• If you are trying to reset your account password then don't forget to check spam folder in your mailbox. Also Mark it as "not spam" or you won't be able to click on the link.

Fantasy ब्रह्माराक्षस

VAJRADHIKARI

Hello dosto
1,484
18,156
144
अध्याय बत्तीस

अभी सब लोग कालविजय आश्रम में ही मौजूद थे इस वक्त सभी महागुरु के सभा में मौजूद थे जहाँ पर भद्रा के सिवा सब मौजूद थे सभी अभी हुए कांड के बारे में बात कर रहे थे चलो हम भी देखते का बा कर रहे है

महागुरु:- तो अब sabse पहले तुम बताओ प्रिया तुम asal मे kon हो वो शक्ति क्या थी तुम्हारे पास कैसे आई

प्रिया:- मै नही जानती अंकल की वो हार मेरे पास कैसे आया उसे तो मैने वही पर फेक दिया था

महागुरु :- कहा फेका था और अगर तुमने फेक दिया था तो आज वो तुम्हारे अंदर से कैसे प्रकट हुआ

प्रिया:- जब मे और भद्रा असुरों के बारे में पता लगाने उस गोदाम मे गए थे तब मे वही पर अपने फोन पर टाइम पास कर रही थी की तभी मुझे लगा की कोई मुझे पुकार रहा है और जब मे उस तरफ गयी तो वहा पर कुछ भी नही था शिवाये इस हार के मे इस हार को जब छुआ तो मुझे कुछ अजीब नही लगा और हार भी नकली ही लग रहा था इसीलिए मैने उसे वही पर फेक दिया था

महागुरु :- अगर ऐसा है तो आज वो तुम्हारे पास कैसे आया

अभी कोई कुछ और बोलता की तभी वहा मौजूद सोना के पिताजी बोलने लगे जिनका नाम निष हैं

निष :- इसका जवाब में देता हूँ महागुरु वो हार हमारे आकाश गंगा से है वो हमारे सम्राज्य के पहली महिला शासक का था ऐसा कहा जाता है की उन्होंने अपने समय काल मे बहुत से युद्ध लढ़े और जीते भी थे लेकिन जब उन्हे उनका जीवन साथी मिला तो उनके मन की क्रूरता कम होने लगी लेकिन उनकी शक्तियां उनका अहंकार उन्हे हर बार प्रेम के रास्ते से भटका कर क्रूरता के रास्ते पर चलने के लिए मजबूर कर रही थी और जब उन्हे इसका अहसास हुआ तब तक देर हो चुकी थी उनके अहंकार और क्रूरता देख कर जिससे वो प्रेम करती थी वही उन्हे छोड़ कर चले गए और तब उन्होंने अपने प्रेम को फिर से पाने के लिए अपनी सभी शक्तियों को इस हर मे कैद कर दिया और तभी उनके शत्रुओं ने उन्हे कमजोर पाकर उनकी जान लेने का प्रयास किया लेकिन तभी उनके प्रेमी ने उन्हे बचाने के लिए अपने प्राण त्याग दिये और उसी पल अपने प्रेमी को खोने के गम में खुदको पंचतत्वों मे विलीन कर दिया लेकिन उस पल के बाद से ही उनकी शक्तियां इस हार मे कैद हो कर कही गुम हो गयी थी जो की abse कुछ समय पहले ही हमारे ग्रह पर एक गुफा के अंदर प्रकट हुआ था और तभी से वो शैतान राजगुरु इसे पाने के लिए हम पर आक्रमण कर रहा था और जब हम हारने वाले थे तब मैने उसके सुरक्षा की जिम्मेदारी हमारे राजकुमारियों को सोंपी थी और शायद उन शक्तियों ने प्रिया को चुना हो अपने धारक के रूप में

प्रिया :- लेकिन मे ही क्यों

निष :- मे नही जानता लेकिन मे इतना जरूर जानता हूँ कि महारानी जो भी फैसला करती थी वो कभी भी गलत नही होता था और अगर उनकी शक्तियों ने तुम्हे चुना है तो जरूर ये किसी भी प्रकार से गलत फैसला नही होगा

महागुरु :- ठीक है हार कि गुत्थी तो सुलझ गयी लेकिन शांति तुम हमे बताना चाहोगी की जो मोती अभी भद्रा के शरीर में समाई है वो उसके पास कैसे पहुंची और तुमने उसकी महान शक्ति को बिना ध्यान लगाए कैसे इस्तेमाल किया

महागुरु की बात सुनकर शांति हड़बड़ा गयी थी वो क्या बोलती उसे खुद पता नही था कि हो क्या रहा है

शांति :- मैने भद्रा को वो मोती इसीलिए दिया था क्योंकि मे पहले से चाहती थी कि मेरे बाद वो मोती उसका हो और इसीलिए मैने उसे वो दिया और इससे पहले की मे उसे कुछ बताती या भद्रा को उसे जागृत करने की प्रक्रिया बताती उससे पहले ही ये सब हो गया और रही बात इस्तेमाल करने की तो मे भी नही जानती की वो मोती ऐसे कैसे अपने आप ही वो सब कर रही थी

शांती की बात सुन कर सभी इस गुत्थी मे और उलझ गये थे तो वही सारे अस्त्र धारक हैरान हो गये थे यहाँ तक की जब शांति को भी अपने कही हुई बात का अर्थ समझ आया तो वो भी हैरान हो गयी और सभी अस्त्र धारकों के चेहरे पर हैरानी के साथ ही खुशी के भी भाव दिख रहे थे

गुरु सिंह:- (हैरानी और खुशी के मिलेजुले भाव के साथ) इसका अर्थ इस युग मे भद्रा पहला धारक है

प्रिया :- कहना क्या चाहते हो आप

महागुरु :- जिस मोती ने उस हार की ऊर्जा को अपने अंदर समाया वो मोती कुछ और नही बल्कि पृथ्वी अस्त्र है

जैसे ही महागुरु ने ये कहा वहा प्रिया और गुरुओं को छोड़ सब दंग रह गए जहाँ गुरुओं को तो पहले से इस बारे में पता चल गया था और प्रिया बस भद्रा कि सलामती चाहिए थी उसे तो इस बात की चिंता थी कि उसके शक्तियों के बारे मे जान कर भद्रा की क्या प्रतिक्रिया होगी

तो वही महागुरु के दिमाग में कुछ और ही पक रहा था तो वही दूसरी तरफ जब मुझे होश आया तो मे खुद को एक कुटिया मे देख कर दंग रह गया और जब मैने ध्यान से देखा

तो ये मेरी ही कुटिया थी जहाँ मेरा बचपन गुजरा था यानी कालविजय आश्रम मे ये सब सोच रहा था कि तभी मेरे आँखों के सामने शैतानी दुनिया मे जो कुछ हुआ था वो सब आने लगा और ऐसा होते ही मे तुरंत अपने शरीर का निरीक्षण करने लगा और तभी मेरे दिमाग मे एक आवाज आने लगी

आवाज :- तुम अब ठीक हो तुम्हे तुम्हारे प्रेम की शक्ति ने बचा लिया है

मे :- कौन हो तुम मेरे सामने आओ

आवाज :- मुझे भूल गए मे वही हुँ जिससे तुम अब तक भागते आ रहे हो

मे :- मै किसी से भी नही भाग रहा हूँ

आवाज :- तुम भाग रहे हो अपने अंतरमन के आवाज से उस आवाज से जो तुम्हे हर वक़्त सुनाई देती हैं तुम्हे मदद के लिए बुलाते हैं लेकिन तुम उस आवाज अनसुना कर रहे हो

मै :- एक मिनट तुम्हे कैसे पता उस बारे में और क्या वो आवाज सच है मुझे तो लगा था वो सिर्फ मेरा भ्रम है

आवाज :- मुझे पता है क्योंकि मे तुम्हारा अंतरमन ही हूँ तुम्हारा असली चेहरा पूरी ताकत तुम्हारे अपने तुम्हारे शत्रु सबके बारे में मैं जानता हूँ और रही बात उन आवाजों की तो वो भ्रम नही एक माँ की पुकार है एक पिता के सालों की तपस्या है

मै:- मै कुछ समझा नही क्या कह रहे हो तुम

आवाज:- तुम्हारी इंसानी बुद्धि मे ये बात आसानी से समझ नही आयेगी तुम्हे सबसे पहले अपनी शक्तियों को पूरी तरीके से जागृत करना होगा उसके लिए तुम्हे अपने अंदर के शक्ति को अपना गुलाम बनाना होगा ताकि इस कार्य मे वो शक्ति विघ्न न डाल सके

मैं:- मेरे पास कोनसी शक्ति है और वो इस कार्य में विघ्न कैसे डालेगी

आवाज :- समझ जाओगे तुम

इतना बोलकर वो आवाज शांत हो गयी और उसके शांत हो ते ही मेरे सर मे जोरों से दर्द होने लगा ऐसा लगा की किसी ने सर पर हथौड़ा मारा हो मे इस दर्द को काबू करने के लिए ध्यान में बैठा तो दर्द तो कम हो गया

लेकिन जैसे जैसे मे ध्यान में मग्न होते जा रहा था वैसे वैसे मुझे मेरे मन में एक अजीब सा अनुभव होने लगा था जैसे मे किसी बड़ी ऊर्जा के पास हूँ जो मुझपर लगातार जोर डाले जा रही थी जिससे मुझे सांस लेने मे दिक्कत हो रही थी कि तभी मैने अपना ध्यान तोड़ दिया जिससे अब मुझे थोड़ा अच्छा लग रहा था

मै अभी शांति से बैठा था कि तभी मुझे बाहर से कुछ आवाजे सुनाई देने लगी जिसे देखने के लिए मे भी बाहर आ गया

~~~~~~~~~~~~~~~~~~
आज के लिए इतना ही

~~~~~~~~~~~~~~~~~~
 

park

Well-Known Member
13,390
16,029
228
अध्याय बत्तीस

अभी सब लोग कालविजय आश्रम में ही मौजूद थे इस वक्त सभी महागुरु के सभा में मौजूद थे जहाँ पर भद्रा के सिवा सब मौजूद थे सभी अभी हुए कांड के बारे में बात कर रहे थे चलो हम भी देखते का बा कर रहे है

महागुरु:- तो अब sabse पहले तुम बताओ प्रिया तुम asal मे kon हो वो शक्ति क्या थी तुम्हारे पास कैसे आई

प्रिया:- मै नही जानती अंकल की वो हार मेरे पास कैसे आया उसे तो मैने वही पर फेक दिया था

महागुरु :- कहा फेका था और अगर तुमने फेक दिया था तो आज वो तुम्हारे अंदर से कैसे प्रकट हुआ

प्रिया:- जब मे और भद्रा असुरों के बारे में पता लगाने उस गोदाम मे गए थे तब मे वही पर अपने फोन पर टाइम पास कर रही थी की तभी मुझे लगा की कोई मुझे पुकार रहा है और जब मे उस तरफ गयी तो वहा पर कुछ भी नही था शिवाये इस हार के मे इस हार को जब छुआ तो मुझे कुछ अजीब नही लगा और हार भी नकली ही लग रहा था इसीलिए मैने उसे वही पर फेक दिया था

महागुरु :- अगर ऐसा है तो आज वो तुम्हारे पास कैसे आया

अभी कोई कुछ और बोलता की तभी वहा मौजूद सोना के पिताजी बोलने लगे जिनका नाम निष हैं

निष :- इसका जवाब में देता हूँ महागुरु वो हार हमारे आकाश गंगा से है वो हमारे सम्राज्य के पहली महिला शासक का था ऐसा कहा जाता है की उन्होंने अपने समय काल मे बहुत से युद्ध लढ़े और जीते भी थे लेकिन जब उन्हे उनका जीवन साथी मिला तो उनके मन की क्रूरता कम होने लगी लेकिन उनकी शक्तियां उनका अहंकार उन्हे हर बार प्रेम के रास्ते से भटका कर क्रूरता के रास्ते पर चलने के लिए मजबूर कर रही थी और जब उन्हे इसका अहसास हुआ तब तक देर हो चुकी थी उनके अहंकार और क्रूरता देख कर जिससे वो प्रेम करती थी वही उन्हे छोड़ कर चले गए और तब उन्होंने अपने प्रेम को फिर से पाने के लिए अपनी सभी शक्तियों को इस हर मे कैद कर दिया और तभी उनके शत्रुओं ने उन्हे कमजोर पाकर उनकी जान लेने का प्रयास किया लेकिन तभी उनके प्रेमी ने उन्हे बचाने के लिए अपने प्राण त्याग दिये और उसी पल अपने प्रेमी को खोने के गम में खुदको पंचतत्वों मे विलीन कर दिया लेकिन उस पल के बाद से ही उनकी शक्तियां इस हार मे कैद हो कर कही गुम हो गयी थी जो की abse कुछ समय पहले ही हमारे ग्रह पर एक गुफा के अंदर प्रकट हुआ था और तभी से वो शैतान राजगुरु इसे पाने के लिए हम पर आक्रमण कर रहा था और जब हम हारने वाले थे तब मैने उसके सुरक्षा की जिम्मेदारी हमारे राजकुमारियों को सोंपी थी और शायद उन शक्तियों ने प्रिया को चुना हो अपने धारक के रूप में

प्रिया :- लेकिन मे ही क्यों

निष :- मे नही जानता लेकिन मे इतना जरूर जानता हूँ कि महारानी जो भी फैसला करती थी वो कभी भी गलत नही होता था और अगर उनकी शक्तियों ने तुम्हे चुना है तो जरूर ये किसी भी प्रकार से गलत फैसला नही होगा

महागुरु :- ठीक है हार कि गुत्थी तो सुलझ गयी लेकिन शांति तुम हमे बताना चाहोगी की जो मोती अभी भद्रा के शरीर में समाई है वो उसके पास कैसे पहुंची और तुमने उसकी महान शक्ति को बिना ध्यान लगाए कैसे इस्तेमाल किया

महागुरु की बात सुनकर शांति हड़बड़ा गयी थी वो क्या बोलती उसे खुद पता नही था कि हो क्या रहा है

शांति :- मैने भद्रा को वो मोती इसीलिए दिया था क्योंकि मे पहले से चाहती थी कि मेरे बाद वो मोती उसका हो और इसीलिए मैने उसे वो दिया और इससे पहले की मे उसे कुछ बताती या भद्रा को उसे जागृत करने की प्रक्रिया बताती उससे पहले ही ये सब हो गया और रही बात इस्तेमाल करने की तो मे भी नही जानती की वो मोती ऐसे कैसे अपने आप ही वो सब कर रही थी

शांती की बात सुन कर सभी इस गुत्थी मे और उलझ गये थे तो वही सारे अस्त्र धारक हैरान हो गये थे यहाँ तक की जब शांति को भी अपने कही हुई बात का अर्थ समझ आया तो वो भी हैरान हो गयी और सभी अस्त्र धारकों के चेहरे पर हैरानी के साथ ही खुशी के भी भाव दिख रहे थे

गुरु सिंह:- (हैरानी और खुशी के मिलेजुले भाव के साथ) इसका अर्थ इस युग मे भद्रा पहला धारक है

प्रिया :- कहना क्या चाहते हो आप

महागुरु :- जिस मोती ने उस हार की ऊर्जा को अपने अंदर समाया वो मोती कुछ और नही बल्कि पृथ्वी अस्त्र है

जैसे ही महागुरु ने ये कहा वहा प्रिया और गुरुओं को छोड़ सब दंग रह गए जहाँ गुरुओं को तो पहले से इस बारे में पता चल गया था और प्रिया बस भद्रा कि सलामती चाहिए थी उसे तो इस बात की चिंता थी कि उसके शक्तियों के बारे मे जान कर भद्रा की क्या प्रतिक्रिया होगी


तो वही महागुरु के दिमाग में कुछ और ही पक रहा था तो वही दूसरी तरफ जब मुझे होश आया तो मे खुद को एक कुटिया मे देख कर दंग रह गया और जब मैने ध्यान से देखा

तो ये मेरी ही कुटिया थी जहाँ मेरा बचपन गुजरा था यानी कालविजय आश्रम मे ये सब सोच रहा था कि तभी मेरे आँखों के सामने शैतानी दुनिया मे जो कुछ हुआ था वो सब आने लगा और ऐसा होते ही मे तुरंत अपने शरीर का निरीक्षण करने लगा और तभी मेरे दिमाग मे एक आवाज आने लगी

आवाज :- तुम अब ठीक हो तुम्हे तुम्हारे प्रेम की शक्ति ने बचा लिया है

मे :- कौन हो तुम मेरे सामने आओ

आवाज :- मुझे भूल गए मे वही हुँ जिससे तुम अब तक भागते आ रहे हो

मे :- मै किसी से भी नही भाग रहा हूँ

आवाज :- तुम भाग रहे हो अपने अंतरमन के आवाज से उस आवाज से जो तुम्हे हर वक़्त सुनाई देती हैं तुम्हे मदद के लिए बुलाते हैं लेकिन तुम उस आवाज अनसुना कर रहे हो

मै :- एक मिनट तुम्हे कैसे पता उस बारे में और क्या वो आवाज सच है मुझे तो लगा था वो सिर्फ मेरा भ्रम है

आवाज :- मुझे पता है क्योंकि मे तुम्हारा अंतरमन ही हूँ तुम्हारा असली चेहरा पूरी ताकत तुम्हारे अपने तुम्हारे शत्रु सबके बारे में मैं जानता हूँ और रही बात उन आवाजों की तो वो भ्रम नही एक माँ की पुकार है एक पिता के सालों की तपस्या है

मै:- मै कुछ समझा नही क्या कह रहे हो तुम

आवाज:- तुम्हारी इंसानी बुद्धि मे ये बात आसानी से समझ नही आयेगी तुम्हे सबसे पहले अपनी शक्तियों को पूरी तरीके से जागृत करना होगा उसके लिए तुम्हे अपने अंदर के शक्ति को अपना गुलाम बनाना होगा ताकि इस कार्य मे वो शक्ति विघ्न न डाल सके

मैं:- मेरे पास कोनसी शक्ति है और वो इस कार्य में विघ्न कैसे डालेगी

आवाज :- समझ जाओगे तुम

इतना बोलकर वो आवाज शांत हो गयी और उसके शांत हो ते ही मेरे सर मे जोरों से दर्द होने लगा ऐसा लगा की किसी ने सर पर हथौड़ा मारा हो मे इस दर्द को काबू करने के लिए ध्यान में बैठा तो दर्द तो कम हो गया

लेकिन जैसे जैसे मे ध्यान में मग्न होते जा रहा था वैसे वैसे मुझे मेरे मन में एक अजीब सा अनुभव होने लगा था जैसे मे किसी बड़ी ऊर्जा के पास हूँ जो मुझपर लगातार जोर डाले जा रही थी जिससे मुझे सांस लेने मे दिक्कत हो रही थी कि तभी मैने अपना ध्यान तोड़ दिया जिससे अब मुझे थोड़ा अच्छा लग रहा था

मै अभी शांति से बैठा था कि तभी मुझे बाहर से कुछ आवाजे सुनाई देने लगी जिसे देखने के लिए मे भी बाहर आ गया

~~~~~~~~~~~~~~~~~~
आज के लिए इतना ही

~~~~~~~~~~~~~~~~~~
Nice and superb update....
 

parkas

Well-Known Member
32,027
68,864
303
अध्याय बत्तीस

अभी सब लोग कालविजय आश्रम में ही मौजूद थे इस वक्त सभी महागुरु के सभा में मौजूद थे जहाँ पर भद्रा के सिवा सब मौजूद थे सभी अभी हुए कांड के बारे में बात कर रहे थे चलो हम भी देखते का बा कर रहे है

महागुरु:- तो अब sabse पहले तुम बताओ प्रिया तुम asal मे kon हो वो शक्ति क्या थी तुम्हारे पास कैसे आई

प्रिया:- मै नही जानती अंकल की वो हार मेरे पास कैसे आया उसे तो मैने वही पर फेक दिया था

महागुरु :- कहा फेका था और अगर तुमने फेक दिया था तो आज वो तुम्हारे अंदर से कैसे प्रकट हुआ

प्रिया:- जब मे और भद्रा असुरों के बारे में पता लगाने उस गोदाम मे गए थे तब मे वही पर अपने फोन पर टाइम पास कर रही थी की तभी मुझे लगा की कोई मुझे पुकार रहा है और जब मे उस तरफ गयी तो वहा पर कुछ भी नही था शिवाये इस हार के मे इस हार को जब छुआ तो मुझे कुछ अजीब नही लगा और हार भी नकली ही लग रहा था इसीलिए मैने उसे वही पर फेक दिया था

महागुरु :- अगर ऐसा है तो आज वो तुम्हारे पास कैसे आया

अभी कोई कुछ और बोलता की तभी वहा मौजूद सोना के पिताजी बोलने लगे जिनका नाम निष हैं

निष :- इसका जवाब में देता हूँ महागुरु वो हार हमारे आकाश गंगा से है वो हमारे सम्राज्य के पहली महिला शासक का था ऐसा कहा जाता है की उन्होंने अपने समय काल मे बहुत से युद्ध लढ़े और जीते भी थे लेकिन जब उन्हे उनका जीवन साथी मिला तो उनके मन की क्रूरता कम होने लगी लेकिन उनकी शक्तियां उनका अहंकार उन्हे हर बार प्रेम के रास्ते से भटका कर क्रूरता के रास्ते पर चलने के लिए मजबूर कर रही थी और जब उन्हे इसका अहसास हुआ तब तक देर हो चुकी थी उनके अहंकार और क्रूरता देख कर जिससे वो प्रेम करती थी वही उन्हे छोड़ कर चले गए और तब उन्होंने अपने प्रेम को फिर से पाने के लिए अपनी सभी शक्तियों को इस हर मे कैद कर दिया और तभी उनके शत्रुओं ने उन्हे कमजोर पाकर उनकी जान लेने का प्रयास किया लेकिन तभी उनके प्रेमी ने उन्हे बचाने के लिए अपने प्राण त्याग दिये और उसी पल अपने प्रेमी को खोने के गम में खुदको पंचतत्वों मे विलीन कर दिया लेकिन उस पल के बाद से ही उनकी शक्तियां इस हार मे कैद हो कर कही गुम हो गयी थी जो की abse कुछ समय पहले ही हमारे ग्रह पर एक गुफा के अंदर प्रकट हुआ था और तभी से वो शैतान राजगुरु इसे पाने के लिए हम पर आक्रमण कर रहा था और जब हम हारने वाले थे तब मैने उसके सुरक्षा की जिम्मेदारी हमारे राजकुमारियों को सोंपी थी और शायद उन शक्तियों ने प्रिया को चुना हो अपने धारक के रूप में

प्रिया :- लेकिन मे ही क्यों

निष :- मे नही जानता लेकिन मे इतना जरूर जानता हूँ कि महारानी जो भी फैसला करती थी वो कभी भी गलत नही होता था और अगर उनकी शक्तियों ने तुम्हे चुना है तो जरूर ये किसी भी प्रकार से गलत फैसला नही होगा

महागुरु :- ठीक है हार कि गुत्थी तो सुलझ गयी लेकिन शांति तुम हमे बताना चाहोगी की जो मोती अभी भद्रा के शरीर में समाई है वो उसके पास कैसे पहुंची और तुमने उसकी महान शक्ति को बिना ध्यान लगाए कैसे इस्तेमाल किया

महागुरु की बात सुनकर शांति हड़बड़ा गयी थी वो क्या बोलती उसे खुद पता नही था कि हो क्या रहा है

शांति :- मैने भद्रा को वो मोती इसीलिए दिया था क्योंकि मे पहले से चाहती थी कि मेरे बाद वो मोती उसका हो और इसीलिए मैने उसे वो दिया और इससे पहले की मे उसे कुछ बताती या भद्रा को उसे जागृत करने की प्रक्रिया बताती उससे पहले ही ये सब हो गया और रही बात इस्तेमाल करने की तो मे भी नही जानती की वो मोती ऐसे कैसे अपने आप ही वो सब कर रही थी

शांती की बात सुन कर सभी इस गुत्थी मे और उलझ गये थे तो वही सारे अस्त्र धारक हैरान हो गये थे यहाँ तक की जब शांति को भी अपने कही हुई बात का अर्थ समझ आया तो वो भी हैरान हो गयी और सभी अस्त्र धारकों के चेहरे पर हैरानी के साथ ही खुशी के भी भाव दिख रहे थे

गुरु सिंह:- (हैरानी और खुशी के मिलेजुले भाव के साथ) इसका अर्थ इस युग मे भद्रा पहला धारक है

प्रिया :- कहना क्या चाहते हो आप

महागुरु :- जिस मोती ने उस हार की ऊर्जा को अपने अंदर समाया वो मोती कुछ और नही बल्कि पृथ्वी अस्त्र है

जैसे ही महागुरु ने ये कहा वहा प्रिया और गुरुओं को छोड़ सब दंग रह गए जहाँ गुरुओं को तो पहले से इस बारे में पता चल गया था और प्रिया बस भद्रा कि सलामती चाहिए थी उसे तो इस बात की चिंता थी कि उसके शक्तियों के बारे मे जान कर भद्रा की क्या प्रतिक्रिया होगी


तो वही महागुरु के दिमाग में कुछ और ही पक रहा था तो वही दूसरी तरफ जब मुझे होश आया तो मे खुद को एक कुटिया मे देख कर दंग रह गया और जब मैने ध्यान से देखा

तो ये मेरी ही कुटिया थी जहाँ मेरा बचपन गुजरा था यानी कालविजय आश्रम मे ये सब सोच रहा था कि तभी मेरे आँखों के सामने शैतानी दुनिया मे जो कुछ हुआ था वो सब आने लगा और ऐसा होते ही मे तुरंत अपने शरीर का निरीक्षण करने लगा और तभी मेरे दिमाग मे एक आवाज आने लगी

आवाज :- तुम अब ठीक हो तुम्हे तुम्हारे प्रेम की शक्ति ने बचा लिया है

मे :- कौन हो तुम मेरे सामने आओ

आवाज :- मुझे भूल गए मे वही हुँ जिससे तुम अब तक भागते आ रहे हो

मे :- मै किसी से भी नही भाग रहा हूँ

आवाज :- तुम भाग रहे हो अपने अंतरमन के आवाज से उस आवाज से जो तुम्हे हर वक़्त सुनाई देती हैं तुम्हे मदद के लिए बुलाते हैं लेकिन तुम उस आवाज अनसुना कर रहे हो

मै :- एक मिनट तुम्हे कैसे पता उस बारे में और क्या वो आवाज सच है मुझे तो लगा था वो सिर्फ मेरा भ्रम है

आवाज :- मुझे पता है क्योंकि मे तुम्हारा अंतरमन ही हूँ तुम्हारा असली चेहरा पूरी ताकत तुम्हारे अपने तुम्हारे शत्रु सबके बारे में मैं जानता हूँ और रही बात उन आवाजों की तो वो भ्रम नही एक माँ की पुकार है एक पिता के सालों की तपस्या है

मै:- मै कुछ समझा नही क्या कह रहे हो तुम

आवाज:- तुम्हारी इंसानी बुद्धि मे ये बात आसानी से समझ नही आयेगी तुम्हे सबसे पहले अपनी शक्तियों को पूरी तरीके से जागृत करना होगा उसके लिए तुम्हे अपने अंदर के शक्ति को अपना गुलाम बनाना होगा ताकि इस कार्य मे वो शक्ति विघ्न न डाल सके

मैं:- मेरे पास कोनसी शक्ति है और वो इस कार्य में विघ्न कैसे डालेगी

आवाज :- समझ जाओगे तुम

इतना बोलकर वो आवाज शांत हो गयी और उसके शांत हो ते ही मेरे सर मे जोरों से दर्द होने लगा ऐसा लगा की किसी ने सर पर हथौड़ा मारा हो मे इस दर्द को काबू करने के लिए ध्यान में बैठा तो दर्द तो कम हो गया

लेकिन जैसे जैसे मे ध्यान में मग्न होते जा रहा था वैसे वैसे मुझे मेरे मन में एक अजीब सा अनुभव होने लगा था जैसे मे किसी बड़ी ऊर्जा के पास हूँ जो मुझपर लगातार जोर डाले जा रही थी जिससे मुझे सांस लेने मे दिक्कत हो रही थी कि तभी मैने अपना ध्यान तोड़ दिया जिससे अब मुझे थोड़ा अच्छा लग रहा था

मै अभी शांति से बैठा था कि तभी मुझे बाहर से कुछ आवाजे सुनाई देने लगी जिसे देखने के लिए मे भी बाहर आ गया

~~~~~~~~~~~~~~~~~~
आज के लिए इतना ही

~~~~~~~~~~~~~~~~~~
Bahut hi badhiya update diya hai VAJRADHIKARI bhai...
Nice and lovely update....
 

Rohit1988

Well-Known Member
2,660
7,301
158
अध्याय बत्तीस

अभी सब लोग कालविजय आश्रम में ही मौजूद थे इस वक्त सभी महागुरु के सभा में मौजूद थे जहाँ पर भद्रा के सिवा सब मौजूद थे सभी अभी हुए कांड के बारे में बात कर रहे थे चलो हम भी देखते का बा कर रहे है

महागुरु:- तो अब sabse पहले तुम बताओ प्रिया तुम asal मे kon हो वो शक्ति क्या थी तुम्हारे पास कैसे आई

प्रिया:- मै नही जानती अंकल की वो हार मेरे पास कैसे आया उसे तो मैने वही पर फेक दिया था

महागुरु :- कहा फेका था और अगर तुमने फेक दिया था तो आज वो तुम्हारे अंदर से कैसे प्रकट हुआ

प्रिया:- जब मे और भद्रा असुरों के बारे में पता लगाने उस गोदाम मे गए थे तब मे वही पर अपने फोन पर टाइम पास कर रही थी की तभी मुझे लगा की कोई मुझे पुकार रहा है और जब मे उस तरफ गयी तो वहा पर कुछ भी नही था शिवाये इस हार के मे इस हार को जब छुआ तो मुझे कुछ अजीब नही लगा और हार भी नकली ही लग रहा था इसीलिए मैने उसे वही पर फेक दिया था

महागुरु :- अगर ऐसा है तो आज वो तुम्हारे पास कैसे आया

अभी कोई कुछ और बोलता की तभी वहा मौजूद सोना के पिताजी बोलने लगे जिनका नाम निष हैं

निष :- इसका जवाब में देता हूँ महागुरु वो हार हमारे आकाश गंगा से है वो हमारे सम्राज्य के पहली महिला शासक का था ऐसा कहा जाता है की उन्होंने अपने समय काल मे बहुत से युद्ध लढ़े और जीते भी थे लेकिन जब उन्हे उनका जीवन साथी मिला तो उनके मन की क्रूरता कम होने लगी लेकिन उनकी शक्तियां उनका अहंकार उन्हे हर बार प्रेम के रास्ते से भटका कर क्रूरता के रास्ते पर चलने के लिए मजबूर कर रही थी और जब उन्हे इसका अहसास हुआ तब तक देर हो चुकी थी उनके अहंकार और क्रूरता देख कर जिससे वो प्रेम करती थी वही उन्हे छोड़ कर चले गए और तब उन्होंने अपने प्रेम को फिर से पाने के लिए अपनी सभी शक्तियों को इस हर मे कैद कर दिया और तभी उनके शत्रुओं ने उन्हे कमजोर पाकर उनकी जान लेने का प्रयास किया लेकिन तभी उनके प्रेमी ने उन्हे बचाने के लिए अपने प्राण त्याग दिये और उसी पल अपने प्रेमी को खोने के गम में खुदको पंचतत्वों मे विलीन कर दिया लेकिन उस पल के बाद से ही उनकी शक्तियां इस हार मे कैद हो कर कही गुम हो गयी थी जो की abse कुछ समय पहले ही हमारे ग्रह पर एक गुफा के अंदर प्रकट हुआ था और तभी से वो शैतान राजगुरु इसे पाने के लिए हम पर आक्रमण कर रहा था और जब हम हारने वाले थे तब मैने उसके सुरक्षा की जिम्मेदारी हमारे राजकुमारियों को सोंपी थी और शायद उन शक्तियों ने प्रिया को चुना हो अपने धारक के रूप में

प्रिया :- लेकिन मे ही क्यों

निष :- मे नही जानता लेकिन मे इतना जरूर जानता हूँ कि महारानी जो भी फैसला करती थी वो कभी भी गलत नही होता था और अगर उनकी शक्तियों ने तुम्हे चुना है तो जरूर ये किसी भी प्रकार से गलत फैसला नही होगा

महागुरु :- ठीक है हार कि गुत्थी तो सुलझ गयी लेकिन शांति तुम हमे बताना चाहोगी की जो मोती अभी भद्रा के शरीर में समाई है वो उसके पास कैसे पहुंची और तुमने उसकी महान शक्ति को बिना ध्यान लगाए कैसे इस्तेमाल किया

महागुरु की बात सुनकर शांति हड़बड़ा गयी थी वो क्या बोलती उसे खुद पता नही था कि हो क्या रहा है

शांति :- मैने भद्रा को वो मोती इसीलिए दिया था क्योंकि मे पहले से चाहती थी कि मेरे बाद वो मोती उसका हो और इसीलिए मैने उसे वो दिया और इससे पहले की मे उसे कुछ बताती या भद्रा को उसे जागृत करने की प्रक्रिया बताती उससे पहले ही ये सब हो गया और रही बात इस्तेमाल करने की तो मे भी नही जानती की वो मोती ऐसे कैसे अपने आप ही वो सब कर रही थी

शांती की बात सुन कर सभी इस गुत्थी मे और उलझ गये थे तो वही सारे अस्त्र धारक हैरान हो गये थे यहाँ तक की जब शांति को भी अपने कही हुई बात का अर्थ समझ आया तो वो भी हैरान हो गयी और सभी अस्त्र धारकों के चेहरे पर हैरानी के साथ ही खुशी के भी भाव दिख रहे थे

गुरु सिंह:- (हैरानी और खुशी के मिलेजुले भाव के साथ) इसका अर्थ इस युग मे भद्रा पहला धारक है

प्रिया :- कहना क्या चाहते हो आप

महागुरु :- जिस मोती ने उस हार की ऊर्जा को अपने अंदर समाया वो मोती कुछ और नही बल्कि पृथ्वी अस्त्र है

जैसे ही महागुरु ने ये कहा वहा प्रिया और गुरुओं को छोड़ सब दंग रह गए जहाँ गुरुओं को तो पहले से इस बारे में पता चल गया था और प्रिया बस भद्रा कि सलामती चाहिए थी उसे तो इस बात की चिंता थी कि उसके शक्तियों के बारे मे जान कर भद्रा की क्या प्रतिक्रिया होगी

तो वही महागुरु के दिमाग में कुछ और ही पक रहा था तो वही दूसरी तरफ जब मुझे होश आया तो मे खुद को एक कुटिया मे देख कर दंग रह गया और जब मैने ध्यान से देखा

तो ये मेरी ही कुटिया थी जहाँ मेरा बचपन गुजरा था यानी कालविजय आश्रम मे ये सब सोच रहा था कि तभी मेरे आँखों के सामने शैतानी दुनिया मे जो कुछ हुआ था वो सब आने लगा और ऐसा होते ही मे तुरंत अपने शरीर का निरीक्षण करने लगा और तभी मेरे दिमाग मे एक आवाज आने लगी

आवाज :- तुम अब ठीक हो तुम्हे तुम्हारे प्रेम की शक्ति ने बचा लिया है

मे :- कौन हो तुम मेरे सामने आओ

आवाज :- मुझे भूल गए मे वही हुँ जिससे तुम अब तक भागते आ रहे हो

मे :- मै किसी से भी नही भाग रहा हूँ

आवाज :- तुम भाग रहे हो अपने अंतरमन के आवाज से उस आवाज से जो तुम्हे हर वक़्त सुनाई देती हैं तुम्हे मदद के लिए बुलाते हैं लेकिन तुम उस आवाज अनसुना कर रहे हो

मै :- एक मिनट तुम्हे कैसे पता उस बारे में और क्या वो आवाज सच है मुझे तो लगा था वो सिर्फ मेरा भ्रम है

आवाज :- मुझे पता है क्योंकि मे तुम्हारा अंतरमन ही हूँ तुम्हारा असली चेहरा पूरी ताकत तुम्हारे अपने तुम्हारे शत्रु सबके बारे में मैं जानता हूँ और रही बात उन आवाजों की तो वो भ्रम नही एक माँ की पुकार है एक पिता के सालों की तपस्या है

मै:- मै कुछ समझा नही क्या कह रहे हो तुम

आवाज:- तुम्हारी इंसानी बुद्धि मे ये बात आसानी से समझ नही आयेगी तुम्हे सबसे पहले अपनी शक्तियों को पूरी तरीके से जागृत करना होगा उसके लिए तुम्हे अपने अंदर के शक्ति को अपना गुलाम बनाना होगा ताकि इस कार्य मे वो शक्ति विघ्न न डाल सके

मैं:- मेरे पास कोनसी शक्ति है और वो इस कार्य में विघ्न कैसे डालेगी

आवाज :- समझ जाओगे तुम

इतना बोलकर वो आवाज शांत हो गयी और उसके शांत हो ते ही मेरे सर मे जोरों से दर्द होने लगा ऐसा लगा की किसी ने सर पर हथौड़ा मारा हो मे इस दर्द को काबू करने के लिए ध्यान में बैठा तो दर्द तो कम हो गया

लेकिन जैसे जैसे मे ध्यान में मग्न होते जा रहा था वैसे वैसे मुझे मेरे मन में एक अजीब सा अनुभव होने लगा था जैसे मे किसी बड़ी ऊर्जा के पास हूँ जो मुझपर लगातार जोर डाले जा रही थी जिससे मुझे सांस लेने मे दिक्कत हो रही थी कि तभी मैने अपना ध्यान तोड़ दिया जिससे अब मुझे थोड़ा अच्छा लग रहा था

मै अभी शांति से बैठा था कि तभी मुझे बाहर से कुछ आवाजे सुनाई देने लगी जिसे देखने के लिए मे भी बाहर आ गया

~~~~~~~~~~~~~~~~~~
आज के लिए इतना ही

~~~~~~~~~~~~~~~~~~



Nice update bro thora long likha karo update jaldi khatam ho jata hai
 
  • Like
Reactions: VAJRADHIKARI
Top