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Incest आह..तनी धीरे से.....दुखाता.

Lovely Anand

Love is life
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आह ....तनी धीरे से ...दुखाता
(Exclysively for Xforum)
यह उपन्यास एक ग्रामीण युवती सुगना के जीवन के बारे में है जोअपने परिवार में पनप रहे कामुक संबंधों को रोकना तो दूर उसमें शामिल होती गई। नियति के रचे इस खेल में सुगना अपने परिवार में ही कामुक और अनुचित संबंधों को बढ़ावा देती रही, उसकी क्या मजबूरी थी? क्या उसके कदम अनुचित थे? क्या वह गलत थी? यह प्रश्न पाठक उपन्यास को पढ़कर ही बता सकते हैं। उपन्यास की शुरुआत में तत्कालीन पाठकों की रुचि को ध्यान में रखते हुए सेक्स को प्रधानता दी गई है जो समय के साथ न्यायोचित तरीके से कथानक की मांग के अनुसार दर्शाया गया है।

इस उपन्यास में इंसेस्ट एक संयोग है।
अनुक्रमणिका
भाग 126 (मध्यांतर)
भाग 127 भाग 128 भाग 129 भाग 130 भाग 131 भाग 132
भाग 133 भाग 134 भाग 135 भाग 136 भाग 137 भाग 138
भाग 139 भाग 140 भाग141 भाग 142 भाग 143 भाग 144 भाग 145 भाग 146 भाग 147 भाग 148
 
Last edited:

Shubham babu

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भाग 130
“अरे सोनू सरयू चाचा से एक बार मिल के पूछीहे उनकर दाग भी ठीक अईसन ही रहे। अब त उनकर दाग बिल्कुल ठीक बा.. उ जरूर बता दीहें”

डूबते को तिनके का सहारा …सोनू को उम्मीद की एक किरण दिखाई पड़ी। परंतु सुगना की रूह कांप उठी।

सरयू सिंह और सोनू को दाग के बारे में बात करते सोच कर ही उसे लगा वह गश खाकर गिर पड़ेगी..

सोनू ने सुगना को सहारा दिया और उसे अपने पास बैठा लिया..

दीदी का भइल….?

यह प्रश्न जितना सरल था उसका उत्तर उतना ही दुरूह…

नियति सुगना की तरह ही निरुत्तर थी ..

आशंकित थी…

कुछ अनिष्ट होने की आशंका प्रबल थी…


अब आगे…

सोनू सुगना की हथेलियां को अपनी हथेलियां के बीच लेकर तेजी से रगड़ रहा था और उसे चैतन्य करने की कोशिश कर रहा था लाली झट से पानी का गिलास ले आई और सुगना को पानी पिलाने का प्रयास करने लगी अब तक सुगना स्वयं को नियंत्रित करते हुए अपनी चेतना में वापस आ चुकी थी और अपनी सधी हुई जबान में बोली


“अचानक ना जाने का भइल हा एकदम चक्कर जैसन लगल हा”

सोनू और लाली ने सुगना को इस स्थिति में आज पहली बार देखा था अपने स्वास्थ्य और पूरे परिवार का ख्याल रखने वाली सुगना को शायद ही कभी कोई बीमारी हुई हो।

अच्छा ही हुआ बातचीत का टॉपिक बदल चुका था और शायद सुगना भी यही चाहती थी परंतु सोनू के मस्तिष्क पर इस दाग की उत्पत्ति का खरोच लगा चुका था रह रहकर उसका ध्यान कभी दाग की तरफ जाता कभी सरयू सिंह की तरफ..

बहरहाल इस समय सुगना सबका ध्यान अपनी तरफ खींच चुकी थी।

सोनू ने उसकी हथेलियां को एक बार फिर प्यार से सहलाते हुए कहा


“दीदी चल डॉक्टर से चेकअप करा दी”

सुगना ने सहज होते हुए कहा

“अरे कल ही तो डॉक्टर से देखा के आइल बाड़े सब तो ठीक ही रहे अतना छोट छोट बात पर परेशान होईबे तो कैसे चली हम बिल्कुल ठीक बानी ..”

सोनू सुगना की बात से पूरी तरह संतुष्ट न था पर वह चुप ही रहा

“तोरा जौनपुर जाए के रहे नू?”

सुगना के प्रश्न से सोनू को अपनी जिम्मेदारियों का एहसास हुआ उसने घड़ी देखी..

समय तेजी से बीत रहा था दोपहर के एक बज चुके थे सोनू ने सुगना की हथेलियों को आजाद करते हुए

“अरे 1 बज गैल हमरा तुरंत जौनपुर निकल के बा..”

सोनू अपना सामान पैक करने लगा लाली झटपट सोनू के लिए खाना निकालने चली गई सुगना अभी भी अपनी जगह पर बैठे बैठे अपने आपको सहज करने का प्रयास कर रही थी।

कुछ ही देर बाद सोनू घर के हाल में बैठा खाना खा रहा था और उसकी दोनों बहने उसकी पसंद का खाना उसे खिला रही थी सुगना भी अब उठकर लाली का साथ दे रही थी।

जब जब सुगना और लाली सोनू को खाने का सामान देने के लिए नीचे झुकतीं उनकी चूचियां बरबस ही सोनू का ध्यान खींच लेतीं । सुगना की दूधिया चमकती चूचियों को ब्लाउज के पीछे से झांकते देख सोनू मंत्र मुग्ध हो जाता। लाली की भरी-भरी मादक चूचियां भी कम न थी।

रसमलाई और राजभोग की तुलना कठिन थी…जो सुलभ था शायद उसकी कीमत कम थी और जो दुर्लभ था उसकी चाह प्रबल थी।

अपनी दोनों बहनों के बीच घिरा सोनू स्वादिष्ट भोजन का आनंद ले रहा था। और उसकी आंखें उनके गदराए बदन को देखकर तृप्त हो रहीं थी । उसका युवराज पैंट में जकड़े होने के बावजूद सर उठाने की कोशिश कर रहा था।

सोनू ने भोजन किया और अब विदा लेने का वक्त था…

ड्राइवर गाड़ी में सामान रखकर सोनू का इंतजार कर रहा था।

लाली ने सोनू से कहा

“फेर कब आईब?” लाली की आवाज में भारीपन था और आंखों में पानी। वह सोनू से बिछड़ना नहीं चाहती थी।

सुगना ने यह भांप लिया अचानक उसे कुछ याद आया और वह बोली..

“अरे सोनू रुकल रही हे तोरा खाती एगो चीज बनवले बानी”

सुगना भागते हुए किचन की तरफ गई इसी बीच सोनू ने लाली को अपने आलिंगन में भर लिया और उसकी आंसुओं से भरी आंखों को चूमने लगा धीरे-धीरे कब उसके होंठ लाली के होठों से सट गए और दोनों चुंबन में खो गए। सोनू लाली से बेहद प्यार करता था।

सोनू और लाली एक दूसरे के आलिंगन और चुंबन में खोए हुए थे सुगना पीछे आ चुकी थी उसने उन्हें डिस्टर्ब ना किया परंतु सुगना आसपास हो और सोनू को उसका एहसास ना हो यह संभव न था वह लाली से अलग हुआ..

सोनू और लाली दोनों बखूबी जानते थे कि सुगना उनके संबंधों के बारे में पूरी तरह जानती है। और अब तो सोनू अपनी बहन सुगना को लाली से विवाह करने का वचन भी दे चुका था।

छुपाने लायक कुछ भी न था लाली भी सहज थी। लाली और सोनू के बीच का रिश्ता सुगना भी समझने लगी थी और शायद इसीलिए उसने सोनू को लाली से विवाह करने के लिए मना लिया था।

सोनू सुगना की तरफ मुखातिब हुआ और उसके हाथ में पकड़े डब्बे में अपने मनपसंद लड्डू देखकर बेहद खुश हो गया।उसका जी किया कि वह सुगना को चूम ले.. सचमुच सुगना सोनू का बहुत ख्याल रखती थी..

सोनू हमेशा की तरह एक बार फिर लाली के पैर छूने के लिए नीचे झुका और लाली ने उसे बीच में ही रोक लिया तभी सुगना बोल पड़ी..

“अब लाली के पैर मत छुअल कर …ठीक ना लागेला ”

सोनू को शरारत सूझी अपनी बहनों से बिछड़ते हुए वह दुखी तो था पर खुद को सहज दिखाते हुए उसने सुगना को छेड़ा

“काहे दीदी…?”

सुगना चुप रही।

लाली के समक्ष वह अब भी सोनू से मर्यादित दूरी बनाए रखना चाहती थी।

सुगना तुरंत ही समझ गई की सोनू उसे छेड़ रहा है …उसने उत्तर ना दिया अपितु अपनी गर्दन झुका दी । सुगना पहले भी यह बात कई बार सोनू को समझा चुकी थी उसके और लाली के बीच का रिश्ता अब भाई बहन का रिश्ता नहीं रहा था। और अब वह पति-पत्नी के रूप में परिवर्तित होने वाला था। ऐसे में लाली के पैर छूना सुगना को गवारा न था।

तभी अचानक सोनू ने लाली से कहा..

“दीदी हमार घर के चाबी लगाता तोहरा बिस्तर में पर छूट गइल बा..लेते आव ना..”

जैसे ही लाली अपने कमरे में सोनू की चाबी ढूंढने गई सोनू ने सुगना को अपने आलिंगन में भर लिया और इससे पहले सुगना कुछ कहती उसके फूल जैसे ओंठो को अपने होठों के बीच लेकर चुभलाने लगा..

उसके हाथ सुगना के कूल्हों को जकड़ कर उसे अपने लंड से सटा चुके थे…

कुछ ही पलों के मिलन में सोनू के शरीर में उत्तेजना भर दी.. सुगना उसकी पकड़ से आजाद तो नहीं होना चाहती थी परंतु लाली निकट ही थी.. उसने सोनू के सीने पर अपनी हथेलियां से इशारा किया और उससे दूर हो गई।

तभी कमरे से लाली की आवाज आई

“सोनू बिस्तर पर तो चाभी नइखे कहीं और रख ले बाड़े का?”

सोनू ने अपनी जेब से चाबी निकाल कर सुगना को दिखाते हुए मुस्कुराने लगा उसने झटपट चाबी को पास पड़े सोफे पर फेंक दिया और बोला..


“लाली दीदी आजा चाबी मिल गैल बा सोफा पर रहल हा”

सुगना सोनू के शरारती चेहरे को देख रही थी जिसने उसे आलिंगन में लेने के लिए यह खेल रचा और बखूबी अपनी इच्छा पूरी कर ली। इस प्रेम भरे आलिंगन ने सुगना को भी तरोताजा कर दिया था। सुगना के जीवन में खुशियों की लहर महसूस होने लगी थी।

अब सुगना से विदा लेने ने की बारी थी।

सोनू ने पूरे आदर सम्मान से विधिवत झुक कर सुगना के पैर छुए सुगना ने उसे ना रोका वह उसकी बड़ी बहन की तरह उसके उसके सर पर हाथ रख उसे आशीर्वाद देती रही।

जिस स्त्री ने सोनू की मर्दानगी को बचाए रखने के लिए अपनी हद पार कर उसका साथ दिया था वह सोनू की नजरों में पहले भी पूजनीय थी और अब भी।

सोनू उठ खड़ा हुआ और अपनी बहन सुगना के आलिंगन में आ गया यह आलिंगन पहले की तुलना में अलग था सुगना की चूचियां सोनू से सुरक्षित दूरी बनाए हुए थी और सुगना सोनू का माथा चूमकर उसे आशीर्वाद दे रही थी.

सुगना ने कहा..

“अपन ध्यान रखीहे और जल्दी आईहे हमनी के इंतजार करब जा..”

सोनू मुस्कुरा कर रहा गया। अपनी दोनों बहनों से बिदा लेते समय उसकी आंखें नम थी। गाड़ी में बैठने के बाद सोनू की हिम्मत नहीं हो रही थी कि वह सुगना और लाली की तरफ देखें। न जाने क्यों इस बार उसे सुगना से बिछड़ने में बेहद तकलीफ हो रही थी।

विधि का विधान है मिलना और बिछड़ना परंतु जब प्रेम अपने चरम पर पहुंच जाता है अलग होना बेहद कठिन हो जाता है..

सोनू की गाड़ी आगे बढ़ चुकी थी.. सोनू पलट कर पीछे नहीं देखना चाह रहा था उसे पता था वह खुद भी भावुक होगा और अपनी बहनों को भी भावुक करता रहेगा। दिल पर पत्थर रख वह आगे बढ़ता गया परंतु गली के मोड पर आते-आते उसका भी सब्र जवाब दे गया उसने खिड़की से सर बाहर निकाला और एक झलक अपने घर की तरफ देखा दोनों बहने अब भी टकटकी लगाकर सोनू की तरफ देख रही थी न जाने उन में सोनू के प्रति इतना प्यार क्यों था….

सुगना और लाली दोनों निराली थी और उनका भाई सोनू उनकी आंखों का तारा था…

उधर सलेमपुर में सरयू सिंह अपने दोस्त हरिया और उसकी पत्नी (लाली के माता पिता) का ख्याल रख रहे थे कजरी भी एक आदर्श पड़ोसी की तरह उनके सुख-दुख में शामिल थी..


हरिया और उसकी पत्नी को हमेशा एक ही चिंता सताती कि उनकी पुत्री लाली भरी जवानी में ही विधवा हो गई थी। उन्हें इस बात का इल्म कतई न था की सोनू लाली का पूरी तरह ध्यान रख रहा था और अब सुगना के कहने पर उसे पत्नी रूप में स्वीकार करने के लिए पूरी तरह तैयार था।

हरिया की पत्नी अपनी पुत्री के लिए हमेशा ईश्वर से मन्नतें मांगती उसके संभावित वर के लिए अपनी नज़रें इधर-उधर दौड़ती परंतु एक विधवा के लिए वर तलाशना इतना आसान न था और यदि कोई मिलता भी तो वह निश्चित ही अधेड़ उम्र का होता।

सोनू को अपने दामाद के रूप में देखने की वह कल्पना भी नहीं कर सकते थे एक तो सोनू उम्र में लाली से कुछ छोटा था दूसरे वह अब एक प्रतिष्ठित पद पर था जिसके लिए लड़कियों की लाइन लगी हुई थी। सोनू के गांव सीतापुर में उसकी मां पदमा के समक्ष कई रिश्ते आते और वह उन्हें सरयू सिंह से संपर्क करने के लिए भेज देती। सोनू का पूरा परिवार भी अब सरयू सिंह को अपने परिवार का मुखिया और बुजुर्ग मान चुका था।

सरयू सिंह के पास सोनू के रूप में एक अनमोल खजाना था जिसके बलबूते पूरे गांव और तहसील में उनका दबदबा चलता था और हो भी क्यों ना?

सरयू सिंह का व्यक्तित्व वैसे भी सब पर भारी था ऊपर से जब से वह मनोरमा के संपर्क में आए थे उनका उत्साह दोगुना हो गया था। यह तो विधि का विधान था कि उन्हें अपनी पुत्री सुगना के बारे में अकस्मात ही मालूम चल गया था और वह अपने पाप के बोझ तले दब गए थे अन्यथा उनके उत्साह और दबंगई की कोई सीमा ही ना रहती।


समय सभी घावों को भर देता है। सुगना को अपनी पुत्री रूप में स्वीकार कर अब वह अपने पाप से खुद को मुक्त कर चुके थे। परंतु शायद यह इतना आसान न था। उनकी उत्तेजना को दिशा देने वाली सुगना की छोटी बहन सोनी उनके सुख चैन छीने हुए थी परंतु उनके जीवन में रस भरे हुए थी।

वैसे भी अपनी उत्तेजना के बिना उनका जीवन नीरस था। उनकी उत्तेजना का वेग झेलने के लिए कजरी अब कमजोर पड़ती थी। वह तो सरयू सिंह के मजबूत हाथ थे जो अब भी उनकी उदंड उत्तेजना को समेटे उनके अदभुत लंड को मसल कर उसमें से मखमली द्रव्य निचोड़ लेते थे और उसकी सारी अकड़ खत्म कर देते थे।

उधर सरयू सिंह की उत्तेजना का केंद्र बिंदु सोनी अपनी सहेलियों के साथ कॉलेज की कैंटीन में कुल्फी खा रही थी जिस प्रकार से वह कुल्फी चूस रही थी उसकी सहेली ने उसे छेड़ा..

“अरे सोनी तेरा तो कुल्फी चूसने का अंदाज ही बदल गया है लगता है विकास ने अच्छी ट्रेनिंग दे दी है”

सोनी ने अपनी दोस्त की तरफ देखा वह मन ही मन मुस्कुराने लगी उसे अचानक विकास की याद आ गई जो बार-बार उसे अपना लंड चूसने के लिए आग्रह करता रहता था।

सोनी के लिए यह इतना आसान न था। पर पिछले कुछ वर्षों से सुगना के पुत्र सूरज के अंगूठे को सहलाने के बाद उसकी छोटी सी नूनी को बढ़ाना और उसके बाद उसे अपने होंठ से चूम कर नूनी के आकर को कम करना सोनी के लिए एक अनोखा कृत्य था। सोनी को धीरे-धीरे यह खेल पसंद आने लगा था और सुगना के लाख मना करने के बाद भी वह मौका देखकर अपनी उत्सुकता ना रोक पाती।

सोनी ने मुस्कुराते हुए अपनी सहेली से कहा…

“यह तो एक दिन तुझे भी करना ही है मेरे से ही ट्रेनिंग ले ले… “

दोनों सहेलियां हंसने लगी। सोनी की विडंबना यह थी कि वह विकास के प्रेम में पड़कर इंगेज हो चुकी थी और कुछ महीनो बाद उसकी शादी थी।


विकास से उसके प्यार में कोई कमी न थी परंतु विकास की कामुकता और सोनी की कामेच्छा में कोई मेल न था। विकास अति कामुक था परंतु कुदरत ने उसे न हीं सोनू जैसे हथियार से नहीं नवाजा था न हीं उस जैसे बलिष्ठ शरीर से।

जब से सोनी ने सरयू सिंह का लंड देखा था तब से वह उससे विकास के लंड की तुलना करने लगी थी…

गाजर और मूली की तुलना कठिन थी।

लंड का ध्यान कर सोनी की जांघों के बीच कुछ कुलबुलाहट होने लगी। सोनी अपनी सहेली से विकास के बारे में और बातें करने लगे लगी। विकास एक धनाढ़य परिवार का काबिल लड़का था। सभी सोनी को खुश किस्मत मानते थे जो वह ऐसे घर में ब्याही जा रही थी। विकास भी सोनी से बहुत प्यार करता था यह बात सभी जानते थे।


न जाने ऐसा क्यों होता कि जब भी वह विकास के बारे में सोच सोच कर कामुक होती सरयू सिंह का बड़ा सा लंड बार-बार उसका ध्यान अपनी ओर खींचता।

सोनी अपने विचारों में उत्तेजना को विभिन्न तरीकों से जागृत करती कभी उस अदृश्य लंड को अपने भीतर महसूस करती और इन्हीं में उलझी हुई अपनी उत्तेजना को अपनी उंगलियों से शांत करती।

मानव मन चंचल होता है कामुक पलो में उसकी गति अनियंत्रित होती है वह रिश्ते नाते उचित अनुचित को छोड़ कही भी और किसी रूप में जा सकता है और सोच सकता है उसका मुख्य उद्देश्य अपने स्वामी को एक सुखद स्खलन देना होता है…


उधर सोनू ने जौनपुर पहुंचकर अपना शासकीय कार्यभार संभाल लिया । सांझ ढले जब वह अपने घर पहुंचा घर के नौकर चाकर ने उसका स्वागत किया परंतु घर के अंदर प्रवेश करते ही उसे उसका सूनापन सोनू को खलने लगा। चहकती सुगना और उसके बच्चों की कमी सोनू को महसूस हो रही थी।

वह रुवांसा हो गया। सुगना की कमरे का दरवाजा खोलने की उसकी हिम्मत ना हुई वह वापस अपने ड्राइंग रूम में आ गया और तब तक उसका मातहत चाय का कप और बिस्किट लेकर सोनू के समक्ष था।

“साहब सुगना दीदी नहीं आएंगी क्या?”

इस प्रश्न ने सोनू को और दुखी कर दिया तभी उसे नेपाली मातहत में फिर बोला

“दीदी बहुत अच्छी हैं और उनके बच्चे भी उनके रहने से ये बंगला जगमग रहता था..”

सोनू ने अपनी भावनाओं पर कंट्रोल किया और बोला ..

“हां दोनों बच्चे सब का मन लगाए रखते थे..”

इसके पश्चात सोनू ने अपने मातहत को कुछ और दिशा निर्देश दिए और अपने कमरे में चला गया। यह वही कमरा था जिसमें लाली की पसंद का पलंग लगाया था।

सुगना के जौनपुर प्रवास के दौरान सोनू इसी कमरे में रहता था। परंतु सुगना के साथ सारी रासलीला उसकी पसंद के पलंग पर ही करता था।

सोनू के बंगले के दोनों प्रमुख कमरे उसकी दोनों बहनों के हो चुके थे बंगले ही क्या सोनू खुद भी अब पूरी तरह अपनी बहनों का हो चुका था और उनके लिए तन मन धन से समर्पित था।

नित्य क्रिया से निवृत होकर सोनू अपने क्लब के जिम में चला गया जहां जाकर जी भरकर मेहनत की और शरीर को पूरी तरह थका डाला उसे पता था घर का एकाकीपन उसे काटने को दौड़ेगा और यह थकावट थी उसे एक सुखद नींद दे सकती थी।


रात्रि की बेला सभी को एकांत और दिनभर की थकान मिटाने का एक अवसर देती है परंतु चंचल मन का भटकाव सबसे ज्यादा इसी समय होता है बिस्तर पर लेटते ही कहानी के सभी पात्र अपनी अपनी मनोदशा से जूझ रहे थे.

लाली अपने विवाह के पश्चात अपने पूर्व पति राजेश के संग बिताए गए दिनों को याद कर रही थी। वो सुहाग के लाल जोड़े में राजेश के घर आना सुहागिनों की तरह घर की विभिन्न पूजा में भाग लेना और रात्रि होते होते राजेश की बाहों में संसार का अनोखा सुख लेना। लाल जोड़ा और सुहागिनों की तरह सज धज कर रहना लाली को बेहद पसंद था परंतु अफसोस राजेश के जाने के पश्चात वह रंग-बिरंगे कपड़े तो जरूर पहनती थी परंतु अपने पति के लिए सजने का जो सुख लाली महसूस करती थी अब वह उसकी जिंदगी से महरूम हो चुका था। पुनर्विवाह न तो उसकी कल्पना में था और उसके हिसाब से शायद संभव भी नहीं था।

उसके जीवन में एकमात्र खुशियां थी वह थी सोनू से उसके जायज या नाजायज संबंध। नाजायज इसलिए क्योंकि सोनू उसका मुंह बोला भाई था और जायज इसलिए कि यह संबंध उसके पति की इच्छा से बना था और उन्हें इससे कोई आपत्ति न थी अपितु इस संबंध को बनाने में उनका ही योगदान था।


हम सबकी प्यारी सुगना भी बिस्तर पर लेटे-लेटे सोनू के बारे में ही सोच रही थी। पिछले हफ्ते सोनू के साथ बिताया सप्ताह उसके जीवन का शायद दूसरा खूबसूरत समय था। अब भी उसे सरयू सिंह के साथ बिताई गई अपनी सुहागरात याद थी सरयू सिंह ने जिस आत्मीयता और प्यार से उसकी कमसिन बुर को धीरे-धीरे जवान किया था और उसकी वासना को पुष्पित और पल्लवित किया था वह उनकी ऋणी थी।

सुगना की जीवन में रंग और बुर में तरंग भरने वाले सरयू सिंह उसके लिए पूज्य थे…वह पूज्य इसलिए भी थे कि वह उसे इस दुनिया में लाने वाले पिता भी थे परंतु सुगना को इसका इल्म न था। अन्यथा सरयू सिंह का वह कामुक रूप सुगना कभी स्वीकार न कर पाती।

यह सोचते सोचते ही उसकी जांघों के बीच एक बार फिर हलचल होने लगी तभी उसके दिमाग में विद्यानंद के शब्द गूंजने लगे..

अपने पुत्र सूरज की मुक्ति का मार्ग जो विद्यानंद ने सुझाया था.. उसे अमल में लाना बेहद कठिन था.

अपनी ही पुत्री को अपने ही पुत्र से संभोग करने के लिए प्रेरित करना या स्वयं अपने ही पुत्र से संभोग करना यह ऐसा दुष्कर और अपवित्र कार्य था जो सुगना जैसी स्त्री के लिए कतई संभव न था पर सूरज उसका एकमात्र पुत्र था जो सरयू सिंह की निशानी थी , जिसे आने वाले समय में सुगना के परिवार का प्रतिनिधित्व करना था। सुगना किसी भी हाल में सूरज को शापित नहीं छोड़ सकती थी।

विद्यानंद ने यह बात सुगना को किसी से भी साझा करने के लिए मना किया था। यद्यपि सूरज और मधु अभी छोटे थे परंतु सुगना अपनी कल्पना में आने वाले समय के बारे में सोचना शुरू कर चुकी थी वह कभी एक दिशा में सोचती कभी दूसरी दिशा में और हर बार मुंह की खाती आखिर कार यह कैसे संभव होगा।

अचानक उसके विचारों में किशोर सोनू की छवि उभर आई अपनी किशोरावस्था में सोनू एक आदर्श भाई की तरह सुगना के साथ-साथ रहता और सुगना भी एक बड़ी बहन के रूप में उसका पूरा ख्याल परंतु नियति ने जाने उनके भाग्य में क्या लिखा था कैसे उन दोनों के बीच का उज्ज्वल और बेदाग संबंध वासना की गिरफ्त में आकर धीरे धीरे बदल चुका था और अब दोनों के कमांग एक दूसरे में समा जाने के लिए तड़प रहे थे…

अपने और सोनू के संबंधों से सुगना को कुछ आंतरिक बल मिला और वह मन में ही मन ईश्वर से यही प्रार्थना करने लगी कि उसकी मंशा पूरी हो और उसका शापित पुत्र उसे अनजाने शॉप से मुक्ति पा सके।

अगली सुबह सोनू ने अपने गर्दन के दाग का मुआयना किया…निश्चित ही दाग कम हो रहा था सुगना का कहा सच हो रहा था अगले दस ग्यारह दिनों में दाग लगभग गायब सा हो गया। सोनू बेहद खुश था अपने दाग से मुक्त होकर वह आत्मविश्वास से लबरेज था…परंतु इन दिनों सुगना और लाली की कमी उसे खल रही थी। दो-तीन दिनों में शनिवार आने वाला था सप्ताहांत में सोनू बनारस जाने की तैयारी करने लगा.. जिसकी सूचना उसने पास के पीसीओ में टेलीफोन करके अपनी बहनों तक पहुंचा दी..


लाली…सोनू का बेसब्री से इंतजार करने लगी…पर सुगना सतर्क थी..उसे सोनू का इंतजार भी था पर एक डर भी था कही सोनू ने फिर…नहीं..नहीं अब बस.. जो हुआ सो हुआ। वह मन ही मन निर्णय लेने की कोशिश कर रही थी पर जांघों के बीच छुपी प्रतीक्षारत बुर सुगना के निर्णय को कमजोर करने की कोशिश कर रही थी।

नियति मुस्कुरा रही थी और विधाता द्वारा लिखी गई आगे की पटकथा को पढ़ने का प्रयास कर रही थी…

शेष अगले भाग में..
Mst likhte ho bhai 👍👍👍👍
 

arushi_dayal

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भाग 130
“अरे सोनू सरयू चाचा से एक बार मिल के पूछीहे उनकर दाग भी ठीक अईसन ही रहे। अब त उनकर दाग बिल्कुल ठीक बा.. उ जरूर बता दीहें”

डूबते को तिनके का सहारा …सोनू को उम्मीद की एक किरण दिखाई पड़ी। परंतु सुगना की रूह कांप उठी।

सरयू सिंह और सोनू को दाग के बारे में बात करते सोच कर ही उसे लगा वह गश खाकर गिर पड़ेगी..

सोनू ने सुगना को सहारा दिया और उसे अपने पास बैठा लिया..

दीदी का भइल….?

यह प्रश्न जितना सरल था उसका उत्तर उतना ही दुरूह…

नियति सुगना की तरह ही निरुत्तर थी ..

आशंकित थी…

कुछ अनिष्ट होने की आशंका प्रबल थी…


अब आगे…

सोनू सुगना की हथेलियां को अपनी हथेलियां के बीच लेकर तेजी से रगड़ रहा था और उसे चैतन्य करने की कोशिश कर रहा था लाली झट से पानी का गिलास ले आई और सुगना को पानी पिलाने का प्रयास करने लगी अब तक सुगना स्वयं को नियंत्रित करते हुए अपनी चेतना में वापस आ चुकी थी और अपनी सधी हुई जबान में बोली


“अचानक ना जाने का भइल हा एकदम चक्कर जैसन लगल हा”

सोनू और लाली ने सुगना को इस स्थिति में आज पहली बार देखा था अपने स्वास्थ्य और पूरे परिवार का ख्याल रखने वाली सुगना को शायद ही कभी कोई बीमारी हुई हो।

अच्छा ही हुआ बातचीत का टॉपिक बदल चुका था और शायद सुगना भी यही चाहती थी परंतु सोनू के मस्तिष्क पर इस दाग की उत्पत्ति का खरोच लगा चुका था रह रहकर उसका ध्यान कभी दाग की तरफ जाता कभी सरयू सिंह की तरफ..

बहरहाल इस समय सुगना सबका ध्यान अपनी तरफ खींच चुकी थी।

सोनू ने उसकी हथेलियां को एक बार फिर प्यार से सहलाते हुए कहा


“दीदी चल डॉक्टर से चेकअप करा दी”

सुगना ने सहज होते हुए कहा

“अरे कल ही तो डॉक्टर से देखा के आइल बाड़े सब तो ठीक ही रहे अतना छोट छोट बात पर परेशान होईबे तो कैसे चली हम बिल्कुल ठीक बानी ..”

सोनू सुगना की बात से पूरी तरह संतुष्ट न था पर वह चुप ही रहा

“तोरा जौनपुर जाए के रहे नू?”

सुगना के प्रश्न से सोनू को अपनी जिम्मेदारियों का एहसास हुआ उसने घड़ी देखी..

समय तेजी से बीत रहा था दोपहर के एक बज चुके थे सोनू ने सुगना की हथेलियों को आजाद करते हुए

“अरे 1 बज गैल हमरा तुरंत जौनपुर निकल के बा..”

सोनू अपना सामान पैक करने लगा लाली झटपट सोनू के लिए खाना निकालने चली गई सुगना अभी भी अपनी जगह पर बैठे बैठे अपने आपको सहज करने का प्रयास कर रही थी।

कुछ ही देर बाद सोनू घर के हाल में बैठा खाना खा रहा था और उसकी दोनों बहने उसकी पसंद का खाना उसे खिला रही थी सुगना भी अब उठकर लाली का साथ दे रही थी।

जब जब सुगना और लाली सोनू को खाने का सामान देने के लिए नीचे झुकतीं उनकी चूचियां बरबस ही सोनू का ध्यान खींच लेतीं । सुगना की दूधिया चमकती चूचियों को ब्लाउज के पीछे से झांकते देख सोनू मंत्र मुग्ध हो जाता। लाली की भरी-भरी मादक चूचियां भी कम न थी।

रसमलाई और राजभोग की तुलना कठिन थी…जो सुलभ था शायद उसकी कीमत कम थी और जो दुर्लभ था उसकी चाह प्रबल थी।

अपनी दोनों बहनों के बीच घिरा सोनू स्वादिष्ट भोजन का आनंद ले रहा था। और उसकी आंखें उनके गदराए बदन को देखकर तृप्त हो रहीं थी । उसका युवराज पैंट में जकड़े होने के बावजूद सर उठाने की कोशिश कर रहा था।

सोनू ने भोजन किया और अब विदा लेने का वक्त था…

ड्राइवर गाड़ी में सामान रखकर सोनू का इंतजार कर रहा था।

लाली ने सोनू से कहा

“फेर कब आईब?” लाली की आवाज में भारीपन था और आंखों में पानी। वह सोनू से बिछड़ना नहीं चाहती थी।

सुगना ने यह भांप लिया अचानक उसे कुछ याद आया और वह बोली..

“अरे सोनू रुकल रही हे तोरा खाती एगो चीज बनवले बानी”

सुगना भागते हुए किचन की तरफ गई इसी बीच सोनू ने लाली को अपने आलिंगन में भर लिया और उसकी आंसुओं से भरी आंखों को चूमने लगा धीरे-धीरे कब उसके होंठ लाली के होठों से सट गए और दोनों चुंबन में खो गए। सोनू लाली से बेहद प्यार करता था।

सोनू और लाली एक दूसरे के आलिंगन और चुंबन में खोए हुए थे सुगना पीछे आ चुकी थी उसने उन्हें डिस्टर्ब ना किया परंतु सुगना आसपास हो और सोनू को उसका एहसास ना हो यह संभव न था वह लाली से अलग हुआ..

सोनू और लाली दोनों बखूबी जानते थे कि सुगना उनके संबंधों के बारे में पूरी तरह जानती है। और अब तो सोनू अपनी बहन सुगना को लाली से विवाह करने का वचन भी दे चुका था।

छुपाने लायक कुछ भी न था लाली भी सहज थी। लाली और सोनू के बीच का रिश्ता सुगना भी समझने लगी थी और शायद इसीलिए उसने सोनू को लाली से विवाह करने के लिए मना लिया था।

सोनू सुगना की तरफ मुखातिब हुआ और उसके हाथ में पकड़े डब्बे में अपने मनपसंद लड्डू देखकर बेहद खुश हो गया।उसका जी किया कि वह सुगना को चूम ले.. सचमुच सुगना सोनू का बहुत ख्याल रखती थी..

सोनू हमेशा की तरह एक बार फिर लाली के पैर छूने के लिए नीचे झुका और लाली ने उसे बीच में ही रोक लिया तभी सुगना बोल पड़ी..

“अब लाली के पैर मत छुअल कर …ठीक ना लागेला ”

सोनू को शरारत सूझी अपनी बहनों से बिछड़ते हुए वह दुखी तो था पर खुद को सहज दिखाते हुए उसने सुगना को छेड़ा

“काहे दीदी…?”

सुगना चुप रही।

लाली के समक्ष वह अब भी सोनू से मर्यादित दूरी बनाए रखना चाहती थी।

सुगना तुरंत ही समझ गई की सोनू उसे छेड़ रहा है …उसने उत्तर ना दिया अपितु अपनी गर्दन झुका दी । सुगना पहले भी यह बात कई बार सोनू को समझा चुकी थी उसके और लाली के बीच का रिश्ता अब भाई बहन का रिश्ता नहीं रहा था। और अब वह पति-पत्नी के रूप में परिवर्तित होने वाला था। ऐसे में लाली के पैर छूना सुगना को गवारा न था।

तभी अचानक सोनू ने लाली से कहा..

“दीदी हमार घर के चाबी लगाता तोहरा बिस्तर में पर छूट गइल बा..लेते आव ना..”

जैसे ही लाली अपने कमरे में सोनू की चाबी ढूंढने गई सोनू ने सुगना को अपने आलिंगन में भर लिया और इससे पहले सुगना कुछ कहती उसके फूल जैसे ओंठो को अपने होठों के बीच लेकर चुभलाने लगा..

उसके हाथ सुगना के कूल्हों को जकड़ कर उसे अपने लंड से सटा चुके थे…

कुछ ही पलों के मिलन में सोनू के शरीर में उत्तेजना भर दी.. सुगना उसकी पकड़ से आजाद तो नहीं होना चाहती थी परंतु लाली निकट ही थी.. उसने सोनू के सीने पर अपनी हथेलियां से इशारा किया और उससे दूर हो गई।

तभी कमरे से लाली की आवाज आई

“सोनू बिस्तर पर तो चाभी नइखे कहीं और रख ले बाड़े का?”

सोनू ने अपनी जेब से चाबी निकाल कर सुगना को दिखाते हुए मुस्कुराने लगा उसने झटपट चाबी को पास पड़े सोफे पर फेंक दिया और बोला..


“लाली दीदी आजा चाबी मिल गैल बा सोफा पर रहल हा”

सुगना सोनू के शरारती चेहरे को देख रही थी जिसने उसे आलिंगन में लेने के लिए यह खेल रचा और बखूबी अपनी इच्छा पूरी कर ली। इस प्रेम भरे आलिंगन ने सुगना को भी तरोताजा कर दिया था। सुगना के जीवन में खुशियों की लहर महसूस होने लगी थी।

अब सुगना से विदा लेने ने की बारी थी।

सोनू ने पूरे आदर सम्मान से विधिवत झुक कर सुगना के पैर छुए सुगना ने उसे ना रोका वह उसकी बड़ी बहन की तरह उसके उसके सर पर हाथ रख उसे आशीर्वाद देती रही।

जिस स्त्री ने सोनू की मर्दानगी को बचाए रखने के लिए अपनी हद पार कर उसका साथ दिया था वह सोनू की नजरों में पहले भी पूजनीय थी और अब भी।

सोनू उठ खड़ा हुआ और अपनी बहन सुगना के आलिंगन में आ गया यह आलिंगन पहले की तुलना में अलग था सुगना की चूचियां सोनू से सुरक्षित दूरी बनाए हुए थी और सुगना सोनू का माथा चूमकर उसे आशीर्वाद दे रही थी.

सुगना ने कहा..

“अपन ध्यान रखीहे और जल्दी आईहे हमनी के इंतजार करब जा..”

सोनू मुस्कुरा कर रहा गया। अपनी दोनों बहनों से बिदा लेते समय उसकी आंखें नम थी। गाड़ी में बैठने के बाद सोनू की हिम्मत नहीं हो रही थी कि वह सुगना और लाली की तरफ देखें। न जाने क्यों इस बार उसे सुगना से बिछड़ने में बेहद तकलीफ हो रही थी।

विधि का विधान है मिलना और बिछड़ना परंतु जब प्रेम अपने चरम पर पहुंच जाता है अलग होना बेहद कठिन हो जाता है..

सोनू की गाड़ी आगे बढ़ चुकी थी.. सोनू पलट कर पीछे नहीं देखना चाह रहा था उसे पता था वह खुद भी भावुक होगा और अपनी बहनों को भी भावुक करता रहेगा। दिल पर पत्थर रख वह आगे बढ़ता गया परंतु गली के मोड पर आते-आते उसका भी सब्र जवाब दे गया उसने खिड़की से सर बाहर निकाला और एक झलक अपने घर की तरफ देखा दोनों बहने अब भी टकटकी लगाकर सोनू की तरफ देख रही थी न जाने उन में सोनू के प्रति इतना प्यार क्यों था….

सुगना और लाली दोनों निराली थी और उनका भाई सोनू उनकी आंखों का तारा था…

उधर सलेमपुर में सरयू सिंह अपने दोस्त हरिया और उसकी पत्नी (लाली के माता पिता) का ख्याल रख रहे थे कजरी भी एक आदर्श पड़ोसी की तरह उनके सुख-दुख में शामिल थी..


हरिया और उसकी पत्नी को हमेशा एक ही चिंता सताती कि उनकी पुत्री लाली भरी जवानी में ही विधवा हो गई थी। उन्हें इस बात का इल्म कतई न था की सोनू लाली का पूरी तरह ध्यान रख रहा था और अब सुगना के कहने पर उसे पत्नी रूप में स्वीकार करने के लिए पूरी तरह तैयार था।

हरिया की पत्नी अपनी पुत्री के लिए हमेशा ईश्वर से मन्नतें मांगती उसके संभावित वर के लिए अपनी नज़रें इधर-उधर दौड़ती परंतु एक विधवा के लिए वर तलाशना इतना आसान न था और यदि कोई मिलता भी तो वह निश्चित ही अधेड़ उम्र का होता।

सोनू को अपने दामाद के रूप में देखने की वह कल्पना भी नहीं कर सकते थे एक तो सोनू उम्र में लाली से कुछ छोटा था दूसरे वह अब एक प्रतिष्ठित पद पर था जिसके लिए लड़कियों की लाइन लगी हुई थी। सोनू के गांव सीतापुर में उसकी मां पदमा के समक्ष कई रिश्ते आते और वह उन्हें सरयू सिंह से संपर्क करने के लिए भेज देती। सोनू का पूरा परिवार भी अब सरयू सिंह को अपने परिवार का मुखिया और बुजुर्ग मान चुका था।

सरयू सिंह के पास सोनू के रूप में एक अनमोल खजाना था जिसके बलबूते पूरे गांव और तहसील में उनका दबदबा चलता था और हो भी क्यों ना?

सरयू सिंह का व्यक्तित्व वैसे भी सब पर भारी था ऊपर से जब से वह मनोरमा के संपर्क में आए थे उनका उत्साह दोगुना हो गया था। यह तो विधि का विधान था कि उन्हें अपनी पुत्री सुगना के बारे में अकस्मात ही मालूम चल गया था और वह अपने पाप के बोझ तले दब गए थे अन्यथा उनके उत्साह और दबंगई की कोई सीमा ही ना रहती।


समय सभी घावों को भर देता है। सुगना को अपनी पुत्री रूप में स्वीकार कर अब वह अपने पाप से खुद को मुक्त कर चुके थे। परंतु शायद यह इतना आसान न था। उनकी उत्तेजना को दिशा देने वाली सुगना की छोटी बहन सोनी उनके सुख चैन छीने हुए थी परंतु उनके जीवन में रस भरे हुए थी।

वैसे भी अपनी उत्तेजना के बिना उनका जीवन नीरस था। उनकी उत्तेजना का वेग झेलने के लिए कजरी अब कमजोर पड़ती थी। वह तो सरयू सिंह के मजबूत हाथ थे जो अब भी उनकी उदंड उत्तेजना को समेटे उनके अदभुत लंड को मसल कर उसमें से मखमली द्रव्य निचोड़ लेते थे और उसकी सारी अकड़ खत्म कर देते थे।

उधर सरयू सिंह की उत्तेजना का केंद्र बिंदु सोनी अपनी सहेलियों के साथ कॉलेज की कैंटीन में कुल्फी खा रही थी जिस प्रकार से वह कुल्फी चूस रही थी उसकी सहेली ने उसे छेड़ा..

“अरे सोनी तेरा तो कुल्फी चूसने का अंदाज ही बदल गया है लगता है विकास ने अच्छी ट्रेनिंग दे दी है”

सोनी ने अपनी दोस्त की तरफ देखा वह मन ही मन मुस्कुराने लगी उसे अचानक विकास की याद आ गई जो बार-बार उसे अपना लंड चूसने के लिए आग्रह करता रहता था।

सोनी के लिए यह इतना आसान न था। पर पिछले कुछ वर्षों से सुगना के पुत्र सूरज के अंगूठे को सहलाने के बाद उसकी छोटी सी नूनी को बढ़ाना और उसके बाद उसे अपने होंठ से चूम कर नूनी के आकर को कम करना सोनी के लिए एक अनोखा कृत्य था। सोनी को धीरे-धीरे यह खेल पसंद आने लगा था और सुगना के लाख मना करने के बाद भी वह मौका देखकर अपनी उत्सुकता ना रोक पाती।

सोनी ने मुस्कुराते हुए अपनी सहेली से कहा…

“यह तो एक दिन तुझे भी करना ही है मेरे से ही ट्रेनिंग ले ले… “

दोनों सहेलियां हंसने लगी। सोनी की विडंबना यह थी कि वह विकास के प्रेम में पड़कर इंगेज हो चुकी थी और कुछ महीनो बाद उसकी शादी थी।


विकास से उसके प्यार में कोई कमी न थी परंतु विकास की कामुकता और सोनी की कामेच्छा में कोई मेल न था। विकास अति कामुक था परंतु कुदरत ने उसे न हीं सोनू जैसे हथियार से नहीं नवाजा था न हीं उस जैसे बलिष्ठ शरीर से।

जब से सोनी ने सरयू सिंह का लंड देखा था तब से वह उससे विकास के लंड की तुलना करने लगी थी…

गाजर और मूली की तुलना कठिन थी।

लंड का ध्यान कर सोनी की जांघों के बीच कुछ कुलबुलाहट होने लगी। सोनी अपनी सहेली से विकास के बारे में और बातें करने लगे लगी। विकास एक धनाढ़य परिवार का काबिल लड़का था। सभी सोनी को खुश किस्मत मानते थे जो वह ऐसे घर में ब्याही जा रही थी। विकास भी सोनी से बहुत प्यार करता था यह बात सभी जानते थे।


न जाने ऐसा क्यों होता कि जब भी वह विकास के बारे में सोच सोच कर कामुक होती सरयू सिंह का बड़ा सा लंड बार-बार उसका ध्यान अपनी ओर खींचता।

सोनी अपने विचारों में उत्तेजना को विभिन्न तरीकों से जागृत करती कभी उस अदृश्य लंड को अपने भीतर महसूस करती और इन्हीं में उलझी हुई अपनी उत्तेजना को अपनी उंगलियों से शांत करती।

मानव मन चंचल होता है कामुक पलो में उसकी गति अनियंत्रित होती है वह रिश्ते नाते उचित अनुचित को छोड़ कही भी और किसी रूप में जा सकता है और सोच सकता है उसका मुख्य उद्देश्य अपने स्वामी को एक सुखद स्खलन देना होता है…


उधर सोनू ने जौनपुर पहुंचकर अपना शासकीय कार्यभार संभाल लिया । सांझ ढले जब वह अपने घर पहुंचा घर के नौकर चाकर ने उसका स्वागत किया परंतु घर के अंदर प्रवेश करते ही उसे उसका सूनापन सोनू को खलने लगा। चहकती सुगना और उसके बच्चों की कमी सोनू को महसूस हो रही थी।

वह रुवांसा हो गया। सुगना की कमरे का दरवाजा खोलने की उसकी हिम्मत ना हुई वह वापस अपने ड्राइंग रूम में आ गया और तब तक उसका मातहत चाय का कप और बिस्किट लेकर सोनू के समक्ष था।

“साहब सुगना दीदी नहीं आएंगी क्या?”

इस प्रश्न ने सोनू को और दुखी कर दिया तभी उसे नेपाली मातहत में फिर बोला

“दीदी बहुत अच्छी हैं और उनके बच्चे भी उनके रहने से ये बंगला जगमग रहता था..”

सोनू ने अपनी भावनाओं पर कंट्रोल किया और बोला ..

“हां दोनों बच्चे सब का मन लगाए रखते थे..”

इसके पश्चात सोनू ने अपने मातहत को कुछ और दिशा निर्देश दिए और अपने कमरे में चला गया। यह वही कमरा था जिसमें लाली की पसंद का पलंग लगाया था।

सुगना के जौनपुर प्रवास के दौरान सोनू इसी कमरे में रहता था। परंतु सुगना के साथ सारी रासलीला उसकी पसंद के पलंग पर ही करता था।

सोनू के बंगले के दोनों प्रमुख कमरे उसकी दोनों बहनों के हो चुके थे बंगले ही क्या सोनू खुद भी अब पूरी तरह अपनी बहनों का हो चुका था और उनके लिए तन मन धन से समर्पित था।

नित्य क्रिया से निवृत होकर सोनू अपने क्लब के जिम में चला गया जहां जाकर जी भरकर मेहनत की और शरीर को पूरी तरह थका डाला उसे पता था घर का एकाकीपन उसे काटने को दौड़ेगा और यह थकावट थी उसे एक सुखद नींद दे सकती थी।


रात्रि की बेला सभी को एकांत और दिनभर की थकान मिटाने का एक अवसर देती है परंतु चंचल मन का भटकाव सबसे ज्यादा इसी समय होता है बिस्तर पर लेटते ही कहानी के सभी पात्र अपनी अपनी मनोदशा से जूझ रहे थे.

लाली अपने विवाह के पश्चात अपने पूर्व पति राजेश के संग बिताए गए दिनों को याद कर रही थी। वो सुहाग के लाल जोड़े में राजेश के घर आना सुहागिनों की तरह घर की विभिन्न पूजा में भाग लेना और रात्रि होते होते राजेश की बाहों में संसार का अनोखा सुख लेना। लाल जोड़ा और सुहागिनों की तरह सज धज कर रहना लाली को बेहद पसंद था परंतु अफसोस राजेश के जाने के पश्चात वह रंग-बिरंगे कपड़े तो जरूर पहनती थी परंतु अपने पति के लिए सजने का जो सुख लाली महसूस करती थी अब वह उसकी जिंदगी से महरूम हो चुका था। पुनर्विवाह न तो उसकी कल्पना में था और उसके हिसाब से शायद संभव भी नहीं था।

उसके जीवन में एकमात्र खुशियां थी वह थी सोनू से उसके जायज या नाजायज संबंध। नाजायज इसलिए क्योंकि सोनू उसका मुंह बोला भाई था और जायज इसलिए कि यह संबंध उसके पति की इच्छा से बना था और उन्हें इससे कोई आपत्ति न थी अपितु इस संबंध को बनाने में उनका ही योगदान था।


हम सबकी प्यारी सुगना भी बिस्तर पर लेटे-लेटे सोनू के बारे में ही सोच रही थी। पिछले हफ्ते सोनू के साथ बिताया सप्ताह उसके जीवन का शायद दूसरा खूबसूरत समय था। अब भी उसे सरयू सिंह के साथ बिताई गई अपनी सुहागरात याद थी सरयू सिंह ने जिस आत्मीयता और प्यार से उसकी कमसिन बुर को धीरे-धीरे जवान किया था और उसकी वासना को पुष्पित और पल्लवित किया था वह उनकी ऋणी थी।

सुगना की जीवन में रंग और बुर में तरंग भरने वाले सरयू सिंह उसके लिए पूज्य थे…वह पूज्य इसलिए भी थे कि वह उसे इस दुनिया में लाने वाले पिता भी थे परंतु सुगना को इसका इल्म न था। अन्यथा सरयू सिंह का वह कामुक रूप सुगना कभी स्वीकार न कर पाती।

यह सोचते सोचते ही उसकी जांघों के बीच एक बार फिर हलचल होने लगी तभी उसके दिमाग में विद्यानंद के शब्द गूंजने लगे..

अपने पुत्र सूरज की मुक्ति का मार्ग जो विद्यानंद ने सुझाया था.. उसे अमल में लाना बेहद कठिन था.

अपनी ही पुत्री को अपने ही पुत्र से संभोग करने के लिए प्रेरित करना या स्वयं अपने ही पुत्र से संभोग करना यह ऐसा दुष्कर और अपवित्र कार्य था जो सुगना जैसी स्त्री के लिए कतई संभव न था पर सूरज उसका एकमात्र पुत्र था जो सरयू सिंह की निशानी थी , जिसे आने वाले समय में सुगना के परिवार का प्रतिनिधित्व करना था। सुगना किसी भी हाल में सूरज को शापित नहीं छोड़ सकती थी।

विद्यानंद ने यह बात सुगना को किसी से भी साझा करने के लिए मना किया था। यद्यपि सूरज और मधु अभी छोटे थे परंतु सुगना अपनी कल्पना में आने वाले समय के बारे में सोचना शुरू कर चुकी थी वह कभी एक दिशा में सोचती कभी दूसरी दिशा में और हर बार मुंह की खाती आखिर कार यह कैसे संभव होगा।

अचानक उसके विचारों में किशोर सोनू की छवि उभर आई अपनी किशोरावस्था में सोनू एक आदर्श भाई की तरह सुगना के साथ-साथ रहता और सुगना भी एक बड़ी बहन के रूप में उसका पूरा ख्याल परंतु नियति ने जाने उनके भाग्य में क्या लिखा था कैसे उन दोनों के बीच का उज्ज्वल और बेदाग संबंध वासना की गिरफ्त में आकर धीरे धीरे बदल चुका था और अब दोनों के कमांग एक दूसरे में समा जाने के लिए तड़प रहे थे…

अपने और सोनू के संबंधों से सुगना को कुछ आंतरिक बल मिला और वह मन में ही मन ईश्वर से यही प्रार्थना करने लगी कि उसकी मंशा पूरी हो और उसका शापित पुत्र उसे अनजाने शॉप से मुक्ति पा सके।

अगली सुबह सोनू ने अपने गर्दन के दाग का मुआयना किया…निश्चित ही दाग कम हो रहा था सुगना का कहा सच हो रहा था अगले दस ग्यारह दिनों में दाग लगभग गायब सा हो गया। सोनू बेहद खुश था अपने दाग से मुक्त होकर वह आत्मविश्वास से लबरेज था…परंतु इन दिनों सुगना और लाली की कमी उसे खल रही थी। दो-तीन दिनों में शनिवार आने वाला था सप्ताहांत में सोनू बनारस जाने की तैयारी करने लगा.. जिसकी सूचना उसने पास के पीसीओ में टेलीफोन करके अपनी बहनों तक पहुंचा दी..


लाली…सोनू का बेसब्री से इंतजार करने लगी…पर सुगना सतर्क थी..उसे सोनू का इंतजार भी था पर एक डर भी था कही सोनू ने फिर…नहीं..नहीं अब बस.. जो हुआ सो हुआ। वह मन ही मन निर्णय लेने की कोशिश कर रही थी पर जांघों के बीच छुपी प्रतीक्षारत बुर सुगना के निर्णय को कमजोर करने की कोशिश कर रही थी।

नियति मुस्कुरा रही थी और विधाता द्वारा लिखी गई आगे की पटकथा को पढ़ने का प्रयास कर रही थी…

शेष अगले भाग में..
जब चोदने को मिले कोई औरत जैसी औरत है सुगना

ऐसी औरत को भोगने में मर्द को मजा मिलता है दुगना

कभी-कभी जो करे अनाकानी और कभी-कभी शरमाये

पूरी शिद्दत से साथ दे बिस्तर पर जब धक्के मर्द लगाए

अपने सोनूभैया ने भी सचमुच में किस्मत गजब की पाई

सुगना चुदी जौनपुर में बनारस में लाली की हुई ठुकाई

Bahut umda update lovely ji. Waiting as usual for next update..post soon
 

arushi_dayal

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जब चोदने को मिले कोई औरत जैसी औरत है सुगना

ऐसी औरत को भोगने में मर्द को मजा मिलता है दुगना

कभी-कभी जो करे अनाकानी और कभी-कभी शरमाये

पूरी शिद्दत से साथ दे बिस्तर पर जब धक्के मर्द लगाए

अपने सोनूभैया ने भी सचमुच में किस्मत गजब की पाई

सुगना चुदी जौनपुर में बनारस में लाली की हुई ठुकाई

Bahut umda update lovely ji. Waiting as usual for next update..post soon
दोनो ही बहनें अपने सोनू भैया से करती हैं इतना प्यार
सुगना फुद्दी देने में संकोच करे पर लाली हरदम तैयार
 

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120 वा अध्याय के बारें में क्या कहने
बहुत ही सुंदर लाजवाब और अद्भुत रमणिय अपडेट है भाई मजा आ गया
सोनू और सुगना अपने मिलन की ओर एक कदम आगे बढ गये दोनों तयार हैं बस पहल होनी बाकी हैं
वैसे सुगना और सोनू सगे भाई बहन नहीं हैं इस बात का परदा उठ चुका हैं
खैर देखते हैं आगे
 

ChaityBabu

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Gap hone se khni pichhe se shuru krni pad rhi hai
par lagta hai kuchh episodes missing hain,
 
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Ajju Landwalia

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भाग 130
“अरे सोनू सरयू चाचा से एक बार मिल के पूछीहे उनकर दाग भी ठीक अईसन ही रहे। अब त उनकर दाग बिल्कुल ठीक बा.. उ जरूर बता दीहें”

डूबते को तिनके का सहारा …सोनू को उम्मीद की एक किरण दिखाई पड़ी। परंतु सुगना की रूह कांप उठी।

सरयू सिंह और सोनू को दाग के बारे में बात करते सोच कर ही उसे लगा वह गश खाकर गिर पड़ेगी..

सोनू ने सुगना को सहारा दिया और उसे अपने पास बैठा लिया..

दीदी का भइल….?

यह प्रश्न जितना सरल था उसका उत्तर उतना ही दुरूह…

नियति सुगना की तरह ही निरुत्तर थी ..

आशंकित थी…

कुछ अनिष्ट होने की आशंका प्रबल थी…


अब आगे…

सोनू सुगना की हथेलियां को अपनी हथेलियां के बीच लेकर तेजी से रगड़ रहा था और उसे चैतन्य करने की कोशिश कर रहा था लाली झट से पानी का गिलास ले आई और सुगना को पानी पिलाने का प्रयास करने लगी अब तक सुगना स्वयं को नियंत्रित करते हुए अपनी चेतना में वापस आ चुकी थी और अपनी सधी हुई जबान में बोली


“अचानक ना जाने का भइल हा एकदम चक्कर जैसन लगल हा”

सोनू और लाली ने सुगना को इस स्थिति में आज पहली बार देखा था अपने स्वास्थ्य और पूरे परिवार का ख्याल रखने वाली सुगना को शायद ही कभी कोई बीमारी हुई हो।

अच्छा ही हुआ बातचीत का टॉपिक बदल चुका था और शायद सुगना भी यही चाहती थी परंतु सोनू के मस्तिष्क पर इस दाग की उत्पत्ति का खरोच लगा चुका था रह रहकर उसका ध्यान कभी दाग की तरफ जाता कभी सरयू सिंह की तरफ..

बहरहाल इस समय सुगना सबका ध्यान अपनी तरफ खींच चुकी थी।

सोनू ने उसकी हथेलियां को एक बार फिर प्यार से सहलाते हुए कहा


“दीदी चल डॉक्टर से चेकअप करा दी”

सुगना ने सहज होते हुए कहा

“अरे कल ही तो डॉक्टर से देखा के आइल बाड़े सब तो ठीक ही रहे अतना छोट छोट बात पर परेशान होईबे तो कैसे चली हम बिल्कुल ठीक बानी ..”

सोनू सुगना की बात से पूरी तरह संतुष्ट न था पर वह चुप ही रहा

“तोरा जौनपुर जाए के रहे नू?”

सुगना के प्रश्न से सोनू को अपनी जिम्मेदारियों का एहसास हुआ उसने घड़ी देखी..

समय तेजी से बीत रहा था दोपहर के एक बज चुके थे सोनू ने सुगना की हथेलियों को आजाद करते हुए

“अरे 1 बज गैल हमरा तुरंत जौनपुर निकल के बा..”

सोनू अपना सामान पैक करने लगा लाली झटपट सोनू के लिए खाना निकालने चली गई सुगना अभी भी अपनी जगह पर बैठे बैठे अपने आपको सहज करने का प्रयास कर रही थी।

कुछ ही देर बाद सोनू घर के हाल में बैठा खाना खा रहा था और उसकी दोनों बहने उसकी पसंद का खाना उसे खिला रही थी सुगना भी अब उठकर लाली का साथ दे रही थी।

जब जब सुगना और लाली सोनू को खाने का सामान देने के लिए नीचे झुकतीं उनकी चूचियां बरबस ही सोनू का ध्यान खींच लेतीं । सुगना की दूधिया चमकती चूचियों को ब्लाउज के पीछे से झांकते देख सोनू मंत्र मुग्ध हो जाता। लाली की भरी-भरी मादक चूचियां भी कम न थी।

रसमलाई और राजभोग की तुलना कठिन थी…जो सुलभ था शायद उसकी कीमत कम थी और जो दुर्लभ था उसकी चाह प्रबल थी।

अपनी दोनों बहनों के बीच घिरा सोनू स्वादिष्ट भोजन का आनंद ले रहा था। और उसकी आंखें उनके गदराए बदन को देखकर तृप्त हो रहीं थी । उसका युवराज पैंट में जकड़े होने के बावजूद सर उठाने की कोशिश कर रहा था।

सोनू ने भोजन किया और अब विदा लेने का वक्त था…

ड्राइवर गाड़ी में सामान रखकर सोनू का इंतजार कर रहा था।

लाली ने सोनू से कहा

“फेर कब आईब?” लाली की आवाज में भारीपन था और आंखों में पानी। वह सोनू से बिछड़ना नहीं चाहती थी।

सुगना ने यह भांप लिया अचानक उसे कुछ याद आया और वह बोली..

“अरे सोनू रुकल रही हे तोरा खाती एगो चीज बनवले बानी”

सुगना भागते हुए किचन की तरफ गई इसी बीच सोनू ने लाली को अपने आलिंगन में भर लिया और उसकी आंसुओं से भरी आंखों को चूमने लगा धीरे-धीरे कब उसके होंठ लाली के होठों से सट गए और दोनों चुंबन में खो गए। सोनू लाली से बेहद प्यार करता था।

सोनू और लाली एक दूसरे के आलिंगन और चुंबन में खोए हुए थे सुगना पीछे आ चुकी थी उसने उन्हें डिस्टर्ब ना किया परंतु सुगना आसपास हो और सोनू को उसका एहसास ना हो यह संभव न था वह लाली से अलग हुआ..

सोनू और लाली दोनों बखूबी जानते थे कि सुगना उनके संबंधों के बारे में पूरी तरह जानती है। और अब तो सोनू अपनी बहन सुगना को लाली से विवाह करने का वचन भी दे चुका था।

छुपाने लायक कुछ भी न था लाली भी सहज थी। लाली और सोनू के बीच का रिश्ता सुगना भी समझने लगी थी और शायद इसीलिए उसने सोनू को लाली से विवाह करने के लिए मना लिया था।

सोनू सुगना की तरफ मुखातिब हुआ और उसके हाथ में पकड़े डब्बे में अपने मनपसंद लड्डू देखकर बेहद खुश हो गया।उसका जी किया कि वह सुगना को चूम ले.. सचमुच सुगना सोनू का बहुत ख्याल रखती थी..

सोनू हमेशा की तरह एक बार फिर लाली के पैर छूने के लिए नीचे झुका और लाली ने उसे बीच में ही रोक लिया तभी सुगना बोल पड़ी..

“अब लाली के पैर मत छुअल कर …ठीक ना लागेला ”

सोनू को शरारत सूझी अपनी बहनों से बिछड़ते हुए वह दुखी तो था पर खुद को सहज दिखाते हुए उसने सुगना को छेड़ा

“काहे दीदी…?”

सुगना चुप रही।

लाली के समक्ष वह अब भी सोनू से मर्यादित दूरी बनाए रखना चाहती थी।

सुगना तुरंत ही समझ गई की सोनू उसे छेड़ रहा है …उसने उत्तर ना दिया अपितु अपनी गर्दन झुका दी । सुगना पहले भी यह बात कई बार सोनू को समझा चुकी थी उसके और लाली के बीच का रिश्ता अब भाई बहन का रिश्ता नहीं रहा था। और अब वह पति-पत्नी के रूप में परिवर्तित होने वाला था। ऐसे में लाली के पैर छूना सुगना को गवारा न था।

तभी अचानक सोनू ने लाली से कहा..

“दीदी हमार घर के चाबी लगाता तोहरा बिस्तर में पर छूट गइल बा..लेते आव ना..”

जैसे ही लाली अपने कमरे में सोनू की चाबी ढूंढने गई सोनू ने सुगना को अपने आलिंगन में भर लिया और इससे पहले सुगना कुछ कहती उसके फूल जैसे ओंठो को अपने होठों के बीच लेकर चुभलाने लगा..

उसके हाथ सुगना के कूल्हों को जकड़ कर उसे अपने लंड से सटा चुके थे…

कुछ ही पलों के मिलन में सोनू के शरीर में उत्तेजना भर दी.. सुगना उसकी पकड़ से आजाद तो नहीं होना चाहती थी परंतु लाली निकट ही थी.. उसने सोनू के सीने पर अपनी हथेलियां से इशारा किया और उससे दूर हो गई।

तभी कमरे से लाली की आवाज आई

“सोनू बिस्तर पर तो चाभी नइखे कहीं और रख ले बाड़े का?”

सोनू ने अपनी जेब से चाबी निकाल कर सुगना को दिखाते हुए मुस्कुराने लगा उसने झटपट चाबी को पास पड़े सोफे पर फेंक दिया और बोला..


“लाली दीदी आजा चाबी मिल गैल बा सोफा पर रहल हा”

सुगना सोनू के शरारती चेहरे को देख रही थी जिसने उसे आलिंगन में लेने के लिए यह खेल रचा और बखूबी अपनी इच्छा पूरी कर ली। इस प्रेम भरे आलिंगन ने सुगना को भी तरोताजा कर दिया था। सुगना के जीवन में खुशियों की लहर महसूस होने लगी थी।

अब सुगना से विदा लेने ने की बारी थी।

सोनू ने पूरे आदर सम्मान से विधिवत झुक कर सुगना के पैर छुए सुगना ने उसे ना रोका वह उसकी बड़ी बहन की तरह उसके उसके सर पर हाथ रख उसे आशीर्वाद देती रही।

जिस स्त्री ने सोनू की मर्दानगी को बचाए रखने के लिए अपनी हद पार कर उसका साथ दिया था वह सोनू की नजरों में पहले भी पूजनीय थी और अब भी।

सोनू उठ खड़ा हुआ और अपनी बहन सुगना के आलिंगन में आ गया यह आलिंगन पहले की तुलना में अलग था सुगना की चूचियां सोनू से सुरक्षित दूरी बनाए हुए थी और सुगना सोनू का माथा चूमकर उसे आशीर्वाद दे रही थी.

सुगना ने कहा..

“अपन ध्यान रखीहे और जल्दी आईहे हमनी के इंतजार करब जा..”

सोनू मुस्कुरा कर रहा गया। अपनी दोनों बहनों से बिदा लेते समय उसकी आंखें नम थी। गाड़ी में बैठने के बाद सोनू की हिम्मत नहीं हो रही थी कि वह सुगना और लाली की तरफ देखें। न जाने क्यों इस बार उसे सुगना से बिछड़ने में बेहद तकलीफ हो रही थी।

विधि का विधान है मिलना और बिछड़ना परंतु जब प्रेम अपने चरम पर पहुंच जाता है अलग होना बेहद कठिन हो जाता है..

सोनू की गाड़ी आगे बढ़ चुकी थी.. सोनू पलट कर पीछे नहीं देखना चाह रहा था उसे पता था वह खुद भी भावुक होगा और अपनी बहनों को भी भावुक करता रहेगा। दिल पर पत्थर रख वह आगे बढ़ता गया परंतु गली के मोड पर आते-आते उसका भी सब्र जवाब दे गया उसने खिड़की से सर बाहर निकाला और एक झलक अपने घर की तरफ देखा दोनों बहने अब भी टकटकी लगाकर सोनू की तरफ देख रही थी न जाने उन में सोनू के प्रति इतना प्यार क्यों था….

सुगना और लाली दोनों निराली थी और उनका भाई सोनू उनकी आंखों का तारा था…

उधर सलेमपुर में सरयू सिंह अपने दोस्त हरिया और उसकी पत्नी (लाली के माता पिता) का ख्याल रख रहे थे कजरी भी एक आदर्श पड़ोसी की तरह उनके सुख-दुख में शामिल थी..


हरिया और उसकी पत्नी को हमेशा एक ही चिंता सताती कि उनकी पुत्री लाली भरी जवानी में ही विधवा हो गई थी। उन्हें इस बात का इल्म कतई न था की सोनू लाली का पूरी तरह ध्यान रख रहा था और अब सुगना के कहने पर उसे पत्नी रूप में स्वीकार करने के लिए पूरी तरह तैयार था।

हरिया की पत्नी अपनी पुत्री के लिए हमेशा ईश्वर से मन्नतें मांगती उसके संभावित वर के लिए अपनी नज़रें इधर-उधर दौड़ती परंतु एक विधवा के लिए वर तलाशना इतना आसान न था और यदि कोई मिलता भी तो वह निश्चित ही अधेड़ उम्र का होता।

सोनू को अपने दामाद के रूप में देखने की वह कल्पना भी नहीं कर सकते थे एक तो सोनू उम्र में लाली से कुछ छोटा था दूसरे वह अब एक प्रतिष्ठित पद पर था जिसके लिए लड़कियों की लाइन लगी हुई थी। सोनू के गांव सीतापुर में उसकी मां पदमा के समक्ष कई रिश्ते आते और वह उन्हें सरयू सिंह से संपर्क करने के लिए भेज देती। सोनू का पूरा परिवार भी अब सरयू सिंह को अपने परिवार का मुखिया और बुजुर्ग मान चुका था।

सरयू सिंह के पास सोनू के रूप में एक अनमोल खजाना था जिसके बलबूते पूरे गांव और तहसील में उनका दबदबा चलता था और हो भी क्यों ना?

सरयू सिंह का व्यक्तित्व वैसे भी सब पर भारी था ऊपर से जब से वह मनोरमा के संपर्क में आए थे उनका उत्साह दोगुना हो गया था। यह तो विधि का विधान था कि उन्हें अपनी पुत्री सुगना के बारे में अकस्मात ही मालूम चल गया था और वह अपने पाप के बोझ तले दब गए थे अन्यथा उनके उत्साह और दबंगई की कोई सीमा ही ना रहती।


समय सभी घावों को भर देता है। सुगना को अपनी पुत्री रूप में स्वीकार कर अब वह अपने पाप से खुद को मुक्त कर चुके थे। परंतु शायद यह इतना आसान न था। उनकी उत्तेजना को दिशा देने वाली सुगना की छोटी बहन सोनी उनके सुख चैन छीने हुए थी परंतु उनके जीवन में रस भरे हुए थी।

वैसे भी अपनी उत्तेजना के बिना उनका जीवन नीरस था। उनकी उत्तेजना का वेग झेलने के लिए कजरी अब कमजोर पड़ती थी। वह तो सरयू सिंह के मजबूत हाथ थे जो अब भी उनकी उदंड उत्तेजना को समेटे उनके अदभुत लंड को मसल कर उसमें से मखमली द्रव्य निचोड़ लेते थे और उसकी सारी अकड़ खत्म कर देते थे।

उधर सरयू सिंह की उत्तेजना का केंद्र बिंदु सोनी अपनी सहेलियों के साथ कॉलेज की कैंटीन में कुल्फी खा रही थी जिस प्रकार से वह कुल्फी चूस रही थी उसकी सहेली ने उसे छेड़ा..

“अरे सोनी तेरा तो कुल्फी चूसने का अंदाज ही बदल गया है लगता है विकास ने अच्छी ट्रेनिंग दे दी है”

सोनी ने अपनी दोस्त की तरफ देखा वह मन ही मन मुस्कुराने लगी उसे अचानक विकास की याद आ गई जो बार-बार उसे अपना लंड चूसने के लिए आग्रह करता रहता था।

सोनी के लिए यह इतना आसान न था। पर पिछले कुछ वर्षों से सुगना के पुत्र सूरज के अंगूठे को सहलाने के बाद उसकी छोटी सी नूनी को बढ़ाना और उसके बाद उसे अपने होंठ से चूम कर नूनी के आकर को कम करना सोनी के लिए एक अनोखा कृत्य था। सोनी को धीरे-धीरे यह खेल पसंद आने लगा था और सुगना के लाख मना करने के बाद भी वह मौका देखकर अपनी उत्सुकता ना रोक पाती।

सोनी ने मुस्कुराते हुए अपनी सहेली से कहा…

“यह तो एक दिन तुझे भी करना ही है मेरे से ही ट्रेनिंग ले ले… “

दोनों सहेलियां हंसने लगी। सोनी की विडंबना यह थी कि वह विकास के प्रेम में पड़कर इंगेज हो चुकी थी और कुछ महीनो बाद उसकी शादी थी।


विकास से उसके प्यार में कोई कमी न थी परंतु विकास की कामुकता और सोनी की कामेच्छा में कोई मेल न था। विकास अति कामुक था परंतु कुदरत ने उसे न हीं सोनू जैसे हथियार से नहीं नवाजा था न हीं उस जैसे बलिष्ठ शरीर से।

जब से सोनी ने सरयू सिंह का लंड देखा था तब से वह उससे विकास के लंड की तुलना करने लगी थी…

गाजर और मूली की तुलना कठिन थी।

लंड का ध्यान कर सोनी की जांघों के बीच कुछ कुलबुलाहट होने लगी। सोनी अपनी सहेली से विकास के बारे में और बातें करने लगे लगी। विकास एक धनाढ़य परिवार का काबिल लड़का था। सभी सोनी को खुश किस्मत मानते थे जो वह ऐसे घर में ब्याही जा रही थी। विकास भी सोनी से बहुत प्यार करता था यह बात सभी जानते थे।


न जाने ऐसा क्यों होता कि जब भी वह विकास के बारे में सोच सोच कर कामुक होती सरयू सिंह का बड़ा सा लंड बार-बार उसका ध्यान अपनी ओर खींचता।

सोनी अपने विचारों में उत्तेजना को विभिन्न तरीकों से जागृत करती कभी उस अदृश्य लंड को अपने भीतर महसूस करती और इन्हीं में उलझी हुई अपनी उत्तेजना को अपनी उंगलियों से शांत करती।

मानव मन चंचल होता है कामुक पलो में उसकी गति अनियंत्रित होती है वह रिश्ते नाते उचित अनुचित को छोड़ कही भी और किसी रूप में जा सकता है और सोच सकता है उसका मुख्य उद्देश्य अपने स्वामी को एक सुखद स्खलन देना होता है…


उधर सोनू ने जौनपुर पहुंचकर अपना शासकीय कार्यभार संभाल लिया । सांझ ढले जब वह अपने घर पहुंचा घर के नौकर चाकर ने उसका स्वागत किया परंतु घर के अंदर प्रवेश करते ही उसे उसका सूनापन सोनू को खलने लगा। चहकती सुगना और उसके बच्चों की कमी सोनू को महसूस हो रही थी।

वह रुवांसा हो गया। सुगना की कमरे का दरवाजा खोलने की उसकी हिम्मत ना हुई वह वापस अपने ड्राइंग रूम में आ गया और तब तक उसका मातहत चाय का कप और बिस्किट लेकर सोनू के समक्ष था।

“साहब सुगना दीदी नहीं आएंगी क्या?”

इस प्रश्न ने सोनू को और दुखी कर दिया तभी उसे नेपाली मातहत में फिर बोला

“दीदी बहुत अच्छी हैं और उनके बच्चे भी उनके रहने से ये बंगला जगमग रहता था..”

सोनू ने अपनी भावनाओं पर कंट्रोल किया और बोला ..

“हां दोनों बच्चे सब का मन लगाए रखते थे..”

इसके पश्चात सोनू ने अपने मातहत को कुछ और दिशा निर्देश दिए और अपने कमरे में चला गया। यह वही कमरा था जिसमें लाली की पसंद का पलंग लगाया था।

सुगना के जौनपुर प्रवास के दौरान सोनू इसी कमरे में रहता था। परंतु सुगना के साथ सारी रासलीला उसकी पसंद के पलंग पर ही करता था।

सोनू के बंगले के दोनों प्रमुख कमरे उसकी दोनों बहनों के हो चुके थे बंगले ही क्या सोनू खुद भी अब पूरी तरह अपनी बहनों का हो चुका था और उनके लिए तन मन धन से समर्पित था।

नित्य क्रिया से निवृत होकर सोनू अपने क्लब के जिम में चला गया जहां जाकर जी भरकर मेहनत की और शरीर को पूरी तरह थका डाला उसे पता था घर का एकाकीपन उसे काटने को दौड़ेगा और यह थकावट थी उसे एक सुखद नींद दे सकती थी।


रात्रि की बेला सभी को एकांत और दिनभर की थकान मिटाने का एक अवसर देती है परंतु चंचल मन का भटकाव सबसे ज्यादा इसी समय होता है बिस्तर पर लेटते ही कहानी के सभी पात्र अपनी अपनी मनोदशा से जूझ रहे थे.

लाली अपने विवाह के पश्चात अपने पूर्व पति राजेश के संग बिताए गए दिनों को याद कर रही थी। वो सुहाग के लाल जोड़े में राजेश के घर आना सुहागिनों की तरह घर की विभिन्न पूजा में भाग लेना और रात्रि होते होते राजेश की बाहों में संसार का अनोखा सुख लेना। लाल जोड़ा और सुहागिनों की तरह सज धज कर रहना लाली को बेहद पसंद था परंतु अफसोस राजेश के जाने के पश्चात वह रंग-बिरंगे कपड़े तो जरूर पहनती थी परंतु अपने पति के लिए सजने का जो सुख लाली महसूस करती थी अब वह उसकी जिंदगी से महरूम हो चुका था। पुनर्विवाह न तो उसकी कल्पना में था और उसके हिसाब से शायद संभव भी नहीं था।

उसके जीवन में एकमात्र खुशियां थी वह थी सोनू से उसके जायज या नाजायज संबंध। नाजायज इसलिए क्योंकि सोनू उसका मुंह बोला भाई था और जायज इसलिए कि यह संबंध उसके पति की इच्छा से बना था और उन्हें इससे कोई आपत्ति न थी अपितु इस संबंध को बनाने में उनका ही योगदान था।


हम सबकी प्यारी सुगना भी बिस्तर पर लेटे-लेटे सोनू के बारे में ही सोच रही थी। पिछले हफ्ते सोनू के साथ बिताया सप्ताह उसके जीवन का शायद दूसरा खूबसूरत समय था। अब भी उसे सरयू सिंह के साथ बिताई गई अपनी सुहागरात याद थी सरयू सिंह ने जिस आत्मीयता और प्यार से उसकी कमसिन बुर को धीरे-धीरे जवान किया था और उसकी वासना को पुष्पित और पल्लवित किया था वह उनकी ऋणी थी।

सुगना की जीवन में रंग और बुर में तरंग भरने वाले सरयू सिंह उसके लिए पूज्य थे…वह पूज्य इसलिए भी थे कि वह उसे इस दुनिया में लाने वाले पिता भी थे परंतु सुगना को इसका इल्म न था। अन्यथा सरयू सिंह का वह कामुक रूप सुगना कभी स्वीकार न कर पाती।

यह सोचते सोचते ही उसकी जांघों के बीच एक बार फिर हलचल होने लगी तभी उसके दिमाग में विद्यानंद के शब्द गूंजने लगे..

अपने पुत्र सूरज की मुक्ति का मार्ग जो विद्यानंद ने सुझाया था.. उसे अमल में लाना बेहद कठिन था.

अपनी ही पुत्री को अपने ही पुत्र से संभोग करने के लिए प्रेरित करना या स्वयं अपने ही पुत्र से संभोग करना यह ऐसा दुष्कर और अपवित्र कार्य था जो सुगना जैसी स्त्री के लिए कतई संभव न था पर सूरज उसका एकमात्र पुत्र था जो सरयू सिंह की निशानी थी , जिसे आने वाले समय में सुगना के परिवार का प्रतिनिधित्व करना था। सुगना किसी भी हाल में सूरज को शापित नहीं छोड़ सकती थी।

विद्यानंद ने यह बात सुगना को किसी से भी साझा करने के लिए मना किया था। यद्यपि सूरज और मधु अभी छोटे थे परंतु सुगना अपनी कल्पना में आने वाले समय के बारे में सोचना शुरू कर चुकी थी वह कभी एक दिशा में सोचती कभी दूसरी दिशा में और हर बार मुंह की खाती आखिर कार यह कैसे संभव होगा।

अचानक उसके विचारों में किशोर सोनू की छवि उभर आई अपनी किशोरावस्था में सोनू एक आदर्श भाई की तरह सुगना के साथ-साथ रहता और सुगना भी एक बड़ी बहन के रूप में उसका पूरा ख्याल परंतु नियति ने जाने उनके भाग्य में क्या लिखा था कैसे उन दोनों के बीच का उज्ज्वल और बेदाग संबंध वासना की गिरफ्त में आकर धीरे धीरे बदल चुका था और अब दोनों के कमांग एक दूसरे में समा जाने के लिए तड़प रहे थे…

अपने और सोनू के संबंधों से सुगना को कुछ आंतरिक बल मिला और वह मन में ही मन ईश्वर से यही प्रार्थना करने लगी कि उसकी मंशा पूरी हो और उसका शापित पुत्र उसे अनजाने शॉप से मुक्ति पा सके।

अगली सुबह सोनू ने अपने गर्दन के दाग का मुआयना किया…निश्चित ही दाग कम हो रहा था सुगना का कहा सच हो रहा था अगले दस ग्यारह दिनों में दाग लगभग गायब सा हो गया। सोनू बेहद खुश था अपने दाग से मुक्त होकर वह आत्मविश्वास से लबरेज था…परंतु इन दिनों सुगना और लाली की कमी उसे खल रही थी। दो-तीन दिनों में शनिवार आने वाला था सप्ताहांत में सोनू बनारस जाने की तैयारी करने लगा.. जिसकी सूचना उसने पास के पीसीओ में टेलीफोन करके अपनी बहनों तक पहुंचा दी..


लाली…सोनू का बेसब्री से इंतजार करने लगी…पर सुगना सतर्क थी..उसे सोनू का इंतजार भी था पर एक डर भी था कही सोनू ने फिर…नहीं..नहीं अब बस.. जो हुआ सो हुआ। वह मन ही मन निर्णय लेने की कोशिश कर रही थी पर जांघों के बीच छुपी प्रतीक्षारत बुर सुगना के निर्णय को कमजोर करने की कोशिश कर रही थी।

नियति मुस्कुरा रही थी और विधाता द्वारा लिखी गई आगे की पटकथा को पढ़ने का प्रयास कर रही थी…

शेष अगले भाग में..

Sabse pehle to aapke wapis story karne par Hardik Dhanywad Lovely Anand Bhai

Ab ise beech me chhod kar mat jana......

Keep rocking Bro
 
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Reactions: Sanju@

Lovely Anand

Love is life
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Gap hone se khni pichhe se shuru krni pad rhi hai
par lagta hai kuchh episodes missing hain,

Not Interested in any type of Incest story,
But
this story is very special and unique though I dislike its incest part yet its extremely well written by Lovely Anand

Sabse pehle to aapke wapis story karne par Hardik Dhanywad Lovely Anand Bhai

Ab ise beech me chhod kar mat jana......

Keep rocking Bro

101 102 upadate kab milega

Nice one...
आप सभी को आपके अति सूक्ष्म पर सटीक प्रतिक्रियाओं के लिए और कहानी से जुड़े रहने के लिए धन्यवाद
 
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