• If you are trying to reset your account password then don't forget to check spam folder in your mailbox. Also Mark it as "not spam" or you won't be able to click on the link.

Fantasy ब्रह्माराक्षस

kas1709

Well-Known Member
11,183
11,760
213
अध्याय इक्यावन

इस वक़्त उस युद्ध मैदान मे एक तरफ पूरी असुरी सेना थी तो दूसरी तरफ अच्छाई के योद्धा थे जिनमे कुछ चोटिल हो गए थे और जब दोनों पक्ष आमने सामने आ गए तो सही मायने में युद्ध आरंभ हो गया था

जिसमे आज कोई एक ही पक्ष जीतता और दूसरे पक्ष को मृत्यु प्राप्त होती अभी सब एक दूसरे के सामने थे की तभी कामिनी ने असुरी सैनिकों को इशारा कर दिया जिससे असुरी सेना पूरी तेजी से आगे बढ़ने लगी

तो वही महागुरु ने भी अपने सिपाहियों को लढने का इशारा किया जिसके बाद एक एक अच्छाई के योद्धा के लिए 100 असुरी सैनिक मौजूद थे

लेकिन इससे पहले की वो असुरी सैनिक आगे बढ़ पाते उससे पहले ही प्रिया ने अपनी सैन्य टुकड़ी के तरफ एक इशारा किया जिससे सारे धनुर्धर और भाले धारकों ने तुरंत अपने गुलाबी आग से जलते हुए तिर और भालों को उनकी तरफ फेक दिये

जिससे असुरी सेना का एक हिस्सा युद्ध शुरू होने से पहले ही मारा गया

तो वही जब महागुरु ने योध्दाओं की हालत देखी तो बहुत से योद्धा उनके भी चोटिल हो गए थे जो देखके महागुरु ने अपनी आँखे बंद कर दी और फिर से अपने धनुष की प्रत्यंचा खिचने लगे

साथ मे वो अपने मन मे ही कुछ मंत्र बोलने लगे थे और जैसे ही उन्होंने अपनी आँखे खोली तो वैसे ही उनके धनुष पर एक बान आ गया जिसे उन्होंने तुरंत आसमान मे छोड़ दिया

जो कुछ देर उपर जाके पुन्हा नीचे आ गया और वो सीधा अच्छाई पक्ष के सेना बिचो बीच जाके गिरा और देखते ही देखते सारे जख्मी योध्दा पुन्हा चुस्त और दुरुस्त हो गए

ये वही वक्त था जब मायासुर ने वो सफेद गोले का निर्माण किया था जिसमे युद्ध का मंजर देखके न सिर्फ वो दोनों बल्कि उस युद्ध के मैदान का हर एक शख्स दंग था

शैलेश :- महागुरु ये कैसी विद्या थी

महागुरु :- विसोशन अस्त्र ये भी एक दिव्यस्त्र हैं जब तुम सभी उन निष्क्रिय अस्त्रों पर अपना समय गवां रहे थे तब मे ऐसे ही दिव्यस्त्रों के आवहाँन कर रहा था

प्रिया:- बीचमे टोकने के लिए माफी लेकिन जुबान नही हाथ चलाने का समय है

प्रिया की बात सुनकर महागुरु ने भी अपने योध्दाओं को हमला करने के लिए कहा जिससे अब दोनों ही पक्ष आपस में पूरी तरह भीड़ चुके थे हर कोई अपने अपने तरीके से युद्ध कर रहा था

जहाँ पंचतत्व सेना अपने आप मे ही तीन संघो मे बट गयी थी

पहले संघ मे अग्नि तत्व और आकाश तत्व थे जो सारे असुरों पर अग्नि और विद्युत शक्ति का मिश्रित वार करते जा रहे थे

तो वही दूसरे संघ मे जल और पृथ्वी तत्व एक साथ थे जहाँ पृथ्वी तत्व सभी असुरों के चारों तरफ मिट्टी की परत चढ़ा देते

तो वही जल तत्व उस मिट्टी के परत मे जल को मिला कर खिचड का निर्माण कर देते और उस खिचड के कारण उन असुरों का दम घुटने लगता और वो वही मारे जाते

तो वही तीसरा संघ वायु तत्व का वायु तत्व सैनिक एक ही बार मे 4 से 5 असुरों को हवा में उड़ा कर जोर से जमीन पर पटक देते जिससे उनका खेल वही खतम हो जाता

तो वही सारे गुरु भी असुरी सेना के टुकड़ी को अकेले मारे जा रहे थे जहाँ सिँह वानर और नंदी गुरु ये तीनों अपने अपने अस्त्रों के शक्ति से पूरी के पूरी टुकड़ी को एक ही बार मे खतम कर दे रहे थे

तो वही शांति दिलावर और साहिल अपने बाहुबल और मायावी अस्त्रों के मदद से असुरी सेना का खतम किये जा रहे थे


तो वही प्रिया मायावी जादूगरों की सेना के साथ असुरी सेना पर कहर बनके गिर रही थी सारे असुरी सैनिक उसके हाथों बहुत बुरी तरीके से मर रहे थे

तो वही सबसे आखिर मे महागुरु धनुर्धर और भालों के संघ के साथ सभी असुरी सेना पर आसमान से कहर बरसा रहे थे जैसा मेने आपको पहले कहा था की मायावी धनुषों की एक खासियत है जो केवल महागुरु ही जानते है

और वो है वो सारे धनुष महागुरु के ही धनुष के प्रतिरूप है जिस कारण जो बान महागुरु के धनुष से संधान होगा वही बान अगर महागुरु चाहे तो उन सारे धनुष से एक साथ संधान किया जा सकता हैं


और इस खूबी का महागुरु बड़ी ही कुशलता से प्रयोग कर रहे थे हर बार वो किसी भी दिव्यस्त्र का वार असुरों पर करते तो वही दिव्यस्त्र उन सभी धनुर्धर सैनिकों के धनुष से भी संधान होता

और इसी युक्ति से कुछ ही देर में 1,00,000 की असुरी सेना अब केवल 50,000 की रह गयी थी जो देखकर अच्छाई के पक्ष मे एक अलग उत्साह छा गया था वो सभी और भी तेजी से असुरों को मारने मे लग गए

तो वही अपनी सेना का ये हाल होता देख कर कामिनी और मोहिनी ने अपनी शक्तियों से वहाँ मायाजाल फैलाने का प्रयास भी किया था जिसमे एक पल के लिए कामयाब भी हो गए थे

जिसमे उन्होंने पूरी असुरी सेना को अदृश्य बना दिया था जिससे एक बार फिर से अच्छाई के योद्धा जख्मी होने लगे थे की तभी महागुरु ने अपनी बुद्धि का इस्तेमाल कर शब्द वेदास्त्र का इस्तेमाल किया

जिससे देखते ही देखते अदृश्य हो चुकी असुरी सेना सबको दिखने लगी और उसके तुरंत बाद महागुरु असुरी सेना पर इंद्रास्त्र का इस्तेमाल किया और जिससे पूरी असुरी सेना पर तीरों की बारिश होने लगी थी


तो वही इससे पहले की कमीनी और मोहिनी दोनों फिर से की माया रच पाते उससे पहले ही प्रिया और शांति ने उन दोनों पर हमला बोल दिया

तो वही इस सब के बाद असुरी सेना की संख्या अब केवल 25,000 ही रह गयी थी तो वही अच्छाई के पक्ष मे अब तक केवल 400 se 450 योध्दा शहीद हुए थे


तो वही ये युद्ध मायावी गोले के मदद से शुक्राचार्य और मायासुर भी देख रहे थे और ये सब देखकर जहाँ मायासुर क्रोध में था तो वही शुक्राचार्य पूरी लडाई गौर से देख रहा था

मायासुर:- इन्होंने क्या हाल कर दिया है हमारे सेना का अब मे उन्हे छोडूंगा नही मे खुद इन्हे खतम करूँगा

इतना बोलके मायासुर वहा से जाने लगा तो वही मायासुर को जाते देख कर शुक्राचार्य ने उसका हाथ पकड़ कर रोक दिया

शुक्राचार्य:- रुक जाओ मायासुर अभी इस युद्ध मे तुम्हारी बारी नही आई है अब अपने महाकाय असुरों को भेजो और उनके साथ विध्वंशक और उसके पांचो साथियों को भी भेजो जिससे राघवेंद्र के दिव्यस्त्र भी किसी काम के न रहे

मायासुर :- जो आज्ञा गुरुवर

वही युद्ध के मैदान में महागुरु ने अग्नये अस्त्र से युद्ध खतम करना चाहा और फिर अपने धनुष से उस अस्त्र को छोड़ भी दिया जिससे वहा बचे कुचे असुरों पर आग की बड़ी लहर गिरने लगी

लेकिन इससे पहले की असुरी सेना को कोई हानि पहुंचा पाती उससे पहले ही वहा एक बड़ी पानी की लहर आ गयी जिसने उस आग की लहर को बुझा दिया जो देखकर सभी हैरान हो गए थे

और जब सबने उस दिशा में देखा जहाँ से वो लहर आई थी तो वहा पर इस वक़्त कुल 10 असुर थे जिनकी ऊँचाई किसी पर्वत समान थी और उन 10 मेसे 6 असुर कुछ अलग ही दिख रहे थे


और बाकी 4 आम महाकाय असुर दिख रहे थे तो वही जहाँ उन्हे देख कर सभी दंग थे की तभी उन 6 मेसे एक ने अपने धनुष से तिर छोड़ा जो सीधा धनुर्धर टुकड़ी के उपर गया और

जैसे ही वो तिर धनुर्धर टुकड़ी के उपर पहुंचा वैसे ही उस सैन्य टुकड़ी पर अचानक बड़ी बड़ी चट्टाने गिरने लगी जो देखकर महागुरु और बाकी सब दंग रह गए

महागुरु :- (मन में) पहले वरुणास्त्र और अब पर्वतास्त्र ये कोई आम असुर नही है इनसे लड़ने के लिए मुझे अपना पुरा जोर लगाना होगा

इतना सोचते ही महागुरु सतर्क हो गए और उन्होंने तुरंत ही उन असुरों पर फिर से एक बार इंद्रस्त्र के मदद से तीरों की बारिश कर दी लेकिन तभी उस असुर ने भी अपने धनुष से अंतर्ध्यनास्त्र को छोड़ दिया


जिसने उन सारे तीरों को कही गायब कर दिया और फिर तुरंत ही उसने महागुरु पर और अच्छाई के पक्ष पर नागास्त्र से वार कर दिया जिससे हर तरफ भयंकर और विषैले सर्प आ गए जिन्हे देखकर महागुरु ने तुरंत अपने गरूड़ा अस्त्र का वार कर दिया

जिससे हर तरफ भयंकर गरुड़ आ गए जिन्होंने सारे सर्पों को देखते ही देखते खतम कर दिया और फिर उन दोनों के बीच शुरू हुआ युद्ध जिसमे दोनों भी अपने अपने अस्त्रों का इस्तेमाल एक दूसरे पर कर रहे थे

की तभी उस असुर ने महागुरु पर वरुणापाश से वार किया और इससे पहले की महागुरु उससे बच पाते की उस पाश ने महागुरु को अपने कब्जे मे ले लिया

और ये देखते ही सभी का ध्यान उस तरफ चला गया और नाजाने किस वजह से लेकिन सारे अस्त्र धारक गुरुओं की जो अस्त्र ऊर्जा थी वो गायब हो गयी थी जैसे कि उनके अस्त्र भी निष्क्रिय हो गए है और इसी बात का फायदा उठा कर सारे असुरों ने हारे हुए युद्ध को और सभी योद्धाओं को वापस अपने कब्जे मे ले लिया

~~~~~~~~~~~~~~~~~~
आज के लिए इतना ही

~~~~~~~~~~~~~~~~~~
Nice update....
 

dhparikh

Well-Known Member
11,703
13,315
228
अध्याय इक्यावन

इस वक़्त उस युद्ध मैदान मे एक तरफ पूरी असुरी सेना थी तो दूसरी तरफ अच्छाई के योद्धा थे जिनमे कुछ चोटिल हो गए थे और जब दोनों पक्ष आमने सामने आ गए तो सही मायने में युद्ध आरंभ हो गया था

जिसमे आज कोई एक ही पक्ष जीतता और दूसरे पक्ष को मृत्यु प्राप्त होती अभी सब एक दूसरे के सामने थे की तभी कामिनी ने असुरी सैनिकों को इशारा कर दिया जिससे असुरी सेना पूरी तेजी से आगे बढ़ने लगी

तो वही महागुरु ने भी अपने सिपाहियों को लढने का इशारा किया जिसके बाद एक एक अच्छाई के योद्धा के लिए 100 असुरी सैनिक मौजूद थे

लेकिन इससे पहले की वो असुरी सैनिक आगे बढ़ पाते उससे पहले ही प्रिया ने अपनी सैन्य टुकड़ी के तरफ एक इशारा किया जिससे सारे धनुर्धर और भाले धारकों ने तुरंत अपने गुलाबी आग से जलते हुए तिर और भालों को उनकी तरफ फेक दिये

जिससे असुरी सेना का एक हिस्सा युद्ध शुरू होने से पहले ही मारा गया

तो वही जब महागुरु ने योध्दाओं की हालत देखी तो बहुत से योद्धा उनके भी चोटिल हो गए थे जो देखके महागुरु ने अपनी आँखे बंद कर दी और फिर से अपने धनुष की प्रत्यंचा खिचने लगे

साथ मे वो अपने मन मे ही कुछ मंत्र बोलने लगे थे और जैसे ही उन्होंने अपनी आँखे खोली तो वैसे ही उनके धनुष पर एक बान आ गया जिसे उन्होंने तुरंत आसमान मे छोड़ दिया

जो कुछ देर उपर जाके पुन्हा नीचे आ गया और वो सीधा अच्छाई पक्ष के सेना बिचो बीच जाके गिरा और देखते ही देखते सारे जख्मी योध्दा पुन्हा चुस्त और दुरुस्त हो गए

ये वही वक्त था जब मायासुर ने वो सफेद गोले का निर्माण किया था जिसमे युद्ध का मंजर देखके न सिर्फ वो दोनों बल्कि उस युद्ध के मैदान का हर एक शख्स दंग था

शैलेश :- महागुरु ये कैसी विद्या थी

महागुरु :- विसोशन अस्त्र ये भी एक दिव्यस्त्र हैं जब तुम सभी उन निष्क्रिय अस्त्रों पर अपना समय गवां रहे थे तब मे ऐसे ही दिव्यस्त्रों के आवहाँन कर रहा था

प्रिया:- बीचमे टोकने के लिए माफी लेकिन जुबान नही हाथ चलाने का समय है

प्रिया की बात सुनकर महागुरु ने भी अपने योध्दाओं को हमला करने के लिए कहा जिससे अब दोनों ही पक्ष आपस में पूरी तरह भीड़ चुके थे हर कोई अपने अपने तरीके से युद्ध कर रहा था

जहाँ पंचतत्व सेना अपने आप मे ही तीन संघो मे बट गयी थी

पहले संघ मे अग्नि तत्व और आकाश तत्व थे जो सारे असुरों पर अग्नि और विद्युत शक्ति का मिश्रित वार करते जा रहे थे

तो वही दूसरे संघ मे जल और पृथ्वी तत्व एक साथ थे जहाँ पृथ्वी तत्व सभी असुरों के चारों तरफ मिट्टी की परत चढ़ा देते

तो वही जल तत्व उस मिट्टी के परत मे जल को मिला कर खिचड का निर्माण कर देते और उस खिचड के कारण उन असुरों का दम घुटने लगता और वो वही मारे जाते

तो वही तीसरा संघ वायु तत्व का वायु तत्व सैनिक एक ही बार मे 4 से 5 असुरों को हवा में उड़ा कर जोर से जमीन पर पटक देते जिससे उनका खेल वही खतम हो जाता

तो वही सारे गुरु भी असुरी सेना के टुकड़ी को अकेले मारे जा रहे थे जहाँ सिँह वानर और नंदी गुरु ये तीनों अपने अपने अस्त्रों के शक्ति से पूरी के पूरी टुकड़ी को एक ही बार मे खतम कर दे रहे थे

तो वही शांति दिलावर और साहिल अपने बाहुबल और मायावी अस्त्रों के मदद से असुरी सेना का खतम किये जा रहे थे


तो वही प्रिया मायावी जादूगरों की सेना के साथ असुरी सेना पर कहर बनके गिर रही थी सारे असुरी सैनिक उसके हाथों बहुत बुरी तरीके से मर रहे थे

तो वही सबसे आखिर मे महागुरु धनुर्धर और भालों के संघ के साथ सभी असुरी सेना पर आसमान से कहर बरसा रहे थे जैसा मेने आपको पहले कहा था की मायावी धनुषों की एक खासियत है जो केवल महागुरु ही जानते है

और वो है वो सारे धनुष महागुरु के ही धनुष के प्रतिरूप है जिस कारण जो बान महागुरु के धनुष से संधान होगा वही बान अगर महागुरु चाहे तो उन सारे धनुष से एक साथ संधान किया जा सकता हैं


और इस खूबी का महागुरु बड़ी ही कुशलता से प्रयोग कर रहे थे हर बार वो किसी भी दिव्यस्त्र का वार असुरों पर करते तो वही दिव्यस्त्र उन सभी धनुर्धर सैनिकों के धनुष से भी संधान होता

और इसी युक्ति से कुछ ही देर में 1,00,000 की असुरी सेना अब केवल 50,000 की रह गयी थी जो देखकर अच्छाई के पक्ष मे एक अलग उत्साह छा गया था वो सभी और भी तेजी से असुरों को मारने मे लग गए

तो वही अपनी सेना का ये हाल होता देख कर कामिनी और मोहिनी ने अपनी शक्तियों से वहाँ मायाजाल फैलाने का प्रयास भी किया था जिसमे एक पल के लिए कामयाब भी हो गए थे

जिसमे उन्होंने पूरी असुरी सेना को अदृश्य बना दिया था जिससे एक बार फिर से अच्छाई के योद्धा जख्मी होने लगे थे की तभी महागुरु ने अपनी बुद्धि का इस्तेमाल कर शब्द वेदास्त्र का इस्तेमाल किया

जिससे देखते ही देखते अदृश्य हो चुकी असुरी सेना सबको दिखने लगी और उसके तुरंत बाद महागुरु असुरी सेना पर इंद्रास्त्र का इस्तेमाल किया और जिससे पूरी असुरी सेना पर तीरों की बारिश होने लगी थी


तो वही इससे पहले की कमीनी और मोहिनी दोनों फिर से की माया रच पाते उससे पहले ही प्रिया और शांति ने उन दोनों पर हमला बोल दिया

तो वही इस सब के बाद असुरी सेना की संख्या अब केवल 25,000 ही रह गयी थी तो वही अच्छाई के पक्ष मे अब तक केवल 400 se 450 योध्दा शहीद हुए थे


तो वही ये युद्ध मायावी गोले के मदद से शुक्राचार्य और मायासुर भी देख रहे थे और ये सब देखकर जहाँ मायासुर क्रोध में था तो वही शुक्राचार्य पूरी लडाई गौर से देख रहा था

मायासुर:- इन्होंने क्या हाल कर दिया है हमारे सेना का अब मे उन्हे छोडूंगा नही मे खुद इन्हे खतम करूँगा

इतना बोलके मायासुर वहा से जाने लगा तो वही मायासुर को जाते देख कर शुक्राचार्य ने उसका हाथ पकड़ कर रोक दिया

शुक्राचार्य:- रुक जाओ मायासुर अभी इस युद्ध मे तुम्हारी बारी नही आई है अब अपने महाकाय असुरों को भेजो और उनके साथ विध्वंशक और उसके पांचो साथियों को भी भेजो जिससे राघवेंद्र के दिव्यस्त्र भी किसी काम के न रहे

मायासुर :- जो आज्ञा गुरुवर

वही युद्ध के मैदान में महागुरु ने अग्नये अस्त्र से युद्ध खतम करना चाहा और फिर अपने धनुष से उस अस्त्र को छोड़ भी दिया जिससे वहा बचे कुचे असुरों पर आग की बड़ी लहर गिरने लगी

लेकिन इससे पहले की असुरी सेना को कोई हानि पहुंचा पाती उससे पहले ही वहा एक बड़ी पानी की लहर आ गयी जिसने उस आग की लहर को बुझा दिया जो देखकर सभी हैरान हो गए थे

और जब सबने उस दिशा में देखा जहाँ से वो लहर आई थी तो वहा पर इस वक़्त कुल 10 असुर थे जिनकी ऊँचाई किसी पर्वत समान थी और उन 10 मेसे 6 असुर कुछ अलग ही दिख रहे थे


और बाकी 4 आम महाकाय असुर दिख रहे थे तो वही जहाँ उन्हे देख कर सभी दंग थे की तभी उन 6 मेसे एक ने अपने धनुष से तिर छोड़ा जो सीधा धनुर्धर टुकड़ी के उपर गया और

जैसे ही वो तिर धनुर्धर टुकड़ी के उपर पहुंचा वैसे ही उस सैन्य टुकड़ी पर अचानक बड़ी बड़ी चट्टाने गिरने लगी जो देखकर महागुरु और बाकी सब दंग रह गए

महागुरु :- (मन में) पहले वरुणास्त्र और अब पर्वतास्त्र ये कोई आम असुर नही है इनसे लड़ने के लिए मुझे अपना पुरा जोर लगाना होगा

इतना सोचते ही महागुरु सतर्क हो गए और उन्होंने तुरंत ही उन असुरों पर फिर से एक बार इंद्रस्त्र के मदद से तीरों की बारिश कर दी लेकिन तभी उस असुर ने भी अपने धनुष से अंतर्ध्यनास्त्र को छोड़ दिया


जिसने उन सारे तीरों को कही गायब कर दिया और फिर तुरंत ही उसने महागुरु पर और अच्छाई के पक्ष पर नागास्त्र से वार कर दिया जिससे हर तरफ भयंकर और विषैले सर्प आ गए जिन्हे देखकर महागुरु ने तुरंत अपने गरूड़ा अस्त्र का वार कर दिया

जिससे हर तरफ भयंकर गरुड़ आ गए जिन्होंने सारे सर्पों को देखते ही देखते खतम कर दिया और फिर उन दोनों के बीच शुरू हुआ युद्ध जिसमे दोनों भी अपने अपने अस्त्रों का इस्तेमाल एक दूसरे पर कर रहे थे

की तभी उस असुर ने महागुरु पर वरुणापाश से वार किया और इससे पहले की महागुरु उससे बच पाते की उस पाश ने महागुरु को अपने कब्जे मे ले लिया

और ये देखते ही सभी का ध्यान उस तरफ चला गया और नाजाने किस वजह से लेकिन सारे अस्त्र धारक गुरुओं की जो अस्त्र ऊर्जा थी वो गायब हो गयी थी जैसे कि उनके अस्त्र भी निष्क्रिय हो गए है और इसी बात का फायदा उठा कर सारे असुरों ने हारे हुए युद्ध को और सभी योद्धाओं को वापस अपने कब्जे मे ले लिया

~~~~~~~~~~~~~~~~~~
आज के लिए इतना ही

~~~~~~~~~~~~~~~~~~
Nice update...
 

VAJRADHIKARI

Hello dosto
1,484
18,103
144
अध्याय बावन

जहाँ एक तरफ युद्ध हाथ से निकलता जा रहा था सारे अच्छाई के सिपाही बहुत बुरी तरह जख्मी हो गए थे और सारे गुरुओं को उन खास असुरों ने वरुण पाश मे कैद कर लिया था

जो देख कर मायासुर और शुक्राचार्य दोनों भी अपने जीत पर खुशियाँ मना रहे थे की तभी अटल लोक की जमीन हिलने लगी वहा अचानक से एक तेज भूकंप आने लगा जिससे वहा खड़े सबका संतुलन बिगड़ गया

तो वही दूसरी तरफ इस वक्त मे उसी अंधेरी जगह पर मे जमीन मे बैठे कर ध्यान लगाकर अपने सारे शक्तियों को काबू करने मे लगा हुआ था मुझे पता भी नही चल रहा था कि मुझे ध्यान लगते कितना समय हो गया है या कितने दिन हो गए है

मे केवल अपने अंदर वास कर रही सारी शक्तियों को काबू करने मे लगा हुआ था जिस दौरान मुझे कुछ ऐसी शक्तियाँ भी दिखती जिनको पहले मुझे आजाद करना पड़ता और फिर उन्हे काबू करना पड़ता

जिनमे अब तक वो शिबू का सिंहासन भी था और साथ मे एक और चीज भी थी और वो थी शैतानी गदा जो की उस शैतान के पास से मेरे शरीर में समा गयी थी (अध्याय उँतिस)

जिसे काबू करते हुए मुझे अब तक सबसे ज्यादा समय लगा था और पीड़ा भी सर्वाधिक हुई थी और उस गदा को काबू करते ही मेरे मस्तिष्क मे बहुत सारे चित्र दिखने लगे थे

तो वही अभी भी मुझे कुमार की आवाज नही सुनाई दी थी जिस वजह से मे बिना रुके ध्यान में बैठ कर अपनी शक्तियों को काबू पाने के सफर में आगे बढ़ते जा रहा था

की उसके बाद मुझे वहा 6 अलग अलग रंग के ऊर्जा गोले दिखते जा रहे थे जो की किसी अजीब से बंधन बंधे हुए थे जिनको मैने जैसे ही आज़ाद कराया वैसे ही वो 6 के 6 गोले एक साथ मेरे तरफ बढ़ने लगे

और इससे पहले की मे कुछ करता उससे पहले ही वो सभी गोले किसी बंदूक के गोली समान मेरे शरीर में समा गए और जैसे ही वो गोले मेरे शरीर के अंदर समा गए वैसे ही मेरे सामने कुछ चित्र बनकर आ गए

जिन्हे देखकर मे दंग रह गया और अभी मे उन चित्रों को ध्यान से देख पता उससे पहले ही मेरे शरीर में इतनी तीर्व पीड़ा होने लगी की मानो जैसे कोई मेरे शरीर को जबरदस्ती खींच कर 2 हिस्सों में बाँट रहा हो

और इसी वजह से मेरी चीखे निकालने लगी जिसके बाद मैने जैसे तैसे करके अपने दर्द को काबू किया और फिर धीरे धीरे मेरा दर्द भी कम हो गया था और अभी मुझे थोड़ी राहत मिली थी

कि तभी मेरे शरीर को झटके लगने लगे ऐसा लग रहा था कि जैसे मेरे शरीर मे एक साथ बहुत सारे विस्फोटक फटने लगे थे और इससे पहले की मे कुछ समझ पाता मेरा शरीर किसी अंगार के तरह जलने लगा

जिसे मे जितनी शांत करने का प्रयास करता उतनी ही तेजी से मेरे शरीर में गर्मी फैलती और आखिर मे ऐसा लगा की जैसे मेरा शरीर ही फट गया हो जिस कारण से मे वही उसी जगह पर बेहोश हो गया

और जब मुझे होश आया तो मे अभी भी उसी जगह पर था और मेरे सामने इस वक़्त कुमार खड़ा था जिसके चेहरे पर हल्के चिंता के बादल दिख रहे थे

कुमार:- क्या हुआ भद्रा तुम ठीक तो हो

मे:- हा मे ठीक हूँ बस थोड़ा बदन दर्द कर रहा है वैसे तुम इतने चिंता मे क्यों हो

कुमार:- एक दुःखद समाचार है

मै :- (चिंता से) क्या हुआ सब ठीक तो है न

कुमार:- युद्ध आरंभ हो गया है और अब बाजी हमारे हाथ से निकल चुकी हैं और अगर हमने जल्दी नही की तो संसार पर बुराई का राज हो जायेगा लेकिन

मै :- लेकिन क्या मुझे पूरी बात बताओ

कुमार :- तुम्हारी हालत अभी ठीक नहीं है कि तुम इस सफर को अंत तक ले जाओ तुम्हे आराम की जरूरत है लेकिन हमारे पास उतना समय नही है

मै :- तुम चिंता मत करो मे बिल्कुल ठीक हूँ भी तुम मुझे ये बताओ अब आगे मेरी कोनसी शक्ति को आज़ाद करना है

कुमार :- अब तुम्हे तुम्हारी सबसे ताकतवर और सबसे महत्वपूर्ण शक्ति को पचनना है और वो है तुम्हारी पहचान तुम्हारा अस्तित्व

इतना बोलके कुमार तुरंत मेरे अंदर समा गया और उसके समाते ही मेरे आँखों के सामने शुरवात से सबकुछ दिखने लगा (अध्याय 1 से अबतक) सब कुछ मे देख पा रहा था मे सुन पा रहा था मे महसुस कर सकता था

और जब मुझे मेरे असलियत का बोध हुआ तो मुझे ऐसे लगने लगा की जैसे मेरे अंदर का शक्तियों के समुद्र मे अचानक से सुनामी आ गयी हो जिससे मेरे पूरे शरीर को फिर से झटके लगने लगे

और उस वजह से मेरी आँखे फिर एक बार बंद होने लगी थी और जब मैने अपनी आँखे खोली तो मे इस वक़्त अपनी कुटिया मे था जहाँ मेरे शरीर पर कुछ पट्टी बंधी हुई थी

और मेरे सर के पास मे मुझे जल अग्नि और कालास्त्र रखे हुए मिल गए जिन्हे देखकर मेरे होंठों पर मुस्कान छा गयी हुआ यू की जब सभी अस्त्रों के युं एकाएक निष्क्रिय होने पर चर्चा कर रहे थे

की तभी महागुरु को इस बात का अंदाजा हो गया था कि शायद पृथ्वी अस्त्र जैसे बाकी अस्त्रों ने भी मुझे अपना धारक चुन लिया हो लेकिन उन्हे इस बात पर पुरा यकीन नहीं था

क्योंकि इसके होने के शक्यताएं बहुत ही कम थी क्योंकि उनके ज्ञान अनुसार किसी एक ही धारक का बहुस्त्रों को धारण करना नामुंकिन था लेकिन फिर भी उन्होंने इसे परखने के लिए ये सभी अस्त्र मेरे सर के पास रख दिये थे

तो वही मेरे होश मे आते ही वो सभी अस्त्र चमकने लगे और मेरे शरीर मे समा गए जिसके बाद में पूरी तेजी से धरती की परत को तोड़ते हुए सीधा अटल लोक पहुँच गया अटल लोक तामसिक शक्तियों को आरंभ स्थान था

जिस कारण वहा उतरते ही मेरी राक्षसी शक्तियों का भी प्रमाण बढ़ गया था जिस वजह से मेरे शरीर से एक ऊर्जा लहर निकली और उस लहर के निकलने के साथ ही पूरे अटल लोक में भूकंप आ गया

जिससे हर जगह हड़कंप मच गया तो वही मेरे सामने अब युद्ध का मैदान था जिसमे मेरे सभी प्रियजनों को बंदी बनाकर रखा था जो देखकर मेरी आँखे क्रोध से लाल हो गयी थी और फिर मैने अपनी शैतानी गदा को याद किया

जिसके तुरंत बाद वो गदा मेरे हाथ मे आ गयी जिसके तुरंत बाद मैने वो गदा उन असुरों पर फेक के मारी जिससे वो गदा एक के बाद एक सभी असुर सैनिकों को चीरते हुए मेरे पास वापस आ गयी

जब वो गदा मेरे पास वापस आई तो पूरी तरीके से रक्तरंजित हो गयी थी तो वही जब उन महासुरों ne सभी असुरों को एक एक करके जमीन पर गिरते देखा तो वो सभी दंग हो गए थे और उन्ही के साथ सभी गुरुओं को भी हैरानी हुई थी और

इससे पहले की कोई कुछ कर पाता मे उस युद्ध के मैदान में अंदर प्रवेश कर गया

~~~~~~~~~~~~~~~~~~
आज के लिए इतना ही

~~~~~~~~~~~~~~~~~~
 

sunoanuj

Well-Known Member
3,764
9,837
159
Bahut hi behtarin adbhut updates… bus viram bahut hee khatarnak mod par liya hai… 👏🏻👏🏻👏🏻👏🏻
 
Top