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Incest आह..तनी धीरे से.....दुखाता.

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Lovely Anand

Love is life
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आह ....तनी धीरे से ...दुखाता
(Exclysively for Xforum)
यह उपन्यास एक ग्रामीण युवती सुगना के जीवन के बारे में है जोअपने परिवार में पनप रहे कामुक संबंधों को रोकना तो दूर उसमें शामिल होती गई। नियति के रचे इस खेल में सुगना अपने परिवार में ही कामुक और अनुचित संबंधों को बढ़ावा देती रही, उसकी क्या मजबूरी थी? क्या उसके कदम अनुचित थे? क्या वह गलत थी? यह प्रश्न पाठक उपन्यास को पढ़कर ही बता सकते हैं। उपन्यास की शुरुआत में तत्कालीन पाठकों की रुचि को ध्यान में रखते हुए सेक्स को प्रधानता दी गई है जो समय के साथ न्यायोचित तरीके से कथानक की मांग के अनुसार दर्शाया गया है।

इस उपन्यास में इंसेस्ट एक संयोग है।
अनुक्रमणिका
भाग 126 (मध्यांतर)
भाग 127 भाग 128 भाग 129 भाग 130 भाग 131 भाग 132
भाग 133 भाग 134 भाग 135 भाग 136 भाग 137 भाग 138
भाग 139 भाग 140 भाग141 भाग 142 भाग 143
 
Last edited:

Lovely Anand

Love is life
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भाग -67

सुगना अंततः कटोरी ले आई और अपनी चुचियों से दूध कटोरी में निकालने का प्रयास करने लगी.. परंतु यह कार्य अकेले संभव न था एक हाथ से वह कटोरी पकड़ती और दूसरे हाथ से अपनी मोटी मोटी चूचियों से दूध निकालने का प्रयास करती लाख जतन करने के बाद भी सुगना दूध की कुछ बूंदे ही कटोरी में निकाल पाई।

अपनी पुत्री को भूखा रखना सुगना को कतई गवारा न था जिस पुत्री का जन्म इतने मन्नतों और प्रार्थनाओं के बाद हुआ था उसे भूख से तड़पाना सुगना को कतई गवारा न था। उसने अपनी लज्जा को ताक पर रख रतन से मदद लेने की सोची…

अब आगे..

"ए जी थोड़ा मदद कर दीं देर त ना होई?"

सुगना की मधुर आवाज रतन के कानों तक पड़ी जो अब घर से बाहर निकलने के लिए लगभग तैयार था।

रतन सुगना की बात कभी टाल नहीं सकता था। दुनिया में यदि कोई रतन के लिए अहम था तो वह थी सुगना। उसकी नौकरी चाकरी इतनी अहम न थी कि वह अपनी सुगना की बात को नजरअंदाज करता। उसने सहर्ष कहा

"हां बतावा ना का करे के बा"

"हई तनी कटोरी पकड़ी और आपन आंख मत खोलब"

सुगना ने अपनी झील जैसी आंखें नचाते हुए कहा..

कुछ निषेधात्मक वाक्यों को कहने का अंदाज उनकी निषेधात्मकता को कम कर देता है।

सुगना ने राजेश को आँखें खोलने के लिए तो मना कर दिया था परंतु शायद जो उसके उद्बोधन में था वो उसके मन में नहीं।

रतन ने अपनी आंखें कुछ ज्यादा ही मीच लीं। उसने शायद सुगना को आश्वस्त करने की कोशिश की और सुगना द्वारा दी गई कटोरी को पकड़ लिया सुगना ने उसके हाथों को एक नियत जगह पर रहने का इशारा किया और अपनी एक चूँची को ब्लाउज से बाहर निकाल लिया…

नियति यह दृश्य देखकर मंत्रमुग्ध थी काश रतन अपनी आंखें खोल कर वह सुंदर दृश्य देख पाता। जिन चुचियों की कल्पना वह पिछले कई महीनों से कर रहा था वह उसकी आंखों के ठीक सामने थी परंतु उनकी मालकिन सुगना ने रतन को आंखें खोलने से रोक रखा था।

सुगना की कोमल हथेलियां उसकी चुचियों पर दबाव बढ़ाने लगी और दूध की धारा फूट पड़ी। कटोरी पर पढ़ने वाली धार सरररररर ... की मधुर आवाज पैदा कर रही थी जो रतन के कानों तक भी पहुंच रही थी।

रतन व्यग्र हो रहा था... कुछ दृश्य बंद आंखों से भी स्पष्ट दिखाई देते हैं वह अपने बंद आंखों के पीछे छुपी लालिमा में अपने हाथों में अपनी ही चूचियां पकड़े सुगना को देखने लगा।

सुगना के अथक प्रयास करने के बावजूद वह थोड़ा ही दूध बाहर निकाल पायी। जैसे-जैसे सुगना की हथेलियों का दबाव घट रहा था दूध की धारा धीमी पड़ती जा रही थी…

रतन ने हिम्मत जुटाई और बोला...

"तनी थपथपा ल ओकरा के(चुचियों को) तब दूध निकले में आसानी होगी"

रतन की बात ने सब कुछ खोल कर रख दिया था। सुगना ने उसकी आंखें बंद कर जिसे छिपाने की कोशिश की थी उसे रतन मैं बोलकर बयां कर दिया था हालांकि उसकी आंखें अब भी बंद थीं।

"ली तब आप ही करीं" सुगना अपनी चुचियों को दबाते दबाते थक चुकी थी उसने अनजाने में ही रतन को अपनी चूचियां छूने और उनसे दूध निकालने के लिए आमंत्रित कर दिया था।

रतन का दिल तेजी से धड़कने लगा आज वह पहली बार सुगना की चुचियों को छूने जा रहा था वह भी उसके आमंत्रण पर रतन के हाथ कांपने लगे और दिल की धड़कन तेज होती गई। सुगना ने उसके हाथ से कटोरी ले ली और उसके दोनों हाथों को आजाद कर दिया

"आंख अभियो मत खोलब" सुगना ने मुस्कुराते हुए कहा परंतु उसकी आवाज में नटखट पन स्पष्ट महसूस हो रहा था। सुगना ने स्वयं रतन की हथेलियों को अपनी चुचियों से सटा दिया..

रतन सुगना की फूली हुई गोल-गोल सूचियों को अपने दोनों हथेलियों से महसूस करने लगा अपनी उंगलियों से उसके निप्पल को छूते हुए चुचियों के आकार और कसाव का अंदाजा लगाने लगा। धीरे-धीरे उसकी हथेलियों का दबाव बढ़ता गया और चूँचियों से दुग्ध धारा एक बार पुनः फूट पड़ी जिसे सुगना ने कटोरी में रोक लिया।

रतन मदहोश हो रहा था। उसका लण्ड खड़ा हो चुका था जो बिस्तर पर बैठी हुई सुगना की आंखों के ठीक सामने था। परंतु सुगना की निगाह अभी उस पर नहीं पड़ी थी। वह अपना ध्यान कटोरी पर लगाए हुए थी।

रतन का लण्ड अपने आकार में आकर रतन को असहज कर रहा था। उसे दिशा देने की आवश्यकता थी रतन ने अपना एक हाथ कुछ पल के लिए हटाया और लण्ड को ऊपर की तरफ किया। सुगना की निगाहों में यह देख लिया परंतु सुगना ने कुछ ना कहा।

रतन भी अब सहज हो चला था वह उसकी दोनों चूचियों को थपथपातता कभी उन्हें सहलाता और कभी अपनी हथेलियों के दबाव से उन्हें दुग्ध धारा छोड़ने पर मजबूर कर देता।

इसी क्रम में रतन की हथेलियों ने अपना दबाव कुछ ज्यादा ही बढ़ा दिया और सुगना करा उठी

"आह...तनी धीरे से …….दुखाता"

सुगना कि यह कराह मादक थी। रतन भाव विभोर हो गया उसे अपनी गलती का एहसास हुआ और उसने अपनी आंखें खोल दी वह सुगना की चूँचियों को सहलाने लगा।

रतन ने एक झलक उन दुग्ध कलशों को देख लिया परंतु अपनी निगाह वह ज्यादा देर तक उन खूबसूरत चुचियों पर ना रख पाए वह सुगना के चेहरे को देखते हुए बोला

"माफ कर द गलती से जोर से दब गइल हा"

सुगना का चेहरा लाल हो गया था यह दर्द के कारण था या उत्तेजना के रतन के लिए यह समझना मुश्किल था।

"जाए दीं कवनो बात ना। अब हो गई गईल अब आप जायीं " सुगना ने अपनी साड़ी के आंचल से दोनों चुचियों को ढक लिया।

सुगना ने रतन के आंख खोलने का बुरा न माना था। वह मुस्कुराती हुई अपनी सूचियों को अपनी ब्लाउज में अंदर करने लगी।

"आपन ख्याल रखीह" रतन में जाते हुए कहा

रतन वापस अपने होटल के लिए निकल गया आज का दिन रतन के लिए बेहद अहम था…

रतन रह रह कर अपनी हथेलियों को चूम रहा था आज पहली बार सुगना ने उसे अपनाने का संकेत दिया था वह उसका कृतज्ञ था जिसने उसे माफ कर अपने उस अंग को छूने दिया था जिस पर या तो उसके बच्चों का अधिकार होता है या पति का।

सुगना की पुत्री मधु ने उन दोनों को करीब लाने में अहम भूमिका अदा कर दी थी। अगले कुछ दिनों तक रतन सुगना की चुचियों से दूध निकालता रहा। धीरे धीरे आंखों का बंद होना भी सुगना की आवश्यक शर्त न रही थी।

जैसे-जैसे सुगना और रतन खुलते गए चुचियों से दूध निकालने के दौरान रतन उनसे अठखेलियां करने लगा सुगना उसे काम पर ध्यान देने को कहती परंतु रतन सुगना की चूँचियों को कामुक तरीके से सहला कर उसे उत्तेजित करने का प्रयास करता। इस दौरान उसका लण्ड हमेशा खड़ा रहता।

आखिरकार एक दिन सुगना ने भी उसे छेड़ दिया।

उसने रतन की जांघों की जोड़ की तरफ इशारा करते हुए कहा

"दुधवा निकालत खानी इ महाराज काहे बेचैन हो जाले.."

रतन शर्मा गया परंतु उसमें अब हिम्मत आ चुकी थी उस ने मुस्कुराते हुए कहा..

"अइसन मक्खन मलाई जैसन चूची छुवला पर बुढ़वन के खड़ा हो जाए हम तो अभी नया बानी.".

"अच्छा चलीं बात मत बनाइ आपन काम करी"

"का करीं?"

"जवन कर तानी हां"

"साफ-साफ बोल…. ना"

" पागल मत बनी ई कुल बोलल थोड़ी जाला"

"एक बार बोल द हमरा खातिर"

"हम ना बोलब हमरा लाज लगाता"

रतन ने अपनी जगह बदल दी थी। वह सुगना के ठीक पीछे आकर खड़ा हो गया और उसकी दोनों चूचियों को दबा कर दूध निकाल रहा था। उसका खड़ा लण्ड सुनना की पीठ में सट रहा था। कभी वह नीचे झुक कर उसे सुगना के नितंबों से सटाने का प्रयास करता।

सुगना उसकी यह छेड़छाड़ समझ रही थी पर शांत थी। उसे भी अब यह अठखेलिया पसंद आने लगी थी। रतन अपना सर सुगना के कंधे पर रखकर अपने गाल सुगना के गाल से सटाने का प्रयास करता और उसकी गर्म सांसे सुगना के कोपलों से टकराती।

उत्तेजना दोनों पति पत्नी को अपने आगोश में ले रही थी। रतन ने मदहोश हो रही सुगना से एक बार फिर पूछा "बता द ना का करीं…"

"अब हमार चुंचीं मीसल छोड़ दीं और अपना होटल जाए के तैयारी करीं" सुगना ने बड़े प्यार से रतन के दोनों हाथों को अपनी चुचियों पर से हटा दिया और उन्हें ब्लाउज में बंद करते हुए कमरे से बाहर निकलने लगी। दरवाजे से निकलते समय उसने रतन को पलट कर देखा जो अभी भी सुगना के मुख से निकले चुंचीं शब्द की मधुरता में खोया हुआ उसे एकटक निहार रहा था।

नियति मुस्कुरा रही थी..रतन और सुगना करीब आ रहे थे।

उधर सोनू लाली के परिवार के साथ समय व्यतीत कर बच्चों को खुश करने का प्रयास करता और बच्चों की मां लाली अपने बच्चों के चेहरे पर मुस्कान देखकर स्वतः ही खुश हो जाती। सोनू का अपने परिवार के प्रति यह लगाव देखकर लाली अपने दिल और आत्मा से उसे धन्यवाद देती।

सुगना की पुत्री मधु 3 माह की होने वाली आने वाली पूर्णमासी को कुल देवता की पूजा होनी थी।

सरयू सिंह के खानदान में संतान उत्पत्ति होने पर अपने कुल देवता की पूजा करने विशेष प्रथा थी यह पूजा संतानोत्पत्ति के लगभग 3 माह पश्चात की जाती थी। पूजा की विशेष विधि थी और इसका उद्देश्य भी शायद विशेष था।

संतानोत्पत्ति के कुछ महीनों तक संतान के माता पिता का आपस में मिलना और संभोग करना अनुचित था। कुल देवता की पूजा करने के पश्चात उन्हें वापस एकाकार होने का अवसर प्राप्त होता।

सुगना मन ही मन सोचने लगी कि क्या वह इस पूजा में अपने पति रतन को शामिल करेगी? क्या पूजा के उपरांत वह अपने पति रतन को उसके साथ संभोग करने का अवसर देगी?

सुगना अपने पुराने दिनों को याद करने लगी जब सूरज के जन्म के 3 महीनों बाद उसे कुल देवता की पूजा करनी थी। उसका पति रतन उस समय उपस्थित न था। न तो सुगना के गर्भ धारण मैं रतन का योगदान था और नहीं अब सुगना की इस पूजा में उसकी उपयोगिता।

गांव के सभी मानिंद लोगों ने आपस में विचार-विमर्श कर यह निर्णय किया की यदि पति उपस्थित ना हो तो उसकी लाठी को साथ में रखकर कुल देवता की पूजा की जा सकती।

कजरी भी धर्म संकट में थी उसे पता था कुलदेवता की पूजा करने के पश्चात पति अपनी पत्नी को अपनी बाहों में उठा कर सीधा शयन कक्ष में ले जाता है और फिर अपनी पत्नी की योनि की पूजा करता और योनि को संतान प्राप्ति के लिए धन्यवाद देता और कई महीनों के अंतराल के बाद उसी दिन उसके साथ संभोग कर योनि को चरमोत्कर्ष प्रदान करता और वापस अपना गृहस्थ जीवन प्रारंभ करता।

कजरी ने तो गांव के बुजुर्ग लोगों की बात मानकर कुलदेवता की पूजन के लिए रतन की लाठी को मान्यता दे दी परंतु शयन कक्ष में होने वाली योनि पूजा कौन करेगा क्या कुंवर जी को ही यह पूजा करनी पड़ेगी? या सुगना को रतन की लाठी की मूठ से ही योनि स्खलित कर इस पूजा को पूर्ण करना होगा जैसे कि स्वयं उसने रतन के जन्म के बाद किया था।

(शायद पाठकों को याद हो रतन के पिता बिरजू जो आजकल विद्यानंद के नाम से जाने जाते थे कजरी को गर्भवती कर साधुओं की मंडली के साथ भाग गए थे उन्हें इस विशेष पूजा में बुला पाना असंभव था। कजरी ने भी अपने पति बिरजू उर्फ विद्यानंद की लाठी अपनी योनि से रगड़ कर बड़ी कठिनाई से उसे स्खलित किया था परंतु कजरी का वह अनुभव अच्छा नहीं रहा था उसने उसी दिन तय कर लिया था कि वह सरयू सिंह को अपने नजदीक आने का मौका देगी और अपनी स्वाभाविक काम इच्छा को पूरा करेगी।)

कजरी अपने मन में सुगना की पूजा का समापन सरयू सिंह से कराना चाहती थी। सच ही तो था.. जिसने सुगना को गर्भवती कर पुत्र रत्न से नवाजा था उसके द्वारा योनि पूजन कराना उचित ही था।

सरयू सिंह ने इस पूजा में उपस्थित रहने के लिए रतन से कई बार अनुरोध किया था परंतु वह मुंबई से आने को तैयार न था। अंततः परंपरा के निर्वहन के लिए सरयू सिंह ने इस पूजन की पूरी तैयारियां कर ली।

सलेमपुर गांव के सभी लोगों को पूजा के उपरांत होने वाले भोज में भारत में आमंत्रित किया गया। यह उत्सव परिवार के लिए बेहद सम्मान और मान प्रतिष्ठा बढ़ाने वाला होता था।

सुगना की अपनी सहेली लाली भी ईसी विशेष पूजा के लिए सलेमपुर आई हुई थी। उसके आश्चर्य का ठिकाना न रहा जब उसे पता चला कि यह पूजा सुगना बिना रतन भैया के करने जा रही है।

उसने रतन की लाठी की मूड को पकड़कर सुगना को छेड़ते हुए पूछा..

"त हमार रानी अपना ओखली में रतन भैया के मुसल की जगह हई लाठी डाली का"

"हट पागल कुछो बोलेले"

"रतन भैया काहे ना अइले हा आज के दिन के सब मर्द लोग इंतजार करेला"

"जाकर उनके से पूछ लीहे"

"त इनके के भेज दी का तोर बुर...के पूजाइयो हो जायी और इनको साध बता जायी?" लाली ने अपने पति राजेश की तरफ इशारा करते हुए कहा।

सुगना मुस्कुराने लगी…

तभी सरयू सिंह बाजार से वापस आए और आंगन में पहुंचते ही सुगना से बोले..

"इ ला आपन कपड़ा पूजा में पहने खातिर"

सुगना ने सरयू सिंह की आंखों की चमक देखकर अंदाजा लगा लिया। कि वह भी इस पूजा का बेसब्री से इंतजार कर रहे थे उसने झोला पकड़ लिया।

"दिखाओ ना कौन कपड़ा आइल बा?" लाली ने उत्सुकता से पूछा।

सुगना ने सरयू सिंह की आंखों की चमक देखकर अंदाजा लगा लिया था कि उसके बाबूजी ने निश्चित ही कुछ न कुछ शरारत की होगी विशेषकर उसके अंतरंग वस्त्रों को लेकर।

"दिखाओ ना का सोचे लगले?"

"जब काल पहनब तब देख लीहे"


"ए सुगना सलेमपुर कब चले के बा" लाली अपने पुत्र (जो दरअसल राजेश और सुगना का पुत्र था ) को लिए हुए सचमुच सुगना के पास आ रही थी।

सुगना अपनी मीठी यादों से बाहर आ गयी। यह एक महज संयोग था या दोनों सहेलियों की जांघों के बीच जागृति प्राकृतिक भूख दोनों ही उस पूजा को याद कर रही थी।

"काहे खातिर" सुगना ने लाली के भाव को समझ कर भी अनजान बनते हुए पूछा

लाली पास आ चुकी थी वह सुगना के बगल में बैठते हुए उसकी जांघों के बीच अपनी हथेलियां लेकर आई और बोली

"एकर पूजाई करावे"

दोनों सहेलियां हंसने लगी।

"अबकी बार काठ के मुसल के बदला में असली मुसल भेटाई" लाली, सुगना कि उस संभावित रात की कल्पना कर मन ही मन खुश हो रही थी। इस बार रतन उपस्थित था और सुगना की योनि पूजा करने को लालायित भी था।

सुगना ने लाली की हथेलियां अपने हाथ में ले ली और उसे प्यार से सहलाते हुए पूछा..

" एक बात कहीं "

"बोल ना"

"देख तोरा के सोनू से मिलावे वाला भी जीजा रहलन। अभी जिंदगी लंबा बा हमनी में दूसर बियाह ना हो सकेला लेकिन सोनुवा के अपनावले रहू जब तक ओकर ब्याह नईखे होत…"

सुगना ने लाली के मन की बात कह दी थी पिछले 2-3 महीनों में लाली की जिंदगी में आए दुख में भी अब ठहराव आ रहा था। दिन के 24 घंटों में खुशियां अपना अधिकार लगातार बढ़ा रही थीं और राजेश के जाने का गम धीरे-धीरे कमजोर पड़ता जा रहा था।

सोनू भी ज्यादातर समय लाली के घर पर ही देता। वह राजेश के कमरे में अपनी पढ़ाई करता और अपने खाली समय में बच्चों के साथ खेल कर उनका मन लगाए रखता। परंतु विधवा लाली से सेक्स की उम्मीद रखना सोनू को उचित प्रतीत ना होता दोनों के बीच जमी हुई बर्फ को किसी ना किसी को पिघलाना था।

"काहे चुप हो गइले कुछ बोलत नईखे?" सुगना ने लाली के कंधे को हिलाते हुए पूछा।

"उ आजकल दिनभर पढ़त रहेला जब टाइम मिलेला तब बचवन संग खेलेला"

"त तेहीं आगे बढ़ के ओकरा के खेला दे" सुगना ने हंसते हुए कहा और लाली के चेहरे पर शर्म की लाली दौड़ गई। जांघों के बीच एक अजब सी सनसनी हुई जो चुचियों के निप्पलओ तक पहुंची। तभी राजेश और सुगना के पुत्र जो इस समय लाली की गोद में था ने लाली की चूचियां पकड़ने की कोशिश की और लाली की चूचियां बाहर आ गई।

सुगना ने मधु को लाली की गोद में देते हुए कहा

"ले तनी एकरो के दूध पिला दे हमार दूध धरे में दिक्कत कर तिया"

मधु ने लाली की दूसरी चूची बड़े प्रेम से पकड़ ली और चूस चूस कर तृप्त होने लगी। अपनी माता का दूध पीने का यह सुख मधु ही जानती होगी लाली ने भी मधु के होठों और मसूड़ों का मासूम स्पर्स महसूस किया और भावविभोर हो गयी"

नियति सलेमपुर में सुगना की पूजा की तैयारियों में लग गई। काश कि दोनों सहेलियां इस पूजा में शामिल हो पाती? एक सुहागन एक विधवा परंतु दोनों में कुछ समानता अवश्य थी।

एक तरफ सुगना का वास्तविक सुहाग उजड़ चुका था। उसके बाबूजी सरयू सिंह जिसके साथ उसने अपने वैवाहिक जीवन के सुखद वर्ष बिताए थे वह अचानक ही वैराग्य धारण कर चुके थे। सुगना को यह एक विशेष प्रकार का वैधव्य ही प्रतीत हो रहा था। यह अलग बात थी कि प उस में कामेच्छा जगाने वाला उसका पति रतन आ चुका था और वह सुगना की योनि पूजा करने को लालायित भी था।

कमोबेश यही स्थिति लाली की भी थी उसका पति राजेश अपना शरीर छोड़ चुका था और अपने स्थान पर सोनू को लाली से मिलाकर उसकी कामेच्छा पूरी करने के लिए छोड़ गया था।

नियति अपनी उधेड़बुन में लगी लाली को तृप्त करने का संयोग जुटाने लगी… सुगना रतन बेसब्री से उस दिन का इंतजार करने लगे...

शेष अगले भाग में...

 

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भाग -67

सुगना अंततः कटोरी ले आई और अपनी चुचियों से दूध कटोरी में निकालने का प्रयास करने लगी.. परंतु यह कार्य अकेले संभव न था एक हाथ से वह कटोरी पकड़ती और दूसरे हाथ से अपनी मोटी मोटी चूचियों से दूध निकालने का प्रयास करती लाख जतन करने के बाद भी सुगना दूध की कुछ बूंदे ही कटोरी में निकाल पाई।

अपनी पुत्री को भूखा रखना सुगना को कतई गवारा न था जिस पुत्री का जन्म इतने मन्नतों और प्रार्थनाओं के बाद हुआ था उसे भूख से तड़पाना सुगना को कतई गवारा न था। उसने अपनी लज्जा को ताक पर रख रतन से मदद लेने की सोची…

अब आगे..


"ए जी थोड़ा मदद कर दीं देर त ना होई?"

सुगना की मधुर आवाज रतन के कानों तक पड़ी जो अब घर से बाहर निकलने के लिए लगभग तैयार था।

रतन सुगना की बात कभी टाल नहीं सकता था। दुनिया में यदि कोई रतन के लिए अहम था तो वह थी सुगना। उसकी नौकरी चाकरी इतनी अहम न थी कि वह अपनी सुगना की बात को नजरअंदाज करता। उसने सहर्ष कहा

"हां बतावा ना का करे के बा"

"हई तनी कटोरी पकड़ी और आपन आंख मत खोलब"

सुगना ने अपनी झील जैसी आंखें नचाते हुए कहा..

कुछ निषेधात्मक वाक्यों को कहने का अंदाज उनकी निषेधात्मकता को कम कर देता है।


सुगना ने राजेश को आँखें खोलने के लिए तो मना कर दिया था परंतु शायद जो उसके उद्बोधन में था वो उसके मन में नहीं।

रतन ने अपनी आंखें कुछ ज्यादा ही मीच लीं। उसने शायद सुगना को आश्वस्त करने की कोशिश की और सुगना द्वारा दी गई कटोरी को पकड़ लिया सुगना ने उसके हाथों को एक नियत जगह पर रहने का इशारा किया और अपनी एक चूँची को ब्लाउज से बाहर निकाल लिया…

नियति यह दृश्य देखकर मंत्रमुग्ध थी काश रतन अपनी आंखें खोल कर वह सुंदर दृश्य देख पाता। जिन चुचियों की कल्पना वह पिछले कई महीनों से कर रहा था वह उसकी आंखों के ठीक सामने थी परंतु उनकी मालकिन सुगना ने रतन को आंखें खोलने से रोक रखा था।

सुगना की कोमल हथेलियां उसकी चुचियों पर दबाव बढ़ाने लगी और दूध की धारा फूट पड़ी। कटोरी पर पढ़ने वाली धार सरररररर ... की मधुर आवाज पैदा कर रही थी जो रतन के कानों तक भी पहुंच रही थी।

रतन व्यग्र हो रहा था... कुछ दृश्य बंद आंखों से भी स्पष्ट दिखाई देते हैं वह अपने बंद आंखों के पीछे छुपी लालिमा में अपने हाथों में अपनी ही चूचियां पकड़े सुगना को देखने लगा।


सुगना के अथक प्रयास करने के बावजूद वह थोड़ा ही दूध बाहर निकाल पायी। जैसे-जैसे सुगना की हथेलियों का दबाव घट रहा था दूध की धारा धीमी पड़ती जा रही थी…

रतन ने हिम्मत जुटाई और बोला...

"तनी थपथपा ल ओकरा के(चुचियों को) तब दूध निकले में आसानी होगी"

रतन की बात ने सब कुछ खोल कर रख दिया था। सुगना ने उसकी आंखें बंद कर जिसे छिपाने की कोशिश की थी उसे रतन मैं बोलकर बयां कर दिया था हालांकि उसकी आंखें अब भी बंद थीं।

"ली तब आप ही करीं" सुगना अपनी चुचियों को दबाते दबाते थक चुकी थी उसने अनजाने में ही रतन को अपनी चूचियां छूने और उनसे दूध निकालने के लिए आमंत्रित कर दिया था।

रतन का दिल तेजी से धड़कने लगा आज वह पहली बार सुगना की चुचियों को छूने जा रहा था वह भी उसके आमंत्रण पर रतन के हाथ कांपने लगे और दिल की धड़कन तेज होती गई। सुगना ने उसके हाथ से कटोरी ले ली और उसके दोनों हाथों को आजाद कर दिया

"आंख अभियो मत खोलब" सुगना ने मुस्कुराते हुए कहा परंतु उसकी आवाज में नटखट पन स्पष्ट महसूस हो रहा था। सुगना ने स्वयं रतन की हथेलियों को अपनी चुचियों से सटा दिया..

रतन सुगना की फूली हुई गोल-गोल सूचियों को अपने दोनों हथेलियों से महसूस करने लगा अपनी उंगलियों से उसके निप्पल को छूते हुए चुचियों के आकार और कसाव का अंदाजा लगाने लगा। धीरे-धीरे उसकी हथेलियों का दबाव बढ़ता गया और चूँचियों से दुग्ध धारा एक बार पुनः फूट पड़ी जिसे सुगना ने कटोरी में रोक लिया।

रतन मदहोश हो रहा था। उसका लण्ड खड़ा हो चुका था जो बिस्तर पर बैठी हुई सुगना की आंखों के ठीक सामने था। परंतु सुगना की निगाह अभी उस पर नहीं पड़ी थी। वह अपना ध्यान कटोरी पर लगाए हुए थी।

रतन का लण्ड अपने आकार में आकर रतन को असहज कर रहा था। उसे दिशा देने की आवश्यकता थी रतन ने अपना एक हाथ कुछ पल के लिए हटाया और लण्ड को ऊपर की तरफ किया। सुगना की निगाहों में यह देख लिया परंतु सुगना ने कुछ ना कहा।


रतन भी अब सहज हो चला था वह उसकी दोनों चूचियों को थपथपातता कभी उन्हें सहलाता और कभी अपनी हथेलियों के दबाव से उन्हें दुग्ध धारा छोड़ने पर मजबूर कर देता।

इसी क्रम में रतन की हथेलियों ने अपना दबाव कुछ ज्यादा ही बढ़ा दिया और सुगना करा उठी

"आह...तनी धीरे से …….दुखाता"

सुगना कि यह कराह मादक थी। रतन भाव विभोर हो गया उसे अपनी गलती का एहसास हुआ और उसने अपनी आंखें खोल दी वह सुगना की चूँचियों को सहलाने लगा।

रतन ने एक झलक उन दुग्ध कलशों को देख लिया परंतु अपनी निगाह वह ज्यादा देर तक उन खूबसूरत चुचियों पर ना रख पाए वह सुगना के चेहरे को देखते हुए बोला

"माफ कर द गलती से जोर से दब गइल हा"

सुगना का चेहरा लाल हो गया था यह दर्द के कारण था या उत्तेजना के रतन के लिए यह समझना मुश्किल था।

"जाए दीं कवनो बात ना। अब हो गई गईल अब आप जायीं " सुगना ने अपनी साड़ी के आंचल से दोनों चुचियों को ढक लिया।

सुगना ने रतन के आंख खोलने का बुरा न माना था। वह मुस्कुराती हुई अपनी सूचियों को अपनी ब्लाउज में अंदर करने लगी।

"आपन ख्याल रखीह" रतन में जाते हुए कहा

रतन वापस अपने होटल के लिए निकल गया आज का दिन रतन के लिए बेहद अहम था…

रतन रह रह कर अपनी हथेलियों को चूम रहा था आज पहली बार सुगना ने उसे अपनाने का संकेत दिया था वह उसका कृतज्ञ था जिसने उसे माफ कर अपने उस अंग को छूने दिया था जिस पर या तो उसके बच्चों का अधिकार होता है या पति का।

सुगना की पुत्री मधु ने उन दोनों को करीब लाने में अहम भूमिका अदा कर दी थी। अगले कुछ दिनों तक रतन सुगना की चुचियों से दूध निकालता रहा। धीरे धीरे आंखों का बंद होना भी सुगना की आवश्यक शर्त न रही थी।

जैसे-जैसे सुगना और रतन खुलते गए चुचियों से दूध निकालने के दौरान रतन उनसे अठखेलियां करने लगा सुगना उसे काम पर ध्यान देने को कहती परंतु रतन सुगना की चूँचियों को कामुक तरीके से सहला कर उसे उत्तेजित करने का प्रयास करता। इस दौरान उसका लण्ड हमेशा खड़ा रहता।

आखिरकार एक दिन सुगना ने भी उसे छेड़ दिया।

उसने रतन की जांघों की जोड़ की तरफ इशारा करते हुए कहा

"दुधवा निकालत खानी इ महाराज काहे बेचैन हो जाले.."

रतन शर्मा गया परंतु उसमें अब हिम्मत आ चुकी थी उस ने मुस्कुराते हुए कहा..

"अइसन मक्खन मलाई जैसन चूची छुवला पर बुढ़वन के खड़ा हो जाए हम तो अभी नया बानी.".

"अच्छा चलीं बात मत बनाइ आपन काम करी"

"का करीं?"

"जवन कर तानी हां"

"साफ-साफ बोल…. ना"

" पागल मत बनी ई कुल बोलल थोड़ी जाला"

"एक बार बोल द हमरा खातिर"

"हम ना बोलब हमरा लाज लगाता"

रतन ने अपनी जगह बदल दी थी। वह सुगना के ठीक पीछे आकर खड़ा हो गया और उसकी दोनों चूचियों को दबा कर दूध निकाल रहा था। उसका खड़ा लण्ड सुनना की पीठ में सट रहा था। कभी वह नीचे झुक कर उसे सुगना के नितंबों से सटाने का प्रयास करता।


सुगना उसकी यह छेड़छाड़ समझ रही थी पर शांत थी। उसे भी अब यह अठखेलिया पसंद आने लगी थी। रतन अपना सर सुगना के कंधे पर रखकर अपने गाल सुगना के गाल से सटाने का प्रयास करता और उसकी गर्म सांसे सुगना के कोपलों से टकराती।

उत्तेजना दोनों पति पत्नी को अपने आगोश में ले रही थी। रतन ने मदहोश हो रही सुगना से एक बार फिर पूछा "बता द ना का करीं…"

"अब हमार चुंचीं मीसल छोड़ दीं और अपना होटल जाए के तैयारी करीं" सुगना ने बड़े प्यार से रतन के दोनों हाथों को अपनी चुचियों पर से हटा दिया और उन्हें ब्लाउज में बंद करते हुए कमरे से बाहर निकलने लगी। दरवाजे से निकलते समय उसने रतन को पलट कर देखा जो अभी भी सुगना के मुख से निकले चुंचीं शब्द की मधुरता में खोया हुआ उसे एकटक निहार रहा था।


नियति मुस्कुरा रही थी..रतन और सुगना करीब आ रहे थे।

उधर सोनू लाली के परिवार के साथ समय व्यतीत कर बच्चों को खुश करने का प्रयास करता और बच्चों की मां लाली अपने बच्चों के चेहरे पर मुस्कान देखकर स्वतः ही खुश हो जाती। सोनू का अपने परिवार के प्रति यह लगाव देखकर लाली अपने दिल और आत्मा से उसे धन्यवाद देती।

सुगना की पुत्री मधु 3 माह की होने वाली आने वाली पूर्णमासी को कुल देवता की पूजा होनी थी।

सरयू सिंह के खानदान में संतान उत्पत्ति होने पर अपने कुल देवता की पूजा करने विशेष प्रथा थी यह पूजा संतानोत्पत्ति के लगभग 3 माह पश्चात की जाती थी। पूजा की विशेष विधि थी और इसका उद्देश्य भी शायद विशेष था।

संतानोत्पत्ति के कुछ महीनों तक संतान के माता पिता का आपस में मिलना और संभोग करना अनुचित था। कुल देवता की पूजा करने के पश्चात उन्हें वापस एकाकार होने का अवसर प्राप्त होता।

सुगना मन ही मन सोचने लगी कि क्या वह इस पूजा में अपने पति रतन को शामिल करेगी? क्या पूजा के उपरांत वह अपने पति रतन को उसके साथ संभोग करने का अवसर देगी?

सुगना अपने पुराने दिनों को याद करने लगी जब सूरज के जन्म के 3 महीनों बाद उसे कुल देवता की पूजा करनी थी। उसका पति रतन उस समय उपस्थित न था। न तो सुगना के गर्भ धारण मैं रतन का योगदान था और नहीं अब सुगना की इस पूजा में उसकी उपयोगिता।


गांव के सभी मानिंद लोगों ने आपस में विचार-विमर्श कर यह निर्णय किया की यदि पति उपस्थित ना हो तो उसकी लाठी को साथ में रखकर कुल देवता की पूजा की जा सकती।

कजरी भी धर्म संकट में थी उसे पता था कुलदेवता की पूजा करने के पश्चात पति अपनी पत्नी को अपनी बाहों में उठा कर सीधा शयन कक्ष में ले जाता है और फिर अपनी पत्नी की योनि की पूजा करता और योनि को संतान प्राप्ति के लिए धन्यवाद देता और कई महीनों के अंतराल के बाद उसी दिन उसके साथ संभोग कर योनि को चरमोत्कर्ष प्रदान करता और वापस अपना गृहस्थ जीवन प्रारंभ करता।

कजरी ने तो गांव के बुजुर्ग लोगों की बात मानकर कुलदेवता की पूजन के लिए रतन की लाठी को मान्यता दे दी परंतु शयन कक्ष में होने वाली योनि पूजा कौन करेगा क्या कुंवर जी को ही यह पूजा करनी पड़ेगी? या सुगना को रतन की लाठी की मूठ से ही योनि स्खलित कर इस पूजा को पूर्ण करना होगा जैसे कि स्वयं उसने रतन के जन्म के बाद किया था।

(शायद पाठकों को याद हो रतन के पिता बिरजू जो आजकल विद्यानंद के नाम से जाने जाते थे कजरी को गर्भवती कर साधुओं की मंडली के साथ भाग गए थे उन्हें इस विशेष पूजा में बुला पाना असंभव था। कजरी ने भी अपने पति बिरजू उर्फ विद्यानंद की लाठी अपनी योनि से रगड़ कर बड़ी कठिनाई से उसे स्खलित किया था परंतु कजरी का वह अनुभव अच्छा नहीं रहा था उसने उसी दिन तय कर लिया था कि वह सरयू सिंह को अपने नजदीक आने का मौका देगी और अपनी स्वाभाविक काम इच्छा को पूरा करेगी।)

कजरी अपने मन में सुगना की पूजा का समापन सरयू सिंह से कराना चाहती थी। सच ही तो था.. जिसने सुगना को गर्भवती कर पुत्र रत्न से नवाजा था उसके द्वारा योनि पूजन कराना उचित ही था।

सरयू सिंह ने इस पूजा में उपस्थित रहने के लिए रतन से कई बार अनुरोध किया था परंतु वह मुंबई से आने को तैयार न था। अंततः परंपरा के निर्वहन के लिए सरयू सिंह ने इस पूजन की पूरी तैयारियां कर ली।


सलेमपुर गांव के सभी लोगों को पूजा के उपरांत होने वाले भोज में भारत में आमंत्रित किया गया। यह उत्सव परिवार के लिए बेहद सम्मान और मान प्रतिष्ठा बढ़ाने वाला होता था।

सुगना की अपनी सहेली लाली भी ईसी विशेष पूजा के लिए सलेमपुर आई हुई थी। उसके आश्चर्य का ठिकाना न रहा जब उसे पता चला कि यह पूजा सुगना बिना रतन भैया के करने जा रही है।

उसने रतन की लाठी की मूड को पकड़कर सुगना को छेड़ते हुए पूछा..

"त हमार रानी अपना ओखली में रतन भैया के मुसल की जगह हई लाठी डाली का"

"हट पागल कुछो बोलेले"

"रतन भैया काहे ना अइले हा आज के दिन के सब मर्द लोग इंतजार करेला"

"जाकर उनके से पूछ लीहे"

"त इनके के भेज दी का तोर बुर...के पूजाइयो हो जायी और इनको साध बता जायी?" लाली ने अपने पति राजेश की तरफ इशारा करते हुए कहा।

सुगना मुस्कुराने लगी…

तभी सरयू सिंह बाजार से वापस आए और आंगन में पहुंचते ही सुगना से बोले..

"इ ला आपन कपड़ा पूजा में पहने खातिर"

सुगना ने सरयू सिंह की आंखों की चमक देखकर अंदाजा लगा लिया। कि वह भी इस पूजा का बेसब्री से इंतजार कर रहे थे उसने झोला पकड़ लिया।

"दिखाओ ना कौन कपड़ा आइल बा?" लाली ने उत्सुकता से पूछा।

सुगना ने सरयू सिंह की आंखों की चमक देखकर अंदाजा लगा लिया था कि उसके बाबूजी ने निश्चित ही कुछ न कुछ शरारत की होगी विशेषकर उसके अंतरंग वस्त्रों को लेकर।

"दिखाओ ना का सोचे लगले?"

"जब काल पहनब तब देख लीहे"


"ए सुगना सलेमपुर कब चले के बा" लाली अपने पुत्र (जो दरअसल राजेश और सुगना का पुत्र था ) को लिए हुए सचमुच सुगना के पास आ रही थी।

सुगना अपनी मीठी यादों से बाहर आ गयी। यह एक महज संयोग था या दोनों सहेलियों की जांघों के बीच जागृति प्राकृतिक भूख दोनों ही उस पूजा को याद कर रही थी।

"काहे खातिर" सुगना ने लाली के भाव को समझ कर भी अनजान बनते हुए पूछा

लाली पास आ चुकी थी वह सुगना के बगल में बैठते हुए उसकी जांघों के बीच अपनी हथेलियां लेकर आई और बोली


"एकर पूजाई करावे"

दोनों सहेलियां हंसने लगी।

"अबकी बार काठ के मुसल के बदला में असली मुसल भेटाई" लाली, सुगना कि उस संभावित रात की कल्पना कर मन ही मन खुश हो रही थी। इस बार रतन उपस्थित था और सुगना की योनि पूजा करने को लालायित भी था।

सुगना ने लाली की हथेलियां अपने हाथ में ले ली और उसे प्यार से सहलाते हुए पूछा..

" एक बात कहीं "

"बोल ना"

"देख तोरा के सोनू से मिलावे वाला भी जीजा रहलन। अभी जिंदगी लंबा बा हमनी में दूसर बियाह ना हो सकेला लेकिन सोनुवा के अपनावले रहू जब तक ओकर ब्याह नईखे होत…"

सुगना ने लाली के मन की बात कह दी थी पिछले 2-3 महीनों में लाली की जिंदगी में आए दुख में भी अब ठहराव आ रहा था। दिन के 24 घंटों में खुशियां अपना अधिकार लगातार बढ़ा रही थीं और राजेश के जाने का गम धीरे-धीरे कमजोर पड़ता जा रहा था।


सोनू भी ज्यादातर समय लाली के घर पर ही देता। वह राजेश के कमरे में अपनी पढ़ाई करता और अपने खाली समय में बच्चों के साथ खेल कर उनका मन लगाए रखता। परंतु विधवा लाली से सेक्स की उम्मीद रखना सोनू को उचित प्रतीत ना होता दोनों के बीच जमी हुई बर्फ को किसी ना किसी को पिघलाना था।

"काहे चुप हो गइले कुछ बोलत नईखे?" सुगना ने लाली के कंधे को हिलाते हुए पूछा।

"उ आजकल दिनभर पढ़त रहेला जब टाइम मिलेला तब बचवन संग खेलेला"

"त तेहीं आगे बढ़ के ओकरा के खेला दे" सुगना ने हंसते हुए कहा और लाली के चेहरे पर शर्म की लाली दौड़ गई। जांघों के बीच एक अजब सी सनसनी हुई जो चुचियों के निप्पलओ तक पहुंची। तभी राजेश और सुगना के पुत्र जो इस समय लाली की गोद में था ने लाली की चूचियां पकड़ने की कोशिश की और लाली की चूचियां बाहर आ गई।


सुगना ने मधु को लाली की गोद में देते हुए कहा

"ले तनी एकरो के दूध पिला दे हमार दूध धरे में दिक्कत कर तिया"

मधु ने लाली की दूसरी चूची बड़े प्रेम से पकड़ ली और चूस चूस कर तृप्त होने लगी। अपनी माता का दूध पीने का यह सुख मधु ही जानती होगी लाली ने भी मधु के होठों और मसूड़ों का मासूम स्पर्स महसूस किया और भावविभोर हो गयी"


नियति सलेमपुर में सुगना की पूजा की तैयारियों में लग गई। काश कि दोनों सहेलियां इस पूजा में शामिल हो पाती? एक सुहागन एक विधवा परंतु दोनों में कुछ समानता अवश्य थी।

एक तरफ सुगना का वास्तविक सुहाग उजड़ चुका था। उसके बाबूजी सरयू सिंह जिसके साथ उसने अपने वैवाहिक जीवन के सुखद वर्ष बिताए थे वह अचानक ही वैराग्य धारण कर चुके थे। सुगना को यह एक विशेष प्रकार का वैधव्य ही प्रतीत हो रहा था। यह अलग बात थी कि प उस में कामेच्छा जगाने वाला उसका पति रतन आ चुका था और वह सुगना की योनि पूजा करने को लालायित भी था।

कमोबेश यही स्थिति लाली की भी थी उसका पति राजेश अपना शरीर छोड़ चुका था और अपने स्थान पर सोनू को लाली से मिलाकर उसकी कामेच्छा पूरी करने के लिए छोड़ गया था।

नियति अपनी उधेड़बुन में लगी लाली को तृप्त करने का संयोग जुटाने लगी… सुगना रतन बेसब्री से उस दिन का इंतजार करने लगे...

शेष अगले भाग में...
हमेशा की तरह बेहतरीन

भविष्य की अनंत संभावना को समेटे हुआ शानदार अपडेट
 

Lovely Anand

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हमेशा की तरह बेहतरीन

भविष्य की अनंत संभावना को समेटे हुआ शानदार अपडेट
कहानी के इस पटल पर आपका स्वागत है आपकी कमेंट को देखकर ऐसा लगता है कि आप यह कहानी शुरू से पढ़ रहे हैं मुझे अच्छा लगा इसी तरह अपनी प्रतिक्रियाएं साझा करते रहे मेरे लिए यह पारितोषिक से कम नहीं है
 

Lovely Anand

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नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं, ये साल आपके और आपके परिवार के लिए सुख, शांति और समृद्धि लेकर आये यही आशा है। :)
आपकी प्रतिक्रिया देखकर ऐसा महसूस हुआ जैसे आप भी इस कहानी के पाठक है कहानी पर अपनी राय और अपेक्षाएं बता कर कहानी से अपने जुड़ाव का संकेत दें जुड़े रहे
 

Royal boy034

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भाग -67

सुगना अंततः कटोरी ले आई और अपनी चुचियों से दूध कटोरी में निकालने का प्रयास करने लगी.. परंतु यह कार्य अकेले संभव न था एक हाथ से वह कटोरी पकड़ती और दूसरे हाथ से अपनी मोटी मोटी चूचियों से दूध निकालने का प्रयास करती लाख जतन करने के बाद भी सुगना दूध की कुछ बूंदे ही कटोरी में निकाल पाई।

अपनी पुत्री को भूखा रखना सुगना को कतई गवारा न था जिस पुत्री का जन्म इतने मन्नतों और प्रार्थनाओं के बाद हुआ था उसे भूख से तड़पाना सुगना को कतई गवारा न था। उसने अपनी लज्जा को ताक पर रख रतन से मदद लेने की सोची…

अब आगे..

"ए जी थोड़ा मदद कर दीं देर त ना होई?"

सुगना की मधुर आवाज रतन के कानों तक पड़ी जो अब घर से बाहर निकलने के लिए लगभग तैयार था।

रतन सुगना की बात कभी टाल नहीं सकता था। दुनिया में यदि कोई रतन के लिए अहम था तो वह थी सुगना। उसकी नौकरी चाकरी इतनी अहम न थी कि वह अपनी सुगना की बात को नजरअंदाज करता। उसने सहर्ष कहा

"हां बतावा ना का करे के बा"

"हई तनी कटोरी पकड़ी और आपन आंख मत खोलब"

सुगना ने अपनी झील जैसी आंखें नचाते हुए कहा..

कुछ निषेधात्मक वाक्यों को कहने का अंदाज उनकी निषेधात्मकता को कम कर देता है।

सुगना ने राजेश को आँखें खोलने के लिए तो मना कर दिया था परंतु शायद जो उसके उद्बोधन में था वो उसके मन में नहीं।

रतन ने अपनी आंखें कुछ ज्यादा ही मीच लीं। उसने शायद सुगना को आश्वस्त करने की कोशिश की और सुगना द्वारा दी गई कटोरी को पकड़ लिया सुगना ने उसके हाथों को एक नियत जगह पर रहने का इशारा किया और अपनी एक चूँची को ब्लाउज से बाहर निकाल लिया…

नियति यह दृश्य देखकर मंत्रमुग्ध थी काश रतन अपनी आंखें खोल कर वह सुंदर दृश्य देख पाता। जिन चुचियों की कल्पना वह पिछले कई महीनों से कर रहा था वह उसकी आंखों के ठीक सामने थी परंतु उनकी मालकिन सुगना ने रतन को आंखें खोलने से रोक रखा था।

सुगना की कोमल हथेलियां उसकी चुचियों पर दबाव बढ़ाने लगी और दूध की धारा फूट पड़ी। कटोरी पर पढ़ने वाली धार सरररररर ... की मधुर आवाज पैदा कर रही थी जो रतन के कानों तक भी पहुंच रही थी।

रतन व्यग्र हो रहा था... कुछ दृश्य बंद आंखों से भी स्पष्ट दिखाई देते हैं वह अपने बंद आंखों के पीछे छुपी लालिमा में अपने हाथों में अपनी ही चूचियां पकड़े सुगना को देखने लगा।

सुगना के अथक प्रयास करने के बावजूद वह थोड़ा ही दूध बाहर निकाल पायी। जैसे-जैसे सुगना की हथेलियों का दबाव घट रहा था दूध की धारा धीमी पड़ती जा रही थी…

रतन ने हिम्मत जुटाई और बोला...

"तनी थपथपा ल ओकरा के(चुचियों को) तब दूध निकले में आसानी होगी"

रतन की बात ने सब कुछ खोल कर रख दिया था। सुगना ने उसकी आंखें बंद कर जिसे छिपाने की कोशिश की थी उसे रतन मैं बोलकर बयां कर दिया था हालांकि उसकी आंखें अब भी बंद थीं।

"ली तब आप ही करीं" सुगना अपनी चुचियों को दबाते दबाते थक चुकी थी उसने अनजाने में ही रतन को अपनी चूचियां छूने और उनसे दूध निकालने के लिए आमंत्रित कर दिया था।

रतन का दिल तेजी से धड़कने लगा आज वह पहली बार सुगना की चुचियों को छूने जा रहा था वह भी उसके आमंत्रण पर रतन के हाथ कांपने लगे और दिल की धड़कन तेज होती गई। सुगना ने उसके हाथ से कटोरी ले ली और उसके दोनों हाथों को आजाद कर दिया

"आंख अभियो मत खोलब" सुगना ने मुस्कुराते हुए कहा परंतु उसकी आवाज में नटखट पन स्पष्ट महसूस हो रहा था। सुगना ने स्वयं रतन की हथेलियों को अपनी चुचियों से सटा दिया..

रतन सुगना की फूली हुई गोल-गोल सूचियों को अपने दोनों हथेलियों से महसूस करने लगा अपनी उंगलियों से उसके निप्पल को छूते हुए चुचियों के आकार और कसाव का अंदाजा लगाने लगा। धीरे-धीरे उसकी हथेलियों का दबाव बढ़ता गया और चूँचियों से दुग्ध धारा एक बार पुनः फूट पड़ी जिसे सुगना ने कटोरी में रोक लिया।

रतन मदहोश हो रहा था। उसका लण्ड खड़ा हो चुका था जो बिस्तर पर बैठी हुई सुगना की आंखों के ठीक सामने था। परंतु सुगना की निगाह अभी उस पर नहीं पड़ी थी। वह अपना ध्यान कटोरी पर लगाए हुए थी।

रतन का लण्ड अपने आकार में आकर रतन को असहज कर रहा था। उसे दिशा देने की आवश्यकता थी रतन ने अपना एक हाथ कुछ पल के लिए हटाया और लण्ड को ऊपर की तरफ किया। सुगना की निगाहों में यह देख लिया परंतु सुगना ने कुछ ना कहा।

रतन भी अब सहज हो चला था वह उसकी दोनों चूचियों को थपथपातता कभी उन्हें सहलाता और कभी अपनी हथेलियों के दबाव से उन्हें दुग्ध धारा छोड़ने पर मजबूर कर देता।

इसी क्रम में रतन की हथेलियों ने अपना दबाव कुछ ज्यादा ही बढ़ा दिया और सुगना करा उठी

"आह...तनी धीरे से …….दुखाता"

सुगना कि यह कराह मादक थी। रतन भाव विभोर हो गया उसे अपनी गलती का एहसास हुआ और उसने अपनी आंखें खोल दी वह सुगना की चूँचियों को सहलाने लगा।

रतन ने एक झलक उन दुग्ध कलशों को देख लिया परंतु अपनी निगाह वह ज्यादा देर तक उन खूबसूरत चुचियों पर ना रख पाए वह सुगना के चेहरे को देखते हुए बोला

"माफ कर द गलती से जोर से दब गइल हा"

सुगना का चेहरा लाल हो गया था यह दर्द के कारण था या उत्तेजना के रतन के लिए यह समझना मुश्किल था।

"जाए दीं कवनो बात ना। अब हो गई गईल अब आप जायीं " सुगना ने अपनी साड़ी के आंचल से दोनों चुचियों को ढक लिया।

सुगना ने रतन के आंख खोलने का बुरा न माना था। वह मुस्कुराती हुई अपनी सूचियों को अपनी ब्लाउज में अंदर करने लगी।

"आपन ख्याल रखीह" रतन में जाते हुए कहा

रतन वापस अपने होटल के लिए निकल गया आज का दिन रतन के लिए बेहद अहम था…

रतन रह रह कर अपनी हथेलियों को चूम रहा था आज पहली बार सुगना ने उसे अपनाने का संकेत दिया था वह उसका कृतज्ञ था जिसने उसे माफ कर अपने उस अंग को छूने दिया था जिस पर या तो उसके बच्चों का अधिकार होता है या पति का।

सुगना की पुत्री मधु ने उन दोनों को करीब लाने में अहम भूमिका अदा कर दी थी। अगले कुछ दिनों तक रतन सुगना की चुचियों से दूध निकालता रहा। धीरे धीरे आंखों का बंद होना भी सुगना की आवश्यक शर्त न रही थी।

जैसे-जैसे सुगना और रतन खुलते गए चुचियों से दूध निकालने के दौरान रतन उनसे अठखेलियां करने लगा सुगना उसे काम पर ध्यान देने को कहती परंतु रतन सुगना की चूँचियों को कामुक तरीके से सहला कर उसे उत्तेजित करने का प्रयास करता। इस दौरान उसका लण्ड हमेशा खड़ा रहता।

आखिरकार एक दिन सुगना ने भी उसे छेड़ दिया।

उसने रतन की जांघों की जोड़ की तरफ इशारा करते हुए कहा

"दुधवा निकालत खानी इ महाराज काहे बेचैन हो जाले.."

रतन शर्मा गया परंतु उसमें अब हिम्मत आ चुकी थी उस ने मुस्कुराते हुए कहा..

"अइसन मक्खन मलाई जैसन चूची छुवला पर बुढ़वन के खड़ा हो जाए हम तो अभी नया बानी.".

"अच्छा चलीं बात मत बनाइ आपन काम करी"

"का करीं?"

"जवन कर तानी हां"

"साफ-साफ बोल…. ना"

" पागल मत बनी ई कुल बोलल थोड़ी जाला"

"एक बार बोल द हमरा खातिर"

"हम ना बोलब हमरा लाज लगाता"

रतन ने अपनी जगह बदल दी थी। वह सुगना के ठीक पीछे आकर खड़ा हो गया और उसकी दोनों चूचियों को दबा कर दूध निकाल रहा था। उसका खड़ा लण्ड सुनना की पीठ में सट रहा था। कभी वह नीचे झुक कर उसे सुगना के नितंबों से सटाने का प्रयास करता।

सुगना उसकी यह छेड़छाड़ समझ रही थी पर शांत थी। उसे भी अब यह अठखेलिया पसंद आने लगी थी। रतन अपना सर सुगना के कंधे पर रखकर अपने गाल सुगना के गाल से सटाने का प्रयास करता और उसकी गर्म सांसे सुगना के कोपलों से टकराती।

उत्तेजना दोनों पति पत्नी को अपने आगोश में ले रही थी। रतन ने मदहोश हो रही सुगना से एक बार फिर पूछा "बता द ना का करीं…"

"अब हमार चुंचीं मीसल छोड़ दीं और अपना होटल जाए के तैयारी करीं" सुगना ने बड़े प्यार से रतन के दोनों हाथों को अपनी चुचियों पर से हटा दिया और उन्हें ब्लाउज में बंद करते हुए कमरे से बाहर निकलने लगी। दरवाजे से निकलते समय उसने रतन को पलट कर देखा जो अभी भी सुगना के मुख से निकले चुंचीं शब्द की मधुरता में खोया हुआ उसे एकटक निहार रहा था।

नियति मुस्कुरा रही थी..रतन और सुगना करीब आ रहे थे।

उधर सोनू लाली के परिवार के साथ समय व्यतीत कर बच्चों को खुश करने का प्रयास करता और बच्चों की मां लाली अपने बच्चों के चेहरे पर मुस्कान देखकर स्वतः ही खुश हो जाती। सोनू का अपने परिवार के प्रति यह लगाव देखकर लाली अपने दिल और आत्मा से उसे धन्यवाद देती।

सुगना की पुत्री मधु 3 माह की होने वाली आने वाली पूर्णमासी को कुल देवता की पूजा होनी थी।

सरयू सिंह के खानदान में संतान उत्पत्ति होने पर अपने कुल देवता की पूजा करने विशेष प्रथा थी यह पूजा संतानोत्पत्ति के लगभग 3 माह पश्चात की जाती थी। पूजा की विशेष विधि थी और इसका उद्देश्य भी शायद विशेष था।

संतानोत्पत्ति के कुछ महीनों तक संतान के माता पिता का आपस में मिलना और संभोग करना अनुचित था। कुल देवता की पूजा करने के पश्चात उन्हें वापस एकाकार होने का अवसर प्राप्त होता।

सुगना मन ही मन सोचने लगी कि क्या वह इस पूजा में अपने पति रतन को शामिल करेगी? क्या पूजा के उपरांत वह अपने पति रतन को उसके साथ संभोग करने का अवसर देगी?

सुगना अपने पुराने दिनों को याद करने लगी जब सूरज के जन्म के 3 महीनों बाद उसे कुल देवता की पूजा करनी थी। उसका पति रतन उस समय उपस्थित न था। न तो सुगना के गर्भ धारण मैं रतन का योगदान था और नहीं अब सुगना की इस पूजा में उसकी उपयोगिता।

गांव के सभी मानिंद लोगों ने आपस में विचार-विमर्श कर यह निर्णय किया की यदि पति उपस्थित ना हो तो उसकी लाठी को साथ में रखकर कुल देवता की पूजा की जा सकती।

कजरी भी धर्म संकट में थी उसे पता था कुलदेवता की पूजा करने के पश्चात पति अपनी पत्नी को अपनी बाहों में उठा कर सीधा शयन कक्ष में ले जाता है और फिर अपनी पत्नी की योनि की पूजा करता और योनि को संतान प्राप्ति के लिए धन्यवाद देता और कई महीनों के अंतराल के बाद उसी दिन उसके साथ संभोग कर योनि को चरमोत्कर्ष प्रदान करता और वापस अपना गृहस्थ जीवन प्रारंभ करता।

कजरी ने तो गांव के बुजुर्ग लोगों की बात मानकर कुलदेवता की पूजन के लिए रतन की लाठी को मान्यता दे दी परंतु शयन कक्ष में होने वाली योनि पूजा कौन करेगा क्या कुंवर जी को ही यह पूजा करनी पड़ेगी? या सुगना को रतन की लाठी की मूठ से ही योनि स्खलित कर इस पूजा को पूर्ण करना होगा जैसे कि स्वयं उसने रतन के जन्म के बाद किया था।

(शायद पाठकों को याद हो रतन के पिता बिरजू जो आजकल विद्यानंद के नाम से जाने जाते थे कजरी को गर्भवती कर साधुओं की मंडली के साथ भाग गए थे उन्हें इस विशेष पूजा में बुला पाना असंभव था। कजरी ने भी अपने पति बिरजू उर्फ विद्यानंद की लाठी अपनी योनि से रगड़ कर बड़ी कठिनाई से उसे स्खलित किया था परंतु कजरी का वह अनुभव अच्छा नहीं रहा था उसने उसी दिन तय कर लिया था कि वह सरयू सिंह को अपने नजदीक आने का मौका देगी और अपनी स्वाभाविक काम इच्छा को पूरा करेगी।)

कजरी अपने मन में सुगना की पूजा का समापन सरयू सिंह से कराना चाहती थी। सच ही तो था.. जिसने सुगना को गर्भवती कर पुत्र रत्न से नवाजा था उसके द्वारा योनि पूजन कराना उचित ही था।

सरयू सिंह ने इस पूजा में उपस्थित रहने के लिए रतन से कई बार अनुरोध किया था परंतु वह मुंबई से आने को तैयार न था। अंततः परंपरा के निर्वहन के लिए सरयू सिंह ने इस पूजन की पूरी तैयारियां कर ली।

सलेमपुर गांव के सभी लोगों को पूजा के उपरांत होने वाले भोज में भारत में आमंत्रित किया गया। यह उत्सव परिवार के लिए बेहद सम्मान और मान प्रतिष्ठा बढ़ाने वाला होता था।

सुगना की अपनी सहेली लाली भी ईसी विशेष पूजा के लिए सलेमपुर आई हुई थी। उसके आश्चर्य का ठिकाना न रहा जब उसे पता चला कि यह पूजा सुगना बिना रतन भैया के करने जा रही है।

उसने रतन की लाठी की मूड को पकड़कर सुगना को छेड़ते हुए पूछा..

"त हमार रानी अपना ओखली में रतन भैया के मुसल की जगह हई लाठी डाली का"

"हट पागल कुछो बोलेले"

"रतन भैया काहे ना अइले हा आज के दिन के सब मर्द लोग इंतजार करेला"

"जाकर उनके से पूछ लीहे"

"त इनके के भेज दी का तोर बुर...के पूजाइयो हो जायी और इनको साध बता जायी?" लाली ने अपने पति राजेश की तरफ इशारा करते हुए कहा।

सुगना मुस्कुराने लगी…

तभी सरयू सिंह बाजार से वापस आए और आंगन में पहुंचते ही सुगना से बोले..

"इ ला आपन कपड़ा पूजा में पहने खातिर"

सुगना ने सरयू सिंह की आंखों की चमक देखकर अंदाजा लगा लिया। कि वह भी इस पूजा का बेसब्री से इंतजार कर रहे थे उसने झोला पकड़ लिया।

"दिखाओ ना कौन कपड़ा आइल बा?" लाली ने उत्सुकता से पूछा।

सुगना ने सरयू सिंह की आंखों की चमक देखकर अंदाजा लगा लिया था कि उसके बाबूजी ने निश्चित ही कुछ न कुछ शरारत की होगी विशेषकर उसके अंतरंग वस्त्रों को लेकर।

"दिखाओ ना का सोचे लगले?"

"जब काल पहनब तब देख लीहे"


"ए सुगना सलेमपुर कब चले के बा" लाली अपने पुत्र (जो दरअसल राजेश और सुगना का पुत्र था ) को लिए हुए सचमुच सुगना के पास आ रही थी।

सुगना अपनी मीठी यादों से बाहर आ गयी। यह एक महज संयोग था या दोनों सहेलियों की जांघों के बीच जागृति प्राकृतिक भूख दोनों ही उस पूजा को याद कर रही थी।

"काहे खातिर" सुगना ने लाली के भाव को समझ कर भी अनजान बनते हुए पूछा

लाली पास आ चुकी थी वह सुगना के बगल में बैठते हुए उसकी जांघों के बीच अपनी हथेलियां लेकर आई और बोली

"एकर पूजाई करावे"

दोनों सहेलियां हंसने लगी।

"अबकी बार काठ के मुसल के बदला में असली मुसल भेटाई" लाली, सुगना कि उस संभावित रात की कल्पना कर मन ही मन खुश हो रही थी। इस बार रतन उपस्थित था और सुगना की योनि पूजा करने को लालायित भी था।

सुगना ने लाली की हथेलियां अपने हाथ में ले ली और उसे प्यार से सहलाते हुए पूछा..

" एक बात कहीं "

"बोल ना"

"देख तोरा के सोनू से मिलावे वाला भी जीजा रहलन। अभी जिंदगी लंबा बा हमनी में दूसर बियाह ना हो सकेला लेकिन सोनुवा के अपनावले रहू जब तक ओकर ब्याह नईखे होत…"

सुगना ने लाली के मन की बात कह दी थी पिछले 2-3 महीनों में लाली की जिंदगी में आए दुख में भी अब ठहराव आ रहा था। दिन के 24 घंटों में खुशियां अपना अधिकार लगातार बढ़ा रही थीं और राजेश के जाने का गम धीरे-धीरे कमजोर पड़ता जा रहा था।

सोनू भी ज्यादातर समय लाली के घर पर ही देता। वह राजेश के कमरे में अपनी पढ़ाई करता और अपने खाली समय में बच्चों के साथ खेल कर उनका मन लगाए रखता। परंतु विधवा लाली से सेक्स की उम्मीद रखना सोनू को उचित प्रतीत ना होता दोनों के बीच जमी हुई बर्फ को किसी ना किसी को पिघलाना था।

"काहे चुप हो गइले कुछ बोलत नईखे?" सुगना ने लाली के कंधे को हिलाते हुए पूछा।

"उ आजकल दिनभर पढ़त रहेला जब टाइम मिलेला तब बचवन संग खेलेला"

"त तेहीं आगे बढ़ के ओकरा के खेला दे" सुगना ने हंसते हुए कहा और लाली के चेहरे पर शर्म की लाली दौड़ गई। जांघों के बीच एक अजब सी सनसनी हुई जो चुचियों के निप्पलओ तक पहुंची। तभी राजेश और सुगना के पुत्र जो इस समय लाली की गोद में था ने लाली की चूचियां पकड़ने की कोशिश की और लाली की चूचियां बाहर आ गई।

सुगना ने मधु को लाली की गोद में देते हुए कहा

"ले तनी एकरो के दूध पिला दे हमार दूध धरे में दिक्कत कर तिया"

मधु ने लाली की दूसरी चूची बड़े प्रेम से पकड़ ली और चूस चूस कर तृप्त होने लगी। अपनी माता का दूध पीने का यह सुख मधु ही जानती होगी लाली ने भी मधु के होठों और मसूड़ों का मासूम स्पर्स महसूस किया और भावविभोर हो गयी"

नियति सलेमपुर में सुगना की पूजा की तैयारियों में लग गई। काश कि दोनों सहेलियां इस पूजा में शामिल हो पाती? एक सुहागन एक विधवा परंतु दोनों में कुछ समानता अवश्य थी।

एक तरफ सुगना का वास्तविक सुहाग उजड़ चुका था। उसके बाबूजी सरयू सिंह जिसके साथ उसने अपने वैवाहिक जीवन के सुखद वर्ष बिताए थे वह अचानक ही वैराग्य धारण कर चुके थे। सुगना को यह एक विशेष प्रकार का वैधव्य ही प्रतीत हो रहा था। यह अलग बात थी कि प उस में कामेच्छा जगाने वाला उसका पति रतन आ चुका था और वह सुगना की योनि पूजा करने को लालायित भी था।

कमोबेश यही स्थिति लाली की भी थी उसका पति राजेश अपना शरीर छोड़ चुका था और अपने स्थान पर सोनू को लाली से मिलाकर उसकी कामेच्छा पूरी करने के लिए छोड़ गया था।

नियति अपनी उधेड़बुन में लगी लाली को तृप्त करने का संयोग जुटाने लगी… सुगना रतन बेसब्री से उस दिन का इंतजार करने लगे...

शेष अगले भाग में...


योनि पूजा बहुत धमाकेदार होने वा‌‌ली है,
वेटिंग फॉर नेक्स्ट अपडेट
 

Hard Rock 143

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कहानी के इस पटल पर आपका स्वागत है आपकी कमेंट को देखकर ऐसा लगता है कि आप यह कहानी शुरू से पढ़ रहे हैं मुझे अच्छा लगा इसी तरह अपनी प्रतिक्रियाएं साझा करते रहे मेरे लिए यह पारितोषिक से कम नहीं है
आपकी कहानी से तो शुरू से ही जुड़ा हूँ,

पर रजिस्ट्रेशन कुछ दिन पहले ही किया है,
 

rajeev13

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आपकी प्रतिक्रिया देखकर ऐसा महसूस हुआ जैसे आप भी इस कहानी के पाठक है कहानी पर अपनी राय और अपेक्षाएं बता कर कहानी से अपने जुड़ाव का संकेत दें जुड़े रहे
सही कहा मित्र मगर मैं आपकी लेखनशैली से काफी प्रभावित हूँ और समय-समय पर आपकी कहानी पढ़ता हूँ मगर कार्य में व्यस्त होने के कारण टिपण्णी करके आपका उत्साहवर्धन में असमर्थ रहता हूँ।

आशा है की भविष्य में आपसे पूर्णरूप से इन्सेस्ट संपन्न कहानी पढ़ने को मिलेगी !
 
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