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Incest आह..तनी धीरे से.....दुखाता.

Lovely Anand

Love is life
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आह ....तनी धीरे से ...दुखाता
(Exclysively for Xforum)
यह उपन्यास एक ग्रामीण युवती सुगना के जीवन के बारे में है जोअपने परिवार में पनप रहे कामुक संबंधों को रोकना तो दूर उसमें शामिल होती गई। नियति के रचे इस खेल में सुगना अपने परिवार में ही कामुक और अनुचित संबंधों को बढ़ावा देती रही, उसकी क्या मजबूरी थी? क्या उसके कदम अनुचित थे? क्या वह गलत थी? यह प्रश्न पाठक उपन्यास को पढ़कर ही बता सकते हैं। उपन्यास की शुरुआत में तत्कालीन पाठकों की रुचि को ध्यान में रखते हुए सेक्स को प्रधानता दी गई है जो समय के साथ न्यायोचित तरीके से कथानक की मांग के अनुसार दर्शाया गया है।

इस उपन्यास में इंसेस्ट एक संयोग है।
अनुक्रमणिका
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भाग 126 (मध्यांतर)
 
Last edited:

Londiyabaj

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भाग 80

जैसे जैसे दिन बीत रहे थे सुगना सोनू के ख्वाबों में ज्यादा जगह बनाने लगी थी।

राखी….सुगना ….दीदी…लाली……दीदी….. आह…वो सुगना दीदी का देखना…वो …. उनकी आखों में छुपी प्यास….. सोनू की सोच कलुषित हो रही थी उसकी अपनी वासना ने उसकी सोच पर अधिकार जमा लिया था। सुगना के कौतूहल ने उसे अनजाने में ही सोनू की नजरों में अतृप्त और प्यासी युवती की श्रेणी में ला दिया था। राखी का इंतजार सोनू बेसब्री से कर रहा था.. सोनू सुगना को देखने के लिए तड़प रहा था…

शेष अगले भाग में…

सोनू के जेहन में लाली द्वारा की गई कपड़ों की मांग अब भी कायम थी। और फिर एक दिन सोनू लखनऊ के बाजार में अपनी बहनो के लिए राखी के लिए कपड़े लेने चल पड़ा।

सजे हुए बाजार में कई खूबसूरत लड़कियां जींस टॉप में उन्नत वक्षों का प्रदर्शन करते घूम रही थी कुछ सलवार सूट में भी थी जिन्होंने अपनी चुचियों पर दुपट्टा डाल रखा था। सोनू उन लड़कियों की तरफ देखता पर उनमें से कोई भी उसकी सुगना दीदी के करीब न फटकती थी…

वह रह रह कर अपने ख्वाबों में अपनी दोनों बहनों लाली और सुगना को अलग-अलग वस्त्रों में देखता और उनकी खूबसूरती की कल्पना करता। जब जब वह सुगना के बारे में सोचता उसके विचार अस्पष्ट होते। कभी वह सुगना की सुंदरता का कायल होता कभी उसके मादक बदन का और कभी अपनी दीदी के मर्यादित व्यक्तित्व का।


सिर्फ एक घटना ने सोनू के मन में सुगना के प्रति विचार बदल दिए थे। इसके पहले भी उसकी सुगना के साथ कामुक घटनाएं हुई थी पर हर बार सुगना का व्यक्तित्व सोनू के कामुक विचारों पर हावी रहता और सोनू के मन में वासना का बीज अंकुरित होने से पहले ही कुचल दिया जाता।

परंतु पिछले कुछ दिनों से हालात बदल चुके थे सुगना ने लाली और सोनू को संभोग करते हुए देखकर सोनू के मन में आ रही इस सोच से उत्पन्न होने वाली आत्मग्लानि को कुछ कम कर दिया था।

सोनू अब बेझिझक होकर सुगना और उसके कामुक बदन को याद करता। सोनू यह बात भली-भांति जानता था कि सुगना के सामने आते ही वह भीगी बिल्ली की तरह अपने उन कामुक विचारों को दरकिनार कर उसे बड़ी बहन का दर्जा देने को बाध्य होगा और उसके मन में चल रहे ख्याली पुलाव साबुन के बुलबुले की तरह टूट कर बिखर जाएंगे..

परन्तु ख्यालों पर पाबंदी लगाने वाला कोई न था। ईधर उसके ख्यालों में सुगना घूम रही थी और उधर जांघों के बीच लंड हरकत में आ रहा था। सोनू अपनी जांघों के बीच हलचल महसूस कर रहा था। रिक्शे पर बैठे-बैठे उसने अपने लंड को ऊपर की तरफ किया और उसे अपना आकार बढ़ाने की इजाजत दे दी। वह बीच-बीच में उसे सहला था और उसे धीरज धरने के लिए प्रेरित कर रहा था।

यही सब बातें सोचते सोचते उसका रिक्शा लखनऊ के बाजार में पहुंच चुका था। तरह-तरह के वस्त्र दुकानों के सामने लटके हुए थे। सोनू ने आज तक सुगना को या तो साड़ी या लहंगा चुनरी में देखा था पर शहरों में उस दौरान सलवार सूट का प्रचलन आ चुका था। सलवार सूट में महिलाओं की कमनीय काया स्पष्ट दिखाई पड़ती थी। चूचियों पर सटा हुआ सूट और कमर का वह कटाव …. सोनू कपड़ों के पीछे छुपी स्त्रीयो की स्वाभाविक खूबसूरती में खो गया।


दुकान पर लगे पुतलों में सोनू अपनी बहनों को खोजने लगा। पुतले कुछ कमजोर और पतले दिखाई पड़ रहे थे पर सोनू की दोनों बहने पूरी तरह गदराई हुई थीं। दो बच्चों की मां होने का असर उनके शरीर पर भी दिखाई पड़ रहा था। पर यह उनकी मादकता को और भी बढ़ा रहा था।

सुगना को याद कर सोनू का लंड एक बार फिर हरकत में आ रहा था। अचानक सोनू को दुकान पर टंगा एक कपड़ा पसंद आ गया सोनू ने रिक्शा रोका और उतरकर उस दुकान के अंदर आ गया अंदर एक खूबसूरत महिला कपड़े तह कर रही थी सोनू को देखते ही उसने पूछा

"भैया क्या देखना है..?"

सोनू उस महिला को बेहद ध्यान से देख रहा था महिला की उम्र उसकी अपनी बहनों से मेल खाती थी परंतु सुंदरता ….. सोनू को अपनी बहनों पर नाज था सुगना तो जैसे उसके ख्वाबों की परी बन चुकी थी। मन में यह सोच लाकर सोनू कभी लाली के प्रति अन्याय करता परंतु सुगना, सुगना और उसका आकर्षण सब पर भारी था।


सोनू दुकान के काउंटर पर आ गया और काउंटर से सट कर खड़ा हो गया। सोनू का लंड दुकान के काउंटर से रगड़ रहा था वह मीठी रगड़ सोनू को बेहद आनंददायक लग रही थी।

बहनों के लिए सूट देखते देखते सोनू ने अपने आनंद का उपाय कर लिया था…

उस महिला ने सोनू को कई सूट दिखाएं जिसमें वह सूट भी शामिल था जो सोनू की निगाहों पर चढ़ गया था।

कई सूट देखने के पश्चात आखिरकार सोनू ने दो सूट पसंद कर लिए। एक अपनी बड़ी बहन सुगना के लिए और दूसरी अपनी मदमस्त लाली के लिए। सूट स्लीवलेस तो नहीं थे परंतु बाहों पर सिर्फ चिकनकारी की हुई थी। बाकी कुर्ते पर स्तर लगा हुआ था…महिला सोनू को सूट की चूची वाली जगह पर बार-बार देखते देख कर बोली…..

आपको साइज पता है तो बता दीजिए हम तुरंत ही उसी नाप का बना देंगे..

सोनू की चोरी पकड़ी गई थी काउंटर पर काम कर रही महिला ग्राहकों की उत्सुकता और प्रश्न को भलीभांति समझती थी।

सोनू ने शर्माते हुए कहा

" 36 और 34…"

नंबर बताते समय सोनू ने सुगना और लाली की सूट का रंग तय कर दिया। हल्के हरे रंग के सूट में सुगना की कल्पना कर सोनू बाग बाग हो गया ..

सूट पसंद करने के बाद अब बारी अंतरंग वस्त्रों की थी .. सोनू ने लाली के लिए तो अंतरंग वस्त्र पसंद किए परंतु अपनी बड़ी बहन सुगना के लिए अंतर्वस्त्र खरीदने की हिमाकत नहीं कर पाया।उसने जितनी हिम्मत विचारों में इकट्ठा की थी उसे असली जामा पहनाने में नाकामयाब रहा।

लाली को कामुक अंतर्वस्त्र बेहद पसंद थे पसंद तो सुगना को भी थे पर इस समय उसे न तो इन वस्त्रों की उपयोगिता थी और नहीं आवश्यकता। सोनू उस महिला से अंतर्वस्त्र खरीदते समय बेहद शर्मा रहा था। महिला उसके सामने तरह-तरह ब्रा और पेंटी रखती जो सामान्यतः प्रयोग में लाई जाती है परंतु न तो सोनू सामान्य था और नहीं उसकी भावनाएं।

अंततः सोनू ने अपनी इच्छा स्पष्ट रूप से रख दी

"ऐसी जालीदार नहीं है क्या फैंसी वाली.."

महिला अंदर जाकर जालीदार कामुक ब्रा पेंटी का सेट ले आई और उसे देखकर सोनू की बांछें खिल उठी।

उसके जेहन में अब उस कामुक ब्रा और पेंटी में कमरे में चहलकदमी हुई करती हुई उसकी लाली दीदी घूम रही थी। वह मन ही मन लाली को घोड़ी बनाकर तथा उसकी जालीदार पेंटी को हटाकर अपना लंड डालकर उसे गचागच चोदने की कल्पना करने लगा जैसा उसने हालिया किसी ब्लू फिल्म में देखा था। उसने लाली के लिए दो ब्रा और पैंटी का सेट पसंद कर लिया।


उसी समय सोनू का एक और दोस्त उसी दुकान में आता हुआ दिखाई पड़ा जो अपनी प्रेमिका के लिए शायद कोई उपहार खरीदने ही आया था।

सोनू ने आनन-फानन में महिला को पैकिंग के निर्देश दिए और अपने दोस्त सोनू से बात करने लगा..

या तो सोनू …..या उसके दिशा निर्देश सुनने वाली महिला की गलती या नियति की चाल पर सोनू द्वारा पसंद की गई दोनो जालीदार कामुक ब्रा और पेंटी को भी उन सूट के साथ अलग अलग पैक कर दिया गया शायद पैक करने वाले ने अपने दिमाग का भी प्रयोग कर दिया था…. और अनजाने में ही सोनू की कामुकता को उसकी दोनों बहनों में बराबरी से बांट दिया था।

डब्बे को गिफ्ट रैप के पश्चात महिला ने समझदारी दिखाते हुए डिब्बे के कोने में बड़ा और छोटा लिखकर सूट में स्पष्ट अंतर कर दिया।

सोनू इस बात से कतई अनजान था कि सुगना के पैकेट में खूबसूरत जालीदार ब्रा पेंटी भी पैक है। सोनू उमंग में पैकेट लेकर वापस आने लगा। जालीदार ब्रा और पेंटी में लाली अब भी उसके दिमाग में घूम रही थी।

सोनू ने हॉस्टल पहुंच कर अपने हाथों की एक्सरसाइज की और वीर्य स्खलन के उपरांत ही उसका दिमाग शांत हुआ।

2 दिनों बाद रक्षाबंधन का पावन त्यौहार था। सोनू के लिए अगले 2 दिन 2 वर्ष जैसे बीत रहे थे … सोनू लाली से मिलने को तड़प रहा था और मन ही मन यह प्रार्थना कर रहा था कि काश उस दिन के दृश्य एक बार फिर उसी क्रम में दोहराया जाए .. सोनू के मन में चल रहे ख्याल कभी घनघोर वासना जन्य होते जिसमें सुगना भी एक भागीदार होती और कभी वह सिर्फ इस बात पर ही अत्यधिक कामोत्तेजक हो जाता कि वह अपनी बड़ी बहन की हम उम्र सहेली को उसी के सामने चोदेगा….परंतु उसे भी यह बात पता थी शायद यह दोबारा संभव नहीं पर जैसे सावन के अंधे को सब कुछ हरा हरा ही सूझता है वैसे सोनू की उम्मीदें बढ़ती जा रही थी…

उधर बनारस में सोनी सुगना और लाली तीनों सोनू का इंतजार कर रहे थे.

सोनू ने सोनी और विकास के रिश्ते को स्वीकार कर जो बड़प्पन दिखाया था उसने सोनी के दिलों दिमाग पर गहरी छाप छोड़ी थी सोनू उसका बड़ा भाई था परंतु सोनी की निगाहों में अब वह बेहद जिम्मेदार और पिता तुल्य हो चुका था।

सोनी पूरी आस्था और लगन से अपने बड़े भाई का इंतजार कर रही थी। सुगना भी सोनू के आने से बेहद प्रसन्न थी आखिर सोनू को देखे कई दिन बीत चुके थे।


पिछले कई वर्षों तक एक साथ रहने से उसका लगाव सोनू से बेहद ज्यादा हो गया था वैसे भी वह उसका छोटा और प्यारा भाई था पिछले बार के उस कामुक दृश्य को छोड़ दें तो सुगना और सोनू के संबंध बेहद आत्मीय रहे थे। खासकर सुगना की तरफ से। सोनू तो बीच-बीच में उसकी सुंदरता पर मोहित हो जाता था ।

सोनू वैसे भी अब पूरे परिवार की शान बन चुका था और सुगना अपने छोटे भाई पर नाज करती थी…परंतु जब जब सुगना के दिमाग में वह कामुक दृश्य आते उसका अंतर्मन सिहर उठता।

उसकी निगाहों में सोनू का मजबूत खूटे जैसा लंड और लाली की बुर चूदाई के दृश्य घूमने लगते। उसे सोनू का लंड अपने बाबूजी सरयू सिंह के लंड से मिलता जुलता प्रतीत होता और न जाने कब वह उस अद्भुत लंड के बारे में सोचते सोचते सुगना की जांघों के बीच चिपचिपा पन आ जाता। भाई बहन का रिश्ता कुछ ही पलों में तार-तार होने लगता …..और सुगना वापस सचेत हो जाती….

और लाली का तो कहना ही क्या इधर दोनों बहने सोनू के पसंद का सामान तैयार कर रही थी और उधर लाली अपनी जांघों के बीच उगाए अनचाहे बालों को हटाकर अपने छोटे भाई के लिए मल्ल युद्ध का अखाड़ा तैयार कर रही थी…

तीनों बहनों के लिए सोनू अलग-अलग रूप में दिखाई पड़ रहा था परंतु सुगना सबसे ज्यादा संशय में थी सोनू का यह बदला हुआ रूप के दिमाग को कतई रास ना आ रहा था परंतु उसकी जांघों के बीच वह उपेक्षित सुकुमारी अपनी पलकों पर आंसू लिए सोनू के उस रूप को रह-रहकर याद कर रही थी और सुगना का ध्यान अपनी तरफ खींच रही थी..

"ए सुगना देख बेसन जरता… कहां भुलाईल बाड़े?"

"सोनुआ के बारे में सोच तनी हां"

"वोही दिन के बारे में सोचा तले हा नू …जायदे अब कि आई तब फिर सिनेमा दिखा देब"


सुगना ने गरम छनोटा लाली की तरफ किया और मुस्कुराते हुए बोली

"ढेर पागल जैसन बोलबे त एही से दाग देब…."

लाली पीछे हटी और मुस्कुराते हुए बोली

"काश सोनुआ तोर भाई ना होखित" सुगना को यह बात समझ ना आए और जब तक वह यह बात समझती सोनी भी कमरे में आ चुकी थी सोनू को लेकर हो रही तकरार सुनकर उसने बिना बात समझे ही कहा..

"दीदी , सोनू भैया के जान से ज्यादा मानेले ओकरा बारे में कुछ मत बोला दीदी बिल्कुल ना सुनी"

"अरे वाह जब से लखनऊ से आईल बाड़ू सोनू भैया सोनू भैया रट लगावले बाडू कौन जादू कर देले बा सोनुआ" अनजाने में ही लाली ने सोनी से वह बात पूछ दी जिसका उत्तर न तो सोनी दे सकती थी और नहीं देना उचित था.. सोनी के विवाह का राज सोनी और सोनू के सीने में दफन था।

सुगना ने इस संवाद पर विराम लगाया और वह बेसन से भरी हुई कड़ाही लेकर नीचे बैठ गई और सोनी तथा लाली से कहा

"आवा सब केहूं मिलकर लड्डू बनावल जाऊ" सुगना को पता था सोनू को बेसन के लड्डू बेहद पसंद थे। सुगना को स्वयं मोतीचूर के लड्डू पसंद थे परंतु फिर भी वह अपनी पसंद को ताक पर रखकर सोनू के लिए लड्डू बना रही थी। लाली और सोनी भी सुगना का साथ दे रही थी सोनू अलग-अलग रूपों में तीनों बहनों के मन में छाया हुआ था।

और आखिरकार वह दिन आ गया जब सोनू रक्षाबंधन पर अपने घर बनारस के लिए रवाना हो गया…

रक्षाबंधन का दिन…

सोनू को आज बनारस एक्सप्रेस बेहद धीमी चलती हुई प्रतीत हो रही थी। लोहे की सलाखों के पीछे बैठा सोनू ऐसा महसूस कर रहा था जैसे वह किसी जेल में बैठा है। जब ट्रेन अकारण रूकती वह कभी व्यवस्था को कोसता कभी उन मनचले लड़कों को जो ट्रेन को चेन पुलिंग कर कर रोक दिया करते थे। उसका मन तो न जाने कबका बनारस स्टेशन पहुंच चुका था। मन में सुगना और लाली को देखने की लालसा लिए वह बेहद अधीर हो चला था।

वह अपने बैग से झांक रहे सूट के पैकेट को देखता उसके पूरे दिलो दिमाग में सनसनी दौड़ जाती है क्या सुगना दीदी आधुनिक जमाने के सूट को पहनेगी… उन्होंने आज तक तो कभी ऐसे वस्त्र नहीं पहने कहीं वह नाराज तो नहीं होंगी…. और यदि उन्होंने इससे पहनने के लिए मना कर दिया तब… सोनू के दिमाग में सिर्फ और सिर्फ प्रश्न थे …. परंतु उनका उत्तर उसकी दोनों बहने ही दे सकती थी…..


हर इंतजार का अंत होता है और सोनू का भी हुआ.. ट्रेन के धीरे होते ही सोनू अपना सामान लेकर बनारस स्टेशन पर कूद पड़ा वह भागते हुए बाहर पहुंचा और ऑटो करके तेजी से अपने घर की तरफ बढ़ चला…

सोनू ने अपने परिवार के सभी सदस्यों के लिए कुछ न कुछ गिफ्ट लाए थे परंतु सुगना और लाली का वह सूट अनोखा था..

उधर सुगना और लाली के घर में त्यौहार का माहौल था। सारे छोटे बच्चे सुबह से ही नहा धोकर तैयार थे। सोनी बच्चों को तैयार कराने में पूरी तरह मदद कर रही थी। सोनी ने बच्चों को नए नए कपड़े पहना कर खेलने भेज दिया छोटा सूरज आज न जाने कैसे सबसे पीछे हो गया था।


सोनी सूरज को कपड़े पहना रही थी और आज कई दिनों बाद सोनी ने एक बार फिर वही हरकत की उसने सूरज का अंगूठा सहला दिया। बिस्तर पर खड़ा सूरज अपनी नूनी को बढ़ते हुए देख रहा था..

"मौसी ई का कर देलू"

सूरज का यह संबोधन उसे बेहद प्यारा लगा और सोनी ने उसे छेड़ते हुए सूरज के अंगूठे को थोड़ा और सहला दिया नूनी का आकार विकास के हथियार के बराबर हो गया और सोनी शरमा गई. एक पल के लिए सोनी के दिमाग में विकास के साथ बिताए गए वह कामुक पल घूम गए सूरज सोनी के बाल खींचते हुए बोला..

"मौसी जल्दी ठीक कर ना ता मां के बुला देब"

सोनी ने प्यारे सूरज के गाल पर मीठी चपत लगाई और अपनी हथेलियां उसकी आंखों पर रखकर नीचे झुक गई.. सोनी को इस विलक्षण समस्या का कारण तो पता न था पर निदान पता था।

सूरज खिलखिला रहा था और सोनी के रेशमी बालों को पकड़कर कभी दूर करता कभी पास… सोनी मुस्कुरा रही थी और विकास को याद कर रही थी। वह विज्ञान की छात्रा सूरज के अंगूठे के इस राज को आज भी समझने का वैसे ही प्रयास कर रही थी..

अचानक सुगना ने दरवाजा खोल दिया और सोनी की अवस्था देखकर सारा माजरा समझ गई और बोली..

"ते बार बार काहे ओकर अंगूठा छूएले ?"

"अरे कपड़ा पहनावत समय भुला गईनी हां"

सुगना ने सूरज को अपनी गोद में उठा लिया और एक बार फिर उसके अंगूठे को सहला कर उसने अपने पूर्व अनुभव को प्रमाणित करने की कोशिश की और यकीनन सुगना के अंगूठे सहलाए जाने से सूरज में कोई परिवर्तन न हुआ।

जाने नियति ने सूरज को ऐसा कौन सा अभिशाप दिया था…

सुगना ने कहा

"हम जा तानी नहाए ते पूजा पाठ के तैयारी कर ले सोनू भी आवत ए होई.."


सुगना ने अपने कपड़े उसी कमरे के बिस्तर पर रख दिए जिस पर आज से कुछ महीनों पहले उसने लाली और सोनू की जबरदस्त चूदाई देखी थी और अपनी नाइटी लेकर बाथरूम में घुस गई। विलंब हो रहा था और सुगना के दिमाग सोनू घूम रहा था जो कुछ ही समय बाद आने वाला था..

सुगना बाथरूम में नग्न होकर नहाने लगी। साबुन लगाते समय सुगना के दिमाग में फिर एक बार वही दृश्य घूमने लगे…. कैसे सोनू लाली की कमर को पकड़कर गचागच उसे चोद रहा था….. सोनू का मजबूत लंड उसके दिमाग पर एक अमिट छवि छोड़ चुका था।


सुगना ने एक बार फिर अपने हाथ की कलाइयों को देखा और सोनू के लंड से उसकी तुलना करने की कोशिश की।

सुगना मुस्कुरा रही थी उसे ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे उसका अपना छोटा भाई उसके बाबू जी से किसी भी तुलना में कम न था। यदि सरयू सिंह अपनी युवावस्था में रहे होते तो शायद सोनू के जैसे ही होते। सोनू का भरा पूरा मांसल शरीर वह मजबूत भुजाएं ….हाथों पर सोनू के लंड पर दौड़ती नसें सब कुछ आदर्श था।

जैसे-जैसे सुगना सोनू की कसरती शरीर को याद करती रही वैसे वैसे उसकी हथेलियां स्वतः उसके गुप्तांगों की तरफ बढ़ चली। यह क्रिया स्वाभाविक रूप से हो रही थी। साबुन बार-बार अपनी जगह तलाश रहा था और अंततः सुगना की तर्जनी ने सुगना की उस कोमल दरार के बीच अपनी जगह बना ली।

यह क्या …..बाहर जितनी फिसलन थी अंदर उससे कई गुना ज्यादा थी… बुर् के होठों पर छलका प्रेम रस में न जाने कौन सा चुंबकीय आकर्षण पैदा किया और सुगना की तर्जनी उसकी बुर से प्रेम रस को खींच खींच कर बाहर निकालने लगी… जैसे ही भग्नासे ने तर्जनी का स्पर्श पाया वह फूल कर कुप्पा हो गया और बार-बार उस मादक स्पर्श की दरकार करने लगा…..सुगना के दांतो ने होठों को खींच कर अपना दबाव बढ़ाया जैसे वह अपनी मालकिन को होश खोने से रोक रहे हों।


शरीर के अंगों पर लगा साबुन सुगना की हथेलियों का इंतजार कर रहा था। पर सुगना की सोच पर न जाने कौन सा रस हावी हो गया था उसका सारा आकर्षण उस छोटी सी दरार पर केंद्रित हो गया था शायद जिस आनंद की भूखी सुगना कई महीनों से थी वह उसे प्राप्त हो रहा था… उसे समय का आभास भी न रहा….

सुगना को वास्तविक दुनिया में लाने का श्रेय आखिरकार लाली को गया जो दरवाजे पर खड़े होकर कह रही थी

" सुगना जल्दी कर 09 बज गइल सोनू आवहीं वाला बा.."


सुगना ने एक लंबी आह भरी और अपनी तड़पती बुर को अकेला छोड़ कर वापस अपने शरीर पर लगे साबुन के झाग हटाने लगी।

लोटे से लगातार वह अपने सर पर पानी डाल रही थी जो उसकी फूली और तनी हुई चुचियों से होते हुए जांघों के बीच बह रहा था। जैसी ही सुगना ने अपनी जांघें सटाई जांघों के बीच पानी इकट्ठा हो गया। इतनी सुंदर थी उसकी जांघें और कितना सुंदर था वह प्रेम त्रिकोण।

जिस त्रिकोण पर उसके बाबू जी सरयू सिंह सब कुछ निछावर करने को तैयार रहते थे। पिछले कई महीनों से उस त्रिकोण का कोई पूछना हार न था।। रतन को याद कर सुगना अपना मन खट्टा नहीं करना चाहती थी। उसने अपनी जांघें फैला दी और पानी को बह जाने दिया। अपनी बुर को थपथपा कर सुगना उठ खड़ी हुई और नाइटी से अपने भीगे बदन को पोछने लगी..

अपने बदन को यथासंभव पोछने के पश्चात सुगना उसी कमरे में आकर अपने वस्त्र पहनने लगी… जो गलती उस दिन अनजाने में सोनू और लाली ने की थी वही गलती आज सुगना दोहरा चुकी थी खिड़की पर लगा हुआ पर्दा थोड़ा हटा हुआ था …

सारे बच्चे के हाल में चिल्लपों मचाए हुए थे। सोनी रक्षाबंधन की तैयारियों में रंगोली बनाने में व्यस्त थी। लाली सोनू के लिए पूआ बना रही थी। सोनू को पुआ ठीक वैसे ही पसंद था जैसे सरयू सिंह को।


सोनू को दोनो पुए पसंद थे जांघों के बीच रसभरे भी और प्लेट में रखे चासनी से भीगे हुए भी।

बाहर अचानक खड़ खड़ खड़ खड़ की आवाज हुई…सोनू का ऑटो बाहर आकर रुक चुका था। दरवाजा सटा हुआ था। सोनू ने अंदर आकर अपनी बहनों को चकमा देने की सोची और वह दरवाजा धीरे से खोल कर अंदर आ गया। अंदर कमरे में सुगना के चूड़ियों की खनकने की आवाज आ रही थी। सोनू भली भांति जानता था कि घर में सिर्फ और सिर्फ उसकी सुगना दीदी ही भरपूर चूड़ियां पहनती हैं । लाली ने विधवा होने के बाद चूड़ी पहनना लगभग छोड़ कर दिया था और सोनी वह तो आधुनिक युवती थी और हाथों में 1या 2 कंगन डालकर वह मस्त रहती थी।

चूड़ियों के खड़कने से सोनू ने अंदाज कर लिया कि सुगना दीदी उसी कमरे में है..अचानक उसका ध्यान उस खुली हुई खिड़की पर गया…. और सोनू ने अपनी आंखे उस दरार पर टिका दीं….

सोनू की आंखे फटी रह गईं…

शेष अगले भाग में…
Sugna or sonu kese aankh milange or sonu sugna kesi ek dusre ki pyas bujhate h
Sonu ke ling ke jesa update diya h lamba choda isi me to mza aata h itne bade update dene ke liye bahut bhut dhanyabad
 

sexysalni

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भाग 80

जैसे जैसे दिन बीत रहे थे सुगना सोनू के ख्वाबों में ज्यादा जगह बनाने लगी थी।

राखी….सुगना ….दीदी…लाली……दीदी….. आह…वो सुगना दीदी का देखना…वो …. उनकी आखों में छुपी प्यास….. सोनू की सोच कलुषित हो रही थी उसकी अपनी वासना ने उसकी सोच पर अधिकार जमा लिया था। सुगना के कौतूहल ने उसे अनजाने में ही सोनू की नजरों में अतृप्त और प्यासी युवती की श्रेणी में ला दिया था। राखी का इंतजार सोनू बेसब्री से कर रहा था.. सोनू सुगना को देखने के लिए तड़प रहा था…

शेष अगले भाग में…

सोनू के जेहन में लाली द्वारा की गई कपड़ों की मांग अब भी कायम थी। और फिर एक दिन सोनू लखनऊ के बाजार में अपनी बहनो के लिए राखी के लिए कपड़े लेने चल पड़ा।

सजे हुए बाजार में कई खूबसूरत लड़कियां जींस टॉप में उन्नत वक्षों का प्रदर्शन करते घूम रही थी कुछ सलवार सूट में भी थी जिन्होंने अपनी चुचियों पर दुपट्टा डाल रखा था। सोनू उन लड़कियों की तरफ देखता पर उनमें से कोई भी उसकी सुगना दीदी के करीब न फटकती थी…

वह रह रह कर अपने ख्वाबों में अपनी दोनों बहनों लाली और सुगना को अलग-अलग वस्त्रों में देखता और उनकी खूबसूरती की कल्पना करता। जब जब वह सुगना के बारे में सोचता उसके विचार अस्पष्ट होते। कभी वह सुगना की सुंदरता का कायल होता कभी उसके मादक बदन का और कभी अपनी दीदी के मर्यादित व्यक्तित्व का।


सिर्फ एक घटना ने सोनू के मन में सुगना के प्रति विचार बदल दिए थे। इसके पहले भी उसकी सुगना के साथ कामुक घटनाएं हुई थी पर हर बार सुगना का व्यक्तित्व सोनू के कामुक विचारों पर हावी रहता और सोनू के मन में वासना का बीज अंकुरित होने से पहले ही कुचल दिया जाता।

परंतु पिछले कुछ दिनों से हालात बदल चुके थे सुगना ने लाली और सोनू को संभोग करते हुए देखकर सोनू के मन में आ रही इस सोच से उत्पन्न होने वाली आत्मग्लानि को कुछ कम कर दिया था।

सोनू अब बेझिझक होकर सुगना और उसके कामुक बदन को याद करता। सोनू यह बात भली-भांति जानता था कि सुगना के सामने आते ही वह भीगी बिल्ली की तरह अपने उन कामुक विचारों को दरकिनार कर उसे बड़ी बहन का दर्जा देने को बाध्य होगा और उसके मन में चल रहे ख्याली पुलाव साबुन के बुलबुले की तरह टूट कर बिखर जाएंगे..

परन्तु ख्यालों पर पाबंदी लगाने वाला कोई न था। ईधर उसके ख्यालों में सुगना घूम रही थी और उधर जांघों के बीच लंड हरकत में आ रहा था। सोनू अपनी जांघों के बीच हलचल महसूस कर रहा था। रिक्शे पर बैठे-बैठे उसने अपने लंड को ऊपर की तरफ किया और उसे अपना आकार बढ़ाने की इजाजत दे दी। वह बीच-बीच में उसे सहला था और उसे धीरज धरने के लिए प्रेरित कर रहा था।

यही सब बातें सोचते सोचते उसका रिक्शा लखनऊ के बाजार में पहुंच चुका था। तरह-तरह के वस्त्र दुकानों के सामने लटके हुए थे। सोनू ने आज तक सुगना को या तो साड़ी या लहंगा चुनरी में देखा था पर शहरों में उस दौरान सलवार सूट का प्रचलन आ चुका था। सलवार सूट में महिलाओं की कमनीय काया स्पष्ट दिखाई पड़ती थी। चूचियों पर सटा हुआ सूट और कमर का वह कटाव …. सोनू कपड़ों के पीछे छुपी स्त्रीयो की स्वाभाविक खूबसूरती में खो गया।


दुकान पर लगे पुतलों में सोनू अपनी बहनों को खोजने लगा। पुतले कुछ कमजोर और पतले दिखाई पड़ रहे थे पर सोनू की दोनों बहने पूरी तरह गदराई हुई थीं। दो बच्चों की मां होने का असर उनके शरीर पर भी दिखाई पड़ रहा था। पर यह उनकी मादकता को और भी बढ़ा रहा था।

सुगना को याद कर सोनू का लंड एक बार फिर हरकत में आ रहा था। अचानक सोनू को दुकान पर टंगा एक कपड़ा पसंद आ गया सोनू ने रिक्शा रोका और उतरकर उस दुकान के अंदर आ गया अंदर एक खूबसूरत महिला कपड़े तह कर रही थी सोनू को देखते ही उसने पूछा

"भैया क्या देखना है..?"

सोनू उस महिला को बेहद ध्यान से देख रहा था महिला की उम्र उसकी अपनी बहनों से मेल खाती थी परंतु सुंदरता ….. सोनू को अपनी बहनों पर नाज था सुगना तो जैसे उसके ख्वाबों की परी बन चुकी थी। मन में यह सोच लाकर सोनू कभी लाली के प्रति अन्याय करता परंतु सुगना, सुगना और उसका आकर्षण सब पर भारी था।


सोनू दुकान के काउंटर पर आ गया और काउंटर से सट कर खड़ा हो गया। सोनू का लंड दुकान के काउंटर से रगड़ रहा था वह मीठी रगड़ सोनू को बेहद आनंददायक लग रही थी।

बहनों के लिए सूट देखते देखते सोनू ने अपने आनंद का उपाय कर लिया था…

उस महिला ने सोनू को कई सूट दिखाएं जिसमें वह सूट भी शामिल था जो सोनू की निगाहों पर चढ़ गया था।

कई सूट देखने के पश्चात आखिरकार सोनू ने दो सूट पसंद कर लिए। एक अपनी बड़ी बहन सुगना के लिए और दूसरी अपनी मदमस्त लाली के लिए। सूट स्लीवलेस तो नहीं थे परंतु बाहों पर सिर्फ चिकनकारी की हुई थी। बाकी कुर्ते पर स्तर लगा हुआ था…महिला सोनू को सूट की चूची वाली जगह पर बार-बार देखते देख कर बोली…..

आपको साइज पता है तो बता दीजिए हम तुरंत ही उसी नाप का बना देंगे..

सोनू की चोरी पकड़ी गई थी काउंटर पर काम कर रही महिला ग्राहकों की उत्सुकता और प्रश्न को भलीभांति समझती थी।

सोनू ने शर्माते हुए कहा

" 36 और 34…"

नंबर बताते समय सोनू ने सुगना और लाली की सूट का रंग तय कर दिया। हल्के हरे रंग के सूट में सुगना की कल्पना कर सोनू बाग बाग हो गया ..

सूट पसंद करने के बाद अब बारी अंतरंग वस्त्रों की थी .. सोनू ने लाली के लिए तो अंतरंग वस्त्र पसंद किए परंतु अपनी बड़ी बहन सुगना के लिए अंतर्वस्त्र खरीदने की हिमाकत नहीं कर पाया।उसने जितनी हिम्मत विचारों में इकट्ठा की थी उसे असली जामा पहनाने में नाकामयाब रहा।

लाली को कामुक अंतर्वस्त्र बेहद पसंद थे पसंद तो सुगना को भी थे पर इस समय उसे न तो इन वस्त्रों की उपयोगिता थी और नहीं आवश्यकता। सोनू उस महिला से अंतर्वस्त्र खरीदते समय बेहद शर्मा रहा था। महिला उसके सामने तरह-तरह ब्रा और पेंटी रखती जो सामान्यतः प्रयोग में लाई जाती है परंतु न तो सोनू सामान्य था और नहीं उसकी भावनाएं।

अंततः सोनू ने अपनी इच्छा स्पष्ट रूप से रख दी

"ऐसी जालीदार नहीं है क्या फैंसी वाली.."

महिला अंदर जाकर जालीदार कामुक ब्रा पेंटी का सेट ले आई और उसे देखकर सोनू की बांछें खिल उठी।

उसके जेहन में अब उस कामुक ब्रा और पेंटी में कमरे में चहलकदमी हुई करती हुई उसकी लाली दीदी घूम रही थी। वह मन ही मन लाली को घोड़ी बनाकर तथा उसकी जालीदार पेंटी को हटाकर अपना लंड डालकर उसे गचागच चोदने की कल्पना करने लगा जैसा उसने हालिया किसी ब्लू फिल्म में देखा था। उसने लाली के लिए दो ब्रा और पैंटी का सेट पसंद कर लिया।


उसी समय सोनू का एक और दोस्त उसी दुकान में आता हुआ दिखाई पड़ा जो अपनी प्रेमिका के लिए शायद कोई उपहार खरीदने ही आया था।

सोनू ने आनन-फानन में महिला को पैकिंग के निर्देश दिए और अपने दोस्त सोनू से बात करने लगा..

या तो सोनू …..या उसके दिशा निर्देश सुनने वाली महिला की गलती या नियति की चाल पर सोनू द्वारा पसंद की गई दोनो जालीदार कामुक ब्रा और पेंटी को भी उन सूट के साथ अलग अलग पैक कर दिया गया शायद पैक करने वाले ने अपने दिमाग का भी प्रयोग कर दिया था…. और अनजाने में ही सोनू की कामुकता को उसकी दोनों बहनों में बराबरी से बांट दिया था।

डब्बे को गिफ्ट रैप के पश्चात महिला ने समझदारी दिखाते हुए डिब्बे के कोने में बड़ा और छोटा लिखकर सूट में स्पष्ट अंतर कर दिया।

सोनू इस बात से कतई अनजान था कि सुगना के पैकेट में खूबसूरत जालीदार ब्रा पेंटी भी पैक है। सोनू उमंग में पैकेट लेकर वापस आने लगा। जालीदार ब्रा और पेंटी में लाली अब भी उसके दिमाग में घूम रही थी।

सोनू ने हॉस्टल पहुंच कर अपने हाथों की एक्सरसाइज की और वीर्य स्खलन के उपरांत ही उसका दिमाग शांत हुआ।

2 दिनों बाद रक्षाबंधन का पावन त्यौहार था। सोनू के लिए अगले 2 दिन 2 वर्ष जैसे बीत रहे थे … सोनू लाली से मिलने को तड़प रहा था और मन ही मन यह प्रार्थना कर रहा था कि काश उस दिन के दृश्य एक बार फिर उसी क्रम में दोहराया जाए .. सोनू के मन में चल रहे ख्याल कभी घनघोर वासना जन्य होते जिसमें सुगना भी एक भागीदार होती और कभी वह सिर्फ इस बात पर ही अत्यधिक कामोत्तेजक हो जाता कि वह अपनी बड़ी बहन की हम उम्र सहेली को उसी के सामने चोदेगा….परंतु उसे भी यह बात पता थी शायद यह दोबारा संभव नहीं पर जैसे सावन के अंधे को सब कुछ हरा हरा ही सूझता है वैसे सोनू की उम्मीदें बढ़ती जा रही थी…

उधर बनारस में सोनी सुगना और लाली तीनों सोनू का इंतजार कर रहे थे.

सोनू ने सोनी और विकास के रिश्ते को स्वीकार कर जो बड़प्पन दिखाया था उसने सोनी के दिलों दिमाग पर गहरी छाप छोड़ी थी सोनू उसका बड़ा भाई था परंतु सोनी की निगाहों में अब वह बेहद जिम्मेदार और पिता तुल्य हो चुका था।

सोनी पूरी आस्था और लगन से अपने बड़े भाई का इंतजार कर रही थी। सुगना भी सोनू के आने से बेहद प्रसन्न थी आखिर सोनू को देखे कई दिन बीत चुके थे।


पिछले कई वर्षों तक एक साथ रहने से उसका लगाव सोनू से बेहद ज्यादा हो गया था वैसे भी वह उसका छोटा और प्यारा भाई था पिछले बार के उस कामुक दृश्य को छोड़ दें तो सुगना और सोनू के संबंध बेहद आत्मीय रहे थे। खासकर सुगना की तरफ से। सोनू तो बीच-बीच में उसकी सुंदरता पर मोहित हो जाता था ।

सोनू वैसे भी अब पूरे परिवार की शान बन चुका था और सुगना अपने छोटे भाई पर नाज करती थी…परंतु जब जब सुगना के दिमाग में वह कामुक दृश्य आते उसका अंतर्मन सिहर उठता।

उसकी निगाहों में सोनू का मजबूत खूटे जैसा लंड और लाली की बुर चूदाई के दृश्य घूमने लगते। उसे सोनू का लंड अपने बाबूजी सरयू सिंह के लंड से मिलता जुलता प्रतीत होता और न जाने कब वह उस अद्भुत लंड के बारे में सोचते सोचते सुगना की जांघों के बीच चिपचिपा पन आ जाता। भाई बहन का रिश्ता कुछ ही पलों में तार-तार होने लगता …..और सुगना वापस सचेत हो जाती….

और लाली का तो कहना ही क्या इधर दोनों बहने सोनू के पसंद का सामान तैयार कर रही थी और उधर लाली अपनी जांघों के बीच उगाए अनचाहे बालों को हटाकर अपने छोटे भाई के लिए मल्ल युद्ध का अखाड़ा तैयार कर रही थी…

तीनों बहनों के लिए सोनू अलग-अलग रूप में दिखाई पड़ रहा था परंतु सुगना सबसे ज्यादा संशय में थी सोनू का यह बदला हुआ रूप के दिमाग को कतई रास ना आ रहा था परंतु उसकी जांघों के बीच वह उपेक्षित सुकुमारी अपनी पलकों पर आंसू लिए सोनू के उस रूप को रह-रहकर याद कर रही थी और सुगना का ध्यान अपनी तरफ खींच रही थी..

"ए सुगना देख बेसन जरता… कहां भुलाईल बाड़े?"

"सोनुआ के बारे में सोच तनी हां"

"वोही दिन के बारे में सोचा तले हा नू …जायदे अब कि आई तब फिर सिनेमा दिखा देब"


सुगना ने गरम छनोटा लाली की तरफ किया और मुस्कुराते हुए बोली

"ढेर पागल जैसन बोलबे त एही से दाग देब…."

लाली पीछे हटी और मुस्कुराते हुए बोली

"काश सोनुआ तोर भाई ना होखित" सुगना को यह बात समझ ना आए और जब तक वह यह बात समझती सोनी भी कमरे में आ चुकी थी सोनू को लेकर हो रही तकरार सुनकर उसने बिना बात समझे ही कहा..

"दीदी , सोनू भैया के जान से ज्यादा मानेले ओकरा बारे में कुछ मत बोला दीदी बिल्कुल ना सुनी"

"अरे वाह जब से लखनऊ से आईल बाड़ू सोनू भैया सोनू भैया रट लगावले बाडू कौन जादू कर देले बा सोनुआ" अनजाने में ही लाली ने सोनी से वह बात पूछ दी जिसका उत्तर न तो सोनी दे सकती थी और नहीं देना उचित था.. सोनी के विवाह का राज सोनी और सोनू के सीने में दफन था।

सुगना ने इस संवाद पर विराम लगाया और वह बेसन से भरी हुई कड़ाही लेकर नीचे बैठ गई और सोनी तथा लाली से कहा

"आवा सब केहूं मिलकर लड्डू बनावल जाऊ" सुगना को पता था सोनू को बेसन के लड्डू बेहद पसंद थे। सुगना को स्वयं मोतीचूर के लड्डू पसंद थे परंतु फिर भी वह अपनी पसंद को ताक पर रखकर सोनू के लिए लड्डू बना रही थी। लाली और सोनी भी सुगना का साथ दे रही थी सोनू अलग-अलग रूपों में तीनों बहनों के मन में छाया हुआ था।

और आखिरकार वह दिन आ गया जब सोनू रक्षाबंधन पर अपने घर बनारस के लिए रवाना हो गया…

रक्षाबंधन का दिन…

सोनू को आज बनारस एक्सप्रेस बेहद धीमी चलती हुई प्रतीत हो रही थी। लोहे की सलाखों के पीछे बैठा सोनू ऐसा महसूस कर रहा था जैसे वह किसी जेल में बैठा है। जब ट्रेन अकारण रूकती वह कभी व्यवस्था को कोसता कभी उन मनचले लड़कों को जो ट्रेन को चेन पुलिंग कर कर रोक दिया करते थे। उसका मन तो न जाने कबका बनारस स्टेशन पहुंच चुका था। मन में सुगना और लाली को देखने की लालसा लिए वह बेहद अधीर हो चला था।

वह अपने बैग से झांक रहे सूट के पैकेट को देखता उसके पूरे दिलो दिमाग में सनसनी दौड़ जाती है क्या सुगना दीदी आधुनिक जमाने के सूट को पहनेगी… उन्होंने आज तक तो कभी ऐसे वस्त्र नहीं पहने कहीं वह नाराज तो नहीं होंगी…. और यदि उन्होंने इससे पहनने के लिए मना कर दिया तब… सोनू के दिमाग में सिर्फ और सिर्फ प्रश्न थे …. परंतु उनका उत्तर उसकी दोनों बहने ही दे सकती थी…..


हर इंतजार का अंत होता है और सोनू का भी हुआ.. ट्रेन के धीरे होते ही सोनू अपना सामान लेकर बनारस स्टेशन पर कूद पड़ा वह भागते हुए बाहर पहुंचा और ऑटो करके तेजी से अपने घर की तरफ बढ़ चला…

सोनू ने अपने परिवार के सभी सदस्यों के लिए कुछ न कुछ गिफ्ट लाए थे परंतु सुगना और लाली का वह सूट अनोखा था..

उधर सुगना और लाली के घर में त्यौहार का माहौल था। सारे छोटे बच्चे सुबह से ही नहा धोकर तैयार थे। सोनी बच्चों को तैयार कराने में पूरी तरह मदद कर रही थी। सोनी ने बच्चों को नए नए कपड़े पहना कर खेलने भेज दिया छोटा सूरज आज न जाने कैसे सबसे पीछे हो गया था।


सोनी सूरज को कपड़े पहना रही थी और आज कई दिनों बाद सोनी ने एक बार फिर वही हरकत की उसने सूरज का अंगूठा सहला दिया। बिस्तर पर खड़ा सूरज अपनी नूनी को बढ़ते हुए देख रहा था..

"मौसी ई का कर देलू"

सूरज का यह संबोधन उसे बेहद प्यारा लगा और सोनी ने उसे छेड़ते हुए सूरज के अंगूठे को थोड़ा और सहला दिया नूनी का आकार विकास के हथियार के बराबर हो गया और सोनी शरमा गई. एक पल के लिए सोनी के दिमाग में विकास के साथ बिताए गए वह कामुक पल घूम गए सूरज सोनी के बाल खींचते हुए बोला..

"मौसी जल्दी ठीक कर ना ता मां के बुला देब"

सोनी ने प्यारे सूरज के गाल पर मीठी चपत लगाई और अपनी हथेलियां उसकी आंखों पर रखकर नीचे झुक गई.. सोनी को इस विलक्षण समस्या का कारण तो पता न था पर निदान पता था।

सूरज खिलखिला रहा था और सोनी के रेशमी बालों को पकड़कर कभी दूर करता कभी पास… सोनी मुस्कुरा रही थी और विकास को याद कर रही थी। वह विज्ञान की छात्रा सूरज के अंगूठे के इस राज को आज भी समझने का वैसे ही प्रयास कर रही थी..

अचानक सुगना ने दरवाजा खोल दिया और सोनी की अवस्था देखकर सारा माजरा समझ गई और बोली..

"ते बार बार काहे ओकर अंगूठा छूएले ?"

"अरे कपड़ा पहनावत समय भुला गईनी हां"

सुगना ने सूरज को अपनी गोद में उठा लिया और एक बार फिर उसके अंगूठे को सहला कर उसने अपने पूर्व अनुभव को प्रमाणित करने की कोशिश की और यकीनन सुगना के अंगूठे सहलाए जाने से सूरज में कोई परिवर्तन न हुआ।

जाने नियति ने सूरज को ऐसा कौन सा अभिशाप दिया था…

सुगना ने कहा

"हम जा तानी नहाए ते पूजा पाठ के तैयारी कर ले सोनू भी आवत ए होई.."


सुगना ने अपने कपड़े उसी कमरे के बिस्तर पर रख दिए जिस पर आज से कुछ महीनों पहले उसने लाली और सोनू की जबरदस्त चूदाई देखी थी और अपनी नाइटी लेकर बाथरूम में घुस गई। विलंब हो रहा था और सुगना के दिमाग सोनू घूम रहा था जो कुछ ही समय बाद आने वाला था..

सुगना बाथरूम में नग्न होकर नहाने लगी। साबुन लगाते समय सुगना के दिमाग में फिर एक बार वही दृश्य घूमने लगे…. कैसे सोनू लाली की कमर को पकड़कर गचागच उसे चोद रहा था….. सोनू का मजबूत लंड उसके दिमाग पर एक अमिट छवि छोड़ चुका था।


सुगना ने एक बार फिर अपने हाथ की कलाइयों को देखा और सोनू के लंड से उसकी तुलना करने की कोशिश की।

सुगना मुस्कुरा रही थी उसे ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे उसका अपना छोटा भाई उसके बाबू जी से किसी भी तुलना में कम न था। यदि सरयू सिंह अपनी युवावस्था में रहे होते तो शायद सोनू के जैसे ही होते। सोनू का भरा पूरा मांसल शरीर वह मजबूत भुजाएं ….हाथों पर सोनू के लंड पर दौड़ती नसें सब कुछ आदर्श था।

जैसे-जैसे सुगना सोनू की कसरती शरीर को याद करती रही वैसे वैसे उसकी हथेलियां स्वतः उसके गुप्तांगों की तरफ बढ़ चली। यह क्रिया स्वाभाविक रूप से हो रही थी। साबुन बार-बार अपनी जगह तलाश रहा था और अंततः सुगना की तर्जनी ने सुगना की उस कोमल दरार के बीच अपनी जगह बना ली।

यह क्या …..बाहर जितनी फिसलन थी अंदर उससे कई गुना ज्यादा थी… बुर् के होठों पर छलका प्रेम रस में न जाने कौन सा चुंबकीय आकर्षण पैदा किया और सुगना की तर्जनी उसकी बुर से प्रेम रस को खींच खींच कर बाहर निकालने लगी… जैसे ही भग्नासे ने तर्जनी का स्पर्श पाया वह फूल कर कुप्पा हो गया और बार-बार उस मादक स्पर्श की दरकार करने लगा…..सुगना के दांतो ने होठों को खींच कर अपना दबाव बढ़ाया जैसे वह अपनी मालकिन को होश खोने से रोक रहे हों।


शरीर के अंगों पर लगा साबुन सुगना की हथेलियों का इंतजार कर रहा था। पर सुगना की सोच पर न जाने कौन सा रस हावी हो गया था उसका सारा आकर्षण उस छोटी सी दरार पर केंद्रित हो गया था शायद जिस आनंद की भूखी सुगना कई महीनों से थी वह उसे प्राप्त हो रहा था… उसे समय का आभास भी न रहा….

सुगना को वास्तविक दुनिया में लाने का श्रेय आखिरकार लाली को गया जो दरवाजे पर खड़े होकर कह रही थी

" सुगना जल्दी कर 09 बज गइल सोनू आवहीं वाला बा.."


सुगना ने एक लंबी आह भरी और अपनी तड़पती बुर को अकेला छोड़ कर वापस अपने शरीर पर लगे साबुन के झाग हटाने लगी।

लोटे से लगातार वह अपने सर पर पानी डाल रही थी जो उसकी फूली और तनी हुई चुचियों से होते हुए जांघों के बीच बह रहा था। जैसी ही सुगना ने अपनी जांघें सटाई जांघों के बीच पानी इकट्ठा हो गया। इतनी सुंदर थी उसकी जांघें और कितना सुंदर था वह प्रेम त्रिकोण।

जिस त्रिकोण पर उसके बाबू जी सरयू सिंह सब कुछ निछावर करने को तैयार रहते थे। पिछले कई महीनों से उस त्रिकोण का कोई पूछना हार न था।। रतन को याद कर सुगना अपना मन खट्टा नहीं करना चाहती थी। उसने अपनी जांघें फैला दी और पानी को बह जाने दिया। अपनी बुर को थपथपा कर सुगना उठ खड़ी हुई और नाइटी से अपने भीगे बदन को पोछने लगी..

अपने बदन को यथासंभव पोछने के पश्चात सुगना उसी कमरे में आकर अपने वस्त्र पहनने लगी… जो गलती उस दिन अनजाने में सोनू और लाली ने की थी वही गलती आज सुगना दोहरा चुकी थी खिड़की पर लगा हुआ पर्दा थोड़ा हटा हुआ था …

सारे बच्चे के हाल में चिल्लपों मचाए हुए थे। सोनी रक्षाबंधन की तैयारियों में रंगोली बनाने में व्यस्त थी। लाली सोनू के लिए पूआ बना रही थी। सोनू को पुआ ठीक वैसे ही पसंद था जैसे सरयू सिंह को।


सोनू को दोनो पुए पसंद थे जांघों के बीच रसभरे भी और प्लेट में रखे चासनी से भीगे हुए भी।

बाहर अचानक खड़ खड़ खड़ खड़ की आवाज हुई…सोनू का ऑटो बाहर आकर रुक चुका था। दरवाजा सटा हुआ था। सोनू ने अंदर आकर अपनी बहनों को चकमा देने की सोची और वह दरवाजा धीरे से खोल कर अंदर आ गया। अंदर कमरे में सुगना के चूड़ियों की खनकने की आवाज आ रही थी। सोनू भली भांति जानता था कि घर में सिर्फ और सिर्फ उसकी सुगना दीदी ही भरपूर चूड़ियां पहनती हैं । लाली ने विधवा होने के बाद चूड़ी पहनना लगभग छोड़ कर दिया था और सोनी वह तो आधुनिक युवती थी और हाथों में 1या 2 कंगन डालकर वह मस्त रहती थी।

चूड़ियों के खड़कने से सोनू ने अंदाज कर लिया कि सुगना दीदी उसी कमरे में है..अचानक उसका ध्यान उस खुली हुई खिड़की पर गया…. और सोनू ने अपनी आंखे उस दरार पर टिका दीं….

सोनू की आंखे फटी रह गईं…

शेष अगले भाग में…
Ab sugna or sonu ek dusre ki or aakarshit hone lage h lgta h dhere dhere sugna ke mn me saryu singh ki jagah sonu le rha h or jab sonu or sugna dono ek ho jayenge tb saryu singh ko bhul jaygi kyu ki sugna jab kisi ko dil me basati h to usi ki ho jati h
 

raghudenam

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भाग 80

जैसे जैसे दिन बीत रहे थे सुगना सोनू के ख्वाबों में ज्यादा जगह बनाने लगी थी।

राखी….सुगना ….दीदी…लाली……दीदी….. आह…वो सुगना दीदी का देखना…वो …. उनकी आखों में छुपी प्यास….. सोनू की सोच कलुषित हो रही थी उसकी अपनी वासना ने उसकी सोच पर अधिकार जमा लिया था। सुगना के कौतूहल ने उसे अनजाने में ही सोनू की नजरों में अतृप्त और प्यासी युवती की श्रेणी में ला दिया था। राखी का इंतजार सोनू बेसब्री से कर रहा था.. सोनू सुगना को देखने के लिए तड़प रहा था…

शेष अगले भाग में…

सोनू के जेहन में लाली द्वारा की गई कपड़ों की मांग अब भी कायम थी। और फिर एक दिन सोनू लखनऊ के बाजार में अपनी बहनो के लिए राखी के लिए कपड़े लेने चल पड़ा।

सजे हुए बाजार में कई खूबसूरत लड़कियां जींस टॉप में उन्नत वक्षों का प्रदर्शन करते घूम रही थी कुछ सलवार सूट में भी थी जिन्होंने अपनी चुचियों पर दुपट्टा डाल रखा था। सोनू उन लड़कियों की तरफ देखता पर उनमें से कोई भी उसकी सुगना दीदी के करीब न फटकती थी…

वह रह रह कर अपने ख्वाबों में अपनी दोनों बहनों लाली और सुगना को अलग-अलग वस्त्रों में देखता और उनकी खूबसूरती की कल्पना करता। जब जब वह सुगना के बारे में सोचता उसके विचार अस्पष्ट होते। कभी वह सुगना की सुंदरता का कायल होता कभी उसके मादक बदन का और कभी अपनी दीदी के मर्यादित व्यक्तित्व का।


सिर्फ एक घटना ने सोनू के मन में सुगना के प्रति विचार बदल दिए थे। इसके पहले भी उसकी सुगना के साथ कामुक घटनाएं हुई थी पर हर बार सुगना का व्यक्तित्व सोनू के कामुक विचारों पर हावी रहता और सोनू के मन में वासना का बीज अंकुरित होने से पहले ही कुचल दिया जाता।

परंतु पिछले कुछ दिनों से हालात बदल चुके थे सुगना ने लाली और सोनू को संभोग करते हुए देखकर सोनू के मन में आ रही इस सोच से उत्पन्न होने वाली आत्मग्लानि को कुछ कम कर दिया था।

सोनू अब बेझिझक होकर सुगना और उसके कामुक बदन को याद करता। सोनू यह बात भली-भांति जानता था कि सुगना के सामने आते ही वह भीगी बिल्ली की तरह अपने उन कामुक विचारों को दरकिनार कर उसे बड़ी बहन का दर्जा देने को बाध्य होगा और उसके मन में चल रहे ख्याली पुलाव साबुन के बुलबुले की तरह टूट कर बिखर जाएंगे..

परन्तु ख्यालों पर पाबंदी लगाने वाला कोई न था। ईधर उसके ख्यालों में सुगना घूम रही थी और उधर जांघों के बीच लंड हरकत में आ रहा था। सोनू अपनी जांघों के बीच हलचल महसूस कर रहा था। रिक्शे पर बैठे-बैठे उसने अपने लंड को ऊपर की तरफ किया और उसे अपना आकार बढ़ाने की इजाजत दे दी। वह बीच-बीच में उसे सहला था और उसे धीरज धरने के लिए प्रेरित कर रहा था।

यही सब बातें सोचते सोचते उसका रिक्शा लखनऊ के बाजार में पहुंच चुका था। तरह-तरह के वस्त्र दुकानों के सामने लटके हुए थे। सोनू ने आज तक सुगना को या तो साड़ी या लहंगा चुनरी में देखा था पर शहरों में उस दौरान सलवार सूट का प्रचलन आ चुका था। सलवार सूट में महिलाओं की कमनीय काया स्पष्ट दिखाई पड़ती थी। चूचियों पर सटा हुआ सूट और कमर का वह कटाव …. सोनू कपड़ों के पीछे छुपी स्त्रीयो की स्वाभाविक खूबसूरती में खो गया।


दुकान पर लगे पुतलों में सोनू अपनी बहनों को खोजने लगा। पुतले कुछ कमजोर और पतले दिखाई पड़ रहे थे पर सोनू की दोनों बहने पूरी तरह गदराई हुई थीं। दो बच्चों की मां होने का असर उनके शरीर पर भी दिखाई पड़ रहा था। पर यह उनकी मादकता को और भी बढ़ा रहा था।

सुगना को याद कर सोनू का लंड एक बार फिर हरकत में आ रहा था। अचानक सोनू को दुकान पर टंगा एक कपड़ा पसंद आ गया सोनू ने रिक्शा रोका और उतरकर उस दुकान के अंदर आ गया अंदर एक खूबसूरत महिला कपड़े तह कर रही थी सोनू को देखते ही उसने पूछा

"भैया क्या देखना है..?"

सोनू उस महिला को बेहद ध्यान से देख रहा था महिला की उम्र उसकी अपनी बहनों से मेल खाती थी परंतु सुंदरता ….. सोनू को अपनी बहनों पर नाज था सुगना तो जैसे उसके ख्वाबों की परी बन चुकी थी। मन में यह सोच लाकर सोनू कभी लाली के प्रति अन्याय करता परंतु सुगना, सुगना और उसका आकर्षण सब पर भारी था।


सोनू दुकान के काउंटर पर आ गया और काउंटर से सट कर खड़ा हो गया। सोनू का लंड दुकान के काउंटर से रगड़ रहा था वह मीठी रगड़ सोनू को बेहद आनंददायक लग रही थी।

बहनों के लिए सूट देखते देखते सोनू ने अपने आनंद का उपाय कर लिया था…

उस महिला ने सोनू को कई सूट दिखाएं जिसमें वह सूट भी शामिल था जो सोनू की निगाहों पर चढ़ गया था।

कई सूट देखने के पश्चात आखिरकार सोनू ने दो सूट पसंद कर लिए। एक अपनी बड़ी बहन सुगना के लिए और दूसरी अपनी मदमस्त लाली के लिए। सूट स्लीवलेस तो नहीं थे परंतु बाहों पर सिर्फ चिकनकारी की हुई थी। बाकी कुर्ते पर स्तर लगा हुआ था…महिला सोनू को सूट की चूची वाली जगह पर बार-बार देखते देख कर बोली…..

आपको साइज पता है तो बता दीजिए हम तुरंत ही उसी नाप का बना देंगे..

सोनू की चोरी पकड़ी गई थी काउंटर पर काम कर रही महिला ग्राहकों की उत्सुकता और प्रश्न को भलीभांति समझती थी।

सोनू ने शर्माते हुए कहा

" 36 और 34…"

नंबर बताते समय सोनू ने सुगना और लाली की सूट का रंग तय कर दिया। हल्के हरे रंग के सूट में सुगना की कल्पना कर सोनू बाग बाग हो गया ..

सूट पसंद करने के बाद अब बारी अंतरंग वस्त्रों की थी .. सोनू ने लाली के लिए तो अंतरंग वस्त्र पसंद किए परंतु अपनी बड़ी बहन सुगना के लिए अंतर्वस्त्र खरीदने की हिमाकत नहीं कर पाया।उसने जितनी हिम्मत विचारों में इकट्ठा की थी उसे असली जामा पहनाने में नाकामयाब रहा।

लाली को कामुक अंतर्वस्त्र बेहद पसंद थे पसंद तो सुगना को भी थे पर इस समय उसे न तो इन वस्त्रों की उपयोगिता थी और नहीं आवश्यकता। सोनू उस महिला से अंतर्वस्त्र खरीदते समय बेहद शर्मा रहा था। महिला उसके सामने तरह-तरह ब्रा और पेंटी रखती जो सामान्यतः प्रयोग में लाई जाती है परंतु न तो सोनू सामान्य था और नहीं उसकी भावनाएं।

अंततः सोनू ने अपनी इच्छा स्पष्ट रूप से रख दी

"ऐसी जालीदार नहीं है क्या फैंसी वाली.."

महिला अंदर जाकर जालीदार कामुक ब्रा पेंटी का सेट ले आई और उसे देखकर सोनू की बांछें खिल उठी।

उसके जेहन में अब उस कामुक ब्रा और पेंटी में कमरे में चहलकदमी हुई करती हुई उसकी लाली दीदी घूम रही थी। वह मन ही मन लाली को घोड़ी बनाकर तथा उसकी जालीदार पेंटी को हटाकर अपना लंड डालकर उसे गचागच चोदने की कल्पना करने लगा जैसा उसने हालिया किसी ब्लू फिल्म में देखा था। उसने लाली के लिए दो ब्रा और पैंटी का सेट पसंद कर लिया।


उसी समय सोनू का एक और दोस्त उसी दुकान में आता हुआ दिखाई पड़ा जो अपनी प्रेमिका के लिए शायद कोई उपहार खरीदने ही आया था।

सोनू ने आनन-फानन में महिला को पैकिंग के निर्देश दिए और अपने दोस्त सोनू से बात करने लगा..

या तो सोनू …..या उसके दिशा निर्देश सुनने वाली महिला की गलती या नियति की चाल पर सोनू द्वारा पसंद की गई दोनो जालीदार कामुक ब्रा और पेंटी को भी उन सूट के साथ अलग अलग पैक कर दिया गया शायद पैक करने वाले ने अपने दिमाग का भी प्रयोग कर दिया था…. और अनजाने में ही सोनू की कामुकता को उसकी दोनों बहनों में बराबरी से बांट दिया था।

डब्बे को गिफ्ट रैप के पश्चात महिला ने समझदारी दिखाते हुए डिब्बे के कोने में बड़ा और छोटा लिखकर सूट में स्पष्ट अंतर कर दिया।

सोनू इस बात से कतई अनजान था कि सुगना के पैकेट में खूबसूरत जालीदार ब्रा पेंटी भी पैक है। सोनू उमंग में पैकेट लेकर वापस आने लगा। जालीदार ब्रा और पेंटी में लाली अब भी उसके दिमाग में घूम रही थी।

सोनू ने हॉस्टल पहुंच कर अपने हाथों की एक्सरसाइज की और वीर्य स्खलन के उपरांत ही उसका दिमाग शांत हुआ।

2 दिनों बाद रक्षाबंधन का पावन त्यौहार था। सोनू के लिए अगले 2 दिन 2 वर्ष जैसे बीत रहे थे … सोनू लाली से मिलने को तड़प रहा था और मन ही मन यह प्रार्थना कर रहा था कि काश उस दिन के दृश्य एक बार फिर उसी क्रम में दोहराया जाए .. सोनू के मन में चल रहे ख्याल कभी घनघोर वासना जन्य होते जिसमें सुगना भी एक भागीदार होती और कभी वह सिर्फ इस बात पर ही अत्यधिक कामोत्तेजक हो जाता कि वह अपनी बड़ी बहन की हम उम्र सहेली को उसी के सामने चोदेगा….परंतु उसे भी यह बात पता थी शायद यह दोबारा संभव नहीं पर जैसे सावन के अंधे को सब कुछ हरा हरा ही सूझता है वैसे सोनू की उम्मीदें बढ़ती जा रही थी…

उधर बनारस में सोनी सुगना और लाली तीनों सोनू का इंतजार कर रहे थे.

सोनू ने सोनी और विकास के रिश्ते को स्वीकार कर जो बड़प्पन दिखाया था उसने सोनी के दिलों दिमाग पर गहरी छाप छोड़ी थी सोनू उसका बड़ा भाई था परंतु सोनी की निगाहों में अब वह बेहद जिम्मेदार और पिता तुल्य हो चुका था।

सोनी पूरी आस्था और लगन से अपने बड़े भाई का इंतजार कर रही थी। सुगना भी सोनू के आने से बेहद प्रसन्न थी आखिर सोनू को देखे कई दिन बीत चुके थे।


पिछले कई वर्षों तक एक साथ रहने से उसका लगाव सोनू से बेहद ज्यादा हो गया था वैसे भी वह उसका छोटा और प्यारा भाई था पिछले बार के उस कामुक दृश्य को छोड़ दें तो सुगना और सोनू के संबंध बेहद आत्मीय रहे थे। खासकर सुगना की तरफ से। सोनू तो बीच-बीच में उसकी सुंदरता पर मोहित हो जाता था ।

सोनू वैसे भी अब पूरे परिवार की शान बन चुका था और सुगना अपने छोटे भाई पर नाज करती थी…परंतु जब जब सुगना के दिमाग में वह कामुक दृश्य आते उसका अंतर्मन सिहर उठता।

उसकी निगाहों में सोनू का मजबूत खूटे जैसा लंड और लाली की बुर चूदाई के दृश्य घूमने लगते। उसे सोनू का लंड अपने बाबूजी सरयू सिंह के लंड से मिलता जुलता प्रतीत होता और न जाने कब वह उस अद्भुत लंड के बारे में सोचते सोचते सुगना की जांघों के बीच चिपचिपा पन आ जाता। भाई बहन का रिश्ता कुछ ही पलों में तार-तार होने लगता …..और सुगना वापस सचेत हो जाती….

और लाली का तो कहना ही क्या इधर दोनों बहने सोनू के पसंद का सामान तैयार कर रही थी और उधर लाली अपनी जांघों के बीच उगाए अनचाहे बालों को हटाकर अपने छोटे भाई के लिए मल्ल युद्ध का अखाड़ा तैयार कर रही थी…

तीनों बहनों के लिए सोनू अलग-अलग रूप में दिखाई पड़ रहा था परंतु सुगना सबसे ज्यादा संशय में थी सोनू का यह बदला हुआ रूप के दिमाग को कतई रास ना आ रहा था परंतु उसकी जांघों के बीच वह उपेक्षित सुकुमारी अपनी पलकों पर आंसू लिए सोनू के उस रूप को रह-रहकर याद कर रही थी और सुगना का ध्यान अपनी तरफ खींच रही थी..

"ए सुगना देख बेसन जरता… कहां भुलाईल बाड़े?"

"सोनुआ के बारे में सोच तनी हां"

"वोही दिन के बारे में सोचा तले हा नू …जायदे अब कि आई तब फिर सिनेमा दिखा देब"


सुगना ने गरम छनोटा लाली की तरफ किया और मुस्कुराते हुए बोली

"ढेर पागल जैसन बोलबे त एही से दाग देब…."

लाली पीछे हटी और मुस्कुराते हुए बोली

"काश सोनुआ तोर भाई ना होखित" सुगना को यह बात समझ ना आए और जब तक वह यह बात समझती सोनी भी कमरे में आ चुकी थी सोनू को लेकर हो रही तकरार सुनकर उसने बिना बात समझे ही कहा..

"दीदी , सोनू भैया के जान से ज्यादा मानेले ओकरा बारे में कुछ मत बोला दीदी बिल्कुल ना सुनी"

"अरे वाह जब से लखनऊ से आईल बाड़ू सोनू भैया सोनू भैया रट लगावले बाडू कौन जादू कर देले बा सोनुआ" अनजाने में ही लाली ने सोनी से वह बात पूछ दी जिसका उत्तर न तो सोनी दे सकती थी और नहीं देना उचित था.. सोनी के विवाह का राज सोनी और सोनू के सीने में दफन था।

सुगना ने इस संवाद पर विराम लगाया और वह बेसन से भरी हुई कड़ाही लेकर नीचे बैठ गई और सोनी तथा लाली से कहा

"आवा सब केहूं मिलकर लड्डू बनावल जाऊ" सुगना को पता था सोनू को बेसन के लड्डू बेहद पसंद थे। सुगना को स्वयं मोतीचूर के लड्डू पसंद थे परंतु फिर भी वह अपनी पसंद को ताक पर रखकर सोनू के लिए लड्डू बना रही थी। लाली और सोनी भी सुगना का साथ दे रही थी सोनू अलग-अलग रूपों में तीनों बहनों के मन में छाया हुआ था।

और आखिरकार वह दिन आ गया जब सोनू रक्षाबंधन पर अपने घर बनारस के लिए रवाना हो गया…

रक्षाबंधन का दिन…

सोनू को आज बनारस एक्सप्रेस बेहद धीमी चलती हुई प्रतीत हो रही थी। लोहे की सलाखों के पीछे बैठा सोनू ऐसा महसूस कर रहा था जैसे वह किसी जेल में बैठा है। जब ट्रेन अकारण रूकती वह कभी व्यवस्था को कोसता कभी उन मनचले लड़कों को जो ट्रेन को चेन पुलिंग कर कर रोक दिया करते थे। उसका मन तो न जाने कबका बनारस स्टेशन पहुंच चुका था। मन में सुगना और लाली को देखने की लालसा लिए वह बेहद अधीर हो चला था।

वह अपने बैग से झांक रहे सूट के पैकेट को देखता उसके पूरे दिलो दिमाग में सनसनी दौड़ जाती है क्या सुगना दीदी आधुनिक जमाने के सूट को पहनेगी… उन्होंने आज तक तो कभी ऐसे वस्त्र नहीं पहने कहीं वह नाराज तो नहीं होंगी…. और यदि उन्होंने इससे पहनने के लिए मना कर दिया तब… सोनू के दिमाग में सिर्फ और सिर्फ प्रश्न थे …. परंतु उनका उत्तर उसकी दोनों बहने ही दे सकती थी…..


हर इंतजार का अंत होता है और सोनू का भी हुआ.. ट्रेन के धीरे होते ही सोनू अपना सामान लेकर बनारस स्टेशन पर कूद पड़ा वह भागते हुए बाहर पहुंचा और ऑटो करके तेजी से अपने घर की तरफ बढ़ चला…

सोनू ने अपने परिवार के सभी सदस्यों के लिए कुछ न कुछ गिफ्ट लाए थे परंतु सुगना और लाली का वह सूट अनोखा था..

उधर सुगना और लाली के घर में त्यौहार का माहौल था। सारे छोटे बच्चे सुबह से ही नहा धोकर तैयार थे। सोनी बच्चों को तैयार कराने में पूरी तरह मदद कर रही थी। सोनी ने बच्चों को नए नए कपड़े पहना कर खेलने भेज दिया छोटा सूरज आज न जाने कैसे सबसे पीछे हो गया था।


सोनी सूरज को कपड़े पहना रही थी और आज कई दिनों बाद सोनी ने एक बार फिर वही हरकत की उसने सूरज का अंगूठा सहला दिया। बिस्तर पर खड़ा सूरज अपनी नूनी को बढ़ते हुए देख रहा था..

"मौसी ई का कर देलू"

सूरज का यह संबोधन उसे बेहद प्यारा लगा और सोनी ने उसे छेड़ते हुए सूरज के अंगूठे को थोड़ा और सहला दिया नूनी का आकार विकास के हथियार के बराबर हो गया और सोनी शरमा गई. एक पल के लिए सोनी के दिमाग में विकास के साथ बिताए गए वह कामुक पल घूम गए सूरज सोनी के बाल खींचते हुए बोला..

"मौसी जल्दी ठीक कर ना ता मां के बुला देब"

सोनी ने प्यारे सूरज के गाल पर मीठी चपत लगाई और अपनी हथेलियां उसकी आंखों पर रखकर नीचे झुक गई.. सोनी को इस विलक्षण समस्या का कारण तो पता न था पर निदान पता था।

सूरज खिलखिला रहा था और सोनी के रेशमी बालों को पकड़कर कभी दूर करता कभी पास… सोनी मुस्कुरा रही थी और विकास को याद कर रही थी। वह विज्ञान की छात्रा सूरज के अंगूठे के इस राज को आज भी समझने का वैसे ही प्रयास कर रही थी..

अचानक सुगना ने दरवाजा खोल दिया और सोनी की अवस्था देखकर सारा माजरा समझ गई और बोली..

"ते बार बार काहे ओकर अंगूठा छूएले ?"

"अरे कपड़ा पहनावत समय भुला गईनी हां"

सुगना ने सूरज को अपनी गोद में उठा लिया और एक बार फिर उसके अंगूठे को सहला कर उसने अपने पूर्व अनुभव को प्रमाणित करने की कोशिश की और यकीनन सुगना के अंगूठे सहलाए जाने से सूरज में कोई परिवर्तन न हुआ।

जाने नियति ने सूरज को ऐसा कौन सा अभिशाप दिया था…

सुगना ने कहा

"हम जा तानी नहाए ते पूजा पाठ के तैयारी कर ले सोनू भी आवत ए होई.."


सुगना ने अपने कपड़े उसी कमरे के बिस्तर पर रख दिए जिस पर आज से कुछ महीनों पहले उसने लाली और सोनू की जबरदस्त चूदाई देखी थी और अपनी नाइटी लेकर बाथरूम में घुस गई। विलंब हो रहा था और सुगना के दिमाग सोनू घूम रहा था जो कुछ ही समय बाद आने वाला था..

सुगना बाथरूम में नग्न होकर नहाने लगी। साबुन लगाते समय सुगना के दिमाग में फिर एक बार वही दृश्य घूमने लगे…. कैसे सोनू लाली की कमर को पकड़कर गचागच उसे चोद रहा था….. सोनू का मजबूत लंड उसके दिमाग पर एक अमिट छवि छोड़ चुका था।


सुगना ने एक बार फिर अपने हाथ की कलाइयों को देखा और सोनू के लंड से उसकी तुलना करने की कोशिश की।

सुगना मुस्कुरा रही थी उसे ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे उसका अपना छोटा भाई उसके बाबू जी से किसी भी तुलना में कम न था। यदि सरयू सिंह अपनी युवावस्था में रहे होते तो शायद सोनू के जैसे ही होते। सोनू का भरा पूरा मांसल शरीर वह मजबूत भुजाएं ….हाथों पर सोनू के लंड पर दौड़ती नसें सब कुछ आदर्श था।

जैसे-जैसे सुगना सोनू की कसरती शरीर को याद करती रही वैसे वैसे उसकी हथेलियां स्वतः उसके गुप्तांगों की तरफ बढ़ चली। यह क्रिया स्वाभाविक रूप से हो रही थी। साबुन बार-बार अपनी जगह तलाश रहा था और अंततः सुगना की तर्जनी ने सुगना की उस कोमल दरार के बीच अपनी जगह बना ली।

यह क्या …..बाहर जितनी फिसलन थी अंदर उससे कई गुना ज्यादा थी… बुर् के होठों पर छलका प्रेम रस में न जाने कौन सा चुंबकीय आकर्षण पैदा किया और सुगना की तर्जनी उसकी बुर से प्रेम रस को खींच खींच कर बाहर निकालने लगी… जैसे ही भग्नासे ने तर्जनी का स्पर्श पाया वह फूल कर कुप्पा हो गया और बार-बार उस मादक स्पर्श की दरकार करने लगा…..सुगना के दांतो ने होठों को खींच कर अपना दबाव बढ़ाया जैसे वह अपनी मालकिन को होश खोने से रोक रहे हों।


शरीर के अंगों पर लगा साबुन सुगना की हथेलियों का इंतजार कर रहा था। पर सुगना की सोच पर न जाने कौन सा रस हावी हो गया था उसका सारा आकर्षण उस छोटी सी दरार पर केंद्रित हो गया था शायद जिस आनंद की भूखी सुगना कई महीनों से थी वह उसे प्राप्त हो रहा था… उसे समय का आभास भी न रहा….

सुगना को वास्तविक दुनिया में लाने का श्रेय आखिरकार लाली को गया जो दरवाजे पर खड़े होकर कह रही थी

" सुगना जल्दी कर 09 बज गइल सोनू आवहीं वाला बा.."


सुगना ने एक लंबी आह भरी और अपनी तड़पती बुर को अकेला छोड़ कर वापस अपने शरीर पर लगे साबुन के झाग हटाने लगी।

लोटे से लगातार वह अपने सर पर पानी डाल रही थी जो उसकी फूली और तनी हुई चुचियों से होते हुए जांघों के बीच बह रहा था। जैसी ही सुगना ने अपनी जांघें सटाई जांघों के बीच पानी इकट्ठा हो गया। इतनी सुंदर थी उसकी जांघें और कितना सुंदर था वह प्रेम त्रिकोण।

जिस त्रिकोण पर उसके बाबू जी सरयू सिंह सब कुछ निछावर करने को तैयार रहते थे। पिछले कई महीनों से उस त्रिकोण का कोई पूछना हार न था।। रतन को याद कर सुगना अपना मन खट्टा नहीं करना चाहती थी। उसने अपनी जांघें फैला दी और पानी को बह जाने दिया। अपनी बुर को थपथपा कर सुगना उठ खड़ी हुई और नाइटी से अपने भीगे बदन को पोछने लगी..

अपने बदन को यथासंभव पोछने के पश्चात सुगना उसी कमरे में आकर अपने वस्त्र पहनने लगी… जो गलती उस दिन अनजाने में सोनू और लाली ने की थी वही गलती आज सुगना दोहरा चुकी थी खिड़की पर लगा हुआ पर्दा थोड़ा हटा हुआ था …

सारे बच्चे के हाल में चिल्लपों मचाए हुए थे। सोनी रक्षाबंधन की तैयारियों में रंगोली बनाने में व्यस्त थी। लाली सोनू के लिए पूआ बना रही थी। सोनू को पुआ ठीक वैसे ही पसंद था जैसे सरयू सिंह को।


सोनू को दोनो पुए पसंद थे जांघों के बीच रसभरे भी और प्लेट में रखे चासनी से भीगे हुए भी।

बाहर अचानक खड़ खड़ खड़ खड़ की आवाज हुई…सोनू का ऑटो बाहर आकर रुक चुका था। दरवाजा सटा हुआ था। सोनू ने अंदर आकर अपनी बहनों को चकमा देने की सोची और वह दरवाजा धीरे से खोल कर अंदर आ गया। अंदर कमरे में सुगना के चूड़ियों की खनकने की आवाज आ रही थी। सोनू भली भांति जानता था कि घर में सिर्फ और सिर्फ उसकी सुगना दीदी ही भरपूर चूड़ियां पहनती हैं । लाली ने विधवा होने के बाद चूड़ी पहनना लगभग छोड़ कर दिया था और सोनी वह तो आधुनिक युवती थी और हाथों में 1या 2 कंगन डालकर वह मस्त रहती थी।

चूड़ियों के खड़कने से सोनू ने अंदाज कर लिया कि सुगना दीदी उसी कमरे में है..अचानक उसका ध्यान उस खुली हुई खिड़की पर गया…. और सोनू ने अपनी आंखे उस दरार पर टिका दीं….

सोनू की आंखे फटी रह गईं…

शेष अगले भाग में…
Bahut umda update diya h bhai sahab ab sugna or sonu samne samne kese karenge or sabhi log soni ko to bhul hi gaye kyu ki soni abhi jawan h or uski aag bhadak gyi h ab sonu se kese pyas bujhati h or vikash se jyada mza sonu se leti h
 

Raja jani

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कहानी ऐसे मोड़ पे है कि भाई बहन का रिश्ता नियती कुछ और निर्धारित कर रही शायद,सुगना का अपने पिता से संभोग तो अनजाने मे हो गया जो अभी भी नही पता है उसे, पर सगे भाई से उसका रिश्ता कैसे बदलता है ये दिलचस्प होगा हो सकता है हम फिर चौक जाये।
 
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Lovely Anand

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Ab sugna bhi pagal ho rhi h sonu ke liye dekhna hoga ki sugna or sonu ki love story kesi bnegi

Lawajab super updated
10/10 agle rachna ka intezar hai

Ab dekhte h ki sugna saryu singh ke liye jesi pagal usi tarah kya sonu ke liye bhi pagal hogi

Ab lag raha h ki sugna ki pyas bujhane ke liye sonu a gya h

Ab sugna ki tarike se pyas bujhegi jawan khun h or hathiyar bhi bda or chalane me bhi mahir ab sugna sonu ki diwani hone wali h

Sonu ki to aankh fati ki fati reh gyi ab sugna ki kya kya fategi bahut hot update

Aakhir khidki se sonu ne bhi dekh liya jese sugna ne sonu ko dekha tha bese hi sonu ne bhi sugna ko dekh liya hisabar barabar ho gya

Sugna or sonu kese aankh milange or sonu sugna kesi ek dusre ki pyas bujhate h
Sonu ke ling ke jesa update diya h lamba choda isi me to mza aata h itne bade update dene ke liye bahut bhut dhanyabad

Ab sugna or sonu ek dusre ki or aakarshit hone lage h lgta h dhere dhere sugna ke mn me saryu singh ki jagah sonu le rha h or jab sonu or sugna dono ek ho jayenge tb saryu singh ko bhul jaygi kyu ki sugna jab kisi ko dil me basati h to usi ki ho jati h

Bahut umda update diya h bhai sahab ab sugna or sonu samne samne kese karenge or sabhi log soni ko to bhul hi gaye kyu ki soni abhi jawan h or uski aag bhadak gyi h ab sonu se kese pyas bujhati h or vikash se jyada mza sonu se leti h

तन की आग ना बुझै

कहानी ऐसे मोड़ पे है कि भाई बहन का रिश्ता नियती कुछ और निर्धारित कर रही शायद,सुगना का अपने पिता से संभोग तो अनजाने मे हो गया जो अभी भी नही पता है उसे, पर सगे भाई से उसका रिश्ता कैसे बदलता है ये दिलचस्प होगा हो सकता है हम फिर चौक जाये।

Sahib ab update de dijiye aapki limit se jyada logo ne comments de di h 20/20 lana tha lekin ab 20 se jyada 25 ho gye to ab pichhale update ke jese lamba se update de
नए पाठकों का इस कहानी के पटल पर दिल से स्वागत है मैंने यह देखा है कि कुछ पाठक आज इस फोरम पर आकर अपनी पहली प्रतिक्रिया इस कहानी पर दिए है।

मुझे इस बात का हर्ष है कि मेरे साथ पाठकों में हिम्मत जुटाकर इस फोरम और इस कहानी पर आकर अपने विचार रखें।
जैसा कि मैंने वादा किया था अगला अपडेट प्रस्तुत है.
..
 
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Lovely Anand

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भाग 81

सोनू का ऑटो बाहर आकर रुक चुका था। दरवाजा सटा हुआ था सोनू ने अंदर आकर अपनी बहनों को सरप्राइस देने की सोची और वह दरवाजा धीरे से खोल कर अंदर आ गया। अंदर कमरे में सुगना के चूड़ियों की खनकने की आवाज आ रही थी। सोनू भली भांति जानता था कि घर में सिर्फ और सिर्फ उसकी सुगना दीदी ही भरपूर चूड़ियां पहनती हैं । लाली ने विधवा होने के बाद चूड़ी पहनना लगभग छोड़ कर दिया था और सोनी वह तो आधुनिक युवती थी हाथों में 1या 2 कंगन डालकर वह मस्त रखती थी।

चूड़ियों के खड़कने से सोनू ने अंदाज कर लिया कि सुगना दीदी उसी कमरे में है..अचानक उसका ध्यान उस खुली हुई खिड़की पर गया…. और सोनू ने अपनी आंखे उस दरार पर टिका दीं….

सोनू की आंखें फटी रह गईं…

शेष अगले भाग में…

सोनू ने आज वही दृश्य देखा जिसकी कल्पना वह कई दिनों से कर रहा था सुगना की भीगी हुई नाइटी धीरे-धीरे ऊपर उठ रही थी सुगना ने अपनी पीठ उसी खिड़की की तरफ की हुई थी जिससे सोनू अंदर झांक रहा था। सुगना स्वाभाविक रूप से अपने कपड़े बदल रही थी उसे क्या पता था खिड़की पर उसका छोटा भाई नजरों में कामुक प्यास लिए उसे निहार रहा था। जैसे-जैसे नाइटी ऊपर उठती गई.. सुगना की मांसल और गदराई जांघें सोनू की निगाह में आती गईं।


वह पैरों की गोरी पिंडलियां ,.…… जांघों और पिंडलियों के बीच वह बेहद लचीला और दो-तीन धारियों वाला घुटने के पीछे का भाग……सोनू की दृष्टि उस पर अटक गई.. सोनू मंत्रमुग्ध होकर ललचाई निगाहों से एक टक देखे जा रहा था.. कुछ ही पलों में नाइटी सुगना के नितंबों को अनावृत्त कर चुकी थी।

उसी दौरान सुगना की नाइटी उसके मंगलसूत्र में फस गई। सुगना उसे छुड़ाने का प्रयास करने लगी और कुछ देर तक सोनू की नजरों के सामने अपने भरे पूरे मादक नितंबों को अनजाने में ही परोस दिया। सोनू कामुक निगाहों से उसे देख रहा था उसकी पुतलियां फैल चुकी थी वह इस खूबसूरत दृश्य को अपने जहन में बसा लेना चाहता था। वह बिना पलक झपकाए मादक नितंबों के नीचे जांघों के बीच बने त्रिकोण पर अपना ध्यान केंद्रित किए हुए था। सुगना की बुर के होंठों ने और जांघों के बीच जोड़ ने एक अनोखी दिल की आकृति बना दी थी।

सुगना का दिल जितना खूबसूरत और विशाल था उतना ही खूबसूरत यह छोटा दिल भी था। इस अनोखे दिल के शीर्ष पर खड़ी सुगना की बुर न जाने कितना प्रेम रस छुपाए अपने प्रेमी का इंतजार कर रही थी… ।

कुछ ही देर में सुगना ने मंगलसूत्र को नाइटी से अलग कर लिया और उसकी नाइटी धीरे-धीरे ऊपर उठती गई जब तक कि वह नाइटी उसकी पीठ को अनावृत करते हुए गले तक पहुंचती…

हाल से मामा मामा की आवाज आने लगी। बच्चों ने सोनू को देख लिया था और वह मामा मामा चिल्लाने लगे थे।


सुगना बच्चों की चहल-पहल से अचानक पलटी और और अनजाने में ही अपनी भरी-भरी मदमस्त चुचियों को सोनू की निगाहों के सामने परोस दिया परंतु सोनू का दुर्भाग्य वह सिर्फ एक झलक उन चूचियों को देख पाया और उसे न चाहते हुए भी अपने भांजो की तरफ मुड़ना पड़ा जो अब उसके करीब आ चुके थे।

सुगना ने खिड़की की तरफ देखा और सोनू को खिड़की के पास खड़े घूमते हुए देखा। सुगना हतप्रभ रह गई।


क्या सोनू अंदर झांक रहा था? हे भगवान क्या सच में उसने अंदर झांका होगा? नहीं नहीं वह ऐसा नहीं कर सकता…आने के पश्चात तो वह अपने भांजों में खोया होगा… परंतु सुगना के मन में एक अनजाना डर समा गया था. वह खिड़की की तरफ गई और पर्दे को पूरी तरह बंद कर वापस कपड़े बदलने लगी उसने फटाफट अपने वस्त्र पहने.. उसका कलेजा धक-धक कर रहा था..

सुगना कमरे से बाहर आने की हिम्मत जुटा रही थी परंतु शर्म उसके पैरों में बेड़ियां बनकर उसका रास्ता रोक रही थी।

सोनू वैसे तो बच्चों के साथ खेल रहा था परंतु उसका ध्यान बार-बार उस कमरे की तरफ जा रहा था। आज पहली बार उसका मन बच्चो के साथ न लग रहा था।

इस अनोखी वासना ने सोनू को बदल दिया था।

सोनी हाल में आ चुकी थी। उसने सोनू के चरण छुए और एक बार फिर अपनी कृतज्ञता जताने के लिए वह सोनू के गले लग गई। .. सोनी की मुलायम चुचियों ने सोनू के सीने पर दस्तक दी परंतु उसका दिलो दिमाग कहीं और खोया हुआ था…सोनू ने लाली के भी चरण छुए और अपने बैग से निकाल कर ढेर सारी मिठाइयां और खिलौने बच्चों में बांटने लगा…. पर ध्यान अब भी बार-बार सुगना के दरवाजे की तरफ जा रहा था.


आखिरकार सुगना कमरे से बाहर आई। सोनू ने सुगना के चरण छुए… सुगना ने उसे खुश रहो का कर आशीर्वाद दिया…सुगना के घागरे के पीछे से आ रही साबुन और सुगना की मादक खुशबू को सोनू कुछ देर यूं ही सूंघता रहा ..सुगना ने उसके बालों पर हाथ फेरते हुए कहा

" अब उठ भी जो .."

सोनू उठ गया परंतु आज सुगना ने सोनू को गले न लगाया शायद आज भाई बहन के पावन प्यार पर ग्रहण लग चुका था। सुगना अपराध बोध से ग्रस्त थी।


बच्चे तो चॉकलेट और मिठाइयों में ही मस्त हो गए सुगना और लाली ने अपने-अपने गिफ्ट पैकेट प्राप्त किए । सोनी के हाथ में भी गिफ्ट पैकेट था परंतु यह पैकेट लाली और सुगना के पैकेट से अलग था कभी-कभी पैकिंग का आकर्षण गिफ्ट की अहमियत को बढ़ा या घटा देता है सोनी निश्चित ही अपने गिफ्ट की तुलना और सुगना को मिले गिफ्ट से कर रही थी नियति मुस्कुरा रही थी शायद उसने सोनी के साथ अन्याय कर दिया था।

आखिर सोनू की उस बहन ने भी अनजाने में अपने भाई के लिए लखनऊ के गेस्टहाउस में जो कुछ परोसा था वह निश्चित ही बेहद उत्तेजक था परंतु परंतु सोनू का दिलो-दिमाग अभी सुगना पर अटका था।

सोनू और सुगना का साथ आज का न था। दोनों को युवा हुए कई वर्ष बीत चुके थे और सोनू सुगना की सहेली लाली से जैसे-जैसे अंतरंग होता गया सुगना के प्रति उसका आकर्षण एक अलग रूप लेता गया।

यह बात निश्चित थी कि सोनू ने सुगना से अंतरंग होने की न कभी कोशिश कि नहीं कभी कभी उसके ख्यालों में वह आई पर एक झोंके की तरह। सोनू के विचारों का भटकाव स्वभाविक था दरअसल सुगना एक मदमस्त युवती थी जो स्वाभाविक रूप में उन सभी मदों के आकर्षण का केंद्र थी जिनकी जांघों के बीच हरकत होती थी। सोनू यह बात जानता था कि वह उसकी बड़ी बहन है और यही बात उसके ख्यालों पर लगाम लगा देती..

सुगना का व्यक्तित्व सोनू के छिछोरापन पर तुरंत लगाम लगा देता और वह एक बार फिर अपनी निगाहों में सुगना की बजाय लाली के कामुक अंगो की कल्पना करने लगता…

लाली और सुगना लाली और सुगना दोनों अपने-अपने गिफ्ट पैकेट लेकर अपने-अपने कमरों में आ गईं। दोनों में लखनऊ से मंगाए गए कपड़े देखने चाहत थी। सुगना उस खूबसूरत सूट को देखकर खुश हो गई आज पहली बार सोनू ने उसके लिए कपड़े पसंद किए थे वह भी इतने खूबसूरत ।

सुगना उसे अपने हाथों में लेकर उसकी कोमलता का एहसास करने लगे तभी उसका ध्यान सलवार के नीचे पड़ी खूबसूरत जालीदार ब्रा और पेंटी पर पड़ा और वह चौंक गई… …ब्रा और पेंटी को देखकर सुगना को यकीन ही नहीं हुआ कि सोनू ऐसा कार्य कर सकता है।

ठीक उसी समय सोनी के कमरे में आने की आहट हुई सुगना ने फटाफट उस ब्रा और पेंटी को तकिए के नीचे छुपा दिया और सूट को अपने हाथों में ले पीछे पलटी और सोनी को दिखाते हुए बोली


"देख कईसन बा सोनुआ ले आइल बा…"

सोनी ने व सूट अपने हाथों में ले लिया और उसकी कोमलता और डिजाइन को देखकर खुश हो गई

" कितना सुंदर बा सोनू भैया हमरा खातिर ना ले ले आइले हा"


सुगना ने एक पल भी सोचे बिना कहा

" तोहरा ठीक लागत बा ले ले हम फिर मंगा लेब"

सुगना का यहीं बड़प्पन उसे बाकी लोगों से अलग करता था…. सोनी ने सुगना के हाथों में सूट को देते हुए कहा "ना…ई सूट दीदी तोरा पर बहुत अच्छा लागी आज इहे पहन ले"

सुगना को भी वह सूट बेहद पसंद आया था परंतु उसकी शर्म उसे रोक रही थी । सोनी के आग्रह पर उसने सूट पहने का फैसला कर लिया। परंतु वह ब्रा और पेंटी उसे समझ ही नहीं आ रहा था कि सोनू ने ऐसा क्यों किया होगा? उसने तकिया हटाया और एक बार फिर उस खूबसूरत ब्रा और पेंटी को देखने लगी… यह संयोग कहें या सोनू की किस्मत ब्रा और पेंटी की कढ़ाई सूट से थोड़ा-थोड़ा मैच करती थी। सुगना को एक पल के लिए लगा जैसे यह जालीदार ब्रा और पेंटी इसी सूट का हिस्सा थी। सुगना सहज हो गई परंतु फिर भी अपने भाई द्वारा लाई गई ब्रा और पेंटी को पहनने की हिम्मत न जुटा पाईं…उसे यह कार्य बेहद शर्मनाक लगा.

सुगना ने एक बार फिर अपने वस्त्र उतारे और सोनू द्वारा लाए गए सलवार सूट को धारण करने लगी । चिकनकारी किया हुआ वह शिफान के सूट बेहद खूबसूरत था जैसे जैसे वह सूट सुगना के मादक और कमनीय काया पर चढ़ता गया वह अपनी खूबसूरती को और बढ़ाता गया।

वस्त्रों की खूबसूरती उसे धारण करने वाले पर निर्भर करती है। सुगना के कोमल बदन को छूकर सोनू द्वारा लाया गया सूट भी धन्य हो गया।

सुंदर वस्त्र सुंदर स्त्री पर दोगुना असर दिखाते हैं यही हाल सोनू द्वारा लाए गए सूट का था। ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे इस सूट का सृजन ही सुगना के लिए हुआ हो। सूट का बाजू लगभग पारदर्शी था जो सुगना की बाहों को आवरण देने में कामयाब था बाजू पर की गई चिकनकारी सुगना की मांसल भुजाओं को और खूबसूरत बना रही थी।


सीने पर सूट की फिटिंग देखने लायक थी ऐसा लग रहा था जैसे दर्जी ने सुगना की चूचियों की कल्पना कर उनके लिए जगह पहले से छोड़ रखी थी और सुगना की कसी हुई चूचियां सूट में बने जगह पर जाकर पूरी तरह सेट हो गई। सुगना की पतली कमर पर सटा हुआ सूट बेहद खूबसूरत लग रहा था सूट का पिछला हिस्सा सुगना के नितंबों को ढक रहा था और अगला उस प्रेम त्रिकोण को जिसकी तलाश उसका भाई सोनू अब अधीर हो रहा था।

सुगना ने स्वयं को आईने में देखा एक पल के लिए उसे लगा जैसे उसकी मदमस्त काया पर किसी ने खूबसूरत पेंटिंग कर दी हो..

सुगना स्वयं अपनी चुचियों को देखकर प्रसन्न हो गई उसे यकीन ही नहीं हो रहा था। सलवार सूट मैं उनका कसाव और आकार और भी उत्तेजक हो गया था।

सुगना ने अपने बाल सवारे । मांग के एक कोने में हमेशा की तरह सिंदूर का टीका किया। अपने मंगलसूत्र को गले पर सजाया और हाल में आने लगी। अचानक सुगना को सोनू का ध्यान आया और सुगना ने दुपट्टे से अपनी खूबसूरत चूचियों को ढक लिया और हाल में आ गई।

सुगना सचमुच बेहद खूबसूरत लग रही थी जैसे ही सोनू ने सुगना को देखा उसकी आंखें सुगना पर टिक गई और वह उसे सर से पैर तक निहारने लगा। सुगना की आंखें स्वतः ही शर्म से झुक गई.. .


सोनू खुद को रोक न पाया और बोला

"अरे दीदी सूट तोरा पर कितना अच्छा लागत बा" लाली ने भी सोनू की बात पर हां में हां मिलाई

"लागा ता सूट तोहरे खातिर बनल रहल हा" …लाली ने सुगना से कहा

" देख हम कहत ना रहनी की सोनू अब बड़ हो गईल बा दे त ओकरा के लइका समझेले"

सुगना मुस्कुरा दी और उस मुस्कुराहट ने उस सुंदरी के खूबसूरत चेहरे पर चार चांद लगा दिए…

अब तक सोनी ने हाल में सारी तैयारियां पूरी कर ली थी चादर को मोड़ कर बैठने का इंतजाम कर दिया गया था सारे बच्चे लाइन से बैठे हुए थे..

आइए मैं पाठकों को एक बार फिर इन बच्चों की याद दिला देता हूं जो इस कहानी के उत्तरार्ध में अपनी महती भूमिका निभाएंगे..

सुगना के घर में


  1. सुगना और सरयू सिंह के मिलन से जन्मा : सूरज…उम्र ..4 वर्ष लगभग..
  2. लाली और सोनू के मिलन से पैदा हुई : मधु उम्र लगभग 1 वर्ष कुछ माह ( सुगना इसे अपनी पुत्री और सूरज को उस अनजाने श्राप से मुक्ति दिलाने वाली उसकी छोटी बहन समझती है)
  3. रतन और बबीता की पुत्री मिंकी जो अब मालती नाम से सुगना के साथ रह रही है उम्र लगभग 6 वर्ष..
लाली के घर में

  1. राजेश और लाली का पुत्र : राजू, उम्र लगभग 6 वर्ष
  2. राजेश और लाली की पुत्री: रीमा, उम्र लगभग 4 वर्ष
  3. राजेश के वीर्य,सरयू सिंह की मेहनत और सुगना के गर्भ से जन्मा: राजा…..उम्र 1 वर्ष कुछ माह…
सारे लड़के चादर पर बैठे हुए थे। सोनू बीच में बैठा था और उसकी गोद में छोटा राजा था सोनू के एक तरफ राजू और दूसरी तरफ सूरज बैठा था।

लाली भी मधु को गोद में लेकर करीब ही बैठी थी। मालती और रीमा ने अपने तीनों भाइयों को राखी बांधी…अब बारी मधु की थी..

लाली मधु से सूरज के हाथ पर राखी बंधवाने लगी सुगना तड़प उठी…. भाई-बहन के पवित्र रिश्ते को वह भलीभांति समझती थी…उसका दिल कह रहा था कि वह मधु को सूरज की कलाई पर राखी बांधने से रोक ले….. आखिर मधु को कालांतर में उससे संभोग कर उसे श्राप मुक्त करना था…

सुगना ने कहा अरे छोड़ दे "मधु अभी छोट बीया ओकरा का बुझाई"

परंतु लाली ना मानी उसने बेहद आत्मीयता से कहा "अरे ई सोनू के सबसे छोटे और प्यारी बहन हा ई ना बांधी त के बांधी"

और आखिरकार सूरज की कलाई पर छोटी मधु ने राखी बांध दी सुगना मन मसोसकर रह गई।

अब स्वयं उसकी बारी थी…

सुगना अपने हाथों में पूजा की थाली लिए सोनू की तरफ बढ़ रही थी। नजरों में ढेर सारा प्यार और अपने काबिल भाई की मंगल कामना सहित… उसने सोनू की आरती की माथे पर टीका लगाया और सोनू की कलाई पर राखी बांधने लगी.. इसी दौरान सुगना का दुपट्टा न जाने कब झूल गया और सूट में छुपी हुई चूचियां झुकने की वजह से अपने आकार का प्रदर्शन करने लगीं।


उन गोरी चूचियों के बीच गहरी घाटी पर सोनू की नजरें चली गईं। बेहद मादक दृश्य था अपनी बड़ी बहन की भरी-भरी चूचियों के बीच उस गहरी घाटी में सोनू की निगाहें न जाने क्या खोज रही थी। वह एक टक उसे घूरे जा रहा था। इस नयन सुख का असर सोनू की जांघों के बीच भी हुआ और उसका छोटा शेर भी इस कार्यक्रम में शरीक होने के लिए उठ खड़ा हुआ।

कुछ ही देर में सुगना ने सोनू की निगाहों को ताड़ लिया। उसे बेहद शर्म आई … और उसने अपना दुपट्टा ऊपर खींच लिया। उसने सोनू के गाल पर चपत लगाते हुए बोला…

"कहां भुलाईल बाड़े आपन मुंह खोल" और अपने हाथों में लड्डू लेकर उसने सोनू के मुंह में एक लड्ड भर दिया..

सोनू को अपने पकड़े जाने का है अहसास हो चुका था परंतु वह कुछ ना बोला और बड़ी मुश्किल से उस लड्डू को अपने मसूड़े से तोड़ने का प्रयास करने लगा.. लड्डू का आकार कुछ ज्यादा ही बड़ा था और सुगना ने आनन-फानन में उसे पूरा लड्डू खिला दिया था।

सोनी ने भी सोनू की कलाई पर राखी बांधी। इसी दौरान लाली ने मधु को सुगना की गोद में दे दिया और उठकर रसोई घर की तरफ चली गई । लाली आज सोनी की उपस्थिति में असमंजस में थी। जब से लाली ने सोनू को अपनी जांघों के बीच स्थान दिया था तब से उसने उसकी कलाई पर राखी बांधना बंद कर दिया था।


परंतु सोनी ने लाली को न छोड़ा और अंततः सोनू की कलाई पर लाली से भी राखी बंधवा ही दी बंधन की पवित्रता नष्ट हो रही थी…. सोनू की निगाहों में भी और सुगना की निगाहों में भी…नियति मजबूर थी जिस खेल में विधाता ने उसे धकेल दिया था उसे चुपचाप यह खेल देखना था।

सोनू अपने तीनों बहनों के आकर्षण का केंद्र था आज उसकी जमकर आव भगत हो रही थी जब-जब सोनू सोनी को देखता वह उसके भविष्य को लेकर खुश हो जाता। विकास से बातचीत करने के पश्चात सोनु आश्वस्त हो गया था कि विकास सोनी को धोखा नहीं देगा और सोनू ने सोनी को दिल से माफ कर दिया था….


शाम होते होते भाई-बहन के पवित्र रिश्ते का असर कम होने लगा और सोनू लाली के साथ एकांत खोजने में लग गया…

जैसे ही सोनी बच्चों को लेकर बाहर घुमाने गई…

लाली और सोनू एक बार फिर उसी कमरे में आ गए.. इस बार खिड़की पर से पर्दा हटाने का कार्य स्वयं सोनू ने अपने हाथों से किया और लाली के शरीर से वही सूट हटाने लगा जिसे वह जिसे वह आज सुबह ही लाया था.

सोनू के मन में एक बार फिर सुगना घूमने लगी

.. क्या सुगना दीदी आज भी आएंगी? सोनू की निगाहें बार-बार खिड़की की तरफ जाती और बैरंग लौट आती समय कम था सोनी कभी भी वापस आ सकती थी।

"ए सोनू रात में करिहे काहे जल्दी आई बाड़?" लाली को क्या पता था कि सोनू के मन में हवस भरी हुई थी पिछले कुछ महीनों में उसमें इन उत्तेजक पलों को सिर्फ ख्वाबों में जीया था और जब यह पल उसके सामने हकीकत में उपलब्ध थे वह उसे तुरंत भाग लेना चाहता था…

"रात में फेर से"


सोनू ने बिना समय गवाएं लाली को घोड़ी बना दिया और उसकी जालीदार पेंटी को एक तरफ खिसका कर अपना लंड उसकी फूली बूर में उतार दिया…

लाली की बुर अभी पनियाइ न थी.. जहा पहले उसकी बुर को सोनू के चुंबनओं का स्पर्श प्राप्त होता था और सोनू की जीभ उसकी बुर की दरारों को फैला कर अंदर से प्रेम रस खींचती थी.. वही आज सोनू अधीर होकर लाली को आनन-फानन में चोदने के लिए तैयार था लाली ने सोनू को निराश ना किया और अपनी बुर को यथासंभव फैलाने की कोशिश की परंतु नाकामयाब रही..

सोनू के लंड ने अपना रास्ता जबरदस्ती तय किया और लाली "आह….." की आवाज के साथ कराह उठी…

लाली की यह कराह कुछ ज्यादा ही तेज थी शायद यह उसके द्वारा अनुभव किए जा रहे दर्द के अनुपात में थी..

"सोनू…. तनी धीरे से ..दुखाता" लाली ने फुसफुसा कर कहा..

"बस बस हो गइल"

लाली की आह की आवाज सुनकर सुगना सचेत हो गई। एक पल के लिए उसे लगा जैसे लाली किसी मुसीबत में थी परंतु जैसे ही वह कमरे की तरफ बढ़ी.. उसे सोनू की आवाज सुनाई दे गई। सुगना के मन में उस दिन के दृश्य घूम गए….

एक बार के लिए उसके मन में आया कि वह एक बार फिर खिड़की से झांक कर देखें परंतु वह हिम्मत न जुटा पाई और कुछ देर उसी अवस्था में खड़े रहकर वापस अपने कमरे में आ गई.. उसने कमरे का दरवाजा बंद न किया…और अपने कान उस कमरे की तरफ लगा लिए जिसमें सोनू और लाली की प्रेम कीड़ा चल रही थी..

सुगना के दिमाग में उसे कमरे के अंदर झांकने से रोक लिया था परंतु दिल …. ने सुगना के कामों पर नियंत्रण कर लिया था जो अब सोनू और लाली की आवाज सुनने का प्रयास कर रहे थे..

सोनू की निगाहें बार-बार खिड़की की तरफ जा रही थी लाली भी धीरे धीरे गर्म हो चली थी लंड के आवागमन ने उसके बुर् के प्रतिरोध को खत्म कर दिया था और लाली अब पूरे आनंद में थी…

वासनाजन्य उत्तेजना कभी-कभी वाचाल कर देती है..लाली ने सोनू से कहा

"जल्दी कर कही तहार सुगना दीदी मत आ जास" लाली ने यह बात कुछ ज्यादा तेजी कही जो सुगना के कानो तक भी पहुंची…

सुगना का नाम सुनकर सोनू और उत्साह में आ गया वो तो न जाने कब से खिड़की पर उसका इंतजार कर रहा था। और सोनू ने लाली की कमर पर अपने हाथों का कसाव बढ़ा दिया और लंड को और गहराई तक उतार दिया..

उधर सुगना लाली की शरारत और खुले आमंत्रण को बखूबी समझ रही थी पर वो अपनी लज्जा और आज रक्षाबंधन की पवित्रता को नजरअंदाज न कर पाई और वह अपने कमरे में खड़ी रही…

"सुगना दीदी….. ऊ काहे आइहें…?" सोनू ने अपने मुंह से सुगना का नाम लिया और उधर सोनू के लंड ने लाली के गर्भाशय को चूमने की कोशिश की शायद यह सुगना के नाम का असर था…


सोनू यही न रूका उसने अपनी चूदाई की रफ्तार बढ़ा दी…और कमरे में थप थप …थपा… थप की आवाज गूंजने लगी लाली की जांघें सोनू की जांघों से टकरा रही थी। ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे सोनू सुगना को बुलाने का पूरा प्रयास कर रहा था… पर सुगना अपनी धड़कनों को काबू में करने का प्रयास कर रही थी.. पर मन में कशमकश कायम थी…दिमाग के दिशा निर्देशों को धता बताकर चूचियां तनी हुई थीं और बुर संवेदना से भरी लार टपका रही थी…

शेष अगले भाग में…
 
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