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Incest आह..तनी धीरे से.....दुखाता.

Lovely Anand

Love is life
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आह ....तनी धीरे से ...दुखाता
(Exclysively for Xforum)
यह उपन्यास एक ग्रामीण युवती सुगना के जीवन के बारे में है जोअपने परिवार में पनप रहे कामुक संबंधों को रोकना तो दूर उसमें शामिल होती गई। नियति के रचे इस खेल में सुगना अपने परिवार में ही कामुक और अनुचित संबंधों को बढ़ावा देती रही, उसकी क्या मजबूरी थी? क्या उसके कदम अनुचित थे? क्या वह गलत थी? यह प्रश्न पाठक उपन्यास को पढ़कर ही बता सकते हैं। उपन्यास की शुरुआत में तत्कालीन पाठकों की रुचि को ध्यान में रखते हुए सेक्स को प्रधानता दी गई है जो समय के साथ न्यायोचित तरीके से कथानक की मांग के अनुसार दर्शाया गया है।

इस उपन्यास में इंसेस्ट एक संयोग है।
अनुक्रमणिका
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भाग 126 (मध्यांतर)
 
Last edited:

Lovely Anand

Love is life
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@मालपानी जी और जिन पाठकों ने उत्साह दिखाया है उन्हें धन्यवाद...
पदमा हलवा बना रही है उम्मीद है कल शाम तक बन ही जाएगा तब तक के लिए

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योगा करते रहिए।
 
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123@abc

Just chilling
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@मालपानी जी और जिन पाठकों ने उत्साह दिखाया है उन्हें धन्यवाद...
पदमा हलवा बना रही है उम्मीद है कल शाम तक बन ही जाएगा तब तक के लिए

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योगा करते रहिए।

योगा से होगा :vhappy1:

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Lovely Anand

Love is life
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अपनी बहू सुगना (पदमा पुत्री) के हाथों बना मुलायम हलवा खाते खाते सरयू सिंह फिर पदमा की यादों में खो गए। मामा के आँगन में बैठे हुए सरयू सिंह को पद्मा ने अपने घर हलवा खाने का निमंत्रण दे दिया था वह मन ही मन पदमा के नजदीक आने की सोचने लगे।

वैसे भी अपने मामा के आंगन में इतनी देर तक लड़कियों और औरतों के बीच में बैठकर सरयू सिंह अब बोर हो चले थे ऊपर से पद्मा ने अपने घर हलवा खाने बुलाकर एक उम्मीद जगा दी थी वह घर से बाहर आकर दालान में मर्दो के बीच बैठ गए पर उनके दिलो-दिमाग में पदमा की गोरी चूचियां ही छाई रहीं ।

शाम हो चली थी चिड़ियों की चहचहाहट बढ़ रही थी सरयू सिंह अपने मामा के घर के सामने टहल रहे थे। वह कभी-कभी टहलते हुए पदमा के घर के तरफ भी आ जाते अचानक अपने घर के बाहर पदमा खड़ी हुई दिखाई पड़ी सरयू सिंह से नजर मिलते ही उसने उन्हें अंदर आने का इशारा किया सरयू सिंह धीरे धीरे पदमा के घर की तरफ बढ़ चले
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आगन के दरवाजे को खोलकर सरयू सिंह पदमा के आंगन में आ चुके थे उन्होंने पदमा की मां के चरण छुए और पास पड़ी चारपाई पर बैठ गए। पदमा अपनी मां को आज सुबह तालाब में हुआ वाकिया बताने लगी पदमा की मां बेहद खुश थी और सरयू सिंह की शुक्रगुजार भी। उन्होंने कहा

"बबुआ तू पदमा के बचा लेला हा तू सच में हमनी खातिर भगवान हवा"

सरयू सिंह अपनी तारीफ सुनकर फूले नहीं समा रहे थे. पद्मा भागकर हलवा ले आई सरयू सिंह अपनी उंगलियों से हलवा खाने लगे तभी भागती हुई एक छोटी सी लड़की आई और बोली

"चाची चला सबकेहु तोहरा के बुलावत बा" सरयू सिंह के मामा के यहां विवाह से संबंधित कोई कार्यक्रम था जिसके लिए वह लड़की पदमा की मां को बुलाने आई थी। पदमा की मां धीरे-धीरे उठ कर खड़ी हो गई और सरयू सिंह के मामा के घर जाने लगीं। उन्होंने पदमा से कहा

"तू ताला बंद करके आ जाइह"

अपनी मां के जाने के बाद पदमा और चंचल हो गयी उसने सरयू सिंह से

"पूछा हलवा मुलायम बानू"

सरयू सिंह मुस्कुरा रहे थे उन्होंने पदमा को छेड़ दिया

"ताहरा से कम बा"

पदमा शर्म से लाल हो गई. उसने कहा

"रउआ कइसे मालूम"

" सबरे के बात भुला गइलू"

"ओह त रहुआ हमरा के ओ घरी छुवत रहनी हां"

अब बारी सरयू सिंह की थी उनकी कटोरी में हलवा खत्म हो चुका था उन्होंने कहा "पदमा सच में तू बहुत सुंदर बाड़ू हम इतना सुंदर लईकी पहली बार देख ले रहनी हा"

"का"

"तहरा जइसन लईकी"

"साँच साँच बताई हमारा के देखत रहनी की हमार ……" उसने अपनी निगाह अपनी चुचियों की तरफ कर दी थी।

सरयू सिंह ने कहा

"तू और तहर ई दोनो बहुत सुंदर बा"

पद्मा शर्म से लाल हो गयी। वह हलवा की कटोरी उठाने के लिए झुकी और एक बार फिर सरयू सिंह की निगाहें उसकी चूची ऊपर चली गयीं। उन्होंने कहा

"देखा केतना सुंदर बा"

पदमा को उसकी खुद की चुचियां झाकतीं हुई दिखाई दे गई। वह शर्म से अपने गाल लाल किए हुए सरयू सिंह के सामने खड़ी हो गयी। सरयू सिंह ने अंतिम दांव खेल दिया

" ए पदमा, एक बार फेर दिखा द ना"

" हेने आयीं"

पद्मा ने सरयू सिंह को आंगन के कोने में बुलाया और इधर उधर देख कर अपनी चुचियों को ब्लाउज से आजाद कर दिया। लाल रंग की ब्लाउज से पद्मा की दोनों चूचियां आजाद होकर सरयू सिंह के सामने हिल रही थीं और उन्हें खुला आमंत्रण दे रही थीं। पदमा की निगाहें झुकी हुई थीं वह अपने दोनों हाथ से ब्लाउज को पकड़े हुए थी।
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सरयू सिंह ने बिना कुछ कहे उसे अपने आलिंगन में ले लिया। पदमा की नंगी चूचियां उनके सीने से छूने लगीं। पदमा के हाथ नीचे आ गए वह सावधान मुद्रा में खड़ी थी पर सरयु सिंह ने आगे बढ़कर उसके गालों को चूम लिया। पदमा शांत थी पर सरयू सिंह ने कोई ढिलाई नहीं बरती वह उसके होठों को चूमने लगे। पदमा अपनी जगह पर कसमसा रही थी पर उनका सहयोग नहीं कर रही थी। वह मन ही मन इस हो रही घटना पर विचार कर रही थी क्या यह ठीक है? वह अपनी सोच में डूबी हुई थी उधर सरयू सिंह की हथेलियां उसकी चुचियों का आकार नापने लगीं। जब सरयू सिंह की उंगलियों ने उसकी चुचियों के निप्पल को दबाया तब पदमा अपनी सोच से बाहर आयी। उसका मन और तन अब पूरी तरह मिलन के लिए तैयार था। उसकी हथेलियां सरयू सिंह की पीठ पर आ चुकी थीं। दोनों एक दूसरे में समा जाने के लिए तत्पर थे। पदमा की नई-नई चुदी हुयी बुर अपने होठों पर प्रेम रस लेकर अपने नए साथी का इंतजार कर रही थी।

सरयू सिंह के हाथ उसके नितंबों को छूने के लिए जैसे ही नीचे बढ़े एक बच्चे के आने की आहट सुनाई थी। पद्मा ने झट से अपना ब्लाउज नीचे कर लिया और सरयू सिंह से दूर हट गई। सरयू सिंह की धोती में खड़ा लंड उसने महसूस कर लिया था। आग लग चुकी थी बस उसमें पदमा और सरयू सिंह का जलना बाकी रह गया था...


सरयू सिंह के प्रति नियति शुरू से मेहरबान थी। वह अविवाहित जरूर थे पर नियति ने उन्हें उनकी कजरी भाभी से मिला दिया था जो उनका एक पत्नी की भांति ख्याल रखती थी। आज उन्हें एक और स्त्री के नजदीक आने का मौका मिल रहा था जो उनकी सुंदरता की पराकाष्ठा पर पूरी तरह खरी उतर रही थी। पदमा निश्चय ही कजरी से ज्यादा खूबसूरत और सुंदर और जवान थी।

अगले दिन सरयू सिंह के मामा की लड़की का तिलक जाना था। गांव के अधिकतर पुरुष उस तिलक में शामिल होने थे उन्हें लड़के वालों के घर जाना था।

सरयू सिंह को भी उस तिलक में जाना था पर आज सवेरे से ही उनके पेट में दर्द था। निकलने का वक्त हो चला था पर सरयु सिंह अपने पेट दर्द से परेशान थे।आखिरकार उनके मामा ने कहा

"जाए द तू एहिजे रहा" वैसे भी कुछ मर्दों को घर में रहना भी जरूरी होता था. सरयू सिंह अपने घर में रुक गए। पदमा के घर में उसकी मां और पिता ही रहते थे। पदमा का कोई भाई नहीं था। पड़ोसी होने की वजह से पदमा के पिता भी तिलक में शामिल होने चले गए। पदमा के घर और उनके मामा के घर में सिर्फ सरयू सिंह और उनके मामा का छोटा लड़का ही दो मर्द बचे थे बाकी सभी महिलाएं थीं।

शाम होते होते यह तय होने लगा की क्या आज बाहर सोना जरूरी है? सरयू सिंह की मामी ने कहा

"अरे दोनों जन भीतरे सुत रहा "

दरअसल सरयू सिंह के मामा के यहां तो विवाह में आए कई महिलाएं थीं परंतु पदमा के यहां पदमा और उसकी मा ही थीं। अंततः यह फैसला हुआ कि सरयू सिंह पदमा की दालान में सो जाएंगे और उनके मामा का लड़का घर में ही सो जाएगा। यह बात उचित भी थी और सभी को स्वीकार्य भी। सरयू सिंह मन ही मन खुश हो गए उधर पद्मा के चेहरे पर भी मुस्कान आ चुकी थी कुछ धमाल होने वाला था। नियति की साजिश कामयाब हो रही थी।

खाना खाने के पश्चात सरयू सिंह जब पद्मा के घर पहुंचे बाहर दालान में चारपाई पर मुलायम बिस्तर लगा हुआ था। उनके लिए विशेष रूप से नई चादर बिछाई गई थी। हल्की ठंड होने की वजह से ओढ़ने के लिए एक सुंदर लिहाफ भी रखा हुआ था जिसे अभी-अभी दीवान से निकाला गया लगता था। उसमें कुछ अजीब सी खुशबू आ रही थी।

पदमा उनका इंतजार ही कर रही थी। लालटेन की रोशनी में दोनों की नजरें मिलते ही आंखों ही आंखों में सारा कार्यक्रम तय हो गया। फिर भी सरयू सिंह ने पदमा को छेड़ ही दिया

"अकेले ही सुते के बा नु"

पदमा शर्मा गई और बोली

"थोड़ा देर अकेले ही सुत लीं"

यह कहकर वह अंदर चली गई उसकी मां की खासने की आवाज बाहर तक आ रही थी.

सरयू सिंह अपनी चारपाई पर लेटे हुए पदमा का ही इंतजार कर रहे थे। धोती के अंदर सरयू सिंह का लंड उन दोनों की बातचीत सुन चुका था और वह भी पदमा का इंतजार कर रहा था। सरयू सिंह के हाथों ने उसके इंतजार को और कठिन बना दिया था. वो उसे सहलाये जा रहे थे। वह पूरी उत्तेजना में तना हुआ अपनी बुर रूपी रजाई का इंतजार करने लगा जिसके अंदर वह हमेशा खुशहाल और मगन रहता था।

पदमा के कदमों की आहट सुनते सरयू सिंह सतर्क हो गए. पदमा अपने हाथ में दिया लिए हुए दालान में आ चुकी थी। दीए की रोशनी में उसका चेहरा दमक रहा था। उसने अपनी नजरें झुकायी हुई थीं। सरयू सिंह के करीब आते ही उसने अपने हाथ से दिया बुझा दिया और उसे जमीन पर रख दिया। काली अंधियारी रात में अब वह सरयू सिंह को दिखाई नहीं पड़ रही थी। वह चुपचाप आकर सरयू सिंह के बगल में लेट गई।

सरयू सिंह ने करवट लेकर उसके लिए जगह बना दी। पदमा की पीठ सरयू सिंह के सीने से हट गई थी। बातचीत करने का समय खत्म हो चुका था। सरयू सिंह ने अपना बायां हाथ पदमा के सिर के नीचे से ले जाकर उसके सर को सहारा दे दिया और इस सहारे के एवज में उसकी दाईं चूची पर अपना कब्जा जमा लिया।

सरयू सिंह की खुशी का ठिकाना ना रहा पद्मा ने ब्लाउज नहीं पहना था। उसकी नंगी चूँची पर हाथ फेर कर सरयू सिंह आनंद में खो गये। वह पदमा के प्रति कृतज्ञ थे जिसने ब्लाउज न पहनकर उनकी परेशानी कम कर दी थी अन्यथा इस अंधेरी रात में ब्लाउज के हुक खोलना समय बर्बाद करने जैसा ही था। अपनी चूँची के सहलाने पर पद्मा ने कोई आपत्ति न की अपितु अपनी बढ़ती हुई धड़कनों से अपनी रजामंदी अवश्य जाहिर कर दी। सरयू सिंह की दाहिनी हथेली ने बायीं चुची पर अपना कब्जा जमा लिया। वह अपनी दोनों हथेलियों से पदमा की दोनों चूचियों को सहलाने लगे और उसके गर्दन और कानों पर लगातार चुंबन करने लगे।

पदमा के रोएं खड़े हो गए। वह सिहर उठी। सरयू सिंह का मर्दाना स्पर्श बिल्कुल अलग था। वह उसके पति की तुलना में ज्यादा सख्त और मजबूत था। पदमा आनंद में डूबने लगी। सरयू सिंह ने अपनी बाई हथेली को चुचियों की सेवा में छोड़कर दाहिनी हथेली को नीचे ले आए पद्मा की बुर कब से उसका इंतजार कर रही थी। नितंबों को छु पाना अभी कठिन हो रहा था। सरयू सिंह के मजबूत हाथ सुगना के पेट और नाभि को सहलाते हुए नीचे आने लगे। पदमा के पेटीकोट में उनके हाथों को नीचे जाने से रोक लिया। वह पदमा को पूरी तरह नग्न करने के इच्छुक नहीं थे। बाहर दालान में यह खतरनाक हो सकता था। उन्होंने पेटीकोट से अपनी रंजिस खत्म कर दी और अपने हाथों को पदमा की जांघों पर लेकर चले गए। वह जांघों को सहलाते सहलाते उसकी साड़ी और पेटीकोट को ऊपर की तरफ खींचने लगे।

कुछ ही देर में साड़ी और पेटीकोट पदमा के पेट तक आ चुके थे और पदमा के पेट के चारों तरफ एक घेरा बनाकर इकट्ठा हो गए। यह निश्चय ही पदमा को आरामदायक नहीं लग रहा होगा पर यह मजबूरी थी वैसे भी पदमा इतनी उत्तेजित थी कि उसे इन कपड़ों का आभास भी नहीं हो रहा था।

पदमा के कोमल नितम्ब और जाँघे पूरी तरह नग्न थीं सरयू सिंह की हथेलियां जांघों से होते हुए उसके जोड़ तक पहुंच गयीं।

घुंघराले घास के बीच से बहता हुआ चिपचिपा पानी का झरना उनकी उंगलियों से छू गया। वह पदमा की मादक बुर थी। पदमा की कोमल बुर को छूते ही पद्मा ने अपनी दोनों जाँघेंऊपर की तरफ उठायीं जैसे वह सरयू सिंह से हाथों को रोकना चाहती हो।

सरयू सिंह ने जैसे ही अपनी उंगलियां हटाई पद्मा ने अपनी जाँघे फिर फिर खोल दीं। उंगलियों और पदमा की कोमल बुर् का यह मेलजोल कुछ देर यूँ ही चलता रहा
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इधर लंड धोती सरका कर बाहर आ चुका था। सरयू सिंह ने अपनी कमर जैसे ही पदमा से सटाई उनका लंड पदमा की जांघों से टकराने लगा। पद्मा ने सरयू सिंह के अद्भुत लंड का आकार और तनाव महसूस कर लिया। उसकी सिहरन बढ़ गई। वह उसे छूने के लिए अपने हाथ उस पर ले गई पर वह अपनी हथेलियों से उसे पूरा न पकड़ पायी। पदमा की धड़कनें तेज थी सरयू सिंह की उंगलियां पदमा की बुर से प्रेम रस चुरा रही थीं जिसे वह उसकी बुर पर फैला रहे थे तथा उसकी गाड़ को भी सहला रहे थे। उन्हें गांड का छेद सहलाना बेहद उत्तेजक लगता था।

लंड अपनी जगह तलाश रहा था पद्मा भी बेचैन हो रही थी। वह अपने चूतड़ हिलाकर लंड को बुर के समीप लाना चाह रही थी। निशाना मिलने पर सरयू सिंह ने अपने लंड को अंदर दबाने की कोशिश पदमा चिहूक गयी। सरयू सिंह को एक बार ऐसा लगा जैसे उन्होंने गलत छेद में अपना लंड डाल दिया है। उन्होंने तुरंत उसे बाहर निकाला और एक बार फिर अपना दबाव बढ़ा दिया। खेल उल्टा हो गया था इस बार उनका लंड पदमा की गांड में जा रहा था। पदमा लगभग कराह उठी। उसने कहा

"सरयू भैया पहिल के में, ई दोसर छेद ह" सरयू सिंह को अफसोस हो गया. वह काम कला के पारखी थे पर आज पदमा जैसी सुंदरी के सामने अनाड़ी बन गए थे। दर असल पदमा की कोमल बुर ने आज उन्हें उतना ही प्रतिरोध दिखाया था जितना कजरी की गांड दिखाया करती थी।

उन्होंने एक बार फिर अपने लंड का निशाना पदमा की कोमल बुर पर किया और अपनी उंगलियों से अपने लंड और पदमा के बुर् के दाने को छूकर इस बात की तस्दीक भी कर ली कि उनका निशाना सही जगह पर है। पदमा मुस्कुरा रही थी। सरयू सिंह ने उसे चूमते हुए कहा

"पदमा हमरा के माफ कर दीह" इतना कहते हुए उन्होंने पद्मा के मुंह पर अपना हाथ रख लिया और लंड का दबाव बढ़ा दिया वह पदमा की बूर को चीरता हुआ अंदर प्रवेश कर गया। पदमा दर्द से बिलबिला उठी। उसकी आंखों में आंसू आ गए जो सरयू सिंह को दिखाई नहीं पड़ रहे थे पर हां पदमा के दांत सरयू सिंह की उंगलियों को काट रहे थे। पदमा हाफ रही थी। लंड का अभी आधा भाग ही अंदर गया था।

सरयू सिंह ने कुछ देर खुद को इसी अवस्था में रखा। वह पदमा को वापस सहलाने लगे। उसके जांघों और नितंबों को सहलाने से पदमा को दर्द से कुछ राहत मिली और वह सामान्य होने लगी। सरयू सिंह ने अपने हाथ उसके मुंह से हटा कर वापस उसकी चुचियों को सहलाना शुरु कर दिया। पद्मा ने लगभग कराते हुए कहा

"सरयू भैया तनी धीरे धीरे …..दुखाता" सरयू सिंह ने उसके कानों को चुम लिया और बोले

"थोड़ा इंतजार कर ल तहरा ई हमेशा याद रही" कुछ देर बाद सरयू सिंह ने अपने लिंग को आगे पीछे करना शुरू कर दिया. पदमा सातवें आसमान पर पहुंच गई. उसकी चूत ने इतना तनाव कभी महसूस नहीं किया था। वह लगातार प्रेम रस छोड़े जा रही थी। पदमा अपनी जांघों को कभी ऊपर करती कभी नीचे। सरयू सिंह अपने लंड को बार-बार आगे पीछे कर रहे थे। हर बार जब वह अंदर जाता वह सुगना की चूत में धीरे-धीरे आगे बढ़ जाता।
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कुछ ही देर की चुदाई में वह उसके गर्भाशय को छूने लगा। पद्मा से और बर्दाश्त नहीं हो रहा था। वह सरयू सिंह की उंगलियों को चूमे जा रही थी। कुछ ही देर में उसकी थरथराहट बढ़ गई। उसकी जांघें तनने लगीं।

वह कराह रही थी… सरयूऊऊऊ ….भैया…आईईईई अंम्म्म्ममम्म और वह हांफते हांफते स्खलित हो गई। सरयू सिंह उसे और चोदना चाह रहे थे पर यह संभव नहीं था। उसने अपनी कमर हटा ली और सरयू सिंह का लंड फक्क….की आवाज के साथ उसकी चूत से बाहर आ गया।

सरयू सिंह अभी भी अपना लंड उसकी बुर में रखना चाहते थे। पर पदमा की बुर संवेदनशील हो चुकी थी। पद्मा ने करवट ले ली और सरयू सिंह की तरफ हो गई। उसने सरयू सिंह को होठों पर चूम लिया और बोली

"सरयू भैया साँच में हमरा ई हमेशा याद रही"

सरयू ने कहा

"त हमरो यादगार बना द"

वह उन्हें चूमती रही और बोली

" तनी इंतजार कर लीं" वह अपने हाथों से उनके लंड को सहलाने लगी। लंड के आकार को महसूस कर वह आश्चर्यचकित थी और गनगना रही थी।

तभी अचानक पदमा के मां की खासने की आवाज आई। वह बड़ी जल्दी से चारपाई से उठी और अंधेरे में ही आंगन की तरफ भागी। जब तक सरयू सिंह अपनी टार्च जलाकर उसे जाने का रास्ता दिखाते पदमा नजरों से ओझल हो गई…

सरयू सिंह बिस्तर पर पड़े पड़े पदमा का इंतजार कर रहे थे पर उनका इंतजार लंबा हो रहा था। आधे घंटे से ज्यादा का वक्त बीत चुका था उनका तना हुआ लंड भी उदास होकर वापस अपने सामान्य आकार में आ चुका था। उसकी उम्मीद टूट चुकी थी। पद्मा की चूत का रस लंड पर सूख चुका था

सरयू सिंह की आंखें भी भारी हो रही थीं। पदमा के साथ कुछ देर पहले उन्होंने जो सुखद पल बिताए थे उसे याद करते हुए उनकी आंखें अब नींद के आगोश में आ रही थी। तभी बादलों की गड़गड़ाहट सुनाई पड़ी। इन महीनों में सामान्यता बारिश नहीं होती है परंतु आज अकस्मात ही बादलों की गड़गड़ाहट हो रही थी। कुछ ही देर में बिजली भी चमकने लगी। यह अजीब सा संयोग था। उनकी नींद एक बार फिर खुल गई। बाहर बह रही ठंडी हवा उन्हें अच्छी लग रही थी। देखते ही देखते बारिश शुरू हो गई। दालान में हवा के साथ साथ पानी के छींटे भी आ रहे थे।

सरयू सिंह अपनी चारपाई से उठ गए उन्होंने अपनी धोती ठीक की और चारपाई को खींच कर कोने में ले गए जिससे वह पानी के छीटों से बच सकें। अजीब मुसीबत थी। उनकी रात खराब हो रही थी। तभी अचानक आगन का दरवाजा खुला और पदमा एक बार फिर बाहर आ गई। पदमा को देखकर सरयू सिंह की खुशी सातवें आसमान पर पहुंच गई। उन्हें यह उम्मीद कतई नहीं थी कि इस भरी बरसात में पदमा इस तरह बाहर आ जाएगी। पदमा थोड़ा भीग भी गई थी। सरयू सिंह ने अपनी टॉर्च से उसे रास्ता दिखाया और वह उनके बिल्कुल समीप आ गई।

सरयू सिंह ने पदमा को अपने आलिंगन में ले लिया उसके शरीर पर पानी की बूंदे थी जो ठंडक का एहसास दिला रही थी। पद्मा ने कहा

"भैया भूसा वाला कमरा में चली वहां पुआल लागल बा"

सरयू सिंह उस कमरे की तरफ बढ़ चले पद्मा ने चारपाई पर पड़ी हुई चादर खींच ली. और उनके साथ कमरे में आ गयी। सरयू सिंह ने टॉर्च मारकर कमरे का मुआयना किया। कमरे में एक तरफ भूसा रखा हुआ था और नीचे कुछ पुआल बिछा हुआ था जिस पर चादर डालकर आराम से सोया जा सकता था। कमरे में एक खिड़की थी जिससे कभी-कभी बिजली की रोशनी आ रही थी। जब जब बिजली कड़कती कमरा रोशन हो जाता। अंदर आने के बाद पद्मा ने दरवाजा बंद कर दिया और सरयू सिंह के आलिंगन में आ गयी। उसके शरीर पर पानी की बूंदे देखकर सरयू सिंह ने उसे पोंछने की कोशिश की। उन्होंने अपनी धोती खोल ली और पदमा के चेहरे और कंधों को पोंछने लगे।

सरयू सिंह ने पदमा की साड़ी जो थोड़ा भीग गया थी उसे हटाने की कोशिश की। पद्मा ने कोई आपत्ति नहीं की और कुछ ही देर में पदमा कमर के ऊपर नग्न खड़ी थी। सरयू सिंह ने साड़ी को और भी खोलना चाहा कमर की गांठ खुलते ही साड़ी एक ही झटके में नीचे आ गयी। पद्मा ने पेटीकोट नहीं पहना था उसने साड़ी को सीधा ही कमर में बांध लिया था। साड़ी के हटते ही पदमा पूरी तरह नग्न हो गई।

सरयू सिंह को यह यकीन ही नहीं हुआ। अचानक बिजली कड़की और पदमा का नग्न शरीर उनकी आंखों के सामने आ गया। एक पल के लिए उन्हें लगा जैसे वह सपना देख रहे हैं। गोरी चिट्टी पदमा अपने सीने पर दो मझौली आकार की चूँचियां लिए उनके सामने खड़ी थी। सपाट पेट उस पर छोटी सी नाभि कमर का उभार और सुडौल जाँघे आह…. पदमा एक आदर्श कामुक नारी की तरह लग रही थी। जांघों के जोड़ पर काले बालों के पीछे फूली हुई हुई बूर बेजड़ आकर्षक लग रही थी।

सरयू सिंह उस खूबसूरती को देखकर मदहोश हो गए। उन्हें यह अहसास नहीं था कि वह स्वयं पदमा के सामने नग्न खड़े थे। बिजली की रोशनी जितनी पदमा के शरीर पर पड़ रही थी उतनी ही रोशनी उनके शरीर पर भी पड़ रही थी। पदमा सरयू सिंह के बलिष्ठ शरीर और उनके अद्भुत लंड को देख कर सिहर भी रही थी और मन ही मन उनकी मर्दानगी की कायल भी हो रही थी।

प्रकृति के बनाए दो अद्भुत नगीने एक दूसरे के सामने खड़े थे बिजली की गड़गड़ाहट से वह करीब आ गए और एक दूसरे से सट गए। सरयू सिंह का लंड एक बार फिर पदमा की नाभि से छूने लगा।

पदमा की चुचियां उनके सीने में समा जाने को बेताब थीं। सरयू सिंह पहली बार पदमा के नितंबों को पूरे मन से सहला रहे थे। नितंबों के बीच पदमा की गदरायी गांड पर

उनकी उंगलियां घूम रही थी उसकी गोरी पीठ भी सरयू सिंह की हथेलियों का इंतजार कर रही थी। एक दूसरे के आगोश में लिपटे हुए सरयू सिंह और पदमा के होंठ आपस में मिल गए।

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पदमा ने खुद को सरयू सिंह से अलग किया और पुवाल पर बिछी चादर पर आकर पीठ के बल लेट गई। पुवाल पर लेटी हुई नग्न सुंदरी की कल्पना मात्र से सरयू सिंह का लंड गनगना गया। उन्होंने पदमा की चूचियों पर टॉर्च मारी। श्वेत धवल चूचियाँ सांची के स्तूप की तरह तनी हुई थी। उस पर भूरा निप्पल स्तूप ले मीनार की भांति दिखाई पड़ रहा था। पद्मा ने तुरंत ही अपनी हथेलियां अपनी चुचियों पर ले जाकर उन्हें ढक लिया। सरयू सिंह ने टॉर्च का मुह बालों के पीछे छुपी बुर पर कर दिया। पद्मा के बुर की खूबसूरती बयां करने योग्य शब्द मेरे पास नहीं है वह अद्भुत थी। दो गोरी जांघों के बीच छोटे छोटे काले काले बालों के बीच पदमा की मखमली गुलाबी बुर शर्माते हुए झांक रही थी।

ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे वह सरयू सिंह के खड़े लंड को खुला आमंत्रण दे रही हो।पद्मा ने सिर्फ फिर एक बार अपनी हथेलियों से अपने बुर को ढक लिया।

सरयू सिंह मुस्कुरा रहे थे। एक सुंदर नवयौवना अपने अनमोल खजाने को छुपाने का प्रयास कर रही थी। उन्होंने अब अपनी टॉर्च का मुह पद्मा ने सुंदर चेहरे पर कर दिया। सुंदर काले बाल बिखरे हुए थे और उन बालों की बीच से पदमा का खूबसूरत चेहरा सरयू सिंह की आंखों में बस गया। टॉर्च की रोशनी चेहरे पर पढ़ते ही पद्मा ने अपनी दोनों हथेलियां अपनी आंखों पर रख लीं वह टार्च की रोशनी को सबसे ज्यादा प्रभावित हो रही थी। पर वह यह भूल गई रोशनी में उसका बाकी बदन भी चमक रहा है।

सरयू सिंह ने कहीं पर निगाहें कहीं पर निशाना वाली कहावत चरितार्थ कर दी थी। उन्होंने टॉर्च का निशाना चेहरे की तरह किया था और पदमा के हाथों को मजबूर कर दिया था कि वह उसके चेहरे को ही ढके रहे परंतु इस दौरान पदमा की सुंदर चुची और कोमल बुर पूरी तरह खुले थे। पदमा को यह एहसास भी नहीं था कि सरयू सिंह उसके अनमोल खजाने को आंखों से ही लूट रहे हैं।

सरयू सिंह से अब और बर्दाश्त नहीं हुआ। नियति ने आज जो संयोग बनाया था वह मिलन के लिए आदर्श था।
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पदमा की कोमल बुर जो अब से कुछ देर पहले एक अद्भुत चुदाई का आनंद ले चुकी थी एक बार फिर पनिया चुकी थी। सरयू सिंह ने और देर न की। पदमा पुआल पर लेट कर अपनी जांघें फैलाकर सरयू सिंह का इंतजार कर रही थी। सरयू सिंह ने अपनी टॉर्च बगल में रखी और पदमा की जांघों के बीच में आ गए।

अपना लंड पदमा की कोमल बुर् के मुहाने पर रख दिया। उन्होंने अपनी टार्च जलाई और पदमा के मुंह की तरफ देखते हुए अपने लंड का दबाव बढ़ाते गए। पदमा का मुंह खुलता गया आंखें बड़ी हो गई पर उसने सरयू सिंह के लंड को अपनी बुर में बड़े प्रेम से समाहित कर लिया।

लंड पूरा जाने के बाद पद्मा ने अपनी आंखें खोली और चेहरे पर मुस्कुराहट लायी। सरयू सिंह ने उसे चूम लिया। पद्मा ने कहा

"सरयू भैया, अब मैं भर चो……...लीं" पदमा में उत्तेजना में जिस शब्द का पहला भाग बोल दिया था वह सरयू सिंह के कानों में किसी कामुक पुकार की तरह सुनाई दिया। वह अत्यधिक उत्तेजित हो गए।

उन्होंने अपने लंड को आगे पीछे करना शुरू कर दिया। वह पदमा को चोदना शुरू कर चुके थे। जैसे जैसे बिजली कड़कती वह दोनों एक हो जाते उनके सीने आपस में सट बजाते पर सरयू सिंह की कमर नहीं रुकती वह पदमा को लगातार चोदे जा रहे थे।

बीच-बीच में वह टॉर्च जलाकर पदमा का चेहरा जरूर देख लेते जो अब आहें भर रही थी। कुछ ही देर में पदमा की जाघें फिर तनने लगीं। सरयू सिंह ने इस बार कोई ढिलाई देना उचित नहीं समझा वह बिना पदमा का इंतजार किए अपने लंड को तेजी से आगे पीछे करने लगे। पदमा थरथरा रही थी और अपनी जाघें सीधी कर रही थी पर सरयू सिंह लगातार उसे चोद रहे थे।

तभी पदमा की मां की आवाज एक बार फिर सुनाई पड़ी वह पदमा... पदमा... पुकार रही पद्मा ने भी चुदवाते हुए ही आवाज दी..

" मां रुक जा सरयू भैया के चादर बदल के आवतानी भीग गईल बा" पर बोलते समय उसकी आवाज कांप रही थी। सरयू सिंह इस दौरान भी चुदाई जारी रखे हुए थे। पदमा की कामुक कराह कमरे में गूंजने लगी।

सरयू सिंह स्वयं पदमा….पदमा... पुकार रहे थे पर उसे लगातार चोद रहे थे. कुछ ही देर में उन्होंने अपने लंड को उस कोमल बूर में जड़ तक डाल दिया। ऐसा लग रहा था जैसे वह उसकी नाभि में छेद को छूना चाहते हों।

परन्तु गर्भाशय के मुहाने पर जाकर उनके लंड ने दम तोड़ दिया वह अपना वीर्य स्खलित करने लगा। पदमा की चूत के अंदर लंड का फुलना पिचकना जारी था। पदमा हाफ रही थी पर सरयू भैया को चूमे जा रही थी। उसके गर्भाशय पर सरयू सिंह की मलाई बरस रही थी। पदमा तृप्त हो रही थी। उसी दौरान पुवाल के अंदर छिपे एक अनजान कीड़े ने शरीर सिंह के अंडकोष के ठीक बगल में जांघों पर काट लिया। सरयू सिंह दर्द से तड़प उठे। वह उस समय स्खलित हो रहे थे।

उत्तेजना और दर्द का यह मिलन अनोखा था। सरयू सिंह उस दर्द को भूल कर पदमा की मलाईदार चूत में अपनी मलाई भरते रहे। उन्होंने हाथ लगाकर उस कीड़े को हटाया। जब तक वह टॉर्च उठाकर उस कीड़े को देख पाते वह पुवाल में गायब हो गया पर जाते-जाते वह अपना निशान छोड़ गया। शरीर सिंह का ध्यान भटकते ही पद्मा ने पूछा

" भैया का भइल?"

" कुछो ना, लगाता तोहरा घर के निशानी मिल गईल"

सरयू सिंह का उफान ठंडा पड़ते ही उन्होंने पदमा को फिर चूम लिया और कहा "पदमा ई रात हमेशा याद रही"

" हमरो" पद्मा ने कहा। वह अपने कपड़े समेटने के लिए नीचे झुकी और सरयू सिंह के हाथ में रखी टॉर्च और दिमाग की टॉर्च एक साथ जल गयी। पद्मा के गोरे और गोल नितंबों के बीच से उसकी गुदांज गांड दिखाई पड़ गई। उन्होंने पद्मा के कूल्हों को चूम लिया।

पदमा उठ खड़ी हुई और मुस्कुराते हुए बोली "सबर करीं"

पदमा मुस्कुराते हुए आंगन में चली गई पर आज सरयू सिंह के जीवन में नई बहार आ गई थी….

सुगना द्वारा लाया गया हलवा खत्म हो चुका था..
सुगना की मधुर आवाज आयी
"बाबूजी का सोचा तानी?"

सरयू सिंह ने उत्तर देना उचित न समझा पर सुगना को देख मुस्कुराने लगे....
 
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