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Incest आह..तनी धीरे से.....दुखाता.

Lovely Anand

Love is life
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आह ....तनी धीरे से ...दुखाता
(Exclysively for Xforum)
यह उपन्यास एक ग्रामीण युवती सुगना के जीवन के बारे में है जोअपने परिवार में पनप रहे कामुक संबंधों को रोकना तो दूर उसमें शामिल होती गई। नियति के रचे इस खेल में सुगना अपने परिवार में ही कामुक और अनुचित संबंधों को बढ़ावा देती रही, उसकी क्या मजबूरी थी? क्या उसके कदम अनुचित थे? क्या वह गलत थी? यह प्रश्न पाठक उपन्यास को पढ़कर ही बता सकते हैं। उपन्यास की शुरुआत में तत्कालीन पाठकों की रुचि को ध्यान में रखते हुए सेक्स को प्रधानता दी गई है जो समय के साथ न्यायोचित तरीके से कथानक की मांग के अनुसार दर्शाया गया है।

इस उपन्यास में इंसेस्ट एक संयोग है।
अनुक्रमणिका
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भाग 126 (मध्यांतर)
 
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Ajinohase dirty

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पद्मा का हलुआ बड़ी जल्दी पचा लिया आपने.....

अभी सुगना की भावनाएं पनप रही है चुदने के लिए .......जब तक अपडेट तैयार होता है मेरी लिखी एक कहानी पढ़िए. (यह कहानी एक पूर्ण कहानी है).





संजीवनी हॉस्पिटल के ट्रॉमा सेंटर में भीड़ लगी हुई थी. दो किशोर लड़कों का एक्सीडेंट हुआ था. उन्हें आनन-फानन में हॉस्पिटल में भर्ती कराया जा रहा था. आमिर तो लगभग मरणासन्न स्थिति में था, दूसरा लड़का राहुल भी घायल था पर खतरे से बाहर था. हॉस्पिटल का कुशल स्टाफ इन दोनों किशोरों को स्ट्रेचर पर लाद कर ऑपरेशन थिएटर की तरफ भाग रहा था. कुछ देर की गहमागहमी के पश्चात ऑपरेशन थिएटर का दरवाज़ा बंद हो गया और बाहर लगी लाल लाइट जलने बुझने लगी.

राहुल के पिता मदन हॉस्पिटल पहुंच चुके थे. उन्हें राहुल का मोबाइल और उसका बैग दिया गया जिसमे उसकी पर्सनल डायरी भी थी. राहुल मदन का एकलौता पुत्र था. राहुल की मां की दुर्घटना में मृत्यु के बाद उन्होंने उसे पाल पोस कर बड़ा किया था. मदन राहुल के बचपन में खोये हुये थे, तभी ऑपरेशन थिएटर का दरवाजा खुला और सफेद चादर से ढकी हुई आमिर की लाश बाहर आई. उसके परिवार वाले फूट-फूट कर रो रहे थे. मदन भी अपने आंसू नहीं रोक पा रहे थे. तभी दूसरे स्ट्रेचर पर राहुल भी बाहर आ गया. वह जीवित था और खतरे से बाहर था. मदन के चेहरे पर तो आमिर की मृत्यु का दुख था पर हृदय में राहुल के जीवित होने की खुशी.

प्राइवेट वार्ड में आ जाने के कुछ देर बाद राहुल को होश आ गया. वह कराहते हुए बुद बुदा रहा था.... अमिर….आमिर... मैं तुमसे….. बहुत प्यार करता हूं ... मैं तुम्हारे बिना नहीं जी पाऊंगा…… उसने अपनी आंखें एक बार फिर बंद कर लीं.

मदन के लिए यह अप्रत्याशित था..कि.जी अपने पुत्र को जीवित देख कर वो खुश थे परंतु उसके होठों पर आमिर का नाम... और उससे प्यार…. यह आश्चर्य का विषय था.

राहुल की पास रखी हुयी डायरी पर नजर पड़ते ही उन्होंने उसे शुरू कर दिया. जैसे-जैसे वह डायरी पढ़ते गए उनकी आंखों में अजब सी उदासी दिखाई पड़ने लगी. राहुल एक समलैंगिक था, वह आमिर से प्यार करता था. यह बात जानकर उनके होश फाख्ता हो गए.

राहुल एक बेहद ही सुंदर और कोमल मन वाला किशोर था जिसमें कल ही अपने जीवन के 19 वर्ष पूरे किए थे. शरीर की बनावट सांचे में ढली हुई थी. उसकी कद काठी पर हजारों लड़कियां फिदा हो सकतीं थीं पर राहुल का इस तरह आमिर पर आसक्त हो जाना यह अप्रत्याशित था और अविश्वसनीय भी.

पूरी तरह होश में आने के बाद राहुल के आंसू नहीं थम रहे थे. आमिर के जाने का उसके दिल पर गहरा सदमा लगा था. मदन उसे सांत्वना दे रहे थे पर उसके समलैंगिक होने की बात पर अभी कोई प्रतिक्रिया नहीं दे रहे थे.

राहुल के आने वाले जीवन को लेकर मदन चिंतित हो चले थे. क्या वह सामान्य पुरुषों की भाँति जीवन जी पाएगा? या समलैंगिकता उस पर हावी रहेगी? यह प्रश्न भविष्य के अंधेरे में था.

मदन राहुल को वापस सामान्य युवक की तरह देखना चाहते थे पर यह होगा कैसे? वह अपनी उधेड़बुन में खोए हुए थे…तभी उन्हें अपनी सौतेली बहन मानसी का ध्यान आया.

मदन के फोन की घंटी बजी और मानसी का नाम और सुंदर चेहरा फोन पर चमकने लगा यह एक अद्भुत संयोग था.. मदन ने फोन उठा लिया

"मदन भैया, मैं सोमवार को बेंगलुरु आ रही हूं"

"अरे वाह' कैसे?"

"सुमन का एडमिशन कराना है" सुमन मानसी की पुत्री थी.

मदन ने राहुल की दुर्घटना के बारे में मानसी को बता दिया. मानसी कई वर्षों बाद बेंगलुरु आ रही थी. मदन चेहरे पर मुस्कुराहट लिए मानसी को याद करने लगे.

मदन के पिता मानसी की मां को अपने परिवार में पत्नी स्वरूप ले आए थे जिससे मानसी और उसकी मां को रहने के लिए छत मिल गयी थी तथा मदन के परिवार को घर संभालने में मदद. यह सिर्फ और सिर्फ एक सामाजिक समझौता था इसमें प्रेम या वासना का कोई स्थान नहीं था. शुरुआत में मदन ने मानसी और उसकी मां को स्वीकार नहीं किया परंतु कालांतर में मदन और मानसी करीब आ गए और दो जिस्म एक जान हो गए. उनमें अंतरंग संबंध भी बने पर उनका विवाह न हो सका.

मदन और मानसी दोनों एक दूसरे को बेहद प्यार करते थे. मानसी का विवाह चंडीगढ़ में हुआ था पर अपने विवाह के पश्चात भी मानसी के संबंध मदन के साथ वैसे ही रहे.

मानसी अप्सरा जैसी खूबसूरत थी बल्कि आज भी है आज 40 वर्ष की में भी वह शारीरिक सुंदरता में अपनी उम्र को मात देती है. अपनी युवावस्था में उसने मदन के साथ कामुकता के नए आयाम बनाए थे. मानसी और मदन का एक दूसरे के प्रति प्रेम और समर्पण अद्भुत और अविश्वसनीय था.

मानसी के बेंगलुरु आने से पहले राहुल हॉस्पिटल से वापस घर आ चुका था. मानसी को देखकर मदन खुश हो गए. मानसी की पुत्री सुमन ने उनके पैर छुए. सुमन भी बेहद खूबसूरत और आकर्षक थी.

राहुल को देखकर मानसी बोल पड़ी

"मदन भैया, राहुल तो ठीक आपके जैसा ही दिखाई देता है" मदन मुस्कुरा रहे थे

राहुल ने कहा

"प्रणाम बुआ" मानसी ने अपने कोमल हाथों से उसके चेहरे को सहलाया तथा प्यार किया. सुमन और राहुल ने भी एक दूसरे को अभिवादन किया आज चार-पांच वर्षों बाद वो मिल रहे थे.

मानसी के पति उसका साथ 5 वर्ष पहले छोड़ चुके थे. मानसी अपने ससुराल वालों और अपनी पुत्री सुमन के साथ चंडीगढ़ में रह रही थी.

मानसी अपनी युवावस्था में अद्भुत कामुक युवती थी वह व्यभिचारिणी नहीं थी परंतु उसने अपने पति और मदन से कामुक संबंध बना कर रखे थे.

अपने पति के जाने के बाद मानसी की कामुकता जैसे सूख गई थी इसके पश्चात उसने मदन के साथ , भी संबंध नहीं बनाए थे.

रात्रि विश्राम के पहले मदन और मानसी छत पर टहल रहे थे. मदन ने राहुल के समलैंगिक होने की बात मानसी को स्पष्ट रूप से बता दी वह भी दुखी हो गई.

उन्हें राहुल को इस समलैंगिकता के दलदल से बाहर निकालने का कोई उपाय नहीं सूझ रहा था. मदन ने उसके अन्य दोस्तों से बात कर यह जानकारी प्राप्त कर ली थी कि राहुल की लड़कियों में कोई रुचि नहीं है. कई सारी सुंदर लड़कियां उसके संपर्क में आने की कोशिश करती थीं पर राहुल उन्हें सिरे से खारिज कर देता था. उसका मन आमिर से लग चुका था.

"मैं मानसी"

मदन भैया ने अचानक एक पुरानी बात याद करते हुए कहा ….

"मानसी तुम्हें याद है एक दिव्यपुरुष ने तुम्हें आशीर्वाद दिया था की जब भी तुम किसी कुंवारे पुरुष से संभोग की इच्छा रखते हुए प्रेम करोगी तो तुम्हारी यौनेच्छा कुंवारी कन्या की तरह हो जाएगी और तुम्हारी योनि भी कुवांरी कन्या की योनि की तरह बर्ताव करेगी."

मैं शर्म से पानी पानी हो गई मैनें अपनी नजरें झुका लीं.

"हां मुझे याद तो अवश्य है पर वह बातें विश्वास करने योग्य नहीं थी. वैसे वह बात आपको आज क्यों याद आ रही है?"

मदन भैया संजीदा थे उन्होंने कहा

"मानसी, भगवान ने तुम्हें सुंदरता और कामुकता एक साथ प्रदान की है. उस दिव्यपुरुष का आशीर्वाद भी इस बात की ओर इशारा कर रहा है की तुम राहुल को समलैंगिकता से बाहर निकाल सकती हो. तुम्हें अपनी सुसुप्त कामवासना को एक बार फिर जागृत करना है. यह पावन कार्य राहुल की जिंदगी बचा सकता है."

मदन भैया ने अपनी बात इशारों ही इशारों में कह दी थी.

"पर मदन भैया, वह मेरे पुत्र समान है मैं उसकी बुआ हूं"

"मानसी, क्या तुम सच में मेरी बहन हो?"

"नहीं"

"तो फिर तुम राहुल की बुआ कैसे हुई?" मैं निरुत्तर हो गई.

मुझे उन्हें भैया कहने की आदत शुरू से ही थी. जब मैं उनसे प्यार करने लगी तब भी मेरे संबोधन में बदलाव नहीं आया था. मेरे लाख प्रयासों के बाद मेरे मुख से उनके लिए हमेशा भैया शब्द ही निकलता पर हम दोनों भाई बहन न कभी थे न कभी हो सकते थे. हम दोनों एक दूसरे के लिए ही बने थे पर हमारे माता पिता के सामाजिक समझौते की वजह से हम दोनों समाज की नजरों में भाई बहन हो गए थे.

इस लिहाज से न राहुल मेरा भतीजा था और न हीं मैं उसकी बुआ. संबंधों की यह जटिलता मुझे समझ तो आ रही थी पर राहुल इससे बिल्कुल अनजान था. वह मुझे अपनी बुआ जैसा ही प्यार करता था और मैं भी उसे अपने वात्सल्य से हमेशा ओतप्रोत रखती थी.

"मानसी कहां खो गई"

"कुछ नहीं " मैं वापस वास्तविकता में लौट आई थी.

"भैया, मैंने राहुल को हमेशा बच्चे जैसा प्यार किया है. मैंने उसे अपनी गोद में खिलाया है. आप से मेरे संबंध जैसे भी रहे हैं पर राहुल हमेशा से मेरे बच्चे जैसा ही रहा है. उसमें और सुमन में मैंने कोई अंतर नहीं समझा है."

"इसीलिए मानसी मेरी उम्मीद सिर्फ और सिर्फ तुम हो. उसका आकर्षण किसी लड़की की तरफ नहीं हो रहा है. उसका सोया हुआ पुरुषत्त्व जगाने का कार्य आसान नहीं है. इसे कोई अपना ही कर सकता है वह भी पूरी आत्मीयता और धीरज के साथ"

"मम्मी, राहुल को दर्द हो रहा है जल्दी आइये" सुमन की आवाज सुनकर हम दोनों भागते हुए नीचे आ गए.

जब तक भैया दवा लेकर आते मैं राहुल के बालों पर उंगलियां फिराने लगी. राहुल की कद काठी ठीक वैसी ही थी जैसी मदन भैया की युवावस्था में थी.

राहुल अभी मुझे उनकी प्रतिमूर्ति दिखाई दे रहा था. एकदम मासूम चेहरा और गठीला शरीर जो हर लड़की को आकर्षित करने के लिए काफी था. पर राहुल समलैंगिक क्यों हो गया? यह प्रश्न मेरी समझ से बाहर था. एक तरफ मदन भैया मेरे लिए कामुकता के प्रतीक थे जिनके साथ मैने कामकला सीखी थी वहीं दूसरी तरफ राहुल था उनका पुत्र... मुझे उस पर तरस आ रहा था. दवा खाने के बाद राहुल सो गया. मैं और सुमन दोनों ही उसे प्यार भरी नजरों से देख रहे थे वह सचमुच बहुत प्यारा था.

सुमन कॉलेज में दाखिला लेने के पश्चात हॉस्टल में रहने लगी और मैं राहुल का ख्याल रखने लगी. धीरे-धीरे मुझमें और राहुल में आत्मीयता प्रगाढ़ होती गई. राहुल मुझसे खुलकर बातें करने लगा था. उसकी चोट भी धीरे-धीरे सामान्य हो रही थी. जांघों के जख्म भर रहे थे.

मुझे राहुल के साथ हंस-हंसकर बातें करते हुए देखकर मदन भैया बहुत खुश होते एक दिन उन्होंने मुझसे कहा..

"मानसी, मैंने तुमसे गलत उम्मीद नहीं की थी. राहुल का तुमसे इस तरह हंस-हंसकर बातें करना इस बात की तरफ इंगित करता है कि तुम उसकी अच्छी दोस्त बन चुकी हो"

मैं उनका इशारा समझ रही थी मैंने कहा

"वह मुझे अभी भी अपनी बुआ ही मानता है मुझे नहीं लगता कि मैं यह कर पाऊंगी"

उनके चेहरे पर गहरी उदासी छा गई.

"आप निराश मत होइए, जो होगा वह भगवान की मर्जी से ही होगा. पर हां मैं आपके लिए एक बार प्रयास जरूर करूंगी"

उन्होंने मुझे अपने आलिंगन में ले लिया और मुझे माथे पर चूम लिया

"मानसी मैं तुम्हारा यह एहसान कभी नहीं भूलूंगा" आज हमारे आलिंगन में वासना बिल्कुल भी नहीं थी सिर्फ और सिर्फ प्रेम था.

मैंने अपना आखरी सम्भोग आज से चार-पांच वर्ष पूर्व किया था. सुमन के पिता के जाने के बाद मुझे कामवासना से विरक्ति हो चुकी थी. जो स्वयं कामवासना से विरक्त हो चुका हो उसे एक समलैंगिक के पुरुषत्व को जागृत करना था. यह पत्थर से पानी निकालने जैसा ही कठिन था पर मैंने मदन भैया की खुशी के लिए यह चुनौती स्वीकार कर ली.

राहुल की तीमारदारी के लिए जो लड़का घर आता था उसे मैंने हटा दिया और स्वयं राहुल का ध्यान रखने लगी. राहुल इस बात से असमंजस में रहता था कि वह कैसे मेरे सामने अपने वस्त्र बदले? पर धीरे-धीरे वह सामान्य हो गया.

आज राहुल को स्पंज बाथ देने का दिन था मैंने राहुल से कपड़े उतारने को कहा वह शर्मा रहा था पर मेरे जिद करने पर उसने अपनी टी-शर्ट उतार दी उसके नग्न शरीर को देखकर मुझे मदन भैया की याद आ गई अपनी युवावस्था में हम दोनों ने कई रातें एक दूसरे की बाहों में नग्न होकर गुजारी थीं. राहुल का शरीर ठीक उनके जैसा ही था. मैं अपने ख्वाबों में खोई हुई थी तभी राहुल ने कहा

"बुआ, जल्दी कीजिए ठंड लग रही है"

मैं राहुल के सीने और पीठ को पोंछ रही थी जब मेरी उंगलियां उसके सीने और पीठ से टकराती तो मुझ में एक अजीब सी संवेदना जागृत हो रही थी. मुझे उसे छूने में शर्म आ रही थी. जैसे-जैसे मैं उसके शरीर को छूती गई मेरी शर्म हटती गई. शरीर का ऊपरी भाग पोछने के बाद मैंने उसके पैरों को पोछना शुरू कर दिया जांघों तक पहुंचते-पहुंचते राहुल ने मेरे हाथ पकड़ लिये. मैंने भी आगे बढ़ने की चेष्टा नहीं की.

धीरे-धीरे राहुल मुझसे और खुलता गया. मैं उसके बिस्तर पर लेट जाती वह मुझसे ढेर सारी बातें करता और बातों ही बातों के दौरान हम दोनों के शरीर एक दूसरे से छूते रहते. सामान्यतया वह पीठ के बल लेटा रहता और मैं करवट लेकर. मेरे पैर अनायास ही उसके पैरों पर चले जाते तथा मेरे स्तन उसके सीने से टकराते. कभी-कभी बातचीत के दौरान मैं उसके माथे और गालों को चूम लेती.

यदि प्रेम और वासना की आग दोनों तरफ बराबर लगी हो तो इस अवस्था से संभोग अवस्था की दूरी कुछ मिनटों में ही तय हो जाती पर राहुल में यह आग थी या नहीं यह तो मैं नहीं जानती पर मैं अपनी बुझी हुई कामुकता को जगाने का प्रयास अवश्य कर रही थी.

मदन भैया ने मुझे राहुल के साथ इस अवस्था में देख लिया था. वो खुश दिखाई पड़ रहे थे. अगले दिन शाम को ऑफिस से आते समय वह मेरे लिए कई सारी नाइटी ले आए जो निश्चय ही मेरी उम्र के हिसाब से कुछ ज्यादा ही उत्तेजक थीं. मैं उनकी मनोदशा समझ रही थी. अपने पुत्र का पुरुषत्व जागृत करने के लिए वह कोई कमी नहीं छोड़ना चाह रहे थे.

राहुल की जांघों पर से पट्टियां हट चुकी थीं. अब पूरी तरह ठीक हो चुका था उसने थोड़ा बहुत चलना फिरना भी शुरू कर दिया था.

राहुल से अब मेरी दोस्ती हो चली थी. मैं उसके बिस्तर पर लेटी रहती और उससे बातें करते करते कभी कभी उसके बिस्तर पर ही सो जाती. हमारे शरीर एक दूसरे से छूते रहते पर उसमें उत्तेजना नाम की चीज नहीं थी. मैं मन ही मन उत्तेजित होने का प्रयास करती पर उसके मासूम चेहरे को देखकर मेरी उत्तेजना जागृत होने से पहले ही शांत हो जाती.

शनिवार का दिन था सुमन हॉस्पिटल से घर आई हुई थी उसने राहुल के लिए फूलों का एक सुंदर गुलदस्ता भी खरीदा था. राहुल और सुमन एक दूसरे से बातें कर रहे थे. उन दोनों को देखकर मेरे मन में अजीब सा ख्याल आया. दोपहर में भी जब राहुल सो रहा था सुमन उसे एकटक निहार रही थी मेरी नजर पड़ते ही वह शर्मा कर अपने कमरे में चली गई. वह जिस प्रेमभाव को छुपा रही थी वह मेरे जीवन का आधार था. सुमन राहुल पर आसक्त हो गई थी पर उसे यह नहीं पता था की उसका यह प्रेम एकतरफा था.

अगले दिन सुमन हॉस्टल जा चुकी थी. राहुल दोपहर में देर तक सोता रहा था. मुझे पता था आज वह देर रात तक नहीं सोएगा. मैंने आज कुछ नया करने की ठान ली थी. मैंने स्नानगृह के आदमकद आईने में स्वयं को पूर्ण नग्न अवस्था में देखकर मुझे अपनी युवावस्था याद आ गई. मदन भैया से मिलने के लिए मैं यूं ही अपने आप को सजाती और संवारती थी. उम्र ने मेरी शारीरिक संरचना में बदलाव तो लाया था पर ज्यादा नहीं.

मेरी रानी (योनि) का मुख घुँघराले केशों के पीछे छुप गया था. वह पिछले तीन-चार वर्षों से एकांकी जीवन व्यतीत कर रही थी. आज कई दिनों पश्चात मेरी उंगलियों के कोमल स्पर्श से वह रोमांचित हो रही थी. मैंने रानी के मुख मंडल पर उग आए बालों को हटाना चाहा. जैसे जैसे मेरी उंगलियां रानी और उसके होंठों को छूतीं वह जागृत हो रही थी. ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे किसी कैदी को आज बाहर निकाल कर खुली हवा में सांस लेने के लिए छोड़ दिया गया हो. रानी के होंठो पर खुशी के आँशु आ रहे थे. मेरी उत्तेजना बढ़ रही थी.

जैसें ही मेरी आँखें बंद होतीं मुझें मदन भैया की युवावस्था याद आ जाती अपनी कल्पना में मैं उनके हष्ट पुष्ट शरीर को देख रही थी पर मुझे बार-बार राहुल का चेहरा दिखाइ दे जाता , राहुल भी ठीक वैसा ही था. मैं उन अनचाहे बालों को हटाने लगी. मुझे ऐसा लग रहा था जैसे मैं अपनी रानी को एक बार फिर प्रेमयुद्ध के लिए तैयार कर रही हूँ. मेरी उत्तेजना बढ़ रही थी. इस उत्तेजना में किंचित राहुल का भी योगदान था.

राहुल के प्रति मेरा वात्सल्य रस अब प्रेम रस में बदल रहा था. मैं जितना राहुल के बारे में सोचती मेरी उत्तेजना उतनी ही बढ़ती. मेरे पूर्ण विकसित और अपना आकार खोते स्तन अचानक कठोर हो रहे थे. उन्हें छूते हुए मुझे ऐसा महसूस हुआ जैसे वह उम्मीद से ज्यादा कठोर हो गए हैं. इनमें इतनी कठोरता मैंने पिछले कई सालों में महसूस नहीं की थी. निप्पल भी फूल कर कड़े हो गए थे जैसे वह भी अपनी भागीदारी सुनिश्चित करना चाह रहे थे.

मुझे यह क्या हो रहा था? स्तनों को छूने पर मुझे शर्म और लज्जा महसूस हो रही थी. यह इतने दिनों बाद होने वाले स्पर्श का अंतर था या कुछ और? मुझे अचानक दिव्यपुरुष की बात याद आ गई. मुझे ऐसा लगा जैसे शायद उनकी बातों में कुछ सच्चाई अवश्य थी. आज राहुल के प्रति आकर्षण ने मुझमें शर्म और उत्तेजना भर दी थी.

स्नान करने के पश्चात मैं वापस कमरे में आयी और मदन भैया द्वारा लाई खूबसूरत नाइटी पहन ली. मैंने अपने ब्रा और पैंटी का त्याग कर दिया था शायद आज उनकी आवश्यकता नहीं थी. नाइटी ने मेरे शरीर पर एक आवरण जरूर दिया था पर मेरे शरीर के उभारों को छुपा पाने में वह पूरी तरह नाकाम थी. ऐसा लगता था उसका सृजन ही मेरी सुंदरता को जागृत करने के लिए हुआ था. मैंने अपने आप को सजाया सवांरा और आज मन ही मन राहुल के पुरुषत्व को जगाने के लिए चल पड़ी.

खाना खाते समय मदन भैया और राहुल दोनों ही मुझे देख रहे थे. पिता पुत्र की नजरें मुझ पर ही थीं उनके मन मे क्या भाव थे ये तो वही जानते होंगे पर मेरी वासना जागृत थी. मदन भैया की नजरें मेरे चेहरे के भाव आसानी से पढ़ लेतीं थीं. वह खुश दिखाई पड़ रहे थे.

खाना खाने के बाद मदन भैया सोने चले गए और मैं राहुल के बिस्तर पर लेटकर. उससे बातें करने लगी. राहुल ने कहा

"बुआ आज आप बहुत सुंदर लग रही हो"

मैंने उसके गाल पर मीठी सी चपत लगाई और कहा

"नॉटी बॉय, बुआ में सुंदरता ढूंढते हो."

वह मुस्कुराने लगा

"नहीं बुआ मेरा वह मतलब नहीं था.आज आप सच में सुंदर लग रही हो"

मैंने यह बात जान ली थी नारी की सुंदर और सुडौल काया सभी को सुंदर लगती है चाहे वह पुरुष हो या स्त्री या फिर समलैंगिक.

मैंने उसे अपने आलिंगन में ले लिया मेरे कठोर स्तन उसके सीने से सटते गए और मेरे शरीर में एक सनसनी सी फैलती गयी. मेरे स्तनों और कठोर निप्पलों का स्पर्श निश्चय ही उसे भी महसूस हुआ होगा. वह थोड़ा असहज हुआ पर उसने अपनी तरफ से कोई प्रतिक्रिया नहीं दी. हम फिर बातें करने लगे.

कुछ देर में मैं जम्हाई लेते हुए सोने का नाटक करने लगी. मेरी आंखें बंद थी पर धड़कन तेज. मदन भैया जैसा समझदार पुरुष कामवासना के लिए आतुर स्त्री की यह अवस्था तुरंत पहचान जाता पर राहुल मासूम था.

मैंने अपनी नाइटी को इस प्रकार व्यवस्थित कर लिया था जिससे मेरे स्तनों का ऊपरी भाग स्पष्ट रूप से दिखाई पड़ रहा था. मैं राहुल की नजरों को अपने शरीर पर महसूस करना चाह रही थी पर वह अपने मोबाइल में कोई किताब पढ़ने में व्यस्त था.

कुछ देर पश्चात वह उठकर बाथरूम की तरफ गया इस बीच मैंने अपने शरीर पर पड़ी हुई चादर हटा दी. नाइटी को खींचकर मैंने अपनी जांघों तक कर लिया था स्तनों का ऊपरी भाग अब स्पष्ट रूप से दिखाई पड़ रहा था. कमरे में लाइट जल रही थी मेरी नग्नता उजागर थी.

राहुल बाथरूम से आने के बाद मुझे एकटक देखता रह गया. वह मेरे पास आकर मेरी नाइटी को छू रहा था. कभी वह नाइटी को नीचे खींच कर मेरे घुटनों को ढकने का प्रयास करता कभी वापस उसी अवस्था में ला देता. मैं मन ही मन मुस्कुरा रही थी. उसके मन में निश्चय ही दुविधा थी.

अंततः राहुल ने नाइटी को ऊपर तक उठा दिया. मेरी जांघों के जोड़ तक पहुंचते- पहुंचते उसके हाथ रुक गए. इसके आगे जाने की न वह हिम्मत नहीं कर पा रहा था न ही यह संभव था नाइटी मेरे फूल जैसे कोमल नितंबों के भार से दबी हुई थी.

मेरी नग्न और गोरी मखमली जाँघे उसकी आंखों के सामने थीं. वह मुझे बहुत देर तक देखता रहा और फिर आकर मेरे बगल में सो गया. मैं मन ही मन खुश थी. राहुल की मनोदशा मैं समझ पा रही थी. कुछ ही देर में राहुल ने अपना मोबाइल रख दिया और पीठ के बल लेट कर सोने की चेष्टा करने लगा.

मैंने जम्हाई ली और अपने दाहिनी जांघ को उसकी नाभि के ठीक नीचे रख दिया. वह इस अप्रत्याशित कदम से घबरा गया.

"बुआ, ठीक से सो जाइए" उसकी आवाज मेरी कानों तक पहुंची पर मैंने उसे नजरअंदाज कर दिया. अपितु मैंने अपने स्तनों को उसके सीने से और सटा दिया मेरी दाहिनी बांह अब उसके सीने पर थी. और मेरा चेहरा उसके कंधों से सटा हुआ था.

मैं पूर्ण निद्रा में होने का नाटक कर रही थी. वह पूरी तरह शांत था. उसकी नजरें मेरे स्तनों पर थी जो उसके सीने से सटे हुए थे. हम दोनों कुछ देर इसी अवस्था में रहे राहुल धीरे-धीरे सामान्य हो रहा था.

मैंने अपनी दाहिनी जांघ को नीचे की तरफ लाया मुझे पहली बार राहुल के लिंग में कुछ तनाव महसूस हुआ. मेरी कोमल जांघों ने उस कठोरता का महसूस कर लिया. जांघों से उसके आकार को महसूस कर पाना कठिन था पर उसका तनाव इस बात का प्रतीक था कि आज मेरी मेहनत रंग लाई थी.

मैं कुछ देर तक अपनी जांघ को उसके लिंग के ऊपर रखी रही और बीच-बीच में अपनी जांघों को ऊपर नीचे कर देती. राहुल के लिंग का तनाव बढ़ता जा रहा था. मेरे लिए बहुत ही खुशी की बात थी.

कुछ देर इसी अवस्था में रहने के बाद मैंने राहुल के हाथों को अपनी पीठ पर महसूस किया वह मेरी तरफ करवट ले चुका था मैं अब उसकी बाहों में थी मेरे दोनों स्तन उसके सीने से सटे हुए थे और उसके लिंग का तनाव मेरे पेट पर महसूस हो रहा था. मेरी रानी प्रेम रस से पूरी तरह भीगी हुई थी और मैं मन ही मन में संभोग के आतुर थी.

मुझे पता था मेरी जल्दीबाजी बना बनाया खेल बिगाड़ सकती थी. आज हम दोनों के बीच जितनी आत्मीयता बड़ी थी वह काफी थी. मैं राहुल को अपनी आगोश में लिए हुए सो गयी.

सुबह राहुल मेरे उठने से पहले ही उठ चुका था. उसने मेरी नाइटी व्यवस्थित कर दी थी मेरा पूरा शरीर ढका हुआ था. निश्चय ही यह काम राहुल ने किया था. उसे नारी शरीर की नग्नता और ढके होने का अंतर समझ आ चुका था.

" बुआ उठिए ना, मैं आपके लिए चाय बना कर लाया हूँ." राहुल मुझसे प्यार से बातें कर रहा था. कुछ ही देर में मदन भैया आ गए. मेरा मन कह रहा था कि मैं मदन भैया को अपनी पहली विजय के बारे में बता दूं पर मैंने शांत रहना ही उचित समझा अभी दिल्ली दूर थी.

अगले कुछ दिन मैने राहुल के साथ कोई कामुक गतिविधि नहीं की. मैं उसमें पनप रही उत्तेजना को बढ़ता हुआ देखना चाह रही थी. वह मुझसे प्यार से बातें करता और उसके चेहरे पर खुशी स्पष्ट दिखाई पड़ती. मैंने उसके साथ रात को सोना बंद कर दिया था. उसकी आंखों में आग्रह दिखाई पड़ता पर वह खुलकर नहीं बोल सकता था उसकी अपनी मर्यादा या थी मेरी अपनी.

सुमन आज घर आयी थी. आज राहुल के चेहरे पर खुशी स्पष्ट दिखाई पड़ रही थी. वह दोनों आपस में काफी घुलमिल गए थे जब तक सुमन घर में थी मैं राहुल से दूर ही रही. सुमन जब राहुल के पास रहती उसके चेहरे पर भी एक अलग ही खुशी दिखाई पड़ती. मुझे मन ही मन ऐसा प्रतीत होता जैसे वह राहुल को प्यार करने लगी है. उसे शायद यह आभास भी नहीं था कि राहुल समलैंगिक है. मैंने उन दोनों को एक साथ छोड़ दिया सुमन का साथ राहुल के पुरुषत्व को जगाने में मदद ही करता. वह दोनों जितना करीब आते मेरा कार्य उतना ही आसान होता आखिर सुमन भी मेरी पुत्री थी उतनी ही सुंदर और पूर्ण यौवन से भरी हुई.

अगले दिन सुमन के हॉस्टल जाते ही राहुल फिर उदास हो गया. शाम को उसने मुझसे कहा बुआ आप मेरे पास ही सो जाइएगा. उसका यह खुला आमंत्रण मुझे उत्तेजित कर गया. मैंने मन ही मन आगे बढ़ने की ठान ली.

एक बार फिर मैं उसी तरह सज धज कर राहुल के पास पहुंच गयी. आज पहनी हुई नाइटी का सामने का भाग दो हिस्सों में था जिसे एक पतले पट्टे से बांधा जा सकता था तथा खोलने पर नाइटी सामने से खुल जाती और छुपी हुयी नग्नता उजागर हो जाती. राहुल मुझे देख कर आश्चर्यचकित था . उसने कहा

"बुआ, आज तो आप तो आप परी जैसी लग रहीं है. यह ड्रेस आप पर बहुत अच्छी लग रही है"

मैंने मुस्कुराते हुए कहा

"आजकल तुम मुझ पर ज्यादा ही ध्यान देते हो" वह भी मुस्कुरा दिया.

हम दोनों बातें करने लगे सुमन के बारे में बातें करने पर उसके चेहरे पर शर्म दिखाई पड़ती. वह सुमन के बारे में बाते करने से कतरा रहा था. कुछ ही देर में मैं एक बार फिर सोने का नाटक करने लगी

एक बार फिर राहुल बाथरूम की तरफ गया उसके वापस आने से पहले मैंने अपनी नाइटी की की बेल्ट खोल दी. नाइटी का सामने वाला हिस्सा मेरे शरीर पर सिर्फ रखा हुआ था. मैरून रंग की नाइटी के बीच से मेरी गोरी और चमकदार त्वचा एक पतली पट्टी के रूप में दिखाई पड़ रही थी. मैने अपनी रानी को अभी भी ढक कर रखा था.

राहुल बाथरूम से वापस आ चुका था. मैं होने वाली कयामत का इंतजार कर रही थी. उसकी निगाहें मेरे नाभि और स्तनों पर घूम रही थी दोनों स्तनों का कोमल उभार नाइटी के बीच से झांक रहे थे और अपने नए प्रेमी को स्पर्श का खुला आमंत्रण दे रहे थे.

राहुल से अब और बर्दाश्त नहीं हुआ. उसने नाइटी को फैलाना शुरू कर दिया जैसे-जैसे वह नाइटी के दोनों भाग को अलग करता गया मेरे स्तन खुललकर बाहर आते गए. शरीर का ऊपरी भाग नग्न हो चुका था राहुल मुझे देखता जा रहा था कुछ ही देर में मेरी जाँघे भी नग्न हो गयीं मेरी योनि को नग्न करने का साहस राहुल नहीं जुटा पाया और कुछ देर मेरी नग्नता का आनद लेकर मन में उत्तेजना लिए हुए मेरे बगल में आकर लेट गया.

उसने चादर ऊपर खींच ली उसकी सांसे तेज चल रही थी. आगे बढ़ने की अब मेरी बारी थी मैंने एक बार फिर अपनी जांघों से उसके लिंग को महसूस किया उसका तनाव आज और भी ज्यादा था. कुछ देर अपनी जांघों से उसे सहलाने के बाद मैंने अपनी हथेलियां उसके लिंग पर रख दीं. मैंने बिना कोई बात किये उसके पजामे का नाड़ा ढीला कर दिया. हम दोनों का शरीर चादर के अंदर था सिर्फ राहुल का सर बाहर था.

मैंने अपनी हथेलियों से उसके लिंग को बाहर निकाल लिया लिंग का आकार मुझे मदन भैया के जैसा ही महसूस हुआ. मेरे हाथों में आते ही उसके लिंग में तनाव बढ़ता गया. मुझे खुशी हुयी मेरी हथेलियों का जादू आज भी कायम था. राहुल की धड़कनें तेज थीं. मेरे कान उसके सीने से सटे हुए उसकी धड़कन सुन रहे थे.

मेरी जाँघें उसकी जांघों पर आ चुकीं थीं. मेरी नग्नता का एहसास उसे हो रहा था. मेरी उंगलियों के कमाल ने राहुल के लिंग को पूर्ण रूप से उत्तेजित कर दिया था. मेरे थोड़े ही प्रयास से राहुल स्खलित हो सकता था. मैंने इस स्थिति को और कामुक बनाना चाहा. मैंने उसके कुरते को अपने हाथों से ऊपर कर उसके सीने को नग्न कर दिया और अपने नग्न स्तनों को उसके सीने से सटा दिया.

मेरी उत्तेजना भी चरम पर पहुंच रही थी. मेरी रानी उसकी नग्न जाँघों से छू रही थी. मेरी वासना उफान पर थी. मेरी रानी लगातार प्रेम रस बहा रही थी. अपने स्तनों की कठोरता और सिहरन महसूस कर मैं स्वयं भी अचंभित थी.

यह में मुझे मेरी किशोरावस्था की याद दिला रहे थे. मैं चाह रही थी कि राहुल स्वयं अपने हाथ बढ़ाकर उसे पकड़ ले पर राहुल शांत था. कुछ ही देर में राहुल ने मेरी तरफ करवट ली मेरे दोनों स्तन उसके सीने से टकरा रहे थे. उसकी हथेलियां मेरी नंगी पीठ पर घूम रहीं थी .

मेरी उंगलियों ने उसके लिंग को सहलाना जारी रखा कुछ ही देर में मुझे राहुल के लिंग का उछलना महसूस हुआ. मेरे स्तनों पर वीर्य की धार पड़ रही थी राहुल स्खलित हो रहा था. मैंने सफलता प्राप्त कर ली थी राहुल का पुरुषत्व जागृत हो चुका था.

उसने अभी तक मेरे यौनांगों को स्पर्श नहीं किया था पर आज जो हुआ था यह मेरी उम्मीद से ज्यादा था.

अपनी रानी की उत्तेजना मुझसे स्वयं बर्दाश्त नहीं हो रही थी. मैं भी स्खलित होना चाहती थी. मैंने राहुल का एक पैर अपने दोनों जांघों के बीच ले लिया तथा अपनी रानी को उसकी जांघों पर रगड़ने लगी. मेरे कमर की हलचल को राहुल ने महसूस कर लिया वो मुझे आलिंगन से लिए हुए अपनी मजबूत बाहों का दबाव बढ़ता गया. यह एक अद्भुत एहसास था. मेरी सांसे तेज हो गई और मेरी रानी ने कंपन प्रारंभ कर दिये मेरा यह स्खलन अद्भुत था. हम दोनों उसी अवस्था मे सो गए.

मैं बहक रही थी. राहुल का पुरुषत्व जाग्रत करते करते मेरी रानी सम्भोग के लिए आतुर हो चुकी थी. कभी कभी मुझे शर्म भी आती की मैं यह क्या कर रही हूँ? राहुल ने अपना वीर्य स्खलन कर लिया था यह स्पष्ट रूप से इंगित करता था कि उसका पृरुषत्व जागृत हो चुका है. मेरा कार्य हो चुका था पर अब मैं स्वयं अपनी रानी की कामेच्छा के आधीन हो चुकी थी.

मेरे मन में अंतर्द्वंद चल रहा था एक तरफ राहुल जो मेरे बच्चे की उम्र का था जिसके साथ कामुक गतिविधियां सर्वथा अनुचित थीं दूसरी तरफ मेरी रानी संभोग करने के लिएआतुर थी.

अगले तीन-चार दिनों तक में राहुल से दूर ही रही. वह बार-बार मेरे करीब आना चाहता. उसने मुझसे फिर से रात में सोने की गुजारिश की पर मैने टाल दिया.मैं जानती थी की राहुल का पुरुषत्व अब जाग चुका है मेरे और करीब जाने से संभोग का खतरा हो सकता है.

इसी दौरान सुमन के कॉलेज में छुट्टियां थीं. वो घर आयी हुयी थी. राहुल और सुमन के बीच में नजदीकियां बढ़ रहीं थीं. वह दोनों एक दूसरे से खुलकर बातें करते बाहर घूमने जाते और खुशी-खुशी वापस आते. ऐसा लग रहा था जैसे सुमन और राहुल करीब आ चुके थे.

मैंने अपने कामुक प्रसंग को यहीं रोकना उचित समझा. मैने मदन भैया से सब कुछ खुलकर बता दिया. वह अत्यंत खुश हो गए उन्होंने मुझे अपनी गोद में उठा लिया ठीक उसी प्रकार जैसे वह मेरे विवाह से पूर्व मुझे उठाया करते थे आज उनकी बाहों में मुझे फिर से उत्तेजना महसूस हुई थी. वह बहुत खुश दिखाई पड़ रहे थे. उन्होंने कहा

" मानसी, लगता है दिव्यपुरुष की बात के अनुसार राहुल ही वह व्यक्ति है जिसके साथ संभोग करते समय तुम्हारी योनि को एक कुंवारी योनि की तरह बर्ताव करना है? क्या सच में तुममें कुंवारी कन्या की तरह उत्तेजना जागृत हो रही है?

मदन भैया द्वारा याद दिलाई गई बातें सच थीं. जब से मैंने राहुल के साथ कामुक क्रियाकलाप शुरू किए थे मेरे स्तनों की कठोरता और मेरी योनि की संवेदना में अद्भुत वृद्धि हुयी थी. मेरी यह योनि पिछले कई वर्षों से मदन भैया और अपने पति के राजकुमार(लिंग) से अद्भुत प्रेम युद्ध करने के पश्चात स्खलित होती थी पर उस दिन वह राहुल की जांघों से रगड़ खा कर ही स्खलित हो गई थी. यह आश्चर्यजनक और अद्भुत था.

क्या सच में मुझे राहुल से संभोग करना था? क्या उससे संभोग करते समय मुझे कौमार्य भंग होने का सुख और दुख दोनों मिलना बाकी था?. क्या उसके पश्चात मेरी योनि एक नवयौवना की तरह बन जाएगी? यह सारी बातें मेरे दिमाग में घूम रही थीं.

मदन भैया भी शायद वही याद कर रहे थे. इन बातों के दौरान मैंने मदन भैया के राजकुमार में तनाव महसूस किया. मेरी हथेलियों का स्पर्श पाते ही वह पूर्ण रुप से तनाव में आ चुका था. नियत अद्भुत ताना-बाना बुन रही थी.

बाहर दरवाजे की घंटी सुनकर हम दोनों अलग हुए. सुमन घर आ चुकी थी. प्रकृति ने हम चारों के बीच एक अजीब सी स्थिति पैदा कर दी थी.

दोपहर में चंडीगढ़ से फोन आया. मेरी सास की तबियत खराब हो गयी थी. मुझे कल ही चंडीगढ़ वापस जाना था.

यह सुनते ही सभी दुखी हो गये. राहुल के चेहरे पर उदासी स्पष्ट दिखाई पड़ रही थी वह मेरे चंडीगढ़ जाने की खबर से दुखी था. खाना खाने के पश्चात वह मेरे पास आया और आंखों में आंसू लिए हुए बोला

"बुआ मुझे आज अच्छा नहीं लग रहा है क्या मेरी खुशी के लिए आज तुम मेरे पास सो सकती हो?"

उसके आग्रह में वात्सल्य रस था या कामरस यह कहना कठिन था. सुमन घर पर ही थी. सामान्यतः मैं और सुमन एक ही कमरे में सोते थे सुमन की उपस्थिति में उसे छोड़कर राहुल के कमरे में जाना कठिन था.

मैंने टालने के लिए कह दिया

"ठीक है, कोशिश करुंगी"

रात में सुमन मेरे पास सोयी हुई थी. वह खोयी खोयी थी. मैंने उससे पूछा

"तू आज कल खोयी खोयी रहती है क्या बात है?" सुमन के पिता की मृत्यु के बाद मैं और सुमन एक दूसरे के साथी बन गए थे वह मुझसे अपनी बातें खुलकर बताती थी.

"कुछ नहीं माँ"

"बता ना, इसका कारण राहुल है ना?"

वह मुझसे लिपट गयी. उसके चेहरे पर आयी शर्म की लाली ने उसकी मनोस्थिति स्पष्ट कर दी थी. उसने अपना चेहरा मेरे स्तनों में छुपा लिया.

अगली सुबह मेरे जाने का वक्त आ चुका था. मदन भैया मेरा सामान लेकर दरवाजे पर बाहर खड़े थे सुमन और राहुल मेरे पास आए उन दोनों ने मेरे चरण छुए यह एक संयोग था या प्रकृति की लीला दोनों ने मेरे पैर एक साथ छूये. मैंने आशीर्वाद दिया

"दोनों हमेशा खुश रहना और एक दूसरे का ख्याल रखना"

मदन भैया यह दृश्य देख रहे थे.

कुछ देर में उनकी कार एयरपोर्ट की तरफ सरपट दौड़ रही थी. वह मुझसे कुछ पूछना चाहते थे पर असमंजस में थे. मैं बेंगलुरु शहर को निहार रही थी. इस शहर से मेरी कई यादें जुड़ी थी. मैंने इसी शहर में अपना कौमार्य खोया था और कल रात फिर एक बार ….. टायरों के चीखने से मेरी तंद्रा टूटी एयरपोर्ट आ चुका था. मैं मदन भैया की आंखों में देख रही थी उनकी आंखों में अभी भी प्रश्न कायम था. मैंने उनके चरण छुए और एयरपोर्ट के अंदर दाखिल हो गई.

"मैं मदन"

मानसी जा चुकी थी मेरी आंखों में आंसू थे. पिछले कुछ महीनों में मुझे मानसी की आदत पड़ चुकी थी. मानसी ने राहुल में पृरुषत्व जगाने की जो कोशिश की थी वह सराहनीय थी.

ट्रैफिक कम होने के कारण मैं घर जल्दी पहुंच गया. दरवाजे पर पहुंचते ही मुझे सुमन की आवाज आई

"राहुल भैया कपड़े पहन लेने दीजिए फूफा जी आते ही होंगे"

"बस एक बार और दिखा दो राहुल की आवाज आई"

"बाकी रात में" सुमन ने हंसते हुए कहा.

उन दोनों की हंसी ठिठोली की आवाज साफ-साफ सुनाई दे रही थी. मैंने घंटी बजा कर उनकी रासलीला पर विराम लगा दिया था. मुझे इस बात की खुसी थी कि राहुल किसी लड़की से अंतरंग हो रहा था. मानसी को मैं दिल से याद कर रहा था.

तभी मोबाइल पर मानसी का मैसेज आया.

(मैं मानसी)

उस रात सुमन का मन पढ़ने के बाद मैंने राहुल को सुमन के लिए मन ही मन स्वीकार कर लिया. मेरे मन मे प्रश्न अभी भी कायम था क्या राहुल सुमन को वैवाहिक सुख देने में सक्षम था? मेरे लिए यह जानना आवश्यक था.

उस रात मैंने साड़ी और ब्लाउज पहना था उत्तेजक नाइटी पहनने का कोई औचित्य नहीं था सुमन घर पर ही थी. उसके सोने के बाद मैं मन में दुविधा लिए राहुल के पास आ गई. मैने कमरे की बत्ती बुझा दी.

बिस्तर पर लेटते ही राहुल ने मुझे अपनी बाहों में भर लिया और रूवासे स्वर में बोला

"बुआ आपने मेरे लिए क्या किया है आपको नहीं पता , आपने अपने स्पर्श से मुझ में उत्तेजना भर दी है.आपके स्पर्श में जादू है. उस दिन मेरा लिंग आपके हाथों पहली बार स्खलित हुआ था. मेरे लिए आप साक्षात देवी हैं जिन्होंने मुझमें विपरीत लिंग के प्रति उत्तेजना दी है." मैं उसकी बातों से खुश हो रही थी उधर उसकी हथेलियां मेरे स्तनों पर घूम रही थीं. मेरे स्तनों की कठोरता चरम पर थी और मुझे किशोरावस्था की याद दिला रही थी. उसके स्पर्श से मेरे शरीर मे सिहरन हो रही थी.

धीरे धीरे मेरी साड़ी मेरे शरीर से अलग होती गयी. वह मुझे प्यार करता रहा और मेरे प्रति अपनी कृतज्ञता जाहिर करता रहा. जब भी मैं कुछ बोलने की कोशिश करती वह मेरे होठों को चूमने लगता. वह अपने क्रियाकलाप में कोई विघ्न नहीं चाहता था.

कुछ ही देर में मैं बिस्तर पर पूरी तरह नग्न थी. उसने अपने कपड़े कब उतार लिए यह मैं महसूस भी नहीं कर पायी मैं स्वयं इस अद्भुत उत्तेजना के आधीन थी. उसके आलिंगन में आने पर मुझे उसके लिंग का एहसास अपनी जांघों के बीच हुआ. लिंग पूरी तरह तना हुआ था और संभोग के लिए आतुर था.

हमारा प्रेम अपनी पराकाष्ठा पर था. मेरे स्तनों पर उसकी हथेलियों के स्पर्श ने मेरी रानी को स्खलन के कगार पर लाकर खड़ा कर दिया था. मुझसे भी अब बर्दाश्त नहीं हो रहा था. धीरे-धीरे राहुल मेरी जांघों के बीच आता गया उसके लिंग का स्पर्श अपनी योनि पर पाते ही मैं सिहर गयी…

मैंने कहा…

"क्या तुम सुमन से प्यार करते हो?"

"हां बुआ, बहुत ज्यादा"

"फिर यह क्या है?"मैंने उसे चूमते हुए कहा

"आपने मुझे इस लायक बनाया है कि मैं सुमन से प्यार कर सकूं. मैं अपने से प्यार से न्याय कर पाऊंगा या नही इस प्रश्न का उत्तर इस मिलन के बाद शायद आप ही दे सकतीं हैं"

राहुल भी मदन भैया की तरह बातों का धनी था. मैं उसकी बातों से मंत्रमुग्ध हो गई. जैसे-जैसे मेरे होंठ उसे चूमते गए उसका राजकुमार मेरी योनि में प्रवेश करता गया एक बार फिर मेरे चेहरे पर दर्द के भाव आये पर राहुल मुझे प्यार से सहलाता रहा राहुल का लिंग मेरे गर्भाशय को चूमता हुआ अपने कद और क्षमता का एहसास करा रहा था. मैं तृप्त थी. उसके कमर की गति बढ़ती गयी मुझे मदन भैया के साथ किए पहले सम्भोग की याद आ रही थी. राहल के इस अद्भुत प्यार से मेरी रानी जो आज राजकुमारी (कुवांरी योनि) की तरह वर्ताव कर रही थी शीघ्र ही स्खलित हो गयी.

राहुल कुछ देर के लिए शांत हो गया. मैं उसे चूम रही थी. मैंने कहा...

"मुझे एक वचन दो"

"बुआ मैं आपका ही हूँ आप जो चाहे मुझसे मांग सकती है"

"मैं तुम्हे सुमन के लिए स्वीकार करती हूँ. मुझे विश्वास है तुम सुमन का ख्याल रखोगे. तुम दोनों एक दूसरे को जी भर कर प्यार करो पर मुझे वचन दो कि तुम सुमन के साथ प्रथम सम्भोग विवाह के पश्चात ही करोगे"

"और आपके साथ" उसके चेहरे पर कामुक मुस्कान थी.

"मैं मुस्कुरा दी" मेरी मुस्कुराहट ने उसे साहस दे दिया वह एक बार फिर सम्भोग रत हो गया कुछ ही देर में हम दोनो स्खलित हो रहे थे. राहुल ने अपने वीर्य से मुझे भिगो दिया मैं बेसुध होकर हांफ रही थी.

तभी मधुर आवाज में अनाउंसमेंट हुई..

"फाइनल कॉल टू चंडीगढ़" मैं अपनी कल रात की यादों से बाहर आ गयी. मैने अपना सामान उठाया और बोर्डिंग के लिए चल पड़ी. जाते समय मैंने मदन भैया को मैसेज किया

"आपकी मानसी ने उस दिव्यपुरुष की भविष्यवाणी को सच कर दिया है. यह सम्भोग एक बार फिर एक कामकला के पारिखी के साथ हुआ है. मैं उसे अपने दामाद के रूप में स्वीकार कर चुकी हूँ आशा है आप भी इस रिश्ते से खुश होंगे."

मैं अपनी भावनायें तथा जांघो के बीच रिस रहे प्रेमरस को महसूस करते हुए चंडीगढ के लिए उड़ चली.

चंडीगढ़ उतरकर मैने मदन भैया का मैसेज पढ़ा...

"मानसी तुम अद्भुत हो मैं तुम्हें अपनी समधन के रूप में स्वीकार करता हूं उम्मीद करता हूँ कि हम जीवन भर साथ रहेंगे. अब तो तुम्हारी जिम्मेदारियां भी खत्म हो गयी है अब हमेशा के लिए बैंगलोर आ जाओ तुम्हारी प्रतीक्षा में…."

मैं मन ही मन मुस्कुरा रही थी. मेरी सास स्वर्गसिधार चुकी थीं। अब चंडीगढ़ में मेरी सिर्फ यादें बचीं थी जिन्हें संजोये हुए कुछ दिनों बाद मैं बेंगलुरु आ गई. मेरे आने के बाद सुमन हॉस्टल से मदन भैया के घर में आ गई. राहुल और सुमन हम दोनों की प्रतिमूर्ति थे उनका अद्भुत प्रेम हमारी नजरों के नीचे परवान चढ़ रहा था. उनके प्रेम को देखकर मैं और मदन भैया एक बार फिर एक दूसरे के करीब आ गए थे. राहुल से संभोग के उपरांत मेरी योनि और उत्तेजना नवयौवनाओं की तरह हो चुकी थी. मदन भैया के साथ मेरी राते रंगीन हो गई वह आज भी उतने ही कामुक थे.

हमारे रिश्ते बदल चुके थे. हम सभी अपनी अपनी मर्यादाओं में रहते हुए अपने साथीयों के साथ जीवन के सुख भोगने लगे.

समाप्त
छाया मानसी की यादें ताजा हो गयी
क्या जादू है लवली जी आप में
पूरी फिल्म चलती है आंखो के सामने जब आपकी कहानी पढते हैं
धन्यवाद
 

Lovely Anand

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छाया मानसी की यादें ताजा हो गयी
क्या जादू है लवली जी आप में
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धन्यवाद

धन्यवाद, आपका स्वागत है।
 

Ajinohase dirty

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दोपहर के वक्त लाली और सुगना आंगन में बैठकर बातें कर रही थी सोनू बाहर दालान में चारपाई पर लेटा हुआ ऊंघ रहा था। सुगना अपनी बुर की संवेदनशीलता के बारे में लाली से बातें करना चाह रही उसने लाली से पूछा

"ए लाली पहला रात के तोहरो उ ( बुर की तरफ इशारा करते हुए) लाल भई रहे का.."

"हां तनी मनि ( हां थोड़ा सा)"

"हमार तो ढेर लाल भईल बा"

सुगना ने अनजाने में ही सच कह दिया था। लाली को यह बात बिल्कुल भी ना समझ आई सुगना का पति घर में न था और सुगना की सुहागरात को हुए काफी समय बीत चुका था फिर सुगना ने अकस्मात वह बात क्यों कही। उसने उस बात को नजरअंदाज करते हुए कहा

"त तहरा सुहागरात में ढेर छीला गई रहे का रतन भैया चुमले चटले ना रहन का"

लाली हंस रही थी और सुगना भी उसका साथ दे रही थी उधर सोनू उनकी बात से उत्तेजित हो रहा था वह सुगना के प्रति तो आकर्षित न था पर लाली उसके सपनों में कई बार आती थी।

लाली की कसी हुई कमसिन जवानी सोनू को लुभाती थी परंतु अभी वह यह सुख लेने लायक न था उसकी उम्र अभी सपने देखने की ही थी जिस पर लाली की चुचियों ने अधिकार जमाया हुआ था।

सरयू सिंह आज भी सुगना के आगे पीछे घूम रहे थे यह बात भूल कर कि उसका भाई घर में ही है और आज सुगना के साथ संभोग करने पर पकड़े जाने का खतरा था पर वह अपनी उत्तेजना के अधीन होकर सुगना से मिलन का मौका तलाश रहे थे।

शाम का वक्त था सुगना की बछिया जो अब गाय बन चुकी थी उसे दुहने का वक्त हो रहा था। सामान्यतः यह काम सरयू सिह स्वयं किया करते थे परंतु उन्हें यह बात पता थी कि सोनू भी इस कला में दक्ष है। उनके मन में योजना बन गई उन्होंने कजरी से कहा

" आज सोनू से दूध निकलवा ल हमरा अंगूठा में दर्द बा"

थोड़ी ही देर में सोनू और कजरी दोनों सुगना की बछिया का दूध निकालने मैं लग गए। बछिया नयी थी वह अपनी चुचियों पर आसानी से हाथ नहीं लगाने दे रही थी। सोनू के हाथ तो उसके लिए बिल्कुल नए थे। सोनू ने उसके दोनों पैर बांध दिए और कजरी बछिया के पुट्ठों पर हाथ फिराने लगी।

यह एक संयोग ही था की सुगना अपने कमरे की कोठरी से एक बार फिर वही दृश्य देख रही थी जिसे देखकर उसके मन मे उत्तेजना ने जन्म लिया था।

उसने स्वयं को बछिया की जगह रख कर सोचना शुरू कर दिया। एक पल के लिए उसे लगा कि जैसे उसकी जांघें बांध दी गई हों और उसकी सास कजरी उसके नितंबों को सहला रही हो तथा उसकी चूचियों से दूध निकालने का प्रयास किया जा रहा हो। वह अपनी चुचियों पर सोनू के हाथ की कल्पना न कर पायी वह उसका छोटा भाई था उसके ख्यालों में अभी उसके बाबूजी सरयू सिंह ही छाए हुए थे।

वह अपनी सोच पर शरमा गई। उसके मन में आई इच्छा नियति ने पढ़ ली। सुगना ने अभी-अभी संभोग सुख लेना शुरू किया था उसके मन में तरह-तरह की कल्पनाएं आना वाजिब था आखिर वह बछिया ही थी जिसने सुगना की मन में उसके बाबूजी के प्रति प्यार को वासना में बदल दिया था।

दालान में बैठे सरयू सिंह कभी सुगना को देखते कभी कजरी और सोनू को।

सुगना अपने छोटे भाई के हाथ अपनी बछिया की चुचियों पर महसूस कर गनगना रही थी। वह हमेशा अपनी चुचियों की तुलना बछिया की चुचियों से करती रही थी। जैसे-जैसे सोनू के हाथ बछिया की चुचियों को मीस रहे थे सुगना के निप्पल खड़े हो रहे थे वह अपने मन में चल रहे अंतर्द्वंद में जूझ रही थी एक पल के लिए उसने सोनू के हाथों को अपनी चुचियों पर भी महसूस कर लिया।

क्या बछिया की चुचियों पर एक नवकिशोर के हाथ भी सरयू सिंह की तरह महसूस होते होंगे? क्या उम्र का अंतर चुचियों के स्पर्श पर कोई असर डालता होगा? वह अपने ख्यालों में खोई हुई थी तभी सरयू सिंह ने सुगना को पीछे से आकर पकड़ लिया. इससे पहले कि सुगना चौक पाती सरयू सिंह की हथेलियों ने उसके होठों को ढक लिया सरयू सिंह सुगना के गालों से गाल सटाये हुए उसे चूम रहे थे और लंड सुगना के नितंबो से सट कर सुगना को उसका एहसास दिला था सुगना दोहरी उत्तेजना की शिकार हो रही थी...

सुगना स्वयं को अपने बाबूजी के आगोश में महसूस कर रही थी उसकी निगाहें अपने छोटे भाई सोनू पर थी जो उसकी बछिया की चूचियां दबा दबा कर दूध निकाल रहा था तभी सरयू सिंह की हथेलियों ने सुगना की चुचियों को धर लिया सुगना का ब्लाउज सरयू सिंह की हथेलियों को न रोक पाया वो ब्लाउज के नीचे से प्रवेश कर सुगना की नंगी चूचियां को छूने लगी.

सुगना उत्तेजित हो चली थी. सरयू सिंह का लंड उसके नितंबों के बीच चुभ रहा था। अचानक सुगना ने अपनी साड़ी को ऊपर उठता महसूस किया उसे सरयू सिंह से यह उम्मीद न थी क्या उसके बाबु जी अभी इसी अवस्था में उसे नंगा करेंगे। वह कांप उठी उसकी निगाहें अभी भी अपनी सास कजरी और सोनू पर थी। परंतु सुगना अब उत्तेजना के आधीन थी सरयू सिंह उसकी साड़ी और पेटीकोट को ऊपर करते हुए कमर तक ले आए और सुगना ने इसे रोकने की कोई कोशिश न की। सरयू सिंह का लंड सुगना की गांड से छू रहा था। वह अपने लंड को बुर की तरफ ले जाना चाह रहे थे।

सुगना खड़ी थी इस अवस्था में यह संभव न था वह कामकला के आसनों से परिचित न थी। सरयू सिंह ने सुगना के पेट पर अपना हाथ लगाया और उससे आगे झुकने का इशारा किया। सुगना एक खूबसूरत गुड़िया की तरह खिड़की को पकड़कर अपने शरीर को आगे झुका लिया तथा अपनी कमर को पीछे कर दिया। उसके बाबूजी के लंड को बुर् का स्पर्श मिल चुका था। स्पर्श ही क्या बुर से छलक रही लार ने सरजू सिंह के लंड के सुपारे को गीला कर दिया।

शरीर सिंह से और बर्दाश्त न हुआ उन्होंने अपने लंड को अपनी प्यारी सुगना बहू की बुर में उतार दिया वह गर्म सलाख की भांति सुगना की मक्खन जैसी बुर में प्रवेश करता गया। सुगना की आंखें बड़ी होती चली गई। वह इस उत्तेजक माहौल मैं अपना दर्द भूल कर कर लंड लीलने को कोशिश कर रही थी।

नियति तमाशा देख रही थी सरयू सिंह अपनी बेटी समान बहू सुगना को उसके छोटे भाई की उपस्थिति में धीरे-धीरे चोद रहे थे। उधर सोनू सुगना की बछिया की सूचियां मिस रहा था और इधर सरयू सिंह उसकी बहन सुगना के।

सरयू सिंह ने कहा

"सोनू बढ़िया से दूध दूहता लागा ता जल्दी एकरो बियाह करे के परी"

सुगना शर्मा गई और अपनी बुर को सिकोड़ कर सरयू सिंह के लंड पर दबाव बढ़ा दिया।

सरयू सिंह ने सुगना की चुचियों को तेजी से दबाया और सुगना कराह उठी...

"बाबू जी तनी धीरे से …...दुखाता, इकरा में से दूध ना निकली" उसने मुस्कुराते हुए कहा।

सरयू सिंह भी मुस्कुरा रहे थे उन्होंने सुगना को छेड़ा "जायेदा आज फिर से तहरा …. ( लंड से गर्भाशय पर प्रहार करते हुए) ए में मलाई भर दे तानी कुछ दिन बाद तोहरो चूची से दूध निकली"

सुगना ने अपने हाथ पीछे किये और उनके पेट पर मुक्का मारा

"छी कइसे बोला तानी"

समय कम था। अब सरयू सिंह सुगना को पूरे आवेश और उन्माद से चोदे जा रहे थे उधर दूध की बाल्टी भर रही थी उधर सरयू सिंह के अंडकोष में वीर्य।

बाल्टी भरने के बाद कजरी बछिया के पैर में बंधी रस्सी खोल रही थी और सोनू बाल्टी लिए उठ रहा था। इससे पहले कि वह दोनों दालान तक पहुंचते सरयू सिंह और सुगना अपना काम तमाम कर चुके थे। सरयू सिंह का वीर्य सुगना की बुर में भर चुका था और लंड निकलने के बाद उसकी जांघों से रिसता हुआ नीचे आ रहा था।

सरयू सिंह ने अपनी धोती में लपेटा हुआ लड्डू निकाला और सुगना को पकड़ा दिया वह खुशी-खुशी लड्डू खाने लगी।

कजरी और सोनू दलान में आ चुके थे।

सोनू ने सुगना को लड्डू खाते हुए देख कर बोला

"अकेले अकेले ही लड्डू खा तारे हमरा के ना देबे"

सुगना अबोध थी उसे लड्डू का रहस्य पता न था उसने लड्डू का बचा हुआ छोटा टुकड़ा सोनू को दे दिया जब तक सरयू सिंह सोनू को रोक पाते सोनू की जीभ उस लड्डू के स्वाद को महसूस कर रही थी लड्डू में मिली हुई दवाई का स्वाद सोनू को रास ना आया उसने कहा

"लड्डू तनी तीत लगाता"

सरयू सिंह ने बात बदल दी

"हां ई लड्डू तनी पुरान हो गईल बा"

इन्हीं बातों के दौरान सुगना ने अपनी आंखों से बहता हुआ वीर्य अपने पेटीकोट में पोछ लिया था।

कजरी सुगना के ब्लाउज पर पड़ी सलवटे देख रही थी परंतु वह कुछ बोल पाने की स्थिति में न थी उसे यह कतई उम्मीद न थी कि सरयू सिंह इतनी जल्दी और इस तरह से सोनू की उपस्थिति में सुगना के साथ छेडख़ानी कर लेंगे।

सोनू अपने जहन में अपनी दीदी सुगना का खुशहाल चेहरा और उसकी सहेली लाली की सुनहरी यादें लेकर अपने घर लौट गया।

इधर सरयू सिंह ने सुगना के जीवन में खुशियां भर दी थी। वह कभी कभी उसके गर्भाशय में अपना वीर्य भरते, कभी अपनी वीर्य रूपी मलाई से उसकी मालिश। सुगना को सरयू सिंह का हर रूप पसंद आता वह सिर्फ और सिर्फ चुदने का आनंद लेती। बुर के अंदर लंड का फूलना पिचकना उसे अद्भुत सुख देता था इसलिए वह सरयू सिंह को अपने अंदर स्खलित होने पर अब टोकती न थी। उसने अब सब कुछ नियति के भरोसे छोड़ दिया था। और नियत उसे अभी और सुख देने पर उतारू थी। उसका गर्भाधान अब प्राथमिकता न रही थी। सरयू सिह जब जब वह अपनी बहू की बुर में अपना वीर्य भरते उसकी काट वह लड्डू के रूप में सुगना को खिला देते।

सुगना को उस लड्डू का रहस्य अभी पता न था परंतु वह अपने गर्भ में गिरे हुए वीर्य को भूलकर संभोग सुख का आनंद ले रही थी। जब जब सरयू सिंह सुगना की बुर में अपना वीर्य भरते तब तब सुगना अपने बाबुजी को घूरकर देखती और उसे लड्डू मिलता। वह इस राज को जानना चाहती थी परंतु सरयू सिंह वह बात छुपा ले जाते।

सुगना ने अब अपनी जांघें अपने बाबूजी के लिए पूरी तरह फैला दी थी यह उसकी सास कजरी की भी इच्छा थी और उसकी मां पदमा की भी। सुगना मन ही मन गर्भवती नहीं होना चाहती थी परंतु वह यह बात बार-बार सरयू सिंह से नहीं कहना चाहती थी। सरयू सिंह जब जब उसकी बुर में अपना वीर्य भरते वह एक तरफ थोड़ी दुखी होती परंतु मां बनने की खुशी सोचकर वह प्रसन्न भी होती। बुर में वीर्य भरे जाने के पश्चात उसे लड्डू खाने को मिलता उसके लिए यह एक अतिरिक्त खुशी थी।

अगले दस बारह दिन में कजरी ने सुगना और सरयू सिंह को संभोग करने के खूब अवसर दिए। सुगना की घनघोर चुदाई भी हुई इसके वावजूद सुगना का महीना आ गया।

सुगना बेहद खुश थी परंतु अपनी सास कजरी के सामने दुखी होने का नाटक कर रही थी।

सुगना का महीना आने के पश्चात सरयू सिह बेहद प्रसन्न थे। यह खुशी उनके अंतर्मन में थी परंतु जब जब वह कजरी के पास जाते वह अपनी खुशी पर काबू रखने का प्रयास करते ।

इन दस बारह दिनों में कजरी और सरयू सिंह के बीच संभोग ना हो पाया था परंतु अब सुगना का महीना आने के बाद सरयू सिंह कजरी के साथ रात बिताना चाहते थे।

सुगना समझदार थी उसे सरयू सिंह और कजरी के बीच की नजदीकियां बखूबी पता थी वह जानती थी की अब चुदने की बारी उसकी सास कजरी की थी। वैसे भी सरयू सिंह इन दिनों बेहद उत्तेजित रहा करते थे और हो भी क्यों ना अपनी बहू की कोमल बुर को चोद चोद कर उनका लंड मदहोश हो गया था। उसे एक पल के लिए भी चैन ना आता जब जब सुगना लहराती हुई दिखाई पड़ती तब तब वह लंड अपना सर उठाता। सुगना इन दिनों कजरी के कोठरी में उसकी चारपाई पर ही सो रही थी।

शाम के वक्त सुगना और कजरी आगन में नहीं मिल रही थी तभी सुगना ने कहा

"मां, हम अपना कोठरी में में सुतब"

"ई काहें?"

"राउर कुवर जी आजो मत धर लेस" सुगना ने मुस्कुराते हुए कहा सुगना की बात सुनकर कजरी भी हंस पड़ी और बोली..

"हम बता देब परेशान मत हो"

" ए सुगना, एक बात पूछी?"

" का बात?"

" कुंवर जी भीतरीये गिरावत रहन नू"

"का गिरावत रहन?" सुगना ने अनजान बनते हुए कहा

"अरे आपन मलाई"

"मां साफ-साफ बोल ना का पूछा तारे"

कजरी ने अपनी जाँघे फैला दी और अपनी बुर की तरफ इशारा करते हुए बोली

"तोरा में मलाई भरले रहन की ना?"

"हा भरत रहन पर कभी कभी हमारा देह पर भी गिरावत रहन"

कजरी का चेहरा लाल हो रहा था जिसमें वासना का पुट ज्यादा था और क्रोध का कम उसने कहा

"उ तोरा देह पर ना गिरावत होइहें चूचीं पर गिरावत होइहें"

सुगना ने अपने मन की खुशी को दबाते हुए कहा

" ए मा तोहरा कैसे मालूम"

कजरी निरुत्तर हो गई उसकी चोरी उसकी बहू ने पकड़ ली थी। कजरी झेंप गयी उसने स्थिति को संभालते हुए कहा

"अरे सब मर्द लोग के दु ही चीज पसंद ह" उसने अपनी निगाहों से सुगना की चूची और बुर की तरफ इशारा कर दिया।

सुगना भी आज कजरी को छेड़ने का मन बना चुकी थी उसने कहा

"मां बाबूजी ता कई साल पहले ही चल गई रहन रउआ कैसे मालूम था मर्द लोग के लीला"

कजरी ने उसकी बात का कोई उत्तर न दिया बल्कि अपनी निगाहें गेहूं की थाली में गड़ा ली ।

सुगना ने अपनी मर्यादा को ध्यान में रखते हुए बात को वहीं पर समाप्त कर दिया परंतु जाते जाते वह मुस्कुराते हुए बोली

"आज हम अपना कोठरी में सूतब अपना कुँवर जी से बच के रहिह"

सुगना ने कजरी के मन की बात कह दी कजरी की अंतरात्मा खुश हो गई उसकी जांघों के बीच एक चिलकन सी हुई और कजरी की बुर मुस्कुरा उठी आज कई दिनों बाद सरयू सिंह का साथ उसे मिलने वाला था।

सरयू सिंह आगन में बैठकर खाना खा रहे थे कजरी के मन में आज हलचल थी। सुगना बार-बार कजरी की तरफ देख रही थी उसे पता था आज उसकी सास कजरी जरूर चुदेगी।

खाना खाने के बाद सुगना अपने कमरे में चली गई और कजरी ने अपनी बुर को धो पोछ कर तैयार कर लिया और अपनी चारपाई पर लेट कर सरयू सिंह का इंतजार करने लगी।

आगन में शांति होते ही सरयू सिंह ने अपनी लंगोट उतार ली अचानक उनका ध्यान स्टील के उस छोटे से डिब्बे पर गया जिसमें उन्होंने अपनी प्यारी बहू सुगना के लिए लड्डू बना रखे थे। आज इन लड्डुओं कि उन्हें कोई आवश्यकता न थी। कजरी की नसबंदी पहले ही हो चुकी थी।

सरयू सिंह आकर कजरी की बगल में लेट गए और उसकी चुचियों पर हाथ रख उसे सहलाने लगे कजरी ने कहा

"रउवा अपन बहू सुगना में भुला गईल बानी। हमार याद एको दिन ना आइल हा"

सरयू सिंह ने कजरी की बड़ी-बड़ी चुचियों को जोर से मसल दिया और बोले

"अरे सुगना त अभी लइका बिया। तू ही तो कह ले रहलू कि पूरा मेहनत कर ली ओकरा गोदी में लाइका खातिर"

" एहि से दोनों बेरा (टाइम) मालपुआ खात रहनी हां"

सरयू सिंह मुस्कुरा रहे थे। सुगना के मालपुआ को याद करके वो उत्तेजित हो रहे थे उनका लंड उनकी भाभी कजरी की गांड से छू रहा था जिसे वह पूरी तरह अंदर उतार देना चाहते थे परंतु कजरी ने उस लंड को अपनी गांड में लेने से मना कर दिया था इतने दिनों के साथ के बावजूद वह उस सुख का आनंद न ले पाए थे।

कजरी अब पलट कर पीठ के बल आ चुकी थी सरयू एक हाथ से उसकी चूची मिस रहे थे तथा अपने चेहरे को दूसरी चूची पर रगड़ रहे थे कजरी ने कहा

"राउर सारा मेहनत बेकार चल गईल.."

"मेहनत बेकार नईखे गइल देखेलू सुगना आजकल कितना खुश रहेंले"

"अब रउआ पुआ चूसब त खुश ना रही"

सुगना झरोखे पर खड़ी सरयू सिंह और अपनी सास कजरी की बातें सुन रही थी वह सतर्क हो गई थी उसे यह विश्वास ही नहीं हो रहा था की उसके बाबूजी और सास उसके ही बारे में ऐसी बातें कर रहे थे वह अपना कान लगाकर उनकी बातें सुनने का प्रयास करने लगी।

"ले आवा आज तोहरो चूस दी"

सरयू सिंह ने कजरी की साड़ी को ऊपर खींचना शुरू कर दिया उसकी मखमली और गदराई जांघें नग्न होने लगी। उधर सरयू सिंह उसकी साड़ी को उठा रहे थे और इधर कजरी अपनी चुचियों को ब्लाउज से आजाद कर रही थी।

सरयू सिंह अपना चेहरा कजरी की जांघों के बीच ले जाने लगे तभी कजरी ने रोक लिया और कहा

" रहे दी अभी ई सुख सुगना के ही दी साच में ओकर पुआ फूल जइसन कोमल बा"

"ओह त हु हूँ ओकर पुआ देखले बाड़ू"

"ओकरा खिड़किया से सब दिखाई देला"

"इकरा मतलब वह दिन तू सब देखले रहलु"

कजरी ने कोई जवाब न दिया अपितु सरयू सिंह को अपने ऊपर खींच लिया सरयू सिंह कजरी का इशारा पाते ही उसकी जांघों के बीच आ गए और उनका लंड अपनी सर्वकालिक ओखली में प्रवेश कर गया। सरयू सिंह की रफ्तार और उन्माद बिल्कुल नया था ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे वह कजरी की बुर को पूरे उन्माद से चोद कर कजरी को प्रसन्न करना चाहते हों और उसे अपनी सुकुमार बहू को चोदने का अवसर देने के लिए उसे धन्यवाद देना चाहते हों। इस नए उन्माद को कजरी ने पहचान लिया और मुस्कुराते हुए बोली

"सुगना बहू रउआ में फुर्ती भर देले बिया"

सरयू सिंह ने कजरी की चुचियों को मसल दिया और उसकी प्यासी बुर में झड़ने लगे कजरी भी अपनी जाँघे फैला कर अपने कुँवर जी की वीर्य वर्षा का आंनद लेने लगी। उसकी बुर भी अपना पानी छोड़ रही थी। आज के इस उत्तेजक प्यार में निश्चय ही सुगना का योगदान था कजरी और शरीर सिंह दोनों ही उसके बारे में सोच रहे थे।

उधर सुगना अपने बाबू जी और अपनी सास की बातें सुन चुकी थी। उसकी रजस्वला बुर भी पनिया गई थी परंतु सुगना उसे और छेड़ना नहीं चाहती थी।

अब तीनों ही एक दूसरे का राज जानते थे।

अपनी सांसे सामान्य होने के बाद कजरी में पूछा

"सुगना के कोनो बीमारी नइखे नु अतना मेहनत पर पर त ओकरा गाभिन हो जाये के चाहीं"

सरयू सिंह ने अपनी खुशी छुपाते हुए कहा " ना अइसन लागत त नइखे, जाए द एक महीना और देख ल"

सरयू सिंह ने अगले महीने भी सुगना की चुदाई का मार्ग प्रशस्त कर लिया था।

शेष अगले भाग में।
कहानी अति आन्नद दायी है कृप्या आगे अपडेट दें
हो सके तो लाली सोनू का सेश्न करवा दें एक बार
 

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अगले कुछ दिनों में सुगना और सरयू सिंह की बीच अंतरंगता और बढ़ती गई. कजरी ने कुंवर जी और सुगना को खुली छूट दे रखी थी। सरयू सिंह और सुगना अब दिन में भी एकाकार हो जाते। इधर कजरी रसोई में खाना पकाती उधर दोनों प्रेमी युगल अपनी रास लीला रचाते। सुगना के अस्त-व्यस्त कपड़े और बिखरे हुए बाल देख कजरी सारा माजरा समझ जाती और मुस्कुराते हुए सुगना से पूछती

"भीतरी गिरावले हां की फिर चुचिये पर"

सुगना शर्मा जाति परंतु वह इशारों ही इशारों में कजरी को उत्तर दे जाती। एक बार कजरी के प्रश्न पूछने पर सुगना उत्तर न दे पायी उसके मुंह में लड्डू भरा हुआ था उसने अपनी साड़ी घुटनों तक उठा दी जांघों से बहता हुआ वीर्य घुटनों तक आ चुका था।

कजरी सारा माजरा समझ गई और मुस्कुराने लगी और बोली...

"अब लगाता तोहार पेट फूल जायी। अपना मन भर सुख ले ल"

बेचारी कजरी को क्या पता था जब तक सुगना लड्डू खाती रहती उसका गर्भवती होना असंभव था.

सुगना मुस्कुरा रही और सरयू सिंह द्वारा दिया हुआ लड्डू खा रही थी। कजरी ससुर बहू के इस प्रेम से अभिभूत थी परंतु लड्डू का राज उसे भी समझ ना आ रहा था।

इधर जैसे-जैसे सुगना अपनी अदाओं से सरयू सिंह को रिझा रही थी उधर सरयू सिंह भी उत्तेजना को नए मुकाम पर ले जा रहे थे। वह शहर जाकर वह सुगना के लिए तरह-तरह की डिजाइनर पेंटी और ब्रा ले आए साथ ही साथ कुछ मैक्सी भी खरीद लाये।

सुगना उनके ख्वाबों की शहजादी वह उसे परियों की तरह सजाना चाहते थे और जी भरकर उसे चोदना चाहते थे। कभी-कभी वह घंटों सुगना के साथ नग्न होकर कोठरी में बंद रहते और कजरी को मजबूरन आवाज देकर उन दोनों को अलग करना पड़ता.

सुगना मैक्सी में अपनी आकर्षक काया लिए हुए लहराती हुई इधर-उधर घूमती और सरयू सिंह मौका देख कर उसे अपनी गोद में बैठा लेते। जब-जब सुगना का चुदने का मन होता वह अपनी पैंटी न पहनती और अपने बाबू जी की गोद में बैठते ही वह जादुई लंड सुगना की पनियायी बुर में प्रवेश कर जाता। उनकी गोद मे उछल कूद करने के बाद सुगना को लड्डू मिलता और वह अपनी जांघों पर बहता हुआ वीर्य लेकर खुशी खुशी वापस कजरी के पास चली जाती.

नया महीना आ चुका था सुगना का भी और अंग्रेजी कैलेंडर का भी। कैलेंडर के नए पृष्ठ पर समुद्र की खूबसूरत फ़ोटो थी जिसे सुगना मंत्रमुग्ध होकर देखती रह गयी। सुगना के चेहरे पर खुशी आ गई।

वह एकटक उस फ़ोटो को देखे जा रही थी तभी सरयू सिह कोठरी में आ गए। सरयू सिंह ने सुगना को गोद में उठा लिया और उसके गालों को चूमते हुए बोले।

" का देख तारू?"

"कतना सुंदर बा ई जगह हमनी के कभी देखे के ना मिली."

सुगना ने अनजाने में ही बाहर घूमने की इच्छा जाहिर कर दी। कई वर्षों बाद उसके मन में यह इच्छा जागी थी। सरयू सिंह को अपनी प्रेमिका की यह इच्छा हनीमून जैसी प्रतीत हुई। सरयू सिंह ने हिम्मत जुटाई और सुगना को किसी समुद्र तट पर ले जाने की सोचा परंतु यह इतना आसान न था वह किस मुंह से सुगना को हनीमून पर ले जाते।

जहां चाह वहां राह। सरयू सिंह ने अपनी व्यूह रचना की और रात को अपनी बाहों में सुगना को लेकर उसे यह खुशखबरी दी। सुगना की प्रसन्नता की सीमा न रही। उसने सरयू सिंह को चूम लिया और एक नई उत्तेजना के साथ उनके ऊपर आ गई सच कहते हैं जब प्रसन्नता मन पर हावी हो तो चुदने चुदाने का आनंद और भी बढ़ जाता है।

सुगना ने इसकी जानकारी कजरी को दी। कजरी भी बेहद प्रसन्न हुई अभी तक सरयू सिंह अपने मन में सिर्फ सुगना का ख्याल लिए हुए हनीमून की तैयारी कर रहे थे उधर कजरी ने भी साथ चलने की इच्छा जाहर की उस बात से उनकी कल्पना में व्यवधान आया और उनके चेहरे पर थोड़ी उदासी आ गई।

नियति मुस्कुरा रही थी। जिस कजरी ने सरयू सिंह को पिछले 10 - 15 सालों से हर सुख दिया था वह उस सुख और उसका साथ भूल कर उसकी बहू सुगना के साथ रंगरलिया मना रहे थे। उन्होंने कजरी को भी साथ ले चलने की स्वीकृति दे दी। खैर कजरी की उपस्थिति से ज्यादा फर्क नहीं पड़ना था। सुगना और सरयू सिंह का मिलन तब तक निर्बाध रूप से होता रहता जब तक कि सुगना गर्भवती ना हो जाती यह बात कजरी भी जानती थी और चाहती भी।

सरयू सिंह ने अपनी जमा पूंजी इकट्ठा की और अपनी जिंदगी के सारे अरमान पूरे करने अपनी भौजी कजरी और बहू सुगना को लेकर उड़ीसा के समुद्रतट पुरी जाने की तैयारी करने लगे।

उन्होंने यह बात अपने दोस्त हरिया से कहां

"ढेर दिन हो गोहिल सोचा तानी कजरी के तीरथ (तीर्थ) करा ले आई फेर बुढ़ापा में जाने कब मौका मिली की ना मिली"

सरयू सिंह ने अपने हनीमून को कजरी के सहारे एक नया मोड़ दे दिया था वह गांव में प्रतिष्ठित तो थे ही और अपनी भौजी को तीर्थ पर ले जाने की बात से गांव में उनका सम्मान और बढ़ गया था।

हरिया भी सरयू सिंह से बेहद प्रभावित हो गया उसने पूछा

"और सुगना बेटी ?."

"अकेले उ कहां रही उ भी संग ही जायी।"

हरिया बात समझ चुका था उसने सरयू सिंह के घर की देखरेख करने का जिम्मा उठा लिया। यह पहला अवसर था जब वह अपनी भौजी को लेकर किसी दूसरे शहर में जा रहे थे और आने वाले कई दिन सिर्फ और सिर्फ पर्यटन और सुगना के साथ हनीमून का आनंद लेना चाहते थे।

कजरी भौजी की खुली सहमति और सुगना की इच्छा दोनों ही सुगना से संभोग करने के लिए उन्हें प्रेरित करती उन्होंने मन ही मन कई सारी कल्पनाएं की थी जिन्हें वह साकार करना चाहते थे। अपनी सुगना और ध्यान में रखते हुए उन्होंने स्लीपर क्लास के तीन टिकट कटा लिए और अपनी बहु सुगना और भौजी कजरी को लेकर तीर्थ यात्रा पर निकलने की तैयारी करने लगे।

सुगना को गर्भधारण से बचाने के लिए अब तक वह जिस लड्डू का प्रयोग करते आ रहे थे उसे आगे प्रयोग करना कठिन होता इस बात का अंदाजा उन्हें था। उन्होंने प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र जाकर गर्भनिरोध के अन्य उपायों की जानकारी ली। दूसरा उपाय एक इंजेक्शन था जिससे अनचाहे गर्भ को अगले 2 वर्ष तक रोका जा सकता था सरयू सिंह अपनी वासना के अधीन थे उन्होंने मन ही मन सुगना को वह इंजेक्शन दिलाने की सोची .

परंतु जब जब वह उसके मासूम चेहरे को देखते और उसकी मां बनने की चाह के बारे में सोचते वह अपने फैसले में पाप का अंश महसूस करते। उनकी दुविधा बढ़ रही थी और पुरी जाने के दिन नजदीक आ रहे थे इसी दौरान सुगना के हाँथ में लोहे की एक पुरानी कील चुभ गई। उन दिनों टिटनेस इंजेक्शन का बहुत प्रचलन था।

सरयू सिंह सुगना को लेकर प्राथमिक सामुदायिक केंद्र पहुंच गए। एक पल के लिए सरयू सिंह की वासना फिर हावी हो गई और सुगना को उन्होंने 2 इंजेक्शन लगवा दिए। कम्पाउंडर राजवीर उनका राजदार बन गया उसने सुगना को 2 इंजेक्शन लगाए। पहला टिटनेस का और दूसरा आने वाले 2 वर्ष तक उसकी खुशियों का।

सुगना को एक इंजेक्शन के बारे में तो पता था परंतु दूसरे इंजेक्शन से वह पूरी तरह अनजान थी उसमें अपने बाबू जी पर पूरा विश्वास किया था परंतु सरयू सिंह ने अपनी बहू से छल किया था।

इंजेक्शन सुगना के शरीर में प्रवेश कर चुका था अब उसका कोई काट ना था अगले 2 वर्ष तक सुगना को सिर्फ और सिर्फ चुदना था और प्रकृति द्वारा प्रदत गदराई हुई जवानी का भरपूर आनंद लेना था। सरयू सिंह का वीर्य उसकी बुर के लिए किसी काम का ना रह गया था उससे सिर्फ और सिर्फ सुगना की चूचियों की मालिश हो सकती थी।

कुछ ही दिनों बाद सरयू सिंह अपनी बहू सुगना और भौजी कजरी को लेकर ट्रेन में सवार हो चुके थे सबके मन में अपने अपने अरमान थे कजरी को इस बात का इल्म न था की सरयू सिंह इस अवसर को हनीमून के रूप में देख रहे हैं परंतु कजरी खुद मन ही मन यह सोच रही थी कि क्या वह तीनों लोग एक ही कमरे में रहेंगे? यदि ऐसा हुआ तो क्या उसके कुंवर जी बिना संभोग किए रह पाएंगे?

सरयू सिंह जब जब अपनी पुरी यात्रा को याद करते थे उनका ल** तनाव में आ जाता था और जब तक कि उसे सुगना कि बुर् का कोमल स्पर्श ना मिलता वह शांत ना होता.


(आइए कहानी को वर्तमान में ले आते हैं)

हॉस्पिटल के बिस्तर पर लेटे हुए सरयू सिंह अपनी सुनहरी यादों से वापस आ गए थे उनका लंड सुगना के साथ बिताए गए कामुक पलों को याद कर खड़ा हो गया था जिसे वह अपने हाथों से शांत करने का प्रयास कर रहे थे। जितना ही वह उसे शांत करते वह उद्दंड बालक की तरह उतना ही उत्तेजित होता। वह धोती से बाहर आ चुका था कजरी पड़ी बेंच पर सोने का प्रयास कर रही थी। सरयू सिंह के बिस्तर पर हो रही हलचल को देखकर व उनके पास आ गई और बोली

"नींद नईखे आवत का ?"

सरयू सिंह ने अपने लंड को धोती के अंदर ढका पर उसके आकार को कजरी से न छुपा पाए। कजरी ने उसका तनाव देख लिया और बोला

"अब ई महाराज काहै खड़ा बाड़े? रउआ ई कुल मत सोचल करिन।"

सरयू सिंह ने मुस्कुराते हुए कहा

"आज हमरा दीपावली वाला दिन याद आवत रहल हा।"

कजरी मुस्कुराने लगी उसे भी दीपावली की वह रात कभी न भूलती थी। उसने सरयू सिंह के लंड को अपने हाथों में ले लिया और बोली

"अब तू शांत हो जा. सुगना के लाइका दे देला अब ओकरा के तंग मत कर"

सरयू सिंह ने कहा " अब सुगना के मन ना करेला का"

कजरी ने कहा

"ना आइसन बात नइखे। लेकिन राउर दाग से चिंतित रहेले। ओकरा लागेला कि जब जब रउआ संगे सुते ले राउर दाग और बढ़ जाला"

सरयू सिंह को भी यह प्रतीत होता था कि नीचे इस दाग में कोई न कोई रहस्य अवश्य है परंतु वह इसका स्पस्ट उत्तर नही जानते थे।

कजरी उनके लंड को हाथों से सहला रही थी। उनकी प्यारी बहू सुगना अपनी सहेली लाली के घर जा चुकी थी। तभी कमरे का दरवाजा खुला और एक खूबसूरत नर्स कमरे में प्रवेश की। उस नर्स की उम्र सुगना जैसी ही थी और प्रकृति ने उसकी चुचियों, जांघों और नितंबों को भी वैसी ही खूबसूरती प्रदान की थी जैसी उनकी बहू सुगना को। सरयू सिंह के मन में वासना जाग उठी उन्हें पता था वह नर्स के साथ कुछ भी कर पाना असंभव था पर मन का क्या वह तो निराला था सरयू सिंह धोती से अपने तने हुए लंड को छुपा रहे थे।

अचानक उन्हें नर्स के हाथ में इंजेक्शन दिखाई पड़ा सरयू सिंह के होश फाख्ता हो गए। सारी उत्तेजना ढीली पड़ती गई। परंतु उनका लंड अभी भी इस अनजानी और खूबसूरत बुर की कल्पना में डूबा हुआ था। वह अपना सर झुकाने को तैयार न था।

नर्स ने कहा

"पीछे पलट जाइए कमर में इंजेक्शन देना है"

सरयू सिंह के करीब खड़ी कजरी ने उनकी धोती सरकाई और नर्स ने अपने कोमल हाथों से उनके नितंबों को थोड़ा रगड़ा और अगले ही पल इंजेक्शन घुसा दिया। सरयू सिंह दर्द से कराह उठे ज्यों ज्यों इंजेक्शन में भरी दवा अंदर जा रही थी एक तेज दर्द की लहर सरयू सिंह को महसूस हो रही थी अब उनका लंड भी अपना गुरुर भूलकर धीरे-धीरे शिथिल हो रहा था।

नर्स के जाने के पश्चात सरयू सिंह इस दर्द से निजात पाने की कोशिश कर रहे थे कजरी उनके नितंबों को से लाई जा रही थी उनका लंड अब उम्मीद खो चुका था और सिकुड़ कर छुप गया था।

कजरी ने उस लंड को वापस छूने की कोशिश की पर सरयू सिंह ने रोक लिया और बोला

"जायेद अब रहे द"

सरयू सिंह की उत्तेजना शांत हो चुकी थी और वह सोने का प्रयास करने लगे।

उधर हरिया सुगना और सूरज को लेकर लाली के घर आ गया। लाली सुगना को देखकर खुश हो गई उसने अपने पिता और सहेली का खूब स्वागत किया सरयू सिंह की स्थिति जानकर वह थोड़ा दुखी हुई पर उसे इस बात का संतोष था कि अब वह पूरी तरह होश में थे।

राजेश के घर में दो कमरे थे दोनों ही कमरे पर्याप्त बड़े थे वैसे भी रेलवे के घरों में जगह की कमी नहीं होती है राजेश और लाली ने दो चौकियों को जोड़कर एक बड़ा सा बिस्तर बना लिया था जिस पर राजेश और लाली तथा उनके दोनों बच्चे राजू और रीना सोया करते थे।

यह बिस्तर राजू और रीना की बाल सुलभ क्रीडा ओं का मैदान भी था और बच्चों के सो जाने के पश्चात वह काम क्रीड़ा के लिए भी प्रयोग में आता था।

दूसरे कमरे में उन्होंने बैठका बना रखा था जिसमें एक पतली चौकी पड़ी हुई थी जो किसी आगंतुक के सोने के काम आती घर में एक रसोई और एक गुसलखाना भी था।

लाली और सुगना रसोई खाना बना रहे थे और हरिया अपने नाती और नातिन के साथ खेल रहा था। सुगना का पुत्र सूरज एक किनारे आराम से सो रहा था। राजू और रीमा कभी उसकी पीठ पर चढ़ते कभी उसके मूंछ के बाल खींचते हरिया उनकी बाल सुलभ लीलाओं से प्रसन्न होकर ऊपर वाले को धन्यवाद दे रहा था जिसने उसकी लाली को ऐसे सुंदर और प्यारी औलाद दे दी थी। वह राजेश का भी शुक्रगुजार था जिसने लाली को हर सुख दिया था।

राजेश को आज घर नहीं आना था वह आज ही ट्रेन लेकर लखनऊ गया हुआ था। हरिया रात में खाना खाने के पश्चात बैठका में लगे हुए चौकी पर सो गया सुगना और लाली दोनों अंदर के कमरे में आ गई बच्चों को सुलाने के बाद बिस्तर पर लेटे लेटे वह दोनों बातें करने लगी।

सुगना उठकर बाथरूम की तरफ गई तभी लाली को राजेश की बातें याद आने लगी आज राजेश के ख्वाबों की मलिका उसके घर में थी घर में ही क्या उसके अपने बिस्तर पर थी काश राजेश यहां होता और अपनी सुगना को अपने बिस्तर पर देखकर उसकी कल्पनाएं आसमान छूने लगती। सुगना स्वयं लाली के बिस्तर पर आकर उत्तेजित महसूस कर रहे थे उसे पता था इस बिस्तर पर उसकी सहेली लाली जाने कितनी बार चुदी होगी।

सुगना के आने के बाद लाली ने कहा

"तोर जीजा जी आज घर में रहिते तो खुश हो जइते"

" ई काहें"

"उनके से पूछ लीह"

"खिसिया मत" ( नाराज मत हो)

लाली खुश थी उसने सुगना को राजेश की कल्पनाओं के बारे में खुलकर बता दिया जितना वह राजेश की कामुक कल्पनाओं के बारे में सुगना को बताती सुगना के कान और चौड़े हो जाते तथा बुर सावधान हो जाती.

सुगना और लाली दोनों अच्छी सहेलियां थी लाली के मुंह से ऐसी कामुक बातें सुनकर सुगना की बुर पनिया चुकी थी लाली भी उत्तेजित थी। दोनों सहेलियां अपने अपने मन में कई तरह के ख्याल लेकर सो गयीं।

अगली सुबह हरिया और सुगना वापस हॉस्पिटल चले गए। लाली और सुगना ने मिलकर कजरी और सरयू सिंह के लिए खाना बना लिया था। हॉस्पिटल पहुंचने पर सुगना को देख सरयू सिंह प्रसन्न हो गए एक ही रात में सुगना से हुई दूरी ने उन्हें कर भावुक कर दिया था वह सुगना के लिए दिन पर दिन अधीर होते जा रहे थे।

दोपहर में राजेश लखनऊ से वापस आ गया लाली ने उसे सरयू सिंह और सुगना के आने की सूचना दी राजेश एक तरफ तो सरयू सिंह के लिए थोड़ा सा दुखी हुआ पर सुगना के आगमन के बारे में सुनकर उसका दिल बल्लियों उछलने लगा उसके ख्वाबों की मलिका आज उसके इतने करीब है इस एहसास ने उसके दिल और दिमाग को अंदर तक गुदगुदा दिया वह लाली को दिखाकर बिस्तर के उस भाग को चूमने लगा जहां सुगना सोई हुई थी लाली हंस रही थी।

उसने कहा..

चली हॉस्पिटल चल के सब केहू से मिली आईल जाओ

राजेश प्रसन्न हो गया और कुछ देर बाद लाली और अपने दोनों छोटे बच्चों को लेकर हॉस्पिटल जाने के लिए रिक्शे में बैठ गया…


शेष अगले भाग में
 
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