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Incest आह..तनी धीरे से.....दुखाता.

Lovely Anand

Love is life
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आह ....तनी धीरे से ...दुखाता
(Exclysively for Xforum)
यह उपन्यास एक ग्रामीण युवती सुगना के जीवन के बारे में है जोअपने परिवार में पनप रहे कामुक संबंधों को रोकना तो दूर उसमें शामिल होती गई। नियति के रचे इस खेल में सुगना अपने परिवार में ही कामुक और अनुचित संबंधों को बढ़ावा देती रही, उसकी क्या मजबूरी थी? क्या उसके कदम अनुचित थे? क्या वह गलत थी? यह प्रश्न पाठक उपन्यास को पढ़कर ही बता सकते हैं। उपन्यास की शुरुआत में तत्कालीन पाठकों की रुचि को ध्यान में रखते हुए सेक्स को प्रधानता दी गई है जो समय के साथ न्यायोचित तरीके से कथानक की मांग के अनुसार दर्शाया गया है।

इस उपन्यास में इंसेस्ट एक संयोग है।
अनुक्रमणिका
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भाग 126 (मध्यांतर)
 
Last edited:

Raj0410

New Member
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साथियों मुझे खेद है कि अपडेट देने में कुछ ज्यादा ही विलंब हो चुका है परंतु इस समय मेरी व्यस्तता जरूरत से ज्यादा है और आप सब को पता ही है की कहानी लिखना फुर्सत और समय काटने का उपाय जो इस समय मेरे पास बेहद कम है आप सब जुड़े रहे मैं बीच-बीच में कुछ घटनाक्रम लिख रहा हूं परंतु उन्हें जोड़कर प्रस्तुत करने लायक अपडेट बनाने में देर हो रही है
कोई बात नहीं भाई
 

Lovely Anand

Love is life
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भाग-70

दोनों पति पत्नी एक दूसरे की बाहों में निढाल पड़ गए विधि के अनुसार रतन को सुगना की बुर चोदते हुए उसे स्खलित करना था परंतु सुगना और रतन दोनों ही झड़ चुके थे वासना का फूला हुआ गुब्बारा अचानक ही पिचक गया था रतन के हाथ सुगना की चुचियों पर घूमने लगे…

"ई बताव 4 साल हम तोहरा के कितना दुख देले बानी, हमरा के माफ कर द, ई बेचारी तरस गईल होइ" रतन का हाथ सुगना की बुर पर आ गया।

न सुगना बेचारी थी न हीं उसकी बुर। जिस स्त्री को सरयू सिह का प्यार और कामुकता दोनों प्राप्त हो वह स्वतः ही तृप्त होगी।

"आप ही त भाग गइल रहनी"


रतन ने सुगना को अपनी बाहों में खींच लिया और उसके हाथ सुगना के कोमल नितंबों को सहलाने लगे धीरे धीरे वासना जवान होने लगी नसों में रक्त भरने लगा और रतन का लंड खड़ा हो चुका था..

अब आगे...


सुगना रतन के लण्ड को अपने हाथों से सहला रही थी और मन ही मन उसकी तुलना सरयू सिंह के लण्ड से कर रही थी।

जिस तरह एक स्त्री किसी पराए सुंदर बच्चे को अपनी गोद में पूरी तन्मयता से खिलाती है परंतु आलिंगन में वह आत्मीयता नहीं होती जो अपनी कोख से जन्म लिए के बच्चे के साथ होती है।


यही हाल सुगना का था। सुगना रतन के लण्ड को देखकर मोहित और आकर्षित अवश्य थी परंतु उसका अंतर्मन अब भी सरयू सिंह के लण्ड को याद कर रहा था। रतन अधीर हो चुका था उसने सुगना के नितंबों को सहलाते-सहलाते सुगना को उठा लिया और एक बार फिर उसी पलंग पर सुगना को बिछा दिया जिस पर सुगना ने अपनी जवानी की रंगरेलियां मनाई थी रतन उसकी जांघों के बीच आ गया।

सुंदर स्त्री जब अपनी जाँघे फैलाए संभोग को आतुर होती है तब स्त्री और पुरुष के बीच में संबंध गौड़ हो जाते हैं और वासना सारे संबंधो को भूलने पर मजबूर कर देती है।

आज रतन और सुगना अपनी पुरानी गलतियों को भूल संभोग करने को तत्पर थे । दीए की रोशनी में सुगना का कुंदन बदन चमक रहा था। रतन धीरे-धीरे सुगना पर झुकता गया और रतन का लण्ड सुगना की बुर के होंठ से सट गया। एक पल के लिए सुगना सिहर उठी उसके निचले होठों पर आज किसी पराये मर्द के लंड ने दस्तक दी थी।


उसके दिलो-दिमाग में प्रेम भी था पर दिमाग के किसी कोने में अपने बदचलन होने का एहसास भी। सुगना ने अपने मन को समझाया और अपनी एड़ी जो अब रतन के नितंबों के ठीक ऊपर थी उसे खींचते हुए रतन को स्वयं में समाहित कर लिया। जांघों के बीच छुपी पनियाई और फूली हुई पुर पूरी तरह फैल गई और रतन का लंड अपने म्यान में घुसने का प्रयास करने लगा।

सुगना एक अद्भुत महिला थी जाने वह कौन से जतन करती थी उसकी बुर का कसाव किसी किशोरी से कम न था। रतन का लण्ड अपनी जगह बनाने की कोशिश कर रहा था।

पुरुष का यही अंग बुर् के सारे विरोध और कसाव को धता बताकर गर्भाशय को चूमने को आतुर रहता है रतन के लण्ड में रक्त का बहाव और बढ़ गया तथा रतन अपनी सारी ताकत अपनी कमर में लगाते हुए लण्ड को सुगना की बुर में ठासता गया। सुगना चिहुँक उठी और उसके मुंह से बरबस ही निकल गया


"आह .....तनी धीरे से.. दुखाता"

रतन ने उसकी आंखों को में देखा और उसके आंखों और फिर होठों को चूम कर उसे तसल्ली देने की कोशिश की परंतु उसका लण्ड कोई मुरव्वत करने को तैयार न था। वह एक एक पिस्टन की बात अपने सिलेंडर में आगे पीछे होने लगा।


रतन के मन में सुगना को लेकर प्यार तो अवश्य था परंतु उसके गदराए हुए बदन को भोगने की इच्छा पिछले कई महीनों में बलवती थी वासना प्रेम पर हावी थी। परिणाम…. रतन अब सुगना को कस कर चोद रहा था दिमाग का सारा ध्यान कमर के नीचे केंद्रित था और सुगना का अंतर्मन तड़प रहा था...सरयू सिह रह रह कर उसके ख्यालों में आ रहे थे।

सुगना का पलंग आज उसकी अद्भुत चुदाई का गवाह बन रहा था। रतन की चुदाई और सरयू सिंह के प्यार दोनों में अंतर स्पष्ट था। जहां सरयू सिंह सुगना को प्यार करते करते चोदते थे और वह हंसते खेलते स्खलित हो जाती वही रतन का ज्यादा ध्यान चुदाई पर केंद्रित था।

महेंद्रा बोलेरो चलाने वाले आदमी के हांथ xuv 700 कार आ चुकी था। रतन बिना इंजन की आवाज सुने लगातार स्पीड बढ़ाए जा रहा था। सुगना की गाड़ी किस गियर में है उसका उसे एहसास भी न था।

सुगना भी आनंद में थी परंतु उसके मन मस्तिष्क में उसके बाबूजी की कमी स्पष्ट कर रहे थे. शरीर के अंग अलग अलग ढंग से बर्ताव कर रहे थे।

दिमाग में चल रहे द्वंद्व कामोत्तेजना में भटकाव पैदा करते हैं यही स्थिति सुगना की थी वह रतन के साथ संभोग का आनंद तो ले रही थी परंतु जब जब उसके मन में सरयू सिंह का का ख्याल आता उसके विचार भटक जाते, और दिमाग में चल रही कामोत्तेजना का रूप बदल जाता।


उधर रतन अपने जीवन के सबसे सुखद क्षण भोग रहा था जिस सुंदरी की कल्पना वह पिछले 1 वर्षों से कर रहा था आज उसे भोगने के अद्भुत सुख का आनंद ले रहा था। कमर की गति लगातार बढ़ रही थी वह सुगना की चुचियों को बेतहाशा मीस रहा था। अपनी चुचियों को जोर से मीसे जाने से वह कराह उठी..

"ए जी तनी धीरे से…. दुखाता"

बच्चों के मुख से जिस तरह कुछ वाक्यांश सिर्फ उनके माता-पिता को अच्छे लगते हैं उसी प्रकार सुगना के यह वाक्यांश सरयू सिंह को बेहद पसंद थे और हम सब पाठकों को भी परंतु रतन इन शब्दों की गहराई नहीं जानता था उसे इससे कोई सरोकार ज्यादा न था।


रतन ने सुगना की चुदाई जारी रखी और अंततः वही हुआ जैसा अति कामोत्तेजक पुरुषों के साथ होता है रतन के लंड ने ने सुगना की चूत में उल्टियां कर दीं।

संभोगातुर स्त्री को स्खलित किये किए बिना पुरुष स्खलन एक अवांछित अपराध की श्रेणी में आता है पुरुषों को यह भली-भांति समझना चाहिए कि स्त्री तो स्खलित होने के पश्चात भी आपको चरमोत्कर्ष तक पहुंचाने के लिए अपनी चूत उपलब्ध करा सकती है परंतु पुरुषों के साथ ऐसा नहीं है।

..रस बाहर तो दम बाहर..

रतन निढाल होकर सुगना के ऊपर ही लेट गया वह बेतहाशा हांफ रहा था सुगना तड़प रही थी और अपनी कसी हुई बुर से रतन के दम तोड़ रहे लंड को पकड़ने का प्रयास कर रही थी। परंतु जैसे जैसे वह अपना दबाव बढ़ाती रतन के लण्ड में भरा हुआ रक्त वापस उसके शरीर में फैली जाता।

लंड सिकुड़ कर एक लाचार मरी हुयी मछली की तरह बाहर आ गया।


सुगना थोड़ा उदास हो गयी। उसे गुरुजी की बात अब भी याद थी आज की रात पति और पत्नी दोनों को ही संभोग करते हुए स्खलित होना अनिवार्य था जिसमें सुगना असफल रही थी। रतन भारी शरीर लिए हुए उसके सीने पर पड़ा था।। धीरे-धीरे रतन उसके बगल में सरक गया और कोठरी की छत की तरफ देख कर बोला

"जाएदा चिंता मत कर... अभी रात बहुत बाकी बा" सुगना थकी हुई थी परंतु वह आज के विशेष अवसर और पूजा को सफल बनाने के लिए स्खलित होना चाहती थी आखिर उसका भी आने वाला जीवन रतन से ही जुड़ा था।

कुछ समय बाद अपनी चुचियों को रतन के गालों पर रगड़ते हुए वह बोली

"गुरुजी पुड़िया में कवनो दवाई दे ले रहले हा नु?"

सुगना की कामुक अदाओं रतन के मन में उत्साह भर गया..

रतन की बांछें खिल उठी। उसे सारा गुरुजी की बातें याद आ गयीं। वह झटपट उठा और गुरु जी द्वारा दी गई पोटली में से शिलाजीत की 2 गोलियां निकालकर निगल गया।

रतन दवा तो खा चुका था परंतु उसे यह बात सताने लगी थी कि आज उसने कमरे में आने से पहले हस्तमैथुन क्यों किया था। दरअसल रतन अपने प्रथम संभोग को यादगार बनाना चाह रहा था और वह यह बात जानता था कि वह अपने प्रथम मिलन सुगना की कामुक अदाओं और मुखमैथुन के सामने ज्यादा देर तक नहीं पाएगा इसलिए उसने बुद्धिमत्ता दिखाते हुए स्वयं को पहले ही स्खलित कर लिया था। निश्चय ही इस कार्य से उसे सुगना के साथ प्रथम संभोग में अत्यधिक आनंद की प्राप्ति हुई थी परंतु वह सुगना को स्खलित न कर सका था।

पर अब यही बुद्धिमत्ता भारी पड़ गई थी रतन को एक एक बार फिर सुगना को स्खलित करते हुए स्वयं भी स्खलित होना था। जो कि एक दुरूह कार्य था।

शिलाजीत के असर से रतन के लंड में फिर शक्ति भर गई पर अंडकोषों का क्या…? वो हड़ताल पर चले गए। रतन इस बात से अनजान सुगना पर एक बार फिर चढ़ गया। सुगना का पलंग एक बार फिर हिलने लगा और सुगना के मन में आने वाले जीवन को लेकर एक बार फिर सुखद हिलोरे उठने लगी। रतन एक बार फिर सुगना को उत्तेजित करने में कामयाब रहा था। परंतु अपने अत्यधिक और व्यग्र परिश्रम से वह सुगना के आकर्षण का केंद्र बन गया था। सुगना उसके चेहरे और शरीर से गिर रहे पसीने को देखती और मन ही मन उसके मर्दाना शरीर और उसके भागीरथी प्रयास की प्रशंसा करती वह स्वयं अपनी बुर को आगे पीछे कर स्खलित होना चाह रही थी।

पर नियति को यह मंजूर न था रतन को पसीने से लथपथ देखकर सुगना के मन में मन में वही ख्याल आने लगे जब उसके बाबूजी उसे चोदते चोदते गिर पड़े थे।

सुगना बार-बार अपना ध्यान उस बात से हटाती परंतु रतन के कंधे और सीने से बह रहा पसीना उसे बार-बार उसके दिमाग में वही दृश्य ला देता।

नकारात्मक विचार स्खलन की सबसे बड़ी बाधा है सुगना अपनी उत्तेजना को चरमोत्कर्ष के करीब ले जाकर भी स्खलित ना हो पाई। आधे पौन घंटे की गचागच चुदाई के दौरान सुगना ने आनंद तो लिया परंतु स्खलन पूर्ण ना हुआ।


सुगना स्खलन की अहमियत जानती थी। उसने स्वयं का ध्यान सरयू सिंह से भटकाने के लिए कामुक आवाजे निकालना शुरू कर दी…

" हां हां… आसही और जोर से आह….." कभी वह रतन के होठों को चूमने का प्रयास करती कभी अपने ही हाथों से अपनी चुचियों को मसलती रतन की पीठ पर अपनी उंगलियों को गड़ाती।


उसके इस उत्तेजक के रूप ने रतन की उत्तेजना में चार चांद लगा दिए परंतु नियति ने जो उनके भाग्य में लिखा था उसने सुगना को स्खलित होने से पहले रतन को एक बार और स्खलित कर दिया।

रतन एक बार फिर दो बूंद वीर्य सुगना की फूली और संवेदनशील हो चुकी बूर् पर छिड़कते हुए सुगना को निहार रहा था अपने लंड के सुपारे को सुगना की बुर पर पटकते हुए भी दो-चार बूंद से ज्यादा वीर्य बाहर न निकाल पाया सुगना उसके चेहरे की तरफ देख रहा था।

सुगना उसे अपने तृप्त और स्खलित होने का एहसास करा रही थी यद्यपि सुगना के अभिनय में वह मौलिकता न थी पर रतन आश्वस्त हो गया की सुगना स्खलित हो चुकी है वह एक विजयी योद्धा की तरह अपने अपने लण्ड को निचोड़ कर सुगना की बुर पर रगड़ रहा था।


सुगना के चेहरे के हावभाव विरोधाभास पैदा कर रहे थे एक पल के लिए उसे लगा जैसे वह उसे चरमोत्कर्ष तक पहुंचाने में नाकाम रहा है रतन अपनी खींझ मिटाते हुए बोला..

" तू का सोचे लाग तालु हा?

सुगना ने कोई उत्तर न दिया । सुगना ने रतन को यह अहसास तो करा दिया कि वह स्खलित हो चुकी है परंतु वह मन ही मन बेहद घबराई हुई थी आज की पूजा आसफल हो रही थी और उसके मन में भविष्य को लेकर कई प्रश्न उठा रहे थे ।

अपने अथक प्रयास करने के पश्चात भी जब सफलता हाथ नहीं लगती तो मनुष्य परिस्थितियों से समझौता करने लगता है और विधि के विधान पर प्रश्न चिन्ह भी उठाने लगता है.

यही हाल सुगना का था वह गुरु जी की बात से इतर यह सोचने लगी की हो सकता है पूजा का यह विधान आदर्श परिस्थितियों में ही कारगर होता वह परंतु आज का दिन उसके और रतन के प्रथम मिलन का था और ऐसा आवश्यक नहीं की प्रथम मिलन में ही स्त्री पुरुष दोनों एक साथ स्थगित हों..यह तो संभोग की आदर्श स्थिति है। सुगना अपनी उधेड़बुन में खोई हुई थी तभी

बाहर से कजरी की आवाज आई

"सुगना बेटा उठ जा किरण फूट गईल"

सुगना ने उत्तर तो न दिया पर पलंग से उतरने की आवाज सुनकर कजरी आश्वस्त हो गई और वह दरवाजे से हट गई। सुगना उठी उसने अपनी जांघों के बीच एक अजीब सा तनाव महसूस किया।


उसकी बुर की इतनी बेरहम चुदाई आज से पहले कभी नहीं हुई थी। प्रथम मिलन में भी उसकी दुर्गति नहीं हुई थी जबकि वह दो तीन बार स्खलित भी हुई थी।

यही सरयु सिंह का जादू था पर उनका भतीजा रतन सुगना की बुर का पूजन न कर पाया था और

" अनाड़ी चूदइया बुर् का सत्यानाश" वाली कहावत को चरितार्थ कर दिया था।

सुगना के दोनों पैरों के बीच एक अजीब सा अंतर आ चुका था वह अपने पैर फैला कर चल रही जिसे कजरी में ताड़ लिया और सुगना की कमर सहलाते और मुस्कुराते हुए बोली

"रतनवा ढेर परेशान क देले बा का"

सुगना क्या कहती.. उसने मुस्कुराकर कजरी की बातों की लाज रख ली. कजरी उसके पास आई और उसे अपने आलिंगन में भरते हुए कि माथे को चूमा और बेहद प्यार और आत्मीयता से बोली


"दुनो पति-पत्नी हमेशा खुश रह लोग"

आशीर्वाद का क्या? वह तो बुजुर्ग हमेशा में बच्चों की भलाई के लिए ही देते हैं परंतु भाग्य और नियति ने जो सुख दुख उनके हिस्से में संजोया होता है उसे रोकना असम्भव होता है।

धीरे धीरे सुबह हो गई और घर के आंगन की शांति महिलाओं के कोलाहल में बदल गई सभी सुगना और रतन के बारे में बातें कर रहे थे बाहर सरयू सिह के दिमाग में भी वही दृश्य घूम रहे थे परंतु अब वह सुगना को पुत्री मान चुके थे और उसके बारे में कोई गलत ख्याल नहीं लाना चाह रहे थे। परंतु उनका अवचेतन मन कभी-कभी सुगना की कामुक काया को अपने मन में गढ़ लेता और अपने जीवन की सबसे सुंदर स्त्री के कामुक अंगों के बारे में सोचते हुए उनके लंगोट में हलचल होने लगती।

आखिरकार विदाई का वक्त आ गया सुगना और रतन वापस बनारस जाने के लिए तैयार होने लगे कुछ ही देर में रतन सोनू सुगना लाली और छैल छबीली सोनी बनारस के लिए निकल पड़े... पुरानी जीप धूल उड़ आती हुई नजरों से ओझल हो गयी और सरयू सिंह कजरी तथा पदमा के साथ अपना हाथ हिलाते रह गए

आने वाले कई दिनों तक रतन और सुगना एक दूसरे के साथ राते बिताते रहे पर परिणाम हर बार एक ही रहा रतन वासना के अधीन होकर सुगना को तरह-तरह चोदता पर सुगना स्खलित ना होती। मुखमैथुन के दौरान एक दो बार सुगना स्खलित भी हुई परंतु संभोग के दौरान जाने उसे क्या हो जाता?

सरयू सिंह ने उसकी बुर पर न जाने कौन सा जादू कर दिया था वह रतन के अथक प्रयासों के बाद भी स्खलित न होती। सुगना के मन में उसके बापू जी के साथ विदाई गई रातें बार बार घूमती। रतन ने सुगना से अपने कामुक अरमान हर हद तक पूरा किये। वह कभी वह सुगना को बिस्तर पर लिटा कर चोदता कभी पेट के बल लिटा कर । कभी डॉगी स्टाइल में कभी गोद में परंतु हर चुदाई का एक ही अंत होता रतन का लंड अपनी सारी ऊर्जा सुगना की बुर में भर देता पर सुगना को स्खलित न कर पाता।

ख्यालों में खोई हुई सुगना की आंख लग गई और उसके दिमाग में द्वंद चालू हो गया अंदर से आवाज आई

" सुगना रतन तेरे लायक नहीं है तू सरयू सिह के लिए ही बनी है वह तुझे दिलो जान से प्यार करते हैं.."

" पर मैंने तो उनके कहने से ही रतन को अपनाया है मैंने उनकी ही बात मानी है"

"वह तो उन्होंने तेरे भले के लिए यह बात कही पर उनका अंतर्मन तुझे अब भी प्यार करता होगा पर तू उन्हें भूल गई"

" मैं उन्हें नहीं भूली उन्होंने ही मुझे खुद से दूर किया और अंतरंग होने के लिए मना किया"

" एक बात भली-भांति जान ले तुझे काम सुख तेरे किसी अपने से ही मिलेगा"

"क्या...क्या…"

सुगना प्रश्न पूछती रही परंतु कोई उत्तर ना मिला सुगना चौक कर बिस्तर से उठ गई..

किसी अपने से? यह वाक्यांश उसके दिलो-दिमाग पर छप से गए..

छी… ये कैसे हो सकता है। अचानक सोनी भागती हुई कमरे में आए और बोली दीदी

" तू सपना में बड़बड़ात रहलू हासब ठीक बानू?

"हा चल चाह पियबे"

अपना बिस्तर से उठी और सोनी के साथ रसोई घर में चली गई


नियति ने सुगना के भाग्य में क्या लिखा था। क्या जो सुगना अपने पुत्र सूरज के अभिशप्त होने और उसे उस अभिशाप से मुक्त करने के लिए अथक प्रयासों और मन्नतों के वावजूद पुत्री को जन्म न दे पाई थी वह क्या स्वयं अभिशप्त थी?


शेष अगले भाग में ...
 

Sanju@

Well-Known Member
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भाग -58

डॉक्टर उस समय भी एक दुर्लभ प्रजाति थी। बनारस महोत्सव में डॉक्टर का मिलना असंभव था और वह भी इस धुआंधार बारिश के मौसम में। सब एक-दूसरे का मुंह ताक रहे थे। ऐसा कोई व्यक्ति न था जो सुगना की मदद कर सकता था। और जो था वो सुगना की गुदांज छेद के उद्घाटन की तैयारी में अपने हथियार में धार लगा रहा था….

अब आगे....

मूसलाधार बारिश हो रही थी। सरयू सिंह अपनी बहू की सेज सजा कर उसके छेद का उद्घाटन करने की पूरी तैयारी कर चुके थे। मौका देखकर उन्होंने शिलाजीत का सेवन भी कर लिया था। हथियार में धार और दिल में प्यार लिए वह बारिश के रुकने का इंतजार करने लगे। रह रह के बस मक्खन को देखते जिसकी मदद से उन्हें सुगना की मखमली गांड का उद्घाटन करना था.. वह पंडाल में आई विपत्ति से पूरी तरह अनजान थे।

राजेश ने हिम्मत जुटाई और वह भागकर भीगते हुए मेला प्रबंधन केंद्र की तरफ गया।


उधर सोनू ने बनारस महोत्सव आते जाते एक डॉक्टर का घर देखा था वह भीगता हुआ उस डॉक्टर के घर की तरफ दौड़ पड़ा यहअलग बात थी कि सोनू के जाने से वह डॉक्टर कतई बनारस महोत्सव नहीं आता परंतु सोनू अपनी बहन और भतीजे को उस दुख में देख नहीं सकता था।

रतन तो निर्विकार और निरापद था। वह भी पंडाल से बाहर निकल गया इतने दिनों तक मुंबई में रहने के कारण उसका बनारस शहर से संपर्क टूट गया था वह बाहर निकल कर लोगों से मदद मांगने लगा….

जब तक कजरी सरयू सिंह को बुलाने के लिए कह पाती तब तक तीनों मर्द अलग-अलग दिशाओं में जा चुके थे। सुगना भी कातर निगाहों से पंडाल के गेट की तरफ देख रही थी काश उसके बाबूजी आ जाते और अपने पुत्र को अनजान विपत्ति से निकालने में उसका सहयोग करते।

आखिरकार राजेश ने सफलता पाई और मेला प्रबंधन से एंबुलेंस प्राप्त करने में सफल हो गया कुछ ही देर में एंबुलेंस विद्यानंद के पंडाल के सामने खड़ी थी सुगना सूरज को लेकर एंबुलेंस में बैठ गई उसका साथ देने के लिए कजरी जाने लगी तभी लाली ने कहा..

"चाची तू रहे तो हम जा तानी ओहिजा कुछ काम पड़े त हम संभाल लेब तू ई दोनों बच्चा के संभाल ल"


उसने अपने दोनों बच्चों राजू और रीमा से कहा

"नानी के तंग मत करिहा लोग और अच्छा से रहीह लोग"

राजू और रीमा को पांडाल में बहुत आनंद आता था वह दोनों सहर्ष रुक गए और लाली सुगना और सूरज के साथ एंबुलेंस में बैठ गई। राजेश ड्राइवर के बगल वाली सीट पर बैठ गया। एम्बुसेन्स सांय सांय करती हॉस्पिटल की तरफ बढ़ गयी।

सूरज की तबीयत सचमुच खराब हो गई थी सुगना ने अपने जीवन में यह दिन कभी नहीं देखा था। आज मिले अकस्मात धन की खुशियां एक पल में ही काफूर हो गई थी। माता के लिए पुत्र से बड़ा कोई धन नहीं होता है आज सूरज विपत्ति में था और सुगना का हृदय व्यथित।

हॉस्पिटल पहुंचने पर डॉक्टर ने सूरज का निरीक्षण किया और यह बात सच थी वाकई मालपुए की वजह से उसे उल्टियां शुरू हो गई थी कजरी द्वारा बनवाया गया मालपूआ उसे रास ना आया था।

डॉक्टर ने उसे कुछ दवाइयां दी और थोड़ी ही देर में सूरज भला चंगा हो गया रात के 10:00 बज चुके थे बाहर अभी भी बारिश हो रही थी।

हॉस्पिटल से राजेश की घर की दूरी कम थी जहां आसानी से जाया जा सकता था बनारस महोत्सव वापस जाना बेहद कठिन था।

सुगना लाली और राजेश के साथ उनके घर आ गई सूरज को सामान्य होते थे उसके चेहरे पर खुशियां स्पष्ट दिखाई देने लगी थी वह अब लाली और राजेश से खुलकर बात कर रही थी । लाली के घर पहुंच कर उसे सरयू सिंह की याद आई और वह एक बार फिर परेशान हो गई काश वह अपनी स्थिति सरयू सिंह को बता पाती काश उसके बाबूजी कैसे भी करके यहां लाली के घर आकर उसे ले जाते।

"का सोचतारे भीगल बाड़े कपड़ा बदल ले फेर सोचिहे" लाली ने सुगना को उसकी सोच से बाहर निकाला.

सुगना ने तो सूरज को तो अपने आंचल में ढककर भीगने से बचा लिया था परंतु तीनों वयस्क इंद्रदेव की रिमझिम बारिश से न बच पाए थे।

लाली अंदर गई और अपने संदूक से दो नाइटी लेकर बाहर आ गई उसने सुगना को देते हुए कहा..

"कौन वाला पहिनबे?

सुगना ने देखा एक नाइटी उत्तेजक थी और दूसरी बेहद उत्तेजक। दोनों ही नाइटी प्रेमी जोड़ों के लिए ही बनी थी सुगना ने कहा

"और दूसर नइखे"

"सब त भीग गइल बा…"

बारिश के कारण लाली द्वारा बाहर सुखाने के लिए डाले गए कपड़े भी भीग चुके थे।

राजेश दोनों नाइटियो को देख कर खुद भी उत्तेजित हो रहा था। वह उन दोनों के बीच से हट गया और जाकर अपने कपड़े बदलने लगा। परंतु अपने इष्ट देव से वह मन ही मन यह प्रार्थना कर रहा था कि सुगना लाली की बात मानकर कोई भी एक नाइटी पहन ले।


सुगना के खूबसूरत शरीर को उस नाइटी में देखने की कल्पना कर राजेश मन ही मन प्रसन्न हो रहा था। उसका लण्ड उछलने लगा।

आज उसने सुगना और सूरज की जी भर कर सेवा की थी। उसके छोटे से योगदान ने सूरज के तकदीर में ₹10 लाख का एक ऐसा विशाल धन ला दिया था जो सुगना के परिवार के जीवन स्तर को सुधारने में एक महती भूमिका अदा कर सकता था। सुगना आज राजेश के प्रति कृतज्ञ थी। राजेश ने उसके पुत्र की जान बचा कर आज उसने उसके जीवन में एक ऐसे पुरुष की भूमिका निभाई थी जो पति तुल्य थी।

कुछ ही देर में लाली और सुगना बेहद सुंदर नाइटियो में लाली की रसोई में दूध गर्म कर रहीं थी।

राजेश हाल के बिस्तर पर बैठा सूरज के साथ खेल रहा था और उन दोनों खूबसूरत सुंदरियों को देख रहा था परंतु उसकी निगाहें सुगना से ना हट रही थी।

आज राजेश के दोनों हाथों में लड्डू थे उसकी खूबसूरत पत्नी लाली और मदमस्त सुगना आह ….ऐसा मादक अहसास….खूबसूरत और पतली झीनी नाइटी से दोनों ही सुंदरियों के बदन का उभार स्पष्ट दिखाई पड़ रहा था । शरीर के ऐसे कटाव ग्रामीण परिवेश में ही देखने को मिलते हैं या फिर फिल्मों में। मध्यमवर्ग की अधिकतर महिलाएं चाह कर भी वह कसाव नहीं पा पातीं खासकर बच्चा होने के बाद।

राजेश ज्यादा देर तक उस खूबसूरती का आनंद न ले पाया बारिश तेज होने की वजह से रेलवे कॉलोनी की लाइट गुल हो गई एक पल के लिए राजेश की आंखों के सामने अंधेरा छा गया गैस की आंच में अब भी सुगना का चेहरा चमक रहा था जाने सुगना के शरीर में भगवान ने कौन सी उर्जा डाली थी उसकी त्वचा हमेशा चमकती थी थोड़ा सा भी प्रकाश पड़ने पर उसकी खूबसूरती और निखर आती।

लाली ने मोमबत्ती जला ली एक मोमबत्ती से उसने रसोई घर में उजाला कर दिया और दूसरी मोमबत्ती को सुगना को देते हुए बोली ले अपना जीजा जी के दूध दे द सुगना एक हाथ में गिलास लिए और दूसरे हाथ में मोमबत्ती लिए राजेश की तरफ चल पड़ी मोमबत्ती की रोशनी सीधे सुगना के चेहरे और छातियों के खुले भाग पर पढ़ रही थी उसकी चुचियों के बीच की बेहद आकर्षक घाटी पीली रोशनी में चमक रही थी सुगना का कुंदन शरीर राजेश की निगाहों में रच बस रहा था..

"जीजा जी दूध ले लीं"

सुगना की मधुर आवाज राजेश को सुनाई जरूर दी पर उसकी आंखें उसके खूबसूरत जिस्म से चिपक सी गयीं थीं।

सुगना ने फिर कहा..

"कहां भुलाईल बानी भाई दूध ले लीं"


रसोई में खड़ी लाली ने सुगना द्वारा दोबारा कहीं बात सुन ली और उसे राजेश की मनोदशा का अंदाजा हो गया उसमें मुस्कुराते हुए कहा

"तोहरे पुआ में भुलाईल होइहें"

सुगना शर्म से पानी पानी हो गई। लाली ने स्पष्ट तौर पर वही बात कह दी थी जो सुगना मन ही मन सोच रही थी राजेश लाली की बात सुनकर सचेत हो गया था उसने स्थिति संभालते हुए कहा..

"उ नकली पूआ त सब काम खराब कइले बा सूरज बाबू के तबीयत वोही से नु खराब भईल…"

" आज भगवांन बचा लेनी" सुगना कृतज्ञ भाव से बोली।

राजेश ने मुस्कुराते हुए कहा

"आज त सुगना के दिन ह, ₹10 लाख भी जितली और बेटा भी ठीक हो गईल"

"जीजा जी आज ही त आप भगवान बन कर आइनी"

"त भगवान जी के का मिली? राजेश ने मुस्कुराते हुए पूछा"

"सब आपके ही ह बताई का चाहीं?"

लाली भी अब तक उनके करीब आ चुकी थी उसने एक बार फिर राजेश की दुखती रग पर हाथ रख दिया..

"छोड़, उनका जवन चाहीं तोरा से होइ ना"

"हमरा त एगो सूरज जइसन लइका चाहीं" राजेश ने पास खेल रहे सूरज को उठाकर चूम लिया।

मन में सुगना को सोच कर लिया गया यह चुम्बन कुछ ज्यादा ही आत्मीय था सूरज छूटने के प्रयास कर रहा था।

सुगना तो राजेश की बातों का गूढ़ अर्थ न समझ भाई परंतु लाली ने राजेश की मंशा जानकर सुगना से कहा..

"देख तोर जीजा जी का मांग तारे" जो आज उनके संगे सूत रह…उनको साध बुता जाई"

राजेश ने अनजाने में ही सुगना से उसका गर्भधारण मांग लिया था इच्छा तो सुगना की भी थी पर उसके गर्भधारण का प्रयोजन अलग था और राजेश का अलग।

"हट पागल कुछो बोलेले... हम कह तानी की सूरज अतना भाग्यशाली लईका बा जरूर अपना मां बाप के नाम रोशन करी और पूरा परिवार के भी" राजेश ने स्थिति को सामान्य करते हुए कहा….

जीजा साली और लाली के बीच हुई वार्तालाप ने नियति को मौका दे दिया।

कुछ देर की हंसी ठिठोली के बाद सुगना और लाली भीतर कमरे में सोने चली गई और राजेश हाल में ही अपनी मस्तराम की किताबों में डूब गया।

अंदर दोनों सहेलियां बिस्तर पर लेटी आज सुगना के जीवन में हुई धन वर्षा का आनंद ले रही थी..

"ए सुगना का करबे अतना पैसा के"

"हमु बनारस शहर में मकान खरीदब…"

" तब तो बहुत अच्छा बा हमरे साथ खरीद लीहे साथे रहल जायी।"

"अच्छा तोर पेट फुला वे के का भईल आज तक बनारस महोत्सव के आखिरी रात ह तोरा त रतन भैया के पास होखे के चाहीं ते एहजा बाड़े।"

सुगना के दिमाग में विद्यानंद की बातें एक बार फिर घूमने लगी सच आज बनारस महोत्सव की आखिरी रात थी वह अपने बाबूजी के साथ मनोरमा के कमरे में जी कर चुदना चाहती थी परंतु परिस्थितियों ने उसे ऐसी जगह पर लाकर छोड़ दिया था जहां वह न सिर्फ स्वयं को लाचार महसूस कर रही थी अपितु बेहद दुखी थी थी।

उसे पता था कल सुबह ही बनारस महोत्सव से उसके परिवार की विदाई निश्चित थी। नियति ने उसके साथ क्रूर खिलवाड़ किया था उसके बाबूजी उससे कुछ ही दूर पर उपस्थित थे परंतु उन दोनों के बीच का यह फासला मिटा पाना संभव न था।

"कहां भुला गइले" लाली ने सुगना को झकझोरा जो विचार मग्न थी।

"सोचा तानी कि तोर इच्छा पूरा करिए दीं"

"साँच सुगना… उ त सुन के पागल हो जइहें"

"पर ते सम्हाल लीहे…"

सुगना ने मन ही मन निर्णय कर लिया था। अपने पुत्र सूरज की मुक्तिदाता उसकी बहन का सृजन इसी बनारस महोत्सव में होना था इसके लिए समय बेहद ही कम था वह सुबह तक अपने बाबूजी का इंतजार कर सकती थी परंतु वह इसकी पक्षधर न थी। वह अपने भाग्य से अब तक आंख मिचौली खेलती आ रही थी और अब वह भाग्य भरोसे नहीं रहना चाहती थी। अपने पुत्र के साथ घृणित संभोग की आशंकाओं ने उसे अधीर कर दिया था।

अंततः उसने लाली को अपनी सशर्त सहमति दे ही दी। वह किसी भी स्थिति में खुद की नजरों में गिराना नहीं चाहती थी …..पर क्या यह संभव था? नियति सुगना की मासूमियत और उसके मन मे चल रहे द्वंद्व को भली भांति जान रही थी। नियति ने ही इन पात्रों का सृजन किया था और इनका अंत भी उसी के हाथों होना था विधाता ने शायद सुगना के भाग्य में यही लिखा था।

अभी भी बिजली लगातार कड़क रही थी…सुगना ने जीवन में भूचाल आने वाला था।…..

उधर पंडाल में सरयू सिंह सुगना को खोजते हुए आ गए थे। पूरी तरह बारिश से लथपथ सरयू सिंह के चेहरे पर झुझलाहट साफ दिखाई दे रही थी वह पंडाल की वस्तुस्थिति से पूर्णता अनभिज्ञ थे।

"कहां चल गई रहनी हां?" कजरी ने पूछा….. पर उनका उत्तर सुना नहीं। उसने सूरज और उसकी स्थिति के बारे में स्वयं ही सब कुछ बता दिया। परंतु कोई भी यह बात पाने में असमर्थ था कि सुगना और राजेश सूरज को लेकर किस अस्पताल गए हैं।


मरता क्या न करता। सरयू सिंह के पास के पास और कोई चारा न था। इतनी रात को चाहकर भी वह सुगना और सूरज को ढूढने नही जा सकते थे। बारिश अभी भी जारी थी। वह मन मसोसकर रह कर रह गए। झोले में रखा सुगना के दूसरे द्वार भेदन के लाया गया मक्खन उन्हें मुह चिढा रहा था।

अपनी कामवासना के आधीन सरयू सिंह सुगना की मनोस्थिति से अनजान थे। उन्हें ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे सूरज की तबीयत हल्की फुल्की खराब होगी पर राजेश ने जबरजस्ती उसे अस्पताल के बहाने अपने घर ले गया होगा।

आशंकाये आपकी सोच को प्रभावित करती हैं। सरयू सिंह ने अपने मन में राजेश को लेकर जो अवधारणा बनाई थी वह परिस्थितियों को उसी अनुसार देख रहे थे।

एक तो रतन का खत पढ़कर उनके मन में सुगना को खोने का डर समा गया था वह स्वयं को असुरक्षित महसूस कर रहे थे।

सुगना उन्हें अपने हाथों से फिसलती हुई महसूस हो रही थी।

बिजली कड़क रही थी और बारिश थमने का नाम नहीं ले रही शिलाजीत का असर अभी भी कायम था पर लण्ड नाउम्मीद हो चुका था। सुपारे पर उसके द्वारा छोड़ी गई लार सूख चुकी थी। बनारस महोत्सव का छठवां दिन भी सरयू सिंह की आकांक्षाओं को पूरा न कर पाया था।

परंतु लाली के घर में नियति का खेल चालू था।

बनारस महोत्सव का अंतिम दिन…

ड्राइवर सुबह-सुबह विद्यानंद के पांडाल के सामने खड़ा था। सरयू सिह उसका ही इंतजार कर रहे थे। पहले रेलवे कॉलोनी ले चलो। सरयू सिंह सूरज और सुगना से मिलना चाहते थे।ड्राइवर ने कहा..

"मैडम बाहर जाने वाली है पहले उनसे मिल लीजीए वो आपका इंतजार कर रही हैं।" सरयू सिह पशेपेश में थे पर उन्होंने ड्राइवर की बात मान ली जैसे उन्होंने पूरी रात इंतजार किया था वैसे कुछ समय और सही।


मनोरमा द्वारा दी गई राहत सामग्री और कुछ जरूरी कागजात अभी गाड़ी में ही थे। सरयू सिंह को उन्हें मनोरमा को वापस करना था। वो सलेमपुर में की गई गतिविधियों की विस्तृत रिपोर्ट भी बताना चाहते थे। कल शाम बनारस महोत्सव पहुंचते-पहुंचते काफी देर हो गई थी और देर रात को मनोरमा से मिलना उचित नहीं था। और वह खुद भी सुगना और अपने परिवार की खुशियों में मशगूल हो गए थे।

कुछ ही देर बाद सरयू सिंह अपना झोला लिए मनोरमा के होटल के सामने खड़े थे। रिसेप्शन पर पहुंचने के पश्चात उन्होंने मनोरमा के कमरे में संदेश भिजवाया और रिसेप्शन पर बैठकर मनोरमा का इंतजार करने लगे। जब तक मनोरमा आती वह होटल की खूबसूरती को आंखों में बसा रहे थे। क्या रहने की जगह पर कोई इतना भी खर्च कर सकता है?


सरयू सिंह को पैसे की अहमियत पता थी और वह हमेशा से उसका सदुपयोग करते थे परंतु होटल के साज सजावट पर हुए खर्च का अनुमान कर उन्हें यह दुनिया दूसरी ही प्रतीत हो रही थी होटल सचमुच बेहद खूबसूरत था।

तभी मनोरमा सीढ़ियों से उतरते हुए दिखाई दी। सरयू सिंह ने मनोरमा की तरफ देखा यह पहला अवसर था जब मनोरमा ने अपनी नजरें झुका लीं। शायद सरयू सिह से आंख मिलाने में उसे शर्म आ रही थी।


सुबह-सुबह मनोरमा एक ताजे खिले हुए फूल की तरह दिखाई पड़ रही थी। सजा धजा कसा हुआ शरीर। आज पहली बार मनोरमा को उन्होंने अपनी काम वासना से भरी निगाहों से देखा । कल रात में खाये शिलाजीत ने उनके लण्ड में रक्त भर दिया।

मनोरमा करीब आ चुकी थी सरयू सिंह ने खड़े होकर उसका अभिवादन किया। मनोरमा उनकी आंख से आंख नहीं मिला पा रही थी पर उसने उनकी धोती में आया उभार देख लिया था।

सरयू सिंह ने मनोरमा को अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की। सभी सीढ़ियों से होटल का वेटर मनोरमा का सामान लेकर नीचे उतर रहा था और पीछे पीछे सेक्रेटरी साहब भी नीचे आ रहे थे।

मनोरमा ने सरयू सिंह से कहा मुझे किसी आवश्यक कार्य से लखनऊ निकलना है।

मनोरमा ने सेक्रेटरी साहब से होटल के कमरे की चाबी ली और सरयू सिंह को देते हुए बोली

"मेरे कमरे में बनारस महोत्सव से संबंधित कई सारे कागजात रखे हुए वह आप ऑफिस खुलने के पश्चात बनारस महोत्सव के कार्यालय में पहुंचा दीजिएगा।"

मनोरमा ने सरयू सिंह का परिचय होटल के रिसेप्शन पर करा दिया।

मनोरमा का ड्राइवर गाड़ी में रखे हुए कागजात लेकर रिसेप्शन पर आ चुका था मनोरमा ने उससे कहा

"तुम आज इनके साथ ही रहना तथा इनके परिवार को सलेमपुर छोड़ने के पश्चात छुट्टी पर चले जाना"

ड्राइवर भी खुश हो गया।

मनोरमा के जाने के पश्चात सरयू सिंह मनोरमा के कमरे में गए और कमरे की खूबसूरती और भव्यता को देख बेहद प्रसन्न हो गए। आलीशान कमरा और बेहतरीन सजा धजा डबल बेड देखकर सरयू सिंह की कामवासना जाग उठी उस सुंदर बिस्तर पर सुगना को चोदने का सुख सोच कर ही उनका लण्ड उत्तेजना से भर गया।

उन्होंने देर करना उचित न समझा वह नीचे आए और मनोरमा की गाड़ी में पीछे बैठकर सुगना को लेने चल पड़े।

थोड़ी ही देर में में उनकी गाड़ी रेलवे कॉलोनी में राजेश के घर के सामने खड़ी थी।


ड्राइवर ने हॉर्न बजाया। ड्राइवर भी एक चतुर और व्यवहारिक प्राणी होता है वह घर की बाहरी हालत देखकर रहने वाले का वजन अंदाज लेता है और उसके अनुरूप बर्ताव करता है।

यदि वह रेलवे कॉलोनी का घर न होकर किसी अधिकारी का बंगला होता तो ड्राइवर की हार्न बजाने की हिम्मत ना होती पर राजेश का घर सामान्य था।

ड्राइवर ने दोबारा हार्न बजाया। सरयू सिह अभी गाड़ी से नहीं उतरे थे वह चाहते थे कि कम से कम एक बार राजेश उसे इस गाड़ी की पिछली सीट पर बैठा हुआ देख ले ताकि वह अपना प्रभुत्व उस पर और जमा सकें।

वह मन ही मन वह राजेश को अपना प्रतिद्वंद्वी मानने लगे थे परंतु राजेश बाहर नहीं आया।

ड्राइवर ने फिर हार्न बजाने की कोशिश की पर सरयू सिंह ने उन्हें रोक दिया। ड्राइवर का यह व्यवहार आसपास के लोगों को दिक्कत कर सकता था और वह अपनी प्रतिक्रिया देकर माहौल खराब कर सकते थे।


सरयू सिंह गाड़ी की पिछली सीट से उतरे और सधे हुए कदमों से राजेश के घर के दरवाजे पर पहुंच गए उन्होंने दरवाजा खटखटा दिया।

लाली ऊँघती हुई बाहर आई और दरवाजा खोला। लाली उनकी पुत्री समान थी वह उनके दोस्त हरिया की पुत्री थी उसे नाइटी में देखकर सरयू से ने अपनी आंखें घुमा लीं। इतने उत्तेजक कपड़ों में अपनी पुत्री समान लाली को देखना पसंद ना आया।

लाली को कतई उम्मीद नहीं थी कि सरयू सिंह इतनी सुबह सुबह बिना बताए उसके घर पर आ धमकेंगे। अन्यथा लाली पूरी शालीन कपड़ों में उनका इंतजार कर रही होती । परंतु अब जो होना था हो चुका था लाली ने उनके चरण छुए और उन्हें अंदर बुलाया तथा हाल में बैठने के लिए कहा।

सरयू सिंह वस्त्रों के चयन को लेकर मन ही मन आज की नई पीढ़ी की मानसिकता को समझने का प्रयास करने लगे।

सुगना को हाल में न पाकर सरयू सिह परेशान हो गए क्या सुगना अंदर सो रही थी? सरयू सिंह को थोड़ी खुशी हुई उन्हें लगा जैसे राजेश घर पर नहीं था इसलिए लाली और सुगना अंदर सो गए थे।

लाली अंदर गई और राजेश को जगाया। राजेश बेसुध सो रहा था। बीती रात वह तृप्त हो चुका था। अपने जीवन में इतनी सुखद नींद उसने आज तक नहीं मिली थी।

राजेश कमरे से उठकर हाल में आया और सरयू सिंह के चरण छुए सरयू सिंह ने उसे आशीर्वाद तो दिया पर शब्दों से। उनके मन में राजेश के प्रति नफरत घर कर गयी थी और सुगना के प्रति गुस्सा था।

राजेश ने एक काम सही किया था। आते हुए उसने सुगना को उठा दिया। सरयू सिह की आवाज सुन सुगना सचेत हो गयी और आनन फानन में अपनी साड़ी पहनी और कुछ ही देर में हाल में आ गयी।

सुगना की हालत देखकर सरयू सिंह के मन में कई तरह के भाव आ रहे थे परंतु अपनी भावनाओं को काबू में रखते हुए उन्होंने पूछा

"सूरज कैसन बा"

"ठीक बा काल त सब के डेरा देले रहे"

लाली अंदर से अपने कपड़े बदल कर सूरज को लेकर आ गई। सूरज ने अपनी आंखें खोली और सरयू सिंह को देखकर बेहद खुश हो गया वह उछल कर उनकी गोद में आ गया। पिता और पुत्र का या प्यार सिर्फ सुगना और सरयू सिंह ही समझ सकते थे। लाली और राजेश, सूरज और सरयू सिंह के बीच इस आत्मीय संबंध के कारण से पूरी तरह अनजान थे।


सूरज को स्वस्थ और सुगना को पसंद देखकर सरयू सिंह की उम्मीद जाग उठी उन्होंने मौका निकाल कर शिलाजीत की दूसरी गोली का सेवन कर लिया पर राजेश ने उन्हें गोली खाते हुए देखकर पूछा..

"रोज गोली खाए के परेला का"

राजेश शहर का रहने वाला था उसे पता था शहर के मानिंद लोग 50 -55 वर्ष की अवस्था में कुछ न कुछ गोलियां खाया करते थे

सरयू सिंह झेंप गए । वह किस मुंह से बताते कि वह यह गोली किस लिए खा रहे हैं।

सरयू सिंह ने फरमान जारी किया

"फटाफट तैयार हो जा बाहर गाड़ी खड़ा बिया हमनी के जल्दी चले के बा।"

सुगना बाथरूम में गई परंतु बिजली गुल होने की वजह से नल मैं पानी नहीं आ रहा था उसने मुश्किल से रसोई में रखे पानी से अपना मुंह धोया और बालों को व्यवस्थित कर सरयू सिंह के साथ जाने के लिए तैयार हो गयी। वह स्वयं भी अपने परिवार से शीघ्र मिलना चाहती थी वह जानती थी कि सभी सूरज की तबीयत के बारे में फिक्र मंद होंगे।

सुगना ने लाली से विदा ली और सूरज को अपनी गोद में लिए घर से बाहर निकल पड़ी। राजेश से नजरें मिलाने की उसकी हिम्मत ना थी कल रात जो हुआ शायद वह नहीं होना चाहिए था।

राजेश गाड़ी की तरफ जा रही सुगना के हिलते हुए नितंबों को देख रहा था उसका लण्ड एक बार फिर हिचकोले खाने लगा। सुगना की कामुक काया पर राजेश की निगाहें अटक गई थी। कल रात के कामुक दृश्य उसकी आँखों के सामने नाच गए।

सरयू सिंह सुगना को लेकर पीछे बैठ चुके थे। सरयू सिंह हो यह ध्यान ही नहीं रहा की सुगना उनकी पत्नी नहीं उनकी बहू है उन्होंने ड्राइवर से कहा..

"पहले होटल ले चलिए कागज पत्तर सहेज के तब पंडाल में चलेंगे।"

सुगना होटल के नाम से सचेत हो गई वह चाह कर भी कुछ बोल ना पायी। ड्राइवर की उपस्थिति में कुछ भी बोलना उसने गवारा न समझा। वह चाहती तो थी कि वह पहले पांडाल में जाए ताकि वह अपने और सूरज की सलामती की खबर परिवार वालों को दे सके परंतु ऐसा हुआ नहीं। वह अपनी उधेड़बुन में खोई हुई थी पर कुछ ही देर में गाड़ी पांच सितारा होटल के पोर्च में आ गयी ।

होटल की खूबसूरती देखकर सुगना सहम गई उसने आज से पहले इतनी खूबसूरत जगह नहीं देखी थी..।

वह तो सुगना की चमकती कुंदन काया थी जो उस होटल में रहने वाले लोगों से कई गुना सुंदर थी परंतु उसके कपड़े पांच सितारा होटल के स्तर के न थे वह यह बात बखूबी जानती थी।


उसने आखिरकार सरयू सिह के कान में कहा

"ई होटल में काहें"


सरयु सिंह ने उसकी तरफ मुस्कुरा कर देखा और एक विजेता की भांति उसे लेकर मनोरमा के कमरे की तरफ चल पड़े..

रिसेप्शनिस्ट ने सरयू सिंह की तरफ देखा और प्रश्नवाचक निगाहों से सुनना के बारे में जानना चाहा। "अरे हमारी बहू है थोड़ी देर बाद हम लोग सामान लेकर निकल जाएंगे"

रिसेप्शनिस्ट ने कोई ऐतराज न किया. दोनों की उम्र के अंतर और रिश्ते ने रिसेप्शनिस्ट के मन में आए ख्याल को दबा दिया। सरयू सिह सुगना को लेकर कमरे में आ गए छोटा सूरज भी होटल की चकाचौंध को मासूम निगाहों से निहार रहा था कमरे में पहुंचते ही सरयू सिंह ने दरवाजा बंद किया और सूरज को बिस्तर पर छोड़कर उसे रतन द्वारा भेजे खिलौने पकड़ा दिए जो उनके झोले में ही थे।

नए खिलौने देखकर सुगना ने पूछा

"ई कब खरीदनी हा?"

सरयू सिंह ने सुगना को अभी यह बताना उचित न समझा कि यह रतन द्वारा भेजे गए थे। उन्होंने उसकी बात टाल दी और उसे अपने आलिंगन में कस लिया। सुगना के कोमल होंठों को अपने होंठों के बीच चूसते हुए एक बार सरयू सिंह के मन में फिर राजेश का ख्याल आया उन्होंने सुगना को खुद से अलग किया और उसकी साड़ी खींचकर उसे नग्न करने का प्रयास करने लगे। सुगना को अंदाज़ हो गया कि आज बाबूजी अपने अरमान अवश्य पूरे करेंगे वह मन ही मन इसके लिए तैयार हो गयी।

उसने मन ही मन फैसला कर लिया कि वह अपने बाबू जी को अपनी अदाओं से प्रथम स्खलन अपनी बुर में ही करने के लिए रिझा लेगी और इसके बाद स्वेक्छा से अपनी गुदांज गाड़ को उन्हें अर्पित कर देगी।

वैसे भी कल का दिन लगभग व्रत जैसा ही निकल गया था सूरज की बीमार पड़ने से सुगना अपना रात्रि भोजन न कर सकी थी थी और उसे सिर्फ लाली के घर में दूध पीकर ही गुजारा करना पड़ा था नियति ने उसके दूसरे छेद के उदघाटन की तैयारी करा दी थी।

परंतु सुगना प्रसन्न थी।बनारस महोत्सव में गर्भवती होने का उसकी इच्छा पूरी होने वाली थी। उसने ऊपर वाले का शुक्रिया अदा किया और स्वयं ही अपनी ब्लाउज के बटन खोलने लगी। जब तक कि सुगना की चुचियाँ खुली हवा में सांस लेती सरयू सिंह का धोती कुर्ता और लंगोट जमीन चाट चुका था। सरयू सिंह का फनफनाता हुआ लण्ड देखकर सुनना खुश हो गई।

सुगना ने अपने शरीर पर पड़े अंतिम वस्त्र अपने पेटीकोट के नाड़े का धागा खोल दिया। एक प्रतिमा की भांति सुगना की कोमल जाँघे अनावृत होती गयीं।

पांच सितारा होटल के भव्य कमरे में पीली रोशनी में

कोमलांगी सुगना की कोमल कमनीय काया कुंदन की भांति कांतिमान थी।

सरयू सिंह अपनी किस्मत पर नाज कर रहे थे अपनी बहू और प्रेमिका की खूबसूरती का अवलोकन करते हुए उनकी निगाह सुगना के खूबसूरत बदन पर दौड़ रही थी। सुगना उनकी दृष्टि को अपने बदन पर महसूस कर रही थी उसकी धड़कनें तेज हो रही थी। जांघों के बीच निगाह पड़ते ही अचानक सरयू सिंह चेहरे के भाव बदल उठे।


सुगना ने उनके चेहरे पर आए बदलाव को महसूस किया इस बदलाव का कारण जानने के लिए अपनी जांघों के बीच देखा उसके होश फाख्ता हो गए जांघों के बीच बालों के झुरमुट और जांघों पर लगा राजेश का वीर्य सूख चुका था…...और सरयू सिंह को मुह चिढा रहा था…


शेष अगले भाग में...
बहुत ही सुंदर लाजवाब और अद्भुत अपडेट है भाई मजा आ गया
सुरज की तबियत खराब हो जाने से सरयूसिंग का रात में केएलपीडी हो गया लेकिन सुबह मौका हाथ लगते ही सुगना की जांघो के बीच सुखा हुवा वीर्य देख कर रात में राजेश के घर 🏠 क्या हुआ इसका अंदाज हो गया
वाह रे नियती क्या क्या खेल खेलती हैं आखिर राजेश और सुगना की चूदाई करवा ही दी
राजेश और सुगना की प्रथम चुदाई का वर्णन विस्तृत और धमाकेदार होना चाहिए तो मजा आ जायेगा
 
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Sanju@

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भाग 59

अब तक आपने पढ़ा...

सरयू सिंह अपनी किस्मत पर नाज कर रहे थे अपनी बहू और प्रेमिका की खूबसूरती का अवलोकन करते हुए उनकी निगाह सुगना के खूबसूरत बदन पर दौड़ रही थी। सुगना उनकी दृष्टि को अपने बदन पर महसूस कर रही थी उसकी धड़कनें तेज हो रही थी। जांघों के बीच निगाह पड़ते ही अचानक सरयू सिंह चेहरे के भाव बदल उठे।

सुगना ने उनके चेहरे पर आए बदलाव को महसूस किया इस बदलाव का कारण जानने के लिए अपनी जांघों के बीच देखा उसके होश फाख्ता हो गए जांघों के बीच बालों के झुरमुट और जांघों पर लगा राजेश का वीर्य सूख चुका था…...और सरयू सिंह को मुह चिढा रहा था…

अब आगे….


सुगना को अपनी गलती का एहसास हो चुका था उसने कोई सफाई देने की कोशिश न की। प्रेम सवालों पर विराम लगा देता है... उसने कदम बढ़ाए और अपने बाबूजी के आलिंगन में आ गई।


कई दिनों की तड़प के बाद सुगना के नंगे कोमल बदन का स्पर्श अपने शरीर से होते ही एक पल में सरयू सिह का गुस्सा काफूर हो गया।

सुगना का कोमल बदन उन्हें गर्म गुलाब जामुन की तरह प्रतीत हुआ जिसने उनके मन की कड़वाहट को एक पल में गायब कर दिया।

उनकी मजबूत भुजाओं ने उस कोमल शरीर को खुद से एकाकार करने की कोशिश की। परंतु उनका तना हुआ लण्ड सुगना के पेट में चुभ रहा था।

अपने बाबूजी के आलिंगन में जाकर सुगना की कामवासना जवान हो उठी. उसकी बुर पनिया गई और अपने होंठ खोल कर अपने लॉलीपॉप का इंतजार करने लगी। सरयू सिंह ने अपनी मजबूत भुजाओं में सुगना को एक किशोरी की तरह उठा लिया और बिस्तर पर ले आए जहां उसका पुत्र सूरज रतन द्वारा भेजे गए खिलौनों में व्यस्त था।


बिस्तर पर हुई हलचल महसूस कर सूरज का ध्यान दो विलक्षण आकृतियों पर गया। पूर्ण नग्न अवस्था में न तो उसे सरयू सिंह पहचान में आ रहे थे और न हीं उसकी मां। उन दोनों के नग्न शरीर से अपना ध्यान हटाकर जब सूरज ने उनके चेहरे की तरफ देखा और उनको पहचान लिया। और सरयू सिह की गोद मे आने की जिद करने लगा उसे शायद पता न था उसकी माँ सुगना को भी उस गोद मे उतना ही आंनद आता था जितना उसे बस भाव अलग थे।

सुगना ने सूरज का ध्यान वापस खिलौनों पर लगाना चाहा पर उसकी निगाहें नग्न शरीरों से हट ही नहीं रही थी। सरयू सिंह भी अपने तने हुए लण्ड को सूरज की निगाहों से दूर रखना चाहते थे। वह उसे सुगना के नितंबों के पीछे छुपा रहे थे। परंतु सूरज हठी बालक की तरह व्यवहार कर रहा था। वह सरयू सिह के जादुई अंग को देखना चाह रहा था। अंततः सुगना ने स्वयं को डॉगी स्टाइल में अपने बाबूजी के सामने परोस दिया और सरयू सिंह का लण्ड उस सूखे हुए वीर्य को भूल उसकी पनियाई बूर में प्रवेश कर गया।

सुगना की बुर आज भी सरयू सिह के लिए उसी तरह का कसाव पैदा करती थी। जाने सुगना ने किस तरह अपनी बुर् में अद्भुत कसाव बनाए रखा था। सरयू सिंह के मुंह से आह निकल गयी…. और जैसे ही सरयू सिंह ने अपने कमर की ताकत लण्ड पर लगाई कराह ने अपनी आवाज बदल ली। कराहने की आवाज इस बार सुगना से आयी ..

" बाबू जी तनी धीरे से….." यह मादक कराह के दिनों बाद सरयू सिह के कानों को सुनाई दी थी।

सरयू सिंह एक बार फिर सुगना की पीठ पर झुक गए और उसके कानों को चूम लिया। सुगना की कराह पर उनका यह प्यार हमेशा मरहम का काम करता था पर यह प्यार पाकर लण्ड उछलने लगता।

कुछ देर सुगना के कानों और गालों को चूमने के बाद अचानक उन्हें सुगना की जांघों पर लगे वीर्य का ध्यान आया और उन्होंने अपना लण्ड सुगना की बुर के जड़ तक ठान्स दिया और गर्भाशय के मुख पर चोट कर उसे अपना मुंह खोलने पर विवश कर दिया।

शिलाजीत का असर दोगुना हो चला था। कल रात खाए शिलाजीत का असर अभी कम होता उससे पहले ही आज सुबह-सुबह शरीर सिंह ने दूसरी गोली ले ली थी। सरयू सिंह के तने हुए लण्ड के मजबूत धक्कों ने न सिर्फ सुगना के गर्भाशय का मुख खोल दिया अपितु राजेश के वीर्य के वह शुक्राणु जो अभी तक सुगना की योनि की सुरंग में लक्ष्य की तलाश में दिग्भ्रमित होकर टहल रहे थे उन्हें भी अनजाने में ही सुगना के गर्भ तक पहुंचा दिया।

अपने पिता तुल्य प्रेमी सरयू सिंह के लण्ड द्वारा किसी पर पुरुष के वीर्य से गर्भधारण की यह विधि इतनी ही निराली थी जितनी सुगना और उसका उसके बाबूजी के साथ संबंध।

सरयू सिंह प्यार, उत्तेजना और क्रोध के बीच की कई अवस्थाओं से गुजर रहे थे। जब जब वह सुगना के मासूम चेहरे और कोमल शरीर का ध्यान करते वह उसके प्यार में डूब जाते उनका लण्ड सुगना की बुर को बेहद ही तन्मयता से चोदने लगता।

जिस प्रकार एक मां अपने छोटे बच्चे की मालिश करती है सरयू सिंह का लण्ड सुगना की बुर की भीतरी दीवारों की मालिश करता। जब उत्तेजना हावी होती चुदाई की रफ्तार बढ़ जाती और सुगना की अपने बाबू जी की अद्भुत चुदाई से आह….आ...ईई। ह ह। ममममममम। आ….तरह-तरह की आवाजें निकालने लगती.. परंतु जब सरयू सिंह को सुगना की जांघों पर लगे वीर्य की याद आती उनके दिमाग में राजेश का चेहरा घूम जाता और वह अपने लण्ड को पूरी ताकत से सुगना की बुर की जड़ तक ठान्स देते।

गर्भाशय के मुख पर पड़ रही चोट अब भारी हो रही थी। उत्तेजना से लण्ड भी विकराल रूप में आ चुका था। सुगना कराह उठती और अपनी आंखों में हल्की आंसू लिए कहती …

"बाबूजी तनी धीरे से ….दुखाता"

इस वाक्य का अंतिम शब्द आज चरितार्थ हो रहा था। सुगना आज पहली बार इस संभोग में मीठे दर्द का एहसास कर रही थी यह दर्द सुगना की वो दीपावली वाली रात के दर्द जैसा ही था।


सरयू सिंह अपनी बहू सुगना से बेहद प्यार करते थे उसकी मादक और कामुक कराह सुनकर वह उत्तेजित अवश्य होते परंतु अपने लण्ड का आक्रमण कम कर देते और एक बार फिर चुदाई जारी हो जाती।

होटल के गद्देदार बिस्तर पर एक अजब सी हलचल थी। आज तक सरयू सिह को ऐसे डनलप के गद्दे पर चुदाई का सुख न मिला था। यह सुख अद्भुत और निराला था। इस हलचल में एक रिदम था। छोटा सूरज इस रिदम के साथ उछल रहा था और खिलौनों से खेल रहा था उसका ध्यान बरबस अपनी मां पर जाता। और वह उसकी चुचियों को उछलते हुए देखकर लालायित हो जाता। एक बार उसने आगे बढ़कर सुगना की चूँचियों को धरने की कोशिश की पर सुगना ने उसे वापस खिलौने में उलझा दिया। अपनी इस अवस्था में वह सूरज को स्तनपान नहीं कराना चाहती थी।

सुगना की चुदाई जारी थी। सुगना की बुर झड़ने को तैयार हो रही थी। एक पल के लिए सुगना अपने गर्भधारण को भूल अपनी उत्तेजना का आनंद लेने लगी उसकी गोरी और गुदांज गाँड़ फूलने पिचकने लगी और यही वह पल था जब सरयू सिह ने सुगना की गांड के उस अद्भुत आकर्षण को देख लिया।

केलाइडिस्कोप की तरह सुगना की सुंदर गांड तरह तरह के रूप दिखा रही थी और सरयू सिह को अनजाने में ही आमंत्रित कर रही थी।

आखिरकार उन्होंने सुगना के नितंबों से उन्होंने अपना हाथ हटाया और झोले की तरफ बढ़ कर आने झोले में रखा मक्खन का डिब्बा निकालने की कोशिश करने लगे। उनका लण्ड सुगना की बुर से छटक कर बाहर आ गया।

लण्ड की थिरकन देखने लायक थी। सुगना के प्रेम रस से सना लण्ड चमक रहा था। मदन रस की बूंदें एक धागे की तरह लटक रही थी और मोतियों की तरह चमक रही थीं ।


सुगना ने मुड़कर उस लण्ड को देखा और अपने बाबूजी से पूछा

"का भइल?"

सरयू सिंह के हाथ में डिब्बे को देखकर सुगना ने दोबारा प्रश्न किया।

"ई का ह?"


सरयू सिंह ने कुछ कहा नहीं और वापस उसकी बुर में अपना लण्ड डाल दिया सुगना की उत्तेजना ने उसके प्रश्न को वही दबा दिया।

सुगना एक बार फिर आनंद में झूला झूलने लगी।सरयू सिंह ने अपनी उंगलियों को मक्खन से सराबोर कर लिया और सुगना की फूलती पिचकती गाँड़ को सहलाने लगे।


उंगलियों का स्पर्श पाकर सुगना को अपने वादे का ध्यान आ गया वह जान चुकी थी कि अब बचना मुश्किल है। वह अपना वादा कतई नहीं तोड़ना चाहती थी परंतु उसके मन में यही इच्छा थी के पहले बाबूजी उसकी बुर में ही स्खलित कर उसे गर्भवती करें।

सुगना ने अपनी डॉगी स्टाइल को और उत्तेजक बना दिया कमर के लचीलापन को पराकाष्ठा तक ले जाकर उसने अपनी दोनों चुचियों को उभार दिया और सरयू सिह की हथेली को जानबूझकर अपनी चुचियों पर ले आयी। सरयू सिह को सुगना का यह आमंत्रण बेहद पसंद आया उन्होंने उसकी चूँची थाम ली परंतु उन्होंने अपने एक हाथ को सुगना की गांड पर ही कायम रखा। सुगना सरयू सिंह को उत्तेजित करती हुयी बोली..

"बाबू जी आज जैसन सुख त कभी ना मिलल रहे"

सरयू सिंह उसे और तेजी चोदने लगे…


"हां बाबू जी असहीं ...धीरे से हां हां हां हां …..आह आआआआआआआईईई आई मा……" सुगना की आवाज कामूक थी। कुछ शब्द तो नियति सुन पा रही थी कुछ दांतो के बीच फंसे होंठो में अटक जा रहे थे परंतु जिस नियति ने सुगना में उत्तेजना भरी थी वह उसका मर्म बखूबी समझ रही थी।

सुगना सरयू सिंह को बेहद उत्तेजित कर उनको स्खलित कराना चाहती थी। उसने सारे जतन किये परंतु वह उन्हें स्खलित न कर पायी। सरयू सिह की उंगलियां उसकी गांड में अब अंदर तक जाने लगी।

उत्तेजना में अपनी गांड के अंदर अपने बाबूजी की उंगलियों को महसूस करना उसे भी अच्छा लग रहा था। वह और भी बेहद उत्तेजित हो गई। वह थरथर कांप रही थी। ऐसी उत्तेजना उसने जीवन में पहले कभी महसूस नहीं की थी।

गाँड़ के अंदर घूम रही सरयू सिंह की तर्जनी और मध्यमा उनके अपने ही लण्ड को पकड़ने की कोशिश करती। बीच का पतली दीवार पर हो रहा यह दोहरा घर्षण सुगना को एक अलग एहसास दिला रहा था। जब सरयू सिंह अपना लण्ड अंदर ठेलते वह अपनी दोनों उंगलियों से उसे महसूस करते और सुगना सिहर उठती। मक्खन लगे होने की वजह से सुगना को सुखद एहसास हो रहा था।

"बाबूजी राउर उंगली में भी सुख बा" सुगना के मुंह से बरबस ही निकल गया।


सरयू सिंह बेहद प्रसन्न थे। वह सुनना को लगातार चोद रहे थे। चूचियो को मीस रही हथेली को उन्होंने उठाकर सुगना के चेहरे पर ले आया और अपने अंगूठे को उसके मुंह में दे दिया। सुगना उनके अंगूठे को चूसने और चाटने लगी। अपने लण्ड तथा दोनों हांथो से वह सुगना के सारे छेद का आनंद ले भी रहे थे और यथासंभव सुगना को दे भी रहे थे।

पांच सितारा होटल का एयर कंडीशनर भी सुगना और सरयू सिह के पसीने को न रोक पाया। इस अद्भुत चुदाई से सरयू सिंह पसीने पसीने हो चले थे और सुगना भी।

माथे का दाग एक बार फिर अपने विकराल रूप में आ चुका था ऐसा लग रहा था जैसे उस दाग पर मौजूद आवरण फटने वाला था। परंतु जैसे-जैसे स्खलन का समय नजदीक आ रहा था सुगना और सरयू सिंह की आत्मा और भावनाएं एकाकार हो रही थीं।

नियति स्वयं इस मधुर मिलन में सुगना को विजयी और अपने गर्भ में सरयू सिह का वीर्य निचोड़ते देखना चाह राहु थी पर सुगना हार गयी। सरयू सिंह के त्रिकोणीय हमले ने सुगना को स्खलित होने पर मजबूर कर दिया। सरयू सिह के वीर्य की प्रतीक्षा में उसकी बुर और गर्भाशय ने अपना मुंह खोल दिया। उसकी बुर प्रेम रस की वर्षा करती रही पर सरयू सिंह का लण्ड न पसीजा वह स्खलन को तैयार न था।


अंततः सुगना निढाल हो गयी। कमर का जो कसाव उसने सरयू सिंह को उत्तेजित करने के लिए बनाया था वो ढीला पड़ गया।

सरयू सिंह ने सुगना को चुमते हुए कहा

"सुनना बाबू ठीक लागल हा नु"

"राउरो हो जाइत तो बहुत बढ़िया लागीत"

"अरे तोहार वादा भी तो पूरा करे के बा…"

सरयू सिंह का लण्ड अभी भी थिरक रहा था। सुगना जान चुकी थी की सरयू सिह बिना उसके दूसरे छेद का उद्घाटन किए उसे छोड़ने वाले नहीं थे। सुगना स्खलित हो चुकी थी। उसे पता अब सिर्फ और सिर्फ उसे सरयू सिंह को ही सुख देना था। अपनी छोटी सी गाँड़ में इतने बड़े मुसल को लेकर निश्चय ही उसे कुछ सुख नहीं मिलने वाला था।

सुगना ने मन ही मन सोचा वो उठी और सरयू सिंह के लण्ड को अपने हाथों में लेकर और उत्तेजित करने लगी। सरयू सिंह को तो जैसे शिलाजीत नहीं संजीवनी बूटी मिल चुकी थी। सुगना अपने हाथों से उस लण्ड को सहलाती और मसलती रही परंतु सरयू सिंह और उत्तेजित होते रहे..

उनका ध्यान सुगना की जांघों के बीच गया सूखे हुए वीर्य को देखकर एक बार वह फिर भड़क उठे। उन्होंने सुनना के बालों को पकड़ा और उसके चेहरे को अपने लण्ड की तरफ ले आए। निश्चय ही उन्होंने यह कार्य क्रोध में किया था परंतु सुगना ने इस आपदा को अवसर में बदल लिया।। उसने अपने बापू जी के लण्ड के सुपाड़े को मुंह में भर कर और उत्तेजित करने की कोशिश करने लगी।

सुगना अब यह जान चुकी थी कि उसके बाबूजी का स्खलन उसकी बुर में कतई नहीं हो पाएगा पर उसे अब भी उम्मीद थी कि वह सरयू सिह को पहले ही स्खलित करा लेगी और वीर्य को लण्ड से न सही अपनी उंगलियों से ही अपनी बूर् में पहुंचा देगी। यदि वह सफल न भी हुई तो उसका यह प्रयास व्यर्थ न जाएगा और वह उसे अपने गाड़ में उसे शीघ्र स्खलित करा पाएगी ताकि उसे कम से कम कष्ट से गुजरना पड़े।

सुगना अपने बाबूजी का लण्ड चूसने लगी वह अपनी हथेलियों से उनके अंडकोष को भी सहलाती और उसमें उबल रहे वीर्य को बाहर निकालने का प्रयास करती।


सरयू सिंह की उत्तेजना धीरे-धीरे बलवान होने लगी उन्होंने सुनना के सर को हटाया और अपनी मासूम बहू को होठों को एक बार चुमकर उसे वापस डॉगी स्टाइल में ला दिया। गांड पर लगा हुआ मक्खन अब भी कायम थी। सरयू सिंह ने सुगना की पीठ को चूमना शुरू किया और धीरे-धीरे दो उसके कानों तक पहुंच गए । लण्ड नितंबो के बीच अपनी जगह तलाशने लगा। सुगना ने अपने नितम्ब ऊंचे किये और लण्ड को फिर अपनी चुदी हुई बूर् में लेने की कोशिश की। पर आज लंड कुछ ज्यादा ही तना था। सरयू सिह ने एक हाथ से सुगना के होठों पर उंगलीया फिराते हुए उन्होंने दूसरे हाथ से अपने लण्ड को सुगना की गांड के छेद पर रखा और धीरे धीरे अपना दबाव बनाने लगे।

"सुगना तू बहुत सुंदर बाड़ू और ई तहर दूसर द्वार भी…"


जैसे ही लण्ड के सुपारे ने गांड के छेद को फैलाया सरयू सिंह ने सुगना के होठों को अपनी मजबूत हथेलियों से दबा लिया और एक ही झटके में अपने लण्ड को पेल दिया।

सुगना दर्द से बिलबिला उठी।। मुंह बंद होने की वजह से उसकी चीख बाहर ना आ पायी पर आखों से आंसू छलक उठे।


आज उसके मुंह से आह की जगह कराह निकली थी ..

"बाबूजी साँचो ...दुखाता…." सुगना की यह दर्द भरी कराह सिर्फ नियति ने ही सुनी। सरयू सिह की हथेलियों ने सुगना का मुंह बंद कर रखा था।

सुगना ने अपने बाबूजी की खुशी के लिए उस दर्द को सह लिया। लण्ड एक झटके में पूरी तरह अंदर ना जा पाया। सुगना को ऐसा प्रतीत हुआ जैसे उसकी गांड में कोई गर्म सलाख घुसा दी गई हो। सुगना एकदम शांत हो गयी। सरयू सिंह ने सुगना को शांत देखकर अपने हाथ हटाये और उसके कानों को एक बार फिर चूमते हुए बोले

"सुगना बाबू हो गइल अब ना दुखायी"

सरयू सिंह सुगना को बेहद प्यार करते थे और उसके शरीर की हर हरकत को महसूस कर लेते थे।


सुगना मजबूर थी वह चुपचाप सरयू सिह के अगले कदम का इंतजार करने लगी। सरयू सिंह ने अपने लण्ड को बाहर निकाला और धीरे-धीरे उसकी गांड में आगे पीछे करने लगे। सुगना को इस क्रीड़ा में कतई आनंद नहीं आ रहा था वह सिर्फ अपने बाबू जी को खुश करने के लिए उनका उत्साहवर्धन कर रही थी। उसे अब यह ज्ञात हो चुका था कि इस अपवित्र द्वार में घुसे हुए लण्ड से निकले हुए वीर्य को वह वापस अपनी बुर में कतई नहीं ले आएगी। वह अपने मन में यही योजना बनाने लगी कि अपने बाबू जी को कुछ देर आराम करने देकर वह एक बार उनके साथ पुनः संभोग करेगी और उनके वीर्य को अपने गर्भ में लेकर अपनी पुत्री का सृजन करेगी।

अपने विचारों में खोई हुई सुगना शांत थी और सरयू सिंह उसकी गांड लगातार मारे जा रहे थे उत्तेजना का यह दौर सरयू सिह के लिए बेहद कठिन था। सुगना की कसी हुई गांड में उनका लण्ड ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे किसी ने अंगूठे और तर्जनी से किसी ने गोल आकृति बना दी थी जी बेहद कसी हुयी थी। उनके लण्ड को काफी मशक्कत करनी पड़ रही थी...पर यही उनका चरमसुख था जिसके लिए वह कई वर्षों से इंतजार कर रहे थे। उनकी यह इच्छा को कजरी ने भी पूरा न किया था जिसके साथ उन्हीने न जाने कितने वर्षों तक काम सुख का आंनद लिया था। पर उनके सारे अरमान सुगना ने हो पूरे किए थे।

सरयू सिह अपना लण्ड पूरी तरह बाहर निकालते और फिर उसे थोड़ा आगे पीछे कर पीछे ताकत से पूरा जड़ तक अंदर डाल देते।


सूरज अब खिलौनों से उब चुका था वह अपनी मां के पास आकर कभी उसके चेहरे को छूता कभी चूचियो को जैसे वह सुगना को सांत्वना देने की कोशिश कर रहा हो। वह अपनी मां को सामने की तरफ खींच कर उसकी चुचियों से दूध पीना चाहता था परंतु सरयू सिह अभी सुगना को छोड़ने को तैयार ना थे। सरयू सिंह का चेहरा लाल हो चुका था।

माथे पर दाग पूरी तरह फूलकर फटने को तैयार था। जैसे-जैसे उनके लण्ड की रफ्तार बढ़ती गई उनकी धड़कनें तेज होती गयीं …..

और एक बार फिर वही हुआ जिसका सुगना को डर था। अपने नितंबों पर सुगना को सरयुसिंह की पकड़ ढीली लगने लगी। लण्ड की रफ्तार अचानक ही कम हो गई। लण्ड फिसल कर उसे बाहर जाता महसूस हुआ। सुबह पीछे पलटी। सरयू सिंह के चेहरे पर वासना की जगह दर्द था। वह असहज थे देखते हो देखते सरयू सिह कटे हुए वृक्ष की तरह धड़ाम से पांच सितारा होटल के कमरे की कारपेट पर गिर पड़े।

बाबूजी... बाबूजी ..चीखती हुयी सुगना उठ खड़ी हुई। वह कर उनके पास गई और उन्हें हिलाकर जगाने की कोशिश की।

नंगी सुगना अपने बाबूजी को जगाने के लिए भरपूर प्रयास कर रही थी। वह भागकर का एक टेबल पर रखे पानी के बोतल से पानी लाकर उनके चेहरे पर छींटे मारकर उन्हें जगाने की कोशिश की पर असफल रही।

सुगना थर थर कांप रही थी। उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था। इस अवस्था में वह किसी से कैसे मदद मांगे यह बात उसे समझ ना आ रही थी।

सूरज अब रोने लगा था। सरयू सिंह के माथे के दाग से रक्त का रिसाव होने लगा था। शायद उनके पाप का घड़ा भर चुका था। सुगना बेहद डर गई उसने एन केन प्रकारेण सरयू सिंह को घसीट कर बाथरूम के अंदर पहुंचाया। उनके लण्ड को साफ किया परंतु जाने यह कैसा विलक्षण संयोग था वह उनके लण्ड का तनाव न कम कर पाई।

एक पल के लिए उसे मन में आया कि सरयू सिंह की यह अवस्था होटल स्टाफ की नजरों में आएगी और वह बेइज्जत महसूस करेंगे परंतु इस अवस्था में उनका स्खलन करा पाना असंभव था।


सुगना ने उन्हें उसी स्थिति में छोड़ दिया उनके सारे कपड़े बाथरूम में लाकर डाल दिए और आनन-फानन में अपनी गांड पोछ कर वापस कमरे में आई और अपने कपड़े पहनकर होटल की लॉबी में जाकर मदद की गुहार लगाने लगी।

थोड़ी ही देर में होटल स्टाफ ने आकर सरयू सिंह की मदद की। सरयू सिह की नग्न अवस्था और खड़े लण्ड को देखकर होटल का स्टाफ आपस मे कानाफूसीं कर रहा था..

"साला बुड्ढा जवान माल देखकर मुठ मार रहा होगा…"

"साले का हथियार तो वाकई कमाल है"

"चल भोसड़ी के उठा, लण्ड मत देख" उनके भारी शरीर को उठाते हुए पहले ने कहा..

सुगना सरयू सिह का झोला कंधे में टांगे और सूरज को गोद मे लिए सरयू सिंह को कमरे से बाहर जाते देख रही थी। उसकी आंखें नाम थी और मन ही मन वह अपने इष्ट देव से उनकी कुशलता की कामना कर रही थी।


कुछ ही देर बाद सरयू सिंह होटल की एंबुलेंस में लेटे हुए शांत शरीर पर तना लण्ड लिए सुगना और सूरज के साथ हॉस्पिटल की तरफ रवाना हो गए….

हॉस्पिटल पहुंचकर सुगना ने एंबुलेंस के ड्राइवर से अनुरोध किया कि वह विद्यानंद जी के पंडाल में जाकर सरयू सिंह के बारे में उसके परिवार को सूचना दे दे।

स्ट्रेचर पर सरयू सिह को आईसीयू में ले जाया जा रहा था। उनके धोती में उभार अब भी कायम था। लण्ड अपना तनाव छोड़ने को तैयार न था परंतु सरयू सिह हॉस्पिटल के स्ट्रेचर पर लेटे निस्तेज दिखाई पड़ रहे थे। उनका दाग विकराल रूप में आ गया था और उससे रक्त का रिसाव जारी था। सुगना बेहद डरी और घबराई हुई थी ।


डॉक्टरों की टीम ने सरयू सिंह का चेकअप प्रारंभ कर दिया कुछ ही देर में डॉक्टर का असिस्टेंट बाहर आया और बोला कुछ रक्त की आवश्यकता है आप अपने संबंधियों को बुलाकर उसका इंतजाम कीजिए सुगना ने कहा आप मेरा रक्त ले सकते हैं। कंपाउंडर ने सुगना को ऊपर से नीचे तक देखा सुगना पूरी तरह स्वस्थ थी उसने सिस्टर को बुलाया और सुगना उसके साथ रक्त देने चल पड़ी।

जब तक कजरी और परिवार के बाकी सदस्य हॉस्पिटल आते तब तक सुगना का रक्त उसके बाबूजी को चढ़ाया जा चुका था। विशेष दवाइयों के प्रयोग तथा सुगना के रक्त से सरयू सिंह होश में आ चुके थे।

होश में आते ही डॉक्टर ने सरयू सिंह से कहा… आपने जिन कामोत्तेजक दवाइयों का सेवन किया था वह आपको नहीं करना चाहिए … मेरी बात आप शायद समझ रहे हैं। डॉक्टर ने सरयू सिंह के जननांगों की तरफ इशारा किया। सरयू सिह शर्म से आंखें झुकाए डॉक्टर की बात पूरी समझ तरह समझ चुके थे पर उनके होंठ सिले हुए थे। डॉक्टर ने फिर कहा..

आज आपकी जान आपकी बेटी ने बचा ली…

मेरी बेटी? सरयू सिंह ने डॉक्टर को प्रश्नवाचक निगाहों से देखा...

"हां जी हां…. हमें आप को बचाने के लिए आपके ही पुत्र या पुत्री के रक्त की आवश्यकता थी। यह ऊपर वाले कि कृपा थी की हमें आपकी बेटी का रक्त मिल गया और हम आपकी जान बचा सके..

सरयू सिह जब तक अपना दूसरा प्रश्न करते तब तक दरवाजा खुला सुगना नर्स के साथ अंदर आ रही थी। ..

सरयू सिंह के दिमाग में विचारों की घुड़दौड़ जारी थी और धड़कने तेज... दिमाग डॉक्टर द्वारा कही गई बात को मानने को तैयार न था….

शेष अगले भाग में….
बहुत ही सुंदर लाजवाब अद्भुत मनमोहक और उत्तेजना से भरपूर कामोत्तेजक अपडेट है भाई मजा आ गया
सरयूसिंग ने सुगना के दुसरें छेद का उद्घाटन तो कर दिया कामवासना में डाक्टर की दी गई एडवाइज भी भूल गया और अपनी जान जोखिम में डाल दी
लेकीन एक और धमाका हो गया कही सुगना, सरयूसिंग और पद्मा की बेटी तो नहीं है
 

Sanju@

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भाग 60

मेरी बेटी? सरयू सिंह ने डॉक्टर को प्रश्नवाचक निगाहों से देखा...


"हां जी हां…. हमें आप को बचाने के लिए आपके ही पुत्र या पुत्री के रक्त की आवश्यकता थी। यह ऊपर वाले कि कृपा थी की हमें आपकी बेटी का रक्त मिल गया और हम आपकी जान बचा सके..

सरयू सिह जब तक अपना दूसरा प्रश्न करते तब तक दरवाजा खुला सुगना नर्स के साथ अंदर आ रही थी। ..

सरयू सिंह के दिमाग में विचारों की घुड़दौड़ जारी थी और धड़कने तेज... दिमाग डॉक्टर द्वारा कही गई बात को मानने को तैयार न था….


अब आगे..


डॉक्टर ने विदा ली और सुगना की तरफ मुखातिब होते हुए बोला

"अपने बाबूजी का ख्याल रखना और अपना भी". डॉक्टर की बात सुनकर सरयू सिंह अचंभे में थे। उन्हें डॉक्टर की बात पर कतई विश्वास नहीं हो रहा था वह बार-बार यही सोच रहे थे कि शायद सुगना की उम्र की वजह से डॉक्टर ने उसे उनकी बेटी समझा होगा। परंतु उनके मन मे प्रश्न आ चुका था।

दोपहर हो चुकी थी सरयू सिंह हॉस्पिटल के बेड पर पड़े अपने भरे पूरे परिवार को देख रहे थे। डॉक्टर की बात उनके दिमाग में अभी भी गूंज रही थी क्या सुगना उनकी पुत्री थी?

अपने भरे पूरे परिवार के सामने न तो वो डॉक्टर द्वारा कही गई बात की तस्दीक कर सकते थे और न हीं उस पर कोई प्रश्न उठा कर उसे सब की जानकारी मे ला सकते थे। तब यह बातचीत गोपनीय न रहती यह उनके परिवार और लिए अनुचित होता और शायद पदमा के लिए भी.

कजरी, पदमा और सुगना सरयू सिंह की तीनों प्रेमिकाऐं उनके अद्भुत लण्ड का सुख ले चुकी थी पर जितना आनंद उन्होंने सुगना के साथ पाया था वह शायद अनोखा और निराला था।

पर आज डॉक्टर द्वारा कही गई बात को याद कर अब उनका हृदय व्यतीत था। आंनद कष्ट और बेचैनी में बदल चुका था।अपनी ही पुत्री के साथ किये गए व्यभिचार को सोच कर उनका हृदय विह्वल था।


एकांत पाकर उन्होंने पदमा से पूछा…

"एक बात पूछी..?"

"का बात बा?"

"उ कौन महीना रहे जब तू पानी में डूबत रहलू और हम तहरा के बचवले रहनी?" सरयू सिंह ने पदमा से मर्यादा में रहकर उसकी चुदाई के दिन के बारे में जानकारी लेने की कोशिश की।

पद्मा ने अपने दिमाग पर जोर दिया और होली के बाद आई अमावस के दिन की तस्दीक कर दी। पद्मा को आज भी वह अनोखी चुदाई याद थी। सरयू सिंह का दिमाग तेजी से घूमने लगा उन्होंने अपनी उंगलियों पर गड़ना प्रारंभ की और सुगना के जन्मदिन से उसका मिलान करने लगे। डॉक्टर की बात उन्हें सही प्रतीत होने लगी। …...क्यों उनका ध्यान इस बात की तरफ आज तक कभी नहीं गया था?

अब सरयू सिंह को पूरी तरह यकीन आ चुका था कि सुगना उनकी ही पुत्री थी। पढ़े लिखे होने के कारण वह डॉक्टर की बात को नजरअंदाज नहीं कर रहे थे परंतु उन्हें यकीन ही नहीं हो रहा था कि पदमा के साथ एक बार किए गए संभोग ने हीं उसे गर्भवती कर दिया था। यह बात यकीन के काबिल ना थी परंतु नियति ने सुगना का सृजन ही इसी निमित्त किया था….

मासूम सुगना सरयू सिंह के पैरों में तेल लगा रही थी सरयू सिंह उससे नजरे न मिला पा रहे थे। उनके दिल ने इतनी पीड़ा शायद कभी ना सही थी। अपनी ही पुत्री के साथ कामवासना का जो खेल उन्होंने खेला था आज वह उसे याद कर कर अपनी पीड़ा को और बढ़ा रहे थे। वह सुगना को देख न रहे थे परंतु उनके मन मस्तिष्क में सुगना नाच रही थी..

बरबस ही उन्हें सुगना के कामांगो और नग्न शरीर का ध्यान आता उनकी आत्मा उन्हें और कचोटने लगती। सरयू सिंह को अपना जीवन बोझ जैसा प्रतीत होने लगा।

उधर बनारस महोत्सव समाप्त हो चुका था। विद्यानंद का पांडाल उखड़ रहा था इधर सरयू सिंह की उम्मीदें। वह अपने आने वाले जीवन से ना उम्मीद हो चुके थे कामवासना उनके जीवन का प्रधान अंग थी और उसे पुष्पित पल्लवित करने वाली सुगना अचानक सरयू सिंह ने अविवाहित रहने के बावजूद कामवासना का ऐसा आनंद लिया था जो उस वक्त में विरले लोगों को ही नसीब होता था और तो और पिछले 3-4 वर्षों में सुगना ने तो उनके जीवन में नई खुशियां भर दी थीं। अपनी प्रौढ़ावस्था में सुगना जैसी सुकुमारी का साथ पाकर वह धन्य हो गए थे। सुगना ने उनकी वासना को तृप्त न किया अपितु आग को और भड़का दिया और वह सुगना के दूसरे छेद के पीछे पड़ गए थे।


रतन अपने परिवार का सारा सामान समेटकर मनोरमा द्वारा दी गई गाड़ी में रख कर हॉस्पिटल के बाहर आ चुका था और राजेश इन घटनाओं से अनजान बीती रात की सुनहरी यादे लिए अपनी ड्यूटी पर निकल चुका था।

लाली तक खबर सोनू ने पहुंचाई और उसे लेकर हॉस्पिटल आ गया था। लाली को भी इस बात की खबर हो गई कि सरयू चाचा होटल से सीधा हॉस्पिटल में आए थे। परंतु चाचा जी सुगना को लेकर होटल में क्यों गए थे? लाली का दिमाग इस प्रश्न का उत्तर स्वयं न खोज पा रहा था उसने सुगना के सामने कई प्रश्न रखे पर सुगना निरुत्तर थी।

शाम होते होते सरयू सिंह को हॉस्पिटल से डिस्चार्ज कर दिया गया। उनकी जांच रिपोर्ट और सुगना के खून जांच की रिपोर्ट उनको दे दी गई सरयू सिंह की मन में आया कि वह यह रिपोर्ट फाड़ दें ताकि आने वाले समय में भी यह बात किसी को पता ना चले परंतु वह हॉस्पिटल से आज ही डिस्चार्ज हुए थे रिपोर्ट की आवश्यकता कभी भी पढ़ सकती थी उन्होंने सुगना से कहा

" इकरा के संभाल के रखी ह आगे काम करी"

नियति ने सरयू सिंह का यह उदगार सुन लिया और उसे अपनी कथा में एक नया मोड़ आता दिखाई पड़ गया।

सुगना ने लाल झोले में रखी हुई उस रिपोर्ट को सहेज कर रख लिया। यह लाल झोला बेहद आकर्षक था। बरबस ही ध्यान खींचने वाला। झोले में दफन सुगना और सरयू सिह के रिश्ते कब उजागर होंगे और कौन करेगा यह तो वक्त ही बताएगा परंतु अब हॉस्पिटल की लॉबी में गहमागहमी बढ़ गई थी।

"बाबू जी …..तनी धीरे से…". सुगना की चिर परिचित आवाज एक बार फिर सुनाई दे पर इसमें कामवासना कतई न थी वह अपने बाबू जी को सावधान कर रही थी जो इस वक्त हॉस्पिटल की सीढ़ियां उतर रहे थे।


माथे पर दाग से अब भी रक्तस्राव हो रहा था जिसे डॉक्टरों ने पट्टी और मलहम लगाकर रोक दिया था। पर वह अब साफ साफ नजर आ रहा था..

" सोनू ने पूछा ज्यादा चोट लग गई रहल हा का?


का भईल रहे ? चक्कर आ गईल रहे का""

सरयू सिंह क्या जवाब देते उन्होंने कोई उत्तर न दिया वह शर्मसार थे.. शाम होते होते सरयू सिंह अपने परिवार के साथ सलेमपुर गए।

पदमा भी अपनी दोनों पुत्रियों सोनी और मोनी के साथ सीतापुर पहुंच चुकी थी। उन्हें छोड़ने गया सोनू अब भी सोनी के आकर्षण का केंद्र था।। जब जब वह सोनू को देखती उसे लाली के हाल में बिस्तर पर गिरा वह चिपचिपा द्रव्य याद आ जाता।। क्या सोनू भैया भी अपने हाथों से अपने उसको हिलाते होंगे? क्या वह भी लड़कियों के बारे में सोचते होंगे? सोनी को अपनी सोच पर शर्म आ रही थी ...परंतु जितना वह सोचती उसकी सोच का दायरा बढ़ता जाता।

शर्म और हया का आवरण धीरे-धीरे अपनी मर्यादा तोड़ता है सोनी अपनी सोच में धीरे-धीरे सोनू को और नग्न करती गई जितना ही वह उसके बारे में सोचती सोनू उसे उतना खुलकर दिखाई देता। सोनी शर्म हया त्याग कर पुरुषों के लण्ड की कल्पना करने लगी। विकास और सोनू दोनों ही उसकी कल्पना में आने लगे।

सोनी का युवा शरीर पुरुष संसर्ग का थोड़ा सुख पा चुका था परंतु जांघों के बीच उठ रही हलचल अभी पूरी तरह शांत ना हुई थी विकास की उंगलियों ने उस आग को और दहका दिया था।

बनारस महोत्सव बीत चुका था। कहानी के तीन अलग अलग प्रमुख पात्र लाली, मनोरमा और सुगना के गर्भ में आ चुके थे।

सरयू सिंह अपने दालान की सैया पर पड़े अपने जीवन को याद कर रहे थे। यह जानने के पश्चात की सुगना उनकी अपनी ही पुत्री है वह दर्द में थे।

अपनी ही पुत्री के साथ पिछले चार-पांच वर्षो से उन्होंने यहां वासना का जो खेल खेला था वह अब उनके गले की फांस बन चुका था। अपनी ही पुत्री को लड्डू में गर्भनिरोधक दवाइयां मिलाकर खिलाना तथा उसकी मासूम चाहतों के एवज में उसे कई दिनों बल्कि कई वर्षों तक लगातार चोदना….. ।


सुगना के साथ बिताई सुखद यादें अब कष्ट का कारण बन गई थी। कैसे उन्होंने सुगना को दिखा दिखाकर बछिया की चूची मीसी थी? कैसे होटल के कमरे में उन्होंने सुगना की चुचियों पर जानबूझकर टॉर्च मारा था? और कैसे उसकी जांघों के बीच छुपे मालपुए के दर्शन किए थे?

वह नियति के इशारे को न समझ पाए थे जब उन्होंने पहली बार सुगना की बूर् का दर्शन किया था तब भी उनके इष्टदेव द्वारा भेजे गए कीड़े ने उनके माथे पर दाग दे दिया था। यह उनके द्वारा किए जा रहे पाप को रोकने का एक इशारा था परंतु कुंवारी सुगना की अद्भुत चूत के आकर्षण में खोए सरयू सिंह उस इशारे को न समझ पाए थे।

यह वही कीड़ा था जिसने सरयुसिंह को उसकी माँ पद्मा के साथ संभोग करते देखा था तथा सरयू सिह के अंडकोषों के पास काट कर उन्हें पराई शादी शुदा स्त्री के गर्भ में वीर्य भरने से रोकने की कोशिश की थी।

परंतु निष्ठुर नियति सरयू सिंह की वासना पर लगाम न लगा सकी। वासना में अंधे सरयू सिह को रोक पाने में छोटे से कीड़े की कोशिश कामयाब न हो पायी पर उसने दाग दे दिया...जो सरयू सिह की वासना के अनुपात में बढ़ता रहा और अंततः फूट गया।

सारा घटनाक्रम चाहे वह दीपावली की रात या सुगना का कौमार्य भेदन का या अपनी भाभी कजरी के साथ मिलकर सुगना से त्रिकोणीय संभोग …..सारी सुनहरी यादें अब उनकी पीड़ा का कारण बन चुकी थी।


बनारस के पांच सितारा होटल में जो कृत्य किया था वह शायद उनके इष्ट देव को भी रास ना आया था। अपनी पुत्री के साथ …..हे…. भगवान उन्होंने क्या कर दिया था...

सरयू सिंह का किसी कार्य में मन न लगता । वह सुगना से नजरे ना मिला पाते।


सुगना हमेशा की तरह ही उन्हें वैसा ही प्यार व सेवा करती परंतु अब उसमें कामोत्तेजना की भावना न थी। वह जानती थी यह सरयू सिंह के लिए घातक होता। अपने बाबू जी को इस अवस्था में देखकर उसकी कामोत्तेजना भी कुछ दिनों के लिए शांत हो गई।

सुगना अब भी परेशान थी सरयू सिंह ने उसके साथ संभोग तो अवश्य किया था परंतु वीर्य स्खलन न कर पाए थे। राजेश के साथ बिताई उस रात से सुगना को कोई विशेष उम्मीद न थी वह जानती थी कि उसकी योनि में राजेश के वीर्य का कुछ अंश अवश्य गया था परंतु क्या वह उससे गर्भवती हो पाएगी? यह प्रश्न उसके मन में अब भी कायम था। सरयू सिंह को बिस्तर पर पड़ा देख सुगना ने अपने दिल पर पत्थर रखकर आगे उनसे संभोग करने का विचार कुछ समय के लिए त्याग दिया था।

वैसे भी बनारस महोत्सव बीत चुका था उसके गर्भ में यदि उसकी पुत्री का सृजन होना था तो हो चुका होगा। अन्यथा अब उसकी कोई उपयोगिता भी न रह गई थी। सुगना परेशान थी और मन ही मन अपने इष्ट देव से राजेश के वीर्य से ही सही गर्भधारण के लिए प्रार्थना कर रही थी। उसे अपने आने वाले मासिक धर्म के दिनों के बिना रजस्वला हुए बीतने का इंतजार था।

सरयू सिंह उसके अपने पिता थे। यह बात वह कतई न जानती थी यदि वह जान जाती तो न जाने क्या करती। उसके सरयू सिह की पुत्री होने की खून जांच की रिपोर्ट अटारी पर झोले में दबी धूल चाट रही थी। सुगना उसे कब देखेगी और कब अपने हिस्से का पश्चाताप झलेगी या अभी भविष्य के गर्भ में था। अभी तो इस रिश्ते को जानने का दंश सिर्फ और सिर्फ सरयू सिंह झेल रहे थे।

दिन बीतते देर नहीं लगते। सुगना का भी इंतजार खत्म हुआ और मासिक धर्म के दिन बिना जांघों के बीच कपड़ा फसाये..बीत गए । उसकी इच्छा भगवान ने पूरी कर दी थी।

वह मन ही मन यह सोचती कि आखिरकार इस गर्भ में आए शिशु का पिता कौन है? उसके बाबू जी ने तो स्खलन पूर्ण न किया था परंतु सुगना यह बात भी जानती थी कि लण्ड से रिस रहा वीर्य भी गर्भवती करने के लिए काफी होता है।


जब जब वह अपने गर्भ के बारे में सोचती उसे ऐसा प्रतीत होता है जैसे यह राजेश के वीर्य से ही सृजित हुआ था। सुगना ने इस बात पर ज्यादा तवज्जो न दिया । विद्यानंद की कही बातों के अनुसार सिर्फ उसे सूरज की बहन का सृजन करना था और वह उसकी कोख में आ चुकी थी। यद्यपि नियत ने उस गर्भ का लिंग निर्धारण न किया था परंतु सुगना मन ही मन उस गर्भ को अपनी पुत्री मान चुकी थी। इसके इतर सोचकर वह और दिमागी मुसीबत में नहीं पड़ना चाहती थी।

सुगना पूरे तन मन धन से अपने गर्भ को सुरक्षित और स्वस्थ रखने का प्रयास करने लगी घर में खुशियां व्याप्त थी। कजरी ने पूछा…

"लागा ता कुंवर जी फिर भीतरिया डाल देले हां….जाय दे दु गो रहीहें सो ता अच्छा रही... भगवान एक और लइका दे देस तो दोनों साथ ही खेलहै सो"

"ना मा हमरा ता लईकी चाही…"

कजरी कभी भी लड़कियों की पक्षधर न थी उस जमाने में लड़कियों को लड़कों का दर्जा प्राप्त न था. कजरी ने कुछ कहा नहीं परंतु उसने अपने इष्ट देव से गुहार लगाई जो सुगना की इच्छाओं के विपरीत थी... नियति दोनों की प्रार्थनाएं सुन रही थी... परंतु इस कामगाथा के लिए जिस पात्र की आवश्यकता थी सुगना के गर्भ में उसका ही सृजन होना था। नियति सर्वशक्तिमान थी।

सुगना के गर्भवती होने की खबर सरयू सिंह तक भी पहुंची उन्हें एक बार फिर सुगना की जांघों के बीच लगे वीर्य की याद आ गई। वह यह बात भली-भांति जानते थे कि उस दौरान उन्होंने सुगना के साथ एक भी बार संभोग नहीं किया था और जब यह मौका उन्हें प्राप्त हुआ भी तब वह सुगना की दूसरे छेद के पीछे पड़ गए थे। उन्हें मन ही मन विश्वास हो चला था किस सुगना के गर्भ में आया बच्चा निश्चित ही राजेश का ही है। परंतु सुगना अब उनकी पुत्री थी वह इस बारे में ज्यादा नहीं सोचना चाहते थे ...उन्होंने यथास्थिति स्वीकार कर ली थी एक लिहाज से वह पाप से जन्मे एक और संतान के पिता होने से बच गए थे।

सुगना ने अपने जीवन में एक बार फिर वैसे ही खुश थी जैसे सूरज के गर्भधारण के समय थी। पर इस खुशी में आज वह अकेली थी। सुगना ने राजेश के घर पर बितायी रात के अनुभव को कजरी से भी छुपा लिया था।

उसने कजरी को गर्भ धारण का कारण उसने सरयू सिह से मुलाकात ही बताया था। यह गर्भधारण अकारण हुआ था। कजरी मन ही मन सोचती काश यह न हुआ होता तो कुछ ही दिनों में रतन और सुगना करीब आ जाते और तब यह और उचित होता। परंतु मन की सोच कार्य मे परणित हो शायद यह हमेशा संभव नही होता।

इस गर्भधारण ने सुगना अपनी ही नजरों में गिरने से बचा लिया था। यद्यपि सरयू सिह से सफल संभोग न हो पाने के बाद अपने गर्भधारण की आशंकाओं को सोचते हुए वह मन ही मन प्रण कर चुकी थी कि यदि सूरज को सामान्य करने के लिए उसे कालांतर में अपने ही पुत्र सूरज के साथ निकृष्ट संभोग को करना भी पड़ेगा तो वह अवश्य करेंगी।

निष्ठुर नियति मन की भावनाएं भी पढ़ लेती है। सुगना ने जो बात अपने दिमाग में लाइ थी वह नियति ने न सिर्फ पढ़ लिया अपितु उसे योजना में समाहित करने लगी। वैसे भी न चाहते हुए भी सुगना अब सूरज की माँ भी थी और बहन भी…..विद्यानंद ने सूरज की मुक्ति का जो मार्ग बताया था सुगना सूरज की माँ और बहन होने के कारण विशेष रूप से उपयुक्त थी...

उधर लाली भी गर्भवती हो चुकी थी अपने प्यारे मुंह बोले भाई सोनू से पूरी तन्मयता और आत्मीयता से चुदने के पश्चात लाली के गर्भ ने भी सोनू के वीर्य को उसी प्रकार आत्मसात कर लिया था जिस प्रकार लाली और राजेश ने सोनू को।


जिस गर्भ का सृजन पूरे प्यार और आत्मीयता से हुआ हो उसका मन और भावनाएं कितने कोमल होंगे इस बात का अंदाजा पाठक लगा सकते हैं।

इसी प्रकार एक पात्र का सृजन मनोरमा के गर्भ में भी हुआ था। सरयू सिंह जैसे बलिष्ठ और मजबूत व्यक्ति तथा मनोरमा जैसी काबिल और सुंदर युवती के गर्भ में आने वाला शिशु निश्चित ही अपने माता पिता के गुणों से सुसज्जित होता।


इस बनारस महोत्सव ने मनोरमा के जीवन में भी खुशियां भर दी थी उसके गर्भवती होने की खबर सुनकर सेकेरेट्री साहब फूले नहीं समा रहे थे वह दर-दर मंदिरों में सर पटकते हुए भगवान का शुक्रिया अदा कर रहे थे। सच भी था शायद भगवान ने ही सरयू सिंह को मनोरमा के गर्भधारण के लिए भेज था।

मनोरमा मन ही मन अपने इष्ट देव को याद करती और कभी-कभी उसे सरयू सिंह देवस्वरूप दिखाई पड़ जाते। उसका सर जैसे अपने इष्ट देव के सामने झुकता वैसे ही सरयू सिंह के सामने। वह उनसे बेहद प्रभावित हो गई थी। उसे आशा ही नहीं पूर्ण विश्वास था कि या गर्भ उसे सरयू सिह से ही प्राप्त हुआ है अन्यथा जिस खेत को सेक्रेटरी साहब कई वर्षों से जोत और चोद रहे थे परंतु आज तक एक हरी दूब ने भी जन्म लिया था और आज पहली बार मनोरमा के उस खेत (गर्भ) में अद्भुत जीव का सृजन हो रहा था।

कहानी की तीनों वयस्क महिलाएं गर्भवती थी और अधेड़ अवस्था को प्राप्त कर चुकी सुगना की मां पदमा और सास कजरी दोनों काम सुख को तिलांजलि दे कर घरेलू जिम्मेदारियों में व्यस्त हो गई थी। कामुकता का जैसे अकाल पड़ गया था।


सारा दारोमदार सोनी पर आ गया था। सोनी की बहन मोनी अभी भी धर्म परायण थी और अपने शरीर में छुपे हुए खजाने से अनजान अपनी मां का हाथ बटाने में लगी रहती थी।

सोनी बिस्तर पर लेटी विकास के साथ बिताए पल याद कर रही थी उसकी हथेलियां स्तनों पर रेंग रही थी और जांघो के बीच फसा तकिया हिल रहा था…

जैसे जैसे तकिए की रगड़ जांघों के जोड़ पर बढ़ती गई सोनी की हथेलियां सूखी चुचियों को छोड़कर रसीली बुर की तरफ बढ़ गई। सोनी को अपनी रसीली बूर् को सहलाने में बेहद आनंद आता था..जैसे ही उंगलियों ने रसीले छेद पर छलके चिपचिपे रस को छुआ .तभी

"सोनी ए सोनी…." सोनू ने आवाज लगाई…


शेष अगले भाग में..
बहुत ही सुंदर लाजवाब और अद्भुत रमणीय अपडेट है भाई मजा आ गया
अब धीरे धीरे नियती ने आगे क्या क्या छुपा रखा हैं ये सामने आ रहा है
बहुत सारे रहस्यों पर से परदा हट रहा है सुगना सरयू की बेटी हैं सुगना लाली और मनोरमा तीनो गर्भवती हो गई है
अगले रोमांचकारी रहस्यमयी और धमाकेदार अपडेट की प्रतिक्षा रहेगी
 
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