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Incest आह..तनी धीरे से.....दुखाता.

Lovely Anand

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आह ....तनी धीरे से ...दुखाता
(Exclysively for Xforum)
यह उपन्यास एक ग्रामीण युवती सुगना के जीवन के बारे में है जोअपने परिवार में पनप रहे कामुक संबंधों को रोकना तो दूर उसमें शामिल होती गई। नियति के रचे इस खेल में सुगना अपने परिवार में ही कामुक और अनुचित संबंधों को बढ़ावा देती रही, उसकी क्या मजबूरी थी? क्या उसके कदम अनुचित थे? क्या वह गलत थी? यह प्रश्न पाठक उपन्यास को पढ़कर ही बता सकते हैं। उपन्यास की शुरुआत में तत्कालीन पाठकों की रुचि को ध्यान में रखते हुए सेक्स को प्रधानता दी गई है जो समय के साथ न्यायोचित तरीके से कथानक की मांग के अनुसार दर्शाया गया है।

इस उपन्यास में इंसेस्ट एक संयोग है।
अनुक्रमणिका
भाग 126 (मध्यांतर)
भाग 127 भाग 128 भाग 129 भाग 130 भाग 131 भाग 132
भाग 133 भाग 134 भाग 135 भाग 136 भाग 137 भाग 138
भाग 139 भाग 140 भाग141 भाग 142 भाग 143 भाग 144 भाग 145 भाग 146 भाग 147 भाग 148 भाग 149 भाग 150 भाग 151 भाग 152 भाग 153 भाग 154
 
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sunoanuj

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Lovely Anand

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भाग 134

दरबान के दरवाजा खोलते ही रतन की नजरे अंदर खड़ी लड़कियों की तरफ चली गई और उसकी आंखें फटी रह गई आगे की लाइन में परियों की तरह खूबसूरत बन चुकी मोनी से उसकी नजरें चार हो गईं…



रतन और मोनी दोनों इस स्थिति के लिए तैयार न थे। परंतु मोनी की मादक काया रतन की निगाहों में छप सी गई..

मोनी ने अपनी स्थिति का आकलन किया और नजरे झुका ली.. शायद वह अपनी नग्नता को लेकर अब सजग हो गई थी..

अब आगे…

मोनी इस आश्रम में आई जरूर थी परंतु अभी भी वह रिश्तो को बखूबी पहचानती थी उसे अभी वैराग्य शायद पूरी तरह न हुआ था। रतन उसका जीजा था और अपनी इस अवस्था में उसे रतन से शर्म आ रही थी।

विद्यानंद के जाने के बाद माधवी उन युवा लड़कियों को उनकी भूमिका समझा रही थी।

सहेलियों अब हम सबको समाज सेवा में लगना है। हम हम सब रोज प्रातः काल नए आश्रम में चला करेंगे वहां हम सबको एक विशेष कुपे में खड़ा रहना होगा। हमारा सर कंधे और हांथ उस कूपे के बाहर होगा परंतु कंधे के नीचे का भाग ऊपर में कूपे के आवरण के भीतर रहेगा। हम सब पूर्णतया प्राकृतिक अवस्था रहे में रहेंगे मेरा आशय आप सब समझ ही रहे होंगे हमें कोई भी वस्त्र धारण नहीं करना है।

इस कूपे में कोई ना कोई युवा पुरुष जो आश्रम के अनुयायियों में से किसी का पुत्र या रिश्तेदार हो सकता है और जो स्त्री शरीर को समझना चाहता है आश्रम के प्रबंधकों द्वारा अंदर भेज दिया जाएगा।

(पाठकों को शायद याद होगा कि रतन ने जी आश्रम का निर्माण कराया था उसमें कुछ विशेष कूपे बनाए गए थे। जिनका विस्तृत विवरण पूर्व के एपिसोड में दिया गया है)

हम सबको अपने स्थान पर बिना किसी प्रतिक्रिया के खड़े रहना है वह पुरुष हमारे तन बदन को छू सकता है महसूस कर सकता है और यहां तक की हमारी योनि और स्तनों को अपनी उंगलियों और हथेलियों से छूकर महसूस कर सकता है। आपकी योनि के कौमार्य को देखने को कोशिश कर सकता है।

माधवी की यह बात सुनकर सभी लड़कियां असमंजस में थी। आपस में खुसुर फुसुर शुरू हो गई थी।

आप लोग परेशान मत होइए ऐसा वैसा कुछ भी नहीं होगा आप लोगों के हाथ में एक बटन रहेगा यदि वह पुरुष आपके कौमार्य को भंग करने की कोशिश करता है तो आपको बटन को दबाना है जिससे उस कूपे में लाल रोशनी हो जाएगी और उस व्यक्ति को वार्निंग मिल जाएगी और वह अपनी गतिविधियां रोक लेगा। यदि उसने अपनी गतिविधि नहीं रोका तो आप लाल बटन को एक के बाद एक लगातार दो बार दबा दीजिएगा। आपके इस सिग्नल को इमरजेंसी सिग्नल माना जाएगा और तुरंत ही उस व्यक्ति को कूपे से बाहर निकाल कर दंडित किया जाएगा।

कूपे में आने वाले सभी पुरुषों को यह नियम बखूबी समझा कर भेजा जाएगा और आप सब निश्चिंत रहिए आपके साथ कोई भी ज्यादती नहीं होगी। आप सबका सहयोग पुरुषों को स्त्री शरीर को समझने में मदद करेगा जैसा की स्वामी जी के आप सब को बताया था।

हां एक बात और पुरुषों के स्पर्श से स्त्री शरीर में निश्चित ही उत्तेजना उत्पन्न होती है पर आप सबको अपनी उत्तेजना को यथासंभव वश में करना है। यह कामवासना पर विजय प्राप्त करने के लिए एक योग की तरह है। प्रत्येक पुरुष को लगभग 10 मिनट का वक्त दिया जाएगा और इस 10 मिनट तक आपको अपनी संवेदना और वासना पर विजय प्राप्त करनी हैं।

और इसके उपरांत आप सब आधे घंटे का विश्राम ले सकती हैं जिसमें आप सब एक दूसरे से मिल सकती हैं और अपने अनुभव साझा कर सकती हैं।

इतना ध्यान रखिएगा की अकारण ही लाल बटन दबाना कतई उचित नहीं होगा यदि पुरुष स्पर्श से बेचैन या असहज होकर अपने लाल बटन दबाया तो आपको इस इस सेवा से मुक्त कर दिया जाएगा और आश्रम में किसी अन्य कार्य में लगा दिया जाएगा। पर यदि भावावेश में यदि आपने पुरुषों को सही समय पर नहीं रोका तो वह आपका कौमार्य भंग कर सकते हैं। इसलिए खतरा महसूस होते ही लाल बटन को लगातार दो बार अवश्य दबा कर इमरजेंसी का संकेत अवश्य दीजिएगा।

मोनी और उसकी सहेलियां पूरा ध्यान लगाकर माधवी की बातें सुन रही थी अपनी वासना पर विजय प्राप्त करने का निर्णय तो उन्होंने आश्रम में आने से पहले ही ले लिया था अब परीक्षा की घड़ी थी लड़कियों ने मन ही मन ठान लिया की वह इस परीक्षा में भी सफल होकर दिखाएंगी।

सभी लड़कियां माधवी की बात को समझ चुकी थी बाकी सब आश्रम में पहुंचने के बाद स्वतः ही समझ में आ जाना था। क्योंकि इस प्रक्रिया के रिहर्सल के लिए आश्रम के ही ट्रेंड पुरुषों को यह अवसर दिया जाना था।

बड़ा ही अनोखा आश्रम बनाया था विद्यानंद ने और उसकी सोच भी अनोखी थी।

इधर माधवी ने जिस प्रकार से लड़कियों को तैयार किया था वैसे ही दूसरी तरफ रतन ने पुरुषों को तैयार किया था। परंतु शायद आश्रम में ऐसे पुरुषों की उपयोगिता कम ही थी क्योंकि उस दौर में पुरुष शरीर को समझने के लिए स्त्रियों का आगे आना बेहद कठिन था।


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बहरहाल मोनी और उसकी सभी सहेलियां आज आश्रम के उसे विशेष कूपे में जाने वाली थी।

उधर रतन ने जब से मोनी को एक वस्त्र में देखा था उसे मोनी का यह बदला हुआ स्वरूप अविश्वसनीय लग रहा था। गांव में गुमसुम सी रहने वाली मोनी आज एक परिपक्व युवती की तरह प्रतीत हो रही थी और उसका तन-बदन भी सुडौल और कामुक हो चुका था उस झीने से एक वस्त्र के पीछे छुपी हुई मादक काया रतन की नजरे ताड़ गई थीं।

मोनी ने तो अपनी कामुकता पर विजय प्राप्त करने का प्रण लिया हुआ था परंतु रतन के मन में हलचल होने लगी वह मन ही मन अपनी व्यूह रचना करने लगा।

अगली सुबह माधवी ने मोनी और उसकी सहेलियों को एक बार फिर अपने उसी बगीचे में बुलाया जहां वह सब नग्न घूमा करती थी.

माधवी ने सभी लड़कियों को अपने बाल बांधने के लिए कहा और फिर सभी लड़कियों ने अपने सुंदर बालों को समेट कर जूड़े का आकार दे दिया.

आज वहां एक विशेष कुंड रखा था…जिसमें विशेष द्रव्य भरा हुआ था.. लड़कियां कौतूहल भरी निगाहों से माधवी की तरफ देख रहीं थी।

माधवी ने उन्हें संबोधित करते हुए कहा आप सब मेरे पीछे-पीछे आईये ध्यान रहे की इस कुंड से आपको बेहद सावधानी से निकलना है और कुंड में भरा द्रव्य आपके कंधे के ऊपर किसी भाग से नहीं छूना चाहिए विशेष कर बालों से और चेहरे से…

लड़कियां थोड़ा घबरा सी गई आखिर क्या था उस कुंड में? परंतु कुछ ही पलों में उनका भ्रम दूर हो गया माधवी स्वयं नग्न होकर धीरे-धीरे उस कुंड में उतरी और धीमे-धीमे चलते हुए कुंड से बाहर आ गई।

इसके बाद सभी लड़कियां एक-एक करके माधवी का अनुसरण किया।

कुंड से बाहर आने के कुछ समय पश्चात माधवी ने लड़कियों को अपने बदन को तौलिए से पोछने के लिए कहा..

विद्यानंद के आश्रम की व्यवस्थाएं दिव्य थी जितनी लड़कियां उससे कहीं ज्यादा मुलायम तौलिए माधवी ने पहले से ही सजा कर रखवा दिए थे।

लड़कियों ने अपने गीले बदन को पोछना शुरू किया उनका बदन चमक उठा। हाथ पैरों के रोए पूरी तरह गायब हो चुके थे और त्वचा चमकने लगी थी।

लड़कियों ने जैसे ही अपनी बुर और उसके आसपास के भाग को पोछा .. उनके आश्चर्य का ठिकाना न रहा उनकी बर का आवरण पूरी तरह हट चुका था.. चमकती बुर वह खुद तो नहीं देख पा रही थी परंतु अपनी सहेलियों की जांघों के जोड़ पर नजर पड़ते ही वह मंत्र मुग्ध होकर प्रकृति द्वारा निर्मित उस दिव्य अंग को देख रहीं थीं।

लड़कियों के आश्चर्य का ठिकाना न था वह एक दूसरे की तरफ देखकर मुस्कुराती कभी स्वयं अपनी निगाहें नीचे कर और कंधे को यथा संभव झुककर जांघों के जोड़ के बीच छुपी अपनी बुर को देखने का प्रयास करतीं।


लड़कियां स्वभाबिक रूप से एक दूसरे के अंगों से अपनी तुलना करने लगी थी। माधवी उनके कुतूहल को देखकर मुस्कुरा रही थी। सामने खड़ी मोनी भी इस स्वाभाविक कौतूहल को नहीं रोक पा रही थी। सभी लड़कियों का बदन चमकने लगा था पूरे शरीर पर कोई भी रोवा या बाल न बचा था। सभी लड़कियां बेहद खुश थी उन्हें उन अनचाहे बालों से छुटकारा मिल गया था जिन्हें हटाने के लिए ना तो कभी उन्होंने सोचा था और नहीं उनके हिसाब से शायद यह संभव था।

इस आश्रम में आई हुई यह सभी लड़कियां सामान्य परिवारों से आई हुई थी और आधुनिकता की दौड़ से बेहद दूर थीं जिस दौरान धनाढ्य परिवारों में यह प्रचलन आम हो चुका था परंतु मध्यम वर्ग और गरीब तबके से आई हुई है लड़कियां अभी कामुकता को प्राचीन परंपरा के हिसाब से ही जी रही थीं।वैसे भी यहां आई लड़कियां तो अपनी कामुकता और वासना को छोड़कर ही यहां आई थी।

माधवी ने सभी लड़कियों को संबोधित करते हुए कहा उम्मीद है आज का अनुभव आपको अच्छा लगा होगा और आपका शरीर कुंदन की भांति चमक रहा है आज पहली बार आप अपनी सेवा देने जा रही हैं। आपकी कक्षा में एक विशेष परिधान रखा हुआ है आप उस परिधान को पहन कर ठीक 10:00 बजे सभागार में उपस्थित होइए। वहां से हम सब एक साथ प्रस्थान करेंगे।

मोनी और उसकी सहेलियों ने माधवी के निर्देशानुसार स्नान ध्यान कर एक वस्त्र में तैयार हुई और निर्धारित समय पर हाल में आ गईं । हाल के बाहर एक बस खड़ी थी जिसमें सभी लड़कियां बैठ गई और बस रतन द्वारा बनाए गए आश्रम की तरफ चल पड़ी…


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लड़कियों का यह अनुभव अनोखा होने वाला था…

उधर रतन अपनी व्यूह रचना में लगा हुआ था। वह अपने आश्रम को सजा धजा कर माधवी और उसकी लड़कियों का इंतजार कर रहा था..

रतन द्वारा बनाए गए कूपे की विशेषता यह थी कि उसमें स्त्री या पुरुष जो भी खड़ा होता उसकी पहचान करना कठिन था। क्योंकि कूपे में उसके कंधे के नीचे का भाग ही दिखाई पड़ता था कंधे के ऊपर का भाग उस कूपे से बाहर रहता था।

जब विपरीत लिंग का दूसरा व्यक्ति उस कूपे में आता वह चबूतरे पर खड़े अपने साथी को पूर्णतयः नग्न अवस्था में पाता। परंतु अपने साथी का चेहरा देख पाने की कोई संभावना नहीं थी। और यही बात उस व्यक्ति पर भी लागू होती थी जो कूपे में पहले से आकर खड़ा होता था।

कूपे के चबूतरे की ऊंचाई इस प्रकार रखी गई थी की कुपे के अंदर खड़े व्यक्ति के कंधे कपड़े की सीलिंग से बाहर आ सके। और दूसरा साथी पूरी तरह कूपे के अंदर रह सके।

यह कपड़े की सीलिंग ही दोनों प्रतिभागियों के लिए पर्दा थी। जिस प्रतिभागी का कंधे और हांथ कूपे की सीलिंग से बाहर रहता था उसके हाथ में ही वह विशेष बटन दिया जाता था जिसे दबाने पर कुपे में एक लाल लाइट जलती थी। जिससे कूपे के अंदर के प्रतिभागी को तुरंत ही अपनी कामुक गतिविधियां रोक देनी होती थी इसका स्पष्ट मतलब था कि दूसरे व्यक्ति को यह बेहद असहज लग रहा है।

यदि कोई पुरुष या स्त्री कामुकता के अतिरेक में यदि दूसरे व्यक्ति को जरूर से ज्यादा परेशान करता या स्त्रियों का कौमार्य भंग करने का प्रयास करता तो उन्हें इस बटन को लगातार दो बार दबाना था और इसके बाद जो होता वह निश्चित ही उस पुरुष या स्त्री के लिए कतई ठीक ना होता।

लड़कियों को लेकर आ रही बस नए आश्रम तक पहुंच चुकी थी। रतन और उसके द्वारा तैयार किए गए लड़कों की टोली बस का इंतजार कर रही थी। एक-एक करके स्वर्ग की अप्सराएं नीचे उतर रही थी रतन की टोली के कुछ लड़कों के आनंद की सीमा न थी। लड़कों को आज इन्हें अप्सराओं के साथ उस कूपे में एक अनोखे और नए अनुभव को प्राप्त करना था। लड़कियों को इस बात का तो अंदाज़ की आज उनके साथ कुछ नया होगा परंतु उनके साथ ही यह लड़के होंगे इसका आवास कतई न था।

लड़कियों को एक कक्ष में बैठने के बाद माधवी रतन को लेकर एक बार फिर विशिष्ट कूपे का मुआयना करने गई एक-एक कूपे को और उसमें लगे बटन को स्वयं अपने हाथों से चेक किया और पूरी तसल्ली के बाद हाल में तैनात सुरक्षा कर्मियों से बात की। कुछ प्रश्नों के उत्तर के दौरान उसने सुरक्षा कर्मियों के चेहरे पर झिझक को नोटिस किया।

रतन जी कृपया आई हुई लड़कियों के लिए फल फूल की व्यवस्था करा दें।

रतन वहां से हटना तो नहीं चाहता था परंतु माधवी का आदेश टाल पाने की उसकी हिम्मत न थी। वह वहां से चला गया माधवी ने सभी तैनात सुरक्षा कर्मियों से विस्तार में बात की और और वापस अपनी लड़कियों की टोली में आ गई उसके चेहरे पर मुस्कान थी..

आखिरकार वह वक्त आ गया जब लड़कियों को उसे अनोखे कूपे में जाना था। सभी लड़कियां कूपन मे बने चबूतरे पर जाकर खड़ी हो गई और अपने एकमात्र वस्त्र को अपने गर्दन तक उठा लिया अपने दोनों हाथों को फैलाने के बाद उन्होंने कॉपी की कपड़े की सीलिंग को चढ़ा दिया और अब ऊपर के अंदर उनका कंधे से नीचे का भाग पूरी तरह नग्न था। दोनों हाथ भी कूपे के बाहर थे और उनमें से एक हाथ में सभी लड़कियों ने वह बटन पकड़ा हुआ था।

एक लड़की ने कौतूहलवश बटन को एक बार दबाया नीचे उस कूपे के अंदर जल रही श्वेत रोशनी का कलर लाल हो गया जैसे ही उसने बटन छोड़ा रंग वापस श्वेत हो गया।

उस लड़की ने बटन को दो बार दबाने की हिम्मत ना दिखाई शायद उसे चेक करना इतना जरूरी भी नहीं था उसे आश्रम की व्यवस्थाओं पर यकीन हो चला था।

धीरे-धीरे सभी लड़कियां कूपे के नियमों से अवगत हो चुकी थी और माधवी के सिग्नल देने के बाद कूपन में रतन के लड़कों को आने की अनुमति दे दी गई। लड़के भी ठीक उसी प्रकार नग्न थे जिस प्रकार लड़कियां थी कफे के अंदर किस कौन सी अप्सरा प्राप्त होगी इसका कोई विवरण या नियम नहीं था वैसे भी लड़कों के लिए वह सभी लड़कियां अप्सराओं के समान थी। जिन लड़कों में वासना प्रबल थी वह बेहद उत्साह में थे। नग्न लड़कियों के साथ 10 मिनट का वक्त बिताना और उन्हें पूरी आजादी के साथ चुनाव और महसूस करना यह स्वर्गिक सुख सेकाम न था।

सभी लड़के एक-एक कप में प्रवेश कर गए और मौका देखकर और नियमों को ताक पर रख रतन भी एक विशिष्ट कूपे में प्रवेश कर गया। बड़ी सफाई से उसने मोनी को पहचानने की व्यवस्था कर रखी थी।

सभी कूपों में दिव्य नजारा था।

लड़कियों का खूबसूरती से तराशा हुआ बदन लड़कों के लिए आश्चर्य का विषय था। उनमें से अधिकतर शायद पहली बार लड़की का नग्न शरीर देख रहे थे। माधवी ने लड़कियों के बदन पर कसाव और कटाव लाने के लिए जो उन्हें योगाभ्यास कराया था उसका असर स्पष्ट दिखाई पड़ रहा था।

लड़कों के आनंद की सीमा न थी वह बेहद उत्साह से उन दिव्य लड़कियों के बदन से खेलने लगे कभी-कभी किसी कूपे में लाल लाइट जलती पर तुरंत ही बंद हो जाती।

उधर रतन भी अपने विशिष्ट कूपे में प्रवेश कर चुका था..

अंदर खड़ी मोनी को देखकर रतन हतप्रभ रह गया..। उसने मोनी की जो कल्पना की थी मोनी उससे अलग ही लग रही थी। बदन खूबसूरती से तराशा हुआ अवश्य था पर रंग रतन की उम्मीद से कहीं ज्यादा गोरा था।

रतन ने ऊपर सर उठाकर मोनी का चेहरा देखने की कोशिश की पर कामयाब ना रहा। कूपे की रचना इस प्रकार से ही की गई थी। एक पल के लिए उसे भ्रम हुआ कि कहीं कोई और तो मोनी के लिए निर्धारित कूपे में नहीं आ गया है।


पर रतन को अपनी व्यवस्थाओं पर पूरा भरोसा था। वैसे भी जितने कूपे बनाए गए थे उतनी ही लड़कियां इस आश्रम में लाई गई थी।

रतन ने और समय व्यर्थ करना उचित न समझा और उसकी नज़रों ने समक्ष उपस्थित खूबसूरत शरीर का माप लेना शुरू कर दिया।

मोनी की काया खजुराहो की मूर्ति की भांति प्रतीत हो रही थी। कसे हुए उन्नत उरोज पतला कटिप्रदेश और भरे पूरे नितंब ऐसा लग रहा था जैसे किसी खजुराहो की मूर्ति को जीवंत कर चबूतरे पर खड़ा कर दिया गया हो।

रतन आगे बढ़ा और अपने हाथ बढ़ाकर उसे मोनी की कमर पर रख दिया। रतन ने मोनी के बदन की कपकपाहट महसूस की। ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे इस स्पर्श से मोनी असहज हो गई थी। पर शायद यही मोनी की परीक्षा थी।

रतन ने अपने हाथ ऊपर की तरफ बढ़ाए और मोनी की भरी भरी गोल चूचियों को अपनी हथेलियां में लेकर सहलाने लगा। मोनी अब उत्तेजना महसूस कर रही थी और रतन के इस कामुक प्रयास को महसूस करते हुए भी नजर अंदाज कर रही थी।


रतन ने दोनों चूचियों को बारी बारी से सहलाया । अपने अंगूठे और तर्जनी के बीच उसके निप्पलों को लेकर धीरे-धीरे मसालना शुरू कर दिया। उसे बात का इल्म तो अवश्य था था कि मोनी को किसी भी प्रकार का कष्ट नहीं होना चाहिए अन्यथा वह बटन को लगातार दो बार भी दबा सकती है और रतन को शर्मनाक स्थिति में ला सकती है।

रतन बेहद सावधानी से चूचियों को छू रहा था और बेहद प्यार से मसल रहा था। मोनी की तरफ से कोई प्रतिरोध न पाकर रतन ने अपने होंठ मोनी की चूचियों से सटा दिए और हथेलियो से उसके कूल्हों को पकड़कर सहलाने लगा। रतन के होंठ अब कुंवारी चूचियों और उसके निप्पलों पर घूमने लगे। ऊपर चल रही वासनाजन्य गतिविधियों का असर नीचे दिखाई पड़ने लगा।

रतन ने अपना ध्यान चूचियों से हटकर उसके सपाट पेट पर केंद्रित किया और धीरे-धीरे नाभि को चूमते चूमते नीचे उसकी जांघों के बीच झांक रही बुर पर आ गया।

जांघों पर रिस आई बुर की लार स्पष्ट दिखाई पड़ रही थी। मोनी गर्म हो चुकी थी और स्वयं को पूरी तरह समर्पित कर चुकी थी। रतन को मोनी से यह उम्मीद कतई नहीं थी परंतु जब वासना चरम पर हो मनुष्य का दिमाग काम करना बंद कर देता है।

रतन कोई मौका नहीं छोड़ना चाहता था वह स्वयं मोनी के चबूतरे पर चढ़ गया। और मोनी के बदन से अपने लंड को छुआने का प्रयास करने लगा। यह एहसास अनोखा था। रतन की वासना परवान चढ़ रही थी। ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे मोनी इस कामुक मिलन का इंतजार कर रही थी।


आखिरकार रतन ने अपने एक हाथ से मोनी के एक पैर को सहारा देकर ऊपर उठाया और अपने लंड को मोनी की पनियाई बुर पर रगड़ने लगा। रतन वासना में यह भूल गया था कि यहां आई सारी लड़कियां कुंवारी हैं और उन्हें अपना कौमार्य सुरक्षित रखना है। परंतु रतन अपनी वासना में पूरी तरह घिर चुका था और मोनी की कोमल बुर जैसे उसके लंड के स्वागत के लिए तैयार बैठी थी। उसने अपनी कमर पर थोड़ा जोर लगाया और लंड का सुपड़ा बुर में धंस गया..

कमरे में एक मीठी आह गूंज उठी.. यह आवाज बेहद कामुक थी परंतु इस आह से उस व्यक्ति की पहचान करना कठिन था छोटी-मोटी सिसकियां तो उस कक्ष में मौजूद कई लड़कियां भर रही थी पर यह आवाज कुछ अनूठी थी और इस कूपे में हो रहा कृत्य भी अनूठा था।


रतन का लंड कई दिनों बाद बुर के संपर्क में आकर थिरकने लगा था । किसी योद्धा की भांति वह आगे बढ़ने को आतुर था।

रतन ने मोनी के कमर और कूल्हों को अपने हाथों से सहलाया और फिर पकड़ लिया और जैसे ही अपने लंड का थोड़ा दबाव बढ़ाया लंड गर्भाशय को चूमने में कामयाब हो गया। कुछ पलों के लिए मोनी के बदन में कंपन होने लगे रतन के लंड पर अद्भुत संकुचन हो रहा था।

अब तक मोनी की तरफ से लाल बत्ती नहीं जलाई गई थी इसका स्पष्ट संकेत यह था कि मोनी को यह कृत्य पसंद आ रहा था। रतन ने देर ना की और अपने लंड को आगे पीछे करने लगा।

उत्तेजना के चरम पर पहुंचकर उसने अपने लंड को गर्भाशय के मुख्य तक ठास दिया और चूचियों को चूसता रहा। मोनी से भी और बर्दाश्त ना हुआ और वह रतन के लंड पर प्रेम वर्षा करने लगी और स्खलित होने लगी। 10 मिनट का अलार्म बज चुका था। परंतु रतन और मोनी अब भी अपना स्स्खलन पूर्ण करने में लगे हुए थे।

आखिरकार रतन ने अपना लंड मोनी की बुर से बाहर किया और उसने जो मोनी के अंदर भरा था वह रिसता हुआ उसकी जांघों पर आने लगा।

सभी लड़कियां और लड़के एक-एक कर बाहर आ रही थे .. अंत में रतन भी अब जा चुका था।

बाहर लड़कियां अपनी सहेलियों से आज की घटनाक्रम और अपने अनुभवों को एक दूसरे से साझा कर रही थी …तभी

“अरे मोनी कहीं नहीं दिखाई दे रही है कहां है वो?” एक लड़की ने पूछा..

माधवी भी अब तक उन लड़कियों के पास आ चुकी थी उसने तपाक से जवाब दिया..

मोनी रजस्वला है और कमरे में आराम कर रही है..

नियति स्वयं आश्चर्यचकित थी..

क्या रतन के खेल को माधवी ने खराब कर दिया था या कोई और खेल रच दिया था?

उधर रतन संतुष्ट था तृप्त था वह अब भी मोनी के अविश्वसनीय गोरे रंग के बारे में सोच रहा था।

शेष अगले भाग में..
 
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Raja jani

आवारा बादल
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रतन की तो चांदी हो गई करारा कोरा माल भोगने को मिला।पर बेचारे सरजू जी का भी कुछ होना चाहिए आगे।
 

Lovely Anand

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रतन की तो चांदी हो गई करारा कोरा माल भोगने को मिला।पर बेचारे सरजू जी का भी कुछ होना चाहिए आगे।
काफी जल्दी पढ़ लिया आपने पर ध्यान से नहीं..
 
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Ajju Landwalia

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भाग 134

दरबान के दरवाजा खोलते ही रतन की नजरे अंदर खड़ी लड़कियों की तरफ चली गई और उसकी आंखें फटी रह गई आगे की लाइन में परियों की तरह खूबसूरत बन चुकी मोनी से उसकी नजरें चार हो गईं…



रतन और मोनी दोनों इस स्थिति के लिए तैयार न थे। परंतु मोनी की मादक काया रतन की निगाहों में छप सी गई..

मोनी ने अपनी स्थिति का आकलन किया और नजरे झुका ली.. शायद वह अपनी नग्नता को लेकर अब सजग हो गई थी..

अब आगे…

मोनी इस आश्रम में आई जरूर थी परंतु अभी भी वह रिश्तो को बखूबी पहचानती थी उसे अभी वैराग्य शायद पूरी तरह न हुआ था। रतन उसका जीजा था और अपनी इस अवस्था में उसे रतन से शर्म आ रही थी।

विद्यानंद के जाने के बाद माधवी उन युवा लड़कियों को उनकी भूमिका समझा रही थी।

सहेलियों अब हम सबको समाज सेवा में लगना है। हम हम सब रोज प्रातः काल नए आश्रम में चला करेंगे वहां हम सबको एक विशेष कुपे में खड़ा रहना होगा। हमारा सर कंधे और हांथ उस कूपे के बाहर होगा परंतु कंधे के नीचे का भाग ऊपर में कूपे के आवरण के भीतर रहेगा। हम सब पूर्णतया प्राकृतिक अवस्था रहे में रहेंगे मेरा आशय आप सब समझ ही रहे होंगे हमें कोई भी वस्त्र धारण नहीं करना है।

इस कूपे में कोई ना कोई युवा पुरुष जो आश्रम के अनुयायियों में से किसी का पुत्र या रिश्तेदार हो सकता है और जो स्त्री शरीर को समझना चाहता है आश्रम के प्रबंधकों द्वारा अंदर भेज दिया जाएगा।

(पाठकों को शायद याद होगा कि रतन ने जी आश्रम का निर्माण कराया था उसमें कुछ विशेष कूपे बनाए गए थे। जिनका विस्तृत विवरण पूर्व के एपिसोड में दिया गया है)

हम सबको अपने स्थान पर बिना किसी प्रतिक्रिया के खड़े रहना है वह पुरुष हमारे तन बदन को छू सकता है महसूस कर सकता है और यहां तक की हमारी योनि और स्तनों को अपनी उंगलियों और हथेलियों से छूकर महसूस कर सकता है। आपकी योनि के कौमार्य को देखने को कोशिश कर सकता है।

माधवी की यह बात सुनकर सभी लड़कियां असमंजस में थी। आपस में खुसुर फुसुर शुरू हो गई थी।

आप लोग परेशान मत होइए ऐसा वैसा कुछ भी नहीं होगा आप लोगों के हाथ में एक बटन रहेगा यदि वह पुरुष आपके कौमार्य को भंग करने की कोशिश करता है तो आपको बटन को दबाना है जिससे उस कूपे में लाल रोशनी हो जाएगी और उस व्यक्ति को वार्निंग मिल जाएगी और वह अपनी गतिविधियां रोक लेगा। यदि उसने अपनी गतिविधि नहीं रोका तो आप लाल बटन को एक के बाद एक लगातार दो बार दबा दीजिएगा। आपके इस सिग्नल को इमरजेंसी सिग्नल माना जाएगा और तुरंत ही उस व्यक्ति को कूपे से बाहर निकाल कर दंडित किया जाएगा।

कूपे में आने वाले सभी पुरुषों को यह नियम बखूबी समझा कर भेजा जाएगा और आप सब निश्चिंत रहिए आपके साथ कोई भी ज्यादती नहीं होगी। आप सबका सहयोग पुरुषों को स्त्री शरीर को समझने में मदद करेगा जैसा की स्वामी जी के आप सब को बताया था।

हां एक बात और पुरुषों के स्पर्श से स्त्री शरीर में निश्चित ही उत्तेजना उत्पन्न होती है पर आप सबको अपनी उत्तेजना को यथासंभव वश में करना है। यह कामवासना पर विजय प्राप्त करने के लिए एक योग की तरह है। प्रत्येक पुरुष को लगभग 10 मिनट का वक्त दिया जाएगा और इस 10 मिनट तक आपको अपनी संवेदना और वासना पर विजय प्राप्त करनी हैं।

और इसके उपरांत आप सब आधे घंटे का विश्राम ले सकती हैं जिसमें आप सब एक दूसरे से मिल सकती हैं और अपने अनुभव साझा कर सकती हैं।

इतना ध्यान रखिएगा की अकारण ही लाल बटन दबाना कतई उचित नहीं होगा यदि पुरुष स्पर्श से बेचैन या असहज होकर अपने लाल बटन दबाया तो आपको इस इस सेवा से मुक्त कर दिया जाएगा और आश्रम में किसी अन्य कार्य में लगा दिया जाएगा। पर यदि भावावेश में यदि आपने पुरुषों को सही समय पर नहीं रोका तो वह आपका कौमार्य भंग कर सकते हैं। इसलिए खतरा महसूस होते ही लाल बटन को लगातार दो बार अवश्य दबा कर इमरजेंसी का संकेत अवश्य दीजिएगा।

मोनी और उसकी सहेलियां पूरा ध्यान लगाकर माधवी की बातें सुन रही थी अपनी वासना पर विजय प्राप्त करने का निर्णय तो उन्होंने आश्रम में आने से पहले ही ले लिया था अब परीक्षा की घड़ी थी लड़कियों ने मन ही मन ठान लिया की वह इस परीक्षा में भी सफल होकर दिखाएंगी।

सभी लड़कियां माधवी की बात को समझ चुकी थी बाकी सब आश्रम में पहुंचने के बाद स्वतः ही समझ में आ जाना था। क्योंकि इस प्रक्रिया के रिहर्सल के लिए आश्रम के ही ट्रेंड पुरुषों को यह अवसर दिया जाना था।

बड़ा ही अनोखा आश्रम बनाया था विद्यानंद ने और उसकी सोच भी अनोखी थी।

इधर माधवी ने जिस प्रकार से लड़कियों को तैयार किया था वैसे ही दूसरी तरफ रतन ने पुरुषों को तैयार किया था। परंतु शायद आश्रम में ऐसे पुरुषों की उपयोगिता कम ही थी क्योंकि उस दौर में पुरुष शरीर को समझने के लिए स्त्रियों का आगे आना बेहद कठिन था।


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बहरहाल मोनी और उसकी सभी सहेलियां आज आश्रम के उसे विशेष कूपे में जाने वाली थी।

उधर रतन ने जब से मोनी को एक वस्त्र में देखा था उसे मोनी का यह बदला हुआ स्वरूप अविश्वसनीय लग रहा था। गांव में गुमसुम सी रहने वाली मोनी आज एक परिपक्व युवती की तरह प्रतीत हो रही थी और उसका तन-बदन भी सुडौल और कामुक हो चुका था उस झीने से एक वस्त्र के पीछे छुपी हुई मादक काया रतन की नजरे ताड़ गई थीं।

मोनी ने तो अपनी कामुकता पर विजय प्राप्त करने का प्रण लिया हुआ था परंतु रतन के मन में हलचल होने लगी वह मन ही मन अपनी व्यूह रचना करने लगा।

अगली सुबह माधवी ने मोनी और उसकी सहेलियों को एक बार फिर अपने उसी बगीचे में बुलाया जहां वह सब नग्न घूमा करती थी.

माधवी ने सभी लड़कियों को अपने बाल बांधने के लिए कहा और फिर सभी लड़कियों ने अपने सुंदर बालों को समेट कर जूड़े का आकार दे दिया.

आज वहां एक विशेष कुंड रखा था…जिसमें विशेष द्रव्य भरा हुआ था.. लड़कियां कौतूहल भरी निगाहों से माधवी की तरफ देख रहीं थी।

माधवी ने उन्हें संबोधित करते हुए कहा आप सब मेरे पीछे-पीछे आईये ध्यान रहे की इस कुंड से आपको बेहद सावधानी से निकलना है और कुंड में भरा द्रव्य आपके कंधे के ऊपर किसी भाग से नहीं छूना चाहिए विशेष कर बालों से और चेहरे से…

लड़कियां थोड़ा घबरा सी गई आखिर क्या था उस कुंड में? परंतु कुछ ही पलों में उनका भ्रम दूर हो गया माधवी स्वयं नग्न होकर धीरे-धीरे उस कुंड में उतरी और धीमे-धीमे चलते हुए कुंड से बाहर आ गई।

इसके बाद सभी लड़कियां एक-एक करके माधवी का अनुसरण किया।

कुंड से बाहर आने के कुछ समय पश्चात माधवी ने लड़कियों को अपने बदन को तौलिए से पोछने के लिए कहा..

विद्यानंद के आश्रम की व्यवस्थाएं दिव्य थी जितनी लड़कियां उससे कहीं ज्यादा मुलायम तौलिए माधवी ने पहले से ही सजा कर रखवा दिए थे।

लड़कियों ने अपने गीले बदन को पोछना शुरू किया उनका बदन चमक उठा। हाथ पैरों के रोए पूरी तरह गायब हो चुके थे और त्वचा चमकने लगी थी।

लड़कियों ने जैसे ही अपनी बुर और उसके आसपास के भाग को पोछा .. उनके आश्चर्य का ठिकाना न रहा उनकी बर का आवरण पूरी तरह हट चुका था.. चमकती बुर वह खुद तो नहीं देख पा रही थी परंतु अपनी सहेलियों की जांघों के जोड़ पर नजर पड़ते ही वह मंत्र मुग्ध होकर प्रकृति द्वारा निर्मित उस दिव्य अंग को देख रहीं थीं।

लड़कियों के आश्चर्य का ठिकाना न था वह एक दूसरे की तरफ देखकर मुस्कुराती कभी स्वयं अपनी निगाहें नीचे कर और कंधे को यथा संभव झुककर जांघों के जोड़ के बीच छुपी अपनी बुर को देखने का प्रयास करतीं।


लड़कियां स्वभाबिक रूप से एक दूसरे के अंगों से अपनी तुलना करने लगी थी। माधवी उनके कुतूहल को देखकर मुस्कुरा रही थी। सामने खड़ी मोनी भी इस स्वाभाविक कौतूहल को नहीं रोक पा रही थी। सभी लड़कियों का बदन चमकने लगा था पूरे शरीर पर कोई भी रोवा या बाल न बचा था। सभी लड़कियां बेहद खुश थी उन्हें उन अनचाहे बालों से छुटकारा मिल गया था जिन्हें हटाने के लिए ना तो कभी उन्होंने सोचा था और नहीं उनके हिसाब से शायद यह संभव था।

इस आश्रम में आई हुई यह सभी लड़कियां सामान्य परिवारों से आई हुई थी और आधुनिकता की दौड़ से बेहद दूर थीं जिस दौरान धनाढ्य परिवारों में यह प्रचलन आम हो चुका था परंतु मध्यम वर्ग और गरीब तबके से आई हुई है लड़कियां अभी कामुकता को प्राचीन परंपरा के हिसाब से ही जी रही थीं।वैसे भी यहां आई लड़कियां तो अपनी कामुकता और वासना को छोड़कर ही यहां आई थी।

माधवी ने सभी लड़कियों को संबोधित करते हुए कहा उम्मीद है आज का अनुभव आपको अच्छा लगा होगा और आपका शरीर कुंदन की भांति चमक रहा है आज पहली बार आप अपनी सेवा देने जा रही हैं। आपकी कक्षा में एक विशेष परिधान रखा हुआ है आप उस परिधान को पहन कर ठीक 10:00 बजे सभागार में उपस्थित होइए। वहां से हम सब एक साथ प्रस्थान करेंगे।

मोनी और उसकी सहेलियों ने माधवी के निर्देशानुसार स्नान ध्यान कर एक वस्त्र में तैयार हुई और निर्धारित समय पर हाल में आ गईं । हाल के बाहर एक बस खड़ी थी जिसमें सभी लड़कियां बैठ गई और बस रतन द्वारा बनाए गए आश्रम की तरफ चल पड़ी…


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लड़कियों का यह अनुभव अनोखा होने वाला था…

उधर रतन अपनी व्यूह रचना में लगा हुआ था। वह अपने आश्रम को सजा धजा कर माधवी और उसकी लड़कियों का इंतजार कर रहा था..

रतन द्वारा बनाए गए कूपे की विशेषता यह थी कि उसमें स्त्री या पुरुष जो भी खड़ा होता उसकी पहचान करना कठिन था। क्योंकि कूपे में उसके कंधे के नीचे का भाग ही दिखाई पड़ता था कंधे के ऊपर का भाग उस कूपे से बाहर रहता था।

जब विपरीत लिंग का दूसरा व्यक्ति उस कूपे में आता वह चबूतरे पर खड़े अपने साथी को पूर्णतयः नग्न अवस्था में पाता। परंतु अपने साथी का चेहरा देख पाने की कोई संभावना नहीं थी। और यही बात उस व्यक्ति पर भी लागू होती थी जो कूपे में पहले से आकर खड़ा होता था।

कूपे के चबूतरे की ऊंचाई इस प्रकार रखी गई थी की कुपे के अंदर खड़े व्यक्ति के कंधे कपड़े की सीलिंग से बाहर आ सके। और दूसरा साथी पूरी तरह कूपे के अंदर रह सके।

यह कपड़े की सीलिंग ही दोनों प्रतिभागियों के लिए पर्दा थी। जिस प्रतिभागी का कंधे और हांथ कूपे की सीलिंग से बाहर रहता था उसके हाथ में ही वह विशेष बटन दिया जाता था जिसे दबाने पर कुपे में एक लाल लाइट जलती थी। जिससे कूपे के अंदर के प्रतिभागी को तुरंत ही अपनी कामुक गतिविधियां रोक देनी होती थी इसका स्पष्ट मतलब था कि दूसरे व्यक्ति को यह बेहद असहज लग रहा है।

यदि कोई पुरुष या स्त्री कामुकता के अतिरेक में यदि दूसरे व्यक्ति को जरूर से ज्यादा परेशान करता या स्त्रियों का कौमार्य भंग करने का प्रयास करता तो उन्हें इस बटन को लगातार दो बार दबाना था और इसके बाद जो होता वह निश्चित ही उस पुरुष या स्त्री के लिए कतई ठीक ना होता।

लड़कियों को लेकर आ रही बस नए आश्रम तक पहुंच चुकी थी। रतन और उसके द्वारा तैयार किए गए लड़कों की टोली बस का इंतजार कर रही थी। एक-एक करके स्वर्ग की अप्सराएं नीचे उतर रही थी रतन की टोली के कुछ लड़कों के आनंद की सीमा न थी। लड़कों को आज इन्हें अप्सराओं के साथ उस कूपे में एक अनोखे और नए अनुभव को प्राप्त करना था। लड़कियों को इस बात का तो अंदाज़ की आज उनके साथ कुछ नया होगा परंतु उनके साथ ही यह लड़के होंगे इसका आवास कतई न था।

लड़कियों को एक कक्ष में बैठने के बाद माधवी रतन को लेकर एक बार फिर विशिष्ट कूपे का मुआयना करने गई एक-एक कूपे को और उसमें लगे बटन को स्वयं अपने हाथों से चेक किया और पूरी तसल्ली के बाद हाल में तैनात सुरक्षा कर्मियों से बात की। कुछ प्रश्नों के उत्तर के दौरान उसने सुरक्षा कर्मियों के चेहरे पर झिझक को नोटिस किया।

रतन जी कृपया आई हुई लड़कियों के लिए फल फूल की व्यवस्था करा दें।

रतन वहां से हटना तो नहीं चाहता था परंतु माधवी का आदेश टाल पाने की उसकी हिम्मत न थी। वह वहां से चला गया माधवी ने सभी तैनात सुरक्षा कर्मियों से विस्तार में बात की और और वापस अपनी लड़कियों की टोली में आ गई उसके चेहरे पर मुस्कान थी..

आखिरकार वह वक्त आ गया जब लड़कियों को उसे अनोखे कूपे में जाना था। सभी लड़कियां कूपन मे बने चबूतरे पर जाकर खड़ी हो गई और अपने एकमात्र वस्त्र को अपने गर्दन तक उठा लिया अपने दोनों हाथों को फैलाने के बाद उन्होंने कॉपी की कपड़े की सीलिंग को चढ़ा दिया और अब ऊपर के अंदर उनका कंधे से नीचे का भाग पूरी तरह नग्न था। दोनों हाथ भी कूपे के बाहर थे और उनमें से एक हाथ में सभी लड़कियों ने वह बटन पकड़ा हुआ था।

एक लड़की ने कौतूहलवश बटन को एक बार दबाया नीचे उस कूपे के अंदर जल रही श्वेत रोशनी का कलर लाल हो गया जैसे ही उसने बटन छोड़ा रंग वापस श्वेत हो गया।

उस लड़की ने बटन को दो बार दबाने की हिम्मत ना दिखाई शायद उसे चेक करना इतना जरूरी भी नहीं था उसे आश्रम की व्यवस्थाओं पर यकीन हो चला था।

धीरे-धीरे सभी लड़कियां कूपे के नियमों से अवगत हो चुकी थी और माधवी के सिग्नल देने के बाद कूपन में रतन के लड़कों को आने की अनुमति दे दी गई। लड़के भी ठीक उसी प्रकार नग्न थे जिस प्रकार लड़कियां थी कफे के अंदर किस कौन सी अप्सरा प्राप्त होगी इसका कोई विवरण या नियम नहीं था वैसे भी लड़कों के लिए वह सभी लड़कियां अप्सराओं के समान थी। जिन लड़कों में वासना प्रबल थी वह बेहद उत्साह में थे। नग्न लड़कियों के साथ 10 मिनट का वक्त बिताना और उन्हें पूरी आजादी के साथ चुनाव और महसूस करना यह स्वर्गिक सुख सेकाम न था।

सभी लड़के एक-एक कप में प्रवेश कर गए और मौका देखकर और नियमों को ताक पर रख रतन भी एक विशिष्ट कूपे में प्रवेश कर गया। बड़ी सफाई से उसने मोनी को पहचानने की व्यवस्था कर रखी थी।

सभी कूपों में दिव्य नजारा था।

लड़कियों का खूबसूरती से तराशा हुआ बदन लड़कों के लिए आश्चर्य का विषय था। उनमें से अधिकतर शायद पहली बार लड़की का नग्न शरीर देख रहे थे। माधवी ने लड़कियों के बदन पर कसाव और कटाव लाने के लिए जो उन्हें योगाभ्यास कराया था उसका असर स्पष्ट दिखाई पड़ रहा था।

लड़कों के आनंद की सीमा न थी वह बेहद उत्साह से उन दिव्य लड़कियों के बदन से खेलने लगे कभी-कभी किसी कूपे में लाल लाइट जलती पर तुरंत ही बंद हो जाती।

उधर रतन भी अपने विशिष्ट कूपे में प्रवेश कर चुका था..

अंदर खड़ी मोनी को देखकर रतन हतप्रभ रह गया..। उसने मोनी की जो कल्पना की थी मोनी उससे अलग ही लग रही थी। बदन खूबसूरती से तराशा हुआ अवश्य था पर रंग रतन की उम्मीद से कहीं ज्यादा गोरा था।

रतन ने ऊपर सर उठाकर मोनी का चेहरा देखने की कोशिश की पर कामयाब ना रहा। कूपे की रचना इस प्रकार से ही की गई थी। एक पल के लिए उसे भ्रम हुआ कि कहीं कोई और तो मोनी के लिए निर्धारित कूपे में नहीं आ गया है।


पर रतन को अपनी व्यवस्थाओं पर पूरा भरोसा था। वैसे भी जितने कूपे बनाए गए थे उतनी ही लड़कियां इस आश्रम में लाई गई थी।

रतन ने और समय व्यर्थ करना उचित न समझा और उसकी नज़रों ने समक्ष उपस्थित खूबसूरत शरीर का माप लेना शुरू कर दिया।

मोनी की काया खजुराहो की मूर्ति की भांति प्रतीत हो रही थी। कसे हुए उन्नत उरोज पतला कटिप्रदेश और भरे पूरे नितंब ऐसा लग रहा था जैसे किसी खजुराहो की मूर्ति को जीवंत कर चबूतरे पर खड़ा कर दिया गया हो।

रतन आगे बढ़ा और अपने हाथ बढ़ाकर उसे मोनी की कमर पर रख दिया। रतन ने मोनी के बदन की कपकपाहट महसूस की। ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे इस स्पर्श से मोनी असहज हो गई थी। पर शायद यही मोनी की परीक्षा थी।

रतन ने अपने हाथ ऊपर की तरफ बढ़ाए और मोनी की भरी भरी गोल चूचियों को अपनी हथेलियां में लेकर सहलाने लगा। मोनी अब उत्तेजना महसूस कर रही थी और रतन के इस कामुक प्रयास को महसूस करते हुए भी नजर अंदाज कर रही थी।


रतन ने दोनों चूचियों को बारी बारी से सहलाया । अपने अंगूठे और तर्जनी के बीच उसके निप्पलों को लेकर धीरे-धीरे मसालना शुरू कर दिया। उसे बात का इल्म तो अवश्य था था कि मोनी को किसी भी प्रकार का कष्ट नहीं होना चाहिए अन्यथा वह बटन को लगातार दो बार भी दबा सकती है और रतन को शर्मनाक स्थिति में ला सकती है।

रतन बेहद सावधानी से चूचियों को छू रहा था और बेहद प्यार से मसल रहा था। मोनी की तरफ से कोई प्रतिरोध न पाकर रतन ने अपने होंठ मोनी की चूचियों से सटा दिए और हथेलियो से उसके कूल्हों को पकड़कर सहलाने लगा। रतन के होंठ अब कुंवारी चूचियों और उसके निप्पलों पर घूमने लगे। ऊपर चल रही वासनाजन्य गतिविधियों का असर नीचे दिखाई पड़ने लगा।

रतन ने अपना ध्यान चूचियों से हटकर उसके सपाट पेट पर केंद्रित किया और धीरे-धीरे नाभि को चूमते चूमते नीचे उसकी जांघों के बीच झांक रही बुर पर आ गया।

जांघों पर रिस आई बुर की लार स्पष्ट दिखाई पड़ रही थी। मोनी गर्म हो चुकी थी और स्वयं को पूरी तरह समर्पित कर चुकी थी। रतन को मोनी से यह उम्मीद कतई नहीं थी परंतु जब वासना चरम पर हो मनुष्य का दिमाग काम करना बंद कर देता है।

रतन कोई मौका नहीं छोड़ना चाहता था वह स्वयं मोनी के चबूतरे पर चढ़ गया। और मोनी के बदन से अपने लंड को छुआने का प्रयास करने लगा। यह एहसास अनोखा था। रतन की वासना परवान चढ़ रही थी। ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे मोनी इस कामुक मिलन का इंतजार कर रही थी।


आखिरकार रतन ने अपने एक हाथ से मोनी के एक पैर को सहारा देकर ऊपर उठाया और अपने लंड को मोनी की पनियाई बुर पर रगड़ने लगा। रतन वासना में यह भूल गया था कि यहां आई सारी लड़कियां कुंवारी हैं और उन्हें अपना कौमार्य सुरक्षित रखना है। परंतु रतन अपनी वासना में पूरी तरह घिर चुका था और मोनी की कोमल बुर जैसे उसके लंड के स्वागत के लिए तैयार बैठी थी। उसने अपनी कमर पर थोड़ा जोर लगाया और लंड का सुपड़ा बुर में धंस गया..

कमरे में एक मीठी आह गूंज उठी.. यह आवाज बेहद कामुक थी परंतु इस आह से उस व्यक्ति की पहचान करना कठिन था छोटी-मोटी सिसकियां तो उस कक्ष में मौजूद कई लड़कियां भर रही थी पर यह आवाज कुछ अनूठी थी और इस कूपे में हो रहा कृत्य भी अनूठा था।


रतन का लंड कई दिनों बाद बुर के संपर्क में आकर थिरकने लगा था । किसी योद्धा की भांति वह आगे बढ़ने को आतुर था।

रतन ने मोनी के कमर और कूल्हों को अपने हाथों से सहलाया और फिर पकड़ लिया और जैसे ही अपने लंड का थोड़ा दबाव बढ़ाया लंड गर्भाशय को चूमने में कामयाब हो गया। कुछ पलों के लिए मोनी के बदन में कंपन होने लगे रतन के लंड पर अद्भुत संकुचन हो रहा था।

अब तक मोनी की तरफ से लाल बत्ती नहीं जलाई गई थी इसका स्पष्ट संकेत यह था कि मोनी को यह कृत्य पसंद आ रहा था। रतन ने देर ना की और अपने लंड को आगे पीछे करने लगा।

उत्तेजना के चरम पर पहुंचकर उसने अपने लंड को गर्भाशय के मुख्य तक ठास दिया और चूचियों को चूसता रहा। मोनी से भी और बर्दाश्त ना हुआ और वह रतन के लंड पर प्रेम वर्षा करने लगी और स्खलित होने लगी। 10 मिनट का अलार्म बज चुका था। परंतु रतन और मोनी अब भी अपना स्स्खलन पूर्ण करने में लगे हुए थे।

आखिरकार रतन ने अपना लंड मोनी की बुर से बाहर किया और उसने जो मोनी के अंदर भरा था वह रिसता हुआ उसकी जांघों पर आने लगा।

सभी लड़कियां और लड़के एक-एक कर बाहर आ रही थे .. अंत में रतन भी अब जा चुका था।

बाहर लड़कियां अपनी सहेलियों से आज की घटनाक्रम और अपने अनुभवों को एक दूसरे से साझा कर रही थी …तभी

“अरे मोनी कहीं नहीं दिखाई दे रही है कहां है वो?” एक लड़की ने पूछा..

माधवी भी अब तक उन लड़कियों के पास आ चुकी थी उसने तपाक से जवाब दिया..

मोनी रजस्वला है और कमरे में आराम कर रही है..

नियति स्वयं आश्चर्यचकित थी..

क्या रतन के खेल को माधवी ने खराब कर दिया था या कोई और खेल रच दिया था?

उधर रतन संतुष्ट था तृप्त था वह अब भी मोनी के अविश्वसनीय गोरे रंग के बारे में सोच रहा था।

शेष अगले भाग में..

Gazab ki update he Lovely Anand Bro,

Ratan ka to sapna pura ho gaya.................

Lekin kya sach me moni ko period shuru ho gaye the???

Keep rocking Bro
 

Shubham babu

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भाग 134

दरबान के दरवाजा खोलते ही रतन की नजरे अंदर खड़ी लड़कियों की तरफ चली गई और उसकी आंखें फटी रह गई आगे की लाइन में परियों की तरह खूबसूरत बन चुकी मोनी से उसकी नजरें चार हो गईं…



रतन और मोनी दोनों इस स्थिति के लिए तैयार न थे। परंतु मोनी की मादक काया रतन की निगाहों में छप सी गई..

मोनी ने अपनी स्थिति का आकलन किया और नजरे झुका ली.. शायद वह अपनी नग्नता को लेकर अब सजग हो गई थी..

अब आगे…

मोनी इस आश्रम में आई जरूर थी परंतु अभी भी वह रिश्तो को बखूबी पहचानती थी उसे अभी वैराग्य शायद पूरी तरह न हुआ था। रतन उसका जीजा था और अपनी इस अवस्था में उसे रतन से शर्म आ रही थी।

विद्यानंद के जाने के बाद माधवी उन युवा लड़कियों को उनकी भूमिका समझा रही थी।

सहेलियों अब हम सबको समाज सेवा में लगना है। हम हम सब रोज प्रातः काल नए आश्रम में चला करेंगे वहां हम सबको एक विशेष कुपे में खड़ा रहना होगा। हमारा सर कंधे और हांथ उस कूपे के बाहर होगा परंतु कंधे के नीचे का भाग ऊपर में कूपे के आवरण के भीतर रहेगा। हम सब पूर्णतया प्राकृतिक अवस्था रहे में रहेंगे मेरा आशय आप सब समझ ही रहे होंगे हमें कोई भी वस्त्र धारण नहीं करना है।

इस कूपे में कोई ना कोई युवा पुरुष जो आश्रम के अनुयायियों में से किसी का पुत्र या रिश्तेदार हो सकता है और जो स्त्री शरीर को समझना चाहता है आश्रम के प्रबंधकों द्वारा अंदर भेज दिया जाएगा।

(पाठकों को शायद याद होगा कि रतन ने जी आश्रम का निर्माण कराया था उसमें कुछ विशेष कूपे बनाए गए थे। जिनका विस्तृत विवरण पूर्व के एपिसोड में दिया गया है)

हम सबको अपने स्थान पर बिना किसी प्रतिक्रिया के खड़े रहना है वह पुरुष हमारे तन बदन को छू सकता है महसूस कर सकता है और यहां तक की हमारी योनि और स्तनों को अपनी उंगलियों और हथेलियों से छूकर महसूस कर सकता है। आपकी योनि के कौमार्य को देखने को कोशिश कर सकता है।

माधवी की यह बात सुनकर सभी लड़कियां असमंजस में थी। आपस में खुसुर फुसुर शुरू हो गई थी।

आप लोग परेशान मत होइए ऐसा वैसा कुछ भी नहीं होगा आप लोगों के हाथ में एक बटन रहेगा यदि वह पुरुष आपके कौमार्य को भंग करने की कोशिश करता है तो आपको बटन को दबाना है जिससे उस कूपे में लाल रोशनी हो जाएगी और उस व्यक्ति को वार्निंग मिल जाएगी और वह अपनी गतिविधियां रोक लेगा। यदि उसने अपनी गतिविधि नहीं रोका तो आप लाल बटन को एक के बाद एक लगातार दो बार दबा दीजिएगा। आपके इस सिग्नल को इमरजेंसी सिग्नल माना जाएगा और तुरंत ही उस व्यक्ति को कूपे से बाहर निकाल कर दंडित किया जाएगा।

कूपे में आने वाले सभी पुरुषों को यह नियम बखूबी समझा कर भेजा जाएगा और आप सब निश्चिंत रहिए आपके साथ कोई भी ज्यादती नहीं होगी। आप सबका सहयोग पुरुषों को स्त्री शरीर को समझने में मदद करेगा जैसा की स्वामी जी के आप सब को बताया था।

हां एक बात और पुरुषों के स्पर्श से स्त्री शरीर में निश्चित ही उत्तेजना उत्पन्न होती है पर आप सबको अपनी उत्तेजना को यथासंभव वश में करना है। यह कामवासना पर विजय प्राप्त करने के लिए एक योग की तरह है। प्रत्येक पुरुष को लगभग 10 मिनट का वक्त दिया जाएगा और इस 10 मिनट तक आपको अपनी संवेदना और वासना पर विजय प्राप्त करनी हैं।

और इसके उपरांत आप सब आधे घंटे का विश्राम ले सकती हैं जिसमें आप सब एक दूसरे से मिल सकती हैं और अपने अनुभव साझा कर सकती हैं।

इतना ध्यान रखिएगा की अकारण ही लाल बटन दबाना कतई उचित नहीं होगा यदि पुरुष स्पर्श से बेचैन या असहज होकर अपने लाल बटन दबाया तो आपको इस इस सेवा से मुक्त कर दिया जाएगा और आश्रम में किसी अन्य कार्य में लगा दिया जाएगा। पर यदि भावावेश में यदि आपने पुरुषों को सही समय पर नहीं रोका तो वह आपका कौमार्य भंग कर सकते हैं। इसलिए खतरा महसूस होते ही लाल बटन को लगातार दो बार अवश्य दबा कर इमरजेंसी का संकेत अवश्य दीजिएगा।

मोनी और उसकी सहेलियां पूरा ध्यान लगाकर माधवी की बातें सुन रही थी अपनी वासना पर विजय प्राप्त करने का निर्णय तो उन्होंने आश्रम में आने से पहले ही ले लिया था अब परीक्षा की घड़ी थी लड़कियों ने मन ही मन ठान लिया की वह इस परीक्षा में भी सफल होकर दिखाएंगी।

सभी लड़कियां माधवी की बात को समझ चुकी थी बाकी सब आश्रम में पहुंचने के बाद स्वतः ही समझ में आ जाना था। क्योंकि इस प्रक्रिया के रिहर्सल के लिए आश्रम के ही ट्रेंड पुरुषों को यह अवसर दिया जाना था।

बड़ा ही अनोखा आश्रम बनाया था विद्यानंद ने और उसकी सोच भी अनोखी थी।

इधर माधवी ने जिस प्रकार से लड़कियों को तैयार किया था वैसे ही दूसरी तरफ रतन ने पुरुषों को तैयार किया था। परंतु शायद आश्रम में ऐसे पुरुषों की उपयोगिता कम ही थी क्योंकि उस दौर में पुरुष शरीर को समझने के लिए स्त्रियों का आगे आना बेहद कठिन था।


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बहरहाल मोनी और उसकी सभी सहेलियां आज आश्रम के उसे विशेष कूपे में जाने वाली थी।

उधर रतन ने जब से मोनी को एक वस्त्र में देखा था उसे मोनी का यह बदला हुआ स्वरूप अविश्वसनीय लग रहा था। गांव में गुमसुम सी रहने वाली मोनी आज एक परिपक्व युवती की तरह प्रतीत हो रही थी और उसका तन-बदन भी सुडौल और कामुक हो चुका था उस झीने से एक वस्त्र के पीछे छुपी हुई मादक काया रतन की नजरे ताड़ गई थीं।

मोनी ने तो अपनी कामुकता पर विजय प्राप्त करने का प्रण लिया हुआ था परंतु रतन के मन में हलचल होने लगी वह मन ही मन अपनी व्यूह रचना करने लगा।

अगली सुबह माधवी ने मोनी और उसकी सहेलियों को एक बार फिर अपने उसी बगीचे में बुलाया जहां वह सब नग्न घूमा करती थी.

माधवी ने सभी लड़कियों को अपने बाल बांधने के लिए कहा और फिर सभी लड़कियों ने अपने सुंदर बालों को समेट कर जूड़े का आकार दे दिया.

आज वहां एक विशेष कुंड रखा था…जिसमें विशेष द्रव्य भरा हुआ था.. लड़कियां कौतूहल भरी निगाहों से माधवी की तरफ देख रहीं थी।

माधवी ने उन्हें संबोधित करते हुए कहा आप सब मेरे पीछे-पीछे आईये ध्यान रहे की इस कुंड से आपको बेहद सावधानी से निकलना है और कुंड में भरा द्रव्य आपके कंधे के ऊपर किसी भाग से नहीं छूना चाहिए विशेष कर बालों से और चेहरे से…

लड़कियां थोड़ा घबरा सी गई आखिर क्या था उस कुंड में? परंतु कुछ ही पलों में उनका भ्रम दूर हो गया माधवी स्वयं नग्न होकर धीरे-धीरे उस कुंड में उतरी और धीमे-धीमे चलते हुए कुंड से बाहर आ गई।

इसके बाद सभी लड़कियां एक-एक करके माधवी का अनुसरण किया।

कुंड से बाहर आने के कुछ समय पश्चात माधवी ने लड़कियों को अपने बदन को तौलिए से पोछने के लिए कहा..

विद्यानंद के आश्रम की व्यवस्थाएं दिव्य थी जितनी लड़कियां उससे कहीं ज्यादा मुलायम तौलिए माधवी ने पहले से ही सजा कर रखवा दिए थे।

लड़कियों ने अपने गीले बदन को पोछना शुरू किया उनका बदन चमक उठा। हाथ पैरों के रोए पूरी तरह गायब हो चुके थे और त्वचा चमकने लगी थी।

लड़कियों ने जैसे ही अपनी बुर और उसके आसपास के भाग को पोछा .. उनके आश्चर्य का ठिकाना न रहा उनकी बर का आवरण पूरी तरह हट चुका था.. चमकती बुर वह खुद तो नहीं देख पा रही थी परंतु अपनी सहेलियों की जांघों के जोड़ पर नजर पड़ते ही वह मंत्र मुग्ध होकर प्रकृति द्वारा निर्मित उस दिव्य अंग को देख रहीं थीं।

लड़कियों के आश्चर्य का ठिकाना न था वह एक दूसरे की तरफ देखकर मुस्कुराती कभी स्वयं अपनी निगाहें नीचे कर और कंधे को यथा संभव झुककर जांघों के जोड़ के बीच छुपी अपनी बुर को देखने का प्रयास करतीं।


लड़कियां स्वभाबिक रूप से एक दूसरे के अंगों से अपनी तुलना करने लगी थी। माधवी उनके कुतूहल को देखकर मुस्कुरा रही थी। सामने खड़ी मोनी भी इस स्वाभाविक कौतूहल को नहीं रोक पा रही थी। सभी लड़कियों का बदन चमकने लगा था पूरे शरीर पर कोई भी रोवा या बाल न बचा था। सभी लड़कियां बेहद खुश थी उन्हें उन अनचाहे बालों से छुटकारा मिल गया था जिन्हें हटाने के लिए ना तो कभी उन्होंने सोचा था और नहीं उनके हिसाब से शायद यह संभव था।

इस आश्रम में आई हुई यह सभी लड़कियां सामान्य परिवारों से आई हुई थी और आधुनिकता की दौड़ से बेहद दूर थीं जिस दौरान धनाढ्य परिवारों में यह प्रचलन आम हो चुका था परंतु मध्यम वर्ग और गरीब तबके से आई हुई है लड़कियां अभी कामुकता को प्राचीन परंपरा के हिसाब से ही जी रही थीं।वैसे भी यहां आई लड़कियां तो अपनी कामुकता और वासना को छोड़कर ही यहां आई थी।

माधवी ने सभी लड़कियों को संबोधित करते हुए कहा उम्मीद है आज का अनुभव आपको अच्छा लगा होगा और आपका शरीर कुंदन की भांति चमक रहा है आज पहली बार आप अपनी सेवा देने जा रही हैं। आपकी कक्षा में एक विशेष परिधान रखा हुआ है आप उस परिधान को पहन कर ठीक 10:00 बजे सभागार में उपस्थित होइए। वहां से हम सब एक साथ प्रस्थान करेंगे।

मोनी और उसकी सहेलियों ने माधवी के निर्देशानुसार स्नान ध्यान कर एक वस्त्र में तैयार हुई और निर्धारित समय पर हाल में आ गईं । हाल के बाहर एक बस खड़ी थी जिसमें सभी लड़कियां बैठ गई और बस रतन द्वारा बनाए गए आश्रम की तरफ चल पड़ी…


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लड़कियों का यह अनुभव अनोखा होने वाला था…

उधर रतन अपनी व्यूह रचना में लगा हुआ था। वह अपने आश्रम को सजा धजा कर माधवी और उसकी लड़कियों का इंतजार कर रहा था..

रतन द्वारा बनाए गए कूपे की विशेषता यह थी कि उसमें स्त्री या पुरुष जो भी खड़ा होता उसकी पहचान करना कठिन था। क्योंकि कूपे में उसके कंधे के नीचे का भाग ही दिखाई पड़ता था कंधे के ऊपर का भाग उस कूपे से बाहर रहता था।

जब विपरीत लिंग का दूसरा व्यक्ति उस कूपे में आता वह चबूतरे पर खड़े अपने साथी को पूर्णतयः नग्न अवस्था में पाता। परंतु अपने साथी का चेहरा देख पाने की कोई संभावना नहीं थी। और यही बात उस व्यक्ति पर भी लागू होती थी जो कूपे में पहले से आकर खड़ा होता था।

कूपे के चबूतरे की ऊंचाई इस प्रकार रखी गई थी की कुपे के अंदर खड़े व्यक्ति के कंधे कपड़े की सीलिंग से बाहर आ सके। और दूसरा साथी पूरी तरह कूपे के अंदर रह सके।

यह कपड़े की सीलिंग ही दोनों प्रतिभागियों के लिए पर्दा थी। जिस प्रतिभागी का कंधे और हांथ कूपे की सीलिंग से बाहर रहता था उसके हाथ में ही वह विशेष बटन दिया जाता था जिसे दबाने पर कुपे में एक लाल लाइट जलती थी। जिससे कूपे के अंदर के प्रतिभागी को तुरंत ही अपनी कामुक गतिविधियां रोक देनी होती थी इसका स्पष्ट मतलब था कि दूसरे व्यक्ति को यह बेहद असहज लग रहा है।

यदि कोई पुरुष या स्त्री कामुकता के अतिरेक में यदि दूसरे व्यक्ति को जरूर से ज्यादा परेशान करता या स्त्रियों का कौमार्य भंग करने का प्रयास करता तो उन्हें इस बटन को लगातार दो बार दबाना था और इसके बाद जो होता वह निश्चित ही उस पुरुष या स्त्री के लिए कतई ठीक ना होता।

लड़कियों को लेकर आ रही बस नए आश्रम तक पहुंच चुकी थी। रतन और उसके द्वारा तैयार किए गए लड़कों की टोली बस का इंतजार कर रही थी। एक-एक करके स्वर्ग की अप्सराएं नीचे उतर रही थी रतन की टोली के कुछ लड़कों के आनंद की सीमा न थी। लड़कों को आज इन्हें अप्सराओं के साथ उस कूपे में एक अनोखे और नए अनुभव को प्राप्त करना था। लड़कियों को इस बात का तो अंदाज़ की आज उनके साथ कुछ नया होगा परंतु उनके साथ ही यह लड़के होंगे इसका आवास कतई न था।

लड़कियों को एक कक्ष में बैठने के बाद माधवी रतन को लेकर एक बार फिर विशिष्ट कूपे का मुआयना करने गई एक-एक कूपे को और उसमें लगे बटन को स्वयं अपने हाथों से चेक किया और पूरी तसल्ली के बाद हाल में तैनात सुरक्षा कर्मियों से बात की। कुछ प्रश्नों के उत्तर के दौरान उसने सुरक्षा कर्मियों के चेहरे पर झिझक को नोटिस किया।

रतन जी कृपया आई हुई लड़कियों के लिए फल फूल की व्यवस्था करा दें।

रतन वहां से हटना तो नहीं चाहता था परंतु माधवी का आदेश टाल पाने की उसकी हिम्मत न थी। वह वहां से चला गया माधवी ने सभी तैनात सुरक्षा कर्मियों से विस्तार में बात की और और वापस अपनी लड़कियों की टोली में आ गई उसके चेहरे पर मुस्कान थी..

आखिरकार वह वक्त आ गया जब लड़कियों को उसे अनोखे कूपे में जाना था। सभी लड़कियां कूपन मे बने चबूतरे पर जाकर खड़ी हो गई और अपने एकमात्र वस्त्र को अपने गर्दन तक उठा लिया अपने दोनों हाथों को फैलाने के बाद उन्होंने कॉपी की कपड़े की सीलिंग को चढ़ा दिया और अब ऊपर के अंदर उनका कंधे से नीचे का भाग पूरी तरह नग्न था। दोनों हाथ भी कूपे के बाहर थे और उनमें से एक हाथ में सभी लड़कियों ने वह बटन पकड़ा हुआ था।

एक लड़की ने कौतूहलवश बटन को एक बार दबाया नीचे उस कूपे के अंदर जल रही श्वेत रोशनी का कलर लाल हो गया जैसे ही उसने बटन छोड़ा रंग वापस श्वेत हो गया।

उस लड़की ने बटन को दो बार दबाने की हिम्मत ना दिखाई शायद उसे चेक करना इतना जरूरी भी नहीं था उसे आश्रम की व्यवस्थाओं पर यकीन हो चला था।

धीरे-धीरे सभी लड़कियां कूपे के नियमों से अवगत हो चुकी थी और माधवी के सिग्नल देने के बाद कूपन में रतन के लड़कों को आने की अनुमति दे दी गई। लड़के भी ठीक उसी प्रकार नग्न थे जिस प्रकार लड़कियां थी कफे के अंदर किस कौन सी अप्सरा प्राप्त होगी इसका कोई विवरण या नियम नहीं था वैसे भी लड़कों के लिए वह सभी लड़कियां अप्सराओं के समान थी। जिन लड़कों में वासना प्रबल थी वह बेहद उत्साह में थे। नग्न लड़कियों के साथ 10 मिनट का वक्त बिताना और उन्हें पूरी आजादी के साथ चुनाव और महसूस करना यह स्वर्गिक सुख सेकाम न था।

सभी लड़के एक-एक कप में प्रवेश कर गए और मौका देखकर और नियमों को ताक पर रख रतन भी एक विशिष्ट कूपे में प्रवेश कर गया। बड़ी सफाई से उसने मोनी को पहचानने की व्यवस्था कर रखी थी।

सभी कूपों में दिव्य नजारा था।

लड़कियों का खूबसूरती से तराशा हुआ बदन लड़कों के लिए आश्चर्य का विषय था। उनमें से अधिकतर शायद पहली बार लड़की का नग्न शरीर देख रहे थे। माधवी ने लड़कियों के बदन पर कसाव और कटाव लाने के लिए जो उन्हें योगाभ्यास कराया था उसका असर स्पष्ट दिखाई पड़ रहा था।

लड़कों के आनंद की सीमा न थी वह बेहद उत्साह से उन दिव्य लड़कियों के बदन से खेलने लगे कभी-कभी किसी कूपे में लाल लाइट जलती पर तुरंत ही बंद हो जाती।

उधर रतन भी अपने विशिष्ट कूपे में प्रवेश कर चुका था..

अंदर खड़ी मोनी को देखकर रतन हतप्रभ रह गया..। उसने मोनी की जो कल्पना की थी मोनी उससे अलग ही लग रही थी। बदन खूबसूरती से तराशा हुआ अवश्य था पर रंग रतन की उम्मीद से कहीं ज्यादा गोरा था।

रतन ने ऊपर सर उठाकर मोनी का चेहरा देखने की कोशिश की पर कामयाब ना रहा। कूपे की रचना इस प्रकार से ही की गई थी। एक पल के लिए उसे भ्रम हुआ कि कहीं कोई और तो मोनी के लिए निर्धारित कूपे में नहीं आ गया है।


पर रतन को अपनी व्यवस्थाओं पर पूरा भरोसा था। वैसे भी जितने कूपे बनाए गए थे उतनी ही लड़कियां इस आश्रम में लाई गई थी।

रतन ने और समय व्यर्थ करना उचित न समझा और उसकी नज़रों ने समक्ष उपस्थित खूबसूरत शरीर का माप लेना शुरू कर दिया।

मोनी की काया खजुराहो की मूर्ति की भांति प्रतीत हो रही थी। कसे हुए उन्नत उरोज पतला कटिप्रदेश और भरे पूरे नितंब ऐसा लग रहा था जैसे किसी खजुराहो की मूर्ति को जीवंत कर चबूतरे पर खड़ा कर दिया गया हो।

रतन आगे बढ़ा और अपने हाथ बढ़ाकर उसे मोनी की कमर पर रख दिया। रतन ने मोनी के बदन की कपकपाहट महसूस की। ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे इस स्पर्श से मोनी असहज हो गई थी। पर शायद यही मोनी की परीक्षा थी।

रतन ने अपने हाथ ऊपर की तरफ बढ़ाए और मोनी की भरी भरी गोल चूचियों को अपनी हथेलियां में लेकर सहलाने लगा। मोनी अब उत्तेजना महसूस कर रही थी और रतन के इस कामुक प्रयास को महसूस करते हुए भी नजर अंदाज कर रही थी।


रतन ने दोनों चूचियों को बारी बारी से सहलाया । अपने अंगूठे और तर्जनी के बीच उसके निप्पलों को लेकर धीरे-धीरे मसालना शुरू कर दिया। उसे बात का इल्म तो अवश्य था था कि मोनी को किसी भी प्रकार का कष्ट नहीं होना चाहिए अन्यथा वह बटन को लगातार दो बार भी दबा सकती है और रतन को शर्मनाक स्थिति में ला सकती है।

रतन बेहद सावधानी से चूचियों को छू रहा था और बेहद प्यार से मसल रहा था। मोनी की तरफ से कोई प्रतिरोध न पाकर रतन ने अपने होंठ मोनी की चूचियों से सटा दिए और हथेलियो से उसके कूल्हों को पकड़कर सहलाने लगा। रतन के होंठ अब कुंवारी चूचियों और उसके निप्पलों पर घूमने लगे। ऊपर चल रही वासनाजन्य गतिविधियों का असर नीचे दिखाई पड़ने लगा।

रतन ने अपना ध्यान चूचियों से हटकर उसके सपाट पेट पर केंद्रित किया और धीरे-धीरे नाभि को चूमते चूमते नीचे उसकी जांघों के बीच झांक रही बुर पर आ गया।

जांघों पर रिस आई बुर की लार स्पष्ट दिखाई पड़ रही थी। मोनी गर्म हो चुकी थी और स्वयं को पूरी तरह समर्पित कर चुकी थी। रतन को मोनी से यह उम्मीद कतई नहीं थी परंतु जब वासना चरम पर हो मनुष्य का दिमाग काम करना बंद कर देता है।

रतन कोई मौका नहीं छोड़ना चाहता था वह स्वयं मोनी के चबूतरे पर चढ़ गया। और मोनी के बदन से अपने लंड को छुआने का प्रयास करने लगा। यह एहसास अनोखा था। रतन की वासना परवान चढ़ रही थी। ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे मोनी इस कामुक मिलन का इंतजार कर रही थी।


आखिरकार रतन ने अपने एक हाथ से मोनी के एक पैर को सहारा देकर ऊपर उठाया और अपने लंड को मोनी की पनियाई बुर पर रगड़ने लगा। रतन वासना में यह भूल गया था कि यहां आई सारी लड़कियां कुंवारी हैं और उन्हें अपना कौमार्य सुरक्षित रखना है। परंतु रतन अपनी वासना में पूरी तरह घिर चुका था और मोनी की कोमल बुर जैसे उसके लंड के स्वागत के लिए तैयार बैठी थी। उसने अपनी कमर पर थोड़ा जोर लगाया और लंड का सुपड़ा बुर में धंस गया..

कमरे में एक मीठी आह गूंज उठी.. यह आवाज बेहद कामुक थी परंतु इस आह से उस व्यक्ति की पहचान करना कठिन था छोटी-मोटी सिसकियां तो उस कक्ष में मौजूद कई लड़कियां भर रही थी पर यह आवाज कुछ अनूठी थी और इस कूपे में हो रहा कृत्य भी अनूठा था।


रतन का लंड कई दिनों बाद बुर के संपर्क में आकर थिरकने लगा था । किसी योद्धा की भांति वह आगे बढ़ने को आतुर था।

रतन ने मोनी के कमर और कूल्हों को अपने हाथों से सहलाया और फिर पकड़ लिया और जैसे ही अपने लंड का थोड़ा दबाव बढ़ाया लंड गर्भाशय को चूमने में कामयाब हो गया। कुछ पलों के लिए मोनी के बदन में कंपन होने लगे रतन के लंड पर अद्भुत संकुचन हो रहा था।

अब तक मोनी की तरफ से लाल बत्ती नहीं जलाई गई थी इसका स्पष्ट संकेत यह था कि मोनी को यह कृत्य पसंद आ रहा था। रतन ने देर ना की और अपने लंड को आगे पीछे करने लगा।

उत्तेजना के चरम पर पहुंचकर उसने अपने लंड को गर्भाशय के मुख्य तक ठास दिया और चूचियों को चूसता रहा। मोनी से भी और बर्दाश्त ना हुआ और वह रतन के लंड पर प्रेम वर्षा करने लगी और स्खलित होने लगी। 10 मिनट का अलार्म बज चुका था। परंतु रतन और मोनी अब भी अपना स्स्खलन पूर्ण करने में लगे हुए थे।

आखिरकार रतन ने अपना लंड मोनी की बुर से बाहर किया और उसने जो मोनी के अंदर भरा था वह रिसता हुआ उसकी जांघों पर आने लगा।

सभी लड़कियां और लड़के एक-एक कर बाहर आ रही थे .. अंत में रतन भी अब जा चुका था।

बाहर लड़कियां अपनी सहेलियों से आज की घटनाक्रम और अपने अनुभवों को एक दूसरे से साझा कर रही थी …तभी

“अरे मोनी कहीं नहीं दिखाई दे रही है कहां है वो?” एक लड़की ने पूछा..

माधवी भी अब तक उन लड़कियों के पास आ चुकी थी उसने तपाक से जवाब दिया..

मोनी रजस्वला है और कमरे में आराम कर रही है..

नियति स्वयं आश्चर्यचकित थी..

क्या रतन के खेल को माधवी ने खराब कर दिया था या कोई और खेल रच दिया था?

उधर रतन संतुष्ट था तृप्त था वह अब भी मोनी के अविश्वसनीय गोरे रंग के बारे में सोच रहा था।

शेष अगले भाग में..
Kahaniyan ek dusre se achi tarah jodh rahe ho aap👍👍👍👍
 
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