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Incest आह..तनी धीरे से.....दुखाता.

Lovely Anand

Love is life
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आह ....तनी धीरे से ...दुखाता
(Exclysively for Xforum)
यह उपन्यास एक ग्रामीण युवती सुगना के जीवन के बारे में है जोअपने परिवार में पनप रहे कामुक संबंधों को रोकना तो दूर उसमें शामिल होती गई। नियति के रचे इस खेल में सुगना अपने परिवार में ही कामुक और अनुचित संबंधों को बढ़ावा देती रही, उसकी क्या मजबूरी थी? क्या उसके कदम अनुचित थे? क्या वह गलत थी? यह प्रश्न पाठक उपन्यास को पढ़कर ही बता सकते हैं। उपन्यास की शुरुआत में तत्कालीन पाठकों की रुचि को ध्यान में रखते हुए सेक्स को प्रधानता दी गई है जो समय के साथ न्यायोचित तरीके से कथानक की मांग के अनुसार दर्शाया गया है।

इस उपन्यास में इंसेस्ट एक संयोग है।
अनुक्रमणिका
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भाग 126 (मध्यांतर)
 
Last edited:

Lovely Anand

Love is life
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इधर लाली और सोनू करीब आ रहे थे उधर सुगना की जांघों के बीच उदासी छाई हुई थी पिछले कई दिनों से सुगना को संभोग का आनंद प्राप्त नहीं हुआ था। सरयू सिंह कभी कभी उसकी चुचियों और बुर को को चूम चाट कर सुगना को स्खलित कर देते परंतु जो आनंद संभोग में था वह मुखमैथुन से प्राप्त होना असंभव था।

सुगना की बुर तरस रही थी। उधर उसकी सास कजरी ने सरयू सिंह के स्वास्थ्य का हवाला देकर सुगना को चुदने के लिए स्पष्ट रूप से मना कर दिया था सुगना स्वयं भी सरयू सिंह को किसी मुसीबत में नहीं डालना चाहती थी। उसने मन मसोसकर कजरी की बात मान ली थी।

बेचारी सुगना की जो पिछले 3- 4 वर्षों से सरयू सिह की लाडली थी और वो उसे तन मन से खुश रखते थे आज उसकी जाँघों में बीच उदासी छायी हुयी थी। सुगना अपनी चुदाई की मीठी यादों के साथ सो जाती।

बीती रात उसने बेहद कामुक कामुक स्वप्न देखा सरयू सिंह अपना तना हुआ लंड लेकर जैसे ही उसे चोदने जा रहे थे कई सारे लोग अचानक ही उसके कमरे में आ गए उसने आनन-फानन में चादर से अपने बदन को ढका और सर झुकाए अनजान लोगों को देखने लगी।

कभी उन अनजान लोगों में कभी गांव वाले दिखाई पड़ते कभी कजरी कभी राजेश कभी लाली। सुगना अपनी चोरी पकड़े जाने से परेशान थी। स्वप्न में ही उसके पसीने छूटने लगे तभी कजरी की आवाज आई.

"राउर तबीयत ठीक नईखे सुगना के छोड़ दी। जितना खुशी सुगना के देवे के रहे रहुआ दे लेनी अब उ सूरज के साथ खुशि बिया"

सुगना कजरी को रोकना चाहती थी। सुगना को चुदे हुए कई दिन बीत चुके थे वो अपने बाबू जी सरयू सिह से जी भरकर चुदना चाहती थी। उसकी जांघों के बीच अजब सी मरोड़ उत्पन्न ही रही थी इसी उहापोह में उसकी आंख खुल गई । और वह उठ कर बैठ गई।

बगल में सूरज सो रहा था वह अपने स्वप्न को याद कर मुस्कुराने लगी अपनी बुर पर ध्यान जाते ही उसने महसूस किया की उस स्वप्न ने बुर को पनिया दिया था।

सुगना को अपने बाबू जी से किया हुआ वादा भी याद आ रहा था वह उनकी इस अनूठी इच्छा को पूरा अवश्य करना चाहती थी परंतु उनके विशाल लंड को अपनी गुदाद्वार में ले पाने की हिम्मत नहीं जुटा पा रही थी।

अचानक सुगना को राजेश की याद आई वही उसके जीवन में आया दूसरा मर्द था जो उसके इतने करीब आया था। सुगना के दिमाग में उस रात का वृतांत घूमने लगा जब राजेश में उसकी नंगी जांघों को जी भर कर देखा था वह स्वयं भी उत्तेजना के आवेश में उसे ऐसा करने दे रही थी सुगना मुस्कुरा रही थी और ऊपर वाले से प्रार्थना कर रही थी की काश राजेश स्वयं आगे बढ़ कर उसे अपनी बाहों में ले ले।

सुगना ने नींद में जो स्वप्न देखा था वह तो जब सुगना चाहती साकार हो जाता परंतु राजेश के साथ अंतरंग होने का जो दिवास्वप्न सुगना खुली आंखों से देख रही थी वह इतना आसान नहीं था. इन दूरियों को सिर्फ और सिर्फ नियति मिटा सकती थी जो अब तक सुगना का साथ दे रही थी सुगना अपने मन में वासना की मिठास और जांघों के बीच कशिश लिए हुए एक बार फिर सो गई.

सुबह घरेलू कार्य निपटाने के पश्चात सुगना और कजरी बाहर दालान में बैठे सरसों पीट रहे थे. दूर से डुगडुगी बजने की आवाज आ रही थी जो धीरे-धीरे तीव्र होती जा रही थी कुछ ही देर में वह आवाज बिल्कुल करीब आ गई. डुगडुगी वाला मुनादी करते घूम रहा था साथ चल रहे कुछ व्यक्ति जगह-जगह पोस्टर चिपका रहे थे.

हरिद्वार से आए कुछ साधु भी उस मंडली के साथ थे सुगना भागकर दालान से बाहर निकली और गली में आ रहे झुंड को देखने लगी.

उन साधुओं ने एक पोस्टर सुगना के घर के सामने भी चिपका दिया सुगना ने ध्यान से देखा यह बनारस में कोई महोत्सव आयोजित किया जा रहा था जिसमें सभी को आमंत्रण दिया जा रहा था। ऐसा प्रतीत होता था जैसे वह एक दिव्य आयोजन था . साधुओं ने हाथ जोड़कर सुगना और कजरी ( जो अब सुगना के पास आकर खड़ी हो गई थी ) तथा परिवार के बाकी सदस्यों को इस उत्सव में शामिल होने के लिए आमंत्रित किया.

कजरी ने हाथ जोड़कर साधुओं का अभिवादन किया और अपनी सहमति देकर उन्हें आगे के लिए विदा किया कुछ ही देर के लिए सही इस डुगडुगी और उस भीड़ भाड़ ने सुगना के जीवन में नयापन ला दिया था।

सुगना ने कजरी से पूछा

"मां बाबू जी से बात करीना शहर घुमला ढेर दिन भईल बा यज्ञ भी देख लीहल जाई और शहर भी घूम लिहल जायीं।"

कजरी को भी सुनना की बात रास आ गई उसे भी शहर गए कई दिन हो गए थे। सुगना का जन्मदिन भी करीब आने वाला था। उसने मुस्कुराते हुए कहा..

"कुँवर जी के रानी त हु ही हउ बतिया लीह"

सुगना मुस्कुराने लगी….

उधर लाली के घर पर

सोनू कल की यादें लिए आज सुबह से ही लाली के आगे पीछे घूम रहा था वह कभी रसोई में जाकर उसकी मदद करता कभी राजू और रीमा के साथ खेलता। लाली घरेलू कार्यों में व्यस्त थी। दोपहर बाद लाली घर के कार्यों से निवृत्त होकर हॉल में पड़ी चौकी पर बैठकर अपने बाल बना रही थी. सोनू उसे हसरत भरी निगाहों से देखे जा रहा था अचानक लाली ने पूछा

"सोनू बाबू हॉस्टल कब खुली?"

"क्यों दीदी मेरे रहने से दिक्कत हो रही है. कर्फ्यू खुलते ही मैं हॉस्टल वापस लौट जाऊंगा?"

लाली ने तो सोनू से वह प्रश्न यूं ही पूछ लिया था परंतु सोनू की आवाज में उदासी थी. लाली ने वह तुरंत ही भांप लिया और सोनू के सिर को अपनी तरफ खींच लिया सोनू उसके बगल में ही बैठा था वह झुकता चला गया और उसका सिर लाली की गोद में आ गया।

लाली उसकी बालों पर उंगलियां फिराने लगी और बेहद ही आत्मीयता से बोली

"अरे मेरा सोनू बाबू मैं तुझे जाने के लिए थोड़ी कह रही हूं मैं तो यूं ही पूछ रही थी"

सोनू के गाल अपनी लाली दीदी की मोटी और गदराई जांघों से सटने लगे। लाली ने अब से कुछ देर पहले ही स्नान किया था उसके शरीर से लक्स साबुन की खुशबू आ रही थी और लाली के जिस्म की मादक खुशबू भी उसमें शामिल हो गई थी। सोनू उस भीनी भीनी खुशबू में खो रहा था उसके खुले होंठ लाली की जांघों से सट रहे थे। सोनू का लंड सोनू के मन को पूरी तरह समझता वह लाली की बुर को सलामी देने के लिए उठ खड़ा हुआ।

अपनी मां की गोद में सोनू को देखकर रीमा ईर्ष्या से सोनू को हटाने लगी और वह स्वयं उसकी गोद में आने लगी। सोनू को मजबूरन हटना पड़ा वह मन ही मन लाली की जांघों को चूमना चाहता था परंतु रीमा के बाल हठ ने उसे ऐसा करने से रोक दिया।

तभी दरवाजे पर टन टन टन की आवाज सुनाई पड़ी यह आवाज उस गली से गुजर रहे कुल्फी वाले की थी। ऐसा लग रहा था जैसे रेलवे कॉलोनी में कर्फ्यू का कोई असर नहीं था। राजू उस आवाज को भलीभांति पहचानता था उसने कहा

"मामा चलिए कुल्फी लाते हैं"

सोनू मासूम बच्चों का आग्रह न टाल पाया और राजू को लेकर बाहर आ गया उसने राजू की पसंद की कई आइसक्रीम लीं और अपने और लाली के लिए सबसे बड़ी साइज की कुल्फी ली। यह कुल्फी बांस से पतले स्टिक पर लिपटी हुई थी और आकार में बेहद बड़ी थी एक पल के लिए सोनू को वह अपने लंड जैसी प्रतीत हुई।

सोनू उन बड़ी-बड़ी कुल्फीयों को लेकर घर में प्रवेश किया। लाली को भी उन कुल्फियों को देखकर वही एहसास हुआ जो सोनू को हुआ था सच में उनका आकार एक खड़े लंड जैसा ही दिखाई पड़ रहा था। लाली को अपनी सोच पर शर्म आयी पर उसने कुल्फी को शहर अपने हाथों में ले लिया और तुरंत ही अपने होठों को गोलकर उसका रसास्वादन करने लगी।

कुल्फी का ऊपरी आवरण तेजी से पिघल रहा था और बह कर वह निचले भाग की तरफ आ रहा था लाली अपनी जीभ निकालकर उस रस को नीचे गिरने से रोक रही थी तथा उस कुल्फी को जड़ से लेकर ऊपर तक अपनी जीभ से चाट रही थी। सोनू को यह दृश्य बेहद उत्तेजक लग रहा था वह एकटक लाली को घूरे जा रहा था। लाली को वह कुल्फी बेहद पसंद आ रही थी।

अचानक लाली को सोनू की निगाहों का अर्थ समझ आया वह शर्म से पानी पानी हो गई। उसने झेंपते हुए सोनू से कहा

"यह कुल्फी जल्दी पिघल जाती है"

"हां दीदी इसे चूस चूस कर थाने में ही मजा आता है" और सोनू ने कुल्फी का आधे से ज्यादा भाग अपनी बड़े से मुंह में ले लिया.

उसने लाली से कहां

"दीदी ऐसे खाइए"

लाली ने भी सोनू की नकल की और उसने कुल्फी का अधिकतर भाग अपने मुंह से में लेने की कोशिश की जो की उसके गले से छू गई परंतु लाली ने हार न मानी और अंततः कुल्फी का उतना ही भाग अपने मुंह में ले लिया जितना सोनू ले रहा था।

सोनू को एक पल के लिए ऐसा लगा जैसे लाली ने उसके ही लंड को अपने मुंह में ले लिया हो लाली भी अब थोड़ा बेशर्म हो चली थी वह जानबूझकर कुल्फी को उसी तरह खा रही थी और सोनू को उत्तेजित कर रही थी.

लाली सोनू को हाल में छोड़ कर अपने कमरे में गई और रीमा को सुलाते सुलाते खुद भी सो गई उसने आज सोनू को खुश करने की ठान ली थी परंतु सोनू को अभी रात का इंतजार करना था.

शाम को राजेश ड्यूटी से घर आ चुका था। आते समय उसने ढाबे से खाना बनवा लिया था।

घर में प्रवेश करते ही राजेश में बड़े उत्साह से कहा

"आज टीवी पर जानी दुश्मन फिल्म आने वाली है हम सब लोग फिल्म देखेंगे मैं खाना पैक करा कर ले आया हूं"

लाली और राजू वह खाना देखकर बेहद प्रसन्न हो गए लाली को तो दोहरा फायदा था एक तो आज शाम उसे काम नहीं करना था दूसरा ढाबे का चटक खाना उसे हमेशा से पसंद था खानपान खत्म करने के बाद एक बार फिर लाली का बिस्तर सज गया. कोने में राजू था उसके पश्चात रीमा और उसके बगल में राजेश लेटा हुआ था राजेश के ठीक बगल में सोनू लेटा हुआ था और अपनी लाली दीदी का इंतजार कर रहा था। बच्चों ने अपनी रजाई ओढ़ रखी थी और सोनू राजेश और लाली की रजाई अपने पैर ढके हुए था।

टीवी पर जानी दुश्मन फिल्म शुरू हो रही थी राजेश ने आवाज दी

लाली जल्दी आओ फिल्म शुरू हो रही है।

"हां आ रही हूं"

कुछ ही देर में मदमस्त लाली नाइटी पहने हुए कमरे में आ चुकी थी सोनू ने उठ कर लाली के लिए जगह बनाई और लाली राजेश के पास जाकर सट गई सोनू लाली से कुछ दूरी बनाकर वापस बिस्तर पर बैठ गया उसने अपनी पीठ पीछे दीवार पर सटा ली थी परंतु उसके पैर उसी रजाई में थे जिसने लाली और राजेश को ढक रखा था।

कुछ ही देर में कहानी की पटकथा रंग पकड़ने लगी राजेश को इस फिल्म का कई दिनों से इंतजार था वह मन लगाकर इस फिल्म को देख रहा था उधर सोनु के दिमाग में सिर्फ और सिर्फ लाली घूम रही थी कल लाली की बुर सहलाने के पश्चात वह मस्त और निर्भीक हो गया था और आज भी वह उसी सुख की तलाश में था। उसके पैर स्वतः ही लाली के पैरों को छूने लगे। लाली सोनू की मंशा भली-भांति जानती थी परंतु आज उसने कुछ और ही सोच रखा था।

लाली ने अंगड़ाई ली और बोली

"मुझे डर लग रहा है आप दोनों फिल्म देखीये मैं चली सोने"

लाली धीरे-धीरे रजाई के अंदर सरकती गई उसने अपना सर भी रजाई से ढक लिया था।

लाली करवट लेकर लेटी हुई थी उसकी पीठ सोनू की तरफ थी। लाली अपने हाथ राजेश की जांघों पर ले गई और उसके लंड को सहलाने लगी। राजेश अपनी फिल्म देखने में व्यस्त था उसने लाली का हाथ पकड़ लिया और अपने लंड से दूर कर दिया।

लाली मन ही मन मुस्कुरा रही थी उसने राजेश को अपना गुस्सा दिखाते हुए करवट ली और अपनी पीठ राजेश की तरफ कर दी। राजेश ने उसकी पीठ सहला कर अपनी गलती के लिए अफसोस जाहिर किया परंतु उसकी आंखें टीवी पर टिकी रहीं।

लाली के करवट लेने से सोनू सतर्क हो गया रजाई के अंदर लाली के हाथ हिल रहे थे ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे वह अपने वस्त्र ठीक कर रही हो।

लाली के शरीर की हलचल शांत होते ही उसने अपने पैर एक बार फिर लाली के पैरों से हटाने की कोशिश की जो सीधा लाली की नंगी जांघों से छू गए । सोनू ने अपने पैर वापस खींचने की कोशिश की परंतु लाली ने अपने हाथ से उसका पैर पकड़ लिया और वापस अपनी जांघों से सटा लिया। कुछ देर यथास्थिति कायम रहे धीरे-धीरे लाली के हाथ सोनू की जांघों की तरफ बढ़ चले। लाली ने समय व्यर्थ न करते हुए अपने सोनू का लंड पजामे ऊपर से भी पकड़ लिया जो अब तक पूरी तरह तन चुका था। सोनू शहर उठा उसके शरीर का सारा लहू जैसे उस लंड में आ गया था। उन्होंने स्वयं ही अपना पजामा नीचे खिसकाने की कोशिश की वह लाली की कोमल उंगलियों को अपने लंड पर महसूस करना चाहता था।

थोड़े ही प्रयासों से सोनू का कुंवारा लंड बाहर आ गया से बाहर आ गया और लाली उसे अपने कोमल हाथों से सहलाने लगी। यह कहना मुश्किल था कि लाली के साथ ज्यादा कोमल थे या सोनू का लंड।

सोनू बीच-बीच में राजेश की तरफ देख रहा था जो पूरी तरह टीवी देखने में मगन था। उधर लाली उसके लैंड के सुपारे को खोल चुकी थी। लंड की भीनी खुशबू लाली के नथुनों से टकराई लाली अपने भाई के लंड की भीनी खुशबू में खो गयी।

उसके होंठ फड़कने लगे। उसका कोमल चेहरा स्वता ही आगे बढ़ता गया और उसके होंठ सोनू के लंड से जा टकराए। सोनू को यह उम्मीद कतई न थी वह व्यग्र हो गया उसने अपने शरीर की अवस्था बदली वह लाली की तरफ थोड़ा मुड़ गया। लाली के होठों ने सोनू के लंड के सुपाड़े को अपने आगोश में ले लिया और उसकी जीभ चमड़ी के पीछे छुपे लंड के मुखड़े को सहलाने लगी

लाली एक अलग ही अनुभव ले रही थी रजाई के भीतर वह शर्म और हया त्याग कर अपने भाई सोनू का लंड चूसने लगी। जाने सोनू के बारे लंड में क्या खूबी थी लाली मदमस्त होती जा रही थी। उधर सोनू के पैर लाली की नंगी जांघों को छूते छूते जांघों के जोड़ पर आ उसकी बुर की तरफ आ गए । लाली में अपनी जाघें फैला दीं और सोनू के पंजे को अपने बुर पर आ जाने दिया। पंजों का संपर्क बुर से होते हो लाली ने अपनी जांघें सटा ली और पंजों को उसी अवस्था में लॉक कर दिया। सोनू जब भी अपने पैर हिलाता लाली की बुर सिहर उठती लाली की बुर से रिस रहा प्रेम रस सोनू के पंजों को गीला कर रहा था। कुछ ही देर में सोनू के पंजों और लाली के निचले होंठों के चिपचिपा पन आ चुका था जो सोनू और लाली दोनों को ही सुखद एहसास दे रहा था।

लाली सोनू के लंड को लगातार चूस रही थी। सोनू आनंद के सागर में गोते लगा रहा था। अचानक उसने अपने हाथ रजाई के अंदर किये और अपनी हथेलियों से बेहद प्यार के अपनी लाली दीदी के गालों को सहलाने लगा। वह अपने लंड को लाली के मुंह के अंदर हिलाने की कोशिश कर रहा था। सोनू को एक पल के लिए ख्याल आया कि वह रजाई हटा कर अपनी लाली दीदी की आज ही पटक कर चोद दे पर …..

लाली के दांतों ने सोनी के लंड पर संवेदना बढ़ दी। सोनू ने अपने हाथ थोड़े और नीचे किये और उलाली की चुचियों को सहला दिया। लाली ने अपनी नाइटी को पूरी तरह ऊपर कर लिया था वह उसकी चूचियों और गर्दन के बीच सिमट कर रह गई थी।

कितनी कोमल थी लाली की चूचियां वह उन्हें धीरे-धीरे सहलाने लगा। निप्पलों पर उंगलियां लगते ही हाली सिहर उठती। सोनू ने उत्सुकता वश लाली के निप्पल को अपनी उंगलियों के बीच लेकर थोड़ा दबा दिया सोनू को अंदाजा ना रहा यह दबाव जरूरत से ज्यादा था लाली चिहुँक उठी।

राजेश ने पूछा

"क्या हुआ"

लाली ने सोनू का लंड छोड़ दिया और अपने शरीर को थोड़ा हिला डूला कर अपने नींद में होने का एहसास दिलाया।

सोनू को बेहद अफसोस हो रहा था परंतु लाली ने उसे निराश ना किया कुछ ही देर में वह दोनों फिर उसी अवस्था में आ गए।

उधर सोनू के पंजे लाली की बुर को उत्तेजित किए हुए थे इधर उसकी हथेलियां चुचियों को सहला रही थीं। लाली की बुर भी स्खलन को तैयार थी कुछ ही देर में लाली अपने पैर सीधे करने लगी। वह सोनू से पहले नहीं झड़ना चाहती थी।

उसने अपने हाथों का उपयोग सोनू के अंडकोष ऊपर किया। लाली के मुलायम हाथों को अपने अंडकोष के ऊपर पाकर सोनू स्खलन के लिए तैयार हो गया।

सोनू का सब्र जवाब दे गया उसके लंड से वीर्य धार फूट पड़ी उधर लाली की बुर भी पानी छोड़ना रही थी। एक तो रजाई की गर्मी ऊपर से वासना की गर्मी लाली पसीने से भीग चुकी थी।

सोनू ने अपने वीर्य की पहली बार लाली के मुंह में ही छोड़ दी आनन-फानन में लाली ने सोनू के लंड को बाहर निकाला और उसे नीचे की दिशा दिखाई वीर्य की धारा लाली की चुचियों पर गिर गई थी वह उसे अपनी नाइटी से रोकना चाहती थी परंतु अंधेरे में कुछ समझ नहीं आ रहा था।

सोनू की हथेलियां भी उसके वीर्य से भीग रही थी वह अभी भी लाली की चुचियों को मसल रहा था वीर्य का लेप चुचियों पर स्वता ही लग रहा था ।

उधर लाली की जांघों को उत्तेजित करते-करते सोनू के पैर का अंगूठा लाली की बुर में प्रवेश कर रहा था लाली को वह छोटे और मजबूत खूटे की तरह प्रतीत हो रहा था लाली अपनी बुर को उस अंगूठे पर रगड़ रही थी और पूरी तन्मयता से झड़ रही थी...

सोनू स्खलन की उत्तेजना से कांप रहा था. जैसे ही टीवी पर विज्ञापन आया राजेश को सोनु की सुध आई उसने सोनू की तरफ देखा। सोनू के माथे पर पसीना था राजेश ने कहा

"अरे तुमको तो इतना सारा पसीना आ रहा है तबीयत ठीक है ना"

सोनू को लगा उसकी चोरी पकड़ी गई है उसने अपने हाथों से पसीना पोछा और बोला यह रजाई बहुत गर्म है।

उसने लाली को भी आवाज दी पर लाली चुपचाप बिना सांस लिए पड़ी रही।

सोनू को अब चरम सुख प्राप्त हो चुका थाउसने कहा "मुझे नींद आ रही है मैं जा रहा हूँ सोने"

राजेश आज अपनी फिल्म में कोई व्यवधान नहीं चाहता था उसने सोनू और लाली को करीब लाने की अपनी चाहत आज के लिए टाल दी थी आज वह पूरे ध्यान से अपनी पसंदीदा फिल्म देख रहा था परंतु नियत सोनू और लाली को स्वाभाविक रूप से करीब ला रही थी इस बात का इल्म उसे न था।

फिल्म की हीरोइन नीतू सिंह की बड़ी-बड़ी चूचियां राजेश के लंड में उत्साह भर रही थी पर पर्दे का भूत तुरंत ही लंड को मुरझाने पर मजबूर कर देता इसी कशमकश में एक बार फिर फिल्म शुरू हो गयी परंतु बनारस शहर ने बिजली कि अपनी समस्याएं थी। अचानक बत्ती गुल हो गई राजेश मन मसोस कर रह गया।

सोनू कमरे से बाहर जा चुका उसे बुलाने का कोई औचित्य न था राजेश उदास हो गया और रजाई में घुस कर लाली को पकड़ने लगा लाली अब तक अपनी नाइटी नीचे कर चुकी थी परंतु उसकी जांघें अभी भी नग्न थी राजेश ने अपनी जान है लाली की जांघों पर रखी और उसे अपने करीब खींचता गया लाली के चेहरे पर अभी भी पसीने की बूंदे थी।

उसने लाली के गालों पर हाथ फिराया और बोला

अरे कितना पसीना हुआ है रजाई क्यों नहीं हटा देती

"आप तो अपनी फिल्म देखिए अब लाइट गई तो मेरी याद आ रही है।" राजेश अपनी झेंप मिटाते हुए लाली के माथे को पोछने लगा। उसके हाथ लाली की चुचियों पर गए जो नाइटी के अंदर आ चुकी थीं।

"नीतू सिंह की चूचियां टीवी पर ही मिलेंगी घर पर तो मैं ही हूं"

नीतू सिंह का नाम सुनकर राजेश के लंड में एक बार फिर तनाव आ गया वह लाली को चोदना चाहता था । धीरे-धीरे वह लाली के ऊपर आने लगा। लाली प्रतिरोध कर रही थी उसकी चुचियों और होंठो पर उसके छोटे भाई सोनू का वीर्य लगा हुआ था।

जब तक वह राजेश को रोक पाती राजेश ने लाली की नाइटी को ऊपर किया और गप्प से उसकी चूची को मुंह में भर लिया…..

शेष अगले भाग में।

 
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बहुत ही जबरदस्त अपडेट है । आखिरकार सोनू ओर लाली ने एक कदम ओर बढ़ा लिया । दोनो के बीच शर्म की दीवार गिरती जा रही है । जल्द ही दोनो के बीच जबरदस्त चुदाई होगी जिसकी प्रतीक्षा सब पाठकों को रहेगी
 
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