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Nice update....अध्याय पचहत्तर
मे जब कालविजय आश्रम पहुंचा तो मे हैरान रह गया क्योंकि वहाँ का पुरा आसमान लाल हो गया था जैसे आसमान मे खून उतर आया हो और जब मे आश्रम में पहुँचा तो वहाँ की हालत और भी खराब थी वहाँ आश्रम की सारी जगह पर केवल तबाही ही दिखाई दे रही थी
ये सब देखकर मे बहुत हैरान हो गया था जिसके बाद में आश्रम मे यहाँ वहाँ घूम कर हर तरफ देख रहा था कि तभी मेरी नज़र एक कोने में गयी जहाँ आश्रम का ही एक आदमी दर्द से कराह रहा था
जब मे उसके पास पहुँचा तब तक उसका काफी खून निकल चुका था इसीलिए मैने सबसे पहले उसके उपर अपने शक्तियों का इस्तेमाल कर उसके घाव और दर्द का उपचार किया जिसके बाद वो मुझे मेरे जाने के बाद यहाँ जो कुछ भी हुआ वो सब बताने लगा
और जब मैने सब सुना तो मेरे आँखों में खून उतर आया था मुझे क्रोध उन असुरों से ज्यादा खुद पर आ रहा था क्योंकि वहाँ जो भी हुआ उसका जिम्मेदार मे भी था
क्योंकि अगर मैने अपना अभियान थोड़ा जल्दी खतम कर लिया होता तो आज ये सब नही होता महागुरु और बाकी सब को इस तरह युद्ध क्षेत्र मे प्रवेश नही करना पड़ता
ये सब सोचकर मैने अपनी ऊर्जा को एकत्रित किया और फिर मैने एक और मायावी द्वार प्रकट किया और चला गया सीधा युद्ध क्षेत्र के अंदर
और जब मे वहाँ पहुंचा तो वहाँ का हाल देखकर मे हैरान रह गया मेरा क्रोध सातवे आसमान पर पहुँच गया मेरे सामने नजारा ही कुछ ऐसा था
कुछ देर पहले
इस वक़्त दोनों पक्ष ही पक्ष एक दूसरे के सामने थे जहाँ दमयंती त्रिलोकेश्वर और शिबू को देखकर मायासुर पूरी तरह से हैरान था
क्योंकि वो अपने पाताल लोक के राज को संभालने और इस युद्ध की तैयारी मे इतना मशगुल हो गया था की उसे इस बात का पता ही नही चला की ये तीनो अपनी पूरी प्रजा के साथ उसकी कैद से आज़ाद हो गए है
और आज जब उसने इनको अपने सामने युद्ध मे देखा तो वो दंग रह गया था लेकिन उसने जल्द ही खुद पर काबू पा लिया था या फिर ऐसा भी कह सकते हो की उसके अंदर के हैवान और अहंकार दोनों ने मायासुर की सुध बुद्ध हर ली थी
इसीलिए तो उसने बिना ये जाने की उनको कैद से आज़ाद किसने और क्यों कराया बिना ये सोचे की आगे युद्ध का अब क्या अंजाम होगा सीधा अपने सभी सिपाहियों को आक्रमण का आदेश दे दिया
और उसके आदेश देते ही उसकी सेना और साथ मे ही महासुरों की सेना ने भी आक्रमण बोल दिया तो वही अपने शत्रु को अपनी तरफ इतनी तेजी से बढ़ते देख कर सत्य पक्ष ने भी अपने हत्यारों पर अपनी पकड़ कस ली थी
और अपने कदमों को अपने शत्रु की तबाही के और बड़ा दिये थे उसी के साथ महागुरु ने अपने धनुष से तीरों की वर्षा करना आरंभ कर दिया था ये एक निर्णायक युध्द था
इसीलिए यहाँ केवल शत्रु पक्ष की तबाही ही हर एक योध्दा का संकल्प था और इसी संकल्प के चलते जिन मानवों पर महासुरों ने सम्मोहन विद्या का प्रयोग किया था
वो सब भी इस महायुद्ध के यज्ञ मे अपने प्राणों की आहुति डाल रहे थे महागुरु aur बाकी के गुरुजन जहाँ अपने सप्त अस्त्रों का इस्तेमाल न करके वो केवल महागुरु द्वारा मिले अस्त्रों का ही केवल इस्तेमाल कर रहे थे
जिसे देखकर मायासुर और सभी महासुर उन्हे कमजोर समझ रहे थे और इसी वजह से महासुरों ने भी शांति से ये मुकाबला देखने का विचार त्याग कर वो सब भी इस युद्ध मे अपनी शक्तियों का जौहर दिखाने का ठान लिया
जिसके चलते अपने शक्तियों का जौहर दिखाने सबसे पहले ज्वालासुर मैदान मे उतारा उसने आते ही अच्छाई के पक्ष के उपर अपने अग्नि शक्ति से आक्रमण किया
लेकिन उसकी अग्नि किसी को कुछ हानि पहुंचा पाती उससे पहले ही गुरु अग्नि उस भयंकर अग्नि के सामने आकर खड़े हो गए और जैसे ही वो अग्नि उनके पास पहुंची वैसे ही गुरु अग्नि ने अपने अग्नि अस्त्र को जाग्रुत किया
जिसके वजह से जैसे ही वो अग्नि उनसे टकराई तो अग्नि अस्त्र ने तुरंत उस वार को अपने अंदर समा लिया और जैसे ही उनके शरीर से अग्नि अस्त्र की ऊर्जा प्रवाहित होने लगी
तो उस ऊर्जा को महसूस करके मायासुर और सभी महासुरों के पैरों तले से जमीन ही खिसक गयी और इससे पहले की वो लोग संभल पाते
उससे पहले ही महागुरु ने अपने कालास्त्र का इस्तेमाल करके असुरों की सारी सेना के मस्तिष्क में ऐसा भ्रम बना दिया जिससे वो सभी अपने शत्रुओं को छोड़कर अपने साथियों पर ही आक्रमण करने लगे थे
और जब मायासुर ने ये देखा तो उसने तुरंत ही अपनी माया की मदद से सभी सिपाहियों के मस्तिष्क से उस भ्रम को निकाल दिया और फिर उस मैदान मे शुरू हुआ एक महायुद्ध एक असल महायुद्ध अब तक जो चल रहा था वो तो जैसे एक तरह का शक्ति प्रदर्शन चल रहा था
लेकिन जब उन्हे सप्त अस्त्रों की उपस्थिति का एहसास हुआ तो अब महासुरों ने भी युद्ध को अब गंभीरता से लेना आरंभ कर दिया था हर किसीने अपने अपने प्रतिध्वंधि को चुन लिया था अब उस युद्ध क्षेत्र मे कुछ इस तरह से मुकाबला शुरू हो गया था
गुरु नंदी == गजासूर
गुरु जल == विशांतक
गुरु वानर == केशासुर
गुरु अग्नि == ज्वालासुर
गुरु सिँह == बलासुर
गुरु पृथ्वी (शांति) == महादंश
महागुरु == क्रोधासुर
प्रिया और दमयंती :- कामिनी और मोहिनी
शिबू :- मायासुर
त्रिलोकेश्वर पूरी सेना के साथ असुरी सेना से उलझ रहा था
हर कोई अपने प्रतुध्वंधि को खतम करने के इरादे से युद्ध कर रहा था दोनों ही तरफ मुकाबला बराबरी का चल रहा था
तो वही जब मायासुर ने युद्ध को अपने हाथ से निकलता महसूस किया तो उसने हर बार की तरह छल कपट से युद्ध करना आरंभ कर दिया और शिबू के दिमाग मे ऐसा भ्रम निर्माण हुआ
जिससे उसे अपने सामने 10 मायासुर दिखने लगे थे जिससे वो हैरान हो गया था और उसे समझ नही आ रहा था की इन मेसे कौन असली है और कौन नकली और इसी मे उलझ कर उसने सभी मायासुर पर अंधा धुंध वार करना शुरू कर दिया
जिससे मायासुर को तो कुछ हानि नही पहुँच रही थी लेकिन वो हर बार शिबू के पीछे आकर उसपर आक्रमण कर देता जिससे शिबू को गहरी चोटे भी आई थी अपनी योजना को सफल होते देख अब मायासुर बिन्धास्त हो गया था
लेकिन उसकी ये चाल ज्यादा देर न चल सकी वो अपने घमंड मे शायद ये भूल गया था कि वो और शिबू दोनों भी एक ही गुरु के शिष्य है
जैसे ही शिबू को मायासुर के इस छल का पता चला उसने तुरंत ही आक्रमण करना रोक दिया और अपने मन को शांत कर के उसने असली मायासुर का पता लगाने का प्रयास किया
और जैसे ही मायासुर ने शिबू पर वार करने का प्रयास किया वैसे ही उसकी भनक शिबू को लग गयी और उसने मायासुर के वार करने से पहले ही उस पर पलट वार कर दिया
जिससे मायासुर कुछ कदम पीछे की और खिसक गए तो वही चोटिल होने के वजह से शिबू भी बेहोश हो गया था
तो वही महासुरों से युद्ध करते वक्त अब सभी गुरुओं को थोड़ी परेशानी होने लगी थी जो स्वाभाविक थी वो सभी केवल मामूली अस्त्र धारक थे मामूली मानव थे उनके शरीर की कुछ बंधने थी
वो इस महान शक्ति स्त्रोत का उस तरह इस्तेमाल नही कर पा रहे थे जैसे भद्रा या कोई अन्य महा धारक कर पाते तो वही सभी गुरुओं की इस कमजोरी को सभी महासुरों ने देख लिया
जो देखकर सारे महासुरों ने भी अपनी संपूर्ण ऊर्जा का इस्तेमाल किया जिससे अब सभी गुरुओं के लिए परेशानी और बढ़ गयी थी जिससे अब सभी गुरुओं को बहुत चोटें भी आई थी
जिन्हे देखकर प्रिया और दमयंती का ध्यान भटक रहा था जिसका फायदा उठा कर मोहिनी और कामिनी ने भी उन दोनों पर प्राणघाती आक्रमण किया जिससे वो दोनों भी गंभीर रूप से चोटिल हो गयी थी और ये वही समय था जब भद्रा ने युद्ध क्षेत्र मे प्रवेश किया था
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आज के लिए इतना ही
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Nice update....अध्याय पचहत्तर
मे जब कालविजय आश्रम पहुंचा तो मे हैरान रह गया क्योंकि वहाँ का पुरा आसमान लाल हो गया था जैसे आसमान मे खून उतर आया हो और जब मे आश्रम में पहुँचा तो वहाँ की हालत और भी खराब थी वहाँ आश्रम की सारी जगह पर केवल तबाही ही दिखाई दे रही थी
ये सब देखकर मे बहुत हैरान हो गया था जिसके बाद में आश्रम मे यहाँ वहाँ घूम कर हर तरफ देख रहा था कि तभी मेरी नज़र एक कोने में गयी जहाँ आश्रम का ही एक आदमी दर्द से कराह रहा था
जब मे उसके पास पहुँचा तब तक उसका काफी खून निकल चुका था इसीलिए मैने सबसे पहले उसके उपर अपने शक्तियों का इस्तेमाल कर उसके घाव और दर्द का उपचार किया जिसके बाद वो मुझे मेरे जाने के बाद यहाँ जो कुछ भी हुआ वो सब बताने लगा
और जब मैने सब सुना तो मेरे आँखों में खून उतर आया था मुझे क्रोध उन असुरों से ज्यादा खुद पर आ रहा था क्योंकि वहाँ जो भी हुआ उसका जिम्मेदार मे भी था
क्योंकि अगर मैने अपना अभियान थोड़ा जल्दी खतम कर लिया होता तो आज ये सब नही होता महागुरु और बाकी सब को इस तरह युद्ध क्षेत्र मे प्रवेश नही करना पड़ता
ये सब सोचकर मैने अपनी ऊर्जा को एकत्रित किया और फिर मैने एक और मायावी द्वार प्रकट किया और चला गया सीधा युद्ध क्षेत्र के अंदर
और जब मे वहाँ पहुंचा तो वहाँ का हाल देखकर मे हैरान रह गया मेरा क्रोध सातवे आसमान पर पहुँच गया मेरे सामने नजारा ही कुछ ऐसा था
कुछ देर पहले
इस वक़्त दोनों पक्ष ही पक्ष एक दूसरे के सामने थे जहाँ दमयंती त्रिलोकेश्वर और शिबू को देखकर मायासुर पूरी तरह से हैरान था
क्योंकि वो अपने पाताल लोक के राज को संभालने और इस युद्ध की तैयारी मे इतना मशगुल हो गया था की उसे इस बात का पता ही नही चला की ये तीनो अपनी पूरी प्रजा के साथ उसकी कैद से आज़ाद हो गए है
और आज जब उसने इनको अपने सामने युद्ध मे देखा तो वो दंग रह गया था लेकिन उसने जल्द ही खुद पर काबू पा लिया था या फिर ऐसा भी कह सकते हो की उसके अंदर के हैवान और अहंकार दोनों ने मायासुर की सुध बुद्ध हर ली थी
इसीलिए तो उसने बिना ये जाने की उनको कैद से आज़ाद किसने और क्यों कराया बिना ये सोचे की आगे युद्ध का अब क्या अंजाम होगा सीधा अपने सभी सिपाहियों को आक्रमण का आदेश दे दिया
और उसके आदेश देते ही उसकी सेना और साथ मे ही महासुरों की सेना ने भी आक्रमण बोल दिया तो वही अपने शत्रु को अपनी तरफ इतनी तेजी से बढ़ते देख कर सत्य पक्ष ने भी अपने हत्यारों पर अपनी पकड़ कस ली थी
और अपने कदमों को अपने शत्रु की तबाही के और बड़ा दिये थे उसी के साथ महागुरु ने अपने धनुष से तीरों की वर्षा करना आरंभ कर दिया था ये एक निर्णायक युध्द था
इसीलिए यहाँ केवल शत्रु पक्ष की तबाही ही हर एक योध्दा का संकल्प था और इसी संकल्प के चलते जिन मानवों पर महासुरों ने सम्मोहन विद्या का प्रयोग किया था
वो सब भी इस महायुद्ध के यज्ञ मे अपने प्राणों की आहुति डाल रहे थे महागुरु aur बाकी के गुरुजन जहाँ अपने सप्त अस्त्रों का इस्तेमाल न करके वो केवल महागुरु द्वारा मिले अस्त्रों का ही केवल इस्तेमाल कर रहे थे
जिसे देखकर मायासुर और सभी महासुर उन्हे कमजोर समझ रहे थे और इसी वजह से महासुरों ने भी शांति से ये मुकाबला देखने का विचार त्याग कर वो सब भी इस युद्ध मे अपनी शक्तियों का जौहर दिखाने का ठान लिया
जिसके चलते अपने शक्तियों का जौहर दिखाने सबसे पहले ज्वालासुर मैदान मे उतारा उसने आते ही अच्छाई के पक्ष के उपर अपने अग्नि शक्ति से आक्रमण किया
लेकिन उसकी अग्नि किसी को कुछ हानि पहुंचा पाती उससे पहले ही गुरु अग्नि उस भयंकर अग्नि के सामने आकर खड़े हो गए और जैसे ही वो अग्नि उनके पास पहुंची वैसे ही गुरु अग्नि ने अपने अग्नि अस्त्र को जाग्रुत किया
जिसके वजह से जैसे ही वो अग्नि उनसे टकराई तो अग्नि अस्त्र ने तुरंत उस वार को अपने अंदर समा लिया और जैसे ही उनके शरीर से अग्नि अस्त्र की ऊर्जा प्रवाहित होने लगी
तो उस ऊर्जा को महसूस करके मायासुर और सभी महासुरों के पैरों तले से जमीन ही खिसक गयी और इससे पहले की वो लोग संभल पाते
उससे पहले ही महागुरु ने अपने कालास्त्र का इस्तेमाल करके असुरों की सारी सेना के मस्तिष्क में ऐसा भ्रम बना दिया जिससे वो सभी अपने शत्रुओं को छोड़कर अपने साथियों पर ही आक्रमण करने लगे थे
और जब मायासुर ने ये देखा तो उसने तुरंत ही अपनी माया की मदद से सभी सिपाहियों के मस्तिष्क से उस भ्रम को निकाल दिया और फिर उस मैदान मे शुरू हुआ एक महायुद्ध एक असल महायुद्ध अब तक जो चल रहा था वो तो जैसे एक तरह का शक्ति प्रदर्शन चल रहा था
लेकिन जब उन्हे सप्त अस्त्रों की उपस्थिति का एहसास हुआ तो अब महासुरों ने भी युद्ध को अब गंभीरता से लेना आरंभ कर दिया था हर किसीने अपने अपने प्रतिध्वंधि को चुन लिया था अब उस युद्ध क्षेत्र मे कुछ इस तरह से मुकाबला शुरू हो गया था
गुरु नंदी == गजासूर
गुरु जल == विशांतक
गुरु वानर == केशासुर
गुरु अग्नि == ज्वालासुर
गुरु सिँह == बलासुर
गुरु पृथ्वी (शांति) == महादंश
महागुरु == क्रोधासुर
प्रिया और दमयंती :- कामिनी और मोहिनी
शिबू :- मायासुर
त्रिलोकेश्वर पूरी सेना के साथ असुरी सेना से उलझ रहा था
हर कोई अपने प्रतुध्वंधि को खतम करने के इरादे से युद्ध कर रहा था दोनों ही तरफ मुकाबला बराबरी का चल रहा था
तो वही जब मायासुर ने युद्ध को अपने हाथ से निकलता महसूस किया तो उसने हर बार की तरह छल कपट से युद्ध करना आरंभ कर दिया और शिबू के दिमाग मे ऐसा भ्रम निर्माण हुआ
जिससे उसे अपने सामने 10 मायासुर दिखने लगे थे जिससे वो हैरान हो गया था और उसे समझ नही आ रहा था की इन मेसे कौन असली है और कौन नकली और इसी मे उलझ कर उसने सभी मायासुर पर अंधा धुंध वार करना शुरू कर दिया
जिससे मायासुर को तो कुछ हानि नही पहुँच रही थी लेकिन वो हर बार शिबू के पीछे आकर उसपर आक्रमण कर देता जिससे शिबू को गहरी चोटे भी आई थी अपनी योजना को सफल होते देख अब मायासुर बिन्धास्त हो गया था
लेकिन उसकी ये चाल ज्यादा देर न चल सकी वो अपने घमंड मे शायद ये भूल गया था कि वो और शिबू दोनों भी एक ही गुरु के शिष्य है
जैसे ही शिबू को मायासुर के इस छल का पता चला उसने तुरंत ही आक्रमण करना रोक दिया और अपने मन को शांत कर के उसने असली मायासुर का पता लगाने का प्रयास किया
और जैसे ही मायासुर ने शिबू पर वार करने का प्रयास किया वैसे ही उसकी भनक शिबू को लग गयी और उसने मायासुर के वार करने से पहले ही उस पर पलट वार कर दिया
जिससे मायासुर कुछ कदम पीछे की और खिसक गए तो वही चोटिल होने के वजह से शिबू भी बेहोश हो गया था
तो वही महासुरों से युद्ध करते वक्त अब सभी गुरुओं को थोड़ी परेशानी होने लगी थी जो स्वाभाविक थी वो सभी केवल मामूली अस्त्र धारक थे मामूली मानव थे उनके शरीर की कुछ बंधने थी
वो इस महान शक्ति स्त्रोत का उस तरह इस्तेमाल नही कर पा रहे थे जैसे भद्रा या कोई अन्य महा धारक कर पाते तो वही सभी गुरुओं की इस कमजोरी को सभी महासुरों ने देख लिया
जो देखकर सारे महासुरों ने भी अपनी संपूर्ण ऊर्जा का इस्तेमाल किया जिससे अब सभी गुरुओं के लिए परेशानी और बढ़ गयी थी जिससे अब सभी गुरुओं को बहुत चोटें भी आई थी
जिन्हे देखकर प्रिया और दमयंती का ध्यान भटक रहा था जिसका फायदा उठा कर मोहिनी और कामिनी ने भी उन दोनों पर प्राणघाती आक्रमण किया जिससे वो दोनों भी गंभीर रूप से चोटिल हो गयी थी और ये वही समय था जब भद्रा ने युद्ध क्षेत्र मे प्रवेश किया था
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आज के लिए इतना ही
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Yes bro me aapke har baat se agree karta hoon lekin agar mene break liya toh mere mind me ko flow hai woh Tut jayega aur waise bhi mene is story ko experiment ke liye likha hai me apni short story likhne ki skill test kar Raha tha lekin ab pata chala ki apun lambi race ke ghode hai chhote race apne ko bhati nahi isiliye ise nipatne ke baad ek new start hoga meri baki do stories ki tarahKaafi lambe waqt ke baad aaya hun . Aur sabse pehle aapki kahani padhi , kyu k title hi interesting tha . Starting ke phase bhi kaafi badhiya tha lekin jaise jaise aage badhta gaya nirash hone laga .
Bahut hi jaldi me kahani likhi gayi hai ,baut hi jaldi khatm kar di gayi . Aur itne chhote update ??
Bhai maana writers block hota hai to kahani usi time wahi chhod do . Kuch time ka break lo , alag alag kahaniya padhiye , jab kuch naya idea aaye to kahani badhaiye . Ab block aaye to iska matlab ye nahi k kahani hi nipta do .
Bura lage to maaf kijiyega but thats my honest review
Is kahani ki tarah hi devnagri me hi likhna bhaiYes bro me aapke har baat se agree karta hoon lekin agar mene break liya toh mere mind me ko flow hai woh Tut jayega aur waise bhi mene is story ko experiment ke liye likha hai me apni short story likhne ki skill test kar Raha tha lekin ab pata chala ki apun lambi race ke ghode hai chhote race apne ko bhati nahi isiliye ise nipatne ke baad ek new start hoga meri baki do stories ki tarah

Is baat ki guarantee nahi de sakta bro mujhe hinglish hi jyada sahi lagti hai jisme mujhe typing karne me bhi easy hoti hai aur emotion bhi achhe se express kar sakta hun jaise abhi ka le lo ye sab agar me devnagari me likhu toh aadhe words kisi ko samajh bhi nahi aayengeIs kahani ki tarah hi devnagri me hi likhna bhai![]()