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Incest आह..तनी धीरे से.....दुखाता.

Lovely Anand

Love is life
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आह ....तनी धीरे से ...दुखाता
(Exclysively for Xforum)
यह उपन्यास एक ग्रामीण युवती सुगना के जीवन के बारे में है जोअपने परिवार में पनप रहे कामुक संबंधों को रोकना तो दूर उसमें शामिल होती गई। नियति के रचे इस खेल में सुगना अपने परिवार में ही कामुक और अनुचित संबंधों को बढ़ावा देती रही, उसकी क्या मजबूरी थी? क्या उसके कदम अनुचित थे? क्या वह गलत थी? यह प्रश्न पाठक उपन्यास को पढ़कर ही बता सकते हैं। उपन्यास की शुरुआत में तत्कालीन पाठकों की रुचि को ध्यान में रखते हुए सेक्स को प्रधानता दी गई है जो समय के साथ न्यायोचित तरीके से कथानक की मांग के अनुसार दर्शाया गया है।

इस उपन्यास में इंसेस्ट एक संयोग है।
अनुक्रमणिका
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भाग 126 (मध्यांतर)
 
Last edited:

Kadak Londa Ravi

Roleplay Lover
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भाग 86

उधर सुगना ने वह गंदी किताब अलमारी के ऊपर छुपा कर रख दी…वह किताब का आधे से ज्यादा हिस्सा पढ़ चुकी थी.. उस किताब ने सुगना के दिमाग पर भी असर किया था.. और वह उस हरामजादे लेखक को जी भर भर कर गालियां देती जिसने भाई-बहन के पवित्र रिश्ते को तार-तार कर दिया था परंतु अपने स्वप्न में सुगना गाहे-बगाहे चूदाई के सपने देखती और खूबसूरत लंड से जी भर कर चुद कर स्खलित होती…और कभी आत्मग्लानि कभी होंठो पर मुस्कुराहट ले सो जाती…


सोनू को गए कई महीने बीत गए थे…दीपावली आने वाली थी….दीपावली ध्यान में आते ही सुगना को सरयू सिंह याद आ गए..

सुगना चहकते हुए लाली के पास गई …और पूछा


"ए लाली अबकी दिवाली में गांव चलेके…?"

अब आगे…

प्रश्न पूछा गया था लाली से परंतु उत्तर सोनी ने दिया जो हॉल में आ चुकी थी…

*हां दीदी अब की दिवाली गांव पर ही मनावल जाई हमरो छुट्टी बा…

मां और मोनी के भी ओहिजे बुला लिहल जाई…"

लाली भी खुश हो गई उसे भी अपने माता-पिता से मिलने का अवसर प्राप्त होता और त्योहारों की खुशियां वैसे भी पूरे परिवार के साथ मनाने में ही आनंद था ..

सुगना ने सोनी से कहा..

"आज बाजार जाकर सोनू के फोन कर दीहे दू चार दिन पहले जाई तब साथे गांव चलेके"

"ठीक बा दीदी…"


सोनी…. खुशी खुशी तैयार होने चली गई..

सोनी यद्यपि रहने वाली सीतापुर गांव की थी परंतु उसे सलेमपुर में ज्यादा मजा आता था वहां वह मेहमान की हैसियत से आती थी और अपनी बहन सुगना की खातिरदारी का आनंद उठाती थी ।

गांव की सारी महिलाएं महिलाएं सोनी की पढ़ाई की कायल थी सोनी ने अपने गांव का नाम रोशन किया था। शायद वह अपने गांव की पहली महिला थी जो आने वाले समय में नौकरी करने के लायक थी।


एक तो सोनी जिस नर्सिंग की पढ़ाई पढ़ रही थी वह गांव वालों की प्राथमिक चिकित्सा के लिए डॉक्टर ही थी। सोनी ने अपने सामान्य ज्ञान ने कई गांव वालों की मदद की थी और गांव की महिलाएं उसे समय से पूर्व ही डॉक्टर जेड डॉक्टर कहकर बुलाने लगी थीं और सोनी को यह सम्मान बेहद पसंद आता था।

ऐसा ना था की सोनी को सलेमपुर सिर्फ इसलिए ही भाता था, उसे वहां के मनचले लड़के भी पसंद आते थे।

जैसे-जैसे सोनी युवा होती गई सलेमपुर के लड़के उसके मादक और कमसिन शरीर के दीवाने होते गए। गांव के मनचले लड़के उस पर नगर निगाह टिकाए रखते। इसका एहसास सोनी को बखूबी होता। सरयू सिंह के रूतबे की वजह से मनचले सोनी को अपनी निगाहों से तो ताड़ते तो जरूर परंतु उसे छूने और उसके करीब आने की हिम्मत न जुटा पाते।

सोनी को लड़कों की यह बेचैनी और बेकरारी बेहद पसंद आती उसे अपनी चढ़ती हुई जवानी का एहसास था और वह उसका भरपूर आनंद ले रही थी। आज नहाते वक्त वह उन्हीं बातों को याद कर रही थी।


बनारस आने के बाद उसने विकास से संबंध बना लिए थे और अब वह जवानी के मजे लूट चुकी थी। शरीर में आया बदलाव स्पष्ट था। वह एक बार खुद को गांव की पगडंडियों पर चलते हुए देख रही थी और मन ही मन मुस्कुरा रही थी उसे यह एहसास हो रहा था कि उसके गदराये हुए नितंब पगडंडियों पर चलते समय पीछे से कैसे दिखाई पड़ रहे होंगे?.

उसने अपने नितंबों को देखने के लिए गर्दन घुमाई परंतु उनकी खूबसूरती के दर्शन न कर पाईं…उसने अपने दोनों हाथों से अपने नितंबों को सहलाया और उनके आकार का अंदाज लगाने लगी निश्चित ही जिस अनुपात में हथेलियां बड़ी थी नितंब उससे ज्यादा…..

सोनी ने अपने नितंबों को स्वयं अपने ही हाथों से फैलाया और उसे विकास की याद आ गई….


उसकी हथेलियां एक बार फिर उसकी कोमल जगहों पर घूमने लगी एक हथेली ने चुचियों का मोर्चा संभाला और दूसरी उस गहरी गुफा से प्रेम रस खींचने की कोशिश करने लगीं ….सोनी आनंद से सराबोर थी…उंगलियों और का करतब कुछ देर और चला और सोनी पूरी तन्मयता से अपने हस्तमैथुन का आनंद लेने लगी…

"सोनी 9:00 बज गइल तोरा देर नइखे होत? कतना नहा तारे?"

सोनी ने अपनी उंगलियों की रफ्तार बढ़ा दी और कुछ ही देर में स्खलित हो कर अपना स्नान पूर्ण कर लिया…

कुछ देर बाद …सोनी तैयार हुई और खुशी-खुशी बाजार जाकर सोनू को फोन लगा दिया..

"हां भैया हम सोनी बोला तानी.."

"का हाल बा? सब ठीक बानू?"

"हां सुगना दीदी कहली हा कि अबकी दिवाली सलेमपुर में मनावल जाई तू जल्दी आ जाई ह?"

"सुगना की बात सुनकर सोनू खुश हो गया"

"ठीक बा हम दो-चार दिन पहले आ जाएब"

"दीदी और कुछ कहत रहली हा?"

"काहे कुछ बात बा का?"

सोनी का प्रश्न सुनकर सोनू आश्चर्य में पड़ गया वह उसे एहसास हुआ जैसे उसने सोनी से जो प्रश्न पूछा था वह सुगना के प्रति उसकी व्यग्रता जाहिर कर रहा था।

"ना ना असहीं पूछ तानी हां"

"दिन भर तहारा खातिर लइकिन के फोटो देखत रहेले "

"और लाली दीदी"

"ऊहो तहरा के याद करेली?"

सोनी को अब तक यह ज्ञात न था कि लाली और सोनू के बीच अब रिश्ते बदल चुके थे फिर भी सोनू लाली को पूरे सम्मान से दीदी बुलाता और सोनी के मन में कोई गलत ख्याल पैदा ना होने देता।

सोनू सुगना के बारे में और भी बातें करना चाहता था.. परंतु सोनी से इसकी उम्मीद नहीं की जा सकती थी.. सोनी को क्या पता था कि उसका बड़ा भाई सोनू अपनी ही बड़ी बहन सुगना के प्यार में पागल हुआ जा रहा था……

उधर मनोरमा अपने नए बंगले में शिफ्ट हो चुकी थी। सोनू से मिलने के बाद उसके मन में सरयू सिंह की यादें एक बार फिर ताजा हो गई। जब जब वह पिंकी को देखती उसके मासूम चेहरे में उसे सरयू सिंह दिखाई पड़ते…यद्यपि सरयू सिंह कहीं से मासूम न थे परंतु मनोरमा के प्रति उनका सम्मान सराहनीय था वह सदैव उसका यथोचित सम्मान करते और अन्य साथियों को भी उसके प्रति एक आदर्श व्यवहार की प्रेरणा देते।


बनारस महोत्सव की उस रात को छोड़ सरयू सिंह ने कभी भी उसके सम्मान को ठेस नहीं पहुंचाई और यथोचित सम्मान और आदर देखकर उसके पद की गरिमा बनाए रखी थी मनोरमा सरयू सिंह से बेहद प्रसन्न रहती थी और प्रत्युत्तर में उनका भी सम्मान बनाए रखती थी।

बनारस की उस कामक रात को याद कर रही थी। सेक्रेटरी साहब से विवाह बंधन टूटने के पश्चात जैसे मनोरमा के दिमाग में उसे उस कामुक रात को याद करने की खुली छूट दे दी थी।

मनोरमा के मन में अब भी यह प्रश्न बार-बार खटक रहा था कि आखिर सरयू सिंह उस दिन उस कमरे में किसका इंतजार कर रहे थे…


क्या सरयू सिंह अविवाहित होने के बावजूद इस तरह के संबंध रखते थे? परंतु किससे?

सुगना और सरयू सिंह के संबंध मनोरमा की कल्पना से परे थी? उसके नजरों में यह एक निकृष्ट व्यभिचार था। सरयू सिंह से इसकी उम्मीद कतई नहीं की जा सकती थी ।

तो क्या कजरी? हां यह हो सकता है। आखिर वह उनकी हम उम्र भी थी और एक तरह से परित्यक्ता। भाभी देवर का संबंध वैसे भी हंसी ठिठोली का होता है…. हो सकता है सरयू सिंह कजरी के करीब आ गए हों..या कोई और महिला?


मनोरमा अपने पति को छोड़ने के बाद स्वयं एक परित्यक्ता की भूमिका में आ चुकी थी। उसे खुद और कजरी में समानता दिखाई पड़ने लगी। आखिर दोनों ही युवतियों को उनके पतियों ने छोड़ दिया। जिस तरह सरयू सिंह ने कजरी की प्यास बुझाई थी क्या वह उसकी भी प्यास …..मनोरमा ने खुद से यह प्रश्न किया और खुद ही मुस्कुराने लगी….

मनुष्य की सोच कभी-कभी इतनी असामान्य और असहज होती है कि वह अपनी सोच पर ही मुस्कुराने लगता है…

मनोरमा ने मन ही मन सोच लिया कि जब कभी उसकी मुलाकात सरयू सिंह से होगी वह इस बात का जिक्र जरूर करेगी और यह जानने का प्रयास करेगी कि आखिर सरयू सिंह उस दिन किसका इंतजार कर रहे थे…

मनोरमा सरयू सिंह के बारे में जैसे जैसे सोचती गई वैसे वैसे वह सहज होती गई। उसे सरयू सिंह के साथ बिताए गई उस रात का कोई अफसोस न था अपितु उसने उस मुलाकात को भगवान की देन मान लिया था।


जिस संभोग ने उसकी पथराई कोख में सुंदर पिंकी को सृजित किया था वह गलत कैसे हो सकता है? सुगना मनोरमा उस रात को याद करने लगे तभी उसे सरयू सिंह के उस लाल लंगोट का ध्यान आया जिसे मनोरमा अपने साथ ले आई थी… उसमें अपनी अलमारी से वह लाल लंगोट निकाला और उसे ध्यान पूर्वक देखने लगी..वह लाल लंगोट सरयू सिंह के मजबूत लंड कैसे अपने आगोश में लेता होगा और सरयू सिंह उस लंगोट में कैसे दिखाई पड़ते होंगे … मनोरमा यह सोचकर मुस्कुराने लगी ..

शरीर सिंह के मर्दाना शरीर के बारे में सोचते सोचते मनोरमा कब उत्तेजित हो चली थी उसे इसका एहसास तब हुआ जब से अपनी जांघों के बीच नमी महसूस हुई.। और अब जब उत्तेजना ने मनोरमा को घेर लिया था मनोरमा खुद को ना रोक पाई।

बिस्तर पर अपनी जांघों के बीच तकिया फसाए मनोरमा अब एक एसडीएम न होकर एक उत्तेजित महिला की तरह तड़प रही थी.. वह अपनी जानू को सिकुड़ कर कभी अपने पेट की तरफ लाती कभी अपने पैर सीधे कर देती …नियति मनोरमा की तरफ देख रही थी और अपने ताने-बाने बुन रही थी।


कामुक मनोरमा का यह रूप बिल्कुल अलग था कई दिनों की बल्कि यूं कहें कई वर्षों की प्यासी मनोरमा की के अमृत कलश पर सरयू सिंह ने जो श्वेत धवल वीर्य चढ़ाया था और मनोरमा को जो तृप्ति का एहसास दिलाया था वह अद्भुत था…

आज मनोरमा को यह एहसास हो रहा था कि उस मुलाकात ने उसे उस अद्भुत सुख से परिचय कराया था जिस पर हर स्त्री का हक है …खूबसूरत जिस्म और मादक अंगो से सुसज्जित मनोरमा की सोच पर कामुकता हावी हो रही थी और उसे सरयू सिंह एक कामदेव के रूप में दिखाई पड़ रहे थे..

एक बार के लिए मनोरमा के मन में आया कि वह सरयू सिंह से मिलने के लिए सलेमपुर जाए परंतु स्त्री हया और अपने पद के गौरव के अधीन मनोरमा को यह निर्णय व्यग्रता भरा लगा । वह मन मसोसकर रह गई परंतु सलेमपुर जाने का निर्णय न ले पाईं.. परंतु उसकी तड़प ऊपर वाले ने सुन ली और नियति सरयू सिंह को लखनऊ लाने की जुगत लगाने लगी..

उधर शाम को सोनी ने आकर सोनू से हुई बातचीत का सारा विवरण सुगना और लाली को बता दिया दोनों बहने प्रसन्न हो गई..

सुगना के चेहरे पर चमक स्पष्ट दिखाई पड़ रही थी सोनू और पूरे परिवार के साथ गांव पर दीवाली मनाने की बात सोचकर सुगना बेहद खुश थी।

कुछ ही दिनों में उत्तर प्रदेश में निकाय चुनाव कराए जाने थे। तात्कालिक सरकार में नई भर्ती वाले सभी प्रशासनिक अधिकारियों की ट्रेनिंग एक महीना कम कर दी। सोनू और उसके साथी भी इस निर्णय से प्रभावित हुए परंतु उन सभी के चेहरे पर हर्ष व्याप्त था। आखिर अपने ओहदे पर काम करना और क्लासरूम में ट्रेनिंग करना दोनों अलग-अलग बातें थी। ट्रेनिंग समाप्ति पर एक विशेष कार्यक्रम रखा गया था जो आने वाली दीपावली से लगभग 1 सप्ताह पूर्व था। मनोरमा ने कक्षा में आकर सोनू और उसके साथियों को इसकी सूचना दी और कहा..

"आप सबको जानकर हर्ष होगा कि आप की ट्रेनिंग एक महीना कम कर दी गई है। ट्रेनिंग की समाप्ति पर आप सब अपने परिवार के अधिकतम 3 सदस्यों को उस विशेष कार्यक्रम में सम्मिलित होने के लिए बुला सकते हैं। इसी कार्यक्रम में इस ट्रेनिंग क्लास के प्रतिभाशाली छात्रों को सम्मानित किया जाएगा।"

"मैडम परिवार के सदस्यों के रहने की व्यवस्था कहां की जाएगी एक विद्यार्थी ने प्रश्न किया…"

"सभी पार्टिसिपेंट और उनके परिवार के लिए शारदा गेस्ट हाउस में दो कमरे दो दिनों के लिए उपलब्ध रहेंगे.. जिसमें उनके रहने खाने का प्रबंध होगा परंतु आने-जाने का खर्च आपको स्वयं वहन करना होगा…."

क्लास के सारे प्रतिभागियों में खुशी की लहर दौड़ गई आखिर अपनी ट्रेनिंग के आखिरी दिन अपने परिवार के साथ होना और उनके समक्ष प्रशासनिक पद के कार्यभार ग्रहण करने की शपथ लेना सभी के लिए एक गर्व की बात थी हर कोई अपने परिवार के हम सदस्यों को उस दिन आमंत्रित करना चाहता था ।

अधिकतर प्रतिभागी अपने माता पिता और छोटे भाई बहनों को बुलाने की सोच रहे थे परंतु सोनू के लिए दुविधा अलग थी एक तरफ पितातुल्य सरयू सिंह थे जिन्होंने उसकी पढ़ाई लिखाई में बहुत मदद की थी दूसरी तरफ उसकी अपनी मां पदमा जिसने उसे पाल पोस कर बड़ा किया और सबसे ज्यादा सुगना जिसके साथ रहकर उसने इस प्रशासनिक पद की तैयारियां की थी और अपनी बड़ी बहन के सानिध्य और सतत उत्साहवर्धन से आज वह इस मुकाम पर पहुंचा था।

सोनू ने उन तीनों को ही बुलाने की सोची और उसने यह संदेश तीनों तक पहुंचा दिया। उस समय संदेश पहुंचाना भी एक दुरूह कार्य परंतु टेलीफोन पर आया मैसेज लोग एक दूसरे की मदद के लिए उन तक अवश्य पहुंचा देते थे । पदमा आना तो चाहती थी परंतु मोनी को छोड़कर लखनऊ जाना यह संभव न था। एक बार के लिए पदमा के मन में आया कि वह मोनी को सुगना के पास छोड़कर लखनऊ चली जाए परंतु खेती किसानी के कार्य के कारण वह यह निर्णय न ले पाई। गांव मैं मोनी को अकेले छोड़ना उचित न था उसकी गदराई काया के कई दीवाने थे और अक्सर उस पर नजरें गड़ाए रखते थे मोनी को इनसे कोई सरोकार न था परंतु उन्हें जो मोनी से चाहिए था वह सबको पता था। वह उसकी जवानी का अपनी आंखों से ही रसास्वादन गाहे-बगाहे कर लिया करते थे।

उधर सरयू सिंह सहर्ष तैयार हो गए और सुगना भी।

सोनू का संदेश सब सुनना के घर पहुंचा तो सबसे ज्यादा दुखी लाली थी आखिर उसने भी दो सोनू की ठीक वैसे ही सेवा की थी जैसे सुगना ने की थी अभी तो उससे कहीं ज्यादा सोनू जब बनारस पढ़ने आया था वह तब से लाने के घर आता जाता था सुगना तो बनारस कुछ वर्ष पहले ही आए थे वैसे भी लाली सोनू से ज्यादा करीब आ चुकी थी परंतु अपना-अपना होता है सोनू और सुगना बचपन से साथ रहे थे और उनके बीच की आत्मीयता बेहद गहरी थी लाली सोनू के करीब अवश्य थी पर शायद वह सुगना न थी।

ऐसा नहीं था कि सोनू ने लाली के बारे में सोचा न था। परंतु जब आपके पास विकल्प कम तो निश्चय ही चयन की प्रक्रिया आरंभ होती है और चयन निश्चित ही कुछ प्रतिभागियों के लिए दुखदाई होता है । लाली ने भी अपनी स्थिति का आकलन किया और सोनू के निर्णय को समझने का प्रयास किया । सोनू से दुखी या उसे गलत ठहराने का कोई कारण न था। लाली ने अपने दुख पर नियंत्रण किया और खुशी खुशी सुगना को लखनऊ भेजने के लिए तैयारियां कराने लगी।

सुगना के लिए अपनी ही आंखों के सामने अपने छोटे और काबिल भाई को प्रशासनिक पद की शपथ करते ग्रहण करते देखना उसके लिए खुशी की बात थी।

सुगना लाली को भी अपने साथ ले जाना चाहती थी आखिर वही उसकी सुख दुख की सहेली थी परंतु यह संभव न था सारे बच्चों को और पूरे कुनबे को ले जाना संभव न था न हीं लखनऊ में रहने की व्यवस्था थी…..


पहले के दिनों में एक दूसरे से बात कर पाने की इतनी सुविधा न थी पदमा अपने लखनऊ न जाने की बात सोनू को बता भी ना पाई उसने इतना जरूर किया कि अपने न जाने की खबर किसी हर कार्य से सलेमपुर सरयू सिंह तक पहुंचा दी सरयू सिंह कजरी को लेकर बनारस के लिए निकल पड़े..

कजरी ने सरयू सिंह से मुस्कुराते हुए कहा ..

"अब त कालू मल 2 दिन अकेले ही रहीहे इनकर सेवा के करी..?"

सरयू सिंह ने लंबी सांस भरी वह कजरी के मूक प्रश्न का उत्तर नहीं देना चाहते थे..

"अच्छा रउआ सुगना के ऊ (लंड) काहे ना छूवे ना देवेनी? पहले तो दिन भर उतरा के गोदी में लेले राहत रहनी अब अइसन का हो गईल बा…?

दरअसल सुगना से कई दिनों दूर रहने के पश्चात सरयू सिंह धीरे-धीरे अपनी आत्मग्लानि को कम करने में सफल रहे थे और धीरे-धीरे उनका लंड स्त्री योनि की तलाश में सर उठा कर घूमने लगा था..

सरयू सिंह के धोती में चाहे जितनी ताकत छुपी हो पर चेहरे पर आए उम्र का असर उनकी मर्दाना ताकत पर भी प्रश्नचिन्ह लगाता था। भला क्यों कर कोई तरुणी 5२ - 5४ वर्ष के मर्द से संभोग की लालसा रख उनके समीप आएगी?


परंतु कजरी सरयू सिंह के मन और विचार दोनों से भलीभांति वाकिफ थी उनके धोती में आ रहे उबाल को संभालना उसे बखूबी आता था। अब वह संभोग तो नहीं कर सकती थी परंतु अपने कुशल हाथों से सरयू सिंह के लंड का मान मर्दन करना उसे बखूबी आता था। जिस हस्तमैथुन क्रिया को उसने कुछ वर्षों से छोड़ दिया था उसने शरीर सिंह की इच्छा और खुशी का मान रखने के लिए वह अपने हाथों से सरयू सिंह के लंड को सहलाना और उसका वीर्यपात कराने लगी थी। सरयू सिंह को कजरी का साथ इसीलिए बेहद पसंद था वह उसे एक पल भी नहीं छोड़ना चाहते थे।

सोनू की प्रसिद्धि गांव में तेजी से बढ़ रही थी और उसके लिए आने वाले रिश्तो की संख्या भी लगातार बढ़ रही थी शरीर सिंह बनारस आते समय 46 लड़कियों की फोटो अपने साथ लेकर आ रहे थे..

बनारस स्टेशन पर उतरकर सरयू सिंह ने ऑटो किया और सुगना के घर की तरफ चल पड़े उधर सुगना और लाली अपने घर के बाहर बैठे धूप ताप रहे थे जैसे ही ऑटो उनके घर की तरफ आता दिखाई पड़ा लाली और सुगना सतर्क हो गए।


सर पर से हटे पल्लू ने अपनी जगह पकड़ ली और सुगना के सुंदर मुखड़े को और भी सुंदर बना दिया। सरयू सिंह आ चुके थे ऑटो से उतर कर वह अंदर आ गए। सुगना ने उनके और कजरी के चरण छुए…और सुगना कजरी के गले लग गई। सुगना के आलिंगन का सुख सरयू सिंह ने स्वयं छोड़ा था और अब सुगना भी उनकी मनोदशा समझ चुकी थी ।

सरयू सिंह अभी भी उसके ख्वाबों में आकर उसे गुदगुदाते उसे छूते उसे सहलाते और उसकी उत्तेजना जागृत करते परंतु हकीकत सुगना भी जानती थी कि जो कामसुख उसने सरयू सिंह के साथ उठाए थे अब शायद वह न उचित और न संभव । सुगना एक आदर्श बहू के रूप में व्यवहार कर रही थी और सरयू सिंह भी अपना रिश्ता निभा रहे थे जो सिर्फ वही जानते थे…

सुगना को जब पता चला उसकी मां पदमा लखनऊ नहीं जा रही है उसने तुरंत ही लाली से कहा यह लाली तू भी संग चल

लाली पहले निमंत्रण न मिलने से दुखी थी और अब वह पदमा की जगह जाने को तैयार ना हुई उसने अपने मनोभावों छुपा लिए और सहजता से बोली अरे अपना सारा बच्चा लोग के के देखी कजरी में सुगना का पक्ष लिया परंतु लाली तब भी ना माने और अंततः बारी सोनी कि आई सोनी जाना तो चाहती थी परंतु उसकी नर्सिंग कॉलेज में कुछ प्रोग्राम था अंततः जाने के लिए मना कर दिया।


सरयू सिंह और सुगना लखनऊ जाने के लिए अपनी तैयारियां करने लगे… दोनों छोटे बच्चे सूरज और मधु को भी सुगना के साथ लखनऊ जाना था। रतन की पुत्री मालती ने लाली के बच्चों के साथ रहना खेलना उचित समझा और कजरी के सानिध्य में 2 दिन रहने के लिए स्वता ही हामी भर दी….

सरयू सिंह ने आज भी सोनी की गदराई जवानी को देखा बल्कि उसके असर को अपने लंड पर भी बखूबी महसूस किया…. उनका कामुक मन सुगना की बहन सोनी को अपनी साली के रूप में देख लेता था..परंतु जब उन्हें सुगना का ध्यान आता वह तुरंत ही वापस सतर्क हो अपनी कुत्सित सोच पर लगाम लगा लेते।

अगली सुबह सरयू सिंह अपने पुत्र सूरज को गोद में लिए को अपनी गोद में लिए स्टेशन पर ट्रेन का इंतजार कर रहे थे। पास खड़ी सुगना अपना घुंघट ओढ़े मधु को अपनी गोद में लिए हुए थी…

नियति मुस्कुरा रही थी सरयू सिंह ने जिस नवयौवना के यौवन का जी भर कर आनंद लिया था वह पुत्री रूप में उसने बगल में खड़ी अपने अंतरमन से जूझ रही थी…

एक पल के लिए सुगना को ऐसा लगा जैसे उसके बाबूजी उसे अपने से दूर कर उसे सोनू के आगोश में देने जा रहे थे..

सुगना भी जानती थी ऐसा कतई न था परंतु अपनी सोच पर सुगना स्वयं मुस्कुरा उठी…

वासना जन्य सोच पर किसी का नियंत्रण नहीं होता कामुक मन ... कुछ भी कितना भी और कैसा भी, अच्छा बुरा , उचित अनुचित यहां तक कि घृणित संबंध भी सोच सकता है..

ट्रेन की सीटी ने सुगना को उसकी सोच से बाहर निकाला और वह सरयू सिंह के पीछे पीछे ट्रेन में चढ़ने के लिए चलने लगी..


शेष अगले भाग में..
Fadu update diya h writer sahab lekin khi beech me phir se bude sahab ki story Mt le aana taza tarrar Sonu ki prem kahani hi badana
 

Lovely Anand

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Please send update, Please.अब और इन्तजार नहीं होता.
आपने मेरा इंतजार खत्म किया मैं आपका करूंगा..
अपडेट की प्रतिक्षा रहेगी जल्दी से दिजिएगा
Jarror
Update please 🙏
Yes thanks for coming on portal
Fadu update diya h writer sahab lekin khi beech me phir se bude sahab ki story Mt le aana taza tarrar Sonu ki prem kahani hi badana
इंतजार करिए..जो होगा अच्छा होगा..
Abb kha gyi tumhari commitment
20 to kb ka hi ho gya
Update q nhi de rhe
Comitment apni jagah hai..

Par "tumhari" yah shabd kuch jama nahi..Maine to yah भाषा कभी प्रयोग नहीं की..



वैसे अपडेट शाम तक आ जाएगा
 
Last edited:

Rekha rani

Well-Known Member
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आपने मेरा इंतजार खत्म किया मैं आपका करूंगा..

Jarror

Yes thanks for coming on portal

इंतजार करिए..जो होगा अच्छा होगा..

Comitment apni jagah hai..

Par "tumhari" yah shabd kuch jama nahi..Maine to yah भाषा कभी प्रयोग नहीं की..



वैसे अपडेट शाम तक आ जाएगा
Apni apni samjh hoti hai sir ji plz update dijiye waiting me hai
 

Lovely Anand

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भाग 87
नियति मुस्कुरा रही थी सरयू सिंह ने जिस नवयौवना के यौवन का जी भर कर आनंद लिया था वह पुत्री रूप में उसने बगल में खड़ी अपने अंतरमन से जूझ रही थी…


एक पल के लिए सुगना को ऐसा लगा जैसे उसके बाबूजी उसे अपने से दूर कर उसे सोनू के आगोश में देने जा रहे थे..

सुगना भी जानती थी ऐसा कतई न था परंतु अपनी सोच पर सुगना स्वयं मुस्कुरा उठी…

वासना जन्य सोच पर किसी का नियंत्रण नहीं होता कामुक मन ... कुछ भी कितना भी और कैसा भी, अच्छा बुरा , उचित अनुचित यहां तक कि घृणित संबंध भी सोच सकता है..

ट्रेन की सीटी ने सुगना को उसकी सोच से बाहर निकाला और वह सरयू सिंह के पीछे पीछे ट्रेन में चढ़ने के लिए चलने लगी..


शेष अगले भाग में..

सुगना को अपने पीछे आते देख सरयू सिंह ने उसके हाथ से उसका झोला ले लिया और तेजी से ट्रेन में चढ़ गए। सुगना अभी भी मधु को अपनी गोद में पकड़े ट्रेन के दरवाजे के पास खड़ी थी सरयू सिंह ने झोला जमीन पर रखा और अपने मजबूत हाथ बढ़ा दिये।


सुगना ने अपने हाथ निकाले। सुगना की गोरी गोरी भुजाओं को देखकर सरयू सिंह के दिमाग में सुगना की खूबसूरत काया घूम गई।सुगना के हाथों का स्पर्श पाते ही उनकी तंद्रा भंग हुई और उन्होंने सुगना कि कोमल कलाइयां पकड़ ली…

सुगना ने भी उस स्पर्श को महसूस किया और उसके रोएं उसकी त्वचा का साथ छोड़ कर खड़े हो गए..जैसे वो स्वयं सरयू सिंह से मिलने को उतावले हो रहे थे। सुगना सरयू सिंह का सहारा लिए ट्रेन में चढ़ने लगी मधु के गोद में होने की वजह से सुगना को चढने में दिक्कत हो रही थी तभी पीछे खड़े एक मनचले युवक ने सुगना को पीछे से धक्का देकर ट्रेन में चढ़ाने की कोशिश की आपदा में अवसर खोज कर सुगना की कमर पर हाथ फेर लिया।

सुगना को यह अटपटा लगा परंतु उसने उस व्यक्ति के धक्के में मिले सहयोग को ज्यादा वरीयता दी…उसने एक बार पीछे मुड़कर देखा और अपनी निगाहों से उसने युवक की निगाहों की पढ़ने की कोशिश की..

निश्चित ही उस युवक की आंखों में कामुकता थी। सुगना ने कोई प्रतिक्रिया देना उचित न समझा वह वहां कोई बवाल नहीं खड़ा करना चाहती थी। सुगना भली भांति यह बात जानती थी कि यह बात सरयू सिंह को पता चल जाती तो निश्चित ही उस युवक की खैर नहीं थी..

सरयू सिंह और सुगना ट्रेन में आ चुके थे और वह मनचला युवक भी…

वह युवक सुगना जैसी सुंदरी को देखकर हतप्रभ था उसने कई युवतियां और महिलाएं देखी थी परंतु सुगना उसके लिए कतई अलग थी। इतनी गोरी और चमकती त्वचा उसने शायद ही पहले कहीं नही देखी थी ऊपर से सुगना का मासूम और सुंदर चेहरा… सुगना के प्रतिकार न करने की वजह से उसका उत्साह बढ़ गया था जैसे ही सरयू सिंह कुछ देर के लिए ट्रेन के बाथरूम में गए उसने सुगना से नजदीकियां बढ़ाने की कोशिश की।

सुगना उस युवक के व्यवहार से असहज महसूस कर रही थी। परंतु वह युवक न जाने किस भ्रम में सुगना के करीब आने की कोशिश कर रहा था। कुछ देर की असमंजस को एक झन्नाटेदार थप्पड़ ने रोक दिया …. उस युवक ने अपने गाल को हाथ से सहलाते हुए गुस्से से मुड़ कर पीछे की तरफ देखा तभी दूसरे उसके गाल पर भी सरयू सिंह का तेज तमाचा पड़ा..

"बेटी चोद…. यही सब करने ट्रेन में आता है…"

सरयू सिंह क्रोध से भरे थे.. उन्होंने उस युवक को और मारने की कोशिश की परंतु सफल ना हुए लोगों ने बीच-बचाव कर उस युवक को सरयू सिंह से अलग कर दिया… नियति मुस्कुरा रही थी …सरयू सिंह जिन्होंने स्वयं अपनी बेटी को अनजाने में ही सही पर वर्षों तक चोदते रहे थे वह स्वयं उस अनजान व्यक्ति को बेटीचोद कह रहे थे।


वह युवक भी क्रोध से भरा था परंतु सरयू सिंह से भिड़ने की उसकी हिम्मत न थी वह वहां से चुपचाप कट लिया और सरयू सिंह सुगना के समीप बैठ गए…

आसपास बैठे लोग सरयू सिंह और सुगना को देख रहे थे…इस अनोखी जोड़ी के बीच तारतम्य को समझने का प्रयास कर रहे थे…

दिमाग शांत होते ही सरयू सिंह के मन में अचानक अपने ही कहे शब्द गूंजने लगे…. बेटीचोद… हे भगवान सरयू सिंह ने अपने ही शब्दों का मतलब निकाला और बेहद दुखी हो गए। उनका मन अचानक खिन्न हो गया।


उन्होने गाली तो उस युवक को दी थी परंतु नियति ने उन्हें खुद उस गाली का पात्र बना दिया था। सरयू सिंह के चेहरे पर तनाव देखकर सुगना खुद को रोक ना पाई और उसने बेहद संजीदगी से कहा ..

"जाएदी ऊ कुल लफुआ लोग कभी कभी भेंटा जाला…. रऊआ परेशान मत होखी.."

सुगना की मीठी आवाज ने सरयू सिंह के दुख को कुछ तो कम किया परंतु वह शब्द बेटी चोद उनके दिमाग में बार बार घूम रहा था… उन्होंने जो सुगना के साथ किया था स्वाभाविक तौर पर हुआ था परंतु था तो गलत…

सरयू सिंह को विशेषकर वह बात ज्यादा परेशान करती की क्यों उन्होंने सुगना जैसी मासूम को गर्भधारण से बचाने के लिए उसकी प्रिय मिठाई मोतीचूर के लड्डू में मिलाकर दवाई खिलाई थी और वह यह कार्य एक बार नहीं अपितु कई वर्षों तक करते रहे थे…

सुगना से उनके संभोग का रास्ता कजरी ने उसे गर्भवती करने के लिए ही प्रशस्त किया था पर सरयू सिंह सुगना जैसी मादक और कमसिन सुंदरी से अनवरत संभोग का मोह न त्याग पाए और उन्होंने सुगना को अपने मोहपाश में बांध लिया। सुगना से संभोग का जितना आनंद सरयू सिंह ने लिया था अब उसे याद कर वो दुखी हो रहे थे…

ट्रेन की धीमी होती रफ्तार और स्टेशन पर बढ़ते शोर ने सरयू सिंह और सुगना का ध्यान आकर्षित किया…

लखनऊ स्टेशन पर पपीता बेचने वाले उस समय भी उतने ही सक्रिय थे जैसे आजकल हैं। सरयू सिंह और सुगना ने अपना अपना सामान उठाया और वापस ट्रेन से उतरने की कोशिश करने लगे…


सरयू सिंह ने इस बार विशेष ध्यान दिया कि सुगना को उतरने में कोई तकलीफ ना हो और किसी अन्य अनजान आदमी के हाथ सुगना को ना छुए।

वह युवक दूर खड़ा सरयू सिंह और सुगना को देख रहा था। उसकी आंखों में अभी भी गुस्सा था पर वह मजबूर था। अपने प्रतिकार को अपने सीने में दबाए वह चुप चाप स्टेशन के बाहर निकल गया.

बाहर खड़ा सोनू सरयू सिंह और सुगना को देखकर खुश हो गया। कुछ ही देर में सरयू सिंह सुगना और दोनों छोटे बच्चे पूर्व निर्धारित गेस्ट हाउस में उपस्थित थे.. एक कमरे में सरयू सिंह और दूसरे में सुगना…

नियति और सुगना दोनों परेशान थे… सरयू सिंह और सुगना ने न जाने कितनी रातें साथ बिताई थी और अब जब वह दोनों शहर से दूर आज होटल नुमा गेस्ट हाउस में थे तब वह दोनों अलग-अलग कमरों में रहने को मजबूर थे… परंतु परंतु विधाता ने उनके लिए जो सोच रखा था वह होना ही था..

लखनऊ के आसमान पर हल्के हल्के बादल इकट्ठे हो रहे थे…मौसम खुशनुमा हो रहा था.. सुगना आज कई दिनों बाद घर के चूल्हे चौके से मुक्ति पाकर सरयू सिंह के साथ बाहर निकली थी…. और गेस्ट हाउस में बैठे अपने बच्चों के साथ खेल रही थी तभी सोनू नाश्ते के सामान और बच्चों के लिए अलग-अलग किस्म की मिठाइयां लेकर आ गया….सरयू सिंह सुगना और सोनू ने मिलकर नाश्ता किया… सरयू सिंह बीच-बीच में सुगना को देखते और उसे खुश देखकर स्वयं प्रफुल्लित हो उठते।


परंतु जब जब सोनू की निगाहें सुगना से मिलती सुगना की निगाहें न जाने क्यों झुक जाती। सुगना को अब सोनू से नजरें मिलाने में न जाने क्यों शर्म आ रही थी?

शायद उसने जो अपने सपनों में देखा था उसने उसका आत्मविश्वास छीन लिया था वह सोनू के सामने अब पहले जैसी सहज न थी।

परंतु सोनू वह तो धीरे-धीरे एक मर्द बन चुका था सुगना कि वह इज्जत जरूर करता था परंतु जब से उसने सुगना के कमरे से वह गंदी किताब का एक हिस्सा ले आया था उसे …सुगना का जीवन अधूरा लगता था ऐसा लगता था जैसे सुगना एक अतृप्त युवती थी....वह बार बार यही सोचता .... लाली की तरह ही काश वह उसकी अपनी सगी बहन ना होती…

सोनू सुगना की खूबसूरती में खोया हुआ था तभी उसका ध्यान भंग किया उसके भांजे सूरज ने ।

सूरज ने सोनू की मूछों को खींचते हुए बोला मामा..

चलअ घूमने चलअ…...

सुगना ने भी सूरज का साथ दिया और कहा "ले जो बाबू के घुमा ले आओ आवत खाने तनी दूध लेले अइहे "

सोनू सूरज को लेकर बाहर निकल गया कमरे में सरयू सिंह सुगना और छोटी मधु रह गए अपने भाई सूरज को मामा की गोद में जाते देख मधु भी रोने लगी और अंततः सरयू सिंह को उसे अपनी गोद में लेकर बाहर गलियारे में जाना पड़ा….

सुगना एकांत का फायदा उठाकर गुसल खाने में नहाने चली गई।सुगना ने अपने कपड़े गीले करना उचित न समझा वैसे भी वहां कपड़े धोने की व्यवस्था न थी उसने नग्न होकर स्नान करना उचित समझा।

अपने नंगे बदन पर
झरने से आ रही पानी की फुहारों के बीच एक सुखद स्नान का आनंद लेने लगी…
नग्नता और वासना में चोली दामन का साथ होता है.. नग्न सुगना स्वयं अपने सपाट पेट को देखकर खुश हो रही थी 2 बच्चों को जन्म देने के बावजूद उसके पेडू प्रदेश पर अतिरिक्त मांस जमा ना हुआ था। सुगना की बुर के ऊपर उगे झुरमुट अब भी घुंघराले थे और बेहद खूबसूरत लगते थे.. अपनी खूबसूरती का मुआयना करते करते सुगना सरयू सिंह और सोनू के बारे में सोचने लगी …

सुगना सरयू सिंह के लंड को याद करें और उसकी बुर गीली ना हो यह संभव न था ….. सुगना ने मन में मीठी-मीठी उत्तेजना लिए अपना स्नान पूरा किया और लाली द्वारा दी गई खूबसूरत नाइटी पहन कर बाहर आ गई उसी समय सरयू सिंह ने दरवाजा खोल दिया…

सुगना को सरयू सिंह से कोई शर्म हया न थी…सुगना ने उनकी तरफ देखा और मुस्कुराते हुए बोली…

"लाई दे दी मधु के हम नहा लेनी"

सरयू सिंह ने सुगना की मादक काया से अपनी नजरें हटा ली और मधु को देकर कमरे से बाहर निकलते हुए बोले "हम जा तानी तानी शहर घूमें सोनू के कह दिया हमार चिंता ना करी हम खाए के बेरा ले आ जाएब"

सरयू सिंह सुगना के साथ एकांत में नहीं रहना चाह रहे थे वह वैसे भी लोगों के बीच रहने वाले आदमी थे। वह अपने तेज कदमों से चलते हुए वह लखनऊ शहर के पास के बाजार में आ गए…

नुक्कड़ पर चाय की दुकान से उन्होंने चाय मंगाई और चुस्कियां लेकर चाय पीते हुए लखनऊ शहर की खूबसूरती का आनंद लेने लगे। इससे पहले कि सरयू सिंह चाय खत्म कर पाते… आसपास से कुछ युवक शोर करते हुए उनकी तरफ बढ़े । सरयू सिंह यह समझ ही नहीं पा रहे थे कि यह शोर क्यों हो रहा था… तभी एक व्यक्ति ने उन पर लाठी से हमला कर दिया… अचानक सरयू सिंह को वह युवक दिखाई दे गया…

"मार साला के एही बेटीचोद हमरा के मरले रहल हा?

सरयू सिंह को आभास हो गया कि वह उस युवक को मारकर फस चुके थे सात आठ आवारा बदमाश एक साथ सरयू सिंह पर आक्रमण कर चुके थे और सरयू सिंह उनका मुकाबला कर रहे थे …

इससे पहले कि वह सरयू सिंह को घायल कर पाते…एक सफेद एंबेसडर आकर वहां रुकी तथा सामने की सीट पर बैठे पुलिस वाले ने उतर कर अपनी रौबदार आवाज में कहा

"क्या बात है…?"

कुछ पल के लिए ऐसा लगा जैसे वहां कुछ हुआ ही न हो परंतु सरयू सिंह की हालत देखकर पुलिस वाले ने सारा माजरा समझ लिया उसने उन युवकों को भगाया …और वापस आने लगा…

सरयू सिंह ने एंबेसडर की तरफ देखा तो भौचक रह गए। कार में पीछे बैठी मनोरमा से उनकी निगाहें टकराई और मनोरमा ने अपनी कार का दरवाजा खोल दिया… वह नीचे उतर कर खड़ी हो गई और सरयू सिंह को अपने लड़खड़ाते कदमों से मनोरमा के पास जाना पड़ा…सरयू सिंह ने दोनों हाथ जोड़कर मनोरमा का अभिवादन किया और बोला

"मैडम आप?"

मनोरमा ने वहां नुक्कड़ पर सरयू सिंह से ज्यादा बातचीत करना उचित न समझा उसने सरयू सिंह को अंदर कार में बैठने का इशारा किया सरयू सिंह ने असमंजस भरी निगाहों से मनोरमा की तरफ देखा।


वह कार में पीछे मनोरमा के साथ बैठने से कतरा रहे थे परंतु कोई चारा न था आगे ड्राइवर और वह पुलिस वाला बैठा हुआ था सरयू सिंह मनोरमा का आग्रह न टाल पाए और वह कार में मनोरमा के साथ बैठ गए…

लखनऊ की चिकनी..सड़क पर एंबेसडर कार सरपट दौड़ने लगी.।

मैडम मुझे कुछ नहीं हुआ है मैं ठीक हूं मुझे गेस्ट हाउस छुड़वा दीजिए..

"सरयू जी आपको गहरी चोट लगी है यह देखिए आपके गर्दन पर चोट भी लगी है" मनोरमा ने…अपनी पद और प्रतिष्ठा का ख्याल दरकिनार कर अपनी रुमाल से उनकी गर्दन पर लगा रक्त पोछने लगी…


सरयू सिंह ने बारी बारी से अपने शरीर के सभी चोटिल अंगों की तरफ ध्यान घुमाया और महसूस किया कि निश्चित ही मार कुटाई से उनके शरीर को भी कई जगह चोटें पहुंची थी कुछ अंदरूनी और कुछ बाहरी..

इससे पहले वह कुछ कह पाते एंबेसडर एक छोटे क्लीनिक पर जाकर रुक गई..

सरयू सिंह को अंदर ले जाया गया और मनोरमा उनके पीछे-पीछे क्लीनिक में आ गई डॉक्टर उपलब्ध न थे परंतु कंपाउंडर ने मनोरमा को नमस्कार किया और कुछ ही देर में सरयू सिंह की मरहम पट्टी की जाने लगी …दर्द निवारक दवा का इंजेक्शन का लगा कर कंपाउंडर ने कहा..

इन्हें एक दो घंटा आराम करने दीजिएगा उम्मीद करता हूं की वह सामान्य हो जाएंगे…

कंपाउंडर ने सरयू सिंह के चूतड़ों पर वह इंजेक्शन लगाया था शायद अपने होशो हवास में सरयू सिंह ने अपने चूतड़ पर यह पहला इंजेक्शन लिया था…इसके पहले जब वह इसके पहले जब वह हॉस्पिटल में भर्ती हुए थे तब वह मूर्छित अवस्था में थे और डॉक्टरों ने उनके शरीर के साथ क्या-क्या किया था यह वह जान नहीं पाए थे…

सरयू सिंह और मनोरमा वापस गाड़ी में आ चुके थे। मनोरमा ने ड्राइवर को इशारा किया और एंबेसडर एक बार फिर सरपट दौड़ने लगी कुछ ही देर बाद मनोरमा की गाड़ी उसके खूबसूरत बंगले के सामने रुक गई।

"अरे यह कहां ले आईं आप मुझे?"सरयू सिंह उस खूबसूरत बंगले को देख कर कहा..

मनोरमा गाड़ी से उतर चुकी थी और सरयू सिंह को भी मजबूरन उतरना पड़ा।

थोड़ी ही देर में थोड़ी ही देर में सरयू सिंह मनोरमा के ड्राइंग रूम में बैठे चाय की चुस्कियां ले रहे थे और उनकी पुत्री पिंकी उनकी गोद में खेल रही थी…

उधर …सोनू सूरज को घुमा कर वापस आ चुका था…। सुगना ने अपनी नाइटी उतार कर वापस साड़ी पहन ली थी उसे सोनू के सामने इस तरह नाइटी में घूमना नागवार गुजर रहा था आखिर अपने छोटे भाई के सामने कौन सी बड़ी बहन नाइटी में घूमना पसंद करेगी…यद्यपि सोनू और सुगना के बीच उत्तेजना अपनी जगह बना चुकी थी परंतु सुगना ने अब भी अपनी वासना पर काबू कर रखा था…

परंतु सोनू बदल चुका था वह सुगना की खूबसूरती और उसके कामुक अंगो को देखने का कोई मौका न छोड़ता और अब भी उसकी निगाहें ब्लाउज के भीतर और कैद सुगना की गोरी गोरी चूचियों पर टिकी थी।

"सोनू दूध ले आइले हा?" सुगना ने सोनू से पूछा ..

सोनू ने गर्म दूध से भरी बोतल सुगना को पकड़ा दी…

परंतु सोनू की निगाहें अब भी सुगना की फूली हुई गोरी गोरी चूचीयों पर अटकी हुई थी… तक की सुगना उस बोतल को पकड़ती सोनू ने बोतल छोड़ दी और वह सुगना के हाथों से फिसल कर उसकी जांघों पर आ गिरी.. ढक्कन ढीला होने की वजह से दूध छलक कर बाहर आ गया ….सुगना के मुख से आह निकल गई…सोनू अपराध बोध से ग्रस्त बार-बार अपने हाथों से सुगना की जांघो पर गिरे गर्म दूध को हटाने की कोशिश कर रहा था। सोनू ने पास पड़े पानी के बोतल से पानी लेकर सुगना की जांघों को ठंडा करने की कोशिश की वह कुछ हद तक कामयाब भी हुआ .. अस्त व्यस्त हो चुकी सुगना की साड़ी गीली हो चुकी थी ।

उसके पास कोई चारा न था वह एक बार फिर बाथरूम में गई और उसी नाइटी को पहन कर वापस आ गई जिसे उसने शर्म वश उतार कर रख दिया था…सुगुना ने अपनी नग्न जांघों का मुआयना किया…..गर्म दूध ने सुगना की जांघ पर अपना निशान छोड़ दिया….था..

सुगना एक बार फिर कमरे में आ चुकी थी। सोनू ने सुगना को देखते ही पूछा

"दीदी जरल त नईखे?"

सुगना ने सोनू को तसल्ली देते हुए कहा

"ना ना ज्यादा गर्म ना रहे …ठीक बा... ज्यादा नाइखे जरल लेकिन हमार कपड़ा खराब हो गएल। हम ढेर कपड़ा ना ले आईल रहनी…अब इहे पहन कर रहे के रहे के परी…"

सुगना के होठों पर मुस्कुराहट देख सोनू ने चैन की सांस ली और उछलते हुए बोला

" दीदी हम अभी जा तानी दोसर साड़ी खरीद के ले आवा तानी" सोनू अपनी गलती का प्प्रायश्चित करना चाहता था वह सुगना के होठों पर सदैव मुस्कान देखना चाहता था जो दर्द अनजाने में ही उसने सुगना को दिया था वह नए वस्त्र लाकर उसकी भरपाई करना चाहता था।

सोनू जैसे ही दरवाजा खोलकर बाहर निकला बारिश की आवाज़ कमरे में आने लगी। बाहर मूसलाधार बारिश हो रही थी….

बारिश की आवाज सुनकर सुगना ने सोनू को रोक लिया और बोली

" अभी मत जो बहुत बारिश होता …अब रात हो गईल बा कपड़ा का होई हमरा कहीं जाएके नईखे।"

सोनू उल्टे कदम वापस कमरे में आ गया..

"सरयू चाचा लागा ता पानी में फस गईल बाड़े.."

घड़ी 8:00 बजा रही थी सोनू और सुगना सरयू सिंह का खाने पर इंतजार कर रहे थे। गेस्ट हाउस का अटेंडेंट बार-बार सुगना और सोनू को खाना खा लेने के लिए अनुरोध कर रहा था शायद बारिश की वजह से वह भी रसोई जल्दी बंद करना चाह रहा था।

परंतु सरयू सिंह…. वह तो मनोरमा के घर में अपनी पुत्री पिंकी के साथ खेल रहे थे…और दूर खड़ी मनोरमा अपने हाथों में दूध की बोतल लिए मिंकी का इंतजार कर रही थी….


बाहर बारिश के साथ-साथ अब आंधी और तेज हवाएं चलने लगी थी…बिजली गुल होने की आशंका होने लगी थी..

मनोरमा ने दूध का बोतल सरयू सिंह को पकड़ाया और बोली

" मैं मोमबत्ती लेकर आती हूं…" मनोरमा का अंदेशा बिल्कुल सही था। जब तक कि वह रसोई घर में प्रवेश करती बिजली गुल हो गई। दूधिया रोशनी में चमकने वाला मनोरमा का ड्राइंग रूम अचानक काले स्याह अंधेरे की गिरफ्त में आ गया।

मनोरमा रसोई घर में प्रवेश कर गई तभी सरयू सिंह को धड़ाम की आवाज सुनाई थी…

मैडम क्या हुआ…..

घायल सरयू सिंह एक पल में ही उठकर खड़े हो गए और रसोई घर की तरफ बढ़ चले। उन्हें अपना दर्द अब काम प्रतीत हो रहा था। दर्द निवारक दवा ने उनमें स्फूर्ति भर दी थी..

मैडम….


शेष अगले भाग में….
 

Lutgaya

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भाग 87
नियति मुस्कुरा रही थी सरयू सिंह ने जिस नवयौवना के यौवन का जी भर कर आनंद लिया था वह पुत्री रूप में उसने बगल में खड़ी अपने अंतरमन से जूझ रही थी…


एक पल के लिए सुगना को ऐसा लगा जैसे उसके बाबूजी उसे अपने से दूर कर उसे सोनू के आगोश में देने जा रहे थे..

सुगना भी जानती थी ऐसा कतई न था परंतु अपनी सोच पर सुगना स्वयं मुस्कुरा उठी…

वासना जन्य सोच पर किसी का नियंत्रण नहीं होता कामुक मन ... कुछ भी कितना भी और कैसा भी, अच्छा बुरा , उचित अनुचित यहां तक कि घृणित संबंध भी सोच सकता है..

ट्रेन की सीटी ने सुगना को उसकी सोच से बाहर निकाला और वह सरयू सिंह के पीछे पीछे ट्रेन में चढ़ने के लिए चलने लगी..


शेष अगले भाग में..

सुगना को अपने पीछे आते देख सरयू सिंह ने उसके हाथ से उसका झोला ले लिया और तेजी से ट्रेन में चढ़ गए। सुगना अभी भी मधु को अपनी गोद में पकड़े ट्रेन के दरवाजे के पास खड़ी थी सरयू सिंह ने झोला जमीन पर रखा और अपने मजबूत हाथ बढ़ा दिये।


सुगना ने अपने हाथ निकाले और सरयू सिंह सुगना की गोरी गोरी भुजाओं को देखकर सरयू सिंह के दिमाग में सुगना की खूबसूरत काया घूम गई।सुगना के हाथों का स्पर्श पाते ही उनकी तंद्रा भंग हुई और उन्होंने सुगना कि कोमल कलाइयां पकड़ ली…

सुगना ने भी उस स्पर्श को महसूस किया और उसके रोएं उसकी त्वचा का साथ छोड़ कर खड़े हो गए..जैसे वो स्वयं सरयू सिंह से मिलने को उतावले हो रहे थे। सुगना सरयू सिंह का सहारा लिए ट्रेन में चढ़ने लगी मधु के गोद में होने की वजह से सुगना को चढने में दिक्कत हो रही थी तभी पीछे खड़े एक मनचले युवक ने सुगना को पीछे से धक्का देकर ट्रेन में चढ़ाने की कोशिश की आपदा में अवसर खोज कर सुगना की कमर पर हाथ फेर लिया।

सुगना को यह अटपटा लगा परंतु उसने उस व्यक्ति के धक्के में मिले सहयोग को ज्यादा वरीयता दी…उसने एक बार पीछे मुड़कर देखा और अपनी निगाहों से उसने युवक की निगाहों की पढ़ने की कोशिश की..

निश्चित ही उस युवक की आंखों में कामुकता थी। सुगना ने कोई प्रतिक्रिया देना उचित न समझा वह वहां कोई बवाल नहीं खड़ा करना चाहती थी। सुगना भली भांति यह बात जानती थी कि यह बात सरयू सिंह को पता चल जाती तो निश्चित ही उस युवक की खैर नहीं थी..

सरयू सिंह और सुगना ट्रेन में आ चुके थे और वह मनचला युवक भी…

वह युवक सुगना जैसी सुंदरी को देखकर हतप्रभ था उसने कई युवतियां और महिलाएं देखी थी परंतु सुगना उसके लिए कतई अलग थी। इतनी गोरी और चमकती त्वचा उसने शायद ही पहले कहीं नही देखी थी ऊपर से सुगना का मासूम और सुंदर चेहरा… सुगना के प्रतिकार न करने की वजह से उसका उत्साह बढ़ गया था जैसे ही सरयू सिंह कुछ देर के लिए ट्रेन के बाथरूम में गए उसने सुगना से नजदीकियां बढ़ाने की कोशिश की।

सुगना उस युवक के व्यवहार से असहज महसूस कर रही थी। परंतु वह युवक न जाने किस भ्रम में सुगना के करीब आने की कोशिश कर रहा था। कुछ देर की असमंजस को एक झन्नाटेदार थप्पड़ ने रोक दिया …. उस युवक ने अपने गाल को हाथ से चलाते हुए गुस्से से मुड़ कर पीछे की तरफ देखा तभी दूसरे उसके गाल पर भी सरयू सिंह का तेज तमाचा पड़ा..

"बेटी चोद…. यही सब करने ट्रेन में आता है…"

सरयू सिंह ने क्रोध से भरे थे.. उन्होंने उस युवक को और मारने की कोशिश की परंतु सफल ना हुए लोगों ने बीच-बचाव कर उस युवक को सरयू सिंह से अलग कर दिया… नियति मुस्कुरा रही थी …सरयू सिंह जिन्होंने स्वयं अपनी बेटी को अनजाने में ही सही पर वर्षों तक उसे चोदते रहे थे वह स्वयं उस व्यक्ति को बेटीचोद कह रहे थे।


वह युवक भी क्रोध से भरा था परंतु सरयू सिंह से भिड़ने की उसकी हिम्मत न थी वह वहां से चुपचाप कट लिया और सरयू सिंह सुगना के समीप बैठ गए…

आसपास बैठे लोग सरयू सिंह और सुगना को देख रहे थे…इस अनोखी जोड़ी के बीच तारतम्य को समझने का प्रयास कर रहे थे…

दिमाग शांत होते ही सरयू सिंह के मन में अचानक अपने ही कहे शब्द गूंजने लगे…. बेटीचोद… हे भगवान सरयू सिंह ने अपने ही शब्दों का मतलब निकाला और बेहद दुखी हो गए। उनका मन अचानक खिन्न हो गया।


उसने गाली तो उस युवक को दी थी परंतु नियत ने उन्हें खुद उस गाली का पात्र बना दिया था। सरयू सिंह के चेहरे पर तनाव देखकर सुगना खुद को रोक ना पाई और उसने बेहद संजीदगी से कहा ..

"जाएदी ऊ कुल लफुआ लोग कभी कभी भेंटा जाला…. रहुआ परेशान मत होखी.."


सुगना की मीठी आवाज ने सरयू सिंह के दुख हो कुछ तो कम किया परंतु वह शब्द बेटी चोद उनके दिमाग में बार बार घूम रहा था… उन्होंने जो सुगना के साथ किया था स्वाभाविक तौर पर हुआ था परंतु था तो गलत…

सरयू सिंह को विशेषकर वह बात ज्यादा परेशान करती की क्यों उन्होंने सुगना जैसी मासूम को गर्भधारण से बचाने के लिए उसकी प्रिय मिठाई मोतीचूर के लड्डू में मिलाकर दवाई खिलाई थी और वह यह कार्य कई वर्षों तक करते रहे थे…

सुगना से उनके संभोग का रास्ता कजरी ने उसे गर्भवती करने के लिए ही प्रशस्त किया था पर सरयू सिंह सुगना जैसे मादक और कमसिन से अनवरत संभोग का मोह न त्याग पाए और उन्होंने सुगना को अपने मोहपाश में बांध लिया। सुगना से संभोग का जितना आनंद सरयू सिंह ने लिया था अब उसे याद कर अब वो दुखी हो रहे थे…

ट्रेन की धीमी होती रफ्तार और स्टेशन पर बढ़ते शोर ने सरयू सिंह और सुगना का ध्यान आकर्षित किया…

लखनऊ स्टेशन पर पपीता बेचने वाले उस समय भी उतने ही सक्रिय थे जैसे आजकल हैं। सरयू सिंह और सुगना ने अपना अपना सामान उठाया और वापस ट्रेन से उतरने की कोशिश करने लगे…


सरयू सिंह ने इस बार विशेष ध्यान दिया कि सुगना को उतरने में कोई तकलीफ ना हो और किसी अन्य अनजान आदमी के हाथ सुगना को ना छुए।

वह युवक दूर खड़ा सरयू सिंह और सुगना को देख रहा था। उसकी आंखों में अभी भी गुस्सा था पर वह मजबूर था। अपने प्रतिकार को अपने सीने में दबाए वह चुप चाप स्टेशन के बाहर निकल गया.

बाहर खड़ा सोनू सरयू सिंह और सुगना को देखकर खुश हो गया। कुछ ही देर में सरयू सिंह सुगना और दोनों छोटे बच्चे पूर्व निर्धारित गेस्ट हाउस में उपस्थित थे.. एक कमरे में सरयू सिंह और दूसरे में सुगना…

नियति और सुगना दोनों परेशान थे… सरयू सिंह और सुगना ने न जाने कितनी रातें साथ दिखाई थी और अब जब वह दोनों शहर से दूर आज होटल नुमा गेस्ट हाउस में थे तब वह दोनों अलग-अलग कमरों में रहने को मजबूर थे… परंतु परंतु विधाता ने उनके लिए जो सोच रखा था वह होना ही था..

लखनऊ के आसमान पर हल्के हल्के बादल इकट्ठे हो रहे थे…मौसम खुशनुमा हो रहा था.. सुगना आज कई दिनों बाद घर के चूल्हे चौके से मुक्ति पाकर सरयू सिंह के साथ बाहर निकली थी…. और गेस्ट हाउस में बैठे अपने बच्चों के साथ खेल रही थी तभी सोनू नाश्ते के सामान और बच्चों के लिए अलग-अलग किस्म की मिठाइयां लेकर आ गया….सरयू सिंह सुगना और सोनू ने मिलकर नाश्ता किया… सरयू सिंह बीच-बीच में सुगना को देखते और उसे खुश देखकर स्वयं प्रफुल्लित हो उठते।


परंतु जब जब सोनू की निगाहें सुगना से मिलती सुगना की निगाहें न जाने क्यों झुक जाती। सुगना अब सोनू से नजरें मिलाने में न जाने क्यों शर्म आ रही थी?

शायद उसने जो अपने सपनों में देखा था उसने उसका आत्मविश्वास छीन लिया था वह सोनू के सामने अब पहले जैसी सहज न थी।

परंतु सोनू वह तो धीरे-धीरे एक मर्द बन चुका था सुगना कि वह इज्जत जरूर करता था परंतु जब से उसने सुगना के कमरे से वह गंदी किताब का एक हिस्सा ले आया था उसे …सुगना का जीवन अधूरा लगता था ऐसा लगता था जैसे सुगना एक अतृप्त युवती थी लाली की तरह ही काश वह उसकी बहन ना होती…

सोनू सुगना की खूबसूरती में खोया हुआ था तभी उसका ध्यान भंग किया उसके भांजे सूरज ने ।

सूरज ने सोनू की मूछों को खींचते हुए बोला मामा..

चल घूमने चल…...

सुगना ने भी सूरज का साथ दिया और कहा "ले जो बाबू के घुमा ले आओ आवत खाने तनी दूध लेले अइहे "

सोनू सूरज को लेकर बाहर निकल गया कमरे में सरयू सिंह सुगना और छोटी मधु रह गए अपने भाई सूरज को मामा की गोद में जाते देख मधु भी रोने लगी और अंततः सरयू सिंह को उसे अपनी गोद में लेकर बाहर गलियारे में जाना पड़ा….

सुगना एकांत का फायदा उठाकर गुसल खाने में नहाने चली गई और झरने से आ रही पानी की फुहारों के बीच एक सुखद स्नान का आनंद लेने लगी…

सुगना ने अपने कपड़े गीले करना उचित न समझा वैसे भी वहां कपड़े धोने की व्यवस्था न थी उसने नग्न होकर स्नान करना उचित समझा।

नग्नता और वासना में चोली दामन का साथ होता है.. नग्न सुगना स्वयं अपने सपाट पेट को देखकर खुश हो रही थी 2 बच्चों को जन्म देने के बावजूद उसके पेड़ प्रदेश पर अतिरिक्त मांस जमा ना हुआ था सुगना की बुर के ऊपर उगे झुरमुट अब भी घुंघराले थे और बेहद खूबसूरत लगते थे.. खूबसूरती का मुआयना करते करते सुगना सिंह और सोनू के बारे में सोचने लगी …

सुगना सरयू सिंह के लंड को याद करें और उसकी बुर गीली ना हो यह संभव न था ….. सुगना ने मन में मीठी-मीठी उत्तेजना लिए अपना स्थान पूरा किया और लाली द्वारा दी गई खूबसूरत नाइटी पहन कर बाहर आ गई उसी समय सरयू सिंह ने दरवाजा खोल दिया…

सुगना को सरयू सिंह से कोई शर्म हया न थी…सुगना ने उनकी तरफ देखा और मुस्कुराते हुए बोली…

"लाई दे दी मधु के हम नहा लेनी"

सरयू सिंह ने सुगना की मादक काया से अपनी नजरें हटा ली और मधु को देकर कमरे से बाहर आते हुए बोले "हम जा तानी तानी शहर घूमें सोनू के कह दिया हमार चिंता ना करी हम खाए के बेरा ले आ जाएब"

सरयू सिंह सुगना के साथ एकांत में नहीं रहना चाह रहे थे वह वैसे भी लोगों के बीच रहने वाले आदमी थे अपने तेज कदमों से चलते हुए वह लखनऊ शहर के पास के बाजार में आ गए…

कड़ पर चाय की दुकान से उन्होंने चाय मंगाई और चुस्कियां लेकर चाय पीते हुए लखनऊ शहर की खूबसूरती का आनंद लेने लगे। इससे पहले कि सरयू सिंह चाय खत्म कर पाते… आसपास से कुछ युवक शोर करते हुए उनकी तरफ बढ़े । सरयू सिंह यह समझ ही नहीं पा रहे थे कि यह शोर क्यों हो रहा था… तभी एक व्यक्ति ने उन पर लाठी से हमला कर दिया… अचानक सरयू सिंह को वह युवक दिखाई दे गया…

"मार साला के एही बेटीचोद हमरा के मरले रहल हा?

सरयू सिंह को आभास हो गया कि वह उस युवक को मारकर फस चुके थे सात आठ कुत्ते…मिलकर एक साथ सरयू सिंह पर आक्रमण कर चुके थे और सरयू सिंह उनका मुकाबला कर रहे थे …

इससे पहले कि वह सरयू सिंह को घायल कर पाते…एक सफेद एंबेसडर आकर वहां रुकी तथा सामने की सीट पर बैठे पुलिस वाले ने उतर कर अपनी रौबदार आवाज में कहा

"क्या बात है…?"

कुछ पल के लिए ऐसा लगा जैसे वहां कुछ हुआ ही न हो परंतु सरयू सिंह की हालत देखकर पुलिस वाले ने सारा माजरा समझ लिया उसने उन युवकों को भगाया …और वापस आने लगा…

सरयू सिंह ने एंबेसडर की तरफ देखा और भोचक रह गए। कार में पीछे बैठी मनोरमा से उनकी निगाहें टकराई और मनोरमा ने अपनी कार का दरवाजा खोल दिया… वह नीचे उतर कर खड़ी हो गई और सरयू सिंह को अपने लड़खड़ाते कदमों से मनोरमा के पास जाना पड़ा…सरयू सिंह ने दोनों हाथ जोड़कर मनोरमा का अभिवादन किया और बोला

"मैडम आप?"

मनोरमा ने वहां नुक्कड़ पर सरयू सिंह से ज्यादा बातचीत करना उचित न समझा उसने सरयू सिंह को अंदर कार में बैठने का इशारा किया सरयू सिंह ने असमंजस भरी निगाहों से मनोरमा की तरफ देखा।


वह कार में पीछे मनोरमा के साथ बैठने से कतरा रहे थे परंतु कोई चारा न था आगे ड्राइवर और वह पुलिस वाला बैठा हुआ था सरयू सिंह मनोरमा का आग्रह न टाल पाए और वह कार में मनोरमा के साथ बैठ गए…

लखनऊ की चिकनी..सड़क पर एंबेसडर कार सरपट दौड़ने लगी.।

मैडम मुझे कुछ नहीं हुआ है मैं ठीक हूं मुझे गेस्ट हाउस छुड़वा दीजिए..

"सरयू जी आपको गहरी चोट लगी है यह देखिए आपके गर्दन पर चोट भी लगी है" मनोरमा ने…अपनी पद और प्रतिष्ठा का ख्याल दरकिनार कर अपनी रुमाल से उनकी गर्दन पर लगा रक्त पोछने लगी…


सरयू सिंह ने बारी बारी से अपने शरीर के सभी चोटिल अंगों की तरफ ध्यान घुमाया और जूस किया कि निश्चित ही मार कुटाई से उनके शरीर को भी कई जगह चोटें पहुंची थी कुछ अंदरूनी और कुछ बाहरी..

इससे पहले कुछ कह पाते एंबेसडर एक छोटे क्लीनिक पर जाकर रुक गई..

सरयू सिंह को अंदर ले जाया गया और मनोरमा उनके पीछे-पीछे क्लीनिक में आ गई डॉक्टर उपलब्ध न थे परंतु कंपाउंडर ने मनोरमा को नमस्कार किया और कुछ ही देर में सरयू सिंह की मरहम पट्टी की जाने लगी …दर्द निवारक दवा का इंजेक्शन का लगा कर कंपाउंडर ने कहा..

इन्हें एक दो घंटा आराम करने दीजिएगा उम्मीद करता हूं की वह सामान्य हो जाएंगे…

कंपाउंडर ने सरयू सिंह के चूतड़ों पर वह इंजेक्शन लगाया था शायद अपने होशो हवास में सरयू सिंह ने अपने चूतड़ पर यह पहला इंजेक्शन लिया था…इसके पहले जब वह इसके पहले जब वह हॉस्पिटल में भर्ती हुए थे तब वह मूर्छित अवस्था में थे और डॉक्टरों ने उनके शरीर के साथ क्या-क्या किया था यह वह जान नहीं पाए थे…

सरयू सिंह और मनोरमा वापस गाड़ी में आ चुके थे। ड्राइवर ने मनोरमा ने ड्राइवर को इशारा किया और एंबेसडर एक बार फिर सरपट दौड़ने लगी कुछ ही देर बाद मनोरमा की गाड़ी मनोरमा के खूबसूरत बंगले के सामने रुक गई।

"अरे यह कहां ले आईं आप मुझे?"सरयू सिंह उस खूबसूरत बंगले को देख कर कहा..

मनोरमा गाड़ी से उतर चुकी थी और सरयू सिंह को भी मजबूरन उतरना पड़ा।

थोड़ी ही देर में थोड़ी ही देर में सरयू सिंह मनोरमा के ड्राइंग रूम में बैठे चाय की चुस्कियां ले रहे थे और उनकी पुत्री पिंकी उनकी गोद में खेल रही थी…

उधर …सोनू सूरज को घुमा कर वापस आ चुका था…। सुगना ने अपनी नाइटी उतार कर वापस साड़ी पहन ली थी उसे सोनू के सामने इस तरह नाइटी में घूमना नागवार गुजर रहा था आखिर अपने छोटे भाई के सामने कौन सी बड़ी बहन नाइटी में घूमना पसंद करेगी…यद्यपि सोनू और सुगना के बीच उत्तेजना अपनी जगह बना चुकी थी परंतु सुगना अब भी अपनी वासना पर काबू कर रखा था…

परंतु सोनू बदल चुका था वह सुगना की खूबसूरती और उसके कामुक अंगो को देखने का कोई मौका न छोड़ता और अब भी उसकी निगाहें ब्लाउज के भीतर और कैद सुगना की गोरी गोरी चूचियों पर टिकी थी।

"सोनू दूध ले आइले हा?" सुगना में सोनू से पूछा ..

सोनू ने गर्म दूध से भरी बोतल सुगना को पकड़ा दी…

परंतु सोनू की निगाहें अब भी सुगना की फूली हुई गोरी गोरी चूचीयों पर अटकी हुई थी… तक की सुगना उस बोतल को पकड़ती सोनू ने बोतल छोड़ दी और वह सुगना के हाथों से फिसल कर उसकी जांघों पर आ गिरी.. ढक्कन ढीला होने की वजह से दूध छलक कर बाहर आ गया ….सुगना के मुख से आह निकल गई…सोनू अपराध बोध से ग्रस्त बार-बार अपने हाथों से सुगना की जांघो पर गिरे गर्म दूध को हटाने की कोशिश कर रहा था। सोनू ने पास पड़े पानी के बोतल से पानी लेकर सुगना की जांघों को ठंडा करने की कोशिश की वह कुछ हद तक कामयाब भी हुआ .. व्यस्त हो चुकी सुगना की साड़ी पीली हो चुकी थी उसके पास कोई चारा न था वह एक बार फिर बाथरूम में गई और उसी नाइटी को पहन कर वापस आ गई जिसे उसने शर्म वश उतार कर रख दिया था…गुना ने अपनी नग्न जांघों का मुआयना किया…..गर्म दूध ने सुगना की जांघ पर अपना निशान छोड़ दिया….था..

सुगना कमरे में आ चुकी थी। सोनू ने सुगना को देखते ही पूछा

"दीदी जरल त नईखे?"

सुगना ने सोनू को तसल्ली देते हुए कहा

"ना ना ज्यादा गर्म ना रहे …ठीक बा ज्यादा नाइखे जरल लेकिन हमार कपड़ा खराब हो गएल। हम ढेर कपड़ा ना ले आईल रहनी…अब इहे पहन कर रहे के रहे के परी…"

सुगना के होठों पर मुस्कुराहट देख सोनू ने चैन की सांस ली और उछलते हुए बोला

" दीदी हम अभी जा तानी दो सर साड़ी खरीद के ले आवा तानी" सोनू अपनी गलती का प्प्रायश्चित करना चाहता था वह सुगना के होठों पर सदैव मुस्कान देखना चाहता था जो दर्द अनजाने में ही उसने सुगना को दिया था वह नए वस्त्र लाकर उसकी भरपाई करना चाहता था।

सोनू जैसे ही दरवाजा खोलकर बाहर निकला बारिश की आवाज़ कमरे में आने लगी। बाहर मूसलाधार बारिश हो रही थी….

बारिश की आवाज सुनकर सुगना ने सोनू को रोक लिया और बोली

" अभी मत जो बहुत बारिश होता …अब रात हो गईल बा कपड़ा का होई हमरा कहीं जाएके नईखे।"

सोनू उल्टे कदम वापस कमरे में आ गया..

"सरयू चाचा लागा ता पानी में फस गईल बाड़े.."

घड़ी रात के 8:00 बजा रही थी सोनू और सुगना सरयू सिंह का खाने पर इंतजार कर रहे थे। था उसका अटेंडेंट बार-बार सुगना और सोनू को खाना खा लेने के लिए अनुरोध कर रहा था शायद बारिश की वजह से वह भी रसोई जल्दी बंद करना चाह रहा था।

परंतु सरयू सिंह…. वह तो मनोरमा के घर में अपनी पुत्री पिंकी के साथ खेल रहे थे…और दूर खड़ी मनोरमा अपने हाथों में दूध की बोतल लिए मिंकी का इंतजार कर रही थी….


बाहर बारिश के साथ-साथ अब आंधी और तेज हवाएं चलने लगी थी…

मनोरमा ने दूध का बोतल सरयू सिंह को पकड़ाया और बोली

" मैं मोमबत्ती लेकर आती हूं…" मनोरमा का अंदेशा बिल्कुल सही था। जब तक कि वह रसोई घर में प्रवेश करती बिजली गुल हो गई। दूधिया रोशनी में चमकने वाला मनोरमा का ड्राइंग रूम अचानक काले स्याह अंधेरे की गिरफ्त में आ गया।

मनोरमा रसोई घर में प्रवेश कर गई तभी सरयू सिंह को धड़ाम की आवाज सुनाई थी…

मैडम क्या हुआ…..

घायल सरयू सिंह एक पल में ही उठकर खड़े हो गए और रसोई घर की तरफ बढ़ चले। उन्हें अपना दुख मनोरमा मैडम के दुख के सामने छोटा प्रतीत हो रहा था वैसे भी दर्द निवारक दवा ने उनमें स्फूर्ति भर दी थी..

मैडम….


शेष अगले भाग में….
वाह
शायद अगले अपडेट में मनचाहा मिलने वाला है
 
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