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Incest आह..तनी धीरे से.....दुखाता.

Lovely Anand

Love is life
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आह ....तनी धीरे से ...दुखाता
(Exclysively for Xforum)
यह उपन्यास एक ग्रामीण युवती सुगना के जीवन के बारे में है जोअपने परिवार में पनप रहे कामुक संबंधों को रोकना तो दूर उसमें शामिल होती गई। नियति के रचे इस खेल में सुगना अपने परिवार में ही कामुक और अनुचित संबंधों को बढ़ावा देती रही, उसकी क्या मजबूरी थी? क्या उसके कदम अनुचित थे? क्या वह गलत थी? यह प्रश्न पाठक उपन्यास को पढ़कर ही बता सकते हैं। उपन्यास की शुरुआत में तत्कालीन पाठकों की रुचि को ध्यान में रखते हुए सेक्स को प्रधानता दी गई है जो समय के साथ न्यायोचित तरीके से कथानक की मांग के अनुसार दर्शाया गया है।

इस उपन्यास में इंसेस्ट एक संयोग है।
अनुक्रमणिका
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भाग 126 (मध्यांतर)
 
Last edited:

Lovely Anand

Love is life
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भाग 93

सुगना और सोनू मनोरमा मैडम के घर जाने के लिए तैयार होने लगे दोनों ..

नियति सक्रिय थी कहानी की और कहानी की पटकथा को अपनी कल्पनाओं से आकार दे रही थी..

दोनों बच्चे एंबेसडर कार में बैठकर चहक उठे सूरज आगे ड्राइवर के बगल में बैठ कर उससे ढेरों प्रश्न पूछ रहा था जैसे कार चलाना एक ही पल में सीख लेगा..

मनोरमा की एंबेसडर कार सरयू सिंह की दोनों प्रेमिकाओं को एक दूसरे से मिलाने के लिए लखनऊ की सड़कों पर सरपट दौड़ रही थी और सोनू अपनी मैडम के घर जाने को तैयार बड़े अदब से अपने कपड़े ठीक कर रहा था..

अब आगे

मनोरमा की एंबेसडर कार उसके खूबसूरत बंगले के पोर्च में आकर खड़ी हो गई। सागौन की खूबसूरत लकड़ी से बना विशालकाय दरवाजा खुल गया।

मनोरमा शायद सुगना का इंतजार ही कर रही थी। उसने दरवाजा स्वयं खोला था… घर में इतने सारे नौकर चाकर होने के बावजूद मनोरमा का स्वयं उठकर दरवाजा खोलना यह साबित करता था कि वह सुगना से मिलने को कितना अधीर थी।

ड्राइवर ने उतरकर सुगना की तरफ का कार का दरवाजा खोला और सुगना अपनी साड़ी ठीक करते हुए उतर कर मनोरमा के बंगले के दरवाजे के सामने आ आ गई।

सरयू सिंह के प्यार से सिंचित दो खूबसूरत महिलाएं एक दूसरे के गले लग गई। हर बार की तरह सुगना की कोमल चुचियों ने मनोरमा की चुचियों को अपनी कोमलता और अपने अद्भुत होने का एहसास दिला दिया।

सोनू अपनी पुत्री मधु को लेकर उतर रहा था। वह आश्चर्यचकित था कि ड्राइवर ने उस जैसे नए-नए एसडीएम को छोड़कर सुगना का दरवाजा क्यों खोला था। इसमें जलन की भावना कतई न थी वह इस बात से बेहद प्रभावित था कि सुगना दीदी का आकर्षण सिर्फ उस पर ही नहीं अपितु उनके संपर्क में आए सभी व्यक्तियों पर वैसे ही चढ़ जाता था…..

क्या स्त्री क्या पुरुष .. क्या राजा… क्या रंक ….जिस तरह एक सुंदर बच्चा सबको प्यारा लगता है सुगना भी सबका मन मोहने में सक्षम थी…जितनी सुंदर तन उतना सुंदर मन….. चाहे वह गांव की बूढ़ी औरतें हो या छोटे बच्चे…वह सब की प्यारी थी…..और उन मर्दों का क्या जिनके जांघों के जोड़ पर अब भी हरकत होती थी.. उन्हें तो सुगना शिलाजीत को गोली लगती थी…जिसे देखकर और कल्पना कर वह अपनी पत्नी या महबूबा की अगन बुझाया करते थे।

शायद ड्राइवर भी इस पहली मुलाकात में ही सुगना के तेज और व्यक्तित्व से प्रभावित हो गया था जो वासनाजन्य कतई न था…और शायद इसीलिए उसने उतरकर कार का दरवाजा सुगना के लिए खोला था…

सुगना के बाद मनोरमा ने सोनू का भी अभिवादन किया और सोनू ने अपने दोनों हाथ जोड़कर मनोरमा को प्रणाम किया परंतु सुगना तपाक से बोल पड़ी

"अरे सोनू मैडम जी के पैर छू ये तुम्हारी गुरु हैं…"

सोनू ने झुककर मनोरमा के पैर छुए परंतु मनोरमा ने सोनू को बीच में ही रोक लिया।

जात पात धर्म सबको छोड़ आज सुगना ने सोनू को मनोरमा के चरणों में ला दिया था शायद यह मनोरमा के आत्मीय व्यवहार और उसके कद की देन थी।

आदर और सम्मान आत्मीयता से और बढ़ता है शायद मनोरमा के इस अपनेपन से सुगना प्रभावित हो गई थी।

यद्यपि मनोरमा सुगना से भी उम्र में 8 से 10वर्ष ज्यादा बड़ी थी परंतु सुगना ने मनोरमा के पैर नहीं छूए उन दोनों का रिश्ता सहेलियों का बन चुका था और वह अब भी कायम था।

सूरज को अपनी गोद में उठाकर मनोरमा ने उसे पप्पी दी। सूरज निश्चित ही अनोखा बालक था…उसने पप्पी उधार न रखी और मनोरमा के खूबसूरत होंठों को चूम लिया….मनोरमा को यह अटपटा लगा पर तीन चार वर्ष के बच्चे के बारे में कुछ गलत सोचना अनुचित था मनोरमा ने मुस्कुराते हुए कहा…

"नॉटी बॉय"

सुगना ने सूरज को आंखे दिखाई और सूरज ने एक बार फिर मनोरमा के गालों पर पप्पी देकर पुरानी गलती भुलाने की कोशिश की…

दरअसल सुगना के अत्यधिक लाड प्यार से सूरज कई बार सुगना के होठों पर पप्पी दे दिया करता था और सुगना कभी मना न करती थी पर एक दिन जब उसने लाली के सामने सुगना के होंठो पर पप्पी दी लाली बोल पड़ी..

लगता ई अपना मामा (सोनू) पर जाई..

सुगना और लाली दोनों हसने लगे..उसके बाद सुगना ने सूरज की यह आदत छुड़ाने की कोशिश करने लगी पर कभी कभी सूरज ऐसा कर दिया करता था…उसकी इस आदत की एक और कद्रदान थी वह थी सोनी…. एक तरफ .सुगना सूरज की आदत छुड़ाने को कोशिश करती उधर सोनी को यह बालसुलभ लगाता…उसे उसे सूरज के कोमल होंठ चूसना बेहद आनंददायक लगता और यही हाल सूरज का भी था…

सूरज वैसे भी अनोखा था..और हो भी क्यों न सरयू सिंह जैसे मर्द और सुगना जैसे सुंदरी का पुत्र अनोखा होना था सो था….

सूरज मनोरमा की गोद से उतरकर खेलने लगा..

मनोरमा का ड्राइंग रूम आज भरा भरा लग रहा था….

पिछले एक-दो दिनों में ही मनोरमा का खालीपन अचानक दूर हो गया था…. जैसे उसे कोई नया परिवार मिल गया था… मनोरमा उन सब से तरह-तरह की बातें कर रही थी…. ऐसा लग ही नहीं रहा था जैसे वह एक प्रतिष्ठित प्रशाशनिक अधिकारी थी।

घर ने नौकरों ने मनोरमा को इतना सहज और प्रसन्न शायद ही कभी देखा हो..

सहजता चेहरे पर निखार लाती है…अकड़ तनाव

गप्पे लड़ाई जा रही थीं। बातों के कई टॉपिक सोनू नया-नया एसडीएम बना था मनोरमा कभी उसे प्रशासन के गुण सिखाती कभी सुगना की तारीफ के पुल बांध देती। सुगना और सोनू दोनों मनोरमा के मृदुल व्यवहार के कायल हुए जा रहे थे।

कुछ देर बातें करने के बाद सूरज ने बाहर बगीचा देखने की जिद की और सोनू उसे लेकर मनोरमा का खूबसूरत बगीचा दिखाने लगा।

अंदर से मनोरमा की नौकरानी मधु को लिए ड्राइंग रूम में लेकर आ गई और मनोरमा को देखते हुए बोली मैडम बेबी आपके पास आना चाह रही है।

सुगना ने कौतूहल भरी निगाहों से मनोरमा की तरफ देखा और पूछा..

"कितनी सुंदर है ..किसकी बेटी है यह.."

मनोरमा ने पिंकी को अपनी गोद में ले लिया और अपने आंचल में ढककर झट से अपनी चूचियां पकड़ा दी … सुगना को उसके प्रश्नों का उत्तर मिल चुका था..

सुगना ने अपने दोनों हाथ जोड़े और अपने भगवान को याद करते हुए बोली

"चलिए भगवान ने प्रार्थना सुन ली और आपकी गोद में इस फूल सी बच्ची को दे दिया "

सुगना ने भी अपने हाथ जोड़कर कभी न कभी मनोरमा के लिए दुआ मांगी थी यह अलग बात थी कि उसे इसकी उम्मीद कम ही थी शायद इसीलिए उसने यह जानने की कोशिश न थी कि मनोरमा की गोद भरी या नहीं।

सुगना को क्या पता था कि जिस रसिया ने उसके जीवन में रंग भरे थे उसी रसिया ने मनोरमां की कोख में भी रस भरा था।

जब बच्चे का जिक्र आया तो सुगना ने बड़े अदब से पूछा

"साहब कहां है"

सुगना को इस बात का पता न था कि मनोरमा सेक्रेटरी साहब को छोड़कर अब अकेले रहती है। उसने स्वाभाविक तौर पर यह पूछ लिया परंतु मनोरमा ने कहा "अब वह यहां नहीं रहते"

मनोरमा ने इस बारे में और बातें न की और नौकरानी द्वारा लाए गए नाश्ते को सुगना को देते हुए बोली

"अरे यह ठंडा हो जाएगा पहले इसे खत्म करिए फिर खाना खाते हैं"

सुगना और मनोरमा ने इधर उधर की ढेर सारी बातें की सब मिलजुल कर खाना खाने लगे..

सुगना की पुत्री मधु ( जो दरअसल लाली और सोनू की पुत्री है) और मनोरमा की पुत्री पिंकी दोनों को एक ही पालना में लिटा दिया गया…शायद यह पालना जरूरत से ज्यादा बड़ा था। दोनों एक दूसरे को देखती और एक दूसरे के गालो को छूकर जैसे एक दूसरे को प्यार करती मनोरमा और सुगना उन्हें खेलते देख मुस्कुरा रही थीं। एक और शख्स था जो उन दोनों को एक साथ देख कर बेहद उत्साहित था और वह था छोटा सूरज।

वह अपनी प्लेट से दाल अपनी उंगलियों में लेता और जाकर मधु और पिंकी के कोमल होंठों पर चटा देता .. दोनों अपनी छोटी-छोटी जीभ निकालकर उस दाल के स्वाद का आनंद लेती और खुश हो जाती मनोरमा और सुगना सूरज के इस प्यार को देख रही थी मनोरमा से रहा न गया उसने कहा..

" सूरज अपनी बहन मधु का कितना ख्याल रखता है…?"

सुगना भी यह बात जानती थी परंतु उसने मुस्कुराते हुए कहा

"अरे थोड़ा बड़े होने दीजिए झगड़ा होना पक्का है"

"और इस शैतान पिंकी को तो देखिए सूरज की उंगलियों से कैसे दाल चाट रही है ऐसे खिलाओ तो नखरे दिखाती है" मनोरमा ने फिर कहा..

"लगता है पिंकी का भी बच्चों में मन लग रहा है शायद इसीलिए वह खुश है"

सुगना ने स्वाभाविक उत्तर दिया।

खाना परोस रही युवती के रूप में नियति सारे घटनाक्रम बारीकी से देख रही थी…उसने सूरज के भविष्य में झांकने की कोशिश की…पर कुछ निष्कर्ष निकाल पाने में कामयाब न हो पाई…

खाना लगभग खत्म हो चुका था। और अब बारी थी मनोरमा के खूबसूरत घर को देखने की. सुगना वह घर देखना चाहती थी पर बोल पाने की हिम्मत न जुटा पा रहे थी..

सुगना जब भी मौका मिलता मनोरमा के घर की भव्यता को अपनी आंखें बड़ी-बड़ी कर निहार लेती सुगना ने भव्यता की दुनिया में अब तक कदम न रखा था वह ग्रामीण परिवेश से निकलकर शहर में आज जरूर गई थी परंतु आर्थिक स्थिति इतनी अच्छी न थी।

सुंदर वस्तुएं किसे अच्छी नहीं लगती मनोरमा के घर की हर चीज खूबसूरत थी…

मनोरमा ने सुगना की मनोस्थिति ताड़ ली और बोली चलिए आपको अपना घर दिखाती हूं..

सुगना खुशी-खुशी मनोरमा के साथ चल पड़ी और एक बार फिर बच्चों को संभालने का जिम्मा सोनू पर आ गया।

सुगना को मनोरमा ने पूरा घर दिखाया…जितना सुगना ने पूछा उतना बताया ….और आखरी में सुगना मनोरमा के उस बेडरूम में आ गई जिस पर बीती रात सरयू सिंह और मनोरमा ने जन्नत का आनंद लिया था..

मनोरमा का बिस्तर बेहद खूबसूरत था…पलंग के सिरहाने पर मलमल के कपड़े से तरह-तरह की डिजाइन बनाई गई थी बेड की खूबसूरती देखने लायक थी सुगना से रहा न गया उसने मनोरमा से पूछ लिया यह तो लगता है बिल्कुल नया है…

हां इसी घर में आने के बाद लिया है….

नियति मुस्कुरा रही थी। मनोरमा जैसे सेक्रेटरी साहब को पूरी तरह भूल जाना चाहती थी। नए घर में आते समय वह जानबूझकर उस पुराने पलंग को वहीं छोड़ आई थी जिस पर सेक्रेटरी साहब ने उसकी सुंदर काया का सिर्फ और सिर्फ शोषण किया था।

सुगना ने घर देखने के दौरान यह नोटिस कर लिया था कि पूरे घर में सेक्रेटरी साहब की एक भी फोटो न थी सुगना समझदार महिला थी और उसने शायद यह अंदाजा लगा लिया कि सेक्रेटरी साहब मनोरमा के साथ शायद नहीं रहते…..

मनोरमा और सुगना बिस्तर पर बैठ कर बातें कर रही थी अचानक मनोरमा ने अपने मन की बात सुनना से पूछ ली..

"एक बात बताइए सरयू जी ने विवाह क्यों नहीं किया ?क्या आपको पता है…?"

सुगना को ऐसे प्रश्न की उम्मीद मनोरमा से कतई न थी वह असहज हो गई फिर भी उसने स्वयं को संतुलित किया और बोली..

"मुझे कैसे पता होगा जब उनकी शादी करने की उम्र थी तब तो शायद में पैदा भी नहीं हुई थी.."

बात सच थी मनोरमा के प्रश्न का उत्तर सुगना ने बखूबी दे दिया था…

"परंतु मुझे लगता है सरयू सिंह जी के जीवन में कोई ना कोई महिला अवश्य है" मनोरमा ने गम्भीरता से कहा..

सुगना घबरा गई उसके और सरयू सिंह के बीच के संबंध यदि जगजाहिर होते तो वह कहीं मुंह दिखाने के लायक न रहती। अचानक उसके दिमाग में कजरी का ध्यान आया उसने मनोरमा के प्रश्न को बिल्कुल खारिज न किया अपितु मुस्कुराते हुए बोली

"लगता तो नहीं …..पर होगा भी तो वह बाबूजी ही जाने.."

सुगना ने बाबूजी शब्द पर जोर देकर खुद को मनोरमा के शक से दूर करने को कोशिश की.

"लेकिन आपको ऐसा क्यों लगता है ?" अब की बार सुगना ने प्रश्न किया। मनोरमा तो जैसे ठान कर बैठी थी उस ने मुस्कुराते हुए कहा

" बनारस महोत्सव का वो कमरा याद है…"

"हा"

"मैंने उस कमरे से सरयू सिंह के साथ एक महिला को निकलते हुए देखा था.."

मनोरमा ने इंट्रोगेट करने की शायद पढ़ाई कर रखी थी। उसने एक छोटा झूठ बोलकर सुगना का मन टटोलने की कोशिश की… सुगना स्वयं आश्चर्यचकित थी उसकी सास कजरी कभी उस कमरे में गई न थी .. तो वह औरत कौन थी जो सरयू सिंह के साथ उस कमरे में थी…

सुगना ने बहुत दिमाग दौड़ाया पर वह किसी निष्कर्ष पर न पहुंच पाई। सरयू सिंह ने कजरी और उसके अलावा भी किसी से संबंध बनाए थे यह सुगना के लिए सातवें आश्चर्य से कम न था।

"आपको कोई गलतफहमी हुई होगी बाबूजी एसे कतई नहीं है…" यदि सुगना को सरयू सिंह की कामकला और वासनाजन्य व्यवहार का ज्ञान न होता तो शायद वह मनोरमा को उसके प्रश्न पर पूर्णविराम लगा देती।

मनोरमा ने सुगना की आवाज में आई बेरुखी को पहचान लिया और उसके चेहरे पर बदल चुके भाव को भी पढ़ लिया। शायद सुगना इस प्रश्न उत्तर के दौर से शीघ्र बाहर आना चाह रही थी।

अचानक सुगना का ध्यान मनोरमा के सिरहाने मलमल के कपड़े से बने डिजाइन पर चला गया वह अपनी उंगलियां फिराकर उसकी कोमलता का एहसास करने लगी अचानक उसका हाथ मलमल पर लगे दाग पड़ गया …

"वह बोल उठी अरे इतने सुंदर कढ़ाई पर यह क्या गिर गया है "

मनोरमा ने भी ध्यान दिया कई जगह मलमल के कपड़े पर छोटे-छोटे धब्बे पड़ गए थे ऐसा लग रहा था जैसे दूध या दही की बूंदे उस पर गिर पड़ी थीं।

अचानक मनोरमा को ध्यान आया वह बूंदे और कुछ न थी अपितु वह कल रात हुई घनघोर चूदाई की निशानी थीं…जो कल रात उसने नए और कुवारे बिस्तर पर हुई थी।

उसके सामने वह दृश्य घूम गया जब सरयू सिंह अपने लंड को हांथ में पकड़े अपने स्टैन गन की तरह उसके नग्न शरीर पर वीर्य वर्षा कर रहे थे… निश्चित ही यह वही था…

मनोरमा ने सुगना का ध्यान वहां से खींचने की कोशिश की और बोली..

अभी फर्नीचर वाले को फोन कर उसको ठीक करवाती हूं..

पर सुगना कच्ची खिलाड़ी न थी…सरयू सिंह के साथ तीन चार वर्षो के कामुक जीवन में उसने कामकला और उसके विविध रूप देख लिए थे…उसने अंदाज लगा लिया कि वह निश्चित ही पुरुष वीर्य था…और वह भी ज्यादा पुराना नहीं..…

उसने मनोरमा की तरफ देखते हुए मुस्कुरा कर बोला..

"लगता है साहब… अब भी यहाँ आते रहते हैं…"

इतना कहकर सुगना अपना हाथ धोने चली गई…

यदि उसे पता होता कि वह किसी और का नही अपितु सरयू सिंह का वीर्य था तो शायद सुगना का व्यवहार कुछ और होता।

सुगना का यह मज़ाक मनोरमा न समझ पाई …..

शायद उसे सुगना से इस हद तक जाकर बात करने की उम्मीद न थी…

सुगना ने सोच लिया शायद मनोरमा मैडम भी लाली की विचारधारा की है…हो सकता है कोई सोनू उन्हें भी मिल गया हो…तभी सेक्रेटरी साहब से अलग होने के बाद भी उनके बिस्तर पर प्यार के सबूत कायम थे।

उधर सरयू सिंह सुगना और सोनू के आने की राह देख रहे थे उनका मन गेस्ट हाउस में कतई नहीं लग रहा था बार-बार दिमाग में यही ख्याल आ रहे थे कि सुगना और मनोरमा आपस में क्या बातें कर रही होंगी दिल की धड़कन पड़ी हुई थी..

कहते हैं ज्यादा याद करने से उस व्यक्ति को हिचकियां आने लगती हैं जिसे आप याद कर रहे हैं। शायद यह संयोग था या मनोरमा के चटपटे खाने का असर परंतु सुगना को हिचकियां आना शुरू हो गई।

मनोरमा के कमरे से आ रही सुगना की हिचकीयों की आवाज सोनू ने भी सुनी और वह डाइनिंग टेबल पर पड़ी गिलास में पानी डालकर मनोरमा के कमरे के दरवाजे सामने आकर बोला..

" दीदी पानी पी ल"

"अरे सुगना… सोनू तो तुम्हारा बहुत ख्याल रखता है देखो पानी लेकर आया है" मनोरमा ने मुस्कुराते हुए कहा..

मनोरमा ने सोनू को अंदर बुला लिया और सोनू ने अपने हाथ में लिया हुआ ग्लास सुगना को पकड़ा दिया सुगना ने जैसे ही पानी का घूंट अपने मुंह में लिया एक बार फिर हिचकी आ गई और उसके मुंह से सारा पानी नीचे गिर पड़ा जो उसकी चुचियों पर आ गया।

ब्लाउज के अंदर कैद चूचियां भीगने लगीं। सुगना ने अपने हाथ से पानी हटाने की कोशिश की और इस कोशिश में उसकी चूचियों के बीच की दूधिया घाटी सोनू की निगाहों में आ गई। सोनू की आंखें जैसे चुचियों पर अटक सी गई पानी की बूंदे सुगना की गोरी गोरी चुचियों पर मोतियों की तरह चमक रहीं थी।

एक पल के लिए सोनू के मन में आया कि वह सुगना की चुचियों पर गिरा पानी अपने हाथों से पोंछ दे और उन खूबसूरत और कोमल सूचियां के स्पर्श का अद्भुत आनंद ले ले परंतु मनोरमा मैडम आसपास ही थी सोनू ने अपने हाथ रोक लिए….

सुगना ने तुरंत ही सोनू की नजरों को ताड़ लिया और झट से अपने आंचल से सूचियों को ढकते हुए बोली "लागा ता बाबूजी याद करत बाड़े अब हमनी के चले के चाही…"

सोनू की नजरों ने जो देखा था उसने उसके लंड पर असर कर दिया जो अब उसकी पेंट में तन रहा था….

बिछड़ने का वक्त आ चुका था…

मनोरमा ने बिछड़ते वक़्त एक बार फिर सूरज को अपनी गोद में लिया और गाल में पप्पी दी परंतु इस बार मनोरमा सतर्क थी सूरज के होठों को आगे बढ़ते देख उसने झट से अपने गाल आगे कर दिये.. नटखट सूरज मनोरमा के गालों पर पप्पी लेकर नीचे उतर गया…

इतनी बाते करने के बावजूद मनोरमा उस महिला का नाम जानने में नाकाम रही जिसके हिस्से का अंश वह पिंकी के रूप में अपनी झोली ने ले आई थी..

रास्ते भर सुगना और सोनू मनोरमा की तारीफों के पुल बांधते रहे परंतु मनोरमा के बिस्तर पर वीर्य के निशान देख सुगना का मन कुछ खट्टा हो गया था…

मनोरमा की बंजर हो चुकी कोख को किसने सींचा होगा सुगना के लिए प्रश्न बन चुका था…कही कल बाबूजी मनोरमा के साथ ही तो नहीं थे? एक पल के लिए सुगना के दिमाग में आया परंतु कहां मनोरमा और सरयू सिंह में दूरी जमीन आसमान की थी और शायद यह सुगना की कल्पना से परे था कि सरयू सिंह अपनी भाग्य विधाता को चोद सकते हैं…

मनोरमा के बारे में यदि कोई शख्स बता सकता था तो वह थे उसके बाबूजी शरीर से इसके अलावा सुगना की जिज्ञासा शांत करने वाला और कोई ना था…वह एंबेसडर कार के गेस्ट हाउस पहुंचने की राह देखने लगी..

उधर सोनू अपनी बड़ी बहन सुगना की चुचियों को अपने दिमाग में अनावृत कर रहा था…और और अपनी कल्पनाओं में उन खूबसूरत चुचियों पर अपने गाल रगड़ रहा था…

सुगना और सरयू सिंह दोनों एक दूसरे का इंतजार कर रहे थे पर अपने अपने प्रश्नों और जिज्ञासाओं के साथ…

शेष अगले भाग में…

 

Rani8404

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भाग 92
सरयू सिंह अपने मन में सुखद कल्पनाएं लिए कल्पना लोक में विचरण करने लगे. कई दृश्य धुंधले धुंधले उनके मानस पटल पर घूमने लगे कजरी… पदमा सुगना… और अब मनोरमा….. मानस पटल पर अंकित इन चार देवियों में अब भी सुगना नंबर एक पर ही थी…

सरयू सिंह को यदि यह पता न होता की सुगना उनकी पुत्री है तो वह सुगना को जीवन भर अपनी अर्धांगिनी बनाकर रखते…और सारे जहां की खुशियां उसकी झोली में अब भी डाल रहे होते….

रात बीत रही थी सूरज गोमती नदी के आंचल से निकलकर लखनऊ शहर को रोशन करने के लिए बेताब था।

अब आगे..

आज लखनऊ की सुबह बेहद सुहानी थी… गंगाधर स्टेडियम में सोनू और उसके साथियों के शपथ ग्रहण समारोह के लिए दिव्य व्यवस्था की गई थी… सफेद वस्त्रों से बने पांडाल पर गेंदे के फूल से की गई सजावट देखने लायक थी…बड़े-बड़े कई सारे तोरण द्वार बनाए गए थे। उन पर की गई सजावट सबका मन मोहने वाली थी। सुगना अपने दोनों छोटे बच्चों के साथ सज धज कर तैयार होकर और सोनू और सरयू सिंह के साथ गंगाधर स्टेडियम में प्रवेश कर रही थी।

सुगना इतनी भव्यता की आदी न थी वह आंखें फाड़ फाड़ कर गंगाधर स्टेडियम में की गई सजावट का आनंद ले रही थी.. सुगना यह बात भूल रही थी कि वह स्वयं नियति और नियंता की अनूठी कृति है।


जो स्वयं सबका मन मोहने वाली थी वह गंगाधर स्टेडियम की सजावट में खोई हुई थी वह जिस रास्ते से गुजर रही थी आसपास के लोग उसे एकटक देख रहे थे।

जाने सुगना के शरीर में ऐसा कौन सा आकर्षण था कि हर राह चलता व्यक्ति उसे एकटक देखता रह जाता सांचे में ढली मदमस्त काया साड़ी के आवरण में भी उतनी ही कामुक थी जितनी साड़ी के भीतर।

शिफॉन की साड़ी ने उसकी काया को और उभार दिया था भरी-भरी चूचियां पतली गोरी कमर और भरे पूरे नितंब हर युवा और अधेड़.. सुगना के शरीर पर एक बार अपनी निगाह जरूर फेर लेता। और जिसने उसके कोमल और मासूम चेहरे को देख लिया वह तो जैसे उसका मुरीद हो जाता। एक बार क्या बार-बार जब तक सुगना उसकी निगाहों की के दायरे में रहती वह उस खूबसूरती का आनंद लेता।

सुगना धीरे-धीरे दर्शक दीर्घा में आ गई…

सोनू ने सुगना और सरयू सिंह के बैठने का प्रबंध किया और सुगना का पुत्र सूरज सरयू सिंह की गोद में आकर उनसे खेलने लगा सूरज और सरयू सिंह का प्यार निराला था। सरयू सिंह की उम्र ने सूरज को उन्हें बाबा बोलने पर मजबूर कर दिया था ….

मधु सुगना की गोद में बैठी चारों तरफ एक नए नजारे को देख रही थी उस मासूम को क्या पता था कि आज उसके पिता सोनू एक प्रतिष्ठित पद की शपथ लेने जा रहे थे..

सूट बूट में सोनू एक दूल्हे की तरह लग रहा था था . सुगना ने अधिकतर युवकों को सूट-बूट विवाह समारोह के दौरान ही पहनते देखा था।

सुगना की निगाहें बार-बार सोनू पर टिक जाती और वह अपनी हथेलियों को मोड़ कर अपने कान के पास लाती और मन ही मन सोनू की सारी बलाइयां उतार लेती मन ही मन वह अपने अपने इष्ट देव से सोनू को हर खुशियां और उसकी हर इच्छा पूरी करने के लिए वरदान मांगती.. परंतु शायद सुगना यह नहीं जानती थी कि इस समय सोनू के दिमाग में सिर्फ और सिर्फ एक इच्छा थी और वह सिर्फ सुगना ही पूरा कर सकती थी। और वह इच्छा पाठको की इच्छा से मेल खाती थी।

सुगना की प्रार्थना भगवान ने भी सुनी और नियति ने भी जिस मिलन की प्रतीक्षा सोनू न जाने कब से कर रहा था सुगना ने अनजाने में ही अपने इष्ट देव से सोनू की खुशियों के रूप में वही मांग लिया था..

मंच पर गहमागहमी बढ़ गई…. सभी मानिंद लोक मंच पर आसीन हो चुके थे मुख्य अतिथि का इंतजार अब भी हो रहा था।


अचानक पुलिस वालों के सुरक्षा घेरे में एक महिला आती हुई दिखाई पड़ी। दर्शक दीर्घा में कुछ लोग खड़े हो गए… फिर क्या था… एक के पीछे एक धीरे धीरे सब एक दूसरे का मुंह ताकते ……..परंतु उन्हें खड़ा होते देख स्वयं भी खड़े हो जाते … कुछ ही देर में पंडाल में बैठे सभी लोग खड़े हो गए सुगना और सरयू सिंह भी उनसे अछूते न थे धीरे-धीरे महिला मंच के करीब आ गई।

सुगना की निगाह उस महिला पर पड़ते सुगना बोल उठी…

"अरे यह तो मनोरमा मैडम है…अब तक सरयू सिंह ने भी मनोरमा को देख लिया था जिस मनोरमा को बीती रात उन्होंने जी भर कर चोदा था आज वह चमकती दमकती अपने पूरे शौर्य और ऐश्वर्य में अपने काफिले के साथ इस मंच पर आ चुकी थी।

उद्घोषणा शुरू हो चुकी थी…और सभी अपने अपने मन में चल रहे विचारों को भूलकर उद्घोषणा सुनने में लग गए…

आज मनोरमा के चेहरे पर एक अजब सी चमक थी सरयू सिंह और मनोरमा की निगाहें मिली। मनोरमा ने न चाहते हुए भी सरयू सिंह के चेहरे से अपनी निगाहें हटा ली और सामने बैठी अपनी जनता को सरसरी निगाह से देखने लगी।.

मंच पर बैठने के पश्चात उसने अपनी निगाहों से सुगना को ढूंढने की कोशिश की ….सरयू सिंह के बगल में बैठी सुगना को देखकर मनोरमा ने मुस्कुरा कर सुगना का अभिवादन किया। परंतु सुगना ने अपना हाथ उठाकर मनोरमा का ध्यान अपनी ओर खींचने की कोशिश की। सुगना के मासूमियत भरे अभिवादन से मनोरमा खुद को ना रोक पाई और उसने भी हाथ उठाकर सुगना के अभिवादन का जवाब दे दिया।


दर्शक दीर्घा में बैठे सभी लोग उस शख्स की तरफ देखने लगे जिसके लिए मनोरमा ने अपने हाथ हिलाए थे… सुगना को देखकर सब आश्चर्यचकित थे मनोरमा और सुगना के बीच के संबंध को समझ पाना उनके बस में न था…सरयू सिंह मन ही मन घबरा रहे थे की कहीं सुगना और मनोरमा अपनी बातें एक दूसरे से साझा न कर लें…

डर चेहरे से तेज खींच लेता है…. सरयू सिंह अचानक खुद को निस्तेज महसूस कर रहे थे.. वह वह अपना ध्यान मनोरमा से हटाकर सूरज के साथ खेलने लगे..

उधर मंच पर बैठी मनोरमा सरयू सिंह और सुगना को देख रही थी नियति ने दो अनुपम कलाकृतियों को पूरी तन्मयता से गढ़ा था उम्र का अंतर दरकिनार कर दें तो शायद सरयू सिंह और सुगना खजुराहो की दो मूर्तियों की भांति दिखाई पड़ रहे थे एक बार के लिए मनोरमा ने अपने प्रश्न के उत्तर में सुगना को खड़ा कर लिया परंतु उसका कोमल और तार्किक मन इस बात को मानने को तैयार न था कि सरयू सिंह अपनी पुत्री की उम्र की पुत्रवधू सुगना के साथ ऐसा संबंध रख सकते है…

मंच पर मनोरमा मैडम का उनके कद के अनुरूप भव्य स्वागत किया गया । सरयू सिंह मनोरमा की पद और प्रतिष्ठा के हमेशा से कायल थे और आज उसे सम्मानित होता देख कर स्वयं गदगद हो रहे थे। मनोरमा के सम्मान से उन्होंने खुद को जोड़ लिया था आखिर बीती रात मनोरमा और सरयू सिंह एक ऐसे रिश्ते में आ चुके थे जो शायद आगे भी जारी रह सकता था।

स्वागत भाषण के पश्चात अब बारी थी इस प्रोग्राम के सबसे काबिल और होनहार युवा एसडीएम को बुलाने..की…

सभी प्रतिभागीयों के परिवार के लोग उस व्यक्ति के नाम का इंतजार कर रहे थे जो इस ट्रेनिंग की बाद हुई परीक्षा में अव्वल आया था और जिसे इस कार्यक्रम में सबसे पहले सम्मानित किया जाना था..

प्रतिभागियों के परिवार को शायद इसका अंदाजा न रहा हो परंतु सभी प्रतिभागी यह जानते थे कि उनका कौन इस ट्रेनिंग प्रोग्राम की शान था और वही निर्विवाद रूप से इस ट्रेनिंग प्रोग्राम का सबसे होनहार व्यक्ति था।

उद्घोषक ने मंच पर आकर कहा …

अब वह वक्त आ गया है कि इस ट्रेनिंग प्रोग्राम के सबसे होनहार और लायक प्रतिभागी का नाम आप सबके सामने लाया जाए आप सब को यह जानकर हर्ष होगा कि यह वही काबिल प्रतिभागी हैं जिन्होंने पिछली बार पीसीएस परीक्षा में प्रथम स्थान प्राप्त किया था…

उद्घोषक के कहने से पहले ही भीड़ से संग्राम सिंह …संग्राम सिंह…. की आवाज गूंजने लगी…

अपने सोनू का नाम भीड़ के मुख से सुनकर सुगना आह्लादित हो उठी उसने पीछे मुड़कर देखा। पीछे खड़ी भीड़ गर्व से संग्राम सिंह का नाम ले रही थी।

उद्घोषक ने भीड़ की आवाज थमने का इंतजार किया और बोला आप लोगों ने सही पहचाना वह संग्राम सिंह ही हैं मैं मंच पर उनका स्वागत करता हूं और साथ ही स्वागत करता हूं उनकी बहन सुगना जी का जिनके मार्गदर्शन और सहयोग से संग्राम सिंह जी ने यह मुकाम हासिल किया है। सुगना बगले झांक रही थी…उसे इस आमंत्रण की कतई उम्मीद न थी।

उद्घोषक ने एक बार फिर कहा मैं संग्राम सिंह जी से अनुरोध करता हूं कि अपनी बहन सुगना जी को लेकर मंच पर आएं और मनोरमा जी के द्वारा अपना पुरस्कार प्राप्त करें..

सोनू न जाने किधर से निकलकर सुगना के ठीक सामने आ गया सुगना मंच पर जाने में हिचक रही थी परंतु नाम पुकारा जा चुका था सरयू सिंह ने मधु को सुगना की गोद से लेने की कोशिश की परंतु वह ना मानी और सुगना अपनी गोद में छोटी मधु को लेकर सोनू के साथ मंच की तरफ बढ़ चली…


मंच पर पहुंचकर सुगना को एक अलग ही एहसास हो रहा था सारी निगाहें उसकी तरफ थी। मनोरमा मैडम के पास पहुंचकर मनोरमा ने सोनू और सुगना दोनों से हाथ मिलाया। सुगना की हथेली को छूकर मनोरमा को एहसास हुआ जैसे उसने किसी बेहद मुलायम चीज को छू लिया हो मनोरमा एक बार फिर वही बात सोचने लगी कि ग्रामीण परिवेश में रहने के बावजूद सुगना इतनी सुंदर और इतनी कोमल कैसे थी ।

दो सुंदर महिलाएं और सोनू कैमरे की चकाचौंध में स्वयं को व्यवस्थित कर रहे थे फोटोग्राफी पूरी होने के पश्चात उद्घोषक ने सुगना को माइक देते हुए कहा

"अपने भाई के बारे में कुछ कहना चाहेंगी?"

सुगना का गला रूंध आया अपने भाई की सफलता पर सुगना भाव विभोर थी उसके मुंह से शब्द ना निकले परंतु आंखों से बह रहे खुशी के हाथों ने सुगना की भावनाओं को जनमानस के सामने ला दिया..

सुगना ने अपने कांपते हाथों से माइक पकड़ लिया और अपने बाएं हाथ से अपने खुशी के आंसू पूछते हुए बोली..

"मेरा सोनू निराला है आज उसने हम सब का मान बढ़ाया है मैं भगवान से यही प्रार्थना करूंगी कि उसकी सारी इच्छाएं पूरी हो और वह हमेशा खुश रहे…"

तालियों की गड़गड़ाहट ने एक बार फिर सुगना को भावविभोर कर दिया उसने आगे और कुछ न कहा तथा माइक सोनू को पकड़ा दिया..


आखिरकार माइक सोनू उर्फ संग्राम सिंह के हाथों में आ गया। उसने सब को संबोधित करते हुए कहा मेरी

"मेरी सुगना दीदी मेरा अभिमान है मैंने उनसे बहुत कुछ सीखा है और मैंने यह निश्चय किया है कि जिसने मेरे जीवन को सजा सवार कर मुझे इस लायक बनाया है मैं जीवन भर उनकी सेवा करता रहूंगा मैं इस सफलता में अपनी मां पदमा और अपने सरयू चाचा का भी शुक्रगुजार हूं…"


पंडाल में बैठे लोग एक बार फिर तालियां बजाने लगे। सूरज भी अपनी छोटी-छोटी हथेलियों से अपने मामा सूरज के लिए ताली बजा रहा था।

सुगना और सोनू के इस भावुक क्षण में वासना न जाने कहां गायब हो गई थी समाज में सोनू और सुगना एक आदर्श भाई-बहन के रूप में प्रतिस्थापित हो चुके थे।

सोनू के पश्चात और भी प्रतिभागियों का सम्मान किया गया। सम्मान समारोह के पश्चात सुगना गंगाधर स्टेडियम से बाहर आ गई…वह मनोरमा मैडम से और कुछ बातें करना चाहती थी परंतु मंच पर उसके और मनोरमा मैडम के बीच की दूरी इतनी ज्यादा थी की उसको पाट पाना असंभव था।


सोनू आज बेहद प्रसन्न था. वह अपनी बड़ी बहन सुगना को हर खुशी से नवाजना चाहता था। ट्रेनिंग के पैसे उसके खाते में आ चुके थे और वह अपनी सुगना दीदी की पसंद की हर चीज उसके कदमों में हाजिर करना चाहता था।

बाहर धूप हो चुकी थी सुबह का सुहानापन अब गर्मी का रूप ले चुका था बच्चे असहज महसूस कर रहे थे सोनू ने सुगना से कहा

" रिक्शा कर लीहल जाओ"

"सूरज खुश हो गया और चहकते हुए बोला

"हां मामा"

सोनू ने रास्ते में चलते हुए दो रिक्शे रोक लिए अब बारी रिक्शा में बैठने की थी।


नियति दूर खड़ी नए बनते समीकरणों को देख रही थी सूरज और सरयू सिंह एक रिक्शे में बैठे और दूसरे में सोनू और सुगना। सोनू की गोद में उसकी पुत्री खेल रही थी …. बाहर भीड़ से निकल रहे लोग रिक्शे में बैठे सोनू और सुगना को देखकर अपने मन में सोच रहे थे कि यदि सोनू और सुगना पति-पत्नी होते तो शायद यह दुनिया की सबसे आदर्श जोड़ी होती। गोद में मधु सोनू और सुगना को पति-पत्नी के रूप में सोचने को मजबूर कर रही थी।

राह चलते व्यक्ति के लिए रिक्शे में बैठे स्त्री पुरुष और गोद में छोटे बच्चे को देखकर यह अनुमान लगाना संभव नहीं है कि वह भाई बहन है…

रिक्शा जैसे ही सिग्नल पर खड़ा हुआ पास के रिक्शे में बैठी एक युवा महिला ने सुगना की गोद में खेल रही मधु को देखकर कहा..

" कितनी सुंदर बच्ची है"

साथ बैठी अधेड़ महिला ने कहा

"जब बच्चे के मां बाप इतने सुंदर है तो बच्चा सुंदर होगा ही" औरत ने अपने अनुभव से रिश्ता सोच लिया।

उस औरत की आवाज सुनकर सुगना ने तपाक से जवाब दिया…

"ये मेरा भाई है पति नहीं"

शायद सुगना सोनू के बारे में ही सोच रही थी जिसकी जांघें सुगना से रगड़ खा रही थी। सुगना सचेत थी और सोनू से सुरक्षित दूरी बनाए हुए थी।

स्त्री पुरुष के बीच रिश्तों का सही अनुमान लगाना आपके अनुभव और विचार पर निर्भर करता है जिन लोगों ने मंच पर सुगना और सोनू को आदर्श भाई बहन के रूप में देखा था अब वह रिक्शे पर बैठे सोनू और सुगना को देखकर उन्हें पति पत्नी ही समझने लगे..थे..

वैसे भी रिश्ते भावनाओं के अधीन होते हैं …सामाजिक रिश्ते चाहे जितने भी प्रगाढ़ क्यों न हो यदि उनके बीच वासना ने अपना स्थान बना लिया वह रिश्तो को दीमक की तरह खा जाती है।


सोनू और सुगना जो आज से कुछ समय पहले तक एक आदर्श भाई बहन थे न जाने कब उनके रिश्तो के बीच दीमक लग चुकी थी। यदि सोनू अपने जीवन के पन्ने पलट कर देखें तो इसमें बनारस महोत्सव का ही योगदान माना जाएगा… जिसमें उसने पहली बार सुगना को सिर्फ और सिर्फ एक नाइटी में देखा था शायद उसके अंतर्वस्त्र भी उस समय उसके शरीर पर न थे…उसी महोत्सव के दौरान जब उसने सुगना को लाली समझकर पीछे से पकड़कर उठा लिया था और अपने तने हुए लंड को सुगना के नितंबों में लगभग धसा दिया था।

उसके बाद से वासना एक दीमक की तरह सोनू के दिमाग में अपना घर बना चुकी थी।भाई बहन के रिश्तो को तार-तार करने में सबसे महत्वपूर्ण भूमिका लाली ने अदा की थी जो मुंह बोली बहन होने के बावजूद अपने पति के सहयोग से सोनू से बेहद करीब आ गई थी और अब उसके साथ हर तरह के वासना जन्य कृत्य कर रही थी।

सोनू के कोमल मन पर धीरे धीरे भाई-बहन के बीच संबंधों का मोल कम होता गया था और वासना अपना आकार बढ़ाती जा रही थी.और अब वर्तमान में सोनू सुगना को अपनी बड़ी बहन के रूप में कम अपनी अप्सरा के रूप में ज्यादा देखता था.. और उसे प्रसन्न और खुश करने के लिए जी तोड़ कोशिश करता था…


सोनू और सुगना दोनों शायद एक दूसरे के बारे में ही सोच रहे थे वक्त कब निकल गया पता ही न चला। धीरे-धीरे रिक्शा गेस्ट हाउस में पर पहुंच चुका था…

सोनू रिक्शे से उतरा और सुगना को अपने हाथों का सहारा देकर उतारने की कोशिश की… सुगना की कोमल हथेलियां अपनी हथेलियों में लेते ही सोनू को एक अजब सा एहसास हुआ उसका लंड अपनी जगह पर सतर्क हो गया। रास्ते में दिमाग में चल रही बातें ने उसके लंड पर लार की बूंदे ला दी थी..


वासना सचमुच अपना आकार बढ़ा रही थी।

कमरे में पहुंचकर सुगना और सोनू अभी अपनी पीठ सीधी ही कर रहे थे कि तभी दरवाजे पर दस्तक हुई ..

"कम ईन" सोनू ने आवाज दी।


बाहर खड़े व्यक्ति ने दरवाजा खोला और अंदर आकर बोला

" सर मनोरमा मैडम की गाड़ी आई है उनका ड्राइवर आपको बुला रहा है…"

सोनू घबरा गया…वह उठकर बाहर आया और गेस्ट हाउस के बाहर मनोरमा मैडम की गाड़ी देखकर उसके ड्राइवर के पास गया और बोला

"क्या बात है?"

"मनोरमा मैडम ने यह पर्ची सुगना जी के लिए दी है"

सोनू ने कांपते हाथों से वह पर्ची ली उसके मन में न जाने क्या-क्या चल रहा था । सुगना और मनोरमा की एक दो चार बार ही मुलाकात हुई थी यह बात सोनू भली भांति जानता था परंतु मनोरमा मैडम सुगना दीदी के लिए कोई संदेश भेजें यह उसकी कल्पना से परे था।


वह भागते हुए सुगना के कमरे में आ गया और सुगना से बोला

" दीदी मनोरमा मैडम ने देख तोहरा खातिर का भेजले बाड़ी "

सोनू के हांथ में खत देखकर सुगना ने बेहद उत्सुकता से कहा

"तब पढ़त काहे नइखे"

सोनू ने पढ़ना शुरू किया..

"सुगना जी मैं मंच पर आपसे ज्यादा बातें नहीं कर पाई और आपको समय न दे पाई पर मेरी विनती है कि आप अपने बच्चों सरयू सिंह जी और सोनू के साथ मेरे घर पर आए और दोपहर का भोजन करें इसी दौरान कुछ बातें भी हो जाएंगी… मैं आपका इंतजार कर रही हूं"

मनोरमा का निमंत्रण पाकर सुगना खुश हो गई वह सचमुच मनोरमा से बातें करना चाहती थी सोनू ने जब यह खबर सरयू सिंह को दी उनके होश फाख्ता हो गए एक अनजान डर से उनकी घिग्गी बंध गई उन्होंने कहा

"सोनू बेटा हमरा पेट दुखाता तू लोग जा हम ना जाईब"

सुगना ने भी सरयू सिंह से चलने का अनुरोध किया और बोली

"मनोरमा मैडम राऊर कतना साथ देले बाड़ी आपके जाए के चाहीं"

सरयू सिंह क्या जवाब देते हैं वह मनोरमा का आमंत्रण और और खातिरदारी और अंतरंगता तीनों का आनंद बीती रात ले चुके थे और अब सुगना के साथ जाकर वह वहां कोई असहज स्थिति नहीं पैदा करना चाहते थे।

उनकी दिली इच्छा तो यह थी कि सुगना और मनोरमा कभी ना मिले परंतु नियति को नियंत्रित कर पाना उनके बस में ना था। जब वह स्थिति को नियंत्रित करने में नाकाम रहे उन्होंने पलायन करना ही उचित समझा और सब कुछ ऊपर वाले के हवाले छोड़ कर चादर तान कर सो गए।

सुगना और सोनू मनोरमा मैडम के घर जाने के लिए तैयार होने लगे दोनों ..

नियति सक्रिय थी कहानी की और कहानी की पटकथा को अपनी कल्पनाओं से आकार दे रही थी..

दोनों बच्चे एंबेसडर कार में बैठकर चहक उठे सूरज आगे ड्राइवर के बगल में बैठ कर उससे ढेरों प्रश्न पूछ रहा था जैसे कार चलाना एक ही पल में सीख लेगा..

मनोरमा की एंबेसडर कार सरयू सिंह की दोनों प्रेमिकाओं को एक दूसरे से मिलाने के लिए लखनऊ की सड़कों पर सरपट दौड़ रही थी और सोनू अपनी मैडम के घर जाने को तैयार बड़े अदब से अपने कपड़े ठीक कर रहा था..

कुछ होने वाला था…

शेष अगले भाग में…



पाठकों की संख्या मन मुताबिक होने के कारण मैं यह अपडेट कहानी के पटल पर डाल रहा हूं।

पर अपडेट 90और 91 ऑन रिक्वेस्ट ही उपल्ब्ध है..

जिन पाठकों की इस अपडेट पर प्रतिक्रिया आ जाएगी उन्हें अगला अपडेट एक बार फिर भेज दिया जाएगा आप सबका साथ ही इस कहानी को आगे बढ़ाएगा जुड़े रहिए और कहानी का आनंद लेते रहे धन्यवाद
Love triangle OH it's quadrilateral
 

Rani8404

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भाग 93

सुगना और सोनू मनोरमा मैडम के घर जाने के लिए तैयार होने लगे दोनों ..

नियति सक्रिय थी कहानी की और कहानी की पटकथा को अपनी कल्पनाओं से आकार दे रही थी..

दोनों बच्चे एंबेसडर कार में बैठकर चहक उठे सूरज आगे ड्राइवर के बगल में बैठ कर उससे ढेरों प्रश्न पूछ रहा था जैसे कार चलाना एक ही पल में सीख लेगा..


मनोरमा की एंबेसडर कार सरयू सिंह की दोनों प्रेमिकाओं को एक दूसरे से मिलाने के लिए लखनऊ की सड़कों पर सरपट दौड़ रही थी और सोनू अपनी मैडम के घर जाने को तैयार बड़े अदब से अपने कपड़े ठीक कर रहा था..

अब आगे

मनोरमा की एंबेसडर कार उसके खूबसूरत बंगले के पोर्च में आकर खड़ी हो गई। सागौन की खूबसूरत लकड़ी से बना विशालकाय दरवाजा खुल गया।

मनोरमा शायद सुगना का इंतजार ही कर रही थी। उसने दरवाजा स्वयं खोला था… घर में इतने सारे नौकर चाकर होने के बावजूद मनोरमा का स्वयं उठकर दरवाजा खोलना यह साबित करता था कि वह सुगना से मिलने को कितना अधीर थी।

ड्राइवर ने उतरकर सुगना की तरफ का कार का दरवाजा खोला और सुगना अपनी साड़ी ठीक करते हुए उतर कर मनोरमा के बंगले के दरवाजे के सामने आ आ गई।


सरयू सिंह के प्यार से सिंचित दो खूबसूरत महिलाएं एक दूसरे के गले लग गई। हर बार की तरह सुगना की कोमल चुचियों ने मनोरमा की चुचियों को अपनी कोमलता और अपने अद्भुत होने का एहसास दिला दिया।

सोनू अपनी पुत्री मधु को लेकर उतर रहा था। वह आश्चर्यचकित था कि ड्राइवर ने उस जैसे नए-नए एसडीएम को छोड़कर सुगना का दरवाजा क्यों खोला था। इसमें जलन की भावना कतई न थी वह इस बात से बेहद प्रभावित था कि सुगना दीदी का आकर्षण सिर्फ उस पर ही नहीं अपितु उनके संपर्क में आए सभी व्यक्तियों पर वैसे ही चढ़ जाता था…..

क्या स्त्री क्या पुरुष .. क्या राजा… क्या रंक ….जिस तरह एक सुंदर बच्चा सबको प्यारा लगता है सुगना भी सबका मन मोहने में सक्षम थी…जितनी सुंदर तन उतना सुंदर मन….. चाहे वह गांव की बूढ़ी औरतें हो या छोटे बच्चे…वह सब की प्यारी थी…..और उन मर्दों का क्या जिनके जांघों के जोड़ पर अब भी हरकत होती थी.. उन्हें तो सुगना शिलाजीत को गोली लगती थी…जिसे देखकर और कल्पना कर वह अपनी पत्नी या महबूबा की अगन बुझाया करते थे।

शायद ड्राइवर भी इस पहली मुलाकात में ही सुगना के तेज और व्यक्तित्व से प्रभावित हो गया था जो वासनाजन्य कतई न था…और शायद इसीलिए उसने उतरकर कार का दरवाजा सुगना के लिए खोला था…

सुगना के बाद मनोरमा ने सोनू का भी अभिवादन किया और सोनू ने अपने दोनों हाथ जोड़कर मनोरमा को प्रणाम किया परंतु सुगना तपाक से बोल पड़ी

"अरे सोनू मैडम जी के पैर छू ये तुम्हारी गुरु हैं…"

सोनू ने झुककर मनोरमा के पैर छुए परंतु मनोरमा ने सोनू को बीच में ही रोक लिया।

जात पात धर्म सबको छोड़ आज सुगना ने सोनू को मनोरमा के चरणों में ला दिया था शायद यह मनोरमा के आत्मीय व्यवहार और उसके कद की देन थी।

आदर और सम्मान आत्मीयता से और बढ़ता है शायद मनोरमा के इस अपनेपन से सुगना प्रभावित हो गई थी।

यद्यपि मनोरमा सुगना से भी उम्र में 8 से 10वर्ष ज्यादा बड़ी थी परंतु सुगना ने मनोरमा के पैर नहीं छूए उन दोनों का रिश्ता सहेलियों का बन चुका था और वह अब भी कायम था।

सूरज को अपनी गोद में उठाकर मनोरमा ने उसे पप्पी दी। सूरज निश्चित ही अनोखा बालक था…उसने पप्पी उधार न रखी और मनोरमा के खूबसूरत होंठों को चूम लिया….मनोरमा को यह अटपटा लगा पर तीन चार वर्ष के बच्चे के बारे में कुछ गलत सोचना अनुचित था मनोरमा ने मुस्कुराते हुए कहा…

"नॉटी बॉय"

सुगना ने सूरज को आंखे दिखाई और सूरज ने एक बार फिर मनोरमा के गालों पर पप्पी देकर पुरानी गलती भुलाने की कोशिश की…

दरअसल सुगना के अत्यधिक लाड प्यार से सूरज कई बार सुगना के होठों पर पप्पी दे दिया करता था और सुगना कभी मना न करती थी पर एक दिन जब उसने लाली के सामने सुगना के होंठो पर पप्पी दी लाली बोल पड़ी..

लगता ई अपना मामा (सोनू) पर जाई..

सुगना और लाली दोनों हसने लगे..उसके बाद सुगना ने सूरज की यह आदत छुड़ाने की कोशिश करने लगी पर कभी कभी सूरज ऐसा कर दिया करता था…उसकी इस आदत की एक और कद्रदान थी वह थी सोनी…. एक तरफ .सुगना सूरज की आदत छुड़ाने को कोशिश करती उधर सोनी को यह बालसुलभ लगाता…उसे उसे सूरज के कोमल होंठ चूसना बेहद आनंददायक लगता और यही हाल सूरज का भी था…

सूरज वैसे भी अनोखा था..और हो भी क्यों न सरयू सिंह जैसे मर्द और सुगना जैसे सुंदरी का पुत्र अनोखा होना था सो था….

सूरज मनोरमा की गोद से उतरकर खेलने लगा..

मनोरमा का ड्राइंग रूम आज भरा भरा लग रहा था….


पिछले एक-दो दिनों में ही मनोरमा का खालीपन अचानक दूर हो गया था…. जैसे उसे कोई नया परिवार मिल गया था… मनोरमा उन सब से तरह-तरह की बातें कर रही थी…. ऐसा लग ही नहीं रहा था जैसे वह एक प्रतिष्ठित प्रशाशनिक अधिकारी थी।

घर ने नौकरों ने मनोरमा को इतना सहज और प्रसन्न शायद ही कभी देखा हो..

सहजता चेहरे पर निखार लाती है…अकड़ तनाव

गप्पे लड़ाई जा रही थीं। बातों के कई टॉपिक सोनू नया-नया एसडीएम बना था मनोरमा कभी उसे प्रशासन के गुण सिखाती कभी सुगना की तारीफ के पुल बांध देती। सुगना और सोनू दोनों मनोरमा के मृदुल व्यवहार के कायल हुए जा रहे थे।

कुछ देर बातें करने के बाद सूरज ने बाहर बगीचा देखने की जिद की और सोनू उसे लेकर मनोरमा का खूबसूरत बगीचा दिखाने लगा।

अंदर से मनोरमा की नौकरानी मधु को लिए ड्राइंग रूम में लेकर आ गई और मनोरमा को देखते हुए बोली मैडम बेबी आपके पास आना चाह रही है।

सुगना ने कौतूहल भरी निगाहों से मनोरमा की तरफ देखा और पूछा..

"कितनी सुंदर है ..किसकी बेटी है यह.."

मनोरमा ने पिंकी को अपनी गोद में ले लिया और अपने आंचल में ढककर झट से अपनी चूचियां पकड़ा दी … सुगना को उसके प्रश्नों का उत्तर मिल चुका था..

सुगना ने अपने दोनों हाथ जोड़े और अपने भगवान को याद करते हुए बोली


"चलिए भगवान ने प्रार्थना सुन ली और आपकी गोद में इस फूल सी बच्ची को दे दिया "

सुगना ने भी अपने हाथ जोड़कर कभी न कभी मनोरमा के लिए दुआ मांगी थी यह अलग बात थी कि उसे इसकी उम्मीद कम ही थी शायद इसीलिए उसने यह जानने की कोशिश न थी कि मनोरमा की गोद भरी या नहीं।

सुगना को क्या पता था कि जिस रसिया ने उसके जीवन में रंग भरे थे उसी रसिया ने मनोरमां की कोख में भी रस भरा था।

जब बच्चे का जिक्र आया तो सुगना ने बड़े अदब से पूछा

"साहब कहां है"

सुगना को इस बात का पता न था कि मनोरमा सेक्रेटरी साहब को छोड़कर अब अकेले रहती है। उसने स्वाभाविक तौर पर यह पूछ लिया परंतु मनोरमा ने कहा "अब वह यहां नहीं रहते"


मनोरमा ने इस बारे में और बातें न की और नौकरानी द्वारा लाए गए नाश्ते को सुगना को देते हुए बोली

"अरे यह ठंडा हो जाएगा पहले इसे खत्म करिए फिर खाना खाते हैं"

सुगना और मनोरमा ने इधर उधर की ढेर सारी बातें की सब मिलजुल कर खाना खाने लगे..

सुगना की पुत्री मधु ( जो दरअसल लाली और सोनू की पुत्री है) और मनोरमा की पुत्री पिंकी दोनों को एक ही पालना में लिटा दिया गया…शायद यह पालना जरूरत से ज्यादा बड़ा था। दोनों एक दूसरे को देखती और एक दूसरे के गालो को छूकर जैसे एक दूसरे को प्यार करती मनोरमा और सुगना उन्हें खेलते देख मुस्कुरा रही थीं। एक और शख्स था जो उन दोनों को एक साथ देख कर बेहद उत्साहित था और वह था छोटा सूरज।

वह अपनी प्लेट से दाल अपनी उंगलियों में लेता और जाकर मधु और पिंकी के कोमल होंठों पर चटा देता .. दोनों अपनी छोटी-छोटी जीभ निकालकर उस दाल के स्वाद का आनंद लेती और खुश हो जाती मनोरमा और सुगना सूरज के इस प्यार को देख रही थी मनोरमा से रहा न गया उसने कहा..

" सूरज अपनी बहन मधु का कितना ख्याल रखता है…?"

सुगना भी यह बात जानती थी परंतु उसने मुस्कुराते हुए कहा

"अरे थोड़ा बड़े होने दीजिए झगड़ा होना पक्का है"

"और इस शैतान पिंकी को तो देखिए सूरज की उंगलियों से कैसे दाल चाट रही है ऐसे खिलाओ तो नखरे दिखाती है" मनोरमा ने फिर कहा..

"लगता है पिंकी का भी बच्चों में मन लग रहा है शायद इसीलिए वह खुश है"

सुगना ने स्वाभाविक उत्तर दिया।

खाना परोस रही युवती के रूप में नियति सारे घटनाक्रम बारीकी से देख रही थी…उसने सूरज के भविष्य में झांकने की कोशिश की…पर कुछ निष्कर्ष निकाल पाने में कामयाब न हो पाई…


खाना लगभग खत्म हो चुका था। और अब बारी थी मनोरमा के खूबसूरत घर को देखने की. सुगना वह घर देखना चाहती थी पर बोल पाने की हिम्मत न जुटा पा रहे थी..

सुगना जब भी मौका मिलता मनोरमा के घर की भव्यता को अपनी आंखें बड़ी-बड़ी कर निहार लेती सुगना ने भव्यता की दुनिया में अब तक कदम न रखा था वह ग्रामीण परिवेश से निकलकर शहर में आज जरूर गई थी परंतु आर्थिक स्थिति इतनी अच्छी न थी।

सुंदर वस्तुएं किसे अच्छी नहीं लगती मनोरमा के घर की हर चीज खूबसूरत थी…

मनोरमा ने सुगना की मनोस्थिति ताड़ ली और बोली चलिए आपको अपना घर दिखाती हूं..

सुगना खुशी-खुशी मनोरमा के साथ चल पड़ी और एक बार फिर बच्चों को संभालने का जिम्मा सोनू पर आ गया।

सुगना को मनोरमा ने पूरा घर दिखाया…जितना सुगना ने पूछा उतना बताया ….और आखरी में सुगना मनोरमा के उस बेडरूम में आ गई जिस पर बीती रात सरयू सिंह और मनोरमा ने जन्नत का आनंद लिया था..

मनोरमा का बिस्तर बेहद खूबसूरत था…पलंग के सिरहाने पर मलमल के कपड़े से तरह-तरह की डिजाइन बनाई गई थी बेड की खूबसूरती देखने लायक थी सुगना से रहा न गया उसने मनोरमा से पूछ लिया यह तो लगता है बिल्कुल नया है…

हां इसी घर में आने के बाद लिया है….

नियति मुस्कुरा रही थी। मनोरमा जैसे सेक्रेटरी साहब को पूरी तरह भूल जाना चाहती थी। नए घर में आते समय वह जानबूझकर उस पुराने पलंग को वहीं छोड़ आई थी जिस पर सेक्रेटरी साहब ने उसकी सुंदर काया का सिर्फ और सिर्फ शोषण किया था।

सुगना ने घर देखने के दौरान यह नोटिस कर लिया था कि पूरे घर में सेक्रेटरी साहब की एक भी फोटो न थी सुगना समझदार महिला थी और उसने शायद यह अंदाजा लगा लिया कि सेक्रेटरी साहब मनोरमा के साथ शायद नहीं रहते…..

मनोरमा और सुगना बिस्तर पर बैठ कर बातें कर रही थी अचानक मनोरमा ने अपने मन की बात सुनना से पूछ ली..

"एक बात बताइए सरयू जी ने विवाह क्यों नहीं किया ?क्या आपको पता है…?"

सुगना को ऐसे प्रश्न की उम्मीद मनोरमा से कतई न थी वह असहज हो गई फिर भी उसने स्वयं को संतुलित किया और बोली..

"मुझे कैसे पता होगा जब उनकी शादी करने की उम्र थी तब तो शायद में पैदा भी नहीं हुई थी.."

बात सच थी मनोरमा के प्रश्न का उत्तर सुगना ने बखूबी दे दिया था…

"परंतु मुझे लगता है सरयू सिंह जी के जीवन में कोई ना कोई महिला अवश्य है" मनोरमा ने गम्भीरता से कहा..

सुगना घबरा गई उसके और सरयू सिंह के बीच के संबंध यदि जगजाहिर होते तो वह कहीं मुंह दिखाने के लायक न रहती। अचानक उसके दिमाग में कजरी का ध्यान आया उसने मनोरमा के प्रश्न को बिल्कुल खारिज न किया अपितु मुस्कुराते हुए बोली

"लगता तो नहीं …..पर होगा भी तो वह बाबूजी ही जाने.."

सुगना ने बाबूजी शब्द पर जोर देकर खुद को मनोरमा के शक से दूर करने को कोशिश की.

"लेकिन आपको ऐसा क्यों लगता है ?" अब की बार सुगना ने प्रश्न किया। मनोरमा तो जैसे ठान कर बैठी थी उस ने मुस्कुराते हुए कहा

" बनारस महोत्सव का वो कमरा याद है…"

"हा"

"मैंने उस कमरे से सरयू सिंह के साथ एक महिला को निकलते हुए देखा था.."

मनोरमा ने इंट्रोगेट करने की शायद पढ़ाई कर रखी थी। उसने एक छोटा झूठ बोलकर सुगना का मन टटोलने की कोशिश की… सुगना स्वयं आश्चर्यचकित थी उसकी सास कजरी कभी उस कमरे में गई न थी .. तो वह औरत कौन थी जो सरयू सिंह के साथ उस कमरे में थी…

सुगना ने बहुत दिमाग दौड़ाया पर वह किसी निष्कर्ष पर न पहुंच पाई। सरयू सिंह ने कजरी और उसके अलावा भी किसी से संबंध बनाए थे यह सुगना के लिए सातवें आश्चर्य से कम न था।

"आपको कोई गलतफहमी हुई होगी बाबूजी एसे कतई नहीं है…" यदि सुगना को सरयू सिंह की कामकला और वासनाजन्य व्यवहार का ज्ञान न होता तो शायद वह मनोरमा को उसके प्रश्न पर पूर्णविराम लगा देती।

मनोरमा ने सुगना की आवाज में आई बेरुखी को पहचान लिया और उसके चेहरे पर बदल चुके भाव को भी पढ़ लिया। शायद सुगना इस प्रश्न उत्तर के दौर से शीघ्र बाहर आना चाह रही थी।

अचानक सुगना का ध्यान मनोरमा के सिरहाने मलमल के कपड़े से बने डिजाइन पर चला गया वह अपनी उंगलियां फिराकर उसकी कोमलता का एहसास करने लगी अचानक उसका हाथ मलमल पर लगे दाग पड़ गया …

"वह बोल उठी अरे इतने सुंदर कढ़ाई पर यह क्या गिर गया है "

मनोरमा ने भी ध्यान दिया कई जगह मलमल के कपड़े पर छोटे-छोटे धब्बे पड़ गए थे ऐसा लग रहा था जैसे दूध या दही की बूंदे उस पर गिर पड़ी थीं।


अचानक मनोरमा को ध्यान आया वह बूंदे और कुछ न थी अपितु वह कल रात हुई घनघोर चूदाई की निशानी थीं…जो कल रात उसने नए और कुवारे बिस्तर पर हुई थी।

उसके सामने वह दृश्य घूम गया जब सरयू सिंह अपने लंड को हांथ में पकड़े अपने स्टैन गन की तरह उसके नग्न शरीर पर वीर्य वर्षा कर रहे थे… निश्चित ही यह वही था…


मनोरमा ने सुगना का ध्यान वहां से खींचने की कोशिश की और बोली..

अभी फर्नीचर वाले को फोन कर उसको ठीक करवाती हूं..

पर सुगना कच्ची खिलाड़ी न थी…सरयू सिंह के साथ तीन चार वर्षो के कामुक जीवन में उसने कामकला और उसके विविध रूप देख लिए थे…उसने अंदाज लगा लिया कि वह निश्चित ही पुरुष वीर्य था…और वह भी ज्यादा पुराना नहीं..…

उसने मनोरमा की तरफ देखते हुए मुस्कुरा कर बोला..

"लगता है साहब… अब भी यहाँ आते रहते हैं…"

इतना कहकर सुगना अपना हाथ धोने चली गई…

यदि उसे पता होता कि वह किसी और का नही अपितु सरयू सिंह का वीर्य था तो शायद सुगना का व्यवहार कुछ और होता।

सुगना का यह मज़ाक मनोरमा न समझ पाई …..

शायद उसे सुगना से इस हद तक जाकर बात करने की उम्मीद न थी…

सुगना ने सोच लिया शायद मनोरमा मैडम भी लाली की विचारधारा की है…हो सकता है कोई सोनू उन्हें भी मिल गया हो…तभी सेक्रेटरी साहब से अलग होने के बाद भी उनके बिस्तर पर प्यार के सबूत कायम थे।

उधर सरयू सिंह सुगना और सोनू के आने की राह देख रहे थे उनका मन गेस्ट हाउस में कतई नहीं लग रहा था बार-बार दिमाग में यही ख्याल आ रहे थे कि सुगना और मनोरमा आपस में क्या बातें कर रही होंगी दिल की धड़कन पड़ी हुई थी..

कहते हैं ज्यादा याद करने से उस व्यक्ति को हिचकियां आने लगती हैं जिसे आप याद कर रहे हैं। शायद यह संयोग था या मनोरमा के चटपटे खाने का असर परंतु सुगना को हिचकियां आना शुरू हो गई।

मनोरमा के कमरे से आ रही सुगना की हिचकीयों की आवाज सोनू ने भी सुनी और वह डाइनिंग टेबल पर पड़ी गिलास में पानी डालकर मनोरमा के कमरे के दरवाजे सामने आकर बोला..

" दीदी पानी पी ल"

"अरे सुगना… सोनू तो तुम्हारा बहुत ख्याल रखता है देखो पानी लेकर आया है" मनोरमा ने मुस्कुराते हुए कहा..

मनोरमा ने सोनू को अंदर बुला लिया और सोनू ने अपने हाथ में लिया हुआ ग्लास सुगना को पकड़ा दिया सुगना ने जैसे ही पानी का घूंट अपने मुंह में लिया एक बार फिर हिचकी आ गई और उसके मुंह से सारा पानी नीचे गिर पड़ा जो उसकी चुचियों पर आ गया।


ब्लाउज के अंदर कैद चूचियां भीगने लगीं। सुगना ने अपने हाथ से पानी हटाने की कोशिश की और इस कोशिश में उसकी चूचियों के बीच की दूधिया घाटी सोनू की निगाहों में आ गई। सोनू की आंखें जैसे चुचियों पर अटक सी गई पानी की बूंदे सुगना की गोरी गोरी चुचियों पर मोतियों की तरह चमक रहीं थी।

एक पल के लिए सोनू के मन में आया कि वह सुगना की चुचियों पर गिरा पानी अपने हाथों से पोंछ दे और उन खूबसूरत और कोमल सूचियां के स्पर्श का अद्भुत आनंद ले ले परंतु मनोरमा मैडम आसपास ही थी सोनू ने अपने हाथ रोक लिए….


सुगना ने तुरंत ही सोनू की नजरों को ताड़ लिया और झट से अपने आंचल से सूचियों को ढकते हुए बोली "लागा ता बाबूजी याद करत बाड़े अब हमनी के चले के चाही…"

सोनू की नजरों ने जो देखा था उसने उसके लंड पर असर कर दिया जो अब उसकी पेंट में तन रहा था….

बिछड़ने का वक्त आ चुका था…

मनोरमा ने बिछड़ते वक़्त एक बार फिर सूरज को अपनी गोद में लिया और गाल में पप्पी दी परंतु इस बार मनोरमा सतर्क थी सूरज के होठों को आगे बढ़ते देख उसने झट से अपने गाल आगे कर दिये.. नटखट सूरज मनोरमा के गालों पर पप्पी लेकर नीचे उतर गया…

इतनी बाते करने के बावजूद मनोरमा उस महिला का नाम जानने में नाकाम रही जिसके हिस्से का अंश वह पिंकी के रूप में अपनी झोली ने ले आई थी..

रास्ते भर सुगना और सोनू मनोरमा की तारीफों के पुल बांधते रहे परंतु मनोरमा के बिस्तर पर वीर्य के निशान देख सुगना का मन कुछ खट्टा हो गया था…

मनोरमा की बंजर हो चुकी कोख को किसने सींचा होगा सुगना के लिए प्रश्न बन चुका था…कही कल बाबूजी मनोरमा के साथ ही तो नहीं थे? एक पल के लिए सुगना के दिमाग में आया परंतु कहां मनोरमा और सरयू सिंह में दूरी जमीन आसमान की थी और शायद यह सुगना की कल्पना से परे था कि सरयू सिंह अपनी भाग्य विधाता को चोद सकते हैं…

मनोरमा के बारे में यदि कोई शख्स बता सकता था तो वह थे उसके बाबूजी शरीर से इसके अलावा सुगना की जिज्ञासा शांत करने वाला और कोई ना था…वह एंबेसडर कार के गेस्ट हाउस पहुंचने की राह देखने लगी..

उधर सोनू अपनी बड़ी बहन सुगना की चुचियों को अपने दिमाग में अनावृत कर रहा था…और और अपनी कल्पनाओं में उन खूबसूरत चुचियों पर अपने गाल रगड़ रहा था…

सुगना और सरयू सिंह दोनों एक दूसरे का इंतजार कर रहे थे पर अपने अपने प्रश्नों और जिज्ञासाओं के साथ…

शेष अगले भाग में…
Now manorama and Sugna on same boat
 

Mastmalang

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भाग 93

सुगना और सोनू मनोरमा मैडम के घर जाने के लिए तैयार होने लगे दोनों ..

नियति सक्रिय थी कहानी की और कहानी की पटकथा को अपनी कल्पनाओं से आकार दे रही थी..

दोनों बच्चे एंबेसडर कार में बैठकर चहक उठे सूरज आगे ड्राइवर के बगल में बैठ कर उससे ढेरों प्रश्न पूछ रहा था जैसे कार चलाना एक ही पल में सीख लेगा..


मनोरमा की एंबेसडर कार सरयू सिंह की दोनों प्रेमिकाओं को एक दूसरे से मिलाने के लिए लखनऊ की सड़कों पर सरपट दौड़ रही थी और सोनू अपनी मैडम के घर जाने को तैयार बड़े अदब से अपने कपड़े ठीक कर रहा था..

अब आगे

मनोरमा की एंबेसडर कार उसके खूबसूरत बंगले के पोर्च में आकर खड़ी हो गई। सागौन की खूबसूरत लकड़ी से बना विशालकाय दरवाजा खुल गया।

मनोरमा शायद सुगना का इंतजार ही कर रही थी। उसने दरवाजा स्वयं खोला था… घर में इतने सारे नौकर चाकर होने के बावजूद मनोरमा का स्वयं उठकर दरवाजा खोलना यह साबित करता था कि वह सुगना से मिलने को कितना अधीर थी।

ड्राइवर ने उतरकर सुगना की तरफ का कार का दरवाजा खोला और सुगना अपनी साड़ी ठीक करते हुए उतर कर मनोरमा के बंगले के दरवाजे के सामने आ आ गई।


सरयू सिंह के प्यार से सिंचित दो खूबसूरत महिलाएं एक दूसरे के गले लग गई। हर बार की तरह सुगना की कोमल चुचियों ने मनोरमा की चुचियों को अपनी कोमलता और अपने अद्भुत होने का एहसास दिला दिया।

सोनू अपनी पुत्री मधु को लेकर उतर रहा था। वह आश्चर्यचकित था कि ड्राइवर ने उस जैसे नए-नए एसडीएम को छोड़कर सुगना का दरवाजा क्यों खोला था। इसमें जलन की भावना कतई न थी वह इस बात से बेहद प्रभावित था कि सुगना दीदी का आकर्षण सिर्फ उस पर ही नहीं अपितु उनके संपर्क में आए सभी व्यक्तियों पर वैसे ही चढ़ जाता था…..

क्या स्त्री क्या पुरुष .. क्या राजा… क्या रंक ….जिस तरह एक सुंदर बच्चा सबको प्यारा लगता है सुगना भी सबका मन मोहने में सक्षम थी…जितनी सुंदर तन उतना सुंदर मन….. चाहे वह गांव की बूढ़ी औरतें हो या छोटे बच्चे…वह सब की प्यारी थी…..और उन मर्दों का क्या जिनके जांघों के जोड़ पर अब भी हरकत होती थी.. उन्हें तो सुगना शिलाजीत को गोली लगती थी…जिसे देखकर और कल्पना कर वह अपनी पत्नी या महबूबा की अगन बुझाया करते थे।

शायद ड्राइवर भी इस पहली मुलाकात में ही सुगना के तेज और व्यक्तित्व से प्रभावित हो गया था जो वासनाजन्य कतई न था…और शायद इसीलिए उसने उतरकर कार का दरवाजा सुगना के लिए खोला था…

सुगना के बाद मनोरमा ने सोनू का भी अभिवादन किया और सोनू ने अपने दोनों हाथ जोड़कर मनोरमा को प्रणाम किया परंतु सुगना तपाक से बोल पड़ी

"अरे सोनू मैडम जी के पैर छू ये तुम्हारी गुरु हैं…"

सोनू ने झुककर मनोरमा के पैर छुए परंतु मनोरमा ने सोनू को बीच में ही रोक लिया।

जात पात धर्म सबको छोड़ आज सुगना ने सोनू को मनोरमा के चरणों में ला दिया था शायद यह मनोरमा के आत्मीय व्यवहार और उसके कद की देन थी।

आदर और सम्मान आत्मीयता से और बढ़ता है शायद मनोरमा के इस अपनेपन से सुगना प्रभावित हो गई थी।

यद्यपि मनोरमा सुगना से भी उम्र में 8 से 10वर्ष ज्यादा बड़ी थी परंतु सुगना ने मनोरमा के पैर नहीं छूए उन दोनों का रिश्ता सहेलियों का बन चुका था और वह अब भी कायम था।

सूरज को अपनी गोद में उठाकर मनोरमा ने उसे पप्पी दी। सूरज निश्चित ही अनोखा बालक था…उसने पप्पी उधार न रखी और मनोरमा के खूबसूरत होंठों को चूम लिया….मनोरमा को यह अटपटा लगा पर तीन चार वर्ष के बच्चे के बारे में कुछ गलत सोचना अनुचित था मनोरमा ने मुस्कुराते हुए कहा…

"नॉटी बॉय"

सुगना ने सूरज को आंखे दिखाई और सूरज ने एक बार फिर मनोरमा के गालों पर पप्पी देकर पुरानी गलती भुलाने की कोशिश की…

दरअसल सुगना के अत्यधिक लाड प्यार से सूरज कई बार सुगना के होठों पर पप्पी दे दिया करता था और सुगना कभी मना न करती थी पर एक दिन जब उसने लाली के सामने सुगना के होंठो पर पप्पी दी लाली बोल पड़ी..

लगता ई अपना मामा (सोनू) पर जाई..

सुगना और लाली दोनों हसने लगे..उसके बाद सुगना ने सूरज की यह आदत छुड़ाने की कोशिश करने लगी पर कभी कभी सूरज ऐसा कर दिया करता था…उसकी इस आदत की एक और कद्रदान थी वह थी सोनी…. एक तरफ .सुगना सूरज की आदत छुड़ाने को कोशिश करती उधर सोनी को यह बालसुलभ लगाता…उसे उसे सूरज के कोमल होंठ चूसना बेहद आनंददायक लगता और यही हाल सूरज का भी था…

सूरज वैसे भी अनोखा था..और हो भी क्यों न सरयू सिंह जैसे मर्द और सुगना जैसे सुंदरी का पुत्र अनोखा होना था सो था….

सूरज मनोरमा की गोद से उतरकर खेलने लगा..

मनोरमा का ड्राइंग रूम आज भरा भरा लग रहा था….


पिछले एक-दो दिनों में ही मनोरमा का खालीपन अचानक दूर हो गया था…. जैसे उसे कोई नया परिवार मिल गया था… मनोरमा उन सब से तरह-तरह की बातें कर रही थी…. ऐसा लग ही नहीं रहा था जैसे वह एक प्रतिष्ठित प्रशाशनिक अधिकारी थी।

घर ने नौकरों ने मनोरमा को इतना सहज और प्रसन्न शायद ही कभी देखा हो..

सहजता चेहरे पर निखार लाती है…अकड़ तनाव

गप्पे लड़ाई जा रही थीं। बातों के कई टॉपिक सोनू नया-नया एसडीएम बना था मनोरमा कभी उसे प्रशासन के गुण सिखाती कभी सुगना की तारीफ के पुल बांध देती। सुगना और सोनू दोनों मनोरमा के मृदुल व्यवहार के कायल हुए जा रहे थे।

कुछ देर बातें करने के बाद सूरज ने बाहर बगीचा देखने की जिद की और सोनू उसे लेकर मनोरमा का खूबसूरत बगीचा दिखाने लगा।

अंदर से मनोरमा की नौकरानी मधु को लिए ड्राइंग रूम में लेकर आ गई और मनोरमा को देखते हुए बोली मैडम बेबी आपके पास आना चाह रही है।

सुगना ने कौतूहल भरी निगाहों से मनोरमा की तरफ देखा और पूछा..

"कितनी सुंदर है ..किसकी बेटी है यह.."

मनोरमा ने पिंकी को अपनी गोद में ले लिया और अपने आंचल में ढककर झट से अपनी चूचियां पकड़ा दी … सुगना को उसके प्रश्नों का उत्तर मिल चुका था..

सुगना ने अपने दोनों हाथ जोड़े और अपने भगवान को याद करते हुए बोली


"चलिए भगवान ने प्रार्थना सुन ली और आपकी गोद में इस फूल सी बच्ची को दे दिया "

सुगना ने भी अपने हाथ जोड़कर कभी न कभी मनोरमा के लिए दुआ मांगी थी यह अलग बात थी कि उसे इसकी उम्मीद कम ही थी शायद इसीलिए उसने यह जानने की कोशिश न थी कि मनोरमा की गोद भरी या नहीं।

सुगना को क्या पता था कि जिस रसिया ने उसके जीवन में रंग भरे थे उसी रसिया ने मनोरमां की कोख में भी रस भरा था।

जब बच्चे का जिक्र आया तो सुगना ने बड़े अदब से पूछा

"साहब कहां है"

सुगना को इस बात का पता न था कि मनोरमा सेक्रेटरी साहब को छोड़कर अब अकेले रहती है। उसने स्वाभाविक तौर पर यह पूछ लिया परंतु मनोरमा ने कहा "अब वह यहां नहीं रहते"


मनोरमा ने इस बारे में और बातें न की और नौकरानी द्वारा लाए गए नाश्ते को सुगना को देते हुए बोली

"अरे यह ठंडा हो जाएगा पहले इसे खत्म करिए फिर खाना खाते हैं"

सुगना और मनोरमा ने इधर उधर की ढेर सारी बातें की सब मिलजुल कर खाना खाने लगे..

सुगना की पुत्री मधु ( जो दरअसल लाली और सोनू की पुत्री है) और मनोरमा की पुत्री पिंकी दोनों को एक ही पालना में लिटा दिया गया…शायद यह पालना जरूरत से ज्यादा बड़ा था। दोनों एक दूसरे को देखती और एक दूसरे के गालो को छूकर जैसे एक दूसरे को प्यार करती मनोरमा और सुगना उन्हें खेलते देख मुस्कुरा रही थीं। एक और शख्स था जो उन दोनों को एक साथ देख कर बेहद उत्साहित था और वह था छोटा सूरज।

वह अपनी प्लेट से दाल अपनी उंगलियों में लेता और जाकर मधु और पिंकी के कोमल होंठों पर चटा देता .. दोनों अपनी छोटी-छोटी जीभ निकालकर उस दाल के स्वाद का आनंद लेती और खुश हो जाती मनोरमा और सुगना सूरज के इस प्यार को देख रही थी मनोरमा से रहा न गया उसने कहा..

" सूरज अपनी बहन मधु का कितना ख्याल रखता है…?"

सुगना भी यह बात जानती थी परंतु उसने मुस्कुराते हुए कहा

"अरे थोड़ा बड़े होने दीजिए झगड़ा होना पक्का है"

"और इस शैतान पिंकी को तो देखिए सूरज की उंगलियों से कैसे दाल चाट रही है ऐसे खिलाओ तो नखरे दिखाती है" मनोरमा ने फिर कहा..

"लगता है पिंकी का भी बच्चों में मन लग रहा है शायद इसीलिए वह खुश है"

सुगना ने स्वाभाविक उत्तर दिया।

खाना परोस रही युवती के रूप में नियति सारे घटनाक्रम बारीकी से देख रही थी…उसने सूरज के भविष्य में झांकने की कोशिश की…पर कुछ निष्कर्ष निकाल पाने में कामयाब न हो पाई…


खाना लगभग खत्म हो चुका था। और अब बारी थी मनोरमा के खूबसूरत घर को देखने की. सुगना वह घर देखना चाहती थी पर बोल पाने की हिम्मत न जुटा पा रहे थी..

सुगना जब भी मौका मिलता मनोरमा के घर की भव्यता को अपनी आंखें बड़ी-बड़ी कर निहार लेती सुगना ने भव्यता की दुनिया में अब तक कदम न रखा था वह ग्रामीण परिवेश से निकलकर शहर में आज जरूर गई थी परंतु आर्थिक स्थिति इतनी अच्छी न थी।

सुंदर वस्तुएं किसे अच्छी नहीं लगती मनोरमा के घर की हर चीज खूबसूरत थी…

मनोरमा ने सुगना की मनोस्थिति ताड़ ली और बोली चलिए आपको अपना घर दिखाती हूं..

सुगना खुशी-खुशी मनोरमा के साथ चल पड़ी और एक बार फिर बच्चों को संभालने का जिम्मा सोनू पर आ गया।

सुगना को मनोरमा ने पूरा घर दिखाया…जितना सुगना ने पूछा उतना बताया ….और आखरी में सुगना मनोरमा के उस बेडरूम में आ गई जिस पर बीती रात सरयू सिंह और मनोरमा ने जन्नत का आनंद लिया था..

मनोरमा का बिस्तर बेहद खूबसूरत था…पलंग के सिरहाने पर मलमल के कपड़े से तरह-तरह की डिजाइन बनाई गई थी बेड की खूबसूरती देखने लायक थी सुगना से रहा न गया उसने मनोरमा से पूछ लिया यह तो लगता है बिल्कुल नया है…

हां इसी घर में आने के बाद लिया है….

नियति मुस्कुरा रही थी। मनोरमा जैसे सेक्रेटरी साहब को पूरी तरह भूल जाना चाहती थी। नए घर में आते समय वह जानबूझकर उस पुराने पलंग को वहीं छोड़ आई थी जिस पर सेक्रेटरी साहब ने उसकी सुंदर काया का सिर्फ और सिर्फ शोषण किया था।

सुगना ने घर देखने के दौरान यह नोटिस कर लिया था कि पूरे घर में सेक्रेटरी साहब की एक भी फोटो न थी सुगना समझदार महिला थी और उसने शायद यह अंदाजा लगा लिया कि सेक्रेटरी साहब मनोरमा के साथ शायद नहीं रहते…..

मनोरमा और सुगना बिस्तर पर बैठ कर बातें कर रही थी अचानक मनोरमा ने अपने मन की बात सुनना से पूछ ली..

"एक बात बताइए सरयू जी ने विवाह क्यों नहीं किया ?क्या आपको पता है…?"

सुगना को ऐसे प्रश्न की उम्मीद मनोरमा से कतई न थी वह असहज हो गई फिर भी उसने स्वयं को संतुलित किया और बोली..

"मुझे कैसे पता होगा जब उनकी शादी करने की उम्र थी तब तो शायद में पैदा भी नहीं हुई थी.."

बात सच थी मनोरमा के प्रश्न का उत्तर सुगना ने बखूबी दे दिया था…

"परंतु मुझे लगता है सरयू सिंह जी के जीवन में कोई ना कोई महिला अवश्य है" मनोरमा ने गम्भीरता से कहा..

सुगना घबरा गई उसके और सरयू सिंह के बीच के संबंध यदि जगजाहिर होते तो वह कहीं मुंह दिखाने के लायक न रहती। अचानक उसके दिमाग में कजरी का ध्यान आया उसने मनोरमा के प्रश्न को बिल्कुल खारिज न किया अपितु मुस्कुराते हुए बोली

"लगता तो नहीं …..पर होगा भी तो वह बाबूजी ही जाने.."

सुगना ने बाबूजी शब्द पर जोर देकर खुद को मनोरमा के शक से दूर करने को कोशिश की.

"लेकिन आपको ऐसा क्यों लगता है ?" अब की बार सुगना ने प्रश्न किया। मनोरमा तो जैसे ठान कर बैठी थी उस ने मुस्कुराते हुए कहा

" बनारस महोत्सव का वो कमरा याद है…"

"हा"

"मैंने उस कमरे से सरयू सिंह के साथ एक महिला को निकलते हुए देखा था.."

मनोरमा ने इंट्रोगेट करने की शायद पढ़ाई कर रखी थी। उसने एक छोटा झूठ बोलकर सुगना का मन टटोलने की कोशिश की… सुगना स्वयं आश्चर्यचकित थी उसकी सास कजरी कभी उस कमरे में गई न थी .. तो वह औरत कौन थी जो सरयू सिंह के साथ उस कमरे में थी…

सुगना ने बहुत दिमाग दौड़ाया पर वह किसी निष्कर्ष पर न पहुंच पाई। सरयू सिंह ने कजरी और उसके अलावा भी किसी से संबंध बनाए थे यह सुगना के लिए सातवें आश्चर्य से कम न था।

"आपको कोई गलतफहमी हुई होगी बाबूजी एसे कतई नहीं है…" यदि सुगना को सरयू सिंह की कामकला और वासनाजन्य व्यवहार का ज्ञान न होता तो शायद वह मनोरमा को उसके प्रश्न पर पूर्णविराम लगा देती।

मनोरमा ने सुगना की आवाज में आई बेरुखी को पहचान लिया और उसके चेहरे पर बदल चुके भाव को भी पढ़ लिया। शायद सुगना इस प्रश्न उत्तर के दौर से शीघ्र बाहर आना चाह रही थी।

अचानक सुगना का ध्यान मनोरमा के सिरहाने मलमल के कपड़े से बने डिजाइन पर चला गया वह अपनी उंगलियां फिराकर उसकी कोमलता का एहसास करने लगी अचानक उसका हाथ मलमल पर लगे दाग पड़ गया …

"वह बोल उठी अरे इतने सुंदर कढ़ाई पर यह क्या गिर गया है "

मनोरमा ने भी ध्यान दिया कई जगह मलमल के कपड़े पर छोटे-छोटे धब्बे पड़ गए थे ऐसा लग रहा था जैसे दूध या दही की बूंदे उस पर गिर पड़ी थीं।


अचानक मनोरमा को ध्यान आया वह बूंदे और कुछ न थी अपितु वह कल रात हुई घनघोर चूदाई की निशानी थीं…जो कल रात उसने नए और कुवारे बिस्तर पर हुई थी।

उसके सामने वह दृश्य घूम गया जब सरयू सिंह अपने लंड को हांथ में पकड़े अपने स्टैन गन की तरह उसके नग्न शरीर पर वीर्य वर्षा कर रहे थे… निश्चित ही यह वही था…


मनोरमा ने सुगना का ध्यान वहां से खींचने की कोशिश की और बोली..

अभी फर्नीचर वाले को फोन कर उसको ठीक करवाती हूं..

पर सुगना कच्ची खिलाड़ी न थी…सरयू सिंह के साथ तीन चार वर्षो के कामुक जीवन में उसने कामकला और उसके विविध रूप देख लिए थे…उसने अंदाज लगा लिया कि वह निश्चित ही पुरुष वीर्य था…और वह भी ज्यादा पुराना नहीं..…

उसने मनोरमा की तरफ देखते हुए मुस्कुरा कर बोला..

"लगता है साहब… अब भी यहाँ आते रहते हैं…"

इतना कहकर सुगना अपना हाथ धोने चली गई…

यदि उसे पता होता कि वह किसी और का नही अपितु सरयू सिंह का वीर्य था तो शायद सुगना का व्यवहार कुछ और होता।

सुगना का यह मज़ाक मनोरमा न समझ पाई …..

शायद उसे सुगना से इस हद तक जाकर बात करने की उम्मीद न थी…

सुगना ने सोच लिया शायद मनोरमा मैडम भी लाली की विचारधारा की है…हो सकता है कोई सोनू उन्हें भी मिल गया हो…तभी सेक्रेटरी साहब से अलग होने के बाद भी उनके बिस्तर पर प्यार के सबूत कायम थे।

उधर सरयू सिंह सुगना और सोनू के आने की राह देख रहे थे उनका मन गेस्ट हाउस में कतई नहीं लग रहा था बार-बार दिमाग में यही ख्याल आ रहे थे कि सुगना और मनोरमा आपस में क्या बातें कर रही होंगी दिल की धड़कन पड़ी हुई थी..

कहते हैं ज्यादा याद करने से उस व्यक्ति को हिचकियां आने लगती हैं जिसे आप याद कर रहे हैं। शायद यह संयोग था या मनोरमा के चटपटे खाने का असर परंतु सुगना को हिचकियां आना शुरू हो गई।

मनोरमा के कमरे से आ रही सुगना की हिचकीयों की आवाज सोनू ने भी सुनी और वह डाइनिंग टेबल पर पड़ी गिलास में पानी डालकर मनोरमा के कमरे के दरवाजे सामने आकर बोला..

" दीदी पानी पी ल"

"अरे सुगना… सोनू तो तुम्हारा बहुत ख्याल रखता है देखो पानी लेकर आया है" मनोरमा ने मुस्कुराते हुए कहा..

मनोरमा ने सोनू को अंदर बुला लिया और सोनू ने अपने हाथ में लिया हुआ ग्लास सुगना को पकड़ा दिया सुगना ने जैसे ही पानी का घूंट अपने मुंह में लिया एक बार फिर हिचकी आ गई और उसके मुंह से सारा पानी नीचे गिर पड़ा जो उसकी चुचियों पर आ गया।


ब्लाउज के अंदर कैद चूचियां भीगने लगीं। सुगना ने अपने हाथ से पानी हटाने की कोशिश की और इस कोशिश में उसकी चूचियों के बीच की दूधिया घाटी सोनू की निगाहों में आ गई। सोनू की आंखें जैसे चुचियों पर अटक सी गई पानी की बूंदे सुगना की गोरी गोरी चुचियों पर मोतियों की तरह चमक रहीं थी।

एक पल के लिए सोनू के मन में आया कि वह सुगना की चुचियों पर गिरा पानी अपने हाथों से पोंछ दे और उन खूबसूरत और कोमल सूचियां के स्पर्श का अद्भुत आनंद ले ले परंतु मनोरमा मैडम आसपास ही थी सोनू ने अपने हाथ रोक लिए….


सुगना ने तुरंत ही सोनू की नजरों को ताड़ लिया और झट से अपने आंचल से सूचियों को ढकते हुए बोली "लागा ता बाबूजी याद करत बाड़े अब हमनी के चले के चाही…"

सोनू की नजरों ने जो देखा था उसने उसके लंड पर असर कर दिया जो अब उसकी पेंट में तन रहा था….

बिछड़ने का वक्त आ चुका था…

मनोरमा ने बिछड़ते वक़्त एक बार फिर सूरज को अपनी गोद में लिया और गाल में पप्पी दी परंतु इस बार मनोरमा सतर्क थी सूरज के होठों को आगे बढ़ते देख उसने झट से अपने गाल आगे कर दिये.. नटखट सूरज मनोरमा के गालों पर पप्पी लेकर नीचे उतर गया…

इतनी बाते करने के बावजूद मनोरमा उस महिला का नाम जानने में नाकाम रही जिसके हिस्से का अंश वह पिंकी के रूप में अपनी झोली ने ले आई थी..

रास्ते भर सुगना और सोनू मनोरमा की तारीफों के पुल बांधते रहे परंतु मनोरमा के बिस्तर पर वीर्य के निशान देख सुगना का मन कुछ खट्टा हो गया था…

मनोरमा की बंजर हो चुकी कोख को किसने सींचा होगा सुगना के लिए प्रश्न बन चुका था…कही कल बाबूजी मनोरमा के साथ ही तो नहीं थे? एक पल के लिए सुगना के दिमाग में आया परंतु कहां मनोरमा और सरयू सिंह में दूरी जमीन आसमान की थी और शायद यह सुगना की कल्पना से परे था कि सरयू सिंह अपनी भाग्य विधाता को चोद सकते हैं…

मनोरमा के बारे में यदि कोई शख्स बता सकता था तो वह थे उसके बाबूजी शरीर से इसके अलावा सुगना की जिज्ञासा शांत करने वाला और कोई ना था…वह एंबेसडर कार के गेस्ट हाउस पहुंचने की राह देखने लगी..

उधर सोनू अपनी बड़ी बहन सुगना की चुचियों को अपने दिमाग में अनावृत कर रहा था…और और अपनी कल्पनाओं में उन खूबसूरत चुचियों पर अपने गाल रगड़ रहा था…

सुगना और सरयू सिंह दोनों एक दूसरे का इंतजार कर रहे थे पर अपने अपने प्रश्नों और जिज्ञासाओं के साथ…

शेष अगले भाग में…
ये मनोरमा की जिज्ञासा जरूर कोइ कांड करेगी
 
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