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Incest आह..तनी धीरे से.....दुखाता.

Lovely Anand

Love is life
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आह ....तनी धीरे से ...दुखाता
(Exclysively for Xforum)
यह उपन्यास एक ग्रामीण युवती सुगना के जीवन के बारे में है जोअपने परिवार में पनप रहे कामुक संबंधों को रोकना तो दूर उसमें शामिल होती गई। नियति के रचे इस खेल में सुगना अपने परिवार में ही कामुक और अनुचित संबंधों को बढ़ावा देती रही, उसकी क्या मजबूरी थी? क्या उसके कदम अनुचित थे? क्या वह गलत थी? यह प्रश्न पाठक उपन्यास को पढ़कर ही बता सकते हैं। उपन्यास की शुरुआत में तत्कालीन पाठकों की रुचि को ध्यान में रखते हुए सेक्स को प्रधानता दी गई है जो समय के साथ न्यायोचित तरीके से कथानक की मांग के अनुसार दर्शाया गया है।

इस उपन्यास में इंसेस्ट एक संयोग है।
अनुक्रमणिका
Smart-Select-20210324-171448-Chrome
भाग 126 (मध्यांतर)
 
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Lovely Anand

Love is life
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बहुत ही कामुक और मजेदार अपडेट :applause:

आगे राजेश और सोनू के साथ नयी संभावना के लिए प्रतीक्षारत :dj1:
Mast update
Hot update
extremely hot update

धन्यवाद सुझाव देते रहैं
 
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Lovely Anand

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ये कहानी अब नेक्स्ट जेनरेशन में जाने वाली है... इसका मतलब अभी बहुत कुछ पढ़ने देखने को मिलेगा ।
बहुत बढ़िया लिख रहे हो आनंद भाई ।
धन्यवाद.....

कहानी तो पाठको के मार्गदर्शन और प्रतिक्रियाओं पर फलती फूलती है जब तक पाठको का सहयोग मिलता रहेगा मैं लिखता रहूंगा
 

Lovely Anand

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Hum daily update ke liye yahan aate hein aapko daily update ke liye toh nahi bolenge magar ho sake toh dono update dene ke bich time gap kam karde toh accha rahega brother,apke story bohot hi kamuk aur lajjatdar hai eagerly waiting for your next update
अपडेट आये दो दिन बीत चुके हैं कहां है आप?
 

Lovely Anand

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:applause: Badhiya Update! Bas Ek Gujarish Hai, Aapne Is Baar Jitne Kirdaar Ek Saath Introduce Kiye Hain Unhein Smjh Paanaa Mushqil Ho Raha Hai. Kripya Ek Family Tree Banaa Dijiye Taaki Yad Rahe Ki Kaun Kiska Beta/Beti Hai! 🙏 Ant Mein Aapne Jo :sex: Dalaa Use Padh Kar MAza Aa Gaya Lekin Is Scene Ko Thoda Or Vistaar Se Likha Karo. Or Aapne LUNDKo L*** Kyon Likhna Shuru Kar Diya? 🤔 Kaisi Sharm? Any Mein Jo Aapne 'Daag' Ka Twist Daalaa Hai Wo Jabardast Sabit Hona Chahiye! Ek Update Ki Prakeeksha Mein :waiting1:
Is romancharik update ke liye shukriya. apane itane sare kirdar kahani me laye unaka Mel rakhana mushkil hai. baki holi maja de gayi. Surjsinh ke dag ka rahasy unake aur ke sambad se Jude hai to bahut hi rahasymay twist hoga. Agale rahsymay update ke intajar pata nahi kab khatam hoga.

सच कहा एक साथ कई बच्चे और युवा इस कहानी का हिस्सा बन रहे हैं पर ध्यान से देखने पर युवाओं की संख्या उतनी ही है जितनी कहानी की मांग है बच्चों का जिक्र पात्रों के चरित्र चित्रण के लिए किया गया जैसे-जैसे कहानी आगे बढ़ेगी आपको नाम खुद ब खद याद होते जाएंगे दिमाग पर जोर नहीं डालना पड़ेगा
सरयू सिंह का दाग निश्चय ही किसी विशेष प्रयोजन के लिए हुआ है

साथ जुड़े रहे और अपनी प्रतिक्रियाएं तथा सुझाव देते रहें धन्यवाद
 

odin chacha

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अपडेट आये दो दिन बीत चुके हैं कहां है आप?
Bro holi tha toh busy the hum but holi special update bohat hi mast tha aur upar se dusre charcter ko bhi ab explore kiya gaya wo bhi superb tha aur Saryu ka age bhi ab badhta ja raha hai jo ki story ki harsh reality hai is wajah se sugna ka dusre male ke saath dikhaya ja raha hai.overall the last update was quite different
 
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Lovely Anand

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नियति ने इस होली पर सोनू और लाली के बीच एक आग सुलगा दी थी। ऐसा नहीं था कि उस आग में सिर्फ लाली और सोनू ही झुलस रहे थे। कुछ ऐसी ही स्थिति राजेश की भी थी वह सुगना के प्रति आसक्त हो चुका था। उधर रतन भी सुगना को अपनाने के लिए आतुर था।

त्यौहार खत्म होने के बाद धीरे-धीरे सब अपने अपने घरों को लौट गए। सोनू 12वीं की परीक्षा अच्छे नंबरों से उत्तीर्ण किया था उसे शहर में आगे की पढ़ाई के लिए दाखिला लेना था। सरयू सिंह ने उसकी मदद की और उसका दाखिला शहर (बनारस) के एक अच्छे कालेज में करा दिया।

राजेश का पुश्तैनी घर लाली के गांव से लगभग 10 किलोमीटर दूर था। गांव में अक्सर वैवाहिक संबंध नजदीक के गांव में ही किये जाते हैं ताकि लोग एक दूसरे के सुख दुख में साथ दे सकें।

शहर में रहने की इच्छा गांव के लोगों में धीरे धीरे बलवती हो रही थी गांव के सभी लोग हर आवश्यक कार्य के लिए शहर (बनारस) का मुंह देखते थे चाहे वह स्वास्थ्य सुविधाएं हो या पढ़ाई। कजरी और सुगना जैसी कुछ कामुक महिलाएं भी अपनी साज-सज्जा और अरमानों को पूरा करने के लिए उसी शहर पर आश्रित थी। गांव के लोगों का शहर आना जाना अब सामान्य हो रहा था।

राजेश वर्तमान में मेरठ में नौकरी करता था। राजेश रेलवे में टीटी था। उसका गांव मेरठ से काफी दूर पड़ता था और वह लगातार अपने ट्रांसफर के प्रयास में था ताकि वह अपने गांव के करीब पहुंच जाए।

राजेश के अथक प्रयासों और लक्ष्मी जी की कृपा से उसका ट्रांसफर बनारस हो गया। इस ट्रांसफर में सोनू की भी दुआएं शामिल वह बार-बार अपनी लाली दीदी की कल्पना करता और सोचता की काश लाली दीदी इसी शहर में रहतीं। नियति ने सुगना के भाई सोनू की प्रार्थना सुन ली। सोनू की लाली दीदी उसके शहर बनारस आ रही थी। नियति लाली और सोनू को करीब ला रही थी।

राजेश के ट्रांसफर की खबर जब सरयू सिंह ने कजरी को बताई सुगना भी वहां उपस्थित थी। उसके दिमाग में एक बार लाली और सोनू का चेहरा घूम गया। लाली के शहर आ जाने से हरिया और सरयू सिंह का परिवार खुश हो गया था अब वह लाली से आसानी से मिल सकते थे। और तो और शहर में उनका एक ठिकाना हो गया था।

सोनू को भी लाली के शहर में आने की खबर लग चुकी थी। सोनू की कद काठी लड़कियों को आकर्षित करने के लिए काफी थी पर उसका दिल अभी अपनी लाली दीदी पर अटक गया था। लाली को लेकर सोनू के लंड में हरकत कब से हो रही थी यह कहना तो मुश्किल है पर निश्चय ही वह कुछ दिनों की बात न थी। शायद सोनू ने जब से हस्तमैथुन प्रारंभ किया था उसके ख्वाबों की मलिका लाली ही थी।

राजेश स्वयं इस ट्रांसफर से बेहद प्रसन्न था वह सुगना के करीब आ रहा था और अब तो शहर में आने के पश्चात उसका गांव आना जाना स्वाभाविक रूप से बढ़ सकता था सुगना से उसके मिलन की संभावनाएं बढ़ रही थी इस बार सुगना के साथ होली मनाने के पश्चात उसका साहस बढ़ गया था।

लाली को यह बात पता थी कि राजेश सुगना पर अपनी नजर गड़ाए हुए हैं पर अब लाली ने इसे स्वीकार कर लिया था तीन-चार वर्षों तक राजेश जैसे कामुक व्यक्ति के साथ रहते रहते लाली ने भी थोड़ी कामुकता उधार ले ली थी।

होली के दिन रात में जब राजेश में उसकी चुचियों को दीए की रोशनी में देखा तो चुचियों पर लगे हरे रंग को देखकर वह हैरान रह गया उसने लाली से पूछा

"तहरा चूची प हरियर रंग के लगा देलस हा"

लाली को सब याद था पर उसने अपनी आंखें शर्म से झुका ली और राजेश को अपनी तरफ खींचते हुए बोली

"अब होली में केहू रंग याद राखी"

राजेश ने लाली का सुंदर चेहरा अपने हाथों में ले लिया और उसके माथे को चूमते हुए बोला

"ओह त अपना भाई सोनू से रंग लगववले बाड़ू"

लाली शर्म से पानी पानी हो गई। उसने कोई उत्तर न दिया। राजेश यह बात जानता था की हरा रंग सिर्फ और सिर्फ सोनू के पास था । वह सोनू को लाली के आगे पीछे घूमते कई बार देख चुका था।

क्योंकि राजेश स्वयं एक कामुक व्यक्ति था वह किशोर लड़कों की भावनाएं पूरी तरह समझता था उस अवस्था में वह भी अपनी करीबी महिलाओं की चुचियों पर ध्यान देता तथा उन्हें छूने और मसलने की फिराक में रहता था। राजेश जानता था कि सोनू के मन में लाली के प्रति कामुक भावनाएं आना एक स्वाभाविक प्रक्रिया थी। लाली को वह दीदी जरूर बोलता था पर यह तो सामाजिक रिश्ते थे वरना लाली जैसी गदरायी माल और सोनू जैसे लड़के के बीच जो कामुकता होनी चाहिए वह स्वाभाविक रूप से अपना रंग दिखा रही थी। राजेश ने लाली को छेड़ना जारी रखा….

"रंग खाली उपरे लगावाले बा के नीचहूँ"

लाली उत्तेजना से सिहर उठी राजेश ने तो यह बात सिर्फ कही थी पर लाली ने सोनू के मजबूत हथेलियों को अपनी बुर पर महसूस कर लिया वह मदहोश होने लगी राजेश की बातें उसे उत्तेजित कर रही थी राजेश चाह भी यही रहा था। लाली अपनी उत्तेजना को छुपाते हुए स्वयं हमलावर हो गई

"रहुआ पगला गईल बानी दिनभर आलतू फालतू सोचत रहेनी। जाई हमरा के छोड़ी और अपन साली सुगना से मन लगाई। आजू ओकर खूब चुची मिसले बानी अब जाके ओकरा जाँघि में मुह दे दीं"

लाली ने अनजाने में ही राजेश की सोच पर सटीक हमला कर दिया था राजेश हमेशा से सुगना की कोमल बुर की कल्पना किया करता था और उसे चूमने तथा चूसने के लिए अपने दिमाग में योजना बनाया करता था और आज उसकी पत्नी लाली ने खुलकर उसे वह बात कह दी थी।

राजेश से अब और बर्दाश्त ना हुआ उसने लाली की साड़ी और साया (पेटीकोट) को ऊपर करना शुरू कर दिया. लाली की गोरी जांघें राजेश की निगाहों में आ गई. उसकी बुर पनिया चुकी थी। शहर में रहने के कारण लाली अब अपनी बुर को साफ रखने लगी थी। राजेश ने अपनी लाली की बुर को सुगना की बुर मानकर अपने होठों और जीभ का कमाल दिखाना शुरू कर दिया।

उधर लाली अपने सोनू के बारे में सोचने लगी। उसने सोनू के उस मजबूत लंड को याद करना शुरू कर दिया। उत्तेजना ने लाली को वाचाल बना दिया लाली राजेश को उकसा रही थी उसने कराहती आवाज में कहा

"जीजा जी….. तनी धीरे से …..हां हां असहिं अअअअअअअ ईईईई लाली स्खलित होने वाली थी। कुछ ही देर में लाली की बुर में उसके पति राजेश का ल** आ चुका था और राजेश की कमर हिलने लगी थी।

दोनों पति पत्नी अपने अपने मन में अपनी कामुकता को जीते हुए संभोग सुख का आनंद लेने लगे। राजेश की कमर की रफ्तार बढ़ती गई जब लाली का स्खलन प्रारंभ हो गया तब राजेश ने उसे चूमते हुए सोनू की आवाज में कहा

" दीदी ठीक लागल ह नु"

लाली उत्तेजित तो थी ही उसने राजेश के गाल पर चपत लगाई और बोली

"अपना दीदी से असहिं बात कइल जाला" इतना कहकर उसने राजेश को अपने आलिंगन में ले लिया। राजेश भी उत्तेजित हो गया उसने अपने लंड को लाली की बुर में अंदर तक ठान्स दिया और झड़ते हुए बोला

" ना अपना दीदी के अईसे ना बोलल जाला लेकिन असहिं चोदल जाला।"

वह लाली को चूम रहा था और झड़ रहा था।

आज लाली और राजेश ने अपनी उत्तेजना में एक नया अंश जोड़ लिया था। होली के दिन किया गया यह संभोग उसके लिए यादगार बन गया था। उस रात के बाद सुगना और सोनू के बारे में कामुक बातें करने में उन्हें कोई ग्लानि नहीं होती अपितु वह दोनों अपनी अपनी उत्तेजना को जागृत कर एक-दूसरे से संभोग सुख लेने लगते। उनके जीवन में सेक्स को लेकर एक नया रोमांच पैदा हो गया था सोनू ने लाली के जीवन में एक नया रंग भर दिया था।

बनारस आकर लाली और राजेश बेहद खुश उन्हें रेलवे की तरफ से एक मध्यम दर्जे का मकान उपलब्ध करा दिया गया जो स्टेशन से बेहद करीब था यह एक संयोग ही था उनका घर सोनू के कालेज से भी ज्यादा दूर न था।

जब जब लाली और राजेश बिस्तर पर होते सुगना का जिक्र हो ना हो सोनू का जिक्र अवश्य होता। उत्तेजित स्त्री के साथ संभोग करने का सुख राजेश बखूबी जानता था। लाली को गर्म करने के लिए उसके हाथ में सोनू का ब्रह्मास्त्र आ चुका था। लाली को अपनी बाहों में लिए वह सोनू की बातें शुरू करता और लाली की जांघों के बीच मदन रस स्वयं ही बहने लगता।

लाली खुद भी यह न समझ पाती उसका आकर्षण दिन पर दिन सोनु के प्रति क्यों बढ़ता जा रहा था। अपने पति की शह पाकर उसकी कल्पना आसमान छूने लगी। वह वह मन ही मन अपनी कल्पनाओं में सोनू के साथ अठखेलियां करती। कभी वह अपनी चूचयों को उसके चेहरे से रगड़ती कभी उसके लंड को अपने हाथों में महसूस करती और कभी कभी अपनी जांघों…. आह…….इसके आगे वह स्वयं शर्म से पानी पानी हो जाती।

वह कैसे सोनू के सामने कैसे नंगी हो सकती है। नहीं नहीं यह संभव नहीं. वह अपने विचारों से स्वयं युद्ध लड़ती और उसकी उंगलियां उसकी उत्तेजना में डूबी बुर से। अंततः विजय उंगलियों की होती और उसकी बुर झड़ने लगती।

लाली और राजेश का वैवाहिक जीवन सोनू और सुगना की वजह से आनंदमय हो चला था।

महानगरी एक्सप्रेस के स्लीपर डिब्बे में बैठा रतन अपने भाग्य या दुर्भाग्य के बारे में सोच रहा था। क्यों वह अपना खुशहाल गांव छोड़कर मुंबई गया? जहां वह बबीता जैसी दुष्ट स्त्री के संपर्क में आया.

रतन गांव का एक सीधा साधा पर तेज दिमाग वाला युवक था जो जीवन में उन्नति और प्रगति करना चाहता था. इसी कारण वह साहस कर मुंबई आ गया था पर नियति ने उसे बबीता जैसी सुंदरी के मोह जाल में फंसा दिया और वह उसकी जांघों के बीच बनी अनुपम कलाकृति में खो गया।

शहर की चिकनी चुत ने रतन के जीवन में ऐसे रंग भर दिए जैसे इंद्रधनुष आकाश में भर देता है। इंद्रधनुष की यह सुंदरता ज्यादा दिनों तक नहीं टिक पाई। आकाश साफ होते ही इंद्रधनुष गायब हो गया और बबीता का असली चेहरा रतन की आंखों के सामने आ गया। अब उसे बबीता से रत्ती भर भी प्रेम न रहा था। उसे तो अब यह भी शक होता था कि कहीं चिंकी और मिंकी उसकी बेटियां थी या बबीता ने अपने गर्भ में किसी और का पाप पाल रखा था। चिंकी और मिंकी दोनों प्यारी बच्चियां थी जो रतन को पापा पापा बुलातीं। रतन इस बात को नजरअंदाज कर कि वो किस का बीज हैं उन बच्चियों से एक आदर्श पिता की भांति प्यार करता और उनके मोह में बबीता से संबंध बनाए हुए था। पर कब तक?

वैसे भी अब रतन की निगाहों में उसकी पत्नी सुगना आ चुकी थी। उसने मन ही मन सुगना को माफ कर दिया था। उसने यह जानते हुए कि सुगना का पुत्र सूरज लाली के पति राजेश के साथ हुए एक आकस्मिक संभोग की परिणिति थी उसने सूरज को भी अपना लिया था।

मन ही मन रतन ने यह निर्णय ले लिया कि वह सुगना को अपनी पत्नी और सूरज को अपने पुत्र के रूप में स्वीकार कर लेगा। पर क्या वह बबीता के साथ आगे संबंध जारी रख पाएगा? या वह चिंकी और मिंकी को लेकर बबीता को बिना बताए वापस अपने गांव लौट आएगा?

उसके मन में तरह-तरह के विचार आ रहे थे ट्रेन पटरी पर सरपट दौड़ी जा रही थी. ट्रेन का लक्ष्य निर्धारित था। परंतु रतन के मन में हलचल मची हुई थी। वह जिस सुगना के करीब आना चाहता था यह ट्रेन उसे उससे दूर ले जा रही थी।

वह उसी जंजाल में जा रहा था जहां से वह निकलना चाहता था। जितना वह सुगना के करीब आ रहा था उतना ही बबीता से दूर हुआ चला जा रहा था। नियति ने अपनी पटकथा लिख रखी थी रतन एक कठपुतली की भाति उस पर अपने कदम बढ़ाए जा रहा था।

चाय …..चाय …...की कर्कश आवाज डिब्बे में गूंजने लगी. एक मैला कुचेला कपड़ा पहने आदमी एलुमिनियम की केतली में चाय लिए कंपार्टमेंट में आ चुका था। रतन ने अपने विचारों को विराम दिया और ₹5 का पुराना नोट देकर एक कुल्हड़ चाय खरीदी और खिड़की के बाहर तरह तरह के लोगों को देखते हुए चाय पीने लगा। उन लोगों में कुछ बबीता जैसी औरतें थी कुछ सुगना जैसी …..

उधर गांव में कजरी सरयू सिंह के दाग पर हल्दी और दूध लगा रही थी सुगना के साथ हैंड पम्प पर होली मनाने के बाद दाग कुछ और बढ़ गया था।

सरयू सिंह जब उस दाग के बारे में सोचते उन्हें वह दिन याद आ जाता जब उन्होंने पहली बार अपनी बेटी समान बहू की कोमल और कुवारी बुर को अपनी कामुक निगाहों से देखा था। वह अपने बालों से उस दाग को छुपाने का प्रयास करते पर अब उम्र की वजह से बाल भी कम हो रहे थे वह दाग आकार बड़ा चुका था और अब बालों द्वारा छुपाया न जा पा रहा हर व्यक्ति की निगाह उस दाग पर पड़ती और वह सरयू सिंह से उसके बारे में जानकारी एकत्रित करना चाहता सरयू सिंह न उस दाग के लगने का कारण बता पाते नहीं उसके बढ़ने का। नियति ने उन्हें यह दाग देकर निरुत्तर कर दिया इस दाग का उपाय न तो नीम हकीमों के पास था न डॉक्टर के पास।

जाने सरयू सिंह के भाग्य में क्या लिखा था। सुगना अपनी पायल छम छम बजाते हुए एक हाथ से अपने सूरज को अपनी कमर पर बैठाये हुए और दूसरे हाथ में दूध का गिलास पकड़े अपने बाबू जी के पास आ चुकी थी।उसमें सूरज को अपने बाबू जी की गोद में दिया और फिर दूध का गिलास पकड़ा दिया। सरयू सिंह एक बार फिर सुगना की चूचियों को देखने लगे कितनी मादक थी सुगना। उनके लंड में फिर हरकत होने लगी उन्होंने अपना ध्यान भटकाया और अपने पुत्र सूरज को खिलाने लगे। बीच-बीच में वह गिलास से उसे दूध पिलाते और बचा हुआ दूध खुद भी पीते।।

उस गिलास और सुगना की चूँची में कोई विशेष अंतर न था आज भी सुगना की चूँची पर सरयू सिंह और सूरज का बराबर का अधिकार था यह अलग बात थी की सरयुसिंह सुगना की चूची से जितना दूध खींचते उससे ज्यादा वीर्य उसकी प्यासी बुर में भर देते और सुगना को तृप्त कर देते।

सिर्फ उस बढ़ते हुए दाग को छोड़कर सरयू सिंह अपनी कजरी भौजी और सुगना बहू के साथ खुश थे…..

सुगना का जीवन भी बेहद खुशहाल हो चला था पिछले तीन-चार वर्षों से वह अपने बाबू जी से लगातार चुदवा रही थी उसने अपने बाबूजी सरयू सिंह और अपनी सास कजरी से कामकला के ऐसे ऐसे अनोखे ढंग सीखें थे जो शायद उसे एक नौजवान से प्राप्त न हो पाते।

सुगना ने अपने गर्भवती होने से पहले काम कला का लगभग हर सुख प्राप्त किया था। इसमें जितना सरयू सिंह का योगदान था उतना ही कजरी का।

परंतु उसकी चिंता का एक ही कारण था वह था सरयू सिंह के माथे का दाग। पता नहीं जब भी वह उनसे संभोग करती वह दाग उसे परेशान करता। जब वह सरयू सिंह के साथ संभोग कर रही होती तब भी वह दाग उसका ध्यान आकर्षित करता और उसे सोचने पर मजबूर कर देता। यह भटकाव उसकी उत्तेजना में भी कमी कर देता।

यह एक विडंबना ही थी कि उस विलक्षण कीड़े को न सरयू सिंह देख पाए थे न सुगना। उस समय यदि वह कीड़े को देख लिए होते तो निश्चय ही उसके दंश का कुछ न कुछ उपाय अवश्य कर गए होते। पर उन्होंने उस समय उस दाग को नजरअंदाज कर दिया था। सुगना को भी इस दाग का कोई उपाय न समझ रहा था कभी वह दाग कुछ कम होता कभी बढ़ जाता।

अब कजरी धीरे धीरे अपनी कामुकता को विराम दे रही थी। उसने अपनी बहू को पूर्ण पारंगत कर दिया था और वह उसके कुंवर जी का भरपूर ख्याल रखती कजरी अब सूरज के लालन-पालन में व्यस्त हो चली थी। वह अधिक से अधिक समय सुगना और सरयू सिंह को देती ताकि वह दोनों एक दूसरे के साथ का जी भर कर आनंद ले सकें।

उसे सुगना की कामुकता का अंदाजा था सुगना अभी भरपूर जवान थी उसकी बुर की प्यास सिर्फ और सिर्फ सरयू सिंह बुझा सकते थे… कजरी को यह बात पता थी की सरयू सिंह आज भी सुगना की गोरी और गुदांज गांड के पीछे थे। सुगना उससे हर बात बताती थी। परंतु कजरी और सुगना दोनों यह बात जानती थी कि सरयू सिंह के विशाल लंड को अपनी गांड में लेना तो दूर यह सोच कर भी उन दोनों की रूह कांप जाती थी। आज भी सरयू सिंह का लंड सुगना की चूत में वैसे ही जाता जैसे एक बच्चे के मोजे में कोई युवा अपना पैर घुसा रहा हो।

सुगना बार-बार प्रकृति को धन्यवाद देती जिसने उसके बुर को असीम लचीलापन दिया था जो सरयू सिंह के लंड को अपने अंदर उसी आत्मीयता और लगाव से पनाह देती थी जैसे उसकी पतली और मुलायम उंगलियों को।

सरजू सिंह की उस निराली इच्छा को पूरा करना अभी न कजरी के बस में था न सुगना के। कजरी ने तो उन्हें दिलासा देते देते अपना जीवन काट लिया था और अब पिछले दो-तीन वर्षों से सुगना उन्हें ललचाए जा रही थी। वह अपनी सुगना और कजरी से बेहद प्यार करते थे उन्होंने कभी उन दोनों पर अनुचित कार्य के लिए दबाव नहीं बनाया था उन्हें पता था यह एक अप्राकृतिक क्रिया थी । पर मन का क्या वह तो निराला था सरयू सिंह का भी और हम आप पाठकों का भी…..

शेष अगले भाग में
 

odin chacha

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नियति ने इस होली पर सोनू और लाली के बीच एक आग सुलगा दी थी। ऐसा नहीं था कि उस आग में सिर्फ लाली और सोनू ही झुलस रहे थे। कुछ ऐसी ही स्थिति राजेश की भी थी वह सुगना के प्रति आसक्त हो चुका था। उधर रतन भी सुगना को अपनाने के लिए आतुर था।

त्यौहार खत्म होने के बाद धीरे-धीरे सब अपने अपने घरों को लौट गए। सोनू 12वीं की परीक्षा अच्छे नंबरों से उत्तीर्ण किया था उसे शहर में आगे की पढ़ाई के लिए दाखिला लेना था। सरयू सिंह ने उसकी मदद की और उसका दाखिला शहर (बनारस) के एक अच्छे कालेज में करा दिया।

राजेश का पुश्तैनी घर लाली के गांव से लगभग 10 किलोमीटर दूर था। गांव में अक्सर वैवाहिक संबंध नजदीक के गांव में ही किये जाते हैं ताकि लोग एक दूसरे के सुख दुख में साथ दे सकें।

शहर में रहने की इच्छा गांव के लोगों में धीरे धीरे बलवती हो रही थी गांव के सभी लोग हर आवश्यक कार्य के लिए शहर (बनारस) का मुंह देखते थे चाहे वह स्वास्थ्य सुविधाएं हो या पढ़ाई। कजरी और सुगना जैसी कुछ कामुक महिलाएं भी अपनी साज-सज्जा और अरमानों को पूरा करने के लिए उसी शहर पर आश्रित थी। गांव के लोगों का शहर आना जाना अब सामान्य हो रहा था।

राजेश वर्तमान में मेरठ में नौकरी करता था। राजेश रेलवे में टीटी था। उसका गांव मेरठ से काफी दूर पड़ता था और वह लगातार अपने ट्रांसफर के प्रयास में था ताकि वह अपने गांव के करीब पहुंच जाए।

राजेश के अथक प्रयासों और लक्ष्मी जी की कृपा से उसका ट्रांसफर बनारस हो गया। इस ट्रांसफर में सोनू की भी दुआएं शामिल वह बार-बार अपनी लाली दीदी की कल्पना करता और सोचता की काश लाली दीदी इसी शहर में रहतीं। नियति ने सुगना के भाई सोनू की प्रार्थना सुन ली। सोनू की लाली दीदी उसके शहर बनारस आ रही थी। नियति लाली और सोनू को करीब ला रही थी।

राजेश के ट्रांसफर की खबर जब सरयू सिंह ने कजरी को बताई सुगना भी वहां उपस्थित थी। उसके दिमाग में एक बार लाली और सोनू का चेहरा घूम गया। लाली के शहर आ जाने से हरिया और सरयू सिंह का परिवार खुश हो गया था अब वह लाली से आसानी से मिल सकते थे। और तो और शहर में उनका एक ठिकाना हो गया था।

सोनू को भी लाली के शहर में आने की खबर लग चुकी थी। सोनू की कद काठी लड़कियों को आकर्षित करने के लिए काफी थी पर उसका दिल अभी अपनी लाली दीदी पर अटक गया था। लाली को लेकर सोनू के लंड में हरकत कब से हो रही थी यह कहना तो मुश्किल है पर निश्चय ही वह कुछ दिनों की बात न थी। शायद सोनू ने जब से हस्तमैथुन प्रारंभ किया था उसके ख्वाबों की मलिका लाली ही थी।

राजेश स्वयं इस ट्रांसफर से बेहद प्रसन्न था वह सुगना के करीब आ रहा था और अब तो शहर में आने के पश्चात उसका गांव आना जाना स्वाभाविक रूप से बढ़ सकता था सुगना से उसके मिलन की संभावनाएं बढ़ रही थी इस बार सुगना के साथ होली मनाने के पश्चात उसका साहस बढ़ गया था।

लाली को यह बात पता थी कि राजेश सुगना पर अपनी नजर गड़ाए हुए हैं पर अब लाली ने इसे स्वीकार कर लिया था तीन-चार वर्षों तक राजेश जैसे कामुक व्यक्ति के साथ रहते रहते लाली ने भी थोड़ी कामुकता उधार ले ली थी।

होली के दिन रात में जब राजेश में उसकी चुचियों को दीए की रोशनी में देखा तो चुचियों पर लगे हरे रंग को देखकर वह हैरान रह गया उसने लाली से पूछा

"तहरा चूची प हरियर रंग के लगा देलस हा"

लाली को सब याद था पर उसने अपनी आंखें शर्म से झुका ली और राजेश को अपनी तरफ खींचते हुए बोली

"अब होली में केहू रंग याद राखी"

राजेश ने लाली का सुंदर चेहरा अपने हाथों में ले लिया और उसके माथे को चूमते हुए बोला

"ओह त अपना भाई सोनू से रंग लगववले बाड़ू"

लाली शर्म से पानी पानी हो गई। उसने कोई उत्तर न दिया। राजेश यह बात जानता था की हरा रंग सिर्फ और सिर्फ सोनू के पास था । वह सोनू को लाली के आगे पीछे घूमते कई बार देख चुका था।

क्योंकि राजेश स्वयं एक कामुक व्यक्ति था वह किशोर लड़कों की भावनाएं पूरी तरह समझता था उस अवस्था में वह भी अपनी करीबी महिलाओं की चुचियों पर ध्यान देता तथा उन्हें छूने और मसलने की फिराक में रहता था। राजेश जानता था कि सोनू के मन में लाली के प्रति कामुक भावनाएं आना एक स्वाभाविक प्रक्रिया थी। लाली को वह दीदी जरूर बोलता था पर यह तो सामाजिक रिश्ते थे वरना लाली जैसी गदरायी माल और सोनू जैसे लड़के के बीच जो कामुकता होनी चाहिए वह स्वाभाविक रूप से अपना रंग दिखा रही थी। राजेश ने लाली को छेड़ना जारी रखा….

"रंग खाली उपरे लगावाले बा के नीचहूँ"

लाली उत्तेजना से सिहर उठी राजेश ने तो यह बात सिर्फ कही थी पर लाली ने सोनू के मजबूत हथेलियों को अपनी बुर पर महसूस कर लिया वह मदहोश होने लगी राजेश की बातें उसे उत्तेजित कर रही थी राजेश चाह भी यही रहा था। लाली अपनी उत्तेजना को छुपाते हुए स्वयं हमलावर हो गई

"रहुआ पगला गईल बानी दिनभर आलतू फालतू सोचत रहेनी। जाई हमरा के छोड़ी और अपन साली सुगना से मन लगाई। आजू ओकर खूब चुची मिसले बानी अब जाके ओकरा जाँघि में मुह दे दीं"

लाली ने अनजाने में ही राजेश की सोच पर सटीक हमला कर दिया था राजेश हमेशा से सुगना की कोमल बुर की कल्पना किया करता था और उसे चूमने तथा चूसने के लिए अपने दिमाग में योजना बनाया करता था और आज उसकी पत्नी लाली ने खुलकर उसे वह बात कह दी थी।

राजेश से अब और बर्दाश्त ना हुआ उसने लाली की साड़ी और साया (पेटीकोट) को ऊपर करना शुरू कर दिया. लाली की गोरी जांघें राजेश की निगाहों में आ गई. उसकी बुर पनिया चुकी थी। शहर में रहने के कारण लाली अब अपनी बुर को साफ रखने लगी थी। राजेश ने अपनी लाली की बुर को सुगना की बुर मानकर अपने होठों और जीभ का कमाल दिखाना शुरू कर दिया।

उधर लाली अपने सोनू के बारे में सोचने लगी। उसने सोनू के उस मजबूत लंड को याद करना शुरू कर दिया। उत्तेजना ने लाली को वाचाल बना दिया लाली राजेश को उकसा रही थी उसने कराहती आवाज में कहा

"जीजा जी….. तनी धीरे से …..हां हां असहिं अअअअअअअ ईईईई लाली स्खलित होने वाली थी। कुछ ही देर में लाली की बुर में उसके पति राजेश का ल** आ चुका था और राजेश की कमर हिलने लगी थी।

दोनों पति पत्नी अपने अपने मन में अपनी कामुकता को जीते हुए संभोग सुख का आनंद लेने लगे। राजेश की कमर की रफ्तार बढ़ती गई जब लाली का स्खलन प्रारंभ हो गया तब राजेश ने उसे चूमते हुए सोनू की आवाज में कहा

" दीदी ठीक लागल ह नु"

लाली उत्तेजित तो थी ही उसने राजेश के गाल पर चपत लगाई और बोली

"अपना दीदी से असहिं बात कइल जाला" इतना कहकर उसने राजेश को अपने आलिंगन में ले लिया। राजेश भी उत्तेजित हो गया उसने अपने लंड को लाली की बुर में अंदर तक ठान्स दिया और झड़ते हुए बोला

" ना अपना दीदी के अईसे ना बोलल जाला लेकिन असहिं चोदल जाला।"

वह लाली को चूम रहा था और झड़ रहा था।

आज लाली और राजेश ने अपनी उत्तेजना में एक नया अंश जोड़ लिया था। होली के दिन किया गया यह संभोग उसके लिए यादगार बन गया था। उस रात के बाद सुगना और सोनू के बारे में कामुक बातें करने में उन्हें कोई ग्लानि नहीं होती अपितु वह दोनों अपनी अपनी उत्तेजना को जागृत कर एक-दूसरे से संभोग सुख लेने लगते। उनके जीवन में सेक्स को लेकर एक नया रोमांच पैदा हो गया था सोनू ने लाली के जीवन में एक नया रंग भर दिया था।

बनारस आकर लाली और राजेश बेहद खुश उन्हें रेलवे की तरफ से एक मध्यम दर्जे का मकान उपलब्ध करा दिया गया जो स्टेशन से बेहद करीब था यह एक संयोग ही था उनका घर सोनू के कालेज से भी ज्यादा दूर न था।

जब जब लाली और राजेश बिस्तर पर होते सुगना का जिक्र हो ना हो सोनू का जिक्र अवश्य होता। उत्तेजित स्त्री के साथ संभोग करने का सुख राजेश बखूबी जानता था। लाली को गर्म करने के लिए उसके हाथ में सोनू का ब्रह्मास्त्र आ चुका था। लाली को अपनी बाहों में लिए वह सोनू की बातें शुरू करता और लाली की जांघों के बीच मदन रस स्वयं ही बहने लगता।

लाली खुद भी यह न समझ पाती उसका आकर्षण दिन पर दिन सोनु के प्रति क्यों बढ़ता जा रहा था। अपने पति की शह पाकर उसकी कल्पना आसमान छूने लगी। वह वह मन ही मन अपनी कल्पनाओं में सोनू के साथ अठखेलियां करती। कभी वह अपनी चूचयों को उसके चेहरे से रगड़ती कभी उसके लंड को अपने हाथों में महसूस करती और कभी कभी अपनी जांघों…. आह…….इसके आगे वह स्वयं शर्म से पानी पानी हो जाती।

वह कैसे सोनू के सामने कैसे नंगी हो सकती है। नहीं नहीं यह संभव नहीं. वह अपने विचारों से स्वयं युद्ध लड़ती और उसकी उंगलियां उसकी उत्तेजना में डूबी बुर से। अंततः विजय उंगलियों की होती और उसकी बुर झड़ने लगती।

लाली और राजेश का वैवाहिक जीवन सोनू और सुगना की वजह से आनंदमय हो चला था।

महानगरी एक्सप्रेस के स्लीपर डिब्बे में बैठा रतन अपने भाग्य या दुर्भाग्य के बारे में सोच रहा था। क्यों वह अपना खुशहाल गांव छोड़कर मुंबई गया? जहां वह बबीता जैसी दुष्ट स्त्री के संपर्क में आया.

रतन गांव का एक सीधा साधा पर तेज दिमाग वाला युवक था जो जीवन में उन्नति और प्रगति करना चाहता था. इसी कारण वह साहस कर मुंबई आ गया था पर नियति ने उसे बबीता जैसी सुंदरी के मोह जाल में फंसा दिया और वह उसकी जांघों के बीच बनी अनुपम कलाकृति में खो गया।

शहर की चिकनी चुत ने रतन के जीवन में ऐसे रंग भर दिए जैसे इंद्रधनुष आकाश में भर देता है। इंद्रधनुष की यह सुंदरता ज्यादा दिनों तक नहीं टिक पाई। आकाश साफ होते ही इंद्रधनुष गायब हो गया और बबीता का असली चेहरा रतन की आंखों के सामने आ गया। अब उसे बबीता से रत्ती भर भी प्रेम न रहा था। उसे तो अब यह भी शक होता था कि कहीं चिंकी और मिंकी उसकी बेटियां थी या बबीता ने अपने गर्भ में किसी और का पाप पाल रखा था। चिंकी और मिंकी दोनों प्यारी बच्चियां थी जो रतन को पापा पापा बुलातीं। रतन इस बात को नजरअंदाज कर कि वो किस का बीज हैं उन बच्चियों से एक आदर्श पिता की भांति प्यार करता और उनके मोह में बबीता से संबंध बनाए हुए था। पर कब तक?

वैसे भी अब रतन की निगाहों में उसकी पत्नी सुगना आ चुकी थी। उसने मन ही मन सुगना को माफ कर दिया था। उसने यह जानते हुए कि सुगना का पुत्र सूरज लाली के पति राजेश के साथ हुए एक आकस्मिक संभोग की परिणिति थी उसने सूरज को भी अपना लिया था।

मन ही मन रतन ने यह निर्णय ले लिया कि वह सुगना को अपनी पत्नी और सूरज को अपने पुत्र के रूप में स्वीकार कर लेगा। पर क्या वह बबीता के साथ आगे संबंध जारी रख पाएगा? या वह चिंकी और मिंकी को लेकर बबीता को बिना बताए वापस अपने गांव लौट आएगा?

उसके मन में तरह-तरह के विचार आ रहे थे ट्रेन पटरी पर सरपट दौड़ी जा रही थी. ट्रेन का लक्ष्य निर्धारित था। परंतु रतन के मन में हलचल मची हुई थी। वह जिस सुगना के करीब आना चाहता था यह ट्रेन उसे उससे दूर ले जा रही थी।

वह उसी जंजाल में जा रहा था जहां से वह निकलना चाहता था। जितना वह सुगना के करीब आ रहा था उतना ही बबीता से दूर हुआ चला जा रहा था। नियति ने अपनी पटकथा लिख रखी थी रतन एक कठपुतली की भाति उस पर अपने कदम बढ़ाए जा रहा था।

चाय …..चाय …...की कर्कश आवाज डिब्बे में गूंजने लगी. एक मैला कुचेला कपड़ा पहने आदमी एलुमिनियम की केतली में चाय लिए कंपार्टमेंट में आ चुका था। रतन ने अपने विचारों को विराम दिया और ₹5 का पुराना नोट देकर एक कुल्हड़ चाय खरीदी और खिड़की के बाहर तरह तरह के लोगों को देखते हुए चाय पीने लगा। उन लोगों में कुछ बबीता जैसी औरतें थी कुछ सुगना जैसी …..

उधर गांव में कजरी सरयू सिंह के दाग पर हल्दी और दूध लगा रही थी सुगना के साथ हैंड पम्प पर होली मनाने के बाद दाग कुछ और बढ़ गया था।

सरयू सिंह जब उस दाग के बारे में सोचते उन्हें वह दिन याद आ जाता जब उन्होंने पहली बार अपनी बेटी समान बहू की कोमल और कुवारी बुर को अपनी कामुक निगाहों से देखा था। वह अपने बालों से उस दाग को छुपाने का प्रयास करते पर अब उम्र की वजह से बाल भी कम हो रहे थे वह दाग आकार बड़ा चुका था और अब बालों द्वारा छुपाया न जा पा रहा हर व्यक्ति की निगाह उस दाग पर पड़ती और वह सरयू सिंह से उसके बारे में जानकारी एकत्रित करना चाहता सरयू सिंह न उस दाग के लगने का कारण बता पाते नहीं उसके बढ़ने का। नियति ने उन्हें यह दाग देकर निरुत्तर कर दिया इस दाग का उपाय न तो नीम हकीमों के पास था न डॉक्टर के पास।

जाने सरयू सिंह के भाग्य में क्या लिखा था। सुगना अपनी पायल छम छम बजाते हुए एक हाथ से अपने सूरज को अपनी कमर पर बैठाये हुए और दूसरे हाथ में दूध का गिलास पकड़े अपने बाबू जी के पास आ चुकी थी।उसमें सूरज को अपने बाबू जी की गोद में दिया और फिर दूध का गिलास पकड़ा दिया। सरयू सिंह एक बार फिर सुगना की चूचियों को देखने लगे कितनी मादक थी सुगना। उनके लंड में फिर हरकत होने लगी उन्होंने अपना ध्यान भटकाया और अपने पुत्र सूरज को खिलाने लगे। बीच-बीच में वह गिलास से उसे दूध पिलाते और बचा हुआ दूध खुद भी पीते।।

उस गिलास और सुगना की चूँची में कोई विशेष अंतर न था आज भी सुगना की चूँची पर सरयू सिंह और सूरज का बराबर का अधिकार था यह अलग बात थी की सरयुसिंह सुगना की चूची से जितना दूध खींचते उससे ज्यादा वीर्य उसकी प्यासी बुर में भर देते और सुगना को तृप्त कर देते।

सिर्फ उस बढ़ते हुए दाग को छोड़कर सरयू सिंह अपनी कजरी भौजी और सुगना बहू के साथ खुश थे…..

सुगना का जीवन भी बेहद खुशहाल हो चला था पिछले तीन-चार वर्षों से वह अपने बाबू जी से लगातार चुदवा रही थी उसने अपने बाबूजी सरयू सिंह और अपनी सास कजरी से कामकला के ऐसे ऐसे अनोखे ढंग सीखें थे जो शायद उसे एक नौजवान से प्राप्त न हो पाते।

सुगना ने अपने गर्भवती होने से पहले काम कला का लगभग हर सुख प्राप्त किया था। इसमें जितना सरयू सिंह का योगदान था उतना ही कजरी का।

परंतु उसकी चिंता का एक ही कारण था वह था सरयू सिंह के माथे का दाग। पता नहीं जब भी वह उनसे संभोग करती वह दाग उसे परेशान करता। जब वह सरयू सिंह के साथ संभोग कर रही होती तब भी वह दाग उसका ध्यान आकर्षित करता और उसे सोचने पर मजबूर कर देता। यह भटकाव उसकी उत्तेजना में भी कमी कर देता।

यह एक विडंबना ही थी कि उस विलक्षण कीड़े को न सरयू सिंह देख पाए थे न सुगना। उस समय यदि वह कीड़े को देख लिए होते तो निश्चय ही उसके दंश का कुछ न कुछ उपाय अवश्य कर गए होते। पर उन्होंने उस समय उस दाग को नजरअंदाज कर दिया था। सुगना को भी इस दाग का कोई उपाय न समझ रहा था कभी वह दाग कुछ कम होता कभी बढ़ जाता।

अब कजरी धीरे धीरे अपनी कामुकता को विराम दे रही थी। उसने अपनी बहू को पूर्ण पारंगत कर दिया था और वह उसके कुंवर जी का भरपूर ख्याल रखती कजरी अब सूरज के लालन-पालन में व्यस्त हो चली थी। वह अधिक से अधिक समय सुगना और सरयू सिंह को देती ताकि वह दोनों एक दूसरे के साथ का जी भर कर आनंद ले सकें।

उसे सुगना की कामुकता का अंदाजा था सुगना अभी भरपूर जवान थी उसकी बुर की प्यास सिर्फ और सिर्फ सरयू सिंह बुझा सकते थे… कजरी को यह बात पता थी की सरयू सिंह आज भी सुगना की गोरी और गुदांज गांड के पीछे थे। सुगना उससे हर बात बताती थी। परंतु कजरी और सुगना दोनों यह बात जानती थी कि सरयू सिंह के विशाल लंड को अपनी गांड में लेना तो दूर यह सोच कर भी उन दोनों की रूह कांप जाती थी। आज भी सरयू सिंह का लंड सुगना की चूत में वैसे ही जाता जैसे एक बच्चे के मोजे में कोई युवा अपना पैर घुसा रहा हो।

सुगना बार-बार प्रकृति को धन्यवाद देती जिसने उसके बुर को असीम लचीलापन दिया था जो सरयू सिंह के लंड को अपने अंदर उसी आत्मीयता और लगाव से पनाह देती थी जैसे उसकी पतली और मुलायम उंगलियों को।

सरजू सिंह की उस निराली इच्छा को पूरा करना अभी न कजरी के बस में था न सुगना के। कजरी ने तो उन्हें दिलासा देते देते अपना जीवन काट लिया था और अब पिछले दो-तीन वर्षों से सुगना उन्हें ललचाए जा रही थी। वह अपनी सुगना और कजरी से बेहद प्यार करते थे उन्होंने कभी उन दोनों पर अनुचित कार्य के लिए दबाव नहीं बनाया था उन्हें पता था यह एक अप्राकृतिक क्रिया थी । पर मन का क्या वह तो निराला था सरयू सिंह का भी और हम आप पाठकों का भी…..

शेष अगले भाग में
Toh laali aur sonu khus hein rajesh ke transfer se ab unke bich nikatta paida hone ka sambhabana hai aur rajesh ke man mein laddu fut rahe hein ki woh apne bibi ki saheli sugna ko apne bistar tak la sakega idhar ratan bhi sugna ke madamast sharir ke aage babita ko bhul kar sugna ko biwi aur suraj ko apne bete manne ke liye gaon nikal chuka hai aur yahan saryu singh ke sir mein wo kida katne ke uparant jo chinh hua hai isse dekh kar sex smbandh ke bich sugna ka charmotkarsh kam hota ja raha hai kya ye saryu aur sugna ke bich bicched ka purvavash hai? Kya niyati ka milaya ye anokha bandhan tut jayega,sugna saryu se kebal sharirik sukh hi nahi balki ek pati ka pyar,suraksha,senha sab pa rahi thi,kya woh ratan ke saath chali jayegi joh use suhag sej mein hi dutkaar diya tha ya phir rajesh ke taraf akarshit hogi uske kamuk vyavahar se, personally mujhe toh saryu aur sugna ka saath accha laga hai aur jis tarah unme samapark din ba din ghanisht hua hai tab ek jhatke mein dono ka dur ho jana na gawara hoga mere liye,again superb update with awesome writing skill
 
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Lovely Anand

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Toh laali aur sonu khus hein rajesh ke transfer se ab unke bich nikatta paida hone ka sambhabana hai aur rajesh ke man mein laddu fut rahe hein ki woh apne bibi ki saheli sugna ko apne bistar tak la sakega idhar ratan bhi sugna ke madamast sharir ke aage babita ko bhul kar sugna ko biwi aur suraj ko apne bete manne ke liye gaon nikal chuka hai aur yahan saryu singh ke sir mein wo kida katne ke uparant jo chinh hua hai isse dekh kar sex smbandh ke bich sugna ka charmotkarsh kam hota ja raha hai kya ye saryu aur sugna ke bich bicched ka purvavash hai? Kya niyati ka milaya ye anokha bandhan tut jayega,sugna saryu se kebal sharirik sukh hi nahi balki ek pati ka pyar,suraksha,senha sab pa rahi thi,kya woh ratan ke saath chali jayegi joh use suhag sej mein hi dutkaar diya tha ya phir rajesh ke taraf akarshit hogi uske kamuk vyavahar se, personally mujhe toh saryu aur sugna ka saath accha laga hai aur jis tarah unme samapark din ba din ghanisht hua hai tab ek jhatke mein dono ka dur ho jana na gawara hoga mere liye,again superb update with awesome writing skill

धन्यवाद

ऊपर दिए गए अपडेट में रतन अभी गांव से वापस मुंबई के लिए जा रहा है बबिता के पास।

सरयू सिंह और सुगना इस कहानी के मुख्य कलाकार हैं और काफी समय तक रहेंगे अभी तो सरयू सिंह की उंगलियों ने सुगना का कौमार्य सीना अभी तो पहला संभोग भी नहीं हुआ है समय के साथ सुगना और सरयू सिंह के अद्भुत मिलन और सुगना को कामकला का ज्ञान मिलना बाकी है
रही बात रतन की उसने शुरू से ही सुगना को अपनी पत्नी के रूप में स्वीकार न किया उसने बाल विवाह को नकारा था और सुगना को सुहाग की सेज पर छोड़कर कोई अक्षम्य अपराध नहीं किया था उसने बबीता के साथ किए गए अपने वादे को निभाया सुगना के साथ वह चाहता तो संभोग कर के भी छोड़ सकता था परंतु उसने ऐसा नहीं किया

आने वाले समय में कथा में कई मोड़ आएंगे जो कभी आप की अपेक्षा अनुसार होंगे कभी अपेक्षा से हटकर
साथ बनें रहे और अपनी प्रतिक्रियाएं देते रहे।
 
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