भाग 128
सोनू को निरुत्तर कर सुगना मुस्कुराने लगी। सोनू ने यह आश्वासन दे कर कि वह सुगना के साथ संभोग नहीं करेगा उसका मन हल्का कर दिया था।
चल ठीक बा …बस आधा घंटा सुगना ने आगे बढ़कर कमरे की ट्यूबलाइट बंद कर दी कमरे में जल रहा नाइट लैंप अपनी रोशनी बिखेरने लगा..
तभी सोनू ने एक और धमाका किया…
“दीदी बत्ती जला के…” सोनू ने अपने चेहरे पर बला की मासूमियत लाते हुए सुगना के समक्ष अपने दोनों हाथ जोड़ लिए…
अब सुगना निरुत्तर थी…उसका कलेजा धक धक करने लगा ..कमरे की दूधिया रोशनी में सोनू के सामने ....प्यार....हे भगवान..
अब आगे..
सुगना को संशय में देखकर सोनू और अधीर हो गया। वह सुखना के समक्ष घुटनों पर आ गया और हाथ जोड़कर बोला…
“दीदी बस आज एक बार… हम तोहार सुंदर शरीर एक बार देखल चाहत बानी… “
सुगना ने सोनू की अधीरता देख कर एक बार फिर उसे समझाने की कोशिश की..
“ई कुल काम लाज के ह…अइसे भी हमार तोहार रिश्ता अलगे बा…हमारा लाज लगता”
सुगना की आवाज में नरमी सोनू ने पहचान ली थी उसे महसूस हो रहा था कि सुगना पिघल रही है और शायद उसका अनुरोध स्वीकार कर लेगी।
वह घुटनों के बल एक दो स्टेप आगे बढ़ा और अपना चेहरा सुगना के पेट से सटकर उसे अपनी बाहों में भरने की कोशिश की और बोला…
“दीदी एह सुंदर शरीर के कल्पना हम कई महीना से करत रहनी हा..इतना दिन साथ में रहला के बाद भी इकरा के देखे खातिर हमार लालसा दिन पर दिन बढ़ल जाता। बनारस पहुंचला के बाद ई कभी संभव न होइ आज एक आखरी बार हमार इच्छा पूरा कर दा..”
आखिरकार सुगना ने सोनू के सर पर प्यार से हाथ फेर कर इस अनुरोध को स्वीकार कर लिया उसके पास और कोई चारा भी न था। सोनू अब सुगना के परिवार का मुखिया बन चुका था और वह स्वयं उसे बेहद प्यार करती थी… उसकी इस उचित या अनुचित मांग को सुगना ने आखिरकार स्वीकार कर लिया।
सुगना की मौन स्वीकृति प्रकार सोनू बेहद प्रसन्न हो गया वह अपना चेहरा सुगना के सपाट पेट पर प्यार से रगड़ने लगा और उसकी हथेलियां सुगना की पीठ और कूल्हों के ऊपरी भाग को सहलाने लगी।
“ठीक बा सिर्फ आज बाद में कभी ई बात के जिद मत करीहे”
इतना कहकर सुगना ने अपने दोनों हाथों से अपनी नाईटी उतारने की कोशिश की परंतु सोनू ने रोक लिया..
“दीदी हम…” सोनू ने सुगना की नाभि को चूमते हुए कहा
सुगना के हाथ रुक गए सुगना आज सोनू का यह रूप देखकर थोड़ा आश्चर्यचकित भी थी और उत्सुक भी आखिर सोनू क्या चाहता था? क्या सोनू इतना बेशर्म हो चला था कि वह उसे अपने हाथों से उसे नग्न करना चाहता था।
क्या सोनू की नजरों में अब वह सम्मानित न रही थी…सुगना मन ही मन आहत हो गई उसने एक बार फिर सोनू से कहा..
“अब ते शायद हमार इज्जत ना करेले यही से ई अनुचित काम कईल चाहत बाड़े “
सोनू को सुगना की यह बात आहत कर गई। सुगना ने सोनू के लिए जो अब तक जो किया था वह उसका एहसान और उसका प्यार कभी नहीं भूल सकता था। आज सोनू जो कुछ भी था वह सुगना की वजह से ही था और पिछले एक हफ्ते में उसने सुगना के संसर्ग का जो अद्वितीय और अनमोल सुख प्राप्त किया था वह निराला था। सोनू सुगना के हर रूप का कायल था उसके लिए सुगना पूज्य थी.. आदरणीय थी प्यारी थी और अब वह सोनू का सर्वस्व थी। सुगना सोनू के हर उस रूप में जुड़ी हुई थी जिसमें स्त्री और पुरुष जुड़ सकते थे।
पिछले कुछ दिनों में सोनू सुगना से अंतरंग अवश्य हुआ था और संभोग के दौरान कई बार वासना के आवेग में उसने सुगना के प्रति आदर और सम्मान की सीमा को लांघा था पर अधिकांश समय उसने अपनी मर्यादा नहीं भूली थी।
सुगना की बात सुनकर सोनू ने सुगना के पैरों में अपना सर रख दिया और साष्टांग की मुद्रा में आ गया।
“दीदी ऐसा कभी ना हो सकेला हम तोहर बहुत आदर करें नी… बस एक बार ई खूबसूरत और अनूठा शरीर के देखे और प्यार करें के हमर मन बा..”
सोनू के समर्पण में सुगना के मन में उठे अविश्वास को खत्म कर दिया…
सुगना झुकी और उसने सोनू को वापस उठाने की कोशिश की और सुगना के स्नेह भरे आमंत्रण से एक बार फिर सोनू घुटने के बल बैठ चुका था…
“ठीक बा ले आपन साध बुता ले..” सुगना ने सोनू को खुला निमंत्रण दे दिया…सुगना का कलेजा धक-धक कर रहा था और सोनू की उंगलियां नाइटी को धीरे धीरे अपनी गिरफ्त में लेकर उसे धीरे-धीरे ऊपर उठाने लगीं।
नाईटी के टखनों के ऊपर आते-आते सुगना को अपनी नग्नता का एहसास होने लगा उसका छोटा भाई आंख गड़ाए उसकी खूबसूरत जांघों को देख रहा था।
सुगना वैसे भी संवेदनशील थी उसके शरीर पर पड़ने वाली निगाहों को बखूबी भांप लेती थी और आज तो सोनू साक्षात उसकी नग्न जांघों का दर्शन दूधिया रोशनी में कर रहा था।
जांघों के जोड़ पर पहुंचते पहुंचते सुगना का सब्र जबाव देने लगा उसने सोनू के सर पर उंगलियां फिराकर उसे इशारे से रोकने की कोशिश की परंतु सोनू अधीर हो चुका था उसने सुगना की नाइटी सुगना की जांघों के ऊपर कर दी।
सुगना अपनी सफेद पैंटी का शुक्रिया अदा कर रही थी जो अभी भी उसकी आबरू को घेरे हुए थी।
जिस प्रकार आक्रांताओं के आक्रमण के पश्चात पूरा राज्य छिन जाने के बाद भी राज्य की रानी किले के भीतर कुछ समय के लिए अपने आप को सुरक्षित महसूस करती है इस प्रकार सुगना की बुर पेंटी रूपी किले में खुद को सुरक्षित महसूस कर रही थी।
सोनू सुगना की नग्न जांघों और सुगना के वस्ति प्रदेश को लगातार देखे जा रहा था पेटी के ठीक ऊपर सुगना का सपाट पेट और खूबसूरत नाभि सोनू को उन्हें चूमने के लिए आमंत्रित कर रही थी।
कुछ देर तक सुगना के खूबसूरत अधोभाग को जी भर कर निहारने के बाद सोनू ने अपने होंठ सुगना के गोरे और सपाट पेट से सटा दिए वह सुगना को बेतशाशा चूमने लगा…
सुगना के बदन की खुशबू सोनू को मदहोश किए जा रही थी…
“ दीदी तू त भगवान के देन हऊ , केहू अतना सुंदर कैसे हो सकेला…” सोनू एक बार फिर सुगना को चूमे जा रहा था..
प्रशंसा सभी को प्रिय होती है और स्त्रियों को उनके तन-बदन की प्रशंसा सबसे ज्यादा पसंद होती है। सुगना भी सोनू की प्रशंसा से अभिभूत हो गई उसने सोनू के सर पर एक बार फिर प्यार से चपत लगाई और बोली..
“अब हो गइल …नू ?”
सोनू ने कोई उत्तर ना दिया अपितु सुगना की नाइटी को और ऊंचा कर उसकी चूचियों के ठीक नीचे तक ला दिया..
सुगना समझ चुकी थी कि सोनू का मन अभी नहीं भरा था उसने सोनू से कहा
“अच्छा रुक, हमरा के बिस्तर पर बैठ जाए दे।”
सुगना बिस्तर के किनारे पर आ गई और सोनू सुगना की जांघों के बीच छुपी बुर को देखने के लिए आतुर हो उठा….
अचानक ही सोनू की सुगना की खूबसूरत चुचियों का ध्यान आया जिन्हें पैंटी में कैद सुगना की अनमोल बुर को देखकर सोनू भूल चुका था।
सोनू ने सुगना की नाइटी को और ऊपर कर सुगना के शरीर से लगभग बाहर कर दिया और उसे दूर करने की कोशिश की परंतु सुगना ने अपनी नाईटी से ही अपने चेहरे को ढक लिया वह इस अवस्था में सोनू से नजरे नहीं मिलना चाह रही थी।
सोनू ने इस पर कोई आपत्ति दर्ज नहीं की और वह सुगना की खूबसूरत चुचियों को ब्रा की कैद से आजाद करने में लग गया।
सुगना की फ्रंट हुक वाली ब्रा का आखरी हुक आखिर कर फस गया और सोनू की लाख कोशिशें के बाद भी वह नहीं निकल रहा था जितना ही सोनू प्रयास कर रहा था बहुत उतना ही उलझ जा रहा था अंततः सोनू ने मजबूर होकर सुगना की ब्रा पर बल प्रयोग किया और हुक चट्ट की आवाज से टूट कर अलग हो गया। सुगना सोनू की अधीरता देख मुस्कुरा रही थी उसने फुसफुसाते हुए कहा
“अरे अतना बेचैन काहे बाड़े आराम से कर”
सोनू शर्मिंदा था पर अपने लक्ष्य सुगना की चूचियों को जी भर देखते हुए वह उन्हें अपनी हथेलियों से सहलाने लगा वह बार-बार अंगूठे से सुगना के खूबसूरत निप्पल को छूता और फिर तुरंत ही अपने अंगूठे को वहां से हटा लेता उसके मन में अब भी कहीं ना कहीं यह डर था कि कभी भी सुगना का प्रतिरोध आड़े आ सकता है और उसकी कामुक कल्पनाओं को फिर विराम लग सकता है।
सुगना की चुचियों में जादुई आकर्षण था। सुगना की नंगी चूचियां ट्यूब लाइट की रोशनी में और भी चमक रही थी। संगमरमर सी चमक और अफगानी सिल्क सी कोमलता लिए सुगना की चूचियां सोनू को आमंत्रित कर रही थी। सोनू से और रहा न गया उसने अपने होठों को गोल किया और सुगना की एक चूची को अपने मुंह में भर लिया।
सुगना इस अप्रत्याशित हमले के लिए तैयार न थी। परंतु अब वह सोनू की वासना के गिरफ्त में आ चुकी थी। एक पल के लिए उसे लगा कि वह सोनू के सर को अपने बदन से दूर धकेल दे परंतु उसने ऐसा ना किया। सोनू कभी उन चूचियों को निहारता कभी सहलाता और कभी अपने होठों से सुगना के मादक निप्पल को चूमता चाटता…
सोनू दुग्ध कलशो के बीच उलझ कर रह गया था…शायद वह कुछ मिनटों के लिए भूल गया था की सुगना की जांघों के बीच जन्नत की घाटी उसका इंतजार कर रही थी..
उधर अपनी चुचियों का मर्दन और सोनू के प्यार से सुगना के मन में भी वासना हिलोरे मारने लगीं। कुछ समय के लिए सुगना आनंद में सराबोर और होकर सोनू के साथ प्रेम का आनंद लेने लगी…अपनी जांघों के बीच रिसती हुई बुर की लार को महसूस कर उसे अपनी नग्नता का एहसास हुआ और उसने सोनू के सर को हल्का धकेलते हुए कहा..
“सोनू अब छोड़ आधा घंटा खातिर कहले रहे अब छोड़…अब हो गइल नू सब त देखिए ले ले”
सोनू ने अपना सर उठाया और दीवार की तरफ घड़ी में देखा अभी कुल 10 मिनट भी नहीं बीते थे। उसने सुगना की तरफ देखते हुए कहा.. जो अभी भी अपना चेहरा अपनी नाईटी से छुपाए हुए थी।
“दीदी जल्दी बाजी मत कर अभी 10 मिनट भी नईखे बीतल बस आज भर हमर मन रख ल “
सुगना ने भी एक बार दीवाल की तरफ देखा और फिर धीमे से बोली
“ठीक बा लेकिन अब इकरा के छोड़ दे…”
सुगना ने अपनी दोनों हथेलियां से अपनी चूचियों को ढकने का प्रयास किया।
सोनू को शरारत सूझ रही थी.. उसने सुगना की दोनों कोमल हथेलियां को अपने हाथों से पकड़ा और एक बार फिर उसकी चूचियों को नग्न कर दिया और बेहद उत्तेजक स्वरूप में बोला
“दीदी बोल ना केकरा के छोड़ दी….”
सोनू ने सुगना की हथेलियां पकड़ रखी थी सोनू के इस प्रश्न का आशय सुगना अच्छी तरह समझ चुकी थी कि सोनू क्या सुनना चाह रहा है परंतु उसने अपनी उंगलियों से एक बार फिर चूचियों की तरफ इशारा किया और अपनी हंसी पर नियंत्रण रखते हुए बोला कि
“ते जानत नईखे एकरा के कहत बानी.”
सोनू समझ सब कुछ रहा था तुरंत वह सुगना से और खुलने चाहता था
“दीदी एक बार बोल ना तोरा मुंह से हर बात अच्छा लगेला और ई कुल सुने खातिर तो हमार कान तरसे ला”
आखिर कर सुगना ने सोनू को निराश ना किया और अपनी शर्म को ताक पर रखते हुए अपने कामुक अंदाज में बोली..
“सोनू बाबू हमार चूंची के छोड़ दे…”
सुगना के मुंह से चूंची शब्द सुनकर सोनू के खड़े हुए लंड में एक करंट सी दौड़ गई उसने सुगना के आदेश की अवहेलना करते हुए एक बार फिर अपने होठों से सुगना के दोनों निप्पल को कस कर चूस लिया…
सुगना सीत्कार भर उठी…उससे और उत्तेजना सहन न हुई उसने बेहद कामुक अंदाज में बोला
“सोनू बाबू तनी धीरे से ……दुखाता”
सुगना के मुंह से यह बातें सुनकर जैसे सरयू सिंह की उत्तेजना चरम पर पहुंच जाती थी वही हाल सोनू का था। उसने सुगना की चूचियों पर से अपने होठों का दबाव हटाया और उन्हें चूमते हुए आजाद हो जाने दिया।
उधर सुगना की बुर सुगना के आदेश के बिना अपने होठों पर प्रेम रस लिए प्रेम युद्ध के लिए तैयार हो चुकी थी।
सोनू ने सुगना की चूचियां तो छोड़ दी परंतु धीरे-धीरे सुगना को चूमते हुए नाभि की तरफ पहुंचने लगा। सुगना बेचैन हो रही थी परंतु उसने अपने बदन से खेलने के लिए जो अनुमति सोनू को दी थी सोनू ने उसका अतिक्रमण नहीं किया था। सुगना सोनू की उत्तेजक गतिविधियों को स्वीकार करती रही और अपनी उत्तेजना पर नियंत्रण पाने का विफल प्रयास करती रही।
उधर सुगना की बुर उसकी पैंटी के निचले भाग को पूरी तरह गीला कर चुकी थी …सुगना के वस्ति प्रदेश पर उसकी बुर से रिस रहे प्रेम रस की मादक सुगंध छाई हुईं थी जो सोनू को उस रहस्यमई गुफा की तरफआकर्षित कर रही थी।
आखिर कार सोनू के होंठ सुगना की पैंटी तक पहुंच चुके थे…
सोनू ने अपना चेहरा ऊपर उठाया और एक बार फिर सुगना के खूबसूरत वस्ति प्रदेश का मुआयना किया। खूबसूरत जांघों के बीच सुगना का त्रिकोणीय वस्ति प्रदेश और उसके नीचे गीली पैंटी के पीछे सुगना के बुर के होठों के उभार सोनू को मदहोश कर रहे थे। सोनू सुगना की बुर देखने के लिए लालायित हो उठा।
सोनू ने अपनी उंगलियों को सुगना की पैंटी के दोनों तरफ फसाया और उसे धीरे-धीरे नीचे खींचने लगा। सुगना कसमसा कर रह गई।एक तो वह सोनू के सामने इस प्रकार नग्न होना कतई नहीं चाहती थी दूसरी ओर उसकी बुर प्रेम रस से भरी हुई उसकी उत्तेजना को स्पष्ट रूप प्रदर्शित कर रही थी। सुगना स्वाभाविक रूप से अपनी उत्तेजना को सोनू से छुपाना चाह रही थी।
सुगना ने हिम्मत जुटाकर एक बार फिर कहा..
“सोनू नीचे हाथ मत लगइहे …”
सोनू ने तुरंत ही सुगना की बात मान ली और अपनी उंगलियों को सुगना की पेंटिं से अलग कर दिया परंतु अगले ही पल अपने दांतों से सुगना की पेंटिं को नीचे खींचने लगा कभी कमर के एक तरफ से कभी दूसरे तरफ से..
सोनू के होठों से निकल रही गर्म सांसे जब सुगना के नंगे पेट पर पड़ती ह सुग़ना तड़प उठती।
धीरे धीरे सुगना की पैंटी लगभग लगभग बुर के मुहाने तक पहुंच चुकी थी परंतु जब तक सुगना अपनी कमर ऊपर ना उठाती पेटी का बाहर आना संभव न था।
सोनू के लाख जतन करने के बाद भी पेटी उससे नीचे नहीं आ रही थी सोनू का सब्र जवाब दे रहा था उसने सुगना की बुर को पेंटी के ऊपर से ही अपने होठों के बीच भरने की कोशिश की परंतु सुगना के आदेश अनुसार अपने हाथ न लगाएं।
सुगना सोनू की मंशा भली भांति जानती थी। इससे पहले भी वह एक बार सोनू के जादूई होठों का स्पर्श अपनी बुर पर महसूस कर चुकी थी।
अपनी उत्तेजना से विवश और अपने भाई सोनू को परेशान देखकर सुगना का मन पिघल गया और आखिर कार सुगना ने अपनी कमर को ऊंचा कर दिया। सोनू बेहद प्रसन्न हो गया उसने कुछ ही क्षणों में सुगना की सफेद पैंटी को उसकी खूबसूरत से जांघों से होते हुए पैरों से बाहर निकाल दिया और अब उसकी सम्मानित बहन सुगना पूरी तरह नग्न उसके समक्ष थी..
सोनू अपनी पलके झपकाए बिना, एक टक सुगना को निहार रहा था। कितना मादक बदन था सुगना का। जैसे विधाता ने अपनी सबसे खूबसूरत अप्सरा को इस धरती पर भेज दिया हो। सुगना के बदन के सारे उभार और कटाव सांचे में ढले हुए थे। सोनू की निगाहें उसके संगमरमरी बदन पर चूचियों से लेकर उसकी जांघों तक फिसल रहीं थी और उसकी खूबसूरती निहार रही थी। उधर सुगना सोनू की नजरों को अपने बदन पर महसूस कर रही थी और अपनी नग्नता का अनुभव कर रही थी।
दोनों जांघों के जोड़ पर सुगना की खूबसूरत बर बेहद आकर्षक थी.. उस पर छलक रहा प्रेम रस उसे और भी खूबसूरत बना रहा था..
नग्नता स्वयं उत्तेजना को जाग्रत करती है।
सुगना ने अपनी बुर को सोनू की नजरों से छुपाने के लिए अपनी दोनों जांघों को एक दूसरे पर चढाने की कोशिश की परंतु सोनू ने तुरंत ही सुगना की दोनों पिंडलियों को अपनी हथेलियां से पकड़कर उन्हें वापस अलग कर दिया और बेहद प्यार से बोला..
“दीदी मन भर देख लेबे दे भगवान तोहरा के बहुत सुंदर बनावले बाड़े..”
सुगना की बुर पर छलक रहा प्रेम रस ठीक वैसा ही प्रतीत हो रहा था जैसे किसी ताजे फल को चीरा लगा देने पर उससे फल का रस छलक आता है। जब सुगना ने अपनी जांघें सटाने का प्रयास किया था तब भी उसकी बुर से प्रेम रस की बूंदें छलक कर उसके गुदा द्वार की तरफ अपना रास्ता तय करने लगीं र थी..। सुगना ने अपना हाथ बढ़ाकर अपनी बुर से छलके प्रेम रस को पोंछना चाहा परत सोनू ने सुगना का हाथ बीच में ही रोक दिया।
सोनू सुगना का आशय समझ चुका था अगले ही पल सोनू की लंबी जीभ में सुगना की बुर से छलके प्रेम रस को और आगे जाने से रोक लिया और वापस उसे सुगना की बुर के होठों पर उसे लपेटते अपनी जीभ से सुगना के दाने को सहला दिया. सुगना उत्तेजना से तड़प उठी उसने अपने दोनों जांघों को फिर सटाने की कोशिश की परंतु उसकी दोनों कोमल जांघें सोनू के गर्दन पर जाकर सट गईं। सोनू को सुगना की यह प्रतिक्रिया स्वाभाविक लगी उत्तेजना चरम पर थी सोनू बेहद सावधानी से सुगना की बुर को चूम रहा था और अपनी जीभ से उसके होठों को सहला रहा था…
धीरे-धीरे सोनू की जीभ और उसके होंठ अपना कमाल दिखाने लगे सोनू लगातार अपनी खूबसूरत बहन सुगना की जांघों को सहलाए जा रहा था और बीच-बीच में उसके पेट और चूचियों को सहलाकर सुगना कर को और उत्तेजित कर रहा था।
सुगना उत्तेजना के चरम पर पहुंच चुकी थी वह बुदबुदाने लगी
“सोनू अब बस हो गएल …..आह….छोड़ दे….. आह….बस बस……. तनी धीरे से…….आई…. सुगना अपनी उत्तेजना को नियंत्रित करना चाहती थी परंतु शायद यह उसके बस में ना था। सोनू की कुशलता सुगना को स्खलन के लिए बाध्य कर रही थी। सुगना की मादक कराह सोनू के कानों तक पहुंचती और सोनू पूरी तन्मयता से सुगना को स्खलित करने के लिए जुट जाता।
और पूरी कार्य कुशलता से सुगना की बुर और उसके दाने को चूमने लगता अंततः सुगना उत्तेजना में अपनी सुध बुध खो बैठी । एक तरफ वह अपने पैर की एड़ी से सोनू की पीठ पर धीरे-धीरे प्रहार कर रही थी और उसे ऐसा करने से रोक रही थी जबकि दूसरी तरफ उसकी बुर उत्तेजना से फुल कर उछल-उछल कर सोनू के होठों से संपर्क बनाए हुए थी और स्खलन के लिए पूरी तरह तैयार थी..
सुगना ने अपनी कमर ऊपर उठाई और अमृत कलश से ढेर सारा प्रेम रस उड़ेल दिया सोनू सुगना की बुर के कंपन महसूस कर रहा था और अंदर से फूट पड़ी रसधारा को अपने होठों नाक और ठुड्ढी तक महसूस कर रहा था। उसने सुगना के कंपन रुक जाने तक अपने होठों को सटाए रखा और उसकी जांघों को सहलाता रहा… तथा उसके एड़ियों के प्रहार को अपनी पीठ पर बर्दाश्त करता रहा…सुगना की उत्तेजना के इस वेग को उसका छोटा भाई सोनू बखूबी संभाल ले गया था। धीरे-धीरे सुगना की उत्तेजना का तूफान थम गया और सोनू ने कुछ पल के लिए स्वयं को सुगना से दूर कर लिया … सुगना ने तुरंत ही करवट ले ली और वह पेट के बल लेट कर कुछ पलों के लिए बेसुध सी हो गई।
स्खलन का सुख अद्भुत होता है और आज जिस कामुकता के साथ सुगना स्खलित हुई थी यह अनूठा था..अलौकिक था। पेट के बल लेटने के पश्चात सुगना को अपनी नग्नता का एहसास भी कुछ पलों के लिए गायब सा हो गया था। वह अपनी सांसों को नियंत्रित करने का प्रयास कर रही थी।
उधर सोनू अपनी सुगना को तृप्त करने के बाद उसके नग्न कूल्हों और जांघों के पिछले भाग को निहार रहा था..कुछ समय के पश्चात सुगना ने सोनू की उंगलियों को अपनी जांघों पर महसूस किया जो धीरे-धीरे सुगना के पैर दबा रहा था।
सुगना ने अपना चेहरा एक बार और दीवार की तरफ किया घड़ी में अभी 5 मिनट बाकी थे सुगना ने कोई प्रतिरोध न किया और सोनू को अपनी जांघों से खेलने दिया। परंतु सोनू आज सारी मर्यादाएं लांघने पर आमादा था। कुछ ही देर वह सुगना के कूल्हों तक पहुंच गया उसके कूल्हों को सहलाते सहलाते न जाने कब उसने सुगना के दोनों कूल्हों को अपने हाथों से अलग कर फैला दिया और सुगना की खूबसूरत और बेहद ही आकर्षक छोटी सी गुदांज गांड़ उसकी निगाहों के सामने आ गई।
यह वह अद्भुत गुफा थी जिसे भोगने के लिए सरयू सिंह वर्षों प्रयास करते रहे थे और जिसे भोगने की सजा उन्हें ऐसी मिली थी कि सुगना उनसे हमेशा के लिए दूर हो गई थी।
सोनू उसे खूबसूरत छेद को देखकर मंत्रमुग्ध हो गया। सुगना निश्चित ही तौर पर रहस्यमई थी उसका एक-एक अंग एक-एक महाकाव्य की तरह था जिसे सोनू एक-एक कर पढ़ने का प्रयास कर रहा था । परंतु अभी वह इस विधा में एक अबोध बालक की तरह था…।
सुगना को जैसे ही एहसास हुआ कि सोनू उसकी गुदाज गांड़ को देख रहा है उसने अपने कूल्हे सिकोड़ लिए और झटके से उठ खड़ी हुई और थोड़ी तल्खी से बोली…
“अब बस अपन मर्यादा में रहा ज्यादा बेशर्म मत बन..”
सोनू सावधान हो गया परंतु उसने जो देखा था वह उसके दिलों दिमाग पर छप गया था…
सुगना अद्भुत थी अनोखी थी…और उसका हर अंग अनूठा था अलौकिक था। आधे घंटे का निर्धारित समय बीत चुका था..
सोनू और सुगना एक दूसरे के समक्ष पूरी तरह नग्न खड़े थे सोनू की निगाहें झुकी हुई थी वह सुगना के अगले निर्देश का इंतजार कर रहा था…
शेष अगले भाग में…
बहुत ही सुंदर लाजवाब और अद्भुत अप्रतिम अविस्मरणीय रोमांचकारी अपडेट है भाई मजा आ गया
फोरम पर लौट कर आने के आनंद भाई का बहुत बहुत धन्यवाद
साथ ही साथ इस कहानी को मुख्य प्रवाह पर ला के एक जबरदस्त अपडेट दे कर प्रारंभ कर दिया
वैसे आपने इस कहानी के कुछ अपडेट मुख्य प्रवाह पर नहीं दिये हैं उसे दे देगे तो मेरे जैसे पाठकों को सुविधा हो जायेगी
मैं ये कहानी पुनः पहले अध्याय से पढना प्रारंभ कर रहा हुं
धन्यवाद