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Incest आह..तनी धीरे से.....दुखाता.

Lovely Anand

Love is life
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आह ....तनी धीरे से ...दुखाता
(Exclysively for Xforum)
यह उपन्यास एक ग्रामीण युवती सुगना के जीवन के बारे में है जोअपने परिवार में पनप रहे कामुक संबंधों को रोकना तो दूर उसमें शामिल होती गई। नियति के रचे इस खेल में सुगना अपने परिवार में ही कामुक और अनुचित संबंधों को बढ़ावा देती रही, उसकी क्या मजबूरी थी? क्या उसके कदम अनुचित थे? क्या वह गलत थी? यह प्रश्न पाठक उपन्यास को पढ़कर ही बता सकते हैं। उपन्यास की शुरुआत में तत्कालीन पाठकों की रुचि को ध्यान में रखते हुए सेक्स को प्रधानता दी गई है जो समय के साथ न्यायोचित तरीके से कथानक की मांग के अनुसार दर्शाया गया है।

इस उपन्यास में इंसेस्ट एक संयोग है।
अनुक्रमणिका
भाग 126 (मध्यांतर)
भाग 127 भाग 128 भाग 129 भाग 130 भाग 131 भाग 132
भाग 133 भाग 134 भाग 135 भाग 136 भाग 137 भाग 138
भाग 139 भाग 140 भाग141 भाग 142 भाग 143 भाग 144 भाग 145 भाग 146 भाग 147 भाग 148
 
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Mastmalang

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भाग 94
रास्ते भर सुगना और सोनू मनोरमा की तारीफों के पुल बांधते रहे परंतु मनोरमा के बिस्तर पर वीर्य के निशान देख सुगना का मन कुछ खट्टा हो गया था…


मनोरमा की बंजर हो चुकी कोख को किसने सींचा सींचा होगा सुगना के लिए प्रश्न बन चुका था…

मनोरमा के बारे में यदि कोई शख्स बता सकता था तो वह थे उसके बाबूजी शरीर से इसके अलावा सुगना की जिज्ञासा शांत करने वाला और कोई ना था…वह एंबेसडर कार के गेस्ट हाउस पहुंचने की राह देखने लगी..

उधर सोनू अपनी बड़ी बहन सुगना की चुचियों को अपने दिमाग में अनावृत कर रहा था…


सुगना और सरयू सिंह दोनों एक दूसरे का इंतजार कर रहे थे पर अपने अपने प्रश्नों और जिज्ञासाओं के साथ…

अब आगे….

अंततः सुगना सोनू और दोनों छोटे बच्चे गेस्ट हाउस आ गए …लाबी में टहलते हुए सरयू सिंह सूरज को दिखाई पड़ गए और वह अपने छोटे-छोटे कदमों से भागता हुआ सरयू सिंह के पास जाकर बोला


"बाबा मैं आ गया"

अब तक सुगना भी सरयू सिंह के करीब आ चुकी थी उसने कहा बा

"बाबूजी लगता राउर तबीयत ठीक हो गईल "

"हां अब ठीक लगाता का कहत रहली मनोरमा मैडम"

"कुछो ना…लेकिन आपके खोजत रहली"


अब तक सोनू भी आ चुका था

" सरयू चाचा कितना सुंदर घर बा मनोरमा मैडम के घर एकदम महल जैसे"

जिस महल की सोनू दिल खोलकर तारीफ कर रहा था उस महल की मालकिन को सरयू सिंह बीती रात एक नहीं दो दो बार कसकर चोद कर आए थे.


सरयू सिंह का स्वाभिमान बीती रात से बुलंदियों पर था.. परंतु मन के अंदर आ चुका डर कायम था..

सुगना से और प्रश्न पूछना उचित न था सोनू बगल में ही खड़ा था। सभी लोग कमरे में आ गए सरयू सिंह भी खाना खा चुके थे। शाम को वापस बनारस जाने की ट्रेन पकड़नी थी। समय कम था सरयू सिंह और सुगना दोनों एकांत खोज रहे थे… उन दोनों को अपनी अपनी जिज्ञासा शांत करनी थी…उधर सोनू सुगना के साथ ढेरो बाते करना चाहता था..

सुगना अपने पूर्व और वर्तमान प्रेमी के बीच झूल रही थी…अंत में विजय एसडीएम साहब की हुई और वह सुगना को बाजार ले जाने में कामयाब हो गए.. आखिर उन्हें सुगना उसके बच्चों और बनारस में बैठी अपनी दोनों बहनों के लिए कुछ ना कुछ उपहार खरीदने थे। आज का दिन बेहद महत्वपूर्ण था और सोनू की खुशियों पर पूरे परिवार का हक था.

व्यस्तता और वासना दोनों एक दूसरे की दुश्मन है…सोनू ने आज का पूरा दिन लगभग सुगना के साथ ही बिताया था परंतु उसकी वासना व्यस्तता की भेंट चढ़ गई थी… बाजार से लौटते लौटते शाम के 6:00 बज चुके थे और 2 घंटे बाद ही मैं वापस स्टेशन के लिए निकलना था।

सोनू की हालत आजकल के आशिक हो जैसी हो गई थी जो अपनी गर्लफ्रेंड को दिन भर घुमाते शापिंग कराते दिन भर उसके खूबसूरत जिस्म और सानिध्य का लाभ उठाकर अपने लंड में तनाव भरते हैं लंड के सुपाड़े से लार टपकाते परंतु शाम ढलते ढलते विदा होने का वक्त हो जाता ….

सोनू मायूस हो रहा था दिन भर की खुशियां शाम आते आते धूमिल पड़ रही थी सुगना जाने वाली थी और सोनू का मन उदास था परंतु पूर्व निर्धारित कार्यक्रम में कोई बदलाव कर पाना संभावना न था।

सोनू को भी अपना सामान समेटकर बनारस आना था परंतु कुछ कागजी कार्रवाई पूर्ण न होने की वजह से वह चाहकर भी सुगना के साथ बनारस नहीं जा पा रहा था।

सूरज एक बार फिर उत्साहित था। ट्रेन में बैठ ना उसे बेहद अच्छा लगता था उसने सोनू से कहा

"मामा जल्दी चलो गाड़ी छूट जाएगी…"

सोनू को पल के लिए लगा जैसे सब सुगना को उससे दूर कर रहे हैं...

सोनू ने बाजार से सुगना के लिए एक बेहद खूबसूरत लहंगा चोली खरीदा था.. जो रेशम के महीन कपड़े से बना था और जिस पर हाथ की कढ़ाई की गई थी…

नकली सितारों की चमक दमक से दूर वह लहंगा चोली बेहद खूबसूरत था जिसे सामान्य तौर पर भी बिना किसी विशेष प्रयोजन के भी पहना जा सकता था..


न जाने सोनू के मन में क्या आया उसने सुगना से कहा..

"दीदी जाए से पहले कपड़वा नाप ले छोट बढ़ हुई तब बदल देब.."

समय कम था परंतु सोनू की बातें तर्कसंगत थी …

कमरे में सोनू दोनों बच्चों के साथ खेलने लगा और सुगना बाथरूम में जाकर अपने कपड़े बदलने लगी…

हल्के गुलाबी रंग के लहंगा चोली में सुगना बेहद खूबसूरत लग रही थी सुंदर और सुडौल काया पर वस्त्र और भी खिल उठते हैं।


चोली तो जैसे सुगना की काया के लिए ही बनी थी.. चूचियों के लिए दी गई जगह शायद कुछ कम पड़ रही थी परंतु सुगना की कोमल चुचियों ने स्वयं को उन में समायोजित कर लिया था परंतु कपड़ों का तनाव चूचियों के आकार का अंदाजा बखूबी दे रहा था.. चोली की लंबाई सुगना की कमर तक आ रही थी…सोनू चाहता तो यही था कि चोली की लंबाई ब्लाउज के बराबर ही रहे….परंतु सुगना जो अब दो बच्चों की मां थी वह अपने सपाट पेट और नाभि का खुला प्रदर्शन कतई नहीं करना चाहती थी।

उसने यही चोली पसंद की थी जो उसकी कमर तक आ रही थी। परंतु सुगना को क्या पता था जिस मदमस्त कमर को वह चोली के भीतर छुपाना चाहती वह छिपने लायक न थी । चोली में सुगना की खूबसूरती को और उभार दिया था..

सोनू सुगना को देखकर फूला नहीं समा रहा था। उसकी अप्सरा उसकी आंखों के सामने उसके द्वारा दिए गए वस्त्र पहने अपने बाल संवारे रही थी.. काश सुगना उसकी बहन ना होती तो शायद इतनी आवभगत करने का इनाम सोनू अवश्य ले लिया होता।

सरयू सिंह वापस आ चुके थे और सुगना को लहंगा चोली में देखकर दंग रह गए..

सुगना अपनी युवा अवस्था में हमेशा लहंगा और चोली ही पहनती भी और सरयू सिंह के हमेशा से उसके इस पहनावे के कायल थे…सपाट पेट और उस पर छोटी सी नाभि.. सरयू सिंह को बेहद भाती।

जब पहली बार जब सरयू सिंह और सुगना ने मिलकर दीपावली मनाई थी उस दिन भी सुगना ने लहंगा और चोली ही पहना था।

सुगना के उस दिव्य स्वरूप को याद कर सरयू सिंह को कुछ हुआ हो या ना हुआ हो परंतु लंगोट में कैद सुगना का चहेता लंड हरकत में आ रहा था।


वह तो भला हो सरयू सिंह के कसे हुए लंगोट का अन्यथा वह अब तक उछल कर अपने आकार में आ रहा होता। सरयू सिंह ने सुगना से कहा

" चला देर होता वैसे भी स्टेशन में आज ढेर भीड़ भाड़ होखी"..

"बाबूजी रुक जा जाई कपड़ा बदल के चलत बानी"

"अरे कपड़ा ठीक त बा… यही पहन के चला फिर बदले में देर होखी "

सरयू सिंह देरी कतई नहीं करना चाहते थे…उन्होंने हनुमान जी की तरह दोनों बच्चों को गोद में लिया और गेस्ट हाउस से बाहर आने लगे।


कुछ ही देर बाद एक बार फिर सोनू अपनी बहन सुगना के साथ रिक्शे में बैठकर स्टेशन की तरफ जाने लगा..

लहंगा चोली में सुगना और पजामे कुर्ते में सोनू.. जो भी देखता एक पल के लिए अपने नजरें उन पर टिका लेता नियति के रचे दो खूबसूरत पात्र धीरे-धीरे बिछड़ने के लिए रेलवे स्टेशन की तरफ जा रहे थे ..

सोनू के उदास चेहरे को देखकर सुगना दुखी हो रही थी अंततः उससे रहा न गया उसने सोनू के हाथ को अपनी कोमल हथेलियों के बीच में ले लिया और सहलाते हुए बोली

"ते दुखी काहे बाडे… हम कोई हमेशा तोहरा साथ थोड़ी रहब। दू दिन खाती आईल रहनी अब जा तानी……वैसे दू दिन बाद तहरा भी त बनारस आवे के बा"

सुगना की बातें सुनकर सोनू और भी दुखी हो गया परंतु सुगना की कोमल हथेलीयों के बीच में उसकी हथेली के स्पर्श में न जाने किस भाव का अनुभव किया और सोनू के शरीर में एक सनसनी फैल गई…

युवा मर्दों का सबसे संवेदनशील अंग उनका लंड ही होता है और सुगना के स्पर्श ने सबसे ज्यादा यदि किसी अंग पर असर किया तो वह था सोनू का लंड …अचानक ही सोनू की भावनाएं बदल गईं…. साथ रिक्शे पर बैठी उसकी बहन सुगना एक बार फिर अपने मदमस्त और अतृप्त यौवन लिए उसकी निगाहों के सामने अठखेलियां करने लगी… सोनू ने सुगना के कामुक अंगो को और करीब से निहारना चाहा परंतु सिवाय चुचियों के उसे कुछ न दिखाई पड़ा। परंतु सोनू का लाया लहंगा कमाल का था…. रेशम के महीन धागे से बना वह लहंगा पारदर्शी तो न था परंतु बेहद पतला और मुलायम था…उसने सुगना की कोमल जांघों से सट कर उन पर एक आवरण देने की कोशिश जरूर की थी परंतु सुगना की पुष्ट जांघों के आकार को छुपा पाने में कतई नाकाम था।

सुगना बार बार अपने दोनों पैर फैला कर लहंगे को दोनों जांघों के बीच सटने से रोकती और अपनी जांघों के आकार को सोनू की नजरों से बचाने की कोशिश करती..

भीनी भीनी हवा चल रही थी और मौसम बेहद सुहावना था कभी-कभी सुगना को एहसास होता जैसे उसने कुछ पहना ही ना हो…रेशम का कपड़ा सुगना की रेशमी त्वचा के साथ तालमेल बिठा चुका था और सुगना को एक अद्भुत एहसास दे रहा था ..


सोनू को सुगना का और कोई अंग दिखाई दे या ना दे परंतु सुगना के कोमल और हल्की लालिमा लिए हुए गाल स्पष्ट दिखाई दे रहे थे और होठों का तो कहना ही क्या ऐसा लग रहा था जैसे होठों में चाशनी भरी हुई थी…

काश काश लाली दीदी के होठ भी सुगना दीदी जैसे होते..

सोनू को अपने बचपन के दिन याद आने लगे जब वह सुगना के गालों को बेझिझक चुम लिया करता था परंतु आज शायद यह संभव न था रिश्ता वही था सुगना भी वही थी परंतु सोनू बदल चुका था ऐसा क्या हो गया था जो अब वह सुगना को चूमने मैं असहज महसूस कर रहा था…

जवानी रिश्तो की परिभाषा बदल देती है…युवा स्त्री और पुरुष कभी भी एक दूसरे को चूम नहीं सकते चाहे वह किसी भी पावन रिश्ते से बंधे क्यों ना हो…

हां माथे का चुंबन अपनी जगह है….

रेलवे स्टेशन आने वाला था परंतु उससे पहले रेलवे क्रासिंग आ चुकी थी। सारे वाहनों पर विराम लगा हुआ था… रिक्शेवाले अपने मैले कुचैले तौलिए से अपना चेहरा पोंछ रहे थे…सरयू सिंह ने पीछे मुड़कर सुगना और सोनू को देखा वह मन ही मन अपने फैसले पर प्रसन्न हो रहे थे कि उन्होंने स्टेशन जल्दी आने का फैसला लेकर सही कार्य किया था.. अचानक सोनू का ध्यान बगल की दीवार पर लगे किसी एडल्ट फिल्म के पोस्टर पर चला गया…

फिल्म का नाम था "लहंगा में धूम धाम"

पोस्टर में दिख रही हीरोइन ने भी संयोग से लहंगा और चोली ही पहना हुआ था परंतु उसकी चोली तंग थी और चूचियां उभर कर बाहर आ रही थीं … शायद निर्देशक ने उन वस्त्रों का चयन ही इसलिए किया था ताकि वह चुचियों को और उभार सके..


इसी प्रकार लहंगा लहंगा ना होकर एक स्कर्ट के रूप में था और हीरोइन के नंगे पैर पिंडलियों चमक रहे थे सोनू लालसा भरी निगाहों से उस पोस्टर को देखे जा रहा था

सोनू को वासना भरी निगाहों से पोस्टर की तरफ देखते हुए देख कर सुगना स्वयं शर्मसार हो रही थी उसने सोनू का ध्यान खींचने के लिए बोला..

"अब अपन ब्याह के मन बना ले ई सब ताक झांक ठीक नईखे"

"अब सब तहारे हांथ में बा.."

"तोरा इतना फोटो में कोई पसंद काहे नईखे परत?"

सोनू क्या जवाब देता वह सुगना के प्यार में पागल हो चुका था…प्यार तो वह सुनना से पहले भी करता था परंतु अब वह जिस रूप में सुगना को चाहने लगा था …उसे और कोई लड़की पसंद नहीं आ सकती थी.. इतना प्यार करने वाली सुगना जैसी खुबसूरत युवती मिलना असंभव ही नही नामुमकिन था…

सोनू ने खुद को संभाला और मुस्कुराने लगा.. परंतु उस में कुछ न कहा सुगना ने फिर पूछा

" बोलत काहे नहींखे .."

"तू दुनिया में अकेले ही आईल बाड़ू का? तोहरा जैसन केहू काहे नईखे मिलत.."

सुगना निरुत्तर हो गई और शर्मसार भी ऐसा नहीं है कि सोनू ने यह बात पहली बार कही थी परंतु फिर भी अपनी होने वाली पत्नी की तुलना अपनी बड़ी बहन से करना …..शायद सोनू ने बातचीत की मर्यादा का दायरा बढ़ा दिया था दिया था।

सुगना यह बातें पहले भी सुन चुकी थी उसे उसे अब यह सामान्य लगने लगा था.. ठीक उसी प्रकार से जैसे सूरज का उसके होठों को कभी-कभी चूम लेना… ना जाने क्यों सोनू के इस कथन में उसे अपनी तारीफ नजर आती और वह मन ही मन मुस्कुरा उठती उसे यह कतई पता न था कि उसकी मुस्कुराहट सोनू को और उकसा रही थी।

मुस्कुराती हुई सुगना और भी ज्यादा खूबसूरत लगती थी।

मुस्कुराहट वैसे भी सौंदर्य को निखार देती है और लज्जा वश आई मुस्कुराहट का कहना ही क्या..

सोनू उस हीरोइन को छोड़ सुगना के शर्म से लाल हुए गाल देखने लगा …

रेलवे केबिन में बैठी नियति सोनू और सुगना दोनों को एक साथ देख कर अपने मन में आने वाले घटनाक्रम बुन रही थी। नियति ने ऐसी खूबसूरत जोड़ी को मिलाने का फैसला कर लिया परंतु क्या यह इतना आसान था?


सुगना जैसी मर्यादित बहन को अपने ही छोटे भाई से संभोग के उसके नीचे ला पाना नियति के लिए भी दुष्कर था परंतु सोनू अधीर था और वह सुगना के प्रति पूरी तरह समर्पित था…

रेलवे क्रॉसिंग पर अचानक कंपन प्रारंभ हो गए और कुछ ही देर में ट्रेन की तीव्र आवाज सुनाई थी धड़ धड़आती हुई मालगाड़ी रेलवे क्रॉसिंग से पास होने लगी..

अचानक शांत पड़े वाहनों में हलचल शुरू हो गई मोटर कार के स्टार्ट होने की आवाज गूंजने लगी वातावरण में काले धुएं का अंश बढ़ने लगा सुगना और सोनू दोनों चैतन्य होकर क्रासिंग के खुलने का इंतजार करने लगे और धीरे धीरे सोनू और सुगना का रिक्शा गंतव्य की तरफ पर चला परंतु जैसे-जैसे स्टेशन करीब आ रहा था सोनू मायूस हो रहा था उसकी बड़ी बहन सुगना एक बार फिर उससे दूर हो रही थी।


थोड़ी देर में रिक्शा स्टेशन पर आ चुका था और एक बार फिर सोनू अपनी बहन सुगना के साथ लखनऊ सिटी के प्लेटफार्म पर भीड़ का हिस्सा बन चुका था..

लखनऊ सिटी लखनऊ के मुख्य स्टेशन के बाहर का एक छोटा स्टेशन था जो गेस्ट हाउस के करीब ही था सरयू सिंह ने अपने अनुभव का प्रयोग करते हुए यह फैसला लिया था कि वह ट्रेन लखनऊ मेन स्टेशन की बजाय लखनऊ सिटी से पकड़ेंगे शायद उनके मन में यह बात थी कि आउटर स्टेशन होने के कारण वहां पर ज्यादा भीड़ भाड़ नहीं होगी और सीट आसानी से मिल जाएगी।

सोनू और सुगना सरयू सिंह पर पूरा विश्वास करते थे और उनके अनुभव पर कभी भी प्रश्नचिन्ह नहीं लगाते थे।

परंतु आज सरयू सिंह का अनुमान गलत प्रतीत हो रहा था इस आउटर स्टेशन पर भी भीड़भाड़ कम न थी शायद जो अनुभव सरयू सिंह को प्राप्त था वैसा अनुभव और भी लोग अब हासिल कर चुके थे । परंतु अब कोई चारा न था थोड़ी ही देर में ट्रेन आने वाली थी।


सरयू सिंह सूरज की खातिरदारी करने में कोई कमी ना रख रहे थे वह कभी उसके लिए खिलौने खरीदते कभी रंग-बिरंगे रैपर में पैक छोटे-छोटे बिस्किट..

स्टेशन पर आज कुछ ज्यादा ही भीड़ भाड़ थी जैसे ही ट्रेन आई ट्रेन के अंदर सवार होने की जंग जारी हो गई इस बार सुगना के दो-दो कदरदान उपस्थित थे सरयू सिंह आगे बढ़े और सुगना उनके पीछे…ट्रेन में इतनी भीड़ भाड़ थी कि एक बार ऊपर चढ़ जाने के बाद नीचे उतरना संभव न था।

सरयू सिंह ने कहां

" सुगना तू मधु के गोद में लेला… सोनू ट्रेन में ना चढ़ी …. अंदर गइला के बाद उतरे में बहुत दिक्कत होखी सुगना को मधु को अपनी गोद में लेना पड़ा था।

ट्रेन के आते ही धक्कम धक्का शुरू हो गई। ट्रेन के दरवाजे पर ढेर सारे लोग खड़े हो गए महिला पुरुष बच्चे सब जल्दी से जल्दी ट्रेन में चढ़ जाना चाहते थे। शुरुआत में तो लोगों ने ट्रेन के अंदर बैठे यात्रियों को उतरने दिया परंतु जैसे ही उतरने वालों का रेला धीमा पड़ा अंदर जाने के लिए जैसे होड़ लग गई।

पिछली बार की ही भांति सरयू सिंह सबसे पहले ट्रेन में चढ़े और ऊपर पहुंच कर उन्होंने सुगना को ऊपर आने के लिए अपना हाथ दिया.. मधु के गोद में होने के कारण सुगना अकेले चढ़ने में नाकाम थी.


जिस प्रकार पिछली बार एक अनजान युवक ने उसकी कमर पर हाथ रखकर उसे चढ़ने में सहायता की थी आज वही स्थिति दोबारा आ चुकी थी सोनू ने कोई मौका ना गवायां उसने सुगना की गोरी और मादक कमर के मांसल भाग को अपने हाथों में पकड़ लिया और उसे धक्का देते हुए उसे ट्रेन में चढ़ने की मदद की।

इन कुछ पलों के स्पर्श ने सोनू के शरीर को गनगना दिया। सोनू के हाथ ठीक उसी जगह लगे थे जिस जगह को आज की आधुनिक भाषा में लव हैंडल कहा जाता है सोनू स्त्रियों के उस खूबसूरत भाग से बखूबी परिचित था लाली को घोड़ी बनाकर चोदते समय वह लाली के कमर के उसी भाग को अपनी हथेलियों से पकड़े रहता था और लाली की फूली हुई चूत को अपने लंड के निशाने पर हमेशा बनाए रखता था । सोनू के दिमाग में एक वही दृश्य घूम गए।

अंदर अभी भी कुछ यात्री शेष थे जिन्हें इसी स्टेशन पर उतरना था अंदर गहमागहमी बढ़ रही थी ..

"अरे हम लोगों को पहले उतरने दीजिए तब चढ़िएगा.."

ट्रेन के अंदर से एक स्भ्रांत बुजुर्ग अंदर की आवाज आ रही थी.. परंतु उनकी आवाज लोग सुनकर भी अनसुना कर रहे थे.. ट्रेन के अंदर से एक बार फिर लोगों के बाहर आने का दबाव बढ़ा और एक पल के लिए लगा जैसे दरवाजे पर खड़ी सुगना बाहर गिर पड़ेगी..

सोनू के रहते ऐसा संभव न था सोनू ने अपने दोनों मजबूत हाथों से दरवाजे के दोनों तरफ लगे स्टील के सपोर्ट को पकड़ा और स्वयं को ट्रेन के अंदर धकेलने लगा सुगना सोनू के ठीक आगे थी अपने भाई द्वारा पीछे से दिए जा रहे दबाव के कारण वह अब ट्रेन में लगभग सवार हो चुकी थी सोनू अभी भी लटका हुआ था..

ट्रेन ने सीटी दी और धीरे-धीरे गति पकड़ने लगी..

सुगना ने कहां

"सोनू उतर जा गाड़ी खुल गईल"

"दीदी तू बिल्कुल दरवाजा पर बाडू.. झटका लागी तो दिक्कत होगी मधु भी गोद में बीया .. चला हम आगे लखनऊ स्टेशन पर उतर जाएब…

सुगना संतुष्ट हो गई.. और अपने भाई सोनू की अपनत्व की कायल हो गई वह उसे सचमुच बेहद प्यार करता था और उसका ख्याल रखता था..

सोनू भी अब ट्रेन के अंदर आ चुका था पर दरवाजे के पास बेहद भीड़भाड़ थी लखनऊ सिटी पर उतरने वाले यात्री अंदर कूपे में जाने को तैयार न थे और जो चढ़े थे वह मजबूरन दरवाजे के गलियारे में खड़े थे..

सबसे आगे दो दो झोले टांगे और सूरज को अपनी गोद में लिए सरयू सिंह उनके ठीक पीछे मधु को अपनी गोद में लिए हुए सुगना और सबसे पीछे अपनी दोनों मजबूत भुजाओं से ट्रेन के सपोर्ट को पकड़ा हुआ और अपनी कमर से सुगना को सहारा देता हुआ सोनू..

जैसे ही माहौल सहज हुआ सोनू ने महसूस किया कि उसकी कमर सुगना से पूरी तरह सटी हुई है। अब तक तो सोनू का ध्यान सुगना के मादक बदन से हटा हुआ था परंतु धीरे-धीरे उसे उसके बदन की कोमलता महसूस होने लगी सुगना के मादक नितंब उसकी कमर से दब कर चपटे हो रहे थे।


सोनू ने पतले लहंगे के पीछे छुपे सुगना के मादक नितंबों को अपनी जांघों और पेडू प्रदेश पर महसूस करना शुरू कर दिया जैसे-जैसे सोनू का ध्यान केंद्रित होता गया उसके लंड में तनाव आने लगा.. सोनू के लंड का सुपाड़ा सुगना की कमर से सट रहा था शायद यह लंबाई में अंतर होने की वजह से था।

सोनू पूरी तरह सुगना से सटा हुआ था.. उसके मजबूत खूंटे जैसे लंड में तनाव आए और सुगना को पता ना चले यह संभव न था। सोनू के लंड में आ रहे तनाव को देखकर सुगना आश्चर्यचकित थी.. और अब वह स्वयं को असहज महसूस कर रही थी…. उसके दिमाग में सोनू के लंड की तस्वीर घूमने लगी…


शेष अगले भाग में…
Mast hai
Sugna or Sonu ka bhi lagta hai Milan hokar rahega
 

Lovely Anand

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भाग 95

सोनू ने पतले लहंगे के पीछे छुपे सुगना के मादक नितंबों को अपनी जांघों और पेडू प्रदेश पर महसूस करना शुरू कर दिया जैसे-जैसे सोनू का ध्यान केंद्रित होता गया उसके लंड में तनाव आने लगा.. सोनू के लंड का सुपाड़ा सुगना की कमर से सट रहा था शायद यह लंबाई में अंतर होने की वजह से था।


सोनू पूरी तरह सुगना से सटा हुआ था.. उसके मजबूत खूंटे जैसे लंड में तनाव आए और सुगना को पता ना चले यह संभव न था। सोनू के लंड में आ रहे तनाव को देखकर सुगना आश्चर्यचकित थी.. और अब वह स्वयं को असहज महसूस कर रही थी…. उसके दिमाग में सोनू के लंड की तस्वीर घूमने लगी…

अब आगे

सोनू का लंड सुगना पहले भी देख चुकी थी..लाली की बुर में तेजी से आगे पीछे होते हुए सोनू के मजबूत लंड की तस्वीर उसके दिलो-दिमाग पर छप चुकी थी और न जाने कितनी बार वह अपने स्वप्न में वह उस लंड को देख चुकी थी। उस दिन हैंडपंप के नीचे सोनू नहाते समय जिस तरह अपने लंड को और उसके सुपाड़े को सहला रहा था वह बेहद उत्तेजक था … सुगना के दिमाग में वही दृश्य घूमने लगे..

सुगना सोच रही थी… क्या सोनू के लंड में आया हुआ तनाव उसकी वजह से था? उसे अपने भाई से ऐसी उम्मीद नहीं थी। सुगना ने अगल-बगल नजर दौड़ाई और सोनू के लंड में आए इस तनाव का कारण जानने की कोशिश की।


एक और युवती सुगना से कुछ ही दूर पर खड़ी थी परंतु उसके शरीर की बनावट देखकर सुगना समझ गई निश्चित ही यह तनाव उस युवती की वजह से न था… तो क्या उसके भाई सोनू का लंड उसके लिए ही खड़ा हुआ था?.

हे भगवान अब वह क्या करें? सुगना अब असहज महसूस कर रही थी। उसका रोम-रोम सिहर उठा। ह्रदय की धड़कन तेज हो गई। जिस अवस्था में वह थी कुछ कर पाना संभव न था। वह इस बारे में सोनू से कुछ भी बोल पाने की स्थिति में न थी।

फिर भी सुगना ने अपने शरीर को थोड़ा अगल-बगल कर सोनू को यह एहसास दिलाने की कोशिश की कि वह उससे दूर हो जाए। परंतु यह सोनू के लिए भी संभव न था। सोनू के पीछे भी एक दो व्यक्ति खड़े थे और पीछे जाना संभव न था। सुगना के हिलने डुलने की वजह से सोनू को भी हिलना पड़ा और गाहे-बगाहे सोनू का लंड सुगना के नितंबों के बीच आ गया।

लंड का सुपाड़ा सुगना की पीठ पर था परंतु लंड का निचला भाग सुगना की नितंबों के बीच की घाटी में आ चुका था।

ट्रेन और वासना धीरे-धीरे रफ्तार पकड़ रहीं थी..

ट्रेन के आउटर स्टेशन और मुख्य स्टेशन के बीच ट्रेन न जाने कितनी बार पटरियां बदलती है और पटरियां बदलते समय ट्रेन की हिलने डुलने की गति और बढ़ जाती है।

आज यह गति सोनू को बेहद प्यारी लग रही थी जब भी ट्रेन हिलती सुगना और उसके बीच में एक घर्षण होता और वह सोनू के लंड एक बेहद सुखद एहसास देता..


सोनू अपनी कमर हिला कर अपने आनंद को और बढ़ाना चाह रहा था परंतु अपनी बड़ी बहन सुगना की नजरों में गिरना नहीं चाह रहा था। जिस सुखद पल को नियति ने उसे स्वाभाविक रूप से प्रदान किया था उस अहसास को अपने हाथों से गवाना नही चाहता था।

लाली के साथ भरपूर कामुक क्रियाकलाप करते करते सोनू में अब धैर्य आ चुका था…


उसने यथासंभव अपने आप को संतुलित रखते हुए ट्रेन के हिलने से अपने लंड में हो रहे कोमल घर्षण और हलचल को महसूस करने लगा…

ट्रेन के हिलने से सुगना और सोनू के बीच का दबाव कभी कम होता कभी ज्यादा परंतु सोनू के लंड और सुगना के नितंबों का साथ कभी ना छूटता.. और कभी इसकी नौबत भी आती तो सोनू स्वतः ही उस दबाव को बढ़ा देता… यह मीठा और उत्तेजक एहसास सोनू को बेहद पसंद आ रहा था..

जिस तरह सोनू अपनी बड़ी बहन सुगना को खुद से दूर नहीं करना चाहता था ठीक उसी प्रकार सोनू का लंड सुगना के नितंबों के कोमल और मादक के स्पर्श से दूर नहीं होना चाहता था..

ट्रेन के पटरी या बदलने से खटखट की आवाजें ट्रेन में आ रही परंतु न तो यह सुगना को सुनाई दे रही थी और नहीं सोनू को ….सुगना और सोनू के दिमाग में इस समय कुछ और ही चल रहा सोनू अपने सपने में देखी गई बातों को याद कर रहा था और अपने मन में सुगना के कोमल और मादक बदन को अनावृत कर रहा था.. और उधर सुगना सोनू के लंड के स्पर्श को महसूस कर रही थी और सोनू के लंड के आकार का अनुमान लगा रही थी..

एक पल के लिए सोनू के मन में आया कि वह दरवाजे के सपोर्ट को छोड़कर अपने दोनों हाथ सुगना की चुचियों पर ले आए और उसे मसलते हुए अपने लंड को उसके नितंबों के बीच पूरी तरह घुसा दे..


परंतु यह सोच सिर्फ और सिर्फ उसके उत्तेजक खयालों की देन थी.. हकीकत में ऐसा कर पाना संभव न था। सुगना के साथ ऐसी ओछी हरकत करने का परिणाम भयावह हो सकता था…

कामुक सोच और उत्तेजना में चोली दामन का संबंध है..

सोनू अपनी सोच में सुगना को और नग्न करता गया और …. उसका लंड और भी संवेदनशील होता गया..

सरयू सिंह अब भी सूरज के साथ बातें कर रहे और मधु अपनी मां सुगना के कंधे पर सर रखकर सो रही थी।

सोनू की उत्तेजना अब परवान चढ़ चुकी थी। लाली को घंटों चोद चोद कर थका देने वाला सोनू का वह मजबूत लंड आज सुगना के नितंबों के सानिध्य में आकर जैसे अपना तनाव खोने को तत्पर था।

सुगना स्वयं अपने मन में चल रहे गंदे संदे खयालों से जूझ रही थी.. और उसकी बुर हमेशा की तरह उसकी बातों को नजरअंदाज करते हुए अपने होठों से लार टपक आने लगी थी। न जाने वह निगोडी क्यों सोनू के लंड के ख्याल मात्र से सुगना से विद्रोह पर उतारू हो जाती ऐसा लगता जैसे उसके लिए रिश्तो की मर्यादा का कोई मोल ना हो।


सुगना असहज हो रही थी उसने सोनू को खुद से दूर करने की सूची और अपने नितंबों को पीछे की तरफ हल्का धकेल कर सोनू को दूर करने की कोशिश की।

यही वह वक्त था जब सुगना के नितंबों ने सोनू के लंड पर एक बेहद मखमली दबाव बना दिया… सोनू के सब्र का बांध टूट गया।

सोनू का अपनी बड़ी बहन के प्रति भावनाओं का सैलाब फूट पड़ा.. अंडकोशो ने वीर्य उगलना शुरू कर दिया सोनू स्खलित होने लगा उसका लंड उछल उछल कर वीर्य वर्षा करने लगा….

परंतु हाय री किस्मत सोनू की सारी भावनाएं सोनू की पजामी को न भेद सकीं और उसका ढेर सारा वीर्य उसकी पजामी को गीला करता रहा।

स्खलित होता हुआ लंड एक अलग ही कंपन पैदा करता है जिन स्त्रियों में इस कलित होते हुए लंड को अपने हाथों में पकड़ा होगा वह वीर्य के बाहर निकलते वक्त उसके कंपन को अपनी उंगलियों पर अवश्य महसूस किया होगा…

सुगना को तो जैसे इसमें महारत हासिल थी वैसे भी नियति ने अब तक उसके भाग्य में जो दो पुरुष दिए थे वह दोनों अपनी जांघों के बीच विधाता की अनुपम धरोहर के लिए घूमते थे…

सरयू सिंह और सुगना के धर्मपति रतन दोनो एक मज़बूत लंड के स्वामी थे …


सुगना अपने नितंबों पर लंड की वह थिरकन महसूस कर रहीं थी।.दिल में भूचाल लिए वह एकदम शांत थी…हे भगवान सोनू स्खलित हो रहा था…. और वह अनजाने में अपने ही छोटे भाई सोनू को स्खलित होने में मदद कर रही थी..

सोनू का स्खलन पूर्ण होते ही…. वासना न जाने कहां फुर्र हो गई सिर्फ और सिर्फ आत्मग्लानि थी …आज सोनू ने अपनी बड़ी और सम्मानित बहन सुगना के नितंबों पर अपना लंड रगड़ते हुए खुद को स्खलित कर लिया था ..पर अब शर्मिंदगी महसूस कर रहा था..

वासना के अधीन होकर की गई बातें और कृत्य वासना का उफान खत्म होने के बाद हमेशा अफसोस का कारण बनते हैं जिह्वा और हरकतों पर लगाम न लगाने वाले अपने अंतर्मन में चल रहे अति उत्तेजना और अपने अपेक्षाकृत घृणित विचारों को अपने साथी को बता जाते हैं। यह उनके चरित्र को उजागर करता है।

जब तक सोनू कुछ और सोचता ट्रेन में एक बार फिर गहमागहमी चालू हो गई थी ट्रेन लखनऊ स्टेशन के प्लेटफार्म पर आ रही थी अंदर फसे यात्री अब उग्र हो रहे थे परंतु सोनू शांत था और सुगना भी।


सरयू सिंह ने सुगना के लिए रास्ता बनाया और सोनू से कहा

"संभाल के उतर जाईह"

सुगना इस स्थिति में न थी कि वह सोनू से कुछ कह पाती और न सोनू इस स्थिति में था कि वह सुगना से प्यार से विदा ले पाता… अब से कुछ देर पहले उसने जो किया था या जो हुआ था उसका गुनाहगार सिर्फ और सिर्फ सोनू था परंतु नियति सुगना को भी उतना ही कसूरवार मान रही थी..

खैर जो होना था वह हो चुका था सोनू को सुगना का लखनऊ आगमन रास आ गया था.. शायद उसने अपने विधाता से आज इतना मांगा भी न था जितना नियत ने उसे प्रदान कर दिया था..

सोनू प्लेटफार्म पर उतर कर कुछ देर और खड़ा रहा सुगना ट्रेन के अंदर आ चुकी थी दोनों बच्चे सोनू की तरफ देख रहे थे सोनू ट्रेन की खिड़की से अपने हाथ अंदर डाल कर सूरज के साथ खेल रहा था परंतु सुगना अपनी नजर झुकाए हुए थी.. सोनू से हंसी ठिठोली करने वाली सुगना आज शांत थी… न जाने जिस अपराध का गुनाहगार सोनू था उस अपराध के लिए सुगना क्यों अपनी नजर झुका रही थी..

कुछ देर बाद ट्रेन चल पड़ी सोनू ने अपने हाथ हवा में लहरा कर अपने परिवार के सदस्यों को विदा करने लगा ट्रेन के अंदर से सब ने हाथ हिलाए परंतु सुगना अब भी शांत थी पर जैसे ही सुगना को लगा कि अब वह सोनू को और नहीं देख पाएगी उसका धैर्य टूट गया..


उसने सोनू की तरफ देखा और अपने हाथ हिला कर उसका अभिवादन किया सुगना की आंखों में आंसू स्पष्ट तौर पर देखे जा सकते थे यह आंसू क्यों थे यह तो हमारे संवेदनशील पाठक ही जाने परंतु सुगना असमंजस में थी।

आज अपने ही भाई के साथ वह जिस अनोखी घटना की भागीदार और साक्षी बनी थी वह निश्चित ही पाप था एक घोर पाप पर सोनू का परित्याग करना या उसके साथ कुछ भी गलत करना सुगना को कतई गवारा ना था सोनू अब भी सुगना को उतना ही प्यारा था शायद इसी वजह से सुगना सोनू को विदा करते समय अपने हाथ हिलाने से खुद को ना रोक पाई…

सुगना और सोनू का प्यार निराला था ..

ट्रेन पटरीओं पर दौड़ लगाती ओझल हो गई परंतु सुगना अब भी सोनू के दिमाग में घूम रही थी …सुगना के हाथी लाए जाने से सोनू प्रसन्न हो गया था और अब उसके होठों पर मुस्कान थी…सोनू हर्षित मन से स्टेशन के बाहर आया और ऑटो रिक्शा कर अपने हॉस्टल की तरफ निकल गया…


अगली सुबह सरयू सिंह सुगना के साथ बनारस आ चुके थे। मदमस्त सोनी नहा कर बाहर आई थी। आधुनिकता के इस दौर में सोनी भी नहा कर नाइटी पहन कर बाहर आ जाया करती थी जैसे ही सोनी ने दरवाजा खोला सरयू सिंह सामने खड़े थे…अब भी सरयू सिंह ही एकमात्र ऐसे व्यक्ति थे जिनके सामने घर की स्त्रियां अब भी कुछ पर्दा कर लिया करती थी परंतु आज जिस अवस्था में उन्होंने सोनी को देखा था वह बेहद उत्तेजक और निगाहों में अभद्र थी। सोनी उनके चेहरे के भाव देख कर घबरा गई। उसने न तो सरयू सिंह के चरण छुए और न सुगना के अपितु उल्टे पैर भागते हुए सुगना के कमरे में आ गए….

सरयू सिंह सोनी को अंदर जाते हुए देख रहे थे। सोनी की काया में आया बदलाव सरयू सिंह बखूबी महसूस कर रहे थे। शायद सोनी अपनी उम्र से कुछ ज्यादा बड़ी दिखाई पड़ने लगी थी और हो भी क्यों न विकास से कई दिनों तक जी भर कर चुदवाने के बाद सोनी में निश्चित ही शारीरिक बदलाव आया गया था…आज भी जब कभी उसे मौका मिलता वह अपने कामुक खयालों में खो जाया करती थी और अपनी छोटी सी बुर को मसल मसल कर स्खलित होने पर मजबूर कर देती थी…

शायद उसे भी अपनी कामुक अवस्था का ध्यान आ गया था .. इसीलिए वह सर्विसिंग के सामने ज्यादा देर खड़ी ना हो पाई …सोनी ने अपने वस्त्र पहने और फिर आकर सरयू सिंह और सुगना के चरण छुए। सरयू सिंह ने सोनी को आशीर्वाद दीया परंतु उसकी कामुकता या उनके दिमाग में अभी घूम रही थी…

सरयू सिंह का लंड तो न जाने लंगोट की अंधेरी कैद में भी न जाने कैसे सुंदर और कामुक युवतियों को अंदाज लेता था..

सूरज तो जैसे अपनी सोनी मौसी से मिलने के लिए बेचैन था.. वह झटपट सोनी की गोद में आ गया और फिर क्या था उसने सोनी के कोमल होठों को चूम लिया… सरयू सिंह की निगाह सूरज पर पड़ गई। उन्होंने कुछ कहा नहीं परंतु वह यह देखकर आश्चर्य में थे कि सोनी ने उसे रोका तक नहीं अपितु वह उसका साथ दे रही थी। सूरज की यह क्रिया बाल सुलभ थी या आने वाले समय की झांकी यह कहना कठिन था पर जो कुछ हो रहा था वह असामान्य था छोटे बच्चों को भी कामुक महिलाओं के होंठ चूमने का कोई अधिकार नहीं है ऐसा सरयू सिंह का मानना था..

लाली अब तक चाय लेकर आ चुकी थी सरयू सिंह चाय पी रहे थे और लाली सोनू के बारे में ढेर सारी बातें पूछ रही थी.. लाली का सोनू के बारे में जानने की इतनी इच्छा …..लाली का यह व्यवहार बुद्धिमान सरयू सिंह की बुद्धि के परे था… उधर सोनी सूरज को लेकर कमरे में आ गई थी ….



"सोनी सूरज के भेज बिस्कुट खा ली" सुगना ने आवाज लगाई..


सुगना यह बात भली-भांति जानती थी कि अब भी सोनी एकांत पाकर अपनी हरकत करने से बाज नहीं आएगी परंतु सुगना को सोनी की आदत से कोई विशेष तकलीफ न थी…. सूरज भी खुश था और सोनी भी….

घर में सब के चेहरों पर खुशियां व्याप्त थी परंतु सुगना असहज थी जब जब उसे ट्रेन की वह घटना याद आती वह खुद को उस घटना के लिए जिम्मेदार मानती जिसमें शायद उसका सक्रिय योगदान न था वह तो सोनू ही था जो अपनी बहन की सुंदरता और मादक शरीर पर फिदा हुआ जा रहा था…


यदि सुगना अपना सुखद वैवाहिक जीवन जी रही होती तो शायद सोनू इस गलत विचारधारा में न पड़ता परंतु इसे परिस्थितियों का दोष कहें या स्त्री पुरुष के बीच स्वाभाविक आकर्षण परंतु सोनू अब बेचैन हो उठा था।…

सुगना नहाने जा चुकी थी…सोनू द्वारा दी गई लहंगा और चोली उतारते समय उसे एक बार फिर सोनू की याद आ गई दिमाग में ट्रेन के दृश्य घूमने लगे जैसे-जैसे सुगना नग्न होती गई वासना उसे अपनी आगोश में लेती गई।

सुगना ने अपनी कोमल और उदास बुर को सर झुका कर देखना चाहा..

ट्रेन में छाई उत्तेजना ने सुगना की जांघों पर भी प्रेमरस के अंश छोड़ दिए थे…दिमाग में सोनू की मजबूत लंड की कल्पना और नितंबों की बीच उसे प्रभावशाली घर्षण ने सुगना की बुर को लार टपकाने के लिए विवश कर दिया था…

जैसे जैसे सुगना उस सुख चुकी लार को साफ करने लगी..उसकी बुर ने और उत्सर्जन प्रारंभ कर दिया..

सुगना ने अपनी अभागन बुर को थपकियां देकर धीरज रखने को कहा पर न उसकी उंगलियों ने उसकी बात मानी और न बुर ने…सोनू ….आ ….ई………सुगना के होंठ न जाने क्या क्या बुदबुदा रहे थे सुगना की मनोस्थिति पढ़ पाना नियति के लिए भी एक दुरूह कार्य था…

कुछ ही देर में सुगना ने अपना अधूरा स्खलन पूर्ण कर लिया….

सोनू ने अगले दो-तीन दिनों में अपना सामान बांधा और बनारस आने की तैयारी करने लगा।

सोनू की पोस्टिंग बनारस से कुछ ही दूर जौनपुर में हुई थी। सोनू बेहद प्रसन्न था। जौनपुर से बनारस आना बेहद आसान था सोनू मन ही मन अपने ख्वाब बुनने लगा …

सोनू के मन में सिर्फ एक ही चिंता थी कि अब जब वह सुगना के सामने आएगा तो वह उससे कैसा व्यवहार करें कि क्या उसने उसे ट्रेन में हुई घटना के लिए माफ कर दिया होगा?

सोनू के पास सिर्फ और सिर्फ प्रश्न थे उसे सुगना का सामना करना ही था। उसने अपने इष्ट से सब कुछ सामान्य और अनुकूल रहने की कामना की और अपना सामान बांध कर बनारस विस्तृत सुगना के घर आ गया..सामन पैक करते वक्त उसे रहीम और फातिमा की चूदाई गाथा की वह फटी किताब भी दिखाई पड़ गई और सोनू मुस्कुराने लगा.. उसने न जाने क्या सोच कर उस अधूरी किताब को भी रख लिया…

अगली सुबह सोनू अपना ढेर सारा सामान आटो में लाद कर सुगना के घर के सामने खड़ा था..

उसका कलेजा धक धक कर रहा था..

शेष अगले भाग में..
 

raniaayush

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हमेशा की तरह शानदार अपडेट...
1 सोनी और सरयू सिंह के मिलने का संयोग बन रहा है।
2 एक बहुत ही महीन और अनुभवी वर्णन-
स्खलित होता हुआ लंड एक अलग ही कंपन पैदा करता है जिन स्त्रियों में इस कलित होते हुए लंड को अपने हाथों में पकड़ा होगा वह वीर्य के बाहर निकलते वक्त उसके कंपन को अपनी उंगलियों पर अवश्य महसूस किया होगा…
3 एक बहुत ही सुंदर और अच्छी सलाह है ये -
वासना के अधीन होकर की गई बातें और कृत्य वासना का उफान खत्म होने के बाद हमेशा अफसोस का कारण बनते हैं। जिह्वा और हरकतों पर लगाम न लगाने वाले अपने अंतर्मन में चल रहे अति उत्तेजना और अपने अपेक्षाकृत घृणित विचारों को अपने साथी को बता जाते हैं। यह उनके चरित्र को उजागर करता है।
 

karan77

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भाग 94
रास्ते भर सुगना और सोनू मनोरमा की तारीफों के पुल बांधते रहे परंतु मनोरमा के बिस्तर पर वीर्य के निशान देख सुगना का मन कुछ खट्टा हो गया था…


मनोरमा की बंजर हो चुकी कोख को किसने सींचा सींचा होगा सुगना के लिए प्रश्न बन चुका था…

मनोरमा के बारे में यदि कोई शख्स बता सकता था तो वह थे उसके बाबूजी शरीर से इसके अलावा सुगना की जिज्ञासा शांत करने वाला और कोई ना था…वह एंबेसडर कार के गेस्ट हाउस पहुंचने की राह देखने लगी..

उधर सोनू अपनी बड़ी बहन सुगना की चुचियों को अपने दिमाग में अनावृत कर रहा था…


सुगना और सरयू सिंह दोनों एक दूसरे का इंतजार कर रहे थे पर अपने अपने प्रश्नों और जिज्ञासाओं के साथ…

अब आगे….

अंततः सुगना सोनू और दोनों छोटे बच्चे गेस्ट हाउस आ गए …लाबी में टहलते हुए सरयू सिंह सूरज को दिखाई पड़ गए और वह अपने छोटे-छोटे कदमों से भागता हुआ सरयू सिंह के पास जाकर बोला


"बाबा मैं आ गया"

अब तक सुगना भी सरयू सिंह के करीब आ चुकी थी उसने कहा बा

"बाबूजी लगता राउर तबीयत ठीक हो गईल "

"हां अब ठीक लगाता का कहत रहली मनोरमा मैडम"

"कुछो ना…लेकिन आपके खोजत रहली"


अब तक सोनू भी आ चुका था

" सरयू चाचा कितना सुंदर घर बा मनोरमा मैडम के घर एकदम महल जैसे"

जिस महल की सोनू दिल खोलकर तारीफ कर रहा था उस महल की मालकिन को सरयू सिंह बीती रात एक नहीं दो दो बार कसकर चोद कर आए थे.


सरयू सिंह का स्वाभिमान बीती रात से बुलंदियों पर था.. परंतु मन के अंदर आ चुका डर कायम था..

सुगना से और प्रश्न पूछना उचित न था सोनू बगल में ही खड़ा था। सभी लोग कमरे में आ गए सरयू सिंह भी खाना खा चुके थे। शाम को वापस बनारस जाने की ट्रेन पकड़नी थी। समय कम था सरयू सिंह और सुगना दोनों एकांत खोज रहे थे… उन दोनों को अपनी अपनी जिज्ञासा शांत करनी थी…उधर सोनू सुगना के साथ ढेरो बाते करना चाहता था..

सुगना अपने पूर्व और वर्तमान प्रेमी के बीच झूल रही थी…अंत में विजय एसडीएम साहब की हुई और वह सुगना को बाजार ले जाने में कामयाब हो गए.. आखिर उन्हें सुगना उसके बच्चों और बनारस में बैठी अपनी दोनों बहनों के लिए कुछ ना कुछ उपहार खरीदने थे। आज का दिन बेहद महत्वपूर्ण था और सोनू की खुशियों पर पूरे परिवार का हक था.

व्यस्तता और वासना दोनों एक दूसरे की दुश्मन है…सोनू ने आज का पूरा दिन लगभग सुगना के साथ ही बिताया था परंतु उसकी वासना व्यस्तता की भेंट चढ़ गई थी… बाजार से लौटते लौटते शाम के 6:00 बज चुके थे और 2 घंटे बाद ही मैं वापस स्टेशन के लिए निकलना था।

सोनू की हालत आजकल के आशिक हो जैसी हो गई थी जो अपनी गर्लफ्रेंड को दिन भर घुमाते शापिंग कराते दिन भर उसके खूबसूरत जिस्म और सानिध्य का लाभ उठाकर अपने लंड में तनाव भरते हैं लंड के सुपाड़े से लार टपकाते परंतु शाम ढलते ढलते विदा होने का वक्त हो जाता ….

सोनू मायूस हो रहा था दिन भर की खुशियां शाम आते आते धूमिल पड़ रही थी सुगना जाने वाली थी और सोनू का मन उदास था परंतु पूर्व निर्धारित कार्यक्रम में कोई बदलाव कर पाना संभावना न था।

सोनू को भी अपना सामान समेटकर बनारस आना था परंतु कुछ कागजी कार्रवाई पूर्ण न होने की वजह से वह चाहकर भी सुगना के साथ बनारस नहीं जा पा रहा था।

सूरज एक बार फिर उत्साहित था। ट्रेन में बैठ ना उसे बेहद अच्छा लगता था उसने सोनू से कहा

"मामा जल्दी चलो गाड़ी छूट जाएगी…"

सोनू को पल के लिए लगा जैसे सब सुगना को उससे दूर कर रहे हैं...

सोनू ने बाजार से सुगना के लिए एक बेहद खूबसूरत लहंगा चोली खरीदा था.. जो रेशम के महीन कपड़े से बना था और जिस पर हाथ की कढ़ाई की गई थी…

नकली सितारों की चमक दमक से दूर वह लहंगा चोली बेहद खूबसूरत था जिसे सामान्य तौर पर भी बिना किसी विशेष प्रयोजन के भी पहना जा सकता था..


न जाने सोनू के मन में क्या आया उसने सुगना से कहा..

"दीदी जाए से पहले कपड़वा नाप ले छोट बढ़ हुई तब बदल देब.."

समय कम था परंतु सोनू की बातें तर्कसंगत थी …

कमरे में सोनू दोनों बच्चों के साथ खेलने लगा और सुगना बाथरूम में जाकर अपने कपड़े बदलने लगी…

हल्के गुलाबी रंग के लहंगा चोली में सुगना बेहद खूबसूरत लग रही थी सुंदर और सुडौल काया पर वस्त्र और भी खिल उठते हैं।


चोली तो जैसे सुगना की काया के लिए ही बनी थी.. चूचियों के लिए दी गई जगह शायद कुछ कम पड़ रही थी परंतु सुगना की कोमल चुचियों ने स्वयं को उन में समायोजित कर लिया था परंतु कपड़ों का तनाव चूचियों के आकार का अंदाजा बखूबी दे रहा था.. चोली की लंबाई सुगना की कमर तक आ रही थी…सोनू चाहता तो यही था कि चोली की लंबाई ब्लाउज के बराबर ही रहे….परंतु सुगना जो अब दो बच्चों की मां थी वह अपने सपाट पेट और नाभि का खुला प्रदर्शन कतई नहीं करना चाहती थी।

उसने यही चोली पसंद की थी जो उसकी कमर तक आ रही थी। परंतु सुगना को क्या पता था जिस मदमस्त कमर को वह चोली के भीतर छुपाना चाहती वह छिपने लायक न थी । चोली में सुगना की खूबसूरती को और उभार दिया था..

सोनू सुगना को देखकर फूला नहीं समा रहा था। उसकी अप्सरा उसकी आंखों के सामने उसके द्वारा दिए गए वस्त्र पहने अपने बाल संवारे रही थी.. काश सुगना उसकी बहन ना होती तो शायद इतनी आवभगत करने का इनाम सोनू अवश्य ले लिया होता।

सरयू सिंह वापस आ चुके थे और सुगना को लहंगा चोली में देखकर दंग रह गए..

सुगना अपनी युवा अवस्था में हमेशा लहंगा और चोली ही पहनती भी और सरयू सिंह के हमेशा से उसके इस पहनावे के कायल थे…सपाट पेट और उस पर छोटी सी नाभि.. सरयू सिंह को बेहद भाती।

जब पहली बार जब सरयू सिंह और सुगना ने मिलकर दीपावली मनाई थी उस दिन भी सुगना ने लहंगा और चोली ही पहना था।

सुगना के उस दिव्य स्वरूप को याद कर सरयू सिंह को कुछ हुआ हो या ना हुआ हो परंतु लंगोट में कैद सुगना का चहेता लंड हरकत में आ रहा था।


वह तो भला हो सरयू सिंह के कसे हुए लंगोट का अन्यथा वह अब तक उछल कर अपने आकार में आ रहा होता। सरयू सिंह ने सुगना से कहा

" चला देर होता वैसे भी स्टेशन में आज ढेर भीड़ भाड़ होखी"..

"बाबूजी रुक जा जाई कपड़ा बदल के चलत बानी"

"अरे कपड़ा ठीक त बा… यही पहन के चला फिर बदले में देर होखी "

सरयू सिंह देरी कतई नहीं करना चाहते थे…उन्होंने हनुमान जी की तरह दोनों बच्चों को गोद में लिया और गेस्ट हाउस से बाहर आने लगे।


कुछ ही देर बाद एक बार फिर सोनू अपनी बहन सुगना के साथ रिक्शे में बैठकर स्टेशन की तरफ जाने लगा..

लहंगा चोली में सुगना और पजामे कुर्ते में सोनू.. जो भी देखता एक पल के लिए अपने नजरें उन पर टिका लेता नियति के रचे दो खूबसूरत पात्र धीरे-धीरे बिछड़ने के लिए रेलवे स्टेशन की तरफ जा रहे थे ..

सोनू के उदास चेहरे को देखकर सुगना दुखी हो रही थी अंततः उससे रहा न गया उसने सोनू के हाथ को अपनी कोमल हथेलियों के बीच में ले लिया और सहलाते हुए बोली

"ते दुखी काहे बाडे… हम कोई हमेशा तोहरा साथ थोड़ी रहब। दू दिन खाती आईल रहनी अब जा तानी……वैसे दू दिन बाद तहरा भी त बनारस आवे के बा"

सुगना की बातें सुनकर सोनू और भी दुखी हो गया परंतु सुगना की कोमल हथेलीयों के बीच में उसकी हथेली के स्पर्श में न जाने किस भाव का अनुभव किया और सोनू के शरीर में एक सनसनी फैल गई…

युवा मर्दों का सबसे संवेदनशील अंग उनका लंड ही होता है और सुगना के स्पर्श ने सबसे ज्यादा यदि किसी अंग पर असर किया तो वह था सोनू का लंड …अचानक ही सोनू की भावनाएं बदल गईं…. साथ रिक्शे पर बैठी उसकी बहन सुगना एक बार फिर अपने मदमस्त और अतृप्त यौवन लिए उसकी निगाहों के सामने अठखेलियां करने लगी… सोनू ने सुगना के कामुक अंगो को और करीब से निहारना चाहा परंतु सिवाय चुचियों के उसे कुछ न दिखाई पड़ा। परंतु सोनू का लाया लहंगा कमाल का था…. रेशम के महीन धागे से बना वह लहंगा पारदर्शी तो न था परंतु बेहद पतला और मुलायम था…उसने सुगना की कोमल जांघों से सट कर उन पर एक आवरण देने की कोशिश जरूर की थी परंतु सुगना की पुष्ट जांघों के आकार को छुपा पाने में कतई नाकाम था।

सुगना बार बार अपने दोनों पैर फैला कर लहंगे को दोनों जांघों के बीच सटने से रोकती और अपनी जांघों के आकार को सोनू की नजरों से बचाने की कोशिश करती..

भीनी भीनी हवा चल रही थी और मौसम बेहद सुहावना था कभी-कभी सुगना को एहसास होता जैसे उसने कुछ पहना ही ना हो…रेशम का कपड़ा सुगना की रेशमी त्वचा के साथ तालमेल बिठा चुका था और सुगना को एक अद्भुत एहसास दे रहा था ..


सोनू को सुगना का और कोई अंग दिखाई दे या ना दे परंतु सुगना के कोमल और हल्की लालिमा लिए हुए गाल स्पष्ट दिखाई दे रहे थे और होठों का तो कहना ही क्या ऐसा लग रहा था जैसे होठों में चाशनी भरी हुई थी…

काश काश लाली दीदी के होठ भी सुगना दीदी जैसे होते..

सोनू को अपने बचपन के दिन याद आने लगे जब वह सुगना के गालों को बेझिझक चुम लिया करता था परंतु आज शायद यह संभव न था रिश्ता वही था सुगना भी वही थी परंतु सोनू बदल चुका था ऐसा क्या हो गया था जो अब वह सुगना को चूमने मैं असहज महसूस कर रहा था…

जवानी रिश्तो की परिभाषा बदल देती है…युवा स्त्री और पुरुष कभी भी एक दूसरे को चूम नहीं सकते चाहे वह किसी भी पावन रिश्ते से बंधे क्यों ना हो…

हां माथे का चुंबन अपनी जगह है….

रेलवे स्टेशन आने वाला था परंतु उससे पहले रेलवे क्रासिंग आ चुकी थी। सारे वाहनों पर विराम लगा हुआ था… रिक्शेवाले अपने मैले कुचैले तौलिए से अपना चेहरा पोंछ रहे थे…सरयू सिंह ने पीछे मुड़कर सुगना और सोनू को देखा वह मन ही मन अपने फैसले पर प्रसन्न हो रहे थे कि उन्होंने स्टेशन जल्दी आने का फैसला लेकर सही कार्य किया था.. अचानक सोनू का ध्यान बगल की दीवार पर लगे किसी एडल्ट फिल्म के पोस्टर पर चला गया…

फिल्म का नाम था "लहंगा में धूम धाम"

पोस्टर में दिख रही हीरोइन ने भी संयोग से लहंगा और चोली ही पहना हुआ था परंतु उसकी चोली तंग थी और चूचियां उभर कर बाहर आ रही थीं … शायद निर्देशक ने उन वस्त्रों का चयन ही इसलिए किया था ताकि वह चुचियों को और उभार सके..


इसी प्रकार लहंगा लहंगा ना होकर एक स्कर्ट के रूप में था और हीरोइन के नंगे पैर पिंडलियों चमक रहे थे सोनू लालसा भरी निगाहों से उस पोस्टर को देखे जा रहा था

सोनू को वासना भरी निगाहों से पोस्टर की तरफ देखते हुए देख कर सुगना स्वयं शर्मसार हो रही थी उसने सोनू का ध्यान खींचने के लिए बोला..

"अब अपन ब्याह के मन बना ले ई सब ताक झांक ठीक नईखे"

"अब सब तहारे हांथ में बा.."

"तोरा इतना फोटो में कोई पसंद काहे नईखे परत?"

सोनू क्या जवाब देता वह सुगना के प्यार में पागल हो चुका था…प्यार तो वह सुनना से पहले भी करता था परंतु अब वह जिस रूप में सुगना को चाहने लगा था …उसे और कोई लड़की पसंद नहीं आ सकती थी.. इतना प्यार करने वाली सुगना जैसी खुबसूरत युवती मिलना असंभव ही नही नामुमकिन था…

सोनू ने खुद को संभाला और मुस्कुराने लगा.. परंतु उस में कुछ न कहा सुगना ने फिर पूछा

" बोलत काहे नहींखे .."

"तू दुनिया में अकेले ही आईल बाड़ू का? तोहरा जैसन केहू काहे नईखे मिलत.."

सुगना निरुत्तर हो गई और शर्मसार भी ऐसा नहीं है कि सोनू ने यह बात पहली बार कही थी परंतु फिर भी अपनी होने वाली पत्नी की तुलना अपनी बड़ी बहन से करना …..शायद सोनू ने बातचीत की मर्यादा का दायरा बढ़ा दिया था दिया था।

सुगना यह बातें पहले भी सुन चुकी थी उसे उसे अब यह सामान्य लगने लगा था.. ठीक उसी प्रकार से जैसे सूरज का उसके होठों को कभी-कभी चूम लेना… ना जाने क्यों सोनू के इस कथन में उसे अपनी तारीफ नजर आती और वह मन ही मन मुस्कुरा उठती उसे यह कतई पता न था कि उसकी मुस्कुराहट सोनू को और उकसा रही थी।

मुस्कुराती हुई सुगना और भी ज्यादा खूबसूरत लगती थी।

मुस्कुराहट वैसे भी सौंदर्य को निखार देती है और लज्जा वश आई मुस्कुराहट का कहना ही क्या..

सोनू उस हीरोइन को छोड़ सुगना के शर्म से लाल हुए गाल देखने लगा …

रेलवे केबिन में बैठी नियति सोनू और सुगना दोनों को एक साथ देख कर अपने मन में आने वाले घटनाक्रम बुन रही थी। नियति ने ऐसी खूबसूरत जोड़ी को मिलाने का फैसला कर लिया परंतु क्या यह इतना आसान था?


सुगना जैसी मर्यादित बहन को अपने ही छोटे भाई से संभोग के उसके नीचे ला पाना नियति के लिए भी दुष्कर था परंतु सोनू अधीर था और वह सुगना के प्रति पूरी तरह समर्पित था…

रेलवे क्रॉसिंग पर अचानक कंपन प्रारंभ हो गए और कुछ ही देर में ट्रेन की तीव्र आवाज सुनाई थी धड़ धड़आती हुई मालगाड़ी रेलवे क्रॉसिंग से पास होने लगी..

अचानक शांत पड़े वाहनों में हलचल शुरू हो गई मोटर कार के स्टार्ट होने की आवाज गूंजने लगी वातावरण में काले धुएं का अंश बढ़ने लगा सुगना और सोनू दोनों चैतन्य होकर क्रासिंग के खुलने का इंतजार करने लगे और धीरे धीरे सोनू और सुगना का रिक्शा गंतव्य की तरफ पर चला परंतु जैसे-जैसे स्टेशन करीब आ रहा था सोनू मायूस हो रहा था उसकी बड़ी बहन सुगना एक बार फिर उससे दूर हो रही थी।


थोड़ी देर में रिक्शा स्टेशन पर आ चुका था और एक बार फिर सोनू अपनी बहन सुगना के साथ लखनऊ सिटी के प्लेटफार्म पर भीड़ का हिस्सा बन चुका था..

लखनऊ सिटी लखनऊ के मुख्य स्टेशन के बाहर का एक छोटा स्टेशन था जो गेस्ट हाउस के करीब ही था सरयू सिंह ने अपने अनुभव का प्रयोग करते हुए यह फैसला लिया था कि वह ट्रेन लखनऊ मेन स्टेशन की बजाय लखनऊ सिटी से पकड़ेंगे शायद उनके मन में यह बात थी कि आउटर स्टेशन होने के कारण वहां पर ज्यादा भीड़ भाड़ नहीं होगी और सीट आसानी से मिल जाएगी।

सोनू और सुगना सरयू सिंह पर पूरा विश्वास करते थे और उनके अनुभव पर कभी भी प्रश्नचिन्ह नहीं लगाते थे।

परंतु आज सरयू सिंह का अनुमान गलत प्रतीत हो रहा था इस आउटर स्टेशन पर भी भीड़भाड़ कम न थी शायद जो अनुभव सरयू सिंह को प्राप्त था वैसा अनुभव और भी लोग अब हासिल कर चुके थे । परंतु अब कोई चारा न था थोड़ी ही देर में ट्रेन आने वाली थी।


सरयू सिंह सूरज की खातिरदारी करने में कोई कमी ना रख रहे थे वह कभी उसके लिए खिलौने खरीदते कभी रंग-बिरंगे रैपर में पैक छोटे-छोटे बिस्किट..

स्टेशन पर आज कुछ ज्यादा ही भीड़ भाड़ थी जैसे ही ट्रेन आई ट्रेन के अंदर सवार होने की जंग जारी हो गई इस बार सुगना के दो-दो कदरदान उपस्थित थे सरयू सिंह आगे बढ़े और सुगना उनके पीछे…ट्रेन में इतनी भीड़ भाड़ थी कि एक बार ऊपर चढ़ जाने के बाद नीचे उतरना संभव न था।

सरयू सिंह ने कहां

" सुगना तू मधु के गोद में लेला… सोनू ट्रेन में ना चढ़ी …. अंदर गइला के बाद उतरे में बहुत दिक्कत होखी सुगना को मधु को अपनी गोद में लेना पड़ा था।

ट्रेन के आते ही धक्कम धक्का शुरू हो गई। ट्रेन के दरवाजे पर ढेर सारे लोग खड़े हो गए महिला पुरुष बच्चे सब जल्दी से जल्दी ट्रेन में चढ़ जाना चाहते थे। शुरुआत में तो लोगों ने ट्रेन के अंदर बैठे यात्रियों को उतरने दिया परंतु जैसे ही उतरने वालों का रेला धीमा पड़ा अंदर जाने के लिए जैसे होड़ लग गई।

पिछली बार की ही भांति सरयू सिंह सबसे पहले ट्रेन में चढ़े और ऊपर पहुंच कर उन्होंने सुगना को ऊपर आने के लिए अपना हाथ दिया.. मधु के गोद में होने के कारण सुगना अकेले चढ़ने में नाकाम थी.


जिस प्रकार पिछली बार एक अनजान युवक ने उसकी कमर पर हाथ रखकर उसे चढ़ने में सहायता की थी आज वही स्थिति दोबारा आ चुकी थी सोनू ने कोई मौका ना गवायां उसने सुगना की गोरी और मादक कमर के मांसल भाग को अपने हाथों में पकड़ लिया और उसे धक्का देते हुए उसे ट्रेन में चढ़ने की मदद की।

इन कुछ पलों के स्पर्श ने सोनू के शरीर को गनगना दिया। सोनू के हाथ ठीक उसी जगह लगे थे जिस जगह को आज की आधुनिक भाषा में लव हैंडल कहा जाता है सोनू स्त्रियों के उस खूबसूरत भाग से बखूबी परिचित था लाली को घोड़ी बनाकर चोदते समय वह लाली के कमर के उसी भाग को अपनी हथेलियों से पकड़े रहता था और लाली की फूली हुई चूत को अपने लंड के निशाने पर हमेशा बनाए रखता था । सोनू के दिमाग में एक वही दृश्य घूम गए।

अंदर अभी भी कुछ यात्री शेष थे जिन्हें इसी स्टेशन पर उतरना था अंदर गहमागहमी बढ़ रही थी ..

"अरे हम लोगों को पहले उतरने दीजिए तब चढ़िएगा.."

ट्रेन के अंदर से एक स्भ्रांत बुजुर्ग अंदर की आवाज आ रही थी.. परंतु उनकी आवाज लोग सुनकर भी अनसुना कर रहे थे.. ट्रेन के अंदर से एक बार फिर लोगों के बाहर आने का दबाव बढ़ा और एक पल के लिए लगा जैसे दरवाजे पर खड़ी सुगना बाहर गिर पड़ेगी..

सोनू के रहते ऐसा संभव न था सोनू ने अपने दोनों मजबूत हाथों से दरवाजे के दोनों तरफ लगे स्टील के सपोर्ट को पकड़ा और स्वयं को ट्रेन के अंदर धकेलने लगा सुगना सोनू के ठीक आगे थी अपने भाई द्वारा पीछे से दिए जा रहे दबाव के कारण वह अब ट्रेन में लगभग सवार हो चुकी थी सोनू अभी भी लटका हुआ था..

ट्रेन ने सीटी दी और धीरे-धीरे गति पकड़ने लगी..

सुगना ने कहां

"सोनू उतर जा गाड़ी खुल गईल"

"दीदी तू बिल्कुल दरवाजा पर बाडू.. झटका लागी तो दिक्कत होगी मधु भी गोद में बीया .. चला हम आगे लखनऊ स्टेशन पर उतर जाएब…

सुगना संतुष्ट हो गई.. और अपने भाई सोनू की अपनत्व की कायल हो गई वह उसे सचमुच बेहद प्यार करता था और उसका ख्याल रखता था..

सोनू भी अब ट्रेन के अंदर आ चुका था पर दरवाजे के पास बेहद भीड़भाड़ थी लखनऊ सिटी पर उतरने वाले यात्री अंदर कूपे में जाने को तैयार न थे और जो चढ़े थे वह मजबूरन दरवाजे के गलियारे में खड़े थे..

सबसे आगे दो दो झोले टांगे और सूरज को अपनी गोद में लिए सरयू सिंह उनके ठीक पीछे मधु को अपनी गोद में लिए हुए सुगना और सबसे पीछे अपनी दोनों मजबूत भुजाओं से ट्रेन के सपोर्ट को पकड़ा हुआ और अपनी कमर से सुगना को सहारा देता हुआ सोनू..

जैसे ही माहौल सहज हुआ सोनू ने महसूस किया कि उसकी कमर सुगना से पूरी तरह सटी हुई है। अब तक तो सोनू का ध्यान सुगना के मादक बदन से हटा हुआ था परंतु धीरे-धीरे उसे उसके बदन की कोमलता महसूस होने लगी सुगना के मादक नितंब उसकी कमर से दब कर चपटे हो रहे थे।


सोनू ने पतले लहंगे के पीछे छुपे सुगना के मादक नितंबों को अपनी जांघों और पेडू प्रदेश पर महसूस करना शुरू कर दिया जैसे-जैसे सोनू का ध्यान केंद्रित होता गया उसके लंड में तनाव आने लगा.. सोनू के लंड का सुपाड़ा सुगना की कमर से सट रहा था शायद यह लंबाई में अंतर होने की वजह से था।

सोनू पूरी तरह सुगना से सटा हुआ था.. उसके मजबूत खूंटे जैसे लंड में तनाव आए और सुगना को पता ना चले यह संभव न था। सोनू के लंड में आ रहे तनाव को देखकर सुगना आश्चर्यचकित थी.. और अब वह स्वयं को असहज महसूस कर रही थी…. उसके दिमाग में सोनू के लंड की तस्वीर घूमने लगी…


शेष अगले भाग में…
awesome story received part 90. please send next part with thanks in advance
 
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