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Fantasy ब्रह्माराक्षस

kas1709

Well-Known Member
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213
अध्याय तीस (भाग 1 का अंत)

अब हालत ऐसे थे की उस पूरे मैदान मे जहाँ कुछ देर पहले उत्सव मनाया जा रहा था सारे दर्शक चीखकर अपने अपने राजाओं और योध्दाओ का मनोबल बढ़ा रहे थे वही अब वो शांत हो गए थे उन्हे देख ऐसा लग रहा था कि जैसे उन्होंने कोई भूत देख लिया हो तो वही वो राजगुरु अभी भी दंग होकर मैदान मै घूरे जा रहा था और उसके चेहरे पर इस वक़्त क्रोध और बैचेनी साफ दिखाई दे रही थी

राजगुरु :- मनुष्य ये तूने सही नही किया तूने शैतानों के सम्राटों को मारा है और अब तु यहाँ से जिंदा वापस लौट कर नही जा पायेगा अब देख तु मे क्या करता हूँ बच सकता हैं तो बच के दिखा

उसके इतना बोलते ही वहा पर सारे बादल काले पड़ गए जैसे कोई बड़ा तूफान आने वाला है और ऐसा होते ही उस राजगुरु ने अपने दोनों हाथों को हवा में उठाया और कुछ बोलने लगा

और जैसे ही उसने आँखे खोली वैसे ही वहा जितने भी दर्शक थे वो सभी उन्ही मायावी योध्दाओं जैसे बन गए और फिर सभी अपनी अपनी जगह छोड़ कर मुझे घेर कर खड़े हो गए

अभी उस मैदान मे मैं अकेला खड़ा था मेरी जीवन ऊर्जा लगभग खतम हो गयी थी मेरी सासे फूलने लगी थी मुझे ऐसा लग रहा था कि जैसे कोई मेरी सारी ऊर्जा सोखे जा रहा है भले ही मुझे दर्द महसूस नही हो रहा था लेकिन जहाँ जहाँ मुझे जखम लगे थे वहा से मेरा रक्त लगातार बह रहा था

जिससे मेरे शरीर में कमजोरी भी आने लगी थी और वही मुझे घेर कर लाखों करोड़ो मायावी योध्दा जिनका मकसद केवल मेरी जान लेना था तो वही उपर बालकनी मै खड़ा राजगुरु जिसने अपने जादू से आसमान में पूरे बादलों का रंग काला कर दिया था

जिससे वहा घंघोर अंधेरा छा गया था और अभी मे कुछ कर पाता की तभी मेरे दिमाग में एक मंत्र चलने लगा जिसे देख कर मेरे होठों पर मुस्कान छा गयी और मैने तुरंत अपनी दोनों तलवारों को पहले की तरह X की तरह रखा और जैसे ही मैने वो मंत्र पढ़ा

वैसे ही आसमान से भयानक बिजली आकर मेरी तलवरों पर गिरी और कोई कुछ समझ पाता उससे पहले ही मैने वो भयानक बिजली उन सभी मायावी योध्दाओं कि तरफ मौड दिया जिससे कुछ ही देर में वहा केवल मायावी योध्दाओं की लाशे पड़ी हुई थी

इतने भयानक हमला करने से वो पुरा मैदान टूट गया था वहा हर तरफ केवल धूल मिट्टी की परत छा गयी थी जिससे अब वहा किसी को कुछ दिखाई नही दे रहा था तो वही अब मुझसे भी खड़ा नही हो पा रहा था मे इतना कमजोर महसूस करने लगा था कि मे वहा जमीन पर गिर गया

तो वही कैदखाने मे ये सब देख रहे त्रिलोकेश्वर और मित्र ने भी हैरान हो गए थे और दोनों ने भी अपनी ध्यान अवस्था से बाहर आ गए तो वही उनके ध्यान में से बाहर आते ही दमयंती त्रिलोकेश्वर से बार बार सवाल पूछ रही थी लेकिन त्रिलोकेश्वर उसे कुछ बता नही रहा था


बस वो अपनी आँखे बंद करके कुछ बोल रहा था और जैसे ही उसने अपनी आँखे खोली तो उसका रूप बदल गया था जिसे देखकर एक बार के लिए दमयंती भी सहम गयी क्योंकि वो रूप त्रिलोकेश्वर का ब्राम्हराक्षस वाला रूप था जिसे देख दमयंती को ये तो समझ गया था कि जरूर कुछ गड़बड़ है

और अभी वो त्रिलोकेश्वर से कुछ पूछ पाती उससे पहले ही त्रिलोकेश्वर कैदखाने की दीवारों पर छत पर घुसे मारकर तोड़ने का प्रयास करने लगा जिसे देख कर दमयंती का दिल बैठने लगा

क्योंकि इतने सालों तक कैद में रहकर इतनी पीड़ा सहकर भी कभी भी उसने आह भी नही की थी वो आज इतना बैचेन होकर दीवारे तोड़ने का प्रयास कर रहा है

और अभी तक वो ये सब सोच सकती की उसे मित्र के कमरे से भी वही आवाजे आने लगी जैसे दीवार पर हथौड़ा मार रहा हो और ये सब देख कर उसे इतना यकीन हो गया था कि उसके पुत्र के साथ जरूर कुछ बहुत बुरा हुआ है

तो वही शैतानी दुनिया मे इस वक़्त मै बेसुध होकर जमीन पर गिरा हुआ था तो वही वहा की धूल मिट्टी से वहा का कुछ भी दिखाई नही दे रहा था और अभी मे अपनी साँसे दुरस्त कर ही रहा था


की तभी वहा तेज हवाएं चलने लगी थी जिससे वहा की सारी धूल मिट्टी की परत हट गई और सामने के नजारा देखकर मेरा शरीर कांप गया मेरे सामने मायावी योध्दाओं की पूरी फौज थी ऐसा लग रहा था कि जितने मैने मारे थे वो सब फिर से जिंदा हो गए

अगर वहा की जमीन पर उन योध्दाओं की लाशे नही होती तो मे खुद भी नही मानता की मैने किसी को मारा है तो वही मुझे सोच मे देखकर वो राजगुरु हसने लगा जो इस वक़्त हवा में उड़ रहा था

राजगुरु:- क्या हुआ मनुष्य अपनी मौत दिख रही है क्या मै जानता हूँ कि तुम क्या सोच रहे हो ये सब कैसे ये सभी मेरे बनाये हुए मायावी योध्दा है और जब तक मे मर नही जाता तब तक ये ऐसे ही आते रहेंगे

इतना बोलकर वो जोरों से हसने लगा और वही मे बस जमीन पर पड़ा हुआ अपने अपनों के बारे में सोच रहा था प्रिया के बारे में शांति के बारे मेरे मित्रों के बारे में मेरे परिवार समान गुरुओं के बारे में मेरे पिता समान महागुरु के बारे में

मै अभी इस सब के बारे में सोच ही रहा था की तभी वहा पर एक अजीब सी रोशनी फैल गई जिसे देख कर उस राजगुरु की हँसी बंद हो गयी और अभी वो कुछ बोलता उससे पहले ही वहा एक आवाज सबको सुनाई दी जिसने इस युद्ध की तस्वीर ही बदल दी

आवाज़:- तुम्हे मारे बिना ये योध्दा नही मरेंगे लेकिन अगर तुम्हे ही मार दिया तो

मैने जब ये आवाज सुनी तो मुझे ये बहुत पहचानी हुई आवाज लगी और जब मैने उस आवाज की दिशा में देखा तो मे दंग रह गया क्योंकि मेरा अंदाजा बिल्कुल सही था वो आवाज महागुरु की थी और उनके साथ सारे अस्त्र धारक प्रिया और वो पांचो बहने भी थे

तो वही जब सबने मेरा हाल देखा तो सब दंग रह गए तो वही महागुरु के आँखों में इतना क्रोध भर गया कि राजगुरु की तो सिर्फ उनकी आँखे देखकर ही फट गयी वो जानता था कि अस्त्र क्या है और उनकी ताकत क्या है

और महागुरु ने बिना कुछ सोचे बिना एक भी पल गवाए अपनी आँखे बंद ki और अपने काल अस्त्र का आव्हान किया और इस बार उनके हाथों में काल अस्त्र एक भाले के रूप में आ गया

जिसे उन्होंने तुरंत ही राजगुरु और उसके सभी मायावी योध्दाओं पर छोड़ दिया और फिर क्या कोई कुछ समझे या करे उससे पहले ही राजगुरु और उसके योध्दा मारे गए

तो वही जब शांति और प्रिया ने मेरा हाल देखा तो उनकी आँखों से अश्रु बहने लगे और वो तुरंत दौड़ते हुए मेरे पास आ गए तो वही जब मैने उन सबको एक साथ देखा तो दिल को थोड़ा सुकून मिला और जब प्रिया और शांति ने मुझे अपने बाहों में भरा तो दिल में जितने भी बुरे खयाल थे वो सभी मिटने लगे

और उसी सुकून मे मेरी आँखे भारी होने लगी और मेरे आँखों के सामने ऐसा घंघोर अंधेरा छाने लगा जिसमे मुझे ना कुछ सुनाई दे रहा था और नाही कुछ समझ रहा था


बस मे इतना जानता था कि अब मेरा अंत आ गया है जिसे कोई रोक नही सकता और मैने भी खुदको उस अंत के बाहों मे सोप दिया था और अब मेरी आँखे बंद हो गयी और मेरा शरीर निर्जीव होकर मेरे परिवार और प्रेमिकाओं के बाहों में रह गया

~~~~~~~~~~~~~~~~~~
आज के लिए इतना ही

~~~~~~~~~~~~~~~~~~
Nice update....
 
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parkas

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अध्याय तीस (भाग 1 का अंत)

अब हालत ऐसे थे की उस पूरे मैदान मे जहाँ कुछ देर पहले उत्सव मनाया जा रहा था सारे दर्शक चीखकर अपने अपने राजाओं और योध्दाओ का मनोबल बढ़ा रहे थे वही अब वो शांत हो गए थे उन्हे देख ऐसा लग रहा था कि जैसे उन्होंने कोई भूत देख लिया हो तो वही वो राजगुरु अभी भी दंग होकर मैदान मै घूरे जा रहा था और उसके चेहरे पर इस वक़्त क्रोध और बैचेनी साफ दिखाई दे रही थी

राजगुरु :- मनुष्य ये तूने सही नही किया तूने शैतानों के सम्राटों को मारा है और अब तु यहाँ से जिंदा वापस लौट कर नही जा पायेगा अब देख तु मे क्या करता हूँ बच सकता हैं तो बच के दिखा

उसके इतना बोलते ही वहा पर सारे बादल काले पड़ गए जैसे कोई बड़ा तूफान आने वाला है और ऐसा होते ही उस राजगुरु ने अपने दोनों हाथों को हवा में उठाया और कुछ बोलने लगा

और जैसे ही उसने आँखे खोली वैसे ही वहा जितने भी दर्शक थे वो सभी उन्ही मायावी योध्दाओं जैसे बन गए और फिर सभी अपनी अपनी जगह छोड़ कर मुझे घेर कर खड़े हो गए

अभी उस मैदान मे मैं अकेला खड़ा था मेरी जीवन ऊर्जा लगभग खतम हो गयी थी मेरी सासे फूलने लगी थी मुझे ऐसा लग रहा था कि जैसे कोई मेरी सारी ऊर्जा सोखे जा रहा है भले ही मुझे दर्द महसूस नही हो रहा था लेकिन जहाँ जहाँ मुझे जखम लगे थे वहा से मेरा रक्त लगातार बह रहा था

जिससे मेरे शरीर में कमजोरी भी आने लगी थी और वही मुझे घेर कर लाखों करोड़ो मायावी योध्दा जिनका मकसद केवल मेरी जान लेना था तो वही उपर बालकनी मै खड़ा राजगुरु जिसने अपने जादू से आसमान में पूरे बादलों का रंग काला कर दिया था

जिससे वहा घंघोर अंधेरा छा गया था और अभी मे कुछ कर पाता की तभी मेरे दिमाग में एक मंत्र चलने लगा जिसे देख कर मेरे होठों पर मुस्कान छा गयी और मैने तुरंत अपनी दोनों तलवारों को पहले की तरह X की तरह रखा और जैसे ही मैने वो मंत्र पढ़ा

वैसे ही आसमान से भयानक बिजली आकर मेरी तलवरों पर गिरी और कोई कुछ समझ पाता उससे पहले ही मैने वो भयानक बिजली उन सभी मायावी योध्दाओं कि तरफ मौड दिया जिससे कुछ ही देर में वहा केवल मायावी योध्दाओं की लाशे पड़ी हुई थी

इतने भयानक हमला करने से वो पुरा मैदान टूट गया था वहा हर तरफ केवल धूल मिट्टी की परत छा गयी थी जिससे अब वहा किसी को कुछ दिखाई नही दे रहा था तो वही अब मुझसे भी खड़ा नही हो पा रहा था मे इतना कमजोर महसूस करने लगा था कि मे वहा जमीन पर गिर गया

तो वही कैदखाने मे ये सब देख रहे त्रिलोकेश्वर और मित्र ने भी हैरान हो गए थे और दोनों ने भी अपनी ध्यान अवस्था से बाहर आ गए तो वही उनके ध्यान में से बाहर आते ही दमयंती त्रिलोकेश्वर से बार बार सवाल पूछ रही थी लेकिन त्रिलोकेश्वर उसे कुछ बता नही रहा था


बस वो अपनी आँखे बंद करके कुछ बोल रहा था और जैसे ही उसने अपनी आँखे खोली तो उसका रूप बदल गया था जिसे देखकर एक बार के लिए दमयंती भी सहम गयी क्योंकि वो रूप त्रिलोकेश्वर का ब्राम्हराक्षस वाला रूप था जिसे देख दमयंती को ये तो समझ गया था कि जरूर कुछ गड़बड़ है

और अभी वो त्रिलोकेश्वर से कुछ पूछ पाती उससे पहले ही त्रिलोकेश्वर कैदखाने की दीवारों पर छत पर घुसे मारकर तोड़ने का प्रयास करने लगा जिसे देख कर दमयंती का दिल बैठने लगा

क्योंकि इतने सालों तक कैद में रहकर इतनी पीड़ा सहकर भी कभी भी उसने आह भी नही की थी वो आज इतना बैचेन होकर दीवारे तोड़ने का प्रयास कर रहा है

और अभी तक वो ये सब सोच सकती की उसे मित्र के कमरे से भी वही आवाजे आने लगी जैसे दीवार पर हथौड़ा मार रहा हो और ये सब देख कर उसे इतना यकीन हो गया था कि उसके पुत्र के साथ जरूर कुछ बहुत बुरा हुआ है

तो वही शैतानी दुनिया मे इस वक़्त मै बेसुध होकर जमीन पर गिरा हुआ था तो वही वहा की धूल मिट्टी से वहा का कुछ भी दिखाई नही दे रहा था और अभी मे अपनी साँसे दुरस्त कर ही रहा था


की तभी वहा तेज हवाएं चलने लगी थी जिससे वहा की सारी धूल मिट्टी की परत हट गई और सामने के नजारा देखकर मेरा शरीर कांप गया मेरे सामने मायावी योध्दाओं की पूरी फौज थी ऐसा लग रहा था कि जितने मैने मारे थे वो सब फिर से जिंदा हो गए

अगर वहा की जमीन पर उन योध्दाओं की लाशे नही होती तो मे खुद भी नही मानता की मैने किसी को मारा है तो वही मुझे सोच मे देखकर वो राजगुरु हसने लगा जो इस वक़्त हवा में उड़ रहा था

राजगुरु:- क्या हुआ मनुष्य अपनी मौत दिख रही है क्या मै जानता हूँ कि तुम क्या सोच रहे हो ये सब कैसे ये सभी मेरे बनाये हुए मायावी योध्दा है और जब तक मे मर नही जाता तब तक ये ऐसे ही आते रहेंगे

इतना बोलकर वो जोरों से हसने लगा और वही मे बस जमीन पर पड़ा हुआ अपने अपनों के बारे में सोच रहा था प्रिया के बारे में शांति के बारे मेरे मित्रों के बारे में मेरे परिवार समान गुरुओं के बारे में मेरे पिता समान महागुरु के बारे में

मै अभी इस सब के बारे में सोच ही रहा था की तभी वहा पर एक अजीब सी रोशनी फैल गई जिसे देख कर उस राजगुरु की हँसी बंद हो गयी और अभी वो कुछ बोलता उससे पहले ही वहा एक आवाज सबको सुनाई दी जिसने इस युद्ध की तस्वीर ही बदल दी

आवाज़:- तुम्हे मारे बिना ये योध्दा नही मरेंगे लेकिन अगर तुम्हे ही मार दिया तो

मैने जब ये आवाज सुनी तो मुझे ये बहुत पहचानी हुई आवाज लगी और जब मैने उस आवाज की दिशा में देखा तो मे दंग रह गया क्योंकि मेरा अंदाजा बिल्कुल सही था वो आवाज महागुरु की थी और उनके साथ सारे अस्त्र धारक प्रिया और वो पांचो बहने भी थे

तो वही जब सबने मेरा हाल देखा तो सब दंग रह गए तो वही महागुरु के आँखों में इतना क्रोध भर गया कि राजगुरु की तो सिर्फ उनकी आँखे देखकर ही फट गयी वो जानता था कि अस्त्र क्या है और उनकी ताकत क्या है

और महागुरु ने बिना कुछ सोचे बिना एक भी पल गवाए अपनी आँखे बंद ki और अपने काल अस्त्र का आव्हान किया और इस बार उनके हाथों में काल अस्त्र एक भाले के रूप में आ गया

जिसे उन्होंने तुरंत ही राजगुरु और उसके सभी मायावी योध्दाओं पर छोड़ दिया और फिर क्या कोई कुछ समझे या करे उससे पहले ही राजगुरु और उसके योध्दा मारे गए

तो वही जब शांति और प्रिया ने मेरा हाल देखा तो उनकी आँखों से अश्रु बहने लगे और वो तुरंत दौड़ते हुए मेरे पास आ गए तो वही जब मैने उन सबको एक साथ देखा तो दिल को थोड़ा सुकून मिला और जब प्रिया और शांति ने मुझे अपने बाहों में भरा तो दिल में जितने भी बुरे खयाल थे वो सभी मिटने लगे

और उसी सुकून मे मेरी आँखे भारी होने लगी और मेरे आँखों के सामने ऐसा घंघोर अंधेरा छाने लगा जिसमे मुझे ना कुछ सुनाई दे रहा था और नाही कुछ समझ रहा था


बस मे इतना जानता था कि अब मेरा अंत आ गया है जिसे कोई रोक नही सकता और मैने भी खुदको उस अंत के बाहों मे सोप दिया था और अब मेरी आँखे बंद हो गयी और मेरा शरीर निर्जीव होकर मेरे परिवार और प्रेमिकाओं के बाहों में रह गया

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आज के लिए इतना ही

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Bahut hi shaandar update diya hai VAJRADHIKARI bhai...
Nice and awesome update....
 

dhparikh

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अध्याय तीस (भाग 1 का अंत)

अब हालत ऐसे थे की उस पूरे मैदान मे जहाँ कुछ देर पहले उत्सव मनाया जा रहा था सारे दर्शक चीखकर अपने अपने राजाओं और योध्दाओ का मनोबल बढ़ा रहे थे वही अब वो शांत हो गए थे उन्हे देख ऐसा लग रहा था कि जैसे उन्होंने कोई भूत देख लिया हो तो वही वो राजगुरु अभी भी दंग होकर मैदान मै घूरे जा रहा था और उसके चेहरे पर इस वक़्त क्रोध और बैचेनी साफ दिखाई दे रही थी

राजगुरु :- मनुष्य ये तूने सही नही किया तूने शैतानों के सम्राटों को मारा है और अब तु यहाँ से जिंदा वापस लौट कर नही जा पायेगा अब देख तु मे क्या करता हूँ बच सकता हैं तो बच के दिखा

उसके इतना बोलते ही वहा पर सारे बादल काले पड़ गए जैसे कोई बड़ा तूफान आने वाला है और ऐसा होते ही उस राजगुरु ने अपने दोनों हाथों को हवा में उठाया और कुछ बोलने लगा

और जैसे ही उसने आँखे खोली वैसे ही वहा जितने भी दर्शक थे वो सभी उन्ही मायावी योध्दाओं जैसे बन गए और फिर सभी अपनी अपनी जगह छोड़ कर मुझे घेर कर खड़े हो गए

अभी उस मैदान मे मैं अकेला खड़ा था मेरी जीवन ऊर्जा लगभग खतम हो गयी थी मेरी सासे फूलने लगी थी मुझे ऐसा लग रहा था कि जैसे कोई मेरी सारी ऊर्जा सोखे जा रहा है भले ही मुझे दर्द महसूस नही हो रहा था लेकिन जहाँ जहाँ मुझे जखम लगे थे वहा से मेरा रक्त लगातार बह रहा था

जिससे मेरे शरीर में कमजोरी भी आने लगी थी और वही मुझे घेर कर लाखों करोड़ो मायावी योध्दा जिनका मकसद केवल मेरी जान लेना था तो वही उपर बालकनी मै खड़ा राजगुरु जिसने अपने जादू से आसमान में पूरे बादलों का रंग काला कर दिया था

जिससे वहा घंघोर अंधेरा छा गया था और अभी मे कुछ कर पाता की तभी मेरे दिमाग में एक मंत्र चलने लगा जिसे देख कर मेरे होठों पर मुस्कान छा गयी और मैने तुरंत अपनी दोनों तलवारों को पहले की तरह X की तरह रखा और जैसे ही मैने वो मंत्र पढ़ा

वैसे ही आसमान से भयानक बिजली आकर मेरी तलवरों पर गिरी और कोई कुछ समझ पाता उससे पहले ही मैने वो भयानक बिजली उन सभी मायावी योध्दाओं कि तरफ मौड दिया जिससे कुछ ही देर में वहा केवल मायावी योध्दाओं की लाशे पड़ी हुई थी

इतने भयानक हमला करने से वो पुरा मैदान टूट गया था वहा हर तरफ केवल धूल मिट्टी की परत छा गयी थी जिससे अब वहा किसी को कुछ दिखाई नही दे रहा था तो वही अब मुझसे भी खड़ा नही हो पा रहा था मे इतना कमजोर महसूस करने लगा था कि मे वहा जमीन पर गिर गया

तो वही कैदखाने मे ये सब देख रहे त्रिलोकेश्वर और मित्र ने भी हैरान हो गए थे और दोनों ने भी अपनी ध्यान अवस्था से बाहर आ गए तो वही उनके ध्यान में से बाहर आते ही दमयंती त्रिलोकेश्वर से बार बार सवाल पूछ रही थी लेकिन त्रिलोकेश्वर उसे कुछ बता नही रहा था


बस वो अपनी आँखे बंद करके कुछ बोल रहा था और जैसे ही उसने अपनी आँखे खोली तो उसका रूप बदल गया था जिसे देखकर एक बार के लिए दमयंती भी सहम गयी क्योंकि वो रूप त्रिलोकेश्वर का ब्राम्हराक्षस वाला रूप था जिसे देख दमयंती को ये तो समझ गया था कि जरूर कुछ गड़बड़ है

और अभी वो त्रिलोकेश्वर से कुछ पूछ पाती उससे पहले ही त्रिलोकेश्वर कैदखाने की दीवारों पर छत पर घुसे मारकर तोड़ने का प्रयास करने लगा जिसे देख कर दमयंती का दिल बैठने लगा

क्योंकि इतने सालों तक कैद में रहकर इतनी पीड़ा सहकर भी कभी भी उसने आह भी नही की थी वो आज इतना बैचेन होकर दीवारे तोड़ने का प्रयास कर रहा है

और अभी तक वो ये सब सोच सकती की उसे मित्र के कमरे से भी वही आवाजे आने लगी जैसे दीवार पर हथौड़ा मार रहा हो और ये सब देख कर उसे इतना यकीन हो गया था कि उसके पुत्र के साथ जरूर कुछ बहुत बुरा हुआ है

तो वही शैतानी दुनिया मे इस वक़्त मै बेसुध होकर जमीन पर गिरा हुआ था तो वही वहा की धूल मिट्टी से वहा का कुछ भी दिखाई नही दे रहा था और अभी मे अपनी साँसे दुरस्त कर ही रहा था


की तभी वहा तेज हवाएं चलने लगी थी जिससे वहा की सारी धूल मिट्टी की परत हट गई और सामने के नजारा देखकर मेरा शरीर कांप गया मेरे सामने मायावी योध्दाओं की पूरी फौज थी ऐसा लग रहा था कि जितने मैने मारे थे वो सब फिर से जिंदा हो गए

अगर वहा की जमीन पर उन योध्दाओं की लाशे नही होती तो मे खुद भी नही मानता की मैने किसी को मारा है तो वही मुझे सोच मे देखकर वो राजगुरु हसने लगा जो इस वक़्त हवा में उड़ रहा था

राजगुरु:- क्या हुआ मनुष्य अपनी मौत दिख रही है क्या मै जानता हूँ कि तुम क्या सोच रहे हो ये सब कैसे ये सभी मेरे बनाये हुए मायावी योध्दा है और जब तक मे मर नही जाता तब तक ये ऐसे ही आते रहेंगे

इतना बोलकर वो जोरों से हसने लगा और वही मे बस जमीन पर पड़ा हुआ अपने अपनों के बारे में सोच रहा था प्रिया के बारे में शांति के बारे मेरे मित्रों के बारे में मेरे परिवार समान गुरुओं के बारे में मेरे पिता समान महागुरु के बारे में

मै अभी इस सब के बारे में सोच ही रहा था की तभी वहा पर एक अजीब सी रोशनी फैल गई जिसे देख कर उस राजगुरु की हँसी बंद हो गयी और अभी वो कुछ बोलता उससे पहले ही वहा एक आवाज सबको सुनाई दी जिसने इस युद्ध की तस्वीर ही बदल दी

आवाज़:- तुम्हे मारे बिना ये योध्दा नही मरेंगे लेकिन अगर तुम्हे ही मार दिया तो

मैने जब ये आवाज सुनी तो मुझे ये बहुत पहचानी हुई आवाज लगी और जब मैने उस आवाज की दिशा में देखा तो मे दंग रह गया क्योंकि मेरा अंदाजा बिल्कुल सही था वो आवाज महागुरु की थी और उनके साथ सारे अस्त्र धारक प्रिया और वो पांचो बहने भी थे

तो वही जब सबने मेरा हाल देखा तो सब दंग रह गए तो वही महागुरु के आँखों में इतना क्रोध भर गया कि राजगुरु की तो सिर्फ उनकी आँखे देखकर ही फट गयी वो जानता था कि अस्त्र क्या है और उनकी ताकत क्या है

और महागुरु ने बिना कुछ सोचे बिना एक भी पल गवाए अपनी आँखे बंद ki और अपने काल अस्त्र का आव्हान किया और इस बार उनके हाथों में काल अस्त्र एक भाले के रूप में आ गया

जिसे उन्होंने तुरंत ही राजगुरु और उसके सभी मायावी योध्दाओं पर छोड़ दिया और फिर क्या कोई कुछ समझे या करे उससे पहले ही राजगुरु और उसके योध्दा मारे गए

तो वही जब शांति और प्रिया ने मेरा हाल देखा तो उनकी आँखों से अश्रु बहने लगे और वो तुरंत दौड़ते हुए मेरे पास आ गए तो वही जब मैने उन सबको एक साथ देखा तो दिल को थोड़ा सुकून मिला और जब प्रिया और शांति ने मुझे अपने बाहों में भरा तो दिल में जितने भी बुरे खयाल थे वो सभी मिटने लगे

और उसी सुकून मे मेरी आँखे भारी होने लगी और मेरे आँखों के सामने ऐसा घंघोर अंधेरा छाने लगा जिसमे मुझे ना कुछ सुनाई दे रहा था और नाही कुछ समझ रहा था


बस मे इतना जानता था कि अब मेरा अंत आ गया है जिसे कोई रोक नही सकता और मैने भी खुदको उस अंत के बाहों मे सोप दिया था और अब मेरी आँखे बंद हो गयी और मेरा शरीर निर्जीव होकर मेरे परिवार और प्रेमिकाओं के बाहों में रह गया

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Matlab ab dhruva ko bachane ke liye Aastro ko ise dena hoga taki vo Aastra dharak ban sake or or bach jaye Ye Aant nahi ye new Suruat hai ....
Close lekin is story ka ek chota sa bhag bhul rahe ho
 

VAJRADHIKARI

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Yahi na ki vo maha brahmrakshas hai uske andar ka brahmrakshas abhi jaga nahi hai ye bhi ek ho sakta hai jisse vo wapass aaye
पहले वाला तो close guess था इसका तो दूर दूर तक लेना देना नही है में बोल रहा हूं की आप भूल रहे हो
 

VAJRADHIKARI

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अध्याय इकतीस

बस मे इतना जानता था कि अब मेरा अंत आ गया है जिसे कोई रोक नही सकता और मैने भी खुदको उस अंत के बाहों मे सोप दिया था और अब मेरी आँखे बंद हो गयी और मेरा शरीर निर्जीव होकर मेरे परिवार और प्रेमिकाओं के बाहों में रह गया

जैसे ही महागुरु ने अपने अस्त्र को छोड़ा था तो उसका प्रभाव इतना शक्तिशाली था कि उसने सिर्फ राजगुरु ही नही बल्कि वो पुरा ग्रह वो पूरी शैतानी दुनिया उससे कांप गयी जिससे वहा की सारी बड़ी इमारते महल घर पर्वत एक एक करके डहने लगे

जिसे देख कर सारे अस्त्र धारकों ने तुरंत भद्रा उठाया और जिस द्वार से वो आये थे उसी द्वार से वापस जाने लगे तो वही महागुरु एक ही जगह स्थिर खड़े होकर अपनी आँखे बंद कर के कुछ बोले जा रहे थे और जैसे ही उन्होंने अपना हाथ उपर किया तो एक सुनहरी ऊर्जा उनके तरफ खीची चली आयी

जो की कुछ और नही बल्कि उनका काल अस्त्र था और उसके पीछे पीछे कुछ लोग भी आ रहे थे जो की इस वक़्त बहुत जख्मी थे और बहुत कमजोर भी थे और जैसे ही महागुरु ने उन्हे देखा वैसे ही महागुरु ने तुरंत जो द्वार उन्होंने खोला था उसे और भी बड़ा कर दिया जिससे सभी लोग एक ही बार मे उस द्वार से निकल सके

तो वही जब मित्र ने सप्त ऋषियों को देखा तो वो पूरी तरह दंग रह गया उसे आज तक ये पता नही था कि भद्रा किनके साथ रहता है और ना ही ये बात दमयंती जानती थी ये बात त्रिलोकेश्वर ने केवल खुद तक ही रखी थी

और आज जब उन दोनों को इस बात का पता चला तो दोनों पहले दंग रह गए लेकिन फिर इस बात से वो खुश हो गए की भद्रा को सप्त गुरुओं के मदद से ज्ञान और शक्ति की कभी कमी नहीं होगी

और अगर भविष्य के युद्ध मे सप्त ऋषि उनका साथ दे तो भद्रा को हराना मुश्किल से ना मुमकिन हो जायेगा और इस बात को जानकर जा वो तीनों खुशिया मना रहे थे

तो वही अचानक से उनके उन खुशियों पर रोक लग गयी और ये रोक किसी और ने नही बल्कि खुद मित्र ने लगाई थी हुआ यू की जब मैने खुदको अंत के हवाले किया तो तभी से मित्र को मेरी जीवन ऊर्जा महसूस नही हो रही थी

मित्र :- त्रिलोकेश्वर मुझे भद्रा की जीवन ऊर्जा महसूस नही हो रही हैं

दमयंती :- जीवन ऊर्जा महसूस नही हो रही मतलब क्या है आपका

मित्र :- जब से भद्रा ने मेरी शक्तियों को अपने अंदर समाया था तभी से मुझे अपनी शक्तियों मे भद्रा के ऊर्जा का कुछ अंश महसूस हो रहा था जिससे मे उसके दिमाग मे जा कर उसकी मदद कर रहा था लेकिन अब मे महसूस नही कर पा रहा हूँ और ऐसा तभी हो सकता हैं जब

इतना बोलके वो शांत हो गया तो वही ये सब सुनकर जहाँ दमयंती की दुनिया ही उजड़ चुकी थी शायद जो दर्द जो पीड़ा इतने सालों में असुर उन्हे ना दे सके वो मित्र की इस एक खबर ने दी थी और वही दुःख तो त्रिलोकेश्वर को भी हुआ था

लेकिन उसे पता था कि जिस जगह अभी वो है जिस परिस्थिति मे है वहा अगर कमजोर पड़ गए तो उनकी ही हानि है और जहाँ एक तरफ त्रिलोकेश्वर बड़ी मुश्किल से खुदको संभाल रहा था

तो वही दमयंती इस सब के लिए खुदको जिम्मेदार ठहरा रही थी वही दमयंती की बाते सुनकर त्रिलोकेश्वर को भी लगने लगा था कि ये सब उसी की वजह से हुआ है

तो वही ये खयाल मित्र के मन में भी आ रहा था

जहाँ दमयंती को लग रहा था कि उसकी बदले की चाह ने उसके पुत्र को हमेशा के लिए उससे छिन लिया है उसे लग रहा था कि अगर वो अपना बदला लेने के लिए उसने अपने पुत्र को हमेशा दुर्लक्ष किया है

तो वही त्रिलोकेश्वर को लग रहा था कि अगर उसने भद्रा को सप्त ऋषियों के पास ना भेज कर किसी आम जगह भेजा होता तो आज वो इस सब से कोसो दूर होता और सुरक्षित होता

तो वही मित्र सोच रहा था कि अगर वो त्रिलोकेश्वर की बात सुनकर भद्रा को अकेले युद्ध लड़ने देता तो उसकी ऊर्जा एक साथ इतनी कम नहीं होती और सप्त ऋषि आने तक भद्रा उन्हे आराम से रोक लेता

वो तीनो ही खुद को इस सब का दोषी मानकर स्वयं को बार बार कोसे जा रहे थे और अंदर अंदर ही अपने गम से घूँट रहे थे

तो वही महागुरु सब को लेकर सीधा ही कालविजय आश्रम ले कर आ गए क्योंकि वही एक जगह थी जहा कोई भी शैतानी शक्ति बिना महागुरु के आज्ञा के कदम तक नही रख सकता और जब सभी वहा पहुंचे तो गुरुओं ने तुरंत ही मुझे एक चारपाई पर लिटा दिया और फिर बिना समय गंवाये ही शांति तुरंत मेरा निरीक्षण करने लगी

जैसे जैसे वो मेरे शरीर पर लगे जखम देख रही थी वैसे वैसे ही उसके दिल में दर्द उठ रहा था तो वही जब सोना और उसकी बहनों की नज़र जब उन लोगों पर गयी जिन्हे महागुरु लेके आये थे शैतान लोक से तो उनके आँखों मे आँसू आ गए और वो रोते हुए जा कर उनके गले लग गए वो लोग कोई और नही बल्कि सोना के ही परिवार वाले थे

जिनकी आजादी सोना ने महागुरु से मांगी थी तो वही उन सबके मिलन का ये मनमोहक दृश्य देख कर वहा के चिंतापूर्न वातावरण में भी सबके चेहरों पर मंद मुस्कान आ गयी और अभी सिर्फ उनके चेहरे पे मुस्कान आई ही थी कि तभी शांति की जोर से चीखने की आवाज आयी और जब सब ने उसके तरफ देखा तो पाया कि वो लगातार भद्रा को देखे जा रही थी और उसके आँखों से अब आँसुओं की सुनामी आ गयी थी

जिसे देखकर गुरु सिंह तुरंत भद्रा के शरीर के पास आये और जब उन्होंने उसकी नब्ज और सासे चेक करी तो उनकी आँखों में भी पानी आ गया लेकिन उन्होंने उस पानी को अपनी आँखों में ही रोक दिया और सबको इशारों में बता दिया की भद्रा अब हमारे बीच नही रहा

और जब ये बात सबको पता चली तो जैसे सबके उपर दुखों के पहाड़ ही टूट गिरे थे वहा दुःख और गम की सुनामी आ गयी थी जहाँ एक तरफ शांति और प्रिया दोनों भी एक दूसरे के गले लगकर रोते ही जा रहे थे

तो वही सबकुछ भुलाकर भद्रा के पार्थिव शरीर को गले लगाकर रोने का मन तो वहा मौजूद हर एक अस्त्र धारक का कर रहा था लेकिन हर कोई अपने पद के वजह से अपना दुःख किसी के सामने बयान भी नही कर सकते थे लेकिन उनकी आँखे कह रही थी कि वो सब अपने मन में कितना रोये जा रहे है

तो वही वो पाचों बहने और उनके परिवार जन भी इस गम के समय में गुरुओं को सांत्वना देने के लिए आगे बढे थे

की तभी वहा प्रिया का शरीर धीरे धीरे चमकने लगा जिसे देखकर सभी हैरान हो गए और प्रिया को घूरने लगे तो वही सोना और उसका परिवार ये देखकर हैरान तो दिख रहे थे लेकिन उन्हें देखकर ऐसा लग रहा था कि उन्हे पता था कि क्या हो रहा है

तो वही धीरे धीरे प्रिया के शरीर के रोशनी ने एक हार का रूप ले लिया और वो हार जाकर भद्रा के शरीर के उपर उड़ने लगा और जैसे वो हार भद्रा के सीने के ठीक उपर आया तो उस मेसे एक तेज और प्रबल ऊर्जा किरण सीधा उसके दिल के उपर गिरने लगी

वो किरण इतनी प्रबल थी कि उसके सीने के आस पास का भाग जलने लगा था और ये देखकर गुरु नंदी उस हार को भद्रा के उपर से हटाने हेतु आगे बढ़ने वाले थे लेकिन महागुरू ने उन्हे रोक दिया और जब उस हार की ऊर्जा भद्रा के शरीर को ज्यादा हानि पहुचाने लगी थी कि तभी उसके हाथ मे पहनी हुई अंगूठी चमकने लगी (जो उसे शांति ने ही दी थी अध्याय ग्यारहवें मे)

और वो अंगूठी चमकते हुए इतनी गरम हो गयी थी कि उस अंगूठी मे जो सोने का भाग था वो अब पिघल ने लगा था और उसमे लगा हुआ वो मोती अपनी जगह से निकल कर उड़ते हुए सीधा उसी जगह आ गई थी और वो उड़ते हुए उस हार से निकलती ऊर्जा के मध्य चली गयी और फिर उस मोती ने उस हार से निकलती सारी ऊर्जा अपने अंदर समा ली

और धीरे धीरे वो मोती भद्रा के शरीर मे समा गयी और जैसे ही वो मोती भद्रा के शरीर में समाई वैसे ही उसके सारे घाव अपने आप भरने लगे जैसे कोई चोट कभी लगी ही ना हो

तो वही प्रिया और उन पांचो लड़कियों को तो कुछ समझ नहीं आ रहा था लेकिन सारे अस्त्र धारक समझ गए थे की ये हो क्या रहा है वही पूरे काल विजय आश्रम के उपर काले बादल छा गये थे तो वही जहाँ कुछ समय पहले भद्रा दिल धड़कना बंद कर चुका था वही अब वो पुन्ह धड़कने लगा और उसके शरीर में हलचल होने लगी

जिसे देखकर शांति तुरंत उसे चेक करने के लिए आगे बढ़ी लेकिन उसका शरीर इतना गरम हो गया था कि शांति के हाथ लगाते ही उसके हाथ जलने लगे भद्रा के शरीर में आये इस बदलाव से सब दंग रह गये थे किसी को समझ नहीं आ रहा था कि अब क्या करे की तभी भद्रा के करहाने की आवाज सबको सुनाई देने लगी

जिसे सुनकर प्रिया तुरंत जाकर उसके सर सहलाने लगी जिसे देखकर सभी हैरान रह गए क्योंकि भद्रा के शरीर से निकलती उष्णता का प्रभाव प्रिया पर नही हो रहा था और ना ही उसके हाथ जल रहे थे तो वही प्रिया जैसे जैसे उसका सर सहला रही थी वैसे वैसे भद्रा का शरीर भी अब शीतल हो गया था

और फिर धीरे धीरे भद्रा का करहाना भी बंद हो गया और वो वैसे ही अर्ध बेहोशी की हालत में सो गया जिसे देखकर सभी खुश हो गये सबके उपर से दुखों का पहाड़ जो उतर गया था

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आज के लिए इतना ही

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sunoanuj

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Bhaut hi behtarin updates… jabardast kahaani hai 👏🏻👏🏻👏🏻
 
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