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Incest आह..तनी धीरे से.....दुखाता.

Lovely Anand

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आह ....तनी धीरे से ...दुखाता
(Exclysively for Xforum)
यह उपन्यास एक ग्रामीण युवती सुगना के जीवन के बारे में है जोअपने परिवार में पनप रहे कामुक संबंधों को रोकना तो दूर उसमें शामिल होती गई। नियति के रचे इस खेल में सुगना अपने परिवार में ही कामुक और अनुचित संबंधों को बढ़ावा देती रही, उसकी क्या मजबूरी थी? क्या उसके कदम अनुचित थे? क्या वह गलत थी? यह प्रश्न पाठक उपन्यास को पढ़कर ही बता सकते हैं। उपन्यास की शुरुआत में तत्कालीन पाठकों की रुचि को ध्यान में रखते हुए सेक्स को प्रधानता दी गई है जो समय के साथ न्यायोचित तरीके से कथानक की मांग के अनुसार दर्शाया गया है।

इस उपन्यास में इंसेस्ट एक संयोग है।
अनुक्रमणिका
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भाग 126 (मध्यांतर)
 
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Kadak Londa Ravi

Roleplay Lover
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HAPPY DEEPAWALI

भाग 60

मेरी बेटी? सरयू सिंह ने डॉक्टर को प्रश्नवाचक निगाहों से देखा...


"हां जी हां…. हमें आप को बचाने के लिए आपके ही पुत्र या पुत्री के रक्त की आवश्यकता थी। यह ऊपर वाले कि कृपा थी की हमें आपकी बेटी का रक्त मिल गया और हम आपकी जान बचा सके..

सरयू सिह जब तक अपना दूसरा प्रश्न करते तब तक दरवाजा खुला सुगना नर्स के साथ अंदर आ रही थी। ..

सरयू सिंह के दिमाग में विचारों की घुड़दौड़ जारी थी और धड़कने तेज... दिमाग डॉक्टर द्वारा कही गई बात को मानने को तैयार न था….


अब आगे..


डॉक्टर ने विदा ली और सुगना की तरफ मुखातिब होते हुए बोला

"अपने बाबूजी का ख्याल रखना और अपना भी". डॉक्टर की बात सुनकर सरयू सिंह अचंभे में थे। उन्हें डॉक्टर की बात पर कतई विश्वास नहीं हो रहा था वह बार-बार यही सोच रहे थे कि शायद सुगना की उम्र की वजह से डॉक्टर ने उसे उनकी बेटी समझा होगा। परंतु उनके मन मे प्रश्न आ चुका था।

दोपहर हो चुकी थी सरयू सिंह हॉस्पिटल के बेड पर पड़े अपने भरे पूरे परिवार को देख रहे थे। डॉक्टर की बात उनके दिमाग में अभी भी गूंज रही थी क्या सुगना उनकी पुत्री थी?

अपने भरे पूरे परिवार के सामने न तो वो डॉक्टर द्वारा कही गई बात की तस्दीक कर सकते थे और न हीं उस पर कोई प्रश्न उठा कर उसे सब की जानकारी मे ला सकते थे। तब यह बातचीत गोपनीय न रहती यह उनके परिवार और लिए अनुचित होता और शायद पदमा के लिए भी.

कजरी, पदमा और सुगना सरयू सिंह की तीनों प्रेमिकाऐं उनके अद्भुत लण्ड का सुख ले चुकी थी पर जितना आनंद उन्होंने सुगना के साथ पाया था वह शायद अनोखा और निराला था।

पर आज डॉक्टर द्वारा कही गई बात को याद कर अब उनका हृदय व्यतीत था। आंनद कष्ट और बेचैनी में बदल चुका था।अपनी ही पुत्री के साथ किये गए व्यभिचार को सोच कर उनका हृदय विह्वल था।


एकांत पाकर उन्होंने पदमा से पूछा…

"एक बात पूछी..?"

"का बात बा?"

"उ कौन महीना रहे जब तू पानी में डूबत रहलू और हम तहरा के बचवले रहनी?" सरयू सिंह ने पदमा से मर्यादा में रहकर उसकी चुदाई के दिन के बारे में जानकारी लेने की कोशिश की।

पद्मा ने अपने दिमाग पर जोर दिया और होली के बाद आई अमावस के दिन की तस्दीक कर दी। पद्मा को आज भी वह अनोखी चुदाई याद थी। सरयू सिंह का दिमाग तेजी से घूमने लगा उन्होंने अपनी उंगलियों पर गड़ना प्रारंभ की और सुगना के जन्मदिन से उसका मिलान करने लगे। डॉक्टर की बात उन्हें सही प्रतीत होने लगी। …...क्यों उनका ध्यान इस बात की तरफ आज तक कभी नहीं गया था?

अब सरयू सिंह को पूरी तरह यकीन आ चुका था कि सुगना उनकी ही पुत्री थी। पढ़े लिखे होने के कारण वह डॉक्टर की बात को नजरअंदाज नहीं कर रहे थे परंतु उन्हें यकीन ही नहीं हो रहा था कि पदमा के साथ एक बार किए गए संभोग ने हीं उसे गर्भवती कर दिया था। यह बात यकीन के काबिल ना थी परंतु नियति ने सुगना का सृजन ही इसी निमित्त किया था….

मासूम सुगना सरयू सिंह के पैरों में तेल लगा रही थी सरयू सिंह उससे नजरे न मिला पा रहे थे। उनके दिल ने इतनी पीड़ा शायद कभी ना सही थी। अपनी ही पुत्री के साथ कामवासना का जो खेल उन्होंने खेला था आज वह उसे याद कर कर अपनी पीड़ा को और बढ़ा रहे थे। वह सुगना को देख न रहे थे परंतु उनके मन मस्तिष्क में सुगना नाच रही थी..

बरबस ही उन्हें सुगना के कामांगो और नग्न शरीर का ध्यान आता उनकी आत्मा उन्हें और कचोटने लगती। सरयू सिंह को अपना जीवन बोझ जैसा प्रतीत होने लगा।

उधर बनारस महोत्सव समाप्त हो चुका था। विद्यानंद का पांडाल उखड़ रहा था इधर सरयू सिंह की उम्मीदें। वह अपने आने वाले जीवन से ना उम्मीद हो चुके थे कामवासना उनके जीवन का प्रधान अंग थी और उसे पुष्पित पल्लवित करने वाली सुगना अचानक सरयू सिंह ने अविवाहित रहने के बावजूद कामवासना का ऐसा आनंद लिया था जो उस वक्त में विरले लोगों को ही नसीब होता था और तो और पिछले 3-4 वर्षों में सुगना ने तो उनके जीवन में नई खुशियां भर दी थीं। अपनी प्रौढ़ावस्था में सुगना जैसी सुकुमारी का साथ पाकर वह धन्य हो गए थे। सुगना ने उनकी वासना को तृप्त न किया अपितु आग को और भड़का दिया और वह सुगना के दूसरे छेद के पीछे पड़ गए थे।


रतन अपने परिवार का सारा सामान समेटकर मनोरमा द्वारा दी गई गाड़ी में रख कर हॉस्पिटल के बाहर आ चुका था और राजेश इन घटनाओं से अनजान बीती रात की सुनहरी यादे लिए अपनी ड्यूटी पर निकल चुका था।

लाली तक खबर सोनू ने पहुंचाई और उसे लेकर हॉस्पिटल आ गया था। लाली को भी इस बात की खबर हो गई कि सरयू चाचा होटल से सीधा हॉस्पिटल में आए थे। परंतु चाचा जी सुगना को लेकर होटल में क्यों गए थे? लाली का दिमाग इस प्रश्न का उत्तर स्वयं न खोज पा रहा था उसने सुगना के सामने कई प्रश्न रखे पर सुगना निरुत्तर थी।

शाम होते होते सरयू सिंह को हॉस्पिटल से डिस्चार्ज कर दिया गया। उनकी जांच रिपोर्ट और सुगना के खून जांच की रिपोर्ट उनको दे दी गई सरयू सिंह की मन में आया कि वह यह रिपोर्ट फाड़ दें ताकि आने वाले समय में भी यह बात किसी को पता ना चले परंतु वह हॉस्पिटल से आज ही डिस्चार्ज हुए थे रिपोर्ट की आवश्यकता कभी भी पढ़ सकती थी उन्होंने सुगना से कहा

" इकरा के संभाल के रखी ह आगे काम करी"

नियति ने सरयू सिंह का यह उदगार सुन लिया और उसे अपनी कथा में एक नया मोड़ आता दिखाई पड़ गया।

सुगना ने लाल झोले में रखी हुई उस रिपोर्ट को सहेज कर रख लिया। यह लाल झोला बेहद आकर्षक था। बरबस ही ध्यान खींचने वाला। झोले में दफन सुगना और सरयू सिह के रिश्ते कब उजागर होंगे और कौन करेगा यह तो वक्त ही बताएगा परंतु अब हॉस्पिटल की लॉबी में गहमागहमी बढ़ गई थी।

"बाबू जी …..तनी धीरे से…". सुगना की चिर परिचित आवाज एक बार फिर सुनाई दे पर इसमें कामवासना कतई न थी वह अपने बाबू जी को सावधान कर रही थी जो इस वक्त हॉस्पिटल की सीढ़ियां उतर रहे थे।


माथे पर दाग से अब भी रक्तस्राव हो रहा था जिसे डॉक्टरों ने पट्टी और मलहम लगाकर रोक दिया था। पर वह अब साफ साफ नजर आ रहा था..

" सोनू ने पूछा ज्यादा चोट लग गई रहल हा का?


का भईल रहे ? चक्कर आ गईल रहे का""

सरयू सिंह क्या जवाब देते उन्होंने कोई उत्तर न दिया वह शर्मसार थे.. शाम होते होते सरयू सिंह अपने परिवार के साथ सलेमपुर गए।

पदमा भी अपनी दोनों पुत्रियों सोनी और मोनी के साथ सीतापुर पहुंच चुकी थी। उन्हें छोड़ने गया सोनू अब भी सोनी के आकर्षण का केंद्र था।। जब जब वह सोनू को देखती उसे लाली के हाल में बिस्तर पर गिरा वह चिपचिपा द्रव्य याद आ जाता।। क्या सोनू भैया भी अपने हाथों से अपने उसको हिलाते होंगे? क्या वह भी लड़कियों के बारे में सोचते होंगे? सोनी को अपनी सोच पर शर्म आ रही थी ...परंतु जितना वह सोचती उसकी सोच का दायरा बढ़ता जाता।

शर्म और हया का आवरण धीरे-धीरे अपनी मर्यादा तोड़ता है सोनी अपनी सोच में धीरे-धीरे सोनू को और नग्न करती गई जितना ही वह उसके बारे में सोचती सोनू उसे उतना खुलकर दिखाई देता। सोनी शर्म हया त्याग कर पुरुषों के लण्ड की कल्पना करने लगी। विकास और सोनू दोनों ही उसकी कल्पना में आने लगे।

सोनी का युवा शरीर पुरुष संसर्ग का थोड़ा सुख पा चुका था परंतु जांघों के बीच उठ रही हलचल अभी पूरी तरह शांत ना हुई थी विकास की उंगलियों ने उस आग को और दहका दिया था।

बनारस महोत्सव बीत चुका था। कहानी के तीन अलग अलग प्रमुख पात्र लाली, मनोरमा और सुगना के गर्भ में आ चुके थे।

सरयू सिंह अपने दालान की सैया पर पड़े अपने जीवन को याद कर रहे थे। यह जानने के पश्चात की सुगना उनकी अपनी ही पुत्री है वह दर्द में थे।

अपनी ही पुत्री के साथ पिछले चार-पांच वर्षो से उन्होंने यहां वासना का जो खेल खेला था वह अब उनके गले की फांस बन चुका था। अपनी ही पुत्री को लड्डू में गर्भनिरोधक दवाइयां मिलाकर खिलाना तथा उसकी मासूम चाहतों के एवज में उसे कई दिनों बल्कि कई वर्षों तक लगातार चोदना….. ।


सुगना के साथ बिताई सुखद यादें अब कष्ट का कारण बन गई थी। कैसे उन्होंने सुगना को दिखा दिखाकर बछिया की चूची मीसी थी? कैसे होटल के कमरे में उन्होंने सुगना की चुचियों पर जानबूझकर टॉर्च मारा था? और कैसे उसकी जांघों के बीच छुपे मालपुए के दर्शन किए थे?

वह नियति के इशारे को न समझ पाए थे जब उन्होंने पहली बार सुगना की बूर् का दर्शन किया था तब भी उनके इष्टदेव द्वारा भेजे गए कीड़े ने उनके माथे पर दाग दे दिया था। यह उनके द्वारा किए जा रहे पाप को रोकने का एक इशारा था परंतु कुंवारी सुगना की अद्भुत चूत के आकर्षण में खोए सरयू सिंह उस इशारे को न समझ पाए थे।

यह वही कीड़ा था जिसने सरयुसिंह को उसकी माँ पद्मा के साथ संभोग करते देखा था तथा सरयू सिह के अंडकोषों के पास काट कर उन्हें पराई शादी शुदा स्त्री के गर्भ में वीर्य भरने से रोकने की कोशिश की थी।

परंतु निष्ठुर नियति सरयू सिंह की वासना पर लगाम न लगा सकी। वासना में अंधे सरयू सिह को रोक पाने में छोटे से कीड़े की कोशिश कामयाब न हो पायी पर उसने दाग दे दिया...जो सरयू सिह की वासना के अनुपात में बढ़ता रहा और अंततः फूट गया।

सारा घटनाक्रम चाहे वह दीपावली की रात या सुगना का कौमार्य भेदन का या अपनी भाभी कजरी के साथ मिलकर सुगना से त्रिकोणीय संभोग …..सारी सुनहरी यादें अब उनकी पीड़ा का कारण बन चुकी थी।


बनारस के पांच सितारा होटल में जो कृत्य किया था वह शायद उनके इष्ट देव को भी रास ना आया था। अपनी पुत्री के साथ …..हे…. भगवान उन्होंने क्या कर दिया था...

सरयू सिंह का किसी कार्य में मन न लगता । वह सुगना से नजरे ना मिला पाते।


सुगना हमेशा की तरह ही उन्हें वैसा ही प्यार व सेवा करती परंतु अब उसमें कामोत्तेजना की भावना न थी। वह जानती थी यह सरयू सिंह के लिए घातक होता। अपने बाबू जी को इस अवस्था में देखकर उसकी कामोत्तेजना भी कुछ दिनों के लिए शांत हो गई।

सुगना अब भी परेशान थी सरयू सिंह ने उसके साथ संभोग तो अवश्य किया था परंतु वीर्य स्खलन न कर पाए थे। राजेश के साथ बिताई उस रात से सुगना को कोई विशेष उम्मीद न थी वह जानती थी कि उसकी योनि में राजेश के वीर्य का कुछ अंश अवश्य गया था परंतु क्या वह उससे गर्भवती हो पाएगी? यह प्रश्न उसके मन में अब भी कायम था। सरयू सिंह को बिस्तर पर पड़ा देख सुगना ने अपने दिल पर पत्थर रखकर आगे उनसे संभोग करने का विचार कुछ समय के लिए त्याग दिया था।

वैसे भी बनारस महोत्सव बीत चुका था उसके गर्भ में यदि उसकी पुत्री का सृजन होना था तो हो चुका होगा। अन्यथा अब उसकी कोई उपयोगिता भी न रह गई थी। सुगना परेशान थी और मन ही मन अपने इष्ट देव से राजेश के वीर्य से ही सही गर्भधारण के लिए प्रार्थना कर रही थी। उसे अपने आने वाले मासिक धर्म के दिनों के बिना रजस्वला हुए बीतने का इंतजार था।

सरयू सिंह उसके अपने पिता थे। यह बात वह कतई न जानती थी यदि वह जान जाती तो न जाने क्या करती। उसके सरयू सिह की पुत्री होने की खून जांच की रिपोर्ट अटारी पर झोले में दबी धूल चाट रही थी। सुगना उसे कब देखेगी और कब अपने हिस्से का पश्चाताप झलेगी या अभी भविष्य के गर्भ में था। अभी तो इस रिश्ते को जानने का दंश सिर्फ और सिर्फ सरयू सिंह झेल रहे थे।

दिन बीतते देर नहीं लगते। सुगना का भी इंतजार खत्म हुआ और मासिक धर्म के दिन बिना जांघों के बीच कपड़ा फसाये..बीत गए । उसकी इच्छा भगवान ने पूरी कर दी थी।

वह मन ही मन यह सोचती कि आखिरकार इस गर्भ में आए शिशु का पिता कौन है? उसके बाबू जी ने तो स्खलन पूर्ण न किया था परंतु सुगना यह बात भी जानती थी कि लण्ड से रिस रहा वीर्य भी गर्भवती करने के लिए काफी होता है।


जब जब वह अपने गर्भ के बारे में सोचती उसे ऐसा प्रतीत होता है जैसे यह राजेश के वीर्य से ही सृजित हुआ था। सुगना ने इस बात पर ज्यादा तवज्जो न दिया । विद्यानंद की कही बातों के अनुसार सिर्फ उसे सूरज की बहन का सृजन करना था और वह उसकी कोख में आ चुकी थी। यद्यपि नियत ने उस गर्भ का लिंग निर्धारण न किया था परंतु सुगना मन ही मन उस गर्भ को अपनी पुत्री मान चुकी थी। इसके इतर सोचकर वह और दिमागी मुसीबत में नहीं पड़ना चाहती थी।

सुगना पूरे तन मन धन से अपने गर्भ को सुरक्षित और स्वस्थ रखने का प्रयास करने लगी घर में खुशियां व्याप्त थी। कजरी ने पूछा…

"लागा ता कुंवर जी फिर भीतरिया डाल देले हां….जाय दे दु गो रहीहें सो ता अच्छा रही... भगवान एक और लइका दे देस तो दोनों साथ ही खेलहै सो"

"ना मा हमरा ता लईकी चाही…"

कजरी कभी भी लड़कियों की पक्षधर न थी उस जमाने में लड़कियों को लड़कों का दर्जा प्राप्त न था. कजरी ने कुछ कहा नहीं परंतु उसने अपने इष्ट देव से गुहार लगाई जो सुगना की इच्छाओं के विपरीत थी... नियति दोनों की प्रार्थनाएं सुन रही थी... परंतु इस कामगाथा के लिए जिस पात्र की आवश्यकता थी सुगना के गर्भ में उसका ही सृजन होना था। नियति सर्वशक्तिमान थी।

सुगना के गर्भवती होने की खबर सरयू सिंह तक भी पहुंची उन्हें एक बार फिर सुगना की जांघों के बीच लगे वीर्य की याद आ गई। वह यह बात भली-भांति जानते थे कि उस दौरान उन्होंने सुगना के साथ एक भी बार संभोग नहीं किया था और जब यह मौका उन्हें प्राप्त हुआ भी तब वह सुगना की दूसरे छेद के पीछे पड़ गए थे। उन्हें मन ही मन विश्वास हो चला था किस सुगना के गर्भ में आया बच्चा निश्चित ही राजेश का ही है। परंतु सुगना अब उनकी पुत्री थी वह इस बारे में ज्यादा नहीं सोचना चाहते थे ...उन्होंने यथास्थिति स्वीकार कर ली थी एक लिहाज से वह पाप से जन्मे एक और संतान के पिता होने से बच गए थे।

सुगना ने अपने जीवन में एक बार फिर वैसे ही खुश थी जैसे सूरज के गर्भधारण के समय थी। पर इस खुशी में आज वह अकेली थी। सुगना ने राजेश के घर पर बितायी रात के अनुभव को कजरी से भी छुपा लिया था।

उसने कजरी को गर्भ धारण का कारण उसने सरयू सिह से मुलाकात ही बताया था। यह गर्भधारण अकारण हुआ था। कजरी मन ही मन सोचती काश यह न हुआ होता तो कुछ ही दिनों में रतन और सुगना करीब आ जाते और तब यह और उचित होता। परंतु मन की सोच कार्य मे परणित हो शायद यह हमेशा संभव नही होता।

इस गर्भधारण ने सुगना अपनी ही नजरों में गिरने से बचा लिया था। यद्यपि सरयू सिह से सफल संभोग न हो पाने के बाद अपने गर्भधारण की आशंकाओं को सोचते हुए वह मन ही मन प्रण कर चुकी थी कि यदि सूरज को सामान्य करने के लिए उसे कालांतर में अपने ही पुत्र सूरज के साथ निकृष्ट संभोग को करना भी पड़ेगा तो वह अवश्य करेंगी।

निष्ठुर नियति मन की भावनाएं भी पढ़ लेती है। सुगना ने जो बात अपने दिमाग में लाइ थी वह नियति ने न सिर्फ पढ़ लिया अपितु उसे योजना में समाहित करने लगी। वैसे भी न चाहते हुए भी सुगना अब सूरज की माँ भी थी और बहन भी…..विद्यानंद ने सूरज की मुक्ति का जो मार्ग बताया था सुगना सूरज की माँ और बहन होने के कारण विशेष रूप से उपयुक्त थी...

उधर लाली भी गर्भवती हो चुकी थी अपने प्यारे मुंह बोले भाई सोनू से पूरी तन्मयता और आत्मीयता से चुदने के पश्चात लाली के गर्भ ने भी सोनू के वीर्य को उसी प्रकार आत्मसात कर लिया था जिस प्रकार लाली और राजेश ने सोनू को।


जिस गर्भ का सृजन पूरे प्यार और आत्मीयता से हुआ हो उसका मन और भावनाएं कितने कोमल होंगे इस बात का अंदाजा पाठक लगा सकते हैं।

इसी प्रकार एक पात्र का सृजन मनोरमा के गर्भ में भी हुआ था। सरयू सिंह जैसे बलिष्ठ और मजबूत व्यक्ति तथा मनोरमा जैसी काबिल और सुंदर युवती के गर्भ में आने वाला शिशु निश्चित ही अपने माता पिता के गुणों से सुसज्जित होता।


इस बनारस महोत्सव ने मनोरमा के जीवन में भी खुशियां भर दी थी उसके गर्भवती होने की खबर सुनकर सेकेरेट्री साहब फूले नहीं समा रहे थे वह दर-दर मंदिरों में सर पटकते हुए भगवान का शुक्रिया अदा कर रहे थे। सच भी था शायद भगवान ने ही सरयू सिंह को मनोरमा के गर्भधारण के लिए भेज था।

मनोरमा मन ही मन अपने इष्ट देव को याद करती और कभी-कभी उसे सरयू सिंह देवस्वरूप दिखाई पड़ जाते। उसका सर जैसे अपने इष्ट देव के सामने झुकता वैसे ही सरयू सिंह के सामने। वह उनसे बेहद प्रभावित हो गई थी। उसे आशा ही नहीं पूर्ण विश्वास था कि या गर्भ उसे सरयू सिह से ही प्राप्त हुआ है अन्यथा जिस खेत को सेक्रेटरी साहब कई वर्षों से जोत और चोद रहे थे परंतु आज तक एक हरी दूब ने भी जन्म लिया था और आज पहली बार मनोरमा के उस खेत (गर्भ) में अद्भुत जीव का सृजन हो रहा था।

कहानी की तीनों वयस्क महिलाएं गर्भवती थी और अधेड़ अवस्था को प्राप्त कर चुकी सुगना की मां पदमा और सास कजरी दोनों काम सुख को तिलांजलि दे कर घरेलू जिम्मेदारियों में व्यस्त हो गई थी। कामुकता का जैसे अकाल पड़ गया था।


सारा दारोमदार सोनी पर आ गया था। सोनी की बहन मोनी अभी भी धर्म परायण थी और अपने शरीर में छुपे हुए खजाने से अनजान अपनी मां का हाथ बटाने में लगी रहती थी।

सोनी बिस्तर पर लेटी विकास के साथ बिताए पल याद कर रही थी उसकी हथेलियां स्तनों पर रेंग रही थी और जांघो के बीच फसा तकिया हिल रहा था…

जैसे जैसे तकिए की रगड़ जांघों के जोड़ पर बढ़ती गई सोनी की हथेलियां सूखी चुचियों को छोड़कर रसीली बुर की तरफ बढ़ गई। सोनी को अपनी रसीली बूर् को सहलाने में बेहद आनंद आता था..जैसे ही उंगलियों ने रसीले छेद पर छलके चिपचिपे रस को छुआ .तभी

"सोनी ए सोनी…." सोनू ने आवाज लगाई…


शेष अगले भाग में..
ये देखिए यहां साफ लिखा है की डाक्टर के द्वारा सरयू सिंह को केसे पता चला कि सुगना सरयू सिंह और पदमा की बेटी है
 

Lovely Anand

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ये देखिए यहां साफ लिखा है की डाक्टर के द्वारा सरयू सिंह को केसे पता चला कि सुगना सरयू सिंह और पदमा की बेटी है

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Ye hai asli uttar phir phi aapko धन्यवाद आप बेहद करीब आ गए थे।। जिस पोस्ट को आपने अपने उत्तर में दिखाया है ये उसी पोस्ट से है...
 
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yenjvoy

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Ye hai asli uttar phir phi aapko धन्यवाद आप बेहद करीब आ गए थे।। जिस पोस्ट को आपने अपने उत्तर में दिखाया है ये उसी पोस्ट से है...
The story has been suggesting that sugna is saryu's daughter, but I was hoping that later episodes would reveal somehow that this is not true, and in fact there is no real blood relationship between the two. My hope was based on the author's own admission towards the start of the story that incest among blood relatives was not his preferred theme.

Initially the shenanigans in the story, whether between saryu-sugna, saryu-kajri, sugna-kajri, and lali-sonu were all technically incest, but avoided sexual relations between blood relatives. It was a novel theme, among the usual and rather overdone theme of incest that dominates this site, as well as most other indian erotic story fora. Lately, somehow this story too seems to have veered in that direction and while the writing is superb and a cut above the rest in both the use of language as well as imagination, it does feel a bit of a letdown to see the rather hackneyed incest exploration appear in an otherwise masterfully crafted tale.

I wish the author would somehow bring things back full circle to the initial sense of unrestrained joy as the innocent and naughty sugna blossomed into a temptress as she discovered the power of her sexuality with saryu. The abrupt demise of rajesh seems to be the inflection point where the story departed from the previous uninhibited exploration of sexual delights among people loosely connected by extended familial ties, or even 'muh bole' ties, to full on incest among immediate family members.

The story is still excellent and decidedly unique due to the author's unmistakzble mastery of the craft of storytelling, but I do feel a tinge of regret about the loss of sugna's innocence and saryu's vitality. Still curious to see how the author resolves some of the story twists and the dilemmas of the main characters, but I must say I never expected that 75+ chapters into such a delightful tale we would end up where sonu is about to fuck his real sister, or sisters. Half sister feels a bit like an excuse.

Still hoping somehow that the mysterious blood report acts as the deus ex machina to remove the cloud of potential father daughter incest hanging over the joyous reLations between our libidinous lovers, and allows a denouement befitting the initial celebration of innocent sugna's curiosity and desire through her secret rebellion against the cruel social contract of loveless arranged marriage to a husband who rejected her and a society that expects her to quietly and meekly accept her sad fate.
 
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The story has been suggesting that sugna is saryu's daughter, but I was hoping that later episodes would reveal somehow that this is not true, and in fact there is no real blood relationship between the two. My hope was based on the author's own admission towards the start of the story that incest among blood relatives was not his preferred theme.

Initially the shenanigans in the story, whether between saryu-sugna, saryu-kajri, sugna-kajri, and lali-sonu were all technically incest, but avoided sexual relations between blood relatives. It was a novel theme, among the usual and rather overdone theme of incest that dominates this site, as well as most other indian erotic story fora. Lately, somehow this story too seems to have veered in that direction and while the writing is superb and a cut above the rest in both the use of language as well as imagination, it does feel a bit of a letdown to see the rather hackneyed incest exploration appear in an otherwise masterfully crafted tale.

I wish the author would somehow bring things back full circle to the initial sense of unrestrained joy as the innocent and naughty sugna blossomed into a temptress as she discovered the power of her sexuality with saryu. The abrupt demise of rajesh seems to be the inflection point where the story departed from the previous uninhibited exploration of sexual delights among people loosely connected by extended familial ties, or even 'muh bole' ties, to full on incest among immediate family members.

The story is still excellent and decidedly unique due to the author's unmistakzble mastery of the craft of storytelling, but I do feel a tinge of regret about the loss of sugna's innocence and saryu's vitality. Still curious to see how the author resolves some of the story twists and the dilemmas of the main characters, but I must say I never expected that 75+ chapters into such a delightful tale we would end up where sonu is about to fuck his real sister, or sisters. Half sister feels a bit like an excuse.

Still hoping somehow that the mysterious blood report acts as the deus ex machina to remove the cloud of potential father daughter incest hanging over the joyous reLations between our libidinous lovers, and allows a denouement befitting the initial celebration of innocent sugna's curiosity and desire through her secret rebellion against the cruel social contract of loveless arranged marriage to a husband who rejected her and a society that expects her to quietly and meekly accept her sad fate.

आपका इस कहानी के पटल पर स्वागत है। जैसा कि मैंने पहले भी कहा था की मुझे रियल इंसेस्ट कहानियां लिखने का शौक नहीं है...
जैसा कि आपने अभी तक पढ़ा है कहीं भी कहानी में.. यह इंसेस्ट सेक्स नहीं हुआ है सरयू सिंह और सुगना के बीच हुआ संबंध तब तक ही हुआ था जब तक शरीर सिंह को यह ज्ञात नहीं था कि सुनना उनकी ही पुत्री है और जब उन्हें यह ज्ञात हुआ संबंध बदलते चले गए.

सुगना और सोनू भाई बहन है या नहीं इस पर अलग-अलग विचार हो सकते हैं। दोनों के पिता अलग है पर माता एक है।
यह कहानी 80 90 के दशक में चल रही है. उस समय के पित्र प्रधान समाज में अलग-अलग पिताओं से जन्मे बच्चे भाई बहन मान भी सकते हैं और नहीं भी ...
आगे यह कहानी अपने पूर्व गति पर ही पड़ेगी पर देखते हैं यह मार्ग से कितना भटकाव लेती है...
आपके बहुमूल्य सुझाव और संवेदना भरी प्रतिक्रिया के लिए कोटि-कोटि धन्यवाद जुड़े रहे और यूं ही अपने विचार रखते रहे
 

Lovely Anand

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भाग 78

लाली और सुगना दोनों अपने-अपने घागरे को अपनी कमर तक उठाए धान रोप रही थी नितंबों के बीच से उनकी बुर की फांके बालों के बादल काले बादल को चीर कर अपने भाई को दर्शन देने को बेताब थीं।

सोनू से और बर्दाश्त ना हुआ उसने ने हाथ आगे किए और और सुंदरी की कमर को पकड़ कर अपने लंड को उस गुफा के घर में प्रवेश कराने की कोशिश करने लगा बुर पनियायी हुई थी परंतु उसमे प्रवेश इतना आसान न था…सोनू प्रतिरोध का सामना कर रहा था..

चटाक…. गाल पर तमाचा पड़ने की आवाज स्पष्ट थी…


अब आगे..

सोनू अचानक ही अपने सपने से बाहर आ गया अकस्मात पड़े सुगना के इस तमाचे ने उसकी नींद उड़ा दी। वह अचकचा कर उठ कर बैठ गया। पूरी तरह जागृत होने के पश्चात उसके होठों पर मुस्कुराहट आ गई। यह दुर्घटना एक स्वप्न थी यह जानकर वह मंद मंद मुस्कुरा रहा था।

वह एक बार फिर बिस्तर पर लेट गया और अपने अधूरे सपने को आगे देखने का प्रयास करने लगा परंतु अब वह संभव नहीं था…….. पर एक बात तय थी सोनू बदल रहा था…

इधर सोनू की आंखों से नींद गायब थी और उधर बनारस में सुगना की आंखों से । आज जब से सोनी लखनऊ के लिए निकली थी तब से बार-बार घर में सोनू का ही जिक्र हो रहा था। लाली और सुगना बार-बार सोनू के बारे में बातें कर रहे थे।

यह अजीब इत्तेफाक था सोनू दोनों बहनों के आकर्षण का केंद्र था दोनों का प्यार अलग था पर सुगना और सोनू का भाई बहन का प्यार अब स्त्री पुरुष के बीच होने वाले प्यार से अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहा था।

लाली द्वारा कही गई बातें अब भी सुगना के जेहन में गूंज रही थीं।

दरअसल बच्चों के सो जाने के बाद दोनों सहेलियां अकेली हो गई थी। सोनू के जाने के बाद लाली वैसे भी अकेली थी और आज सोनी के लखनऊ जाने के बाद सुगना भी अकेलापन महसूस कर रही थी। उसने लाली को अपने पास ही बुला लिया …दोनों घरों के बीच दीवार न होने का यही सबसे बड़ा फायदा था। लाली और सुगना एक दूसरे के घर में बेबाकी से आ जाया करती थी बिना किसी औपचारिकता के।

लाली अपने बच्चों को सुला कर सुगना के पास आ गई..

*का बात बा मन नइखे लागत का?"

"सोनी के जाये के बाद सच में खालीपन लागता"

"अरे वाह तोरा सिर्फ सोनी के चिंता बा सोनू के गईला से तोरा जैसे कोनो फर्क नइखे"

"हमरा का पड़ी तोरा ज्यादा बुझात होई"

सुगना ने यह बात मुस्कुराते हुए कही। लाली उसका इशारा समझ चुकी थी उसने भी मुस्कुराते ही कहा..

"सोनुआ रहित त तोरो सेतीहा में सिनेमा देखे के मिल जाईत…"

"का कहा तारे ? कौन सिनेमा?" सुगना सचमुच लाली की बातों को नहीं समझ पाई थी..उसका प्रश्न वाजिब था..

लाली भी सुगना को शर्मसार नहीं करना चाहती थी उसने बात बदलने की कोशिश की

" चल छोड़ जाए दे "

"बताओ ना…. बोल ना का बोला तले हा" लाली के उत्तर न देने पर सुगना ने उसके उसे कंधे से हिलाते हुए कहा…

"ओ दिन जब सोनूआ जात रहे ते कमरा में काहे झांकत रहले?"

आखिरकार जिस बात पर पर्दा कई दिनों से पड़ा हुआ था उसे लाली ने उठा दिया। सुगना निरुत्तर हो गई। सुगना ने नजर चुराते हुए कहा


"जाय दे छोड़ ऊ कुल बात"

"ना ना अब तो बतावही के परी"

सुगना का चेहरा शर्म से लाल हो चुका था और नजरें झुक गई थी वह कुछ बोल पाने की स्थिति में न थी

"अच्छा ई बताओ कि केकरा के देखत रहले हमरा के की सोनुआ के?"

"पागल हो गईल बाड़े का? सोनुआ हमर भाई हा हम तो देखत रहनी की ते सोनुआ के कतना बिगाड़ देले बाड़े.."

"आंख मिला कर ई बात बोल नजर काहे छुपवले बाड़े"

नजर मिलाकर झूठ बोलना सुगना की फितरत में न था। उसने अपनी नजरें ना उठाई.

"झूठ बोला तारे नू, पूरा मर्द बन गइल बा नू....हम कहत ना रहनी की सोनुआ के पक्का मर्द बना के छोड़ब ओकर मेहरारू हमर नाम जपी "

"ठीक बा ठीक बा साल भर और मजा ले ले ओकरा बाद हम ओकर ब्याह कर देब.."

सोनू की शादी की बात सुनकर लाली थोड़ा दुखी हो गई … उसे यह तो पता था कि आने वाले समय में सोनू का विवाह होगा पर इतनी जल्दी? इस बात की कल्पना लाली ने ना की थी।

"अरे अभी ओकर उम्र ही कतना बा तनी नौकरी चाकरी में सेट हो जाए तब करिए काहे जल्दीआईल बाड़े?"

"लागा ता तोर मन भरत नईखे…" अब बारी लाली की थी वो शरमा गई और उसने बात बदलते हुए कहा


"अच्छा ई बताऊ यदि सोनू तोरा के देख लिहित तब?"

सुनना ने लाली के प्रश्न पूछने के अंदाज से उसने यह अनुमान लगा लिया कि लाली यह बात नहीं जानती थी कि सुगना और सोनू की नजरें आपस में मिल चुकी थीं उसने लाली को संतुष्ट करते हुए

"अरे एक झलक ही तो देखले रहनी ऊ कहा से देखित ऊ तोरा जांघों के बीच पुआ से रस पीयत रहे … सच सोनूवा जरूरत से पहले बड़ हो गईल बा …"

लाली के दिमाग में शरारत सूझी

" खाली सोनू ने के देखले हा की ओकर समान के भी?" लाली ने जो पूछा था सुगना उसे भली-भांति समझ चुकी थी

सुगना शर्म से पानी पानी हो गई दोनों युवा स्त्रियां दूसरे की अंतरंग थी…एक दूसरे का मर्म भलीभांति समझती थी …

"जब देख लेले बाड़े तो लजात काहे बाड़े" लाली ने फिर छेड़ा।


सुगना ने कोई उत्तर न दिया उसके लब कुछ कहने को फड़फड़ा रहे थे परंतु उसकी अंतरात्मा उसे रोक रही थी जितनी आसानी से लाली कोई बात कह देती थी उतना सुगना के लिए आसान न था। उसका व्यक्तित्व उसे ओछी बात कहने से सदैव रोकता।

" आखिर भाई केकर ह?_सुगना ने समुचित उत्तर ढूंढ लिया था

" काश सोनुआ तोर आपन भाई ना होखित.."

" काहे …काहे …अइसन काहे बोलत बाड़े?"

"ई बात तेहि सोच..हमारा नींद आवता हम जा तानी सूते"


लाली सुगना के कमरे से बाहर जा रही थी और सुगना अपने दिल की बढ़ी हुई धड़कनों पर नियंत्रण करने का प्रयास कर रही थी… लाली के जाते ही सुनना बिस्तर पर लेट गईं। और एक बार फिर उसी प्रकार छत पर देखने लगे जैसा लखनऊ में बिस्तर पर लेटा हुआ सोनू देख रहा था। फर्क सिर्फ इतना था की सोनू ने अपनी कल्पना की उड़ान कुछ ज्यादा थी जबकि सुगना उस बारे में सोचना भी नहीं चाहती थी। पर परिस्थितियां और नियति ने सुगना को अपनी साजिश का हिस्सा बना लिया था क्या सुगना …सोनू के साथ….

सभ्य और आकर्षक व्यक्तिव की सुगना को इस वासना के दलदल में घसीटते हुए नियत भी सोच रही थी परंतु जो होना था शायद नियति के बस में भी नहीं था…

इसे संयोग कहें या टेलीपैथी सुगना ने भी अपने स्वप्न में वही दृश्य दखे जो कमोबेश सोनू न देखें थे और जैसे ही सोनू ने उसे पकड़ने की कोशिश की सुगना का हाथउठ गया….. और उस चटाक की गूंज से सुगना की भी नींद भी खुल चुकी थी। बिस्तर पर बड़े भाई बहन मन में एक अजब सी हलचल लिए हुए पंखे को ताक रहे थे।

लाली ने उस बात का जिक्र कर दिया था जिसे सुगना महसूस तो करती थी परंतु अपने होठों पर लाना नहीं चाहती थी उसके दिमाग में लाली के शब्द मंदिर के घंटों की तरह बज रहे थे।

जाने वह कौन सी मनहूस घड़ी थी जब उसने लाली को अपने पास बुलाया था..

सुगना की रात बेहद कशमकश में गुजरी वह बार-बार सोनू के बारे में सोचती रही। रात में उसकी पलकें तो बंद हुई पर दिमाग में तरह-तरह के ख्याल घूमते रहे। कुछ स्वप्न रूप में कुछ अनजान और अस्पष्ट रूप में । कभी उसे सपने में सरयू सिंह दिखाई पड़ते कभी उनके साथ बिताए गए अंतरंग पल ।

कभी उसके पति रतन द्वारा बिना किसी प्रेम के किया गया योनि मर्दन .. न जाने क्या क्या कभी कभी उसे अपने सपने में अजीब सी हसरत लिए लाली का पति स्वर्गीय राजेश दिखाई पड़ता…

अचानक सुगना को अपनी तरफ एक मासूम सा युवक आता हुआ प्रतीत हुआ…अपनी बाहें खोल दी और वह युवक सुगना के आलिंगन में आ गया सुगना उसके माथे को सहला रही थी और उस युवक के सर को अपने सीने से सटाए हुए थी अचानक सुगना ने महसूस किया की उस युवक के हाथ उसके नितंबों पर घूम रहे हैं स्पर्श की भाषा सुगना अच्छी तरह समझती थी उसने उस अनजान युवक को धकेल कर दूर कर दिया वह युवक सुगना के पैरों में गिर पड़ा और हाथ जोड़ते हुए बोला

"मां मुझे मुक्ति दिला दो….."

अचानक सुगना ने महसूस किया उसका शरीर भरा हुआ था। हाथ पैर उम्र के अनुसार फूल चुके थे। सुगना अपने हाथ पैरों को नहीं पहचान पा रही थी। उसे यकीन ही नहीं हो रहा था कि वह एक अधेड़ महिला की तरह हो चुकी थी। सुगना समझ चुकी थी कि वह किशोर युवक कोई और नहीं उसका अपना पुत्र सूरज था जो विद्यानंद द्वारा बताए गए शॉप से अपनी मुक्ति का मार्ग ढूंढ रहा था। क्या सुगना अपने पुत्र को शाप से मुक्त करने के लिए उसके जन्म मार्ग को स्वयं उसके ही वीर्य द्वारा अपवित्र करने देगी..?

यह प्रश्न जितना हकीकत में कठिन था उतना स्वप्न में भी। सुगना इस प्रश्न का उत्तर न तो जागृत अवस्था में दे सकती थी न स्वप्न में । अलग बात थी कि वह अपने पुत्र प्रेम के लिए अंततः कुछ भी करने को तैयार थी।

इस बेचैनी ने सुगना की स्वप्न को तोड़ दिया और वह अचकचा कर उठ कर बैठ गई । हे भगवान यह आज क्या हो रहा है। सुगना ने उठकर बाहर खिड़की से देखा रात अभी भी बनारस शहर को अपने आगोश में लिये हए थी। घड़ी की तरफ निगाह जाते ही सुगना को तसल्ली हुई कुछ ही देर में सवेरा होने वाला था।

सुगना ने और सोने का प्रयास न किया। आज अपने स्वप्न में उसने जो कुछ भी देखा था उससे उसका मन व्यथित हो चला था।


उधर लाली ने उसके दिमाग में पहले ही हलचल मचा दी थी और आज इस अंतिम स्वप्न में उसे हिला कर रख दिया था। सुगना ने बिस्तर पर सो रही छोटी मधु और सूरज को देखा और मन ही मन ऊपर वाले का शुक्रिया अदा किया जिसमें उसे इस पाप से बचाने के लिए मधु को भेज दिया था। सुगना दृढ़ निश्चय कर चुकी थी कि वह समय आने पर एक बार के लिए ही सही मधु और सूरज का मिलन अवश्य कराएगी तथा सूरज की मुक्ति का मार्ग प्रशस्त करेगी ….

लाली और सुगना की मुलाकात अगली सुबह कई बार हुई परंतु न सुगना ने लाली को छेड़ा और ना लाली ने सुगना को। पर लाली द्वारा कही गई बातें बार-बार सुगना के जहन में घूम रही थी। क्या सोनू सच में उसके बारे में ऐसा सोचता होगा? उसे याद आ रहा था कि कैसे नजरें मिलने के बाद भी सोनू लाली को बेहद तेजी से चोदने लगा था। अपनी बड़ी बहन के प्रति इस प्रकार की उत्तेजना एक स्वाभाविक प्रक्रिया है.. सुगना के प्रश्नों का उत्तर देने वाला कोई न था परंतु सुगना को अपनी जांघों के बीच चिपचिपा पन का एहसास हुआ और शायद उसे उसका उत्तर मिल गया।

दोनों अंतरंग सहेलियां ज्यादा देर तक एक दूसरे से दूर ना रह पाईं । दोपहर का एकांत उन्हें फिर करीब खींच लाया और सुगना और लाली के बीच उपजा मीठा तनाव समाप्त हो गया परंतु उसने सुगना के श्वेत धवल विचारों में कामवासना की लालिमा छोड़ दी थी..


एक-दो दिन रह कर और सोनी और विकास वापस बनारस आ गए थे। पिछले सात आठ दिनों में सोनी और विकास इतने करीब आ गए थे जैसे नवविवाहित पति पत्नी। बातचीत का अंदाज बदल चुका था। निश्चित ही वह सात आठ दिनों से हो रही सोनी की घनघोर चूदाई का परिणाम था। जब अंतरंगता बढ़ जाती है तो बातचीत का अंदाज भी उसी अनुपात में बदल जाता है। नई नवेली वधू में लाज शर्म और संभोग उपरांत शरीर में आई आभा स्पष्ट दिखाई पड़ती है। पारखी लोग इस बात का अंदाजा भली-भांति लगा सकते हैं।


सोनी के शरीर में आई चमक भी इस बात को चीख चीख कर कह रही थी कि सोनी बदल चुकी है उसके चेहरे और शरीर में एक अलग किस्म की कांति थी।

सरयू सिंह अपनी भाभी कजरी को लेकर बनारस पधारे हुए थे. सोनी चाय लेकर आ रही थी सरयू सिंह सोनी के व्यवहार और शरीर में आए बदलाव को महसूस कर रहे थे। अचानक वह एक किशोरी से एक युवती की भांति न सिर्फ दिखाई पड़ रही थी अपितु बर्ताव भी कर रही थी…

चाय देते समय अचानक ही सरयू सिंह का ध्यान सोनी की सीने में छुपी घाटी पर चला गया जो डीप गले के कुर्ते से झांक रही थी। सरयू सिंह की निगाहें दूर और दूर तक चली गई ।

दुधिया घाटी के बीच छुपे अंधेरे ने उनकी निगाहों का मार्ग अवरुद्ध किया और सोनी द्वारा दिए चाय के गर्म प्याले के स्पर्श ने उन्हें वापस हकीकत में ढकेल दिया पर इन चंद पलों ने उनके काले मूसल में एक सिहरन छोड़ थी।

वह कुर्सी पर स्वयं को व्यवस्थित करने लगे जब एक बार नजरों ने वह दृष्टि सुख ले लिया वह बार-बार उसी खूबसूरत घाटी में घूमने की कोशिश करने लगी। परंतु सरयू सिंह मर्यादित पुरुष थे उन्होंने अपनी पलकें बंद कर लीं और सर को ऊंचा किया । कजरी ने उन्हें देखा और बोली

"का भईल कोनो दिक्कत बा का?"

वो क्या जवाब देते। सरयू सिंह को कोई उत्तर न सूझ रहा था उन्होंने मुस्कुराते हुए कहा…

" मिजाज थाक गईल बा.." सरयू सिंह ने बात टालने की कोशिश की।

जैसे ही सोनी चाय लेकर कजरी की तरफ बढ़ी सोनी के कमर के कटाव सरयू सिंह की निगाहों में आ गए पतले कुर्ते के भीतर से भी कमर का आकार स्पष्ट दिखाई दे रहा था. सरयू सिंह को कमर का वह कटाव बेहद पसंद आता था।

सोनी के शरीर में आया यह बदलाव अलग था जो नवविवाहिता ओं में में सामान्यतः देखा जा सकता सरयू सिंह इस कला के पारखी थे….

उन्होंने बेहद संजीदगी से कहा

"लागा ता अब सोनी के ब्याह कर देवें के चाही आजकल जमाना ठीक नईखे"

कजरी ने भी शायद वही महसूस किया था जो शरीर सिंह ने। उस ने मुस्कुराते हुए कहा

"कवनो बढ़िया लाइका देखले रखीं ट्रेनिंग पूरा होते ही ब्याह कर दीहल जाओ"

सरयू सिंह और कजरी चाय की ट्रे लेकर वापस जाती हुई सोनी को देख रहे थे। सच में कुछ ही दिनों की गचागच चूदाई का असर सोनी के पिछवाड़े पर पड़ चुका था। कमर का कटाव और नितंबों का आकार अचानक ही मर्दों का ध्यान रहे थे। सोनी के चेहरे पर नारी सुलभ लज्जा स्पष्ट दिखाई पड़ रही सोनी जो अब विवाहिता थी अपने पूरे शबाब पर थी। सोनी लहराती हुई वापस चली गई परंतु सरयू के शांत पड़ चुके वासना के अंधेरे कुएं में जुगनू की तरह रोशनी कर गई..

नियति स्वयं उधेड़बुन में थी…वासना के विविध रूप थे.. सरयू सिंह की निगाहों में जो आज देखा था उसने नियति को ताना-बाना बुनने पर मजबूर कर दिया…

तभी सुगना चहकती हुई कमरे में आई सरयू सिंह एक आदर्श पिता की भांति व्यवहार करने…

सूरज उछल कर की आवाज में " बाबा.. बाबा ..करते पिता की गोद में आ गया" …और उनकी मूछों से खेलने लगा। सरयूयो सिंह बार-बार छोटे सूरज की गालों पर चुम्बन लेने लगे। सुगना का दृश्य देख रही थी और उनके चुंबनों को अपने गालों पर महसूस कर रही थी। शरीर में एक अजब सी सिहरन हुई और वह अपना ध्यान सरयू सिंह से हटाकर …कजरी से बातें करने लगी सुगना और सरयू सिंह ने जो छोड़ आया था उसे दोहरा पाना अब लगभग असंभव था।……

"सोनू कब आई?"

सरयू सिंह ने सुगना से पूछा

"सोनुआ राखी में आई"...सुगना के संबोधन अभी भी वैसे ही थे…. पर सोनू और सुगना के बीच बहुत कुछ बदल रहा था।

सुगना अपने भाई के लिए तरह-तरह के पकवान बनाने की सोचने लगी.. पिछले कई दिनों से उसने घर का खाना नहीं खाया होगा और उसका पसंदीदा.. मालपुआ…


सुगना…रक्षाबंधन का और अपने भाई सोनू का बेसब्री से इंतजार करने लगी…सुगना को क्या पता था कि अब उसका छोटा भाई सोनू किसी और मालपुए की फिराक में था जो शायद मीठा ना होते हुए भी बेहद आकर्षक गुलगुला और ढेरों खुशियां समेटे हुए था…. और वह भी अपनी बड़ी बहन का…जिसे उसने साथ-साथ बड़ा होते हुए देखा था…

शेष अगले भाग में..
 

Lutgaya

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HAPPY DEEPAWALI

भाग 60

मेरी बेटी? सरयू सिंह ने डॉक्टर को प्रश्नवाचक निगाहों से देखा...


"हां जी हां…. हमें आप को बचाने के लिए आपके ही पुत्र या पुत्री के रक्त की आवश्यकता थी। यह ऊपर वाले कि कृपा थी की हमें आपकी बेटी का रक्त मिल गया और हम आपकी जान बचा सके..

सरयू सिह जब तक अपना दूसरा प्रश्न करते तब तक दरवाजा खुला सुगना नर्स के साथ अंदर आ रही थी। ..

सरयू सिंह के दिमाग में विचारों की घुड़दौड़ जारी थी और धड़कने तेज... दिमाग डॉक्टर द्वारा कही गई बात को मानने को तैयार न था….

अब आगे..


डॉक्टर ने विदा ली और सुगना की तरफ मुखातिब होते हुए बोला

"अपने बाबूजी का ख्याल रखना और अपना भी". डॉक्टर की बात सुनकर सरयू सिंह अचंभे में थे। उन्हें डॉक्टर की बात पर कतई विश्वास नहीं हो रहा था वह बार-बार यही सोच रहे थे कि शायद सुगना की उम्र की वजह से डॉक्टर ने उसे उनकी बेटी समझा होगा। परंतु उनके मन मे प्रश्न आ चुका था।

दोपहर हो चुकी थी सरयू सिंह हॉस्पिटल के बेड पर पड़े अपने भरे पूरे परिवार को देख रहे थे। डॉक्टर की बात उनके दिमाग में अभी भी गूंज रही थी क्या सुगना उनकी पुत्री थी?

अपने भरे पूरे परिवार के सामने न तो वो डॉक्टर द्वारा कही गई बात की तस्दीक कर सकते थे और न हीं उस पर कोई प्रश्न उठा कर उसे सब की जानकारी मे ला सकते थे। तब यह बातचीत गोपनीय न रहती यह उनके परिवार और लिए अनुचित होता और शायद पदमा के लिए भी.

कजरी, पदमा और सुगना सरयू सिंह की तीनों प्रेमिकाऐं उनके अद्भुत लण्ड का सुख ले चुकी थी पर जितना आनंद उन्होंने सुगना के साथ पाया था वह शायद अनोखा और निराला था।

पर आज डॉक्टर द्वारा कही गई बात को याद कर अब उनका हृदय व्यतीत था। आंनद कष्ट और बेचैनी में बदल चुका था।अपनी ही पुत्री के साथ किये गए व्यभिचार को सोच कर उनका हृदय विह्वल था।

एकांत पाकर उन्होंने पदमा से पूछा…

"एक बात पूछी..?"

"का बात बा?"

"उ कौन महीना रहे जब तू पानी में डूबत रहलू और हम तहरा के बचवले रहनी?" सरयू सिंह ने पदमा से मर्यादा में रहकर उसकी चुदाई के दिन के बारे में जानकारी लेने की कोशिश की।

पद्मा ने अपने दिमाग पर जोर दिया और होली के बाद आई अमावस के दिन की तस्दीक कर दी। पद्मा को आज भी वह अनोखी चुदाई याद थी। सरयू सिंह का दिमाग तेजी से घूमने लगा उन्होंने अपनी उंगलियों पर गड़ना प्रारंभ की और सुगना के जन्मदिन से उसका मिलान करने लगे। डॉक्टर की बात उन्हें सही प्रतीत होने लगी। …...क्यों उनका ध्यान इस बात की तरफ आज तक कभी नहीं गया था?

अब सरयू सिंह को पूरी तरह यकीन आ चुका था कि सुगना उनकी ही पुत्री थी। पढ़े लिखे होने के कारण वह डॉक्टर की बात को नजरअंदाज नहीं कर रहे थे परंतु उन्हें यकीन ही नहीं हो रहा था कि पदमा के साथ एक बार किए गए संभोग ने हीं उसे गर्भवती कर दिया था। यह बात यकीन के काबिल ना थी परंतु नियति ने सुगना का सृजन ही इसी निमित्त किया था….

मासूम सुगना सरयू सिंह के पैरों में तेल लगा रही थी सरयू सिंह उससे नजरे न मिला पा रहे थे। उनके दिल ने इतनी पीड़ा शायद कभी ना सही थी। अपनी ही पुत्री के साथ कामवासना का जो खेल उन्होंने खेला था आज वह उसे याद कर कर अपनी पीड़ा को और बढ़ा रहे थे। वह सुगना को देख न रहे थे परंतु उनके मन मस्तिष्क में सुगना नाच रही थी..

बरबस ही उन्हें सुगना के कामांगो और नग्न शरीर का ध्यान आता उनकी आत्मा उन्हें और कचोटने लगती। सरयू सिंह को अपना जीवन बोझ जैसा प्रतीत होने लगा।

उधर बनारस महोत्सव समाप्त हो चुका था। विद्यानंद का पांडाल उखड़ रहा था इधर सरयू सिंह की उम्मीदें। वह अपने आने वाले जीवन से ना उम्मीद हो चुके थे कामवासना उनके जीवन का प्रधान अंग थी और उसे पुष्पित पल्लवित करने वाली सुगना अचानक सरयू सिंह ने अविवाहित रहने के बावजूद कामवासना का ऐसा आनंद लिया था जो उस वक्त में विरले लोगों को ही नसीब होता था और तो और पिछले 3-4 वर्षों में सुगना ने तो उनके जीवन में नई खुशियां भर दी थीं। अपनी प्रौढ़ावस्था में सुगना जैसी सुकुमारी का साथ पाकर वह धन्य हो गए थे। सुगना ने उनकी वासना को तृप्त न किया अपितु आग को और भड़का दिया और वह सुगना के दूसरे छेद के पीछे पड़ गए थे।

रतन अपने परिवार का सारा सामान समेटकर मनोरमा द्वारा दी गई गाड़ी में रख कर हॉस्पिटल के बाहर आ चुका था और राजेश इन घटनाओं से अनजान बीती रात की सुनहरी यादे लिए अपनी ड्यूटी पर निकल चुका था।

लाली तक खबर सोनू ने पहुंचाई और उसे लेकर हॉस्पिटल आ गया था। लाली को भी इस बात की खबर हो गई कि सरयू चाचा होटल से सीधा हॉस्पिटल में आए थे। परंतु चाचा जी सुगना को लेकर होटल में क्यों गए थे? लाली का दिमाग इस प्रश्न का उत्तर स्वयं न खोज पा रहा था उसने सुगना के सामने कई प्रश्न रखे पर सुगना निरुत्तर थी।

शाम होते होते सरयू सिंह को हॉस्पिटल से डिस्चार्ज कर दिया गया। उनकी जांच रिपोर्ट और सुगना के खून जांच की रिपोर्ट उनको दे दी गई सरयू सिंह की मन में आया कि वह यह रिपोर्ट फाड़ दें ताकि आने वाले समय में भी यह बात किसी को पता ना चले परंतु वह हॉस्पिटल से आज ही डिस्चार्ज हुए थे रिपोर्ट की आवश्यकता कभी भी पढ़ सकती थी उन्होंने सुगना से कहा

" इकरा के संभाल के रखी ह आगे काम करी"

नियति ने सरयू सिंह का यह उदगार सुन लिया और उसे अपनी कथा में एक नया मोड़ आता दिखाई पड़ गया।

सुगना ने लाल झोले में रखी हुई उस रिपोर्ट को सहेज कर रख लिया। यह लाल झोला बेहद आकर्षक था। बरबस ही ध्यान खींचने वाला। झोले में दफन सुगना और सरयू सिह के रिश्ते कब उजागर होंगे और कौन करेगा यह तो वक्त ही बताएगा परंतु अब हॉस्पिटल की लॉबी में गहमागहमी बढ़ गई थी।

"बाबू जी …..तनी धीरे से…". सुगना की चिर परिचित आवाज एक बार फिर सुनाई दे पर इसमें कामवासना कतई न थी वह अपने बाबू जी को सावधान कर रही थी जो इस वक्त हॉस्पिटल की सीढ़ियां उतर रहे थे।

माथे पर दाग से अब भी रक्तस्राव हो रहा था जिसे डॉक्टरों ने पट्टी और मलहम लगाकर रोक दिया था। पर वह अब साफ साफ नजर आ रहा था..

" सोनू ने पूछा ज्यादा चोट लग गई रहल हा का?

का भईल रहे ? चक्कर आ गईल रहे का""

सरयू सिंह क्या जवाब देते उन्होंने कोई उत्तर न दिया वह शर्मसार थे.. शाम होते होते सरयू सिंह अपने परिवार के साथ सलेमपुर गए।

पदमा भी अपनी दोनों पुत्रियों सोनी और मोनी के साथ सीतापुर पहुंच चुकी थी। उन्हें छोड़ने गया सोनू अब भी सोनी के आकर्षण का केंद्र था।। जब जब वह सोनू को देखती उसे लाली के हाल में बिस्तर पर गिरा वह चिपचिपा द्रव्य याद आ जाता।। क्या सोनू भैया भी अपने हाथों से अपने उसको हिलाते होंगे? क्या वह भी लड़कियों के बारे में सोचते होंगे? सोनी को अपनी सोच पर शर्म आ रही थी ...परंतु जितना वह सोचती उसकी सोच का दायरा बढ़ता जाता।

शर्म और हया का आवरण धीरे-धीरे अपनी मर्यादा तोड़ता है सोनी अपनी सोच में धीरे-धीरे सोनू को और नग्न करती गई जितना ही वह उसके बारे में सोचती सोनू उसे उतना खुलकर दिखाई देता। सोनी शर्म हया त्याग कर पुरुषों के लण्ड की कल्पना करने लगी। विकास और सोनू दोनों ही उसकी कल्पना में आने लगे।

सोनी का युवा शरीर पुरुष संसर्ग का थोड़ा सुख पा चुका था परंतु जांघों के बीच उठ रही हलचल अभी पूरी तरह शांत ना हुई थी विकास की उंगलियों ने उस आग को और दहका दिया था।

बनारस महोत्सव बीत चुका था। कहानी के तीन अलग अलग प्रमुख पात्र लाली, मनोरमा और सुगना के गर्भ में आ चुके थे।

सरयू सिंह अपने दालान की सैया पर पड़े अपने जीवन को याद कर रहे थे। यह जानने के पश्चात की सुगना उनकी अपनी ही पुत्री है वह दर्द में थे।

अपनी ही पुत्री के साथ पिछले चार-पांच वर्षो से उन्होंने यहां वासना का जो खेल खेला था वह अब उनके गले की फांस बन चुका था। अपनी ही पुत्री को लड्डू में गर्भनिरोधक दवाइयां मिलाकर खिलाना तथा उसकी मासूम चाहतों के एवज में उसे कई दिनों बल्कि कई वर्षों तक लगातार चोदना….. ।

सुगना के साथ बिताई सुखद यादें अब कष्ट का कारण बन गई थी। कैसे उन्होंने सुगना को दिखा दिखाकर बछिया की चूची मीसी थी? कैसे होटल के कमरे में उन्होंने सुगना की चुचियों पर जानबूझकर टॉर्च मारा था? और कैसे उसकी जांघों के बीच छुपे मालपुए के दर्शन किए थे?

वह नियति के इशारे को न समझ पाए थे जब उन्होंने पहली बार सुगना की बूर् का दर्शन किया था तब भी उनके इष्टदेव द्वारा भेजे गए कीड़े ने उनके माथे पर दाग दे दिया था। यह उनके द्वारा किए जा रहे पाप को रोकने का एक इशारा था परंतु कुंवारी सुगना की अद्भुत चूत के आकर्षण में खोए सरयू सिंह उस इशारे को न समझ पाए थे।

यह वही कीड़ा था जिसने सरयुसिंह को उसकी माँ पद्मा के साथ संभोग करते देखा था तथा सरयू सिह के अंडकोषों के पास काट कर उन्हें पराई शादी शुदा स्त्री के गर्भ में वीर्य भरने से रोकने की कोशिश की थी।

परंतु निष्ठुर नियति सरयू सिंह की वासना पर लगाम न लगा सकी। वासना में अंधे सरयू सिह को रोक पाने में छोटे से कीड़े की कोशिश कामयाब न हो पायी पर उसने दाग दे दिया...जो सरयू सिह की वासना के अनुपात में बढ़ता रहा और अंततः फूट गया।

सारा घटनाक्रम चाहे वह दीपावली की रात या सुगना का कौमार्य भेदन का या अपनी भाभी कजरी के साथ मिलकर सुगना से त्रिकोणीय संभोग …..सारी सुनहरी यादें अब उनकी पीड़ा का कारण बन चुकी थी।

बनारस के पांच सितारा होटल में जो कृत्य किया था वह शायद उनके इष्ट देव को भी रास ना आया था। अपनी पुत्री के साथ …..हे…. भगवान उन्होंने क्या कर दिया था...

सरयू सिंह का किसी कार्य में मन न लगता । वह सुगना से नजरे ना मिला पाते।

सुगना हमेशा की तरह ही उन्हें वैसा ही प्यार व सेवा करती परंतु अब उसमें कामोत्तेजना की भावना न थी। वह जानती थी यह सरयू सिंह के लिए घातक होता। अपने बाबू जी को इस अवस्था में देखकर उसकी कामोत्तेजना भी कुछ दिनों के लिए शांत हो गई।

सुगना अब भी परेशान थी सरयू सिंह ने उसके साथ संभोग तो अवश्य किया था परंतु वीर्य स्खलन न कर पाए थे। राजेश के साथ बिताई उस रात से सुगना को कोई विशेष उम्मीद न थी वह जानती थी कि उसकी योनि में राजेश के वीर्य का कुछ अंश अवश्य गया था परंतु क्या वह उससे गर्भवती हो पाएगी? यह प्रश्न उसके मन में अब भी कायम था। सरयू सिंह को बिस्तर पर पड़ा देख सुगना ने अपने दिल पर पत्थर रखकर आगे उनसे संभोग करने का विचार कुछ समय के लिए त्याग दिया था।

वैसे भी बनारस महोत्सव बीत चुका था उसके गर्भ में यदि उसकी पुत्री का सृजन होना था तो हो चुका होगा। अन्यथा अब उसकी कोई उपयोगिता भी न रह गई थी। सुगना परेशान थी और मन ही मन अपने इष्ट देव से राजेश के वीर्य से ही सही गर्भधारण के लिए प्रार्थना कर रही थी। उसे अपने आने वाले मासिक धर्म के दिनों के बिना रजस्वला हुए बीतने का इंतजार था।

सरयू सिंह उसके अपने पिता थे। यह बात वह कतई न जानती थी यदि वह जान जाती तो न जाने क्या करती। उसके सरयू सिह की पुत्री होने की खून जांच की रिपोर्ट अटारी पर झोले में दबी धूल चाट रही थी। सुगना उसे कब देखेगी और कब अपने हिस्से का पश्चाताप झलेगी या अभी भविष्य के गर्भ में था। अभी तो इस रिश्ते को जानने का दंश सिर्फ और सिर्फ सरयू सिंह झेल रहे थे।

दिन बीतते देर नहीं लगते। सुगना का भी इंतजार खत्म हुआ और मासिक धर्म के दिन बिना जांघों के बीच कपड़ा फसाये..बीत गए । उसकी इच्छा भगवान ने पूरी कर दी थी।

वह मन ही मन यह सोचती कि आखिरकार इस गर्भ में आए शिशु का पिता कौन है? उसके बाबू जी ने तो स्खलन पूर्ण न किया था परंतु सुगना यह बात भी जानती थी कि लण्ड से रिस रहा वीर्य भी गर्भवती करने के लिए काफी होता है।

जब जब वह अपने गर्भ के बारे में सोचती उसे ऐसा प्रतीत होता है जैसे यह राजेश के वीर्य से ही सृजित हुआ था। सुगना ने इस बात पर ज्यादा तवज्जो न दिया । विद्यानंद की कही बातों के अनुसार सिर्फ उसे सूरज की बहन का सृजन करना था और वह उसकी कोख में आ चुकी थी। यद्यपि नियत ने उस गर्भ का लिंग निर्धारण न किया था परंतु सुगना मन ही मन उस गर्भ को अपनी पुत्री मान चुकी थी। इसके इतर सोचकर वह और दिमागी मुसीबत में नहीं पड़ना चाहती थी।

सुगना पूरे तन मन धन से अपने गर्भ को सुरक्षित और स्वस्थ रखने का प्रयास करने लगी घर में खुशियां व्याप्त थी। कजरी ने पूछा…

"लागा ता कुंवर जी फिर भीतरिया डाल देले हां….जाय दे दु गो रहीहें सो ता अच्छा रही... भगवान एक और लइका दे देस तो दोनों साथ ही खेलहै सो"

"ना मा हमरा ता लईकी चाही…"

कजरी कभी भी लड़कियों की पक्षधर न थी उस जमाने में लड़कियों को लड़कों का दर्जा प्राप्त न था. कजरी ने कुछ कहा नहीं परंतु उसने अपने इष्ट देव से गुहार लगाई जो सुगना की इच्छाओं के विपरीत थी... नियति दोनों की प्रार्थनाएं सुन रही थी... परंतु इस कामगाथा के लिए जिस पात्र की आवश्यकता थी सुगना के गर्भ में उसका ही सृजन होना था। नियति सर्वशक्तिमान थी।

सुगना के गर्भवती होने की खबर सरयू सिंह तक भी पहुंची उन्हें एक बार फिर सुगना की जांघों के बीच लगे वीर्य की याद आ गई। वह यह बात भली-भांति जानते थे कि उस दौरान उन्होंने सुगना के साथ एक भी बार संभोग नहीं किया था और जब यह मौका उन्हें प्राप्त हुआ भी तब वह सुगना की दूसरे छेद के पीछे पड़ गए थे। उन्हें मन ही मन विश्वास हो चला था किस सुगना के गर्भ में आया बच्चा निश्चित ही राजेश का ही है। परंतु सुगना अब उनकी पुत्री थी वह इस बारे में ज्यादा नहीं सोचना चाहते थे ...उन्होंने यथास्थिति स्वीकार कर ली थी एक लिहाज से वह पाप से जन्मे एक और संतान के पिता होने से बच गए थे।

सुगना ने अपने जीवन में एक बार फिर वैसे ही खुश थी जैसे सूरज के गर्भधारण के समय थी। पर इस खुशी में आज वह अकेली थी। सुगना ने राजेश के घर पर बितायी रात के अनुभव को कजरी से भी छुपा लिया था।

उसने कजरी को गर्भ धारण का कारण उसने सरयू सिह से मुलाकात ही बताया था। यह गर्भधारण अकारण हुआ था। कजरी मन ही मन सोचती काश यह न हुआ होता तो कुछ ही दिनों में रतन और सुगना करीब आ जाते और तब यह और उचित होता। परंतु मन की सोच कार्य मे परणित हो शायद यह हमेशा संभव नही होता।

इस गर्भधारण ने सुगना अपनी ही नजरों में गिरने से बचा लिया था। यद्यपि सरयू सिह से सफल संभोग न हो पाने के बाद अपने गर्भधारण की आशंकाओं को सोचते हुए वह मन ही मन प्रण कर चुकी थी कि यदि सूरज को सामान्य करने के लिए उसे कालांतर में अपने ही पुत्र सूरज के साथ निकृष्ट संभोग को करना भी पड़ेगा तो वह अवश्य करेंगी।

निष्ठुर नियति मन की भावनाएं भी पढ़ लेती है। सुगना ने जो बात अपने दिमाग में लाइ थी वह नियति ने न सिर्फ पढ़ लिया अपितु उसे योजना में समाहित करने लगी। वैसे भी न चाहते हुए भी सुगना अब सूरज की माँ भी थी और बहन भी…..विद्यानंद ने सूरज की मुक्ति का जो मार्ग बताया था सुगना सूरज की माँ और बहन होने के कारण विशेष रूप से उपयुक्त थी...

उधर लाली भी गर्भवती हो चुकी थी अपने प्यारे मुंह बोले भाई सोनू से पूरी तन्मयता और आत्मीयता से चुदने के पश्चात लाली के गर्भ ने भी सोनू के वीर्य को उसी प्रकार आत्मसात कर लिया था जिस प्रकार लाली और राजेश ने सोनू को।

जिस गर्भ का सृजन पूरे प्यार और आत्मीयता से हुआ हो उसका मन और भावनाएं कितने कोमल होंगे इस बात का अंदाजा पाठक लगा सकते हैं।

इसी प्रकार एक पात्र का सृजन मनोरमा के गर्भ में भी हुआ था। सरयू सिंह जैसे बलिष्ठ और मजबूत व्यक्ति तथा मनोरमा जैसी काबिल और सुंदर युवती के गर्भ में आने वाला शिशु निश्चित ही अपने माता पिता के गुणों से सुसज्जित होता।

इस बनारस महोत्सव ने मनोरमा के जीवन में भी खुशियां भर दी थी उसके गर्भवती होने की खबर सुनकर सेकेरेट्री साहब फूले नहीं समा रहे थे वह दर-दर मंदिरों में सर पटकते हुए भगवान का शुक्रिया अदा कर रहे थे। सच भी था शायद भगवान ने ही सरयू सिंह को मनोरमा के गर्भधारण के लिए भेज था।

मनोरमा मन ही मन अपने इष्ट देव को याद करती और कभी-कभी उसे सरयू सिंह देवस्वरूप दिखाई पड़ जाते। उसका सर जैसे अपने इष्ट देव के सामने झुकता वैसे ही सरयू सिंह के सामने। वह उनसे बेहद प्रभावित हो गई थी। उसे आशा ही नहीं पूर्ण विश्वास था कि या गर्भ उसे सरयू सिह से ही प्राप्त हुआ है अन्यथा जिस खेत को सेक्रेटरी साहब कई वर्षों से जोत और चोद रहे थे परंतु आज तक एक हरी दूब ने भी जन्म लिया था और आज पहली बार मनोरमा के उस खेत (गर्भ) में अद्भुत जीव का सृजन हो रहा था।

कहानी की तीनों वयस्क महिलाएं गर्भवती थी और अधेड़ अवस्था को प्राप्त कर चुकी सुगना की मां पदमा और सास कजरी दोनों काम सुख को तिलांजलि दे कर घरेलू जिम्मेदारियों में व्यस्त हो गई थी। कामुकता का जैसे अकाल पड़ गया था।

सारा दारोमदार सोनी पर आ गया था। सोनी की बहन मोनी अभी भी धर्म परायण थी और अपने शरीर में छुपे हुए खजाने से अनजान अपनी मां का हाथ बटाने में लगी रहती थी।

सोनी बिस्तर पर लेटी विकास के साथ बिताए पल याद कर रही थी उसकी हथेलियां स्तनों पर रेंग रही थी और जांघो के बीच फसा तकिया हिल रहा था…

जैसे जैसे तकिए की रगड़ जांघों के जोड़ पर बढ़ती गई सोनी की हथेलियां सूखी चुचियों को छोड़कर रसीली बुर की तरफ बढ़ गई। सोनी को अपनी रसीली बूर् को सहलाने में बेहद आनंद आता था..जैसे ही उंगलियों ने रसीले छेद पर छलके चिपचिपे रस को छुआ .तभी

"सोनी ए सोनी…." सोनू ने आवाज लगाई…


शेष अगले भाग में..


इस भाग में लिखित प्रमाण है कि केवल सुगना ही पदमा सरयू के एक बार सभोग से जन्मी संतान थी। सोनू पदमा के पति सै जन्मी संतान था। अतः दोनो सगे भाई बहन ना थे।
मनोरमा के कोख से जन्मी संतान सूरज के साथ सभोंग करे तभी रिश्ता व्याभिचार कहला सकता है, क्यों कि दोनों का पिता एक है।
 

Lovely Anand

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इस भाग में लिखित प्रमाण है कि केवल सुगना ही पदमा सरयू के एक बार सभोग से जन्मी संतान थी। सोनू पदमा के पति सै जन्मी संतान था। अतः दोनो सगे भाई बहन ना थे।
मनोरमा के कोख से जन्मी संतान सूरज के साथ सभोंग करे तभी रिश्ता व्याभिचार कहला सकता है, क्यों कि दोनों का पिता एक है।
आपका उत्तर सही है पर आप द्वितीय आए है..
कड़क भाई ने 80 प्रतिशत सही उत्तर कल ही दे
दिया है और मैने भी नया अपडेट डाल दिया है..

एक बात आपने सही कही मनोरमा....वाली....धन्यवाद आपको....
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Lutgaya

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आपका उत्तर सही है पर आप द्वितीय आए है..
कड़क भाई ने 80 प्रतिशत सही उत्तर जलन de दिया है और मैने भी नया अपडेट डाल दिया है..

एक बात आपने सही कही मनोरमा....वाली....धन्यवाद आपको....
अपडेट मैने पढ लिया लवली भाई
परन्तु यदि कहानी की दिशा तय करने में मनोरमा की संतान भी सहयोगी रहे तो कुछ अलग परिणाम होंगे।
कडक भाई ने संदर्भ नही दिया जो मैने दिया है शायद।
 

Lovely Anand

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अपडेट मैने पढ लिया लवली भाई
परन्तु यदि कहानी की दिशा तय करने में मनोरमा की संतान भी सहयोगी रहे तो कुछ अलग परिणाम होंगे।
कडक भाई ने संदर्भ नही दिया जो मैने दिया है शायद।
वक्त का इंतजार करिए नियति ने जो फूल पिरोए है उसे इत्र बनकर फिजा में महकने तो दीजिए ...

आप उस खुशबू में खो जाएं ऐसा मेरा प्रयास है....

जुड़े रहें...
 

Kadak Londa Ravi

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भाग 78

लाली और सुगना दोनों अपने-अपने घागरे को अपनी कमर तक उठाए धान रोप रही थी नितंबों के बीच से उनकी बुर की फांके बालों के बादल काले बादल को चीर कर अपने भाई को दर्शन देने को बेताब थीं।

सोनू से और बर्दाश्त ना हुआ उसने ने हाथ आगे किए और और सुंदरी की कमर को पकड़ कर अपने लंड को उस गुफा के घर में प्रवेश कराने की कोशिश करने लगा बुर पनियायी हुई थी परंतु उसमे प्रवेश इतना आसान न था…सोनू प्रतिरोध का सामना कर रहा था..

चटाक…. गाल पर तमाचा पड़ने की आवाज स्पष्ट थी…


अब आगे..

सोनू अचानक ही अपने सपने से बाहर आ गया अकस्मात पड़े सुगना के इस तमाचे ने उसकी नींद उड़ा दी। वह अचकचा कर उठ कर बैठ गया। पूरी तरह जागृत होने के पश्चात उसके होठों पर मुस्कुराहट आ गई। यह दुर्घटना एक स्वप्न थी यह जानकर वह मंद मंद मुस्कुरा रहा था।

वह एक बार फिर बिस्तर पर लेट गया और अपने अधूरे सपने को आगे देखने का प्रयास करने लगा परंतु अब वह संभव नहीं था…….. पर एक बात तय थी सोनू बदल रहा था…

इधर सोनू की आंखों से नींद गायब थी और उधर बनारस में सुगना की आंखों से । आज जब से सोनी लखनऊ के लिए निकली थी तब से बार-बार घर में सोनू का ही जिक्र हो रहा था। लाली और सुगना बार-बार सोनू के बारे में बातें कर रहे थे।

यह अजीब इत्तेफाक था सोनू दोनों बहनों के आकर्षण का केंद्र था दोनों का प्यार अलग था पर सुगना और सोनू का भाई बहन का प्यार अब स्त्री पुरुष के बीच होने वाले प्यार से अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहा था।

लाली द्वारा कही गई बातें अब भी सुगना के जेहन में गूंज रही थीं।

दरअसल बच्चों के सो जाने के बाद दोनों सहेलियां अकेली हो गई थी। सोनू के जाने के बाद लाली वैसे भी अकेली थी और आज सोनी के लखनऊ जाने के बाद सुगना भी अकेलापन महसूस कर रही थी। उसने लाली को अपने पास ही बुला लिया …दोनों घरों के बीच दीवार न होने का यही सबसे बड़ा फायदा था। लाली और सुगना एक दूसरे के घर में बेबाकी से आ जाया करती थी बिना किसी औपचारिकता के।

लाली अपने बच्चों को सुला कर सुगना के पास आ गई..

*का बात बा मन नइखे लागत का?"

"सोनी के जाये के बाद सच में खालीपन लागता"

"अरे वाह तोरा सिर्फ सोनी के चिंता बा सोनू के गईला से तोरा जैसे कोनो फर्क नइखे"

"हमरा का पड़ी तोरा ज्यादा बुझात होई"

सुगना ने यह बात मुस्कुराते हुए कही। लाली उसका इशारा समझ चुकी थी उसने भी मुस्कुराते ही कहा..

"सोनुआ रहित त तोरो सेतीहा में सिनेमा देखे के मिल जाईत…"

"का कहा तारे ? कौन सिनेमा?" सुगना सचमुच लाली की बातों को नहीं समझ पाई थी..उसका प्रश्न वाजिब था..


लाली भी सुगना को शर्मसार नहीं करना चाहती थी उसने बात बदलने की कोशिश की

" चल छोड़ जाए दे "

"बताओ ना…. बोल ना का बोला तले हा" लाली के उत्तर न देने पर सुगना ने उसके उसे कंधे से हिलाते हुए कहा…

"ओ दिन जब सोनूआ जात रहे ते कमरा में काहे झांकत रहले?"

आखिरकार जिस बात पर पर्दा कई दिनों से पड़ा हुआ था उसे लाली ने उठा दिया। सुगना निरुत्तर हो गई। सुगना ने नजर चुराते हुए कहा


"जाय दे छोड़ ऊ कुल बात"

"ना ना अब तो बतावही के परी"

सुगना का चेहरा शर्म से लाल हो चुका था और नजरें झुक गई थी वह कुछ बोल पाने की स्थिति में न थी

"अच्छा ई बताओ कि केकरा के देखत रहले हमरा के की सोनुआ के?"

"पागल हो गईल बाड़े का? सोनुआ हमर भाई हा हम तो देखत रहनी की ते सोनुआ के कतना बिगाड़ देले बाड़े.."

"आंख मिला कर ई बात बोल नजर काहे छुपवले बाड़े"

नजर मिलाकर झूठ बोलना सुगना की फितरत में न था। उसने अपनी नजरें ना उठाई.

"झूठ बोला तारे नू, पूरा मर्द बन गइल बा नू....हम कहत ना रहनी की सोनुआ के पक्का मर्द बना के छोड़ब ओकर मेहरारू हमर नाम जपी "

"ठीक बा ठीक बा साल भर और मजा ले ले ओकरा बाद हम ओकर ब्याह कर देब.."

सोनू की शादी की बात सुनकर लाली थोड़ा दुखी हो गई … उसे यह तो पता था कि आने वाले समय में सोनू का विवाह होगा पर इतनी जल्दी? इस बात की कल्पना लाली ने ना की थी।

"अरे अभी ओकर उम्र ही कतना बा तनी नौकरी चाकरी में सेट हो जाए तब करिए काहे जल्दीआईल बाड़े?"

"लागा ता तोर मन भरत नईखे…" अब बारी लाली की थी वो शरमा गई और उसने बात बदलते हुए कहा


"अच्छा ई बताऊ यदि सोनू तोरा के देख लिहित तब?"

सुनना ने लाली के प्रश्न पूछने के अंदाज से उसने यह अनुमान लगा लिया कि लाली यह बात नहीं जानती थी कि सुगना और सोनू की नजरें आपस में मिल चुकी थीं उसने लाली को संतुष्ट करते हुए

"अरे एक झलक ही तो देखले रहनी ऊ कहा से देखित ऊ तोरा जांघों के बीच पुआ से रस पीयत रहे … सच सोनूवा जरूरत से पहले बड़ हो गईल बा …"

लाली के दिमाग में शरारत सूझी

" खाली सोनू ने के देखले हा की ओकर समान के भी?" लाली ने जो पूछा था सुगना उसे भली-भांति समझ चुकी थी

सुगना शर्म से पानी पानी हो गई दोनों युवा स्त्रियां दूसरे की अंतरंग थी…एक दूसरे का मर्म भलीभांति समझती थी …

"जब देख लेले बाड़े तो लजात काहे बाड़े" लाली ने फिर छेड़ा।


सुगना ने कोई उत्तर न दिया उसके लब कुछ कहने को फड़फड़ा रहे थे परंतु उसकी अंतरात्मा उसे रोक रही थी जितनी आसानी से लाली कोई बात कह देती थी उतना सुगना के लिए आसान न था। उसका व्यक्तित्व उसे ओछी बात कहने से सदैव रोकता।

" आखिर भाई केकर ह?_सुगना ने समुचित उत्तर ढूंढ लिया था

" काश सोनुआ तोर आपन भाई ना होखित.."

" काहे …काहे …अइसन काहे बोलत बाड़े?"

"ई बात तेहि सोच..हमारा नींद आवता हम जा तानी सूते"


लाली सुगना के कमरे से बाहर जा रही थी और सुगना अपने दिल की बढ़ी हुई धड़कनों पर नियंत्रण करने का प्रयास कर रही थी… लाली के जाते ही सुनना बिस्तर पर लेट गईं। और एक बार फिर उसी प्रकार छत पर देखने लगे जैसा लखनऊ में बिस्तर पर लेटा हुआ सोनू देख रहा था। फर्क सिर्फ इतना था की सोनू ने अपनी कल्पना की उड़ान कुछ ज्यादा थी जबकि सुगना उस बारे में सोचना भी नहीं चाहती थी। पर परिस्थितियां और नियति ने सुगना को अपनी साजिश का हिस्सा बना लिया था क्या सुगना …सोनू के साथ….

सभ्य और आकर्षक व्यक्तिव की सुगना को इस वासना के दलदल में घसीटते हुए नियत भी सोच रही थी परंतु जो होना था शायद नियति के बस में भी नहीं था…

इसे संयोग कहें या टेलीपैथी सुगना ने भी अपने स्वप्न में वही दृश्य दखे जो कमोबेश सोनू न देखें थे और जैसे ही सोनू ने उसे पकड़ने की कोशिश की सुगना का हाथउठ गया….. और उस चटाक की गूंज से सुगना की भी नींद भी खुल चुकी थी। बिस्तर पर बड़े भाई बहन मन में एक अजब सी हलचल लिए हुए पंखे को ताक रहे थे।

लाली ने उस बात का जिक्र कर दिया था जिसे सुगना महसूस तो करती थी परंतु अपने होठों पर लाना नहीं चाहती थी उसके दिमाग में लाली के शब्द मंदिर के घंटों की तरह बज रहे थे।

जाने वह कौन सी मनहूस घड़ी थी जब उसने लाली को अपने पास बुलाया था..

सुगना की रात बेहद कशमकश में गुजरी वह बार-बार सोनू के बारे में सोचती रही। रात में उसकी पलकें तो बंद हुई पर दिमाग में तरह-तरह के ख्याल घूमते रहे। कुछ स्वप्न रूप में कुछ अनजान और अस्पष्ट रूप में । कभी उसे सपने में सरयू सिंह दिखाई पड़ते कभी उनके साथ बिताए गए अंतरंग पल ।

कभी उसके पति रतन द्वारा बिना किसी प्रेम के किया गया योनि मर्दन .. न जाने क्या क्या कभी कभी उसे अपने सपने में अजीब सी हसरत लिए लाली का पति स्वर्गीय राजेश दिखाई पड़ता…

अचानक सुगना को अपनी तरफ एक मासूम सा युवक आता हुआ प्रतीत हुआ…अपनी बाहें खोल दी और वह युवक सुगना के आलिंगन में आ गया सुगना उसके माथे को सहला रही थी और उस युवक के सर को अपने सीने से सटाए हुए थी अचानक सुगना ने महसूस किया की उस युवक के हाथ उसके नितंबों पर घूम रहे हैं स्पर्श की भाषा सुगना अच्छी तरह समझती थी उसने उस अनजान युवक को धकेल कर दूर कर दिया वह युवक सुगना के पैरों में गिर पड़ा और हाथ जोड़ते हुए बोला

"मां मुझे मुक्ति दिला दो….."

अचानक सुगना ने महसूस किया उसका शरीर भरा हुआ था। हाथ पैर उम्र के अनुसार फूल चुके थे। सुगना अपने हाथ पैरों को नहीं पहचान पा रही थी। उसे यकीन ही नहीं हो रहा था कि वह एक अधेड़ महिला की तरह हो चुकी थी। सुगना समझ चुकी थी कि वह किशोर युवक कोई और नहीं उसका अपना पुत्र सूरज था जो विद्यानंद द्वारा बताए गए शॉप से अपनी मुक्ति का मार्ग ढूंढ रहा था। क्या सुगना अपने पुत्र को शाप से मुक्त करने के लिए उसके जन्म मार्ग को स्वयं उसके ही वीर्य द्वारा अपवित्र करने देगी..?

यह प्रश्न जितना हकीकत में कठिन था उतना स्वप्न में भी। सुगना इस प्रश्न का उत्तर न तो जागृत अवस्था में दे सकती थी न स्वप्न में । अलग बात थी कि वह अपने पुत्र प्रेम के लिए अंततः कुछ भी करने को तैयार थी।

इस बेचैनी ने सुगना की स्वप्न को तोड़ दिया और वह अचकचा कर उठ कर बैठ गई । हे भगवान यह आज क्या हो रहा है। सुगना ने उठकर बाहर खिड़की से देखा रात अभी भी बनारस शहर को अपने आगोश में लिये हए थी। घड़ी की तरफ निगाह जाते ही सुगना को तसल्ली हुई कुछ ही देर में सवेरा होने वाला था।

सुगना ने और सोने का प्रयास न किया। आज अपने स्वप्न में उसने जो कुछ भी देखा था उससे उसका मन व्यथित हो चला था।


उधर लाली ने उसके दिमाग में पहले ही हलचल मचा दी थी और आज इस अंतिम स्वप्न में उसे हिला कर रख दिया था। सुगना ने बिस्तर पर सो रही छोटी मधु और सूरज को देखा और मन ही मन ऊपर वाले का शुक्रिया अदा किया जिसमें उसे इस पाप से बचाने के लिए मधु को भेज दिया था। सुगना दृढ़ निश्चय कर चुकी थी कि वह समय आने पर एक बार के लिए ही सही मधु और सूरज का मिलन अवश्य कराएगी तथा सूरज की मुक्ति का मार्ग प्रशस्त करेगी ….

लाली और सुगना की मुलाकात अगली सुबह कई बार हुई परंतु न सुगना ने लाली को छेड़ा और ना लाली ने सुगना को। पर लाली द्वारा कही गई बातें बार-बार सुगना के जहन में घूम रही थी। क्या सोनू सच में उसके बारे में ऐसा सोचता होगा? उसे याद आ रहा था कि कैसे नजरें मिलने के बाद भी सोनू लाली को बेहद तेजी से चोदने लगा था। अपनी बड़ी बहन के प्रति इस प्रकार की उत्तेजना एक स्वाभाविक प्रक्रिया है.. सुगना के प्रश्नों का उत्तर देने वाला कोई न था परंतु सुगना को अपनी जांघों के बीच चिपचिपा पन का एहसास हुआ और शायद उसे उसका उत्तर मिल गया।

दोनों अंतरंग सहेलियां ज्यादा देर तक एक दूसरे से दूर ना रह पाईं । दोपहर का एकांत उन्हें फिर करीब खींच लाया और सुगना और लाली के बीच उपजा मीठा तनाव समाप्त हो गया परंतु उसने सुगना के श्वेत धवल विचारों में कामवासना की लालिमा छोड़ दी थी..


एक-दो दिन रह कर और सोनी और विकास वापस बनारस आ गए थे। पिछले सात आठ दिनों में सोनी और विकास इतने करीब आ गए थे जैसे नवविवाहित पति पत्नी। बातचीत का अंदाज बदल चुका था। निश्चित ही वह सात आठ दिनों से हो रही सोनी की घनघोर चूदाई का परिणाम था। जब अंतरंगता बढ़ जाती है तो बातचीत का अंदाज भी उसी अनुपात में बदल जाता है। नई नवेली वधू में लाज शर्म और संभोग उपरांत शरीर में आई आभा स्पष्ट दिखाई पड़ती है। पारखी लोग इस बात का अंदाजा भली-भांति लगा सकते हैं।


सोनी के शरीर में आई चमक भी इस बात को चीख चीख कर कह रही थी कि सोनी बदल चुकी है उसके चेहरे और शरीर में एक अलग किस्म की कांति थी।

सरयू सिंह अपनी भाभी कजरी को लेकर बनारस पधारे हुए थे. सोनी चाय लेकर आ रही थी सरयू सिंह सोनी के व्यवहार और शरीर में आए बदलाव को महसूस कर रहे थे। अचानक वह एक किशोरी से एक युवती की भांति न सिर्फ दिखाई पड़ रही थी अपितु बर्ताव भी कर रही थी…

चाय देते समय अचानक ही सरयू सिंह का ध्यान सोनी की सीने में छुपी घाटी पर चला गया जो डीप गले के कुर्ते से झांक रही थी। सरयू सिंह की निगाहें दूर और दूर तक चली गई ।

दुधिया घाटी के बीच छुपे अंधेरे ने उनकी निगाहों का मार्ग अवरुद्ध किया और सोनी द्वारा दिए चाय के गर्म प्याले के स्पर्श ने उन्हें वापस हकीकत में ढकेल दिया पर इन चंद पलों ने उनके काले मूसल में एक सिहरन छोड़ थी।

वह कुर्सी पर स्वयं को व्यवस्थित करने लगे जब एक बार नजरों ने वह दृष्टि सुख ले लिया वह बार-बार उसी खूबसूरत घाटी में घूमने की कोशिश करने लगी। परंतु सरयू सिंह मर्यादित पुरुष थे उन्होंने अपनी पलकें बंद कर लीं और सर को ऊंचा किया । कजरी ने उन्हें देखा और बोली

"का भईल कोनो दिक्कत बा का?"

वो क्या जवाब देते। सरयू सिंह को कोई उत्तर न सूझ रहा था उन्होंने मुस्कुराते हुए कहा…

" मिजाज थाक गईल बा.." सरयू सिंह ने बात टालने की कोशिश की।

जैसे ही सोनी चाय लेकर कजरी की तरफ बढ़ी सोनी के कमर के कटाव सरयू सिंह की निगाहों में आ गए पतले कुर्ते के भीतर से भी कमर का आकार स्पष्ट दिखाई दे रहा था. सरयू सिंह को कमर का वह कटाव बेहद पसंद आता था।

सोनी के शरीर में आया यह बदलाव अलग था जो नवविवाहिता ओं में में सामान्यतः देखा जा सकता सरयू सिंह इस कला के पारखी थे….

उन्होंने बेहद संजीदगी से कहा

"लागा ता अब सोनी के ब्याह कर देवें के चाही आजकल जमाना ठीक नईखे"

कजरी ने भी शायद वही महसूस किया था जो शरीर सिंह ने। उस ने मुस्कुराते हुए कहा

"कवनो बढ़िया लाइका देखले रखीं ट्रेनिंग पूरा होते ही ब्याह कर दीहल जाओ"

सरयू सिंह और कजरी चाय की ट्रे लेकर वापस जाती हुई सोनी को देख रहे थे। सच में कुछ ही दिनों की गचागच चूदाई का असर सोनी के पिछवाड़े पर पड़ चुका था। कमर का कटाव और नितंबों का आकार अचानक ही मर्दों का ध्यान रहे थे। सोनी के चेहरे पर नारी सुलभ लज्जा स्पष्ट दिखाई पड़ रही सोनी जो अब विवाहिता थी अपने पूरे शबाब पर थी। सोनी लहराती हुई वापस चली गई परंतु सरयू के शांत पड़ चुके वासना के अंधेरे कुएं में जुगनू की तरह रोशनी कर गई..

नियति स्वयं उधेड़बुन में थी…वासना के विविध रूप थे.. सरयू सिंह की निगाहों में जो आज देखा था उसने नियति को ताना-बाना बुनने पर मजबूर कर दिया…

तभी सुगना चहकती हुई कमरे में आई सरयू सिंह एक आदर्श पिता की भांति व्यवहार करने…

सूरज उछल कर की आवाज में " बाबा.. बाबा ..करते पिता की गोद में आ गया" …और उनकी मूछों से खेलने लगा। सरयूयो सिंह बार-बार छोटे सूरज की गालों पर चुम्बन लेने लगे। सुगना का दृश्य देख रही थी और उनके चुंबनों को अपने गालों पर महसूस कर रही थी। शरीर में एक अजब सी सिहरन हुई और वह अपना ध्यान सरयू सिंह से हटाकर …कजरी से बातें करने लगी सुगना और सरयू सिंह ने जो छोड़ आया था उसे दोहरा पाना अब लगभग असंभव था।……

"सोनू कब आई?"

सरयू सिंह ने सुगना से पूछा

"सोनुआ राखी में आई"...सुगना के संबोधन अभी भी वैसे ही थे…. पर सोनू और सुगना के बीच बहुत कुछ बदल रहा था।

सुगना अपने भाई के लिए तरह-तरह के पकवान बनाने की सोचने लगी.. पिछले कई दिनों से उसने घर का खाना नहीं खाया होगा और उसका पसंदीदा.. मालपुआ…


सुगना…रक्षाबंधन का और अपने भाई सोनू का बेसब्री से इंतजार करने लगी…सुगना को क्या पता था कि अब उसका छोटा भाई सोनू किसी और मालपुए की फिराक में था जो शायद मीठा ना होते हुए भी बेहद आकर्षक गुलगुला और ढेरों खुशियां समेटे हुए था…. और वह भी अपनी बड़ी बहन का…जिसे उसने साथ-साथ बड़ा होते हुए देखा था…

शेष अगले भाग में..
बहुत अच्छी तरीके से वर्णन किया है साहिब अब सोनू और सुगना दोनो के मन में लालसा जाग गई है जब सोनू रक्षाबंधन पर आएगा तो नियति दोनो को एक करती है और सोनी और सोनू भी एक दूसरा का केसा सामने करते है फिर सोनी और सोनू बिना बताए केसे एक दूसरे के जिस्म का लुत्फ लेते है
देखते है आगे सोनू की किस्मत में क्या लिखा है
 
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