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Incest आह..तनी धीरे से.....दुखाता.

Lovely Anand

Love is life
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आह ....तनी धीरे से ...दुखाता
(Exclysively for Xforum)
यह उपन्यास एक ग्रामीण युवती सुगना के जीवन के बारे में है जोअपने परिवार में पनप रहे कामुक संबंधों को रोकना तो दूर उसमें शामिल होती गई। नियति के रचे इस खेल में सुगना अपने परिवार में ही कामुक और अनुचित संबंधों को बढ़ावा देती रही, उसकी क्या मजबूरी थी? क्या उसके कदम अनुचित थे? क्या वह गलत थी? यह प्रश्न पाठक उपन्यास को पढ़कर ही बता सकते हैं। उपन्यास की शुरुआत में तत्कालीन पाठकों की रुचि को ध्यान में रखते हुए सेक्स को प्रधानता दी गई है जो समय के साथ न्यायोचित तरीके से कथानक की मांग के अनुसार दर्शाया गया है।

इस उपन्यास में इंसेस्ट एक संयोग है।
अनुक्रमणिका
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भाग 126 (मध्यांतर)
 
Last edited:

Lovely Anand

Love is life
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HAPPY DEEPAWALI

भाग 60

मेरी बेटी? सरयू सिंह ने डॉक्टर को प्रश्नवाचक निगाहों से देखा...


"हां जी हां…. हमें आप को बचाने के लिए आपके ही पुत्र या पुत्री के रक्त की आवश्यकता थी। यह ऊपर वाले कि कृपा थी की हमें आपकी बेटी का रक्त मिल गया और हम आपकी जान बचा सके..

सरयू सिह जब तक अपना दूसरा प्रश्न करते तब तक दरवाजा खुला सुगना नर्स के साथ अंदर आ रही थी। ..

सरयू सिंह के दिमाग में विचारों की घुड़दौड़ जारी थी और धड़कने तेज... दिमाग डॉक्टर द्वारा कही गई बात को मानने को तैयार न था….

अब आगे..


डॉक्टर ने विदा ली और सुगना की तरफ मुखातिब होते हुए बोला

"अपने बाबूजी का ख्याल रखना और अपना भी". डॉक्टर की बात सुनकर सरयू सिंह अचंभे में थे। उन्हें डॉक्टर की बात पर कतई विश्वास नहीं हो रहा था वह बार-बार यही सोच रहे थे कि शायद सुगना की उम्र की वजह से डॉक्टर ने उसे उनकी बेटी समझा होगा। परंतु उनके मन मे प्रश्न आ चुका था।

दोपहर हो चुकी थी सरयू सिंह हॉस्पिटल के बेड पर पड़े अपने भरे पूरे परिवार को देख रहे थे। डॉक्टर की बात उनके दिमाग में अभी भी गूंज रही थी क्या सुगना उनकी पुत्री थी?

अपने भरे पूरे परिवार के सामने न तो वो डॉक्टर द्वारा कही गई बात की तस्दीक कर सकते थे और न हीं उस पर कोई प्रश्न उठा कर उसे सब की जानकारी मे ला सकते थे। तब यह बातचीत गोपनीय न रहती यह उनके परिवार और लिए अनुचित होता और शायद पदमा के लिए भी.

कजरी, पदमा और सुगना सरयू सिंह की तीनों प्रेमिकाऐं उनके अद्भुत लण्ड का सुख ले चुकी थी पर जितना आनंद उन्होंने सुगना के साथ पाया था वह शायद अनोखा और निराला था।

पर आज डॉक्टर द्वारा कही गई बात को याद कर अब उनका हृदय व्यतीत था। आंनद कष्ट और बेचैनी में बदल चुका था।अपनी ही पुत्री के साथ किये गए व्यभिचार को सोच कर उनका हृदय विह्वल था।

एकांत पाकर उन्होंने पदमा से पूछा…

"एक बात पूछी..?"

"का बात बा?"

"उ कौन महीना रहे जब तू पानी में डूबत रहलू और हम तहरा के बचवले रहनी?" सरयू सिंह ने पदमा से मर्यादा में रहकर उसकी चुदाई के दिन के बारे में जानकारी लेने की कोशिश की।

पद्मा ने अपने दिमाग पर जोर दिया और होली के बाद आई अमावस के दिन की तस्दीक कर दी। पद्मा को आज भी वह अनोखी चुदाई याद थी। सरयू सिंह का दिमाग तेजी से घूमने लगा उन्होंने अपनी उंगलियों पर गड़ना प्रारंभ की और सुगना के जन्मदिन से उसका मिलान करने लगे। डॉक्टर की बात उन्हें सही प्रतीत होने लगी। …...क्यों उनका ध्यान इस बात की तरफ आज तक कभी नहीं गया था?

अब सरयू सिंह को पूरी तरह यकीन आ चुका था कि सुगना उनकी ही पुत्री थी। पढ़े लिखे होने के कारण वह डॉक्टर की बात को नजरअंदाज नहीं कर रहे थे परंतु उन्हें यकीन ही नहीं हो रहा था कि पदमा के साथ एक बार किए गए संभोग ने हीं उसे गर्भवती कर दिया था। यह बात यकीन के काबिल ना थी परंतु नियति ने सुगना का सृजन ही इसी निमित्त किया था….

मासूम सुगना सरयू सिंह के पैरों में तेल लगा रही थी सरयू सिंह उससे नजरे न मिला पा रहे थे। उनके दिल ने इतनी पीड़ा शायद कभी ना सही थी। अपनी ही पुत्री के साथ कामवासना का जो खेल उन्होंने खेला था आज वह उसे याद कर कर अपनी पीड़ा को और बढ़ा रहे थे। वह सुगना को देख न रहे थे परंतु उनके मन मस्तिष्क में सुगना नाच रही थी..

बरबस ही उन्हें सुगना के कामांगो और नग्न शरीर का ध्यान आता उनकी आत्मा उन्हें और कचोटने लगती। सरयू सिंह को अपना जीवन बोझ जैसा प्रतीत होने लगा।

उधर बनारस महोत्सव समाप्त हो चुका था। विद्यानंद का पांडाल उखड़ रहा था इधर सरयू सिंह की उम्मीदें। वह अपने आने वाले जीवन से ना उम्मीद हो चुके थे कामवासना उनके जीवन का प्रधान अंग थी और उसे पुष्पित पल्लवित करने वाली सुगना अचानक सरयू सिंह ने अविवाहित रहने के बावजूद कामवासना का ऐसा आनंद लिया था जो उस वक्त में विरले लोगों को ही नसीब होता था और तो और पिछले 3-4 वर्षों में सुगना ने तो उनके जीवन में नई खुशियां भर दी थीं। अपनी प्रौढ़ावस्था में सुगना जैसी सुकुमारी का साथ पाकर वह धन्य हो गए थे। सुगना ने उनकी वासना को तृप्त न किया अपितु आग को और भड़का दिया और वह सुगना के दूसरे छेद के पीछे पड़ गए थे।

रतन अपने परिवार का सारा सामान समेटकर मनोरमा द्वारा दी गई गाड़ी में रख कर हॉस्पिटल के बाहर आ चुका था और राजेश इन घटनाओं से अनजान बीती रात की सुनहरी यादे लिए अपनी ड्यूटी पर निकल चुका था।

लाली तक खबर सोनू ने पहुंचाई और उसे लेकर हॉस्पिटल आ गया था। लाली को भी इस बात की खबर हो गई कि सरयू चाचा होटल से सीधा हॉस्पिटल में आए थे। परंतु चाचा जी सुगना को लेकर होटल में क्यों गए थे? लाली का दिमाग इस प्रश्न का उत्तर स्वयं न खोज पा रहा था उसने सुगना के सामने कई प्रश्न रखे पर सुगना निरुत्तर थी।

शाम होते होते सरयू सिंह को हॉस्पिटल से डिस्चार्ज कर दिया गया। उनकी जांच रिपोर्ट और सुगना के खून जांच की रिपोर्ट उनको दे दी गई सरयू सिंह की मन में आया कि वह यह रिपोर्ट फाड़ दें ताकि आने वाले समय में भी यह बात किसी को पता ना चले परंतु वह हॉस्पिटल से आज ही डिस्चार्ज हुए थे रिपोर्ट की आवश्यकता कभी भी पढ़ सकती थी उन्होंने सुगना से कहा

" इकरा के संभाल के रखी ह आगे काम करी"

नियति ने सरयू सिंह का यह उदगार सुन लिया और उसे अपनी कथा में एक नया मोड़ आता दिखाई पड़ गया।

सुगना ने लाल झोले में रखी हुई उस रिपोर्ट को सहेज कर रख लिया। यह लाल झोला बेहद आकर्षक था। बरबस ही ध्यान खींचने वाला। झोले में दफन सुगना और सरयू सिह के रिश्ते कब उजागर होंगे और कौन करेगा यह तो वक्त ही बताएगा परंतु अब हॉस्पिटल की लॉबी में गहमागहमी बढ़ गई थी।

"बाबू जी …..तनी धीरे से…". सुगना की चिर परिचित आवाज एक बार फिर सुनाई दे पर इसमें कामवासना कतई न थी वह अपने बाबू जी को सावधान कर रही थी जो इस वक्त हॉस्पिटल की सीढ़ियां उतर रहे थे।

माथे पर दाग से अब भी रक्तस्राव हो रहा था जिसे डॉक्टरों ने पट्टी और मलहम लगाकर रोक दिया था। पर वह अब साफ साफ नजर आ रहा था..

" सोनू ने पूछा ज्यादा चोट लग गई रहल हा का?

का भईल रहे ? चक्कर आ गईल रहे का""

सरयू सिंह क्या जवाब देते उन्होंने कोई उत्तर न दिया वह शर्मसार थे.. शाम होते होते सरयू सिंह अपने परिवार के साथ सलेमपुर गए।

पदमा भी अपनी दोनों पुत्रियों सोनी और मोनी के साथ सीतापुर पहुंच चुकी थी। उन्हें छोड़ने गया सोनू अब भी सोनी के आकर्षण का केंद्र था।। जब जब वह सोनू को देखती उसे लाली के हाल में बिस्तर पर गिरा वह चिपचिपा द्रव्य याद आ जाता।। क्या सोनू भैया भी अपने हाथों से अपने उसको हिलाते होंगे? क्या वह भी लड़कियों के बारे में सोचते होंगे? सोनी को अपनी सोच पर शर्म आ रही थी ...परंतु जितना वह सोचती उसकी सोच का दायरा बढ़ता जाता।

शर्म और हया का आवरण धीरे-धीरे अपनी मर्यादा तोड़ता है सोनी अपनी सोच में धीरे-धीरे सोनू को और नग्न करती गई जितना ही वह उसके बारे में सोचती सोनू उसे उतना खुलकर दिखाई देता। सोनी शर्म हया त्याग कर पुरुषों के लण्ड की कल्पना करने लगी। विकास और सोनू दोनों ही उसकी कल्पना में आने लगे।

सोनी का युवा शरीर पुरुष संसर्ग का थोड़ा सुख पा चुका था परंतु जांघों के बीच उठ रही हलचल अभी पूरी तरह शांत ना हुई थी विकास की उंगलियों ने उस आग को और दहका दिया था।

बनारस महोत्सव बीत चुका था। कहानी के तीन अलग अलग प्रमुख पात्र लाली, मनोरमा और सुगना के गर्भ में आ चुके थे।

सरयू सिंह अपने दालान की सैया पर पड़े अपने जीवन को याद कर रहे थे। यह जानने के पश्चात की सुगना उनकी अपनी ही पुत्री है वह दर्द में थे।

अपनी ही पुत्री के साथ पिछले चार-पांच वर्षो से उन्होंने यहां वासना का जो खेल खेला था वह अब उनके गले की फांस बन चुका था। अपनी ही पुत्री को लड्डू में गर्भनिरोधक दवाइयां मिलाकर खिलाना तथा उसकी मासूम चाहतों के एवज में उसे कई दिनों बल्कि कई वर्षों तक लगातार चोदना….. ।

सुगना के साथ बिताई सुखद यादें अब कष्ट का कारण बन गई थी। कैसे उन्होंने सुगना को दिखा दिखाकर बछिया की चूची मीसी थी? कैसे होटल के कमरे में उन्होंने सुगना की चुचियों पर जानबूझकर टॉर्च मारा था? और कैसे उसकी जांघों के बीच छुपे मालपुए के दर्शन किए थे?

वह नियति के इशारे को न समझ पाए थे जब उन्होंने पहली बार सुगना की बूर् का दर्शन किया था तब भी उनके इष्टदेव द्वारा भेजे गए कीड़े ने उनके माथे पर दाग दे दिया था। यह उनके द्वारा किए जा रहे पाप को रोकने का एक इशारा था परंतु कुंवारी सुगना की अद्भुत चूत के आकर्षण में खोए सरयू सिंह उस इशारे को न समझ पाए थे।

यह वही कीड़ा था जिसने सरयुसिंह को उसकी माँ पद्मा के साथ संभोग करते देखा था तथा सरयू सिह के अंडकोषों के पास काट कर उन्हें पराई शादी शुदा स्त्री के गर्भ में वीर्य भरने से रोकने की कोशिश की थी।

परंतु निष्ठुर नियति सरयू सिंह की वासना पर लगाम न लगा सकी। वासना में अंधे सरयू सिह को रोक पाने में छोटे से कीड़े की कोशिश कामयाब न हो पायी पर उसने दाग दे दिया...जो सरयू सिह की वासना के अनुपात में बढ़ता रहा और अंततः फूट गया।

सारा घटनाक्रम चाहे वह दीपावली की रात या सुगना का कौमार्य भेदन का या अपनी भाभी कजरी के साथ मिलकर सुगना से त्रिकोणीय संभोग …..सारी सुनहरी यादें अब उनकी पीड़ा का कारण बन चुकी थी।

बनारस के पांच सितारा होटल में जो कृत्य किया था वह शायद उनके इष्ट देव को भी रास ना आया था। अपनी पुत्री के साथ …..हे…. भगवान उन्होंने क्या कर दिया था...

सरयू सिंह का किसी कार्य में मन न लगता । वह सुगना से नजरे ना मिला पाते।

सुगना हमेशा की तरह ही उन्हें वैसा ही प्यार व सेवा करती परंतु अब उसमें कामोत्तेजना की भावना न थी। वह जानती थी यह सरयू सिंह के लिए घातक होता। अपने बाबू जी को इस अवस्था में देखकर उसकी कामोत्तेजना भी कुछ दिनों के लिए शांत हो गई।

सुगना अब भी परेशान थी सरयू सिंह ने उसके साथ संभोग तो अवश्य किया था परंतु वीर्य स्खलन न कर पाए थे। राजेश के साथ बिताई उस रात से सुगना को कोई विशेष उम्मीद न थी वह जानती थी कि उसकी योनि में राजेश के वीर्य का कुछ अंश अवश्य गया था परंतु क्या वह उससे गर्भवती हो पाएगी? यह प्रश्न उसके मन में अब भी कायम था। सरयू सिंह को बिस्तर पर पड़ा देख सुगना ने अपने दिल पर पत्थर रखकर आगे उनसे संभोग करने का विचार कुछ समय के लिए त्याग दिया था।

वैसे भी बनारस महोत्सव बीत चुका था उसके गर्भ में यदि उसकी पुत्री का सृजन होना था तो हो चुका होगा। अन्यथा अब उसकी कोई उपयोगिता भी न रह गई थी। सुगना परेशान थी और मन ही मन अपने इष्ट देव से राजेश के वीर्य से ही सही गर्भधारण के लिए प्रार्थना कर रही थी। उसे अपने आने वाले मासिक धर्म के दिनों के बिना रजस्वला हुए बीतने का इंतजार था।

सरयू सिंह उसके अपने पिता थे। यह बात वह कतई न जानती थी यदि वह जान जाती तो न जाने क्या करती। उसके सरयू सिह की पुत्री होने की खून जांच की रिपोर्ट अटारी पर झोले में दबी धूल चाट रही थी। सुगना उसे कब देखेगी और कब अपने हिस्से का पश्चाताप झलेगी या अभी भविष्य के गर्भ में था। अभी तो इस रिश्ते को जानने का दंश सिर्फ और सिर्फ सरयू सिंह झेल रहे थे।

दिन बीतते देर नहीं लगते। सुगना का भी इंतजार खत्म हुआ और मासिक धर्म के दिन बिना जांघों के बीच कपड़ा फसाये..बीत गए । उसकी इच्छा भगवान ने पूरी कर दी थी।

वह मन ही मन यह सोचती कि आखिरकार इस गर्भ में आए शिशु का पिता कौन है? उसके बाबू जी ने तो स्खलन पूर्ण न किया था परंतु सुगना यह बात भी जानती थी कि लण्ड से रिस रहा वीर्य भी गर्भवती करने के लिए काफी होता है।

जब जब वह अपने गर्भ के बारे में सोचती उसे ऐसा प्रतीत होता है जैसे यह राजेश के वीर्य से ही सृजित हुआ था। सुगना ने इस बात पर ज्यादा तवज्जो न दिया । विद्यानंद की कही बातों के अनुसार सिर्फ उसे सूरज की बहन का सृजन करना था और वह उसकी कोख में आ चुकी थी। यद्यपि नियत ने उस गर्भ का लिंग निर्धारण न किया था परंतु सुगना मन ही मन उस गर्भ को अपनी पुत्री मान चुकी थी। इसके इतर सोचकर वह और दिमागी मुसीबत में नहीं पड़ना चाहती थी।

सुगना पूरे तन मन धन से अपने गर्भ को सुरक्षित और स्वस्थ रखने का प्रयास करने लगी घर में खुशियां व्याप्त थी। कजरी ने पूछा…

"लागा ता कुंवर जी फिर भीतरिया डाल देले हां….जाय दे दु गो रहीहें सो ता अच्छा रही... भगवान एक और लइका दे देस तो दोनों साथ ही खेलहै सो"

"ना मा हमरा ता लईकी चाही…"

कजरी कभी भी लड़कियों की पक्षधर न थी उस जमाने में लड़कियों को लड़कों का दर्जा प्राप्त न था. कजरी ने कुछ कहा नहीं परंतु उसने अपने इष्ट देव से गुहार लगाई जो सुगना की इच्छाओं के विपरीत थी... नियति दोनों की प्रार्थनाएं सुन रही थी... परंतु इस कामगाथा के लिए जिस पात्र की आवश्यकता थी सुगना के गर्भ में उसका ही सृजन होना था। नियति सर्वशक्तिमान थी।

सुगना के गर्भवती होने की खबर सरयू सिंह तक भी पहुंची उन्हें एक बार फिर सुगना की जांघों के बीच लगे वीर्य की याद आ गई। वह यह बात भली-भांति जानते थे कि उस दौरान उन्होंने सुगना के साथ एक भी बार संभोग नहीं किया था और जब यह मौका उन्हें प्राप्त हुआ भी तब वह सुगना की दूसरे छेद के पीछे पड़ गए थे। उन्हें मन ही मन विश्वास हो चला था किस सुगना के गर्भ में आया बच्चा निश्चित ही राजेश का ही है। परंतु सुगना अब उनकी पुत्री थी वह इस बारे में ज्यादा नहीं सोचना चाहते थे ...उन्होंने यथास्थिति स्वीकार कर ली थी एक लिहाज से वह पाप से जन्मे एक और संतान के पिता होने से बच गए थे।

सुगना ने अपने जीवन में एक बार फिर वैसे ही खुश थी जैसे सूरज के गर्भधारण के समय थी। पर इस खुशी में आज वह अकेली थी। सुगना ने राजेश के घर पर बितायी रात के अनुभव को कजरी से भी छुपा लिया था।

उसने कजरी को गर्भ धारण का कारण उसने सरयू सिह से मुलाकात ही बताया था। यह गर्भधारण अकारण हुआ था। कजरी मन ही मन सोचती काश यह न हुआ होता तो कुछ ही दिनों में रतन और सुगना करीब आ जाते और तब यह और उचित होता। परंतु मन की सोच कार्य मे परणित हो शायद यह हमेशा संभव नही होता।

इस गर्भधारण ने सुगना अपनी ही नजरों में गिरने से बचा लिया था। यद्यपि सरयू सिह से सफल संभोग न हो पाने के बाद अपने गर्भधारण की आशंकाओं को सोचते हुए वह मन ही मन प्रण कर चुकी थी कि यदि सूरज को सामान्य करने के लिए उसे कालांतर में अपने ही पुत्र सूरज के साथ निकृष्ट संभोग को करना भी पड़ेगा तो वह अवश्य करेंगी।

निष्ठुर नियति मन की भावनाएं भी पढ़ लेती है। सुगना ने जो बात अपने दिमाग में लाइ थी वह नियति ने न सिर्फ पढ़ लिया अपितु उसे योजना में समाहित करने लगी। वैसे भी न चाहते हुए भी सुगना अब सूरज की माँ भी थी और बहन भी…..विद्यानंद ने सूरज की मुक्ति का जो मार्ग बताया था सुगना सूरज की माँ और बहन होने के कारण विशेष रूप से उपयुक्त थी...

उधर लाली भी गर्भवती हो चुकी थी अपने प्यारे मुंह बोले भाई सोनू से पूरी तन्मयता और आत्मीयता से चुदने के पश्चात लाली के गर्भ ने भी सोनू के वीर्य को उसी प्रकार आत्मसात कर लिया था जिस प्रकार लाली और राजेश ने सोनू को।

जिस गर्भ का सृजन पूरे प्यार और आत्मीयता से हुआ हो उसका मन और भावनाएं कितने कोमल होंगे इस बात का अंदाजा पाठक लगा सकते हैं।

इसी प्रकार एक पात्र का सृजन मनोरमा के गर्भ में भी हुआ था। सरयू सिंह जैसे बलिष्ठ और मजबूत व्यक्ति तथा मनोरमा जैसी काबिल और सुंदर युवती के गर्भ में आने वाला शिशु निश्चित ही अपने माता पिता के गुणों से सुसज्जित होता।

इस बनारस महोत्सव ने मनोरमा के जीवन में भी खुशियां भर दी थी उसके गर्भवती होने की खबर सुनकर सेकेरेट्री साहब फूले नहीं समा रहे थे वह दर-दर मंदिरों में सर पटकते हुए भगवान का शुक्रिया अदा कर रहे थे। सच भी था शायद भगवान ने ही सरयू सिंह को मनोरमा के गर्भधारण के लिए भेज था।

मनोरमा मन ही मन अपने इष्ट देव को याद करती और कभी-कभी उसे सरयू सिंह देवस्वरूप दिखाई पड़ जाते। उसका सर जैसे अपने इष्ट देव के सामने झुकता वैसे ही सरयू सिंह के सामने। वह उनसे बेहद प्रभावित हो गई थी। उसे आशा ही नहीं पूर्ण विश्वास था कि या गर्भ उसे सरयू सिह से ही प्राप्त हुआ है अन्यथा जिस खेत को सेक्रेटरी साहब कई वर्षों से जोत और चोद रहे थे परंतु आज तक एक हरी दूब ने भी जन्म लिया था और आज पहली बार मनोरमा के उस खेत (गर्भ) में अद्भुत जीव का सृजन हो रहा था।

कहानी की तीनों वयस्क महिलाएं गर्भवती थी और अधेड़ अवस्था को प्राप्त कर चुकी सुगना की मां पदमा और सास कजरी दोनों काम सुख को तिलांजलि दे कर घरेलू जिम्मेदारियों में व्यस्त हो गई थी। कामुकता का जैसे अकाल पड़ गया था।

सारा दारोमदार सोनी पर आ गया था। सोनी की बहन मोनी अभी भी धर्म परायण थी और अपने शरीर में छुपे हुए खजाने से अनजान अपनी मां का हाथ बटाने में लगी रहती थी।

सोनी बिस्तर पर लेटी विकास के साथ बिताए पल याद कर रही थी उसकी हथेलियां स्तनों पर रेंग रही थी और जांघो के बीच फसा तकिया हिल रहा था…

जैसे जैसे तकिए की रगड़ जांघों के जोड़ पर बढ़ती गई सोनी की हथेलियां सूखी चुचियों को छोड़कर रसीली बुर की तरफ बढ़ गई। सोनी को अपनी रसीली बूर् को सहलाने में बेहद आनंद आता था..जैसे ही उंगलियों ने रसीले छेद पर छलके चिपचिपे रस को छुआ .तभी

"सोनी ए सोनी…." सोनू ने आवाज लगाई…


शेष अगले भाग में..


 

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भाग 60

मेरी बेटी? सरयू सिंह ने डॉक्टर को प्रश्नवाचक निगाहों से देखा...


"हां जी हां…. हमें आप को बचाने के लिए आपके ही पुत्र या पुत्री के रक्त की आवश्यकता थी। यह ऊपर वाले कि कृपा थी की हमें आपकी बेटी का रक्त मिल गया और हम आपकी जान बचा सके..

सरयू सिह जब तक अपना दूसरा प्रश्न करते तब तक दरवाजा खुला सुगना नर्स के साथ अंदर आ रही थी। ..

सरयू सिंह के दिमाग में विचारों की घुड़दौड़ जारी थी और धड़कने तेज... दिमाग डॉक्टर द्वारा कही गई बात को मानने को तैयार न था….


अब आगे..


डॉक्टर ने विदा ली और सुगना की तरफ मुखातिब होते हुए बोला

"अपने बाबूजी का ख्याल रखना और अपना भी". डॉक्टर की बात सुनकर सरयू सिंह अचंभे में थे। उन्हें डॉक्टर की बात पर कतई विश्वास नहीं हो रहा था वह बार-बार यही सोच रहे थे कि शायद सुगना की उम्र की वजह से डॉक्टर ने उसे उनकी बेटी समझा होगा। परंतु उनके मन मे प्रश्न आ चुका था।

दोपहर हो चुकी थी सरयू सिंह हॉस्पिटल के बेड पर पड़े अपने भरे पूरे परिवार को देख रहे थे। डॉक्टर की बात उनके दिमाग में अभी भी गूंज रही थी क्या सुगना उनकी पुत्री थी?

अपने भरे पूरे परिवार के सामने न तो वो डॉक्टर द्वारा कही गई बात की तस्दीक कर सकते थे और न हीं उस पर कोई प्रश्न उठा कर उसे सब की जानकारी मे ला सकते थे। तब यह बातचीत गोपनीय न रहती यह उनके परिवार और लिए अनुचित होता और शायद पदमा के लिए भी.

कजरी, पदमा और सुगना सरयू सिंह की तीनों प्रेमिकाऐं उनके अद्भुत लण्ड का सुख ले चुकी थी पर जितना आनंद उन्होंने सुगना के साथ पाया था वह शायद अनोखा और निराला था।

पर आज डॉक्टर द्वारा कही गई बात को याद कर अब उनका हृदय व्यतीत था। आंनद कष्ट और बेचैनी में बदल चुका था।अपनी ही पुत्री के साथ किये गए व्यभिचार को सोच कर उनका हृदय विह्वल था।


एकांत पाकर उन्होंने पदमा से पूछा…

"एक बात पूछी..?"

"का बात बा?"

"उ कौन महीना रहे जब तू पानी में डूबत रहलू और हम तहरा के बचवले रहनी?" सरयू सिंह ने पदमा से मर्यादा में रहकर उसकी चुदाई के दिन के बारे में जानकारी लेने की कोशिश की।

पद्मा ने अपने दिमाग पर जोर दिया और होली के बाद आई अमावस के दिन की तस्दीक कर दी। पद्मा को आज भी वह अनोखी चुदाई याद थी। सरयू सिंह का दिमाग तेजी से घूमने लगा उन्होंने अपनी उंगलियों पर गड़ना प्रारंभ की और सुगना के जन्मदिन से उसका मिलान करने लगे। डॉक्टर की बात उन्हें सही प्रतीत होने लगी। …...क्यों उनका ध्यान इस बात की तरफ आज तक कभी नहीं गया था?

अब सरयू सिंह को पूरी तरह यकीन आ चुका था कि सुगना उनकी ही पुत्री थी। पढ़े लिखे होने के कारण वह डॉक्टर की बात को नजरअंदाज नहीं कर रहे थे परंतु उन्हें यकीन ही नहीं हो रहा था कि पदमा के साथ एक बार किए गए संभोग ने हीं उसे गर्भवती कर दिया था। यह बात यकीन के काबिल ना थी परंतु नियति ने सुगना का सृजन ही इसी निमित्त किया था….

मासूम सुगना सरयू सिंह के पैरों में तेल लगा रही थी सरयू सिंह उससे नजरे न मिला पा रहे थे। उनके दिल ने इतनी पीड़ा शायद कभी ना सही थी। अपनी ही पुत्री के साथ कामवासना का जो खेल उन्होंने खेला था आज वह उसे याद कर कर अपनी पीड़ा को और बढ़ा रहे थे। वह सुगना को देख न रहे थे परंतु उनके मन मस्तिष्क में सुगना नाच रही थी..

बरबस ही उन्हें सुगना के कामांगो और नग्न शरीर का ध्यान आता उनकी आत्मा उन्हें और कचोटने लगती। सरयू सिंह को अपना जीवन बोझ जैसा प्रतीत होने लगा।

उधर बनारस महोत्सव समाप्त हो चुका था। विद्यानंद का पांडाल उखड़ रहा था इधर सरयू सिंह की उम्मीदें। वह अपने आने वाले जीवन से ना उम्मीद हो चुके थे कामवासना उनके जीवन का प्रधान अंग थी और उसे पुष्पित पल्लवित करने वाली सुगना अचानक सरयू सिंह ने अविवाहित रहने के बावजूद कामवासना का ऐसा आनंद लिया था जो उस वक्त में विरले लोगों को ही नसीब होता था और तो और पिछले 3-4 वर्षों में सुगना ने तो उनके जीवन में नई खुशियां भर दी थीं। अपनी प्रौढ़ावस्था में सुगना जैसी सुकुमारी का साथ पाकर वह धन्य हो गए थे। सुगना ने उनकी वासना को तृप्त न किया अपितु आग को और भड़का दिया और वह सुगना के दूसरे छेद के पीछे पड़ गए थे।


रतन अपने परिवार का सारा सामान समेटकर मनोरमा द्वारा दी गई गाड़ी में रख कर हॉस्पिटल के बाहर आ चुका था और राजेश इन घटनाओं से अनजान बीती रात की सुनहरी यादे लिए अपनी ड्यूटी पर निकल चुका था।

लाली तक खबर सोनू ने पहुंचाई और उसे लेकर हॉस्पिटल आ गया था। लाली को भी इस बात की खबर हो गई कि सरयू चाचा होटल से सीधा हॉस्पिटल में आए थे। परंतु चाचा जी सुगना को लेकर होटल में क्यों गए थे? लाली का दिमाग इस प्रश्न का उत्तर स्वयं न खोज पा रहा था उसने सुगना के सामने कई प्रश्न रखे पर सुगना निरुत्तर थी।

शाम होते होते सरयू सिंह को हॉस्पिटल से डिस्चार्ज कर दिया गया। उनकी जांच रिपोर्ट और सुगना के खून जांच की रिपोर्ट उनको दे दी गई सरयू सिंह की मन में आया कि वह यह रिपोर्ट फाड़ दें ताकि आने वाले समय में भी यह बात किसी को पता ना चले परंतु वह हॉस्पिटल से आज ही डिस्चार्ज हुए थे रिपोर्ट की आवश्यकता कभी भी पढ़ सकती थी उन्होंने सुगना से कहा

" इकरा के संभाल के रखी ह आगे काम करी"

नियति ने सरयू सिंह का यह उदगार सुन लिया और उसे अपनी कथा में एक नया मोड़ आता दिखाई पड़ गया।

सुगना ने लाल झोले में रखी हुई उस रिपोर्ट को सहेज कर रख लिया। यह लाल झोला बेहद आकर्षक था। बरबस ही ध्यान खींचने वाला। झोले में दफन सुगना और सरयू सिह के रिश्ते कब उजागर होंगे और कौन करेगा यह तो वक्त ही बताएगा परंतु अब हॉस्पिटल की लॉबी में गहमागहमी बढ़ गई थी।

"बाबू जी …..तनी धीरे से…". सुगना की चिर परिचित आवाज एक बार फिर सुनाई दे पर इसमें कामवासना कतई न थी वह अपने बाबू जी को सावधान कर रही थी जो इस वक्त हॉस्पिटल की सीढ़ियां उतर रहे थे।


माथे पर दाग से अब भी रक्तस्राव हो रहा था जिसे डॉक्टरों ने पट्टी और मलहम लगाकर रोक दिया था। पर वह अब साफ साफ नजर आ रहा था..

" सोनू ने पूछा ज्यादा चोट लग गई रहल हा का?


का भईल रहे ? चक्कर आ गईल रहे का""

सरयू सिंह क्या जवाब देते उन्होंने कोई उत्तर न दिया वह शर्मसार थे.. शाम होते होते सरयू सिंह अपने परिवार के साथ सलेमपुर गए।

पदमा भी अपनी दोनों पुत्रियों सोनी और मोनी के साथ सीतापुर पहुंच चुकी थी। उन्हें छोड़ने गया सोनू अब भी सोनी के आकर्षण का केंद्र था।। जब जब वह सोनू को देखती उसे लाली के हाल में बिस्तर पर गिरा वह चिपचिपा द्रव्य याद आ जाता।। क्या सोनू भैया भी अपने हाथों से अपने उसको हिलाते होंगे? क्या वह भी लड़कियों के बारे में सोचते होंगे? सोनी को अपनी सोच पर शर्म आ रही थी ...परंतु जितना वह सोचती उसकी सोच का दायरा बढ़ता जाता।

शर्म और हया का आवरण धीरे-धीरे अपनी मर्यादा तोड़ता है सोनी अपनी सोच में धीरे-धीरे सोनू को और नग्न करती गई जितना ही वह उसके बारे में सोचती सोनू उसे उतना खुलकर दिखाई देता। सोनी शर्म हया त्याग कर पुरुषों के लण्ड की कल्पना करने लगी। विकास और सोनू दोनों ही उसकी कल्पना में आने लगे।

सोनी का युवा शरीर पुरुष संसर्ग का थोड़ा सुख पा चुका था परंतु जांघों के बीच उठ रही हलचल अभी पूरी तरह शांत ना हुई थी विकास की उंगलियों ने उस आग को और दहका दिया था।

बनारस महोत्सव बीत चुका था। कहानी के तीन अलग अलग प्रमुख पात्र लाली, मनोरमा और सुगना के गर्भ में आ चुके थे।

सरयू सिंह अपने दालान की सैया पर पड़े अपने जीवन को याद कर रहे थे। यह जानने के पश्चात की सुगना उनकी अपनी ही पुत्री है वह दर्द में थे।

अपनी ही पुत्री के साथ पिछले चार-पांच वर्षो से उन्होंने यहां वासना का जो खेल खेला था वह अब उनके गले की फांस बन चुका था। अपनी ही पुत्री को लड्डू में गर्भनिरोधक दवाइयां मिलाकर खिलाना तथा उसकी मासूम चाहतों के एवज में उसे कई दिनों बल्कि कई वर्षों तक लगातार चोदना….. ।


सुगना के साथ बिताई सुखद यादें अब कष्ट का कारण बन गई थी। कैसे उन्होंने सुगना को दिखा दिखाकर बछिया की चूची मीसी थी? कैसे होटल के कमरे में उन्होंने सुगना की चुचियों पर जानबूझकर टॉर्च मारा था? और कैसे उसकी जांघों के बीच छुपे मालपुए के दर्शन किए थे?

वह नियति के इशारे को न समझ पाए थे जब उन्होंने पहली बार सुगना की बूर् का दर्शन किया था तब भी उनके इष्टदेव द्वारा भेजे गए कीड़े ने उनके माथे पर दाग दे दिया था। यह उनके द्वारा किए जा रहे पाप को रोकने का एक इशारा था परंतु कुंवारी सुगना की अद्भुत चूत के आकर्षण में खोए सरयू सिंह उस इशारे को न समझ पाए थे।

यह वही कीड़ा था जिसने सरयुसिंह को उसकी माँ पद्मा के साथ संभोग करते देखा था तथा सरयू सिह के अंडकोषों के पास काट कर उन्हें पराई शादी शुदा स्त्री के गर्भ में वीर्य भरने से रोकने की कोशिश की थी।

परंतु निष्ठुर नियति सरयू सिंह की वासना पर लगाम न लगा सकी। वासना में अंधे सरयू सिह को रोक पाने में छोटे से कीड़े की कोशिश कामयाब न हो पायी पर उसने दाग दे दिया...जो सरयू सिह की वासना के अनुपात में बढ़ता रहा और अंततः फूट गया।

सारा घटनाक्रम चाहे वह दीपावली की रात या सुगना का कौमार्य भेदन का या अपनी भाभी कजरी के साथ मिलकर सुगना से त्रिकोणीय संभोग …..सारी सुनहरी यादें अब उनकी पीड़ा का कारण बन चुकी थी।


बनारस के पांच सितारा होटल में जो कृत्य किया था वह शायद उनके इष्ट देव को भी रास ना आया था। अपनी पुत्री के साथ …..हे…. भगवान उन्होंने क्या कर दिया था...

सरयू सिंह का किसी कार्य में मन न लगता । वह सुगना से नजरे ना मिला पाते।


सुगना हमेशा की तरह ही उन्हें वैसा ही प्यार व सेवा करती परंतु अब उसमें कामोत्तेजना की भावना न थी। वह जानती थी यह सरयू सिंह के लिए घातक होता। अपने बाबू जी को इस अवस्था में देखकर उसकी कामोत्तेजना भी कुछ दिनों के लिए शांत हो गई।

सुगना अब भी परेशान थी सरयू सिंह ने उसके साथ संभोग तो अवश्य किया था परंतु वीर्य स्खलन न कर पाए थे। राजेश के साथ बिताई उस रात से सुगना को कोई विशेष उम्मीद न थी वह जानती थी कि उसकी योनि में राजेश के वीर्य का कुछ अंश अवश्य गया था परंतु क्या वह उससे गर्भवती हो पाएगी? यह प्रश्न उसके मन में अब भी कायम था। सरयू सिंह को बिस्तर पर पड़ा देख सुगना ने अपने दिल पर पत्थर रखकर आगे उनसे संभोग करने का विचार कुछ समय के लिए त्याग दिया था।

वैसे भी बनारस महोत्सव बीत चुका था उसके गर्भ में यदि उसकी पुत्री का सृजन होना था तो हो चुका होगा। अन्यथा अब उसकी कोई उपयोगिता भी न रह गई थी। सुगना परेशान थी और मन ही मन अपने इष्ट देव से राजेश के वीर्य से ही सही गर्भधारण के लिए प्रार्थना कर रही थी। उसे अपने आने वाले मासिक धर्म के दिनों के बिना रजस्वला हुए बीतने का इंतजार था।

सरयू सिंह उसके अपने पिता थे। यह बात वह कतई न जानती थी यदि वह जान जाती तो न जाने क्या करती। उसके सरयू सिह की पुत्री होने की खून जांच की रिपोर्ट अटारी पर झोले में दबी धूल चाट रही थी। सुगना उसे कब देखेगी और कब अपने हिस्से का पश्चाताप झलेगी या अभी भविष्य के गर्भ में था। अभी तो इस रिश्ते को जानने का दंश सिर्फ और सिर्फ सरयू सिंह झेल रहे थे।

दिन बीतते देर नहीं लगते। सुगना का भी इंतजार खत्म हुआ और मासिक धर्म के दिन बिना जांघों के बीच कपड़ा फसाये..बीत गए । उसकी इच्छा भगवान ने पूरी कर दी थी।

वह मन ही मन यह सोचती कि आखिरकार इस गर्भ में आए शिशु का पिता कौन है? उसके बाबू जी ने तो स्खलन पूर्ण न किया था परंतु सुगना यह बात भी जानती थी कि लण्ड से रिस रहा वीर्य भी गर्भवती करने के लिए काफी होता है।


जब जब वह अपने गर्भ के बारे में सोचती उसे ऐसा प्रतीत होता है जैसे यह राजेश के वीर्य से ही सृजित हुआ था। सुगना ने इस बात पर ज्यादा तवज्जो न दिया । विद्यानंद की कही बातों के अनुसार सिर्फ उसे सूरज की बहन का सृजन करना था और वह उसकी कोख में आ चुकी थी। यद्यपि नियत ने उस गर्भ का लिंग निर्धारण न किया था परंतु सुगना मन ही मन उस गर्भ को अपनी पुत्री मान चुकी थी। इसके इतर सोचकर वह और दिमागी मुसीबत में नहीं पड़ना चाहती थी।

सुगना पूरे तन मन धन से अपने गर्भ को सुरक्षित और स्वस्थ रखने का प्रयास करने लगी घर में खुशियां व्याप्त थी। कजरी ने पूछा…

"लागा ता कुंवर जी फिर भीतरिया डाल देले हां….जाय दे दु गो रहीहें सो ता अच्छा रही... भगवान एक और लइका दे देस तो दोनों साथ ही खेलहै सो"

"ना मा हमरा ता लईकी चाही…"

कजरी कभी भी लड़कियों की पक्षधर न थी उस जमाने में लड़कियों को लड़कों का दर्जा प्राप्त न था. कजरी ने कुछ कहा नहीं परंतु उसने अपने इष्ट देव से गुहार लगाई जो सुगना की इच्छाओं के विपरीत थी... नियति दोनों की प्रार्थनाएं सुन रही थी... परंतु इस कामगाथा के लिए जिस पात्र की आवश्यकता थी सुगना के गर्भ में उसका ही सृजन होना था। नियति सर्वशक्तिमान थी।

सुगना के गर्भवती होने की खबर सरयू सिंह तक भी पहुंची उन्हें एक बार फिर सुगना की जांघों के बीच लगे वीर्य की याद आ गई। वह यह बात भली-भांति जानते थे कि उस दौरान उन्होंने सुगना के साथ एक भी बार संभोग नहीं किया था और जब यह मौका उन्हें प्राप्त हुआ भी तब वह सुगना की दूसरे छेद के पीछे पड़ गए थे। उन्हें मन ही मन विश्वास हो चला था किस सुगना के गर्भ में आया बच्चा निश्चित ही राजेश का ही है। परंतु सुगना अब उनकी पुत्री थी वह इस बारे में ज्यादा नहीं सोचना चाहते थे ...उन्होंने यथास्थिति स्वीकार कर ली थी एक लिहाज से वह पाप से जन्मे एक और संतान के पिता होने से बच गए थे।

सुगना ने अपने जीवन में एक बार फिर वैसे ही खुश थी जैसे सूरज के गर्भधारण के समय थी। पर इस खुशी में आज वह अकेली थी। सुगना ने राजेश के घर पर बितायी रात के अनुभव को कजरी से भी छुपा लिया था।

उसने कजरी को गर्भ धारण का कारण उसने सरयू सिह से मुलाकात ही बताया था। यह गर्भधारण अकारण हुआ था। कजरी मन ही मन सोचती काश यह न हुआ होता तो कुछ ही दिनों में रतन और सुगना करीब आ जाते और तब यह और उचित होता। परंतु मन की सोच कार्य मे परणित हो शायद यह हमेशा संभव नही होता।

इस गर्भधारण ने सुगना अपनी ही नजरों में गिरने से बचा लिया था। यद्यपि सरयू सिह से सफल संभोग न हो पाने के बाद अपने गर्भधारण की आशंकाओं को सोचते हुए वह मन ही मन प्रण कर चुकी थी कि यदि सूरज को सामान्य करने के लिए उसे कालांतर में अपने ही पुत्र सूरज के साथ निकृष्ट संभोग को करना भी पड़ेगा तो वह अवश्य करेंगी।

निष्ठुर नियति मन की भावनाएं भी पढ़ लेती है। सुगना ने जो बात अपने दिमाग में लाइ थी वह नियति ने न सिर्फ पढ़ लिया अपितु उसे योजना में समाहित करने लगी। वैसे भी न चाहते हुए भी सुगना अब सूरज की माँ भी थी और बहन भी…..विद्यानंद ने सूरज की मुक्ति का जो मार्ग बताया था सुगना सूरज की माँ और बहन होने के कारण विशेष रूप से उपयुक्त थी...

उधर लाली भी गर्भवती हो चुकी थी अपने प्यारे मुंह बोले भाई सोनू से पूरी तन्मयता और आत्मीयता से चुदने के पश्चात लाली के गर्भ ने भी सोनू के वीर्य को उसी प्रकार आत्मसात कर लिया था जिस प्रकार लाली और राजेश ने सोनू को।


जिस गर्भ का सृजन पूरे प्यार और आत्मीयता से हुआ हो उसका मन और भावनाएं कितने कोमल होंगे इस बात का अंदाजा पाठक लगा सकते हैं।

इसी प्रकार एक पात्र का सृजन मनोरमा के गर्भ में भी हुआ था। सरयू सिंह जैसे बलिष्ठ और मजबूत व्यक्ति तथा मनोरमा जैसी काबिल और सुंदर युवती के गर्भ में आने वाला शिशु निश्चित ही अपने माता पिता के गुणों से सुसज्जित होता।


इस बनारस महोत्सव ने मनोरमा के जीवन में भी खुशियां भर दी थी उसके गर्भवती होने की खबर सुनकर सेकेरेट्री साहब फूले नहीं समा रहे थे वह दर-दर मंदिरों में सर पटकते हुए भगवान का शुक्रिया अदा कर रहे थे। सच भी था शायद भगवान ने ही सरयू सिंह को मनोरमा के गर्भधारण के लिए भेज था।

मनोरमा मन ही मन अपने इष्ट देव को याद करती और कभी-कभी उसे सरयू सिंह देवस्वरूप दिखाई पड़ जाते। उसका सर जैसे अपने इष्ट देव के सामने झुकता वैसे ही सरयू सिंह के सामने। वह उनसे बेहद प्रभावित हो गई थी। उसे आशा ही नहीं पूर्ण विश्वास था कि या गर्भ उसे सरयू सिह से ही प्राप्त हुआ है अन्यथा जिस खेत को सेक्रेटरी साहब कई वर्षों से जोत और चोद रहे थे परंतु आज तक एक हरी दूब ने भी जन्म लिया था और आज पहली बार मनोरमा के उस खेत (गर्भ) में अद्भुत जीव का सृजन हो रहा था।

कहानी की तीनों वयस्क महिलाएं गर्भवती थी और अधेड़ अवस्था को प्राप्त कर चुकी सुगना की मां पदमा और सास कजरी दोनों काम सुख को तिलांजलि दे कर घरेलू जिम्मेदारियों में व्यस्त हो गई थी। कामुकता का जैसे अकाल पड़ गया था।


सारा दारोमदार सोनी पर आ गया था। सोनी की बहन मोनी अभी भी धर्म परायण थी और अपने शरीर में छुपे हुए खजाने से अनजान अपनी मां का हाथ बटाने में लगी रहती थी।

सोनी बिस्तर पर लेटी विकास के साथ बिताए पल याद कर रही थी उसकी हथेलियां स्तनों पर रेंग रही थी और जांघो के बीच फसा तकिया हिल रहा था…

जैसे जैसे तकिए की रगड़ जांघों के जोड़ पर बढ़ती गई सोनी की हथेलियां सूखी चुचियों को छोड़कर रसीली बुर की तरफ बढ़ गई। सोनी को अपनी रसीली बूर् को सहलाने में बेहद आनंद आता था..जैसे ही उंगलियों ने रसीले छेद पर छलके चिपचिपे रस को छुआ .तभी

"सोनी ए सोनी…." सोनू ने आवाज लगाई…


शेष अगले भाग में..
Mast update tha....sab ka relationship ek hi update me repeat samajha diya
 

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बहुत ही सुंदर लाजवाब और अद्भुत रमणिय अपडेट है भाई मजा आ गया
अब धिरे धिरे नियती ने आगे क्या क्या परोसकर रखा हैं ये सामने आ रहा है
बहुत जबरदस्त कयी रहस्यों पर से परदा हट रहा है
अगले रोमांचकारी रहस्यमयी और धमाकेदार अपडेट की प्रतिक्षा रहेगी जल्दी से दिजिएगा
आप सभी को दिवाली की हार्दिक शुभकामनायें 🙏
 

Sanjdel66

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भाग 60

मेरी बेटी? सरयू सिंह ने डॉक्टर को प्रश्नवाचक निगाहों से देखा...


"हां जी हां…. हमें आप को बचाने के लिए आपके ही पुत्र या पुत्री के रक्त की आवश्यकता थी। यह ऊपर वाले कि कृपा थी की हमें आपकी बेटी का रक्त मिल गया और हम आपकी जान बचा सके..

सरयू सिह जब तक अपना दूसरा प्रश्न करते तब तक दरवाजा खुला सुगना नर्स के साथ अंदर आ रही थी। ..

सरयू सिंह के दिमाग में विचारों की घुड़दौड़ जारी थी और धड़कने तेज... दिमाग डॉक्टर द्वारा कही गई बात को मानने को तैयार न था….


अब आगे..


डॉक्टर ने विदा ली और सुगना की तरफ मुखातिब होते हुए बोला

"अपने बाबूजी का ख्याल रखना और अपना भी". डॉक्टर की बात सुनकर सरयू सिंह अचंभे में थे। उन्हें डॉक्टर की बात पर कतई विश्वास नहीं हो रहा था वह बार-बार यही सोच रहे थे कि शायद सुगना की उम्र की वजह से डॉक्टर ने उसे उनकी बेटी समझा होगा। परंतु उनके मन मे प्रश्न आ चुका था।

दोपहर हो चुकी थी सरयू सिंह हॉस्पिटल के बेड पर पड़े अपने भरे पूरे परिवार को देख रहे थे। डॉक्टर की बात उनके दिमाग में अभी भी गूंज रही थी क्या सुगना उनकी पुत्री थी?

अपने भरे पूरे परिवार के सामने न तो वो डॉक्टर द्वारा कही गई बात की तस्दीक कर सकते थे और न हीं उस पर कोई प्रश्न उठा कर उसे सब की जानकारी मे ला सकते थे। तब यह बातचीत गोपनीय न रहती यह उनके परिवार और लिए अनुचित होता और शायद पदमा के लिए भी.

कजरी, पदमा और सुगना सरयू सिंह की तीनों प्रेमिकाऐं उनके अद्भुत लण्ड का सुख ले चुकी थी पर जितना आनंद उन्होंने सुगना के साथ पाया था वह शायद अनोखा और निराला था।

पर आज डॉक्टर द्वारा कही गई बात को याद कर अब उनका हृदय व्यतीत था। आंनद कष्ट और बेचैनी में बदल चुका था।अपनी ही पुत्री के साथ किये गए व्यभिचार को सोच कर उनका हृदय विह्वल था।


एकांत पाकर उन्होंने पदमा से पूछा…

"एक बात पूछी..?"

"का बात बा?"

"उ कौन महीना रहे जब तू पानी में डूबत रहलू और हम तहरा के बचवले रहनी?" सरयू सिंह ने पदमा से मर्यादा में रहकर उसकी चुदाई के दिन के बारे में जानकारी लेने की कोशिश की।

पद्मा ने अपने दिमाग पर जोर दिया और होली के बाद आई अमावस के दिन की तस्दीक कर दी। पद्मा को आज भी वह अनोखी चुदाई याद थी। सरयू सिंह का दिमाग तेजी से घूमने लगा उन्होंने अपनी उंगलियों पर गड़ना प्रारंभ की और सुगना के जन्मदिन से उसका मिलान करने लगे। डॉक्टर की बात उन्हें सही प्रतीत होने लगी। …...क्यों उनका ध्यान इस बात की तरफ आज तक कभी नहीं गया था?

अब सरयू सिंह को पूरी तरह यकीन आ चुका था कि सुगना उनकी ही पुत्री थी। पढ़े लिखे होने के कारण वह डॉक्टर की बात को नजरअंदाज नहीं कर रहे थे परंतु उन्हें यकीन ही नहीं हो रहा था कि पदमा के साथ एक बार किए गए संभोग ने हीं उसे गर्भवती कर दिया था। यह बात यकीन के काबिल ना थी परंतु नियति ने सुगना का सृजन ही इसी निमित्त किया था….

मासूम सुगना सरयू सिंह के पैरों में तेल लगा रही थी सरयू सिंह उससे नजरे न मिला पा रहे थे। उनके दिल ने इतनी पीड़ा शायद कभी ना सही थी। अपनी ही पुत्री के साथ कामवासना का जो खेल उन्होंने खेला था आज वह उसे याद कर कर अपनी पीड़ा को और बढ़ा रहे थे। वह सुगना को देख न रहे थे परंतु उनके मन मस्तिष्क में सुगना नाच रही थी..

बरबस ही उन्हें सुगना के कामांगो और नग्न शरीर का ध्यान आता उनकी आत्मा उन्हें और कचोटने लगती। सरयू सिंह को अपना जीवन बोझ जैसा प्रतीत होने लगा।

उधर बनारस महोत्सव समाप्त हो चुका था। विद्यानंद का पांडाल उखड़ रहा था इधर सरयू सिंह की उम्मीदें। वह अपने आने वाले जीवन से ना उम्मीद हो चुके थे कामवासना उनके जीवन का प्रधान अंग थी और उसे पुष्पित पल्लवित करने वाली सुगना अचानक सरयू सिंह ने अविवाहित रहने के बावजूद कामवासना का ऐसा आनंद लिया था जो उस वक्त में विरले लोगों को ही नसीब होता था और तो और पिछले 3-4 वर्षों में सुगना ने तो उनके जीवन में नई खुशियां भर दी थीं। अपनी प्रौढ़ावस्था में सुगना जैसी सुकुमारी का साथ पाकर वह धन्य हो गए थे। सुगना ने उनकी वासना को तृप्त न किया अपितु आग को और भड़का दिया और वह सुगना के दूसरे छेद के पीछे पड़ गए थे।


रतन अपने परिवार का सारा सामान समेटकर मनोरमा द्वारा दी गई गाड़ी में रख कर हॉस्पिटल के बाहर आ चुका था और राजेश इन घटनाओं से अनजान बीती रात की सुनहरी यादे लिए अपनी ड्यूटी पर निकल चुका था।

लाली तक खबर सोनू ने पहुंचाई और उसे लेकर हॉस्पिटल आ गया था। लाली को भी इस बात की खबर हो गई कि सरयू चाचा होटल से सीधा हॉस्पिटल में आए थे। परंतु चाचा जी सुगना को लेकर होटल में क्यों गए थे? लाली का दिमाग इस प्रश्न का उत्तर स्वयं न खोज पा रहा था उसने सुगना के सामने कई प्रश्न रखे पर सुगना निरुत्तर थी।

शाम होते होते सरयू सिंह को हॉस्पिटल से डिस्चार्ज कर दिया गया। उनकी जांच रिपोर्ट और सुगना के खून जांच की रिपोर्ट उनको दे दी गई सरयू सिंह की मन में आया कि वह यह रिपोर्ट फाड़ दें ताकि आने वाले समय में भी यह बात किसी को पता ना चले परंतु वह हॉस्पिटल से आज ही डिस्चार्ज हुए थे रिपोर्ट की आवश्यकता कभी भी पढ़ सकती थी उन्होंने सुगना से कहा

" इकरा के संभाल के रखी ह आगे काम करी"

नियति ने सरयू सिंह का यह उदगार सुन लिया और उसे अपनी कथा में एक नया मोड़ आता दिखाई पड़ गया।

सुगना ने लाल झोले में रखी हुई उस रिपोर्ट को सहेज कर रख लिया। यह लाल झोला बेहद आकर्षक था। बरबस ही ध्यान खींचने वाला। झोले में दफन सुगना और सरयू सिह के रिश्ते कब उजागर होंगे और कौन करेगा यह तो वक्त ही बताएगा परंतु अब हॉस्पिटल की लॉबी में गहमागहमी बढ़ गई थी।

"बाबू जी …..तनी धीरे से…". सुगना की चिर परिचित आवाज एक बार फिर सुनाई दे पर इसमें कामवासना कतई न थी वह अपने बाबू जी को सावधान कर रही थी जो इस वक्त हॉस्पिटल की सीढ़ियां उतर रहे थे।


माथे पर दाग से अब भी रक्तस्राव हो रहा था जिसे डॉक्टरों ने पट्टी और मलहम लगाकर रोक दिया था। पर वह अब साफ साफ नजर आ रहा था..

" सोनू ने पूछा ज्यादा चोट लग गई रहल हा का?


का भईल रहे ? चक्कर आ गईल रहे का""

सरयू सिंह क्या जवाब देते उन्होंने कोई उत्तर न दिया वह शर्मसार थे.. शाम होते होते सरयू सिंह अपने परिवार के साथ सलेमपुर गए।

पदमा भी अपनी दोनों पुत्रियों सोनी और मोनी के साथ सीतापुर पहुंच चुकी थी। उन्हें छोड़ने गया सोनू अब भी सोनी के आकर्षण का केंद्र था।। जब जब वह सोनू को देखती उसे लाली के हाल में बिस्तर पर गिरा वह चिपचिपा द्रव्य याद आ जाता।। क्या सोनू भैया भी अपने हाथों से अपने उसको हिलाते होंगे? क्या वह भी लड़कियों के बारे में सोचते होंगे? सोनी को अपनी सोच पर शर्म आ रही थी ...परंतु जितना वह सोचती उसकी सोच का दायरा बढ़ता जाता।

शर्म और हया का आवरण धीरे-धीरे अपनी मर्यादा तोड़ता है सोनी अपनी सोच में धीरे-धीरे सोनू को और नग्न करती गई जितना ही वह उसके बारे में सोचती सोनू उसे उतना खुलकर दिखाई देता। सोनी शर्म हया त्याग कर पुरुषों के लण्ड की कल्पना करने लगी। विकास और सोनू दोनों ही उसकी कल्पना में आने लगे।

सोनी का युवा शरीर पुरुष संसर्ग का थोड़ा सुख पा चुका था परंतु जांघों के बीच उठ रही हलचल अभी पूरी तरह शांत ना हुई थी विकास की उंगलियों ने उस आग को और दहका दिया था।

बनारस महोत्सव बीत चुका था। कहानी के तीन अलग अलग प्रमुख पात्र लाली, मनोरमा और सुगना के गर्भ में आ चुके थे।

सरयू सिंह अपने दालान की सैया पर पड़े अपने जीवन को याद कर रहे थे। यह जानने के पश्चात की सुगना उनकी अपनी ही पुत्री है वह दर्द में थे।

अपनी ही पुत्री के साथ पिछले चार-पांच वर्षो से उन्होंने यहां वासना का जो खेल खेला था वह अब उनके गले की फांस बन चुका था। अपनी ही पुत्री को लड्डू में गर्भनिरोधक दवाइयां मिलाकर खिलाना तथा उसकी मासूम चाहतों के एवज में उसे कई दिनों बल्कि कई वर्षों तक लगातार चोदना….. ।


सुगना के साथ बिताई सुखद यादें अब कष्ट का कारण बन गई थी। कैसे उन्होंने सुगना को दिखा दिखाकर बछिया की चूची मीसी थी? कैसे होटल के कमरे में उन्होंने सुगना की चुचियों पर जानबूझकर टॉर्च मारा था? और कैसे उसकी जांघों के बीच छुपे मालपुए के दर्शन किए थे?

वह नियति के इशारे को न समझ पाए थे जब उन्होंने पहली बार सुगना की बूर् का दर्शन किया था तब भी उनके इष्टदेव द्वारा भेजे गए कीड़े ने उनके माथे पर दाग दे दिया था। यह उनके द्वारा किए जा रहे पाप को रोकने का एक इशारा था परंतु कुंवारी सुगना की अद्भुत चूत के आकर्षण में खोए सरयू सिंह उस इशारे को न समझ पाए थे।

यह वही कीड़ा था जिसने सरयुसिंह को उसकी माँ पद्मा के साथ संभोग करते देखा था तथा सरयू सिह के अंडकोषों के पास काट कर उन्हें पराई शादी शुदा स्त्री के गर्भ में वीर्य भरने से रोकने की कोशिश की थी।

परंतु निष्ठुर नियति सरयू सिंह की वासना पर लगाम न लगा सकी। वासना में अंधे सरयू सिह को रोक पाने में छोटे से कीड़े की कोशिश कामयाब न हो पायी पर उसने दाग दे दिया...जो सरयू सिह की वासना के अनुपात में बढ़ता रहा और अंततः फूट गया।

सारा घटनाक्रम चाहे वह दीपावली की रात या सुगना का कौमार्य भेदन का या अपनी भाभी कजरी के साथ मिलकर सुगना से त्रिकोणीय संभोग …..सारी सुनहरी यादें अब उनकी पीड़ा का कारण बन चुकी थी।


बनारस के पांच सितारा होटल में जो कृत्य किया था वह शायद उनके इष्ट देव को भी रास ना आया था। अपनी पुत्री के साथ …..हे…. भगवान उन्होंने क्या कर दिया था...

सरयू सिंह का किसी कार्य में मन न लगता । वह सुगना से नजरे ना मिला पाते।


सुगना हमेशा की तरह ही उन्हें वैसा ही प्यार व सेवा करती परंतु अब उसमें कामोत्तेजना की भावना न थी। वह जानती थी यह सरयू सिंह के लिए घातक होता। अपने बाबू जी को इस अवस्था में देखकर उसकी कामोत्तेजना भी कुछ दिनों के लिए शांत हो गई।

सुगना अब भी परेशान थी सरयू सिंह ने उसके साथ संभोग तो अवश्य किया था परंतु वीर्य स्खलन न कर पाए थे। राजेश के साथ बिताई उस रात से सुगना को कोई विशेष उम्मीद न थी वह जानती थी कि उसकी योनि में राजेश के वीर्य का कुछ अंश अवश्य गया था परंतु क्या वह उससे गर्भवती हो पाएगी? यह प्रश्न उसके मन में अब भी कायम था। सरयू सिंह को बिस्तर पर पड़ा देख सुगना ने अपने दिल पर पत्थर रखकर आगे उनसे संभोग करने का विचार कुछ समय के लिए त्याग दिया था।

वैसे भी बनारस महोत्सव बीत चुका था उसके गर्भ में यदि उसकी पुत्री का सृजन होना था तो हो चुका होगा। अन्यथा अब उसकी कोई उपयोगिता भी न रह गई थी। सुगना परेशान थी और मन ही मन अपने इष्ट देव से राजेश के वीर्य से ही सही गर्भधारण के लिए प्रार्थना कर रही थी। उसे अपने आने वाले मासिक धर्म के दिनों के बिना रजस्वला हुए बीतने का इंतजार था।

सरयू सिंह उसके अपने पिता थे। यह बात वह कतई न जानती थी यदि वह जान जाती तो न जाने क्या करती। उसके सरयू सिह की पुत्री होने की खून जांच की रिपोर्ट अटारी पर झोले में दबी धूल चाट रही थी। सुगना उसे कब देखेगी और कब अपने हिस्से का पश्चाताप झलेगी या अभी भविष्य के गर्भ में था। अभी तो इस रिश्ते को जानने का दंश सिर्फ और सिर्फ सरयू सिंह झेल रहे थे।

दिन बीतते देर नहीं लगते। सुगना का भी इंतजार खत्म हुआ और मासिक धर्म के दिन बिना जांघों के बीच कपड़ा फसाये..बीत गए । उसकी इच्छा भगवान ने पूरी कर दी थी।

वह मन ही मन यह सोचती कि आखिरकार इस गर्भ में आए शिशु का पिता कौन है? उसके बाबू जी ने तो स्खलन पूर्ण न किया था परंतु सुगना यह बात भी जानती थी कि लण्ड से रिस रहा वीर्य भी गर्भवती करने के लिए काफी होता है।


जब जब वह अपने गर्भ के बारे में सोचती उसे ऐसा प्रतीत होता है जैसे यह राजेश के वीर्य से ही सृजित हुआ था। सुगना ने इस बात पर ज्यादा तवज्जो न दिया । विद्यानंद की कही बातों के अनुसार सिर्फ उसे सूरज की बहन का सृजन करना था और वह उसकी कोख में आ चुकी थी। यद्यपि नियत ने उस गर्भ का लिंग निर्धारण न किया था परंतु सुगना मन ही मन उस गर्भ को अपनी पुत्री मान चुकी थी। इसके इतर सोचकर वह और दिमागी मुसीबत में नहीं पड़ना चाहती थी।

सुगना पूरे तन मन धन से अपने गर्भ को सुरक्षित और स्वस्थ रखने का प्रयास करने लगी घर में खुशियां व्याप्त थी। कजरी ने पूछा…

"लागा ता कुंवर जी फिर भीतरिया डाल देले हां….जाय दे दु गो रहीहें सो ता अच्छा रही... भगवान एक और लइका दे देस तो दोनों साथ ही खेलहै सो"

"ना मा हमरा ता लईकी चाही…"

कजरी कभी भी लड़कियों की पक्षधर न थी उस जमाने में लड़कियों को लड़कों का दर्जा प्राप्त न था. कजरी ने कुछ कहा नहीं परंतु उसने अपने इष्ट देव से गुहार लगाई जो सुगना की इच्छाओं के विपरीत थी... नियति दोनों की प्रार्थनाएं सुन रही थी... परंतु इस कामगाथा के लिए जिस पात्र की आवश्यकता थी सुगना के गर्भ में उसका ही सृजन होना था। नियति सर्वशक्तिमान थी।

सुगना के गर्भवती होने की खबर सरयू सिंह तक भी पहुंची उन्हें एक बार फिर सुगना की जांघों के बीच लगे वीर्य की याद आ गई। वह यह बात भली-भांति जानते थे कि उस दौरान उन्होंने सुगना के साथ एक भी बार संभोग नहीं किया था और जब यह मौका उन्हें प्राप्त हुआ भी तब वह सुगना की दूसरे छेद के पीछे पड़ गए थे। उन्हें मन ही मन विश्वास हो चला था किस सुगना के गर्भ में आया बच्चा निश्चित ही राजेश का ही है। परंतु सुगना अब उनकी पुत्री थी वह इस बारे में ज्यादा नहीं सोचना चाहते थे ...उन्होंने यथास्थिति स्वीकार कर ली थी एक लिहाज से वह पाप से जन्मे एक और संतान के पिता होने से बच गए थे।

सुगना ने अपने जीवन में एक बार फिर वैसे ही खुश थी जैसे सूरज के गर्भधारण के समय थी। पर इस खुशी में आज वह अकेली थी। सुगना ने राजेश के घर पर बितायी रात के अनुभव को कजरी से भी छुपा लिया था।

उसने कजरी को गर्भ धारण का कारण उसने सरयू सिह से मुलाकात ही बताया था। यह गर्भधारण अकारण हुआ था। कजरी मन ही मन सोचती काश यह न हुआ होता तो कुछ ही दिनों में रतन और सुगना करीब आ जाते और तब यह और उचित होता। परंतु मन की सोच कार्य मे परणित हो शायद यह हमेशा संभव नही होता।

इस गर्भधारण ने सुगना अपनी ही नजरों में गिरने से बचा लिया था। यद्यपि सरयू सिह से सफल संभोग न हो पाने के बाद अपने गर्भधारण की आशंकाओं को सोचते हुए वह मन ही मन प्रण कर चुकी थी कि यदि सूरज को सामान्य करने के लिए उसे कालांतर में अपने ही पुत्र सूरज के साथ निकृष्ट संभोग को करना भी पड़ेगा तो वह अवश्य करेंगी।

निष्ठुर नियति मन की भावनाएं भी पढ़ लेती है। सुगना ने जो बात अपने दिमाग में लाइ थी वह नियति ने न सिर्फ पढ़ लिया अपितु उसे योजना में समाहित करने लगी। वैसे भी न चाहते हुए भी सुगना अब सूरज की माँ भी थी और बहन भी…..विद्यानंद ने सूरज की मुक्ति का जो मार्ग बताया था सुगना सूरज की माँ और बहन होने के कारण विशेष रूप से उपयुक्त थी...

उधर लाली भी गर्भवती हो चुकी थी अपने प्यारे मुंह बोले भाई सोनू से पूरी तन्मयता और आत्मीयता से चुदने के पश्चात लाली के गर्भ ने भी सोनू के वीर्य को उसी प्रकार आत्मसात कर लिया था जिस प्रकार लाली और राजेश ने सोनू को।


जिस गर्भ का सृजन पूरे प्यार और आत्मीयता से हुआ हो उसका मन और भावनाएं कितने कोमल होंगे इस बात का अंदाजा पाठक लगा सकते हैं।

इसी प्रकार एक पात्र का सृजन मनोरमा के गर्भ में भी हुआ था। सरयू सिंह जैसे बलिष्ठ और मजबूत व्यक्ति तथा मनोरमा जैसी काबिल और सुंदर युवती के गर्भ में आने वाला शिशु निश्चित ही अपने माता पिता के गुणों से सुसज्जित होता।


इस बनारस महोत्सव ने मनोरमा के जीवन में भी खुशियां भर दी थी उसके गर्भवती होने की खबर सुनकर सेकेरेट्री साहब फूले नहीं समा रहे थे वह दर-दर मंदिरों में सर पटकते हुए भगवान का शुक्रिया अदा कर रहे थे। सच भी था शायद भगवान ने ही सरयू सिंह को मनोरमा के गर्भधारण के लिए भेज था।

मनोरमा मन ही मन अपने इष्ट देव को याद करती और कभी-कभी उसे सरयू सिंह देवस्वरूप दिखाई पड़ जाते। उसका सर जैसे अपने इष्ट देव के सामने झुकता वैसे ही सरयू सिंह के सामने। वह उनसे बेहद प्रभावित हो गई थी। उसे आशा ही नहीं पूर्ण विश्वास था कि या गर्भ उसे सरयू सिह से ही प्राप्त हुआ है अन्यथा जिस खेत को सेक्रेटरी साहब कई वर्षों से जोत और चोद रहे थे परंतु आज तक एक हरी दूब ने भी जन्म लिया था और आज पहली बार मनोरमा के उस खेत (गर्भ) में अद्भुत जीव का सृजन हो रहा था।

कहानी की तीनों वयस्क महिलाएं गर्भवती थी और अधेड़ अवस्था को प्राप्त कर चुकी सुगना की मां पदमा और सास कजरी दोनों काम सुख को तिलांजलि दे कर घरेलू जिम्मेदारियों में व्यस्त हो गई थी। कामुकता का जैसे अकाल पड़ गया था।


सारा दारोमदार सोनी पर आ गया था। सोनी की बहन मोनी अभी भी धर्म परायण थी और अपने शरीर में छुपे हुए खजाने से अनजान अपनी मां का हाथ बटाने में लगी रहती थी।

सोनी बिस्तर पर लेटी विकास के साथ बिताए पल याद कर रही थी उसकी हथेलियां स्तनों पर रेंग रही थी और जांघो के बीच फसा तकिया हिल रहा था…

जैसे जैसे तकिए की रगड़ जांघों के जोड़ पर बढ़ती गई सोनी की हथेलियां सूखी चुचियों को छोड़कर रसीली बुर की तरफ बढ़ गई। सोनी को अपनी रसीली बूर् को सहलाने में बेहद आनंद आता था..जैसे ही उंगलियों ने रसीले छेद पर छलके चिपचिपे रस को छुआ .तभी

"सोनी ए सोनी…." सोनू ने आवाज लगाई…


शेष अगले भाग में..
What a update Sir , fabulous , Highly appreciates, Nice choice of words and feelings
 

snidgha12

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आपको एवं आपके समस्त परिवार , आपके लेखनी के सभी कद्रदानों को दिपावली महापर्व कि हार्दिक शुभकामनाएं...
 

Lutgaya

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HAPPY DEEPAWALI

भाग 60

मेरी बेटी? सरयू सिंह ने डॉक्टर को प्रश्नवाचक निगाहों से देखा...


"हां जी हां…. हमें आप को बचाने के लिए आपके ही पुत्र या पुत्री के रक्त की आवश्यकता थी। यह ऊपर वाले कि कृपा थी की हमें आपकी बेटी का रक्त मिल गया और हम आपकी जान बचा सके..

सरयू सिह जब तक अपना दूसरा प्रश्न करते तब तक दरवाजा खुला सुगना नर्स के साथ अंदर आ रही थी। ..

सरयू सिंह के दिमाग में विचारों की घुड़दौड़ जारी थी और धड़कने तेज... दिमाग डॉक्टर द्वारा कही गई बात को मानने को तैयार न था….


अब आगे..


डॉक्टर ने विदा ली और सुगना की तरफ मुखातिब होते हुए बोला

"अपने बाबूजी का ख्याल रखना और अपना भी". डॉक्टर की बात सुनकर सरयू सिंह अचंभे में थे। उन्हें डॉक्टर की बात पर कतई विश्वास नहीं हो रहा था वह बार-बार यही सोच रहे थे कि शायद सुगना की उम्र की वजह से डॉक्टर ने उसे उनकी बेटी समझा होगा। परंतु उनके मन मे प्रश्न आ चुका था।

दोपहर हो चुकी थी सरयू सिंह हॉस्पिटल के बेड पर पड़े अपने भरे पूरे परिवार को देख रहे थे। डॉक्टर की बात उनके दिमाग में अभी भी गूंज रही थी क्या सुगना उनकी पुत्री थी?

अपने भरे पूरे परिवार के सामने न तो वो डॉक्टर द्वारा कही गई बात की तस्दीक कर सकते थे और न हीं उस पर कोई प्रश्न उठा कर उसे सब की जानकारी मे ला सकते थे। तब यह बातचीत गोपनीय न रहती यह उनके परिवार और लिए अनुचित होता और शायद पदमा के लिए भी.

कजरी, पदमा और सुगना सरयू सिंह की तीनों प्रेमिकाऐं उनके अद्भुत लण्ड का सुख ले चुकी थी पर जितना आनंद उन्होंने सुगना के साथ पाया था वह शायद अनोखा और निराला था।

पर आज डॉक्टर द्वारा कही गई बात को याद कर अब उनका हृदय व्यतीत था। आंनद कष्ट और बेचैनी में बदल चुका था।अपनी ही पुत्री के साथ किये गए व्यभिचार को सोच कर उनका हृदय विह्वल था।


एकांत पाकर उन्होंने पदमा से पूछा…

"एक बात पूछी..?"

"का बात बा?"

"उ कौन महीना रहे जब तू पानी में डूबत रहलू और हम तहरा के बचवले रहनी?" सरयू सिंह ने पदमा से मर्यादा में रहकर उसकी चुदाई के दिन के बारे में जानकारी लेने की कोशिश की।

पद्मा ने अपने दिमाग पर जोर दिया और होली के बाद आई अमावस के दिन की तस्दीक कर दी। पद्मा को आज भी वह अनोखी चुदाई याद थी। सरयू सिंह का दिमाग तेजी से घूमने लगा उन्होंने अपनी उंगलियों पर गड़ना प्रारंभ की और सुगना के जन्मदिन से उसका मिलान करने लगे। डॉक्टर की बात उन्हें सही प्रतीत होने लगी। …...क्यों उनका ध्यान इस बात की तरफ आज तक कभी नहीं गया था?

अब सरयू सिंह को पूरी तरह यकीन आ चुका था कि सुगना उनकी ही पुत्री थी। पढ़े लिखे होने के कारण वह डॉक्टर की बात को नजरअंदाज नहीं कर रहे थे परंतु उन्हें यकीन ही नहीं हो रहा था कि पदमा के साथ एक बार किए गए संभोग ने हीं उसे गर्भवती कर दिया था। यह बात यकीन के काबिल ना थी परंतु नियति ने सुगना का सृजन ही इसी निमित्त किया था….

मासूम सुगना सरयू सिंह के पैरों में तेल लगा रही थी सरयू सिंह उससे नजरे न मिला पा रहे थे। उनके दिल ने इतनी पीड़ा शायद कभी ना सही थी। अपनी ही पुत्री के साथ कामवासना का जो खेल उन्होंने खेला था आज वह उसे याद कर कर अपनी पीड़ा को और बढ़ा रहे थे। वह सुगना को देख न रहे थे परंतु उनके मन मस्तिष्क में सुगना नाच रही थी..

बरबस ही उन्हें सुगना के कामांगो और नग्न शरीर का ध्यान आता उनकी आत्मा उन्हें और कचोटने लगती। सरयू सिंह को अपना जीवन बोझ जैसा प्रतीत होने लगा।

उधर बनारस महोत्सव समाप्त हो चुका था। विद्यानंद का पांडाल उखड़ रहा था इधर सरयू सिंह की उम्मीदें। वह अपने आने वाले जीवन से ना उम्मीद हो चुके थे कामवासना उनके जीवन का प्रधान अंग थी और उसे पुष्पित पल्लवित करने वाली सुगना अचानक सरयू सिंह ने अविवाहित रहने के बावजूद कामवासना का ऐसा आनंद लिया था जो उस वक्त में विरले लोगों को ही नसीब होता था और तो और पिछले 3-4 वर्षों में सुगना ने तो उनके जीवन में नई खुशियां भर दी थीं। अपनी प्रौढ़ावस्था में सुगना जैसी सुकुमारी का साथ पाकर वह धन्य हो गए थे। सुगना ने उनकी वासना को तृप्त न किया अपितु आग को और भड़का दिया और वह सुगना के दूसरे छेद के पीछे पड़ गए थे।


रतन अपने परिवार का सारा सामान समेटकर मनोरमा द्वारा दी गई गाड़ी में रख कर हॉस्पिटल के बाहर आ चुका था और राजेश इन घटनाओं से अनजान बीती रात की सुनहरी यादे लिए अपनी ड्यूटी पर निकल चुका था।

लाली तक खबर सोनू ने पहुंचाई और उसे लेकर हॉस्पिटल आ गया था। लाली को भी इस बात की खबर हो गई कि सरयू चाचा होटल से सीधा हॉस्पिटल में आए थे। परंतु चाचा जी सुगना को लेकर होटल में क्यों गए थे? लाली का दिमाग इस प्रश्न का उत्तर स्वयं न खोज पा रहा था उसने सुगना के सामने कई प्रश्न रखे पर सुगना निरुत्तर थी।

शाम होते होते सरयू सिंह को हॉस्पिटल से डिस्चार्ज कर दिया गया। उनकी जांच रिपोर्ट और सुगना के खून जांच की रिपोर्ट उनको दे दी गई सरयू सिंह की मन में आया कि वह यह रिपोर्ट फाड़ दें ताकि आने वाले समय में भी यह बात किसी को पता ना चले परंतु वह हॉस्पिटल से आज ही डिस्चार्ज हुए थे रिपोर्ट की आवश्यकता कभी भी पढ़ सकती थी उन्होंने सुगना से कहा

" इकरा के संभाल के रखी ह आगे काम करी"

नियति ने सरयू सिंह का यह उदगार सुन लिया और उसे अपनी कथा में एक नया मोड़ आता दिखाई पड़ गया।

सुगना ने लाल झोले में रखी हुई उस रिपोर्ट को सहेज कर रख लिया। यह लाल झोला बेहद आकर्षक था। बरबस ही ध्यान खींचने वाला। झोले में दफन सुगना और सरयू सिह के रिश्ते कब उजागर होंगे और कौन करेगा यह तो वक्त ही बताएगा परंतु अब हॉस्पिटल की लॉबी में गहमागहमी बढ़ गई थी।

"बाबू जी …..तनी धीरे से…". सुगना की चिर परिचित आवाज एक बार फिर सुनाई दे पर इसमें कामवासना कतई न थी वह अपने बाबू जी को सावधान कर रही थी जो इस वक्त हॉस्पिटल की सीढ़ियां उतर रहे थे।


माथे पर दाग से अब भी रक्तस्राव हो रहा था जिसे डॉक्टरों ने पट्टी और मलहम लगाकर रोक दिया था। पर वह अब साफ साफ नजर आ रहा था..

" सोनू ने पूछा ज्यादा चोट लग गई रहल हा का?


का भईल रहे ? चक्कर आ गईल रहे का""

सरयू सिंह क्या जवाब देते उन्होंने कोई उत्तर न दिया वह शर्मसार थे.. शाम होते होते सरयू सिंह अपने परिवार के साथ सलेमपुर गए।

पदमा भी अपनी दोनों पुत्रियों सोनी और मोनी के साथ सीतापुर पहुंच चुकी थी। उन्हें छोड़ने गया सोनू अब भी सोनी के आकर्षण का केंद्र था।। जब जब वह सोनू को देखती उसे लाली के हाल में बिस्तर पर गिरा वह चिपचिपा द्रव्य याद आ जाता।। क्या सोनू भैया भी अपने हाथों से अपने उसको हिलाते होंगे? क्या वह भी लड़कियों के बारे में सोचते होंगे? सोनी को अपनी सोच पर शर्म आ रही थी ...परंतु जितना वह सोचती उसकी सोच का दायरा बढ़ता जाता।

शर्म और हया का आवरण धीरे-धीरे अपनी मर्यादा तोड़ता है सोनी अपनी सोच में धीरे-धीरे सोनू को और नग्न करती गई जितना ही वह उसके बारे में सोचती सोनू उसे उतना खुलकर दिखाई देता। सोनी शर्म हया त्याग कर पुरुषों के लण्ड की कल्पना करने लगी। विकास और सोनू दोनों ही उसकी कल्पना में आने लगे।

सोनी का युवा शरीर पुरुष संसर्ग का थोड़ा सुख पा चुका था परंतु जांघों के बीच उठ रही हलचल अभी पूरी तरह शांत ना हुई थी विकास की उंगलियों ने उस आग को और दहका दिया था।

बनारस महोत्सव बीत चुका था। कहानी के तीन अलग अलग प्रमुख पात्र लाली, मनोरमा और सुगना के गर्भ में आ चुके थे।

सरयू सिंह अपने दालान की सैया पर पड़े अपने जीवन को याद कर रहे थे। यह जानने के पश्चात की सुगना उनकी अपनी ही पुत्री है वह दर्द में थे।

अपनी ही पुत्री के साथ पिछले चार-पांच वर्षो से उन्होंने यहां वासना का जो खेल खेला था वह अब उनके गले की फांस बन चुका था। अपनी ही पुत्री को लड्डू में गर्भनिरोधक दवाइयां मिलाकर खिलाना तथा उसकी मासूम चाहतों के एवज में उसे कई दिनों बल्कि कई वर्षों तक लगातार चोदना….. ।


सुगना के साथ बिताई सुखद यादें अब कष्ट का कारण बन गई थी। कैसे उन्होंने सुगना को दिखा दिखाकर बछिया की चूची मीसी थी? कैसे होटल के कमरे में उन्होंने सुगना की चुचियों पर जानबूझकर टॉर्च मारा था? और कैसे उसकी जांघों के बीच छुपे मालपुए के दर्शन किए थे?

वह नियति के इशारे को न समझ पाए थे जब उन्होंने पहली बार सुगना की बूर् का दर्शन किया था तब भी उनके इष्टदेव द्वारा भेजे गए कीड़े ने उनके माथे पर दाग दे दिया था। यह उनके द्वारा किए जा रहे पाप को रोकने का एक इशारा था परंतु कुंवारी सुगना की अद्भुत चूत के आकर्षण में खोए सरयू सिंह उस इशारे को न समझ पाए थे।

यह वही कीड़ा था जिसने सरयुसिंह को उसकी माँ पद्मा के साथ संभोग करते देखा था तथा सरयू सिह के अंडकोषों के पास काट कर उन्हें पराई शादी शुदा स्त्री के गर्भ में वीर्य भरने से रोकने की कोशिश की थी।

परंतु निष्ठुर नियति सरयू सिंह की वासना पर लगाम न लगा सकी। वासना में अंधे सरयू सिह को रोक पाने में छोटे से कीड़े की कोशिश कामयाब न हो पायी पर उसने दाग दे दिया...जो सरयू सिह की वासना के अनुपात में बढ़ता रहा और अंततः फूट गया।

सारा घटनाक्रम चाहे वह दीपावली की रात या सुगना का कौमार्य भेदन का या अपनी भाभी कजरी के साथ मिलकर सुगना से त्रिकोणीय संभोग …..सारी सुनहरी यादें अब उनकी पीड़ा का कारण बन चुकी थी।


बनारस के पांच सितारा होटल में जो कृत्य किया था वह शायद उनके इष्ट देव को भी रास ना आया था। अपनी पुत्री के साथ …..हे…. भगवान उन्होंने क्या कर दिया था...

सरयू सिंह का किसी कार्य में मन न लगता । वह सुगना से नजरे ना मिला पाते।


सुगना हमेशा की तरह ही उन्हें वैसा ही प्यार व सेवा करती परंतु अब उसमें कामोत्तेजना की भावना न थी। वह जानती थी यह सरयू सिंह के लिए घातक होता। अपने बाबू जी को इस अवस्था में देखकर उसकी कामोत्तेजना भी कुछ दिनों के लिए शांत हो गई।

सुगना अब भी परेशान थी सरयू सिंह ने उसके साथ संभोग तो अवश्य किया था परंतु वीर्य स्खलन न कर पाए थे। राजेश के साथ बिताई उस रात से सुगना को कोई विशेष उम्मीद न थी वह जानती थी कि उसकी योनि में राजेश के वीर्य का कुछ अंश अवश्य गया था परंतु क्या वह उससे गर्भवती हो पाएगी? यह प्रश्न उसके मन में अब भी कायम था। सरयू सिंह को बिस्तर पर पड़ा देख सुगना ने अपने दिल पर पत्थर रखकर आगे उनसे संभोग करने का विचार कुछ समय के लिए त्याग दिया था।

वैसे भी बनारस महोत्सव बीत चुका था उसके गर्भ में यदि उसकी पुत्री का सृजन होना था तो हो चुका होगा। अन्यथा अब उसकी कोई उपयोगिता भी न रह गई थी। सुगना परेशान थी और मन ही मन अपने इष्ट देव से राजेश के वीर्य से ही सही गर्भधारण के लिए प्रार्थना कर रही थी। उसे अपने आने वाले मासिक धर्म के दिनों के बिना रजस्वला हुए बीतने का इंतजार था।

सरयू सिंह उसके अपने पिता थे। यह बात वह कतई न जानती थी यदि वह जान जाती तो न जाने क्या करती। उसके सरयू सिह की पुत्री होने की खून जांच की रिपोर्ट अटारी पर झोले में दबी धूल चाट रही थी। सुगना उसे कब देखेगी और कब अपने हिस्से का पश्चाताप झलेगी या अभी भविष्य के गर्भ में था। अभी तो इस रिश्ते को जानने का दंश सिर्फ और सिर्फ सरयू सिंह झेल रहे थे।

दिन बीतते देर नहीं लगते। सुगना का भी इंतजार खत्म हुआ और मासिक धर्म के दिन बिना जांघों के बीच कपड़ा फसाये..बीत गए । उसकी इच्छा भगवान ने पूरी कर दी थी।

वह मन ही मन यह सोचती कि आखिरकार इस गर्भ में आए शिशु का पिता कौन है? उसके बाबू जी ने तो स्खलन पूर्ण न किया था परंतु सुगना यह बात भी जानती थी कि लण्ड से रिस रहा वीर्य भी गर्भवती करने के लिए काफी होता है।


जब जब वह अपने गर्भ के बारे में सोचती उसे ऐसा प्रतीत होता है जैसे यह राजेश के वीर्य से ही सृजित हुआ था। सुगना ने इस बात पर ज्यादा तवज्जो न दिया । विद्यानंद की कही बातों के अनुसार सिर्फ उसे सूरज की बहन का सृजन करना था और वह उसकी कोख में आ चुकी थी। यद्यपि नियत ने उस गर्भ का लिंग निर्धारण न किया था परंतु सुगना मन ही मन उस गर्भ को अपनी पुत्री मान चुकी थी। इसके इतर सोचकर वह और दिमागी मुसीबत में नहीं पड़ना चाहती थी।

सुगना पूरे तन मन धन से अपने गर्भ को सुरक्षित और स्वस्थ रखने का प्रयास करने लगी घर में खुशियां व्याप्त थी। कजरी ने पूछा…

"लागा ता कुंवर जी फिर भीतरिया डाल देले हां….जाय दे दु गो रहीहें सो ता अच्छा रही... भगवान एक और लइका दे देस तो दोनों साथ ही खेलहै सो"

"ना मा हमरा ता लईकी चाही…"

कजरी कभी भी लड़कियों की पक्षधर न थी उस जमाने में लड़कियों को लड़कों का दर्जा प्राप्त न था. कजरी ने कुछ कहा नहीं परंतु उसने अपने इष्ट देव से गुहार लगाई जो सुगना की इच्छाओं के विपरीत थी... नियति दोनों की प्रार्थनाएं सुन रही थी... परंतु इस कामगाथा के लिए जिस पात्र की आवश्यकता थी सुगना के गर्भ में उसका ही सृजन होना था। नियति सर्वशक्तिमान थी।

सुगना के गर्भवती होने की खबर सरयू सिंह तक भी पहुंची उन्हें एक बार फिर सुगना की जांघों के बीच लगे वीर्य की याद आ गई। वह यह बात भली-भांति जानते थे कि उस दौरान उन्होंने सुगना के साथ एक भी बार संभोग नहीं किया था और जब यह मौका उन्हें प्राप्त हुआ भी तब वह सुगना की दूसरे छेद के पीछे पड़ गए थे। उन्हें मन ही मन विश्वास हो चला था किस सुगना के गर्भ में आया बच्चा निश्चित ही राजेश का ही है। परंतु सुगना अब उनकी पुत्री थी वह इस बारे में ज्यादा नहीं सोचना चाहते थे ...उन्होंने यथास्थिति स्वीकार कर ली थी एक लिहाज से वह पाप से जन्मे एक और संतान के पिता होने से बच गए थे।

सुगना ने अपने जीवन में एक बार फिर वैसे ही खुश थी जैसे सूरज के गर्भधारण के समय थी। पर इस खुशी में आज वह अकेली थी। सुगना ने राजेश के घर पर बितायी रात के अनुभव को कजरी से भी छुपा लिया था।

उसने कजरी को गर्भ धारण का कारण उसने सरयू सिह से मुलाकात ही बताया था। यह गर्भधारण अकारण हुआ था। कजरी मन ही मन सोचती काश यह न हुआ होता तो कुछ ही दिनों में रतन और सुगना करीब आ जाते और तब यह और उचित होता। परंतु मन की सोच कार्य मे परणित हो शायद यह हमेशा संभव नही होता।

इस गर्भधारण ने सुगना अपनी ही नजरों में गिरने से बचा लिया था। यद्यपि सरयू सिह से सफल संभोग न हो पाने के बाद अपने गर्भधारण की आशंकाओं को सोचते हुए वह मन ही मन प्रण कर चुकी थी कि यदि सूरज को सामान्य करने के लिए उसे कालांतर में अपने ही पुत्र सूरज के साथ निकृष्ट संभोग को करना भी पड़ेगा तो वह अवश्य करेंगी।

निष्ठुर नियति मन की भावनाएं भी पढ़ लेती है। सुगना ने जो बात अपने दिमाग में लाइ थी वह नियति ने न सिर्फ पढ़ लिया अपितु उसे योजना में समाहित करने लगी। वैसे भी न चाहते हुए भी सुगना अब सूरज की माँ भी थी और बहन भी…..विद्यानंद ने सूरज की मुक्ति का जो मार्ग बताया था सुगना सूरज की माँ और बहन होने के कारण विशेष रूप से उपयुक्त थी...

उधर लाली भी गर्भवती हो चुकी थी अपने प्यारे मुंह बोले भाई सोनू से पूरी तन्मयता और आत्मीयता से चुदने के पश्चात लाली के गर्भ ने भी सोनू के वीर्य को उसी प्रकार आत्मसात कर लिया था जिस प्रकार लाली और राजेश ने सोनू को।


जिस गर्भ का सृजन पूरे प्यार और आत्मीयता से हुआ हो उसका मन और भावनाएं कितने कोमल होंगे इस बात का अंदाजा पाठक लगा सकते हैं।

इसी प्रकार एक पात्र का सृजन मनोरमा के गर्भ में भी हुआ था। सरयू सिंह जैसे बलिष्ठ और मजबूत व्यक्ति तथा मनोरमा जैसी काबिल और सुंदर युवती के गर्भ में आने वाला शिशु निश्चित ही अपने माता पिता के गुणों से सुसज्जित होता।


इस बनारस महोत्सव ने मनोरमा के जीवन में भी खुशियां भर दी थी उसके गर्भवती होने की खबर सुनकर सेकेरेट्री साहब फूले नहीं समा रहे थे वह दर-दर मंदिरों में सर पटकते हुए भगवान का शुक्रिया अदा कर रहे थे। सच भी था शायद भगवान ने ही सरयू सिंह को मनोरमा के गर्भधारण के लिए भेज था।

मनोरमा मन ही मन अपने इष्ट देव को याद करती और कभी-कभी उसे सरयू सिंह देवस्वरूप दिखाई पड़ जाते। उसका सर जैसे अपने इष्ट देव के सामने झुकता वैसे ही सरयू सिंह के सामने। वह उनसे बेहद प्रभावित हो गई थी। उसे आशा ही नहीं पूर्ण विश्वास था कि या गर्भ उसे सरयू सिह से ही प्राप्त हुआ है अन्यथा जिस खेत को सेक्रेटरी साहब कई वर्षों से जोत और चोद रहे थे परंतु आज तक एक हरी दूब ने भी जन्म लिया था और आज पहली बार मनोरमा के उस खेत (गर्भ) में अद्भुत जीव का सृजन हो रहा था।

कहानी की तीनों वयस्क महिलाएं गर्भवती थी और अधेड़ अवस्था को प्राप्त कर चुकी सुगना की मां पदमा और सास कजरी दोनों काम सुख को तिलांजलि दे कर घरेलू जिम्मेदारियों में व्यस्त हो गई थी। कामुकता का जैसे अकाल पड़ गया था।


सारा दारोमदार सोनी पर आ गया था। सोनी की बहन मोनी अभी भी धर्म परायण थी और अपने शरीर में छुपे हुए खजाने से अनजान अपनी मां का हाथ बटाने में लगी रहती थी।

सोनी बिस्तर पर लेटी विकास के साथ बिताए पल याद कर रही थी उसकी हथेलियां स्तनों पर रेंग रही थी और जांघो के बीच फसा तकिया हिल रहा था…

जैसे जैसे तकिए की रगड़ जांघों के जोड़ पर बढ़ती गई सोनी की हथेलियां सूखी चुचियों को छोड़कर रसीली बुर की तरफ बढ़ गई। सोनी को अपनी रसीली बूर् को सहलाने में बेहद आनंद आता था..जैसे ही उंगलियों ने रसीले छेद पर छलके चिपचिपे रस को छुआ .तभी

"सोनी ए सोनी…." सोनू ने आवाज लगाई…


शेष अगले भाग में..
अदभुत मोड ला दिया आपने कहानी में
पाठकों के दिमाग के घोडे वहाँ तक पहुंच भी ना पाए।
नायाब
 
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