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Incest आह..तनी धीरे से.....दुखाता.

Lovely Anand

Love is life
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आह ....तनी धीरे से ...दुखाता
(Exclysively for Xforum)
यह उपन्यास एक ग्रामीण युवती सुगना के जीवन के बारे में है जोअपने परिवार में पनप रहे कामुक संबंधों को रोकना तो दूर उसमें शामिल होती गई। नियति के रचे इस खेल में सुगना अपने परिवार में ही कामुक और अनुचित संबंधों को बढ़ावा देती रही, उसकी क्या मजबूरी थी? क्या उसके कदम अनुचित थे? क्या वह गलत थी? यह प्रश्न पाठक उपन्यास को पढ़कर ही बता सकते हैं। उपन्यास की शुरुआत में तत्कालीन पाठकों की रुचि को ध्यान में रखते हुए सेक्स को प्रधानता दी गई है जो समय के साथ न्यायोचित तरीके से कथानक की मांग के अनुसार दर्शाया गया है।

इस उपन्यास में इंसेस्ट एक संयोग है।
अनुक्रमणिका
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भाग 126 (मध्यांतर)
 
Last edited:

Lovely Anand

Love is life
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Itti si khusi par itna lamba intizar kahe tadpae yaar
Bhai 6 inch का समान जीवन भर खुशी देता है . अपडेट तो फिर भी लंबा होता है... जुड़े रहिए और आनंद लेते रहिए अपडेट आज रात तक या कल सुबह अवश्य आ जाएगा
Are jaldi nahi ...km se km 2 mahine Lage sath bister me sulane me..or asli sukh to kuch dino phle hi naseeb hua
बधाइयां
2 mahine se jyada tym lga bister me sath sulaane me ....lekin choot chatne ka maja alag hi aata h sagi behen ke sath.. really.... Agle update ka wait h dono ko roj dekhte h kab ayga kab ayga
Kadi mehnat..keep it up
Sir story to very good hai Sare update jabardast hai
109 no update send kare sir
Sent
Update plzzzzzz
Bas thoda Sabra aur
Nice update
Thanks
Jaldi chudwaoo sugna or lali ko ek sath ji
He bhagwaan बड़ी खतरनाक विचार हैं आपके
Ek garmagaram update de do bhaya.
बहुत गरम तो नहीं पर गुनगुना जरूर रहेगा
Aha haa aaahhh raah nahi jatA
Ha ha ha
Nice update
Ab kuch maza ker wado yaar
बस थोड़ा सा इंतजार ओर

अपडेट आज रात तक या कल सुबह आ जाएगा इंतजार के लिए खेद है
 

Tarahb

Member
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बधाइयां
Ye sab apki story padhne ke baad jaagi hui vasna ka khel hai..lekin dar tha kahi ghrwalo ko bta na de lekin shuruwat esi hui ki dheere dheere asaan hota chla gya..fir story'ko main page pa rakh diya or din ke sone ka natak krta tha..wo phone leti or story' to main page par tha hi to khub padhne lgi or latt si lag gyi is story ko pdhne ki ..to jab b moka milta pdhne lgti sugna or saryu ke update..fir kya me history check krne lga phone ki to pakad me aa gyi..bas fir shuru ho gyi hmari kahani...ab sath padhte h ..ek hath me uske mera ozar or mere muh me uske kabhi honth or kbhi dudu..or ek hath me rasili choot.. fir chudai shuru..kya btauu apko itni gili or rasili choot meri bivi ki bhi nahi hui kabhi...gilapan to esa hi pura hath ras se bheeg jata h or jab story pdhte hein to or bhi jyada mahol garam ho jata hai
 
Last edited:

Mishra8055

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भाग 114

अगली सुबह सुगना और सोनू को जौनपुर जाना था…

सुगना, सोनू और जौनपुर का वह घर जिसे सुगना को स्वयं अपने हाथों से सजाना था…. नियति अपनी व्यूह रचना में लग गई…

अजब विडंबना थी। सोनू अपने इष्ट से सुगना को मांग रहा था और लाली सोनू को और सबकी प्यारी सुगना को और कुछ नहीं चाहिए था सिर्फ वह सोनू के पुरुषत्व को जीवंत रखना चाहती थी। यह बात वह भूल चुकी थी की डॉक्टर ने उसके स्वयं के जननांगों की उपयोगिता बनाए रखने के लिए उसे भी भरपूर संभोग करने की नसीहत दी थी परंतु सुगना का ध्यान उस ओर न जा रहा था परंतु कोई तो था जो सुगना के स्त्रीत्व की रक्षा करने के लिए उतना ही उतावला था जितना सुगना स्वयं…


अब आगे..

सुगना के बिस्तर पर लेटा हुआ सोनू आने वाले दिनों के बारे में सोच रहा था। सुगना ने सोनू को नसीहत दे रखी थी कि दरवाजा बंद मत करना शायद इसलिए कि वह आवश्यकता पड़ने पर कोई सामान उस कमरे से ले सके और शायद इसलिए भी की कहीं सोनू उत्तेजित होकर हस्तमैथुन न कर बैठे….

कल सुगना ने जौनपुर साथ जाने की बात कह कर उसका मुंह बंद कर दिया था। उस वक्त तो वह सिर्फ सुगना को छेड़ रहा था परंतु अब वह स्वयं यह नहीं चाह रहा था कि सुगना उसके साथ जौनपुर जाए । कारण स्पष्ट था सोनू तो वो 7 दिन सुगना के साथ बिताना चाहता था जिन दिनों में उसे न सिर्फ अपने पुरुषत्व को बचाना था अपितु सुगना की उस सकरी और सुनहरी गली को भी जीवंत और खुशहाल बनाना था जिसे एबॉर्शन के दौरान डाक्टर ने अपने औजार डॉक्टर ने घायल कर दिया था।

थके होने के बावजूद नींद उसकी आंखों से दूर थी। जौनपुर का घर अभी सुगना के रहने लायक न था वह उसे ले जाकर और परेशान कतई नहीं करना चाहता था। सोनू ने निश्चय कर लिया कि वह सुगना को जौनपुर लेकर अभी कतई नहीं जाएगा। पर उन 7 दिनों का क्या..

सुगना की बात उसके दिमाग में गूंजने लगी जो उसने रेडिएंट होटल के उस कमरे में कही थी जब वह बाथरूम के अंदर छुपा हुआ था..

"सोनू के भी बता दीहे…अभी ते भी तीन चार दिन ओकरा से दूर ही रहिए… अगला हफ्ता ते सोनू संगे जौनपुर चल जाइहे ओहिजे मन भर अपन साध बुता लिए और ओकरो। लेकिन भगवान के खातिर ई हफ्ता छोड़ दे"

सोनू परेशान हो रहा था। सोनू यह बात जान चुका था की लाली का इंतजार अब चरम पर है। लाली सचमुच बेकरार हो चुकी थी जिस युवती ने किशोर सोनू की वासना को पाल पोसकर आज उफान तक पहुंचाया था उसे उस वासना का सुख लेने का हक भी था और इंतजार भी। लाली उन 7 दिनों के इंतजार में अपनी आज की रात नहीं गवाना चाह रही थी परंतु आज भी सुगना ने उसे और सोनू को अलग कर दिया था।


लाली की मनोस्थिति को ध्यान में रख आखिरकार सोनू ने अपने मन में निश्चय कर लिया फिलहाल तो वह सुगना दीदी को जौनपुर नहीं ले जाएगा…और लाली को आहत नहीं करेगा..

उधर सुनना लाली की जांघों के बीच चिपचिपापान देखकर दुखी हो गई । यह दुख उसे लाली के प्रति सहानुभूति के कारण हो रहा था। सच में वह बेचारी कई दिनों से सोनू की राह देख रही थी परंतु उसके कारण वह सोनू से संभोग सुख नहीं प्राप्त कर पा रही थी।

जांघों के बीच छुपी वह छुपी बुर की तड़प सुगना बखूबी समझती थी। जिस प्रकार भूख लगने पर मुंह और जीभ में एक अजब सी तड़प उत्पन्न होती है वही हाल सुगना और लाली की बुर का था। सुगना तो सरयू सिंह से अलग होने के बाद संयम सीख चुकी थी और अपने पति रतन द्वारा कई बार चोदे जाने के बावजूद स्खलन सुख को प्राप्त करने में असफल रही थी। उसकी वासना पर ग्रहण लगा हुआ था और धीरे धीरे उसने संयम सीख लिया था परंतु पिछले कुछ माह से सुगना को मनोस्थिति बदल रही थी…लाली और सोनू का मिलन साक्षात देखने के बाद …..सुगना और सोनू के बीच कुछ बदल चुका था…भाई बहन के श्वेत निर्मल प्यार पर वासना की लालिमा आ गई थी…जो धीरे धीरे अपना रंग और गहरा रही थी।

परंतु लाली उसे तो यह सुख लगातार मिल रहा था और वह भी सोनू जैसे युवा मर्द का। उसके लिए सोनू से यह विछोह कष्टकारी हो चला था।

न जाने सुगना को क्या सूझा उसने नीचे खिसक कर लाली की तनी हुई चूचियों को अपने होठों से पकड़ने की कोशिश की। सुगना नाइटी के ऊपर से भी लाली के तने हुए निप्पलों को पकड़ने में कामयाब रही। अपने होंठो का दबाव देकर उसने लाली को खिलखिलाने पर मजबूर कर दिया। लाली का गुस्सा एक पल में ही काफूर हो गया और उसने अपनी सहेली के सर पर हाथ लेकर उसे अपनी चुचियों में और जोर से सटा लिया।


"ए सुगना मत कर… एक तो पहले ही से बेचैन बानी और तें आग लगावत बाड़े"

सुगना ने लाली के निप्पलों को एक पल के लिए छोड़ा और अपनी ठुड्डी लाली की चूचियों से रगड़ते हुए अपने चेहरे को ऊपर उठाया और लाली का चेहरा देखते हुए बोली

"अब जब आग लागीए गईल बा तब पानी डाल ही के परी" यह कहते हुए सुगना ने अपनी हथेली से लाली की बुर को घेर लिया।

लाली ने अपने दांतो से अपने निचले होंठ को पकड़ने की कोशिश की और कराहती हुई बोली

"ई आग पानी डलला से ना निकलला से बुताई"

सच ही था लाली की आग बिना स्खलित हुए नहीं बुझनी थी।

लाली की बुर ज्यादा कोमल थी या सुगना की उंगलियां यह कहना कठिन है परंतु लाली की बुर से रिस रहा प्रेम रस उन दोनों की दूरी को और भी कम कर गया। सुगना का मुलायम कोमल हाथ लाली की बुर पर फिसलने लगा।

लाली और सुगना आज तक कई बार एक दूसरे के करीब आई थी परंतु आज सुगना अपने अपराध भाव से ग्रस्त होकर लाली के जितने करीब आ रही थी यह अलग था। किसी औरत के इतना करीब सुगना पहले सिर्फ अपनी सास कजरी के पास आई थी वह भी एक तरफा। उसे कजरी के स्त्री शरीर से कोई सरोकार न था परंतु जो खजाना वह अपने भीतर छुपाई हुई थी उसने कजरी को स्वयं उसके पास आने पर मजबूर कर दिया था। और आखिरकार सुगना की वासना को पुष्पित पल्लवित और प्रज्वलित करने में जितना योगदान सरयू सिंह ने दिया था उतना ही कजरी ने।

सुगना की हथेलियों का दबाव लाली की बुर और होठों का दबाव निप्पल पर बढ़ रहा था। कुछ ही पलों में लाली की बुर द्वारा छोड़ा गया रस उसकी जांघों के बीच फैल रहा था। सुगना की उंगलियां लाली की बुर के अगल-बगल चहल कदमी करने लगी।


कभी सुगना अपनी उंगलियों से लाली की बुर् के होठों को फैलाती कभी उस खूबसूरत दाने अपनी तर्जनी और अंगूठे के बीच लेकर को मसल देती जो अब फूल कर कुप्पा हो और चला था।

न जाने उस छोटे से मटर के दाने में इतना इतनी संवेदना कहां से भर जाती। उसके स्पर्श मात्र से लाली चिहूंक उठती। लाली कभी अपनी बुर की फांकों को सिकोड़ती कभी उन्हें फैलाती परंतु सुगना उसे फैलाने पर उतारू थी। वह अपनी उंगलियां लाली की बुर के भीतर ले जाने की कोशिश करने लगी।

सुगना की हथेली पूरी तरह लाली के प्रेम रस से भीग चुकी थी। ऊपर सुगना के होठ लाली की चूचियों को घेरने की कोशिश कर रहे थे। सुगना की आतुरता लाली को उत्तेजित कर रही थी। लाली ने स्वयं अपनी फ्रंट ओपन नाइटी के बटन खोल दिए और अपनी चूचियां सुगना के चेहरे पर रगड़ने लगी। सुगना लाली की आतुरता समझ रही थी और उसकी उत्तेजना को अंजाम तक पहुंचाने की पुरजोर कोशिश कर रही थी तभी लाली में कहा

" ते सोनूवा के काहे रोकले हा ?"


सुगना को कोई उत्तर न सोच रहा था वह इस प्रश्न का सही उत्तर देकर सोनू की नसबंदी की बात को उजागर नहीं करना चाह रही थी। जब सुगना निरुत्तर हुई उसने लाली के निप्पलों को अपने मुंह में भर कर अपनी जीभ से सहलाने लगी। और लाली एक बार फिर कराह उठी ..

"बताऊ ना सुगना?" लाली अपनी उत्तेजना के चरम पर भी अपने प्रश्न का उत्तर जानना चाह रही थी जो उसे आज दिन भर से खाए जा रहा था।

पर अब तक सुगना उत्तर खोज चुकी थी..

"अगला हफ्ता जइबे नू जौनपुर..? बच्चा लोग के हमरा पास छोड़ दीहे और सोनूआ के दिन भर अपना संगे सुताईले रहीहे। अपनो साध बुता लिहे और ओकरो.."

सुगना की बात में अभी भी लाली के प्रश्न का उत्तर न था परंतु जो सुगना ने कहा था वह लाली की कल्पना को नया आयाम दे गया था सोनू के घर में बिना किसी अवरोध के…… दिन रात सोनू के संग रंगरेलियां मनाने की कल्पना मात्र से वह प्रसन्न हो गई थी और सुगना की उंगलियों के बीच खेल रही उसकी बूर अपना रस स्खलित करने को तैयार थी।


जैसे ही सुगना ने उसकी बुर के भगनासे को सहलाया लाली ने अपनी जांघें सी कोड ली और सुगना की उंगलियों को पूरी मजबूती से अपने भीतर दबाने लगी बुर के कंपन सुगना की उंगलियां महसूस कर पा रही थी लाली हाफ रही थी और स्खलित हो रही थी।

पूर्ण तृप्त होने के पश्चात उसके जांघों की पकड़ ढीली हुई और सुगना के होठों ने लाली की चूची को अंतिम बार चुमा और सुगना सरक पर ऊपर आ गई…

कुछ पलों बाद लाली को एहसास हुआ कि अब से कुछ देर पहले वह जिस सुख को अपनी सहेली की उंगलियों से प्राप्त कर रही थी उसकी दरकार शायद उसकी सहेली सुगना को भी हो। लाली ने सुगना की चूचियों पर हाथ फेरने की कोशिश की परंतु सुगना ने रोक दिया। वह उसके हाथों को हटाकर अपनी पीठ पर ले आई और उसे आलिंगन में लेते हुए सोने की चेष्टा करने लगी सुगना ने बड़ी शालीनता और सादगी से अपनी उत्तेजना को लाली की निगाहों में आने से बचा लिया परंतु नियति सुगना की मनोदशा समझ रही थी और अपने ताने बाने बुनने में लगी हुई थी….

आज का दिन सोनी और विकास के लिए बेहद खास था जिस प्रेम संबंध को वह दोनों पिछले एक-दो वर्षों से निभा रहे थे आज उसे सामाजिक मान्यता मिल चुकी थी सुगना भी बेहद प्रसन्न थी। दीपावली की उस काली रात के बाद सुगना का अपने इष्ट पर से विश्वास डगमगा गया था सोनू द्वारा की गई हरकत उसे आहत कर गई थी। उस पर से मोनी का गायब होना… निश्चित ही किसी अनिष्ट का संकेत दे रहा था परंतु धीरे-धीरे स्थिति सामान्य हो रही थी और विकास तथा सोनी के रिश्ते में बंध जाने के बाद सुगना प्रसन्न थी। खुशी के सुगना कब चेहरे पर वापस वही रंगत ला दी थी जिसे देखने के लिए पूरा परिवार और विशेषकर सोनू अधीर था।

लाली को तृप्त करने के बाद सुगना को ध्यान आया कही सोनू हस्तमैथुन न कर रहा हो। आज वैसे भी वह दो दो बार लाली से संभोग करने से चूक गया था। सुगना उठी और अपने कमरे में दबे पांव आई। उसके आदेशानुसार कमरे का दरवाजा खुला हुआ था और सोनू गहरी नींद में सो रहा था। सुगना खुश हो गई और वापस लाली के पास आकर निश्चिंत हो कर सो गई।




सुबह-सुबह सुगना चाय लेकर सोनू को जगाने गई .. सोनू नींद में था उसके दोनों पैर खुले हुए थे और लूंगी हटकर उसकी नग्न पुष्ट जांघों को उजागर कर रही थी.। सुगना उसकी लूंगी के पीछे छुपे उसके हथियार को देखने लगी …जो अंडरवियर में कैद होने के बावजूद अपने अस्तित्व का एहसास बखूबी करा रहा था। सुगना सोनू की नसबंदी की बात सोचने लगी। आखिर सोनू ने यह क्या कर दिया था? क्या सचमुच वह विवाह नहीं करेगा…

शायद इसे संयोग कहें या सुगना के बदन की मादक खुशबू सोनू ने एक गहरी सांस लिए और सोनू की पलकें खुली और अपनी बड़ी बहन सुगना के फूल से खिले चेहरे को देखकर सोनू का दिन बन गया वह झटपट उठकर बिस्तर पर बैठ गया और बोला..

"अरे दीदी बड़ा जल्दी उठ गईलू"

सुगना ने चाय बिस्तर पर रखी और बोली..

"देख …7:00 बज गईल बा जल्दी कहां बा अभी जौनपुर जाए के तैयारी भी तो करे के बा"

सुगना ने आगे बढ़कर खिड़की पर से पर्दा हटा दिया अचानक कमरे में रोशनी हो गई सोनू ने अपनी पलकें मीचीं और और सुगना के दमकते चेहरे को देखने लगा जो सूरज की रोशनी पढ़ने से और भी चमक रहा था…सुगना की काली काली लटें के गोरे-गोरे गालों को चूमने का प्रयास करतीं। उन पर पड़ रही रोशनी उन लटों को और खूबसूरत बना रही थी..

चाय की चुस्कियां लेते हुए सोनू ने कहा..

"दीदी हम सोचत बानी कि सामान बनारस से ही खरीदल जाऊ ओहिजा बढ़िया पलंग वलंग का जाने मिली कि ना..?"


सुगना ने सोनू की बात को संजीदगी से लिया निश्चित ही बनारस में उत्तम कोटि का सामान मिल सकता था। सुगना ने उसकी सुगना ने उसकी बात का समर्थन करते हुए कहा

" ठीक कहत बाड़े लाली के उठे दे ऊ दू तीन गो दुकान देख ले बिया ओकरे के लेकर चलेके अच्छा रही"

"हां दीदी इहे ठीक रही। जब सामान पहुंच जाई हम कमरा में लगवा देब तब तू तीन चार दिन बाद आ जाईह….तब बाकी छोट मोट और रसोई के सामान ठीक कर दीह"


तीन चार दिनों की बात सुनकर सुगना सहम गई। तीन चार दिनों बाद तो सोनू को अनवरत संभोग करना था उस समय वहां सुगना का क्या काम था… सुगना ने तपाक से कहा

"कोई बात ना वो समय लाली जौनपुर चल जाए हम फिर कभी आ जाएब_

"ना दीदी तू भी चलतू तो अच्छा रहित हम चाहत बानी की घर में गृह प्रवेश तोहरा से ही होइत "

सोनू सुगना को लेकर भावुक था। वह अपनी बड़ी बहन को अपने नए घर में सर्वप्रथम आमंत्रित करना चाहता था। वह लाली का अनादर कतई नहीं करना चाहता था पर सुगना सुगना थी उसकी आदर्श …उसकी मार्गदर्शक… हमेशा उसका ख्याल रखने वाली और अब उसका सब कुछ..

सुगना ने सुगना ने सोनू के चेहरे पर आज वही मासूमियत देखी जो दीपावली की उस रात से पहले उसे दिखाई पड़ती थी। वह उसके पास आई और बोली ₹तोहार घर हमेशा तोहरा खातिर शुभ रही.. हम हमेशा तोहारा साथ बानी…अब जो जल्दी तैयार हो जो "

जब तक लाली उठती सोनू और सुगना आगे की रणनीति बना चुके थे..


लाली के जौनपुर जाने का खतरा अब न था सो सुगना भी संतुष्ट हो चुकी थी वैसे भी अभी उसके जौनपुर जाने का कोई औचित्य न था वहां पर किसी की यदि जरूरत थी तो वह थी लाली वह भी ४ दिनों बाद।

बाजार खुलते ही सोनू सुगना और लाली फर्नीचर शोरूम में पहुंच चुके थे एसडीएम बनने के बाद पैसों की तंगी लगभग खत्म हो चुकी थी ..

बड़े से फर्नीचर शोरूम में तरह-तरह के डबल बेड लगे हुए थे लाली तो पहले भी कई बार ऐसे शोरूम में आ चुकी थी यद्यपि उस समय उसकी हैसियत न थी कि वह ऐसे पलंग खरीद पाती पाती परंतु उसका स्वर्गीय पति राजेश इन मामलों में अपनी हैसियत से एक दो कदम आगे की सोचता था वह लाली को कई बार ऐसे फर्नीचर शोरूम मे ला चुका था वह उसकी पसंद की चीजें तो नहीं पर छुटपुट चीजें खरीद कर उसको मना लेता और घर पहुंच कर उसकी खुशियों का भरपूर फायदा उठाता और मन भर चूदाई करता।

सोनू ने सुगना और लाली को पलंग पसंद करने की खुली छूट दे दी। सुगना पलंग की खूबसूरती देख देख कर मोहित हुई जा रही थी अचानक उसे अपना पलंग और अपना फर्नीचर बेहद कमतर प्रतीत होने लगा फिर भी उसने अपने मन के भाव को अपने चेहरे पर ना आने दिया और अपने प्यारे सोनू के लिए पलंग पसंद करने लगी…

सुगना और लाली की पसंद अलग अलग थी और यह स्वाभाविक भी था। दोनों ही पलंग बेहद खूबसूरत थे। भरे भरे डनलप के गद्दे साथ में खूबसूरत सिरहाना बिस्तर की खूबसूरती मन मोहने वाली थी और उन सभी युवतियों के मन को गुदगुदाने वाली थी जिनकी जांघों के बीच पल रही खूबसूरत रानी या तो जवान हो चुकी थी या किशोरावस्था के मादक दौर से गुजर रही थी और यहां तो सुगना और लाली जवानी की पराकाष्ठा पर थी।

डबल बेड के साथ खूबसूरत श्रृंगारदान भी था यद्यपि सोनू के लिए श्रृंगारदान का कोई महत्व न था परंतु वह डबल बेड के साथ ही उपलब्ध था।

सुगना एक पल के लिए एक पल के लिए सोनू और उसकी होने वाली पत्नी के बारे में सोचने लगी क्या भगवान ने सोनू के लिए भी किसी की रचना की होगी.. क्या उसका भाई जीवन भर सच में अविवाहित रहेगा ? क्या लाली और सोनू इसी तरह जीवन में गुपचुप मिलते रहेंगे सुगना अपनी सोच में डूब गए तभी


साथ आए सूरज ने कहा सूरज ने कहा

"मामा ई वाला मां के पसंद बा और ऊ वाला लाली मौसी के बतावा कौन लेबा"

सोनू ने अपनी दोनों बहनों के चेहरे के भाव पढ़ने की कोशिश की जैसे वह उन दोनों में से कोई एक चुनना चाह रहा हो। सुगना सुगना थी वह कभी भी सोनू को धर्म संकट में नहीं डालना चाहती थी अचानक उसने कहा

"ई वाला छोड़ दे लाली वाला ज्यादा ठीक लागा ता। ओकरे के लेले…_" आखिर जिसे उस बिस्तर पर चुदना था पसंद उसकी ही होनी चाहिए।

पर सोनू सुगना को बखूबी जानता था। सुगना हमेशा से अपनों के लिए अपनी पसंद का त्याग करती आई थी।

सोनू ने उस बात को वहीं विराम दिया और दोनों बहनों को आगे ले जाकर एक खूबसूरत सोफासेट दिखाकर उनकी राय मांगी और दोनों एक सुर में बोल उठी

"अरे इतना सुंदर बा इकरे के लेले" और इस प्रकार लगभग सभी मुख्य सामान पर सभी की आम राय हो गई। सोनू ने दुकान के मालिक से मिलकर जरूरी दिशा निर्देश दिए और जौनपुर में सामान की डिलीवरी सुनिश्चित कर अपने परिवार के साथ बाहर आ गया..

लाली और सुगना के लिए कुछ और जरूरी साजो सामग्री खरीदने के पश्चात सोनू अपनी दोनों बहनों के साथ घर आ गया और अब उसकी विदाई का वक्त करीब था। सोनू जौनपुर के लिए निकलने वाला था अब जो परिस्थितियां बनी थी उसके अनुसार लाली को तीन चार दिनों बाद ही जौनपुर जाना था। खैर जैसे लाली ने इतने दिनों तक इंतजार किया था 3 दिन और इंतजार कर सकती थी।

विदा होने से पहले सोनू को सुगना ने अपने कमरे में बुलाया और अपना चेहरा झुकाए हुए बोली..

"सोनू एक बात ध्यान राखिहे…अभी तीन-चार दिन तक ऊ कुल गलत काम मत करिहे…"

सोनू सुगना के मुंह से यह बात सुनने के लिए पिछले कुछ दिनों से तरस रहा था उसे बार-बार यही लगता कि आखिर डॉक्टर की नसीहत को सुगना दीदी ने उसे क्यों नहीं बताया।

फिर भी सोनू ने अनजान बनते हुए कहा

"कौन काम?"

सुगना शर्म से पानी पानी हो रही थी अपने ही भाई से हस्तमैथुन की बात करना उसे शर्मसार कर रहा था परंतु वह बार-बार इस बात को लेकर परेशान हो रही थी कि यदि उसने डॉक्टर का संदेश सोनू को ना पहुंचाया तो वह कहीं हस्तमैथुन कर को खुद को खतरे में ना डाल ले। अब तक तो वह लाली को उससे दूर किए हुए थी..पर एकांत वासना ग्रस्त इंसान को हस्तमैथुन की तरफ प्रेरित करता है सुगना यह बात बखूबी जानती थी।

सोनू अब भी सुगना के उत्तर का इंतजार कर रहा था "बताओ ना दीदी कौन काम?" सोनू ने अनजान बनते हुए सुगना से दोबारा पूछा

"ऊ जौन तू अस्पताल में करौले बाड़ ओकरा बाद सप्ताह भर तक ओकरा के हाथ नैईखे लगावे के…ऊ कुल काम बिल्कुल मत करिहा जवन कॉलेज वाला लाइका सब करेला….. बाकी जब लाली आई अपन ही सब बता दी …"

सुगना ने अपनी बात अपनी मर्यादा में रहकर कर तो दी और सोनू उसे बखूबी समझ भी गया था परंतु सोनू के चेहरे पर मुस्कुराहट देखकर सुगना घबरा गई उसे लगा जैसे सोनू उससे इस बारे में और भी सवाल जवाब करेगा जिसका उत्तर देने के लिए सुगना कतई तैयार न थी। वह कमरे से निकलकर बाहर आने लगी तभी सोनू ने उसकी कलाई पकड़ ली और बोला…

" दीदी हम तोहार सब बात जिंदगी भर मानब लेकिन हमरा के माफ कर दीहा …तू सचमुच हमार बहुत ख्याल रखे लू…"

सुगना की आंखों में खुशी की चमक थी उसने अपनी बात सोनू तक बखूबी पहुंचा दी थी… और सोनू ने उसे स्वीकार भी कर लिया था आधी लड़ाई सुगना जीत चुकी थी।

अपने परिवार के सभी सदस्यों को यथोचित दुलार प्यार करने के बाद सोनू अलग हुआ और जाते-जाते लाली को अपने आलिंगन में भरकर उसकी आग को एक बार फिर भड़का गया और कान में बोला दीदी हम तोहार इंतजार करब…लाली प्रसन्न हो गई।

सोनू के दोनों हाथों में लड्डू थे…. और पेट में जबरदस्त भूख पर जिस लड्डू को वह पहले खाना चाहता था वह अभी भी उससे दूर था और दूसरा मुंह में जाने को बेताब…

नियति अपनी चाल चल रही थी…वह सोनू की वह सोनू की इच्छा पूरी करने को आमादा थी…

जौनपुर में होने वाले प्रेमयुद्ध का अखाड़ा ट्रक पर लोड हो चुका था और धीरे धीरे सोनू के नए बंगले की तरफ कूच कर रहा था….


शेष अगले भाग में..
अगला अपडेट कब तक आएगा
 

Kammy sidhu

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भाग 114

अगली सुबह सुगना और सोनू को जौनपुर जाना था…

सुगना, सोनू और जौनपुर का वह घर जिसे सुगना को स्वयं अपने हाथों से सजाना था…. नियति अपनी व्यूह रचना में लग गई…

अजब विडंबना थी। सोनू अपने इष्ट से सुगना को मांग रहा था और लाली सोनू को और सबकी प्यारी सुगना को और कुछ नहीं चाहिए था सिर्फ वह सोनू के पुरुषत्व को जीवंत रखना चाहती थी। यह बात वह भूल चुकी थी की डॉक्टर ने उसके स्वयं के जननांगों की उपयोगिता बनाए रखने के लिए उसे भी भरपूर संभोग करने की नसीहत दी थी परंतु सुगना का ध्यान उस ओर न जा रहा था परंतु कोई तो था जो सुगना के स्त्रीत्व की रक्षा करने के लिए उतना ही उतावला था जितना सुगना स्वयं…

अब आगे..

सुगना के बिस्तर पर लेटा हुआ सोनू आने वाले दिनों के बारे में सोच रहा था। सुगना ने सोनू को नसीहत दे रखी थी कि दरवाजा बंद मत करना शायद इसलिए कि वह आवश्यकता पड़ने पर कोई सामान उस कमरे से ले सके और शायद इसलिए भी की कहीं सोनू उत्तेजित होकर हस्तमैथुन न कर बैठे….

कल सुगना ने जौनपुर साथ जाने की बात कह कर उसका मुंह बंद कर दिया था। उस वक्त तो वह सिर्फ सुगना को छेड़ रहा था परंतु अब वह स्वयं यह नहीं चाह रहा था कि सुगना उसके साथ जौनपुर जाए । कारण स्पष्ट था सोनू तो वो 7 दिन सुगना के साथ बिताना चाहता था जिन दिनों में उसे न सिर्फ अपने पुरुषत्व को बचाना था अपितु सुगना की उस सकरी और सुनहरी गली को भी जीवंत और खुशहाल बनाना था जिसे एबॉर्शन के दौरान डाक्टर ने अपने औजार डॉक्टर ने घायल कर दिया था।

थके होने के बावजूद नींद उसकी आंखों से दूर थी। जौनपुर का घर अभी सुगना के रहने लायक न था वह उसे ले जाकर और परेशान कतई नहीं करना चाहता था। सोनू ने निश्चय कर लिया कि वह सुगना को जौनपुर लेकर अभी कतई नहीं जाएगा। पर उन 7 दिनों का क्या..

सुगना की बात उसके दिमाग में गूंजने लगी जो उसने रेडिएंट होटल के उस कमरे में कही थी जब वह बाथरूम के अंदर छुपा हुआ था..

"सोनू के भी बता दीहे…अभी ते भी तीन चार दिन ओकरा से दूर ही रहिए… अगला हफ्ता ते सोनू संगे जौनपुर चल जाइहे ओहिजे मन भर अपन साध बुता लिए और ओकरो। लेकिन भगवान के खातिर ई हफ्ता छोड़ दे"

सोनू परेशान हो रहा था। सोनू यह बात जान चुका था की लाली का इंतजार अब चरम पर है। लाली सचमुच बेकरार हो चुकी थी जिस युवती ने किशोर सोनू की वासना को पाल पोसकर आज उफान तक पहुंचाया था उसे उस वासना का सुख लेने का हक भी था और इंतजार भी। लाली उन 7 दिनों के इंतजार में अपनी आज की रात नहीं गवाना चाह रही थी परंतु आज भी सुगना ने उसे और सोनू को अलग कर दिया था।

लाली की मनोस्थिति को ध्यान में रख आखिरकार सोनू ने अपने मन में निश्चय कर लिया फिलहाल तो वह सुगना दीदी को जौनपुर नहीं ले जाएगा…और लाली को आहत नहीं करेगा..

उधर सुनना लाली की जांघों के बीच चिपचिपापान देखकर दुखी हो गई । यह दुख उसे लाली के प्रति सहानुभूति के कारण हो रहा था। सच में वह बेचारी कई दिनों से सोनू की राह देख रही थी परंतु उसके कारण वह सोनू से संभोग सुख नहीं प्राप्त कर पा रही थी।

जांघों के बीच छुपी वह छुपी बुर की तड़प सुगना बखूबी समझती थी। जिस प्रकार भूख लगने पर मुंह और जीभ में एक अजब सी तड़प उत्पन्न होती है वही हाल सुगना और लाली की बुर का था। सुगना तो सरयू सिंह से अलग होने के बाद संयम सीख चुकी थी और अपने पति रतन द्वारा कई बार चोदे जाने के बावजूद स्खलन सुख को प्राप्त करने में असफल रही थी। उसकी वासना पर ग्रहण लगा हुआ था और धीरे धीरे उसने संयम सीख लिया था परंतु पिछले कुछ माह से सुगना को मनोस्थिति बदल रही थी…लाली और सोनू का मिलन साक्षात देखने के बाद …..सुगना और सोनू के बीच कुछ बदल चुका था…भाई बहन के श्वेत निर्मल प्यार पर वासना की लालिमा आ गई थी…जो धीरे धीरे अपना रंग और गहरा रही थी।

परंतु लाली उसे तो यह सुख लगातार मिल रहा था और वह भी सोनू जैसे युवा मर्द का। उसके लिए सोनू से यह विछोह कष्टकारी हो चला था।

न जाने सुगना को क्या सूझा उसने नीचे खिसक कर लाली की तनी हुई चूचियों को अपने होठों से पकड़ने की कोशिश की। सुगना नाइटी के ऊपर से भी लाली के तने हुए निप्पलों को पकड़ने में कामयाब रही। अपने होंठो का दबाव देकर उसने लाली को खिलखिलाने पर मजबूर कर दिया। लाली का गुस्सा एक पल में ही काफूर हो गया और उसने अपनी सहेली के सर पर हाथ लेकर उसे अपनी चुचियों में और जोर से सटा लिया।

"ए सुगना मत कर… एक तो पहले ही से बेचैन बानी और तें आग लगावत बाड़े"

सुगना ने लाली के निप्पलों को एक पल के लिए छोड़ा और अपनी ठुड्डी लाली की चूचियों से रगड़ते हुए अपने चेहरे को ऊपर उठाया और लाली का चेहरा देखते हुए बोली

"अब जब आग लागीए गईल बा तब पानी डाल ही के परी" यह कहते हुए सुगना ने अपनी हथेली से लाली की बुर को घेर लिया।

लाली ने अपने दांतो से अपने निचले होंठ को पकड़ने की कोशिश की और कराहती हुई बोली

"ई आग पानी डलला से ना निकलला से बुताई"

सच ही था लाली की आग बिना स्खलित हुए नहीं बुझनी थी।

लाली की बुर ज्यादा कोमल थी या सुगना की उंगलियां यह कहना कठिन है परंतु लाली की बुर से रिस रहा प्रेम रस उन दोनों की दूरी को और भी कम कर गया। सुगना का मुलायम कोमल हाथ लाली की बुर पर फिसलने लगा।

लाली और सुगना आज तक कई बार एक दूसरे के करीब आई थी परंतु आज सुगना अपने अपराध भाव से ग्रस्त होकर लाली के जितने करीब आ रही थी यह अलग था। किसी औरत के इतना करीब सुगना पहले सिर्फ अपनी सास कजरी के पास आई थी वह भी एक तरफा। उसे कजरी के स्त्री शरीर से कोई सरोकार न था परंतु जो खजाना वह अपने भीतर छुपाई हुई थी उसने कजरी को स्वयं उसके पास आने पर मजबूर कर दिया था। और आखिरकार सुगना की वासना को पुष्पित पल्लवित और प्रज्वलित करने में जितना योगदान सरयू सिंह ने दिया था उतना ही कजरी ने।

सुगना की हथेलियों का दबाव लाली की बुर और होठों का दबाव निप्पल पर बढ़ रहा था। कुछ ही पलों में लाली की बुर द्वारा छोड़ा गया रस उसकी जांघों के बीच फैल रहा था। सुगना की उंगलियां लाली की बुर के अगल-बगल चहल कदमी करने लगी।

कभी सुगना अपनी उंगलियों से लाली की बुर् के होठों को फैलाती कभी उस खूबसूरत दाने अपनी तर्जनी और अंगूठे के बीच लेकर को मसल देती जो अब फूल कर कुप्पा हो और चला था।

न जाने उस छोटे से मटर के दाने में इतना इतनी संवेदना कहां से भर जाती। उसके स्पर्श मात्र से लाली चिहूंक उठती। लाली कभी अपनी बुर की फांकों को सिकोड़ती कभी उन्हें फैलाती परंतु सुगना उसे फैलाने पर उतारू थी। वह अपनी उंगलियां लाली की बुर के भीतर ले जाने की कोशिश करने लगी।

सुगना की हथेली पूरी तरह लाली के प्रेम रस से भीग चुकी थी। ऊपर सुगना के होठ लाली की चूचियों को घेरने की कोशिश कर रहे थे। सुगना की आतुरता लाली को उत्तेजित कर रही थी। लाली ने स्वयं अपनी फ्रंट ओपन नाइटी के बटन खोल दिए और अपनी चूचियां सुगना के चेहरे पर रगड़ने लगी। सुगना लाली की आतुरता समझ रही थी और उसकी उत्तेजना को अंजाम तक पहुंचाने की पुरजोर कोशिश कर रही थी तभी लाली में कहा

" ते सोनूवा के काहे रोकले हा ?"

सुगना को कोई उत्तर न सोच रहा था वह इस प्रश्न का सही उत्तर देकर सोनू की नसबंदी की बात को उजागर नहीं करना चाह रही थी। जब सुगना निरुत्तर हुई उसने लाली के निप्पलों को अपने मुंह में भर कर अपनी जीभ से सहलाने लगी। और लाली एक बार फिर कराह उठी ..

"बताऊ ना सुगना?" लाली अपनी उत्तेजना के चरम पर भी अपने प्रश्न का उत्तर जानना चाह रही थी जो उसे आज दिन भर से खाए जा रहा था।

पर अब तक सुगना उत्तर खोज चुकी थी..

"अगला हफ्ता जइबे नू जौनपुर..? बच्चा लोग के हमरा पास छोड़ दीहे और सोनूआ के दिन भर अपना संगे सुताईले रहीहे। अपनो साध बुता लिहे और ओकरो.."

सुगना की बात में अभी भी लाली के प्रश्न का उत्तर न था परंतु जो सुगना ने कहा था वह लाली की कल्पना को नया आयाम दे गया था सोनू के घर में बिना किसी अवरोध के…… दिन रात सोनू के संग रंगरेलियां मनाने की कल्पना मात्र से वह प्रसन्न हो गई थी और सुगना की उंगलियों के बीच खेल रही उसकी बूर अपना रस स्खलित करने को तैयार थी।

जैसे ही सुगना ने उसकी बुर के भगनासे को सहलाया लाली ने अपनी जांघें सी कोड ली और सुगना की उंगलियों को पूरी मजबूती से अपने भीतर दबाने लगी बुर के कंपन सुगना की उंगलियां महसूस कर पा रही थी लाली हाफ रही थी और स्खलित हो रही थी।

पूर्ण तृप्त होने के पश्चात उसके जांघों की पकड़ ढीली हुई और सुगना के होठों ने लाली की चूची को अंतिम बार चुमा और सुगना सरक पर ऊपर आ गई…

कुछ पलों बाद लाली को एहसास हुआ कि अब से कुछ देर पहले वह जिस सुख को अपनी सहेली की उंगलियों से प्राप्त कर रही थी उसकी दरकार शायद उसकी सहेली सुगना को भी हो। लाली ने सुगना की चूचियों पर हाथ फेरने की कोशिश की परंतु सुगना ने रोक दिया। वह उसके हाथों को हटाकर अपनी पीठ पर ले आई और उसे आलिंगन में लेते हुए सोने की चेष्टा करने लगी सुगना ने बड़ी शालीनता और सादगी से अपनी उत्तेजना को लाली की निगाहों में आने से बचा लिया परंतु नियति सुगना की मनोदशा समझ रही थी और अपने ताने बाने बुनने में लगी हुई थी….

आज का दिन सोनी और विकास के लिए बेहद खास था जिस प्रेम संबंध को वह दोनों पिछले एक-दो वर्षों से निभा रहे थे आज उसे सामाजिक मान्यता मिल चुकी थी सुगना भी बेहद प्रसन्न थी। दीपावली की उस काली रात के बाद सुगना का अपने इष्ट पर से विश्वास डगमगा गया था सोनू द्वारा की गई हरकत उसे आहत कर गई थी। उस पर से मोनी का गायब होना… निश्चित ही किसी अनिष्ट का संकेत दे रहा था परंतु धीरे-धीरे स्थिति सामान्य हो रही थी और विकास तथा सोनी के रिश्ते में बंध जाने के बाद सुगना प्रसन्न थी। खुशी के सुगना कब चेहरे पर वापस वही रंगत ला दी थी जिसे देखने के लिए पूरा परिवार और विशेषकर सोनू अधीर था।

लाली को तृप्त करने के बाद सुगना को ध्यान आया कही सोनू हस्तमैथुन न कर रहा हो। आज वैसे भी वह दो दो बार लाली से संभोग करने से चूक गया था। सुगना उठी और अपने कमरे में दबे पांव आई। उसके आदेशानुसार कमरे का दरवाजा खुला हुआ था और सोनू गहरी नींद में सो रहा था। सुगना खुश हो गई और वापस लाली के पास आकर निश्चिंत हो कर सो गई।



सुबह-सुबह सुगना चाय लेकर सोनू को जगाने गई .. सोनू नींद में था उसके दोनों पैर खुले हुए थे और लूंगी हटकर उसकी नग्न पुष्ट जांघों को उजागर कर रही थी.। सुगना उसकी लूंगी के पीछे छुपे उसके हथियार को देखने लगी …जो अंडरवियर में कैद होने के बावजूद अपने अस्तित्व का एहसास बखूबी करा रहा था। सुगना सोनू की नसबंदी की बात सोचने लगी। आखिर सोनू ने यह क्या कर दिया था? क्या सचमुच वह विवाह नहीं करेगा…

शायद इसे संयोग कहें या सुगना के बदन की मादक खुशबू सोनू ने एक गहरी सांस लिए और सोनू की पलकें खुली और अपनी बड़ी बहन सुगना के फूल से खिले चेहरे को देखकर सोनू का दिन बन गया वह झटपट उठकर बिस्तर पर बैठ गया और बोला..

"अरे दीदी बड़ा जल्दी उठ गईलू"

सुगना ने चाय बिस्तर पर रखी और बोली..

"देख …7:00 बज गईल बा जल्दी कहां बा अभी जौनपुर जाए के तैयारी भी तो करे के बा"

सुगना ने आगे बढ़कर खिड़की पर से पर्दा हटा दिया अचानक कमरे में रोशनी हो गई सोनू ने अपनी पलकें मीचीं और और सुगना के दमकते चेहरे को देखने लगा जो सूरज की रोशनी पढ़ने से और भी चमक रहा था…सुगना की काली काली लटें के गोरे-गोरे गालों को चूमने का प्रयास करतीं। उन पर पड़ रही रोशनी उन लटों को और खूबसूरत बना रही थी..

चाय की चुस्कियां लेते हुए सोनू ने कहा..

"दीदी हम सोचत बानी कि सामान बनारस से ही खरीदल जाऊ ओहिजा बढ़िया पलंग वलंग का जाने मिली कि ना..?"

सुगना ने सोनू की बात को संजीदगी से लिया निश्चित ही बनारस में उत्तम कोटि का सामान मिल सकता था। सुगना ने उसकी सुगना ने उसकी बात का समर्थन करते हुए कहा

" ठीक कहत बाड़े लाली के उठे दे ऊ दू तीन गो दुकान देख ले बिया ओकरे के लेकर चलेके अच्छा रही"

"हां दीदी इहे ठीक रही। जब सामान पहुंच जाई हम कमरा में लगवा देब तब तू तीन चार दिन बाद आ जाईह….तब बाकी छोट मोट और रसोई के सामान ठीक कर दीह"

तीन चार दिनों की बात सुनकर सुगना सहम गई। तीन चार दिनों बाद तो सोनू को अनवरत संभोग करना था उस समय वहां सुगना का क्या काम था… सुगना ने तपाक से कहा

"कोई बात ना वो समय लाली जौनपुर चल जाए हम फिर कभी आ जाएब_

"ना दीदी तू भी चलतू तो अच्छा रहित हम चाहत बानी की घर में गृह प्रवेश तोहरा से ही होइत "

सोनू सुगना को लेकर भावुक था। वह अपनी बड़ी बहन को अपने नए घर में सर्वप्रथम आमंत्रित करना चाहता था। वह लाली का अनादर कतई नहीं करना चाहता था पर सुगना सुगना थी उसकी आदर्श …उसकी मार्गदर्शक… हमेशा उसका ख्याल रखने वाली और अब उसका सब कुछ..

सुगना ने सुगना ने सोनू के चेहरे पर आज वही मासूमियत देखी जो दीपावली की उस रात से पहले उसे दिखाई पड़ती थी। वह उसके पास आई और बोली ₹तोहार घर हमेशा तोहरा खातिर शुभ रही.. हम हमेशा तोहारा साथ बानी…अब जो जल्दी तैयार हो जो "

जब तक लाली उठती सोनू और सुगना आगे की रणनीति बना चुके थे..

लाली के जौनपुर जाने का खतरा अब न था सो सुगना भी संतुष्ट हो चुकी थी वैसे भी अभी उसके जौनपुर जाने का कोई औचित्य न था वहां पर किसी की यदि जरूरत थी तो वह थी लाली वह भी ४ दिनों बाद।

बाजार खुलते ही सोनू सुगना और लाली फर्नीचर शोरूम में पहुंच चुके थे एसडीएम बनने के बाद पैसों की तंगी लगभग खत्म हो चुकी थी ..

बड़े से फर्नीचर शोरूम में तरह-तरह के डबल बेड लगे हुए थे लाली तो पहले भी कई बार ऐसे शोरूम में आ चुकी थी यद्यपि उस समय उसकी हैसियत न थी कि वह ऐसे पलंग खरीद पाती पाती परंतु उसका स्वर्गीय पति राजेश इन मामलों में अपनी हैसियत से एक दो कदम आगे की सोचता था वह लाली को कई बार ऐसे फर्नीचर शोरूम मे ला चुका था वह उसकी पसंद की चीजें तो नहीं पर छुटपुट चीजें खरीद कर उसको मना लेता और घर पहुंच कर उसकी खुशियों का भरपूर फायदा उठाता और मन भर चूदाई करता।

सोनू ने सुगना और लाली को पलंग पसंद करने की खुली छूट दे दी। सुगना पलंग की खूबसूरती देख देख कर मोहित हुई जा रही थी अचानक उसे अपना पलंग और अपना फर्नीचर बेहद कमतर प्रतीत होने लगा फिर भी उसने अपने मन के भाव को अपने चेहरे पर ना आने दिया और अपने प्यारे सोनू के लिए पलंग पसंद करने लगी…

सुगना और लाली की पसंद अलग अलग थी और यह स्वाभाविक भी था। दोनों ही पलंग बेहद खूबसूरत थे। भरे भरे डनलप के गद्दे साथ में खूबसूरत सिरहाना बिस्तर की खूबसूरती मन मोहने वाली थी और उन सभी युवतियों के मन को गुदगुदाने वाली थी जिनकी जांघों के बीच पल रही खूबसूरत रानी या तो जवान हो चुकी थी या किशोरावस्था के मादक दौर से गुजर रही थी और यहां तो सुगना और लाली जवानी की पराकाष्ठा पर थी।

डबल बेड के साथ खूबसूरत श्रृंगारदान भी था यद्यपि सोनू के लिए श्रृंगारदान का कोई महत्व न था परंतु वह डबल बेड के साथ ही उपलब्ध था।

सुगना एक पल के लिए एक पल के लिए सोनू और उसकी होने वाली पत्नी के बारे में सोचने लगी क्या भगवान ने सोनू के लिए भी किसी की रचना की होगी.. क्या उसका भाई जीवन भर सच में अविवाहित रहेगा ? क्या लाली और सोनू इसी तरह जीवन में गुपचुप मिलते रहेंगे सुगना अपनी सोच में डूब गए तभी

साथ आए सूरज ने कहा सूरज ने कहा

"मामा ई वाला मां के पसंद बा और ऊ वाला लाली मौसी के बतावा कौन लेबा"

सोनू ने अपनी दोनों बहनों के चेहरे के भाव पढ़ने की कोशिश की जैसे वह उन दोनों में से कोई एक चुनना चाह रहा हो। सुगना सुगना थी वह कभी भी सोनू को धर्म संकट में नहीं डालना चाहती थी अचानक उसने कहा

"ई वाला छोड़ दे लाली वाला ज्यादा ठीक लागा ता। ओकरे के लेले…_" आखिर जिसे उस बिस्तर पर चुदना था पसंद उसकी ही होनी चाहिए।

पर सोनू सुगना को बखूबी जानता था। सुगना हमेशा से अपनों के लिए अपनी पसंद का त्याग करती आई थी।

सोनू ने उस बात को वहीं विराम दिया और दोनों बहनों को आगे ले जाकर एक खूबसूरत सोफासेट दिखाकर उनकी राय मांगी और दोनों एक सुर में बोल उठी

"अरे इतना सुंदर बा इकरे के लेले" और इस प्रकार लगभग सभी मुख्य सामान पर सभी की आम राय हो गई। सोनू ने दुकान के मालिक से मिलकर जरूरी दिशा निर्देश दिए और जौनपुर में सामान की डिलीवरी सुनिश्चित कर अपने परिवार के साथ बाहर आ गया..

लाली और सुगना के लिए कुछ और जरूरी साजो सामग्री खरीदने के पश्चात सोनू अपनी दोनों बहनों के साथ घर आ गया और अब उसकी विदाई का वक्त करीब था। सोनू जौनपुर के लिए निकलने वाला था अब जो परिस्थितियां बनी थी उसके अनुसार लाली को तीन चार दिनों बाद ही जौनपुर जाना था। खैर जैसे लाली ने इतने दिनों तक इंतजार किया था 3 दिन और इंतजार कर सकती थी।

विदा होने से पहले सोनू को सुगना ने अपने कमरे में बुलाया और अपना चेहरा झुकाए हुए बोली..

"सोनू एक बात ध्यान राखिहे…अभी तीन-चार दिन तक ऊ कुल गलत काम मत करिहे…"

सोनू सुगना के मुंह से यह बात सुनने के लिए पिछले कुछ दिनों से तरस रहा था उसे बार-बार यही लगता कि आखिर डॉक्टर की नसीहत को सुगना दीदी ने उसे क्यों नहीं बताया।

फिर भी सोनू ने अनजान बनते हुए कहा

"कौन काम?"

सुगना शर्म से पानी पानी हो रही थी अपने ही भाई से हस्तमैथुन की बात करना उसे शर्मसार कर रहा था परंतु वह बार-बार इस बात को लेकर परेशान हो रही थी कि यदि उसने डॉक्टर का संदेश सोनू को ना पहुंचाया तो वह कहीं हस्तमैथुन कर को खुद को खतरे में ना डाल ले। अब तक तो वह लाली को उससे दूर किए हुए थी..पर एकांत वासना ग्रस्त इंसान को हस्तमैथुन की तरफ प्रेरित करता है सुगना यह बात बखूबी जानती थी।

सोनू अब भी सुगना के उत्तर का इंतजार कर रहा था "बताओ ना दीदी कौन काम?" सोनू ने अनजान बनते हुए सुगना से दोबारा पूछा

"ऊ जौन तू अस्पताल में करौले बाड़ ओकरा बाद सप्ताह भर तक ओकरा के हाथ नैईखे लगावे के…ऊ कुल काम बिल्कुल मत करिहा जवन कॉलेज वाला लाइका सब करेला….. बाकी जब लाली आई अपन ही सब बता दी …"

सुगना ने अपनी बात अपनी मर्यादा में रहकर कर तो दी और सोनू उसे बखूबी समझ भी गया था परंतु सोनू के चेहरे पर मुस्कुराहट देखकर सुगना घबरा गई उसे लगा जैसे सोनू उससे इस बारे में और भी सवाल जवाब करेगा जिसका उत्तर देने के लिए सुगना कतई तैयार न थी। वह कमरे से निकलकर बाहर आने लगी तभी सोनू ने उसकी कलाई पकड़ ली और बोला…

" दीदी हम तोहार सब बात जिंदगी भर मानब लेकिन हमरा के माफ कर दीहा …तू सचमुच हमार बहुत ख्याल रखे लू…"

सुगना की आंखों में खुशी की चमक थी उसने अपनी बात सोनू तक बखूबी पहुंचा दी थी… और सोनू ने उसे स्वीकार भी कर लिया था आधी लड़ाई सुगना जीत चुकी थी।

अपने परिवार के सभी सदस्यों को यथोचित दुलार प्यार करने के बाद सोनू अलग हुआ और जाते-जाते लाली को अपने आलिंगन में भरकर उसकी आग को एक बार फिर भड़का गया और कान में बोला दीदी हम तोहार इंतजार करब…लाली प्रसन्न हो गई।

सोनू के दोनों हाथों में लड्डू थे…. और पेट में जबरदस्त भूख पर जिस लड्डू को वह पहले खाना चाहता था वह अभी भी उससे दूर था और दूसरा मुंह में जाने को बेताब…

नियति अपनी चाल चल रही थी…वह सोनू की वह सोनू की इच्छा पूरी करने को आमादा थी…

जौनपुर में होने वाले प्रेमयुद्ध का अखाड़ा ट्रक पर लोड हो चुका था और धीरे धीरे सोनू के नए बंगले की तरफ कूच कर रहा था….

शेष अगले भाग में..
Wow, romantic update bro and continue story
 

Lovely Anand

Love is life
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भाग 115

सोनू के दोनों हाथों में लड्डू थे…. और पेट में जबरदस्त भूख पर जिस लड्डू को वह पहले खाना चाहता था वह अभी भी उससे दूर था और दूसरा मुंह में जाने को बेताब…

नियति अपनी चाल चल रही थी… वह सोनू की इच्छा पूरी करने को आमादा थी…

जौनपुर में होने वाले प्रेमयुद्ध का अखाड़ा ट्रक पर लोड हो चुका था और धीरे धीरे सोनू के नए बंगले की तरफ कूच कर रहा था….

अब आगे..

सोनू जौनपुर पहुंच चुका था और पीछे पीछे फर्नीचर की दुकान से खरीदा गया वह सामान भी आ रहा था । सोनू का इंतजार उसके मातहत नए बंगले पर कर रहे थे जैसे ही सोनू की कार वहां पहुंची आसपास आराम कर रहे मातहत सावधान मुद्रा में खड़े हो गए।

बंगले की सुरक्षा में लगे गार्ड ने सोनू की कार का दरवाजा खोला और सोनू अपने पूरे रोआब के साथ अपनी कार से उतर गया। अपने कपड़े व्यवस्थित करते हुए वह अपने बंगले के अंदर प्रवेश कर गया। आंखे बंगले की दीवारों पर घूम रही थीं।

सचमुच रंग रोगन के बाद बंगला अपने पूरे शबाब पर था। अंदर घुसते ही एक बड़ा सा हाल और उस हाल से लगे हुए 3 खूबसूरत कमरे। बड़ी सी रसोई और उसके सामने एक छोटा सा हाल। शासकीय बंगलों की अहमियत उसे अब समझ आ रही थी। वैसे भी मनोरमा के बंगले को देखने के बाद सोनू के मन में भी हसरत जगी थी और जौनपुर के इस बंगले ने कुछ हद तक उसकी हसरतों को पूरा कर दिया था परंतु सोनू के अंतर्मन में जो हसरत पिछले कई दिनों से पनप रही थी वह अब भी तृप्ति की राह देख रही थी।

सोनू ने पूरे बंगले का मुआयना किया और उसकी साफ-सफाई देख कर खुश हो गया उसने अपने सभी मातहतों को की तारीफ की।

थोड़ी ही देर बाद बनारस से चला हुआ ट्रक भी पहुंच गया..

ट्रक से सामान उतर कर उतार कर सोनू के दिशा निर्देश में अलग-अलग कमरों में पहुंचाया जाने लगा …

ट्रक पर आए ढेर सारे सामान को देखकर सोनू के मातहत आपस में बात करने लगे

"अरे साहब तो अभी अविवाहित और अकेले हैं फिर इतना सारा सामान?"

जब प्रश्न उठा था तो उसका उत्तर मिलना भी जरूरी था। सोनू के साथ साथ रहने वाले ड्राइवर ने तपाक से कहा

"अरे साहब का परिवार बहुत बड़ा है तीन तीन बहने हैं और उनके बच्चे भी…. हो सकता है दो-तीन दिनों बाद उन लोग यहां आए भी"

ड्राइवर ने सोनू लाली और सुगना की बातें कुछ हद तक सुन ली थी और कुछ समझ भी ली थी.. पर उस रिश्ते में आई उस वासना भरी मिठास को वह समझ नहीं पाया था। यह शायद उसके लिए उचित भी था और सोनू के लिए भी..

ट्रक के साथ आए फर्नीचर के कारीगरों ने कुछ ही घंटों की मेहनत में फर्नीचर को विधिवत सजा दिया। घर की सजावट घंटों का काम नहीं दिनों का काम होता है। फर्नीचर के अलावा और भी ढेरों कार्य थे। नंगी और खुली हुई खिड़कियां अपने ऊपर आवरण खोज रही थी सोनू ने अपने मातहतों को दिशा निर्देश देकर उनकी माप करवाई और इसी प्रकार एक-एक करके अपने घर को पूरी तरह व्यवस्थित कराने लगा…

सुगना और लाली द्वारा पसंद किए गए दोनों पलंग सोनू ने खरीद लिए थे। वैसे भी सोनू की दीवानगी इस हद तक बढ़ चुकी थी की वह सुगना की मन की बातें पढ़ उसे खुश करना चाहता था और उस फर्नीचर शॉप में तो सुगना ने उस पलंग पर अपना हाथ रख दिया था।

निश्चित ही उसके मन में उस पलंग पर लेटने और सोने की बात आई होगी । सोनू उत्साहित हो गया। अपनी कल्पना में स्वयं पसंद किए पलंग पर अपनी मल्लिका सुगना को लेटे और अंगड़ाइयां लेते देख उसका लंड .. खड़ा हो गया। जितना ही वह उस पर से ध्यान हटाता उतना ही छोटा सोनू उसका ध्यान अपनी तरफ खींच लाता। सुगना का श्रृंगारदान भी बेहद खूबसूरत था परंतु सूना था बिल्कुल अपनी मालकिन सुगना की तरह …जो एक बेहद खूबसूरत काया और सबका मन मोहने वाला दिल लिए सुहागन होने के बावजूद अब भी विधवाओं जैसी जिंदगी जी रही थी।

सोनू अपने दूसरे कमरे में आया जहां लाली द्वारा पसंद किया गया पलंग लगा था। लाली और सुगना की तुलना सोनू कतई नहीं करना चाहता था परंतु तुलना मनुष्य का स्वाभाविक गुण है।

जब तक सुगना सिर्फ और सिर्फ उसकी बड़ी बहन थी वह देवतुल्य थी और लाली उसकी मेनका रंभा और न जाने क्या-क्या। तब न तो तुलना की आवश्यकता थी और ना ही उसका औचित्य।

परंतु जब से उसने सुगना को अपनी वासना भरी दुनिया में खींच लाया था और उसको को अपना बनाने की ठान ली थी… सुगना भी उन्ही अप्सराओं मे शामिल हो चुकी थी… और अब तुलना स्वाभाविक हो चुकी थी और सुगना निर्विवाद रूप से लाली पर भारी पड़ रही थी।

आपका अंतर्मन आपके विचारों को नियंत्रित करता है। सुगना के प्रति सोनू के अनोखे प्यार ने बंगले का सबसे खूबसूरत कमरा सुगना को देने पर मजबूर कर दिया था।

यद्यपि दोनों ही कमरे खूबसूरत थे परंतु जो अंतर लाली और सुगना में था वही अंतर उनके कमरों में भी स्पष्ट नजर आ रहा था।

बहरहाल सोनू ने अपने दोनों बहनों की पसंद का ख्याल रख उनके दोनों कमरे सजा दिए थे…और सोनू का बैठका उसके स्वयं द्वारा पसंद किए गए सोफे से जगमगा उठा था। घर की साफ सफाई की निगरानी करते करते रात हो चुकी थी परंतु अभी भी कई कार्य बाकी थे…

अगले दो-तीन दिनों तक सोनू अपना आवश्यक शासकीय कार्य निपटाने के बाद अपने बंगले पर आ जाता और कभी पर्दे कभी शीशा कभी कपड़े रखने की अलमारी और तरह-तरह की छोटी बड़ी चीजें खरीदता और घर को धीरे धीरे हर तरीके से रहने लायक बनाने की कोशिश करता। रसोई घर के सामान कि उसे विशेष जानकारी न थी फिर भी वह अत्याधुनिक और जौनपुर में उपलब्ध उत्तम कोटि के रसोई घर के सामान भी खरीद लाया था पर उन्हें यथावत छोड़ दिया था…

रसोई घर को सजा पाना उसके वश में न था एकमात्र वही काम उसने अपनी बहनों के लिए छोड़ दिया था..

पूर्व निर्धारित कार्यक्रम के अनुसार लाली को ही जौनपुर आना था सोनू को भी सुगना के साथ साथ उसका भी इंतजार था। लाली को अभी आने से रोकना और तीन-चार दिनों बाद जौनपुर भेजने की योजना सुगना ने डॉक्टर की नसीहत को ध्यान में रखते हुए ही बनाई थी।

परंतु सोनू भी कम न था उसने जानबूझकर सुगना को अभी जौनपुर आने से रोक लिया था और फर्नीचर खरीदने का प्रबंध बनारस से ही कर लिया था ताकि वह घर की सजावट पूरी होने के बाद लाली और सुगना को एक साथ ही जौनपुर ले आए। नए घर में प्रवेश की बात कर सुगना को आसानी से मना सकता था और इसके लिए जिद भी कर सकता था।

वैसे भी लाली और उसके बीच जो कुछ हो रहा था वह न सिर्फ सुगना जान रही थी अपितु अपनी खुली और नंगी आंखों से देख भी चुकी थी और अब तो सोनू और लाली के मिलन की अनिवार्यता भी थी। सुगना लाली और उसे करीब लाने में कोई कमी नहीं रखेगी यह बात सोनू बखूबी जानता था वह मन ही मन तरह-तरह की कल्पनाएं करता और सुगना की उपस्थिति में लाली को चोद चोद कर सुगना को और उत्तेजित करने का प्रयास करता उसे पता था सुगना की उस खूबसूरत और अद्भुत बुर को जीवंत बनाए रखने के लिए सुगना का भी संभोग करना अनिवार्य था चाहे कृत्रिम रूप से या स्वाभाविक रूप से…

परंतु सोनू के लिए सुगना से संभोग अब भी दुरूह कार्य था सुगना जब तक स्वयं अपनी जांघे नहीं खोलती सोनू वही गलती दोबारा दोहराने को कतई तैयार न था जो उसने दीपावली की रात की थी । सुगना का मायूस और उदास चेहरा जब जब सोनू के सामने घूमता उसके सुगना के जबरदस्ती करीब जाने के विचार पानी के बुलबुले की तरह बिखर जाते ।

सोनू पूरी जी जान से अपनी परियों के आशियाने को सजाने में जुटा हुआ था और परियों की रानी सुगना कि उस अद्भुत और रसीली बुर को जीवंत बनाए रखने की संभावनाओं पर लगातार सोच विचार कर रहा था।

ऐसा न था कि आने वाले 1 सप्ताह की तैयारियां सिर्फ सोनू कर रहा था उधर बनारस में उसकी बहन सुगना भी लाली को उस प्रेम युद्ध के लिए पूरी तरह तैयार कर रही थी…

"ए लाली तोर महीना कब आई रहे"

"काहे पुछत बाड़े.." लाली में सुगना के इस अप्रत्याशित प्रश्न पर एक और प्रश्न किया

"तोरा जौनपुर भी जाए के बा..भुला गईले का?" सुगना ने लाली के पेट पर चिकोटी काटते हुए कहा

"देखत बानी तू ज्यादा बेचैन बाड़ू …..का बात बा? अभी तो सोनुआ के भीरी ठेके ना देत रहलु हा और अब जौनपुर भेजें खातिर अकुताईल बाड़ू_

सुगना जब पकड़ी जाती थी तो अपनी खूबसूरत मुस्कुराहट और अपने स्पर्श से सामने वाले को मोहित कर लेती थी। उसने लाली की हथेली को अपनी गोद में लिया और उसकी बाहों को दबाते हुए बोली..

"अब जाता रे नू जौनपुर खूब सेवा करिए और करवाईहे हम ना रोकब टोकब "

लाली भी सुगना को छेड़ने के मूड में आ चुकी थी..

"ते हु चल ना कुछ ना करबे त देख देख कर मजा लीहे पहले भी तो देखलहीं बाड़े "

सुगना ने लाली की बाहें अपनी गोद से हटाकर दूर फेंकते हुए कहा

" लाली फालतू बात मत कर तोरा कारण ही सोनूवा के दिमाग खराब हो गईल रहे और ऊ कुल कांड भईल अब हमरा बारे में सोनूवा से कोनो बात मत करिहे_"

"हम कहां करीना तोरे सोनूवा बेचैन रहेला? का जाने ते का देखावले बाड़े और का चिखावले बाड़े" लाली ने अपनी नजर सुगना की भरी भरी चुचियों पर घुमाई और फिर उन्हें उसके सपाट पेट से होटी हुई जांघों के बीच तक ले गई। सुगना बखूबी लाली की नाचती हुई आंखों को देख रही थी।

"ई सब पाप ह.." सुगना ने अपनी आंखें बंद कर ऊपर छत की तरफ देखा और अपने अंतर्मन से चिर परिचित प्रतिरोध करने की कोशिश की..

"काहे पाप ह…?"लाली में पूछा । लाली तो जैसे वाद विवाद पर उतारू थी ..

"सोनूवा हमार अपना भाई हां भाई बहन के बीच ई कुल …छी कितना गंदा बात बा.."

सुगना की स्पष्ट और उचित बात ने लाली को भी सोचने पर मजबूर कर दिया और वह कुछ पलों के लिए चुप हो गई फिर उसने सुगना की हथेली पकड़ी और बोला

"काश सोनुआ तोर आपन भाई ना रहित.."

लाली की बात सुनकर सुगना अंदर ही अंदर सिहर उठी..लाली ने उसकी दुखती रग छेड़ दी थी.. अपने एकांत में न जाने सुगना कितनी बार यह बात सोचती थी..

सुगना से अब रहा न गया उसने लाली की बात में हां में हां मिलाते हुए कहा

" हां सच कहते बाड़े काश सोनुआ हमार भाई ना होके तोर भाई रहित.."

दोनों सहेलियां खिलखिला कर हंस पड़ी। लाली का कोई अपना सगा भाई न था। उसे इस रिश्ते की पवित्रता और मर्यादा का बोध न था उसने तो सोनू को ही अपना मुंहबोला भाई माना था परंतु जैसे-जैसे सोनू जवान होता गया उसने लाली को दिल से बहन न माना …

संबोधन और आकर्षण दोनों साथ-साथ बढ़ते रहे लाली दीदी के प्रति सोनू की आसक्ति समय के साथ बढ़ती गई और अब लाली और सोनू के संबंध अपनी अलग ऊंचाइयों पर थे…

" ते हमार बात घुमा दे ले लेकिन बतावाले हा ना कि महिनवा कब आई रहे…?

"मत घबरो .. अभी महीना आवे में 2 सप्ताह बा। अब ठीक बानू"

सुगना निश्चिंत हो गई उसे तो सिर्फ 1 हफ्ते की दरकार थी। उसके पश्चात लाली और सोनू लगातार साथ रहे या ना रहे उससे सुगना को कोई फर्क नही पड़ना था। परंतु सोनू की वासना और उसके जननांगों को जीवंत रखना सुगना की प्राथमिकता भी थी और धर्म भी। डॉक्टर ने जो दायित्व सुगना को दिया था वह उसे वह बखूबी निभा रही थी।

अचानक सुगना के मन में आया…

"ए लाली चल ना ढेर दिन भर उबटन लगावल जाओ.."

सुगना ने लाली के मन की बात कह दी थी । लाली स्वयं भी सोनू से जी भर चुदने किसे पहले अपने बदन को और मखमली करना चाह रही थी। दोनों सहेलियां सरसों का उबटन पीसने में लग गई…

आइए जब तक सुगना और लाली अपना उबटन पीसते हैं तब तक आपको लिए चलते हैं सलेमपुर जहां सरयू सिंह आज अपनी कोठरी की साफ सफाई कर रहे थे। यही वह कोठरी थी जहां सुगना की छोटी बहन सोनी अपने प्रेमी विकास से दीपावली की रात जमकर चुदी थी और हड़बड़ाहट में अपनी जालीदार लाल पेंटी अनजाने में ही सरयू सिंह के लिए उपहार स्वरूप छोड़ गई थी।

सरयू सिंह में उस लाल पेंटी और उसमें कैद होने वाले खूबसूरत नितंबों की कल्पना कर अपनी वासना को कई दिनों तक जवान रखा था और हस्तमैथुन कर अपने लंड को उसकी शक्ति याद दिलाते रहे थे। सोनी के मोहपाश में बंधे अपने मन में तरह-तरह के विचार और ख्वाब लिए वह उसका पीछा करते हुए बनारस भी पहुंच चुके थे। परंतु अब उनके मन में एक अजब सी कसक थी सोनी और विकास के रिश्ते के बाद उसके बारे में गलत सोचना न जाने उन्हें अब क्यों खराब लग रहा था। उनकी वासना अब भी सोनी को एक व्यभिचारी औरत काम पिपासु युवती के रूप में देखने को मजबूर करती परंतु पहले और अब का अंतर स्पष्ट था। जितने कामुक खयालों के साथ वह अपने विचारों में सोनी के साथ व्यभिचार करते थे वह उसकी धार अब कुंद पड़ रही थी सरयू सिंह ने सोनी के साथ जो वासनाजन्या कल्पनाएं की थी अब उन में अब बदलाव आ रहा था। शायद सोनी के प्रति उनका गुस्सा कुछ कम हो गया था।

सोनी को चोद पाने की उनकी तमन्ना धीरे-धीरे दम तोड़ रही थी जिस सुकन्या का विवाह अगले कुछ महीनों में होने वाला था वह भी विकास जैसे युवक से वह क्यों कर भला सरयू सिंह जैसे ढलती उम्र के व्यक्ति के पास सहर्ष चुदवाने के लिए आएगी…परंतु सरयू सिंह एक बात भूल रहे थे जांघों के बीच नियति ने उन्हें जो शक्ति प्रदान की थी वह अनोखी थी…

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उधर विद्यानंद के आश्रम में…

मोनी के कौमार्य परीक्षण के पश्चात उसे आश्रम के विशेष भाग में स्थानांतरित कर दिया गया था वहां उसकी उम्र की करीब दस और लड़कियां थी मोनी को सिर्फ इतना पता था कि वह आश्रम के विशेष सदस्यों की टोली में शामिल की गई थी जहां उसे एक विशेष साधना में लगना था।

नित्य कर्म के पश्चात सभी लड़कियां एक बड़ी सी कुटिया में आ चुकी थी सभी के शरीर पर एक श्वेत धवल वस्त्र था जो उनके अंग प्रत्यंग ओं को पूरी तरह आवरण दिए हुए था सभी लड़कियां नीचे बनी बिछी आशनी पर बैठ गई सामने चबूतरे पर आसनी बिछी हुई थी पर स्थान रिक्त था..

कुछ ही पलों में कुटिया में लगे ध्वनि यंत्र से एक आवाज सुनाई दी…आप सभी को एक विशेष साधना के लिए चुना गया है जिसमें आपका स्वागत है.. आप सबकी गुरु माधवी जी अब से कुछ देर बाद मंच पर विराजमान होंगी वही आपको आने वाले एक माह तक निर्देशित करेंगी । आप सब उनके दिशा निर्देशों का पालन करते हुए इस विशेष आश्रम में रहेंगी और अपनी साधना पूर्ण करेंगी कुछ कार्य आप सब को सामूहिक रूप में करना होगा कुछ टोलियों में और कुछ अकेले। माधवी जी हमेशा आप लोगों के बीच रहेंगी। आप सब अपनी आंखें बंद कर माधवी जी का इंतजार करें और उनके कहने पर ही अपनी आंखें खोलिएगा।

सभी लड़कियां विस्मित भाव से उस ध्वनि यंत्र को खोज रही थी जो न जाने कहां छुपा हुआ था। दिशा निर्देश स्पष्ट थे सभी लड़कियों ने आंखें बंद कर लीं और वज्रासन मुद्रा में बैठ गईं सामने मंच पर किसी के आने की आहट हुई परंतु लड़कियों ने निर्देशानुसार अपनी आंखें बंद किए रखी।

कुछ ही पलों बाद माधवी की मधुर आवाज सुनाई पड़ी

"आप सब अपनी आंखें खोल सकती हैं"

सभी लड़कियों ने अपनी आंखें धीरे-धीरे खोल दीं।

मोनी सामने पहली कतार में बैठी थी मंच पर एक सुंदर और बेहद खूबसूरत महिला को नग्न देखकर वह अचंभित रह गई। उसने अपने अगल-बगल लड़कियों को देखा सब की सब विस्मित भाव से माधवी को देख रही थी माधवी पूर्ण नग्न होकर वज्रासन में बैठी हुई थी और उसकी आंखें बंद थी दोनों हाथ प्रणाम की मुद्रा में जुड़े हुए थे और उसकी भरी-भरी चूचियां दोनों हाथों के बीच से निकलकर तनी हुई थी प्रणाम की मुद्रा में दोनों पंजे सटे हुए दोनों चुचियों के बीच आ गए थे। बेहद खूबसूरत दृश्य था….

माधवी ने भी अपनी आंखें खोली और सामने बैठी लड़कियों को संबोधित करते हुए बोली

"मेरा नाम माधवी है मैं आप की आगे की यात्रा में कुछ दूर तक आपके साथ रहूंगी …आप सब मेरे शरीर पर वस्त्र न देख कर हैरान हो रहे होंगे परंतु विधाता की बनाई इस दुनिया में वस्त्रों का सृजन पुरुषों और स्त्रियों के भेद को छुपाने के लिए ही हुआ था और यहां हम सब स्त्रियां ही हैं अतः हम सबके बीच किसी पर्दे की आवश्यकता नहीं है क्या आपने कभी गायों को बछियों को वस्त्र पहने देखा है?"

सभी माधवी की बातों को मंत्रमुग्ध होकर सुन रहे थे एक तो माधवी बेहद खूबसूरत थी ऊपर से उसका कसा हुआ बदन उसके व्यक्तित्व में चार चांद लगा रहा था। भरी-भरी गोरी गोरी चूचीया और उस पर तने हुए गुलाबी निप्पल सभी लड़कियों को खुद अपने स्तनों को उस से तुलना करने पर मजबूर कर रहा था और निश्चित ही माधवी उन सब पर भारी थी। परंतु मोनी माधवी से होड़ लगाने को तैयार थी। सुगना की बहन होने का कुछ असर मोनी पर भी था।

आइए हम सब अपने एकवस्त्र को खोल कर यही कुटिया में छोड़ देंगे और शाम सूरज ढलने के पश्चात वापस अपने वस्त्र लेकर अपने अपने कमरों में चले जाएंगे। इसी प्रकार आने वाले 1 महीने तक हम सुबह सुबह यहां एकत्रित होंगे और प्रकृति के बीच रहकर अपनी साधना को पूरा करेंगे।

एक बात ध्यान रखिएगा यह साधना आप सबके लिए है और इस साधना में हुए अनुभव और सीख किसी और से साझा मत करिएगा दीवारों के भी कान होते हैं।

एक-एक करके सभी लड़कियों ने अपने श्वेत वस्त्र को अपने शरीर से उतार दिया और नग्न होने लगी मोनी आज पहली बार किसी के समक्ष नग्न हो रही थी नियति मोनी की काया पर से आवरण हटते हुए देख रही थी न जाने ऊपर वाले ने सारी सुंदरता पदमा की बेटियों को ही क्यों दे दी थी। एक से बढ़कर एक खूबसूरत और जवानी से भरपूर तीनों बहनें…

गोरी चिट्टी मोनी गांव में अपनी मां पदमा का हाथ बटाते बटाते शारीरिक रूप से सुदृढ़ हो गई थी। खेती किसानी और घरेलू कार्य करते करते उसके शरीर में कसाव आ चुका था और स्त्री सुलभ कोमलता उस कसे हुए शरीर को और खूबसूरत बना रही थी।

मोनी का वस्त्र उसके जांघों के जोड़ तक आ गया और उसकी खूबसूरत और अनछुई बुर माधवी की निगाहों के सामने आ गई और बरबस ही माधवी का ध्यान मोनी की बुर पर अटक गया मोनी के भगनासे के पास एक बड़ा सा तिल था…यह तिल निश्चित ही सब का ध्यान खींचने वाला था माधवी मंत्रमुग्ध होकर मोनी को देखे जा रही थी।

कुछ ही देर में कुछ ही देर में सभी कुदरती अवस्था में आ चुके थे और एक दूसरे से अपनी झिझक मिटाते हुए कुछ ही पलों में सामान्य हो गए थे। लड़कियों की जांघों के बीच वह खूबसूरत बुर आज खुली हवा में सांस ले रही थी.. और तनी हुई चूचियां उछल उछल कर लड़कियों को एक अलग ही एहसास करा रही थी.

आश्रम का यह भाग प्राकृतिक सुंदरता से भरा हुआ था । जहां पर प्रकृति ने साथ न दिया था वहां लक्ष्मी जी के वैभव से वही प्राकृतिक सुंदरता कृत्रिम रूप से बना दी गई थी….

धूप खिली हुई थी और सभी नग्न लड़कियां कृत्रिम पर विशालकाय झरने के बीच आकर एक दूसरे से अठखेलियां करने लगी। कभी अपनी अंजुली में पानी लेकर एक दूसरे पर छिड़कती और अपनी बारी आने पर उसी पानी से बचने के लिए अपने चेहरे को इधर-उधर करती कभी अपने हाथों से अपने चेहरे और आंखों को ढकती…

प्रकृति की सुंदरता उफान पर थी आज अपनी ही बनाई खूबसूरत तरुणियों को अपनी आगोश में लिए हुए प्रकृति और भी खूबसूरत हो गई थी। आश्रम का यह भाग दर्शनीय था। हरे भरे उपवन में पानी का झरना और झरने में खेलती मादक यौवन से लबरेज उन्मुक्त होकर खेलती हुई युवतियां।

परंतु उस दिव्य दर्शन की इजाजत शायद किसी को न थी पर जो इस आश्रम का रचयिता था वह बखूबी इस दृश्य को देख रहा था….

आइए तरुणियो को अपने हाल पर छोड़ देते हैं और वापस आपको लिए चलते हैं बनारस में आपकी प्यारी सुगना के पास…

दोपहर का वक्त खाली था सारे बच्चे स्कूल जा चुके थे और सोनी भी.. अपने कॉलेज के लिए निकल चुकी थी वैसे भी अब उसका मन कॉलेज में ना लगता था जो पढ़ाई वह पढ़ रही थी अब वह उसके जीविकोपार्जन का साधन ना होकर एक शौक बन चुका था फिर भी जब सोनी ने इतनी मेहनत की थी वह इस अंतिम परीक्षा में सफल हो जाना चाहती थी…

घर के एकांत में लाली और सुगना उबटन लेकर अपने कमरे में थी..सुगना लाली के हाथ पैरों में उबटन लगा रही थी। धीरे धीरे सुगना के हाथ अपनी मर्यादा को लांघते हुए लाली की जांघों तक पहुंचने लगे।

लाली ने सुगना के स्पर्श में उत्तेजना महसूस की। और वह बीती रात की बात याद करने लगी जब सुगना ने पहली बार उसकी बुर को स्खलित किया था।

कुछ ही देर में लाली सुगना के समक्ष अर्धनग्न होती गई पेटीकोट सरकता सरकता लाली के नितंबों तक आ चुका था और उसके मादक नितंबों को बड़ी मुश्किल से छुपाने की कोशिश कर रहा था । लाली को अब सुगना से कोई शर्म न थी परंतु वह खुद ही अपनी पेटीकोट को और ऊपर करना नहीं चाह रही थी थी सुगना में लाली की जांघों पर पीले उबटन का लेप लगाया और धीरे-धीरे उसकी जांघों और पैरों की मालिश करने लगी सुगना ने मुस्कुराते हुए औंधे मुंह पड़ी लाली से कहा

"जा तारे नू जौनपुर… तोरा के बरियार(ताकतवर) कर देत बानी सोनूवा से हार मत मनीहे"

लाली का चेहरा सुगना से दूर था उसने बड़ी मुश्किल से अपनी गर्दन घुमाई फिर भी वह सुगना का चेहरा ना देख पाई जो उसके पैरों पर बैठी उसकी जांघों पर मालिश कर रही थी फिर भी लाली ने कहा…

"बड़ा तैयारी करावत बाड़े कुछ बात बा जरूर ….बतावत काहे नईखे?"

सुगना सुगना एक बार फिर निरुत्तर हुई परंतु अभी तो मामला गरम था सुगना ने उबटन उसके लाली के नितंबों के बीचो बीच उस गहरी घाटी में लगाते हुए बोला..

" जो अबकी सोनू छोड़ी ना…इतना चिकना दे तानी आगे से थक जयबे तो एकरो के मैदान में उतार दीहे।"

सुगना आज सचमुच नटखट होकर लाली को उकसा रही थी उसे पता था लाली राजेश के साथ अपने अगले और पिछले दोनों गलियों का आनंद ले चुकी थी… परंतु सोनू वह तो अभी सामने की दुनिया में ही खोया हुआ था..

सुगना की उत्तेजक बातें सुनकर लाली गर्म हो रही थी। मन में उत्तेजना होने पर स्पर्श और मालिश का सुख दुगना हो जाता है । लाली सुगना के उबटन लगाए जाने से खुश थी और उसका भरपूर आनंद ले रही थी।

नियति सुगना को अपने भाई सोनू के पुरूषत्व को बचाने के लिए अपनी सहेली लाली को तैयार करते हुए देख रही थी.. सच सुगना का प्यार निराला था।

लाली के बदन पर उबटन लगाते लगाते सुगना की आंखों के सामने वही दृश्य घूमने लगे जब सोनू लाली को चोद रहा था। जितना ही सुगना सोचती उतना ही स्वयं भी वासना के घेरे में घिरती।

लाली की पीठ और जांघों के पिछले भाग पर उबटन लगाने के बाद अब बारी लाली को पीठ के बल लिटा दिया और एक बार फिर उसके पैरों पर सामने की तरफ से उबटन लगाने लगी।

जब एक बार उबटन शरीर पर लग गया तो उसे छूड़ाने के लिए उस सुगना को मेहनत करनी ही थी। उसने दिल खोलकर लाली के शरीर पर लगे उबटन से रगड़ रगड़ कर मालिश करतीं रही। लाली सुगना की मालिश से अभिभूत होती रही।

बीच-बीच में दोनों सहेलियां एक दूसरे को छेड़तीं.. उत्तेजना सिर्फ लाली में न थी अपितु लाली के बदन को मसलते मसलते सुगना स्वयं उत्तेजना के आगोश में आ चुकी थी। पूरे शरीर में जहां तहां उबटन लग चुका और जैसे ही लाली के बदन से उबटन अलग हुआ… लाली ने सुगना को उसी बिस्तर पर लिटा दिया जिस पर वह अब से कुछ देर पहले लाली की मालिश कर रही थी…

" ई का करत बाड़े " सुगना ने लाली की पकड़ से छूटने की कोशिश की और खिलखिलाते हुए बोली

लाली ने कहा

" इतना सारा उबटन बाचल बा ले आओ तोहरो के लगा दी"

सुगना ना ना करती रही..

"ना ना मत कर" लाली ने सुगना के पेट और पैरों पर उबटन लपेट दिया और एक बार फिर वही दौर चल पड़ा बस स्थितियां बदल चुकी थी. लाली सुगना के पैरों पर बैठी सुगना की जांघों की मालिश कर रही थी और सुगना इस अप्रत्याशित स्थिति से बचने का प्रयास करने कर रही थी।

परंतु अब यह संभव न था नियति लाली और सुगना के बीच का प्यार देख रही थी… सोनू की दोनों बहने जाने अनजाने एक दूसरे को सोनू के लिए तैयार कर रही थीं

नियति सोनू के भाग्य पर रश्क कर रही थी। क्या होने वाला था? सोनू के पुरुषत्व को बचाने के लिए जौनपुर के अखाड़े में किसे कूदना था लाली को या सुगना को या दोनों बहने एक साथ मैदान में उतरने की तैयारी में थी…

उधर सोनू अपने हथियार को अपने हाथ में लिए उसे सब्र करने को समझा रहा था…और अपने इष्ट से लगातार मिन्नते कर रहा था …सुगना को पाने के लिए उसकी उसकी मांगे कुछ उचित थी कुछ अनुचित…. ईश्वर स्वयं उसकी अधीरता से तंग आ चुके थे और आखिरकार……

शेष अगले भाग में





 
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