भाग 138
क्या उसने लाली के साथ अन्याय किया था?
क्या सोनू को अपनी वासना की गिरफ्त में लेकर उसने लाली से विश्वासघात किया था?
सुगना अपने अंतर द्वंद से जूझ रही थी… एक तरफ वह लाली और सोनू को विवाह बंधन में बांधने का नेक काम कर खुद की पीठ थपथपा रही थी दूसरी तरफ लाली के हिस्से का सुहागरात स्वयं मना कर आत्मग्लानि से जूझ भी रही थी।
अचानक सुगना हड़बड़ा कर उठ गई… सोनू को अपने करीब पाकर वह खुश हो गई…उसने चैन की सांस ली पर वह अपने अंतर मन में फैसला कर चुकी थी…
अब आगे..
सुगना और सोनू अपने गांव सीतापुर की तरफ बढ़ रहे थे। जैसे-जैसे गांव करीब आ रहा था सुगना अपने बचपन को याद कर रही थी सोनू जब छोटा था वह उसका बेहद ख्याल रखती थी। कैसे पगडंडियों पर चलते समय वो इधर उधर भागा करता और वो उसे दौड़कर पकड़ती और वापस सही रास्ते पर चलने के लिए विवश करती कभी डांटती कभी फटकारती। जब सोनू गुस्सा होता उसे अपने आलिंगन में लेकर पुचकारती…
और आज वही छोटा सोनू आज एक पूर्ण मर्द बन चुका था। गांव का छोटा सा स्कूल आते ही सुगना ने चहकते हुए कहा.
“सोनू देख गांव के स्कूल”
“तोहरा पगला मास्टरवा याद बा…”
सोनू को पागल मास्टर भली भांति याद था जो उसे बचपन में बहुत परेशान किया करता था और वह सुगना ही थी जो अक्सर सोनू के बचाव में आकर उस पागल मास्टर से सोनू के पक्ष में लड़ाई किया करती थी।
सोनू और सुगना अपने बचपन की बातों में मशगुल हो गए…
बचपन की यादों की सबसे बड़ी खूबसूरती यह होती है कि वह आपको तनाव मुक्त कर देते हैं सुगना ने सोनू के साथ आज दोपहर में जो सुहागरात मनाई थी उसे कहीं ना कहीं यह लग रहा था जैसे उसने लाली के साथ अन्याय किया था और उसके दिमाग में इस बात का तनाव अवश्य था।
परंतु अब सुगना और सोनू दोनों सहज हो चुके थे। जैसे ही सोनू की गाड़ी ने गांव में प्रवेश किया गरीब घरों के बच्चे उसके पीछे-पीछे दौड़ने लगे अपनी सुगना दीदी को वह बखूबी पहचानते थे परंतु शायद यह दौड़ सुगना और गाड़ी को और करीब से देखने के लिए थी उसे छूने के लिए थी उसे महसूस करने के लिए थी।
घर में पदमा सोनू और सुगना का इंतजार कर रही थी जिन्होंने आने में जरूर से ज्यादा विलंब कर दिया था पदमा चाह कर भी अपने गुस्से पर नियंत्रण नहीं रख पाई और बोल उठी…
“का करें लागला हा लोग?
सुगना क्या उत्तर देती जो वह कर रही थी उसे वह स्वयं और अपने विधाता के अलावा किसी से बता भी नहीं सकती थी। सुगना के उत्तर देने से पहले ड्राइवर बोल पड़ा.
“वापस बनारस पहुंचते समय रास्ता में जाम लगा था इसीलिए पहुंचने में देर हो गया”
सोनू और सुगना दोनों ने पदमा के पैर छुए और मां का दिल गदगद हो गया पदमा को सोनू और सुगना दोनों पर गर्व था। सोनू के अपने पैर पर खड़े होने तक सुगना ने घर के मुखिया की जिम्मेदारी निभाई थी और अब धीरे-धीरे सुगना स्वयं समर्पण कर सोनू के अधिपत्य में आ चुकी थी। परंतु वह सोनू की नजरों में तब भी आदरणीय थी अब भी आदरणीय थी…
लाली गांव की अन्य महिलाओं के साथ बैठी हंसी ठिठोली का आनंद ले रही थी सोनू और सुगना के आगमन की सूचना उस तक भी पहुंची परंतु सभी महिलाओं के बीच से उठकर आना उसके लिए संभव नहीं था।
धीरे-धीरे पूरा परिवार निर्धारित कार्यक्रमों में लग गया शाम के भोज भात के कार्यक्रम में आसपास के गांव के कई लोग आए और सोनू और लाली की अनोखी शादी के जश्न में शामिल हुए। उनके मन में भले ही यह विचार आ रहा हो कि इस बेमेल शादी का मकसद क्या था परंतु किसी ने भी इस पर प्रश्न चिन्ह उठाने की हिम्मत नहीं दिखाई और दिखता भी कैसे जब सरयू सिंह और सोनू जैसा प्रभावशाली व्यक्तित्व इस रिश्ते को स्वीकार रहा था उस पर प्रश्न करने का अब कोई औचित्य नहीं था।
शाम होते होते सारे रिश्तेदार अपना अपना बिस्तर पकड़ने लगे और सुगना का आंगन खाली होता चला गया। सोनू स्वयं पूरी तरह थक चुका था वह भी बाहर पड़े दलान में एक और चुपचाप जाकर लेट गया और न जाने कब उसकी आंख लग गई।
उधर लाली की सुहाग सेज तैयार हो चुकी थी सुगना और उसकी एक दो सहेलियों को छोड़कर सभी लोग सो चुके थे।
सुगना ने और और देर नहीं की वह सोनू के पास के और उसके माथे पर हाथ फेरते हुए बोला…
“सोनू उठ चल लाली इंतजार करत बिया”
सोनू अब तक गहरी नींद में जा चुका था उसके कानों में सुगना की आवाज पड़ तो रही थी परंतु जैसे वह कुछ भी सुनने के मूड में नहीं था उसने करवट ली और अपनी पीठ सुगना की तरफ कर दी।
सुगना ने अपनी उंगलियों का दबाव और बढ़ाया और एक बार फिर बेहद प्यार से बोला..
“ए सोनू उठ जो”
सोनू ने अपनी आंखें खोली सुगना को देखकर वह सारा माजरा समझ गया उसने अपनी आंखें खींचते हुए सुगना से कहा..
“लाली के मना ले ना दीदी ई काम त बनारस में भी हो सकेला”
सोनू ने पहले भी सुगना को यह बात समझने की कोशिश की थी कि वह आज की सुहागरात के कार्यक्रम को टाल दे क्योंकि वह आज पूरी तरह तृप्त था।
“अभी चुपचाप चल, लाली का सोची आज घर के बहू के रूप में पूजा कईले बिया इ रसम तोरा निभावे के पड़ी”
सुगना की आवाज की खनक से सोनू ने अंदाज कर लिया कि सुगना को इनकार कर पाना अब उसके बस में नहीं था वह उठा और यंत्रवत उसके पीछे-पीछे चलने लगा। अब भी उसके शरीर में फुर्ती नहीं दिखाई पड़ रही थी।
सुगना ने अपनी चाल धीमी की और सोनू से मुखातिब होते हुए बोली..
“आज दिन में जवन सिखवले रहनी उ लाली के भी सिखा दीहे बाद में उ हे काम देही”
सुगना ने सोनू को आज दिन में मनाए गए सुहागरात का मंजर याद दिला दिया था सुगना का यह रूप उसने पहली बार देखा था उन खूबसूरत पलों को याद कर सोनू के लंड में एक बार फिर हरकत हुई और सोनू का हथियार एक बार फिर प्रेम युद्ध में उतरने के लिए तैयार हो गया।
पर जो उत्सुकता और ताजगी सुहागरात का इंतजार कर रहे पुरुष में होनी चाहिए शायद उसमें अब भी कुछ कमी थी।
कमरे के दरवाजे तक पहुंचते पहुंचते सुगना ने सोनू के दोनों मजबूत बुझाओ को अपने कोमल हाथों से पकड़ा और उसके कान में फुसफुसाते हुए बोला..
“अभीयो मन नईखे करत ता बत्ती बुझा दीहे और सोच लीहे कि बिस्तर पर हम ही बानी..”
सुगना यह बात बोल तो गई पर मारे शर्म के वह खुद ही लाल हो गई उसने अपनी हथेलियां अपनी आंखों पर रख ली और अपना चेहरा छुपाने की कोशिश की पर सुगना की इस अदा ने सोनू की उत्तेजना को पूरी तरह जागृत कर दिया सोनू ने सुगना के माथे को चूमना चाहा परंतु सुगना में इस समय अपने अधरों को सोनू के लिए प्रस्तुत कर दिया सोनू और सुगना के अधर एक दूसरे से सट गए..
इसके पहले कि यह चुंबन कामुक रूप ले पता सुगना ने अपने होंठ अलग किए और बोला
“ जो हमारा भाभी के खुश कर दे..”
लाली अब सुगना की भाभी बन चुकी थी।
अंदर लाली भी आज सोनू को खुश करने के लिए बेताब थी। अंदर हो रही हलचल सुगना महसूस कर रही थी। सुगना कुछ देर दरवाजे पर रही पर शायद अंदर हो रही हरकतों से वह अपने बदन में उठ रही उत्तेजना को महसूस कर रही थी उसने वहां से हट जाना ही उचित समझा।
सोनू और लाली की सुहागरात भी कम यादगार नहीं थी। लाली ने भी सोनू को खुश करने में कोई कमी नहीं रखी। सोनू की दोनों बहने आज उस पर मेहरबान थी। सोनू का दिन और रात आज दोनों गुलजार थे। सोनू को अपने निर्णय पर कोई अफसोस नहीं था उसे पता था उसका आने वाला समय बेहद शानदार था। दो रूप लावण्य से भरी हुई युवतियां उसे सहज ही प्राप्त हो चुकी थी वह भी पूरे दिल से आत्मीयता रखने वाली।
कुछ ही दिनों में लाली अपने बाल बच्चों समेत जौनपुर शिफ्ट हो गई। सुगना अपने बनारस के घर में अपने बच्चों के साथ अकेले रहने लगी। सोनू हर हफ्ते सुगना से मिलने बनारस आता परंतु लाली उसका पीछा नहीं छोड़ती वह भी उसके साथ-साथ बनारस आ जाती।
सोनू और सुगना का मिलन कठिन हो गया था। और तो और कुछ दिनों बाद सुगना ने सोनू से बात कर सीतापुर की गृहस्थी को बंद करने का निर्णय ले लिया और अपनी मां पदमा को भी बनारस बुला लिया।
वैसे भी बनारस में सुगना अकेले रह रही थी मां पदमा के आ जाने से उसे भी एक साथ मिल गया था। परंतु पदमा की उपस्थिति ने सोनू और सुगना के मिलन में और भी बाधाएं डाल दीं। दिन बीतने लगे सुगना को भूल पाना सोनू के लिए इतना आसान नहीं था सुगना के साथ बिताए गए अंतरंग पल सोनू को बेचैन किए हुए थे। गर्दन का दाग पूरी तरह गायब था और सोनू दाग लगवाने को आतुर।
सोनू और सुगना के मन में मिलन की कशिश बढ़ रही थी।
उधर आश्रम में रतन और माधवी दोनों उन अनोखे कूपे में अपनी काम पिपाशा मिटा रहे थे। रतन को पता चल चुका था कि मोनी अब तक कुंवारी थी और वह आज तक मनी से नहीं मिल पाया था।
मातहत कभी किसी एक के नहीं होते। माधवी ने जिस प्रकार रतन के लड़कों से मिलकर उसकी चाल बाजी को नाकाम कर दिया था और मोनी के लिए निर्धारित कूपे में स्वयं प्रस्तुत होती रहीं थी उसी प्रकार एक दिन रतन ने उसकी चाल बाजी को पकड़ लिया और माधवी इस बार किसी ऐसे कूपे में जा पहुंची जहां रतन की जगह एक अनजान लड़का था। रतन ने उस लड़के को अपने दिशानिर्देश दे दिए थे। उसका पारितोषिक कूपे में उसका इंतजार कर रहा था।
माधवी खूबसूरत बदन की मालकिन तो थी ही और वह लड़का बेहद प्यासा था। माधवी के गदराए बदन को देखकर वह अपनी सुध बुध खो बैठा .. वह बेझिझक माधवी के बदन से खेलने लगा। उसे न तो कुपे के नियमों का ध्यान रहा और न हीं पिट जाने का खतरा..
माधवी अब तक जान चुकी थी कि वह गलत कूपे में आ गई है। उसने एक बार लाल बत्ती दबाकर उसे रोकना चाहा पर वह लड़का नहीं रुका।
जैसे ही उसने अपना लंड माधवी की बुर में घुसाया माधवी ने एक बार फिर लाल बटन दबाया लड़का एक पल के लिए रुका जरूर पर अगले ही पल उसने अपनी कमर आगे की और उसका लंड माधवी की बुर में जड़ तक धंस गया।
माधवी चाहकर भी लाल बटन दो बार नहीं दबा सकी। उसे पता था दो बार बटन दबाने पर वह लड़का नियामानुसार दंडित होता परंतु माधवी की भी पहचान उजागर हो जाती। माधवी बेचैन थी वह लड़का उसे लगातार चोदे जा रहा था। वह उसकी चूचियों को बेदर्दी से मीसता और लंड को पूरी ताकत से आगे पीछे करता।
माधवी ने खुद को इतना लाचार पहले कभी नहीं महसूस किया था। इतने बड़े आश्रम में इतने प्रतिष्ठित पद पर होने के बावजूद आज वह कूपे में एक रंडी की भांति चुद रही थी। उसका स्वाभिमान तार तार हो रहा था। वह अपने ईश्वर से इस बुरे समय को शीघ्र बीतने के लिए उन्होंने विनय कर रही थी। परंतु जब तक कूपे का निर्धारित समय खत्म होता उसे लड़के ने उसकी बुर में वीर्य वर्षा कर दी।
खेल खत्म हो चुका था वह लड़का कूपे से बाहर जा चुका था माधवी अपनी जांघों से बहते हुए उसे घृणित वीर्य को देख रही थी। आज उसने जो महसूस किया था वह निश्चित ही उसके किसी पाप का दंड था।
उधर रतन आज अपनी अप्सरा के कूपे में पहुंचने में कामयाब हो गया था। एक तरफ माधवी नरक झेल रही थी दूसरी तरफ रतन स्वर्ग के मुहाने पर खड़ा था।
रतन मोनी की सुंदरता का कायल हो गया। अब तक तो वह सुगना की बदन की कोमलता और उसके कटाव से बेहद प्रभावित था परंतु मोनी जैसी कुंवारी, कमसिन और सांचे में ढली युवती को देखकर वो सुगना की खूबसूरती भूल गया। उसे मोनी सुगना से भी ज्यादा पसंद आने लगी वैसे भी रतन के मन में सुगना को लेकर थोड़ी जलन भी थी और अपनी नाकामयाबी को लेकर चिंता भी सुगना को संतुष्ट नहीं कर पाना उसकी मर्दानगी पर एक ऐसा प्रश्न चिन्ह था जिसने उसे झिंझोड़कर रख दिया था और उसे इस आश्रम में आने पर मजबूर कर दिया था
समय बीत रहा था और मोनी पुरुष स्पर्श का इंतजार कर रही थी। अब तक जब भी वह कूपे में आई थी पुरुषों के हाथ उसके बदन से खेलने लगते थे परंतु आज कुछ अलग हो रहा था मोनी स्वयं अधीर हो रही थी बेचैनी में वह अपना थूक गुटकने का प्रयास कर रही थी। वह बार-बार अपनी जांघों को आगे पीछे करती और उसके कमर में बल पड़ जाते। मोनी का बलखाता शरीर पुरुष स्पर्श को आमंत्रित कर रहा था । परंतु रतन अब भी उसकी चूचियों पर निगाह गड़ाए हुए था मोनी की चूचियां स्पर्श के इंतजार में और भी तन चुकी थी। जितना ही मोनी पुरुष स्पर्श के बारे में सोचती उसके निप्पल उतने ही खड़े हो जाते… माधवी ने मोनी की चूचियों की मालिश कर करके उसे सुडौल आकार में ला दिया था और वह इस समय उसके सीने पर सांची के स्तूपों की भांति रतन को आकर्षित कर रही थी। मोनी की दूधिया चूचियां और शहतूत के जैसे उसके निप्पल ने रतन के दांतों को आपस में रगड़ने पर मजबूर कर दिया। चूचियों के नीचे उसकी कटवादार कमर और बीच में गहरी नाभि देखने लायक थी।
मोनी के लव हैंडल रतन के हाथों को आमंत्रित कर रहे थे की आओ मुझे पकड़ो मुझे थाम लो …जब रतन का ध्यान मोनी के वस्ति प्रदेश पर गया एक पल के लिए उसने आंखें बंद कर ली। मोनी रतन की साली थी और उस उम्र में कई वर्ष छोटी थी।
जब रतन का विवाह हुआ था उस समय मोनी किशोरी थी आज मोनी को इस रूप में चोरी चोरी देखते हुए रतन को ग्लानि भी हो रही थी पर वासना में लिप्त आदमी की बुद्धि मंद हो जाती है।
रतन उसके कामुक बदन की तुलना उसकी किशोरावस्था से करना लगा। विधि का विधान अनूठा था छोटी अमिया अब आम बन चुकी थी। जागो के बीच की छोटी सी दरार अब फूल चुकी थी ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे अंदर खिल रही कली बाहरी होठों को फैला कर अपनी उपस्थिति का एहसास करना चाह रही थी।
मोनी के अंदर के होंठ स्वयं झांकने को तैयार थे और बाहरी होठों पर अपना दबाव लगातार बनाये हुए थे।
मोनी स्वयं अपनी बुर की कली को खिलने से रोकना चाहती थी। उसकी पुष्ट जांघें उस कली के ऊपर आवरण देने की नाकाम कोशिश कर रही थी।
मोनी का वस्ति प्रदेश पूरी तरह चिकना था सुनहरे बाल गायब थे।माधवी के दिव्य कुंड का वह स्नान अनोखा था जिसने मोनी की बुर के बाल हमेशा के लिए गायब कर दिए थे।
रतन से अब और बर्दाश्त ना हुआ वह आगे बढ़ा और उसने मोनी के कमर के दोनों तरफ अपना हाथ रख कर मोनी को थाम लिया।
मोनी का सारा बदन गनगना गया। यद्यपि वह पुरुष स्पर्श की प्रतीक्षा वह कुछ मिनट से कर रही थी पर अचानक मजबूत खुरदुरे हाथों ने जब उसके कोमल बदन को स्पर्श किया उसके शरीर में कपकपाहट सी हुई उसके रोंगटे खड़े हो गए। चूचियों के छुपे रोमकूप अचानक एक-एक करके तेजी से उभरने लगे। रतन ने मोनी के शरीर में हो रही इस उत्तेजना को महसूस किया और वह मोनी के बदन को सहलाकर उन रोमकूपों को वापस शांत करने की कोशिश करने लगा।
मोनी ने ऐसा पहले कभी महसूस नहीं किया था वह बेचैन हो रही थी और ईश्वर से प्रार्थना कर रही थी कि निर्धारित समय जल्द से जल्द बीते और वह इस अद्भुत एहसास को अपने दिल में संजोए हुए वापस चले जाना चाहती थी। परंतु विधाता ने उसके भाग्य में और सुख लिखा था
रतन ने अपने स्पर्श का असर देख लिया था। उसके हाथ अब मोनी की पीठ को सहला रखे थे जैसे वह उसे सहज होने के लिए प्रेरित कर रहा हो। परंतु जैसे ही रतन का हाथ उसकी पीठ से सरकते हुए उसके नितंब्बों तक पहुंचा मोनी की उत्तेजना और बढ़ गई।
वह बार-बार अपने विधाता से इस पल को इसी अवस्था में रोक लेने की गुहार करती रही परंतु रतन के हाथ ना रुके उसने मोनी के नितंबों का जायजा लिया उसकी उंगलियां मोनी की गांड को छूते छूते रह गई.. मोनी स्वयं अपनी गांड को सिकोड कर रतन की उंगलियों के लिए अवरोध पैदा कर रही थी।
मोनी की सांसें तेज चल रही थीं .. समय तेजी से बीत रहा था रतन ने अपना चेहरा मोनी की जांघों से सटा दिया उसके बाल मोनी के प्रेम त्रिकोण पर पर गुदगुदी करने लगे। नाक लगभग मोनी की लिसलिसी दरारों से छू रही थी। रतन अपनी नासिका से अपनी साली के प्रेम रस को सूंघने की कोशिश कर रहा था। जैसे वह इस खुशबू से मोनी की सहमति का अंदाजा लगाना चाह रहा हो।
आज कई दिनों बाद मोनी की बुर लार टपकने को तैयार थी। जैसे ही रतन की नाक को मोनी की बुर से निकलती कामरस की बूंद का स्पर्श मिला उसने देर नहीं की और अपनी बड़ी सी जीभ निकाल कर मोनी की बुर के नीचे लगा दिया। जैसे वह इस अमृत की बूंद को व्यर्थ हो जाने से रोकना चाहता हो। रतन इतना अधीर हो गया था कि उसने बूंद के अपनी जीभ तक पहुंचाने का इंतजार ना किया परंतु अपनी लंबी जीभ से मोनी की बुर को फैलता हुआ स्वयं उस बूंद तक पहुंच गया।
मोनी की उत्तेजना बेकाबू हो रही थी काश वह अपना हाथ नीचे कर पाती। पर वह खुद भी यह तय नहीं कर पा रही थी कि वह उसे अनजान पुरुष को यह कार्य करने से रोके या प्रेरित करें। यह सुख अनोखा था।
रतन की जीभ पर अमृत की बूंद के अनोखे स्वाद ने रतन को बावला कर दिया। शेर के मुंह में खून लग चुका था। रतन मोनी की बुर से अमृत की बूंद खींचने के लिए अपने होठों से निर्वात कायम करने लगा जैसे वह मोनी की बुर का सारा रस खींच लेना चाहता हो वह कभी अपने होठों से बुर के कपाटों को फैलता और फिर अपनी जीभ से अंदर तक जाकर प्रेम रस की बूंदे चुराने को कोशिश करता।
उसकी जीभ को मोनी का कौमार्य प्रतिरोध दे रहा था.. वह पतली सी पारदर्शी झिल्ली अपनी स्वामिनी का कौमार्य बचाए रखने की पुरजोर कोशिश कर रही थी। रतन बार-बार अपनी जीभ से दस्तक देता पर वह कमजोरी सी झिल्ली उसके दस्तक को नकार देती।
वह मोनी की जादुई गुफा की प्रहरी थी। पर इस अपाधपी में मोनी बेहद उत्तेजित हो चुकी थी .. जब रतन की जीभ की दाल गुफा के अंदर ना गली तो उसने मोनी के सुनहरे दाने को अपनी लपेट में ले लिया…मोनी ने अपनी जांघों से रतन को दूर हटाने की कोशिश की पर रतन ने हार न मानी उसने अपनी जीभ उस सुनहरे दाने पर फिरानी शुरू कर दी।
मोनी का बदन कांपने लगा…नाभि के नीचे ऐंठन सी होने लगी। और फिर प्रेम रसधार फूट पड़ी पर रतन जिसने मटकी फोड़ने में जी तोड़ मेहनत की थी उसे अब रस पीने का भरपूर अवसर मिल रहा था..
मोनी स्खलित हो रही थी.. आज पहली बार उसे पुरुषों की उपयोगिता समझ में आ रही थी…काश वह उसे पुरुष को देख पाती उसे समझ पाती और उसका तहे दिल से धन्यवाद अदा कर पाती…
कूपे में रहने का निर्धारित दस मिनट का समय पूरा हो चुका था।
मोनी उस दिव्य पुरुष से मिलना चाहती थी जिसने उसे यह अलौकिक सुख दिया था..
शेष अगले भाग में