• If you are trying to reset your account password then don't forget to check spam folder in your mailbox. Also Mark it as "not spam" or you won't be able to click on the link.

Incest आह..तनी धीरे से.....दुखाता.

Lovely Anand

Love is life
1,534
7,158
159
आह ....तनी धीरे से ...दुखाता
(Exclysively for Xforum)
यह उपन्यास एक ग्रामीण युवती सुगना के जीवन के बारे में है जोअपने परिवार में पनप रहे कामुक संबंधों को रोकना तो दूर उसमें शामिल होती गई। नियति के रचे इस खेल में सुगना अपने परिवार में ही कामुक और अनुचित संबंधों को बढ़ावा देती रही, उसकी क्या मजबूरी थी? क्या उसके कदम अनुचित थे? क्या वह गलत थी? यह प्रश्न पाठक उपन्यास को पढ़कर ही बता सकते हैं। उपन्यास की शुरुआत में तत्कालीन पाठकों की रुचि को ध्यान में रखते हुए सेक्स को प्रधानता दी गई है जो समय के साथ न्यायोचित तरीके से कथानक की मांग के अनुसार दर्शाया गया है।

इस उपन्यास में इंसेस्ट एक संयोग है।
अनुक्रमणिका
भाग 126 (मध्यांतर)
भाग 127 भाग 128 भाग 129 भाग 130 भाग 131 भाग 132
भाग 133 भाग 134 भाग 135 भाग 136 भाग 137 भाग 138
भाग 139 भाग 140 भाग141 भाग 142 भाग 143 भाग 144 भाग 145 भाग 146 भाग 147 भाग 148 भाग 149 भाग 150 भाग 151 भाग 152 भाग 153 भाग 154
 
Last edited:

jpjindal

New Member
64
52
18
welcome back...thanks for restarting the story..
Just a request kindly send updates 91, 92, 101, 102, 109, 120, 121

I am still waiting for this episodes
 

Raja jani

आवारा बादल
1,117
2,214
159
बहुत जटिल संबंधों को कामुकता की चाशनी में डुबोके परोसना आसान कम नहीं।पर लवली जी बहुत अच्छा लिख रहे।
 

Rajurajkr

Member
280
380
63
भाग 133


सोनू सुगना के बगल में लेट कर सुगना के शरीर पर पड़े अपने वीर्य से उसके कोमल बदन की मालिश करने लगा.. चूचियां वीर्य से सन चुकीं थी । सोनू ने सुगना के चेहरे पर पड़ी नाइटी आहिस्ता से हटा दी। वह सुगना को लगातार चुमें जा रहा था.. जैसे वह सुगना के प्रति अपनी कृतज्ञता जाहिर कर रहा हो सुगना भी उसकी बाहों में सिमटी जा रही थी..


नियति सोनू और सुगना के मिलन से संतुष्ट थी। सोनू को दहेज में सुगना ने अपनी बुर ही क्या वह स्वयं को सोनू के लिए समर्पित कर दिया था।


अब आगे…


नग्न सुगना को अपनी बाहों में लिए सोनू सुगना के चेहरे को रह रह कर चूम रहा था और सुगना भी पूरे जोश से सोनू से चिपकी हुई थी। वैसे भी वह सोनू के लिंग में दोबारा उत्तेजना जागृत होने का इंतजार कर रही थी। उसकी पनियाई बुर चैतन्य होकर सोनू के लंड का इंतजार कर रही थी।


सुगना के होठों को चूमते हुए सोनू ने कहा


“अच्छा दीदी एक बात बताव लाली दीदी के साथ ब्याह कईला ला के बाद….”


“अब ओकरा के की दीदी मत बोला कर कितना बार कहले बानी”..


सुगना ने सोनू के गाल पर एक मीठी चपत लगाई और उसकी बात बीच में ही काटते हुए बोली…


सोनू मुस्कुराने लगा…उसने सुगना के नग्न कूल्हों को अपनी हथेलियां के दबाव से अपनी तरफ खींचा और उसका लंड सुगना की जांघों से सट गया…सोनू ने सुगना के कानों को चूमते हुए धीरे से फुसफुसाते हुए बोला..


“तब त तू हमार साली लगबु अब तहरो के दीदी ना बोलब..”


सुगना की जांघों ने महसूस किया कि सोनू का लंड अपना आकर धीरे-धीरे बढ़ा चुका था।


सुगना एक बार फिर खिलखिलाकर हंस पड़ी.. हंसती खिलखिलाती सुगना किसी भी मर्द में उत्तेजना भरने में सक्षम थी सोनू एक बार फिर अपनी मजबूत लंड के साथ..अपनी साली सुगना की सेवा करने को तैयार था…


सुगना स्वयं इस नए रिश्ते को समझने का प्रयास कर रही थी.. इसी बीच सोनू सुगना की खुद के वीर्य से सनी चूचियां अपने मुंह में ले चुका था…


सुगना सोनू की वासना को जागृत होते हुए देख रही थी।


सुगना और सोनू पूरी तरह से एक हो चुके थे। उनके बीच जो आगे हुआ वो पाठक अपनी अपनी कल्पनाओं के अनुसार सोच सकते हैं और समझ सकते हैं।


सोनू और सुगना के रिश्ते बदल रहे थे।


सोनू और सुगना के बीच एकांत में अब उतना ही पर्दा था जितना पति-पत्नी के बीच होता है। परंतु किसी अन्य की उपस्थिति में सुगना और सोनू का रिश्ता ठीक वैसे ही था जैसे एक बड़ी बहन और छोटे भाई के बीच होता है। हां इतना अंतर अवश्य आया था कि अब दोनों एक दूसरे से खुलकर बात करते थे उन दोनों के बीच झिझक धीरे-धीरे कम होती जा रही थी परंतु मर्यादा उसी प्रकार कायम थी जैसी होनी चाहिए।


सोनू और सुगना के मिलन ने एक बार फिर सोनू के दाग को उभार दिया था। शायद नियति सोनू और सुगना के मिलन पर अब भी अपना प्रश्न चिन्ह लगाए हुए थी और नियति के अनुसार उन्हें लगातार संभोग करने की अनुमति न थी।


सोनू को यह प्रतिबंध स्वीकार था परंतु सुगना से दूर रहना कतई नहीं। सोनू अपने गर्दन का दाग कम होते ही वापस बनारस सुगना की प्रेम गंगा में स्नान और सुगना से मिलन की उम्मीद लिए आता पर अधिकतर सुगना उसे बहन का प्यार तो देती उसके लिए उसके पसंद के पकवान खिलाती पर अपनी जांघों के बीच छुपाए मालपुवे को उसकी नजरों से बचाते हुए सुरक्षित दूरी बनाए रखती। उसे सोनू से मिलन तो प्यारा था पर वह सोनू के दाग को बढ़ाना कतई नहीं चाहती थी।


परंतु जब उसकी निगोडी बुर स्वयं बेचैन हो जाती तो कभी कभी उसका और अपने भाई सोनू का मन रखने के लिए उसके आगोश में आ जाती.. और सोनू को कई दिनों के लिए तरोताजा कर जाती…परंतु इस ताजगी के एवज में न चाहते हुए भी उसकी गर्दन पर दाग छोड़ जाती…


सोनू को सुगना से मिलन इस दाग से ज्यादा प्यारा था। सुगना से अलग होने के बाद जब जब वह अपनी गर्दन के दाग को देखता उसे सुगना के साथ बिताए पल याद आने लगते और दाग खत्म होते होते सोनू के मन में दोबारा मिलने की उमंगे दौड़ने लगती।


सुगना का जादू सोनू पर पूरी तरह छाया हुआ था। सुगना द्वारा जागृत उत्तेजना लाली और सोनू के संबंधों को और प्रगाढ़ कर रही थी..


सुगना, सोनू और लाली के बीच प्रेम संबंधों में कैटालिस्ट की तरह थी…परंतु सोनू यह बात नोटिस कर रहा था की कामुक संबंधों के दौरान लाली अब सुगना के बारे में बात नहीं करती थी…। सोनू को यह बात रास न आतीं थी परंतु सोनू को भी अपनी मर्यादा में रहना आवश्यक था।


सोनी के विवाह को अब 3 महीने ही रह गए थे। विकास वापस आने वाला था । सोनी अपने विवाह की तैयारी में लगी हुई थी। पिछले कुछ दिनों से सुगना यह महसूस कर रही थी कि पोस्टमैन अक्सर घर पर आता और सोनी को कुछ लिफाफे पकड़ा जाता। सोनी चुपचाप उसे अपने कमरे में लिए जाती और अगले कुछ दिनों में सोनी अपने लिए तरह-तरह के वस्त्र खरीदती कभी उपहार स्वरूप बच्चों के लिए भी कपड़े ले आती।


एक दिन सुगना से रहा न गया और उसने पूछ ही लिया “ई तोहरा के के पैसा भेजेला ”


सोनी ने अपनी नज़रें झुकाई और शरमाते हुए बोला


“ वही भेज रहे हैं जिनके पल्ले आपने मुझे बांध दिया है”


सोनी के मुख से खड़ी हिंदी सुनकर लाली और सुगना आश्चर्यचकित थे। निश्चित ही यह पैसे विकास भेज रहा था। लाली और सुगना ने सोनी से अनुरोध किया..


“थोड़ा बहुत हमनी के भी हिंदी सिखा दे पढ़ल लिखल लागब जा”


सोनी ने एक टीचर की भांति कहा


“ओके कल से तैयार रहिएगा…पर दीदी गुरु दक्षिणा में क्या मिलेगा?”


लाली ने तपाक से बोला..


“विकास के खुश करे के और अपना पीछे पीछे घुमावे के तरीका….”


लाली ने जिस कामुक अंदाज में यह बात की थी सोनी और सुगना दोनों उसका आशय समझ गए थे। लाली अब उसकी भाभी बनने वाली थी…और वो ननद।


ननद और भाभी के बीच यह मजाक बदलते रिश्तों को बखूबी दिखा रहा था।


सोनी लाली से मुस्कुराते हुए बोली…


“ वैसे तोहर तरीका में जरूर कुछ दम बा “


काहे? लाली ने प्रश्न किया..


सुगना बगल में ही खड़ी थी। सोनी लाली के पास गई और उसके कान में बोली..


“तोहार तरीका जरूर कुछ खास बा तभी तू सोनू भैया के फांस लेलू “


लाली को सोनी कि यह बात रास ना आई. उसने प्रतिरोध करते हुए कहा..


“हम तहरा भैया के नइखे फसवले…. आईहें त उनके से पूछ लीहा..”


सुगना ने बातचीत का क्रम बिगड़ते हुए देखकर सोनी को टोका


“सोनी ढेर बकबक मत कर…. सिखावे के बाद सिखाव न ता जो अपन काम कर”


“दीदी कल से रोज शाम को एक घंटा..और हां गुरुदक्षिणा बाद में” सोनी ने सुगना के कंधों को अपने दोनों हाथों से पकड़ा और उसे एक फ्लाइंग किस देते हुए कहा…


सुगना सोनी में आए बदलाव को कई रूपों में देख रही थी। उसका बर्ताव अब एक आदर्श छोटी बहन से इतरा एक सहेली के रूप में हो रहा था। परिवर्तन प्रकृति का नियम है सुगना यह बात तो बखूबी जानती थी उसने इसे नजरअंदाज किया और अपने काम में लग गई।


पर लाली को सोनी की बातें कुछ असहज कर गयीं …सोनू से विवाह का प्रस्ताव उसने तो नहीं रखा था…. यहां तक की अपनी काम पिपासा शांत करने के लिए सोनू स्वयं उसके पास आया था…फिर सोनी ने उसे ऐसा क्यों कहा? क्या वैवाहिक स्त्रियों के प्रेम संबंधों में हमेशा स्त्रियां ही दोषी होती है?


रसोई में काम कर रही सुगना ने लाली के चेहरे पर आई उदासी को पढ़ लिया सुगना ने सोनू के बचपन और हॉस्टल की बातें कर कुछ ही देर में उसका मूड खुश कर दिया। सोनी को भी वह दिन याद आने लगे जब सोनू धीरे-धीरे उसके संपर्क में आ रहा था। सुगना अनोखी थी और शायद इसीलिए हरदिल अजीज थी।


दिन बीत रहे थे


सुगना ने सोनी से हिंदी बोलने की ट्रेनिंग लेना शुरू कर दिया। वो अपनी भोजपुरी भाषा का सम्मान जरूर करती थी परंतु हिंदी भाषा का ज्ञान होना भी जरूरी था। घर से बाहर निकलने पर अधिकतर लोग इसी भाषा में बात करते थे। परंतु सुगना की जबान से हमेशा भोजपुरी में ही बात निकलती थी। लाली का भी यही हाल था।


यहां तक कि घर के बच्चे भी अधिकतर भोजपुरी में ही बात करते थे। सुगना और लाली ने बच्चों में भी हिंदी बोलने की आदत डालने का निश्चय किया। वक्त के साथ चलना और बदलना भी जरूरी था।


इस बीच सुगना के घर में एक और परिवर्तन आ रहा था। घर में पैसे की आवक बढ़ चुकी थी। उधर विकास सोनी को लगातार पैसे भेज रहा था जिससे वह तरह-तरह के कपड़े खरीदती। उधर जब से लाली और सोनू का विवाह लगभग तय हो गया था लाली में भी आमूल चूल बदलाव आ रहा था अब वह अपने ऊपर और भी ज्यादा ध्यान देने लगी थी। पेंशन के पैसे थे ही उसने भी अपने कपड़े और पहनावे में परिवर्तन लाया। पर लाली एक बात का विशेष ध्यान रखती थी कि जब भी वह अपने लिए नए वस्त्र लाती वैसा ही एक सुगना के लिए जरूर लाती चाहे वह पहने चाहे नहीं।


कपड़ों में यह बदलाव आधुनिकता की देन थी कभी सलवार सूट कभी अनारकली कभी हल्के-फुल्के वेस्टर्न ड्रेस सुगना लाली के जीवन में ए आ रहे बदलाव को देख रही थी लाली खुश थी और सुगना भी।


लाली अपने नए वस्त्रों को पहन कर सुगना को दिखाती और जब उसकी प्रशंसा मिल जाती वह सोनू के घर आने के दिन इस कपड़े में सोनू का इंतजार करती।


लाली की देखा देखी सोनू भी कभी-कभी सोनू भी अपनी पसंद के कपड़े अपनी सुगना दीदी के लिए ले आता और लाली के लिए भी पर आज भी उसकी पहली पसंद सुगना ही थी। सुगना कभी-कभी उसे प्यार से डांटती..और फिर प्यार भी करती।


परंतु भरे पूरे घर में सुगना के साथ एकांत ढूंढना और सुगना को अपनी प्रेमिका के रूप में पाना बेहद कठिन था।


सुगना का घर विवाह का घर हो चुका था जहां आए दिन भीड़ भाड़ रहती थी। पदमा सरयू सिंह और कजरी का आना जाना भी अब लगातार रहता था। सुगना और सोनू के मिलन में बाधाएं लगातार बढ़ रही थी और वैसे ही सोनू की कसक भी। परंतु चतुर और सबका ध्यान रखने वाली सुगना सोनू का ढाढस बांधे रखती थी। वह उसकी सारी इच्छाएं पूरी कर पाने में असमर्थ रहती पर कभी-कभी मौका मिलते ही छोटा-मोटा दाग लगा ही देती थी।


“जब भूख ज्यादा लगी हो तो अल्पाहार जठराग्नि को और भड़का देता है”


सुगना को लेकर सोनू ने इतनी कल्पनाएं कर रखी थी कि उसे पूरा करते-करते न जाने कितने दिन और साल लगते और सोनू की गर्दन का दाग न जाने क्या रूप ले लेता..


नियति सोनू की भावनाओं को बखूबी समझती थी और सुगना भी। उसकी काम इच्छाओ को शांत करने के लिए सुगना को अपने कदम धीरे-धीरे ही बढ़ाने थे और वही वह कर रही थी।


सोनी के विवाह की तैयारियां शुरू हो गईं थीं। सरयू सिंह परिवार के मुखिया थे वह स्वयं सोनी के विवाह के लिए सभी व्यवस्थाएं कर रहे थे। नियति सरयू सिंह के मनःस्थिति के बारे में सोच रहीं थी।


जब-जब वह सोनी को देखते उनके मन में एक कसक सी उठती थी। आखिर कैसे कोई युवती विवाह से पहले अपने आशिक से संभोग कर सकती है। सोनी अभी उन्हें चरित्रहींन हीं लगती थी और शायद यही कारण था की सरयू सिंह की वासना ने सोनी को अपने आगोश में ले लिया था अन्यथा सुगना के साथ किए गए संभोग की आत्म ग्लानि अब भी उन्हें सताती थी।


अपनी कोठरी में सोनी को विकास के साथ संभोग सुख लेते सरयू सिंह ने अपनी आंखों से देखा था और तब से उसके मादक कूल्हों की तस्वीर सरयू सिंह की निगाहों में छप सी गई थी।


सोनी जब-जब सरयू सिंह के समक्ष आती दोनों असहज हो जाते। जब सोनी सरयू सिंह के चरण छूने के लिए झुकती वह उससे पहले अपने वस्त्रों को ठीक करती शायद उसे यह एहसास हो चुका था की सरयू सिंह की निगाहें उसके कूल्हों और चूचियों पर घूमती रहती हैं।


परंतु जब से सोनी ने सरयू सिंह के लंड को देखा था और उसे अपनी कामुक कल्पना में स्थान दिया था सोनी को यह असहजता अब अच्छी लगने लगी थी।


कुछ दिनों बाद विकास अमेरिका से वापस आ गया और विकास एवं सोनी का विवाह पूरी धूमधाम से संपन्न हो गया। सोनू ने भी मौका देखकर विकास को अपने और लाली के विषय में सब कुछ बता दिया। सोनू विकास की नजरों में महान हो गया था। लाली को अपनाने की जो हिम्मत सोनू ने दिखाई थी वो काबिलेतारिफ थी।


शादी के जोड़े में सजी-धजी सोनी को देखकर कभी-कभी सरयू सिंह उसकी गलती माफ कर देते और उसे हमेशा खुश रहने का आशीर्वाद देते परंतु एकांत में वह उसे याद करने का सुख कतई नहीं खोना चाहते थे। अब वही उनकी कामुकता को जीवंत रखने की किसी एकमात्र सहारा थी।


आखिरकार सरयू सिंह की अप्सरा विकास के साथ अमेरिका जाने वाली थी। सुगना के घर का एक अहम सदस्य घर से विदा हो रहा था पूरे परिवार की आंखें नम थी।


सोनी ने लाली से विदा होते वक्त कहा..


“मैं तो आपकी शादी में नहीं आऊंगी पर भाभी आप सोनू भैया का ख्याल रखिएगा”


सोनी को इस बात का इल्म था की सोनू और लाली का विवाह कोर्ट मैरिज के रूप में होगा और घर में शायद कोई बड़ा फंक्शन नहीं होगा। उसने अपने संबोधन में लाली को भाभी बोलकर उसे मन ही मन स्वीकार कर लिया था।


आखिरकार सोनी अमेरिका के लिए उड़ान भर चुकी थी। सुगना की दोनों बहने सुगना से दूर जा चुकी थी।


उधर मोनी विद्यानंद के आश्रम में नित्य नए-नए अनुभव कर रही थी। वयस्क होने की उम्र में होने के बावजूद मोनी का मन एक किशोरी जैसा था। वह एक वह शांत स्वभाव की थी और मन से पूरी तरह धार्मिक थी। सुगना की बहन सोनी जितने आधुनिक ख्याल वाली थी.. मोनी ठीक उसके उलट उतनी ही सीधी-साधी ,धर्म परायण और घरेलू थी।


और इस कहानी की नायिका अपनी दोनों बहनों के गुणों और अवगुणों का मिश्रण थी।


(जिन पाठकों को मोनी का किरदार ध्यान है उन्हें शायद मोनी को समझने में आसानी होगी अन्यथा चरित्र चित्रण पर मेरा ज्यादा समय व्यर्थ होगा उम्मीद करता हूं की कहानी को ध्यान से पढ़ने वाले पाठक जरूरत पड़ने पर पुराने एपिसोड रेफर कर सकते हैं)


उधर विद्यानंद के आश्रम में कुंवारी पर वयस्क कन्याओं के साथ मोनी नित नए-नए अनुभव ले रही थी। यद्यपि उसके साथ जो हो रहा था वह उसकी अपेक्षा और सोच से परे था परंतु वह जिस प्रकार से आयोजित किया जा रहा था मोनी उसे बिना किसी प्रतिरोध के स्वीकार कर ले रही थी।


कुछ कार्यक्रम इतने भाव और शालीन तरीके से किए जाते हैं कि उसमें हो उचित अनुचित कृत्य पर सवाल उठाना बेहद कठिन होता है। विद्यानंद के आश्रम में कई अनूठी गतिविधियां होती थी जो सामान्य तौर पर देखने पर अटपटी लगती थी परंतु उन पर प्रश्न उठाने की ना तो किसी में हिम्मत थी और शायद जरूरत भी नहीं थी। जब उसके प्रतिभागी उसे स्वयं स्वीकार कर रहे थे तो भला किसी और को क्यों आपत्ति होती।


मोनी की टोली में उसके समकक्ष और हमउम्र कई कुंवारी लड़कियां थी जो माधवी के नेतृत्व में तरह-तरह के प्रयोग करती और शाम को अपने-अपने कमरे में लौट जाती।


सुबह-सुबह अपनी साधना के समय जब मोनी अपनी सहेलियों के साथ पूरी तरह नग्न होती वह बेहद ही असहज महसूस करती परंतु अपनी बाकी सहेलियों और अपनी गुरु माधवी को भी पूरी तरह नग्न देखकर वह इस प्रथा को धीरे-धीरे स्वीकार कर चुकी थी।


उनकी गुरु माधवी जो एक अंग्रेज महिला थी वो तन से और चेहरे से बेहद खूबसूरत थी।


नियति नग्न लड़कियों के झुंड और उनकी गुरु माधवी को जब-जब बगीचे में घूमते खेलते देखती उसे एक पल को लगता जैसे वह वह जन्नत में आ गई हो.. हरी हरी दूब की घास रंग-बिरंगे फूलों और छायादार वृक्षों से घिरे उपवन में क्रीडा करती युवतियों को देखकर नियति उनके बीच एक अदद पुरुष की आवश्यकता महसूस कर रही थी.. यदि वह पुरुष गलती से इस उपवन में आ जाता तो निश्चित ही उसे यह आभास होता कि वह स्वर्ग लोक में आ गया है और यह लड़कियां उसे अप्सराओं जैसी प्रतीत होती। परंतु अफसोस विद्यानंद के आश्रम के नियमों के अनुसार आश्रम के उसे हिस्से में पुरुषों का जाना सख्त मना था।


इन लड़कियों का चयन माधवी ने ही किया था। चयन के लिए जो मुख्य योग्यता थी कौमार्य सुरक्षित होना, खूबसूरत चेहरा और खूबसूरत बदन…। विद्यानंद ने माधवी को जन्नत की हूरें या स्वर्ग की अप्सराएं तैयार करने के लिए लगाया था और माधवी ने यह काम बखूबी किया भी था।


माधवी को ट्रेनिंग अब भी जारी थी…वह लड़कियों को तरह तरह के योगाभ्यास कराती जिससे उनका बदन और भी सुडौल बने। उन्हें एक दूसरे की चूचियों को मालिश कर उन्हें और भी उन्नत और कामुक बनाने की कोशिश करती.. लड़कियों के जांघों के बीच उग आए कल और सुनहरे बालों को हटाने के लिए ना तो कभी माधवी ने जिद किया और नहीं कभी लड़कियों ने उसकी मांग की। कुदरत द्वारा प्रदत्त एकमात्र वही बाल उनका सहारा थे अपने गुप्तांगों को छुपाने के लिए यद्यपि छुपाने की आवश्यकता ना थी क्योंकि जब वह इस तरह नग्न अवस्था में रहती सभी की सभी लड़कियों की स्थिति एक ही होती।


मूलत माधवी का उद्देश्य यही था कि इन चुनी हुई लड़कियों के बदन को तराश कर उन्हें अप्सराओं की भांति तैयार करना था। विद्यानंद का उद्देश्य माधवी को भली भांति ज्ञात था। माधवी इस बात का पूरा ख्याल रखती की कोई भी लड़की अपनी योनि को हाथ न लगाएं और यदि इसकी आवश्यकता हो तो भी उसे अपना कौमार्य बचाए रखने की सख्त हिदायत थी।


नग्नता पैसे भी वासना को जन्म देती है यद्यपि आश्रम में आई लड़कियां निश्चित ही कामवासना से विमुख होकर यहां आई थी परंतु फिर भी वासना स्त्री का एक अभिन्न गुण होता है।


मोनी का तन बदन धीरे-धीरे और निखरता जा रहा था चूचियों की मालिश और योगाभ्यास ने उसकी चूचियों को पर्वत की भांति उठा दिया था। गोरी गोरी जांघों के बीच झुरमुट की तरह काले बाल उसकी बुर को छुपाए रखते.. पर उसकी खूबसूरती को और भी बढ़ा देते।


कुछ महीने के अथक प्रयासों के पश्चात मोनी और अन्य लड़कियां पूरी तरह तैयार थी।


और एक दिन..


विशालकाय भवन में सभी लड़कियां अपने बदन पर एकमात्र झीना वस्त्र डालें (राम तेरी गंगा मैली की मंदाकिनी जैसी ) नीचे बैठी हुई विद्यानंद का इंतजार कर रही थी। कुछ ही देर बाद विद्यानंद अपनी पूरी गरिमा और माधवी के साथ कक्ष में उपस्थित हुए।


सभी लड़कियों ने उठकर उनका अभिवादन किया। विद्यानंद ने हाथ उठाकर उनका अभिवादन स्वीकार किया और लड़कियों को बैठने का निर्देश दिया परंतु इसी दौरान उन्होंने माधवी की पसंद और उसकी मेहनत का जायजा ले लिया। ऐसा लग रहा था जैसे परीलोक से उतरकर कई अप्सराय आश्रम में आ गई हों..


विद्यानंद ने अपनी गंभीर आवाज में बोला..


देवियों आप सब आश्रम का अभिन्न अंग हो चुकी है… यह आश्रम मानवता की सेवा करने के लिए बना हुआ है…आप सब जिस समाज से उठकर आई है वहां सुख और दुख दोनों ही हर परिवार में होते हैं …. पति-पत्नी के संबंधों मैं सामंजस्य नहीं होना समाज में कई समस्याएं उत्पन्न करता है. ..कई विवाह सफल होते हैं कई असफल इन सब के मूल में कहीं ना कहीं स्त्री और पुरुष की कामवासना की तृप्ति नहीं हो पाना होता है।


जहां तक मैंने इस जीवन को देखा है मैं यही बात समझी है कि यदि पति और पत्नी के बीच अंतरंग संबंध बखूबी बनते हैं और दोनों ही उसका आनंद लेते हैं तो वह विवाह निश्चित ही सफल होता है अन्यथा समाज में पति और पत्नी दोनों घुट घुट कर रहते हैं


आप सब ने भी शायद यह बात अपने आसपास या अपने परिवार में जरूर देखी होगी। क्या आपको पता है इसका मूल कारण क्या है? कई युवा पुरुष स्त्री शरीर से पूरी तरह अनभिज्ञ होते हैं । स्त्रियों के कोमल मन को जानना और स्त्री शरीर को समझना इतना आसान नहीं होता। और जब इसे पुरुष विवाह के बंधन में बंधते हैं तो कुछ ही दिनों में अपनी पत्नी की मन की बात जाने बिना और उसके शरीर को समझे बिना वह ऐसे ऐसे कृत्य करते हैं जिससे वह हमेशा के लिए अपनी पत्नी की नजर में एक कामुक और आनंदी व्यक्ति के रूप में अपनी पहचान छोड़ देते हैं।


इस अवस्था में पत्नी का प्रेम पाना तो दूर वह स्त्री उनसे ऐसी दूरी बना लेती हैं जो उनके मन में हमेशा कष्ट का कारण बनी रहती है।


मेरे कई अनुयाई अपने बच्चों की यही समस्या लेकर अक्सर मुझसे बातें करते। पूरी वस्तु स्थिति समझने के बाद मैंने इस समस्या के निदान के लिए एक नया आश्रम बनाया है जिसमें एक विशेष कक्ष है। आप सब इस धरती की सर्वोत्तम सुंदर महिलाओं में से एक है । और अब तक आप लोगों ने अपना कौमार्य बचा कर रखा है इससे यह बात भी स्पष्ट होती है कि आप सब कामुकता और वासना से दूर हैं।


मैं यह समझता हूं कि आश्रम से जुड़ते समय निश्चित ही आपने अपनी कामवासना पर विजय प्राप्त कर ली थी तब ही आप लोग ने इस आश्रम का रुख किया।


मैं आप सबको इस समाज से विकृतियों हटाने में आपकी सहायता सहायता चाहता हूं।


उधर रतन दरवाजे के उसी सभागार के कक्ष पर विद्याधर से मिलने के लिए इंतजार कर रहा था..


दरबान के दरवाजा खोलते ही रतन की नजरे अंदर खड़ी लड़कियों की तरफ चली गई और उसकी आंखें फटी रह गई आगे की लाइन में परियों की तरह खूबसूरत बन चुकी मोनी से उसकी नजरें चार हो गईं…


रतन और मोनी दोनों इस स्थिति के लिए तैयार न थे। परंतु मोनी की मादक काया रतन की निगाहों में छप सी गई..


मोनी ने अपनी स्थिति का आकलन किया और नजरे झुका ली.. शायद वह अपनी नग्नता को लेकर अब सजग हो गई थी..


शेष अगले भाग में...


आपके कमेंट के इंतजार में


Bahut hi lajawab or jabardast
 
  • Like
Reactions: macssm

namedhari

Member
102
53
28
Aapke pichhle update mein ki saryu singh ki mrutyu dikhai gai hai parantu abhi aap saryu Singh ko Jinda dikha rahe hain yah virodhabhas kyon Hai,isko clear kaiye.please 132 update send kar dijiye.
 
  • Like
Reactions: Kumarshiva

Shubham babu

Member
253
153
58
भाग 131

लाली…सोनू का बेसब्री से इंतजार करने लगी…पर सुगना सतर्क थी..उसे सोनू का इंतजार भी था पर एक डर भी था कही सोनू ने फिर…नहीं..नहीं अब बस.. जो हुआ सो हुआ। वह मन ही मन निर्णय लेने की कोशिश कर रही थी पर जांघों के बीच छुपी प्रतीक्षारत बुर सुगना के निर्णय को कमजोर करने की कोशिश कर रही थी।

नियति मुस्कुरा रही थी और विधाता द्वारा लिखी गई आगे की पटकथा को पढ़ने का प्रयास कर रही थी…


अब आगे..

सुबह-सुबह अपनी पारिवारिक जिम्मेदारीयो को निभाने के पश्चात सुगना अपने भगवान के समक्ष अपने परिवार के कुशल क्षेम की प्रार्थना कर रही थी। सोनू के नसबंदी कर लेने के पश्चात यह सुनिश्चित हो चुका था कि सोनू अब विवाह नहीं कर सकता । पूरे परिवार में यह बात सिर्फ सुगना को पता थी और उसने इसीलिए सोनू और लाली के विवाह का निर्णय ले लिया था।

सुगाना यह चाहती थी की लाली और सोनू पति-पत्नी के रूप में साथ में रहने लगे जिससे सोनू की वासना तृप्ति होती रहे और सोनू जिसका ध्यान भटकते भटकते स्वयं उसकी तरफ आ चुका था वह उससे दूर ही रहे। परंतु सुगना को शायद यह अंदाजा न था कि सोनू और सुगना एक दूसरे के लिए ही बने थे उन्हें अलग कर पाना इतना आसान न था।

दोपहर में सुगना और लाली भोजन के पश्चात एक ही बिस्तर पर लेटे हुए थे । सुगना ने लाली की ओर करवट ली और बोली..

“सोनूआ शनिचर के आवता…सोचा तनी सोनी के सीतापुर भेज दी… सोमवार के भी छुट्टी बा 2 दिन मां के साथ रहली अच्छा लागी।

लाली मंद मंद मुस्कुराने लगी। वह जानती थी कि सोनी की उपस्थिति में सोनू से संभोग करना एक आसान कार्य न था। पिछली बार बड़े दिनों बाद जब सोनू और लाली का मिलन हुआ था तब सोनी घर में थी और लाली और सोनू दोनों के बीच कामुक गतिविधियों के दौरान दोनों अहसज महसूस कर रहे थे।

एक तरफ जहां सुगना की उपस्थिति लाली और सोनू दोनों में जोश भर देती थी। वहीं दूसरी तरफ सोनी से लाली और सोनू दोनों अपने अनूठे रिश्ता का पर्दा रखते थे।


सोनी को यह इल्म भी ना था की उसके सोनू भैया जो उसके लिए एक आदर्श थे अपनी मुंह बोली बहन लाली के साथ बिस्तर पर धमा चौकड़ी करते थे।

लाली ने मुस्कुराते हुए कहा..

“ठीक कहा त बाड़े , दो-चार दिन घुम आईबे तो ओकरो अच्छा लागी”

सुगना में उसे चिकौटी काटते हुए कहा

“और ताहरा?”

लाली सुगना से सटकर गले लग गई।

सोनी के अनुपस्थित होने पर जब भी सोनू घर में होता, सुगना घर के सभी बच्चों को संभाल लेती । वह उनके साथ खेलती उन्हें कहानियां सुनाती बातें करती इसी दौरान लाली और सोनू अपनी कामवासना को शांत कर लेते। दिन हो या रात सुगना के रहने से लाली और सोनू को पूरा एकांत मिलता दोनों इसके लिए सुगना के शुक्रगुजार भी थे और कृतज्ञ भी।

सुगना ने हिम्मत जुटा कर लाली से सोनू और उसके विवाह के बारे में बात करने की सोची और उसकी बाहों पर अपनी हथेली रखते हुए बोली

“ए लाली जौनपुर अबकी ते सोनू के साथ जौनपुर चल जो सोनू तोर पसंद के पलंग सजाबले बा. मन भर सुख लीहे.. ओकर घर बहुत सुंदर बा”

“जाए के तो हमरो मन करता पर बच्चन के के स्कूल चलता।

“ते जो हम संभाल लेब” सुगना ने रास्ता सुझाया।

“पगला गई बाड़े का । सोनू के साथ अकेले जाएब तो लोग का सोची ? हम ओकर बहिन हई बीबी ना..” लाली मुस्कुराने लगी।

समझदार सुगना ने न जाने ऐसी बात कैसे बोल दी थी। लाली का प्रश्न उचित था सोनू के साथ बिना बच्चों के जाना मुमकिन ना था।

पर अब जब सुगना के मुख से बात निकल ही गई थी उसने इसे अवसर में तब्दील कर दिया और बेहद संजीदगी से बोली..

“अच्छा ई बताओ लाली तोरा सोनूवा के साथ हमेशा रहे के मन करेला की ना?”

“काहे पूछत बाडू तू ना जाने लू का? अगला जन्म में भगवान हमारा हिस्सा में सोनुआ के देते त हमार भाग जाग जाएत..”

“और भगवान एही जन्म में दे देस तब?”

सुगना ने पूरी संजीदगी से उसकी आंखों में आंखें डालते हुए कहा।

सुगना ने लाली की दुखती रंग छेड़ दी थी जो लाली कभी अपनी कल्पनाओं में इस बात को सोचती थी आज सुगना ने अपने मुंह से वह बात कह कर अकस्मात लाली को उसकी संभावनाओं पर सोचने के लिए विवश कर दिया था। फिर भी वह सतर्क थी उसने मुंह बिचकाते हुए कहा

“ काहे ए अभागन से मजाक करत बाड़े। जतना प्यार हमरा सोनू से मिलेला हम ओतना से खुश बानी हमरा के ढेर लालची मत बनाव “

सुगना भली-भांति समझती थी की लाली सोनू को अपने पति रूप में स्वीकार करना चाहती तो अवश्य होगी पर सांसारिक और वैचारिक बंधनों से यह एक बेहद कठिन कार्य था।

आखिरकार सुगना ने अपने चिर परिचित दृढ़ अंदाज में लाली से कहा..

“लाली यदि सोनू तोहरा से खुद विवाह करें के इच्छा व्यक्त करी तो मना मत करिह बाकी सब हम देख लेब” लाली सुगना की बात सुनकर आश्चर्यचकित थी.

“ए सुगना अइसन मजाक मत कर”

“हम सच कहत बानी बस तू ओकर प्रस्ताव स्वीकार कर लीह “

“और घर परिवार के लोग “

“उ सब हमारा पर छोड़ दा?

“लाली पर सोनू हमरा से छोट ह और ईद दु दु गो बच्चा लोग ?” इ शादी बेमेल लागी।

लाली का प्रश्न सही था। निश्चित ही यह शादी बच्चों की वजह से कुछ अटपटी और बेमेल लग रही थी। परंतु लाली और सोनू जब अगल-बगल खड़े होते तो उम्र का अंतर बहुत ज्यादा नहीं प्रतीत होता था। सोनू अपनी उम्र से ज्यादा मेहनत कर अपना शरीर एक मर्द की तरह बना चुका था और इसके इतर लाली अब भी अपनी कमानीयता बरकरार रखने में कायम रही थी। उम्र में कुछ वर्ष बड़े होने के बावजूद उसने अपने शरीर को मेंटेन करते हुए इस उम्र के पहले को यथासंभव कम कर दिया था।

इसके बावजूद लाली को सुगना की बातें एक दिवास्वप्न की तरह लग रही थी। पर जिस संगीदगी से सुगना ने यह बात कही थी उसे सिरे से नकार देना संभव न था।

लाली के तो मन में अब लड्डू फूटने लगे थे। परंतु क्या यह इतना आसान होगा? क्या उसके और उसके परिवार के लोग इस बात को स्वीकार करेंगे ? क्या वह सचमुच सोनू से विवाह करेंगी? हे भगवान क्या उसकी कल्पना एक मूर्त रूप लेने जा रही थी? वह सुगना के प्रति कृतज्ञता और आभार प्रकट करते हुए उसकी दोनों हथेलियां को अपने हाथों में ले ली और बेहद प्यार से सहलाते हुए बोली

“सुगना हमरा के माफ कर दीहे हम तोहरा साथ बहुत नाइंसाफी कइले बानी”

सुगना ने प्रश्नवाचक निगाहों से लाली की तरफ देखा जैसे उसके इस वाक्य का मतलब समझाना चाह रही हो लाली की आंखों में आंसू थे उसने अपनी पलके झुकाए हुएकहा..


“सुगना ऊ दिवाली के रात सोनुआ तोहरा साथ जवन काईले रहे ओ में हमारे गलती रहे। हम ही ओकरा के उकसावले रहनी की की तु ओकरा से मिलन खाती तैयार बाडू।”

सुगना आश्चर्यचकित होकर लाली को देख रही थी। उसे समझ में नहीं आ रहा था की लाली के इस कन्फेशन से वह खुश हो या दुखी । एक तरफ उसके कन्फेशन सोनू को कुछ हद तक दोष मुक्त कर रहे थे और दूसरी तरफ उसका अंतरमन लाली का धन्यवाद दे रहा था जो उसने सोनू से उसका मिलन जाने अनजाने आसान कर दिया था। और उसके जीवन में एक बार फिर प्रेम और वासना की तरंगे छोड़ दी थी

सुगना ने खुद को संयमित किया वह उस बारे में और बात करना नहीं चाह रही थी उसने लाली की बात को ज्यादा तवज्जो न देते हुए कहा…

“तोरा कारण का का परेशानी भइल जानते बाड़े ..पर शायद कौनों पाप रहे कट गईल अब भूल जो ऊ सब”

बच्चों के ऑटो की आवाज सुनकर दोनों सहेलियों का वार्तालाप बंद हुआ लाली खुशी बच्चों को लेने बाहर गई और सुगना एक लंबी आह भरते हुए आगे की रणनीति बनाने लगी।

सुगना ने मन ही मन अपनी रणनीति बनानी शुरू कर दी उसे भी पता था यह कार्य बेहद कठिन था सोनू जैसे सजीले मर्द जो एक अच्छे प्रशासनिक पद पर भी था और तो और इसके लिए कई नामी गिरामी लोगों की लड़कियों के रिश्ते आ रहे थे ऐसे में सोनू लाली जैसी दो बच्चों वाली विधवा से विवाह के लिए सभी परिवार वालों को राजी करना बेहद कठिन था।

परंतु सुगना यह बात भली भांति जानती थी कि जब से सोनू ने अपनी नसबंदी करा ली थी उसका विवाह किसी सामान्य लड़की से करना उचित न था। यह उस लड़की के साथ भी अन्याय होता और उसके परिवार के साथ भी। यह धोखा था जिसे सुगना कतई नहीं चाहती थी।

सुगना की विडंबना यह थी कि वह सोनू की नसबंदी की बात किसी से साझा नहीं कर सकती थी यह राज सिर्फ उन दोनों के बीच था।

आखिरकार सोनू शनिवार को बनारस आने वाला था लाली और सुगना दोनों तैयार हो रहीं थी। एक सोनू के स्वागत के लिए और दूसरी सोनू के आने वाले जीवन में खुशियां बिखरने के लिए।

कुछ ही देर बाद सोनी और सुगना अपने दोनों बच्चों के साथ सीतापुर के लिए निकल पड़े। लाली को यह कुछ अजीब सा लगा

“अरे काल चल जईहे आज सोनू से मुलाकात कर ले..”

“ना ओकरा आवे में देर होई…अगला सप्ताह भेंट होखी” ऑटो में बैठ चुके बच्चे उछल कूद मचा रहे थे। सोनी और सुगना सीतापुर के लिए निकल चुके थे। वैसे भी सोनू का आना जाना एक सामान्य बात थी।

सुगना को पता था की सोनू निश्चित ही किसी न किसी बहाने उसे अपने मोहपाश में बांधेगा और उसकी निगोडी बुर में कामेच्छा जागृत करेगा और मौका देखकर संसर्ग के लिए किसी न किसी प्रकार उसे मना लेगा। ठीक वैसे ही जैसे वह बचपन में सुगना का उसका मन ना होते हुए भी अपने खेल में घसीट लेता था।

वैसे भी अभी सुगना की प्राथमिकताएं दूसरी थी अपने और लाली के घर वालों को मनाना उसके लिए एक कठिन कार्य था।

सोनू बनारस आया पर सुगना को घर में ना देखकर उसका उत्साह ठंडा पड़ गया। परंतु लाली खुश थी। आज उसके मिलन में कोई भी व्यवधान न था। सुगना से तो उसे वैसे भी कोई दिक्कत न थी परंतु सोनी……से पार पाना कठिन था। उसकी उपस्थिति में फूक फूक कर कदम रखना पड़ता था।

लाली का ध्यान सोनू की गर्दन की तरफ गया। गर्दन का दाग पूरी तरह गायब था। लाली खुश हो गई। पर सोनू की आंखों से चमक गायब थी। जिससे मिलने के लिए वह दिल में तड़प लिए बनारस आया था वह न जाने क्यों उसे छोड़कर चली गई थी।

शाम होते होते वस्तु स्थिति को स्वीकार करने के अलावा सोनू के पास और कोई चारा नहीं था। लाली जी जान से रात की तैयारी कर रही थी सोनू अब अपनी खुशी लाली में ही तलाश रहा था। लाली ने जिस तरीके से सुगना के समक्ष अपनी गलती मानी थी तब से उसकी मन हल्का हो गया था और वह अपनी सहेली सुगना के प्रति दिल से कृतज्ञ थी जिसने उसके वीरान जिंदगी में सोनू जैसा हीरा डालने का वचन दिया था।

लाली ने मन ही मन सोच लिया कि वह सोनू को संभोग के समय सुगना का नाम लेकर और नहीं उकसाएगी…

परंतु रात में जब सोनू और लाली एक दूसरे की प्रेम अग्न बुझा रहे थे बरबस ही सुगना का ध्यान उन दोनों के मनो मस्तिष्क में घूम रहा था। लाली द्वारा सुगना का जिक्र न किए जाने के बावजूद सोनू तो सुगना में ही खोया हुआ था। सोनू के आवेग और वेग में कमी नहीं थी। अपनी सुगना के लिए जितनी वासना सोनू ने अपने तन बदन में समेट रखी थी वह सारी लाली पर उड़ेल कर वह निढाल हो गया।

उधर सुगना अपने परिवार के बीच पहुंच चुकी थी..

सुगना जिस मिशन पर गई थी वह एक दो मुलाकातों में पूरा नहीं होने वाला था परंतु जब सुगना मन बना चुकी थी.. तो उसके लिए कोई भी कार्य दुष्कर न था।

अगले दो तीन महीने यूं ही बीत गए। हर शनिवार सोनू सुगना से मिलने बनारस आता पर कभी सुगना अपने गांव चली जाती कभी अपनी मां या कजरी और सरयू सिंह को बनारस बुला लेती इन दोनों ही परिस्थितियों में सोनू और सुगना का मिलन असंभव था । और सपना के प्यार में कोई कमी न थी। वह सब की उपस्थिति में सोनू से पूर्व की भांति प्यार करती उससे सटती कभी उसके गोद में सर रख देती पर उसे कामुक होने का कोई मौका नहीं देती। कभी-कभी सोनू एकांत में सुगना को बाहर घूमाने की जिद करता परंतु सुगना सोनू को उसे घुमाने का मूल उद्देश्य जानती थी और बड़ी सफाई से बिना उसे आहत किए बच निकलती..

जिस तरह मछली को पानी में पकड़ना मुश्किल होता है वह हांथ तो आती है पर पकड़ में नहीं आती सुगना भी अपने परिवार के बीच सुनहरी मछली जैसी ही थी..

सोनू उसका स्पर्श सुख तो बीच बीच में ले पा रहा था पर उछलती मचलती सुगना उसकी पकड़ से दूर थी..

ऐसा नहीं था कि सुगना ने इस दौरान सोनू को नजरअंदाज कर दिया था बस दूरी बना ली थी यद्यपि बीच-बीच में वह उसमें वासना की तरंगे भरने का काम जरुर कर देती थी।

आखिरकार सुगना अपने घर वालों और लाली के घर वालों को इस अनोखे विवाह के लिए राजी करने में कामयाब हो गई। सर्वसम्मति से यह विवाह आर्य समाज विधि से साधारण रूप से किसी पवित्र मंदिर में किया जाना निश्चित हुआ।

पूरे घर में खुशियों का माहौल था। इस अनूठे रिश्ते से सोनी सबसे ज्यादा आश्चर्यचकित थी। सोनू और लाली कब मुंह बोले भाई बहन से एक दूसरे के प्रेमी बन गए थे सोनी ने शायद इसकी कल्पना भी ना की थी। परंतु सोनू के निर्णय पर प्रश्न चिन्ह करने का ना तो सोनी के पास कोई अधिकार था और नहीं कोई जरूरत जब मियां बीबी राजी तो वह बीच में कई काजी की भूमिका अदा नहीं करना चाहती थी।

शुरुवात में सोनू की मां पद्मा का मन थोड़ा दुखी जरूर था परंतु लाली ने पदमा की सेवा कर उसका भी मन जीत लिया था। पूरे परिवार ने आखिरकार मिलकर यह हत्या किया कि यह विवाह सोनी के विवाह के बात करना उचित होगा अन्यथा सोनी के ससुराल वाले इस विवाह पर प्रश्न चिन्ह लगा सकते थे।

सुगना के लिए सोनू की तड़प बढ़ती जा रही थी और अब कमोबेश यही हाल सुगना का भी था इन दो-तीन महीनो में सुगना ने लाली और सोनू को हमेशा के लिए एक करने के लिए भरपूर प्रयास किया था और सफल भी रही थी। उसका कोमल तन बदन सोनू के मजबूत आलिंगन में आने को तड़प रहा था। पर अपने मन पर मजबूत नियंत्रण रखने वाली सुगना अपनी भावनाओं को काबू में किए हुए थी।

आज शुक्रवार का दिन था। लाली अपने बच्चों के साथ अपने माता-पिता से मिलने सलेमपुर गई हुई थी। शायद उसके माता-पिता ने उसके लिए घर पर कोई छोटी पूजा रखी थी जिसमें उसका उपस्थित रहना जरूरी था। सुगना ने लाली को हिदायत दी थी की कैसे भी करके कल शाम तक बनारस आ जाना। पूर्व निर्धारित कार्यक्रम के अनुसार कल सोनू को बनारस आना था और सुगना कतई नहीं चाहती थी कि सोनू बिना लाली की उपस्थिति के बनारस में उसके साथ एक ही छत के नीचे रहे। सुगना अब तक अपनी भावनाओं पर नियंत्रण रखने में कामयाब रही थी और सोनू अपनी भावनाओं को काबू में रखने को मजबूर था।

सुगना अपने दोनों बच्चों को स्कूल भेजने के बाद पूरी तरह खाली थी। आज उसने पूरी तन्मयता से स्नान किया स्नान करते वक्त अपनी छोटी सी बुर के चारों तरफ उग आए काले बालों की झुरमुट को सोनू के पुराने रेजर से साफ किया। इस दौरान न जाने क्यों वह सोनू को याद करती रही ।


सुगना महसूस कर रही थी कि पिछले कुछ महीनो में उसने सोनू को हद से ज्यादा बेचैन कर दिया था पर उसकी नजरों में शायद यही उचित था। बिस्तर पर जब जब सुगना स्वयं उत्तेजना का शिकार होती अपनी जांघों के बीच तकिया फसाकर जौनपुर में सोनू के साथ बिताए पल को याद करती सोनू को याद करते-करते उसकी उंगलियां उसकी बुर को थपकियां देकर सुलाने की कोशिश करती।

कभी वह रहीम और फातिमा की किताब निकाल कर पढ़ती और इसी दौरान न जाने कब सुगना की बुर उसकी जांघों को ऐंठने पर मजबूर कर देती और सुगना तृप्ति का सुखद एहसास लिए नींद में खो जाती। रहीम एवं फातिमा की किताब अब उसके लिए एक अनमोल धरोहर हो चुकी थी जो उसके एकांत और सुख की साथी थी..

सुगना ने तसल्ली से स्नान किया खूबसूरत मैरून कलर की साटिन की नाईटी पहनी …. बालों की सफाई होने के पश्चात उसकी बुर संवेदनशील हो चुकी थी अतः उसने अंतर्वस्त्र पहनने को आवश्यकता नहीं समझी पर एहतियातन अपनी चूचियों को ब्रा सहारा दे दिया। वैसे भी आज कई दिनों वह घर में नितांत अकेली थी और आज दोपहर रहीम और फातिमा की किताब पढ़ते हुए अपने कामोत्तेजना शांत करने वाली थी।

स्नान के बाद ध्यान की बारी थी। अपने इष्ट देव को याद करते हुए सुगना पूजा पाठ में संलग्न हो गई। सुगना ने आरती दिखाई और अपने परिवार की खुशियों को कामना की..इसी बीच उसने लाली और सोनू का भी ध्यान किया और उनके विवाह के लिए मंगल कामना की। इधर सुगना ने अंतरमन ने सोनू को याद कर लिया…उधर

दरवाजे पर ठक ठक की आवाज हुई.. हाथ में आरती की थाल लिए अपने घर और बरामदे में आरती दिखाते हुए सुगना दरवाजे तक गई और दरवाजा खोल दिया..

सामने सोनू खड़ा था.. सुगना सुगना आश्चर्यचकित थी..पर बेहद खुश थी

“अरे सोनू बाबू आज कैसे? छुट्टी बा का?”

“ना दीदी बनारस में काम रहे…” सुंदर नाइटी में फूल सी खिली सुगना की मादक सुगंध में खोए हुए सोनू ने मुस्कुराते हुए उत्तर दिया..

उसने झुक कर सुगना के चरण छुए… उठते वक्त उसने सुगना के हाथ में पकड़ी आरती की थाल को पूरे आदर और सम्मान से अपनी दोनों हथेलियों से स्वीकार किया और उसे अपने माथे पर लगा लिया।


सुगना खुश भी थी और आश्चर्यचकित भी उसने सोनू के माथे पर तिलक लगाया और सर पर रखकर उसकी सभी मनोकामनाएं पूरी होने का आशीर्वाद दिया..नियति मुस्कुरा रही थी सुगना ने अनजाने में उसे स्वयं को समर्पित कर दिया था आखिर इस वक्त सोनू की एकमात्र मनोकामना सुगना स्वयं थी। सुगना वापस पूजा का थाल रखना अपने छोटे से मंदिर में चली गई..

इधर सोनू अपना सामान लाली के कमरे में रख चुका था कमरे की स्थिति यह बता रही थी की लाली अपने पूर्व नियोजित कार्यक्रम के अनुसार सलेमपुर जा चुकी थी..

अब तक सोनू को पिछले कुछ महीने से खुद से दूर रख पाने में सफल सुगना आज अचानक ही नियत के खेल में फंस चुकी थी। सोनू की खुशी सातवें आसमान पर थी और अपने इष्ट देव के समक्ष सर झुकाए सुगना का दिल धड़क रहा था…सुगना को स्वयं यह समझ नहीं आ रहा था कि वह ईश्वर से मांगे तो क्या मांगे जो जीवन में उसे सबसे प्यारा था वह उसके समक्ष था.

सोनू मंदिर के दरवाजे पर खड़ा सुगना के बाहर आने का इंतजार कर रहा था..

जैसे ही सुगना अपने पूजा कक्ष से बाहर आई सोनू ने उसे सोनू ने उसे एक झटके में ही अपनी गोद में उठा लिया..सुगना ने अपनी खुशी को नियंत्रित करते हुए पर अपनी मादक मुस्कान बिखरते हुए सोनू से कहा..

“अरे रुक भगवान जी के सामने…”

सोनू ने सुगना को अपनी गोद में लिए हुए अपने घर के मंदिर के सामने लगे परदे को खींचने का अवसर दिया। सुगना ने अपने इष्ट देव को एक बार फिर प्रणाम किया जब तक सुगना अपने ईस्ट से अपने मन की बात कह पाती तब तक सोनू सुगना को अपने गोद में लिए हुए सुगना के कक्ष की तरफ बढ़ चला।

उसकी उंगलियां सुगना के नंगे पेट से सट रही थी वह बीच-बीच में सुगना के पेट को अपनी उंगलियों से गुदगुदा देता। सुगना का अंतर्मन फूल की तरह खिल गया था वह खिलखिला रही थी।

नियति को हंसती खिलखिलाती सुगना एक कामातुर तरुणी की तरह प्रतीत हो रही थी…

नियति सतर्क थी..और सोनू और सुगना के मिलन की प्रत्यक्षदर्शी होने के लिए आतुर थी…

शेष अगले भाग में.



पहले की ही भांति अगला एपिसोड उन्हीं पाठकों को भेजा जाएगा जिन्होंने कहानी से कमेंट के माध्यम से अपना जुड़ाव दिखाया है..
प्रतीक्षारत
bahot hi mst likha hai bhai aap ne 🔥🔥🔥🔥
 
  • Like
Reactions: Sanju@

macssm

Active Member
1,042
795
113
भाग 133


सोनू सुगना के बगल में लेट कर सुगना के शरीर पर पड़े अपने वीर्य से उसके कोमल बदन की मालिश करने लगा.. चूचियां वीर्य से सन चुकीं थी । सोनू ने सुगना के चेहरे पर पड़ी नाइटी आहिस्ता से हटा दी। वह सुगना को लगातार चुमें जा रहा था.. जैसे वह सुगना के प्रति अपनी कृतज्ञता जाहिर कर रहा हो सुगना भी उसकी बाहों में सिमटी जा रही थी..


नियति सोनू और सुगना के मिलन से संतुष्ट थी। सोनू को दहेज में सुगना ने अपनी बुर ही क्या वह स्वयं को सोनू के लिए समर्पित कर दिया था।


अब आगे…


नग्न सुगना को अपनी बाहों में लिए सोनू सुगना के चेहरे को रह रह कर चूम रहा था और सुगना भी पूरे जोश से सोनू से चिपकी हुई थी। वैसे भी वह सोनू के लिंग में दोबारा उत्तेजना जागृत होने का इंतजार कर रही थी। उसकी पनियाई बुर चैतन्य होकर सोनू के लंड का इंतजार कर रही थी।


सुगना के होठों को चूमते हुए सोनू ने कहा


“अच्छा दीदी एक बात बताव लाली दीदी के साथ ब्याह कईला ला के बाद….”


“अब ओकरा के की दीदी मत बोला कर कितना बार कहले बानी”..


सुगना ने सोनू के गाल पर एक मीठी चपत लगाई और उसकी बात बीच में ही काटते हुए बोली…


सोनू मुस्कुराने लगा…उसने सुगना के नग्न कूल्हों को अपनी हथेलियां के दबाव से अपनी तरफ खींचा और उसका लंड सुगना की जांघों से सट गया…सोनू ने सुगना के कानों को चूमते हुए धीरे से फुसफुसाते हुए बोला..


“तब त तू हमार साली लगबु अब तहरो के दीदी ना बोलब..”


सुगना की जांघों ने महसूस किया कि सोनू का लंड अपना आकर धीरे-धीरे बढ़ा चुका था।


सुगना एक बार फिर खिलखिलाकर हंस पड़ी.. हंसती खिलखिलाती सुगना किसी भी मर्द में उत्तेजना भरने में सक्षम थी सोनू एक बार फिर अपनी मजबूत लंड के साथ..अपनी साली सुगना की सेवा करने को तैयार था…


सुगना स्वयं इस नए रिश्ते को समझने का प्रयास कर रही थी.. इसी बीच सोनू सुगना की खुद के वीर्य से सनी चूचियां अपने मुंह में ले चुका था…


सुगना सोनू की वासना को जागृत होते हुए देख रही थी।


सुगना और सोनू पूरी तरह से एक हो चुके थे। उनके बीच जो आगे हुआ वो पाठक अपनी अपनी कल्पनाओं के अनुसार सोच सकते हैं और समझ सकते हैं।


सोनू और सुगना के रिश्ते बदल रहे थे।


सोनू और सुगना के बीच एकांत में अब उतना ही पर्दा था जितना पति-पत्नी के बीच होता है। परंतु किसी अन्य की उपस्थिति में सुगना और सोनू का रिश्ता ठीक वैसे ही था जैसे एक बड़ी बहन और छोटे भाई के बीच होता है। हां इतना अंतर अवश्य आया था कि अब दोनों एक दूसरे से खुलकर बात करते थे उन दोनों के बीच झिझक धीरे-धीरे कम होती जा रही थी परंतु मर्यादा उसी प्रकार कायम थी जैसी होनी चाहिए।


सोनू और सुगना के मिलन ने एक बार फिर सोनू के दाग को उभार दिया था। शायद नियति सोनू और सुगना के मिलन पर अब भी अपना प्रश्न चिन्ह लगाए हुए थी और नियति के अनुसार उन्हें लगातार संभोग करने की अनुमति न थी।


सोनू को यह प्रतिबंध स्वीकार था परंतु सुगना से दूर रहना कतई नहीं। सोनू अपने गर्दन का दाग कम होते ही वापस बनारस सुगना की प्रेम गंगा में स्नान और सुगना से मिलन की उम्मीद लिए आता पर अधिकतर सुगना उसे बहन का प्यार तो देती उसके लिए उसके पसंद के पकवान खिलाती पर अपनी जांघों के बीच छुपाए मालपुवे को उसकी नजरों से बचाते हुए सुरक्षित दूरी बनाए रखती। उसे सोनू से मिलन तो प्यारा था पर वह सोनू के दाग को बढ़ाना कतई नहीं चाहती थी।


परंतु जब उसकी निगोडी बुर स्वयं बेचैन हो जाती तो कभी कभी उसका और अपने भाई सोनू का मन रखने के लिए उसके आगोश में आ जाती.. और सोनू को कई दिनों के लिए तरोताजा कर जाती…परंतु इस ताजगी के एवज में न चाहते हुए भी उसकी गर्दन पर दाग छोड़ जाती…


सोनू को सुगना से मिलन इस दाग से ज्यादा प्यारा था। सुगना से अलग होने के बाद जब जब वह अपनी गर्दन के दाग को देखता उसे सुगना के साथ बिताए पल याद आने लगते और दाग खत्म होते होते सोनू के मन में दोबारा मिलने की उमंगे दौड़ने लगती।


सुगना का जादू सोनू पर पूरी तरह छाया हुआ था। सुगना द्वारा जागृत उत्तेजना लाली और सोनू के संबंधों को और प्रगाढ़ कर रही थी..


सुगना, सोनू और लाली के बीच प्रेम संबंधों में कैटालिस्ट की तरह थी…परंतु सोनू यह बात नोटिस कर रहा था की कामुक संबंधों के दौरान लाली अब सुगना के बारे में बात नहीं करती थी…। सोनू को यह बात रास न आतीं थी परंतु सोनू को भी अपनी मर्यादा में रहना आवश्यक था।


सोनी के विवाह को अब 3 महीने ही रह गए थे। विकास वापस आने वाला था । सोनी अपने विवाह की तैयारी में लगी हुई थी। पिछले कुछ दिनों से सुगना यह महसूस कर रही थी कि पोस्टमैन अक्सर घर पर आता और सोनी को कुछ लिफाफे पकड़ा जाता। सोनी चुपचाप उसे अपने कमरे में लिए जाती और अगले कुछ दिनों में सोनी अपने लिए तरह-तरह के वस्त्र खरीदती कभी उपहार स्वरूप बच्चों के लिए भी कपड़े ले आती।


एक दिन सुगना से रहा न गया और उसने पूछ ही लिया “ई तोहरा के के पैसा भेजेला ”


सोनी ने अपनी नज़रें झुकाई और शरमाते हुए बोला


“ वही भेज रहे हैं जिनके पल्ले आपने मुझे बांध दिया है”


सोनी के मुख से खड़ी हिंदी सुनकर लाली और सुगना आश्चर्यचकित थे। निश्चित ही यह पैसे विकास भेज रहा था। लाली और सुगना ने सोनी से अनुरोध किया..


“थोड़ा बहुत हमनी के भी हिंदी सिखा दे पढ़ल लिखल लागब जा”


सोनी ने एक टीचर की भांति कहा


“ओके कल से तैयार रहिएगा…पर दीदी गुरु दक्षिणा में क्या मिलेगा?”


लाली ने तपाक से बोला..


“विकास के खुश करे के और अपना पीछे पीछे घुमावे के तरीका….”


लाली ने जिस कामुक अंदाज में यह बात की थी सोनी और सुगना दोनों उसका आशय समझ गए थे। लाली अब उसकी भाभी बनने वाली थी…और वो ननद।


ननद और भाभी के बीच यह मजाक बदलते रिश्तों को बखूबी दिखा रहा था।


सोनी लाली से मुस्कुराते हुए बोली…


“ वैसे तोहर तरीका में जरूर कुछ दम बा “


काहे? लाली ने प्रश्न किया..


सुगना बगल में ही खड़ी थी। सोनी लाली के पास गई और उसके कान में बोली..


“तोहार तरीका जरूर कुछ खास बा तभी तू सोनू भैया के फांस लेलू “


लाली को सोनी कि यह बात रास ना आई. उसने प्रतिरोध करते हुए कहा..


“हम तहरा भैया के नइखे फसवले…. आईहें त उनके से पूछ लीहा..”


सुगना ने बातचीत का क्रम बिगड़ते हुए देखकर सोनी को टोका


“सोनी ढेर बकबक मत कर…. सिखावे के बाद सिखाव न ता जो अपन काम कर”


“दीदी कल से रोज शाम को एक घंटा..और हां गुरुदक्षिणा बाद में” सोनी ने सुगना के कंधों को अपने दोनों हाथों से पकड़ा और उसे एक फ्लाइंग किस देते हुए कहा…


सुगना सोनी में आए बदलाव को कई रूपों में देख रही थी। उसका बर्ताव अब एक आदर्श छोटी बहन से इतरा एक सहेली के रूप में हो रहा था। परिवर्तन प्रकृति का नियम है सुगना यह बात तो बखूबी जानती थी उसने इसे नजरअंदाज किया और अपने काम में लग गई।


पर लाली को सोनी की बातें कुछ असहज कर गयीं …सोनू से विवाह का प्रस्ताव उसने तो नहीं रखा था…. यहां तक की अपनी काम पिपासा शांत करने के लिए सोनू स्वयं उसके पास आया था…फिर सोनी ने उसे ऐसा क्यों कहा? क्या वैवाहिक स्त्रियों के प्रेम संबंधों में हमेशा स्त्रियां ही दोषी होती है?


रसोई में काम कर रही सुगना ने लाली के चेहरे पर आई उदासी को पढ़ लिया सुगना ने सोनू के बचपन और हॉस्टल की बातें कर कुछ ही देर में उसका मूड खुश कर दिया। सोनी को भी वह दिन याद आने लगे जब सोनू धीरे-धीरे उसके संपर्क में आ रहा था। सुगना अनोखी थी और शायद इसीलिए हरदिल अजीज थी।


दिन बीत रहे थे


सुगना ने सोनी से हिंदी बोलने की ट्रेनिंग लेना शुरू कर दिया। वो अपनी भोजपुरी भाषा का सम्मान जरूर करती थी परंतु हिंदी भाषा का ज्ञान होना भी जरूरी था। घर से बाहर निकलने पर अधिकतर लोग इसी भाषा में बात करते थे। परंतु सुगना की जबान से हमेशा भोजपुरी में ही बात निकलती थी। लाली का भी यही हाल था।


यहां तक कि घर के बच्चे भी अधिकतर भोजपुरी में ही बात करते थे। सुगना और लाली ने बच्चों में भी हिंदी बोलने की आदत डालने का निश्चय किया। वक्त के साथ चलना और बदलना भी जरूरी था।


इस बीच सुगना के घर में एक और परिवर्तन आ रहा था। घर में पैसे की आवक बढ़ चुकी थी। उधर विकास सोनी को लगातार पैसे भेज रहा था जिससे वह तरह-तरह के कपड़े खरीदती। उधर जब से लाली और सोनू का विवाह लगभग तय हो गया था लाली में भी आमूल चूल बदलाव आ रहा था अब वह अपने ऊपर और भी ज्यादा ध्यान देने लगी थी। पेंशन के पैसे थे ही उसने भी अपने कपड़े और पहनावे में परिवर्तन लाया। पर लाली एक बात का विशेष ध्यान रखती थी कि जब भी वह अपने लिए नए वस्त्र लाती वैसा ही एक सुगना के लिए जरूर लाती चाहे वह पहने चाहे नहीं।


कपड़ों में यह बदलाव आधुनिकता की देन थी कभी सलवार सूट कभी अनारकली कभी हल्के-फुल्के वेस्टर्न ड्रेस सुगना लाली के जीवन में ए आ रहे बदलाव को देख रही थी लाली खुश थी और सुगना भी।


लाली अपने नए वस्त्रों को पहन कर सुगना को दिखाती और जब उसकी प्रशंसा मिल जाती वह सोनू के घर आने के दिन इस कपड़े में सोनू का इंतजार करती।


लाली की देखा देखी सोनू भी कभी-कभी सोनू भी अपनी पसंद के कपड़े अपनी सुगना दीदी के लिए ले आता और लाली के लिए भी पर आज भी उसकी पहली पसंद सुगना ही थी। सुगना कभी-कभी उसे प्यार से डांटती..और फिर प्यार भी करती।


परंतु भरे पूरे घर में सुगना के साथ एकांत ढूंढना और सुगना को अपनी प्रेमिका के रूप में पाना बेहद कठिन था।


सुगना का घर विवाह का घर हो चुका था जहां आए दिन भीड़ भाड़ रहती थी। पदमा सरयू सिंह और कजरी का आना जाना भी अब लगातार रहता था। सुगना और सोनू के मिलन में बाधाएं लगातार बढ़ रही थी और वैसे ही सोनू की कसक भी। परंतु चतुर और सबका ध्यान रखने वाली सुगना सोनू का ढाढस बांधे रखती थी। वह उसकी सारी इच्छाएं पूरी कर पाने में असमर्थ रहती पर कभी-कभी मौका मिलते ही छोटा-मोटा दाग लगा ही देती थी।


“जब भूख ज्यादा लगी हो तो अल्पाहार जठराग्नि को और भड़का देता है”


सुगना को लेकर सोनू ने इतनी कल्पनाएं कर रखी थी कि उसे पूरा करते-करते न जाने कितने दिन और साल लगते और सोनू की गर्दन का दाग न जाने क्या रूप ले लेता..


नियति सोनू की भावनाओं को बखूबी समझती थी और सुगना भी। उसकी काम इच्छाओ को शांत करने के लिए सुगना को अपने कदम धीरे-धीरे ही बढ़ाने थे और वही वह कर रही थी।


सोनी के विवाह की तैयारियां शुरू हो गईं थीं। सरयू सिंह परिवार के मुखिया थे वह स्वयं सोनी के विवाह के लिए सभी व्यवस्थाएं कर रहे थे। नियति सरयू सिंह के मनःस्थिति के बारे में सोच रहीं थी।


जब-जब वह सोनी को देखते उनके मन में एक कसक सी उठती थी। आखिर कैसे कोई युवती विवाह से पहले अपने आशिक से संभोग कर सकती है। सोनी अभी उन्हें चरित्रहींन हीं लगती थी और शायद यही कारण था की सरयू सिंह की वासना ने सोनी को अपने आगोश में ले लिया था अन्यथा सुगना के साथ किए गए संभोग की आत्म ग्लानि अब भी उन्हें सताती थी।


अपनी कोठरी में सोनी को विकास के साथ संभोग सुख लेते सरयू सिंह ने अपनी आंखों से देखा था और तब से उसके मादक कूल्हों की तस्वीर सरयू सिंह की निगाहों में छप सी गई थी।


सोनी जब-जब सरयू सिंह के समक्ष आती दोनों असहज हो जाते। जब सोनी सरयू सिंह के चरण छूने के लिए झुकती वह उससे पहले अपने वस्त्रों को ठीक करती शायद उसे यह एहसास हो चुका था की सरयू सिंह की निगाहें उसके कूल्हों और चूचियों पर घूमती रहती हैं।


परंतु जब से सोनी ने सरयू सिंह के लंड को देखा था और उसे अपनी कामुक कल्पना में स्थान दिया था सोनी को यह असहजता अब अच्छी लगने लगी थी।


कुछ दिनों बाद विकास अमेरिका से वापस आ गया और विकास एवं सोनी का विवाह पूरी धूमधाम से संपन्न हो गया। सोनू ने भी मौका देखकर विकास को अपने और लाली के विषय में सब कुछ बता दिया। सोनू विकास की नजरों में महान हो गया था। लाली को अपनाने की जो हिम्मत सोनू ने दिखाई थी वो काबिलेतारिफ थी।


शादी के जोड़े में सजी-धजी सोनी को देखकर कभी-कभी सरयू सिंह उसकी गलती माफ कर देते और उसे हमेशा खुश रहने का आशीर्वाद देते परंतु एकांत में वह उसे याद करने का सुख कतई नहीं खोना चाहते थे। अब वही उनकी कामुकता को जीवंत रखने की किसी एकमात्र सहारा थी।


आखिरकार सरयू सिंह की अप्सरा विकास के साथ अमेरिका जाने वाली थी। सुगना के घर का एक अहम सदस्य घर से विदा हो रहा था पूरे परिवार की आंखें नम थी।


सोनी ने लाली से विदा होते वक्त कहा..


“मैं तो आपकी शादी में नहीं आऊंगी पर भाभी आप सोनू भैया का ख्याल रखिएगा”


सोनी को इस बात का इल्म था की सोनू और लाली का विवाह कोर्ट मैरिज के रूप में होगा और घर में शायद कोई बड़ा फंक्शन नहीं होगा। उसने अपने संबोधन में लाली को भाभी बोलकर उसे मन ही मन स्वीकार कर लिया था।


आखिरकार सोनी अमेरिका के लिए उड़ान भर चुकी थी। सुगना की दोनों बहने सुगना से दूर जा चुकी थी।


उधर मोनी विद्यानंद के आश्रम में नित्य नए-नए अनुभव कर रही थी। वयस्क होने की उम्र में होने के बावजूद मोनी का मन एक किशोरी जैसा था। वह एक वह शांत स्वभाव की थी और मन से पूरी तरह धार्मिक थी। सुगना की बहन सोनी जितने आधुनिक ख्याल वाली थी.. मोनी ठीक उसके उलट उतनी ही सीधी-साधी ,धर्म परायण और घरेलू थी।


और इस कहानी की नायिका अपनी दोनों बहनों के गुणों और अवगुणों का मिश्रण थी।


(जिन पाठकों को मोनी का किरदार ध्यान है उन्हें शायद मोनी को समझने में आसानी होगी अन्यथा चरित्र चित्रण पर मेरा ज्यादा समय व्यर्थ होगा उम्मीद करता हूं की कहानी को ध्यान से पढ़ने वाले पाठक जरूरत पड़ने पर पुराने एपिसोड रेफर कर सकते हैं)


उधर विद्यानंद के आश्रम में कुंवारी पर वयस्क कन्याओं के साथ मोनी नित नए-नए अनुभव ले रही थी। यद्यपि उसके साथ जो हो रहा था वह उसकी अपेक्षा और सोच से परे था परंतु वह जिस प्रकार से आयोजित किया जा रहा था मोनी उसे बिना किसी प्रतिरोध के स्वीकार कर ले रही थी।


कुछ कार्यक्रम इतने भाव और शालीन तरीके से किए जाते हैं कि उसमें हो उचित अनुचित कृत्य पर सवाल उठाना बेहद कठिन होता है। विद्यानंद के आश्रम में कई अनूठी गतिविधियां होती थी जो सामान्य तौर पर देखने पर अटपटी लगती थी परंतु उन पर प्रश्न उठाने की ना तो किसी में हिम्मत थी और शायद जरूरत भी नहीं थी। जब उसके प्रतिभागी उसे स्वयं स्वीकार कर रहे थे तो भला किसी और को क्यों आपत्ति होती।


मोनी की टोली में उसके समकक्ष और हमउम्र कई कुंवारी लड़कियां थी जो माधवी के नेतृत्व में तरह-तरह के प्रयोग करती और शाम को अपने-अपने कमरे में लौट जाती।


सुबह-सुबह अपनी साधना के समय जब मोनी अपनी सहेलियों के साथ पूरी तरह नग्न होती वह बेहद ही असहज महसूस करती परंतु अपनी बाकी सहेलियों और अपनी गुरु माधवी को भी पूरी तरह नग्न देखकर वह इस प्रथा को धीरे-धीरे स्वीकार कर चुकी थी।


उनकी गुरु माधवी जो एक अंग्रेज महिला थी वो तन से और चेहरे से बेहद खूबसूरत थी।


नियति नग्न लड़कियों के झुंड और उनकी गुरु माधवी को जब-जब बगीचे में घूमते खेलते देखती उसे एक पल को लगता जैसे वह वह जन्नत में आ गई हो.. हरी हरी दूब की घास रंग-बिरंगे फूलों और छायादार वृक्षों से घिरे उपवन में क्रीडा करती युवतियों को देखकर नियति उनके बीच एक अदद पुरुष की आवश्यकता महसूस कर रही थी.. यदि वह पुरुष गलती से इस उपवन में आ जाता तो निश्चित ही उसे यह आभास होता कि वह स्वर्ग लोक में आ गया है और यह लड़कियां उसे अप्सराओं जैसी प्रतीत होती। परंतु अफसोस विद्यानंद के आश्रम के नियमों के अनुसार आश्रम के उसे हिस्से में पुरुषों का जाना सख्त मना था।


इन लड़कियों का चयन माधवी ने ही किया था। चयन के लिए जो मुख्य योग्यता थी कौमार्य सुरक्षित होना, खूबसूरत चेहरा और खूबसूरत बदन…। विद्यानंद ने माधवी को जन्नत की हूरें या स्वर्ग की अप्सराएं तैयार करने के लिए लगाया था और माधवी ने यह काम बखूबी किया भी था।


माधवी को ट्रेनिंग अब भी जारी थी…वह लड़कियों को तरह तरह के योगाभ्यास कराती जिससे उनका बदन और भी सुडौल बने। उन्हें एक दूसरे की चूचियों को मालिश कर उन्हें और भी उन्नत और कामुक बनाने की कोशिश करती.. लड़कियों के जांघों के बीच उग आए कल और सुनहरे बालों को हटाने के लिए ना तो कभी माधवी ने जिद किया और नहीं कभी लड़कियों ने उसकी मांग की। कुदरत द्वारा प्रदत्त एकमात्र वही बाल उनका सहारा थे अपने गुप्तांगों को छुपाने के लिए यद्यपि छुपाने की आवश्यकता ना थी क्योंकि जब वह इस तरह नग्न अवस्था में रहती सभी की सभी लड़कियों की स्थिति एक ही होती।


मूलत माधवी का उद्देश्य यही था कि इन चुनी हुई लड़कियों के बदन को तराश कर उन्हें अप्सराओं की भांति तैयार करना था। विद्यानंद का उद्देश्य माधवी को भली भांति ज्ञात था। माधवी इस बात का पूरा ख्याल रखती की कोई भी लड़की अपनी योनि को हाथ न लगाएं और यदि इसकी आवश्यकता हो तो भी उसे अपना कौमार्य बचाए रखने की सख्त हिदायत थी।


नग्नता पैसे भी वासना को जन्म देती है यद्यपि आश्रम में आई लड़कियां निश्चित ही कामवासना से विमुख होकर यहां आई थी परंतु फिर भी वासना स्त्री का एक अभिन्न गुण होता है।


मोनी का तन बदन धीरे-धीरे और निखरता जा रहा था चूचियों की मालिश और योगाभ्यास ने उसकी चूचियों को पर्वत की भांति उठा दिया था। गोरी गोरी जांघों के बीच झुरमुट की तरह काले बाल उसकी बुर को छुपाए रखते.. पर उसकी खूबसूरती को और भी बढ़ा देते।


कुछ महीने के अथक प्रयासों के पश्चात मोनी और अन्य लड़कियां पूरी तरह तैयार थी।


और एक दिन..


विशालकाय भवन में सभी लड़कियां अपने बदन पर एकमात्र झीना वस्त्र डालें (राम तेरी गंगा मैली की मंदाकिनी जैसी ) नीचे बैठी हुई विद्यानंद का इंतजार कर रही थी। कुछ ही देर बाद विद्यानंद अपनी पूरी गरिमा और माधवी के साथ कक्ष में उपस्थित हुए।


सभी लड़कियों ने उठकर उनका अभिवादन किया। विद्यानंद ने हाथ उठाकर उनका अभिवादन स्वीकार किया और लड़कियों को बैठने का निर्देश दिया परंतु इसी दौरान उन्होंने माधवी की पसंद और उसकी मेहनत का जायजा ले लिया। ऐसा लग रहा था जैसे परीलोक से उतरकर कई अप्सराय आश्रम में आ गई हों..


विद्यानंद ने अपनी गंभीर आवाज में बोला..


देवियों आप सब आश्रम का अभिन्न अंग हो चुकी है… यह आश्रम मानवता की सेवा करने के लिए बना हुआ है…आप सब जिस समाज से उठकर आई है वहां सुख और दुख दोनों ही हर परिवार में होते हैं …. पति-पत्नी के संबंधों मैं सामंजस्य नहीं होना समाज में कई समस्याएं उत्पन्न करता है. ..कई विवाह सफल होते हैं कई असफल इन सब के मूल में कहीं ना कहीं स्त्री और पुरुष की कामवासना की तृप्ति नहीं हो पाना होता है।


जहां तक मैंने इस जीवन को देखा है मैं यही बात समझी है कि यदि पति और पत्नी के बीच अंतरंग संबंध बखूबी बनते हैं और दोनों ही उसका आनंद लेते हैं तो वह विवाह निश्चित ही सफल होता है अन्यथा समाज में पति और पत्नी दोनों घुट घुट कर रहते हैं


आप सब ने भी शायद यह बात अपने आसपास या अपने परिवार में जरूर देखी होगी। क्या आपको पता है इसका मूल कारण क्या है? कई युवा पुरुष स्त्री शरीर से पूरी तरह अनभिज्ञ होते हैं । स्त्रियों के कोमल मन को जानना और स्त्री शरीर को समझना इतना आसान नहीं होता। और जब इसे पुरुष विवाह के बंधन में बंधते हैं तो कुछ ही दिनों में अपनी पत्नी की मन की बात जाने बिना और उसके शरीर को समझे बिना वह ऐसे ऐसे कृत्य करते हैं जिससे वह हमेशा के लिए अपनी पत्नी की नजर में एक कामुक और आनंदी व्यक्ति के रूप में अपनी पहचान छोड़ देते हैं।


इस अवस्था में पत्नी का प्रेम पाना तो दूर वह स्त्री उनसे ऐसी दूरी बना लेती हैं जो उनके मन में हमेशा कष्ट का कारण बनी रहती है।


मेरे कई अनुयाई अपने बच्चों की यही समस्या लेकर अक्सर मुझसे बातें करते। पूरी वस्तु स्थिति समझने के बाद मैंने इस समस्या के निदान के लिए एक नया आश्रम बनाया है जिसमें एक विशेष कक्ष है। आप सब इस धरती की सर्वोत्तम सुंदर महिलाओं में से एक है । और अब तक आप लोगों ने अपना कौमार्य बचा कर रखा है इससे यह बात भी स्पष्ट होती है कि आप सब कामुकता और वासना से दूर हैं।


मैं यह समझता हूं कि आश्रम से जुड़ते समय निश्चित ही आपने अपनी कामवासना पर विजय प्राप्त कर ली थी तब ही आप लोग ने इस आश्रम का रुख किया।


मैं आप सबको इस समाज से विकृतियों हटाने में आपकी सहायता सहायता चाहता हूं।


उधर रतन दरवाजे के उसी सभागार के कक्ष पर विद्याधर से मिलने के लिए इंतजार कर रहा था..


दरबान के दरवाजा खोलते ही रतन की नजरे अंदर खड़ी लड़कियों की तरफ चली गई और उसकी आंखें फटी रह गई आगे की लाइन में परियों की तरह खूबसूरत बन चुकी मोनी से उसकी नजरें चार हो गईं…


रतन और मोनी दोनों इस स्थिति के लिए तैयार न थे। परंतु मोनी की मादक काया रतन की निगाहों में छप सी गई..


मोनी ने अपनी स्थिति का आकलन किया और नजरे झुका ली.. शायद वह अपनी नग्नता को लेकर अब सजग हो गई थी..


शेष अगले भाग में...


आपके कमेंट के इंतजार में


Wah wah ab aashram mein moni ji chusai or chudai ka vidya dan legi vidyadhar se
 
Top