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Nice and superb update.....अध्याय अड़तालिस
इस वक़्त सारे अस्त्र धारक महागुरु के कुटिया मे जमा हो कर आगे के बारे में विचार विमर्श कर रहे थे
दिग्विजय:- महागुरु अब आगे क्या करना है
महागुरु:- आज पूरे जीवन मे पहली बार खुद को इतना कमजोर महसूस कर रहा हूँ न जाने क्यों अस्त्र हमे अपनी शक्तियां नही देना चाहते या उनकी ही शक्तियां सुप्त हो गयी है कुछ पता नही चल रहा है
प्रिया:- मुझे भद्रा की चिंता हो रही है कही उसको कुछ
शैलेश:- हिम्मत मत हारो प्रिया भद्रा को कुछ नही होगा उसके साथ पृथ्वी अस्त्र है
गौरव:- लेकिन मुझे अभी भी नही समझ आ रहा की ये अस्त्र अचानक से निष्क्रिय क्यों हो गए
साहिल:- कही अब अस्त्र हमे खुदके काबिल न समझ पा रहे हो असुरों से मिले हार के कारण
दिग्विजय:- नही ऐसा नहीं हो सकता इसके पीछे कुछ और कारण है महागुरु दिलावर और गौरव तुम दोनों को अस्त्रों के बारे में हम सब से अधिक ज्ञान है आप तीनों सोचिये कि ऐसा कैसे हो सकता हैं
दिग्विजय की बात सुनकर तीनों सोच मे पड़ गए और जल्द ही महागुरु के दिमाग की बत्ती जल उठी
महागुरु:- जितना मैने पड़ा है उस हिसाब से ऐसा 3 वजहों से ही हो सकता हैं
महागुरु की बात सुनकर सबके कान खड़े हो गये और सब महागुरु की बात ध्यान से सुनने लगे
महागुरु :- जैसा मैने पढ़ा था कि अस्त्रों को निष्क्रिय करने के लिए उसके धारक को जान से मार दिया जाए तो अस्त्र अपना नया धारक चुनने तक निष्क्रिय हो जाता हैं
शैलेश :- और दूसरा कारण
गौरव:- दूसरा कारण यह है कि अगर अस्त्र धारक खुद से ही अपने अस्त्र का त्याग कर दे
शांति :- अब तक बताये हुए दोनों ही कारण गलत है तो अब तीसरा कारण क्या है
दिलावर:- तीसरा कारण यह है कि अगर कोई जबरदस्ती अस्त्र को उनके धारक से छिने या चुरा ले तो अस्त्र खुद को सुप्त अवस्था मे डाल देता है लेकिन जब धारक उसे वापस पाने की कोशीश करता है तब अस्त्र फिर से सक्रिय हो जाता हैं
दिग्विजय:- ये कारण हो सकता हैं लेकिन ये अस्त्र फिर से सक्रिय क्यों नही हो रहे हैं
अब तक हुए सभी बातों को लेकर सभी बड़े चिंता मे आ गए थे और सब दिग्विजय की बात सुनकर सोच मे पड़ गए थे की तभी महागुरु के चेहरे के भाव ऐसे थे की जैसे उन्होंने इस गुत्थी को सुलझा दिया है लेकिन न जाने क्यों वो शांत बैठे हुए थे
तो वही दूसरी तरफ मायासुर से इतनी बुरी तरीके से पिटने के बाद भी शिबू अब तक हँसे जा रहा था जो देखकर त्रिलोकेश्वर और दमयंती दोनों हैरान थे
त्रिलोकेश्वर द्वारा लगातार पूछने के बाद भी उसकी हंसी रुकने का नाम नही ले रही थी और जब शिबू थोड़ा शांत हुआ तो दमयंती ने उसे पूछा
दमयंती :- शिबू क्या हुआ तुम इतना हँस क्यों रहे हो मायासुर से इतना पिटने के बाद भी तुम शांत नही हो रहे हो
शिबू:- मे अपनी पिटाई पर नही बल्कि जो मायासुर और बाकी सब असुरों का जो हाल होने वाला है उस पर हँस रहा था
त्रिलोकेश्वर :- मतलब क्या कहना चाहते हो तुम
शिबू :- तुम अभी तक समझे नही मित्र तेरा बेटा हमारी उम्मीद कुमार भद्रा अभी तक जिंदा है और उसीने मायासुर का ये हाल किया है
शिबू की बात सुनकर जहाँ दमयंती भावुक हो कर रोने लगी थी तो वही त्रिलोकेश्वर अब तक शांत था जैसे किसी सोच मे गुम है
शिबू (दमयंती से) :- सम्राज्ञी अब रोने का नही बल्कि हँसने का अपना सालों पुराना बदला लेने का समय है असुरों के अंत हमारे आज़ादी का समय है महायुद्ध का आगाज़ अब हो चुका
त्रिलोकेश्वर :- तुम सच कह रहे हो लेकिन मुझे ये समझ नही आ रहा है कि हम उसकी जीव ऊर्जा को महसूस क्यों नही कर पा रहे हैं हम उससे मस्तिष्क तरंगों से भी संपर्क नही कर पा रहे हैं
शिबू:- इसमें कोनसी बड़ी बात है तुम्ही ने कहा था न की तुमसे मुझसे हम सबसे बड़ी ताकत है सप्तचक्रों की और ये तो हम पहले से जानते है की उस कालविजय आश्रम में महागुरु ने सबसे शक्तिशाली कवच लगाया है
त्रिलोकेश्वर (चिल्लाके) :- मेरे भाईयों मेरे प्रजाजन अब हमारी आज़ादी ज्यादा दूर नही है लेकिन यह सोचके खुदको कमजोर मत पड़ने देना क्योंकि इसके बाद हमे एक महासंग्राम का हिस्सा भी बनना पड़ेगा जो आसान नही होगा
त्रिलोकेश्वर की बात सुनकर हर कोई उसके नाम के नारे लगाने लगा था और अब से उस कैद खाने मे हर कोई आने वाले युद्ध के लिए खुदको तैयार करने लगा था
तो वही इन सब से दूर एक बर्फीले जगह पर मायासुर लगातार चलते जा रहा था उसके पूरे शरीर पर बर्फ गिरी हुई थी और अभी वो चलते हुए एक कुटिया के पास पहुंचा और जैसे ही उसने उस कुटिया के आंगन मे कदम रखा
तो उस जगह की सारी ठंड गायब हो गई और उसके बदले वहा के वातावरण में एक आरामदायक उष्णता फैल गयी और अभी वो उस कुटिया मे प्रवेश करता की तभी उस कुटिया से एक साधु बाहर निकल कर आया जिसके आते ही मायासुर उसके सामने अपने घुटने टेक दिए
मायासुर:- महान असुर कुल गुरु शुक्राचार्य की जय हो
शुक्राचार्य:- आज मेरे इस शिष्य को अपने गुरु की याद कैसे आ गयी
मायासुर :- गुरुदेव बात ही गंभीर है जिसके लिए मुझे आपकी इस बरसों पुरानी साधना मे विघ्न डालना पड़ा
शुक्राचार्य:- क्यों जिस ढोंगी को तुमने मेरे स्थान पर असुर गुरु बनाया है उसके पास इसका हल नहीं है क्या
मायासुर :- कैसी बात करते हो गुरुदेव आपकी सामने उसकी क्या मिसाल और आपको एकांत में रखने की युक्ति भी आपकी ही थी और उस ढोंगी को आपका स्थान देने की युक्ति मैने इसीलिए की थी कि उस वजह से असुर बालको को वही शिक्षा वही ज्ञान मिले जो मे चाहू
शुक्राचार्य:- इसीलिए तो तुम मेरे सबसे प्रिय शिष्य हो मायासुर अब बताओ क्या समस्या है कि तुम यहाँ आने के लिए मजबूर हो गए
मायासुर :- समस्या एक नही दो है गुरुदेव सबसे पहले तो उस ढोंगी ने हमारा कार्य करने से मना कर दिया है मुझे उससे गद्दारी की गंध आ रही हैं
शुक्राचार्य :- वो ढोंगी इस लायक है ही नहीं की वो हमारे इस महान कार्य को पुरा कर सके इसीलिए मैने पहले ही उस कार्य को अंजाम दे दिया है और बस कुछ दिन और फिर हमारा कार्य पुरा हो जायेगा
मायासुर :- जय हो गुरुदेव मुझे पता था कि आप के पास मेरे हर समस्या का हल है अब सबसे बड़ी समस्या महाधारक ने जनम ले लिया है और पृथ्वी अस्त्र को धारण कर लिया है
शुक्राचार्य :- इसमे भी कोई समस्या नही है महाधारक का जन्म होना तय था जब सातों अस्त्रों को अपना अपना महा धारक मिलेगा तभी तो हमारा मकसद पूर्ण होगा
मायासुर :- ये आप क्या कह रहे हो अगर सातों अस्त्र के महा धारक आ गए तो हमारे रास्ते मे कठिनाईयां बढ़ जायेगी
शुक्राचार्य :- कोई भी बड़ी शक्ति पाने के लिए अंगारो पर तो चलना पड़ता है मायासुर बिना घोर तपस्या के मनचाहा वरदान नही मिलता
मायासुर :- मै समझ गया गुरुवर लेकिन उस पृथ्वी अस्त्र धारक न जाने कैसे लेकिन शिबू की तलवारे हासिल कर ली है
शुक्राचार्य :- ये असंभव है शिबू की तलवारे तमसिक ऊर्जा से बनी है और कोई भी अस्त्र किसी भी तमसिक ऊर्जा धारक को अपने महाधारक के रूप मे नही चुन सकती न जाने अब आदिदेव कोनसा खेल खेल रहे है
मायासुर :- आपको क्रोध नही आ रहा है कि शिबू आपके विरुद्ध उन अच्छाई के पक्ष का साथ दे रहा है जबकि वो भी मेरे जैसे आपका ही शिष्य है
शुक्राचार्य :- अगर वो ये नही करता तो जरूर मे उसे अपने शिष्य के रूप में न स्वीकारता
मायासुर :- मतलब
शुक्राचार्य :- वो भी मेरा शिष्य है और अगर वो खुदको कैद से आजाद करने की खुदके मकसद को पुरा करने के लिए कोशीश न करता तो मेरी शिक्षा व्यर्थ होती
मायासुर:- आपकी बातें मुझे समझ मे नही आती गुरुवर बस में इतना जानता हूं कि अगर कोई मेरे रास्ते में काँटा बनेगा तो उसे मे निकालकर आग के दर्ये मे फेक दूँगा
शुक्राचार्य :- विजयी भव:
अपने गुरुदेव का आशीर्वाद प्राप्त करने के बाद मायासुर वहा से निकल गया और उसके बाद शुक्राचार्य फिर से अपनी साधना मे बैठे गए
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आज के लिए इतना ही
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Nice update....अध्याय अड़तालिस
इस वक़्त सारे अस्त्र धारक महागुरु के कुटिया मे जमा हो कर आगे के बारे में विचार विमर्श कर रहे थे
दिग्विजय:- महागुरु अब आगे क्या करना है
महागुरु:- आज पूरे जीवन मे पहली बार खुद को इतना कमजोर महसूस कर रहा हूँ न जाने क्यों अस्त्र हमे अपनी शक्तियां नही देना चाहते या उनकी ही शक्तियां सुप्त हो गयी है कुछ पता नही चल रहा है
प्रिया:- मुझे भद्रा की चिंता हो रही है कही उसको कुछ
शैलेश:- हिम्मत मत हारो प्रिया भद्रा को कुछ नही होगा उसके साथ पृथ्वी अस्त्र है
गौरव:- लेकिन मुझे अभी भी नही समझ आ रहा की ये अस्त्र अचानक से निष्क्रिय क्यों हो गए
साहिल:- कही अब अस्त्र हमे खुदके काबिल न समझ पा रहे हो असुरों से मिले हार के कारण
दिग्विजय:- नही ऐसा नहीं हो सकता इसके पीछे कुछ और कारण है महागुरु दिलावर और गौरव तुम दोनों को अस्त्रों के बारे में हम सब से अधिक ज्ञान है आप तीनों सोचिये कि ऐसा कैसे हो सकता हैं
दिग्विजय की बात सुनकर तीनों सोच मे पड़ गए और जल्द ही महागुरु के दिमाग की बत्ती जल उठी
महागुरु:- जितना मैने पड़ा है उस हिसाब से ऐसा 3 वजहों से ही हो सकता हैं
महागुरु की बात सुनकर सबके कान खड़े हो गये और सब महागुरु की बात ध्यान से सुनने लगे
महागुरु :- जैसा मैने पढ़ा था कि अस्त्रों को निष्क्रिय करने के लिए उसके धारक को जान से मार दिया जाए तो अस्त्र अपना नया धारक चुनने तक निष्क्रिय हो जाता हैं
शैलेश :- और दूसरा कारण
गौरव:- दूसरा कारण यह है कि अगर अस्त्र धारक खुद से ही अपने अस्त्र का त्याग कर दे
शांति :- अब तक बताये हुए दोनों ही कारण गलत है तो अब तीसरा कारण क्या है
दिलावर:- तीसरा कारण यह है कि अगर कोई जबरदस्ती अस्त्र को उनके धारक से छिने या चुरा ले तो अस्त्र खुद को सुप्त अवस्था मे डाल देता है लेकिन जब धारक उसे वापस पाने की कोशीश करता है तब अस्त्र फिर से सक्रिय हो जाता हैं
दिग्विजय:- ये कारण हो सकता हैं लेकिन ये अस्त्र फिर से सक्रिय क्यों नही हो रहे हैं
अब तक हुए सभी बातों को लेकर सभी बड़े चिंता मे आ गए थे और सब दिग्विजय की बात सुनकर सोच मे पड़ गए थे की तभी महागुरु के चेहरे के भाव ऐसे थे की जैसे उन्होंने इस गुत्थी को सुलझा दिया है लेकिन न जाने क्यों वो शांत बैठे हुए थे
तो वही दूसरी तरफ मायासुर से इतनी बुरी तरीके से पिटने के बाद भी शिबू अब तक हँसे जा रहा था जो देखकर त्रिलोकेश्वर और दमयंती दोनों हैरान थे
त्रिलोकेश्वर द्वारा लगातार पूछने के बाद भी उसकी हंसी रुकने का नाम नही ले रही थी और जब शिबू थोड़ा शांत हुआ तो दमयंती ने उसे पूछा
दमयंती :- शिबू क्या हुआ तुम इतना हँस क्यों रहे हो मायासुर से इतना पिटने के बाद भी तुम शांत नही हो रहे हो
शिबू:- मे अपनी पिटाई पर नही बल्कि जो मायासुर और बाकी सब असुरों का जो हाल होने वाला है उस पर हँस रहा था
त्रिलोकेश्वर :- मतलब क्या कहना चाहते हो तुम
शिबू :- तुम अभी तक समझे नही मित्र तेरा बेटा हमारी उम्मीद कुमार भद्रा अभी तक जिंदा है और उसीने मायासुर का ये हाल किया है
शिबू की बात सुनकर जहाँ दमयंती भावुक हो कर रोने लगी थी तो वही त्रिलोकेश्वर अब तक शांत था जैसे किसी सोच मे गुम है
शिबू (दमयंती से) :- सम्राज्ञी अब रोने का नही बल्कि हँसने का अपना सालों पुराना बदला लेने का समय है असुरों के अंत हमारे आज़ादी का समय है महायुद्ध का आगाज़ अब हो चुका
त्रिलोकेश्वर :- तुम सच कह रहे हो लेकिन मुझे ये समझ नही आ रहा है कि हम उसकी जीव ऊर्जा को महसूस क्यों नही कर पा रहे हैं हम उससे मस्तिष्क तरंगों से भी संपर्क नही कर पा रहे हैं
शिबू:- इसमें कोनसी बड़ी बात है तुम्ही ने कहा था न की तुमसे मुझसे हम सबसे बड़ी ताकत है सप्तचक्रों की और ये तो हम पहले से जानते है की उस कालविजय आश्रम में महागुरु ने सबसे शक्तिशाली कवच लगाया है
त्रिलोकेश्वर (चिल्लाके) :- मेरे भाईयों मेरे प्रजाजन अब हमारी आज़ादी ज्यादा दूर नही है लेकिन यह सोचके खुदको कमजोर मत पड़ने देना क्योंकि इसके बाद हमे एक महासंग्राम का हिस्सा भी बनना पड़ेगा जो आसान नही होगा
त्रिलोकेश्वर की बात सुनकर हर कोई उसके नाम के नारे लगाने लगा था और अब से उस कैद खाने मे हर कोई आने वाले युद्ध के लिए खुदको तैयार करने लगा था
तो वही इन सब से दूर एक बर्फीले जगह पर मायासुर लगातार चलते जा रहा था उसके पूरे शरीर पर बर्फ गिरी हुई थी और अभी वो चलते हुए एक कुटिया के पास पहुंचा और जैसे ही उसने उस कुटिया के आंगन मे कदम रखा
तो उस जगह की सारी ठंड गायब हो गई और उसके बदले वहा के वातावरण में एक आरामदायक उष्णता फैल गयी और अभी वो उस कुटिया मे प्रवेश करता की तभी उस कुटिया से एक साधु बाहर निकल कर आया जिसके आते ही मायासुर उसके सामने अपने घुटने टेक दिए
मायासुर:- महान असुर कुल गुरु शुक्राचार्य की जय हो
शुक्राचार्य:- आज मेरे इस शिष्य को अपने गुरु की याद कैसे आ गयी
मायासुर :- गुरुदेव बात ही गंभीर है जिसके लिए मुझे आपकी इस बरसों पुरानी साधना मे विघ्न डालना पड़ा
शुक्राचार्य:- क्यों जिस ढोंगी को तुमने मेरे स्थान पर असुर गुरु बनाया है उसके पास इसका हल नहीं है क्या
मायासुर :- कैसी बात करते हो गुरुदेव आपकी सामने उसकी क्या मिसाल और आपको एकांत में रखने की युक्ति भी आपकी ही थी और उस ढोंगी को आपका स्थान देने की युक्ति मैने इसीलिए की थी कि उस वजह से असुर बालको को वही शिक्षा वही ज्ञान मिले जो मे चाहू
शुक्राचार्य:- इसीलिए तो तुम मेरे सबसे प्रिय शिष्य हो मायासुर अब बताओ क्या समस्या है कि तुम यहाँ आने के लिए मजबूर हो गए
मायासुर :- समस्या एक नही दो है गुरुदेव सबसे पहले तो उस ढोंगी ने हमारा कार्य करने से मना कर दिया है मुझे उससे गद्दारी की गंध आ रही हैं
शुक्राचार्य :- वो ढोंगी इस लायक है ही नहीं की वो हमारे इस महान कार्य को पुरा कर सके इसीलिए मैने पहले ही उस कार्य को अंजाम दे दिया है और बस कुछ दिन और फिर हमारा कार्य पुरा हो जायेगा
मायासुर :- जय हो गुरुदेव मुझे पता था कि आप के पास मेरे हर समस्या का हल है अब सबसे बड़ी समस्या महाधारक ने जनम ले लिया है और पृथ्वी अस्त्र को धारण कर लिया है
शुक्राचार्य :- इसमे भी कोई समस्या नही है महाधारक का जन्म होना तय था जब सातों अस्त्रों को अपना अपना महा धारक मिलेगा तभी तो हमारा मकसद पूर्ण होगा
मायासुर :- ये आप क्या कह रहे हो अगर सातों अस्त्र के महा धारक आ गए तो हमारे रास्ते मे कठिनाईयां बढ़ जायेगी
शुक्राचार्य :- कोई भी बड़ी शक्ति पाने के लिए अंगारो पर तो चलना पड़ता है मायासुर बिना घोर तपस्या के मनचाहा वरदान नही मिलता
मायासुर :- मै समझ गया गुरुवर लेकिन उस पृथ्वी अस्त्र धारक न जाने कैसे लेकिन शिबू की तलवारे हासिल कर ली है
शुक्राचार्य :- ये असंभव है शिबू की तलवारे तमसिक ऊर्जा से बनी है और कोई भी अस्त्र किसी भी तमसिक ऊर्जा धारक को अपने महाधारक के रूप मे नही चुन सकती न जाने अब आदिदेव कोनसा खेल खेल रहे है
मायासुर :- आपको क्रोध नही आ रहा है कि शिबू आपके विरुद्ध उन अच्छाई के पक्ष का साथ दे रहा है जबकि वो भी मेरे जैसे आपका ही शिष्य है
शुक्राचार्य :- अगर वो ये नही करता तो जरूर मे उसे अपने शिष्य के रूप में न स्वीकारता
मायासुर :- मतलब
शुक्राचार्य :- वो भी मेरा शिष्य है और अगर वो खुदको कैद से आजाद करने की खुदके मकसद को पुरा करने के लिए कोशीश न करता तो मेरी शिक्षा व्यर्थ होती
मायासुर:- आपकी बातें मुझे समझ मे नही आती गुरुवर बस में इतना जानता हूं कि अगर कोई मेरे रास्ते में काँटा बनेगा तो उसे मे निकालकर आग के दर्ये मे फेक दूँगा
शुक्राचार्य :- विजयी भव:
अपने गुरुदेव का आशीर्वाद प्राप्त करने के बाद मायासुर वहा से निकल गया और उसके बाद शुक्राचार्य फिर से अपनी साधना मे बैठे गए
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आज के लिए इतना ही
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Nice update....अध्याय अड़तालिस
इस वक़्त सारे अस्त्र धारक महागुरु के कुटिया मे जमा हो कर आगे के बारे में विचार विमर्श कर रहे थे
दिग्विजय:- महागुरु अब आगे क्या करना है
महागुरु:- आज पूरे जीवन मे पहली बार खुद को इतना कमजोर महसूस कर रहा हूँ न जाने क्यों अस्त्र हमे अपनी शक्तियां नही देना चाहते या उनकी ही शक्तियां सुप्त हो गयी है कुछ पता नही चल रहा है
प्रिया:- मुझे भद्रा की चिंता हो रही है कही उसको कुछ
शैलेश:- हिम्मत मत हारो प्रिया भद्रा को कुछ नही होगा उसके साथ पृथ्वी अस्त्र है
गौरव:- लेकिन मुझे अभी भी नही समझ आ रहा की ये अस्त्र अचानक से निष्क्रिय क्यों हो गए
साहिल:- कही अब अस्त्र हमे खुदके काबिल न समझ पा रहे हो असुरों से मिले हार के कारण
दिग्विजय:- नही ऐसा नहीं हो सकता इसके पीछे कुछ और कारण है महागुरु दिलावर और गौरव तुम दोनों को अस्त्रों के बारे में हम सब से अधिक ज्ञान है आप तीनों सोचिये कि ऐसा कैसे हो सकता हैं
दिग्विजय की बात सुनकर तीनों सोच मे पड़ गए और जल्द ही महागुरु के दिमाग की बत्ती जल उठी
महागुरु:- जितना मैने पड़ा है उस हिसाब से ऐसा 3 वजहों से ही हो सकता हैं
महागुरु की बात सुनकर सबके कान खड़े हो गये और सब महागुरु की बात ध्यान से सुनने लगे
महागुरु :- जैसा मैने पढ़ा था कि अस्त्रों को निष्क्रिय करने के लिए उसके धारक को जान से मार दिया जाए तो अस्त्र अपना नया धारक चुनने तक निष्क्रिय हो जाता हैं
शैलेश :- और दूसरा कारण
गौरव:- दूसरा कारण यह है कि अगर अस्त्र धारक खुद से ही अपने अस्त्र का त्याग कर दे
शांति :- अब तक बताये हुए दोनों ही कारण गलत है तो अब तीसरा कारण क्या है
दिलावर:- तीसरा कारण यह है कि अगर कोई जबरदस्ती अस्त्र को उनके धारक से छिने या चुरा ले तो अस्त्र खुद को सुप्त अवस्था मे डाल देता है लेकिन जब धारक उसे वापस पाने की कोशीश करता है तब अस्त्र फिर से सक्रिय हो जाता हैं
दिग्विजय:- ये कारण हो सकता हैं लेकिन ये अस्त्र फिर से सक्रिय क्यों नही हो रहे हैं
अब तक हुए सभी बातों को लेकर सभी बड़े चिंता मे आ गए थे और सब दिग्विजय की बात सुनकर सोच मे पड़ गए थे की तभी महागुरु के चेहरे के भाव ऐसे थे की जैसे उन्होंने इस गुत्थी को सुलझा दिया है लेकिन न जाने क्यों वो शांत बैठे हुए थे
तो वही दूसरी तरफ मायासुर से इतनी बुरी तरीके से पिटने के बाद भी शिबू अब तक हँसे जा रहा था जो देखकर त्रिलोकेश्वर और दमयंती दोनों हैरान थे
त्रिलोकेश्वर द्वारा लगातार पूछने के बाद भी उसकी हंसी रुकने का नाम नही ले रही थी और जब शिबू थोड़ा शांत हुआ तो दमयंती ने उसे पूछा
दमयंती :- शिबू क्या हुआ तुम इतना हँस क्यों रहे हो मायासुर से इतना पिटने के बाद भी तुम शांत नही हो रहे हो
शिबू:- मे अपनी पिटाई पर नही बल्कि जो मायासुर और बाकी सब असुरों का जो हाल होने वाला है उस पर हँस रहा था
त्रिलोकेश्वर :- मतलब क्या कहना चाहते हो तुम
शिबू :- तुम अभी तक समझे नही मित्र तेरा बेटा हमारी उम्मीद कुमार भद्रा अभी तक जिंदा है और उसीने मायासुर का ये हाल किया है
शिबू की बात सुनकर जहाँ दमयंती भावुक हो कर रोने लगी थी तो वही त्रिलोकेश्वर अब तक शांत था जैसे किसी सोच मे गुम है
शिबू (दमयंती से) :- सम्राज्ञी अब रोने का नही बल्कि हँसने का अपना सालों पुराना बदला लेने का समय है असुरों के अंत हमारे आज़ादी का समय है महायुद्ध का आगाज़ अब हो चुका
त्रिलोकेश्वर :- तुम सच कह रहे हो लेकिन मुझे ये समझ नही आ रहा है कि हम उसकी जीव ऊर्जा को महसूस क्यों नही कर पा रहे हैं हम उससे मस्तिष्क तरंगों से भी संपर्क नही कर पा रहे हैं
शिबू:- इसमें कोनसी बड़ी बात है तुम्ही ने कहा था न की तुमसे मुझसे हम सबसे बड़ी ताकत है सप्तचक्रों की और ये तो हम पहले से जानते है की उस कालविजय आश्रम में महागुरु ने सबसे शक्तिशाली कवच लगाया है
त्रिलोकेश्वर (चिल्लाके) :- मेरे भाईयों मेरे प्रजाजन अब हमारी आज़ादी ज्यादा दूर नही है लेकिन यह सोचके खुदको कमजोर मत पड़ने देना क्योंकि इसके बाद हमे एक महासंग्राम का हिस्सा भी बनना पड़ेगा जो आसान नही होगा
त्रिलोकेश्वर की बात सुनकर हर कोई उसके नाम के नारे लगाने लगा था और अब से उस कैद खाने मे हर कोई आने वाले युद्ध के लिए खुदको तैयार करने लगा था
तो वही इन सब से दूर एक बर्फीले जगह पर मायासुर लगातार चलते जा रहा था उसके पूरे शरीर पर बर्फ गिरी हुई थी और अभी वो चलते हुए एक कुटिया के पास पहुंचा और जैसे ही उसने उस कुटिया के आंगन मे कदम रखा
तो उस जगह की सारी ठंड गायब हो गई और उसके बदले वहा के वातावरण में एक आरामदायक उष्णता फैल गयी और अभी वो उस कुटिया मे प्रवेश करता की तभी उस कुटिया से एक साधु बाहर निकल कर आया जिसके आते ही मायासुर उसके सामने अपने घुटने टेक दिए
मायासुर:- महान असुर कुल गुरु शुक्राचार्य की जय हो
शुक्राचार्य:- आज मेरे इस शिष्य को अपने गुरु की याद कैसे आ गयी
मायासुर :- गुरुदेव बात ही गंभीर है जिसके लिए मुझे आपकी इस बरसों पुरानी साधना मे विघ्न डालना पड़ा
शुक्राचार्य:- क्यों जिस ढोंगी को तुमने मेरे स्थान पर असुर गुरु बनाया है उसके पास इसका हल नहीं है क्या
मायासुर :- कैसी बात करते हो गुरुदेव आपकी सामने उसकी क्या मिसाल और आपको एकांत में रखने की युक्ति भी आपकी ही थी और उस ढोंगी को आपका स्थान देने की युक्ति मैने इसीलिए की थी कि उस वजह से असुर बालको को वही शिक्षा वही ज्ञान मिले जो मे चाहू
शुक्राचार्य:- इसीलिए तो तुम मेरे सबसे प्रिय शिष्य हो मायासुर अब बताओ क्या समस्या है कि तुम यहाँ आने के लिए मजबूर हो गए
मायासुर :- समस्या एक नही दो है गुरुदेव सबसे पहले तो उस ढोंगी ने हमारा कार्य करने से मना कर दिया है मुझे उससे गद्दारी की गंध आ रही हैं
शुक्राचार्य :- वो ढोंगी इस लायक है ही नहीं की वो हमारे इस महान कार्य को पुरा कर सके इसीलिए मैने पहले ही उस कार्य को अंजाम दे दिया है और बस कुछ दिन और फिर हमारा कार्य पुरा हो जायेगा
मायासुर :- जय हो गुरुदेव मुझे पता था कि आप के पास मेरे हर समस्या का हल है अब सबसे बड़ी समस्या महाधारक ने जनम ले लिया है और पृथ्वी अस्त्र को धारण कर लिया है
शुक्राचार्य :- इसमे भी कोई समस्या नही है महाधारक का जन्म होना तय था जब सातों अस्त्रों को अपना अपना महा धारक मिलेगा तभी तो हमारा मकसद पूर्ण होगा
मायासुर :- ये आप क्या कह रहे हो अगर सातों अस्त्र के महा धारक आ गए तो हमारे रास्ते मे कठिनाईयां बढ़ जायेगी
शुक्राचार्य :- कोई भी बड़ी शक्ति पाने के लिए अंगारो पर तो चलना पड़ता है मायासुर बिना घोर तपस्या के मनचाहा वरदान नही मिलता
मायासुर :- मै समझ गया गुरुवर लेकिन उस पृथ्वी अस्त्र धारक न जाने कैसे लेकिन शिबू की तलवारे हासिल कर ली है
शुक्राचार्य :- ये असंभव है शिबू की तलवारे तमसिक ऊर्जा से बनी है और कोई भी अस्त्र किसी भी तमसिक ऊर्जा धारक को अपने महाधारक के रूप मे नही चुन सकती न जाने अब आदिदेव कोनसा खेल खेल रहे है
मायासुर :- आपको क्रोध नही आ रहा है कि शिबू आपके विरुद्ध उन अच्छाई के पक्ष का साथ दे रहा है जबकि वो भी मेरे जैसे आपका ही शिष्य है
शुक्राचार्य :- अगर वो ये नही करता तो जरूर मे उसे अपने शिष्य के रूप में न स्वीकारता
मायासुर :- मतलब
शुक्राचार्य :- वो भी मेरा शिष्य है और अगर वो खुदको कैद से आजाद करने की खुदके मकसद को पुरा करने के लिए कोशीश न करता तो मेरी शिक्षा व्यर्थ होती
मायासुर:- आपकी बातें मुझे समझ मे नही आती गुरुवर बस में इतना जानता हूं कि अगर कोई मेरे रास्ते में काँटा बनेगा तो उसे मे निकालकर आग के दर्ये मे फेक दूँगा
शुक्राचार्य :- विजयी भव:
अपने गुरुदेव का आशीर्वाद प्राप्त करने के बाद मायासुर वहा से निकल गया और उसके बाद शुक्राचार्य फिर से अपनी साधना मे बैठे गए
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आज के लिए इतना ही
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Nice update broअध्याय अड़तालिस
इस वक़्त सारे अस्त्र धारक महागुरु के कुटिया मे जमा हो कर आगे के बारे में विचार विमर्श कर रहे थे
दिग्विजय:- महागुरु अब आगे क्या करना है
महागुरु:- आज पूरे जीवन मे पहली बार खुद को इतना कमजोर महसूस कर रहा हूँ न जाने क्यों अस्त्र हमे अपनी शक्तियां नही देना चाहते या उनकी ही शक्तियां सुप्त हो गयी है कुछ पता नही चल रहा है
प्रिया:- मुझे भद्रा की चिंता हो रही है कही उसको कुछ
शैलेश:- हिम्मत मत हारो प्रिया भद्रा को कुछ नही होगा उसके साथ पृथ्वी अस्त्र है
गौरव:- लेकिन मुझे अभी भी नही समझ आ रहा की ये अस्त्र अचानक से निष्क्रिय क्यों हो गए
साहिल:- कही अब अस्त्र हमे खुदके काबिल न समझ पा रहे हो असुरों से मिले हार के कारण
दिग्विजय:- नही ऐसा नहीं हो सकता इसके पीछे कुछ और कारण है महागुरु दिलावर और गौरव तुम दोनों को अस्त्रों के बारे में हम सब से अधिक ज्ञान है आप तीनों सोचिये कि ऐसा कैसे हो सकता हैं
दिग्विजय की बात सुनकर तीनों सोच मे पड़ गए और जल्द ही महागुरु के दिमाग की बत्ती जल उठी
महागुरु:- जितना मैने पड़ा है उस हिसाब से ऐसा 3 वजहों से ही हो सकता हैं
महागुरु की बात सुनकर सबके कान खड़े हो गये और सब महागुरु की बात ध्यान से सुनने लगे
महागुरु :- जैसा मैने पढ़ा था कि अस्त्रों को निष्क्रिय करने के लिए उसके धारक को जान से मार दिया जाए तो अस्त्र अपना नया धारक चुनने तक निष्क्रिय हो जाता हैं
शैलेश :- और दूसरा कारण
गौरव:- दूसरा कारण यह है कि अगर अस्त्र धारक खुद से ही अपने अस्त्र का त्याग कर दे
शांति :- अब तक बताये हुए दोनों ही कारण गलत है तो अब तीसरा कारण क्या है
दिलावर:- तीसरा कारण यह है कि अगर कोई जबरदस्ती अस्त्र को उनके धारक से छिने या चुरा ले तो अस्त्र खुद को सुप्त अवस्था मे डाल देता है लेकिन जब धारक उसे वापस पाने की कोशीश करता है तब अस्त्र फिर से सक्रिय हो जाता हैं
दिग्विजय:- ये कारण हो सकता हैं लेकिन ये अस्त्र फिर से सक्रिय क्यों नही हो रहे हैं
अब तक हुए सभी बातों को लेकर सभी बड़े चिंता मे आ गए थे और सब दिग्विजय की बात सुनकर सोच मे पड़ गए थे की तभी महागुरु के चेहरे के भाव ऐसे थे की जैसे उन्होंने इस गुत्थी को सुलझा दिया है लेकिन न जाने क्यों वो शांत बैठे हुए थे
तो वही दूसरी तरफ मायासुर से इतनी बुरी तरीके से पिटने के बाद भी शिबू अब तक हँसे जा रहा था जो देखकर त्रिलोकेश्वर और दमयंती दोनों हैरान थे
त्रिलोकेश्वर द्वारा लगातार पूछने के बाद भी उसकी हंसी रुकने का नाम नही ले रही थी और जब शिबू थोड़ा शांत हुआ तो दमयंती ने उसे पूछा
दमयंती :- शिबू क्या हुआ तुम इतना हँस क्यों रहे हो मायासुर से इतना पिटने के बाद भी तुम शांत नही हो रहे हो
शिबू:- मे अपनी पिटाई पर नही बल्कि जो मायासुर और बाकी सब असुरों का जो हाल होने वाला है उस पर हँस रहा था
त्रिलोकेश्वर :- मतलब क्या कहना चाहते हो तुम
शिबू :- तुम अभी तक समझे नही मित्र तेरा बेटा हमारी उम्मीद कुमार भद्रा अभी तक जिंदा है और उसीने मायासुर का ये हाल किया है
शिबू की बात सुनकर जहाँ दमयंती भावुक हो कर रोने लगी थी तो वही त्रिलोकेश्वर अब तक शांत था जैसे किसी सोच मे गुम है
शिबू (दमयंती से) :- सम्राज्ञी अब रोने का नही बल्कि हँसने का अपना सालों पुराना बदला लेने का समय है असुरों के अंत हमारे आज़ादी का समय है महायुद्ध का आगाज़ अब हो चुका
त्रिलोकेश्वर :- तुम सच कह रहे हो लेकिन मुझे ये समझ नही आ रहा है कि हम उसकी जीव ऊर्जा को महसूस क्यों नही कर पा रहे हैं हम उससे मस्तिष्क तरंगों से भी संपर्क नही कर पा रहे हैं
शिबू:- इसमें कोनसी बड़ी बात है तुम्ही ने कहा था न की तुमसे मुझसे हम सबसे बड़ी ताकत है सप्तचक्रों की और ये तो हम पहले से जानते है की उस कालविजय आश्रम में महागुरु ने सबसे शक्तिशाली कवच लगाया है
त्रिलोकेश्वर (चिल्लाके) :- मेरे भाईयों मेरे प्रजाजन अब हमारी आज़ादी ज्यादा दूर नही है लेकिन यह सोचके खुदको कमजोर मत पड़ने देना क्योंकि इसके बाद हमे एक महासंग्राम का हिस्सा भी बनना पड़ेगा जो आसान नही होगा
त्रिलोकेश्वर की बात सुनकर हर कोई उसके नाम के नारे लगाने लगा था और अब से उस कैद खाने मे हर कोई आने वाले युद्ध के लिए खुदको तैयार करने लगा था
तो वही इन सब से दूर एक बर्फीले जगह पर मायासुर लगातार चलते जा रहा था उसके पूरे शरीर पर बर्फ गिरी हुई थी और अभी वो चलते हुए एक कुटिया के पास पहुंचा और जैसे ही उसने उस कुटिया के आंगन मे कदम रखा
तो उस जगह की सारी ठंड गायब हो गई और उसके बदले वहा के वातावरण में एक आरामदायक उष्णता फैल गयी और अभी वो उस कुटिया मे प्रवेश करता की तभी उस कुटिया से एक साधु बाहर निकल कर आया जिसके आते ही मायासुर उसके सामने अपने घुटने टेक दिए
मायासुर:- महान असुर कुल गुरु शुक्राचार्य की जय हो
शुक्राचार्य:- आज मेरे इस शिष्य को अपने गुरु की याद कैसे आ गयी
मायासुर :- गुरुदेव बात ही गंभीर है जिसके लिए मुझे आपकी इस बरसों पुरानी साधना मे विघ्न डालना पड़ा
शुक्राचार्य:- क्यों जिस ढोंगी को तुमने मेरे स्थान पर असुर गुरु बनाया है उसके पास इसका हल नहीं है क्या
मायासुर :- कैसी बात करते हो गुरुदेव आपकी सामने उसकी क्या मिसाल और आपको एकांत में रखने की युक्ति भी आपकी ही थी और उस ढोंगी को आपका स्थान देने की युक्ति मैने इसीलिए की थी कि उस वजह से असुर बालको को वही शिक्षा वही ज्ञान मिले जो मे चाहू
शुक्राचार्य:- इसीलिए तो तुम मेरे सबसे प्रिय शिष्य हो मायासुर अब बताओ क्या समस्या है कि तुम यहाँ आने के लिए मजबूर हो गए
मायासुर :- समस्या एक नही दो है गुरुदेव सबसे पहले तो उस ढोंगी ने हमारा कार्य करने से मना कर दिया है मुझे उससे गद्दारी की गंध आ रही हैं
शुक्राचार्य :- वो ढोंगी इस लायक है ही नहीं की वो हमारे इस महान कार्य को पुरा कर सके इसीलिए मैने पहले ही उस कार्य को अंजाम दे दिया है और बस कुछ दिन और फिर हमारा कार्य पुरा हो जायेगा
मायासुर :- जय हो गुरुदेव मुझे पता था कि आप के पास मेरे हर समस्या का हल है अब सबसे बड़ी समस्या महाधारक ने जनम ले लिया है और पृथ्वी अस्त्र को धारण कर लिया है
शुक्राचार्य :- इसमे भी कोई समस्या नही है महाधारक का जन्म होना तय था जब सातों अस्त्रों को अपना अपना महा धारक मिलेगा तभी तो हमारा मकसद पूर्ण होगा
मायासुर :- ये आप क्या कह रहे हो अगर सातों अस्त्र के महा धारक आ गए तो हमारे रास्ते मे कठिनाईयां बढ़ जायेगी
शुक्राचार्य :- कोई भी बड़ी शक्ति पाने के लिए अंगारो पर तो चलना पड़ता है मायासुर बिना घोर तपस्या के मनचाहा वरदान नही मिलता
मायासुर :- मै समझ गया गुरुवर लेकिन उस पृथ्वी अस्त्र धारक न जाने कैसे लेकिन शिबू की तलवारे हासिल कर ली है
शुक्राचार्य :- ये असंभव है शिबू की तलवारे तमसिक ऊर्जा से बनी है और कोई भी अस्त्र किसी भी तमसिक ऊर्जा धारक को अपने महाधारक के रूप मे नही चुन सकती न जाने अब आदिदेव कोनसा खेल खेल रहे है
मायासुर :- आपको क्रोध नही आ रहा है कि शिबू आपके विरुद्ध उन अच्छाई के पक्ष का साथ दे रहा है जबकि वो भी मेरे जैसे आपका ही शिष्य है
शुक्राचार्य :- अगर वो ये नही करता तो जरूर मे उसे अपने शिष्य के रूप में न स्वीकारता
मायासुर :- मतलब
शुक्राचार्य :- वो भी मेरा शिष्य है और अगर वो खुदको कैद से आजाद करने की खुदके मकसद को पुरा करने के लिए कोशीश न करता तो मेरी शिक्षा व्यर्थ होती
मायासुर:- आपकी बातें मुझे समझ मे नही आती गुरुवर बस में इतना जानता हूं कि अगर कोई मेरे रास्ते में काँटा बनेगा तो उसे मे निकालकर आग के दर्ये मे फेक दूँगा
शुक्राचार्य :- विजयी भव:
अपने गुरुदेव का आशीर्वाद प्राप्त करने के बाद मायासुर वहा से निकल गया और उसके बाद शुक्राचार्य फिर से अपनी साधना मे बैठे गए
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आज के लिए इतना ही
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Awesome update and great writing. Bhadra behos hai lekin kab tak.?? Or kumar use konsi sakti jagane ko bol raha hai? Dekhne wali ye baat hogi ki. Baki sare aStra jo asuro se mukt karwaye the wo kaise kaam karenge?अध्याय उनचास
हर तरफ हर कोई आने वाले महासंग्राम की तैयारियों में लगा हुआ था जहाँ कालविजय आश्रम में इस वक़्त 10,000 से भी ज्यादा सेना इकट्ठा हो गयी थी
जिसमे 18 -19 साल के नौजवान से लेकर 80-90 साल वृद्ध साधु सभी मौजूद थे
ये सभी वो सिपाही थे जिनके पास मायावी विद्याएँ मौजूद थी और हर कोई किसी न किसी तत्व की शक्ति को धारण करता था
तो वही 3,000 ऐसे भी सिपाही थे जिनके पास मायावी शक्तियां तो थी लेकिन वो किसी तत्व की शक्ति को धारण नही कर सकते थे
तो वही 2,000 ऐसे भी सिपाही थे जो की आम मानव थे जिन्हे गुरुओं ने उनके द्वारा निर्मित मायावी अस्त्र दिये थे
जैसे कि मायावी धनुष जिसके हर बान मे एक खास गुप्त कला थी जिसके बारे में केवल महागुरु जानते थे
जिसके साथ कुछ योध्दाओं को मायावी भाले दिये गये थे जो अपने सामने खड़े शत्रु का गला भेद कर अपने धारक के पास लौटकर आ जाते तो
आखिर मे मायावी तलवारे जिनके धार मे एक महाविषैला द्रव्य लगाया गया था जिसके एक बूंद भी अगर समुद्र मे मिलादे तो समुद्र के जल को पिनेवाला har एक शक्स उसी पल तड़प तड़प कर मर जाए
अभी कालविजय आश्रम में सिपाहियों को उनके कला के अनुसार 7 भागों में बाँटा हुआ था सबसे पहले 5 भाग उन्हे अलग अलग तत्वों के अनुसार बाँटा गया था जिनमे अग्नि वायु जल आकाश और पृथ्वी ये पाँच तत्व संमलित थे
जिनके नेतृत्व की जिम्मेदारी गुरु अग्नि वानर और जल को सोंपी गयी थी इनका मकसद यही था कि जैसे ही कोई भी असुर युद्ध क्षेत्र के करीब आये तो ये सभी मिलकर उन्हे मैदान आने से पूर्व ही मृत्यु से भेट करादे
तो छाट्ठे भाग में वो मायावी जादूगर थे तत्व से जुड़े हुए नही थे इनका काम था कि अगर कोई असुर किसी तरह बच कर युद्ध के मैदान में पहुँच जाए तो उसकी चिता उसी मैदान में बनाई जाए और इनका नेतृत्व कर रहे थे स्वयं महागुरु गुरु नंदी और गुरु सिंह
सबसे आखरी भाग में 2 हिस्सों में विभागा गया था जिसके भाग 1 मे थे मायावी धनुष और भालों को धारण करने वाले योध्दा इनका कार्य था कि जैसे ही युद्ध आरंभ हो तो ये दूर से ही सभी दुश्मनों पर तिर और भालों की वर्षा कर दे
और इनका नेतृत्व की जिम्मेदारी हमारी महिला शक्ति को दी गयी थी याने प्रिया और शांति
और अगर इनसे कोई बच कर युद्ध मैदान के पास पहुँच पाता तो उसका स्वागत पहले पांच भाग याने तत्व शक्ति से होती
तो वही सबसे छोटी टुकड़ी मतलब मायावी तलवार की तो उन्हे पूरे शहर भर मे निवास कर रहे सभी योद्धाओं के परिवार के रक्षा के लिए
(भद्रा अभी तक बेहोश है इसीलिए इस सारे रणनीति मे उसका नाम नही था)
अच्छाई का पक्ष मे कुल 15,000 सिपाही थे
भाग 1 से 5 मै 10,000 तत्व धारक
2,000 अग्नि तत्व
2,000 वायु तत्व
2,000 जल तत्व
2,000 आकाश तत्व
2,000 पृथ्वी तत्व
भाग 6 मायावी जादूगर 3,000 सिपाही
भाग 7 आम मानव 2,000 सिपाही
750 मायावी धनुष के धारक
750 मायावी भालों के धारक
500 मायावी तलवार के धारक
तो वही असुर पक्ष में मायासुर के साथ पूरे 1,00,000 असुरी सेना उसके साथ 25,000 प्रेत, भूत, पिशाच, नरभेड़िये, तांत्रिकों की सेना थी
जिनके योजना मुताबिक सबसे आगे तंत्रिकों की सेना होगी जिनका कार्य होगा अच्छाई के पक्ष का ध्यान भटकाना और उनके बिछाये जालों का पता लगाना
और बाकी तीनों भाग याने प्रेत, भूत, पिशाच इनका कार्य था की वो सभी जालों को नष्ट करके जितनी ज्यादा हो सके उतनी तबाही मचाये
तो नरभेड़ियों को मायासुर ने पूरे भारत वर्ष मे तबाही मचाने का आदेश दिया था जिससे सभी गुरुओं का ध्यान युद्ध मैदान से बँट जाए
तो वही सारे असुर सैनिक जिनकी संख्या 1,00,000 की थी उनका केवल एक ही लक्ष्य था और वो है तबाही मचाना और अच्छाई पक्ष के सभी योध्दाओं को मार गिराना इनका नेतृत्व करने की जिम्मेदारी मायासुर ने कामिनी और मोहिनी को दी थी
और यही सब योजना बनाने में 7 दिनों का समय निकल चुका था
जहाँ दोनों ही पक्षों मे युद्ध की इतनी जोरों से तैयारी चालू थी तो वही दूसरी तरफ कालविजय आश्रम में भद्रा अभी तक बेहोश पड़ा हुआ था जिससे सारे गुरु और प्रिया का चिंता के कारण बुरा हाल हो चुका था
Pतो वही दूसरी तरफ एक अंधेरी जगह मे कोई लड़का था जो लगातार चले जा रहा था जिसके चेहरे के भाव से ये प्रतीत हो रहा था कि वो इस अंधेरी जगह से बिल्कुल अंजान है
और अभी वो चले जा रहा था कि तभी वहा पर एक तेज रोशनी फैल गयी जिससे उस लड़के का चेहरा अब दिखने लगा था और वो लड़का कोई और नही बल्कि अपना भद्रा ही था और जैसे ही वहा का प्रकाश हटा तो वैसे ही भद्रा के सामने कुमार आके खड़ा हो गया
भद्रा:- कुमार हम कहाँ है और क्या तुम गुरुओं को आज़ाद करने मे सफल हुए और और
अभी भद्रा कुछ और बोलता की तभी कुमार ने उसके होंठो पर उंगली रख दी जिससे भद्रा शांत हो गया
कुमार :- ये जगह हमारा दिमाग है और तुम्हे यहाँ मे ही लेकर आया हूँ और हाँ सारे गुरु और अस्त्र अभी फिलहाल के लिए सुरक्षित है
भद्रा :- क्या मतलब फिलहाल के लिए
कुमार :- भद्रा दुनिया में अति विनाशकारी युद्ध का आगाज़ हो चुका है जो अच्छाई और बुराई के बीच होने वाली है जिसमे अच्छाई का पक्ष कमजोर है
भद्रा :- तो तुम मुझे यहाँ क्यों लेकर आये हो हमे वापस चल कर युद्ध मे हिस्सा लेना चाहिए
कुमार :- नही अभी तुम कमजोर हो और तुम्हारे हिस्सा लेने से भी कुछ बदलेगा नही अगर तुम्हे युद्ध का परिणाम बदलना है तो सबसे पहले तुम्हे अपनी पूरी शक्ति जाग्रुत करनी होगी और उसके बाद खुदको जानना होगा जब तक तुम खुदको पहचानोगे नही तब तक कुछ नहीं बदलेगा
भद्रा :- तो बताओ क्या करना है मुझे मे कैसे पहचान पाऊंगा खुदको
कुमार :- सबसे पहले खुदको शांत करो और फिर ध्यान मै बैठकर तुम्हारे ऊर्जा स्त्रोत को ढूँढो जैसे तुमने पहले किया था लेकिन इसबार किसी एक शक्ति को नही पूरे ऊर्जा स्त्रोत को अपने काबू करना है जिसके बाद में तुम्हे तुम्हारी असलियत से अवगत कराऊंगा
उसके बाद भद्रा ने वैसा ही किया जैसा कुमार उसे बता रहा था
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आज के लिए इतना ही
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Superb writing