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Incest आह..तनी धीरे से.....दुखाता.

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Lovely Anand

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आह ....तनी धीरे से ...दुखाता
(Exclysively for Xforum)
यह उपन्यास एक ग्रामीण युवती सुगना के जीवन के बारे में है जोअपने परिवार में पनप रहे कामुक संबंधों को रोकना तो दूर उसमें शामिल होती गई। नियति के रचे इस खेल में सुगना अपने परिवार में ही कामुक और अनुचित संबंधों को बढ़ावा देती रही, उसकी क्या मजबूरी थी? क्या उसके कदम अनुचित थे? क्या वह गलत थी? यह प्रश्न पाठक उपन्यास को पढ़कर ही बता सकते हैं। उपन्यास की शुरुआत में तत्कालीन पाठकों की रुचि को ध्यान में रखते हुए सेक्स को प्रधानता दी गई है जो समय के साथ न्यायोचित तरीके से कथानक की मांग के अनुसार दर्शाया गया है।

इस उपन्यास में इंसेस्ट एक संयोग है।
अनुक्रमणिका
भाग 126 (मध्यांतर)
भाग 127 भाग 128 भाग 129 भाग 130 भाग 131 भाग 132
भाग 133 भाग 134 भाग 135 भाग 136 भाग 137 भाग 138
भाग 139 भाग 140 भाग141 भाग 142 भाग 143
 
Last edited:

Rekha rani

Well-Known Member
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भाग 138

क्या उसने लाली के साथ अन्याय किया था?

क्या सोनू को अपनी वासना की गिरफ्त में लेकर उसने लाली से विश्वासघात किया था?

सुगना अपने अंतर द्वंद से जूझ रही थी… एक तरफ वह लाली और सोनू को विवाह बंधन में बांधने का नेक काम कर खुद की पीठ थपथपा रही थी दूसरी तरफ लाली के हिस्से का सुहागरात स्वयं मना कर आत्मग्लानि से जूझ भी रही थी।


अचानक सुगना हड़बड़ा कर उठ गई… सोनू को अपने करीब पाकर वह खुश हो गई…उसने चैन की सांस ली पर वह अपने अंतर मन में फैसला कर चुकी थी…

अब आगे..

सुगना और सोनू अपने गांव सीतापुर की तरफ बढ़ रहे थे। जैसे-जैसे गांव करीब आ रहा था सुगना अपने बचपन को याद कर रही थी सोनू जब छोटा था वह उसका बेहद ख्याल रखती थी। कैसे पगडंडियों पर चलते समय वो इधर उधर भागा करता और वो उसे दौड़कर पकड़ती और वापस सही रास्ते पर चलने के लिए विवश करती कभी डांटती कभी फटकारती। जब सोनू गुस्सा होता उसे अपने आलिंगन में लेकर पुचकारती…

और आज वही छोटा सोनू आज एक पूर्ण मर्द बन चुका था। गांव का छोटा सा स्कूल आते ही सुगना ने चहकते हुए कहा.

“सोनू देख गांव के स्कूल”

“तोहरा पगला मास्टरवा याद बा…”

सोनू को पागल मास्टर भली भांति याद था जो उसे बचपन में बहुत परेशान किया करता था और वह सुगना ही थी जो अक्सर सोनू के बचाव में आकर उस पागल मास्टर से सोनू के पक्ष में लड़ाई किया करती थी।

सोनू और सुगना अपने बचपन की बातों में मशगुल हो गए…

बचपन की यादों की सबसे बड़ी खूबसूरती यह होती है कि वह आपको तनाव मुक्त कर देते हैं सुगना ने सोनू के साथ आज दोपहर में जो सुहागरात मनाई थी उसे कहीं ना कहीं यह लग रहा था जैसे उसने लाली के साथ अन्याय किया था और उसके दिमाग में इस बात का तनाव अवश्य था।

परंतु अब सुगना और सोनू दोनों सहज हो चुके थे। जैसे ही सोनू की गाड़ी ने गांव में प्रवेश किया गरीब घरों के बच्चे उसके पीछे-पीछे दौड़ने लगे अपनी सुगना दीदी को वह बखूबी पहचानते थे परंतु शायद यह दौड़ सुगना और गाड़ी को और करीब से देखने के लिए थी उसे छूने के लिए थी उसे महसूस करने के लिए थी।

घर में पदमा सोनू और सुगना का इंतजार कर रही थी जिन्होंने आने में जरूर से ज्यादा विलंब कर दिया था पदमा चाह कर भी अपने गुस्से पर नियंत्रण नहीं रख पाई और बोल उठी…

“का करें लागला हा लोग?

सुगना क्या उत्तर देती जो वह कर रही थी उसे वह स्वयं और अपने विधाता के अलावा किसी से बता भी नहीं सकती थी। सुगना के उत्तर देने से पहले ड्राइवर बोल पड़ा.

“वापस बनारस पहुंचते समय रास्ता में जाम लगा था इसीलिए पहुंचने में देर हो गया”

सोनू और सुगना दोनों ने पदमा के पैर छुए और मां का दिल गदगद हो गया पदमा को सोनू और सुगना दोनों पर गर्व था। सोनू के अपने पैर पर खड़े होने तक सुगना ने घर के मुखिया की जिम्मेदारी निभाई थी और अब धीरे-धीरे सुगना स्वयं समर्पण कर सोनू के अधिपत्य में आ चुकी थी। परंतु वह सोनू की नजरों में तब भी आदरणीय थी अब भी आदरणीय थी…

लाली गांव की अन्य महिलाओं के साथ बैठी हंसी ठिठोली का आनंद ले रही थी सोनू और सुगना के आगमन की सूचना उस तक भी पहुंची परंतु सभी महिलाओं के बीच से उठकर आना उसके लिए संभव नहीं था।

धीरे-धीरे पूरा परिवार निर्धारित कार्यक्रमों में लग गया शाम के भोज भात के कार्यक्रम में आसपास के गांव के कई लोग आए और सोनू और लाली की अनोखी शादी के जश्न में शामिल हुए। उनके मन में भले ही यह विचार आ रहा हो कि इस बेमेल शादी का मकसद क्या था परंतु किसी ने भी इस पर प्रश्न चिन्ह उठाने की हिम्मत नहीं दिखाई और दिखता भी कैसे जब सरयू सिंह और सोनू जैसा प्रभावशाली व्यक्तित्व इस रिश्ते को स्वीकार रहा था उस पर प्रश्न करने का अब कोई औचित्य नहीं था।

शाम होते होते सारे रिश्तेदार अपना अपना बिस्तर पकड़ने लगे और सुगना का आंगन खाली होता चला गया। सोनू स्वयं पूरी तरह थक चुका था वह भी बाहर पड़े दलान में एक और चुपचाप जाकर लेट गया और न जाने कब उसकी आंख लग गई।

उधर लाली की सुहाग सेज तैयार हो चुकी थी सुगना और उसकी एक दो सहेलियों को छोड़कर सभी लोग सो चुके थे।

सुगना ने और और देर नहीं की वह सोनू के पास के और उसके माथे पर हाथ फेरते हुए बोला…

“सोनू उठ चल लाली इंतजार करत बिया”

सोनू अब तक गहरी नींद में जा चुका था उसके कानों में सुगना की आवाज पड़ तो रही थी परंतु जैसे वह कुछ भी सुनने के मूड में नहीं था उसने करवट ली और अपनी पीठ सुगना की तरफ कर दी।

सुगना ने अपनी उंगलियों का दबाव और बढ़ाया और एक बार फिर बेहद प्यार से बोला..

“ए सोनू उठ जो”

सोनू ने अपनी आंखें खोली सुगना को देखकर वह सारा माजरा समझ गया उसने अपनी आंखें खींचते हुए सुगना से कहा..

“लाली के मना ले ना दीदी ई काम त बनारस में भी हो सकेला”

सोनू ने पहले भी सुगना को यह बात समझने की कोशिश की थी कि वह आज की सुहागरात के कार्यक्रम को टाल दे क्योंकि वह आज पूरी तरह तृप्त था।

“अभी चुपचाप चल, लाली का सोची आज घर के बहू के रूप में पूजा कईले बिया इ रसम तोरा निभावे के पड़ी”

सुगना की आवाज की खनक से सोनू ने अंदाज कर लिया कि सुगना को इनकार कर पाना अब उसके बस में नहीं था वह उठा और यंत्रवत उसके पीछे-पीछे चलने लगा। अब भी उसके शरीर में फुर्ती नहीं दिखाई पड़ रही थी।

सुगना ने अपनी चाल धीमी की और सोनू से मुखातिब होते हुए बोली..

“आज दिन में जवन सिखवले रहनी उ लाली के भी सिखा दीहे बाद में उ हे काम देही”

सुगना ने सोनू को आज दिन में मनाए गए सुहागरात का मंजर याद दिला दिया था सुगना का यह रूप उसने पहली बार देखा था उन खूबसूरत पलों को याद कर सोनू के लंड में एक बार फिर हरकत हुई और सोनू का हथियार एक बार फिर प्रेम युद्ध में उतरने के लिए तैयार हो गया।

पर जो उत्सुकता और ताजगी सुहागरात का इंतजार कर रहे पुरुष में होनी चाहिए शायद उसमें अब भी कुछ कमी थी।

कमरे के दरवाजे तक पहुंचते पहुंचते सुगना ने सोनू के दोनों मजबूत बुझाओ को अपने कोमल हाथों से पकड़ा और उसके कान में फुसफुसाते हुए बोला..

“अभीयो मन नईखे करत ता बत्ती बुझा दीहे और सोच लीहे कि बिस्तर पर हम ही बानी..”

सुगना यह बात बोल तो गई पर मारे शर्म के वह खुद ही लाल हो गई उसने अपनी हथेलियां अपनी आंखों पर रख ली और अपना चेहरा छुपाने की कोशिश की पर सुगना की इस अदा ने सोनू की उत्तेजना को पूरी तरह जागृत कर दिया सोनू ने सुगना के माथे को चूमना चाहा परंतु सुगना में इस समय अपने अधरों को सोनू के लिए प्रस्तुत कर दिया सोनू और सुगना के अधर एक दूसरे से सट गए..

इसके पहले कि यह चुंबन कामुक रूप ले पता सुगना ने अपने होंठ अलग किए और बोला

“ जो हमारा भाभी के खुश कर दे..”

लाली अब सुगना की भाभी बन चुकी थी।

अंदर लाली भी आज सोनू को खुश करने के लिए बेताब थी। अंदर हो रही हलचल सुगना महसूस कर रही थी। सुगना कुछ देर दरवाजे पर रही पर शायद अंदर हो रही हरकतों से वह अपने बदन में उठ रही उत्तेजना को महसूस कर रही थी उसने वहां से हट जाना ही उचित समझा।

सोनू और लाली की सुहागरात भी कम यादगार नहीं थी। लाली ने भी सोनू को खुश करने में कोई कमी नहीं रखी। सोनू की दोनों बहने आज उस पर मेहरबान थी। सोनू का दिन और रात आज दोनों गुलजार थे। सोनू को अपने निर्णय पर कोई अफसोस नहीं था उसे पता था उसका आने वाला समय बेहद शानदार था। दो रूप लावण्य से भरी हुई युवतियां उसे सहज ही प्राप्त हो चुकी थी वह भी पूरे दिल से आत्मीयता रखने वाली।

कुछ ही दिनों में लाली अपने बाल बच्चों समेत जौनपुर शिफ्ट हो गई। सुगना अपने बनारस के घर में अपने बच्चों के साथ अकेले रहने लगी। सोनू हर हफ्ते सुगना से मिलने बनारस आता परंतु लाली उसका पीछा नहीं छोड़ती वह भी उसके साथ-साथ बनारस आ जाती।

सोनू और सुगना का मिलन कठिन हो गया था। और तो और कुछ दिनों बाद सुगना ने सोनू से बात कर सीतापुर की गृहस्थी को बंद करने का निर्णय ले लिया और अपनी मां पदमा को भी बनारस बुला लिया।


वैसे भी बनारस में सुगना अकेले रह रही थी मां पदमा के आ जाने से उसे भी एक साथ मिल गया था। परंतु पदमा की उपस्थिति ने सोनू और सुगना के मिलन में और भी बाधाएं डाल दीं। दिन बीतने लगे सुगना को भूल पाना सोनू के लिए इतना आसान नहीं था सुगना के साथ बिताए गए अंतरंग पल सोनू को बेचैन किए हुए थे। गर्दन का दाग पूरी तरह गायब था और सोनू दाग लगवाने को आतुर।

सोनू और सुगना के मन में मिलन की कशिश बढ़ रही थी।

उधर आश्रम में रतन और माधवी दोनों उन अनोखे कूपे में अपनी काम पिपाशा मिटा रहे थे। रतन को पता चल चुका था कि मोनी अब तक कुंवारी थी और वह आज तक मनी से नहीं मिल पाया था।

मातहत कभी किसी एक के नहीं होते। माधवी ने जिस प्रकार रतन के लड़कों से मिलकर उसकी चाल बाजी को नाकाम कर दिया था और मोनी के लिए निर्धारित कूपे में स्वयं प्रस्तुत होती रहीं थी उसी प्रकार एक दिन रतन ने उसकी चाल बाजी को पकड़ लिया और माधवी इस बार किसी ऐसे कूपे में जा पहुंची जहां रतन की जगह एक अनजान लड़का था। रतन ने उस लड़के को अपने दिशानिर्देश दे दिए थे। उसका पारितोषिक कूपे में उसका इंतजार कर रहा था।

माधवी खूबसूरत बदन की मालकिन तो थी ही और वह लड़का बेहद प्यासा था। माधवी के गदराए बदन को देखकर वह अपनी सुध बुध खो बैठा .. वह बेझिझक माधवी के बदन से खेलने लगा। उसे न तो कुपे के नियमों का ध्यान रहा और न हीं पिट जाने का खतरा..

माधवी अब तक जान चुकी थी कि वह गलत कूपे में आ गई है। उसने एक बार लाल बत्ती दबाकर उसे रोकना चाहा पर वह लड़का नहीं रुका।

जैसे ही उसने अपना लंड माधवी की बुर में घुसाया माधवी ने एक बार फिर लाल बटन दबाया लड़का एक पल के लिए रुका जरूर पर अगले ही पल उसने अपनी कमर आगे की और उसका लंड माधवी की बुर में जड़ तक धंस गया।

माधवी चाहकर भी लाल बटन दो बार नहीं दबा सकी। उसे पता था दो बार बटन दबाने पर वह लड़का नियामानुसार दंडित होता परंतु माधवी की भी पहचान उजागर हो जाती। माधवी बेचैन थी वह लड़का उसे लगातार चोदे जा रहा था। वह उसकी चूचियों को बेदर्दी से मीसता और लंड को पूरी ताकत से आगे पीछे करता।

माधवी ने खुद को इतना लाचार पहले कभी नहीं महसूस किया था। इतने बड़े आश्रम में इतने प्रतिष्ठित पद पर होने के बावजूद आज वह कूपे में एक रंडी की भांति चुद रही थी। उसका स्वाभिमान तार तार हो रहा था। वह अपने ईश्वर से इस बुरे समय को शीघ्र बीतने के लिए उन्होंने विनय कर रही थी। परंतु जब तक कूपे का निर्धारित समय खत्म होता उसे लड़के ने उसकी बुर में वीर्य वर्षा कर दी।

खेल खत्म हो चुका था वह लड़का कूपे से बाहर जा चुका था माधवी अपनी जांघों से बहते हुए उसे घृणित वीर्य को देख रही थी। आज उसने जो महसूस किया था वह निश्चित ही उसके किसी पाप का दंड था।

उधर रतन आज अपनी अप्सरा के कूपे में पहुंचने में कामयाब हो गया था। एक तरफ माधवी नरक झेल रही थी दूसरी तरफ रतन स्वर्ग के मुहाने पर खड़ा था।

रतन मोनी की सुंदरता का कायल हो गया। अब तक तो वह सुगना की बदन की कोमलता और उसके कटाव से बेहद प्रभावित था परंतु मोनी जैसी कुंवारी, कमसिन और सांचे में ढली युवती को देखकर वो सुगना की खूबसूरती भूल गया। उसे मोनी सुगना से भी ज्यादा पसंद आने लगी वैसे भी रतन के मन में सुगना को लेकर थोड़ी जलन भी थी और अपनी नाकामयाबी को लेकर चिंता भी सुगना को संतुष्ट नहीं कर पाना उसकी मर्दानगी पर एक ऐसा प्रश्न चिन्ह था जिसने उसे झिंझोड़कर रख दिया था और उसे इस आश्रम में आने पर मजबूर कर दिया था

समय बीत रहा था और मोनी पुरुष स्पर्श का इंतजार कर रही थी। अब तक जब भी वह कूपे में आई थी पुरुषों के हाथ उसके बदन से खेलने लगते थे परंतु आज कुछ अलग हो रहा था मोनी स्वयं अधीर हो रही थी बेचैनी में वह अपना थूक गुटकने का प्रयास कर रही थी। वह बार-बार अपनी जांघों को आगे पीछे करती और उसके कमर में बल पड़ जाते। मोनी का बलखाता शरीर पुरुष स्पर्श को आमंत्रित कर रहा था । परंतु रतन अब भी उसकी चूचियों पर निगाह गड़ाए हुए था मोनी की चूचियां स्पर्श के इंतजार में और भी तन चुकी थी। जितना ही मोनी पुरुष स्पर्श के बारे में सोचती उसके निप्पल उतने ही खड़े हो जाते… माधवी ने मोनी की चूचियों की मालिश कर करके उसे सुडौल आकार में ला दिया था और वह इस समय उसके सीने पर सांची के स्तूपों की भांति रतन को आकर्षित कर रही थी। मोनी की दूधिया चूचियां और शहतूत के जैसे उसके निप्पल ने रतन के दांतों को आपस में रगड़ने पर मजबूर कर दिया। चूचियों के नीचे उसकी कटवादार कमर और बीच में गहरी नाभि देखने लायक थी।


मोनी के लव हैंडल रतन के हाथों को आमंत्रित कर रहे थे की आओ मुझे पकड़ो मुझे थाम लो …जब रतन का ध्यान मोनी के वस्ति प्रदेश पर गया एक पल के लिए उसने आंखें बंद कर ली। मोनी रतन की साली थी और उस उम्र में कई वर्ष छोटी थी।

जब रतन का विवाह हुआ था उस समय मोनी किशोरी थी आज मोनी को इस रूप में चोरी चोरी देखते हुए रतन को ग्लानि भी हो रही थी पर वासना में लिप्त आदमी की बुद्धि मंद हो जाती है।

रतन उसके कामुक बदन की तुलना उसकी किशोरावस्था से करना लगा। विधि का विधान अनूठा था छोटी अमिया अब आम बन चुकी थी। जागो के बीच की छोटी सी दरार अब फूल चुकी थी ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे अंदर खिल रही कली बाहरी होठों को फैला कर अपनी उपस्थिति का एहसास करना चाह रही थी।


मोनी के अंदर के होंठ स्वयं झांकने को तैयार थे और बाहरी होठों पर अपना दबाव लगातार बनाये हुए थे।

मोनी स्वयं अपनी बुर की कली को खिलने से रोकना चाहती थी। उसकी पुष्ट जांघें उस कली के ऊपर आवरण देने की नाकाम कोशिश कर रही थी।

मोनी का वस्ति प्रदेश पूरी तरह चिकना था सुनहरे बाल गायब थे।माधवी के दिव्य कुंड का वह स्नान अनोखा था जिसने मोनी की बुर के बाल हमेशा के लिए गायब कर दिए थे।


रतन से अब और बर्दाश्त ना हुआ वह आगे बढ़ा और उसने मोनी के कमर के दोनों तरफ अपना हाथ रख कर मोनी को थाम लिया।

मोनी का सारा बदन गनगना गया। यद्यपि वह पुरुष स्पर्श की प्रतीक्षा वह कुछ मिनट से कर रही थी पर अचानक मजबूत खुरदुरे हाथों ने जब उसके कोमल बदन को स्पर्श किया उसके शरीर में कपकपाहट सी हुई उसके रोंगटे खड़े हो गए। चूचियों के छुपे रोमकूप अचानक एक-एक करके तेजी से उभरने लगे। रतन ने मोनी के शरीर में हो रही इस उत्तेजना को महसूस किया और वह मोनी के बदन को सहलाकर उन रोमकूपों को वापस शांत करने की कोशिश करने लगा।

मोनी ने ऐसा पहले कभी महसूस नहीं किया था वह बेचैन हो रही थी और ईश्वर से प्रार्थना कर रही थी कि निर्धारित समय जल्द से जल्द बीते और वह इस अद्भुत एहसास को अपने दिल में संजोए हुए वापस चले जाना चाहती थी। परंतु विधाता ने उसके भाग्य में और सुख लिखा था

रतन ने अपने स्पर्श का असर देख लिया था। उसके हाथ अब मोनी की पीठ को सहला रखे थे जैसे वह उसे सहज होने के लिए प्रेरित कर रहा हो। परंतु जैसे ही रतन का हाथ उसकी पीठ से सरकते हुए उसके नितंब्बों तक पहुंचा मोनी की उत्तेजना और बढ़ गई।


वह बार-बार अपने विधाता से इस पल को इसी अवस्था में रोक लेने की गुहार करती रही परंतु रतन के हाथ ना रुके उसने मोनी के नितंबों का जायजा लिया उसकी उंगलियां मोनी की गांड को छूते छूते रह गई.. मोनी स्वयं अपनी गांड को सिकोड कर रतन की उंगलियों के लिए अवरोध पैदा कर रही थी।

मोनी की सांसें तेज चल रही थीं .. समय तेजी से बीत रहा था रतन ने अपना चेहरा मोनी की जांघों से सटा दिया उसके बाल मोनी के प्रेम त्रिकोण पर पर गुदगुदी करने लगे। नाक लगभग मोनी की लिसलिसी दरारों से छू रही थी। रतन अपनी नासिका से अपनी साली के प्रेम रस को सूंघने की कोशिश कर रहा था। जैसे वह इस खुशबू से मोनी की सहमति का अंदाजा लगाना चाह रहा हो।

आज कई दिनों बाद मोनी की बुर लार टपकने को तैयार थी। जैसे ही रतन की नाक को मोनी की बुर से निकलती कामरस की बूंद का स्पर्श मिला उसने देर नहीं की और अपनी बड़ी सी जीभ निकाल कर मोनी की बुर के नीचे लगा दिया। जैसे वह इस अमृत की बूंद को व्यर्थ हो जाने से रोकना चाहता हो। रतन इतना अधीर हो गया था कि उसने बूंद के अपनी जीभ तक पहुंचाने का इंतजार ना किया परंतु अपनी लंबी जीभ से मोनी की बुर को फैलता हुआ स्वयं उस बूंद तक पहुंच गया।

मोनी की उत्तेजना बेकाबू हो रही थी काश वह अपना हाथ नीचे कर पाती। पर वह खुद भी यह तय नहीं कर पा रही थी कि वह उसे अनजान पुरुष को यह कार्य करने से रोके या प्रेरित करें। यह सुख अनोखा था।

रतन की जीभ पर अमृत की बूंद के अनोखे स्वाद ने रतन को बावला कर दिया। शेर के मुंह में खून लग चुका था। रतन मोनी की बुर से अमृत की बूंद खींचने के लिए अपने होठों से निर्वात कायम करने लगा जैसे वह मोनी की बुर का सारा रस खींच लेना चाहता हो वह कभी अपने होठों से बुर के कपाटों को फैलता और फिर अपनी जीभ से अंदर तक जाकर प्रेम रस की बूंदे चुराने को कोशिश करता।

उसकी जीभ को मोनी का कौमार्य प्रतिरोध दे रहा था.. वह पतली सी पारदर्शी झिल्ली अपनी स्वामिनी का कौमार्य बचाए रखने की पुरजोर कोशिश कर रही थी। रतन बार-बार अपनी जीभ से दस्तक देता पर वह कमजोरी सी झिल्ली उसके दस्तक को नकार देती।

वह मोनी की जादुई गुफा की प्रहरी थी। पर इस अपाधपी में मोनी बेहद उत्तेजित हो चुकी थी .. जब रतन की जीभ की दाल गुफा के अंदर ना गली तो उसने मोनी के सुनहरे दाने को अपनी लपेट में ले लिया…मोनी ने अपनी जांघों से रतन को दूर हटाने की कोशिश की पर रतन ने हार न मानी उसने अपनी जीभ उस सुनहरे दाने पर फिरानी शुरू कर दी।

मोनी का बदन कांपने लगा…नाभि के नीचे ऐंठन सी होने लगी। और फिर प्रेम रसधार फूट पड़ी पर रतन जिसने मटकी फोड़ने में जी तोड़ मेहनत की थी उसे अब रस पीने का भरपूर अवसर मिल रहा था..

मोनी स्खलित हो रही थी.. आज पहली बार उसे पुरुषों की उपयोगिता समझ में आ रही थी…काश वह उसे पुरुष को देख पाती उसे समझ पाती और उसका तहे दिल से धन्यवाद अदा कर पाती…

कूपे में रहने का निर्धारित दस मिनट का समय पूरा हो चुका था।

मोनी उस दिव्य पुरुष से मिलना चाहती थी जिसने उसे यह अलौकिक सुख दिया था..

शेष अगले भाग में
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ChaityBabu

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भाग 138

क्या उसने लाली के साथ अन्याय किया था?

क्या सोनू को अपनी वासना की गिरफ्त में लेकर उसने लाली से विश्वासघात किया था?

सुगना अपने अंतर द्वंद से जूझ रही थी… एक तरफ वह लाली और सोनू को विवाह बंधन में बांधने का नेक काम कर खुद की पीठ थपथपा रही थी दूसरी तरफ लाली के हिस्से का सुहागरात स्वयं मना कर आत्मग्लानि से जूझ भी रही थी।


अचानक सुगना हड़बड़ा कर उठ गई… सोनू को अपने करीब पाकर वह खुश हो गई…उसने चैन की सांस ली पर वह अपने अंतर मन में फैसला कर चुकी थी…

अब आगे..

सुगना और सोनू अपने गांव सीतापुर की तरफ बढ़ रहे थे। जैसे-जैसे गांव करीब आ रहा था सुगना अपने बचपन को याद कर रही थी सोनू जब छोटा था वह उसका बेहद ख्याल रखती थी। कैसे पगडंडियों पर चलते समय वो इधर उधर भागा करता और वो उसे दौड़कर पकड़ती और वापस सही रास्ते पर चलने के लिए विवश करती कभी डांटती कभी फटकारती। जब सोनू गुस्सा होता उसे अपने आलिंगन में लेकर पुचकारती…

और आज वही छोटा सोनू आज एक पूर्ण मर्द बन चुका था। गांव का छोटा सा स्कूल आते ही सुगना ने चहकते हुए कहा.

“सोनू देख गांव के स्कूल”

“तोहरा पगला मास्टरवा याद बा…”

सोनू को पागल मास्टर भली भांति याद था जो उसे बचपन में बहुत परेशान किया करता था और वह सुगना ही थी जो अक्सर सोनू के बचाव में आकर उस पागल मास्टर से सोनू के पक्ष में लड़ाई किया करती थी।

सोनू और सुगना अपने बचपन की बातों में मशगुल हो गए…

बचपन की यादों की सबसे बड़ी खूबसूरती यह होती है कि वह आपको तनाव मुक्त कर देते हैं सुगना ने सोनू के साथ आज दोपहर में जो सुहागरात मनाई थी उसे कहीं ना कहीं यह लग रहा था जैसे उसने लाली के साथ अन्याय किया था और उसके दिमाग में इस बात का तनाव अवश्य था।

परंतु अब सुगना और सोनू दोनों सहज हो चुके थे। जैसे ही सोनू की गाड़ी ने गांव में प्रवेश किया गरीब घरों के बच्चे उसके पीछे-पीछे दौड़ने लगे अपनी सुगना दीदी को वह बखूबी पहचानते थे परंतु शायद यह दौड़ सुगना और गाड़ी को और करीब से देखने के लिए थी उसे छूने के लिए थी उसे महसूस करने के लिए थी।

घर में पदमा सोनू और सुगना का इंतजार कर रही थी जिन्होंने आने में जरूर से ज्यादा विलंब कर दिया था पदमा चाह कर भी अपने गुस्से पर नियंत्रण नहीं रख पाई और बोल उठी…

“का करें लागला हा लोग?

सुगना क्या उत्तर देती जो वह कर रही थी उसे वह स्वयं और अपने विधाता के अलावा किसी से बता भी नहीं सकती थी। सुगना के उत्तर देने से पहले ड्राइवर बोल पड़ा.

“वापस बनारस पहुंचते समय रास्ता में जाम लगा था इसीलिए पहुंचने में देर हो गया”

सोनू और सुगना दोनों ने पदमा के पैर छुए और मां का दिल गदगद हो गया पदमा को सोनू और सुगना दोनों पर गर्व था। सोनू के अपने पैर पर खड़े होने तक सुगना ने घर के मुखिया की जिम्मेदारी निभाई थी और अब धीरे-धीरे सुगना स्वयं समर्पण कर सोनू के अधिपत्य में आ चुकी थी। परंतु वह सोनू की नजरों में तब भी आदरणीय थी अब भी आदरणीय थी…

लाली गांव की अन्य महिलाओं के साथ बैठी हंसी ठिठोली का आनंद ले रही थी सोनू और सुगना के आगमन की सूचना उस तक भी पहुंची परंतु सभी महिलाओं के बीच से उठकर आना उसके लिए संभव नहीं था।

धीरे-धीरे पूरा परिवार निर्धारित कार्यक्रमों में लग गया शाम के भोज भात के कार्यक्रम में आसपास के गांव के कई लोग आए और सोनू और लाली की अनोखी शादी के जश्न में शामिल हुए। उनके मन में भले ही यह विचार आ रहा हो कि इस बेमेल शादी का मकसद क्या था परंतु किसी ने भी इस पर प्रश्न चिन्ह उठाने की हिम्मत नहीं दिखाई और दिखता भी कैसे जब सरयू सिंह और सोनू जैसा प्रभावशाली व्यक्तित्व इस रिश्ते को स्वीकार रहा था उस पर प्रश्न करने का अब कोई औचित्य नहीं था।

शाम होते होते सारे रिश्तेदार अपना अपना बिस्तर पकड़ने लगे और सुगना का आंगन खाली होता चला गया। सोनू स्वयं पूरी तरह थक चुका था वह भी बाहर पड़े दलान में एक और चुपचाप जाकर लेट गया और न जाने कब उसकी आंख लग गई।

उधर लाली की सुहाग सेज तैयार हो चुकी थी सुगना और उसकी एक दो सहेलियों को छोड़कर सभी लोग सो चुके थे।

सुगना ने और और देर नहीं की वह सोनू के पास के और उसके माथे पर हाथ फेरते हुए बोला…

“सोनू उठ चल लाली इंतजार करत बिया”

सोनू अब तक गहरी नींद में जा चुका था उसके कानों में सुगना की आवाज पड़ तो रही थी परंतु जैसे वह कुछ भी सुनने के मूड में नहीं था उसने करवट ली और अपनी पीठ सुगना की तरफ कर दी।

सुगना ने अपनी उंगलियों का दबाव और बढ़ाया और एक बार फिर बेहद प्यार से बोला..

“ए सोनू उठ जो”

सोनू ने अपनी आंखें खोली सुगना को देखकर वह सारा माजरा समझ गया उसने अपनी आंखें खींचते हुए सुगना से कहा..

“लाली के मना ले ना दीदी ई काम त बनारस में भी हो सकेला”

सोनू ने पहले भी सुगना को यह बात समझने की कोशिश की थी कि वह आज की सुहागरात के कार्यक्रम को टाल दे क्योंकि वह आज पूरी तरह तृप्त था।

“अभी चुपचाप चल, लाली का सोची आज घर के बहू के रूप में पूजा कईले बिया इ रसम तोरा निभावे के पड़ी”

सुगना की आवाज की खनक से सोनू ने अंदाज कर लिया कि सुगना को इनकार कर पाना अब उसके बस में नहीं था वह उठा और यंत्रवत उसके पीछे-पीछे चलने लगा। अब भी उसके शरीर में फुर्ती नहीं दिखाई पड़ रही थी।

सुगना ने अपनी चाल धीमी की और सोनू से मुखातिब होते हुए बोली..

“आज दिन में जवन सिखवले रहनी उ लाली के भी सिखा दीहे बाद में उ हे काम देही”

सुगना ने सोनू को आज दिन में मनाए गए सुहागरात का मंजर याद दिला दिया था सुगना का यह रूप उसने पहली बार देखा था उन खूबसूरत पलों को याद कर सोनू के लंड में एक बार फिर हरकत हुई और सोनू का हथियार एक बार फिर प्रेम युद्ध में उतरने के लिए तैयार हो गया।

पर जो उत्सुकता और ताजगी सुहागरात का इंतजार कर रहे पुरुष में होनी चाहिए शायद उसमें अब भी कुछ कमी थी।

कमरे के दरवाजे तक पहुंचते पहुंचते सुगना ने सोनू के दोनों मजबूत बुझाओ को अपने कोमल हाथों से पकड़ा और उसके कान में फुसफुसाते हुए बोला..

“अभीयो मन नईखे करत ता बत्ती बुझा दीहे और सोच लीहे कि बिस्तर पर हम ही बानी..”

सुगना यह बात बोल तो गई पर मारे शर्म के वह खुद ही लाल हो गई उसने अपनी हथेलियां अपनी आंखों पर रख ली और अपना चेहरा छुपाने की कोशिश की पर सुगना की इस अदा ने सोनू की उत्तेजना को पूरी तरह जागृत कर दिया सोनू ने सुगना के माथे को चूमना चाहा परंतु सुगना में इस समय अपने अधरों को सोनू के लिए प्रस्तुत कर दिया सोनू और सुगना के अधर एक दूसरे से सट गए..

इसके पहले कि यह चुंबन कामुक रूप ले पता सुगना ने अपने होंठ अलग किए और बोला

“ जो हमारा भाभी के खुश कर दे..”

लाली अब सुगना की भाभी बन चुकी थी।

अंदर लाली भी आज सोनू को खुश करने के लिए बेताब थी। अंदर हो रही हलचल सुगना महसूस कर रही थी। सुगना कुछ देर दरवाजे पर रही पर शायद अंदर हो रही हरकतों से वह अपने बदन में उठ रही उत्तेजना को महसूस कर रही थी उसने वहां से हट जाना ही उचित समझा।

सोनू और लाली की सुहागरात भी कम यादगार नहीं थी। लाली ने भी सोनू को खुश करने में कोई कमी नहीं रखी। सोनू की दोनों बहने आज उस पर मेहरबान थी। सोनू का दिन और रात आज दोनों गुलजार थे। सोनू को अपने निर्णय पर कोई अफसोस नहीं था उसे पता था उसका आने वाला समय बेहद शानदार था। दो रूप लावण्य से भरी हुई युवतियां उसे सहज ही प्राप्त हो चुकी थी वह भी पूरे दिल से आत्मीयता रखने वाली।

कुछ ही दिनों में लाली अपने बाल बच्चों समेत जौनपुर शिफ्ट हो गई। सुगना अपने बनारस के घर में अपने बच्चों के साथ अकेले रहने लगी। सोनू हर हफ्ते सुगना से मिलने बनारस आता परंतु लाली उसका पीछा नहीं छोड़ती वह भी उसके साथ-साथ बनारस आ जाती।

सोनू और सुगना का मिलन कठिन हो गया था। और तो और कुछ दिनों बाद सुगना ने सोनू से बात कर सीतापुर की गृहस्थी को बंद करने का निर्णय ले लिया और अपनी मां पदमा को भी बनारस बुला लिया।


वैसे भी बनारस में सुगना अकेले रह रही थी मां पदमा के आ जाने से उसे भी एक साथ मिल गया था। परंतु पदमा की उपस्थिति ने सोनू और सुगना के मिलन में और भी बाधाएं डाल दीं। दिन बीतने लगे सुगना को भूल पाना सोनू के लिए इतना आसान नहीं था सुगना के साथ बिताए गए अंतरंग पल सोनू को बेचैन किए हुए थे। गर्दन का दाग पूरी तरह गायब था और सोनू दाग लगवाने को आतुर।

सोनू और सुगना के मन में मिलन की कशिश बढ़ रही थी।

उधर आश्रम में रतन और माधवी दोनों उन अनोखे कूपे में अपनी काम पिपाशा मिटा रहे थे। रतन को पता चल चुका था कि मोनी अब तक कुंवारी थी और वह आज तक मनी से नहीं मिल पाया था।

मातहत कभी किसी एक के नहीं होते। माधवी ने जिस प्रकार रतन के लड़कों से मिलकर उसकी चाल बाजी को नाकाम कर दिया था और मोनी के लिए निर्धारित कूपे में स्वयं प्रस्तुत होती रहीं थी उसी प्रकार एक दिन रतन ने उसकी चाल बाजी को पकड़ लिया और माधवी इस बार किसी ऐसे कूपे में जा पहुंची जहां रतन की जगह एक अनजान लड़का था। रतन ने उस लड़के को अपने दिशानिर्देश दे दिए थे। उसका पारितोषिक कूपे में उसका इंतजार कर रहा था।

माधवी खूबसूरत बदन की मालकिन तो थी ही और वह लड़का बेहद प्यासा था। माधवी के गदराए बदन को देखकर वह अपनी सुध बुध खो बैठा .. वह बेझिझक माधवी के बदन से खेलने लगा। उसे न तो कुपे के नियमों का ध्यान रहा और न हीं पिट जाने का खतरा..

माधवी अब तक जान चुकी थी कि वह गलत कूपे में आ गई है। उसने एक बार लाल बत्ती दबाकर उसे रोकना चाहा पर वह लड़का नहीं रुका।

जैसे ही उसने अपना लंड माधवी की बुर में घुसाया माधवी ने एक बार फिर लाल बटन दबाया लड़का एक पल के लिए रुका जरूर पर अगले ही पल उसने अपनी कमर आगे की और उसका लंड माधवी की बुर में जड़ तक धंस गया।

माधवी चाहकर भी लाल बटन दो बार नहीं दबा सकी। उसे पता था दो बार बटन दबाने पर वह लड़का नियामानुसार दंडित होता परंतु माधवी की भी पहचान उजागर हो जाती। माधवी बेचैन थी वह लड़का उसे लगातार चोदे जा रहा था। वह उसकी चूचियों को बेदर्दी से मीसता और लंड को पूरी ताकत से आगे पीछे करता।

माधवी ने खुद को इतना लाचार पहले कभी नहीं महसूस किया था। इतने बड़े आश्रम में इतने प्रतिष्ठित पद पर होने के बावजूद आज वह कूपे में एक रंडी की भांति चुद रही थी। उसका स्वाभिमान तार तार हो रहा था। वह अपने ईश्वर से इस बुरे समय को शीघ्र बीतने के लिए उन्होंने विनय कर रही थी। परंतु जब तक कूपे का निर्धारित समय खत्म होता उसे लड़के ने उसकी बुर में वीर्य वर्षा कर दी।

खेल खत्म हो चुका था वह लड़का कूपे से बाहर जा चुका था माधवी अपनी जांघों से बहते हुए उसे घृणित वीर्य को देख रही थी। आज उसने जो महसूस किया था वह निश्चित ही उसके किसी पाप का दंड था।

उधर रतन आज अपनी अप्सरा के कूपे में पहुंचने में कामयाब हो गया था। एक तरफ माधवी नरक झेल रही थी दूसरी तरफ रतन स्वर्ग के मुहाने पर खड़ा था।

रतन मोनी की सुंदरता का कायल हो गया। अब तक तो वह सुगना की बदन की कोमलता और उसके कटाव से बेहद प्रभावित था परंतु मोनी जैसी कुंवारी, कमसिन और सांचे में ढली युवती को देखकर वो सुगना की खूबसूरती भूल गया। उसे मोनी सुगना से भी ज्यादा पसंद आने लगी वैसे भी रतन के मन में सुगना को लेकर थोड़ी जलन भी थी और अपनी नाकामयाबी को लेकर चिंता भी सुगना को संतुष्ट नहीं कर पाना उसकी मर्दानगी पर एक ऐसा प्रश्न चिन्ह था जिसने उसे झिंझोड़कर रख दिया था और उसे इस आश्रम में आने पर मजबूर कर दिया था

समय बीत रहा था और मोनी पुरुष स्पर्श का इंतजार कर रही थी। अब तक जब भी वह कूपे में आई थी पुरुषों के हाथ उसके बदन से खेलने लगते थे परंतु आज कुछ अलग हो रहा था मोनी स्वयं अधीर हो रही थी बेचैनी में वह अपना थूक गुटकने का प्रयास कर रही थी। वह बार-बार अपनी जांघों को आगे पीछे करती और उसके कमर में बल पड़ जाते। मोनी का बलखाता शरीर पुरुष स्पर्श को आमंत्रित कर रहा था । परंतु रतन अब भी उसकी चूचियों पर निगाह गड़ाए हुए था मोनी की चूचियां स्पर्श के इंतजार में और भी तन चुकी थी। जितना ही मोनी पुरुष स्पर्श के बारे में सोचती उसके निप्पल उतने ही खड़े हो जाते… माधवी ने मोनी की चूचियों की मालिश कर करके उसे सुडौल आकार में ला दिया था और वह इस समय उसके सीने पर सांची के स्तूपों की भांति रतन को आकर्षित कर रही थी। मोनी की दूधिया चूचियां और शहतूत के जैसे उसके निप्पल ने रतन के दांतों को आपस में रगड़ने पर मजबूर कर दिया। चूचियों के नीचे उसकी कटवादार कमर और बीच में गहरी नाभि देखने लायक थी।


मोनी के लव हैंडल रतन के हाथों को आमंत्रित कर रहे थे की आओ मुझे पकड़ो मुझे थाम लो …जब रतन का ध्यान मोनी के वस्ति प्रदेश पर गया एक पल के लिए उसने आंखें बंद कर ली। मोनी रतन की साली थी और उस उम्र में कई वर्ष छोटी थी।

जब रतन का विवाह हुआ था उस समय मोनी किशोरी थी आज मोनी को इस रूप में चोरी चोरी देखते हुए रतन को ग्लानि भी हो रही थी पर वासना में लिप्त आदमी की बुद्धि मंद हो जाती है।

रतन उसके कामुक बदन की तुलना उसकी किशोरावस्था से करना लगा। विधि का विधान अनूठा था छोटी अमिया अब आम बन चुकी थी। जागो के बीच की छोटी सी दरार अब फूल चुकी थी ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे अंदर खिल रही कली बाहरी होठों को फैला कर अपनी उपस्थिति का एहसास करना चाह रही थी।


मोनी के अंदर के होंठ स्वयं झांकने को तैयार थे और बाहरी होठों पर अपना दबाव लगातार बनाये हुए थे।

मोनी स्वयं अपनी बुर की कली को खिलने से रोकना चाहती थी। उसकी पुष्ट जांघें उस कली के ऊपर आवरण देने की नाकाम कोशिश कर रही थी।

मोनी का वस्ति प्रदेश पूरी तरह चिकना था सुनहरे बाल गायब थे।माधवी के दिव्य कुंड का वह स्नान अनोखा था जिसने मोनी की बुर के बाल हमेशा के लिए गायब कर दिए थे।


रतन से अब और बर्दाश्त ना हुआ वह आगे बढ़ा और उसने मोनी के कमर के दोनों तरफ अपना हाथ रख कर मोनी को थाम लिया।

मोनी का सारा बदन गनगना गया। यद्यपि वह पुरुष स्पर्श की प्रतीक्षा वह कुछ मिनट से कर रही थी पर अचानक मजबूत खुरदुरे हाथों ने जब उसके कोमल बदन को स्पर्श किया उसके शरीर में कपकपाहट सी हुई उसके रोंगटे खड़े हो गए। चूचियों के छुपे रोमकूप अचानक एक-एक करके तेजी से उभरने लगे। रतन ने मोनी के शरीर में हो रही इस उत्तेजना को महसूस किया और वह मोनी के बदन को सहलाकर उन रोमकूपों को वापस शांत करने की कोशिश करने लगा।

मोनी ने ऐसा पहले कभी महसूस नहीं किया था वह बेचैन हो रही थी और ईश्वर से प्रार्थना कर रही थी कि निर्धारित समय जल्द से जल्द बीते और वह इस अद्भुत एहसास को अपने दिल में संजोए हुए वापस चले जाना चाहती थी। परंतु विधाता ने उसके भाग्य में और सुख लिखा था

रतन ने अपने स्पर्श का असर देख लिया था। उसके हाथ अब मोनी की पीठ को सहला रखे थे जैसे वह उसे सहज होने के लिए प्रेरित कर रहा हो। परंतु जैसे ही रतन का हाथ उसकी पीठ से सरकते हुए उसके नितंब्बों तक पहुंचा मोनी की उत्तेजना और बढ़ गई।


वह बार-बार अपने विधाता से इस पल को इसी अवस्था में रोक लेने की गुहार करती रही परंतु रतन के हाथ ना रुके उसने मोनी के नितंबों का जायजा लिया उसकी उंगलियां मोनी की गांड को छूते छूते रह गई.. मोनी स्वयं अपनी गांड को सिकोड कर रतन की उंगलियों के लिए अवरोध पैदा कर रही थी।

मोनी की सांसें तेज चल रही थीं .. समय तेजी से बीत रहा था रतन ने अपना चेहरा मोनी की जांघों से सटा दिया उसके बाल मोनी के प्रेम त्रिकोण पर पर गुदगुदी करने लगे। नाक लगभग मोनी की लिसलिसी दरारों से छू रही थी। रतन अपनी नासिका से अपनी साली के प्रेम रस को सूंघने की कोशिश कर रहा था। जैसे वह इस खुशबू से मोनी की सहमति का अंदाजा लगाना चाह रहा हो।

आज कई दिनों बाद मोनी की बुर लार टपकने को तैयार थी। जैसे ही रतन की नाक को मोनी की बुर से निकलती कामरस की बूंद का स्पर्श मिला उसने देर नहीं की और अपनी बड़ी सी जीभ निकाल कर मोनी की बुर के नीचे लगा दिया। जैसे वह इस अमृत की बूंद को व्यर्थ हो जाने से रोकना चाहता हो। रतन इतना अधीर हो गया था कि उसने बूंद के अपनी जीभ तक पहुंचाने का इंतजार ना किया परंतु अपनी लंबी जीभ से मोनी की बुर को फैलता हुआ स्वयं उस बूंद तक पहुंच गया।

मोनी की उत्तेजना बेकाबू हो रही थी काश वह अपना हाथ नीचे कर पाती। पर वह खुद भी यह तय नहीं कर पा रही थी कि वह उसे अनजान पुरुष को यह कार्य करने से रोके या प्रेरित करें। यह सुख अनोखा था।

रतन की जीभ पर अमृत की बूंद के अनोखे स्वाद ने रतन को बावला कर दिया। शेर के मुंह में खून लग चुका था। रतन मोनी की बुर से अमृत की बूंद खींचने के लिए अपने होठों से निर्वात कायम करने लगा जैसे वह मोनी की बुर का सारा रस खींच लेना चाहता हो वह कभी अपने होठों से बुर के कपाटों को फैलता और फिर अपनी जीभ से अंदर तक जाकर प्रेम रस की बूंदे चुराने को कोशिश करता।

उसकी जीभ को मोनी का कौमार्य प्रतिरोध दे रहा था.. वह पतली सी पारदर्शी झिल्ली अपनी स्वामिनी का कौमार्य बचाए रखने की पुरजोर कोशिश कर रही थी। रतन बार-बार अपनी जीभ से दस्तक देता पर वह कमजोरी सी झिल्ली उसके दस्तक को नकार देती।

वह मोनी की जादुई गुफा की प्रहरी थी। पर इस अपाधपी में मोनी बेहद उत्तेजित हो चुकी थी .. जब रतन की जीभ की दाल गुफा के अंदर ना गली तो उसने मोनी के सुनहरे दाने को अपनी लपेट में ले लिया…मोनी ने अपनी जांघों से रतन को दूर हटाने की कोशिश की पर रतन ने हार न मानी उसने अपनी जीभ उस सुनहरे दाने पर फिरानी शुरू कर दी।

मोनी का बदन कांपने लगा…नाभि के नीचे ऐंठन सी होने लगी। और फिर प्रेम रसधार फूट पड़ी पर रतन जिसने मटकी फोड़ने में जी तोड़ मेहनत की थी उसे अब रस पीने का भरपूर अवसर मिल रहा था..

मोनी स्खलित हो रही थी.. आज पहली बार उसे पुरुषों की उपयोगिता समझ में आ रही थी…काश वह उसे पुरुष को देख पाती उसे समझ पाती और उसका तहे दिल से धन्यवाद अदा कर पाती…

कूपे में रहने का निर्धारित दस मिनट का समय पूरा हो चुका था।

मोनी उस दिव्य पुरुष से मिलना चाहती थी जिसने उसे यह अलौकिक सुख दिया था..

शेष अगले भाग में
Awesome Moni, Better if she is a bit more resistive
Great Episode,
 
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macssm

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Wow.. lovely
भाग 138

क्या उसने लाली के साथ अन्याय किया था?

क्या सोनू को अपनी वासना की गिरफ्त में लेकर उसने लाली से विश्वासघात किया था?

सुगना अपने अंतर द्वंद से जूझ रही थी… एक तरफ वह लाली और सोनू को विवाह बंधन में बांधने का नेक काम कर खुद की पीठ थपथपा रही थी दूसरी तरफ लाली के हिस्से का सुहागरात स्वयं मना कर आत्मग्लानि से जूझ भी रही थी।


अचानक सुगना हड़बड़ा कर उठ गई… सोनू को अपने करीब पाकर वह खुश हो गई…उसने चैन की सांस ली पर वह अपने अंतर मन में फैसला कर चुकी थी…

अब आगे..

सुगना और सोनू अपने गांव सीतापुर की तरफ बढ़ रहे थे। जैसे-जैसे गांव करीब आ रहा था सुगना अपने बचपन को याद कर रही थी सोनू जब छोटा था वह उसका बेहद ख्याल रखती थी। कैसे पगडंडियों पर चलते समय वो इधर उधर भागा करता और वो उसे दौड़कर पकड़ती और वापस सही रास्ते पर चलने के लिए विवश करती कभी डांटती कभी फटकारती। जब सोनू गुस्सा होता उसे अपने आलिंगन में लेकर पुचकारती…

और आज वही छोटा सोनू आज एक पूर्ण मर्द बन चुका था। गांव का छोटा सा स्कूल आते ही सुगना ने चहकते हुए कहा.

“सोनू देख गांव के स्कूल”

“तोहरा पगला मास्टरवा याद बा…”

सोनू को पागल मास्टर भली भांति याद था जो उसे बचपन में बहुत परेशान किया करता था और वह सुगना ही थी जो अक्सर सोनू के बचाव में आकर उस पागल मास्टर से सोनू के पक्ष में लड़ाई किया करती थी।

सोनू और सुगना अपने बचपन की बातों में मशगुल हो गए…

बचपन की यादों की सबसे बड़ी खूबसूरती यह होती है कि वह आपको तनाव मुक्त कर देते हैं सुगना ने सोनू के साथ आज दोपहर में जो सुहागरात मनाई थी उसे कहीं ना कहीं यह लग रहा था जैसे उसने लाली के साथ अन्याय किया था और उसके दिमाग में इस बात का तनाव अवश्य था।

परंतु अब सुगना और सोनू दोनों सहज हो चुके थे। जैसे ही सोनू की गाड़ी ने गांव में प्रवेश किया गरीब घरों के बच्चे उसके पीछे-पीछे दौड़ने लगे अपनी सुगना दीदी को वह बखूबी पहचानते थे परंतु शायद यह दौड़ सुगना और गाड़ी को और करीब से देखने के लिए थी उसे छूने के लिए थी उसे महसूस करने के लिए थी।

घर में पदमा सोनू और सुगना का इंतजार कर रही थी जिन्होंने आने में जरूर से ज्यादा विलंब कर दिया था पदमा चाह कर भी अपने गुस्से पर नियंत्रण नहीं रख पाई और बोल उठी…

“का करें लागला हा लोग?

सुगना क्या उत्तर देती जो वह कर रही थी उसे वह स्वयं और अपने विधाता के अलावा किसी से बता भी नहीं सकती थी। सुगना के उत्तर देने से पहले ड्राइवर बोल पड़ा.

“वापस बनारस पहुंचते समय रास्ता में जाम लगा था इसीलिए पहुंचने में देर हो गया”

सोनू और सुगना दोनों ने पदमा के पैर छुए और मां का दिल गदगद हो गया पदमा को सोनू और सुगना दोनों पर गर्व था। सोनू के अपने पैर पर खड़े होने तक सुगना ने घर के मुखिया की जिम्मेदारी निभाई थी और अब धीरे-धीरे सुगना स्वयं समर्पण कर सोनू के अधिपत्य में आ चुकी थी। परंतु वह सोनू की नजरों में तब भी आदरणीय थी अब भी आदरणीय थी…

लाली गांव की अन्य महिलाओं के साथ बैठी हंसी ठिठोली का आनंद ले रही थी सोनू और सुगना के आगमन की सूचना उस तक भी पहुंची परंतु सभी महिलाओं के बीच से उठकर आना उसके लिए संभव नहीं था।

धीरे-धीरे पूरा परिवार निर्धारित कार्यक्रमों में लग गया शाम के भोज भात के कार्यक्रम में आसपास के गांव के कई लोग आए और सोनू और लाली की अनोखी शादी के जश्न में शामिल हुए। उनके मन में भले ही यह विचार आ रहा हो कि इस बेमेल शादी का मकसद क्या था परंतु किसी ने भी इस पर प्रश्न चिन्ह उठाने की हिम्मत नहीं दिखाई और दिखता भी कैसे जब सरयू सिंह और सोनू जैसा प्रभावशाली व्यक्तित्व इस रिश्ते को स्वीकार रहा था उस पर प्रश्न करने का अब कोई औचित्य नहीं था।

शाम होते होते सारे रिश्तेदार अपना अपना बिस्तर पकड़ने लगे और सुगना का आंगन खाली होता चला गया। सोनू स्वयं पूरी तरह थक चुका था वह भी बाहर पड़े दलान में एक और चुपचाप जाकर लेट गया और न जाने कब उसकी आंख लग गई।

उधर लाली की सुहाग सेज तैयार हो चुकी थी सुगना और उसकी एक दो सहेलियों को छोड़कर सभी लोग सो चुके थे।

सुगना ने और और देर नहीं की वह सोनू के पास के और उसके माथे पर हाथ फेरते हुए बोला…

“सोनू उठ चल लाली इंतजार करत बिया”

सोनू अब तक गहरी नींद में जा चुका था उसके कानों में सुगना की आवाज पड़ तो रही थी परंतु जैसे वह कुछ भी सुनने के मूड में नहीं था उसने करवट ली और अपनी पीठ सुगना की तरफ कर दी।

सुगना ने अपनी उंगलियों का दबाव और बढ़ाया और एक बार फिर बेहद प्यार से बोला..

“ए सोनू उठ जो”

सोनू ने अपनी आंखें खोली सुगना को देखकर वह सारा माजरा समझ गया उसने अपनी आंखें खींचते हुए सुगना से कहा..

“लाली के मना ले ना दीदी ई काम त बनारस में भी हो सकेला”

सोनू ने पहले भी सुगना को यह बात समझने की कोशिश की थी कि वह आज की सुहागरात के कार्यक्रम को टाल दे क्योंकि वह आज पूरी तरह तृप्त था।

“अभी चुपचाप चल, लाली का सोची आज घर के बहू के रूप में पूजा कईले बिया इ रसम तोरा निभावे के पड़ी”

सुगना की आवाज की खनक से सोनू ने अंदाज कर लिया कि सुगना को इनकार कर पाना अब उसके बस में नहीं था वह उठा और यंत्रवत उसके पीछे-पीछे चलने लगा। अब भी उसके शरीर में फुर्ती नहीं दिखाई पड़ रही थी।

सुगना ने अपनी चाल धीमी की और सोनू से मुखातिब होते हुए बोली..

“आज दिन में जवन सिखवले रहनी उ लाली के भी सिखा दीहे बाद में उ हे काम देही”

सुगना ने सोनू को आज दिन में मनाए गए सुहागरात का मंजर याद दिला दिया था सुगना का यह रूप उसने पहली बार देखा था उन खूबसूरत पलों को याद कर सोनू के लंड में एक बार फिर हरकत हुई और सोनू का हथियार एक बार फिर प्रेम युद्ध में उतरने के लिए तैयार हो गया।

पर जो उत्सुकता और ताजगी सुहागरात का इंतजार कर रहे पुरुष में होनी चाहिए शायद उसमें अब भी कुछ कमी थी।

कमरे के दरवाजे तक पहुंचते पहुंचते सुगना ने सोनू के दोनों मजबूत बुझाओ को अपने कोमल हाथों से पकड़ा और उसके कान में फुसफुसाते हुए बोला..

“अभीयो मन नईखे करत ता बत्ती बुझा दीहे और सोच लीहे कि बिस्तर पर हम ही बानी..”

सुगना यह बात बोल तो गई पर मारे शर्म के वह खुद ही लाल हो गई उसने अपनी हथेलियां अपनी आंखों पर रख ली और अपना चेहरा छुपाने की कोशिश की पर सुगना की इस अदा ने सोनू की उत्तेजना को पूरी तरह जागृत कर दिया सोनू ने सुगना के माथे को चूमना चाहा परंतु सुगना में इस समय अपने अधरों को सोनू के लिए प्रस्तुत कर दिया सोनू और सुगना के अधर एक दूसरे से सट गए..

इसके पहले कि यह चुंबन कामुक रूप ले पता सुगना ने अपने होंठ अलग किए और बोला

“ जो हमारा भाभी के खुश कर दे..”

लाली अब सुगना की भाभी बन चुकी थी।

अंदर लाली भी आज सोनू को खुश करने के लिए बेताब थी। अंदर हो रही हलचल सुगना महसूस कर रही थी। सुगना कुछ देर दरवाजे पर रही पर शायद अंदर हो रही हरकतों से वह अपने बदन में उठ रही उत्तेजना को महसूस कर रही थी उसने वहां से हट जाना ही उचित समझा।

सोनू और लाली की सुहागरात भी कम यादगार नहीं थी। लाली ने भी सोनू को खुश करने में कोई कमी नहीं रखी। सोनू की दोनों बहने आज उस पर मेहरबान थी। सोनू का दिन और रात आज दोनों गुलजार थे। सोनू को अपने निर्णय पर कोई अफसोस नहीं था उसे पता था उसका आने वाला समय बेहद शानदार था। दो रूप लावण्य से भरी हुई युवतियां उसे सहज ही प्राप्त हो चुकी थी वह भी पूरे दिल से आत्मीयता रखने वाली।

कुछ ही दिनों में लाली अपने बाल बच्चों समेत जौनपुर शिफ्ट हो गई। सुगना अपने बनारस के घर में अपने बच्चों के साथ अकेले रहने लगी। सोनू हर हफ्ते सुगना से मिलने बनारस आता परंतु लाली उसका पीछा नहीं छोड़ती वह भी उसके साथ-साथ बनारस आ जाती।

सोनू और सुगना का मिलन कठिन हो गया था। और तो और कुछ दिनों बाद सुगना ने सोनू से बात कर सीतापुर की गृहस्थी को बंद करने का निर्णय ले लिया और अपनी मां पदमा को भी बनारस बुला लिया।


वैसे भी बनारस में सुगना अकेले रह रही थी मां पदमा के आ जाने से उसे भी एक साथ मिल गया था। परंतु पदमा की उपस्थिति ने सोनू और सुगना के मिलन में और भी बाधाएं डाल दीं। दिन बीतने लगे सुगना को भूल पाना सोनू के लिए इतना आसान नहीं था सुगना के साथ बिताए गए अंतरंग पल सोनू को बेचैन किए हुए थे। गर्दन का दाग पूरी तरह गायब था और सोनू दाग लगवाने को आतुर।

सोनू और सुगना के मन में मिलन की कशिश बढ़ रही थी।

उधर आश्रम में रतन और माधवी दोनों उन अनोखे कूपे में अपनी काम पिपाशा मिटा रहे थे। रतन को पता चल चुका था कि मोनी अब तक कुंवारी थी और वह आज तक मनी से नहीं मिल पाया था।

मातहत कभी किसी एक के नहीं होते। माधवी ने जिस प्रकार रतन के लड़कों से मिलकर उसकी चाल बाजी को नाकाम कर दिया था और मोनी के लिए निर्धारित कूपे में स्वयं प्रस्तुत होती रहीं थी उसी प्रकार एक दिन रतन ने उसकी चाल बाजी को पकड़ लिया और माधवी इस बार किसी ऐसे कूपे में जा पहुंची जहां रतन की जगह एक अनजान लड़का था। रतन ने उस लड़के को अपने दिशानिर्देश दे दिए थे। उसका पारितोषिक कूपे में उसका इंतजार कर रहा था।

माधवी खूबसूरत बदन की मालकिन तो थी ही और वह लड़का बेहद प्यासा था। माधवी के गदराए बदन को देखकर वह अपनी सुध बुध खो बैठा .. वह बेझिझक माधवी के बदन से खेलने लगा। उसे न तो कुपे के नियमों का ध्यान रहा और न हीं पिट जाने का खतरा..

माधवी अब तक जान चुकी थी कि वह गलत कूपे में आ गई है। उसने एक बार लाल बत्ती दबाकर उसे रोकना चाहा पर वह लड़का नहीं रुका।

जैसे ही उसने अपना लंड माधवी की बुर में घुसाया माधवी ने एक बार फिर लाल बटन दबाया लड़का एक पल के लिए रुका जरूर पर अगले ही पल उसने अपनी कमर आगे की और उसका लंड माधवी की बुर में जड़ तक धंस गया।

माधवी चाहकर भी लाल बटन दो बार नहीं दबा सकी। उसे पता था दो बार बटन दबाने पर वह लड़का नियामानुसार दंडित होता परंतु माधवी की भी पहचान उजागर हो जाती। माधवी बेचैन थी वह लड़का उसे लगातार चोदे जा रहा था। वह उसकी चूचियों को बेदर्दी से मीसता और लंड को पूरी ताकत से आगे पीछे करता।

माधवी ने खुद को इतना लाचार पहले कभी नहीं महसूस किया था। इतने बड़े आश्रम में इतने प्रतिष्ठित पद पर होने के बावजूद आज वह कूपे में एक रंडी की भांति चुद रही थी। उसका स्वाभिमान तार तार हो रहा था। वह अपने ईश्वर से इस बुरे समय को शीघ्र बीतने के लिए उन्होंने विनय कर रही थी। परंतु जब तक कूपे का निर्धारित समय खत्म होता उसे लड़के ने उसकी बुर में वीर्य वर्षा कर दी।

खेल खत्म हो चुका था वह लड़का कूपे से बाहर जा चुका था माधवी अपनी जांघों से बहते हुए उसे घृणित वीर्य को देख रही थी। आज उसने जो महसूस किया था वह निश्चित ही उसके किसी पाप का दंड था।

उधर रतन आज अपनी अप्सरा के कूपे में पहुंचने में कामयाब हो गया था। एक तरफ माधवी नरक झेल रही थी दूसरी तरफ रतन स्वर्ग के मुहाने पर खड़ा था।

रतन मोनी की सुंदरता का कायल हो गया। अब तक तो वह सुगना की बदन की कोमलता और उसके कटाव से बेहद प्रभावित था परंतु मोनी जैसी कुंवारी, कमसिन और सांचे में ढली युवती को देखकर वो सुगना की खूबसूरती भूल गया। उसे मोनी सुगना से भी ज्यादा पसंद आने लगी वैसे भी रतन के मन में सुगना को लेकर थोड़ी जलन भी थी और अपनी नाकामयाबी को लेकर चिंता भी सुगना को संतुष्ट नहीं कर पाना उसकी मर्दानगी पर एक ऐसा प्रश्न चिन्ह था जिसने उसे झिंझोड़कर रख दिया था और उसे इस आश्रम में आने पर मजबूर कर दिया था

समय बीत रहा था और मोनी पुरुष स्पर्श का इंतजार कर रही थी। अब तक जब भी वह कूपे में आई थी पुरुषों के हाथ उसके बदन से खेलने लगते थे परंतु आज कुछ अलग हो रहा था मोनी स्वयं अधीर हो रही थी बेचैनी में वह अपना थूक गुटकने का प्रयास कर रही थी। वह बार-बार अपनी जांघों को आगे पीछे करती और उसके कमर में बल पड़ जाते। मोनी का बलखाता शरीर पुरुष स्पर्श को आमंत्रित कर रहा था । परंतु रतन अब भी उसकी चूचियों पर निगाह गड़ाए हुए था मोनी की चूचियां स्पर्श के इंतजार में और भी तन चुकी थी। जितना ही मोनी पुरुष स्पर्श के बारे में सोचती उसके निप्पल उतने ही खड़े हो जाते… माधवी ने मोनी की चूचियों की मालिश कर करके उसे सुडौल आकार में ला दिया था और वह इस समय उसके सीने पर सांची के स्तूपों की भांति रतन को आकर्षित कर रही थी। मोनी की दूधिया चूचियां और शहतूत के जैसे उसके निप्पल ने रतन के दांतों को आपस में रगड़ने पर मजबूर कर दिया। चूचियों के नीचे उसकी कटवादार कमर और बीच में गहरी नाभि देखने लायक थी।


मोनी के लव हैंडल रतन के हाथों को आमंत्रित कर रहे थे की आओ मुझे पकड़ो मुझे थाम लो …जब रतन का ध्यान मोनी के वस्ति प्रदेश पर गया एक पल के लिए उसने आंखें बंद कर ली। मोनी रतन की साली थी और उस उम्र में कई वर्ष छोटी थी।

जब रतन का विवाह हुआ था उस समय मोनी किशोरी थी आज मोनी को इस रूप में चोरी चोरी देखते हुए रतन को ग्लानि भी हो रही थी पर वासना में लिप्त आदमी की बुद्धि मंद हो जाती है।

रतन उसके कामुक बदन की तुलना उसकी किशोरावस्था से करना लगा। विधि का विधान अनूठा था छोटी अमिया अब आम बन चुकी थी। जागो के बीच की छोटी सी दरार अब फूल चुकी थी ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे अंदर खिल रही कली बाहरी होठों को फैला कर अपनी उपस्थिति का एहसास करना चाह रही थी।


मोनी के अंदर के होंठ स्वयं झांकने को तैयार थे और बाहरी होठों पर अपना दबाव लगातार बनाये हुए थे।

मोनी स्वयं अपनी बुर की कली को खिलने से रोकना चाहती थी। उसकी पुष्ट जांघें उस कली के ऊपर आवरण देने की नाकाम कोशिश कर रही थी।

मोनी का वस्ति प्रदेश पूरी तरह चिकना था सुनहरे बाल गायब थे।माधवी के दिव्य कुंड का वह स्नान अनोखा था जिसने मोनी की बुर के बाल हमेशा के लिए गायब कर दिए थे।


रतन से अब और बर्दाश्त ना हुआ वह आगे बढ़ा और उसने मोनी के कमर के दोनों तरफ अपना हाथ रख कर मोनी को थाम लिया।

मोनी का सारा बदन गनगना गया। यद्यपि वह पुरुष स्पर्श की प्रतीक्षा वह कुछ मिनट से कर रही थी पर अचानक मजबूत खुरदुरे हाथों ने जब उसके कोमल बदन को स्पर्श किया उसके शरीर में कपकपाहट सी हुई उसके रोंगटे खड़े हो गए। चूचियों के छुपे रोमकूप अचानक एक-एक करके तेजी से उभरने लगे। रतन ने मोनी के शरीर में हो रही इस उत्तेजना को महसूस किया और वह मोनी के बदन को सहलाकर उन रोमकूपों को वापस शांत करने की कोशिश करने लगा।

मोनी ने ऐसा पहले कभी महसूस नहीं किया था वह बेचैन हो रही थी और ईश्वर से प्रार्थना कर रही थी कि निर्धारित समय जल्द से जल्द बीते और वह इस अद्भुत एहसास को अपने दिल में संजोए हुए वापस चले जाना चाहती थी। परंतु विधाता ने उसके भाग्य में और सुख लिखा था

रतन ने अपने स्पर्श का असर देख लिया था। उसके हाथ अब मोनी की पीठ को सहला रखे थे जैसे वह उसे सहज होने के लिए प्रेरित कर रहा हो। परंतु जैसे ही रतन का हाथ उसकी पीठ से सरकते हुए उसके नितंब्बों तक पहुंचा मोनी की उत्तेजना और बढ़ गई।


वह बार-बार अपने विधाता से इस पल को इसी अवस्था में रोक लेने की गुहार करती रही परंतु रतन के हाथ ना रुके उसने मोनी के नितंबों का जायजा लिया उसकी उंगलियां मोनी की गांड को छूते छूते रह गई.. मोनी स्वयं अपनी गांड को सिकोड कर रतन की उंगलियों के लिए अवरोध पैदा कर रही थी।

मोनी की सांसें तेज चल रही थीं .. समय तेजी से बीत रहा था रतन ने अपना चेहरा मोनी की जांघों से सटा दिया उसके बाल मोनी के प्रेम त्रिकोण पर पर गुदगुदी करने लगे। नाक लगभग मोनी की लिसलिसी दरारों से छू रही थी। रतन अपनी नासिका से अपनी साली के प्रेम रस को सूंघने की कोशिश कर रहा था। जैसे वह इस खुशबू से मोनी की सहमति का अंदाजा लगाना चाह रहा हो।

आज कई दिनों बाद मोनी की बुर लार टपकने को तैयार थी। जैसे ही रतन की नाक को मोनी की बुर से निकलती कामरस की बूंद का स्पर्श मिला उसने देर नहीं की और अपनी बड़ी सी जीभ निकाल कर मोनी की बुर के नीचे लगा दिया। जैसे वह इस अमृत की बूंद को व्यर्थ हो जाने से रोकना चाहता हो। रतन इतना अधीर हो गया था कि उसने बूंद के अपनी जीभ तक पहुंचाने का इंतजार ना किया परंतु अपनी लंबी जीभ से मोनी की बुर को फैलता हुआ स्वयं उस बूंद तक पहुंच गया।

मोनी की उत्तेजना बेकाबू हो रही थी काश वह अपना हाथ नीचे कर पाती। पर वह खुद भी यह तय नहीं कर पा रही थी कि वह उसे अनजान पुरुष को यह कार्य करने से रोके या प्रेरित करें। यह सुख अनोखा था।

रतन की जीभ पर अमृत की बूंद के अनोखे स्वाद ने रतन को बावला कर दिया। शेर के मुंह में खून लग चुका था। रतन मोनी की बुर से अमृत की बूंद खींचने के लिए अपने होठों से निर्वात कायम करने लगा जैसे वह मोनी की बुर का सारा रस खींच लेना चाहता हो वह कभी अपने होठों से बुर के कपाटों को फैलता और फिर अपनी जीभ से अंदर तक जाकर प्रेम रस की बूंदे चुराने को कोशिश करता।

उसकी जीभ को मोनी का कौमार्य प्रतिरोध दे रहा था.. वह पतली सी पारदर्शी झिल्ली अपनी स्वामिनी का कौमार्य बचाए रखने की पुरजोर कोशिश कर रही थी। रतन बार-बार अपनी जीभ से दस्तक देता पर वह कमजोरी सी झिल्ली उसके दस्तक को नकार देती।

वह मोनी की जादुई गुफा की प्रहरी थी। पर इस अपाधपी में मोनी बेहद उत्तेजित हो चुकी थी .. जब रतन की जीभ की दाल गुफा के अंदर ना गली तो उसने मोनी के सुनहरे दाने को अपनी लपेट में ले लिया…मोनी ने अपनी जांघों से रतन को दूर हटाने की कोशिश की पर रतन ने हार न मानी उसने अपनी जीभ उस सुनहरे दाने पर फिरानी शुरू कर दी।

मोनी का बदन कांपने लगा…नाभि के नीचे ऐंठन सी होने लगी। और फिर प्रेम रसधार फूट पड़ी पर रतन जिसने मटकी फोड़ने में जी तोड़ मेहनत की थी उसे अब रस पीने का भरपूर अवसर मिल रहा था..

मोनी स्खलित हो रही थी.. आज पहली बार उसे पुरुषों की उपयोगिता समझ में आ रही थी…काश वह उसे पुरुष को देख पाती उसे समझ पाती और उसका तहे दिल से धन्यवाद अदा कर पाती…

कूपे में रहने का निर्धारित दस मिनट का समय पूरा हो चुका था।

मोनी उस दिव्य पुरुष से मिलना चाहती थी जिसने उसे यह अलौकिक सुख दिया था..

शेष अगले भाग में
Wow... Lively ji bohat hi sundar ✍️ hai aapki...
Wah...wah...
 
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Shubham babu

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भाग 138

क्या उसने लाली के साथ अन्याय किया था?

क्या सोनू को अपनी वासना की गिरफ्त में लेकर उसने लाली से विश्वासघात किया था?

सुगना अपने अंतर द्वंद से जूझ रही थी… एक तरफ वह लाली और सोनू को विवाह बंधन में बांधने का नेक काम कर खुद की पीठ थपथपा रही थी दूसरी तरफ लाली के हिस्से का सुहागरात स्वयं मना कर आत्मग्लानि से जूझ भी रही थी।


अचानक सुगना हड़बड़ा कर उठ गई… सोनू को अपने करीब पाकर वह खुश हो गई…उसने चैन की सांस ली पर वह अपने अंतर मन में फैसला कर चुकी थी…

अब आगे..

सुगना और सोनू अपने गांव सीतापुर की तरफ बढ़ रहे थे। जैसे-जैसे गांव करीब आ रहा था सुगना अपने बचपन को याद कर रही थी सोनू जब छोटा था वह उसका बेहद ख्याल रखती थी। कैसे पगडंडियों पर चलते समय वो इधर उधर भागा करता और वो उसे दौड़कर पकड़ती और वापस सही रास्ते पर चलने के लिए विवश करती कभी डांटती कभी फटकारती। जब सोनू गुस्सा होता उसे अपने आलिंगन में लेकर पुचकारती…

और आज वही छोटा सोनू आज एक पूर्ण मर्द बन चुका था। गांव का छोटा सा स्कूल आते ही सुगना ने चहकते हुए कहा.

“सोनू देख गांव के स्कूल”

“तोहरा पगला मास्टरवा याद बा…”

सोनू को पागल मास्टर भली भांति याद था जो उसे बचपन में बहुत परेशान किया करता था और वह सुगना ही थी जो अक्सर सोनू के बचाव में आकर उस पागल मास्टर से सोनू के पक्ष में लड़ाई किया करती थी।

सोनू और सुगना अपने बचपन की बातों में मशगुल हो गए…

बचपन की यादों की सबसे बड़ी खूबसूरती यह होती है कि वह आपको तनाव मुक्त कर देते हैं सुगना ने सोनू के साथ आज दोपहर में जो सुहागरात मनाई थी उसे कहीं ना कहीं यह लग रहा था जैसे उसने लाली के साथ अन्याय किया था और उसके दिमाग में इस बात का तनाव अवश्य था।

परंतु अब सुगना और सोनू दोनों सहज हो चुके थे। जैसे ही सोनू की गाड़ी ने गांव में प्रवेश किया गरीब घरों के बच्चे उसके पीछे-पीछे दौड़ने लगे अपनी सुगना दीदी को वह बखूबी पहचानते थे परंतु शायद यह दौड़ सुगना और गाड़ी को और करीब से देखने के लिए थी उसे छूने के लिए थी उसे महसूस करने के लिए थी।

घर में पदमा सोनू और सुगना का इंतजार कर रही थी जिन्होंने आने में जरूर से ज्यादा विलंब कर दिया था पदमा चाह कर भी अपने गुस्से पर नियंत्रण नहीं रख पाई और बोल उठी…

“का करें लागला हा लोग?

सुगना क्या उत्तर देती जो वह कर रही थी उसे वह स्वयं और अपने विधाता के अलावा किसी से बता भी नहीं सकती थी। सुगना के उत्तर देने से पहले ड्राइवर बोल पड़ा.

“वापस बनारस पहुंचते समय रास्ता में जाम लगा था इसीलिए पहुंचने में देर हो गया”

सोनू और सुगना दोनों ने पदमा के पैर छुए और मां का दिल गदगद हो गया पदमा को सोनू और सुगना दोनों पर गर्व था। सोनू के अपने पैर पर खड़े होने तक सुगना ने घर के मुखिया की जिम्मेदारी निभाई थी और अब धीरे-धीरे सुगना स्वयं समर्पण कर सोनू के अधिपत्य में आ चुकी थी। परंतु वह सोनू की नजरों में तब भी आदरणीय थी अब भी आदरणीय थी…

लाली गांव की अन्य महिलाओं के साथ बैठी हंसी ठिठोली का आनंद ले रही थी सोनू और सुगना के आगमन की सूचना उस तक भी पहुंची परंतु सभी महिलाओं के बीच से उठकर आना उसके लिए संभव नहीं था।

धीरे-धीरे पूरा परिवार निर्धारित कार्यक्रमों में लग गया शाम के भोज भात के कार्यक्रम में आसपास के गांव के कई लोग आए और सोनू और लाली की अनोखी शादी के जश्न में शामिल हुए। उनके मन में भले ही यह विचार आ रहा हो कि इस बेमेल शादी का मकसद क्या था परंतु किसी ने भी इस पर प्रश्न चिन्ह उठाने की हिम्मत नहीं दिखाई और दिखता भी कैसे जब सरयू सिंह और सोनू जैसा प्रभावशाली व्यक्तित्व इस रिश्ते को स्वीकार रहा था उस पर प्रश्न करने का अब कोई औचित्य नहीं था।

शाम होते होते सारे रिश्तेदार अपना अपना बिस्तर पकड़ने लगे और सुगना का आंगन खाली होता चला गया। सोनू स्वयं पूरी तरह थक चुका था वह भी बाहर पड़े दलान में एक और चुपचाप जाकर लेट गया और न जाने कब उसकी आंख लग गई।

उधर लाली की सुहाग सेज तैयार हो चुकी थी सुगना और उसकी एक दो सहेलियों को छोड़कर सभी लोग सो चुके थे।

सुगना ने और और देर नहीं की वह सोनू के पास के और उसके माथे पर हाथ फेरते हुए बोला…

“सोनू उठ चल लाली इंतजार करत बिया”

सोनू अब तक गहरी नींद में जा चुका था उसके कानों में सुगना की आवाज पड़ तो रही थी परंतु जैसे वह कुछ भी सुनने के मूड में नहीं था उसने करवट ली और अपनी पीठ सुगना की तरफ कर दी।

सुगना ने अपनी उंगलियों का दबाव और बढ़ाया और एक बार फिर बेहद प्यार से बोला..

“ए सोनू उठ जो”

सोनू ने अपनी आंखें खोली सुगना को देखकर वह सारा माजरा समझ गया उसने अपनी आंखें खींचते हुए सुगना से कहा..

“लाली के मना ले ना दीदी ई काम त बनारस में भी हो सकेला”

सोनू ने पहले भी सुगना को यह बात समझने की कोशिश की थी कि वह आज की सुहागरात के कार्यक्रम को टाल दे क्योंकि वह आज पूरी तरह तृप्त था।

“अभी चुपचाप चल, लाली का सोची आज घर के बहू के रूप में पूजा कईले बिया इ रसम तोरा निभावे के पड़ी”

सुगना की आवाज की खनक से सोनू ने अंदाज कर लिया कि सुगना को इनकार कर पाना अब उसके बस में नहीं था वह उठा और यंत्रवत उसके पीछे-पीछे चलने लगा। अब भी उसके शरीर में फुर्ती नहीं दिखाई पड़ रही थी।

सुगना ने अपनी चाल धीमी की और सोनू से मुखातिब होते हुए बोली..

“आज दिन में जवन सिखवले रहनी उ लाली के भी सिखा दीहे बाद में उ हे काम देही”

सुगना ने सोनू को आज दिन में मनाए गए सुहागरात का मंजर याद दिला दिया था सुगना का यह रूप उसने पहली बार देखा था उन खूबसूरत पलों को याद कर सोनू के लंड में एक बार फिर हरकत हुई और सोनू का हथियार एक बार फिर प्रेम युद्ध में उतरने के लिए तैयार हो गया।

पर जो उत्सुकता और ताजगी सुहागरात का इंतजार कर रहे पुरुष में होनी चाहिए शायद उसमें अब भी कुछ कमी थी।

कमरे के दरवाजे तक पहुंचते पहुंचते सुगना ने सोनू के दोनों मजबूत बुझाओ को अपने कोमल हाथों से पकड़ा और उसके कान में फुसफुसाते हुए बोला..

“अभीयो मन नईखे करत ता बत्ती बुझा दीहे और सोच लीहे कि बिस्तर पर हम ही बानी..”

सुगना यह बात बोल तो गई पर मारे शर्म के वह खुद ही लाल हो गई उसने अपनी हथेलियां अपनी आंखों पर रख ली और अपना चेहरा छुपाने की कोशिश की पर सुगना की इस अदा ने सोनू की उत्तेजना को पूरी तरह जागृत कर दिया सोनू ने सुगना के माथे को चूमना चाहा परंतु सुगना में इस समय अपने अधरों को सोनू के लिए प्रस्तुत कर दिया सोनू और सुगना के अधर एक दूसरे से सट गए..

इसके पहले कि यह चुंबन कामुक रूप ले पता सुगना ने अपने होंठ अलग किए और बोला

“ जो हमारा भाभी के खुश कर दे..”

लाली अब सुगना की भाभी बन चुकी थी।

अंदर लाली भी आज सोनू को खुश करने के लिए बेताब थी। अंदर हो रही हलचल सुगना महसूस कर रही थी। सुगना कुछ देर दरवाजे पर रही पर शायद अंदर हो रही हरकतों से वह अपने बदन में उठ रही उत्तेजना को महसूस कर रही थी उसने वहां से हट जाना ही उचित समझा।

सोनू और लाली की सुहागरात भी कम यादगार नहीं थी। लाली ने भी सोनू को खुश करने में कोई कमी नहीं रखी। सोनू की दोनों बहने आज उस पर मेहरबान थी। सोनू का दिन और रात आज दोनों गुलजार थे। सोनू को अपने निर्णय पर कोई अफसोस नहीं था उसे पता था उसका आने वाला समय बेहद शानदार था। दो रूप लावण्य से भरी हुई युवतियां उसे सहज ही प्राप्त हो चुकी थी वह भी पूरे दिल से आत्मीयता रखने वाली।

कुछ ही दिनों में लाली अपने बाल बच्चों समेत जौनपुर शिफ्ट हो गई। सुगना अपने बनारस के घर में अपने बच्चों के साथ अकेले रहने लगी। सोनू हर हफ्ते सुगना से मिलने बनारस आता परंतु लाली उसका पीछा नहीं छोड़ती वह भी उसके साथ-साथ बनारस आ जाती।

सोनू और सुगना का मिलन कठिन हो गया था। और तो और कुछ दिनों बाद सुगना ने सोनू से बात कर सीतापुर की गृहस्थी को बंद करने का निर्णय ले लिया और अपनी मां पदमा को भी बनारस बुला लिया।


वैसे भी बनारस में सुगना अकेले रह रही थी मां पदमा के आ जाने से उसे भी एक साथ मिल गया था। परंतु पदमा की उपस्थिति ने सोनू और सुगना के मिलन में और भी बाधाएं डाल दीं। दिन बीतने लगे सुगना को भूल पाना सोनू के लिए इतना आसान नहीं था सुगना के साथ बिताए गए अंतरंग पल सोनू को बेचैन किए हुए थे। गर्दन का दाग पूरी तरह गायब था और सोनू दाग लगवाने को आतुर।

सोनू और सुगना के मन में मिलन की कशिश बढ़ रही थी।

उधर आश्रम में रतन और माधवी दोनों उन अनोखे कूपे में अपनी काम पिपाशा मिटा रहे थे। रतन को पता चल चुका था कि मोनी अब तक कुंवारी थी और वह आज तक मनी से नहीं मिल पाया था।

मातहत कभी किसी एक के नहीं होते। माधवी ने जिस प्रकार रतन के लड़कों से मिलकर उसकी चाल बाजी को नाकाम कर दिया था और मोनी के लिए निर्धारित कूपे में स्वयं प्रस्तुत होती रहीं थी उसी प्रकार एक दिन रतन ने उसकी चाल बाजी को पकड़ लिया और माधवी इस बार किसी ऐसे कूपे में जा पहुंची जहां रतन की जगह एक अनजान लड़का था। रतन ने उस लड़के को अपने दिशानिर्देश दे दिए थे। उसका पारितोषिक कूपे में उसका इंतजार कर रहा था।

माधवी खूबसूरत बदन की मालकिन तो थी ही और वह लड़का बेहद प्यासा था। माधवी के गदराए बदन को देखकर वह अपनी सुध बुध खो बैठा .. वह बेझिझक माधवी के बदन से खेलने लगा। उसे न तो कुपे के नियमों का ध्यान रहा और न हीं पिट जाने का खतरा..

माधवी अब तक जान चुकी थी कि वह गलत कूपे में आ गई है। उसने एक बार लाल बत्ती दबाकर उसे रोकना चाहा पर वह लड़का नहीं रुका।

जैसे ही उसने अपना लंड माधवी की बुर में घुसाया माधवी ने एक बार फिर लाल बटन दबाया लड़का एक पल के लिए रुका जरूर पर अगले ही पल उसने अपनी कमर आगे की और उसका लंड माधवी की बुर में जड़ तक धंस गया।

माधवी चाहकर भी लाल बटन दो बार नहीं दबा सकी। उसे पता था दो बार बटन दबाने पर वह लड़का नियामानुसार दंडित होता परंतु माधवी की भी पहचान उजागर हो जाती। माधवी बेचैन थी वह लड़का उसे लगातार चोदे जा रहा था। वह उसकी चूचियों को बेदर्दी से मीसता और लंड को पूरी ताकत से आगे पीछे करता।

माधवी ने खुद को इतना लाचार पहले कभी नहीं महसूस किया था। इतने बड़े आश्रम में इतने प्रतिष्ठित पद पर होने के बावजूद आज वह कूपे में एक रंडी की भांति चुद रही थी। उसका स्वाभिमान तार तार हो रहा था। वह अपने ईश्वर से इस बुरे समय को शीघ्र बीतने के लिए उन्होंने विनय कर रही थी। परंतु जब तक कूपे का निर्धारित समय खत्म होता उसे लड़के ने उसकी बुर में वीर्य वर्षा कर दी।

खेल खत्म हो चुका था वह लड़का कूपे से बाहर जा चुका था माधवी अपनी जांघों से बहते हुए उसे घृणित वीर्य को देख रही थी। आज उसने जो महसूस किया था वह निश्चित ही उसके किसी पाप का दंड था।

उधर रतन आज अपनी अप्सरा के कूपे में पहुंचने में कामयाब हो गया था। एक तरफ माधवी नरक झेल रही थी दूसरी तरफ रतन स्वर्ग के मुहाने पर खड़ा था।

रतन मोनी की सुंदरता का कायल हो गया। अब तक तो वह सुगना की बदन की कोमलता और उसके कटाव से बेहद प्रभावित था परंतु मोनी जैसी कुंवारी, कमसिन और सांचे में ढली युवती को देखकर वो सुगना की खूबसूरती भूल गया। उसे मोनी सुगना से भी ज्यादा पसंद आने लगी वैसे भी रतन के मन में सुगना को लेकर थोड़ी जलन भी थी और अपनी नाकामयाबी को लेकर चिंता भी सुगना को संतुष्ट नहीं कर पाना उसकी मर्दानगी पर एक ऐसा प्रश्न चिन्ह था जिसने उसे झिंझोड़कर रख दिया था और उसे इस आश्रम में आने पर मजबूर कर दिया था

समय बीत रहा था और मोनी पुरुष स्पर्श का इंतजार कर रही थी। अब तक जब भी वह कूपे में आई थी पुरुषों के हाथ उसके बदन से खेलने लगते थे परंतु आज कुछ अलग हो रहा था मोनी स्वयं अधीर हो रही थी बेचैनी में वह अपना थूक गुटकने का प्रयास कर रही थी। वह बार-बार अपनी जांघों को आगे पीछे करती और उसके कमर में बल पड़ जाते। मोनी का बलखाता शरीर पुरुष स्पर्श को आमंत्रित कर रहा था । परंतु रतन अब भी उसकी चूचियों पर निगाह गड़ाए हुए था मोनी की चूचियां स्पर्श के इंतजार में और भी तन चुकी थी। जितना ही मोनी पुरुष स्पर्श के बारे में सोचती उसके निप्पल उतने ही खड़े हो जाते… माधवी ने मोनी की चूचियों की मालिश कर करके उसे सुडौल आकार में ला दिया था और वह इस समय उसके सीने पर सांची के स्तूपों की भांति रतन को आकर्षित कर रही थी। मोनी की दूधिया चूचियां और शहतूत के जैसे उसके निप्पल ने रतन के दांतों को आपस में रगड़ने पर मजबूर कर दिया। चूचियों के नीचे उसकी कटवादार कमर और बीच में गहरी नाभि देखने लायक थी।


मोनी के लव हैंडल रतन के हाथों को आमंत्रित कर रहे थे की आओ मुझे पकड़ो मुझे थाम लो …जब रतन का ध्यान मोनी के वस्ति प्रदेश पर गया एक पल के लिए उसने आंखें बंद कर ली। मोनी रतन की साली थी और उस उम्र में कई वर्ष छोटी थी।

जब रतन का विवाह हुआ था उस समय मोनी किशोरी थी आज मोनी को इस रूप में चोरी चोरी देखते हुए रतन को ग्लानि भी हो रही थी पर वासना में लिप्त आदमी की बुद्धि मंद हो जाती है।

रतन उसके कामुक बदन की तुलना उसकी किशोरावस्था से करना लगा। विधि का विधान अनूठा था छोटी अमिया अब आम बन चुकी थी। जागो के बीच की छोटी सी दरार अब फूल चुकी थी ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे अंदर खिल रही कली बाहरी होठों को फैला कर अपनी उपस्थिति का एहसास करना चाह रही थी।


मोनी के अंदर के होंठ स्वयं झांकने को तैयार थे और बाहरी होठों पर अपना दबाव लगातार बनाये हुए थे।

मोनी स्वयं अपनी बुर की कली को खिलने से रोकना चाहती थी। उसकी पुष्ट जांघें उस कली के ऊपर आवरण देने की नाकाम कोशिश कर रही थी।

मोनी का वस्ति प्रदेश पूरी तरह चिकना था सुनहरे बाल गायब थे।माधवी के दिव्य कुंड का वह स्नान अनोखा था जिसने मोनी की बुर के बाल हमेशा के लिए गायब कर दिए थे।


रतन से अब और बर्दाश्त ना हुआ वह आगे बढ़ा और उसने मोनी के कमर के दोनों तरफ अपना हाथ रख कर मोनी को थाम लिया।

मोनी का सारा बदन गनगना गया। यद्यपि वह पुरुष स्पर्श की प्रतीक्षा वह कुछ मिनट से कर रही थी पर अचानक मजबूत खुरदुरे हाथों ने जब उसके कोमल बदन को स्पर्श किया उसके शरीर में कपकपाहट सी हुई उसके रोंगटे खड़े हो गए। चूचियों के छुपे रोमकूप अचानक एक-एक करके तेजी से उभरने लगे। रतन ने मोनी के शरीर में हो रही इस उत्तेजना को महसूस किया और वह मोनी के बदन को सहलाकर उन रोमकूपों को वापस शांत करने की कोशिश करने लगा।

मोनी ने ऐसा पहले कभी महसूस नहीं किया था वह बेचैन हो रही थी और ईश्वर से प्रार्थना कर रही थी कि निर्धारित समय जल्द से जल्द बीते और वह इस अद्भुत एहसास को अपने दिल में संजोए हुए वापस चले जाना चाहती थी। परंतु विधाता ने उसके भाग्य में और सुख लिखा था

रतन ने अपने स्पर्श का असर देख लिया था। उसके हाथ अब मोनी की पीठ को सहला रखे थे जैसे वह उसे सहज होने के लिए प्रेरित कर रहा हो। परंतु जैसे ही रतन का हाथ उसकी पीठ से सरकते हुए उसके नितंब्बों तक पहुंचा मोनी की उत्तेजना और बढ़ गई।


वह बार-बार अपने विधाता से इस पल को इसी अवस्था में रोक लेने की गुहार करती रही परंतु रतन के हाथ ना रुके उसने मोनी के नितंबों का जायजा लिया उसकी उंगलियां मोनी की गांड को छूते छूते रह गई.. मोनी स्वयं अपनी गांड को सिकोड कर रतन की उंगलियों के लिए अवरोध पैदा कर रही थी।

मोनी की सांसें तेज चल रही थीं .. समय तेजी से बीत रहा था रतन ने अपना चेहरा मोनी की जांघों से सटा दिया उसके बाल मोनी के प्रेम त्रिकोण पर पर गुदगुदी करने लगे। नाक लगभग मोनी की लिसलिसी दरारों से छू रही थी। रतन अपनी नासिका से अपनी साली के प्रेम रस को सूंघने की कोशिश कर रहा था। जैसे वह इस खुशबू से मोनी की सहमति का अंदाजा लगाना चाह रहा हो।

आज कई दिनों बाद मोनी की बुर लार टपकने को तैयार थी। जैसे ही रतन की नाक को मोनी की बुर से निकलती कामरस की बूंद का स्पर्श मिला उसने देर नहीं की और अपनी बड़ी सी जीभ निकाल कर मोनी की बुर के नीचे लगा दिया। जैसे वह इस अमृत की बूंद को व्यर्थ हो जाने से रोकना चाहता हो। रतन इतना अधीर हो गया था कि उसने बूंद के अपनी जीभ तक पहुंचाने का इंतजार ना किया परंतु अपनी लंबी जीभ से मोनी की बुर को फैलता हुआ स्वयं उस बूंद तक पहुंच गया।

मोनी की उत्तेजना बेकाबू हो रही थी काश वह अपना हाथ नीचे कर पाती। पर वह खुद भी यह तय नहीं कर पा रही थी कि वह उसे अनजान पुरुष को यह कार्य करने से रोके या प्रेरित करें। यह सुख अनोखा था।

रतन की जीभ पर अमृत की बूंद के अनोखे स्वाद ने रतन को बावला कर दिया। शेर के मुंह में खून लग चुका था। रतन मोनी की बुर से अमृत की बूंद खींचने के लिए अपने होठों से निर्वात कायम करने लगा जैसे वह मोनी की बुर का सारा रस खींच लेना चाहता हो वह कभी अपने होठों से बुर के कपाटों को फैलता और फिर अपनी जीभ से अंदर तक जाकर प्रेम रस की बूंदे चुराने को कोशिश करता।

उसकी जीभ को मोनी का कौमार्य प्रतिरोध दे रहा था.. वह पतली सी पारदर्शी झिल्ली अपनी स्वामिनी का कौमार्य बचाए रखने की पुरजोर कोशिश कर रही थी। रतन बार-बार अपनी जीभ से दस्तक देता पर वह कमजोरी सी झिल्ली उसके दस्तक को नकार देती।

वह मोनी की जादुई गुफा की प्रहरी थी। पर इस अपाधपी में मोनी बेहद उत्तेजित हो चुकी थी .. जब रतन की जीभ की दाल गुफा के अंदर ना गली तो उसने मोनी के सुनहरे दाने को अपनी लपेट में ले लिया…मोनी ने अपनी जांघों से रतन को दूर हटाने की कोशिश की पर रतन ने हार न मानी उसने अपनी जीभ उस सुनहरे दाने पर फिरानी शुरू कर दी।

मोनी का बदन कांपने लगा…नाभि के नीचे ऐंठन सी होने लगी। और फिर प्रेम रसधार फूट पड़ी पर रतन जिसने मटकी फोड़ने में जी तोड़ मेहनत की थी उसे अब रस पीने का भरपूर अवसर मिल रहा था..

मोनी स्खलित हो रही थी.. आज पहली बार उसे पुरुषों की उपयोगिता समझ में आ रही थी…काश वह उसे पुरुष को देख पाती उसे समझ पाती और उसका तहे दिल से धन्यवाद अदा कर पाती…

कूपे में रहने का निर्धारित दस मिनट का समय पूरा हो चुका था।

मोनी उस दिव्य पुरुष से मिलना चाहती थी जिसने उसे यह अलौकिक सुख दिया था..

शेष अगले भाग मे

भाग 138

क्या उसने लाली के साथ अन्याय किया था?

क्या सोनू को अपनी वासना की गिरफ्त में लेकर उसने लाली से विश्वासघात किया था?

सुगना अपने अंतर द्वंद से जूझ रही थी… एक तरफ वह लाली और सोनू को विवाह बंधन में बांधने का नेक काम कर खुद की पीठ थपथपा रही थी दूसरी तरफ लाली के हिस्से का सुहागरात स्वयं मना कर आत्मग्लानि से जूझ भी रही थी।


अचानक सुगना हड़बड़ा कर उठ गई… सोनू को अपने करीब पाकर वह खुश हो गई…उसने चैन की सांस ली पर वह अपने अंतर मन में फैसला कर चुकी थी…

अब आगे..

सुगना और सोनू अपने गांव सीतापुर की तरफ बढ़ रहे थे। जैसे-जैसे गांव करीब आ रहा था सुगना अपने बचपन को याद कर रही थी सोनू जब छोटा था वह उसका बेहद ख्याल रखती थी। कैसे पगडंडियों पर चलते समय वो इधर उधर भागा करता और वो उसे दौड़कर पकड़ती और वापस सही रास्ते पर चलने के लिए विवश करती कभी डांटती कभी फटकारती। जब सोनू गुस्सा होता उसे अपने आलिंगन में लेकर पुचकारती…

और आज वही छोटा सोनू आज एक पूर्ण मर्द बन चुका था। गांव का छोटा सा स्कूल आते ही सुगना ने चहकते हुए कहा.

“सोनू देख गांव के स्कूल”

“तोहरा पगला मास्टरवा याद बा…”

सोनू को पागल मास्टर भली भांति याद था जो उसे बचपन में बहुत परेशान किया करता था और वह सुगना ही थी जो अक्सर सोनू के बचाव में आकर उस पागल मास्टर से सोनू के पक्ष में लड़ाई किया करती थी।

सोनू और सुगना अपने बचपन की बातों में मशगुल हो गए…

बचपन की यादों की सबसे बड़ी खूबसूरती यह होती है कि वह आपको तनाव मुक्त कर देते हैं सुगना ने सोनू के साथ आज दोपहर में जो सुहागरात मनाई थी उसे कहीं ना कहीं यह लग रहा था जैसे उसने लाली के साथ अन्याय किया था और उसके दिमाग में इस बात का तनाव अवश्य था।

परंतु अब सुगना और सोनू दोनों सहज हो चुके थे। जैसे ही सोनू की गाड़ी ने गांव में प्रवेश किया गरीब घरों के बच्चे उसके पीछे-पीछे दौड़ने लगे अपनी सुगना दीदी को वह बखूबी पहचानते थे परंतु शायद यह दौड़ सुगना और गाड़ी को और करीब से देखने के लिए थी उसे छूने के लिए थी उसे महसूस करने के लिए थी।

घर में पदमा सोनू और सुगना का इंतजार कर रही थी जिन्होंने आने में जरूर से ज्यादा विलंब कर दिया था पदमा चाह कर भी अपने गुस्से पर नियंत्रण नहीं रख पाई और बोल उठी…

“का करें लागला हा लोग?

सुगना क्या उत्तर देती जो वह कर रही थी उसे वह स्वयं और अपने विधाता के अलावा किसी से बता भी नहीं सकती थी। सुगना के उत्तर देने से पहले ड्राइवर बोल पड़ा.

“वापस बनारस पहुंचते समय रास्ता में जाम लगा था इसीलिए पहुंचने में देर हो गया”

सोनू और सुगना दोनों ने पदमा के पैर छुए और मां का दिल गदगद हो गया पदमा को सोनू और सुगना दोनों पर गर्व था। सोनू के अपने पैर पर खड़े होने तक सुगना ने घर के मुखिया की जिम्मेदारी निभाई थी और अब धीरे-धीरे सुगना स्वयं समर्पण कर सोनू के अधिपत्य में आ चुकी थी। परंतु वह सोनू की नजरों में तब भी आदरणीय थी अब भी आदरणीय थी…

लाली गांव की अन्य महिलाओं के साथ बैठी हंसी ठिठोली का आनंद ले रही थी सोनू और सुगना के आगमन की सूचना उस तक भी पहुंची परंतु सभी महिलाओं के बीच से उठकर आना उसके लिए संभव नहीं था।

धीरे-धीरे पूरा परिवार निर्धारित कार्यक्रमों में लग गया शाम के भोज भात के कार्यक्रम में आसपास के गांव के कई लोग आए और सोनू और लाली की अनोखी शादी के जश्न में शामिल हुए। उनके मन में भले ही यह विचार आ रहा हो कि इस बेमेल शादी का मकसद क्या था परंतु किसी ने भी इस पर प्रश्न चिन्ह उठाने की हिम्मत नहीं दिखाई और दिखता भी कैसे जब सरयू सिंह और सोनू जैसा प्रभावशाली व्यक्तित्व इस रिश्ते को स्वीकार रहा था उस पर प्रश्न करने का अब कोई औचित्य नहीं था।

शाम होते होते सारे रिश्तेदार अपना अपना बिस्तर पकड़ने लगे और सुगना का आंगन खाली होता चला गया। सोनू स्वयं पूरी तरह थक चुका था वह भी बाहर पड़े दलान में एक और चुपचाप जाकर लेट गया और न जाने कब उसकी आंख लग गई।

उधर लाली की सुहाग सेज तैयार हो चुकी थी सुगना और उसकी एक दो सहेलियों को छोड़कर सभी लोग सो चुके थे।

सुगना ने और और देर नहीं की वह सोनू के पास के और उसके माथे पर हाथ फेरते हुए बोला…

“सोनू उठ चल लाली इंतजार करत बिया”

सोनू अब तक गहरी नींद में जा चुका था उसके कानों में सुगना की आवाज पड़ तो रही थी परंतु जैसे वह कुछ भी सुनने के मूड में नहीं था उसने करवट ली और अपनी पीठ सुगना की तरफ कर दी।

सुगना ने अपनी उंगलियों का दबाव और बढ़ाया और एक बार फिर बेहद प्यार से बोला..

“ए सोनू उठ जो”

सोनू ने अपनी आंखें खोली सुगना को देखकर वह सारा माजरा समझ गया उसने अपनी आंखें खींचते हुए सुगना से कहा..

“लाली के मना ले ना दीदी ई काम त बनारस में भी हो सकेला”

सोनू ने पहले भी सुगना को यह बात समझने की कोशिश की थी कि वह आज की सुहागरात के कार्यक्रम को टाल दे क्योंकि वह आज पूरी तरह तृप्त था।

“अभी चुपचाप चल, लाली का सोची आज घर के बहू के रूप में पूजा कईले बिया इ रसम तोरा निभावे के पड़ी”

सुगना की आवाज की खनक से सोनू ने अंदाज कर लिया कि सुगना को इनकार कर पाना अब उसके बस में नहीं था वह उठा और यंत्रवत उसके पीछे-पीछे चलने लगा। अब भी उसके शरीर में फुर्ती नहीं दिखाई पड़ रही थी।

सुगना ने अपनी चाल धीमी की और सोनू से मुखातिब होते हुए बोली..

“आज दिन में जवन सिखवले रहनी उ लाली के भी सिखा दीहे बाद में उ हे काम देही”

सुगना ने सोनू को आज दिन में मनाए गए सुहागरात का मंजर याद दिला दिया था सुगना का यह रूप उसने पहली बार देखा था उन खूबसूरत पलों को याद कर सोनू के लंड में एक बार फिर हरकत हुई और सोनू का हथियार एक बार फिर प्रेम युद्ध में उतरने के लिए तैयार हो गया।

पर जो उत्सुकता और ताजगी सुहागरात का इंतजार कर रहे पुरुष में होनी चाहिए शायद उसमें अब भी कुछ कमी थी।

कमरे के दरवाजे तक पहुंचते पहुंचते सुगना ने सोनू के दोनों मजबूत बुझाओ को अपने कोमल हाथों से पकड़ा और उसके कान में फुसफुसाते हुए बोला..

“अभीयो मन नईखे करत ता बत्ती बुझा दीहे और सोच लीहे कि बिस्तर पर हम ही बानी..”

सुगना यह बात बोल तो गई पर मारे शर्म के वह खुद ही लाल हो गई उसने अपनी हथेलियां अपनी आंखों पर रख ली और अपना चेहरा छुपाने की कोशिश की पर सुगना की इस अदा ने सोनू की उत्तेजना को पूरी तरह जागृत कर दिया सोनू ने सुगना के माथे को चूमना चाहा परंतु सुगना में इस समय अपने अधरों को सोनू के लिए प्रस्तुत कर दिया सोनू और सुगना के अधर एक दूसरे से सट गए..

इसके पहले कि यह चुंबन कामुक रूप ले पता सुगना ने अपने होंठ अलग किए और बोला

“ जो हमारा भाभी के खुश कर दे..”

लाली अब सुगना की भाभी बन चुकी थी।

अंदर लाली भी आज सोनू को खुश करने के लिए बेताब थी। अंदर हो रही हलचल सुगना महसूस कर रही थी। सुगना कुछ देर दरवाजे पर रही पर शायद अंदर हो रही हरकतों से वह अपने बदन में उठ रही उत्तेजना को महसूस कर रही थी उसने वहां से हट जाना ही उचित समझा।

सोनू और लाली की सुहागरात भी कम यादगार नहीं थी। लाली ने भी सोनू को खुश करने में कोई कमी नहीं रखी। सोनू की दोनों बहने आज उस पर मेहरबान थी। सोनू का दिन और रात आज दोनों गुलजार थे। सोनू को अपने निर्णय पर कोई अफसोस नहीं था उसे पता था उसका आने वाला समय बेहद शानदार था। दो रूप लावण्य से भरी हुई युवतियां उसे सहज ही प्राप्त हो चुकी थी वह भी पूरे दिल से आत्मीयता रखने वाली।

कुछ ही दिनों में लाली अपने बाल बच्चों समेत जौनपुर शिफ्ट हो गई। सुगना अपने बनारस के घर में अपने बच्चों के साथ अकेले रहने लगी। सोनू हर हफ्ते सुगना से मिलने बनारस आता परंतु लाली उसका पीछा नहीं छोड़ती वह भी उसके साथ-साथ बनारस आ जाती।

सोनू और सुगना का मिलन कठिन हो गया था। और तो और कुछ दिनों बाद सुगना ने सोनू से बात कर सीतापुर की गृहस्थी को बंद करने का निर्णय ले लिया और अपनी मां पदमा को भी बनारस बुला लिया।


वैसे भी बनारस में सुगना अकेले रह रही थी मां पदमा के आ जाने से उसे भी एक साथ मिल गया था। परंतु पदमा की उपस्थिति ने सोनू और सुगना के मिलन में और भी बाधाएं डाल दीं। दिन बीतने लगे सुगना को भूल पाना सोनू के लिए इतना आसान नहीं था सुगना के साथ बिताए गए अंतरंग पल सोनू को बेचैन किए हुए थे। गर्दन का दाग पूरी तरह गायब था और सोनू दाग लगवाने को आतुर।

सोनू और सुगना के मन में मिलन की कशिश बढ़ रही थी।

उधर आश्रम में रतन और माधवी दोनों उन अनोखे कूपे में अपनी काम पिपाशा मिटा रहे थे। रतन को पता चल चुका था कि मोनी अब तक कुंवारी थी और वह आज तक मनी से नहीं मिल पाया था।

मातहत कभी किसी एक के नहीं होते। माधवी ने जिस प्रकार रतन के लड़कों से मिलकर उसकी चाल बाजी को नाकाम कर दिया था और मोनी के लिए निर्धारित कूपे में स्वयं प्रस्तुत होती रहीं थी उसी प्रकार एक दिन रतन ने उसकी चाल बाजी को पकड़ लिया और माधवी इस बार किसी ऐसे कूपे में जा पहुंची जहां रतन की जगह एक अनजान लड़का था। रतन ने उस लड़के को अपने दिशानिर्देश दे दिए थे। उसका पारितोषिक कूपे में उसका इंतजार कर रहा था।

माधवी खूबसूरत बदन की मालकिन तो थी ही और वह लड़का बेहद प्यासा था। माधवी के गदराए बदन को देखकर वह अपनी सुध बुध खो बैठा .. वह बेझिझक माधवी के बदन से खेलने लगा। उसे न तो कुपे के नियमों का ध्यान रहा और न हीं पिट जाने का खतरा..

माधवी अब तक जान चुकी थी कि वह गलत कूपे में आ गई है। उसने एक बार लाल बत्ती दबाकर उसे रोकना चाहा पर वह लड़का नहीं रुका।

जैसे ही उसने अपना लंड माधवी की बुर में घुसाया माधवी ने एक बार फिर लाल बटन दबाया लड़का एक पल के लिए रुका जरूर पर अगले ही पल उसने अपनी कमर आगे की और उसका लंड माधवी की बुर में जड़ तक धंस गया।

माधवी चाहकर भी लाल बटन दो बार नहीं दबा सकी। उसे पता था दो बार बटन दबाने पर वह लड़का नियामानुसार दंडित होता परंतु माधवी की भी पहचान उजागर हो जाती। माधवी बेचैन थी वह लड़का उसे लगातार चोदे जा रहा था। वह उसकी चूचियों को बेदर्दी से मीसता और लंड को पूरी ताकत से आगे पीछे करता।

माधवी ने खुद को इतना लाचार पहले कभी नहीं महसूस किया था। इतने बड़े आश्रम में इतने प्रतिष्ठित पद पर होने के बावजूद आज वह कूपे में एक रंडी की भांति चुद रही थी। उसका स्वाभिमान तार तार हो रहा था। वह अपने ईश्वर से इस बुरे समय को शीघ्र बीतने के लिए उन्होंने विनय कर रही थी। परंतु जब तक कूपे का निर्धारित समय खत्म होता उसे लड़के ने उसकी बुर में वीर्य वर्षा कर दी।

खेल खत्म हो चुका था वह लड़का कूपे से बाहर जा चुका था माधवी अपनी जांघों से बहते हुए उसे घृणित वीर्य को देख रही थी। आज उसने जो महसूस किया था वह निश्चित ही उसके किसी पाप का दंड था।

उधर रतन आज अपनी अप्सरा के कूपे में पहुंचने में कामयाब हो गया था। एक तरफ माधवी नरक झेल रही थी दूसरी तरफ रतन स्वर्ग के मुहाने पर खड़ा था।

रतन मोनी की सुंदरता का कायल हो गया। अब तक तो वह सुगना की बदन की कोमलता और उसके कटाव से बेहद प्रभावित था परंतु मोनी जैसी कुंवारी, कमसिन और सांचे में ढली युवती को देखकर वो सुगना की खूबसूरती भूल गया। उसे मोनी सुगना से भी ज्यादा पसंद आने लगी वैसे भी रतन के मन में सुगना को लेकर थोड़ी जलन भी थी और अपनी नाकामयाबी को लेकर चिंता भी सुगना को संतुष्ट नहीं कर पाना उसकी मर्दानगी पर एक ऐसा प्रश्न चिन्ह था जिसने उसे झिंझोड़कर रख दिया था और उसे इस आश्रम में आने पर मजबूर कर दिया था

समय बीत रहा था और मोनी पुरुष स्पर्श का इंतजार कर रही थी। अब तक जब भी वह कूपे में आई थी पुरुषों के हाथ उसके बदन से खेलने लगते थे परंतु आज कुछ अलग हो रहा था मोनी स्वयं अधीर हो रही थी बेचैनी में वह अपना थूक गुटकने का प्रयास कर रही थी। वह बार-बार अपनी जांघों को आगे पीछे करती और उसके कमर में बल पड़ जाते। मोनी का बलखाता शरीर पुरुष स्पर्श को आमंत्रित कर रहा था । परंतु रतन अब भी उसकी चूचियों पर निगाह गड़ाए हुए था मोनी की चूचियां स्पर्श के इंतजार में और भी तन चुकी थी। जितना ही मोनी पुरुष स्पर्श के बारे में सोचती उसके निप्पल उतने ही खड़े हो जाते… माधवी ने मोनी की चूचियों की मालिश कर करके उसे सुडौल आकार में ला दिया था और वह इस समय उसके सीने पर सांची के स्तूपों की भांति रतन को आकर्षित कर रही थी। मोनी की दूधिया चूचियां और शहतूत के जैसे उसके निप्पल ने रतन के दांतों को आपस में रगड़ने पर मजबूर कर दिया। चूचियों के नीचे उसकी कटवादार कमर और बीच में गहरी नाभि देखने लायक थी।


मोनी के लव हैंडल रतन के हाथों को आमंत्रित कर रहे थे की आओ मुझे पकड़ो मुझे थाम लो …जब रतन का ध्यान मोनी के वस्ति प्रदेश पर गया एक पल के लिए उसने आंखें बंद कर ली। मोनी रतन की साली थी और उस उम्र में कई वर्ष छोटी थी।

जब रतन का विवाह हुआ था उस समय मोनी किशोरी थी आज मोनी को इस रूप में चोरी चोरी देखते हुए रतन को ग्लानि भी हो रही थी पर वासना में लिप्त आदमी की बुद्धि मंद हो जाती है।

रतन उसके कामुक बदन की तुलना उसकी किशोरावस्था से करना लगा। विधि का विधान अनूठा था छोटी अमिया अब आम बन चुकी थी। जागो के बीच की छोटी सी दरार अब फूल चुकी थी ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे अंदर खिल रही कली बाहरी होठों को फैला कर अपनी उपस्थिति का एहसास करना चाह रही थी।


मोनी के अंदर के होंठ स्वयं झांकने को तैयार थे और बाहरी होठों पर अपना दबाव लगातार बनाये हुए थे।

मोनी स्वयं अपनी बुर की कली को खिलने से रोकना चाहती थी। उसकी पुष्ट जांघें उस कली के ऊपर आवरण देने की नाकाम कोशिश कर रही थी।

मोनी का वस्ति प्रदेश पूरी तरह चिकना था सुनहरे बाल गायब थे।माधवी के दिव्य कुंड का वह स्नान अनोखा था जिसने मोनी की बुर के बाल हमेशा के लिए गायब कर दिए थे।


रतन से अब और बर्दाश्त ना हुआ वह आगे बढ़ा और उसने मोनी के कमर के दोनों तरफ अपना हाथ रख कर मोनी को थाम लिया।

मोनी का सारा बदन गनगना गया। यद्यपि वह पुरुष स्पर्श की प्रतीक्षा वह कुछ मिनट से कर रही थी पर अचानक मजबूत खुरदुरे हाथों ने जब उसके कोमल बदन को स्पर्श किया उसके शरीर में कपकपाहट सी हुई उसके रोंगटे खड़े हो गए। चूचियों के छुपे रोमकूप अचानक एक-एक करके तेजी से उभरने लगे। रतन ने मोनी के शरीर में हो रही इस उत्तेजना को महसूस किया और वह मोनी के बदन को सहलाकर उन रोमकूपों को वापस शांत करने की कोशिश करने लगा।

मोनी ने ऐसा पहले कभी महसूस नहीं किया था वह बेचैन हो रही थी और ईश्वर से प्रार्थना कर रही थी कि निर्धारित समय जल्द से जल्द बीते और वह इस अद्भुत एहसास को अपने दिल में संजोए हुए वापस चले जाना चाहती थी। परंतु विधाता ने उसके भाग्य में और सुख लिखा था

रतन ने अपने स्पर्श का असर देख लिया था। उसके हाथ अब मोनी की पीठ को सहला रखे थे जैसे वह उसे सहज होने के लिए प्रेरित कर रहा हो। परंतु जैसे ही रतन का हाथ उसकी पीठ से सरकते हुए उसके नितंब्बों तक पहुंचा मोनी की उत्तेजना और बढ़ गई।


वह बार-बार अपने विधाता से इस पल को इसी अवस्था में रोक लेने की गुहार करती रही परंतु रतन के हाथ ना रुके उसने मोनी के नितंबों का जायजा लिया उसकी उंगलियां मोनी की गांड को छूते छूते रह गई.. मोनी स्वयं अपनी गांड को सिकोड कर रतन की उंगलियों के लिए अवरोध पैदा कर रही थी।

मोनी की सांसें तेज चल रही थीं .. समय तेजी से बीत रहा था रतन ने अपना चेहरा मोनी की जांघों से सटा दिया उसके बाल मोनी के प्रेम त्रिकोण पर पर गुदगुदी करने लगे। नाक लगभग मोनी की लिसलिसी दरारों से छू रही थी। रतन अपनी नासिका से अपनी साली के प्रेम रस को सूंघने की कोशिश कर रहा था। जैसे वह इस खुशबू से मोनी की सहमति का अंदाजा लगाना चाह रहा हो।

आज कई दिनों बाद मोनी की बुर लार टपकने को तैयार थी। जैसे ही रतन की नाक को मोनी की बुर से निकलती कामरस की बूंद का स्पर्श मिला उसने देर नहीं की और अपनी बड़ी सी जीभ निकाल कर मोनी की बुर के नीचे लगा दिया। जैसे वह इस अमृत की बूंद को व्यर्थ हो जाने से रोकना चाहता हो। रतन इतना अधीर हो गया था कि उसने बूंद के अपनी जीभ तक पहुंचाने का इंतजार ना किया परंतु अपनी लंबी जीभ से मोनी की बुर को फैलता हुआ स्वयं उस बूंद तक पहुंच गया।

मोनी की उत्तेजना बेकाबू हो रही थी काश वह अपना हाथ नीचे कर पाती। पर वह खुद भी यह तय नहीं कर पा रही थी कि वह उसे अनजान पुरुष को यह कार्य करने से रोके या प्रेरित करें। यह सुख अनोखा था।

रतन की जीभ पर अमृत की बूंद के अनोखे स्वाद ने रतन को बावला कर दिया। शेर के मुंह में खून लग चुका था। रतन मोनी की बुर से अमृत की बूंद खींचने के लिए अपने होठों से निर्वात कायम करने लगा जैसे वह मोनी की बुर का सारा रस खींच लेना चाहता हो वह कभी अपने होठों से बुर के कपाटों को फैलता और फिर अपनी जीभ से अंदर तक जाकर प्रेम रस की बूंदे चुराने को कोशिश करता।

उसकी जीभ को मोनी का कौमार्य प्रतिरोध दे रहा था.. वह पतली सी पारदर्शी झिल्ली अपनी स्वामिनी का कौमार्य बचाए रखने की पुरजोर कोशिश कर रही थी। रतन बार-बार अपनी जीभ से दस्तक देता पर वह कमजोरी सी झिल्ली उसके दस्तक को नकार देती।

वह मोनी की जादुई गुफा की प्रहरी थी। पर इस अपाधपी में मोनी बेहद उत्तेजित हो चुकी थी .. जब रतन की जीभ की दाल गुफा के अंदर ना गली तो उसने मोनी के सुनहरे दाने को अपनी लपेट में ले लिया…मोनी ने अपनी जांघों से रतन को दूर हटाने की कोशिश की पर रतन ने हार न मानी उसने अपनी जीभ उस सुनहरे दाने पर फिरानी शुरू कर दी।

मोनी का बदन कांपने लगा…नाभि के नीचे ऐंठन सी होने लगी। और फिर प्रेम रसधार फूट पड़ी पर रतन जिसने मटकी फोड़ने में जी तोड़ मेहनत की थी उसे अब रस पीने का भरपूर अवसर मिल रहा था..

मोनी स्खलित हो रही थी.. आज पहली बार उसे पुरुषों की उपयोगिता समझ में आ रही थी…काश वह उसे पुरुष को देख पाती उसे समझ पाती और उसका तहे दिल से धन्यवाद अदा कर पाती…

कूपे में रहने का निर्धारित दस मिनट का समय पूरा हो चुका था।

मोनी उस दिव्य पुरुष से मिलना चाहती थी जिसने उसे यह अलौकिक सुख दिया था..

शेष अगले भाग में
Bhadiya👌👌👌 next update ka intezar rahega
 
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arushi_dayal

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सच में सुगना अपने भाई और लाली का कितना ख्याल रखती है…..

लाली कर रही इंतज़ार तेरा कमरे में जाओ भाई
सोच के मुझे ख्यालो में तुम उसकी करो चुदाई
 

Lovely Anand

Love is life
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भाग 139

मोनी का बदन कांपने लगा…नाभि के नीचे ऐंठन सी होने लगी। और फिर प्रेम रसधार फूट पड़ी पर रतन जिसने मटकी फोड़ने में जी तोड़ मेहनत की थी उसे अब रस पीने का भरपूर अवसर मिल रहा था..

मोनी स्खलित हो रही थी.. आज पहली बार उसे पुरुषों की उपयोगिता समझ में आ रही थी…काश वह उसे पुरुष को देख पाती उसे समझ पाती और उसका तहे दिल से धन्यवाद अदा कर पाती…

कूपे में रहने का निर्धारित दस मिनट का समय पूरा हो चुका था।


मोनी उस दिव्य पुरुष से मिलना चाहती थी जिसने उसे यह अलौकिक सुख दिया था..

अब आगे..


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उधर अमेरिका में सोनी और विकास वासना की नई ऊंचाइयां छू रहे थे। ब्लू फिल्मों की सीडी अब उनके बेडरूम का आम हिस्सा हो चुकी थी। विकास सोनी को तरह-तरह के कामुक प्रयोग के लिए प्रेरित करता कुछ तो सोनी मान जाती और कुछ के लिए साफ मना कर देती। सोनी का शरीर लचीला था उसे नए नए आसान प्रयोग करने मे विशेष दिक्कत महसूस नहीं होती थी पर काम संबंधों में गुदाद्वार का प्रयोग उसे कतई पसंद नहीं था।

जब ब्लू फिल्मों का असर धीरे-धीरे विकास और सोनी में उत्तेजना जागृत करने में नाकाम रहा तो विकास ने एक रात नई तरकीब लगाई…

हमेशा की भांति टीवी पर ब्लू फिल्म चल रही थी। एक नीग्रो एक सुंदर गोरी अंग्रेजन को चोदने के लिए उसकी पैंटी उतार रहा था । स्क्रीन पर उसकी गोरी बेदाग बुर को देख सोनी बोल उठी…

“ हम इंडियन्स का इतना गोरा क्यों नहीं होता?”


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ऐसा नहीं था कि सोनी गोरी नहीं थी पर फिर भी उसके निचले और ऊपरी होंठो में अंतर स्पष्ट था..

सोनी के इस प्रश्न पर विकास द्रवित हो गया उसे सोनी पर बेहद प्यार आया और उसने तुरंत नीचे खिसक कर सोनी की जांघों के बीच लिसलिसी बुर को चूम लिया और बोला

“मेरी जान तुम्हारी मुनिया तो इतनी जानदार है कि साठ साल का बूढ़ा भी देख ले तो जवान हो जाए”

सोनी के दिमाग में तुरंत ही सरयू सिंह का चेहरा घूम गया।

सोनी ने अपना ध्यान भटकाया और विकास का मन टटोलने के लिए मुस्कुराते हुए पूछा

“कौन बूढ़ा?” यदि कहीं गलती से विकास सरयू सिंह का नाम ले लेता तो शायद सोनी उसे कतई नहीं रोकती। पर विकास सपने में भी सरयू सिंह को अपनी कामुक बातों के बीच में नहीं ला सकता था कारण स्पष्ट था सरयू सिंह के बारे में इस तरह की बात सोचना भी पाप था और विकास सोनी की मनोदशा से पूरी तरह अनभिज्ञ था। उसने अपनी बात को बदला और सोनी की आंखों में देखते हुए बोला

“और यदि ये नीग्रो देख ले तो..”

सोनी शर्मा गई…उसका पति जो कल्पना कर रहा था वो निराली थी।

“हट आप भी ना…” सोनी ने अपना चेहरा अपने हाथों से छुपाने की कोशिश पर जांघो को फैला दिया।

अचानक विकास की उत्तेजना को एक जोरदार किक मिली उसने अपनी बड़ी सी जीभ निकाली और सोनी के बुर को नीचे से चाटते हुए उसके दाने तक आ गया। उसकी जीभ सोनी के बुर के होठों को फैलाने में कामयाब रही थी और उसे इसका पारितोषिक रसीले कामरस के रूप में मिला।

सोनी भी सिहर उठी..

अचानक उसने टीवी पर कराहने की आवाज सुनी..


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उसने देखा वह नीग्रो आईने मोटे लंड के फूले हुए सुपाड़े को उस गोरी लड़की के बुर पर रगड़ रहा था जैसे ही वह लंड को अंदर घुसाने को कोशिश करता वो लड़की चिहुंक उठती और उसकी कराह निकल जाती।

सोनी अपनी कल्पना में उस लड़की की जगह ले चुकी थी। उसने अपनी बुर के कसाव का अंदाजा लिया जिसका आभाष विकास को भी हुआ को अभी भी उसकी बुर को चूम चाट रहा था। बुर के संकुचन को महसूस कर विकास ने सोनी को बुर को और जोर से चूस दिया..

सोनी कराह उठी और बोली..

“एजी तनी धीरे से ….दुखाता”

सोनी के मुंह से भोजपुरी के कामुक शब्द सुनकर विकास ने सोनी की तरफ देखा …यह अनुभव विकास के लिए नया था।

सोनी खुद शर्मशार थी सरयू सिंह उसके दिमाग पर इस कदर छ जाएंगे उसे अंदाजा नहीं था।

वह नीग्रो अब अधीर हो रहा था। जब जब वह उस अंग्रेजन के बुर में अपना लंड घुसता वो अपने हाथों से उसे रोकने की कोशिश करती पर अब सब्र का बांध टूटने वाल था।

सोनी की मनोदशा कमोबेश उसी लड़की की थी।तभी उस नीग्रो ने उस अंग्रेजन के मुंह पर हांथ रखा और अपना काली मूसल अंदर ठास दिया..

अंग्रेजन की आवाज तो बाहर नहीं आई पर आंखे बाहर आने लगी। उसके चेहरे पर पीड़ा के भाव आ गए


एक पल के लिए सोनी को लगा ये बेमेल मिलन हकीकत में संभव नहीं। शायद इसीलिए सरयू चाचा आज तक कुवारे थे। उस भीषण लंड को अपने भीतर लेना …सोनी के लिए ये रोंगटे खड़े कर देने वाला था।

फिल्मी नाटकीय होती है अभी तक पीड़ा में कर रही अंग्रेजन धीरे-धीरे सामान्य हो चुकी थी नीग्रो उसकी बुर में लंड अब भी पूरा नहीं घुस पाया था और शायद यह मुमकिन भी नहीं था यदि नीग्रो इसे और ज्यादा घुसने का प्रयास करता तो निश्चित ही अंग्रेजन की आतें बाहर आने लगती।

गोरी गुलाबी बुर से काला मुसल जब बाहर आता सोनी उस चमकते हुए लंड को देखकर रोमांचित हों जाती. विकास सोनी के चेहरे के भावों को पढ़ने की कोशिश कर रहा था…

सोनी ने उसे अपने चेहरे की तरफ देखते हुए ताड़ लिया और मुस्कुराते हुए बोली

“मुझे क्या देख रहे हो टीवी में देखो..”

“क्या उसे लड़की को तकलीफ नहीं हो रही होगी?” विकास ने पूछा

सोनी मुस्कुराते हुए बोली

“अभी तो उसके हाव-भाव देखकर ऐसा लग तो नहीं रहा”

“क्या तुम्हारी मुनिया भी इतना बड़ा…”विकास अपनी बात कंप्लीट करने की हिम्मत नहीं जुटा पाया परंतु सोनी ने उसकी बात समझ ली और उसे उठाते हुए बोली

“क्या-क्या क्या बोलना चाह रहे हो साफ-साफ बोलो”

“क्या इतना मोटा और बड़ा सामान इस कसी हुई मुनिया में जा सकता है? विकास ने हिम्मत जुटा के आखिर अपनी बात कह ही दी और यह बात कहते हुए उसके हाथ सोनी की बुर पर चले गए बुर की लार ने विकास की उंगलियों को गीला कर दिया..

सोनी उत्तर देने की स्थिति में नहीं थी उसने विकास को अपने आलिंगन में लेने की कोशिश की विकास सोनी का इशारा समझ चुका था। उसने अपना लंड सोने की बुर में डाल दिया पर यह क्या सोनी की बुर आज पूरी तरह चिपचिपी और फिसलन भरी थी शायद सोनी जरूरत से ज्यादा उत्तेजित थी। विकास का खुद का लंड आज पहली बार छोटा महसूस हो रहा था। सोनी भी अपने भीतर कुछ खालीपन महसूस कर रही थी और थोड़ा से शिथिल महसूस कर रही थी।

विकास ने सोनी को और भी उत्तेजित करते हुए कहा..

“एक बार सोच कर देख कि वो काला मुसल तेरे ही अंदर है…”

“अरे वाह ये तुम कह रहें हो” सोनी को यकीन नहीं हो रहा था।

“ अरे सोचने को ही तो कह रहा हूं ..कौन सा वो नीग्रो तुम्हे चो……द रहा है..” विकास अब स्वयं बहुत उत्तेजित हो चुका था अपनी कल्पनाओं में वह स्वयं सोनी को उस नीग्रो से चुदवाने हुए देख रहा था।

सोनी अब भी विकास को छेड़ रही थी .. उसने अपनी कमर हिलाते हुए विकास से कहा..

“चलो मान लिया पर उस समय तुम कहां हो….”.

कल्पना को सच में परिवर्तित करना कठिन था इतना तो विकास में भी नहीं सोचा था।

नीचे सोनी की बुर की चुदाई जारी रही थी…विकास हंस रहा था और पूरी ताकत से सोनी को चोद रहा था.. अब जब सोनी उसका साथ दे ही रही थी तो उसने आगे बढ़ते हुए बोला..

“मैं अपनी सोनी के पास ही रहूंगा..”

सोनी उस दृश्य की कल्पना करने लगी…जब सरयू सिंह उसे विकास की उपस्थिति में ही चोद रहे हों।

बेहद बेढंगी और बेहद वाहियात कल्पना थी सोनी की । पर कामुक कल्पनाओं का सबसे वाहियात रूप चरमोत्कर्ष के दौरान ही होता है सोनी और विकास अपनी-अपनी कल्पनाओं में उस दृश्य की कल्पना कर रहे थे। पर दोनों की कल्पनाओं में एक ही चीज कॉमन थी वह था सोनी की कचनार बुर में वह काला मुसल जैसा लंड..

वासना अपने फोन पर थी और थोड़ी ही देर में सोनी और विकास पूरी तृप्ति के साथ झड़ने लगे। दोनों पसीने से तरबतर हो चुके थे। सेक्स का ऐसा क्लाइमैक्स कई दिनों बाद आया था।

दोनों की सांसे सामान्य होते ही…विकास ने सोनी को छेड़ते हुए कहा..

“आज तो मजा आ गया काला मुसल है तो जोरदार यह सीडी संभाल कर रखना..”

सोनी ने अपनी आंखें बंद करते हुए कहा “ हट क्या-क्या सोचते हैं और मुझे भी सोचने पर मजबूर करते हैं”

विकास ने सोनी के होठों को चूम लिया और सोनी ने भी प्रत्युत्तर में विकास को अपने फ्रेंच किस पाश में बांध लिया।

सोनी और विकास सुखद दांपत्य जीवन जी रहे थे। सोनी सोनी अब पूरी तरह गदरा गई थी.. चूचियां भी फुल कर 36 का आकार ले चुकी थी.. और नितंब भी सीने की बराबरी कर रहे थे। पर कमर को सोनी ने बढ़ने नहीं दिया था आज भी वह उसी प्रकार एक्सरसाइज कर अपने शरीर की कमानीयता बनाए रखने में कामयाब थी। सोनी की सबसे बड़ी अमानत थी उसके भरे भरे नितंब जो बरबस ही सबका मन मोह लेते। एक अजब सी कशिश थी।

सोनी जब सड़क पर चलती युवा मर्द शायद ही उसे कभी क्रॉस करते और यदि करते भी तो यह तय था की या तो वह ब्रिस्क वॉक कर रहे होते या कहीं जल्दी में जा रहे होते। पर समानता सोनी पुरुषों की चाल को धीमा करने में अक्सर कामयाब रहती। सेक्स के दौरान विकास कभी-कभी उसे नीग्रो और उसके काले लंड का जिक्र करता कभी-कभी सोनी उसे रोकती पर अधिकतर दोनों उसे अपनी उत्तेजना जागृत करने के लिए गाहे बगाहे उसे बीच ले ही आते.. और अपना चरमोत्कर्ष बेहतर बना लेते.

सुखद समय जल्दी बीत जाता है और अब विकास और सोनी के विवाह को लगभग 1 वर्ष होने वाले थे.. आगे की कहानी विकास से ही सुनते हैं..

(मैं विकास)

मुझे साउथ अफ्रीका जाना था वहां पर मेरा तीन दिन का सेमिनार था मैंने जब यह बात सोनी को बताई वह बहुत खुश हुई उसने कहा

"मैं भी आपके साथ साउथ अफ्रीका जाना चाहती हूँ। मैंने वहां के बारे में बहुत सुना है"

“सुना है कि देखा है…” विकास ने उसे आंख मारते हुए कहा..

सोनी झेंप गई और मेरी छाती पर मुक्के मारते हुए मुझसे लिपट गई…वह मुझसे अपनी नजरे नहीं मिला रही थी..पर मुझे उसकी इच्छा का भी पता था उसकी बुर की भी।

मेरे साउथ अफ्रीका जाने के दिन करीब आ रहे थे. सोनी बहुत उत्साहित थी…वह अपनी दबी हुई उस अनोखी इच्छा के बारे में अब बात नहीं करती पर मुझे उसकी झिझक और उसके चेहरे पर शर्म मुझे उसकी इच्छा को पूरा करने पर मजबूर कर रही थी।



साउथ अफ्रीका में बीच पर पहला दिन

एयरपोर्ट से होटल जाते समय केपटाउन शहर का खूबसूरत नजारा देखकर सोनीमंत्रमुग्ध हो गई थी. वह बार-बार मुझसे लिपटती मैं उसकी जांघों पर हाथ रखकर उसे सहलाता और उसे प्यार कर इस खूबसूरत लम्हे को यादगार बनाता।

सोनी अभी भी खूबसूरत शहर को निहार रही थी। थकावट की वजह से मेरी आंख लग गई। टायरों के चीखने की आवाज से मेरी नींद खुली मैंने देखा होटल आ चुका था।हम दोनों रिसेप्शन की तरफ बढ़ चले अटेंडेंट हमारा लगेज लेकर पीछे-पीछे आ रहा था।


यह होटल एक पांच सितारा होटल था जिसमें एक प्राइवेट बीच भी था। मैंने यह होटल खास इसी मकसद के लिए चुना था जिससे हम बीच का आनंद बिना किसी थकावट के उठा पाऐं। मेरा सेमिनार स्थल भी इस होटल के बहुत ही करीब था।

मैं और सोनीदोपहर में आराम करने के पश्चात शाम को बीच पर जाने की तैयारी करने लगे। मैने 2- 3 सुंदर बिकनी जो वह खासकर सोनीके लिए लाई थी उसे दिखाई और बोला यही पहन कर बीच पर चलना है।

“हट अब इतना भी नंगापन ठीक नहीं पता नहीं कैसे कैसे लोग होंगे?” , पर मन ही मन खुश थी।

“जब मैं हूं तो क्या डर है..?” विकास ने उसे उत्साहित किया..


मैंने उसे बिकनी पहनने और उसके ऊपर एक गाउन डालने के लिए कहा जिसे वह आवश्यकतानुसार बीच पर उतार सकती थी उसने दिखावटी थोड़ा प्रतिरोध किया पर मान गई। वह इतनी बार मुझसे चुद चुकी थी पर कामुक परिस्थितियों में अभी भी उसके गाल लाल हो जाते।

कुछ ही देर में हम बीच पर थे. होटल का यह बीच बहुत ही खूबसूरत था। संगमरमर सी चमकती रेत और आकाश की नीलिमा लिए हुए समुंद्र का स्वच्छ जल और किनारों पर प्रकृति द्वारा सजाई गई हरियाली इस बीच को स्वर्गीय रूप दे रहे थे। स्वच्छ रेत पर कई सारे नवयुवक एवं सुंदर नवयुवतियां अर्धनग्न अवस्था में टहल रहे थे। अद्भुत कामुक माहौल था। वहां उपस्थित अधिकतर लड़कियां और युवतियां बिकनी में ही थे। कुछ ही औरतें विशेष प्रकार का स्विमिंग कॉस्ट्यूम पहने हुई थी।

मैंने सोनीको उत्साहित किया तो उसने अपना गाउन उतार दिया और बिकनी में समुद्र की तरफ बढ़ चली।

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मैं ही क्या वहां पर उपस्थित सभी स्त्री पुरुष मेरी सोनी की इस नग्नता का आनंद ले रहे थे। जिस किसी की भी नजर सोनीके खूबसूरत बदन और उस लाल रंग की प्रिंटेड बिकनी पर पड़ती वह एक नजर उसे जी भर कर देखता और अपने मन में उपजी कामुकता को लेकर अपनी प्रियतमा के साथ आगे बढ़ जाता। मेरी सोनी एक खूबसूरत पोर्न स्टार की तरह समुद्र की तरफ बढ़ रही थी। पीछे से उसके गोल नितंब और गोरी पीठ उसे और मादक बना रहे थे।

इसी बीच पर टहलते हुए भारतीय मूल के किशोर लड़के आपस मे …

"अबे देख क्या गच्च माल है"

"साली के चूतड़ कितने गोल हैं। जाने किसके हिस्से में आयी है"

मुझे सिर्फ साली सब्द पर क्रोध आया जो उनकी विकृत मानसिकता के कारण था बाकी जो उनके अंदर की आवाज थी जो सच ही था।

ऐसा लगता था सोनीको भगवान ने एक अद्भुत और इकलौते सांचे में ढाला था। सुगना की बहन सोनी वाकई कमाल थी। कुछ ही देर में मैं और सोनी समुद्र की लहरों से अठखेलियां कर रहे थे। सोनीको स्विमिंग आती थी पर उसने समुंद्र का इस तरह आनंद नहीं लिया था। वह बेहद उत्साहित होकर समंदर की लहरों से टकराकर बार-बार मेरे ऊपर गिरती और मैं उसे संभाल लेता। इस दौरान मैं भी अपने हिस्से की कामुकता का आनंद ले रहा था। जब वह मेरे आगोश में आती उसके नितंब और स्तन मेरे हाथों से बच नहीं पाते कभी-कभी उसकी बुर भी मेरी उंगलियों का स्पर्श पाती। हम दोनों अपनी उत्तेजना कायम रखते हुए समुद्र का आनंद ले रहे थे। मेरा लंड भी इस दौरान लगातार तन कर सोनीके हाथों की प्रतीक्षा कर रहा था। वह अपना धर्म बीच-बीच में निभा भी रही थी। उसे भी लंड को प्यार करना अच्छा लगता था। मैने महसूस किया कि लंड को सहलाते समय वह खोई खोई सी रहती थी।


मेरी वाइन पीने की इच्छा हुई मैं सोनीको लेकर बीच के किनारे एक रेस्टोरेंट में गया। रेस्टोरेंट्स बहुत खूबसूरत था इसमें 60 -70 लोगों के बैठने की व्यवस्था थी। सोनीखूबसूरत लाल बिकनी में अपने अद्भुत यौवन को संजोए हुए मेरे साथ रेस्टोरेंट में आ चुकी थी। मैंने सोनीकी पसंद की रेड वाइन ऑर्डर की। मैंने यह बात नोटिस की कि इस होटल में काम करने वाले सभी युवक नीग्रो प्रजाति के थे और उनका शारीरिक सौष्ठव दर्शनीय था उनकी कद काठी भी आश्चर्यजनक थी वहां पर कुछ लड़कियां भी कार्यरत वह भी उसी प्रजाति की थी उनकी शारीरिक संरचना भी बेहद खूबसूरत थी।

रेस्टोरेंट अद्भुत था कई देशों से आए हुए खूबसूरत जोड़े इस रेस्टोरेंट की शोभा बढ़ा रहे थे। वेटर के रूप में उपस्थित नीग्रो प्रजाति के युवक और युवतियां अपनी शारीरिक संरचना से सभी का मन मोह रहे थे। होटल के इन सभी कर्मचारियों के पीठ पर एक नंबर पड़ा हुआ था मुझे लगता है इन नंबरों से इन्हें पहचाना जा सकता था।


सोनी की रेड वाइन आ चुकी थी लाल बिकनी पहनी हुई सोनीके हाथों में रेड वाइन बेहद खूबसूरत लग रही थी। वहां उपस्थित सभी महिलाओं और युवतियों में सोनीसबसे सुंदर और सुडोल थी। वहां से गुजरने वाले सभी स्त्री और पुरुष हमें एक बार अवश्य देख रहे थे उन्हें लग रहा था जैसे बॉलीवुड से कोई हीरोइन यहां पर छुट्टियां मनाने आई हुई थी।

रेस्टोरेंट के काउंटर पर बैठा हुआ 20- 22 वर्ष का नवयुवक सोनीको लगातार घूरे जा रहा था। उसकी आंखों में सोनीके प्रति एक अजीब किस्म की हवस दिखाई दे रही थी। सोनी की पीठ उस आदमी की तरह थी निश्चय ही वह सोनी के गोरे नितंबों को और गोरी पीठ को घूर रहा था। मैं उसे देख कर एक बार क्रोधित भी हुआ पर उसकी इस हरकत में उसकी गलती कम ही थी। सोनी इतनी कामुक लग रही थी कि जो भी पुरुष उसे नहीं देखता मैं उसकी मर्दानगी पर अवश्य प्रश्नचिन्ह लगा देता।

मैंने उसे नजरअंदाज कर दिया परंतु उसने अपनी आंखें सोनी से नहीं हटायीं। रेड वाइन खत्म हो चुकी थी मैंने बिल पे करने के लिए सोनी को ही रिसेप्शन पर जाने के लिए कहा ऐसा कहकर मैं उस व्यक्ति की उत्तेजना को और चरम पर ले जाना चाहता था। वह निश्चय ही अपनी तरफ आती हुई सोनीके स्तनों को भी देखता और सोनीके कोमल मुख मंडल को भी। वह सोनीकी बुरको तो वह नहीं देख पाता पर जांघों के बीच से उसके आकार की कल्पना वह अवश्य कर सकता था। बुरके फूले हुए होंठ अपनी मादकता का एहसास बिकिनी के अंदर से भी करा रहे थे।


सोनीअपनी पूर्ण मादकता के साथ उसकी तरफ बढ़ रही थी। सोनीवहां पहुंची उसने बिल दिया और वह व्यक्ति उसके स्तनों पर लगातार अपनी निगाहें गड़ाए रखा।

मुझे लगता है यदि वेद व्यास को जो शक्तियां महाभारत के समय प्राप्त थी यह दिव्य शक्ति उस व्यक्ति के पास होती तो मेरी सोनीइतनी देर में 2-3 पुत्रों की मां बन गई होती। उसकी निगाहों में इतनी वासना थी।

सोनीने भी उसकी कामुक दृष्टि अवश्य महसूस की होगी। सोनीबहुत ही समझदार थी वह अपने आसपास पनप रही कामुकता को पहचानती थी तथा अपनी इच्छा अनुसार उसे बढ़ावा देती या रोक देती थी।

हम दोनों वापस बीच पर आ गए। कुछ ही देर में हम एक बार फिर समुंद्र के अंदर अठखेलियां कर रहे थे। रेड वाइन के नशे में हमारी कामुकता और बढ़ चली थी। हम बीच के उस हिस्से में आ गए जहां पर बहुत ही कम लोग थे। मैं सोनीको अब उत्तेजक तरीके से छू रहा था। मैंने सोनीकी बुरको अपनी उंगलियों से छुआ। उसका प्रेम रस रिस रिस कर समुद्र में बह रहा था परंतु बुरका गीलापन मेरी उंगलियों ने पहचान लिया। मैंने अपने लंड को वही बुरमें प्रवेश कराने की कोशिश की। मुझे इसमें कुछ सफलता तो मिली पर पूरी तरह से नहीं समुंदर का साफ पानी हमारे संभोग दृश्य को छुपा पाने में नाकाम हो रहा था मैंने और प्रयास ना करते हुए उसे बाहर निकाल लिया और अपनी उंगलियों से ही उसकी बुरको स्खलित करने का प्रयास करने लगा। मैं और सोनीकुछ ही देर के प्रयासों में स्खलित हो गए। मेरा वीर्य समंदर की विशाल लहरों में विलुप्त हो गया सोनीमेरे होठों का चुंबन लेते हुए समंदर के नमकीन पानी का भी रस ले रही थी। शाम गहरा रही थी। हम धीरे-धीरे बीच की तरफ आ रहे थे। जैसे ही सोनीकी कमर पानी से बाहर आयी मैंने देखा उसकी बिकिनी का नीचे वाला भाग गायब था। मैंने सोनीका ध्यान उस तरफ दिलाया तो वह वापस पानी में चली गई। मुझे लगता है हमारी आपस की छेड़खानी में उसके पैरों से फिसलते हुए वह समुद्र में विलीन हो गई थी।


सोनीअब नीचे से पूरी तरह नग्न थी। इसी अवस्था में उसे बीच के किनारे तक जाना था। अभी भी बीच पर पर्याप्त रोशनी थी इस तरह सरेआम नग्न होकर बीच पर पहुंचना कठिन था। मैं उसे छोड़कर वापस बीच पर आया उसका गांउन लेकर वापस समुंद्र में आ गया। इस दौरान सोनीनग्न होकर ही समुद्र के अंदर खड़ी थी। समुद्र के साफ पानी से उसकी नग्नता झलक रही थी। आसपास के युवक और युवतियां सोनीको देख रहे थे सोनीशर्म से पानी पानी हुए अपनी गर्दन झुकाए मेरी प्रतीक्षा कर रही थी।

तभी अचानक वह होटल वाला लड़का जो सोनी को ताड़ रहा था पीछे से आ रहा था उसके हाथ में सोने की पैंटी थी…

“मैंम इस इट योर्स”

सोनी नीचे से नग्न थी किसी अनजान व्यक्ति को इतने पास देखकर वह तुरंत घुटनों के बाल नीचे बैठ गई और अपनी नमिता को छुपाने का प्रयास करने लगी। मैं भी अब तक उसके पास आ चुका था मैंने उसे व्यक्ति से सोने की पैंटी को लेते हुए बोला..

“थैंक यू बट हाउ यू गॉट इट?”

मेरी बात उसे इंग्लिश में ही हो रही थी परंतु हिंदी कहानी होने के नाते में उसे बातचीत को हिंदी में ही बताना चाहूंगा

“मैं पीछे स्विमिंग कर रहा था तभी यह पैंटी मुझे दिखाई पड़ी मैंने ये खूबसूरत लाल रंग देखा और सामने मैडम को देखा जो कुछ खोज रही थीं मुझे लगा निश्चित ही यह उनकी ही है”

ठीक है शुक्रिया…वह लड़का हम लोगों से दूर वापस समुद्र में जा रहा था. सोनी शर्मा के मारे अपनी गर्दन झुकाए हुए थे उसके दूर चले जाने के बाद उसने अपनी पैंटी पहनी और ऊपर से गाउन डाल लिया।

हम धीरे-धीरे होटल की तरफ पर चल पड़े। सोनी बार-बार उसे लड़के के बारे में सोच रही थी क्या उसने उसे नॉन देख लिया था जिस समय वह अपनी पैंटी खोज रही थी उसे समय वह निश्चित ही पूरी तरह नग्न थी। हे भगवान वह आदमी क्या सोच रहा होगा…सोनी की बुर जो बाहर से गीली थी अब अंदर से भी गीली होने लगी।


अपनी नग्नता का सोनी ने भी उतना ही आनंद लिया था जितना उसके आस पड़ोस के युवक-युवतियों उसे देख कर लिया था। सोनीअनचाहे में भी कामुकता की ऐसी मिसाल पेश कर देती थी जो उसके आस पास के पुरुषों में स्वाभाविक रूप उत्तेजना फैला दे रही थी।

उधर वह लड़का सोनी के बारे में सोच रहा था…

शेष अगले भाग में
 
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