इस खेल से पूरी तरह बाहर था। निश्चित ही राजेश का पलड़ा भारी था...

सुगना के मन में उस दिन के दृश्य ताजा हो गए जब वह बनारस महोत्सव की आखिरी रात को राजेश के घर पर थी जाने यादों और संवेदनाओं में ऐसी कौन सी ताकत होती है जो दूसरा पक्ष भी पहचान लेता है। राजेश भी रेल की खिड़की से सर टिकाए स्वयं उस दिन की यादों में खोया हुआ निर्विकार भाव से बाहर की काली रात को देख रहा था और उसका अंतर्मन सुगना को याद कर रोशन था रोमांचित हो रहा था …

शेष अगले भाग में...
 
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