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Incest आह..तनी धीरे से.....दुखाता.

Lovely Anand

Love is life
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आह ....तनी धीरे से ...दुखाता
(Exclysively for Xforum)
यह उपन्यास एक ग्रामीण युवती सुगना के जीवन के बारे में है जोअपने परिवार में पनप रहे कामुक संबंधों को रोकना तो दूर उसमें शामिल होती गई। नियति के रचे इस खेल में सुगना अपने परिवार में ही कामुक और अनुचित संबंधों को बढ़ावा देती रही, उसकी क्या मजबूरी थी? क्या उसके कदम अनुचित थे? क्या वह गलत थी? यह प्रश्न पाठक उपन्यास को पढ़कर ही बता सकते हैं। उपन्यास की शुरुआत में तत्कालीन पाठकों की रुचि को ध्यान में रखते हुए सेक्स को प्रधानता दी गई है जो समय के साथ न्यायोचित तरीके से कथानक की मांग के अनुसार दर्शाया गया है।

इस उपन्यास में इंसेस्ट एक संयोग है।
अनुक्रमणिका
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भाग 126 (मध्यांतर)
 
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snidgha12

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रक्षाबंधन पर्व पर एक भाई द्वारा बहन से चित्ताकर्षक संभावित संभोग कथा के आस्वादन की आतुरता से प्रतिक्षा...:love2:

२००वे पृष्ठ तक सफलता पुर्वक पहुंचने पर कथा एवं कथाकार का बहुमान
 
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Devisingh

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भाग 80

जैसे जैसे दिन बीत रहे थे सुगना सोनू के ख्वाबों में ज्यादा जगह बनाने लगी थी।

राखी….सुगना ….दीदी…लाली……दीदी….. आह…वो सुगना दीदी का देखना…वो …. उनकी आखों में छुपी प्यास….. सोनू की सोच कलुषित हो रही थी उसकी अपनी वासना ने उसकी सोच पर अधिकार जमा लिया था। सुगना के कौतूहल ने उसे अनजाने में ही सोनू की नजरों में अतृप्त और प्यासी युवती की श्रेणी में ला दिया था। राखी का इंतजार सोनू बेसब्री से कर रहा था.. सोनू सुगना को देखने के लिए तड़प रहा था…

शेष अगले भाग में…

सोनू के जेहन में लाली द्वारा की गई कपड़ों की मांग अब भी कायम थी। और फिर एक दिन सोनू लखनऊ के बाजार में अपनी बहनो के लिए राखी के लिए कपड़े लेने चल पड़ा।

सजे हुए बाजार में कई खूबसूरत लड़कियां जींस टॉप में उन्नत वक्षों का प्रदर्शन करते घूम रही थी कुछ सलवार सूट में भी थी जिन्होंने अपनी चुचियों पर दुपट्टा डाल रखा था। सोनू उन लड़कियों की तरफ देखता पर उनमें से कोई भी उसकी सुगना दीदी के करीब न फटकती थी…

वह रह रह कर अपने ख्वाबों में अपनी दोनों बहनों लाली और सुगना को अलग-अलग वस्त्रों में देखता और उनकी खूबसूरती की कल्पना करता। जब जब वह सुगना के बारे में सोचता उसके विचार अस्पष्ट होते। कभी वह सुगना की सुंदरता का कायल होता कभी उसके मादक बदन का और कभी अपनी दीदी के मर्यादित व्यक्तित्व का।


सिर्फ एक घटना ने सोनू के मन में सुगना के प्रति विचार बदल दिए थे। इसके पहले भी उसकी सुगना के साथ कामुक घटनाएं हुई थी पर हर बार सुगना का व्यक्तित्व सोनू के कामुक विचारों पर हावी रहता और सोनू के मन में वासना का बीज अंकुरित होने से पहले ही कुचल दिया जाता।

परंतु पिछले कुछ दिनों से हालात बदल चुके थे सुगना ने लाली और सोनू को संभोग करते हुए देखकर सोनू के मन में आ रही इस सोच से उत्पन्न होने वाली आत्मग्लानि को कुछ कम कर दिया था।

सोनू अब बेझिझक होकर सुगना और उसके कामुक बदन को याद करता। सोनू यह बात भली-भांति जानता था कि सुगना के सामने आते ही वह भीगी बिल्ली की तरह अपने उन कामुक विचारों को दरकिनार कर उसे बड़ी बहन का दर्जा देने को बाध्य होगा और उसके मन में चल रहे ख्याली पुलाव साबुन के बुलबुले की तरह टूट कर बिखर जाएंगे..

परन्तु ख्यालों पर पाबंदी लगाने वाला कोई न था। ईधर उसके ख्यालों में सुगना घूम रही थी और उधर जांघों के बीच लंड हरकत में आ रहा था। सोनू अपनी जांघों के बीच हलचल महसूस कर रहा था। रिक्शे पर बैठे-बैठे उसने अपने लंड को ऊपर की तरफ किया और उसे अपना आकार बढ़ाने की इजाजत दे दी। वह बीच-बीच में उसे सहला था और उसे धीरज धरने के लिए प्रेरित कर रहा था।

यही सब बातें सोचते सोचते उसका रिक्शा लखनऊ के बाजार में पहुंच चुका था। तरह-तरह के वस्त्र दुकानों के सामने लटके हुए थे। सोनू ने आज तक सुगना को या तो साड़ी या लहंगा चुनरी में देखा था पर शहरों में उस दौरान सलवार सूट का प्रचलन आ चुका था। सलवार सूट में महिलाओं की कमनीय काया स्पष्ट दिखाई पड़ती थी। चूचियों पर सटा हुआ सूट और कमर का वह कटाव …. सोनू कपड़ों के पीछे छुपी स्त्रीयो की स्वाभाविक खूबसूरती में खो गया।


दुकान पर लगे पुतलों में सोनू अपनी बहनों को खोजने लगा। पुतले कुछ कमजोर और पतले दिखाई पड़ रहे थे पर सोनू की दोनों बहने पूरी तरह गदराई हुई थीं। दो बच्चों की मां होने का असर उनके शरीर पर भी दिखाई पड़ रहा था। पर यह उनकी मादकता को और भी बढ़ा रहा था।

सुगना को याद कर सोनू का लंड एक बार फिर हरकत में आ रहा था। अचानक सोनू को दुकान पर टंगा एक कपड़ा पसंद आ गया सोनू ने रिक्शा रोका और उतरकर उस दुकान के अंदर आ गया अंदर एक खूबसूरत महिला कपड़े तह कर रही थी सोनू को देखते ही उसने पूछा

"भैया क्या देखना है..?"

सोनू उस महिला को बेहद ध्यान से देख रहा था महिला की उम्र उसकी अपनी बहनों से मेल खाती थी परंतु सुंदरता ….. सोनू को अपनी बहनों पर नाज था सुगना तो जैसे उसके ख्वाबों की परी बन चुकी थी। मन में यह सोच लाकर सोनू कभी लाली के प्रति अन्याय करता परंतु सुगना, सुगना और उसका आकर्षण सब पर भारी था।


सोनू दुकान के काउंटर पर आ गया और काउंटर से सट कर खड़ा हो गया। सोनू का लंड दुकान के काउंटर से रगड़ रहा था वह मीठी रगड़ सोनू को बेहद आनंददायक लग रही थी।

बहनों के लिए सूट देखते देखते सोनू ने अपने आनंद का उपाय कर लिया था…

उस महिला ने सोनू को कई सूट दिखाएं जिसमें वह सूट भी शामिल था जो सोनू की निगाहों पर चढ़ गया था।

कई सूट देखने के पश्चात आखिरकार सोनू ने दो सूट पसंद कर लिए। एक अपनी बड़ी बहन सुगना के लिए और दूसरी अपनी मदमस्त लाली के लिए। सूट स्लीवलेस तो नहीं थे परंतु बाहों पर सिर्फ चिकनकारी की हुई थी। बाकी कुर्ते पर स्तर लगा हुआ था…महिला सोनू को सूट की चूची वाली जगह पर बार-बार देखते देख कर बोली…..

आपको साइज पता है तो बता दीजिए हम तुरंत ही उसी नाप का बना देंगे..

सोनू की चोरी पकड़ी गई थी काउंटर पर काम कर रही महिला ग्राहकों की उत्सुकता और प्रश्न को भलीभांति समझती थी।

सोनू ने शर्माते हुए कहा

" 36 और 34…"

नंबर बताते समय सोनू ने सुगना और लाली की सूट का रंग तय कर दिया। हल्के हरे रंग के सूट में सुगना की कल्पना कर सोनू बाग बाग हो गया ..

सूट पसंद करने के बाद अब बारी अंतरंग वस्त्रों की थी .. सोनू ने लाली के लिए तो अंतरंग वस्त्र पसंद किए परंतु अपनी बड़ी बहन सुगना के लिए अंतर्वस्त्र खरीदने की हिमाकत नहीं कर पाया।उसने जितनी हिम्मत विचारों में इकट्ठा की थी उसे असली जामा पहनाने में नाकामयाब रहा।

लाली को कामुक अंतर्वस्त्र बेहद पसंद थे पसंद तो सुगना को भी थे पर इस समय उसे न तो इन वस्त्रों की उपयोगिता थी और नहीं आवश्यकता। सोनू उस महिला से अंतर्वस्त्र खरीदते समय बेहद शर्मा रहा था। महिला उसके सामने तरह-तरह ब्रा और पेंटी रखती जो सामान्यतः प्रयोग में लाई जाती है परंतु न तो सोनू सामान्य था और नहीं उसकी भावनाएं।

अंततः सोनू ने अपनी इच्छा स्पष्ट रूप से रख दी

"ऐसी जालीदार नहीं है क्या फैंसी वाली.."

महिला अंदर जाकर जालीदार कामुक ब्रा पेंटी का सेट ले आई और उसे देखकर सोनू की बांछें खिल उठी।

उसके जेहन में अब उस कामुक ब्रा और पेंटी में कमरे में चहलकदमी हुई करती हुई उसकी लाली दीदी घूम रही थी। वह मन ही मन लाली को घोड़ी बनाकर तथा उसकी जालीदार पेंटी को हटाकर अपना लंड डालकर उसे गचागच चोदने की कल्पना करने लगा जैसा उसने हालिया किसी ब्लू फिल्म में देखा था। उसने लाली के लिए दो ब्रा और पैंटी का सेट पसंद कर लिया।


उसी समय सोनू का एक और दोस्त उसी दुकान में आता हुआ दिखाई पड़ा जो अपनी प्रेमिका के लिए शायद कोई उपहार खरीदने ही आया था।

सोनू ने आनन-फानन में महिला को पैकिंग के निर्देश दिए और अपने दोस्त सोनू से बात करने लगा..

या तो सोनू …..या उसके दिशा निर्देश सुनने वाली महिला की गलती या नियति की चाल पर सोनू द्वारा पसंद की गई दोनो जालीदार कामुक ब्रा और पेंटी को भी उन सूट के साथ अलग अलग पैक कर दिया गया शायद पैक करने वाले ने अपने दिमाग का भी प्रयोग कर दिया था…. और अनजाने में ही सोनू की कामुकता को उसकी दोनों बहनों में बराबरी से बांट दिया था।

डब्बे को गिफ्ट रैप के पश्चात महिला ने समझदारी दिखाते हुए डिब्बे के कोने में बड़ा और छोटा लिखकर सूट में स्पष्ट अंतर कर दिया।

सोनू इस बात से कतई अनजान था कि सुगना के पैकेट में खूबसूरत जालीदार ब्रा पेंटी भी पैक है। सोनू उमंग में पैकेट लेकर वापस आने लगा। जालीदार ब्रा और पेंटी में लाली अब भी उसके दिमाग में घूम रही थी।

सोनू ने हॉस्टल पहुंच कर अपने हाथों की एक्सरसाइज की और वीर्य स्खलन के उपरांत ही उसका दिमाग शांत हुआ।

2 दिनों बाद रक्षाबंधन का पावन त्यौहार था। सोनू के लिए अगले 2 दिन 2 वर्ष जैसे बीत रहे थे … सोनू लाली से मिलने को तड़प रहा था और मन ही मन यह प्रार्थना कर रहा था कि काश उस दिन के दृश्य एक बार फिर उसी क्रम में दोहराया जाए .. सोनू के मन में चल रहे ख्याल कभी घनघोर वासना जन्य होते जिसमें सुगना भी एक भागीदार होती और कभी वह सिर्फ इस बात पर ही अत्यधिक कामोत्तेजक हो जाता कि वह अपनी बड़ी बहन की हम उम्र सहेली को उसी के सामने चोदेगा….परंतु उसे भी यह बात पता थी शायद यह दोबारा संभव नहीं पर जैसे सावन के अंधे को सब कुछ हरा हरा ही सूझता है वैसे सोनू की उम्मीदें बढ़ती जा रही थी…

उधर बनारस में सोनी सुगना और लाली तीनों सोनू का इंतजार कर रहे थे.

सोनू ने सोनी और विकास के रिश्ते को स्वीकार कर जो बड़प्पन दिखाया था उसने सोनी के दिलों दिमाग पर गहरी छाप छोड़ी थी सोनू उसका बड़ा भाई था परंतु सोनी की निगाहों में अब वह बेहद जिम्मेदार और पिता तुल्य हो चुका था।

सोनी पूरी आस्था और लगन से अपने बड़े भाई का इंतजार कर रही थी। सुगना भी सोनू के आने से बेहद प्रसन्न थी आखिर सोनू को देखे कई दिन बीत चुके थे।


पिछले कई वर्षों तक एक साथ रहने से उसका लगाव सोनू से बेहद ज्यादा हो गया था वैसे भी वह उसका छोटा और प्यारा भाई था पिछले बार के उस कामुक दृश्य को छोड़ दें तो सुगना और सोनू के संबंध बेहद आत्मीय रहे थे। खासकर सुगना की तरफ से। सोनू तो बीच-बीच में उसकी सुंदरता पर मोहित हो जाता था ।

सोनू वैसे भी अब पूरे परिवार की शान बन चुका था और सुगना अपने छोटे भाई पर नाज करती थी…परंतु जब जब सुगना के दिमाग में वह कामुक दृश्य आते उसका अंतर्मन सिहर उठता।

उसकी निगाहों में सोनू का मजबूत खूटे जैसा लंड और लाली की बुर चूदाई के दृश्य घूमने लगते। उसे सोनू का लंड अपने बाबूजी सरयू सिंह के लंड से मिलता जुलता प्रतीत होता और न जाने कब वह उस अद्भुत लंड के बारे में सोचते सोचते सुगना की जांघों के बीच चिपचिपा पन आ जाता। भाई बहन का रिश्ता कुछ ही पलों में तार-तार होने लगता …..और सुगना वापस सचेत हो जाती….

और लाली का तो कहना ही क्या इधर दोनों बहने सोनू के पसंद का सामान तैयार कर रही थी और उधर लाली अपनी जांघों के बीच उगाए अनचाहे बालों को हटाकर अपने छोटे भाई के लिए मल्ल युद्ध का अखाड़ा तैयार कर रही थी…

तीनों बहनों के लिए सोनू अलग-अलग रूप में दिखाई पड़ रहा था परंतु सुगना सबसे ज्यादा संशय में थी सोनू का यह बदला हुआ रूप के दिमाग को कतई रास ना आ रहा था परंतु उसकी जांघों के बीच वह उपेक्षित सुकुमारी अपनी पलकों पर आंसू लिए सोनू के उस रूप को रह-रहकर याद कर रही थी और सुगना का ध्यान अपनी तरफ खींच रही थी..

"ए सुगना देख बेसन जरता… कहां भुलाईल बाड़े?"

"सोनुआ के बारे में सोच तनी हां"

"वोही दिन के बारे में सोचा तले हा नू …जायदे अब कि आई तब फिर सिनेमा दिखा देब"


सुगना ने गरम छनोटा लाली की तरफ किया और मुस्कुराते हुए बोली

"ढेर पागल जैसन बोलबे त एही से दाग देब…."

लाली पीछे हटी और मुस्कुराते हुए बोली

"काश सोनुआ तोर भाई ना होखित" सुगना को यह बात समझ ना आए और जब तक वह यह बात समझती सोनी भी कमरे में आ चुकी थी सोनू को लेकर हो रही तकरार सुनकर उसने बिना बात समझे ही कहा..

"दीदी , सोनू भैया के जान से ज्यादा मानेले ओकरा बारे में कुछ मत बोला दीदी बिल्कुल ना सुनी"

"अरे वाह जब से लखनऊ से आईल बाड़ू सोनू भैया सोनू भैया रट लगावले बाडू कौन जादू कर देले बा सोनुआ" अनजाने में ही लाली ने सोनी से वह बात पूछ दी जिसका उत्तर न तो सोनी दे सकती थी और नहीं देना उचित था.. सोनी के विवाह का राज सोनी और सोनू के सीने में दफन था।

सुगना ने इस संवाद पर विराम लगाया और वह बेसन से भरी हुई कड़ाही लेकर नीचे बैठ गई और सोनी तथा लाली से कहा

"आवा सब केहूं मिलकर लड्डू बनावल जाऊ" सुगना को पता था सोनू को बेसन के लड्डू बेहद पसंद थे। सुगना को स्वयं मोतीचूर के लड्डू पसंद थे परंतु फिर भी वह अपनी पसंद को ताक पर रखकर सोनू के लिए लड्डू बना रही थी। लाली और सोनी भी सुगना का साथ दे रही थी सोनू अलग-अलग रूपों में तीनों बहनों के मन में छाया हुआ था।

और आखिरकार वह दिन आ गया जब सोनू रक्षाबंधन पर अपने घर बनारस के लिए रवाना हो गया…

रक्षाबंधन का दिन…

सोनू को आज बनारस एक्सप्रेस बेहद धीमी चलती हुई प्रतीत हो रही थी। लोहे की सलाखों के पीछे बैठा सोनू ऐसा महसूस कर रहा था जैसे वह किसी जेल में बैठा है। जब ट्रेन अकारण रूकती वह कभी व्यवस्था को कोसता कभी उन मनचले लड़कों को जो ट्रेन को चेन पुलिंग कर कर रोक दिया करते थे। उसका मन तो न जाने कबका बनारस स्टेशन पहुंच चुका था। मन में सुगना और लाली को देखने की लालसा लिए वह बेहद अधीर हो चला था।

वह अपने बैग से झांक रहे सूट के पैकेट को देखता उसके पूरे दिलो दिमाग में सनसनी दौड़ जाती है क्या सुगना दीदी आधुनिक जमाने के सूट को पहनेगी… उन्होंने आज तक तो कभी ऐसे वस्त्र नहीं पहने कहीं वह नाराज तो नहीं होंगी…. और यदि उन्होंने इससे पहनने के लिए मना कर दिया तब… सोनू के दिमाग में सिर्फ और सिर्फ प्रश्न थे …. परंतु उनका उत्तर उसकी दोनों बहने ही दे सकती थी…..


हर इंतजार का अंत होता है और सोनू का भी हुआ.. ट्रेन के धीरे होते ही सोनू अपना सामान लेकर बनारस स्टेशन पर कूद पड़ा वह भागते हुए बाहर पहुंचा और ऑटो करके तेजी से अपने घर की तरफ बढ़ चला…

सोनू ने अपने परिवार के सभी सदस्यों के लिए कुछ न कुछ गिफ्ट लाए थे परंतु सुगना और लाली का वह सूट अनोखा था..

उधर सुगना और लाली के घर में त्यौहार का माहौल था। सारे छोटे बच्चे सुबह से ही नहा धोकर तैयार थे। सोनी बच्चों को तैयार कराने में पूरी तरह मदद कर रही थी। सोनी ने बच्चों को नए नए कपड़े पहना कर खेलने भेज दिया छोटा सूरज आज न जाने कैसे सबसे पीछे हो गया था।


सोनी सूरज को कपड़े पहना रही थी और आज कई दिनों बाद सोनी ने एक बार फिर वही हरकत की उसने सूरज का अंगूठा सहला दिया। बिस्तर पर खड़ा सूरज अपनी नूनी को बढ़ते हुए देख रहा था..

"मौसी ई का कर देलू"

सूरज का यह संबोधन उसे बेहद प्यारा लगा और सोनी ने उसे छेड़ते हुए सूरज के अंगूठे को थोड़ा और सहला दिया नूनी का आकार विकास के हथियार के बराबर हो गया और सोनी शरमा गई. एक पल के लिए सोनी के दिमाग में विकास के साथ बिताए गए वह कामुक पल घूम गए सूरज सोनी के बाल खींचते हुए बोला..

"मौसी जल्दी ठीक कर ना ता मां के बुला देब"

सोनी ने प्यारे सूरज के गाल पर मीठी चपत लगाई और अपनी हथेलियां उसकी आंखों पर रखकर नीचे झुक गई.. सोनी को इस विलक्षण समस्या का कारण तो पता न था पर निदान पता था।

सूरज खिलखिला रहा था और सोनी के रेशमी बालों को पकड़कर कभी दूर करता कभी पास… सोनी मुस्कुरा रही थी और विकास को याद कर रही थी। वह विज्ञान की छात्रा सूरज के अंगूठे के इस राज को आज भी समझने का वैसे ही प्रयास कर रही थी..

अचानक सुगना ने दरवाजा खोल दिया और सोनी की अवस्था देखकर सारा माजरा समझ गई और बोली..

"ते बार बार काहे ओकर अंगूठा छूएले ?"

"अरे कपड़ा पहनावत समय भुला गईनी हां"

सुगना ने सूरज को अपनी गोद में उठा लिया और एक बार फिर उसके अंगूठे को सहला कर उसने अपने पूर्व अनुभव को प्रमाणित करने की कोशिश की और यकीनन सुगना के अंगूठे सहलाए जाने से सूरज में कोई परिवर्तन न हुआ।

जाने नियति ने सूरज को ऐसा कौन सा अभिशाप दिया था…

सुगना ने कहा

"हम जा तानी नहाए ते पूजा पाठ के तैयारी कर ले सोनू भी आवत ए होई.."


सुगना ने अपने कपड़े उसी कमरे के बिस्तर पर रख दिए जिस पर आज से कुछ महीनों पहले उसने लाली और सोनू की जबरदस्त चूदाई देखी थी और अपनी नाइटी लेकर बाथरूम में घुस गई। विलंब हो रहा था और सुगना के दिमाग सोनू घूम रहा था जो कुछ ही समय बाद आने वाला था..

सुगना बाथरूम में नग्न होकर नहाने लगी। साबुन लगाते समय सुगना के दिमाग में फिर एक बार वही दृश्य घूमने लगे…. कैसे सोनू लाली की कमर को पकड़कर गचागच उसे चोद रहा था….. सोनू का मजबूत लंड उसके दिमाग पर एक अमिट छवि छोड़ चुका था।


सुगना ने एक बार फिर अपने हाथ की कलाइयों को देखा और सोनू के लंड से उसकी तुलना करने की कोशिश की।

सुगना मुस्कुरा रही थी उसे ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे उसका अपना छोटा भाई उसके बाबू जी से किसी भी तुलना में कम न था। यदि सरयू सिंह अपनी युवावस्था में रहे होते तो शायद सोनू के जैसे ही होते। सोनू का भरा पूरा मांसल शरीर वह मजबूत भुजाएं ….हाथों पर सोनू के लंड पर दौड़ती नसें सब कुछ आदर्श था।

जैसे-जैसे सुगना सोनू की कसरती शरीर को याद करती रही वैसे वैसे उसकी हथेलियां स्वतः उसके गुप्तांगों की तरफ बढ़ चली। यह क्रिया स्वाभाविक रूप से हो रही थी। साबुन बार-बार अपनी जगह तलाश रहा था और अंततः सुगना की तर्जनी ने सुगना की उस कोमल दरार के बीच अपनी जगह बना ली।

यह क्या …..बाहर जितनी फिसलन थी अंदर उससे कई गुना ज्यादा थी… बुर् के होठों पर छलका प्रेम रस में न जाने कौन सा चुंबकीय आकर्षण पैदा किया और सुगना की तर्जनी उसकी बुर से प्रेम रस को खींच खींच कर बाहर निकालने लगी… जैसे ही भग्नासे ने तर्जनी का स्पर्श पाया वह फूल कर कुप्पा हो गया और बार-बार उस मादक स्पर्श की दरकार करने लगा…..सुगना के दांतो ने होठों को खींच कर अपना दबाव बढ़ाया जैसे वह अपनी मालकिन को होश खोने से रोक रहे हों।


शरीर के अंगों पर लगा साबुन सुगना की हथेलियों का इंतजार कर रहा था। पर सुगना की सोच पर न जाने कौन सा रस हावी हो गया था उसका सारा आकर्षण उस छोटी सी दरार पर केंद्रित हो गया था शायद जिस आनंद की भूखी सुगना कई महीनों से थी वह उसे प्राप्त हो रहा था… उसे समय का आभास भी न रहा….

सुगना को वास्तविक दुनिया में लाने का श्रेय आखिरकार लाली को गया जो दरवाजे पर खड़े होकर कह रही थी

" सुगना जल्दी कर 09 बज गइल सोनू आवहीं वाला बा.."


सुगना ने एक लंबी आह भरी और अपनी तड़पती बुर को अकेला छोड़ कर वापस अपने शरीर पर लगे साबुन के झाग हटाने लगी।

लोटे से लगातार वह अपने सर पर पानी डाल रही थी जो उसकी फूली और तनी हुई चुचियों से होते हुए जांघों के बीच बह रहा था। जैसी ही सुगना ने अपनी जांघें सटाई जांघों के बीच पानी इकट्ठा हो गया। इतनी सुंदर थी उसकी जांघें और कितना सुंदर था वह प्रेम त्रिकोण।

जिस त्रिकोण पर उसके बाबू जी सरयू सिंह सब कुछ निछावर करने को तैयार रहते थे। पिछले कई महीनों से उस त्रिकोण का कोई पूछना हार न था।। रतन को याद कर सुगना अपना मन खट्टा नहीं करना चाहती थी। उसने अपनी जांघें फैला दी और पानी को बह जाने दिया। अपनी बुर को थपथपा कर सुगना उठ खड़ी हुई और नाइटी से अपने भीगे बदन को पोछने लगी..

अपने बदन को यथासंभव पोछने के पश्चात सुगना उसी कमरे में आकर अपने वस्त्र पहनने लगी… जो गलती उस दिन अनजाने में सोनू और लाली ने की थी वही गलती आज सुगना दोहरा चुकी थी खिड़की पर लगा हुआ पर्दा थोड़ा हटा हुआ था …

सारे बच्चे के हाल में चिल्लपों मचाए हुए थे। सोनी रक्षाबंधन की तैयारियों में रंगोली बनाने में व्यस्त थी। लाली सोनू के लिए पूआ बना रही थी। सोनू को पुआ ठीक वैसे ही पसंद था जैसे सरयू सिंह को।


सोनू को दोनो पुए पसंद थे जांघों के बीच रसभरे भी और प्लेट में रखे चासनी से भीगे हुए भी।

बाहर अचानक खड़ खड़ खड़ खड़ की आवाज हुई…सोनू का ऑटो बाहर आकर रुक चुका था। दरवाजा सटा हुआ था। सोनू ने अंदर आकर अपनी बहनों को चकमा देने की सोची और वह दरवाजा धीरे से खोल कर अंदर आ गया। अंदर कमरे में सुगना के चूड़ियों की खनकने की आवाज आ रही थी। सोनू भली भांति जानता था कि घर में सिर्फ और सिर्फ उसकी सुगना दीदी ही भरपूर चूड़ियां पहनती हैं । लाली ने विधवा होने के बाद चूड़ी पहनना लगभग छोड़ कर दिया था और सोनी वह तो आधुनिक युवती थी और हाथों में 1या 2 कंगन डालकर वह मस्त रहती थी।

चूड़ियों के खड़कने से सोनू ने अंदाज कर लिया कि सुगना दीदी उसी कमरे में है..अचानक उसका ध्यान उस खुली हुई खिड़की पर गया…. और सोनू ने अपनी आंखे उस दरार पर टिका दीं….

सोनू की आंखे फटी रह गईं…

शेष अगले भाग में…
Sonu ne aisa kya dekh liya khi sugna ko nangi h bahut hot updatr
 

Lovely Anand

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Hum to intejar karte rehte h
, इंतजार का फल मीठा होता है
रक्षाबंधन पर्व पर एक भाई द्वारा बहन से चित्ताकर्षक संभावित संभोग कथा के आस्वादन की आतुरता से प्रतिक्षा...:love2:

२००वे पृष्ठ तक सफलता पुर्वक पहुंचने पर कथा एवं कथाकार का बहुमान
देखें नियति इस पवित्र पाप को कैसे अंजाम दे पाती है।
के लिए अब 20 पाठकों का साथ ही इस कहानी को आगे बढ़ाने की प्रेरणा है
Sonu ne aisa kya dekh liya khi sugna ko nangi h bahut hot updatr
पटल पर आपका स्वागत है। सोनू ने क्या देखा यह तो आपको अगले एपिसोड में ही पता चलेगा

अब तक का स्कोर 10/20
 
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Raja-

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भाग 80

जैसे जैसे दिन बीत रहे थे सुगना सोनू के ख्वाबों में ज्यादा जगह बनाने लगी थी।

राखी….सुगना ….दीदी…लाली……दीदी….. आह…वो सुगना दीदी का देखना…वो …. उनकी आखों में छुपी प्यास….. सोनू की सोच कलुषित हो रही थी उसकी अपनी वासना ने उसकी सोच पर अधिकार जमा लिया था। सुगना के कौतूहल ने उसे अनजाने में ही सोनू की नजरों में अतृप्त और प्यासी युवती की श्रेणी में ला दिया था। राखी का इंतजार सोनू बेसब्री से कर रहा था.. सोनू सुगना को देखने के लिए तड़प रहा था…

शेष अगले भाग में…

सोनू के जेहन में लाली द्वारा की गई कपड़ों की मांग अब भी कायम थी। और फिर एक दिन सोनू लखनऊ के बाजार में अपनी बहनो के लिए राखी के लिए कपड़े लेने चल पड़ा।

सजे हुए बाजार में कई खूबसूरत लड़कियां जींस टॉप में उन्नत वक्षों का प्रदर्शन करते घूम रही थी कुछ सलवार सूट में भी थी जिन्होंने अपनी चुचियों पर दुपट्टा डाल रखा था। सोनू उन लड़कियों की तरफ देखता पर उनमें से कोई भी उसकी सुगना दीदी के करीब न फटकती थी…

वह रह रह कर अपने ख्वाबों में अपनी दोनों बहनों लाली और सुगना को अलग-अलग वस्त्रों में देखता और उनकी खूबसूरती की कल्पना करता। जब जब वह सुगना के बारे में सोचता उसके विचार अस्पष्ट होते। कभी वह सुगना की सुंदरता का कायल होता कभी उसके मादक बदन का और कभी अपनी दीदी के मर्यादित व्यक्तित्व का।


सिर्फ एक घटना ने सोनू के मन में सुगना के प्रति विचार बदल दिए थे। इसके पहले भी उसकी सुगना के साथ कामुक घटनाएं हुई थी पर हर बार सुगना का व्यक्तित्व सोनू के कामुक विचारों पर हावी रहता और सोनू के मन में वासना का बीज अंकुरित होने से पहले ही कुचल दिया जाता।

परंतु पिछले कुछ दिनों से हालात बदल चुके थे सुगना ने लाली और सोनू को संभोग करते हुए देखकर सोनू के मन में आ रही इस सोच से उत्पन्न होने वाली आत्मग्लानि को कुछ कम कर दिया था।

सोनू अब बेझिझक होकर सुगना और उसके कामुक बदन को याद करता। सोनू यह बात भली-भांति जानता था कि सुगना के सामने आते ही वह भीगी बिल्ली की तरह अपने उन कामुक विचारों को दरकिनार कर उसे बड़ी बहन का दर्जा देने को बाध्य होगा और उसके मन में चल रहे ख्याली पुलाव साबुन के बुलबुले की तरह टूट कर बिखर जाएंगे..

परन्तु ख्यालों पर पाबंदी लगाने वाला कोई न था। ईधर उसके ख्यालों में सुगना घूम रही थी और उधर जांघों के बीच लंड हरकत में आ रहा था। सोनू अपनी जांघों के बीच हलचल महसूस कर रहा था। रिक्शे पर बैठे-बैठे उसने अपने लंड को ऊपर की तरफ किया और उसे अपना आकार बढ़ाने की इजाजत दे दी। वह बीच-बीच में उसे सहला था और उसे धीरज धरने के लिए प्रेरित कर रहा था।

यही सब बातें सोचते सोचते उसका रिक्शा लखनऊ के बाजार में पहुंच चुका था। तरह-तरह के वस्त्र दुकानों के सामने लटके हुए थे। सोनू ने आज तक सुगना को या तो साड़ी या लहंगा चुनरी में देखा था पर शहरों में उस दौरान सलवार सूट का प्रचलन आ चुका था। सलवार सूट में महिलाओं की कमनीय काया स्पष्ट दिखाई पड़ती थी। चूचियों पर सटा हुआ सूट और कमर का वह कटाव …. सोनू कपड़ों के पीछे छुपी स्त्रीयो की स्वाभाविक खूबसूरती में खो गया।


दुकान पर लगे पुतलों में सोनू अपनी बहनों को खोजने लगा। पुतले कुछ कमजोर और पतले दिखाई पड़ रहे थे पर सोनू की दोनों बहने पूरी तरह गदराई हुई थीं। दो बच्चों की मां होने का असर उनके शरीर पर भी दिखाई पड़ रहा था। पर यह उनकी मादकता को और भी बढ़ा रहा था।

सुगना को याद कर सोनू का लंड एक बार फिर हरकत में आ रहा था। अचानक सोनू को दुकान पर टंगा एक कपड़ा पसंद आ गया सोनू ने रिक्शा रोका और उतरकर उस दुकान के अंदर आ गया अंदर एक खूबसूरत महिला कपड़े तह कर रही थी सोनू को देखते ही उसने पूछा

"भैया क्या देखना है..?"

सोनू उस महिला को बेहद ध्यान से देख रहा था महिला की उम्र उसकी अपनी बहनों से मेल खाती थी परंतु सुंदरता ….. सोनू को अपनी बहनों पर नाज था सुगना तो जैसे उसके ख्वाबों की परी बन चुकी थी। मन में यह सोच लाकर सोनू कभी लाली के प्रति अन्याय करता परंतु सुगना, सुगना और उसका आकर्षण सब पर भारी था।


सोनू दुकान के काउंटर पर आ गया और काउंटर से सट कर खड़ा हो गया। सोनू का लंड दुकान के काउंटर से रगड़ रहा था वह मीठी रगड़ सोनू को बेहद आनंददायक लग रही थी।

बहनों के लिए सूट देखते देखते सोनू ने अपने आनंद का उपाय कर लिया था…

उस महिला ने सोनू को कई सूट दिखाएं जिसमें वह सूट भी शामिल था जो सोनू की निगाहों पर चढ़ गया था।

कई सूट देखने के पश्चात आखिरकार सोनू ने दो सूट पसंद कर लिए। एक अपनी बड़ी बहन सुगना के लिए और दूसरी अपनी मदमस्त लाली के लिए। सूट स्लीवलेस तो नहीं थे परंतु बाहों पर सिर्फ चिकनकारी की हुई थी। बाकी कुर्ते पर स्तर लगा हुआ था…महिला सोनू को सूट की चूची वाली जगह पर बार-बार देखते देख कर बोली…..

आपको साइज पता है तो बता दीजिए हम तुरंत ही उसी नाप का बना देंगे..

सोनू की चोरी पकड़ी गई थी काउंटर पर काम कर रही महिला ग्राहकों की उत्सुकता और प्रश्न को भलीभांति समझती थी।

सोनू ने शर्माते हुए कहा

" 36 और 34…"

नंबर बताते समय सोनू ने सुगना और लाली की सूट का रंग तय कर दिया। हल्के हरे रंग के सूट में सुगना की कल्पना कर सोनू बाग बाग हो गया ..

सूट पसंद करने के बाद अब बारी अंतरंग वस्त्रों की थी .. सोनू ने लाली के लिए तो अंतरंग वस्त्र पसंद किए परंतु अपनी बड़ी बहन सुगना के लिए अंतर्वस्त्र खरीदने की हिमाकत नहीं कर पाया।उसने जितनी हिम्मत विचारों में इकट्ठा की थी उसे असली जामा पहनाने में नाकामयाब रहा।

लाली को कामुक अंतर्वस्त्र बेहद पसंद थे पसंद तो सुगना को भी थे पर इस समय उसे न तो इन वस्त्रों की उपयोगिता थी और नहीं आवश्यकता। सोनू उस महिला से अंतर्वस्त्र खरीदते समय बेहद शर्मा रहा था। महिला उसके सामने तरह-तरह ब्रा और पेंटी रखती जो सामान्यतः प्रयोग में लाई जाती है परंतु न तो सोनू सामान्य था और नहीं उसकी भावनाएं।

अंततः सोनू ने अपनी इच्छा स्पष्ट रूप से रख दी

"ऐसी जालीदार नहीं है क्या फैंसी वाली.."

महिला अंदर जाकर जालीदार कामुक ब्रा पेंटी का सेट ले आई और उसे देखकर सोनू की बांछें खिल उठी।

उसके जेहन में अब उस कामुक ब्रा और पेंटी में कमरे में चहलकदमी हुई करती हुई उसकी लाली दीदी घूम रही थी। वह मन ही मन लाली को घोड़ी बनाकर तथा उसकी जालीदार पेंटी को हटाकर अपना लंड डालकर उसे गचागच चोदने की कल्पना करने लगा जैसा उसने हालिया किसी ब्लू फिल्म में देखा था। उसने लाली के लिए दो ब्रा और पैंटी का सेट पसंद कर लिया।


उसी समय सोनू का एक और दोस्त उसी दुकान में आता हुआ दिखाई पड़ा जो अपनी प्रेमिका के लिए शायद कोई उपहार खरीदने ही आया था।

सोनू ने आनन-फानन में महिला को पैकिंग के निर्देश दिए और अपने दोस्त सोनू से बात करने लगा..

या तो सोनू …..या उसके दिशा निर्देश सुनने वाली महिला की गलती या नियति की चाल पर सोनू द्वारा पसंद की गई दोनो जालीदार कामुक ब्रा और पेंटी को भी उन सूट के साथ अलग अलग पैक कर दिया गया शायद पैक करने वाले ने अपने दिमाग का भी प्रयोग कर दिया था…. और अनजाने में ही सोनू की कामुकता को उसकी दोनों बहनों में बराबरी से बांट दिया था।

डब्बे को गिफ्ट रैप के पश्चात महिला ने समझदारी दिखाते हुए डिब्बे के कोने में बड़ा और छोटा लिखकर सूट में स्पष्ट अंतर कर दिया।

सोनू इस बात से कतई अनजान था कि सुगना के पैकेट में खूबसूरत जालीदार ब्रा पेंटी भी पैक है। सोनू उमंग में पैकेट लेकर वापस आने लगा। जालीदार ब्रा और पेंटी में लाली अब भी उसके दिमाग में घूम रही थी।

सोनू ने हॉस्टल पहुंच कर अपने हाथों की एक्सरसाइज की और वीर्य स्खलन के उपरांत ही उसका दिमाग शांत हुआ।

2 दिनों बाद रक्षाबंधन का पावन त्यौहार था। सोनू के लिए अगले 2 दिन 2 वर्ष जैसे बीत रहे थे … सोनू लाली से मिलने को तड़प रहा था और मन ही मन यह प्रार्थना कर रहा था कि काश उस दिन के दृश्य एक बार फिर उसी क्रम में दोहराया जाए .. सोनू के मन में चल रहे ख्याल कभी घनघोर वासना जन्य होते जिसमें सुगना भी एक भागीदार होती और कभी वह सिर्फ इस बात पर ही अत्यधिक कामोत्तेजक हो जाता कि वह अपनी बड़ी बहन की हम उम्र सहेली को उसी के सामने चोदेगा….परंतु उसे भी यह बात पता थी शायद यह दोबारा संभव नहीं पर जैसे सावन के अंधे को सब कुछ हरा हरा ही सूझता है वैसे सोनू की उम्मीदें बढ़ती जा रही थी…

उधर बनारस में सोनी सुगना और लाली तीनों सोनू का इंतजार कर रहे थे.

सोनू ने सोनी और विकास के रिश्ते को स्वीकार कर जो बड़प्पन दिखाया था उसने सोनी के दिलों दिमाग पर गहरी छाप छोड़ी थी सोनू उसका बड़ा भाई था परंतु सोनी की निगाहों में अब वह बेहद जिम्मेदार और पिता तुल्य हो चुका था।

सोनी पूरी आस्था और लगन से अपने बड़े भाई का इंतजार कर रही थी। सुगना भी सोनू के आने से बेहद प्रसन्न थी आखिर सोनू को देखे कई दिन बीत चुके थे।


पिछले कई वर्षों तक एक साथ रहने से उसका लगाव सोनू से बेहद ज्यादा हो गया था वैसे भी वह उसका छोटा और प्यारा भाई था पिछले बार के उस कामुक दृश्य को छोड़ दें तो सुगना और सोनू के संबंध बेहद आत्मीय रहे थे। खासकर सुगना की तरफ से। सोनू तो बीच-बीच में उसकी सुंदरता पर मोहित हो जाता था ।

सोनू वैसे भी अब पूरे परिवार की शान बन चुका था और सुगना अपने छोटे भाई पर नाज करती थी…परंतु जब जब सुगना के दिमाग में वह कामुक दृश्य आते उसका अंतर्मन सिहर उठता।

उसकी निगाहों में सोनू का मजबूत खूटे जैसा लंड और लाली की बुर चूदाई के दृश्य घूमने लगते। उसे सोनू का लंड अपने बाबूजी सरयू सिंह के लंड से मिलता जुलता प्रतीत होता और न जाने कब वह उस अद्भुत लंड के बारे में सोचते सोचते सुगना की जांघों के बीच चिपचिपा पन आ जाता। भाई बहन का रिश्ता कुछ ही पलों में तार-तार होने लगता …..और सुगना वापस सचेत हो जाती….

और लाली का तो कहना ही क्या इधर दोनों बहने सोनू के पसंद का सामान तैयार कर रही थी और उधर लाली अपनी जांघों के बीच उगाए अनचाहे बालों को हटाकर अपने छोटे भाई के लिए मल्ल युद्ध का अखाड़ा तैयार कर रही थी…

तीनों बहनों के लिए सोनू अलग-अलग रूप में दिखाई पड़ रहा था परंतु सुगना सबसे ज्यादा संशय में थी सोनू का यह बदला हुआ रूप के दिमाग को कतई रास ना आ रहा था परंतु उसकी जांघों के बीच वह उपेक्षित सुकुमारी अपनी पलकों पर आंसू लिए सोनू के उस रूप को रह-रहकर याद कर रही थी और सुगना का ध्यान अपनी तरफ खींच रही थी..

"ए सुगना देख बेसन जरता… कहां भुलाईल बाड़े?"

"सोनुआ के बारे में सोच तनी हां"

"वोही दिन के बारे में सोचा तले हा नू …जायदे अब कि आई तब फिर सिनेमा दिखा देब"


सुगना ने गरम छनोटा लाली की तरफ किया और मुस्कुराते हुए बोली

"ढेर पागल जैसन बोलबे त एही से दाग देब…."

लाली पीछे हटी और मुस्कुराते हुए बोली

"काश सोनुआ तोर भाई ना होखित" सुगना को यह बात समझ ना आए और जब तक वह यह बात समझती सोनी भी कमरे में आ चुकी थी सोनू को लेकर हो रही तकरार सुनकर उसने बिना बात समझे ही कहा..

"दीदी , सोनू भैया के जान से ज्यादा मानेले ओकरा बारे में कुछ मत बोला दीदी बिल्कुल ना सुनी"

"अरे वाह जब से लखनऊ से आईल बाड़ू सोनू भैया सोनू भैया रट लगावले बाडू कौन जादू कर देले बा सोनुआ" अनजाने में ही लाली ने सोनी से वह बात पूछ दी जिसका उत्तर न तो सोनी दे सकती थी और नहीं देना उचित था.. सोनी के विवाह का राज सोनी और सोनू के सीने में दफन था।

सुगना ने इस संवाद पर विराम लगाया और वह बेसन से भरी हुई कड़ाही लेकर नीचे बैठ गई और सोनी तथा लाली से कहा

"आवा सब केहूं मिलकर लड्डू बनावल जाऊ" सुगना को पता था सोनू को बेसन के लड्डू बेहद पसंद थे। सुगना को स्वयं मोतीचूर के लड्डू पसंद थे परंतु फिर भी वह अपनी पसंद को ताक पर रखकर सोनू के लिए लड्डू बना रही थी। लाली और सोनी भी सुगना का साथ दे रही थी सोनू अलग-अलग रूपों में तीनों बहनों के मन में छाया हुआ था।

और आखिरकार वह दिन आ गया जब सोनू रक्षाबंधन पर अपने घर बनारस के लिए रवाना हो गया…

रक्षाबंधन का दिन…

सोनू को आज बनारस एक्सप्रेस बेहद धीमी चलती हुई प्रतीत हो रही थी। लोहे की सलाखों के पीछे बैठा सोनू ऐसा महसूस कर रहा था जैसे वह किसी जेल में बैठा है। जब ट्रेन अकारण रूकती वह कभी व्यवस्था को कोसता कभी उन मनचले लड़कों को जो ट्रेन को चेन पुलिंग कर कर रोक दिया करते थे। उसका मन तो न जाने कबका बनारस स्टेशन पहुंच चुका था। मन में सुगना और लाली को देखने की लालसा लिए वह बेहद अधीर हो चला था।

वह अपने बैग से झांक रहे सूट के पैकेट को देखता उसके पूरे दिलो दिमाग में सनसनी दौड़ जाती है क्या सुगना दीदी आधुनिक जमाने के सूट को पहनेगी… उन्होंने आज तक तो कभी ऐसे वस्त्र नहीं पहने कहीं वह नाराज तो नहीं होंगी…. और यदि उन्होंने इससे पहनने के लिए मना कर दिया तब… सोनू के दिमाग में सिर्फ और सिर्फ प्रश्न थे …. परंतु उनका उत्तर उसकी दोनों बहने ही दे सकती थी…..


हर इंतजार का अंत होता है और सोनू का भी हुआ.. ट्रेन के धीरे होते ही सोनू अपना सामान लेकर बनारस स्टेशन पर कूद पड़ा वह भागते हुए बाहर पहुंचा और ऑटो करके तेजी से अपने घर की तरफ बढ़ चला…

सोनू ने अपने परिवार के सभी सदस्यों के लिए कुछ न कुछ गिफ्ट लाए थे परंतु सुगना और लाली का वह सूट अनोखा था..

उधर सुगना और लाली के घर में त्यौहार का माहौल था। सारे छोटे बच्चे सुबह से ही नहा धोकर तैयार थे। सोनी बच्चों को तैयार कराने में पूरी तरह मदद कर रही थी। सोनी ने बच्चों को नए नए कपड़े पहना कर खेलने भेज दिया छोटा सूरज आज न जाने कैसे सबसे पीछे हो गया था।


सोनी सूरज को कपड़े पहना रही थी और आज कई दिनों बाद सोनी ने एक बार फिर वही हरकत की उसने सूरज का अंगूठा सहला दिया। बिस्तर पर खड़ा सूरज अपनी नूनी को बढ़ते हुए देख रहा था..

"मौसी ई का कर देलू"

सूरज का यह संबोधन उसे बेहद प्यारा लगा और सोनी ने उसे छेड़ते हुए सूरज के अंगूठे को थोड़ा और सहला दिया नूनी का आकार विकास के हथियार के बराबर हो गया और सोनी शरमा गई. एक पल के लिए सोनी के दिमाग में विकास के साथ बिताए गए वह कामुक पल घूम गए सूरज सोनी के बाल खींचते हुए बोला..

"मौसी जल्दी ठीक कर ना ता मां के बुला देब"

सोनी ने प्यारे सूरज के गाल पर मीठी चपत लगाई और अपनी हथेलियां उसकी आंखों पर रखकर नीचे झुक गई.. सोनी को इस विलक्षण समस्या का कारण तो पता न था पर निदान पता था।

सूरज खिलखिला रहा था और सोनी के रेशमी बालों को पकड़कर कभी दूर करता कभी पास… सोनी मुस्कुरा रही थी और विकास को याद कर रही थी। वह विज्ञान की छात्रा सूरज के अंगूठे के इस राज को आज भी समझने का वैसे ही प्रयास कर रही थी..

अचानक सुगना ने दरवाजा खोल दिया और सोनी की अवस्था देखकर सारा माजरा समझ गई और बोली..

"ते बार बार काहे ओकर अंगूठा छूएले ?"

"अरे कपड़ा पहनावत समय भुला गईनी हां"

सुगना ने सूरज को अपनी गोद में उठा लिया और एक बार फिर उसके अंगूठे को सहला कर उसने अपने पूर्व अनुभव को प्रमाणित करने की कोशिश की और यकीनन सुगना के अंगूठे सहलाए जाने से सूरज में कोई परिवर्तन न हुआ।

जाने नियति ने सूरज को ऐसा कौन सा अभिशाप दिया था…

सुगना ने कहा

"हम जा तानी नहाए ते पूजा पाठ के तैयारी कर ले सोनू भी आवत ए होई.."


सुगना ने अपने कपड़े उसी कमरे के बिस्तर पर रख दिए जिस पर आज से कुछ महीनों पहले उसने लाली और सोनू की जबरदस्त चूदाई देखी थी और अपनी नाइटी लेकर बाथरूम में घुस गई। विलंब हो रहा था और सुगना के दिमाग सोनू घूम रहा था जो कुछ ही समय बाद आने वाला था..

सुगना बाथरूम में नग्न होकर नहाने लगी। साबुन लगाते समय सुगना के दिमाग में फिर एक बार वही दृश्य घूमने लगे…. कैसे सोनू लाली की कमर को पकड़कर गचागच उसे चोद रहा था….. सोनू का मजबूत लंड उसके दिमाग पर एक अमिट छवि छोड़ चुका था।


सुगना ने एक बार फिर अपने हाथ की कलाइयों को देखा और सोनू के लंड से उसकी तुलना करने की कोशिश की।

सुगना मुस्कुरा रही थी उसे ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे उसका अपना छोटा भाई उसके बाबू जी से किसी भी तुलना में कम न था। यदि सरयू सिंह अपनी युवावस्था में रहे होते तो शायद सोनू के जैसे ही होते। सोनू का भरा पूरा मांसल शरीर वह मजबूत भुजाएं ….हाथों पर सोनू के लंड पर दौड़ती नसें सब कुछ आदर्श था।

जैसे-जैसे सुगना सोनू की कसरती शरीर को याद करती रही वैसे वैसे उसकी हथेलियां स्वतः उसके गुप्तांगों की तरफ बढ़ चली। यह क्रिया स्वाभाविक रूप से हो रही थी। साबुन बार-बार अपनी जगह तलाश रहा था और अंततः सुगना की तर्जनी ने सुगना की उस कोमल दरार के बीच अपनी जगह बना ली।

यह क्या …..बाहर जितनी फिसलन थी अंदर उससे कई गुना ज्यादा थी… बुर् के होठों पर छलका प्रेम रस में न जाने कौन सा चुंबकीय आकर्षण पैदा किया और सुगना की तर्जनी उसकी बुर से प्रेम रस को खींच खींच कर बाहर निकालने लगी… जैसे ही भग्नासे ने तर्जनी का स्पर्श पाया वह फूल कर कुप्पा हो गया और बार-बार उस मादक स्पर्श की दरकार करने लगा…..सुगना के दांतो ने होठों को खींच कर अपना दबाव बढ़ाया जैसे वह अपनी मालकिन को होश खोने से रोक रहे हों।


शरीर के अंगों पर लगा साबुन सुगना की हथेलियों का इंतजार कर रहा था। पर सुगना की सोच पर न जाने कौन सा रस हावी हो गया था उसका सारा आकर्षण उस छोटी सी दरार पर केंद्रित हो गया था शायद जिस आनंद की भूखी सुगना कई महीनों से थी वह उसे प्राप्त हो रहा था… उसे समय का आभास भी न रहा….

सुगना को वास्तविक दुनिया में लाने का श्रेय आखिरकार लाली को गया जो दरवाजे पर खड़े होकर कह रही थी

" सुगना जल्दी कर 09 बज गइल सोनू आवहीं वाला बा.."


सुगना ने एक लंबी आह भरी और अपनी तड़पती बुर को अकेला छोड़ कर वापस अपने शरीर पर लगे साबुन के झाग हटाने लगी।

लोटे से लगातार वह अपने सर पर पानी डाल रही थी जो उसकी फूली और तनी हुई चुचियों से होते हुए जांघों के बीच बह रहा था। जैसी ही सुगना ने अपनी जांघें सटाई जांघों के बीच पानी इकट्ठा हो गया। इतनी सुंदर थी उसकी जांघें और कितना सुंदर था वह प्रेम त्रिकोण।

जिस त्रिकोण पर उसके बाबू जी सरयू सिंह सब कुछ निछावर करने को तैयार रहते थे। पिछले कई महीनों से उस त्रिकोण का कोई पूछना हार न था।। रतन को याद कर सुगना अपना मन खट्टा नहीं करना चाहती थी। उसने अपनी जांघें फैला दी और पानी को बह जाने दिया। अपनी बुर को थपथपा कर सुगना उठ खड़ी हुई और नाइटी से अपने भीगे बदन को पोछने लगी..

अपने बदन को यथासंभव पोछने के पश्चात सुगना उसी कमरे में आकर अपने वस्त्र पहनने लगी… जो गलती उस दिन अनजाने में सोनू और लाली ने की थी वही गलती आज सुगना दोहरा चुकी थी खिड़की पर लगा हुआ पर्दा थोड़ा हटा हुआ था …

सारे बच्चे के हाल में चिल्लपों मचाए हुए थे। सोनी रक्षाबंधन की तैयारियों में रंगोली बनाने में व्यस्त थी। लाली सोनू के लिए पूआ बना रही थी। सोनू को पुआ ठीक वैसे ही पसंद था जैसे सरयू सिंह को।


सोनू को दोनो पुए पसंद थे जांघों के बीच रसभरे भी और प्लेट में रखे चासनी से भीगे हुए भी।

बाहर अचानक खड़ खड़ खड़ खड़ की आवाज हुई…सोनू का ऑटो बाहर आकर रुक चुका था। दरवाजा सटा हुआ था। सोनू ने अंदर आकर अपनी बहनों को चकमा देने की सोची और वह दरवाजा धीरे से खोल कर अंदर आ गया। अंदर कमरे में सुगना के चूड़ियों की खनकने की आवाज आ रही थी। सोनू भली भांति जानता था कि घर में सिर्फ और सिर्फ उसकी सुगना दीदी ही भरपूर चूड़ियां पहनती हैं । लाली ने विधवा होने के बाद चूड़ी पहनना लगभग छोड़ कर दिया था और सोनी वह तो आधुनिक युवती थी और हाथों में 1या 2 कंगन डालकर वह मस्त रहती थी।

चूड़ियों के खड़कने से सोनू ने अंदाज कर लिया कि सुगना दीदी उसी कमरे में है..अचानक उसका ध्यान उस खुली हुई खिड़की पर गया…. और सोनू ने अपनी आंखे उस दरार पर टिका दीं….

सोनू की आंखे फटी रह गईं…

शेष अगले भाग में…
Ab sugna bhi pagal ho rhi h sonu ke liye dekhna hoga ki sugna or sonu ki love story kesi bnegi
 

Rajajid

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भाग 80

जैसे जैसे दिन बीत रहे थे सुगना सोनू के ख्वाबों में ज्यादा जगह बनाने लगी थी।

राखी….सुगना ….दीदी…लाली……दीदी….. आह…वो सुगना दीदी का देखना…वो …. उनकी आखों में छुपी प्यास….. सोनू की सोच कलुषित हो रही थी उसकी अपनी वासना ने उसकी सोच पर अधिकार जमा लिया था। सुगना के कौतूहल ने उसे अनजाने में ही सोनू की नजरों में अतृप्त और प्यासी युवती की श्रेणी में ला दिया था। राखी का इंतजार सोनू बेसब्री से कर रहा था.. सोनू सुगना को देखने के लिए तड़प रहा था…

शेष अगले भाग में…

सोनू के जेहन में लाली द्वारा की गई कपड़ों की मांग अब भी कायम थी। और फिर एक दिन सोनू लखनऊ के बाजार में अपनी बहनो के लिए राखी के लिए कपड़े लेने चल पड़ा।

सजे हुए बाजार में कई खूबसूरत लड़कियां जींस टॉप में उन्नत वक्षों का प्रदर्शन करते घूम रही थी कुछ सलवार सूट में भी थी जिन्होंने अपनी चुचियों पर दुपट्टा डाल रखा था। सोनू उन लड़कियों की तरफ देखता पर उनमें से कोई भी उसकी सुगना दीदी के करीब न फटकती थी…

वह रह रह कर अपने ख्वाबों में अपनी दोनों बहनों लाली और सुगना को अलग-अलग वस्त्रों में देखता और उनकी खूबसूरती की कल्पना करता। जब जब वह सुगना के बारे में सोचता उसके विचार अस्पष्ट होते। कभी वह सुगना की सुंदरता का कायल होता कभी उसके मादक बदन का और कभी अपनी दीदी के मर्यादित व्यक्तित्व का।


सिर्फ एक घटना ने सोनू के मन में सुगना के प्रति विचार बदल दिए थे। इसके पहले भी उसकी सुगना के साथ कामुक घटनाएं हुई थी पर हर बार सुगना का व्यक्तित्व सोनू के कामुक विचारों पर हावी रहता और सोनू के मन में वासना का बीज अंकुरित होने से पहले ही कुचल दिया जाता।

परंतु पिछले कुछ दिनों से हालात बदल चुके थे सुगना ने लाली और सोनू को संभोग करते हुए देखकर सोनू के मन में आ रही इस सोच से उत्पन्न होने वाली आत्मग्लानि को कुछ कम कर दिया था।

सोनू अब बेझिझक होकर सुगना और उसके कामुक बदन को याद करता। सोनू यह बात भली-भांति जानता था कि सुगना के सामने आते ही वह भीगी बिल्ली की तरह अपने उन कामुक विचारों को दरकिनार कर उसे बड़ी बहन का दर्जा देने को बाध्य होगा और उसके मन में चल रहे ख्याली पुलाव साबुन के बुलबुले की तरह टूट कर बिखर जाएंगे..

परन्तु ख्यालों पर पाबंदी लगाने वाला कोई न था। ईधर उसके ख्यालों में सुगना घूम रही थी और उधर जांघों के बीच लंड हरकत में आ रहा था। सोनू अपनी जांघों के बीच हलचल महसूस कर रहा था। रिक्शे पर बैठे-बैठे उसने अपने लंड को ऊपर की तरफ किया और उसे अपना आकार बढ़ाने की इजाजत दे दी। वह बीच-बीच में उसे सहला था और उसे धीरज धरने के लिए प्रेरित कर रहा था।

यही सब बातें सोचते सोचते उसका रिक्शा लखनऊ के बाजार में पहुंच चुका था। तरह-तरह के वस्त्र दुकानों के सामने लटके हुए थे। सोनू ने आज तक सुगना को या तो साड़ी या लहंगा चुनरी में देखा था पर शहरों में उस दौरान सलवार सूट का प्रचलन आ चुका था। सलवार सूट में महिलाओं की कमनीय काया स्पष्ट दिखाई पड़ती थी। चूचियों पर सटा हुआ सूट और कमर का वह कटाव …. सोनू कपड़ों के पीछे छुपी स्त्रीयो की स्वाभाविक खूबसूरती में खो गया।


दुकान पर लगे पुतलों में सोनू अपनी बहनों को खोजने लगा। पुतले कुछ कमजोर और पतले दिखाई पड़ रहे थे पर सोनू की दोनों बहने पूरी तरह गदराई हुई थीं। दो बच्चों की मां होने का असर उनके शरीर पर भी दिखाई पड़ रहा था। पर यह उनकी मादकता को और भी बढ़ा रहा था।

सुगना को याद कर सोनू का लंड एक बार फिर हरकत में आ रहा था। अचानक सोनू को दुकान पर टंगा एक कपड़ा पसंद आ गया सोनू ने रिक्शा रोका और उतरकर उस दुकान के अंदर आ गया अंदर एक खूबसूरत महिला कपड़े तह कर रही थी सोनू को देखते ही उसने पूछा

"भैया क्या देखना है..?"

सोनू उस महिला को बेहद ध्यान से देख रहा था महिला की उम्र उसकी अपनी बहनों से मेल खाती थी परंतु सुंदरता ….. सोनू को अपनी बहनों पर नाज था सुगना तो जैसे उसके ख्वाबों की परी बन चुकी थी। मन में यह सोच लाकर सोनू कभी लाली के प्रति अन्याय करता परंतु सुगना, सुगना और उसका आकर्षण सब पर भारी था।


सोनू दुकान के काउंटर पर आ गया और काउंटर से सट कर खड़ा हो गया। सोनू का लंड दुकान के काउंटर से रगड़ रहा था वह मीठी रगड़ सोनू को बेहद आनंददायक लग रही थी।

बहनों के लिए सूट देखते देखते सोनू ने अपने आनंद का उपाय कर लिया था…

उस महिला ने सोनू को कई सूट दिखाएं जिसमें वह सूट भी शामिल था जो सोनू की निगाहों पर चढ़ गया था।

कई सूट देखने के पश्चात आखिरकार सोनू ने दो सूट पसंद कर लिए। एक अपनी बड़ी बहन सुगना के लिए और दूसरी अपनी मदमस्त लाली के लिए। सूट स्लीवलेस तो नहीं थे परंतु बाहों पर सिर्फ चिकनकारी की हुई थी। बाकी कुर्ते पर स्तर लगा हुआ था…महिला सोनू को सूट की चूची वाली जगह पर बार-बार देखते देख कर बोली…..

आपको साइज पता है तो बता दीजिए हम तुरंत ही उसी नाप का बना देंगे..

सोनू की चोरी पकड़ी गई थी काउंटर पर काम कर रही महिला ग्राहकों की उत्सुकता और प्रश्न को भलीभांति समझती थी।

सोनू ने शर्माते हुए कहा

" 36 और 34…"

नंबर बताते समय सोनू ने सुगना और लाली की सूट का रंग तय कर दिया। हल्के हरे रंग के सूट में सुगना की कल्पना कर सोनू बाग बाग हो गया ..

सूट पसंद करने के बाद अब बारी अंतरंग वस्त्रों की थी .. सोनू ने लाली के लिए तो अंतरंग वस्त्र पसंद किए परंतु अपनी बड़ी बहन सुगना के लिए अंतर्वस्त्र खरीदने की हिमाकत नहीं कर पाया।उसने जितनी हिम्मत विचारों में इकट्ठा की थी उसे असली जामा पहनाने में नाकामयाब रहा।

लाली को कामुक अंतर्वस्त्र बेहद पसंद थे पसंद तो सुगना को भी थे पर इस समय उसे न तो इन वस्त्रों की उपयोगिता थी और नहीं आवश्यकता। सोनू उस महिला से अंतर्वस्त्र खरीदते समय बेहद शर्मा रहा था। महिला उसके सामने तरह-तरह ब्रा और पेंटी रखती जो सामान्यतः प्रयोग में लाई जाती है परंतु न तो सोनू सामान्य था और नहीं उसकी भावनाएं।

अंततः सोनू ने अपनी इच्छा स्पष्ट रूप से रख दी

"ऐसी जालीदार नहीं है क्या फैंसी वाली.."

महिला अंदर जाकर जालीदार कामुक ब्रा पेंटी का सेट ले आई और उसे देखकर सोनू की बांछें खिल उठी।

उसके जेहन में अब उस कामुक ब्रा और पेंटी में कमरे में चहलकदमी हुई करती हुई उसकी लाली दीदी घूम रही थी। वह मन ही मन लाली को घोड़ी बनाकर तथा उसकी जालीदार पेंटी को हटाकर अपना लंड डालकर उसे गचागच चोदने की कल्पना करने लगा जैसा उसने हालिया किसी ब्लू फिल्म में देखा था। उसने लाली के लिए दो ब्रा और पैंटी का सेट पसंद कर लिया।


उसी समय सोनू का एक और दोस्त उसी दुकान में आता हुआ दिखाई पड़ा जो अपनी प्रेमिका के लिए शायद कोई उपहार खरीदने ही आया था।

सोनू ने आनन-फानन में महिला को पैकिंग के निर्देश दिए और अपने दोस्त सोनू से बात करने लगा..

या तो सोनू …..या उसके दिशा निर्देश सुनने वाली महिला की गलती या नियति की चाल पर सोनू द्वारा पसंद की गई दोनो जालीदार कामुक ब्रा और पेंटी को भी उन सूट के साथ अलग अलग पैक कर दिया गया शायद पैक करने वाले ने अपने दिमाग का भी प्रयोग कर दिया था…. और अनजाने में ही सोनू की कामुकता को उसकी दोनों बहनों में बराबरी से बांट दिया था।

डब्बे को गिफ्ट रैप के पश्चात महिला ने समझदारी दिखाते हुए डिब्बे के कोने में बड़ा और छोटा लिखकर सूट में स्पष्ट अंतर कर दिया।

सोनू इस बात से कतई अनजान था कि सुगना के पैकेट में खूबसूरत जालीदार ब्रा पेंटी भी पैक है। सोनू उमंग में पैकेट लेकर वापस आने लगा। जालीदार ब्रा और पेंटी में लाली अब भी उसके दिमाग में घूम रही थी।

सोनू ने हॉस्टल पहुंच कर अपने हाथों की एक्सरसाइज की और वीर्य स्खलन के उपरांत ही उसका दिमाग शांत हुआ।

2 दिनों बाद रक्षाबंधन का पावन त्यौहार था। सोनू के लिए अगले 2 दिन 2 वर्ष जैसे बीत रहे थे … सोनू लाली से मिलने को तड़प रहा था और मन ही मन यह प्रार्थना कर रहा था कि काश उस दिन के दृश्य एक बार फिर उसी क्रम में दोहराया जाए .. सोनू के मन में चल रहे ख्याल कभी घनघोर वासना जन्य होते जिसमें सुगना भी एक भागीदार होती और कभी वह सिर्फ इस बात पर ही अत्यधिक कामोत्तेजक हो जाता कि वह अपनी बड़ी बहन की हम उम्र सहेली को उसी के सामने चोदेगा….परंतु उसे भी यह बात पता थी शायद यह दोबारा संभव नहीं पर जैसे सावन के अंधे को सब कुछ हरा हरा ही सूझता है वैसे सोनू की उम्मीदें बढ़ती जा रही थी…

उधर बनारस में सोनी सुगना और लाली तीनों सोनू का इंतजार कर रहे थे.

सोनू ने सोनी और विकास के रिश्ते को स्वीकार कर जो बड़प्पन दिखाया था उसने सोनी के दिलों दिमाग पर गहरी छाप छोड़ी थी सोनू उसका बड़ा भाई था परंतु सोनी की निगाहों में अब वह बेहद जिम्मेदार और पिता तुल्य हो चुका था।

सोनी पूरी आस्था और लगन से अपने बड़े भाई का इंतजार कर रही थी। सुगना भी सोनू के आने से बेहद प्रसन्न थी आखिर सोनू को देखे कई दिन बीत चुके थे।


पिछले कई वर्षों तक एक साथ रहने से उसका लगाव सोनू से बेहद ज्यादा हो गया था वैसे भी वह उसका छोटा और प्यारा भाई था पिछले बार के उस कामुक दृश्य को छोड़ दें तो सुगना और सोनू के संबंध बेहद आत्मीय रहे थे। खासकर सुगना की तरफ से। सोनू तो बीच-बीच में उसकी सुंदरता पर मोहित हो जाता था ।

सोनू वैसे भी अब पूरे परिवार की शान बन चुका था और सुगना अपने छोटे भाई पर नाज करती थी…परंतु जब जब सुगना के दिमाग में वह कामुक दृश्य आते उसका अंतर्मन सिहर उठता।

उसकी निगाहों में सोनू का मजबूत खूटे जैसा लंड और लाली की बुर चूदाई के दृश्य घूमने लगते। उसे सोनू का लंड अपने बाबूजी सरयू सिंह के लंड से मिलता जुलता प्रतीत होता और न जाने कब वह उस अद्भुत लंड के बारे में सोचते सोचते सुगना की जांघों के बीच चिपचिपा पन आ जाता। भाई बहन का रिश्ता कुछ ही पलों में तार-तार होने लगता …..और सुगना वापस सचेत हो जाती….

और लाली का तो कहना ही क्या इधर दोनों बहने सोनू के पसंद का सामान तैयार कर रही थी और उधर लाली अपनी जांघों के बीच उगाए अनचाहे बालों को हटाकर अपने छोटे भाई के लिए मल्ल युद्ध का अखाड़ा तैयार कर रही थी…

तीनों बहनों के लिए सोनू अलग-अलग रूप में दिखाई पड़ रहा था परंतु सुगना सबसे ज्यादा संशय में थी सोनू का यह बदला हुआ रूप के दिमाग को कतई रास ना आ रहा था परंतु उसकी जांघों के बीच वह उपेक्षित सुकुमारी अपनी पलकों पर आंसू लिए सोनू के उस रूप को रह-रहकर याद कर रही थी और सुगना का ध्यान अपनी तरफ खींच रही थी..

"ए सुगना देख बेसन जरता… कहां भुलाईल बाड़े?"

"सोनुआ के बारे में सोच तनी हां"

"वोही दिन के बारे में सोचा तले हा नू …जायदे अब कि आई तब फिर सिनेमा दिखा देब"


सुगना ने गरम छनोटा लाली की तरफ किया और मुस्कुराते हुए बोली

"ढेर पागल जैसन बोलबे त एही से दाग देब…."

लाली पीछे हटी और मुस्कुराते हुए बोली

"काश सोनुआ तोर भाई ना होखित" सुगना को यह बात समझ ना आए और जब तक वह यह बात समझती सोनी भी कमरे में आ चुकी थी सोनू को लेकर हो रही तकरार सुनकर उसने बिना बात समझे ही कहा..

"दीदी , सोनू भैया के जान से ज्यादा मानेले ओकरा बारे में कुछ मत बोला दीदी बिल्कुल ना सुनी"

"अरे वाह जब से लखनऊ से आईल बाड़ू सोनू भैया सोनू भैया रट लगावले बाडू कौन जादू कर देले बा सोनुआ" अनजाने में ही लाली ने सोनी से वह बात पूछ दी जिसका उत्तर न तो सोनी दे सकती थी और नहीं देना उचित था.. सोनी के विवाह का राज सोनी और सोनू के सीने में दफन था।

सुगना ने इस संवाद पर विराम लगाया और वह बेसन से भरी हुई कड़ाही लेकर नीचे बैठ गई और सोनी तथा लाली से कहा

"आवा सब केहूं मिलकर लड्डू बनावल जाऊ" सुगना को पता था सोनू को बेसन के लड्डू बेहद पसंद थे। सुगना को स्वयं मोतीचूर के लड्डू पसंद थे परंतु फिर भी वह अपनी पसंद को ताक पर रखकर सोनू के लिए लड्डू बना रही थी। लाली और सोनी भी सुगना का साथ दे रही थी सोनू अलग-अलग रूपों में तीनों बहनों के मन में छाया हुआ था।

और आखिरकार वह दिन आ गया जब सोनू रक्षाबंधन पर अपने घर बनारस के लिए रवाना हो गया…

रक्षाबंधन का दिन…

सोनू को आज बनारस एक्सप्रेस बेहद धीमी चलती हुई प्रतीत हो रही थी। लोहे की सलाखों के पीछे बैठा सोनू ऐसा महसूस कर रहा था जैसे वह किसी जेल में बैठा है। जब ट्रेन अकारण रूकती वह कभी व्यवस्था को कोसता कभी उन मनचले लड़कों को जो ट्रेन को चेन पुलिंग कर कर रोक दिया करते थे। उसका मन तो न जाने कबका बनारस स्टेशन पहुंच चुका था। मन में सुगना और लाली को देखने की लालसा लिए वह बेहद अधीर हो चला था।

वह अपने बैग से झांक रहे सूट के पैकेट को देखता उसके पूरे दिलो दिमाग में सनसनी दौड़ जाती है क्या सुगना दीदी आधुनिक जमाने के सूट को पहनेगी… उन्होंने आज तक तो कभी ऐसे वस्त्र नहीं पहने कहीं वह नाराज तो नहीं होंगी…. और यदि उन्होंने इससे पहनने के लिए मना कर दिया तब… सोनू के दिमाग में सिर्फ और सिर्फ प्रश्न थे …. परंतु उनका उत्तर उसकी दोनों बहने ही दे सकती थी…..


हर इंतजार का अंत होता है और सोनू का भी हुआ.. ट्रेन के धीरे होते ही सोनू अपना सामान लेकर बनारस स्टेशन पर कूद पड़ा वह भागते हुए बाहर पहुंचा और ऑटो करके तेजी से अपने घर की तरफ बढ़ चला…

सोनू ने अपने परिवार के सभी सदस्यों के लिए कुछ न कुछ गिफ्ट लाए थे परंतु सुगना और लाली का वह सूट अनोखा था..

उधर सुगना और लाली के घर में त्यौहार का माहौल था। सारे छोटे बच्चे सुबह से ही नहा धोकर तैयार थे। सोनी बच्चों को तैयार कराने में पूरी तरह मदद कर रही थी। सोनी ने बच्चों को नए नए कपड़े पहना कर खेलने भेज दिया छोटा सूरज आज न जाने कैसे सबसे पीछे हो गया था।


सोनी सूरज को कपड़े पहना रही थी और आज कई दिनों बाद सोनी ने एक बार फिर वही हरकत की उसने सूरज का अंगूठा सहला दिया। बिस्तर पर खड़ा सूरज अपनी नूनी को बढ़ते हुए देख रहा था..

"मौसी ई का कर देलू"

सूरज का यह संबोधन उसे बेहद प्यारा लगा और सोनी ने उसे छेड़ते हुए सूरज के अंगूठे को थोड़ा और सहला दिया नूनी का आकार विकास के हथियार के बराबर हो गया और सोनी शरमा गई. एक पल के लिए सोनी के दिमाग में विकास के साथ बिताए गए वह कामुक पल घूम गए सूरज सोनी के बाल खींचते हुए बोला..

"मौसी जल्दी ठीक कर ना ता मां के बुला देब"

सोनी ने प्यारे सूरज के गाल पर मीठी चपत लगाई और अपनी हथेलियां उसकी आंखों पर रखकर नीचे झुक गई.. सोनी को इस विलक्षण समस्या का कारण तो पता न था पर निदान पता था।

सूरज खिलखिला रहा था और सोनी के रेशमी बालों को पकड़कर कभी दूर करता कभी पास… सोनी मुस्कुरा रही थी और विकास को याद कर रही थी। वह विज्ञान की छात्रा सूरज के अंगूठे के इस राज को आज भी समझने का वैसे ही प्रयास कर रही थी..

अचानक सुगना ने दरवाजा खोल दिया और सोनी की अवस्था देखकर सारा माजरा समझ गई और बोली..

"ते बार बार काहे ओकर अंगूठा छूएले ?"

"अरे कपड़ा पहनावत समय भुला गईनी हां"

सुगना ने सूरज को अपनी गोद में उठा लिया और एक बार फिर उसके अंगूठे को सहला कर उसने अपने पूर्व अनुभव को प्रमाणित करने की कोशिश की और यकीनन सुगना के अंगूठे सहलाए जाने से सूरज में कोई परिवर्तन न हुआ।

जाने नियति ने सूरज को ऐसा कौन सा अभिशाप दिया था…

सुगना ने कहा

"हम जा तानी नहाए ते पूजा पाठ के तैयारी कर ले सोनू भी आवत ए होई.."


सुगना ने अपने कपड़े उसी कमरे के बिस्तर पर रख दिए जिस पर आज से कुछ महीनों पहले उसने लाली और सोनू की जबरदस्त चूदाई देखी थी और अपनी नाइटी लेकर बाथरूम में घुस गई। विलंब हो रहा था और सुगना के दिमाग सोनू घूम रहा था जो कुछ ही समय बाद आने वाला था..

सुगना बाथरूम में नग्न होकर नहाने लगी। साबुन लगाते समय सुगना के दिमाग में फिर एक बार वही दृश्य घूमने लगे…. कैसे सोनू लाली की कमर को पकड़कर गचागच उसे चोद रहा था….. सोनू का मजबूत लंड उसके दिमाग पर एक अमिट छवि छोड़ चुका था।


सुगना ने एक बार फिर अपने हाथ की कलाइयों को देखा और सोनू के लंड से उसकी तुलना करने की कोशिश की।

सुगना मुस्कुरा रही थी उसे ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे उसका अपना छोटा भाई उसके बाबू जी से किसी भी तुलना में कम न था। यदि सरयू सिंह अपनी युवावस्था में रहे होते तो शायद सोनू के जैसे ही होते। सोनू का भरा पूरा मांसल शरीर वह मजबूत भुजाएं ….हाथों पर सोनू के लंड पर दौड़ती नसें सब कुछ आदर्श था।

जैसे-जैसे सुगना सोनू की कसरती शरीर को याद करती रही वैसे वैसे उसकी हथेलियां स्वतः उसके गुप्तांगों की तरफ बढ़ चली। यह क्रिया स्वाभाविक रूप से हो रही थी। साबुन बार-बार अपनी जगह तलाश रहा था और अंततः सुगना की तर्जनी ने सुगना की उस कोमल दरार के बीच अपनी जगह बना ली।

यह क्या …..बाहर जितनी फिसलन थी अंदर उससे कई गुना ज्यादा थी… बुर् के होठों पर छलका प्रेम रस में न जाने कौन सा चुंबकीय आकर्षण पैदा किया और सुगना की तर्जनी उसकी बुर से प्रेम रस को खींच खींच कर बाहर निकालने लगी… जैसे ही भग्नासे ने तर्जनी का स्पर्श पाया वह फूल कर कुप्पा हो गया और बार-बार उस मादक स्पर्श की दरकार करने लगा…..सुगना के दांतो ने होठों को खींच कर अपना दबाव बढ़ाया जैसे वह अपनी मालकिन को होश खोने से रोक रहे हों।


शरीर के अंगों पर लगा साबुन सुगना की हथेलियों का इंतजार कर रहा था। पर सुगना की सोच पर न जाने कौन सा रस हावी हो गया था उसका सारा आकर्षण उस छोटी सी दरार पर केंद्रित हो गया था शायद जिस आनंद की भूखी सुगना कई महीनों से थी वह उसे प्राप्त हो रहा था… उसे समय का आभास भी न रहा….

सुगना को वास्तविक दुनिया में लाने का श्रेय आखिरकार लाली को गया जो दरवाजे पर खड़े होकर कह रही थी

" सुगना जल्दी कर 09 बज गइल सोनू आवहीं वाला बा.."


सुगना ने एक लंबी आह भरी और अपनी तड़पती बुर को अकेला छोड़ कर वापस अपने शरीर पर लगे साबुन के झाग हटाने लगी।

लोटे से लगातार वह अपने सर पर पानी डाल रही थी जो उसकी फूली और तनी हुई चुचियों से होते हुए जांघों के बीच बह रहा था। जैसी ही सुगना ने अपनी जांघें सटाई जांघों के बीच पानी इकट्ठा हो गया। इतनी सुंदर थी उसकी जांघें और कितना सुंदर था वह प्रेम त्रिकोण।

जिस त्रिकोण पर उसके बाबू जी सरयू सिंह सब कुछ निछावर करने को तैयार रहते थे। पिछले कई महीनों से उस त्रिकोण का कोई पूछना हार न था।। रतन को याद कर सुगना अपना मन खट्टा नहीं करना चाहती थी। उसने अपनी जांघें फैला दी और पानी को बह जाने दिया। अपनी बुर को थपथपा कर सुगना उठ खड़ी हुई और नाइटी से अपने भीगे बदन को पोछने लगी..

अपने बदन को यथासंभव पोछने के पश्चात सुगना उसी कमरे में आकर अपने वस्त्र पहनने लगी… जो गलती उस दिन अनजाने में सोनू और लाली ने की थी वही गलती आज सुगना दोहरा चुकी थी खिड़की पर लगा हुआ पर्दा थोड़ा हटा हुआ था …

सारे बच्चे के हाल में चिल्लपों मचाए हुए थे। सोनी रक्षाबंधन की तैयारियों में रंगोली बनाने में व्यस्त थी। लाली सोनू के लिए पूआ बना रही थी। सोनू को पुआ ठीक वैसे ही पसंद था जैसे सरयू सिंह को।


सोनू को दोनो पुए पसंद थे जांघों के बीच रसभरे भी और प्लेट में रखे चासनी से भीगे हुए भी।

बाहर अचानक खड़ खड़ खड़ खड़ की आवाज हुई…सोनू का ऑटो बाहर आकर रुक चुका था। दरवाजा सटा हुआ था। सोनू ने अंदर आकर अपनी बहनों को चकमा देने की सोची और वह दरवाजा धीरे से खोल कर अंदर आ गया। अंदर कमरे में सुगना के चूड़ियों की खनकने की आवाज आ रही थी। सोनू भली भांति जानता था कि घर में सिर्फ और सिर्फ उसकी सुगना दीदी ही भरपूर चूड़ियां पहनती हैं । लाली ने विधवा होने के बाद चूड़ी पहनना लगभग छोड़ कर दिया था और सोनी वह तो आधुनिक युवती थी और हाथों में 1या 2 कंगन डालकर वह मस्त रहती थी।

चूड़ियों के खड़कने से सोनू ने अंदाज कर लिया कि सुगना दीदी उसी कमरे में है..अचानक उसका ध्यान उस खुली हुई खिड़की पर गया…. और सोनू ने अपनी आंखे उस दरार पर टिका दीं….

सोनू की आंखे फटी रह गईं…

शेष अगले भाग में…
Ab dekhte h ki sugna saryu singh ke liye jesi pagal usi tarah kya sonu ke liye bhi pagal hogi
 

Sugna

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भाग 80

जैसे जैसे दिन बीत रहे थे सुगना सोनू के ख्वाबों में ज्यादा जगह बनाने लगी थी।

राखी….सुगना ….दीदी…लाली……दीदी….. आह…वो सुगना दीदी का देखना…वो …. उनकी आखों में छुपी प्यास….. सोनू की सोच कलुषित हो रही थी उसकी अपनी वासना ने उसकी सोच पर अधिकार जमा लिया था। सुगना के कौतूहल ने उसे अनजाने में ही सोनू की नजरों में अतृप्त और प्यासी युवती की श्रेणी में ला दिया था। राखी का इंतजार सोनू बेसब्री से कर रहा था.. सोनू सुगना को देखने के लिए तड़प रहा था…

शेष अगले भाग में…

सोनू के जेहन में लाली द्वारा की गई कपड़ों की मांग अब भी कायम थी। और फिर एक दिन सोनू लखनऊ के बाजार में अपनी बहनो के लिए राखी के लिए कपड़े लेने चल पड़ा।

सजे हुए बाजार में कई खूबसूरत लड़कियां जींस टॉप में उन्नत वक्षों का प्रदर्शन करते घूम रही थी कुछ सलवार सूट में भी थी जिन्होंने अपनी चुचियों पर दुपट्टा डाल रखा था। सोनू उन लड़कियों की तरफ देखता पर उनमें से कोई भी उसकी सुगना दीदी के करीब न फटकती थी…

वह रह रह कर अपने ख्वाबों में अपनी दोनों बहनों लाली और सुगना को अलग-अलग वस्त्रों में देखता और उनकी खूबसूरती की कल्पना करता। जब जब वह सुगना के बारे में सोचता उसके विचार अस्पष्ट होते। कभी वह सुगना की सुंदरता का कायल होता कभी उसके मादक बदन का और कभी अपनी दीदी के मर्यादित व्यक्तित्व का।


सिर्फ एक घटना ने सोनू के मन में सुगना के प्रति विचार बदल दिए थे। इसके पहले भी उसकी सुगना के साथ कामुक घटनाएं हुई थी पर हर बार सुगना का व्यक्तित्व सोनू के कामुक विचारों पर हावी रहता और सोनू के मन में वासना का बीज अंकुरित होने से पहले ही कुचल दिया जाता।

परंतु पिछले कुछ दिनों से हालात बदल चुके थे सुगना ने लाली और सोनू को संभोग करते हुए देखकर सोनू के मन में आ रही इस सोच से उत्पन्न होने वाली आत्मग्लानि को कुछ कम कर दिया था।

सोनू अब बेझिझक होकर सुगना और उसके कामुक बदन को याद करता। सोनू यह बात भली-भांति जानता था कि सुगना के सामने आते ही वह भीगी बिल्ली की तरह अपने उन कामुक विचारों को दरकिनार कर उसे बड़ी बहन का दर्जा देने को बाध्य होगा और उसके मन में चल रहे ख्याली पुलाव साबुन के बुलबुले की तरह टूट कर बिखर जाएंगे..

परन्तु ख्यालों पर पाबंदी लगाने वाला कोई न था। ईधर उसके ख्यालों में सुगना घूम रही थी और उधर जांघों के बीच लंड हरकत में आ रहा था। सोनू अपनी जांघों के बीच हलचल महसूस कर रहा था। रिक्शे पर बैठे-बैठे उसने अपने लंड को ऊपर की तरफ किया और उसे अपना आकार बढ़ाने की इजाजत दे दी। वह बीच-बीच में उसे सहला था और उसे धीरज धरने के लिए प्रेरित कर रहा था।

यही सब बातें सोचते सोचते उसका रिक्शा लखनऊ के बाजार में पहुंच चुका था। तरह-तरह के वस्त्र दुकानों के सामने लटके हुए थे। सोनू ने आज तक सुगना को या तो साड़ी या लहंगा चुनरी में देखा था पर शहरों में उस दौरान सलवार सूट का प्रचलन आ चुका था। सलवार सूट में महिलाओं की कमनीय काया स्पष्ट दिखाई पड़ती थी। चूचियों पर सटा हुआ सूट और कमर का वह कटाव …. सोनू कपड़ों के पीछे छुपी स्त्रीयो की स्वाभाविक खूबसूरती में खो गया।


दुकान पर लगे पुतलों में सोनू अपनी बहनों को खोजने लगा। पुतले कुछ कमजोर और पतले दिखाई पड़ रहे थे पर सोनू की दोनों बहने पूरी तरह गदराई हुई थीं। दो बच्चों की मां होने का असर उनके शरीर पर भी दिखाई पड़ रहा था। पर यह उनकी मादकता को और भी बढ़ा रहा था।

सुगना को याद कर सोनू का लंड एक बार फिर हरकत में आ रहा था। अचानक सोनू को दुकान पर टंगा एक कपड़ा पसंद आ गया सोनू ने रिक्शा रोका और उतरकर उस दुकान के अंदर आ गया अंदर एक खूबसूरत महिला कपड़े तह कर रही थी सोनू को देखते ही उसने पूछा

"भैया क्या देखना है..?"

सोनू उस महिला को बेहद ध्यान से देख रहा था महिला की उम्र उसकी अपनी बहनों से मेल खाती थी परंतु सुंदरता ….. सोनू को अपनी बहनों पर नाज था सुगना तो जैसे उसके ख्वाबों की परी बन चुकी थी। मन में यह सोच लाकर सोनू कभी लाली के प्रति अन्याय करता परंतु सुगना, सुगना और उसका आकर्षण सब पर भारी था।


सोनू दुकान के काउंटर पर आ गया और काउंटर से सट कर खड़ा हो गया। सोनू का लंड दुकान के काउंटर से रगड़ रहा था वह मीठी रगड़ सोनू को बेहद आनंददायक लग रही थी।

बहनों के लिए सूट देखते देखते सोनू ने अपने आनंद का उपाय कर लिया था…

उस महिला ने सोनू को कई सूट दिखाएं जिसमें वह सूट भी शामिल था जो सोनू की निगाहों पर चढ़ गया था।

कई सूट देखने के पश्चात आखिरकार सोनू ने दो सूट पसंद कर लिए। एक अपनी बड़ी बहन सुगना के लिए और दूसरी अपनी मदमस्त लाली के लिए। सूट स्लीवलेस तो नहीं थे परंतु बाहों पर सिर्फ चिकनकारी की हुई थी। बाकी कुर्ते पर स्तर लगा हुआ था…महिला सोनू को सूट की चूची वाली जगह पर बार-बार देखते देख कर बोली…..

आपको साइज पता है तो बता दीजिए हम तुरंत ही उसी नाप का बना देंगे..

सोनू की चोरी पकड़ी गई थी काउंटर पर काम कर रही महिला ग्राहकों की उत्सुकता और प्रश्न को भलीभांति समझती थी।

सोनू ने शर्माते हुए कहा

" 36 और 34…"

नंबर बताते समय सोनू ने सुगना और लाली की सूट का रंग तय कर दिया। हल्के हरे रंग के सूट में सुगना की कल्पना कर सोनू बाग बाग हो गया ..

सूट पसंद करने के बाद अब बारी अंतरंग वस्त्रों की थी .. सोनू ने लाली के लिए तो अंतरंग वस्त्र पसंद किए परंतु अपनी बड़ी बहन सुगना के लिए अंतर्वस्त्र खरीदने की हिमाकत नहीं कर पाया।उसने जितनी हिम्मत विचारों में इकट्ठा की थी उसे असली जामा पहनाने में नाकामयाब रहा।

लाली को कामुक अंतर्वस्त्र बेहद पसंद थे पसंद तो सुगना को भी थे पर इस समय उसे न तो इन वस्त्रों की उपयोगिता थी और नहीं आवश्यकता। सोनू उस महिला से अंतर्वस्त्र खरीदते समय बेहद शर्मा रहा था। महिला उसके सामने तरह-तरह ब्रा और पेंटी रखती जो सामान्यतः प्रयोग में लाई जाती है परंतु न तो सोनू सामान्य था और नहीं उसकी भावनाएं।

अंततः सोनू ने अपनी इच्छा स्पष्ट रूप से रख दी

"ऐसी जालीदार नहीं है क्या फैंसी वाली.."

महिला अंदर जाकर जालीदार कामुक ब्रा पेंटी का सेट ले आई और उसे देखकर सोनू की बांछें खिल उठी।

उसके जेहन में अब उस कामुक ब्रा और पेंटी में कमरे में चहलकदमी हुई करती हुई उसकी लाली दीदी घूम रही थी। वह मन ही मन लाली को घोड़ी बनाकर तथा उसकी जालीदार पेंटी को हटाकर अपना लंड डालकर उसे गचागच चोदने की कल्पना करने लगा जैसा उसने हालिया किसी ब्लू फिल्म में देखा था। उसने लाली के लिए दो ब्रा और पैंटी का सेट पसंद कर लिया।


उसी समय सोनू का एक और दोस्त उसी दुकान में आता हुआ दिखाई पड़ा जो अपनी प्रेमिका के लिए शायद कोई उपहार खरीदने ही आया था।

सोनू ने आनन-फानन में महिला को पैकिंग के निर्देश दिए और अपने दोस्त सोनू से बात करने लगा..

या तो सोनू …..या उसके दिशा निर्देश सुनने वाली महिला की गलती या नियति की चाल पर सोनू द्वारा पसंद की गई दोनो जालीदार कामुक ब्रा और पेंटी को भी उन सूट के साथ अलग अलग पैक कर दिया गया शायद पैक करने वाले ने अपने दिमाग का भी प्रयोग कर दिया था…. और अनजाने में ही सोनू की कामुकता को उसकी दोनों बहनों में बराबरी से बांट दिया था।

डब्बे को गिफ्ट रैप के पश्चात महिला ने समझदारी दिखाते हुए डिब्बे के कोने में बड़ा और छोटा लिखकर सूट में स्पष्ट अंतर कर दिया।

सोनू इस बात से कतई अनजान था कि सुगना के पैकेट में खूबसूरत जालीदार ब्रा पेंटी भी पैक है। सोनू उमंग में पैकेट लेकर वापस आने लगा। जालीदार ब्रा और पेंटी में लाली अब भी उसके दिमाग में घूम रही थी।

सोनू ने हॉस्टल पहुंच कर अपने हाथों की एक्सरसाइज की और वीर्य स्खलन के उपरांत ही उसका दिमाग शांत हुआ।

2 दिनों बाद रक्षाबंधन का पावन त्यौहार था। सोनू के लिए अगले 2 दिन 2 वर्ष जैसे बीत रहे थे … सोनू लाली से मिलने को तड़प रहा था और मन ही मन यह प्रार्थना कर रहा था कि काश उस दिन के दृश्य एक बार फिर उसी क्रम में दोहराया जाए .. सोनू के मन में चल रहे ख्याल कभी घनघोर वासना जन्य होते जिसमें सुगना भी एक भागीदार होती और कभी वह सिर्फ इस बात पर ही अत्यधिक कामोत्तेजक हो जाता कि वह अपनी बड़ी बहन की हम उम्र सहेली को उसी के सामने चोदेगा….परंतु उसे भी यह बात पता थी शायद यह दोबारा संभव नहीं पर जैसे सावन के अंधे को सब कुछ हरा हरा ही सूझता है वैसे सोनू की उम्मीदें बढ़ती जा रही थी…

उधर बनारस में सोनी सुगना और लाली तीनों सोनू का इंतजार कर रहे थे.

सोनू ने सोनी और विकास के रिश्ते को स्वीकार कर जो बड़प्पन दिखाया था उसने सोनी के दिलों दिमाग पर गहरी छाप छोड़ी थी सोनू उसका बड़ा भाई था परंतु सोनी की निगाहों में अब वह बेहद जिम्मेदार और पिता तुल्य हो चुका था।

सोनी पूरी आस्था और लगन से अपने बड़े भाई का इंतजार कर रही थी। सुगना भी सोनू के आने से बेहद प्रसन्न थी आखिर सोनू को देखे कई दिन बीत चुके थे।


पिछले कई वर्षों तक एक साथ रहने से उसका लगाव सोनू से बेहद ज्यादा हो गया था वैसे भी वह उसका छोटा और प्यारा भाई था पिछले बार के उस कामुक दृश्य को छोड़ दें तो सुगना और सोनू के संबंध बेहद आत्मीय रहे थे। खासकर सुगना की तरफ से। सोनू तो बीच-बीच में उसकी सुंदरता पर मोहित हो जाता था ।

सोनू वैसे भी अब पूरे परिवार की शान बन चुका था और सुगना अपने छोटे भाई पर नाज करती थी…परंतु जब जब सुगना के दिमाग में वह कामुक दृश्य आते उसका अंतर्मन सिहर उठता।

उसकी निगाहों में सोनू का मजबूत खूटे जैसा लंड और लाली की बुर चूदाई के दृश्य घूमने लगते। उसे सोनू का लंड अपने बाबूजी सरयू सिंह के लंड से मिलता जुलता प्रतीत होता और न जाने कब वह उस अद्भुत लंड के बारे में सोचते सोचते सुगना की जांघों के बीच चिपचिपा पन आ जाता। भाई बहन का रिश्ता कुछ ही पलों में तार-तार होने लगता …..और सुगना वापस सचेत हो जाती….

और लाली का तो कहना ही क्या इधर दोनों बहने सोनू के पसंद का सामान तैयार कर रही थी और उधर लाली अपनी जांघों के बीच उगाए अनचाहे बालों को हटाकर अपने छोटे भाई के लिए मल्ल युद्ध का अखाड़ा तैयार कर रही थी…

तीनों बहनों के लिए सोनू अलग-अलग रूप में दिखाई पड़ रहा था परंतु सुगना सबसे ज्यादा संशय में थी सोनू का यह बदला हुआ रूप के दिमाग को कतई रास ना आ रहा था परंतु उसकी जांघों के बीच वह उपेक्षित सुकुमारी अपनी पलकों पर आंसू लिए सोनू के उस रूप को रह-रहकर याद कर रही थी और सुगना का ध्यान अपनी तरफ खींच रही थी..

"ए सुगना देख बेसन जरता… कहां भुलाईल बाड़े?"

"सोनुआ के बारे में सोच तनी हां"

"वोही दिन के बारे में सोचा तले हा नू …जायदे अब कि आई तब फिर सिनेमा दिखा देब"


सुगना ने गरम छनोटा लाली की तरफ किया और मुस्कुराते हुए बोली

"ढेर पागल जैसन बोलबे त एही से दाग देब…."

लाली पीछे हटी और मुस्कुराते हुए बोली

"काश सोनुआ तोर भाई ना होखित" सुगना को यह बात समझ ना आए और जब तक वह यह बात समझती सोनी भी कमरे में आ चुकी थी सोनू को लेकर हो रही तकरार सुनकर उसने बिना बात समझे ही कहा..

"दीदी , सोनू भैया के जान से ज्यादा मानेले ओकरा बारे में कुछ मत बोला दीदी बिल्कुल ना सुनी"

"अरे वाह जब से लखनऊ से आईल बाड़ू सोनू भैया सोनू भैया रट लगावले बाडू कौन जादू कर देले बा सोनुआ" अनजाने में ही लाली ने सोनी से वह बात पूछ दी जिसका उत्तर न तो सोनी दे सकती थी और नहीं देना उचित था.. सोनी के विवाह का राज सोनी और सोनू के सीने में दफन था।

सुगना ने इस संवाद पर विराम लगाया और वह बेसन से भरी हुई कड़ाही लेकर नीचे बैठ गई और सोनी तथा लाली से कहा

"आवा सब केहूं मिलकर लड्डू बनावल जाऊ" सुगना को पता था सोनू को बेसन के लड्डू बेहद पसंद थे। सुगना को स्वयं मोतीचूर के लड्डू पसंद थे परंतु फिर भी वह अपनी पसंद को ताक पर रखकर सोनू के लिए लड्डू बना रही थी। लाली और सोनी भी सुगना का साथ दे रही थी सोनू अलग-अलग रूपों में तीनों बहनों के मन में छाया हुआ था।

और आखिरकार वह दिन आ गया जब सोनू रक्षाबंधन पर अपने घर बनारस के लिए रवाना हो गया…

रक्षाबंधन का दिन…

सोनू को आज बनारस एक्सप्रेस बेहद धीमी चलती हुई प्रतीत हो रही थी। लोहे की सलाखों के पीछे बैठा सोनू ऐसा महसूस कर रहा था जैसे वह किसी जेल में बैठा है। जब ट्रेन अकारण रूकती वह कभी व्यवस्था को कोसता कभी उन मनचले लड़कों को जो ट्रेन को चेन पुलिंग कर कर रोक दिया करते थे। उसका मन तो न जाने कबका बनारस स्टेशन पहुंच चुका था। मन में सुगना और लाली को देखने की लालसा लिए वह बेहद अधीर हो चला था।

वह अपने बैग से झांक रहे सूट के पैकेट को देखता उसके पूरे दिलो दिमाग में सनसनी दौड़ जाती है क्या सुगना दीदी आधुनिक जमाने के सूट को पहनेगी… उन्होंने आज तक तो कभी ऐसे वस्त्र नहीं पहने कहीं वह नाराज तो नहीं होंगी…. और यदि उन्होंने इससे पहनने के लिए मना कर दिया तब… सोनू के दिमाग में सिर्फ और सिर्फ प्रश्न थे …. परंतु उनका उत्तर उसकी दोनों बहने ही दे सकती थी…..


हर इंतजार का अंत होता है और सोनू का भी हुआ.. ट्रेन के धीरे होते ही सोनू अपना सामान लेकर बनारस स्टेशन पर कूद पड़ा वह भागते हुए बाहर पहुंचा और ऑटो करके तेजी से अपने घर की तरफ बढ़ चला…

सोनू ने अपने परिवार के सभी सदस्यों के लिए कुछ न कुछ गिफ्ट लाए थे परंतु सुगना और लाली का वह सूट अनोखा था..

उधर सुगना और लाली के घर में त्यौहार का माहौल था। सारे छोटे बच्चे सुबह से ही नहा धोकर तैयार थे। सोनी बच्चों को तैयार कराने में पूरी तरह मदद कर रही थी। सोनी ने बच्चों को नए नए कपड़े पहना कर खेलने भेज दिया छोटा सूरज आज न जाने कैसे सबसे पीछे हो गया था।


सोनी सूरज को कपड़े पहना रही थी और आज कई दिनों बाद सोनी ने एक बार फिर वही हरकत की उसने सूरज का अंगूठा सहला दिया। बिस्तर पर खड़ा सूरज अपनी नूनी को बढ़ते हुए देख रहा था..

"मौसी ई का कर देलू"

सूरज का यह संबोधन उसे बेहद प्यारा लगा और सोनी ने उसे छेड़ते हुए सूरज के अंगूठे को थोड़ा और सहला दिया नूनी का आकार विकास के हथियार के बराबर हो गया और सोनी शरमा गई. एक पल के लिए सोनी के दिमाग में विकास के साथ बिताए गए वह कामुक पल घूम गए सूरज सोनी के बाल खींचते हुए बोला..

"मौसी जल्दी ठीक कर ना ता मां के बुला देब"

सोनी ने प्यारे सूरज के गाल पर मीठी चपत लगाई और अपनी हथेलियां उसकी आंखों पर रखकर नीचे झुक गई.. सोनी को इस विलक्षण समस्या का कारण तो पता न था पर निदान पता था।

सूरज खिलखिला रहा था और सोनी के रेशमी बालों को पकड़कर कभी दूर करता कभी पास… सोनी मुस्कुरा रही थी और विकास को याद कर रही थी। वह विज्ञान की छात्रा सूरज के अंगूठे के इस राज को आज भी समझने का वैसे ही प्रयास कर रही थी..

अचानक सुगना ने दरवाजा खोल दिया और सोनी की अवस्था देखकर सारा माजरा समझ गई और बोली..

"ते बार बार काहे ओकर अंगूठा छूएले ?"

"अरे कपड़ा पहनावत समय भुला गईनी हां"

सुगना ने सूरज को अपनी गोद में उठा लिया और एक बार फिर उसके अंगूठे को सहला कर उसने अपने पूर्व अनुभव को प्रमाणित करने की कोशिश की और यकीनन सुगना के अंगूठे सहलाए जाने से सूरज में कोई परिवर्तन न हुआ।

जाने नियति ने सूरज को ऐसा कौन सा अभिशाप दिया था…

सुगना ने कहा

"हम जा तानी नहाए ते पूजा पाठ के तैयारी कर ले सोनू भी आवत ए होई.."


सुगना ने अपने कपड़े उसी कमरे के बिस्तर पर रख दिए जिस पर आज से कुछ महीनों पहले उसने लाली और सोनू की जबरदस्त चूदाई देखी थी और अपनी नाइटी लेकर बाथरूम में घुस गई। विलंब हो रहा था और सुगना के दिमाग सोनू घूम रहा था जो कुछ ही समय बाद आने वाला था..

सुगना बाथरूम में नग्न होकर नहाने लगी। साबुन लगाते समय सुगना के दिमाग में फिर एक बार वही दृश्य घूमने लगे…. कैसे सोनू लाली की कमर को पकड़कर गचागच उसे चोद रहा था….. सोनू का मजबूत लंड उसके दिमाग पर एक अमिट छवि छोड़ चुका था।


सुगना ने एक बार फिर अपने हाथ की कलाइयों को देखा और सोनू के लंड से उसकी तुलना करने की कोशिश की।

सुगना मुस्कुरा रही थी उसे ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे उसका अपना छोटा भाई उसके बाबू जी से किसी भी तुलना में कम न था। यदि सरयू सिंह अपनी युवावस्था में रहे होते तो शायद सोनू के जैसे ही होते। सोनू का भरा पूरा मांसल शरीर वह मजबूत भुजाएं ….हाथों पर सोनू के लंड पर दौड़ती नसें सब कुछ आदर्श था।

जैसे-जैसे सुगना सोनू की कसरती शरीर को याद करती रही वैसे वैसे उसकी हथेलियां स्वतः उसके गुप्तांगों की तरफ बढ़ चली। यह क्रिया स्वाभाविक रूप से हो रही थी। साबुन बार-बार अपनी जगह तलाश रहा था और अंततः सुगना की तर्जनी ने सुगना की उस कोमल दरार के बीच अपनी जगह बना ली।

यह क्या …..बाहर जितनी फिसलन थी अंदर उससे कई गुना ज्यादा थी… बुर् के होठों पर छलका प्रेम रस में न जाने कौन सा चुंबकीय आकर्षण पैदा किया और सुगना की तर्जनी उसकी बुर से प्रेम रस को खींच खींच कर बाहर निकालने लगी… जैसे ही भग्नासे ने तर्जनी का स्पर्श पाया वह फूल कर कुप्पा हो गया और बार-बार उस मादक स्पर्श की दरकार करने लगा…..सुगना के दांतो ने होठों को खींच कर अपना दबाव बढ़ाया जैसे वह अपनी मालकिन को होश खोने से रोक रहे हों।


शरीर के अंगों पर लगा साबुन सुगना की हथेलियों का इंतजार कर रहा था। पर सुगना की सोच पर न जाने कौन सा रस हावी हो गया था उसका सारा आकर्षण उस छोटी सी दरार पर केंद्रित हो गया था शायद जिस आनंद की भूखी सुगना कई महीनों से थी वह उसे प्राप्त हो रहा था… उसे समय का आभास भी न रहा….

सुगना को वास्तविक दुनिया में लाने का श्रेय आखिरकार लाली को गया जो दरवाजे पर खड़े होकर कह रही थी

" सुगना जल्दी कर 09 बज गइल सोनू आवहीं वाला बा.."


सुगना ने एक लंबी आह भरी और अपनी तड़पती बुर को अकेला छोड़ कर वापस अपने शरीर पर लगे साबुन के झाग हटाने लगी।

लोटे से लगातार वह अपने सर पर पानी डाल रही थी जो उसकी फूली और तनी हुई चुचियों से होते हुए जांघों के बीच बह रहा था। जैसी ही सुगना ने अपनी जांघें सटाई जांघों के बीच पानी इकट्ठा हो गया। इतनी सुंदर थी उसकी जांघें और कितना सुंदर था वह प्रेम त्रिकोण।

जिस त्रिकोण पर उसके बाबू जी सरयू सिंह सब कुछ निछावर करने को तैयार रहते थे। पिछले कई महीनों से उस त्रिकोण का कोई पूछना हार न था।। रतन को याद कर सुगना अपना मन खट्टा नहीं करना चाहती थी। उसने अपनी जांघें फैला दी और पानी को बह जाने दिया। अपनी बुर को थपथपा कर सुगना उठ खड़ी हुई और नाइटी से अपने भीगे बदन को पोछने लगी..

अपने बदन को यथासंभव पोछने के पश्चात सुगना उसी कमरे में आकर अपने वस्त्र पहनने लगी… जो गलती उस दिन अनजाने में सोनू और लाली ने की थी वही गलती आज सुगना दोहरा चुकी थी खिड़की पर लगा हुआ पर्दा थोड़ा हटा हुआ था …

सारे बच्चे के हाल में चिल्लपों मचाए हुए थे। सोनी रक्षाबंधन की तैयारियों में रंगोली बनाने में व्यस्त थी। लाली सोनू के लिए पूआ बना रही थी। सोनू को पुआ ठीक वैसे ही पसंद था जैसे सरयू सिंह को।


सोनू को दोनो पुए पसंद थे जांघों के बीच रसभरे भी और प्लेट में रखे चासनी से भीगे हुए भी।

बाहर अचानक खड़ खड़ खड़ खड़ की आवाज हुई…सोनू का ऑटो बाहर आकर रुक चुका था। दरवाजा सटा हुआ था। सोनू ने अंदर आकर अपनी बहनों को चकमा देने की सोची और वह दरवाजा धीरे से खोल कर अंदर आ गया। अंदर कमरे में सुगना के चूड़ियों की खनकने की आवाज आ रही थी। सोनू भली भांति जानता था कि घर में सिर्फ और सिर्फ उसकी सुगना दीदी ही भरपूर चूड़ियां पहनती हैं । लाली ने विधवा होने के बाद चूड़ी पहनना लगभग छोड़ कर दिया था और सोनी वह तो आधुनिक युवती थी और हाथों में 1या 2 कंगन डालकर वह मस्त रहती थी।

चूड़ियों के खड़कने से सोनू ने अंदाज कर लिया कि सुगना दीदी उसी कमरे में है..अचानक उसका ध्यान उस खुली हुई खिड़की पर गया…. और सोनू ने अपनी आंखे उस दरार पर टिका दीं….

सोनू की आंखे फटी रह गईं…

शेष अगले भाग में…
Ab lag raha h ki sugna ki pyas bujhane ke liye sonu a gya h
 

Sahidgi

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भाग 80

जैसे जैसे दिन बीत रहे थे सुगना सोनू के ख्वाबों में ज्यादा जगह बनाने लगी थी।

राखी….सुगना ….दीदी…लाली……दीदी….. आह…वो सुगना दीदी का देखना…वो …. उनकी आखों में छुपी प्यास….. सोनू की सोच कलुषित हो रही थी उसकी अपनी वासना ने उसकी सोच पर अधिकार जमा लिया था। सुगना के कौतूहल ने उसे अनजाने में ही सोनू की नजरों में अतृप्त और प्यासी युवती की श्रेणी में ला दिया था। राखी का इंतजार सोनू बेसब्री से कर रहा था.. सोनू सुगना को देखने के लिए तड़प रहा था…

शेष अगले भाग में…

सोनू के जेहन में लाली द्वारा की गई कपड़ों की मांग अब भी कायम थी। और फिर एक दिन सोनू लखनऊ के बाजार में अपनी बहनो के लिए राखी के लिए कपड़े लेने चल पड़ा।

सजे हुए बाजार में कई खूबसूरत लड़कियां जींस टॉप में उन्नत वक्षों का प्रदर्शन करते घूम रही थी कुछ सलवार सूट में भी थी जिन्होंने अपनी चुचियों पर दुपट्टा डाल रखा था। सोनू उन लड़कियों की तरफ देखता पर उनमें से कोई भी उसकी सुगना दीदी के करीब न फटकती थी…

वह रह रह कर अपने ख्वाबों में अपनी दोनों बहनों लाली और सुगना को अलग-अलग वस्त्रों में देखता और उनकी खूबसूरती की कल्पना करता। जब जब वह सुगना के बारे में सोचता उसके विचार अस्पष्ट होते। कभी वह सुगना की सुंदरता का कायल होता कभी उसके मादक बदन का और कभी अपनी दीदी के मर्यादित व्यक्तित्व का।


सिर्फ एक घटना ने सोनू के मन में सुगना के प्रति विचार बदल दिए थे। इसके पहले भी उसकी सुगना के साथ कामुक घटनाएं हुई थी पर हर बार सुगना का व्यक्तित्व सोनू के कामुक विचारों पर हावी रहता और सोनू के मन में वासना का बीज अंकुरित होने से पहले ही कुचल दिया जाता।

परंतु पिछले कुछ दिनों से हालात बदल चुके थे सुगना ने लाली और सोनू को संभोग करते हुए देखकर सोनू के मन में आ रही इस सोच से उत्पन्न होने वाली आत्मग्लानि को कुछ कम कर दिया था।

सोनू अब बेझिझक होकर सुगना और उसके कामुक बदन को याद करता। सोनू यह बात भली-भांति जानता था कि सुगना के सामने आते ही वह भीगी बिल्ली की तरह अपने उन कामुक विचारों को दरकिनार कर उसे बड़ी बहन का दर्जा देने को बाध्य होगा और उसके मन में चल रहे ख्याली पुलाव साबुन के बुलबुले की तरह टूट कर बिखर जाएंगे..

परन्तु ख्यालों पर पाबंदी लगाने वाला कोई न था। ईधर उसके ख्यालों में सुगना घूम रही थी और उधर जांघों के बीच लंड हरकत में आ रहा था। सोनू अपनी जांघों के बीच हलचल महसूस कर रहा था। रिक्शे पर बैठे-बैठे उसने अपने लंड को ऊपर की तरफ किया और उसे अपना आकार बढ़ाने की इजाजत दे दी। वह बीच-बीच में उसे सहला था और उसे धीरज धरने के लिए प्रेरित कर रहा था।

यही सब बातें सोचते सोचते उसका रिक्शा लखनऊ के बाजार में पहुंच चुका था। तरह-तरह के वस्त्र दुकानों के सामने लटके हुए थे। सोनू ने आज तक सुगना को या तो साड़ी या लहंगा चुनरी में देखा था पर शहरों में उस दौरान सलवार सूट का प्रचलन आ चुका था। सलवार सूट में महिलाओं की कमनीय काया स्पष्ट दिखाई पड़ती थी। चूचियों पर सटा हुआ सूट और कमर का वह कटाव …. सोनू कपड़ों के पीछे छुपी स्त्रीयो की स्वाभाविक खूबसूरती में खो गया।


दुकान पर लगे पुतलों में सोनू अपनी बहनों को खोजने लगा। पुतले कुछ कमजोर और पतले दिखाई पड़ रहे थे पर सोनू की दोनों बहने पूरी तरह गदराई हुई थीं। दो बच्चों की मां होने का असर उनके शरीर पर भी दिखाई पड़ रहा था। पर यह उनकी मादकता को और भी बढ़ा रहा था।

सुगना को याद कर सोनू का लंड एक बार फिर हरकत में आ रहा था। अचानक सोनू को दुकान पर टंगा एक कपड़ा पसंद आ गया सोनू ने रिक्शा रोका और उतरकर उस दुकान के अंदर आ गया अंदर एक खूबसूरत महिला कपड़े तह कर रही थी सोनू को देखते ही उसने पूछा

"भैया क्या देखना है..?"

सोनू उस महिला को बेहद ध्यान से देख रहा था महिला की उम्र उसकी अपनी बहनों से मेल खाती थी परंतु सुंदरता ….. सोनू को अपनी बहनों पर नाज था सुगना तो जैसे उसके ख्वाबों की परी बन चुकी थी। मन में यह सोच लाकर सोनू कभी लाली के प्रति अन्याय करता परंतु सुगना, सुगना और उसका आकर्षण सब पर भारी था।


सोनू दुकान के काउंटर पर आ गया और काउंटर से सट कर खड़ा हो गया। सोनू का लंड दुकान के काउंटर से रगड़ रहा था वह मीठी रगड़ सोनू को बेहद आनंददायक लग रही थी।

बहनों के लिए सूट देखते देखते सोनू ने अपने आनंद का उपाय कर लिया था…

उस महिला ने सोनू को कई सूट दिखाएं जिसमें वह सूट भी शामिल था जो सोनू की निगाहों पर चढ़ गया था।

कई सूट देखने के पश्चात आखिरकार सोनू ने दो सूट पसंद कर लिए। एक अपनी बड़ी बहन सुगना के लिए और दूसरी अपनी मदमस्त लाली के लिए। सूट स्लीवलेस तो नहीं थे परंतु बाहों पर सिर्फ चिकनकारी की हुई थी। बाकी कुर्ते पर स्तर लगा हुआ था…महिला सोनू को सूट की चूची वाली जगह पर बार-बार देखते देख कर बोली…..

आपको साइज पता है तो बता दीजिए हम तुरंत ही उसी नाप का बना देंगे..

सोनू की चोरी पकड़ी गई थी काउंटर पर काम कर रही महिला ग्राहकों की उत्सुकता और प्रश्न को भलीभांति समझती थी।

सोनू ने शर्माते हुए कहा

" 36 और 34…"

नंबर बताते समय सोनू ने सुगना और लाली की सूट का रंग तय कर दिया। हल्के हरे रंग के सूट में सुगना की कल्पना कर सोनू बाग बाग हो गया ..

सूट पसंद करने के बाद अब बारी अंतरंग वस्त्रों की थी .. सोनू ने लाली के लिए तो अंतरंग वस्त्र पसंद किए परंतु अपनी बड़ी बहन सुगना के लिए अंतर्वस्त्र खरीदने की हिमाकत नहीं कर पाया।उसने जितनी हिम्मत विचारों में इकट्ठा की थी उसे असली जामा पहनाने में नाकामयाब रहा।

लाली को कामुक अंतर्वस्त्र बेहद पसंद थे पसंद तो सुगना को भी थे पर इस समय उसे न तो इन वस्त्रों की उपयोगिता थी और नहीं आवश्यकता। सोनू उस महिला से अंतर्वस्त्र खरीदते समय बेहद शर्मा रहा था। महिला उसके सामने तरह-तरह ब्रा और पेंटी रखती जो सामान्यतः प्रयोग में लाई जाती है परंतु न तो सोनू सामान्य था और नहीं उसकी भावनाएं।

अंततः सोनू ने अपनी इच्छा स्पष्ट रूप से रख दी

"ऐसी जालीदार नहीं है क्या फैंसी वाली.."

महिला अंदर जाकर जालीदार कामुक ब्रा पेंटी का सेट ले आई और उसे देखकर सोनू की बांछें खिल उठी।

उसके जेहन में अब उस कामुक ब्रा और पेंटी में कमरे में चहलकदमी हुई करती हुई उसकी लाली दीदी घूम रही थी। वह मन ही मन लाली को घोड़ी बनाकर तथा उसकी जालीदार पेंटी को हटाकर अपना लंड डालकर उसे गचागच चोदने की कल्पना करने लगा जैसा उसने हालिया किसी ब्लू फिल्म में देखा था। उसने लाली के लिए दो ब्रा और पैंटी का सेट पसंद कर लिया।


उसी समय सोनू का एक और दोस्त उसी दुकान में आता हुआ दिखाई पड़ा जो अपनी प्रेमिका के लिए शायद कोई उपहार खरीदने ही आया था।

सोनू ने आनन-फानन में महिला को पैकिंग के निर्देश दिए और अपने दोस्त सोनू से बात करने लगा..

या तो सोनू …..या उसके दिशा निर्देश सुनने वाली महिला की गलती या नियति की चाल पर सोनू द्वारा पसंद की गई दोनो जालीदार कामुक ब्रा और पेंटी को भी उन सूट के साथ अलग अलग पैक कर दिया गया शायद पैक करने वाले ने अपने दिमाग का भी प्रयोग कर दिया था…. और अनजाने में ही सोनू की कामुकता को उसकी दोनों बहनों में बराबरी से बांट दिया था।

डब्बे को गिफ्ट रैप के पश्चात महिला ने समझदारी दिखाते हुए डिब्बे के कोने में बड़ा और छोटा लिखकर सूट में स्पष्ट अंतर कर दिया।

सोनू इस बात से कतई अनजान था कि सुगना के पैकेट में खूबसूरत जालीदार ब्रा पेंटी भी पैक है। सोनू उमंग में पैकेट लेकर वापस आने लगा। जालीदार ब्रा और पेंटी में लाली अब भी उसके दिमाग में घूम रही थी।

सोनू ने हॉस्टल पहुंच कर अपने हाथों की एक्सरसाइज की और वीर्य स्खलन के उपरांत ही उसका दिमाग शांत हुआ।

2 दिनों बाद रक्षाबंधन का पावन त्यौहार था। सोनू के लिए अगले 2 दिन 2 वर्ष जैसे बीत रहे थे … सोनू लाली से मिलने को तड़प रहा था और मन ही मन यह प्रार्थना कर रहा था कि काश उस दिन के दृश्य एक बार फिर उसी क्रम में दोहराया जाए .. सोनू के मन में चल रहे ख्याल कभी घनघोर वासना जन्य होते जिसमें सुगना भी एक भागीदार होती और कभी वह सिर्फ इस बात पर ही अत्यधिक कामोत्तेजक हो जाता कि वह अपनी बड़ी बहन की हम उम्र सहेली को उसी के सामने चोदेगा….परंतु उसे भी यह बात पता थी शायद यह दोबारा संभव नहीं पर जैसे सावन के अंधे को सब कुछ हरा हरा ही सूझता है वैसे सोनू की उम्मीदें बढ़ती जा रही थी…

उधर बनारस में सोनी सुगना और लाली तीनों सोनू का इंतजार कर रहे थे.

सोनू ने सोनी और विकास के रिश्ते को स्वीकार कर जो बड़प्पन दिखाया था उसने सोनी के दिलों दिमाग पर गहरी छाप छोड़ी थी सोनू उसका बड़ा भाई था परंतु सोनी की निगाहों में अब वह बेहद जिम्मेदार और पिता तुल्य हो चुका था।

सोनी पूरी आस्था और लगन से अपने बड़े भाई का इंतजार कर रही थी। सुगना भी सोनू के आने से बेहद प्रसन्न थी आखिर सोनू को देखे कई दिन बीत चुके थे।


पिछले कई वर्षों तक एक साथ रहने से उसका लगाव सोनू से बेहद ज्यादा हो गया था वैसे भी वह उसका छोटा और प्यारा भाई था पिछले बार के उस कामुक दृश्य को छोड़ दें तो सुगना और सोनू के संबंध बेहद आत्मीय रहे थे। खासकर सुगना की तरफ से। सोनू तो बीच-बीच में उसकी सुंदरता पर मोहित हो जाता था ।

सोनू वैसे भी अब पूरे परिवार की शान बन चुका था और सुगना अपने छोटे भाई पर नाज करती थी…परंतु जब जब सुगना के दिमाग में वह कामुक दृश्य आते उसका अंतर्मन सिहर उठता।

उसकी निगाहों में सोनू का मजबूत खूटे जैसा लंड और लाली की बुर चूदाई के दृश्य घूमने लगते। उसे सोनू का लंड अपने बाबूजी सरयू सिंह के लंड से मिलता जुलता प्रतीत होता और न जाने कब वह उस अद्भुत लंड के बारे में सोचते सोचते सुगना की जांघों के बीच चिपचिपा पन आ जाता। भाई बहन का रिश्ता कुछ ही पलों में तार-तार होने लगता …..और सुगना वापस सचेत हो जाती….

और लाली का तो कहना ही क्या इधर दोनों बहने सोनू के पसंद का सामान तैयार कर रही थी और उधर लाली अपनी जांघों के बीच उगाए अनचाहे बालों को हटाकर अपने छोटे भाई के लिए मल्ल युद्ध का अखाड़ा तैयार कर रही थी…

तीनों बहनों के लिए सोनू अलग-अलग रूप में दिखाई पड़ रहा था परंतु सुगना सबसे ज्यादा संशय में थी सोनू का यह बदला हुआ रूप के दिमाग को कतई रास ना आ रहा था परंतु उसकी जांघों के बीच वह उपेक्षित सुकुमारी अपनी पलकों पर आंसू लिए सोनू के उस रूप को रह-रहकर याद कर रही थी और सुगना का ध्यान अपनी तरफ खींच रही थी..

"ए सुगना देख बेसन जरता… कहां भुलाईल बाड़े?"

"सोनुआ के बारे में सोच तनी हां"

"वोही दिन के बारे में सोचा तले हा नू …जायदे अब कि आई तब फिर सिनेमा दिखा देब"


सुगना ने गरम छनोटा लाली की तरफ किया और मुस्कुराते हुए बोली

"ढेर पागल जैसन बोलबे त एही से दाग देब…."

लाली पीछे हटी और मुस्कुराते हुए बोली

"काश सोनुआ तोर भाई ना होखित" सुगना को यह बात समझ ना आए और जब तक वह यह बात समझती सोनी भी कमरे में आ चुकी थी सोनू को लेकर हो रही तकरार सुनकर उसने बिना बात समझे ही कहा..

"दीदी , सोनू भैया के जान से ज्यादा मानेले ओकरा बारे में कुछ मत बोला दीदी बिल्कुल ना सुनी"

"अरे वाह जब से लखनऊ से आईल बाड़ू सोनू भैया सोनू भैया रट लगावले बाडू कौन जादू कर देले बा सोनुआ" अनजाने में ही लाली ने सोनी से वह बात पूछ दी जिसका उत्तर न तो सोनी दे सकती थी और नहीं देना उचित था.. सोनी के विवाह का राज सोनी और सोनू के सीने में दफन था।

सुगना ने इस संवाद पर विराम लगाया और वह बेसन से भरी हुई कड़ाही लेकर नीचे बैठ गई और सोनी तथा लाली से कहा

"आवा सब केहूं मिलकर लड्डू बनावल जाऊ" सुगना को पता था सोनू को बेसन के लड्डू बेहद पसंद थे। सुगना को स्वयं मोतीचूर के लड्डू पसंद थे परंतु फिर भी वह अपनी पसंद को ताक पर रखकर सोनू के लिए लड्डू बना रही थी। लाली और सोनी भी सुगना का साथ दे रही थी सोनू अलग-अलग रूपों में तीनों बहनों के मन में छाया हुआ था।

और आखिरकार वह दिन आ गया जब सोनू रक्षाबंधन पर अपने घर बनारस के लिए रवाना हो गया…

रक्षाबंधन का दिन…

सोनू को आज बनारस एक्सप्रेस बेहद धीमी चलती हुई प्रतीत हो रही थी। लोहे की सलाखों के पीछे बैठा सोनू ऐसा महसूस कर रहा था जैसे वह किसी जेल में बैठा है। जब ट्रेन अकारण रूकती वह कभी व्यवस्था को कोसता कभी उन मनचले लड़कों को जो ट्रेन को चेन पुलिंग कर कर रोक दिया करते थे। उसका मन तो न जाने कबका बनारस स्टेशन पहुंच चुका था। मन में सुगना और लाली को देखने की लालसा लिए वह बेहद अधीर हो चला था।

वह अपने बैग से झांक रहे सूट के पैकेट को देखता उसके पूरे दिलो दिमाग में सनसनी दौड़ जाती है क्या सुगना दीदी आधुनिक जमाने के सूट को पहनेगी… उन्होंने आज तक तो कभी ऐसे वस्त्र नहीं पहने कहीं वह नाराज तो नहीं होंगी…. और यदि उन्होंने इससे पहनने के लिए मना कर दिया तब… सोनू के दिमाग में सिर्फ और सिर्फ प्रश्न थे …. परंतु उनका उत्तर उसकी दोनों बहने ही दे सकती थी…..


हर इंतजार का अंत होता है और सोनू का भी हुआ.. ट्रेन के धीरे होते ही सोनू अपना सामान लेकर बनारस स्टेशन पर कूद पड़ा वह भागते हुए बाहर पहुंचा और ऑटो करके तेजी से अपने घर की तरफ बढ़ चला…

सोनू ने अपने परिवार के सभी सदस्यों के लिए कुछ न कुछ गिफ्ट लाए थे परंतु सुगना और लाली का वह सूट अनोखा था..

उधर सुगना और लाली के घर में त्यौहार का माहौल था। सारे छोटे बच्चे सुबह से ही नहा धोकर तैयार थे। सोनी बच्चों को तैयार कराने में पूरी तरह मदद कर रही थी। सोनी ने बच्चों को नए नए कपड़े पहना कर खेलने भेज दिया छोटा सूरज आज न जाने कैसे सबसे पीछे हो गया था।


सोनी सूरज को कपड़े पहना रही थी और आज कई दिनों बाद सोनी ने एक बार फिर वही हरकत की उसने सूरज का अंगूठा सहला दिया। बिस्तर पर खड़ा सूरज अपनी नूनी को बढ़ते हुए देख रहा था..

"मौसी ई का कर देलू"

सूरज का यह संबोधन उसे बेहद प्यारा लगा और सोनी ने उसे छेड़ते हुए सूरज के अंगूठे को थोड़ा और सहला दिया नूनी का आकार विकास के हथियार के बराबर हो गया और सोनी शरमा गई. एक पल के लिए सोनी के दिमाग में विकास के साथ बिताए गए वह कामुक पल घूम गए सूरज सोनी के बाल खींचते हुए बोला..

"मौसी जल्दी ठीक कर ना ता मां के बुला देब"

सोनी ने प्यारे सूरज के गाल पर मीठी चपत लगाई और अपनी हथेलियां उसकी आंखों पर रखकर नीचे झुक गई.. सोनी को इस विलक्षण समस्या का कारण तो पता न था पर निदान पता था।

सूरज खिलखिला रहा था और सोनी के रेशमी बालों को पकड़कर कभी दूर करता कभी पास… सोनी मुस्कुरा रही थी और विकास को याद कर रही थी। वह विज्ञान की छात्रा सूरज के अंगूठे के इस राज को आज भी समझने का वैसे ही प्रयास कर रही थी..

अचानक सुगना ने दरवाजा खोल दिया और सोनी की अवस्था देखकर सारा माजरा समझ गई और बोली..

"ते बार बार काहे ओकर अंगूठा छूएले ?"

"अरे कपड़ा पहनावत समय भुला गईनी हां"

सुगना ने सूरज को अपनी गोद में उठा लिया और एक बार फिर उसके अंगूठे को सहला कर उसने अपने पूर्व अनुभव को प्रमाणित करने की कोशिश की और यकीनन सुगना के अंगूठे सहलाए जाने से सूरज में कोई परिवर्तन न हुआ।

जाने नियति ने सूरज को ऐसा कौन सा अभिशाप दिया था…

सुगना ने कहा

"हम जा तानी नहाए ते पूजा पाठ के तैयारी कर ले सोनू भी आवत ए होई.."


सुगना ने अपने कपड़े उसी कमरे के बिस्तर पर रख दिए जिस पर आज से कुछ महीनों पहले उसने लाली और सोनू की जबरदस्त चूदाई देखी थी और अपनी नाइटी लेकर बाथरूम में घुस गई। विलंब हो रहा था और सुगना के दिमाग सोनू घूम रहा था जो कुछ ही समय बाद आने वाला था..

सुगना बाथरूम में नग्न होकर नहाने लगी। साबुन लगाते समय सुगना के दिमाग में फिर एक बार वही दृश्य घूमने लगे…. कैसे सोनू लाली की कमर को पकड़कर गचागच उसे चोद रहा था….. सोनू का मजबूत लंड उसके दिमाग पर एक अमिट छवि छोड़ चुका था।


सुगना ने एक बार फिर अपने हाथ की कलाइयों को देखा और सोनू के लंड से उसकी तुलना करने की कोशिश की।

सुगना मुस्कुरा रही थी उसे ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे उसका अपना छोटा भाई उसके बाबू जी से किसी भी तुलना में कम न था। यदि सरयू सिंह अपनी युवावस्था में रहे होते तो शायद सोनू के जैसे ही होते। सोनू का भरा पूरा मांसल शरीर वह मजबूत भुजाएं ….हाथों पर सोनू के लंड पर दौड़ती नसें सब कुछ आदर्श था।

जैसे-जैसे सुगना सोनू की कसरती शरीर को याद करती रही वैसे वैसे उसकी हथेलियां स्वतः उसके गुप्तांगों की तरफ बढ़ चली। यह क्रिया स्वाभाविक रूप से हो रही थी। साबुन बार-बार अपनी जगह तलाश रहा था और अंततः सुगना की तर्जनी ने सुगना की उस कोमल दरार के बीच अपनी जगह बना ली।

यह क्या …..बाहर जितनी फिसलन थी अंदर उससे कई गुना ज्यादा थी… बुर् के होठों पर छलका प्रेम रस में न जाने कौन सा चुंबकीय आकर्षण पैदा किया और सुगना की तर्जनी उसकी बुर से प्रेम रस को खींच खींच कर बाहर निकालने लगी… जैसे ही भग्नासे ने तर्जनी का स्पर्श पाया वह फूल कर कुप्पा हो गया और बार-बार उस मादक स्पर्श की दरकार करने लगा…..सुगना के दांतो ने होठों को खींच कर अपना दबाव बढ़ाया जैसे वह अपनी मालकिन को होश खोने से रोक रहे हों।


शरीर के अंगों पर लगा साबुन सुगना की हथेलियों का इंतजार कर रहा था। पर सुगना की सोच पर न जाने कौन सा रस हावी हो गया था उसका सारा आकर्षण उस छोटी सी दरार पर केंद्रित हो गया था शायद जिस आनंद की भूखी सुगना कई महीनों से थी वह उसे प्राप्त हो रहा था… उसे समय का आभास भी न रहा….

सुगना को वास्तविक दुनिया में लाने का श्रेय आखिरकार लाली को गया जो दरवाजे पर खड़े होकर कह रही थी

" सुगना जल्दी कर 09 बज गइल सोनू आवहीं वाला बा.."


सुगना ने एक लंबी आह भरी और अपनी तड़पती बुर को अकेला छोड़ कर वापस अपने शरीर पर लगे साबुन के झाग हटाने लगी।

लोटे से लगातार वह अपने सर पर पानी डाल रही थी जो उसकी फूली और तनी हुई चुचियों से होते हुए जांघों के बीच बह रहा था। जैसी ही सुगना ने अपनी जांघें सटाई जांघों के बीच पानी इकट्ठा हो गया। इतनी सुंदर थी उसकी जांघें और कितना सुंदर था वह प्रेम त्रिकोण।

जिस त्रिकोण पर उसके बाबू जी सरयू सिंह सब कुछ निछावर करने को तैयार रहते थे। पिछले कई महीनों से उस त्रिकोण का कोई पूछना हार न था।। रतन को याद कर सुगना अपना मन खट्टा नहीं करना चाहती थी। उसने अपनी जांघें फैला दी और पानी को बह जाने दिया। अपनी बुर को थपथपा कर सुगना उठ खड़ी हुई और नाइटी से अपने भीगे बदन को पोछने लगी..

अपने बदन को यथासंभव पोछने के पश्चात सुगना उसी कमरे में आकर अपने वस्त्र पहनने लगी… जो गलती उस दिन अनजाने में सोनू और लाली ने की थी वही गलती आज सुगना दोहरा चुकी थी खिड़की पर लगा हुआ पर्दा थोड़ा हटा हुआ था …

सारे बच्चे के हाल में चिल्लपों मचाए हुए थे। सोनी रक्षाबंधन की तैयारियों में रंगोली बनाने में व्यस्त थी। लाली सोनू के लिए पूआ बना रही थी। सोनू को पुआ ठीक वैसे ही पसंद था जैसे सरयू सिंह को।


सोनू को दोनो पुए पसंद थे जांघों के बीच रसभरे भी और प्लेट में रखे चासनी से भीगे हुए भी।

बाहर अचानक खड़ खड़ खड़ खड़ की आवाज हुई…सोनू का ऑटो बाहर आकर रुक चुका था। दरवाजा सटा हुआ था। सोनू ने अंदर आकर अपनी बहनों को चकमा देने की सोची और वह दरवाजा धीरे से खोल कर अंदर आ गया। अंदर कमरे में सुगना के चूड़ियों की खनकने की आवाज आ रही थी। सोनू भली भांति जानता था कि घर में सिर्फ और सिर्फ उसकी सुगना दीदी ही भरपूर चूड़ियां पहनती हैं । लाली ने विधवा होने के बाद चूड़ी पहनना लगभग छोड़ कर दिया था और सोनी वह तो आधुनिक युवती थी और हाथों में 1या 2 कंगन डालकर वह मस्त रहती थी।

चूड़ियों के खड़कने से सोनू ने अंदाज कर लिया कि सुगना दीदी उसी कमरे में है..अचानक उसका ध्यान उस खुली हुई खिड़की पर गया…. और सोनू ने अपनी आंखे उस दरार पर टिका दीं….

सोनू की आंखे फटी रह गईं…

शेष अगले भाग में…
Ab sugna ki tarike se pyas bujhegi jawan khun h or hathiyar bhi bda or chalane me bhi mahir ab sugna sonu ki diwani hone wali h
 

Bhanupratap

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भाग 80

जैसे जैसे दिन बीत रहे थे सुगना सोनू के ख्वाबों में ज्यादा जगह बनाने लगी थी।

राखी….सुगना ….दीदी…लाली……दीदी….. आह…वो सुगना दीदी का देखना…वो …. उनकी आखों में छुपी प्यास….. सोनू की सोच कलुषित हो रही थी उसकी अपनी वासना ने उसकी सोच पर अधिकार जमा लिया था। सुगना के कौतूहल ने उसे अनजाने में ही सोनू की नजरों में अतृप्त और प्यासी युवती की श्रेणी में ला दिया था। राखी का इंतजार सोनू बेसब्री से कर रहा था.. सोनू सुगना को देखने के लिए तड़प रहा था…

शेष अगले भाग में…

सोनू के जेहन में लाली द्वारा की गई कपड़ों की मांग अब भी कायम थी। और फिर एक दिन सोनू लखनऊ के बाजार में अपनी बहनो के लिए राखी के लिए कपड़े लेने चल पड़ा।

सजे हुए बाजार में कई खूबसूरत लड़कियां जींस टॉप में उन्नत वक्षों का प्रदर्शन करते घूम रही थी कुछ सलवार सूट में भी थी जिन्होंने अपनी चुचियों पर दुपट्टा डाल रखा था। सोनू उन लड़कियों की तरफ देखता पर उनमें से कोई भी उसकी सुगना दीदी के करीब न फटकती थी…

वह रह रह कर अपने ख्वाबों में अपनी दोनों बहनों लाली और सुगना को अलग-अलग वस्त्रों में देखता और उनकी खूबसूरती की कल्पना करता। जब जब वह सुगना के बारे में सोचता उसके विचार अस्पष्ट होते। कभी वह सुगना की सुंदरता का कायल होता कभी उसके मादक बदन का और कभी अपनी दीदी के मर्यादित व्यक्तित्व का।


सिर्फ एक घटना ने सोनू के मन में सुगना के प्रति विचार बदल दिए थे। इसके पहले भी उसकी सुगना के साथ कामुक घटनाएं हुई थी पर हर बार सुगना का व्यक्तित्व सोनू के कामुक विचारों पर हावी रहता और सोनू के मन में वासना का बीज अंकुरित होने से पहले ही कुचल दिया जाता।

परंतु पिछले कुछ दिनों से हालात बदल चुके थे सुगना ने लाली और सोनू को संभोग करते हुए देखकर सोनू के मन में आ रही इस सोच से उत्पन्न होने वाली आत्मग्लानि को कुछ कम कर दिया था।

सोनू अब बेझिझक होकर सुगना और उसके कामुक बदन को याद करता। सोनू यह बात भली-भांति जानता था कि सुगना के सामने आते ही वह भीगी बिल्ली की तरह अपने उन कामुक विचारों को दरकिनार कर उसे बड़ी बहन का दर्जा देने को बाध्य होगा और उसके मन में चल रहे ख्याली पुलाव साबुन के बुलबुले की तरह टूट कर बिखर जाएंगे..

परन्तु ख्यालों पर पाबंदी लगाने वाला कोई न था। ईधर उसके ख्यालों में सुगना घूम रही थी और उधर जांघों के बीच लंड हरकत में आ रहा था। सोनू अपनी जांघों के बीच हलचल महसूस कर रहा था। रिक्शे पर बैठे-बैठे उसने अपने लंड को ऊपर की तरफ किया और उसे अपना आकार बढ़ाने की इजाजत दे दी। वह बीच-बीच में उसे सहला था और उसे धीरज धरने के लिए प्रेरित कर रहा था।

यही सब बातें सोचते सोचते उसका रिक्शा लखनऊ के बाजार में पहुंच चुका था। तरह-तरह के वस्त्र दुकानों के सामने लटके हुए थे। सोनू ने आज तक सुगना को या तो साड़ी या लहंगा चुनरी में देखा था पर शहरों में उस दौरान सलवार सूट का प्रचलन आ चुका था। सलवार सूट में महिलाओं की कमनीय काया स्पष्ट दिखाई पड़ती थी। चूचियों पर सटा हुआ सूट और कमर का वह कटाव …. सोनू कपड़ों के पीछे छुपी स्त्रीयो की स्वाभाविक खूबसूरती में खो गया।


दुकान पर लगे पुतलों में सोनू अपनी बहनों को खोजने लगा। पुतले कुछ कमजोर और पतले दिखाई पड़ रहे थे पर सोनू की दोनों बहने पूरी तरह गदराई हुई थीं। दो बच्चों की मां होने का असर उनके शरीर पर भी दिखाई पड़ रहा था। पर यह उनकी मादकता को और भी बढ़ा रहा था।

सुगना को याद कर सोनू का लंड एक बार फिर हरकत में आ रहा था। अचानक सोनू को दुकान पर टंगा एक कपड़ा पसंद आ गया सोनू ने रिक्शा रोका और उतरकर उस दुकान के अंदर आ गया अंदर एक खूबसूरत महिला कपड़े तह कर रही थी सोनू को देखते ही उसने पूछा

"भैया क्या देखना है..?"

सोनू उस महिला को बेहद ध्यान से देख रहा था महिला की उम्र उसकी अपनी बहनों से मेल खाती थी परंतु सुंदरता ….. सोनू को अपनी बहनों पर नाज था सुगना तो जैसे उसके ख्वाबों की परी बन चुकी थी। मन में यह सोच लाकर सोनू कभी लाली के प्रति अन्याय करता परंतु सुगना, सुगना और उसका आकर्षण सब पर भारी था।


सोनू दुकान के काउंटर पर आ गया और काउंटर से सट कर खड़ा हो गया। सोनू का लंड दुकान के काउंटर से रगड़ रहा था वह मीठी रगड़ सोनू को बेहद आनंददायक लग रही थी।

बहनों के लिए सूट देखते देखते सोनू ने अपने आनंद का उपाय कर लिया था…

उस महिला ने सोनू को कई सूट दिखाएं जिसमें वह सूट भी शामिल था जो सोनू की निगाहों पर चढ़ गया था।

कई सूट देखने के पश्चात आखिरकार सोनू ने दो सूट पसंद कर लिए। एक अपनी बड़ी बहन सुगना के लिए और दूसरी अपनी मदमस्त लाली के लिए। सूट स्लीवलेस तो नहीं थे परंतु बाहों पर सिर्फ चिकनकारी की हुई थी। बाकी कुर्ते पर स्तर लगा हुआ था…महिला सोनू को सूट की चूची वाली जगह पर बार-बार देखते देख कर बोली…..

आपको साइज पता है तो बता दीजिए हम तुरंत ही उसी नाप का बना देंगे..

सोनू की चोरी पकड़ी गई थी काउंटर पर काम कर रही महिला ग्राहकों की उत्सुकता और प्रश्न को भलीभांति समझती थी।

सोनू ने शर्माते हुए कहा

" 36 और 34…"

नंबर बताते समय सोनू ने सुगना और लाली की सूट का रंग तय कर दिया। हल्के हरे रंग के सूट में सुगना की कल्पना कर सोनू बाग बाग हो गया ..

सूट पसंद करने के बाद अब बारी अंतरंग वस्त्रों की थी .. सोनू ने लाली के लिए तो अंतरंग वस्त्र पसंद किए परंतु अपनी बड़ी बहन सुगना के लिए अंतर्वस्त्र खरीदने की हिमाकत नहीं कर पाया।उसने जितनी हिम्मत विचारों में इकट्ठा की थी उसे असली जामा पहनाने में नाकामयाब रहा।

लाली को कामुक अंतर्वस्त्र बेहद पसंद थे पसंद तो सुगना को भी थे पर इस समय उसे न तो इन वस्त्रों की उपयोगिता थी और नहीं आवश्यकता। सोनू उस महिला से अंतर्वस्त्र खरीदते समय बेहद शर्मा रहा था। महिला उसके सामने तरह-तरह ब्रा और पेंटी रखती जो सामान्यतः प्रयोग में लाई जाती है परंतु न तो सोनू सामान्य था और नहीं उसकी भावनाएं।

अंततः सोनू ने अपनी इच्छा स्पष्ट रूप से रख दी

"ऐसी जालीदार नहीं है क्या फैंसी वाली.."

महिला अंदर जाकर जालीदार कामुक ब्रा पेंटी का सेट ले आई और उसे देखकर सोनू की बांछें खिल उठी।

उसके जेहन में अब उस कामुक ब्रा और पेंटी में कमरे में चहलकदमी हुई करती हुई उसकी लाली दीदी घूम रही थी। वह मन ही मन लाली को घोड़ी बनाकर तथा उसकी जालीदार पेंटी को हटाकर अपना लंड डालकर उसे गचागच चोदने की कल्पना करने लगा जैसा उसने हालिया किसी ब्लू फिल्म में देखा था। उसने लाली के लिए दो ब्रा और पैंटी का सेट पसंद कर लिया।


उसी समय सोनू का एक और दोस्त उसी दुकान में आता हुआ दिखाई पड़ा जो अपनी प्रेमिका के लिए शायद कोई उपहार खरीदने ही आया था।

सोनू ने आनन-फानन में महिला को पैकिंग के निर्देश दिए और अपने दोस्त सोनू से बात करने लगा..

या तो सोनू …..या उसके दिशा निर्देश सुनने वाली महिला की गलती या नियति की चाल पर सोनू द्वारा पसंद की गई दोनो जालीदार कामुक ब्रा और पेंटी को भी उन सूट के साथ अलग अलग पैक कर दिया गया शायद पैक करने वाले ने अपने दिमाग का भी प्रयोग कर दिया था…. और अनजाने में ही सोनू की कामुकता को उसकी दोनों बहनों में बराबरी से बांट दिया था।

डब्बे को गिफ्ट रैप के पश्चात महिला ने समझदारी दिखाते हुए डिब्बे के कोने में बड़ा और छोटा लिखकर सूट में स्पष्ट अंतर कर दिया।

सोनू इस बात से कतई अनजान था कि सुगना के पैकेट में खूबसूरत जालीदार ब्रा पेंटी भी पैक है। सोनू उमंग में पैकेट लेकर वापस आने लगा। जालीदार ब्रा और पेंटी में लाली अब भी उसके दिमाग में घूम रही थी।

सोनू ने हॉस्टल पहुंच कर अपने हाथों की एक्सरसाइज की और वीर्य स्खलन के उपरांत ही उसका दिमाग शांत हुआ।

2 दिनों बाद रक्षाबंधन का पावन त्यौहार था। सोनू के लिए अगले 2 दिन 2 वर्ष जैसे बीत रहे थे … सोनू लाली से मिलने को तड़प रहा था और मन ही मन यह प्रार्थना कर रहा था कि काश उस दिन के दृश्य एक बार फिर उसी क्रम में दोहराया जाए .. सोनू के मन में चल रहे ख्याल कभी घनघोर वासना जन्य होते जिसमें सुगना भी एक भागीदार होती और कभी वह सिर्फ इस बात पर ही अत्यधिक कामोत्तेजक हो जाता कि वह अपनी बड़ी बहन की हम उम्र सहेली को उसी के सामने चोदेगा….परंतु उसे भी यह बात पता थी शायद यह दोबारा संभव नहीं पर जैसे सावन के अंधे को सब कुछ हरा हरा ही सूझता है वैसे सोनू की उम्मीदें बढ़ती जा रही थी…

उधर बनारस में सोनी सुगना और लाली तीनों सोनू का इंतजार कर रहे थे.

सोनू ने सोनी और विकास के रिश्ते को स्वीकार कर जो बड़प्पन दिखाया था उसने सोनी के दिलों दिमाग पर गहरी छाप छोड़ी थी सोनू उसका बड़ा भाई था परंतु सोनी की निगाहों में अब वह बेहद जिम्मेदार और पिता तुल्य हो चुका था।

सोनी पूरी आस्था और लगन से अपने बड़े भाई का इंतजार कर रही थी। सुगना भी सोनू के आने से बेहद प्रसन्न थी आखिर सोनू को देखे कई दिन बीत चुके थे।


पिछले कई वर्षों तक एक साथ रहने से उसका लगाव सोनू से बेहद ज्यादा हो गया था वैसे भी वह उसका छोटा और प्यारा भाई था पिछले बार के उस कामुक दृश्य को छोड़ दें तो सुगना और सोनू के संबंध बेहद आत्मीय रहे थे। खासकर सुगना की तरफ से। सोनू तो बीच-बीच में उसकी सुंदरता पर मोहित हो जाता था ।

सोनू वैसे भी अब पूरे परिवार की शान बन चुका था और सुगना अपने छोटे भाई पर नाज करती थी…परंतु जब जब सुगना के दिमाग में वह कामुक दृश्य आते उसका अंतर्मन सिहर उठता।

उसकी निगाहों में सोनू का मजबूत खूटे जैसा लंड और लाली की बुर चूदाई के दृश्य घूमने लगते। उसे सोनू का लंड अपने बाबूजी सरयू सिंह के लंड से मिलता जुलता प्रतीत होता और न जाने कब वह उस अद्भुत लंड के बारे में सोचते सोचते सुगना की जांघों के बीच चिपचिपा पन आ जाता। भाई बहन का रिश्ता कुछ ही पलों में तार-तार होने लगता …..और सुगना वापस सचेत हो जाती….

और लाली का तो कहना ही क्या इधर दोनों बहने सोनू के पसंद का सामान तैयार कर रही थी और उधर लाली अपनी जांघों के बीच उगाए अनचाहे बालों को हटाकर अपने छोटे भाई के लिए मल्ल युद्ध का अखाड़ा तैयार कर रही थी…

तीनों बहनों के लिए सोनू अलग-अलग रूप में दिखाई पड़ रहा था परंतु सुगना सबसे ज्यादा संशय में थी सोनू का यह बदला हुआ रूप के दिमाग को कतई रास ना आ रहा था परंतु उसकी जांघों के बीच वह उपेक्षित सुकुमारी अपनी पलकों पर आंसू लिए सोनू के उस रूप को रह-रहकर याद कर रही थी और सुगना का ध्यान अपनी तरफ खींच रही थी..

"ए सुगना देख बेसन जरता… कहां भुलाईल बाड़े?"

"सोनुआ के बारे में सोच तनी हां"

"वोही दिन के बारे में सोचा तले हा नू …जायदे अब कि आई तब फिर सिनेमा दिखा देब"


सुगना ने गरम छनोटा लाली की तरफ किया और मुस्कुराते हुए बोली

"ढेर पागल जैसन बोलबे त एही से दाग देब…."

लाली पीछे हटी और मुस्कुराते हुए बोली

"काश सोनुआ तोर भाई ना होखित" सुगना को यह बात समझ ना आए और जब तक वह यह बात समझती सोनी भी कमरे में आ चुकी थी सोनू को लेकर हो रही तकरार सुनकर उसने बिना बात समझे ही कहा..

"दीदी , सोनू भैया के जान से ज्यादा मानेले ओकरा बारे में कुछ मत बोला दीदी बिल्कुल ना सुनी"

"अरे वाह जब से लखनऊ से आईल बाड़ू सोनू भैया सोनू भैया रट लगावले बाडू कौन जादू कर देले बा सोनुआ" अनजाने में ही लाली ने सोनी से वह बात पूछ दी जिसका उत्तर न तो सोनी दे सकती थी और नहीं देना उचित था.. सोनी के विवाह का राज सोनी और सोनू के सीने में दफन था।

सुगना ने इस संवाद पर विराम लगाया और वह बेसन से भरी हुई कड़ाही लेकर नीचे बैठ गई और सोनी तथा लाली से कहा

"आवा सब केहूं मिलकर लड्डू बनावल जाऊ" सुगना को पता था सोनू को बेसन के लड्डू बेहद पसंद थे। सुगना को स्वयं मोतीचूर के लड्डू पसंद थे परंतु फिर भी वह अपनी पसंद को ताक पर रखकर सोनू के लिए लड्डू बना रही थी। लाली और सोनी भी सुगना का साथ दे रही थी सोनू अलग-अलग रूपों में तीनों बहनों के मन में छाया हुआ था।

और आखिरकार वह दिन आ गया जब सोनू रक्षाबंधन पर अपने घर बनारस के लिए रवाना हो गया…

रक्षाबंधन का दिन…

सोनू को आज बनारस एक्सप्रेस बेहद धीमी चलती हुई प्रतीत हो रही थी। लोहे की सलाखों के पीछे बैठा सोनू ऐसा महसूस कर रहा था जैसे वह किसी जेल में बैठा है। जब ट्रेन अकारण रूकती वह कभी व्यवस्था को कोसता कभी उन मनचले लड़कों को जो ट्रेन को चेन पुलिंग कर कर रोक दिया करते थे। उसका मन तो न जाने कबका बनारस स्टेशन पहुंच चुका था। मन में सुगना और लाली को देखने की लालसा लिए वह बेहद अधीर हो चला था।

वह अपने बैग से झांक रहे सूट के पैकेट को देखता उसके पूरे दिलो दिमाग में सनसनी दौड़ जाती है क्या सुगना दीदी आधुनिक जमाने के सूट को पहनेगी… उन्होंने आज तक तो कभी ऐसे वस्त्र नहीं पहने कहीं वह नाराज तो नहीं होंगी…. और यदि उन्होंने इससे पहनने के लिए मना कर दिया तब… सोनू के दिमाग में सिर्फ और सिर्फ प्रश्न थे …. परंतु उनका उत्तर उसकी दोनों बहने ही दे सकती थी…..


हर इंतजार का अंत होता है और सोनू का भी हुआ.. ट्रेन के धीरे होते ही सोनू अपना सामान लेकर बनारस स्टेशन पर कूद पड़ा वह भागते हुए बाहर पहुंचा और ऑटो करके तेजी से अपने घर की तरफ बढ़ चला…

सोनू ने अपने परिवार के सभी सदस्यों के लिए कुछ न कुछ गिफ्ट लाए थे परंतु सुगना और लाली का वह सूट अनोखा था..

उधर सुगना और लाली के घर में त्यौहार का माहौल था। सारे छोटे बच्चे सुबह से ही नहा धोकर तैयार थे। सोनी बच्चों को तैयार कराने में पूरी तरह मदद कर रही थी। सोनी ने बच्चों को नए नए कपड़े पहना कर खेलने भेज दिया छोटा सूरज आज न जाने कैसे सबसे पीछे हो गया था।


सोनी सूरज को कपड़े पहना रही थी और आज कई दिनों बाद सोनी ने एक बार फिर वही हरकत की उसने सूरज का अंगूठा सहला दिया। बिस्तर पर खड़ा सूरज अपनी नूनी को बढ़ते हुए देख रहा था..

"मौसी ई का कर देलू"

सूरज का यह संबोधन उसे बेहद प्यारा लगा और सोनी ने उसे छेड़ते हुए सूरज के अंगूठे को थोड़ा और सहला दिया नूनी का आकार विकास के हथियार के बराबर हो गया और सोनी शरमा गई. एक पल के लिए सोनी के दिमाग में विकास के साथ बिताए गए वह कामुक पल घूम गए सूरज सोनी के बाल खींचते हुए बोला..

"मौसी जल्दी ठीक कर ना ता मां के बुला देब"

सोनी ने प्यारे सूरज के गाल पर मीठी चपत लगाई और अपनी हथेलियां उसकी आंखों पर रखकर नीचे झुक गई.. सोनी को इस विलक्षण समस्या का कारण तो पता न था पर निदान पता था।

सूरज खिलखिला रहा था और सोनी के रेशमी बालों को पकड़कर कभी दूर करता कभी पास… सोनी मुस्कुरा रही थी और विकास को याद कर रही थी। वह विज्ञान की छात्रा सूरज के अंगूठे के इस राज को आज भी समझने का वैसे ही प्रयास कर रही थी..

अचानक सुगना ने दरवाजा खोल दिया और सोनी की अवस्था देखकर सारा माजरा समझ गई और बोली..

"ते बार बार काहे ओकर अंगूठा छूएले ?"

"अरे कपड़ा पहनावत समय भुला गईनी हां"

सुगना ने सूरज को अपनी गोद में उठा लिया और एक बार फिर उसके अंगूठे को सहला कर उसने अपने पूर्व अनुभव को प्रमाणित करने की कोशिश की और यकीनन सुगना के अंगूठे सहलाए जाने से सूरज में कोई परिवर्तन न हुआ।

जाने नियति ने सूरज को ऐसा कौन सा अभिशाप दिया था…

सुगना ने कहा

"हम जा तानी नहाए ते पूजा पाठ के तैयारी कर ले सोनू भी आवत ए होई.."


सुगना ने अपने कपड़े उसी कमरे के बिस्तर पर रख दिए जिस पर आज से कुछ महीनों पहले उसने लाली और सोनू की जबरदस्त चूदाई देखी थी और अपनी नाइटी लेकर बाथरूम में घुस गई। विलंब हो रहा था और सुगना के दिमाग सोनू घूम रहा था जो कुछ ही समय बाद आने वाला था..

सुगना बाथरूम में नग्न होकर नहाने लगी। साबुन लगाते समय सुगना के दिमाग में फिर एक बार वही दृश्य घूमने लगे…. कैसे सोनू लाली की कमर को पकड़कर गचागच उसे चोद रहा था….. सोनू का मजबूत लंड उसके दिमाग पर एक अमिट छवि छोड़ चुका था।


सुगना ने एक बार फिर अपने हाथ की कलाइयों को देखा और सोनू के लंड से उसकी तुलना करने की कोशिश की।

सुगना मुस्कुरा रही थी उसे ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे उसका अपना छोटा भाई उसके बाबू जी से किसी भी तुलना में कम न था। यदि सरयू सिंह अपनी युवावस्था में रहे होते तो शायद सोनू के जैसे ही होते। सोनू का भरा पूरा मांसल शरीर वह मजबूत भुजाएं ….हाथों पर सोनू के लंड पर दौड़ती नसें सब कुछ आदर्श था।

जैसे-जैसे सुगना सोनू की कसरती शरीर को याद करती रही वैसे वैसे उसकी हथेलियां स्वतः उसके गुप्तांगों की तरफ बढ़ चली। यह क्रिया स्वाभाविक रूप से हो रही थी। साबुन बार-बार अपनी जगह तलाश रहा था और अंततः सुगना की तर्जनी ने सुगना की उस कोमल दरार के बीच अपनी जगह बना ली।

यह क्या …..बाहर जितनी फिसलन थी अंदर उससे कई गुना ज्यादा थी… बुर् के होठों पर छलका प्रेम रस में न जाने कौन सा चुंबकीय आकर्षण पैदा किया और सुगना की तर्जनी उसकी बुर से प्रेम रस को खींच खींच कर बाहर निकालने लगी… जैसे ही भग्नासे ने तर्जनी का स्पर्श पाया वह फूल कर कुप्पा हो गया और बार-बार उस मादक स्पर्श की दरकार करने लगा…..सुगना के दांतो ने होठों को खींच कर अपना दबाव बढ़ाया जैसे वह अपनी मालकिन को होश खोने से रोक रहे हों।


शरीर के अंगों पर लगा साबुन सुगना की हथेलियों का इंतजार कर रहा था। पर सुगना की सोच पर न जाने कौन सा रस हावी हो गया था उसका सारा आकर्षण उस छोटी सी दरार पर केंद्रित हो गया था शायद जिस आनंद की भूखी सुगना कई महीनों से थी वह उसे प्राप्त हो रहा था… उसे समय का आभास भी न रहा….

सुगना को वास्तविक दुनिया में लाने का श्रेय आखिरकार लाली को गया जो दरवाजे पर खड़े होकर कह रही थी

" सुगना जल्दी कर 09 बज गइल सोनू आवहीं वाला बा.."


सुगना ने एक लंबी आह भरी और अपनी तड़पती बुर को अकेला छोड़ कर वापस अपने शरीर पर लगे साबुन के झाग हटाने लगी।

लोटे से लगातार वह अपने सर पर पानी डाल रही थी जो उसकी फूली और तनी हुई चुचियों से होते हुए जांघों के बीच बह रहा था। जैसी ही सुगना ने अपनी जांघें सटाई जांघों के बीच पानी इकट्ठा हो गया। इतनी सुंदर थी उसकी जांघें और कितना सुंदर था वह प्रेम त्रिकोण।

जिस त्रिकोण पर उसके बाबू जी सरयू सिंह सब कुछ निछावर करने को तैयार रहते थे। पिछले कई महीनों से उस त्रिकोण का कोई पूछना हार न था।। रतन को याद कर सुगना अपना मन खट्टा नहीं करना चाहती थी। उसने अपनी जांघें फैला दी और पानी को बह जाने दिया। अपनी बुर को थपथपा कर सुगना उठ खड़ी हुई और नाइटी से अपने भीगे बदन को पोछने लगी..

अपने बदन को यथासंभव पोछने के पश्चात सुगना उसी कमरे में आकर अपने वस्त्र पहनने लगी… जो गलती उस दिन अनजाने में सोनू और लाली ने की थी वही गलती आज सुगना दोहरा चुकी थी खिड़की पर लगा हुआ पर्दा थोड़ा हटा हुआ था …

सारे बच्चे के हाल में चिल्लपों मचाए हुए थे। सोनी रक्षाबंधन की तैयारियों में रंगोली बनाने में व्यस्त थी। लाली सोनू के लिए पूआ बना रही थी। सोनू को पुआ ठीक वैसे ही पसंद था जैसे सरयू सिंह को।


सोनू को दोनो पुए पसंद थे जांघों के बीच रसभरे भी और प्लेट में रखे चासनी से भीगे हुए भी।

बाहर अचानक खड़ खड़ खड़ खड़ की आवाज हुई…सोनू का ऑटो बाहर आकर रुक चुका था। दरवाजा सटा हुआ था। सोनू ने अंदर आकर अपनी बहनों को चकमा देने की सोची और वह दरवाजा धीरे से खोल कर अंदर आ गया। अंदर कमरे में सुगना के चूड़ियों की खनकने की आवाज आ रही थी। सोनू भली भांति जानता था कि घर में सिर्फ और सिर्फ उसकी सुगना दीदी ही भरपूर चूड़ियां पहनती हैं । लाली ने विधवा होने के बाद चूड़ी पहनना लगभग छोड़ कर दिया था और सोनी वह तो आधुनिक युवती थी और हाथों में 1या 2 कंगन डालकर वह मस्त रहती थी।

चूड़ियों के खड़कने से सोनू ने अंदाज कर लिया कि सुगना दीदी उसी कमरे में है..अचानक उसका ध्यान उस खुली हुई खिड़की पर गया…. और सोनू ने अपनी आंखे उस दरार पर टिका दीं….

सोनू की आंखे फटी रह गईं…

शेष अगले भाग में…
Sonu ki to aankh fati ki fati reh gyi ab sugna ki kya kya fategi bahut hot update
 

Golupatra

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भाग 80

जैसे जैसे दिन बीत रहे थे सुगना सोनू के ख्वाबों में ज्यादा जगह बनाने लगी थी।

राखी….सुगना ….दीदी…लाली……दीदी….. आह…वो सुगना दीदी का देखना…वो …. उनकी आखों में छुपी प्यास….. सोनू की सोच कलुषित हो रही थी उसकी अपनी वासना ने उसकी सोच पर अधिकार जमा लिया था। सुगना के कौतूहल ने उसे अनजाने में ही सोनू की नजरों में अतृप्त और प्यासी युवती की श्रेणी में ला दिया था। राखी का इंतजार सोनू बेसब्री से कर रहा था.. सोनू सुगना को देखने के लिए तड़प रहा था…

शेष अगले भाग में…

सोनू के जेहन में लाली द्वारा की गई कपड़ों की मांग अब भी कायम थी। और फिर एक दिन सोनू लखनऊ के बाजार में अपनी बहनो के लिए राखी के लिए कपड़े लेने चल पड़ा।

सजे हुए बाजार में कई खूबसूरत लड़कियां जींस टॉप में उन्नत वक्षों का प्रदर्शन करते घूम रही थी कुछ सलवार सूट में भी थी जिन्होंने अपनी चुचियों पर दुपट्टा डाल रखा था। सोनू उन लड़कियों की तरफ देखता पर उनमें से कोई भी उसकी सुगना दीदी के करीब न फटकती थी…

वह रह रह कर अपने ख्वाबों में अपनी दोनों बहनों लाली और सुगना को अलग-अलग वस्त्रों में देखता और उनकी खूबसूरती की कल्पना करता। जब जब वह सुगना के बारे में सोचता उसके विचार अस्पष्ट होते। कभी वह सुगना की सुंदरता का कायल होता कभी उसके मादक बदन का और कभी अपनी दीदी के मर्यादित व्यक्तित्व का।


सिर्फ एक घटना ने सोनू के मन में सुगना के प्रति विचार बदल दिए थे। इसके पहले भी उसकी सुगना के साथ कामुक घटनाएं हुई थी पर हर बार सुगना का व्यक्तित्व सोनू के कामुक विचारों पर हावी रहता और सोनू के मन में वासना का बीज अंकुरित होने से पहले ही कुचल दिया जाता।

परंतु पिछले कुछ दिनों से हालात बदल चुके थे सुगना ने लाली और सोनू को संभोग करते हुए देखकर सोनू के मन में आ रही इस सोच से उत्पन्न होने वाली आत्मग्लानि को कुछ कम कर दिया था।

सोनू अब बेझिझक होकर सुगना और उसके कामुक बदन को याद करता। सोनू यह बात भली-भांति जानता था कि सुगना के सामने आते ही वह भीगी बिल्ली की तरह अपने उन कामुक विचारों को दरकिनार कर उसे बड़ी बहन का दर्जा देने को बाध्य होगा और उसके मन में चल रहे ख्याली पुलाव साबुन के बुलबुले की तरह टूट कर बिखर जाएंगे..

परन्तु ख्यालों पर पाबंदी लगाने वाला कोई न था। ईधर उसके ख्यालों में सुगना घूम रही थी और उधर जांघों के बीच लंड हरकत में आ रहा था। सोनू अपनी जांघों के बीच हलचल महसूस कर रहा था। रिक्शे पर बैठे-बैठे उसने अपने लंड को ऊपर की तरफ किया और उसे अपना आकार बढ़ाने की इजाजत दे दी। वह बीच-बीच में उसे सहला था और उसे धीरज धरने के लिए प्रेरित कर रहा था।

यही सब बातें सोचते सोचते उसका रिक्शा लखनऊ के बाजार में पहुंच चुका था। तरह-तरह के वस्त्र दुकानों के सामने लटके हुए थे। सोनू ने आज तक सुगना को या तो साड़ी या लहंगा चुनरी में देखा था पर शहरों में उस दौरान सलवार सूट का प्रचलन आ चुका था। सलवार सूट में महिलाओं की कमनीय काया स्पष्ट दिखाई पड़ती थी। चूचियों पर सटा हुआ सूट और कमर का वह कटाव …. सोनू कपड़ों के पीछे छुपी स्त्रीयो की स्वाभाविक खूबसूरती में खो गया।


दुकान पर लगे पुतलों में सोनू अपनी बहनों को खोजने लगा। पुतले कुछ कमजोर और पतले दिखाई पड़ रहे थे पर सोनू की दोनों बहने पूरी तरह गदराई हुई थीं। दो बच्चों की मां होने का असर उनके शरीर पर भी दिखाई पड़ रहा था। पर यह उनकी मादकता को और भी बढ़ा रहा था।

सुगना को याद कर सोनू का लंड एक बार फिर हरकत में आ रहा था। अचानक सोनू को दुकान पर टंगा एक कपड़ा पसंद आ गया सोनू ने रिक्शा रोका और उतरकर उस दुकान के अंदर आ गया अंदर एक खूबसूरत महिला कपड़े तह कर रही थी सोनू को देखते ही उसने पूछा

"भैया क्या देखना है..?"

सोनू उस महिला को बेहद ध्यान से देख रहा था महिला की उम्र उसकी अपनी बहनों से मेल खाती थी परंतु सुंदरता ….. सोनू को अपनी बहनों पर नाज था सुगना तो जैसे उसके ख्वाबों की परी बन चुकी थी। मन में यह सोच लाकर सोनू कभी लाली के प्रति अन्याय करता परंतु सुगना, सुगना और उसका आकर्षण सब पर भारी था।


सोनू दुकान के काउंटर पर आ गया और काउंटर से सट कर खड़ा हो गया। सोनू का लंड दुकान के काउंटर से रगड़ रहा था वह मीठी रगड़ सोनू को बेहद आनंददायक लग रही थी।

बहनों के लिए सूट देखते देखते सोनू ने अपने आनंद का उपाय कर लिया था…

उस महिला ने सोनू को कई सूट दिखाएं जिसमें वह सूट भी शामिल था जो सोनू की निगाहों पर चढ़ गया था।

कई सूट देखने के पश्चात आखिरकार सोनू ने दो सूट पसंद कर लिए। एक अपनी बड़ी बहन सुगना के लिए और दूसरी अपनी मदमस्त लाली के लिए। सूट स्लीवलेस तो नहीं थे परंतु बाहों पर सिर्फ चिकनकारी की हुई थी। बाकी कुर्ते पर स्तर लगा हुआ था…महिला सोनू को सूट की चूची वाली जगह पर बार-बार देखते देख कर बोली…..

आपको साइज पता है तो बता दीजिए हम तुरंत ही उसी नाप का बना देंगे..

सोनू की चोरी पकड़ी गई थी काउंटर पर काम कर रही महिला ग्राहकों की उत्सुकता और प्रश्न को भलीभांति समझती थी।

सोनू ने शर्माते हुए कहा

" 36 और 34…"

नंबर बताते समय सोनू ने सुगना और लाली की सूट का रंग तय कर दिया। हल्के हरे रंग के सूट में सुगना की कल्पना कर सोनू बाग बाग हो गया ..

सूट पसंद करने के बाद अब बारी अंतरंग वस्त्रों की थी .. सोनू ने लाली के लिए तो अंतरंग वस्त्र पसंद किए परंतु अपनी बड़ी बहन सुगना के लिए अंतर्वस्त्र खरीदने की हिमाकत नहीं कर पाया।उसने जितनी हिम्मत विचारों में इकट्ठा की थी उसे असली जामा पहनाने में नाकामयाब रहा।

लाली को कामुक अंतर्वस्त्र बेहद पसंद थे पसंद तो सुगना को भी थे पर इस समय उसे न तो इन वस्त्रों की उपयोगिता थी और नहीं आवश्यकता। सोनू उस महिला से अंतर्वस्त्र खरीदते समय बेहद शर्मा रहा था। महिला उसके सामने तरह-तरह ब्रा और पेंटी रखती जो सामान्यतः प्रयोग में लाई जाती है परंतु न तो सोनू सामान्य था और नहीं उसकी भावनाएं।

अंततः सोनू ने अपनी इच्छा स्पष्ट रूप से रख दी

"ऐसी जालीदार नहीं है क्या फैंसी वाली.."

महिला अंदर जाकर जालीदार कामुक ब्रा पेंटी का सेट ले आई और उसे देखकर सोनू की बांछें खिल उठी।

उसके जेहन में अब उस कामुक ब्रा और पेंटी में कमरे में चहलकदमी हुई करती हुई उसकी लाली दीदी घूम रही थी। वह मन ही मन लाली को घोड़ी बनाकर तथा उसकी जालीदार पेंटी को हटाकर अपना लंड डालकर उसे गचागच चोदने की कल्पना करने लगा जैसा उसने हालिया किसी ब्लू फिल्म में देखा था। उसने लाली के लिए दो ब्रा और पैंटी का सेट पसंद कर लिया।


उसी समय सोनू का एक और दोस्त उसी दुकान में आता हुआ दिखाई पड़ा जो अपनी प्रेमिका के लिए शायद कोई उपहार खरीदने ही आया था।

सोनू ने आनन-फानन में महिला को पैकिंग के निर्देश दिए और अपने दोस्त सोनू से बात करने लगा..

या तो सोनू …..या उसके दिशा निर्देश सुनने वाली महिला की गलती या नियति की चाल पर सोनू द्वारा पसंद की गई दोनो जालीदार कामुक ब्रा और पेंटी को भी उन सूट के साथ अलग अलग पैक कर दिया गया शायद पैक करने वाले ने अपने दिमाग का भी प्रयोग कर दिया था…. और अनजाने में ही सोनू की कामुकता को उसकी दोनों बहनों में बराबरी से बांट दिया था।

डब्बे को गिफ्ट रैप के पश्चात महिला ने समझदारी दिखाते हुए डिब्बे के कोने में बड़ा और छोटा लिखकर सूट में स्पष्ट अंतर कर दिया।

सोनू इस बात से कतई अनजान था कि सुगना के पैकेट में खूबसूरत जालीदार ब्रा पेंटी भी पैक है। सोनू उमंग में पैकेट लेकर वापस आने लगा। जालीदार ब्रा और पेंटी में लाली अब भी उसके दिमाग में घूम रही थी।

सोनू ने हॉस्टल पहुंच कर अपने हाथों की एक्सरसाइज की और वीर्य स्खलन के उपरांत ही उसका दिमाग शांत हुआ।

2 दिनों बाद रक्षाबंधन का पावन त्यौहार था। सोनू के लिए अगले 2 दिन 2 वर्ष जैसे बीत रहे थे … सोनू लाली से मिलने को तड़प रहा था और मन ही मन यह प्रार्थना कर रहा था कि काश उस दिन के दृश्य एक बार फिर उसी क्रम में दोहराया जाए .. सोनू के मन में चल रहे ख्याल कभी घनघोर वासना जन्य होते जिसमें सुगना भी एक भागीदार होती और कभी वह सिर्फ इस बात पर ही अत्यधिक कामोत्तेजक हो जाता कि वह अपनी बड़ी बहन की हम उम्र सहेली को उसी के सामने चोदेगा….परंतु उसे भी यह बात पता थी शायद यह दोबारा संभव नहीं पर जैसे सावन के अंधे को सब कुछ हरा हरा ही सूझता है वैसे सोनू की उम्मीदें बढ़ती जा रही थी…

उधर बनारस में सोनी सुगना और लाली तीनों सोनू का इंतजार कर रहे थे.

सोनू ने सोनी और विकास के रिश्ते को स्वीकार कर जो बड़प्पन दिखाया था उसने सोनी के दिलों दिमाग पर गहरी छाप छोड़ी थी सोनू उसका बड़ा भाई था परंतु सोनी की निगाहों में अब वह बेहद जिम्मेदार और पिता तुल्य हो चुका था।

सोनी पूरी आस्था और लगन से अपने बड़े भाई का इंतजार कर रही थी। सुगना भी सोनू के आने से बेहद प्रसन्न थी आखिर सोनू को देखे कई दिन बीत चुके थे।


पिछले कई वर्षों तक एक साथ रहने से उसका लगाव सोनू से बेहद ज्यादा हो गया था वैसे भी वह उसका छोटा और प्यारा भाई था पिछले बार के उस कामुक दृश्य को छोड़ दें तो सुगना और सोनू के संबंध बेहद आत्मीय रहे थे। खासकर सुगना की तरफ से। सोनू तो बीच-बीच में उसकी सुंदरता पर मोहित हो जाता था ।

सोनू वैसे भी अब पूरे परिवार की शान बन चुका था और सुगना अपने छोटे भाई पर नाज करती थी…परंतु जब जब सुगना के दिमाग में वह कामुक दृश्य आते उसका अंतर्मन सिहर उठता।

उसकी निगाहों में सोनू का मजबूत खूटे जैसा लंड और लाली की बुर चूदाई के दृश्य घूमने लगते। उसे सोनू का लंड अपने बाबूजी सरयू सिंह के लंड से मिलता जुलता प्रतीत होता और न जाने कब वह उस अद्भुत लंड के बारे में सोचते सोचते सुगना की जांघों के बीच चिपचिपा पन आ जाता। भाई बहन का रिश्ता कुछ ही पलों में तार-तार होने लगता …..और सुगना वापस सचेत हो जाती….

और लाली का तो कहना ही क्या इधर दोनों बहने सोनू के पसंद का सामान तैयार कर रही थी और उधर लाली अपनी जांघों के बीच उगाए अनचाहे बालों को हटाकर अपने छोटे भाई के लिए मल्ल युद्ध का अखाड़ा तैयार कर रही थी…

तीनों बहनों के लिए सोनू अलग-अलग रूप में दिखाई पड़ रहा था परंतु सुगना सबसे ज्यादा संशय में थी सोनू का यह बदला हुआ रूप के दिमाग को कतई रास ना आ रहा था परंतु उसकी जांघों के बीच वह उपेक्षित सुकुमारी अपनी पलकों पर आंसू लिए सोनू के उस रूप को रह-रहकर याद कर रही थी और सुगना का ध्यान अपनी तरफ खींच रही थी..

"ए सुगना देख बेसन जरता… कहां भुलाईल बाड़े?"

"सोनुआ के बारे में सोच तनी हां"

"वोही दिन के बारे में सोचा तले हा नू …जायदे अब कि आई तब फिर सिनेमा दिखा देब"


सुगना ने गरम छनोटा लाली की तरफ किया और मुस्कुराते हुए बोली

"ढेर पागल जैसन बोलबे त एही से दाग देब…."

लाली पीछे हटी और मुस्कुराते हुए बोली

"काश सोनुआ तोर भाई ना होखित" सुगना को यह बात समझ ना आए और जब तक वह यह बात समझती सोनी भी कमरे में आ चुकी थी सोनू को लेकर हो रही तकरार सुनकर उसने बिना बात समझे ही कहा..

"दीदी , सोनू भैया के जान से ज्यादा मानेले ओकरा बारे में कुछ मत बोला दीदी बिल्कुल ना सुनी"

"अरे वाह जब से लखनऊ से आईल बाड़ू सोनू भैया सोनू भैया रट लगावले बाडू कौन जादू कर देले बा सोनुआ" अनजाने में ही लाली ने सोनी से वह बात पूछ दी जिसका उत्तर न तो सोनी दे सकती थी और नहीं देना उचित था.. सोनी के विवाह का राज सोनी और सोनू के सीने में दफन था।

सुगना ने इस संवाद पर विराम लगाया और वह बेसन से भरी हुई कड़ाही लेकर नीचे बैठ गई और सोनी तथा लाली से कहा

"आवा सब केहूं मिलकर लड्डू बनावल जाऊ" सुगना को पता था सोनू को बेसन के लड्डू बेहद पसंद थे। सुगना को स्वयं मोतीचूर के लड्डू पसंद थे परंतु फिर भी वह अपनी पसंद को ताक पर रखकर सोनू के लिए लड्डू बना रही थी। लाली और सोनी भी सुगना का साथ दे रही थी सोनू अलग-अलग रूपों में तीनों बहनों के मन में छाया हुआ था।

और आखिरकार वह दिन आ गया जब सोनू रक्षाबंधन पर अपने घर बनारस के लिए रवाना हो गया…

रक्षाबंधन का दिन…

सोनू को आज बनारस एक्सप्रेस बेहद धीमी चलती हुई प्रतीत हो रही थी। लोहे की सलाखों के पीछे बैठा सोनू ऐसा महसूस कर रहा था जैसे वह किसी जेल में बैठा है। जब ट्रेन अकारण रूकती वह कभी व्यवस्था को कोसता कभी उन मनचले लड़कों को जो ट्रेन को चेन पुलिंग कर कर रोक दिया करते थे। उसका मन तो न जाने कबका बनारस स्टेशन पहुंच चुका था। मन में सुगना और लाली को देखने की लालसा लिए वह बेहद अधीर हो चला था।

वह अपने बैग से झांक रहे सूट के पैकेट को देखता उसके पूरे दिलो दिमाग में सनसनी दौड़ जाती है क्या सुगना दीदी आधुनिक जमाने के सूट को पहनेगी… उन्होंने आज तक तो कभी ऐसे वस्त्र नहीं पहने कहीं वह नाराज तो नहीं होंगी…. और यदि उन्होंने इससे पहनने के लिए मना कर दिया तब… सोनू के दिमाग में सिर्फ और सिर्फ प्रश्न थे …. परंतु उनका उत्तर उसकी दोनों बहने ही दे सकती थी…..


हर इंतजार का अंत होता है और सोनू का भी हुआ.. ट्रेन के धीरे होते ही सोनू अपना सामान लेकर बनारस स्टेशन पर कूद पड़ा वह भागते हुए बाहर पहुंचा और ऑटो करके तेजी से अपने घर की तरफ बढ़ चला…

सोनू ने अपने परिवार के सभी सदस्यों के लिए कुछ न कुछ गिफ्ट लाए थे परंतु सुगना और लाली का वह सूट अनोखा था..

उधर सुगना और लाली के घर में त्यौहार का माहौल था। सारे छोटे बच्चे सुबह से ही नहा धोकर तैयार थे। सोनी बच्चों को तैयार कराने में पूरी तरह मदद कर रही थी। सोनी ने बच्चों को नए नए कपड़े पहना कर खेलने भेज दिया छोटा सूरज आज न जाने कैसे सबसे पीछे हो गया था।


सोनी सूरज को कपड़े पहना रही थी और आज कई दिनों बाद सोनी ने एक बार फिर वही हरकत की उसने सूरज का अंगूठा सहला दिया। बिस्तर पर खड़ा सूरज अपनी नूनी को बढ़ते हुए देख रहा था..

"मौसी ई का कर देलू"

सूरज का यह संबोधन उसे बेहद प्यारा लगा और सोनी ने उसे छेड़ते हुए सूरज के अंगूठे को थोड़ा और सहला दिया नूनी का आकार विकास के हथियार के बराबर हो गया और सोनी शरमा गई. एक पल के लिए सोनी के दिमाग में विकास के साथ बिताए गए वह कामुक पल घूम गए सूरज सोनी के बाल खींचते हुए बोला..

"मौसी जल्दी ठीक कर ना ता मां के बुला देब"

सोनी ने प्यारे सूरज के गाल पर मीठी चपत लगाई और अपनी हथेलियां उसकी आंखों पर रखकर नीचे झुक गई.. सोनी को इस विलक्षण समस्या का कारण तो पता न था पर निदान पता था।

सूरज खिलखिला रहा था और सोनी के रेशमी बालों को पकड़कर कभी दूर करता कभी पास… सोनी मुस्कुरा रही थी और विकास को याद कर रही थी। वह विज्ञान की छात्रा सूरज के अंगूठे के इस राज को आज भी समझने का वैसे ही प्रयास कर रही थी..

अचानक सुगना ने दरवाजा खोल दिया और सोनी की अवस्था देखकर सारा माजरा समझ गई और बोली..

"ते बार बार काहे ओकर अंगूठा छूएले ?"

"अरे कपड़ा पहनावत समय भुला गईनी हां"

सुगना ने सूरज को अपनी गोद में उठा लिया और एक बार फिर उसके अंगूठे को सहला कर उसने अपने पूर्व अनुभव को प्रमाणित करने की कोशिश की और यकीनन सुगना के अंगूठे सहलाए जाने से सूरज में कोई परिवर्तन न हुआ।

जाने नियति ने सूरज को ऐसा कौन सा अभिशाप दिया था…

सुगना ने कहा

"हम जा तानी नहाए ते पूजा पाठ के तैयारी कर ले सोनू भी आवत ए होई.."


सुगना ने अपने कपड़े उसी कमरे के बिस्तर पर रख दिए जिस पर आज से कुछ महीनों पहले उसने लाली और सोनू की जबरदस्त चूदाई देखी थी और अपनी नाइटी लेकर बाथरूम में घुस गई। विलंब हो रहा था और सुगना के दिमाग सोनू घूम रहा था जो कुछ ही समय बाद आने वाला था..

सुगना बाथरूम में नग्न होकर नहाने लगी। साबुन लगाते समय सुगना के दिमाग में फिर एक बार वही दृश्य घूमने लगे…. कैसे सोनू लाली की कमर को पकड़कर गचागच उसे चोद रहा था….. सोनू का मजबूत लंड उसके दिमाग पर एक अमिट छवि छोड़ चुका था।


सुगना ने एक बार फिर अपने हाथ की कलाइयों को देखा और सोनू के लंड से उसकी तुलना करने की कोशिश की।

सुगना मुस्कुरा रही थी उसे ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे उसका अपना छोटा भाई उसके बाबू जी से किसी भी तुलना में कम न था। यदि सरयू सिंह अपनी युवावस्था में रहे होते तो शायद सोनू के जैसे ही होते। सोनू का भरा पूरा मांसल शरीर वह मजबूत भुजाएं ….हाथों पर सोनू के लंड पर दौड़ती नसें सब कुछ आदर्श था।

जैसे-जैसे सुगना सोनू की कसरती शरीर को याद करती रही वैसे वैसे उसकी हथेलियां स्वतः उसके गुप्तांगों की तरफ बढ़ चली। यह क्रिया स्वाभाविक रूप से हो रही थी। साबुन बार-बार अपनी जगह तलाश रहा था और अंततः सुगना की तर्जनी ने सुगना की उस कोमल दरार के बीच अपनी जगह बना ली।

यह क्या …..बाहर जितनी फिसलन थी अंदर उससे कई गुना ज्यादा थी… बुर् के होठों पर छलका प्रेम रस में न जाने कौन सा चुंबकीय आकर्षण पैदा किया और सुगना की तर्जनी उसकी बुर से प्रेम रस को खींच खींच कर बाहर निकालने लगी… जैसे ही भग्नासे ने तर्जनी का स्पर्श पाया वह फूल कर कुप्पा हो गया और बार-बार उस मादक स्पर्श की दरकार करने लगा…..सुगना के दांतो ने होठों को खींच कर अपना दबाव बढ़ाया जैसे वह अपनी मालकिन को होश खोने से रोक रहे हों।


शरीर के अंगों पर लगा साबुन सुगना की हथेलियों का इंतजार कर रहा था। पर सुगना की सोच पर न जाने कौन सा रस हावी हो गया था उसका सारा आकर्षण उस छोटी सी दरार पर केंद्रित हो गया था शायद जिस आनंद की भूखी सुगना कई महीनों से थी वह उसे प्राप्त हो रहा था… उसे समय का आभास भी न रहा….

सुगना को वास्तविक दुनिया में लाने का श्रेय आखिरकार लाली को गया जो दरवाजे पर खड़े होकर कह रही थी

" सुगना जल्दी कर 09 बज गइल सोनू आवहीं वाला बा.."


सुगना ने एक लंबी आह भरी और अपनी तड़पती बुर को अकेला छोड़ कर वापस अपने शरीर पर लगे साबुन के झाग हटाने लगी।

लोटे से लगातार वह अपने सर पर पानी डाल रही थी जो उसकी फूली और तनी हुई चुचियों से होते हुए जांघों के बीच बह रहा था। जैसी ही सुगना ने अपनी जांघें सटाई जांघों के बीच पानी इकट्ठा हो गया। इतनी सुंदर थी उसकी जांघें और कितना सुंदर था वह प्रेम त्रिकोण।

जिस त्रिकोण पर उसके बाबू जी सरयू सिंह सब कुछ निछावर करने को तैयार रहते थे। पिछले कई महीनों से उस त्रिकोण का कोई पूछना हार न था।। रतन को याद कर सुगना अपना मन खट्टा नहीं करना चाहती थी। उसने अपनी जांघें फैला दी और पानी को बह जाने दिया। अपनी बुर को थपथपा कर सुगना उठ खड़ी हुई और नाइटी से अपने भीगे बदन को पोछने लगी..

अपने बदन को यथासंभव पोछने के पश्चात सुगना उसी कमरे में आकर अपने वस्त्र पहनने लगी… जो गलती उस दिन अनजाने में सोनू और लाली ने की थी वही गलती आज सुगना दोहरा चुकी थी खिड़की पर लगा हुआ पर्दा थोड़ा हटा हुआ था …

सारे बच्चे के हाल में चिल्लपों मचाए हुए थे। सोनी रक्षाबंधन की तैयारियों में रंगोली बनाने में व्यस्त थी। लाली सोनू के लिए पूआ बना रही थी। सोनू को पुआ ठीक वैसे ही पसंद था जैसे सरयू सिंह को।


सोनू को दोनो पुए पसंद थे जांघों के बीच रसभरे भी और प्लेट में रखे चासनी से भीगे हुए भी।

बाहर अचानक खड़ खड़ खड़ खड़ की आवाज हुई…सोनू का ऑटो बाहर आकर रुक चुका था। दरवाजा सटा हुआ था। सोनू ने अंदर आकर अपनी बहनों को चकमा देने की सोची और वह दरवाजा धीरे से खोल कर अंदर आ गया। अंदर कमरे में सुगना के चूड़ियों की खनकने की आवाज आ रही थी। सोनू भली भांति जानता था कि घर में सिर्फ और सिर्फ उसकी सुगना दीदी ही भरपूर चूड़ियां पहनती हैं । लाली ने विधवा होने के बाद चूड़ी पहनना लगभग छोड़ कर दिया था और सोनी वह तो आधुनिक युवती थी और हाथों में 1या 2 कंगन डालकर वह मस्त रहती थी।

चूड़ियों के खड़कने से सोनू ने अंदाज कर लिया कि सुगना दीदी उसी कमरे में है..अचानक उसका ध्यान उस खुली हुई खिड़की पर गया…. और सोनू ने अपनी आंखे उस दरार पर टिका दीं….

सोनू की आंखे फटी रह गईं…

शेष अगले भाग में…
Aakhir khidki se sonu ne bhi dekh liya jese sugna ne sonu ko dekha tha bese hi sonu ne bhi sugna ko dekh liya hisabar barabar ho gya
 
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