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Incest आह..तनी धीरे से.....दुखाता.

Lovely Anand

Love is life
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आह ....तनी धीरे से ...दुखाता
(Exclysively for Xforum)
यह उपन्यास एक ग्रामीण युवती सुगना के जीवन के बारे में है जोअपने परिवार में पनप रहे कामुक संबंधों को रोकना तो दूर उसमें शामिल होती गई। नियति के रचे इस खेल में सुगना अपने परिवार में ही कामुक और अनुचित संबंधों को बढ़ावा देती रही, उसकी क्या मजबूरी थी? क्या उसके कदम अनुचित थे? क्या वह गलत थी? यह प्रश्न पाठक उपन्यास को पढ़कर ही बता सकते हैं। उपन्यास की शुरुआत में तत्कालीन पाठकों की रुचि को ध्यान में रखते हुए सेक्स को प्रधानता दी गई है जो समय के साथ न्यायोचित तरीके से कथानक की मांग के अनुसार दर्शाया गया है।

इस उपन्यास में इंसेस्ट एक संयोग है।
अनुक्रमणिका
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भाग 126 (मध्यांतर)
 
Last edited:

komaalrani

Well-Known Member
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पहिले चूचीं पेन्हा लेवे द। (let the sugna be prepared for it.)
जुड़े रहिये।

सही है, सहज पके सो मीठा होव
 

Lovely Anand

Love is life
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सोनू के आने की बात सुनकर लाली सचेत हो गई उसके शरीर में एक अलग प्रकार की ऊर्जा का संचार हुआ वह बिस्तर से उठ खड़ी हुई और अपने कपड़े व्यवस्थित करने लगी। सोनू अंदर आ चुका था। सुगना को इन मादक कपड़ों में देखकर सोनू विस्मित था। उसने अपनी बहन सुगना के पैर छुए और ऊपर उठते समय पतले और कामुक गाउन के पीछे छुपे सुगना के पैर जांघों और कमर के उभारों और गहराइयों के दर्शन कर लिये। सुगना को भी अपनी इस उत्तेजक अवस्था का एहसास था परंतु वह कुछ कर पाने में असमर्थ थी।
सोनू सुगना के प्रति गलत भावनाएं नहीं रखता था पर अपनी बड़ी बहन का यह रूप उसने पहली बार देखा था। कई दिनों बाद मिलने पर वह अक्सर अपनी बहन ले गले लग जाता था परंतु आज वह हिम्मत न जुटा पाया। जब तक सुगना की बाहें उसे आलिंगन में लेने के लिए उठतीं सोनू उससे दूर हो गया था।
लाली भी अब हाल में आ चुकी थी सोनू ने लाली के भी पैर छुए लाली भी गाउन में ही थी। यह एक अजीब संयोग था कि सुगना की पेंटी सुबह लाली ने उतार दी थी और बीती रात राजेश का हस्तमैथुन करते समय लाली की ब्रा राजेश ने उतार दी थी और उसकी चुचियों से जी भर कर खेला था।
जैसे ही सोनू लाली के पैर छूकर ऊपर उठा लाली ने उसे अपने आलिंगन में ले लिया और प्यार से बोला "अरे हमार सोनू बहुत दिन बाद आइल बा"
लाली और सोनू का यह आलिंगन एक भाई बहन के आलिंगन से बेहद अलग था सोनू के सीने से लाली की चूचियां सट गई जिसका एहसास सोनू को हो रहा था उसके हाथ लाली की पीठ पर थे। उसके हाथों ने लाली की पीठ पर कामुक आलिंगन वाला दबाव बना दिया था।
सुगना ने खलल डाला और बोला
"अतना भोरे भोरे कैसे?"
"अरे दीदी 8:00 बजता"
सुगना को अब जाकर एहसास हुआ कि उसे उठने में देर हो गई थी उसे हॉस्पिटल भी जाना था वह आनन-फानन में अपनी साड़ी और ब्लाउज लेकर नहाने चली गई।
लाली रसोई में चाय नाश्ते की तैयारी कर रही थी और सोनू हाल में बैठा हुआ अपनी लाली दीदी के शरीर का मुआयना कर रहा था उसे महिलाओं के शरीर का ज्यादा अनुभव नहीं था। लाली की नंगी चुचियां वह होली के अवसर पर छू चुका था परंतु वह आकस्मिक और होली के भावावेश में हुई घटना थी।
सोनू लाली की चुचियों को देखना चाहता था और उसे अपने हाथों तथा होठों से महसूस करना चाहता था। कॉलेज में जाने के पश्चात उसका सामान्य ज्ञान बढ़ चुका था लाली की कमर और उसकी जांघों के बीच सोचते ही सोनू का लंड बेकाबू हो जाता था।
सुगना बाहर आ चुकी थी। सोनू ना चाहते हुए भी आज सुगना को बार-बार देख रहा था उसे आज पहली बार अपनी बड़ी बहन की खूबसूरती का अंदाजा हुआ था उसने अपना ध्यान हटाया और वापस अपने लक्ष्य लाली पर केंद्रित कर दिया।
कुछ ही देर पश्चात सुगना और सोनू एक ही रिक्शे में बैठकर हॉस्पिटल के लिए निकल पड़े। लाली ने कहा "सुगना शाम के जल्दी आजईहे"
धीरे धीरे सोनू सुगना का वह कामुक रूप भूल गया और अपनी बहन के साथ सामान्य रूप से बातें करते हुए हॉस्पिटल आ गया।
सरयू सिंह सुगना और उसके भाई सोनू को देखकर प्रसन्न हो गए। आज वह स्वस्थ लग रहे थे और कमरे में चहलकदमी कर रहे थे। सुगना को देखकर लंगोट में छुपा उनका नाग सतर्क हो गया। अपने बाबूजी को टहलते हुए देखकर सुनना के चेहरे पर खुशी आ गयी।
सरयू सिंह के मन में राजेश को लेकर बेचैनी थी उन्होंने पूछा
" सुगना बेटा राजेश ना अइले हा"
" बाबूजी उ त रात के ही चल गइले"
सरयू सिंह ने चैन की सांस ली वह अपने मन में सुगना और राजेश को लेकर तरह तरह की गलत कल्पनाएं करने लगे थे।
उसी समय दो तीन डॉक्टरों की टीम ने कमरे में प्रवेश किया और सभी लोगों को बाहर जाने के लिए कहा। सरयू सिंह आदर्श पेशेंट की तरह तुरंत बिस्तर पर लेट गए। डॉक्टरों की टीम ने उनका चेकअप किया और बाहर निकल कर कजरी से बोले
"अब यह पूरी तरह ठीक हैं आप लोग इन्हें घर ले जा सकते हैं"
उसने अपने असिस्टेंट से कहा
"इनके डिस्चार्ज पेपर रेडी करा दीजिए"
इस बार डॉक्टर ने सुगना की तरफ देख कर कहा
"और हां एक बात का ध्यान रखिएगा कि यह हमेशा खुश रहे इनका खुश रहना बेहद आवश्यक है वैसे मैं कुछ दवाइयां लिख दे रहा हूं कुछ ही दिनों में वो पूरी तरह खेत जोतने लायक हो जाएंगे।" डाक्टर मुस्कुराने लगा।
डॉक्टर ने यह बात शारीरिक श्रम के भाव से कही थी परंतु सुगना सिहर उठी उसे अपनी जांघों के बीच कोमल खेत की याद आ गई जिसे उसके बाबूजी न जाने कितनी बार जोत चुके थे…
सुगना ने डॉक्टर से पूछा "बाबूजी के माथा के दाग कुछ कम लग रहा है आप उसकी भी दवाई दिए हैं ना?"
डॉक्टर ने कहा
"उस दाग का हमारे पास कोई इलाज नहीं है वह कब बढ़ता है और कब कम होता है यह आपको ही देखना है हमें लगता है वह समय के साथ चला जाएगा वैसे उस दाग से उनके शरीर को कोई दिक्कत नहीं है"
सुगना ने यह महसूस किया था कि पिछले दो दिनों में वह दाग कुछ कम हो गया था। एक पल के लिए उसके मन में आई यह बात फिर प्रगाढ़ हो रही थी कि कहीं यह दाग उसके और उसके बाबूजी के बीच बने अनैतिक कार्यों की वजह से तो नहीं है? उसने अपने दिमाग से यह बात निकाल दी। वैसे भी आज सुगना, कजरी और सोनू तीनों खुश हो गए थे। सुगना अंदर आकर अपने बाबू जी से लिपट गई और बोली "बाबूजी रउआ ठीक हो गईनी आज हमनी के घरे चले के"
सुगना सरयू सिंह से बेहद प्यार करती थी वह उनका आदर और सम्मान भी करती थी। यदि नियति ने साजिश रच कर उनके बीच यह कामुक संबंध न बनाए होते तो सरयू सिंह अपनी बहू सुगना को वैसे ही प्यार करते जैसे कोई आदर्श ससुर अपनी बहू बेटी को करता है बल्कि कहीं उससे ज्यादा। वही हाल सुगना का भी था।
जब तक डिस्चार्ज पेपर तैयार होते हरिया भी हॉस्पिटल आ चुका था। कुछ ही देर बाद सरयू सिंह अपनी दोनों प्रेमिकाओं को अगल-बगल लिए हुए हॉस्पिटल की सीढ़ियां उतर रहे थे। सोनू ने सारे सामान पकड़ रखे थे और सूरज को संभालने की जिम्मेदारी हरिया ने उठा ली थी। वह नीचे रिक्शा वालों को रोके सरयू सिंह का इंतजार कर रहा था।
सरयू सिह पूरी तरह स्वस्थ थे परंतु कजरी और सुगना उनके साथ साथ चल रहे थे।
हॉस्पिटल के नीचे खड़े रिक्शे के पास पहुंचकर विदाई का वक्त आ गया रिक्शे में कुल 4 व्यक्तियों के जाने की जगह थी सोनू को यहीं से अलग होना था।
हरिया की पत्नी ने अपनी बेटी लाली और उसके बच्चों के लिए कुछ मिठाईयां बनाकर भेजी थी परंतु हरिया अब लाली के घर जाने की स्थिति में नहीं था उसने सोनू से कहा
"बेटा हॉस्टल जाने से पहले ई सामान लाली तक पहुंचा देना"
सुगना ने भी पीछे मुड़कर अपनी ब्लाउज में हाथ डाला और ₹50 के दो नोट निकाल कर सोनू को दिया और बोली
"लाली के बच्चा लोग खातिर चॉकलेट खरीद लीहे और बाकी अपना खर्चा खातिर रख लीहे।"
सुगना भावुक हो गई। सोनू ने सभी के चरण छुए और अंत में सुगना के भी आज सुबह ही उसने सुगना का नया रूप देखा था पर साड़ी में उसका यह रूप सोनू की भावनाओं से मेल खाता था सोनू मन ही मन मुस्कुरा रहा था। जैसे ही वह उठा दोनों भाई बहन स्वाभाविक आलिंगन में आ गए सुगना ने उसके माथे को चूम लिया और बोली..
"आपन ख्याल रखिहे, कोनो दिक्कत परेशानी होखे लाली दीदी भीरे चल जईहे"
हरिया ने भी सुगना की बात को आगे बढ़ाया और बोला..
"कितना बढ़िया बात बा की लाली यही शहर में है जब भी छुट्टी हो लाली के घर चले जाया करो उसका भी मन लग जाया करेगा वइसे भी राजेश बाबू अधिकतर बाहर ही रहते हैं।"
हरिया ने यह बात बोल कर सोनू को एक नई ऊर्जा दे दी। वह लाली से मिलने को बेचैन हो गया। जैसे ही सरयू सिंह और सुगना का रिक्शा स्टेशन की तरफ बड़ा सोनू मन में उमंग लिए तेज कदमों से लाली के घर की तरफ बढ़ चला। उसकी चाल धड़क पिक्चर के हीरो जैसी थी।
रास्ते में बाजार सजा हुआ था परसों ईद की तैयारियां जोरों पर थी। एक से एक सुंदर युवतीयां कुछ बुरके में तो कुछ सलवार सूट में सोनू जैसे मैंने मर्द को लुभा रही थी वह कभी अपने कदम रोक कर उन्हें देखता पर उनमें से कोई भी उसकी लाली दीदी के आसपास न था। लाली की बड़ी-बड़ी चूचियां सोनू के आकर्षण का मुख्य केंद्र थी। उसने लाली के बच्चों के लिए कई चॉकलेट खरीदी और दो चूसने वाली आइसक्रीम भी खरीदी। वह हॉस्टल जाने के बाद लड़कियों को आइसक्रीम चूसते हुए देखता और वह और उसके दोस्त उसकी तुलना अपनी मनोदशा के हिसाब से अपने लंड से कर लेते।
सोनू तेज कदमों से लाली के घर की तरफ भागता जा रहा था वह आइसक्रीम को रास्ते में पिघलने से रोकना चाहता था और उसे अपनी लाली दीदी के होठों में पिघलते हुए देखना चाहता अंततः वह लाली के दरवाजे पर खड़ा दरवाजा खटखटा रहा था….
"2 मिनट रुक जाइए आ रहे हैं लाली के बाथरूम से पानी गिरने की आवाज आ रही थी.."
"ठीक है दीदी"
"सुगना कहा है"
"मैं अकेले ही आया हूँ दीदी गांव चली गयी"
"ठीक है तू रूक मैं आती हूँ"
सोनू मैं मन ही मन अंदाजा लगा लिया कि उसकी लाली दीदी बाथरूम में नहा रही थी वह उसकी कल्पनाओं में डूब गया और लाली के आने का इंतजार करने लगा।
उधर सरयू सिंह स्टेशन पर आ चुके थे और ट्रेन का इंतजार कर रहे थे। आज ट्रेन में स्लीपर की बोगी में भीड़भाड़ कम थी सरयू सिंह सपरिवार अपने दोस्त हरिया के साथ स्लीपर में चढ़ गए ट्रेन के चलते ही वह खिड़की से बाहर खेतों और पेड़ों का नजारा देखने लगे 2 दिन हॉस्पिटल में रहने के बाद उन्हें यह खेत खलिहान बेहद पसंद आ रहे थे। ट्रेन की यह स्लीपर बोगी उन्हें उनकी पुरी यात्रा की याद दिलाने लगी। वह पूरी यात्रा की यादों में खो गए…..
पुरी जाते समय कजरी की बेहद उत्साहित थी। आने वाले सात आठ दिन उन तीनों को एक ही कमरे में गुजारने थे सरयू सिंह की उत्तेजना इस समय चरम पर थी वह सुगना की मदमस्त जवानी का भोग लगा रहे थे।
कजरी स्वयं भी सुगना को नग्न देखकर बेहद खुश होती थी उसके मन में अक्सर सुगना को नग्न देखने की चाहत उठती वह उसके कोमल चूचियों को छूना चाहती थी। सुगना की साफ-सुथरी और कोमल बुर भी कजरी को बेहद आकर्षित करती थी। जब से उसने सरयू सिंह के होठों को सुगना के बुर की फांकों से खेलते हुए देखा था उसका मन ललच गया था।
कजरी जितना अपने मन में सुगना के साथ अंतरंग हो जाती थी उतना हकीकत में लगभग असंभव जैसा था। सुगना के मन में कजरी के प्रति इस तरह की कोई भावना न थी वह तो मासूम थी। उसने संभोग का नया नया सुख प्राप्त किया था वह भी अपने बाबूजी के साथ। उम्र का अंतर छोड़ दिया जाए तो सरयू सिंह ने उसकी मनो इच्छा पूरी करने में कोई कमी ना रखी थी। उम्र का यह अंतर उन्होंने अपने मजबूत लंड से मिटा दिया था। जितना सुख सरयू सिंह का वह जादुई लंड सुगना को दे रहा था उतना शायद उसका पति रतन या उस उम्र के लड़के भी ना दे पाते। यह अलग बात थी की नए लड़कों के अनाड़ीपन और अलहड़ता सरयू सिंह में न थी वह एक मजे हुए खिलाड़ी थे।
सरयू सिंह इस बात को लेकर पसोपेश में थे की पुरी पहुंचने के बाद वह होटल में कैसे रहेंगे? क्या एक ही कमरे में दो विवाहित महिलाओं के साथ उन्हें रहने की अनुमति होटल प्रबंधन देगा? क्या यह व्यवस्था उन्हें प्रश्नों के दायरे में नहीं खड़ा कर देगी? वह किस तरह से इस बात को होटल प्रबंधन को समझा पाएंगे?
कजरी तो उनकी पत्नी स्वरूप थी उसे तो वह अपनी भार्या बनाकर अपने कमरे में रख सकते थे परंतु विवाहित सुगना को उसी कमरे में रखना यह कठिन था। दो कमरे लेने में धन का अपव्यय था इतना धन सरयू सिंह के पास ना था कि वह दो अलग-अलग कमरे लेकर अपनी कजरी भाऊ जी और सुगना की मनो इच्छा को पूरा कर पाते।
उन्होंने यह बात कजरी से बताई कजरी एक समझदार महिला थी उसे मुसीबतों से निकलना आता था उसने कहा
"अरे जाए दी कह देब की बेटी ह। आखिर बहू और बेटी में ढेर अंतर ना होला। सुगना के उम्र भी कम बा"
सरयू सिंह को यह बात पसंद आ गई परंतु बेटी शब्द सुनकर उनके मन में अजीब से भाव पैदा हुए सुगना उनकी प्रेमिका थी।
"ओकरा माथे पर सिंदूर देखकर लागी ना कि शादीशुदा ह"
" अरे परेशान मत होई तनी मनी सिंदूर भीतेरी लगा ली और लड़की वाला कपड़ा पहनी साड़ी ब्लाउज ना पहिनी"
सरयू सिंह धीरे धीरे आश्वस्त हो गए सुगना के पास लड़कियों वाले कपड़े न थे। कुछ लहंगा और चोली अवश्य थे जिसे लड़कियां और नव युवतियां बराबरी से प्रयोग करती थीं। कजरी ने सुगना को साड़ी और ब्लाउज ना ले जाने के लिए कहा वह बार-बार जिद करती रही कि वह सिर्फ दो या तीन कपड़ों में इतने दिनों तक कैसे रहेगी परंतु उसकी सास कजरी ने उसे यह कहकर मना लिया उसके लिए नए वस्त्र वहीं खरीदे जाएंगे।
सफर के लिए तैयार होते समय कजरी ने सुगना के बाल बनाएं और उसकी मांग में बिल्कुल छोटा सा सिंदूर लगा दिया जो बालों के बीच लगभग छुप सा गया था सुगना ने पूछा
"सासू मां आज इतना कम सिंदूर"
"अरे सुगना बाबू, शहर जा तारे घूमे, शहर में असही सिंदूर लगावल जाला"
सुगना बेहद उत्साहित थी वह इस प्रपंच में नहीं पड़ना चाहती थी वैसे भी वह लहंगा और चोली में बेहद खूबसूरत लग रही थी उसे अपने विवाह के पूर्व के दिन याद आ रहे थे।
ट्रेन आ चुकी थी और सुगना अपने सास और बाबूजी के साथ ट्रेन पर सवार हो गयी। उसकी पर्यटन की इच्छा पूर्ण होने वाली थी नियति एक बार फिर उसी ट्रेन पर सवार होकर सुगना को जीवन के नए सुख दिलाने निकल पड़ी थी।
सुबह-सुबह ट्रेन उड़ीसा के पुरी रेलवे स्टेशन पर पहुंच गयी। सरयू सिंह ट्रेन के दरवाजे पर सामान लेकर खड़े थे पीछे पीछे उनकी भौजी कजरी और कोमलांगी सुगना खड़ी थी। तीनों ट्रेन के रुकने का इंतजार कर रहे थे।
टेंपो में बैठकर सरयू सिंह सपरिवार पुरी के समुद्र तट पर पहुंच गए। सड़क के एक तरफ कई प्रकार के छोटे और बड़े होटल थे तथा दूसरी तरफ बेहतरीन और आकर्षक समुद्र तट सुगना की तो जैसे आंखें समुद्र से अटक गई थी वह कजरी के पीछे पीछे चल रही थी परंतु टकटकी लगाकर समुद्र तट की तरफ देख रही कजरी उसका हाथ पकड़कर आगे आगे चल रही थी। कभी-कभी लगता जैसे कजरी सुगना को घसीट रही हो। सरयू सिंह कंधे पर झोला तथा हाथ में दो संदूक लिए हुए कुली की भांति आगे चल रहे थे।
उनके लंड ने उन्हें इस अधेड़ अवस्था में सुगना के साथ हनीमून मनाने पर विवश कर दिया था मन में उम्मीदें हिलोरे ले रही थीं।
तभी एक दलाल सरयू सिंह के पास आया और बोला
"ए चाचा चली होटल दिखा दी बहुत बढ़िया बा सस्ता में"
सरयू सिंह का बजट ज्यादा न था सस्ता शब्द ने उन्हें कुछ ज्यादा ही आकर्षित किया एक तो वह व्यक्ति उनकी भाषा बोल रहा था दूसरे उसने सस्ते होटल का आश्वासन दिया था सरयू सिंह उसके झांसे में आ गए और अपने परिवार को लेकर उसके पीछे पीछे चल पड़े होटल के अंदर प्रवेश करते ही सिगरेट की महक आ रही थी होटल भी उनकी अपेक्षा अनुरूप न था वह उन्हें अपनी प्यारी बहू सुगना के लायक न लगा।
कुछ देर और होटल देखने के बाद सुगना और कजरी के पैर थक गए और अंततः सरयू सिंह ने होटल के रिसेप्शन की चमक दमक देखकर एक होटल को पसंद कर लिया।
होटल के रिसेप्शनिस्ट जो लगभग 20 - 21 साल का युवक था ने पूछा…
"चाचा जी आप का नाम"
"सरयू सिंह"
"चाची आपका"
"कजरी"
"और दीदी का" उसने सुगना की तरफ देखते हुए पूछा।
"सुगना"
कजरी ने जैसा सोचा था ठीक वैसा ही हुआ उस व्यक्ति ने सरयू सिंह और उनकी दोनों प्रेमिकाओं के बीच संबंधों की जगह पर पत्नी और पुत्री लिख दिया। सरयू सिंह अपनी आंखों के सामने उन संबंधों को देख रहे थे पर नियति जो उनके साथ साथ ही घूम रही थी उसने सरयू सिंह का ध्यान वहां से हटा दिया और वह होटल के अटेंडेंट के साथ कजरी और सुगना को लेकर कमरे की तरफ बढ़ चले।

डबल बेड के सुंदर बिस्तर को देखकर सरयू सिंह का लंड उछलने लगा …
 

Lovely Anand

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komaalrani

Well-Known Member
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नयी घटनाएं नए प्रसंग नयी जगहें कहानी को तो गति देते ही हैं, सम्भावनाओं के द्वार भी खोलते हैं साथ साथ , पाठकों के मन में उत्सुकता जगाते हैं. ईद का जिक्र अच्छा लगा समसामयिकता से जोड़ने की अच्छी कोशिश,

बहुत अच्छी प्रस्तुति,

तन के साथ मन में चल रही उलझनों का भी बहुत बढ़िया जिक्र है , अगली पोस्ट का इन्तजार करुँगी।
 

Napster

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बहुत ही सुंदर लाजवाब और अद्भुत अपडेट है भाई मजा आ गया :adore:
अगले धमाकेदार अपडेट की प्रतिक्षा रहेगी जल्दी से दिजिएगा
 
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