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Incest आह..तनी धीरे से.....दुखाता.

Lovely Anand

Love is life
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आह ....तनी धीरे से ...दुखाता
(Exclysively for Xforum)
यह उपन्यास एक ग्रामीण युवती सुगना के जीवन के बारे में है जोअपने परिवार में पनप रहे कामुक संबंधों को रोकना तो दूर उसमें शामिल होती गई। नियति के रचे इस खेल में सुगना अपने परिवार में ही कामुक और अनुचित संबंधों को बढ़ावा देती रही, उसकी क्या मजबूरी थी? क्या उसके कदम अनुचित थे? क्या वह गलत थी? यह प्रश्न पाठक उपन्यास को पढ़कर ही बता सकते हैं। उपन्यास की शुरुआत में तत्कालीन पाठकों की रुचि को ध्यान में रखते हुए सेक्स को प्रधानता दी गई है जो समय के साथ न्यायोचित तरीके से कथानक की मांग के अनुसार दर्शाया गया है।

इस उपन्यास में इंसेस्ट एक संयोग है।
अनुक्रमणिका
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भाग 126 (मध्यांतर)
 
Last edited:

Lovely Anand

Love is life
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बनारस महोत्सव का पहला दिन

सुगना और कजरी सुबह से ही तैयार होकर मनोरमा मैडम द्वारा भेजी जाने वाली गाड़ी का इंतजार कर रहे थीं।


तभी गांव के सकरे रास्ते पर धूल उड़ाती चमचमाती एंबेसडर कार सरयू सिंह के दरवाजे की तरफ आ रही थी गांव के बच्चे उस कार के आगे पीछे दौड़ रहे थे ड्राइवर परेशान हो रहा था और बार-बार हार्न बजा रहा था परंतु गांव के इस माहौल में उसकी सुनने वाला कोई नहीं था। वह मन ही मन बस सोच रहा था हे भगवान में कहा जाहिलों के बीच फस गया।

गांव की धूल एंबेसडर की खूबसूरती को रोक नहीं पाई सुगना और कजरी ने मनोरमा मैडम की जीप की उम्मीद की थी परंतु कार तो उनकी उम्मीद से परे थी।

सफेद रंग का सफारी सूट पहने ड्राइवर कार से बाहर आया और बच्चों को कार से दूर रहने की नसीहत देते हुए उन्हें कार से दूर हटाने लगा। जिस तरह गुड़ पर मक्खियां सटी रहती हैं बच्चे भी घूम घूम कर कार के पास आजा रहे थे।

सुगना और कजरी सतर्क मुद्रा में खड़ी हो गई थी ड्राइवर ने कजरी से पूछा

"सुगना मैडम कौन है?"

सुगना शर्म से लाल हो गई उसे अपने लिए मैडम शब्द की उम्मीद न थी। कजरी को थोड़ा बुरा जरूर लगा पर सुगना उसे जान से प्यारी थी उसने मुस्कुराते हुए कहा

"यही है आपकी सुगना मैडम।"

"मैडम बनारस महोत्सव में चलने के लिए मनोरमा मैडम ने गाड़ी भेजी है। और यह खत सरयू सिंह जी ने दिया है।"

"ठीक है हम लोग आते हैं " सुगना अपनी खुशी को छुपाना चाह रही थी परंतु उसके दांत खूबसूरत होठों से निकलकर उसकी खुशी प्रदर्शित कर रहे थे। थोड़ी ही देर में सुगना और कजरी एम्बेसडर कार की पिछली सीट पर बैठ रहे थे. तभी हरिया की पत्नी ( लाली की मां ) निकलकर बाहर आई… और बोली

"ई झोला लाली के यहां पहुंचा दीह"

सुगना और कजरी को एम्बेसडर कार में बैठा देखकर उसे यकीन ही नहीं हो रहा था।

कजरी ने उससे कहा..

"ठीक बा घर के ख्याल रखीह"

लाली की मां ने हाथ हि

लाकर सुगना और कजरी को विदा किया और ड्राइवर ने कार वापस बनारस शहर की तरफ दौड़ा ली।

उधर विद्यानंद जी के पंडाल में गहमागहमी थी सरयू सिंह पंडाल के आयोजकों में थे परंतु विद्यानंद जी के आने के बाद जैसे उनकी उपयोगिता खत्म हो गई थी। जिस तरह बारात आने के बाद पांडाल लगाने वाले दिखाई नहीं पड़ते उसी प्रकार सरयू सिंह पांडाल के एक कोने में खड़े विद्यानंद की एक झलक पाने को बेकरार थे।

सजे धजे बग्गी में बैठे विद्यानंद पांडाल में बने अपने विशेष कक्ष की तरफ जा रहे थे। समर्थकों और अनुयायियों की भारी भीड़ उन्हें घेरे हुए थी। सरयू सिंह उन्हें तो देख पा रहे थे पर दूरी ज्यादा होने की वजह से वह निश्चय कर पाने में असमर्थ थे कि वह उनके बिरजू भैया हैं या यह सिर्फ एक वहम है।

कुछ ही देर में विद्यानंद जी का पंडाल सज गया श्रोता गण सामने बैठ चुके थे। मंच पर हुई दिव्य व्यवस्था मनमोहक थी और विद्यानंद के कद और ऐश्वर्य को प्रदर्शित कर रही थी । 54- 55 वर्ष की अवस्था में उन्होंने इस दुनिया में एक ऊंचा कद हासिल किया हुआ था। पाठक अंदाजा लगा सकते हैं जिसकी अनुयाई मनोरमा जैसी एसडीएम थी निश्चय ही वह विद्यानंद कितने पहुंचे हुए व्यक्ति होंगे।

कुछ ही देर में स्टेज के पीछे का पर्दा हटा और विद्यानंद जी अवतरित हो गए श्वेत धवल वस्त्रों में उनकी छटा देखते ही बन रही थी। चेहरे पर काली दाढ़ी में कुछ अंश सफेदी का भी था जो उनकी सादगी को उसी प्रकार दर्शाता था जैसे उनका मृदुल स्वभाव।

विद्यानंद जी का प्रवचन शुरू हो गया वह बार-बार दर्शक दीर्घा में बहुत ध्यान से देख रहे थे पता नहीं उनकी आंखें क्या खोज रही थी। श्रोता मंत्रमुग्ध होकर उनके द्वारा बताई जा रहे विवरण को ध्यान से सुन रहे थे।

पंडाल के बाहर एंबेसडर कार आ सुगना और कजरी को लेकर आ चुकी थी। सरयू सिंह बेसब्री से सुगना और कजरी का इंतजार कर रहे थे उन्होंने सुगना और कजरी का सामान लिया और उन्हें रहने की व्यवस्था दिखाई। सुगना और कजरी भी पंडाल में आ गयीं।

सुगना की गोद में सूरज एक खूबसूरत फूल के रूप में दिखाई पड़ रहा था। सूरज का खिला हुआ चेहरा और स्वस्थ शरीर सबका ध्यान अपनी तरफ जरूर खींचता। जितनी सुंदर और सुडौल सुगना थी उसका पुत्र भी उतना ही मनमोहक था ।

पांडाल में पहुंचते ही कजरी और सुगना श्रोता दीर्घा में बैठकर बैठकर पंडाल की खूबसूरती का मुआयना करने लगे वो बीच-बीच में विद्यानंद जी की तरफ देखते परंतु न तो कजरी का मन प्रवचन सुनने में लग रहा था और नहीं सुगना का। कजरी बार-बार विद्यानंद को देखे जा रही थी परंतु उसके मन में एक बार भी उसके बिरजू होने का ख्याल नहीं आया।

जब हैसियत और कद का अंतर ज्यादा हो जाता है तो नजदीकी भी दूर दिखाई पड़ने लगते हैं। विद्यानंद दरअसल बिरजू था यह कजरी की सोच से परे था।

विद्यानंद का एक प्रमुख चेला जो उनकी ही तरह सफेद धोती कुर्ते मैं सजा हुआ पंडाल में बैठी महिलाओं और बच्चों को बेहद ध्यान से देख रहा था। धीरे धीरे वह हर कतार में जाकर महिलाओं और बच्चों से मिलता उनका कुशलक्षेम पूछता और और छोटे बच्चों को लॉलीपॉप पकड़ा कर अपना प्यार जताता।

उसकी हरकतों से ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे वह किसी विशेष बच्चे को खोज रहा हो। जैसे-जैसे वह पंडाल के आखिरी छोर तक आ गया उसके चेहरे पर अधीरता दिखाई पड़ने लगी।

वह व्यक्ति सुगना के करीब पहुंचा। सुगना जैसी खूबसूरत अप्सरा जैसी युवती को देखकर उसकी आंखें सुगाना के चेहरे पर ठहर गयीं। सूरज सुगना की चुचियों को बाहर निकालने की कोशिश कर रहा था शायद वह भूखा था। विद्यानंद जी के उस चेले ने सूरज को आकर्षित करने की कोशिश की। अपने मुंह से रिझाने के लिए उसने तरह-तरह की किलकारियां निकाली और सूरज का ध्यान अपनी तरफ आकर्षित करने में सफल हो गया। लाल और सफेद रंग की धारियों वाला लॉलीपॉप उसने अपने हाथों में निकाल लिया। सूरज उस खूबसूरत लालीपाप के आकर्षण से न बच पाया और उसने अपना हाथ लॉलीपॉप लेने के लिए बढ़ा दिया।

यह वही हाथ था जिसके अंगूठे पर नाखून नहीं था। विद्यानंद के शागिर्द ने सूरज का अंगूठा देख लिया और उसके चेहरे पर खुशी देखने लायक थी। कभी वह सूरज को देकहता कभी विद्यानंद को। ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे उसने कोई आश्चर्य देख लिया हो। उसने लॉलीपॉप सूरज को पकड़ाया और उल्टे पैर मंच की तरफ बढ़ चला। सुगना के बाद भी कतार में बैठे कई बच्चे भी लालीपाप का इंतजार कर रहे थे परंतु विद्यानंद का चेला वापस लौट चुका था।

जिसके भाग्य में लॉलीपॉप था वह मिल चुका था शायद उसकी तलाश पूरी हो चुकी थी। कुछ देर पश्चात विद्यानंद ने अपने प्रवचन से थोड़ा विराम लिया और हॉल में बैठे लोगों के लिए चाय बांटी जाने लगी। वह व्यक्ति एक बार फिर सुगना के पास आया और बोला

"विद्यानंद जी आपको बुला रहे हैं..?

सुगना आश्चर्यचकित थी। न तो वह विद्यानंद को जानती थी और न हीं वह उनकी अनुयायी थी फिर इस तरह से उसे बुलाना? यह बात सुनना की समझ से परे था। परंतु विद्यानंद की हैसियत और प्रभुत्व को वह बखूबी जान रही थी। यह उसके लिए सौभाग्य का विषय था कि इतनी भरी भीड़ में विद्यानंद ने उसे ही मिलने के लिए बुलाया था । उसने कजरी से कहा

"मां चल स्वामी जी का जाने काहे बुलावतारे ?"

उस शागिर्द ने कहा स्वामी जी ने सिर्फ आपको अपने बच्चे के साथ बुलाया है। सुगना की निगाहें सरयू सिंह को खोज रही थी शायद वह उनसे अनुमति और सलाह दोनों चाहती थी परंतु वह कहीं दिखाई नहीं पड़ रहे थे । अंततः विद्यानंद के आमंत्रण को सुगना ठुकरा ना पायी और कजरी की अनुमति लेकर विद्यानंद से मिलने चल पड़ी।

विद्यानंद का कमरा बेहद आलीशान था उनके कमरे को बेहद खूबसूरती से सजाया गया था अपने भव्य आसन पर बैठे विद्यानंद अपनी आंखें बंद किए हुए थे। सुगना के आगमन को महसूस कर उन्होंने आंखें खोली और अपने शागिर्द को देखते हुए बोले

"एकांत"

वह उल्टे पैर वापस चला गया उन्होंने सुगना की तरफ देखा और सामने बने आसन पर बैठने के लिए कहा।

सुगना ने आज सुबह से ही भव्यता के कई स्वरूप देखें अब से कुछ देर पहले बह एंबेसडर कार में बैठकर यहां आई थी और वह इतने बड़े महात्मा विद्यानंद के साथ उनके कमरे में उनके विशेष आमंत्रण पर उपस्थित थी। उसे घबराहट भी हो रही थी और मन ही मन उत्सुकता भी । कमरे में एकांत हो जाने के पश्चात विद्यानंद ने कहा

"देवी आपकी गोद में जो बालक है यह विलक्षण है। मैं आपको कुछ बताना चाहता हूं।" अपने पुत्र को विलक्षण जानकर सुगना खुश हो गई उसने स्वामी जी के सामने हाथ जोड़ लिए और बेहद आत्मीयता से बोली

"जी कहिए"

"मैंने अपने स्वप्न में इस विलक्षण बालक को देखा है और उसे ढूंढते हुए ही इस बनारस महोत्सव में आया हूं। आपका यह पुत्र पति-पत्नी के पावन संबंधों की देन नहीं अपितु व्यभिचार की देन है और यह व्यभिचार अत्यंत निकृष्ट है ऐसे संबंध समाज और मानव जाति के लिए घातक है।

मैं यह बात सत्य कह रहा हूं या असत्य यह आपके अलावा और कोई नहीं जानता परंतु मुझे इस बालक के जन्म का उद्देश्य और इसका भविष्य पता है यदि मेरी बात सत्य है तो आप अपनी पलके झुका कर मेरी बात सुनिए.. अन्यथा मुझे क्षमा कर आप वापस जा सकती हैं। "

सुगना के आश्चर्य का ठिकाना न रहा वह बेहद परेशान हो गई उसके चेहरे पर पसीना आने लगा . विद्यानंद ने फिर कहा

"आप परेशान ना हों यदि मेरी बात सत्य है तो सिर्फ अपनी पलके झुका लें... और यदि मेरी बात गलत है तो निश्चय ही आपका पुत्र वह नहीं है जिसे मैं ढूंढ रहा हूं"

सुगना की पलकें झुक गई उसकी श्रवण इंद्रियां विद्यानंद की आवाज की प्रतीक्षा करने लगी विद्यानंद ने बेहद संजीदा स्वर में कहा..

" यद्यपि इसका जन्म नाजायज और निकृष्ट संबंधों से हुआ है फिर भी इसके पिता और आपमें बेहद प्रेम है जो कि इस बालक में भी कूट कूट कर भरा हुआ है।

परंतु इसके पिता के साथ आपका एक पवित्र रिश्ता है जिसे आप दोनों ने जाने या अनजाने में कलंकित किया है। यह अनैतिक और पाप की श्रेणी में आता है। आने वाले समय में यह बालक एक असामान्य पुरुष के रूप में विकसित होगा जो अति सुंदर, बलिष्ठ, सभ्य, सुसंस्कृत, सुशील, विद्ववान पर अति कामुक होगा।

यदि इसकी कामुकता को न रोका गया तो इसके अंगूठे में जो दिव्य कामुक शक्तियां प्राप्त हैं उससे यह सारे सांसारिक रिश्तों की मर्यादा तार-तार कर देगा और उन्हें कलंकित करता रहेगा।

सांसारिक नजदीकी रिश्तों और मुँहबोले रिश्तों के अलावा किसी अन्य अपरिचित कन्या से मिलने पर इसका पुरुषत्व सुषुप्त अवस्था में रहेगा वह चाह कर भी किसी अन्य कन्या या स्त्री से संबंध नहीं बना पाएगा।"

सुगना थरथर कांपने लगी। अपने जान से प्यारे सूरज के बारे में ऐसी बातें सुनकर वह बेहद डर गई। विद्यानंद एक पहुंचे हुए फकीर थे उनकी बात को यूं ही नजरअंदाज करना कठिन था और तो और उन्होंने उसे देखते ही उसके नाजायज संबंध के बारे में जान लिया था जो निश्चित ही आश्चर्यजनक था पर कटु सत्य था। सुगना को उनकी बातों पर विश्वास होने लगा था।

उसने दोनों हाथ जोड़कर अपनी आंखें बंद किए ही विद्यानंद जी से कहा..

"स्वामी जी तब क्या यह कभी किसी लड़की के साथ विवाह कर सामान्य जीवन व्यतीत नहीं कर पाएगा"

"नहीं देवी, सांसारिक और नजदीकी रिश्तो के अलावा स्त्री मिलन के समय इसकी काम इंद्रियां पूरी तरह निष्क्रिय रहेंगी"

सुगना को सारी बात समझ आ चुकी थी उसने हाथ जोड़कर कहा…

"क्या इसका कोई उपाय नहीं है?

"जैसे इसका जन्म एक अपवित्र संभोग से हुआ है वैसे ही इसका जीवन एक अपवित्र और निकृष्ट संबंध बनाने के पश्चात ही सामान्य होगा"

सुगना के चेहरे से पसीना टपक रहा था। वह यह बात पूरी तरह नहीं समझ पा रही थी या समझना नहीं चाह रही। उसने उत्सुकता से कहा

" महाराज कृपया अपनी बात स्पष्ट करें..

"देवी मैं यह बात कहने में ही आत्मग्लानि महसूस कर रहा हूं आप बस इतना समझ लीजिए की इस बालक का कामसंबंध या तो उस स्त्री या कन्या से होना चाहिए जो इस बालक के माता या पिता की सन्तान हो या फिर….. विद्यानंद चुप हो गए।

"महाराज कहिए ना सुगना अधीर हो रही थी.."

"या फिर आप स्वयं….आपसे…. "

विद्यानंद द्वारा बोली गई बात निश्चित ही निकृष्ट थी। सुगना जैसी पावन और कोमल स्त्री इस मानसिक वेदना को न झेल पाई और बेहोश हो गई...

विद्यानंद ने अपने कमंडल से पानी के छींटे सुगना के मुंह पर मारे और वह एक बार पुनः चैतन्य हुई।

विद्यानंद ने हाथ जोड़कर कहा…

"देवी मेरी यह बात याद रखिएगा परंतु आप किसी से भी साझा मत करिएगा। यह आपके और आपके पुत्र के लिए घातक होगा। समय के साथ आपको मेरी बातों पर यकीन होता जाएगा।

नियति ने मुझे इस बालक के सामान्य होने तक जीवित रहने का निर्देश दिया है। इस बालक को सामान्य करना ही मेरी मुक्ति का मार्ग है।

नियति का लिखा मिटा पाना संभव नहीं है जिसने इसका भाग्य लिखा है वह स्वयं इसका रास्ता बनाएगा। अब आप जाइए और मुझसे मिलने का प्रयास मत कीजिएगा इस विलक्षण बालक के युवावस्था प्राप्त करने के पश्चात आप मुझसे मेरे आश्रम में मिल सकती हैं। एक बात और ….यह बनारस महोत्सव आपके और आपके परिवार के लिए बेहद अहम है सूरज एक भाग्यशाली लड़का है यह आप लोगों के जीवन में आमूलचूल परिवर्तन लाएगा और इसकी मुक्ति का मार्ग भी इसी बनारस महोत्सव के दौरान ही सृजित होगा।".

विद्यानंद द्वारा कही गई बातें सुगना के दिलों दिमाग पर छप चुकी थी। सुगना बड़ी मुश्किल से उठ कर खड़ी हुई। सूरज का लालीपाप खत्म हो चुका था। वह लॉलीपॉप की डंडी को भी उसी तरह चूस रहा था। जिस व्यक्ति ने सुगना को विद्यानंद तक पहुंचाया था वह वापस आया उसने एक और लॉलीपॉप और बच्चे के हाथ में थमाते हुए बोला

"बहुत प्यारा बच्चा है बिल्कुल आप पर गया है।" सुगना को उसकी बात से फिर नाजायज संबंधों की याद आ गई।

सुगना ने कुछ नहीं कहा वह पंडाल में आ चुकी थी कई सारी निगाहें सुगना को देख रही थी। सरयू सिंह और कजरी भी अपने कदम बढ़ाते हुए सुगना की तरफ आ रहे थे। उनके मन में कौतूहल था परंतु सुगना के पास उत्तर देने को कुछ नहीं था।

इधर सुगना बेहद तनाव में आ गयी थी उधर लाली के चेहरे पर लालिमा छाई हुई थी। राजेश ने आज लाली के चुदाई का दिन निर्धारित कर दिया था परंतु उसका प्यारा भाई सोनू अब तक नहीं आया था। बनारस महोत्सव जाने के लिए राजेश और लाली पूरी तरह सजधज कर तैयार थे। दोनों छोटे बच्चे राजू और रीमा भी नए नए कपड़े पहन कर मेला देखने के लिए उत्साह से लबरेज कमरे में उठापटक कर रहे थे ।

"मामा अभी तक नहीं आए?" राजू ने अधीरता से पूछा।

लाली बार-बार दरवाजे के बाहर अपना सर निकालकर सोनू की राह देख रही थी। राजेश ने उसे छेड़ते हुए कहा अरे इतनी अधीर क्यों होती हो अभी रात होने में बहुत वक्त है

लाली फिर शर्मा गई उसने राजेश की तरफ देखा और बोला

"मुझे मेला देखने की पड़ी है और आपको तो हर घड़ी वही सूझता है" लाली ने यह बात कह तो दी परंतु उसकी बुर जैसे लाली का विरोधाभास सुन रही थी। लाली के शब्दों के विपरीत उसकी बुर पनियायी हुई थी आज सुबह से ही लाली ने उसे खूब सजाया संवारा था उसकी उम्मीदें भी जाग उठी थी।

फटफटिया की आवाज सुनकर लाली एक बार फिर सतर्क हो गई और उसका प्यारा भाई और आज रात का शहजादा अपने दोस्त विकास के साथ राजदूत पर बैठा हुआ लाली के दरवाजे के सामने खड़ा था..

लाली उस अपरिचित व्यक्ति को देखकर कमरे के अंदर आ गई और राजेश से बोली

"देखिए सोनू आ गया है शायद उसका दोस्त भी साथ है"

राजेश कबाब में हड्डी बिल्कुल नहीं चाहता था वह बाहर निकला। परंतु आज नियति राजेश और लाली के साथ थी। विकास मोटरसाइकिल से आगे बढ़ चुका था और सोनू अपने कदम बढ़ाते हुए कमरे की तरफ आ रहा था।

कुछ ही देर में घर के बाहर दो रिक्शे खड़े थे राजेश ने लाली से कहा

"जाओ तुम सोनू के साथ बैठ जाओ दोनों बच्चे मेरे साथ बैठ जाएंगे।"

लाली नहीं मानी उसके मन में चोर था वह सोनू के साथ बैठना तो चाहती थी परंतु कहीं ना कहीं उसके मन में शर्मो हया कायम थी.

बनारस महोत्सव पहुंचने के पश्चात लाली का चेहरा देखने लायक था। हर तरफ खुशियां ही खुशियां राजेश ने लाली को मनपसंद सामान खरीदने की खुली छूट दे दी वह आज उसे किसी भी कारण से निराश नहीं करना चाहता था। आखिर उसके ही कहने पर लाली सोनू के करीब आ चुकी थी और उसकी दिली इच्छा आज पूरी करने वाली थी. परंतु राजेश को शायद यह बात नहीं पता थी की जो आग उसने लगाई थी उसे बुझा पाना अब उसके बस में भी नहीं था। नियति लाली और सोनू को अपना मोहरा बना चुकी थी।

राजेश को पता था की लाली और सोनू का यह संबंध लाली सुगना से पचा नहीं पाएगी और यदि ऊपर वाले ने साथ दिया तो सुगना जैसी खूबसूरत और कामसुख से वंचित कोमलंगी उसकी बाहों में आकर उसे जन्नत का सुख जरूर देगी.

इधर राजेश के मन में सुगना का ख्याल आया और उधर सरयू सिंह सुगना और कजरी को लेकर उसी रास्ते पर आ गए। लाली, सुगना को देखकर बेहद प्रसन्न हो गयी। सुगना भी अपनी सहेली को देख, विद्यानंद द्वारा कही गई बातों को दरकिनार कर फूली न समाई। वह दोनों लगभग एक दूसरे की तरफ दौड़ पड़ीं। दोनों की हिलती हुई बड़ी-बड़ी चूचियां आसपास के लोगों का ध्यान खींचने लगी सोनू भी इससे अछूता न था।

आलिंगन में लेते समय हमेशा की तरह दोनों की चुचियाँ एक दूसरे को दबाने का प्रयास करने लगीं। चुचियों के लड़ने का एहसास हमेशा की तरह सुगना और लाली को बखूबी हुआ। वह दोनों एक दूसरे को देख कर मुस्कुरा दीं। कजरी ने छोटी रिया को गोद में लेकर लेकर प्यार किया। सरयू सिंह ने राजेश का हालचाल लिया। राजेश वैसे भी सुगना पर फिदा था और उनके प्रतिद्वंद्वी के रूप में सुगना से नजदीकियां बढ़ा रहा था.

लाली ने राजेश से कहा

"यह तो दिन पर दिन और चमकती जा रही है अपनी साली को पहचान तो रहे हैं ना?"

"सुगना ने झुककर राजेश के चरण छुए और अनजाने में ही अपने दोनों बड़े बड़े नितम्ब उसकी आंखों के सामने परोस दिए। अब तक सोनू भी आ चुका था उसने सुगना के पैर छुए और सुगना ने उसे अपने सीने से सटा लिया और बेहद प्यार से बोली

"अरे सोनू बाबू तू कैसे""

"लाली दीदी के साथ आया हूं मुझे तो पता ही नहीं था कि आप लोग भी यहां आने वाले हैं."

यही मौका था जब सोनू अपने दोनों बहनों के साथ हो लिया राजू अपने पिता राजेश की उंगली पकड़कर चल रहा था और रीमा कजरी की गोद में खेल रही थी। सरयू सिंह ना चाहते हुए भी अपने प्रतिद्वंद्वी राजेश के साथ बनारस उत्सव के बारे में बातें करते हुए टहल रहे थे.

रास रंग का आनंद लेते हुए शाम हो गई। सोनू ने अपनी दोनों बहनों को मेले के आनंद से रूबरू कराया झूला झुलाया और ढेर सारी शॉपिंग करायी।

लाली और राजेश ने सुगना और कजरी से विदा ली तभी कजरी ने कहा

"हमार पंडाल पासे बा लाली की मां कुछ सामान भेज ले बाडी चल लेला"

कुछ ही देर में सभी लोग विद्यानंद के पांडाल में थे। अपना सामान लेकर लाली और राजेश ने विदा ली सुगना ने सोनू से कहा

"बाबू तू यही रुक जा कॉलेज तो नहीं जाना है?"

" नहीं दीदी आज नहीं आज कुछ जरूरी काम है कल फिर आऊंगा"

लाली सोनू का झूठ अपने कानों से सुन रही थी और मन ही मन मुस्कुरा रही थी। लाली की बुर के आकर्षण में बंधा सोनू अपनी सगी बहन को छोड़ लाली के पीछे पीछे चल पड़ा। नियति मुस्कुरा रही थी। सोनू की निगाहें लाली के नितंबों के साथ ऊपर नीचे हो रही थीं।

लाली ने अपना मोहपाश फेंक दिया था...सोनू उसके आकर्षण में बंधा...लाली के घर आ चुका था…..

राजेश अपनी पत्नी लाली की झोली में खुशियां भरने को तैयार था और उधर लाली की जांघो में छुपी सजी धजी बधू अपने नए वर से मिलने को तैयार थी..

लाली के बच्चे राजू और रीमा रास्ते में ही ऊँघने लगे थे मेला घूमने के आनंद में उन बच्चों ने कुछ ज्यादा ही मेहनत कर दी थी। लाली ने उन्हें बिस्तर पर सुला दिया और वापस हॉल में आ गयी।

राजेश अब तक नहाने जा चुका था मेले की भाग दौड़ से लगभग सभी थक चुके थे सिर्फ सोनू ही उत्साह से लबरेज लाली के आगे पीछे घूम रहा था।

राजेश के आने के पश्चात लाली ने सोनू से कहा

"सोनू बाबू तू भी नहा ले मजा आएगा" सोनू खुश हो गया मजा शब्द का मतलब उसने अपनी भावनाओं के अनुसार निकाल लिया था।

थोड़ी ही देर में राजेश और सोनु हॉल में बैठे हुए बातें कर रहे थे।

सोनू ने राजेश से पूछा

"जीजा जी रात में कितने बजे जाना है?"

"1:00 बजे"

सोनू ने घड़ी की तरफ निगाह उठाई जिसकी सुइयां 90 डिग्री का कोण बना रही थी। 9 बज चुके थे।

सोनू खुद को 4 घंटे इंतजार करने के लिए तैयार करने लगा । अपने लण्ड को राजेश की नजरों से बचाकर वह उसे तसल्ली देने की कोशिश कर रहा था।

तभी लाली बाथरूम से नहाकर, लाल रंग की सुंदर नाइटी में लिपटी हुई बाहर आ गयी। शरीर से चिपकी हुई शिफॉन की नाइटी लाली के खूबसूरत शरीर को छुपा पाने में नाकाम थी।

सोनू की निगाहें उसके शरीर पर ब्रा और पेंटी खोजती रही। लाली सीधा किचन में गई और तीन गिलास दूध निकालकर हाल में आ गयी। लाली के दोनों प्रेमी लाली का दूध पीने लगे। मेरा आशय लाली द्वारा लाये गए दूध से था।

नियति छिपकली के रूप में हॉल में दीवाल से चिपकी तीनों की मनोदशा पढ़ रही थी। छिपकली देखकर लाली चिल्लाई राजेश अचानक पीछे पलटा और उसके हाथ का दूध हाल में रखे एकमात्र बिस्तर पर गिर गया।

सोनू और लाली मैं वह दूध साफ करने की कोशिश की परंतु जितना ही वह साफ करते गए बिस्तर उतना ही गंदा होता गया।

लाली ने कहा..

"सोनू बाबू का बिस्तर खराब हो गया मीठे दूध के कारण इसमें चीटियां लगेंगी।"

"कोई बात नहीं सोनू अंदर ही सो जाएगा वैसे भी मुझे रात में चले जाना है।"

"सोनू बाग बाग हो गया उसे इसकी आशा न थी।"

लाली ने राजेश का गिलास उठाया और अपने झूठे ग्लास से दूध उसके क्लास में डालते हुए बोली

"लीजिए मेरा दूध पी लीजिए लाली ने कह तो दिया पर उसका चेहरा शर्म से लाल हो गया जिसे राजेश और सोनू ने बखूबी समझ लिया।"

सोनू ने लाली की झेंप मिटाते हुए कहा

"जीजा जी थोड़ा दूध मेरे ग्लास से भी ले लीजिए पर ...जूठा है"

राजेश ने बड़ी आत्मीयता से कहा

"अब तुम हमसे अलग थोड़ी हो हम सब एक हैं और अपना ग्लास आगे बढ़ा दिया" सोनू राजेश की बातों में छिपे गूढ़ रहस्य को नहीं समझ पाया।

दूध पीने के पश्चात राजेश ने जम्हाई लेते हुए कहा तुम लोग बातें करो मैं चला सोने और उठ कर अंदर आ गया अपनी डबल बेड की रजाई ओढ़ कर वह सो गया।

पर राजेश की आंखों में नींद कहां थी वह तो अपनी खूबसूरत पत्नी लाली और सोनू के मिलन का आनंद लेना चाह रहा था जिसका प्रणेता वह स्वयं था। वह बेसब्री से उनका इंतजार करने लगा उसके कान लाली और सोनू के वार्तालाप अपना ध्यान लगाए हुए थे।

सोनू बात करने के बिल्कुल मूड में नहीं था वह राजेश की नींद में कोई व्यवधान डालना नहीं चाहता था.. लाली किचन में ग्लास साफ करते हुए बोली

"सोनू बाबू जाओ आराम करो मैं भी आती हूं.."

सोनू जाकर बिस्तर के एक किनारे लेट गया उसने लाली के लिए अपने और राजेश के बीच में स्थान खाली छोड़ दिया था। अपनी आंखें बंद किए वह लाली के खूबसूरत शरीर को याद कर अपने लण्ड को सहला रहा था तभी अचानक लाली आ गई।

सोनू की कमर के ऊपर हो रही हलचल को वह बखूबी समझती थी उसने रजाई को सोनू की कमर के ठीक नीचे से पकड़ा और ऊपर उठाते हुए बोली

" मुझे भी आने दे लाली की आंखों के सामने सोनू का तंनाया हुआ लण्ड दिखाई पड़ गया जिसे सोनू अपने हाथों से छिपाने का असफल प्रयास कर रहा था । परंतु देर हो चुकी थी यह तो शुक्र है कि कमरे में पूरी रोशनी न थी सिर्फ एक लाल रंग का नाइट लैंप जल रहा था जो चीजों को देखने और पहचानने के काम आ सकता था.

सोनू ने अपने पैर सिकोड़ कर अपने सीने से सटा लिए और लाली को अंदर आने की जगह दे दी। लाली सोनू और राजेश के बीच में आ चुकी थी.

लाली ने अपने सिरहाने से वैसलीन की एक ट्यूब निकाली और सोनू को देते हुए बोली

तूने उस दिन जो दवा लगाई थी उसकी वजह से ही मैं चलने फिरने लायक हो गई यह क्रीम वही पर लगा दे..

लाली ने करवट ले ली और उसका चेहरा राजेश की तरफ हो गया और पीठ सोनू की तरफ।

सोनू ने वह वैसलीन तर्जनी पर निकाली और लाली की नंगी पीठ की तलाश में अपनी बाकी उंगलियां फिराने लगा। परंतु उस दिन की तरह आज लाली की पीठ नंगी न थी. सोनू ने हिम्मत जुटाकर लाली की नाइटी को नीचे से कमर की तरफ लाना शुरू कर दिया लाली की गोरी और चमकती हुई जान है रजाई के अंदर घुप अंधेरे में अनावृत हो रही थी लाली की बुर पहनी हुई अपनी बारी की प्रतीक्षा कर रही थी।

नितंबों तक आते-आते सोनू का सब्र जवाब दे गया उसने एक ही झटके में अपना पजामा अलग कर दिया।

लाली की पीठ पर सोनू की उंगलियां घूमने लगी और सोनू का मजबूत लण्ड अपनी दीदी के नितंबों में छेद करने को एक बार फिर आतुर हो गया। रजाई के अंदर हो रही हलचल ने राजेश को सतर्क कर दिया था।

वह लाली की चुचियों पर कब्जा जमाने को लालायित हो गया उसकी हथेलियों ने लाली की नाइटी को सामने से खींच कर उसकी मदमस्त चुचियों को स्वतंत्र कर दिया….

नाइटी लाली के गले तक आ चुकी थी चीरहरण की इस मनोरम गतिविधि में लाली ने भी अपनी आहुति दी और उस सुंदर नाइटी को अपने गले और चेहरे से निकालते हुए बाहर कर दिया एक मदमस्त सुंदरी पूरी तरह वासना से भरी हुई चुदने को तैयार थी….

शेष अगले भाग में।

 

Lutgaya

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आह तनी जोर से ........मजा आता है👌👌👌👌👌
 

Napster

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सरयूसिंग, कजरी और सुगना बनारस महोत्सव में आ गये
स्वामी विद्यानंद ने सुगना को बुला कर सुरज के उस के साथ आगे क्या क्या घटनायें होने वाली है उसका बहूत कुछ विवरण सुगना को बता दिया लेकीन उसे यह नहीं मालूम की सुगना उसके पुत्र सुरेश की पत्नी हैं और सुरज उसके भाई सरयूसिंग और बहू सुगना के अवैध मिलन का परिनाम हैं
कजरी, सरयूसिंग और स्वामी विद्यानंद मुलाकात होने के बाद तीनों की क्या प्रतिक्रिया होती हैं देखते हैं
सोनू और लाली के मिलन का समय आ गया है
देखते एक धुवांधार थ्रिसम होने वाला है की नहीं
बहुत ही अजब गजब रोमांचकारी और अद्भुत अपडेट है भाई मजा आ गया :adore:
अगले धमाकेदार अपडेट की प्रतिक्षा रहेगी जल्दी से दिजिएगा
 

komaalrani

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प्रतीक्षारत रह कर भी आपने पिछले अपडेट को भुला दिया...

Was it too bad..?

Or you have left this story??

पिछले हफ्ते मैं इस फोरम पर नहीं आ पायी इस लिए आपकी कहानी पर भी नजर नहीं डाल पायी, ... और पहले आपका कमेंट पढ़ा फिर आपकी पोस्ट,

मैं तीन कहानियां एक साथ इसी फोरम में पोस्ट कर रही हूँ , पर उन तीनों पर भी इस दौरान मैंने कोई पोस्ट नहीं की,

इलसिए यहाँ गैरहाजिरी की वजह, अरुचि या कुछ कर नहीं थी बल्कि कुछ व्यस्तताएं थीं,

हाँ आपकी पोस्ट बहुत अच्छी लगी पर उस पर कमेंट अलग से,
 

komaalrani

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आपकी पिछली दोनों पोस्ट मैंने एक साथ पढ़ीं , पर ये पंक्तियाँ मुझे लगता है शायद कहानी की दिशा और दशा दोनों निर्धारित करें, इसलिए में थोड़ी चर्चा आज इन्ही पर करना चाहूंगी,

"... व्यभिचार की देन है और यह व्यभिचार अत्यंत निकृष्ट है ऐसे संबंध समाज और मानव जाति के लिए घातक है।" और "इसका जन्म नाजायज और निकृष्ट संबंधों से हुआ,... इसका जन्म नाजायज और निकृष्ट संबंधों से हुआ"


मैंने पहले भी कहा था की सुगना और सरजू सिंह के संम्ब्ध न तो कानूनी रूप से न ही नैतिक रूप से ' इन्सेस्ट' की श्रेणी में आते हैं. सरजू सिंह सुगना के ससुर नहीं हैं न ही सुगना उनकी बहू. सुगना के ससुर अगर कोई है तो वो वो विद्यानंद जी जो अपनी सांसारिक जिम्मेदारियां छोड़ कर अब स्वामी बन गए हैं, बिना इस बात की चिंता किये की जिस से उन्होंने शादी की, उस पत्नी की, जिस पुत्र को उन्होंने पैदा किया, उसकी क्या हालत है. सुगना का पति उसे छोड़कर बंबई में एक दूसरी स्त्री के साथ रह रहा है, उसके साथ उसके बच्चे भी हैं.

तो अनैतिक आचरण किसका है, सुगना का या उनका जो अपनी पत्नी और पुत्र को छोड़ कर चले गए, और ग्राहस्थ्य धर्म के अपने कर्तव्यों की अवहेलना की?

या सुगना के पति का, जिसने न सुगना को देह का सुख दिया न अपना सरंक्षण?

अब एक बार सुगना और सरयू सिंह के संबंधो को देखते हैं , मैं पाठकों से अनुरोध करुँगी उस प्रसंग को फिर से पढ़ें, एक झिझक, एक मानसिक अंतर्द्वंद एक उहापोह ,.. जो उस संबंध के पहले है, सुगना के मन में देह की भूख तो है लेकिन उस से बढ़कर पुत्र की लालसा है और कजरी के मन में वंश समाप्त होने का डर, और यह संबंध देह के क्षणिक सुख की लालसा से नै उत्पन हुए बल्कि पुत्र प्राप्ति की कामना और वंश समाप्त होने के भय से भी उत्पन्न हुए हैं, ... हाँ देह का आनंद भी है पर जो संस्कृति काम को धर्म और मोक्ष के बराबर पुरुषार्थ मानती है, अनंग को पूजती है, उस के लिए यह आवश्यक है सृष्टि को चलाने के लिए , सृष्टि का सृजन भले ही अपौरुषेय है , पर पुरुष और स्त्री मिल कर ही उसे आगे बढ़ाते हैं ,

और स्त्री के पति और ससुर दोनों ही, जिसे वो सही समझते हैं, उसके लिए उसे छोड़कर चले गए है उसके लिए क्या उचित है ?

चलिए अब एक बार नैतिकता और विधि दोनों के तराजू पर सुगना संबंध को देखते हैं, ...

अगर पत्नी पति की सहायता से वंश को आगे न चला पाए तो,...

महाभारत में इस तरह की स्थितियां बार बार आती हैं,

कुंती, पांडू की अनुमति से तीन देवो का आह्वान करती हैं , और उनसे अर्जुन, भीम और युधिष्ठिर पैदा होते हैं, और युधिष्ठिर धर्मराज भी कहे जाते हैं। माद्री संबध अश्विनी पुत्रों से हुआ और नकुल सहदेव से हुआ,

गांधारी का व्यास के साथ नियोग सर्वजन्य और सर्वमान्य भी है और विदुर भी उसी की उत्तप्ति हैं।

यहाँ पर भी वंश वृद्धि के लिए कजरी परेशान है , और सब कुछ सोच समझ कर वह सरजू सिंह का चयन करती है,...

हाँ कोई कह सकता है की सूरज के जन्म के बाद भी सरजू सिंह और सुगना का संबंध कायम रहा, लेकिन यह भी हमें देखना होगा की स्त्री की चाह सिर्फ देह की नहीं होती, ( जैसा अधिकतर कहानियों दिखाया जाता है ) देह तो एक सीढ़ी भर है, मन के तहखाने तक पहुँचने के लिए जहाँ आंनद का कोष है,... खजाना है ,

बिना मन के तन का संबध व्यभिचार हो सकता है, पर मेरे लेखे सुगना और सरजू सिंह का संबंध व्यभिचार की श्रेणी में नहीं आता,

अब वैधिक दृष्टि से भी इस पर नजर डालते हैं,

सर्वोच्च न्यायालय ने २०१८ में भारतीय दंड सहिंता की धारा ४९७ को अवैध घोषित कर दिया हैं और कहा है की स्त्री पुरुष की संपत्ति नहीं है अतः सुगना सरयू संबंध आपराधिक नहीं हैं,

यहाँ पर कहानी एक दोराहे पर खड़ी है, यह एक नैतिक अंतर्द्वंद की ओर मुड़ सकती है जहाँ सुगना और कजरी स्त्री के देह के अधिकारों की बहस करती दिख सकती हैं या

सूरज की जो एक मैजिकल स्थिति है , अंगूठे की जिसका जिक्र कहानी में पहले ही आ चुका था , उससे वो इन्सेस्ट की ओर मुड़ सकती है

लेकिन कोई भी पाठक /पाठिका यह नहीं अंदाज लगा सकता की कहानी किधर मुड़ेगी,... ख़ास तौर से इस तरह जबरदस्त कहानी

जब भी मैं इस फोरम पर आउंगी अपनी कहानियों की ओर रुख करने के पहले कहानी पर जरूर आउंगी ,
 
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