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Incest आह..तनी धीरे से.....दुखाता.

Lovely Anand

Love is life
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आह ....तनी धीरे से ...दुखाता
(Exclysively for Xforum)
यह उपन्यास एक ग्रामीण युवती सुगना के जीवन के बारे में है जोअपने परिवार में पनप रहे कामुक संबंधों को रोकना तो दूर उसमें शामिल होती गई। नियति के रचे इस खेल में सुगना अपने परिवार में ही कामुक और अनुचित संबंधों को बढ़ावा देती रही, उसकी क्या मजबूरी थी? क्या उसके कदम अनुचित थे? क्या वह गलत थी? यह प्रश्न पाठक उपन्यास को पढ़कर ही बता सकते हैं। उपन्यास की शुरुआत में तत्कालीन पाठकों की रुचि को ध्यान में रखते हुए सेक्स को प्रधानता दी गई है जो समय के साथ न्यायोचित तरीके से कथानक की मांग के अनुसार दर्शाया गया है।

इस उपन्यास में इंसेस्ट एक संयोग है।
अनुक्रमणिका
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भाग 126 (मध्यांतर)
 
Last edited:

AVINASH

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Dipawali ke us din ka sabko besabari se intjar hai Saryusih Saguna Ki dipawali kis tarah se manayi jayegi Saguna ke gubare dabate huye usake chut me Sharayusih apani badi fulbaji se nayi jyot kis tarah jalake Shaguna se Kitani bar bar baish. Karwate hai
 

Lovely Anand

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अपडेट कब आई हो लेखक बाबू
काल सांझी के...वीकेंड पर दीवाली मनी...
 
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Lovely Anand

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सरयू सिंह सुगना और कजरी को खूबसूरत लिबास में देखकर बेहद प्रसन्न थे। जब जब सुगना दिए जलाने के लिए उकड़ू बैठती उसके कोमल और खूबसूरत नितम्ब लहंगे के पीछे से सरयू सिंह की निगाहों को नयनसुख प्रदान करते। लंगोट के अंदर उनका लंड कभी हरकत में आता कभी पारिवारिक उत्सव का माहौल देखकर शांत हो जाता।

हरिया का परिवार भी अपने घर के सामने दीपावली मना रहा था कुछ ही देर में दोनों परिवार एक दूसरे से मिले लाली और सुगना बातें करने लगी लाली की गोद में बच्चा देखकर सुगना खुश हो गई। आज उसकी भी मुराद पूरी होने वाली थी। लाली का पति राजेश सुगना को एकटक देखे जा रहा था। सुगना थी ही ऐसी और आज तो वो अपने ससुर से चुदने जा रही थी शर्म की लाली ने उसे और आकर्षक बना दिया था।

जैसे-जैसे पटाखों का शोर कम हो रहा था सुगना के मन में पटाखे फूटने शुरू हो रहे थे बाहर की दिवाली खत्म हो चुकी थी सुगना के लहंगे के अंदर दीपावली मनाने की तैयारी होने लगी। सुगना पूरी तरह तैयार थी।

कजरी और सुगना घर वापस आ चुकी थी मिठाईयां और पकवानों से उन दोनों का पेट पहले ही भरा हुआ था। कजरी ने सुगना के प्रथम संभोग की व्यवस्था अपनी कोठरी में ही की थी। उसकी चारपाई बड़ी थी और मजबूत भी। कजरी ने उस पर नई चादर बिछा दी थी। सुगना ने उस कमरे में कई सारे दिए रख लिए थे वह स्वयं अपनी प्रथम रात को यादगार बनाना चाहती थी।

अंततः मिलन का वक्त आ गया कजरी ने कहा

"सुगना बेटा अब अपना कमरा में जा" सुगना तो कब से उसकी प्रतीक्षा में थी। उसने अपनी सासु मां के चरण छुए कजरी ने उसे अपने आलिंगन में ले लिया और उसके गालों को चूमते हुए बोला

"भगवान तोहरा के खूब सुख देस और गोद में जल्दी से एक सुंदर बच्चा"

सुगना प्रसन्न हो गई उसने भी अपनी प्यारी सासू मां के गालों को चूम लिया. दोनो परियों के चारों स्तन एक दूसरे से सट गए। सुगना अलग हुई और अपने कमरे में धीरे धीरे जाने लगी। कजरी अपनी आंखों में खुशी के आंसू लिए सुगना को देख रही थी जो अपने सुंदर नितंबों को एक लय में हिलाते हुए कमरे के अंदर प्रवेश कर रही थी।

कजरी आंगन से उठकर दालान में आ गई जहां सरयू सिंह उसका इंतजार कर रहे थे। उन्होंने कजरी को सीने से लगा लिया और अपनी कजरी भौजी के होठों को चूमने लगे। कजरी और सरयू सिंह दो जिस्म एक जान होने लगे। सरयू सिंह की हथेलियां कजरी की पीठ और नितंबों पर घूमने लगी। कजरी की बूर पनियाने लगी।

एक तरफ उसके मन में सुगना और सरयू सिंह के बीच होने वाले चुदाई के दृश्य घूम रहे थे दूसरी तरफ सरयू सिंह की हथेलियां उसे और भी उत्तेजित कर रही थीं। कजरी को पता था की सरयू सिंह के लंड का सुख आज उसे नहीं मिलना था वह अपनी उत्तेजना को और आगे नहीं बढ़ाना चाह रही थी।

वह सरयू सिंह से अलग हो गई और बोली "अब चलीं, सुगना बाबू इंतजार करत होइ।"

"सरयू सिंह खुशी और दुख के भंवर में झूल रहे थे" वह सजी-धजी कजरी को अपने शरीर से अलग करते हुए थोड़ा दुखी थे पर सुगना से मिलन की खुशी उस दुख से कहीं ज्यादा थी। सरयू सिंह ने अपना लंगोट पहले ही खोल लिया था। कजरी ने उनके लंड की चुभन अपने नाभि पर महसूस कर ली थी। उसका हाथ अनायास ही लंड पर चला गया। कजरी में उस लंड को अपनी हथेलियों में ले लिया और कहां

"कुंवर जी, सुगना बहुत सुकवार बिया, तनी आराम से ही करब। बेचारी के दिक्कत मत होखे। पहलिही डेरा जाइ त दोबारा हाँथ ना लागवे दी और ओकर गर्भवती होखे के इच्छा बाकिये रह जायी।"

सरयू सिंह ने कजरी को चूम लिया. वह सच में सुगना का ख्याल रखती थी पर शायद उसे यह नहीं पता था कि सुगना सरयू सिंह की जान बन चुकी थी वह उसे किसी भी हालत में दुख नहीं पहुंचाएंगे। कजरी के मन में जाने क्या आया वह नीचे बैठती चली गई और सरयू सिंह के लंड को अपने मुंह में ले लिया तथा अपने होठों से उसे चूसने लगी। सरयू सिंह उत्तेजना के अधीन थे वह सुगना को भूलकर कजरी के होठों में खुशी ढूंढने लगे कजरी के होठों की करामात बुर से कम न थी। लंड का उछलना महसूस कर कजरी ने अपने होंठ हटा लिए।

उसने सर्विसिंग के लंड को वापस धोती से ढक दिया और उन्हें साथ लेकर अपने कमरे की तरफ चलपड़ी जहां सुगना एक नव वधु की तरह अपने बाबुजी का इंतजार कर रही थी। कजरी ने आदर्श सहेली की भांति उन्हें कमरे के अंदर किया और दरवाजा बंद कर दिया और खुशी-खुशी दूसरे कमरे में आ गयी।

कजरी इस बात से प्रसन्न में थी कि उसने सरयू सिंह की उत्तेजना को आखरी मुकाम तक पहुंचा दिया था अब वह अपनी प्यारी बहु सुगना को ज्यादा देर तक नहीं चोद पाएंगे।

कजरी ने अपने लार से सरयू सिंह के लंड को पूरी तरह से भिगो दिया था वह इस बात से भी प्रसन्न थी कि उसकी लार का चिपचिपापन सुगना की बुर में लंड के प्रवेश को आसान कर देगा। कजरी सच मे अनूठी थी और आज के दिन भी अपनी प्यारी बहू का ख्याल रख रही थी।

आज नियति ने कजरी के कमरे में सुगना को और सुगना के कमरे में कजरी को ला दिया था। दोनो कमरों के बीच का झरोखा बंद था पर उसमे दरार कायम थी। यह वही दरार थी जिससे सुगना ने सरयू सिंह और कजरी के बीच चल रहे प्रेमालाप को कई बार देखा था।

सरयू सिंह कमरे में प्रवेश कर चुके थे सुगना चारपाई पर अपनी जांघें सिकोड़े सिमटी हुई बैठी थी। अपने बाबू जी के आगमन से वह सचेत हो गई सरयू सिंह ने दरवाजा बंद कर दिया। सुगना की सांसें तेज हो रही थी।

वह चारपाई से उठकर जमीन पर खड़ी हो गई सुगना आज शर्मा रही थी। सरयू सिंह करीब आ चुके थे। सुगना ने झुककर सरयू सिंह के चरण छुए। आज इस कामुक घड़ी में भी वह अपने संस्कार ना भूली।

सरयू सिंह उसके लिए हमेशा से आदर्श थे पहले वह बाबुजी थे पर आज उसके आदर्श पुरुष अपना संबंध बदलकर उसे गर्भवती करने के लिए प्रस्तुत थे।

सरयू सिंह की निगाहें झुकी हुयी सुगना की गोरी पीठ और नितंबों पर टिक गई। जब तक सुगना उनके चरण छूती सरयू सिंह ने उसे कंधे से पकड़ लिया और उसे अपने सीने से लगा लिया। सुगना और सरयू सिंह दो जिस्म एक जान होते चले गए। सरयू सिंह ने सुगना का चेहरा ऊपर किया और अपना नीचे। दोनों के होंठ आपस में टकरा गए और सरयू सिंह अपनी बहू के कोमल होंठों का रसपान करने लगे।

उनकी हथेलियों ने सुगना के नितंबों को अपनी पकड़ में ले लिया और वह धीरे-धीरे सुगना की मदमस्त गोलाइयों को महसूस करने लगे। इधर सरयू सिंह सुगना की गोलाइयों को महसूस कर रहे थे उधर सुगना अपने पेट पर अपने बाबूजी के लंड को महसूस कर रही थी। सरयू सिंह सुगना की मासूम जवानी का भोग लगाने के लिए आतुर हो उठे। उनकी उंगलियां अपना कमाल दिखाने लगीं। जाने कब सुगना के लहंगे की गांठ खुल गई और लहंगे गोबर से लीपी हुई जमीन पर गिर पड़ा।

सुगना ने भी अपनी उंगलियों का कमाल दिखाया और अब बारी सरयू सिंह की धोती की थी। स्वयं को अर्धनग्न महसूस कर सुगना ने जलते हुए दिए पर फूंक मारकर उसे बुझा दिया वह आज अपने बाबुजी के सामने नग्न होने में असहज महसूस कर रही थी। सरयू सिंह ने उस समय तो कुछ ना बोला और वह दोनो नग्न होते गए।

सुगना के शरीर और अब सिर्फ ब्रा और पेंटी बची हुई थी और शरीर सिंह पूरी तरह निर्वस्त्र हो गए थे। कमरे में अंधेरा था आंगन में चल रहे दिए से थोड़ी बहुत रोशनी लकड़ी के दरवाजे से छन छन कर आ रही थी पर वह सुगना के खूबसूरत शरीर को देखने के लिए अपर्याप्त थी।

सरयू सिंह ने सुगना की ब्रा को छूते हुए कहा

"उ दिन शहर से इहे कपड़ा खरीद के ले आईल रहलु हां"

" हां बाबू जी"

"हमरा के ना दिखाइलूं हा."

सुगना कुछ ना बोली।

"दिया काहे बुझा देलु हा?"

सुगना शर्मा रही थी। उसने कोई जवाब नहीं दिया परंतु अपनी कोमल जीभ को अपने बाबूजी के होठों पर फिरा दिया तथा अपने कोमल हथेलियों से लंड के सुपाडे को सहला दिया।

सरयू सिंह और उनका लंड मचल उठा। उन्होंने सुगना के कान में फुसफुसाते हुए कहा

"आज दिवाली ह कमरा में अंधेरा ना राखे के।"

दरअसल सूगना खुद दुविधा में थी। अब से कुछ समय पहले उसने इस कमरे में ढेर सारे दीए रखे थे जिसे वह आज जलाने वाली थी वह खुद भी दिए की रोशनी में अपने बाबुजी के साथ संभोग करना चाहती थी। उनके मर्दाना चेहरे को देखते हुए अपने प्रथम संभोग को यादगार बनाना चाहती थी।

पर अपने बाबुजी के आगोश में आने के पश्चात अपनी उत्तेजना को छुपाने के लिए उसमें एकमात्र जलाते हुए दिए को फूंक मारकर बुझा दिया था। सुगना ने हिम्मत जुटाई और दियासलाई उठाई।

उसने एक-एक करके दीयों को जलाना शुरू कर दिया. ज्यों ज्यों कमरे में उजाला बढ़ता गया सुगना की कुंदन काया चमकने लगी। रोशनी झरोखे से होते हुए कजरी के कमरे में भी पहुँची। कजरी सचेत हो गई। अचानक हुई रोशनी ने उसका आकर्षण बढ़ा दिया वह झरोखे पर आकर सुगना के कमरे में झांकने का प्रयास कर रही थी। एक बार फिर वह टीन का डिब्बा कजरी के काम आया। कजरी उस डिब्बे पर खड़ी होकर वह दृश्य देखने लगी।

सुगना ब्रा और पेंटी में दिए जला रही थी। जब सुगना दीए जलाने के लिए नीचे झुकती उसके दोनों गोल नितम्ब उभर कर बाहर आ जाते उन पर लाल रंग की पैंटी का आवरण उनकी खूबसूरती को और बढ़ा देता। कुंवर जी अपना तना हुआ लंड लिए सुगना को देख रहे थे। गजब उत्तेजक दृश्य था। कजरी की आंखें उस अद्भुत दृश्य पर टिक गयीं। कुंवर जी की सुगना बेटी ब्रा और पेंटी में झुकी हुई दिए जला रही थी और सरयू सिंह अपनी हथेलियों से अपने लंड को सह लाते हुए अपनी पुत्री समान बहू को अर्धनग्न अवस्था में देख रहे थे।

सरयू सिंह और सुगना को मिलाने वाली नियति आंगन में खड़ी सभी पात्रों की मनोदशा को पड़ रही थी।

एक तरफ कजरी और सुगना की मां पदमा, सुगना को गर्भवती किए जाने के उद्देश्य से किये जा रहे इस संभोग को अपनी स्वीकार्यता दी हुई थी दूसरी तरफ सुगना और सरयू सिंह दोनों उस उद्देश्य को भूल चुके थे। युवा सुगना और अधेड़ सरयू सिंह दोनों वासना की आग में जल रहे थे। उन्हें इस मिलन का उद्देश्य न याद रहा था न वह इसे पूरा करना चाहते थे।

दीये जलाने के बाद सुगना उनके समक्ष खड़ी हो गई सुगना की निगाहें झुकी हुई थी पर उसकी आंखों को सरयू सिंह के लंड के साक्षात दर्शन हो रहे थे। सरयू सिंह भी अपनी अर्ध नग्न बहू को देखकर नयन सुख ले रहे थे।

कुछ ही देर में दोनों प्रेमियों के पैर आगे बढ़े और सुगना अपने बाबू जी से सट गई। सरयू सिंह के लंड पर लगी कजरी की लार सूख चुकी थी। सुगना ने अपने कोमल हाथों से उनका लंड पकड़ लिया। उसकी सास कजरी द्वारा लंड चूस लार गीला करने का प्रयास व्यर्थ हो चला था।

उधर झरोखे से यह दृश्य देख रही कजरी सुगना की इस गतिविधि पर आश्चर्यचकित थी। कैसे सुगना कुछ ही मिनटों में इतनी खुल गई ? सरयू सिंह सुगना को लगातार चूमे जा रहे थे। कुछ ही देर में सरयू सिंह ने सुगना को बिस्तर पर लिटा दिया। वह उसकी चुचियों को ब्रा से आजाद कर रहे थे। सुगना की चुचियों को मीसते (तेजी से दबाते) हुए सरयू सिंह मदहोश हो रहे थे उधर सुगना की धड़कन तेज हो गयी। वह अपनी जांघों को बार-बार सिकोड रही थी पर सरयू सिंह अपने कार्य मे व्यस्त थे।

वह सुगना की चूँचियों में खोए हुए थे। ब्रा ने सुगना का साथ छोड़ दिया। कजरी सुगना के शरीर पर सरयू सिंह के रेंगते हुए हाथों को देखकर स्वयं उत्तेजित हो गयी। उसे यह दृश्य बिल्कुल अटपटा लग रहा था उसने तो सिर्फ यह सोचा था कि सरयू सिंह सुगना की जांघों के बीच अपने लंड को घुसा कर सुगना को गर्भवती करने का प्रयास करेंगे पर यहां तो ससुर और बहू के के बीच कामुक प्रेमालाप चल रहा था।

सरयू सिंह सुगना की चुचियों को चुमने के बाद धीरे-धीरे नीचे की तरफ बढ़ रहे थे। सुगना की पेंटी तक पहुंचने के पश्चात उन्होंने पेंटी को सरकाने का प्रयास न किया अपितु उसकी जांघों पर आ गए। जांघों का चुंबन लेते ही सुगना की सिहरन बढ़ती जा रही थी।

वह बुदबुदा रही थी…

बाबुजी ऊपर…..हां…….अउरु ऊपर...… वह अपने होंठ काट रही थी। वह अपनी जांघों को कभी ऊपर करती कभी नीचे। सरयू सिंह के हाथ कभी उसके पेट को सहलाते कभी उसकी जांघों को सुगना बेचैन हो रही थी। अंततः सुगना की पेंटी उतरने का वक्त आ गया।

सरयू सिंह ने अपनी मोटी उंगलियां उस लाल रंग की पेंटिं में फंसायीं और धीरे-धीरे सुगना की कोमल बुर पर से पर्दा हटा दिया। सुगना की बुर पूरी तरह गीली हो चुकी थी। ऐसा लग रहा था जैसे उसकी बुर के होंठों पर अमृत छलक आया हो। कितना स्वच्छ और निर्मल था सुगना का मदन रस….

अपनी पुत्री समान बहू सुगना के गुलाबी बुर के काले रोएं पर ओस की बूंदों की तरह चमक रहा मदन अगर सरयू सिंह की उत्तेजना को और बढ़ा गया वह सुगना के बूर की खूबसूरती में खो गए। उनकी जीभ लप-लपलपाने लगी।

उधर अपनी प्यारी बहू सुगना की सुंदर और पनियाई बुर देखकर कजरी मदहोश सी हो गई। उसके मन में भी उस अति सुंदर बुर को चूमने की तीव्र इच्छा हुई। कजरी सुगना के प्रति आकर्षित हो रही थी उसके शरीर और भावनाओं में आया यह बदलाव बिल्कुल अलग था।

इधर कजरी सोच ही रही थी उधर सरयू सिंह से बर्दाश्त नहीं हुआ उन्होंने बिना कुछ कहे सुने सुगना की कोमल बुर से अपने होंठ सटा दिए और सुगना का मदन रस चुरा लिया।

सुगना और कजरी दोनों सिहर गयीं। सुगना को तो शारीरिक सुख मिल रहा था और कजरी को भावनात्मक। सुगना ने आखिर बाबुजी की अपनी जाँघों के बीच ला दिया था।

अपनी कुंवारी बुर पर अपने बाबुजी के होठों को महसूस करते हुए सुगना की उत्तेजना आसमान छूने लगी। वह अपनी हथेलियों से चारपाई पर पड़ी चादर को पकड़ रही थी। और अपनी मुठ्ठियाँ भींचे अपनी चूत अपने बाबू जी से चटवा रही थी। उसके मन में कामुकता जाग चुकी थी उसे आनंद और वासना ने घेर लिया था।

सरयू सिंह ने अपनी मजबूत हथेलियों से सुगना की जाँघें फैला दी और अपने होठों से सुगना की बुर को चूसते हुए उसमें अपनी जीभ फिराने लगे। जितना रस वह अपनी बहू के बुर से चुराते उससे ज्यादा रस सुगना की बुर फिर से छोड़ देती।

कजरी यह दृश्य देखकर शर्म से पानी पानी हो रही थी कुंवर जी का यह रूप उसने कभी नहीं देखा था। कजरी ने झरोखे के पल्लों को थोड़ा फैला दिया ताकि वह इस अद्भुत दृश्य को और ध्यान से देख पाए। सुगुना तो सुध बुध खो कर अपनी बुर अपने ससुर से चुसवा रही थी। उसे तो झरोखे के पल्ले खुलने की कोई आवाज न सुनाई नदी पर सरयू सिंह को वह झरोखा याद था। इस धीमी आवाज को उन्होंने अपने संज्ञान में लिया और अपनी निगाहें झरोखे की तरफ की।

उन्हें दीए की रोशनी से चमकती कजरी की आंखें दिखाई पड़ गई। सरयू सिंह यह जान चुके थे कि कजरी यह दृश्य देख रही है। उनकी उत्तेजना चरम पर पहुंच गई कजरी उन्हें अपनी बहू को चोदते हुए देखना चाह रही थी। सरयू सिंह वासना के अधीन हो गए यह वासना का अतिरेक उनसे बर्दाश्त नहीं हो रहा था। उन्होंने सुगना की बुर को और तेजी से चूसना शुरू कर दिया सुगना मासूम थी वह इतनी उत्तेजना एक साथ बर्दाश्त न कर पाई वैसे भी सुगना के लिए यह अनुभव बिल्कुल नया था वह उत्तेजना से कराहने लगी।

"बाबूजी…...तनी.. धीईईईई….. रे. ..हां….असहिं……..अउरु भीतरी…..ह।….आह…….ममम…….माँ……..।

सुगना स्खलन के लिए तैयार थी। वह कभी अपने बाबूजी के बालों को पकड़ कर उनके चेहरे को अपनी बुर पर खींचती कभी उन्हें अपनी बुर से दूर करती।

सुगना अपने पैर अपनी पाबूजी की पीठ पर पटक रही थी वह अपनी दोनों एड़ियों से अपने बाबूजी की पीठ पर प्रहार कर रही थी। पर सरयू सिंह अपनी सुगना बेटी को बिना स्खलित कराए छोड़ने वाले नहीं थे। उनके होठों और जिह्वा ने सुगना की छोटी रसीली बुर को घेर रखा था और उनकी खुरदुरी मुलायम जीभ सुगना की बुर की गहराई नाप रही थी तथा अंदर छुपा मदन रस कुरेद कुरेद कर चुरा रहो थी। उधर उनकी हथेलियां सुगना की चूचियों को मीसे जा रही थीं जिसकी तरंगे सुगना की बुर तक पहुंच रही थी। सुगना का चेहरा लाल हो गया था।

सुगना उनके बालों को खींच रही थी और पीठ पर प्रहार कर रही थी। इतना करने के बावजूद वह अपनी बुर का स्खलन रोक पाने में नाकाम थी। सुगना झड़ने लगी। उसके कोमल प्रहार कम होते गए और मुठ्ठियों में पकड़े गए बालों का खिंचाव भी।

सुगना शांत होती गई। सरयू सिंह उसे और परेशान नहीं करना चाहते थे। उन्हें उनकी मेहनत का फल मिल चुका था सुगना की बुर जो अब तक अपना मदन रस रह-रहकर छलका रही थी उसने बचा खुचा प्रेम रस एक साथ उड़ेल दिया था जिसे सरयू सिंह आत्मसात कर रहे थे।

उन्होंने जब सुगना की बुर से चेहरा हटाया वह पूरी तरह सुगना के मदन रस से भीगा हुआ था। ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे शेर शिकार कर उठा हो और रक्त की जगह होंठो और गालों पर प्रेम रस लगा हुआ हो।

उन्होंने कजरी की तरफ देखा कजरी सरयू सिंह को मन ही मन चूमना चाहती थी आज उन्होंने उसकी बहू को वह सुख दिया था जो हर स्त्री अपने मन में कल्पना करती हैं। कजरी अपनी बुर पर भी सरयू सिंह के होठों की प्रतीक्षा कर रही थी सरयू सिंह ने आज तक कभी कजरी की बुर पर अपने होंठ नहीं लगाए थे परंतु आज सुगना की बुर को चूसते देखकर कजरी मन ही मन ललच गई थी।

सुगना की साँसें अभी भी तेज चल रही थी। उसने अपनी आंखें बंद की हुई थी। सरयू सिंह सुगना के प्यारे चेहरे को देखकर भाव विभोर हो गए वह उसके होठों को चूमना चाहते थे जैसे ही उन्होंने अपना चेहरा सुगना के चेहरे के पास लाया सुगना की कोमल बाहों ने उनकी गर्दन को घेर लिया और नंगी सुगना ने अपने बाबुजी की अपने ऊपर खींच लिया।

सरयू सिंह के मदन रस से भीगे होंठ सुगना के होठों से सट गए। दोनों प्रेमी युगल में आपस में कोई बात नहीं हुयी पर चारों होंठ एक दूसरे में समा गए।

सुगना खुद द्वारा उत्सर्जित मदन रस का स्वाद ले रही थी। अपने बाबुजी के होठों से मिल रहा स्पर्श और उस मदन रस का अनोखा स्वाद उसे भाव विभोर कर रहा था।

सरयू सिंह चारपाई से उठकर खड़े हो गए अपने होठों पर लगे सुगना के मदन रस और अपने मुह से लार अपनी हथेलियों में अपने लंड को सहलाने लगे। चुदाई की घड़ी आ चुकी थी…

अद्भुत दृश्य था एक सुकुमारी चारपाई पर अपनी जाँघे सटाए लेटी हुई थी उसके बलिष्ठ और भीमकाय ससुर अपने विशाल लंड को सहलाते हुए उसकी सांसे सामान्य होने की प्रतीक्षा कर रहे थे। दूसरे कमरे में सास अपनी बहू की खूबसूरती से मोहित होकर उसे नग्न देख रही थी….

नियति ने बुर और लंड के रिश्तों को वरीयता देकर इंसानी रिश्तो को पीछे छोड़ दिया था।

सुगना की आंख खुल चुकी थी अपने बाबू जी को अपना लंड सहलाते हुए देखकर उसकी आंखें स्वतः ही बंद हो गई। उसने अपनी पलकें फिर खोलीं वह सरयू सिंह के लंड को देखकर मन ही मन खुश होती कभी घबराती कभी शर्माती। उसकी जाँघे एक दूसरे से सटी हुई थी पर बुर फूल चुकी थी। अब से कुछ देर पहले सरयू सिंह की जीभ और होठों ने सुगना के बुर के होंठो को चूसकर लाल कर दिया था। बुर का गुलाबी मुख झांक रहा था।

सरयू सिंह ने चारपाई को खींच कर उसी अवस्था में ला दिया जिस अवस्था में उन्होंने कजरी को चोद कर सुगना को कामुक दृश्य दिखाया था। चारपाई खींचे जाने से सुगना सचेत हो गयी वह उस दिन को याद करने लगी। अचानक उसकी निगाहें झरोखे पर चली गई। झरोखा अपेक्षाकृत ज्यादा खुला हुआ था। कजरी की आंखें रोशनी से चमक रही थी। अब सुगना जान चुकी थी की आज उसकी चुदाई देखने के लिए उसकी सास कजरी झरोखे पर खड़ी थी।

शर्म और हया के सारे पर्दे हट चुके थे। सुगना यह जानकर और भी उत्तेजित हो गई कि उसकी प्यारी सास उसे चुदते हुए देख रही है।

सुगना ने अपनी जाँघे फैला दीं। उसने अपनी कोमल बाहें ऊपर की और अपने बाबूजी को खुले तौर पर आमंत्रित कर दिया।

सरयू सिंह उत्तेजना से कांप रहे थे सुगना जैसी अद्भुत सुंदरी अपनी जाँघे फैलाए उनसे प्रणय निवेदन कर रही थी। वह अपना लंड अपने हाथ में लिए सुगना की कोमल जांघों के बीच आ गए।

उन्होंने अपनी चिर परिचित प्रेमिका कजरी की तरफ देखा जैसे धनुष भंग करने से पहले वह कजरी की इजाजत चाह रहे हों। उन्होंने मन ही मन कजरी की इजाजत स्वीकार कर ली और अपने लंड के सुपाड़े को सुगना की कोमल बुर् से सटा दिया।

सरयू सिंह के माथे पर एक बार फिर चिलकन सी हुई उन्हें एक बार को फिर एहसास हुआ कि जिस सुकुमारी की कुंवारी बुर में वह अपना लंड डालने को बेकरार है वह उनकी पुत्री समान बहू सुगना है। परंतु सुगना की आंखों के कामुक आग्रह ने उनका ध्यान फिर सुगना की चुचियों पर खींच लाया। सरयू सिंह ने सुगना की चुचियों को चूम लिया।

सुगना की बुर ने सरयू सिंह के लंड के सुपाडे को अपने प्रेम रस से रंग दिया। यह जाने कैसा आकर्षण था न सरयू सिंह ने कोई चेष्टा की न सुगना ने लंड का सुपाड़ा उस कोमल बुर के मुख के प्रवेश द्वार को पूरी तरह ढक लिया। सुगना की बुर अपने बाबूजी के लंड के स्पर्श से अभिभूत हो चली सुगना की आंखें बंद होने लगी।

कितनी प्यारी लग रही थी सुगना। सरयू सिंह उसकी कोमलता और मासूमियत में खोए हुए थे उधर उनका लंडअंदर जाने के लिए आतुर था। सरयू सिंह ने अपनी कमर का दबाव बढ़ाया और सुगना कराह उठी...

"बाबूजी…. तनी धीरे से ….दुखाता"

उस मलाईदार चूत में लंड का प्रवेश सरयू सिंह की उत्तेजना को एक नया आयाम दे रहा था। अपनी बेटी समान बहू को वह उसकी खुशी के लिए चोद रहे थे उनके मन में कोई मलाल न था। उन्होंने सुगना की दर्द भरी कराह सुनी तो जरूर पर नजरअंदाज कर दिया और अपनी कमर का दबाव बढ़ाते चले गए।

सुगना को अब जाकर चुदाई का एहसास हो रहा था। उसकी जांघें अकड़ रही थीं। अब तक तो उसकी बुर ने सिर्फ सरयू सिंह की उंगली का आनंद लिया था पर यह मुसल तो उसकी उम्मीद से कहीं ज्यादा था। सुगना को अपनी जांघें फैलती हुई प्रतीत हुई। यह कैसा अंजाना अनुभव था वह इस मुसल को अपने अंदर कहां जगह देगी। उसके कसे हुए शरीर का भराव मुसल को अंदर आने से रोक रहा था।

सुगना सिहर रही थी उसने अपने बाबूजी के कंधों को पकड़ लिया और उन पर अपने नाखून गड़ाने लगी। सुगना की आंखों में आंसू की बूंदे थी।

सरयू सिंह अपनी बहू की आंखों में आंसू ना देख सके। एक पल के लिए उन्होंने उसकी आंखों को चूम लिया पर वह अपने लंड को कुछ इंच और प्रवेश करा गए।

अभी तक लंड का तिहाई भाग ही सुगना की बुर में जा पाया था और उसकी सांसे ऊपर नीचे हो रहीं थीं।

कजरी अपनी बहू की कोमल बुर को पूरी तरह फैले हुए देख रही थी। उस पतली और गुलाबी सुरंग में सरयू सिंह का काला लंड अद्भुत लग रहा था। सरयू सिंह ने सुगना के गाल पर चुम्बन लिया। सुगना ने अपनी आंखें खोली सरयू सिंह ने कहा

"सुगना बाबू दुखाई तो बताइह"

सरयू सिंह ने अपना लंड उसी स्थान पर बनाए रखा। अब तक सुगना की तेज चल रही सांसे धीरे-धीरे सामान्य होने लगी। सरयू सिंह सुगना की चूचियों को सहला रहे थे तथा उसके गाल और होठों को चूम रहे थे। सुगना को धीरे धीरे वह स्थिति सामान्य लगने लगी। सरयू सिंह ने अपने लंड को जैसे ही पीछे लिया सुनना के चेहरे पर खुशी आ गई उसे लगा जैसे उसने अपनी पहली चुदाई के दर्द को सह लिया है।

सरयू सिंह ने अपने लिंग को पीछे लिया और फिर धीरे-धीरे वापस उसी अवस्था में ला दिया सुगना की बुर फिर भर गई। सरयू सिंह एक माहिर खिलाड़ी वह सुगना कि बुर को धीरे-धीरे चोद रहे थे। सुगना अब मुस्कुरा रही थी उसकी बुर ने खुशी में प्रेम रस का उत्सर्जन बढ़ा दिया। सरयू सिंह ने धीरे-धीरे अपने लंड का दबाव बढ़ाना शुरू किया। सरयू सिंह का लंड सुगना की कोमल चूत में एक एक सूत कर आगे बढ़ रहा था। हर धक्के से वह थोड़ा अंदर प्रवेश करता। हर धक्के के साथ सुगना की आंखें पूरी तरह खुल जाती और पुतलियां बाहर आने को होती पर सुगना उस दर्द को सही कर लंड के बाहर निकलने का इंतजार करती और उस आनंद को महसूस कर फिर अगले दर्द को सहने के लिए तैयार हो जाती।

सरयू सिंह के लंड ने सुगना की कोमल और कसी हुयी बुर में ठीक उसी प्रकार जगह बनाई जैसे जनरल डिब्बे में घुसा कोई यात्री धीरे-धीरे अपनी जगह बना लेता है। सुगना की खुशी बढ़ती जा रही थी शरीर सिंह लंड अभी भी 1 इंच बाहर था। जब तक लंड पूरा प्रवेश न करता सरयू सिंह रुकने वाले नही थे।

सरयू सिंह का लंड सुगना के गर्भाशय तक पहुंच कर उसका मुंह खोलने का प्रयास कर रहा था। लंड की ठोकर सुगना को आनंदित तो कर रही थी परंतु उस पर दबाव पढ़ते ही सुगना थरथर कांपने लगती। वह अपने बाबू जी को आगे बढ़ने से रोकना चाहती थी। सरयू सिंह के दबाव बढ़ाते ही वह कराह उठी

" बाबूजी अब बस अब ना सहल जाई"

सरयू सिंह उसे चुमते उसकी चूचियां सहलाते परंतु उसकी बात को मान पाना उनके बस मे न था। कमर के नीचे उनका लंड उस बुर में पूरी तरह समा आने को आतुर था। सरयू सिंह अपनी बहू सुगना को धीरे-धीरे चोद रहे उन्हें इस जुदाई का आनंद तो आ रहा था पर पूरा नहीं। लंड का कुछ हिस्सा अब भी बाहर था।

सुगना के चेहरे पर खुशियां ही खुशियां उसके बाबूजी का लंड उसे आज वह सुख दे रहा था जिसकी कल्पना वह विवाह के उपरांत हमेशा किया करती थी और जिस प्यार और आत्मीयता से उसके बाबूजी उसे चोद रहे थे वह उनकी मुरीद हो गई थी वह इस सुख को एक नहीं हर बार लेना चाहती थी उसने गर्भवती होने की इच्छा का पूरी तरह परित्याग कर दिया था उसने सरयू सिंह को अपनी तरफ खींचा और उनके कान में बोली

"बाबूजी भीतरी मत गिराइब"

"काहें हमार बाबू"

"हमरा ई सुख बार-बार चाहीं हमरा अभी लाइका ना चाहीं"

सरयू सिंह की खुशी का ठिकाना न रहा जिस बात को वह पिछले कुछ दिनों से सोच रहे थे वह उनकी बहू ने स्वयं ही कह दिया था. सरयू सिंह का दिल बल्लियों उछल रहा था। अचानक आने कजरी का ध्यान आया वह क्या सोचेगी। सरयू सिंह माहिर खिलाड़ी थे। अपनी धोती में गठियाये हुए लड्डु को याद कर उन्हें अपनी बुद्धिमत्ता पर गर्व हो रहा था।

वह सुगना के होठों को चूमने लगे और अपनी कमर की रफ्तार को बढ़ाने लगे। सुगना की बुर उनके नए जोश कोऔर न झेल पाई। वह आंनद के सागर में डूबने उतराने लगी। सुगना बुदबुदा रही थी..

"बाबुजी ….ह असहिं चो…….आ…...ई …..चोद……...दीईईईई आ……..माँ…...एआईईईई"

सुगना के मुह से चोदना शब्द सुनकर सरयू सिंह और कामुक हो गए। उन्हें सुगना बहु के रूप से अलग एक कामपिपासु युवती दिखाई पड़ने लगी। उन्होंने उसकी चुचियों को तेजी से मसलते हुए चोदना शुरु कर दिया। सुगना के प्रति उनका प्यार बदल गया था। वह उसे एक युवती की भांति चोद रहे थे जिसमें सिर्फ और सिर्फ वासना थी। सुगना अपने बाबुजी का यह रूप देखकर आनंदित भी थी और अपनी जांघों को यथासंभव फैलाकर अपनी चुदाई का आनंद ले रही थी।

उसकी बुर का कसाव लंड पर अभी भी कायम था पर उसके बाबुजी का मजबूत लंड उस दबाव को चीरकर सुगना की बुर में अंदर गहराई तक उतर रहा था और गर्भाशय के मुख को खोलने का प्रयास कर रहा था यही वह अवसर होता जब सुगना अपनी आंखों से बाबूजी को रोकती। एक कमसिन सुंदरी सरयू सिंह के पसीने छुड़ा दिए थे उनके माथे पर पसीने की बूंदे आ गई थी शरीर भी गर्म हो चला था। वह अपनी प्यारी सुगना को चोदने में मगन थे। उन्होंने सुगना की चुचियों को मुंह में ले लिया और उसके छोटे पर तने हुए निप्पलों को चूसने लगे उन्होंने अपने लंड की रफ्तार कम न की। सुगना उनके बाल पकड़कर उन्हें कभी अपनी चुचियों पर खींचती कभी धकेलती।

वह बड़बड़ा रही थी…

बाबुजी…..कस…..के…...चो…...आआआआआ च…. च... च चो…...द…..मा………."

कजरी अपनी बहु सुगना के इस कामुक रूप को देखकर हतप्रभ थी उसे यह कतई उम्मीद नहीं थी उसकी बहू सुगना इस तरह से अपने प्रथम मिलन का सुख ले रही थी। निश्चय ही उसकी कामुकता को जागृत करने में उसकी सहेली लाली का योगदान होगा वरना सुगना जैसी मासूम लड़की और यह कामूक व्यवहार यह कजरी की सोच से परे था।

सरयू सिंह उसकी उत्तेजना को समझ रहे थे सुगना अब झड़ने वाली थी। जिस प्रकार उन्होंने इस स्खलित होती हुई सुगना का कौमार्य भेदन अपनी उंगलियों से किया था उसी प्रकार सुगना के स्खलन के समय उन्होंने अपने लंड को सुगना की बुर में जड़ तक ठान्स दिया। सुगना की जांघों के बीच बुर के उपर की हड्डी और सरयू सिंह के लंड के ऊपर की हड्डी टकरा गई।

सुगना की आंखें और जाँघे पूरी तरह फैल गयीं। सुगना बेसुध हो गयी थी पर उसकी बुर का फूलना पिचकना जारी था। सरयू सिंह उसी अवस्था में कायम रहे पर सुगना की अंदरूनी भागों ने उनके लंड पर इतना दबाव बनाया की लंड ने पानी छोड़ दिया।

"सुगना बाबुजी…..आह….हमारा के हमेशा असहिं चो……" सुगना की जीभ उसके दांतों के बीच आ गयी। चेहरा लाल हो गया था।

सरयू सिंह का लंड सुगना के गर्भ में वीर्य भर रहा था। उस वासना के अतिरेक पर नर् सरयू सिंह का बस चल रहा था न सुगना का। नियति ने जैसे सुगना को गर्भवती करने का सोच लिया था।

सुगना की बुर का फूलना - पिचकना और सरयू सिंह के लंड का वीर्य वर्षा करना उसके लिए यह दोनों ही सुख अद्भुत थे वह उस आनंद को अपने दिलो-दिमाग में सजा लेना चाहती थी।

कजरी सरयू सिंह की जांघों में हो रही अकड़न को देख रही थी वह इस बात से प्रसन्न न थी की अंततः सरयू सिंह ने अपना वीर्य सुगना के गर्भ में उतार दिया था। कजरी भी अबतक अपनी चूत को रगड़ कर स्खलित हो चुकी थी।

सरयू सिंह सुगना के गालों को चूम रहे वह बार-बार अपनी मरदानी आवाज में सुगना बाबू ...सुगना बाबू…. पुकार रहे थे पर सुगना शांत थी। कुछ ही देर में वह स्वयं निढाल होकर सुगना के बगल में लेटने लगे। उनका लंड पक्कक़्क़... की ध्वनि के साथ सुगना की कोमल बुर से बाहर आ गया।

सुगना की कसी हुयी बुर ने सरयू सिंह के वीर्य को उगलना शुरू कर दिया। कजरी सुगना की बुर से बहते हुए वीर्य को देख रही थी। वह मन ही मन सोच रही थी कि काश कुँवर जी अपनी हथेलियों को सुगना की बुर पर रखकर इस वीर्य को बहने से रोक ले। वीर्य ज्वालामुखी की तरह छलक छलक कर बाहर आ रहा था।

कजरी ने आज अपनी बहू की अद्भुत चुदाई देख ली थी। नियति ने आज सुगना को उसकी जगह ला दिया और वह स्वयं सुगना की जगह खड़ी थी।

सरयू सिंह ने सुगना को करवट लिटा कर उसे सीने से सटा लिया। उनकी हथेलिया सुगना की पीठ और कोमल नितंबों पर घूमने लगीं। उन्होंने सुगना के नितंबों को अपनी हथेलियों से फैला दिया। सुगना की कोमल और कुमारी गांड कजरी को आंखों के ठीक सामने थी।

कितनी सुंदर थी सुगना और कितने सुंदर थे उसके खजाने। कजरी मदहोश हो रही थी। उसे पता था सुगना की चुदाई अभी और होनी थी। वह अब थक चुकी थी। वो टीन के डिब्बे से नीचे उतरी और अपनी चारपाई पर सो गई। उसने सुगना और सरयू सिंह और को नियति के हवाले छोड़ दिया था।

अभी रात बाकी थी पर कजरी थक चुकी थी।

और मैं भी

शेष अगले भाग में।
 
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