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Bohot badhiya update tha vajradhikari bhaiyaअध्याय सैंतालिस
इस वक्त काल विजय आश्रम में हर तरफ अफरा तफरी का माहौल बन गया था बहुत सालों बाद आज तीनो आश्रम एक हो कर कार्य कर रहे थे तीनो आश्रमों ने अपने अपने कार्य निर्धारित कर लिए थे
सबसे पहले काल दृष्टि आश्रम उसने अपने सभी शिष्यों और गुरुओं को पूरे धरती में अलग अलग जगह फैला कर जितने भी अच्छाई और सच्चाई के पक्ष में योध्दा थे उनको एकत्रित करने और कालविजय आश्रम लाने के लिए भेज दिया था
तो वही काल दिशा आश्रम उसने सभी योध्दाओ के लिए अस्त्रों और कुटियाओं का निर्माण शुरू कर दिया था और साथ ही मे वो जंगल जंगल घूम कर जो भी औषधि वनस्पति उन्हे दिखती उसे एकत्रित करके आश्रम ले आते
तो वही काल विजय आश्रम 3 भाग में बट गया था
पहला भाग जख्मी गुरुओं की देखभाल और उपचार में शांति की मदद कर रहे थे
तो दूसरा भाग काल दृष्टि और दिशा आश्रम के बलवान योध्दा थे उन्हे मायावी युद्ध प्रशिक्षण देकर तैयार कर रहे थे
तो तीसरा भाग शहर में जो उन सबके परिवार थे उनकी सुरक्षा में जुट गये थे
तो वही इन सबका मार्गदर्शन और नेतृत्व खुद गुरु सिँह (दिग्विजय) और गुरु वानर (गौरव) कर रहे थे तो वही शांति और प्रिया भद्रा और बाकियों के इलाज मे लगे हुए थे
यही सब मे इनका पुरा एक दिन निकल गया था और इस एक दिन में भद्रा के अलावा सबके हालत सुधर गए थे जिससे सब खुश भी थे और चिंता मे भी थे
तो वही पाताल लोक के एक अंधेरी गुफा में इस वक़्त एक बूढ़ा असुर एक बड़ी सी मूर्ति के सामने बैठ कर की हवन कर रहा था
उसके हर एक आहुति से हवन कुंड की अग्नि उस गुफा के छत से जा टकरा रही थी और अभी वो असुर अपने मे व्यस्त था कि तभी उस गुफा में मायासुर आया
उसकी हालत देखकर लग रहा था जैसे कि वो उस कैदखाने से सीधा यही आ गया है और जैसे ही मायासुर उस हवनकुंड के पास पहुँचा तो वैसे ही उस कुंड की अग्नि अपने आप बुझ गयी
जिससे वो असुर दंग रह गया और जब उस बूढ़े असुर ने मायासुर को देखा तो उसकी आँखे क्रोध से लाल हो गयी थी और वो मायासुर की तरफ देखकर गरज पड़ा
असुर :- मायासुर ये क्या हाल बना रखा है तुमने अपना और तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई इस समय यहाँ आने की पता नही है क्या मे यहाँ पर अपनी साधना कर रहा हूँ तुमने पूरी साधना पर पानी डाल दिया
मायासुर:- माफ करना असुर गुरु लेकिन बात ही ऐसी है कि मे खुदको रोक न पाया
असुर :- ऐसी क्या बात है क्या तुमने उन सप्तऋषियों को मेरे दिये हुए श्रपित कवचों मे कैद कर लिया है क्या और सारे महासुरों के प्रतिबिंब कहाँ है
मायासुर :- वो सारे प्रतिबिंब मारे गये
जब मायासुर ने ये कहा तो उस असुर के पैरों तले से जमीन खिसक गयी और वो तुरंत गुस्से मे मायासुर को बोलने लगा
असुर :- मैने तुम्हे पहले ही कहाँ था ना की उस राघवेंद्र (महागुरु) को कालस्त्र का इस्तेमाल करने से पहले कवच मे कैद कर देना
मायासुर :- मैने आपके कहे मुताबिक ही किया था असुर गुरु लेकिन उस बालक ने आकर सब खराब कर दिया
उसके बाद मायासुर ने उस असुर गुरु को सारी बाते बता दी जिसे सुनकर असुर गुरु भी दंग रह गया
असुर:- क्या कह रहे हो तुम जानते हो न महा धारक का सामने आकर युद्ध करने का अर्थ समझते हो अब वो समय ज्यादा दूर नही जब अच्छाई और बुराई का महासंग्राम आरंभ होगा
मायासुर:- उससे मुझे फरक नहीं पड़ता मुझे आप ये बताओ की जो मैने आपसे माँगा था वो आपने किया की नही
असुर:- नही अब हम ऐसा कुछ नहीं करने वाले अगर जो तुम बोल रहे हो वैसा हुआ तो समस्त संसार में एक ऐसा युद्ध आरंभ हो जायेगा जिसके कारण हर जगह केवल विनाश ही विनाश होगा जिसमे क्या इंसान और क्या असुर सब खतम हो जायेगा
जब उस असुर गुरु ने ये कहा तो मायासुर का पारा पुरा चढ़ गया और उसने तुरंत ही उस असुर गुरु का गला पकड़ कर हवा में उठा लिया
मायासुर:- तु मुझे मना कर रहा है शायद तुम भूल गए की कैसे तुम एक ढोंगी से असुर कुल के गुरु बने तुम्हारा मान सम्मान ज्ञान सब इस मायासुर के माया के नतीजा है
इतना बोलके मायासुर ने उस असुर को जमीन पर फेक दिया
मायासुर:- आज अगर मेरे पास मेरी शक्तियाँ होती तो मुझे तुम्हारी कोई जरूरत नही थी ठीक है अगर तुम्हे नही करना है तो मे कोई दूसरा रास्ता ढूंढ लूँगा बस तुम उस शस्त्र का आवहान करो जिससे हर असुर को मारा जा सकता हैं
असुर :- अब तुम्हे वो अस्त्र क्यों चाहिए तुम नही जानते उसका आवहान करना पाताल लोक के नियमों के खिलाफ है
असुर की बात सुनने के बाद तुरंत ही मायासुर ने अपनी तलवार निकाल कर सीधा उसका गला काट दिया जिससे उस गुरु की चीख निकल गयी
परंतु अगले ही पल उसका सर फिर से उसके धड़ पर था और जब उस गुरु ने ये महसूस किया तो डर के मारे उसकी साँसे तेज हो गयी थी उसकी आँखों में केवल भय था मायासुर का भय
मायासुर:- अभी तो सिर्फ मैने अपनी माया से तुम्हारे सर कटने का छलावा बनाया था उसी मे तुम्हारी ये हालत हो गयी सोचो अगर तुम ऐसे ही मुझे टॉकते रहे तो असल मे मै तुम्हारे साथ क्या करूँगा बाकी तुम समझदार हो
ये बोलके मायासुर वहा से निकल गया और पीछे रह गया डर से काँपता हुआ असुर गुरु
तो वही दूसरी तरफ कालविजय आश्रम में महा गुरु और बाकी गुरुओं को होश आ गया था शिवाये भद्रा के
तो वही जब सबको होश आया तो वो सभी युद्ध की तैयारियां होते देखकर दंग हो गए जिसके बाद दिग्विजय ने उन्हे सारे हालातों से अवगत कराया और सब सुनकर वो सभी भी आने वाले युद्ध की कल्पना करने लगे
जिसके बाद उन तीनों गुरुओं ने अपने अपने अस्त्रों का आवहान किया परंतु उनके लाख कोशिशों के बाद भी अग्नि जल और काल अस्त्र उन्हे शक्तियाँ प्रदान नही कर रहे थे और न ही वो पहले जैसे चमक रहे थे
ऐसा लग रहा था कि मानो उनमे कोई शक्तियाँ है ही नही वो शक्तिहीन हो गए है जो देखकर सारे अस्त्र धारक दंग हो गए थे और साथ मे ही अब आगे के लिए सोच कर उन्हे डर भी लग रहा था कि
अब जब महायुद्ध आरंभ होगा तब इस दुनिया को बचाने के लिए सबसे बड़ी शक्ति ही उनके पास नही होगी और यही सब सोचकर ये बात उन्होंने अपने तक ही सीमित रखी
आश्रम के किसी भी अन्य सदस्य को ये बात नही बताई जिससे सबका विश्वास टूटे न उनके हौसले की जगह भय न लेले और फिर गुरु अग्नि ने भी मस्तिष्क तरंगों के जरिये अपने बचे कुचे शिष्यों को भी काल विजय आश्रम बुला लिया
तो वही मायासुर असुर गुरु के गुफा से निकल कर सीधा अपने महल मे चला गया और अपने महल के छत पर वो यहाँ से वहा टहलने लगा जैसे कि किसी बड़ी परेशानी का हल ढूंढ रहा हो
और तुरंत ही वो टहलते हुए रुक गया उसके चेहरे पर एक जंग जितने वाली मुस्कान आ गयी थी और फिर वो तुरंत अपने घर से गायब हो कर कही चला गया
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आज के लिए इतना ही
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Bahut hi shaandar update diya hai VAJRADHIKARI bhai.....अध्याय अड़तालिस
इस वक़्त सारे अस्त्र धारक महागुरु के कुटिया मे जमा हो कर आगे के बारे में विचार विमर्श कर रहे थे
दिग्विजय:- महागुरु अब आगे क्या करना है
महागुरु:- आज पूरे जीवन मे पहली बार खुद को इतना कमजोर महसूस कर रहा हूँ न जाने क्यों अस्त्र हमे अपनी शक्तियां नही देना चाहते या उनकी ही शक्तियां सुप्त हो गयी है कुछ पता नही चल रहा है
प्रिया:- मुझे भद्रा की चिंता हो रही है कही उसको कुछ
शैलेश:- हिम्मत मत हारो प्रिया भद्रा को कुछ नही होगा उसके साथ पृथ्वी अस्त्र है
गौरव:- लेकिन मुझे अभी भी नही समझ आ रहा की ये अस्त्र अचानक से निष्क्रिय क्यों हो गए
साहिल:- कही अब अस्त्र हमे खुदके काबिल न समझ पा रहे हो असुरों से मिले हार के कारण
दिग्विजय:- नही ऐसा नहीं हो सकता इसके पीछे कुछ और कारण है महागुरु दिलावर और गौरव तुम दोनों को अस्त्रों के बारे में हम सब से अधिक ज्ञान है आप तीनों सोचिये कि ऐसा कैसे हो सकता हैं
दिग्विजय की बात सुनकर तीनों सोच मे पड़ गए और जल्द ही महागुरु के दिमाग की बत्ती जल उठी
महागुरु:- जितना मैने पड़ा है उस हिसाब से ऐसा 3 वजहों से ही हो सकता हैं
महागुरु की बात सुनकर सबके कान खड़े हो गये और सब महागुरु की बात ध्यान से सुनने लगे
महागुरु :- जैसा मैने पढ़ा था कि अस्त्रों को निष्क्रिय करने के लिए उसके धारक को जान से मार दिया जाए तो अस्त्र अपना नया धारक चुनने तक निष्क्रिय हो जाता हैं
शैलेश :- और दूसरा कारण
गौरव:- दूसरा कारण यह है कि अगर अस्त्र धारक खुद से ही अपने अस्त्र का त्याग कर दे
शांति :- अब तक बताये हुए दोनों ही कारण गलत है तो अब तीसरा कारण क्या है
दिलावर:- तीसरा कारण यह है कि अगर कोई जबरदस्ती अस्त्र को उनके धारक से छिने या चुरा ले तो अस्त्र खुद को सुप्त अवस्था मे डाल देता है लेकिन जब धारक उसे वापस पाने की कोशीश करता है तब अस्त्र फिर से सक्रिय हो जाता हैं
दिग्विजय:- ये कारण हो सकता हैं लेकिन ये अस्त्र फिर से सक्रिय क्यों नही हो रहे हैं
अब तक हुए सभी बातों को लेकर सभी बड़े चिंता मे आ गए थे और सब दिग्विजय की बात सुनकर सोच मे पड़ गए थे की तभी महागुरु के चेहरे के भाव ऐसे थे की जैसे उन्होंने इस गुत्थी को सुलझा दिया है लेकिन न जाने क्यों वो शांत बैठे हुए थे
तो वही दूसरी तरफ मायासुर से इतनी बुरी तरीके से पिटने के बाद भी शिबू अब तक हँसे जा रहा था जो देखकर त्रिलोकेश्वर और दमयंती दोनों हैरान थे
त्रिलोकेश्वर द्वारा लगातार पूछने के बाद भी उसकी हंसी रुकने का नाम नही ले रही थी और जब शिबू थोड़ा शांत हुआ तो दमयंती ने उसे पूछा
दमयंती :- शिबू क्या हुआ तुम इतना हँस क्यों रहे हो मायासुर से इतना पिटने के बाद भी तुम शांत नही हो रहे हो
शिबू:- मे अपनी पिटाई पर नही बल्कि जो मायासुर और बाकी सब असुरों का जो हाल होने वाला है उस पर हँस रहा था
त्रिलोकेश्वर :- मतलब क्या कहना चाहते हो तुम
शिबू :- तुम अभी तक समझे नही मित्र तेरा बेटा हमारी उम्मीद कुमार भद्रा अभी तक जिंदा है और उसीने मायासुर का ये हाल किया है
शिबू की बात सुनकर जहाँ दमयंती भावुक हो कर रोने लगी थी तो वही त्रिलोकेश्वर अब तक शांत था जैसे किसी सोच मे गुम है
शिबू (दमयंती से) :- सम्राज्ञी अब रोने का नही बल्कि हँसने का अपना सालों पुराना बदला लेने का समय है असुरों के अंत हमारे आज़ादी का समय है महायुद्ध का आगाज़ अब हो चुका
त्रिलोकेश्वर :- तुम सच कह रहे हो लेकिन मुझे ये समझ नही आ रहा है कि हम उसकी जीव ऊर्जा को महसूस क्यों नही कर पा रहे हैं हम उससे मस्तिष्क तरंगों से भी संपर्क नही कर पा रहे हैं
शिबू:- इसमें कोनसी बड़ी बात है तुम्ही ने कहा था न की तुमसे मुझसे हम सबसे बड़ी ताकत है सप्तचक्रों की और ये तो हम पहले से जानते है की उस कालविजय आश्रम में महागुरु ने सबसे शक्तिशाली कवच लगाया है
त्रिलोकेश्वर (चिल्लाके) :- मेरे भाईयों मेरे प्रजाजन अब हमारी आज़ादी ज्यादा दूर नही है लेकिन यह सोचके खुदको कमजोर मत पड़ने देना क्योंकि इसके बाद हमे एक महासंग्राम का हिस्सा भी बनना पड़ेगा जो आसान नही होगा
त्रिलोकेश्वर की बात सुनकर हर कोई उसके नाम के नारे लगाने लगा था और अब से उस कैद खाने मे हर कोई आने वाले युद्ध के लिए खुदको तैयार करने लगा था
तो वही इन सब से दूर एक बर्फीले जगह पर मायासुर लगातार चलते जा रहा था उसके पूरे शरीर पर बर्फ गिरी हुई थी और अभी वो चलते हुए एक कुटिया के पास पहुंचा और जैसे ही उसने उस कुटिया के आंगन मे कदम रखा
तो उस जगह की सारी ठंड गायब हो गई और उसके बदले वहा के वातावरण में एक आरामदायक उष्णता फैल गयी और अभी वो उस कुटिया मे प्रवेश करता की तभी उस कुटिया से एक साधु बाहर निकल कर आया जिसके आते ही मायासुर उसके सामने अपने घुटने टेक दिए
मायासुर:- महान असुर कुल गुरु शुक्राचार्य की जय हो
शुक्राचार्य:- आज मेरे इस शिष्य को अपने गुरु की याद कैसे आ गयी
मायासुर :- गुरुदेव बात ही गंभीर है जिसके लिए मुझे आपकी इस बरसों पुरानी साधना मे विघ्न डालना पड़ा
शुक्राचार्य:- क्यों जिस ढोंगी को तुमने मेरे स्थान पर असुर गुरु बनाया है उसके पास इसका हल नहीं है क्या
मायासुर :- कैसी बात करते हो गुरुदेव आपकी सामने उसकी क्या मिसाल और आपको एकांत में रखने की युक्ति भी आपकी ही थी और उस ढोंगी को आपका स्थान देने की युक्ति मैने इसीलिए की थी कि उस वजह से असुर बालको को वही शिक्षा वही ज्ञान मिले जो मे चाहू
शुक्राचार्य:- इसीलिए तो तुम मेरे सबसे प्रिय शिष्य हो मायासुर अब बताओ क्या समस्या है कि तुम यहाँ आने के लिए मजबूर हो गए
मायासुर :- समस्या एक नही दो है गुरुदेव सबसे पहले तो उस ढोंगी ने हमारा कार्य करने से मना कर दिया है मुझे उससे गद्दारी की गंध आ रही हैं
शुक्राचार्य :- वो ढोंगी इस लायक है ही नहीं की वो हमारे इस महान कार्य को पुरा कर सके इसीलिए मैने पहले ही उस कार्य को अंजाम दे दिया है और बस कुछ दिन और फिर हमारा कार्य पुरा हो जायेगा
मायासुर :- जय हो गुरुदेव मुझे पता था कि आप के पास मेरे हर समस्या का हल है अब सबसे बड़ी समस्या महाधारक ने जनम ले लिया है और पृथ्वी अस्त्र को धारण कर लिया है
शुक्राचार्य :- इसमे भी कोई समस्या नही है महाधारक का जन्म होना तय था जब सातों अस्त्रों को अपना अपना महा धारक मिलेगा तभी तो हमारा मकसद पूर्ण होगा
मायासुर :- ये आप क्या कह रहे हो अगर सातों अस्त्र के महा धारक आ गए तो हमारे रास्ते मे कठिनाईयां बढ़ जायेगी
शुक्राचार्य :- कोई भी बड़ी शक्ति पाने के लिए अंगारो पर तो चलना पड़ता है मायासुर बिना घोर तपस्या के मनचाहा वरदान नही मिलता
मायासुर :- मै समझ गया गुरुवर लेकिन उस पृथ्वी अस्त्र धारक न जाने कैसे लेकिन शिबू की तलवारे हासिल कर ली है
शुक्राचार्य :- ये असंभव है शिबू की तलवारे तमसिक ऊर्जा से बनी है और कोई भी अस्त्र किसी भी तमसिक ऊर्जा धारक को अपने महाधारक के रूप मे नही चुन सकती न जाने अब आदिदेव कोनसा खेल खेल रहे है
मायासुर :- आपको क्रोध नही आ रहा है कि शिबू आपके विरुद्ध उन अच्छाई के पक्ष का साथ दे रहा है जबकि वो भी मेरे जैसे आपका ही शिष्य है
शुक्राचार्य :- अगर वो ये नही करता तो जरूर मे उसे अपने शिष्य के रूप में न स्वीकारता
मायासुर :- मतलब
शुक्राचार्य :- वो भी मेरा शिष्य है और अगर वो खुदको कैद से आजाद करने की खुदके मकसद को पुरा करने के लिए कोशीश न करता तो मेरी शिक्षा व्यर्थ होती
मायासुर:- आपकी बातें मुझे समझ मे नही आती गुरुवर बस में इतना जानता हूं कि अगर कोई मेरे रास्ते में काँटा बनेगा तो उसे मे निकालकर आग के दर्ये मे फेक दूँगा
शुक्राचार्य :- विजयी भव:
अपने गुरुदेव का आशीर्वाद प्राप्त करने के बाद मायासुर वहा से निकल गया और उसके बाद शुक्राचार्य फिर से अपनी साधना मे बैठे गए
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आज के लिए इतना ही
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Awesome update and superb updateअध्याय अड़तालिस
इस वक़्त सारे अस्त्र धारक महागुरु के कुटिया मे जमा हो कर आगे के बारे में विचार विमर्श कर रहे थे
दिग्विजय:- महागुरु अब आगे क्या करना है
महागुरु:- आज पूरे जीवन मे पहली बार खुद को इतना कमजोर महसूस कर रहा हूँ न जाने क्यों अस्त्र हमे अपनी शक्तियां नही देना चाहते या उनकी ही शक्तियां सुप्त हो गयी है कुछ पता नही चल रहा है
प्रिया:- मुझे भद्रा की चिंता हो रही है कही उसको कुछ
शैलेश:- हिम्मत मत हारो प्रिया भद्रा को कुछ नही होगा उसके साथ पृथ्वी अस्त्र है
गौरव:- लेकिन मुझे अभी भी नही समझ आ रहा की ये अस्त्र अचानक से निष्क्रिय क्यों हो गए
साहिल:- कही अब अस्त्र हमे खुदके काबिल न समझ पा रहे हो असुरों से मिले हार के कारण
दिग्विजय:- नही ऐसा नहीं हो सकता इसके पीछे कुछ और कारण है महागुरु दिलावर और गौरव तुम दोनों को अस्त्रों के बारे में हम सब से अधिक ज्ञान है आप तीनों सोचिये कि ऐसा कैसे हो सकता हैं
दिग्विजय की बात सुनकर तीनों सोच मे पड़ गए और जल्द ही महागुरु के दिमाग की बत्ती जल उठी
महागुरु:- जितना मैने पड़ा है उस हिसाब से ऐसा 3 वजहों से ही हो सकता हैं
महागुरु की बात सुनकर सबके कान खड़े हो गये और सब महागुरु की बात ध्यान से सुनने लगे
महागुरु :- जैसा मैने पढ़ा था कि अस्त्रों को निष्क्रिय करने के लिए उसके धारक को जान से मार दिया जाए तो अस्त्र अपना नया धारक चुनने तक निष्क्रिय हो जाता हैं
शैलेश :- और दूसरा कारण
गौरव:- दूसरा कारण यह है कि अगर अस्त्र धारक खुद से ही अपने अस्त्र का त्याग कर दे
शांति :- अब तक बताये हुए दोनों ही कारण गलत है तो अब तीसरा कारण क्या है
दिलावर:- तीसरा कारण यह है कि अगर कोई जबरदस्ती अस्त्र को उनके धारक से छिने या चुरा ले तो अस्त्र खुद को सुप्त अवस्था मे डाल देता है लेकिन जब धारक उसे वापस पाने की कोशीश करता है तब अस्त्र फिर से सक्रिय हो जाता हैं
दिग्विजय:- ये कारण हो सकता हैं लेकिन ये अस्त्र फिर से सक्रिय क्यों नही हो रहे हैं
अब तक हुए सभी बातों को लेकर सभी बड़े चिंता मे आ गए थे और सब दिग्विजय की बात सुनकर सोच मे पड़ गए थे की तभी महागुरु के चेहरे के भाव ऐसे थे की जैसे उन्होंने इस गुत्थी को सुलझा दिया है लेकिन न जाने क्यों वो शांत बैठे हुए थे
तो वही दूसरी तरफ मायासुर से इतनी बुरी तरीके से पिटने के बाद भी शिबू अब तक हँसे जा रहा था जो देखकर त्रिलोकेश्वर और दमयंती दोनों हैरान थे
त्रिलोकेश्वर द्वारा लगातार पूछने के बाद भी उसकी हंसी रुकने का नाम नही ले रही थी और जब शिबू थोड़ा शांत हुआ तो दमयंती ने उसे पूछा
दमयंती :- शिबू क्या हुआ तुम इतना हँस क्यों रहे हो मायासुर से इतना पिटने के बाद भी तुम शांत नही हो रहे हो
शिबू:- मे अपनी पिटाई पर नही बल्कि जो मायासुर और बाकी सब असुरों का जो हाल होने वाला है उस पर हँस रहा था
त्रिलोकेश्वर :- मतलब क्या कहना चाहते हो तुम
शिबू :- तुम अभी तक समझे नही मित्र तेरा बेटा हमारी उम्मीद कुमार भद्रा अभी तक जिंदा है और उसीने मायासुर का ये हाल किया है
शिबू की बात सुनकर जहाँ दमयंती भावुक हो कर रोने लगी थी तो वही त्रिलोकेश्वर अब तक शांत था जैसे किसी सोच मे गुम है
शिबू (दमयंती से) :- सम्राज्ञी अब रोने का नही बल्कि हँसने का अपना सालों पुराना बदला लेने का समय है असुरों के अंत हमारे आज़ादी का समय है महायुद्ध का आगाज़ अब हो चुका
त्रिलोकेश्वर :- तुम सच कह रहे हो लेकिन मुझे ये समझ नही आ रहा है कि हम उसकी जीव ऊर्जा को महसूस क्यों नही कर पा रहे हैं हम उससे मस्तिष्क तरंगों से भी संपर्क नही कर पा रहे हैं
शिबू:- इसमें कोनसी बड़ी बात है तुम्ही ने कहा था न की तुमसे मुझसे हम सबसे बड़ी ताकत है सप्तचक्रों की और ये तो हम पहले से जानते है की उस कालविजय आश्रम में महागुरु ने सबसे शक्तिशाली कवच लगाया है
त्रिलोकेश्वर (चिल्लाके) :- मेरे भाईयों मेरे प्रजाजन अब हमारी आज़ादी ज्यादा दूर नही है लेकिन यह सोचके खुदको कमजोर मत पड़ने देना क्योंकि इसके बाद हमे एक महासंग्राम का हिस्सा भी बनना पड़ेगा जो आसान नही होगा
त्रिलोकेश्वर की बात सुनकर हर कोई उसके नाम के नारे लगाने लगा था और अब से उस कैद खाने मे हर कोई आने वाले युद्ध के लिए खुदको तैयार करने लगा था
तो वही इन सब से दूर एक बर्फीले जगह पर मायासुर लगातार चलते जा रहा था उसके पूरे शरीर पर बर्फ गिरी हुई थी और अभी वो चलते हुए एक कुटिया के पास पहुंचा और जैसे ही उसने उस कुटिया के आंगन मे कदम रखा
तो उस जगह की सारी ठंड गायब हो गई और उसके बदले वहा के वातावरण में एक आरामदायक उष्णता फैल गयी और अभी वो उस कुटिया मे प्रवेश करता की तभी उस कुटिया से एक साधु बाहर निकल कर आया जिसके आते ही मायासुर उसके सामने अपने घुटने टेक दिए
मायासुर:- महान असुर कुल गुरु शुक्राचार्य की जय हो
शुक्राचार्य:- आज मेरे इस शिष्य को अपने गुरु की याद कैसे आ गयी
मायासुर :- गुरुदेव बात ही गंभीर है जिसके लिए मुझे आपकी इस बरसों पुरानी साधना मे विघ्न डालना पड़ा
शुक्राचार्य:- क्यों जिस ढोंगी को तुमने मेरे स्थान पर असुर गुरु बनाया है उसके पास इसका हल नहीं है क्या
मायासुर :- कैसी बात करते हो गुरुदेव आपकी सामने उसकी क्या मिसाल और आपको एकांत में रखने की युक्ति भी आपकी ही थी और उस ढोंगी को आपका स्थान देने की युक्ति मैने इसीलिए की थी कि उस वजह से असुर बालको को वही शिक्षा वही ज्ञान मिले जो मे चाहू
शुक्राचार्य:- इसीलिए तो तुम मेरे सबसे प्रिय शिष्य हो मायासुर अब बताओ क्या समस्या है कि तुम यहाँ आने के लिए मजबूर हो गए
मायासुर :- समस्या एक नही दो है गुरुदेव सबसे पहले तो उस ढोंगी ने हमारा कार्य करने से मना कर दिया है मुझे उससे गद्दारी की गंध आ रही हैं
शुक्राचार्य :- वो ढोंगी इस लायक है ही नहीं की वो हमारे इस महान कार्य को पुरा कर सके इसीलिए मैने पहले ही उस कार्य को अंजाम दे दिया है और बस कुछ दिन और फिर हमारा कार्य पुरा हो जायेगा
मायासुर :- जय हो गुरुदेव मुझे पता था कि आप के पास मेरे हर समस्या का हल है अब सबसे बड़ी समस्या महाधारक ने जनम ले लिया है और पृथ्वी अस्त्र को धारण कर लिया है
शुक्राचार्य :- इसमे भी कोई समस्या नही है महाधारक का जन्म होना तय था जब सातों अस्त्रों को अपना अपना महा धारक मिलेगा तभी तो हमारा मकसद पूर्ण होगा
मायासुर :- ये आप क्या कह रहे हो अगर सातों अस्त्र के महा धारक आ गए तो हमारे रास्ते मे कठिनाईयां बढ़ जायेगी
शुक्राचार्य :- कोई भी बड़ी शक्ति पाने के लिए अंगारो पर तो चलना पड़ता है मायासुर बिना घोर तपस्या के मनचाहा वरदान नही मिलता
मायासुर :- मै समझ गया गुरुवर लेकिन उस पृथ्वी अस्त्र धारक न जाने कैसे लेकिन शिबू की तलवारे हासिल कर ली है
शुक्राचार्य :- ये असंभव है शिबू की तलवारे तमसिक ऊर्जा से बनी है और कोई भी अस्त्र किसी भी तमसिक ऊर्जा धारक को अपने महाधारक के रूप मे नही चुन सकती न जाने अब आदिदेव कोनसा खेल खेल रहे है
मायासुर :- आपको क्रोध नही आ रहा है कि शिबू आपके विरुद्ध उन अच्छाई के पक्ष का साथ दे रहा है जबकि वो भी मेरे जैसे आपका ही शिष्य है
शुक्राचार्य :- अगर वो ये नही करता तो जरूर मे उसे अपने शिष्य के रूप में न स्वीकारता
मायासुर :- मतलब
शुक्राचार्य :- वो भी मेरा शिष्य है और अगर वो खुदको कैद से आजाद करने की खुदके मकसद को पुरा करने के लिए कोशीश न करता तो मेरी शिक्षा व्यर्थ होती
मायासुर:- आपकी बातें मुझे समझ मे नही आती गुरुवर बस में इतना जानता हूं कि अगर कोई मेरे रास्ते में काँटा बनेगा तो उसे मे निकालकर आग के दर्ये मे फेक दूँगा
शुक्राचार्य :- विजयी भव:
अपने गुरुदेव का आशीर्वाद प्राप्त करने के बाद मायासुर वहा से निकल गया और उसके बाद शुक्राचार्य फिर से अपनी साधना मे बैठे गए
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आज के लिए इतना ही
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Very nice Lajawab updateअध्याय अड़तालिस
इस वक़्त सारे अस्त्र धारक महागुरु के कुटिया मे जमा हो कर आगे के बारे में विचार विमर्श कर रहे थे
दिग्विजय:- महागुरु अब आगे क्या करना है
महागुरु:- आज पूरे जीवन मे पहली बार खुद को इतना कमजोर महसूस कर रहा हूँ न जाने क्यों अस्त्र हमे अपनी शक्तियां नही देना चाहते या उनकी ही शक्तियां सुप्त हो गयी है कुछ पता नही चल रहा है
प्रिया:- मुझे भद्रा की चिंता हो रही है कही उसको कुछ
शैलेश:- हिम्मत मत हारो प्रिया भद्रा को कुछ नही होगा उसके साथ पृथ्वी अस्त्र है
गौरव:- लेकिन मुझे अभी भी नही समझ आ रहा की ये अस्त्र अचानक से निष्क्रिय क्यों हो गए
साहिल:- कही अब अस्त्र हमे खुदके काबिल न समझ पा रहे हो असुरों से मिले हार के कारण
दिग्विजय:- नही ऐसा नहीं हो सकता इसके पीछे कुछ और कारण है महागुरु दिलावर और गौरव तुम दोनों को अस्त्रों के बारे में हम सब से अधिक ज्ञान है आप तीनों सोचिये कि ऐसा कैसे हो सकता हैं
दिग्विजय की बात सुनकर तीनों सोच मे पड़ गए और जल्द ही महागुरु के दिमाग की बत्ती जल उठी
महागुरु:- जितना मैने पड़ा है उस हिसाब से ऐसा 3 वजहों से ही हो सकता हैं
महागुरु की बात सुनकर सबके कान खड़े हो गये और सब महागुरु की बात ध्यान से सुनने लगे
महागुरु :- जैसा मैने पढ़ा था कि अस्त्रों को निष्क्रिय करने के लिए उसके धारक को जान से मार दिया जाए तो अस्त्र अपना नया धारक चुनने तक निष्क्रिय हो जाता हैं
शैलेश :- और दूसरा कारण
गौरव:- दूसरा कारण यह है कि अगर अस्त्र धारक खुद से ही अपने अस्त्र का त्याग कर दे
शांति :- अब तक बताये हुए दोनों ही कारण गलत है तो अब तीसरा कारण क्या है
दिलावर:- तीसरा कारण यह है कि अगर कोई जबरदस्ती अस्त्र को उनके धारक से छिने या चुरा ले तो अस्त्र खुद को सुप्त अवस्था मे डाल देता है लेकिन जब धारक उसे वापस पाने की कोशीश करता है तब अस्त्र फिर से सक्रिय हो जाता हैं
दिग्विजय:- ये कारण हो सकता हैं लेकिन ये अस्त्र फिर से सक्रिय क्यों नही हो रहे हैं
अब तक हुए सभी बातों को लेकर सभी बड़े चिंता मे आ गए थे और सब दिग्विजय की बात सुनकर सोच मे पड़ गए थे की तभी महागुरु के चेहरे के भाव ऐसे थे की जैसे उन्होंने इस गुत्थी को सुलझा दिया है लेकिन न जाने क्यों वो शांत बैठे हुए थे
तो वही दूसरी तरफ मायासुर से इतनी बुरी तरीके से पिटने के बाद भी शिबू अब तक हँसे जा रहा था जो देखकर त्रिलोकेश्वर और दमयंती दोनों हैरान थे
त्रिलोकेश्वर द्वारा लगातार पूछने के बाद भी उसकी हंसी रुकने का नाम नही ले रही थी और जब शिबू थोड़ा शांत हुआ तो दमयंती ने उसे पूछा
दमयंती :- शिबू क्या हुआ तुम इतना हँस क्यों रहे हो मायासुर से इतना पिटने के बाद भी तुम शांत नही हो रहे हो
शिबू:- मे अपनी पिटाई पर नही बल्कि जो मायासुर और बाकी सब असुरों का जो हाल होने वाला है उस पर हँस रहा था
त्रिलोकेश्वर :- मतलब क्या कहना चाहते हो तुम
शिबू :- तुम अभी तक समझे नही मित्र तेरा बेटा हमारी उम्मीद कुमार भद्रा अभी तक जिंदा है और उसीने मायासुर का ये हाल किया है
शिबू की बात सुनकर जहाँ दमयंती भावुक हो कर रोने लगी थी तो वही त्रिलोकेश्वर अब तक शांत था जैसे किसी सोच मे गुम है
शिबू (दमयंती से) :- सम्राज्ञी अब रोने का नही बल्कि हँसने का अपना सालों पुराना बदला लेने का समय है असुरों के अंत हमारे आज़ादी का समय है महायुद्ध का आगाज़ अब हो चुका
त्रिलोकेश्वर :- तुम सच कह रहे हो लेकिन मुझे ये समझ नही आ रहा है कि हम उसकी जीव ऊर्जा को महसूस क्यों नही कर पा रहे हैं हम उससे मस्तिष्क तरंगों से भी संपर्क नही कर पा रहे हैं
शिबू:- इसमें कोनसी बड़ी बात है तुम्ही ने कहा था न की तुमसे मुझसे हम सबसे बड़ी ताकत है सप्तचक्रों की और ये तो हम पहले से जानते है की उस कालविजय आश्रम में महागुरु ने सबसे शक्तिशाली कवच लगाया है
त्रिलोकेश्वर (चिल्लाके) :- मेरे भाईयों मेरे प्रजाजन अब हमारी आज़ादी ज्यादा दूर नही है लेकिन यह सोचके खुदको कमजोर मत पड़ने देना क्योंकि इसके बाद हमे एक महासंग्राम का हिस्सा भी बनना पड़ेगा जो आसान नही होगा
त्रिलोकेश्वर की बात सुनकर हर कोई उसके नाम के नारे लगाने लगा था और अब से उस कैद खाने मे हर कोई आने वाले युद्ध के लिए खुदको तैयार करने लगा था
तो वही इन सब से दूर एक बर्फीले जगह पर मायासुर लगातार चलते जा रहा था उसके पूरे शरीर पर बर्फ गिरी हुई थी और अभी वो चलते हुए एक कुटिया के पास पहुंचा और जैसे ही उसने उस कुटिया के आंगन मे कदम रखा
तो उस जगह की सारी ठंड गायब हो गई और उसके बदले वहा के वातावरण में एक आरामदायक उष्णता फैल गयी और अभी वो उस कुटिया मे प्रवेश करता की तभी उस कुटिया से एक साधु बाहर निकल कर आया जिसके आते ही मायासुर उसके सामने अपने घुटने टेक दिए
मायासुर:- महान असुर कुल गुरु शुक्राचार्य की जय हो
शुक्राचार्य:- आज मेरे इस शिष्य को अपने गुरु की याद कैसे आ गयी
मायासुर :- गुरुदेव बात ही गंभीर है जिसके लिए मुझे आपकी इस बरसों पुरानी साधना मे विघ्न डालना पड़ा
शुक्राचार्य:- क्यों जिस ढोंगी को तुमने मेरे स्थान पर असुर गुरु बनाया है उसके पास इसका हल नहीं है क्या
मायासुर :- कैसी बात करते हो गुरुदेव आपकी सामने उसकी क्या मिसाल और आपको एकांत में रखने की युक्ति भी आपकी ही थी और उस ढोंगी को आपका स्थान देने की युक्ति मैने इसीलिए की थी कि उस वजह से असुर बालको को वही शिक्षा वही ज्ञान मिले जो मे चाहू
शुक्राचार्य:- इसीलिए तो तुम मेरे सबसे प्रिय शिष्य हो मायासुर अब बताओ क्या समस्या है कि तुम यहाँ आने के लिए मजबूर हो गए
मायासुर :- समस्या एक नही दो है गुरुदेव सबसे पहले तो उस ढोंगी ने हमारा कार्य करने से मना कर दिया है मुझे उससे गद्दारी की गंध आ रही हैं
शुक्राचार्य :- वो ढोंगी इस लायक है ही नहीं की वो हमारे इस महान कार्य को पुरा कर सके इसीलिए मैने पहले ही उस कार्य को अंजाम दे दिया है और बस कुछ दिन और फिर हमारा कार्य पुरा हो जायेगा
मायासुर :- जय हो गुरुदेव मुझे पता था कि आप के पास मेरे हर समस्या का हल है अब सबसे बड़ी समस्या महाधारक ने जनम ले लिया है और पृथ्वी अस्त्र को धारण कर लिया है
शुक्राचार्य :- इसमे भी कोई समस्या नही है महाधारक का जन्म होना तय था जब सातों अस्त्रों को अपना अपना महा धारक मिलेगा तभी तो हमारा मकसद पूर्ण होगा
मायासुर :- ये आप क्या कह रहे हो अगर सातों अस्त्र के महा धारक आ गए तो हमारे रास्ते मे कठिनाईयां बढ़ जायेगी
शुक्राचार्य :- कोई भी बड़ी शक्ति पाने के लिए अंगारो पर तो चलना पड़ता है मायासुर बिना घोर तपस्या के मनचाहा वरदान नही मिलता
मायासुर :- मै समझ गया गुरुवर लेकिन उस पृथ्वी अस्त्र धारक न जाने कैसे लेकिन शिबू की तलवारे हासिल कर ली है
शुक्राचार्य :- ये असंभव है शिबू की तलवारे तमसिक ऊर्जा से बनी है और कोई भी अस्त्र किसी भी तमसिक ऊर्जा धारक को अपने महाधारक के रूप मे नही चुन सकती न जाने अब आदिदेव कोनसा खेल खेल रहे है
मायासुर :- आपको क्रोध नही आ रहा है कि शिबू आपके विरुद्ध उन अच्छाई के पक्ष का साथ दे रहा है जबकि वो भी मेरे जैसे आपका ही शिष्य है
शुक्राचार्य :- अगर वो ये नही करता तो जरूर मे उसे अपने शिष्य के रूप में न स्वीकारता
मायासुर :- मतलब
शुक्राचार्य :- वो भी मेरा शिष्य है और अगर वो खुदको कैद से आजाद करने की खुदके मकसद को पुरा करने के लिए कोशीश न करता तो मेरी शिक्षा व्यर्थ होती
मायासुर:- आपकी बातें मुझे समझ मे नही आती गुरुवर बस में इतना जानता हूं कि अगर कोई मेरे रास्ते में काँटा बनेगा तो उसे मे निकालकर आग के दर्ये मे फेक दूँगा
शुक्राचार्य :- विजयी भव:
अपने गुरुदेव का आशीर्वाद प्राप्त करने के बाद मायासुर वहा से निकल गया और उसके बाद शुक्राचार्य फिर से अपनी साधना मे बैठे गए
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आज के लिए इतना ही
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अध्याय अड़तालिस
इस वक़्त सारे अस्त्र धारक महागुरु के कुटिया मे जमा हो कर आगे के बारे में विचार विमर्श कर रहे थे
दिग्विजय:- महागुरु अब आगे क्या करना है
महागुरु:- आज पूरे जीवन मे पहली बार खुद को इतना कमजोर महसूस कर रहा हूँ न जाने क्यों अस्त्र हमे अपनी शक्तियां नही देना चाहते या उनकी ही शक्तियां सुप्त हो गयी है कुछ पता नही चल रहा है
प्रिया:- मुझे भद्रा की चिंता हो रही है कही उसको कुछ
शैलेश:- हिम्मत मत हारो प्रिया भद्रा को कुछ नही होगा उसके साथ पृथ्वी अस्त्र है
गौरव:- लेकिन मुझे अभी भी नही समझ आ रहा की ये अस्त्र अचानक से निष्क्रिय क्यों हो गए
साहिल:- कही अब अस्त्र हमे खुदके काबिल न समझ पा रहे हो असुरों से मिले हार के कारण
दिग्विजय:- नही ऐसा नहीं हो सकता इसके पीछे कुछ और कारण है महागुरु दिलावर और गौरव तुम दोनों को अस्त्रों के बारे में हम सब से अधिक ज्ञान है आप तीनों सोचिये कि ऐसा कैसे हो सकता हैं
दिग्विजय की बात सुनकर तीनों सोच मे पड़ गए और जल्द ही महागुरु के दिमाग की बत्ती जल उठी
महागुरु:- जितना मैने पड़ा है उस हिसाब से ऐसा 3 वजहों से ही हो सकता हैं
महागुरु की बात सुनकर सबके कान खड़े हो गये और सब महागुरु की बात ध्यान से सुनने लगे
महागुरु :- जैसा मैने पढ़ा था कि अस्त्रों को निष्क्रिय करने के लिए उसके धारक को जान से मार दिया जाए तो अस्त्र अपना नया धारक चुनने तक निष्क्रिय हो जाता हैं
शैलेश :- और दूसरा कारण
गौरव:- दूसरा कारण यह है कि अगर अस्त्र धारक खुद से ही अपने अस्त्र का त्याग कर दे
शांति :- अब तक बताये हुए दोनों ही कारण गलत है तो अब तीसरा कारण क्या है
दिलावर:- तीसरा कारण यह है कि अगर कोई जबरदस्ती अस्त्र को उनके धारक से छिने या चुरा ले तो अस्त्र खुद को सुप्त अवस्था मे डाल देता है लेकिन जब धारक उसे वापस पाने की कोशीश करता है तब अस्त्र फिर से सक्रिय हो जाता हैं
दिग्विजय:- ये कारण हो सकता हैं लेकिन ये अस्त्र फिर से सक्रिय क्यों नही हो रहे हैं
अब तक हुए सभी बातों को लेकर सभी बड़े चिंता मे आ गए थे और सब दिग्विजय की बात सुनकर सोच मे पड़ गए थे की तभी महागुरु के चेहरे के भाव ऐसे थे की जैसे उन्होंने इस गुत्थी को सुलझा दिया है लेकिन न जाने क्यों वो शांत बैठे हुए थे
तो वही दूसरी तरफ मायासुर से इतनी बुरी तरीके से पिटने के बाद भी शिबू अब तक हँसे जा रहा था जो देखकर त्रिलोकेश्वर और दमयंती दोनों हैरान थे
त्रिलोकेश्वर द्वारा लगातार पूछने के बाद भी उसकी हंसी रुकने का नाम नही ले रही थी और जब शिबू थोड़ा शांत हुआ तो दमयंती ने उसे पूछा
दमयंती :- शिबू क्या हुआ तुम इतना हँस क्यों रहे हो मायासुर से इतना पिटने के बाद भी तुम शांत नही हो रहे हो
शिबू:- मे अपनी पिटाई पर नही बल्कि जो मायासुर और बाकी सब असुरों का जो हाल होने वाला है उस पर हँस रहा था
त्रिलोकेश्वर :- मतलब क्या कहना चाहते हो तुम
शिबू :- तुम अभी तक समझे नही मित्र तेरा बेटा हमारी उम्मीद कुमार भद्रा अभी तक जिंदा है और उसीने मायासुर का ये हाल किया है
शिबू की बात सुनकर जहाँ दमयंती भावुक हो कर रोने लगी थी तो वही त्रिलोकेश्वर अब तक शांत था जैसे किसी सोच मे गुम है
शिबू (दमयंती से) :- सम्राज्ञी अब रोने का नही बल्कि हँसने का अपना सालों पुराना बदला लेने का समय है असुरों के अंत हमारे आज़ादी का समय है महायुद्ध का आगाज़ अब हो चुका
त्रिलोकेश्वर :- तुम सच कह रहे हो लेकिन मुझे ये समझ नही आ रहा है कि हम उसकी जीव ऊर्जा को महसूस क्यों नही कर पा रहे हैं हम उससे मस्तिष्क तरंगों से भी संपर्क नही कर पा रहे हैं
शिबू:- इसमें कोनसी बड़ी बात है तुम्ही ने कहा था न की तुमसे मुझसे हम सबसे बड़ी ताकत है सप्तचक्रों की और ये तो हम पहले से जानते है की उस कालविजय आश्रम में महागुरु ने सबसे शक्तिशाली कवच लगाया है
त्रिलोकेश्वर (चिल्लाके) :- मेरे भाईयों मेरे प्रजाजन अब हमारी आज़ादी ज्यादा दूर नही है लेकिन यह सोचके खुदको कमजोर मत पड़ने देना क्योंकि इसके बाद हमे एक महासंग्राम का हिस्सा भी बनना पड़ेगा जो आसान नही होगा
त्रिलोकेश्वर की बात सुनकर हर कोई उसके नाम के नारे लगाने लगा था और अब से उस कैद खाने मे हर कोई आने वाले युद्ध के लिए खुदको तैयार करने लगा था
तो वही इन सब से दूर एक बर्फीले जगह पर मायासुर लगातार चलते जा रहा था उसके पूरे शरीर पर बर्फ गिरी हुई थी और अभी वो चलते हुए एक कुटिया के पास पहुंचा और जैसे ही उसने उस कुटिया के आंगन मे कदम रखा
तो उस जगह की सारी ठंड गायब हो गई और उसके बदले वहा के वातावरण में एक आरामदायक उष्णता फैल गयी और अभी वो उस कुटिया मे प्रवेश करता की तभी उस कुटिया से एक साधु बाहर निकल कर आया जिसके आते ही मायासुर उसके सामने अपने घुटने टेक दिए
मायासुर:- महान असुर कुल गुरु शुक्राचार्य की जय हो
शुक्राचार्य:- आज मेरे इस शिष्य को अपने गुरु की याद कैसे आ गयी
मायासुर :- गुरुदेव बात ही गंभीर है जिसके लिए मुझे आपकी इस बरसों पुरानी साधना मे विघ्न डालना पड़ा
शुक्राचार्य:- क्यों जिस ढोंगी को तुमने मेरे स्थान पर असुर गुरु बनाया है उसके पास इसका हल नहीं है क्या
मायासुर :- कैसी बात करते हो गुरुदेव आपकी सामने उसकी क्या मिसाल और आपको एकांत में रखने की युक्ति भी आपकी ही थी और उस ढोंगी को आपका स्थान देने की युक्ति मैने इसीलिए की थी कि उस वजह से असुर बालको को वही शिक्षा वही ज्ञान मिले जो मे चाहू
शुक्राचार्य:- इसीलिए तो तुम मेरे सबसे प्रिय शिष्य हो मायासुर अब बताओ क्या समस्या है कि तुम यहाँ आने के लिए मजबूर हो गए
मायासुर :- समस्या एक नही दो है गुरुदेव सबसे पहले तो उस ढोंगी ने हमारा कार्य करने से मना कर दिया है मुझे उससे गद्दारी की गंध आ रही हैं
शुक्राचार्य :- वो ढोंगी इस लायक है ही नहीं की वो हमारे इस महान कार्य को पुरा कर सके इसीलिए मैने पहले ही उस कार्य को अंजाम दे दिया है और बस कुछ दिन और फिर हमारा कार्य पुरा हो जायेगा
मायासुर :- जय हो गुरुदेव मुझे पता था कि आप के पास मेरे हर समस्या का हल है अब सबसे बड़ी समस्या महाधारक ने जनम ले लिया है और पृथ्वी अस्त्र को धारण कर लिया है
शुक्राचार्य :- इसमे भी कोई समस्या नही है महाधारक का जन्म होना तय था जब सातों अस्त्रों को अपना अपना महा धारक मिलेगा तभी तो हमारा मकसद पूर्ण होगा
मायासुर :- ये आप क्या कह रहे हो अगर सातों अस्त्र के महा धारक आ गए तो हमारे रास्ते मे कठिनाईयां बढ़ जायेगी
शुक्राचार्य :- कोई भी बड़ी शक्ति पाने के लिए अंगारो पर तो चलना पड़ता है मायासुर बिना घोर तपस्या के मनचाहा वरदान नही मिलता
मायासुर :- मै समझ गया गुरुवर लेकिन उस पृथ्वी अस्त्र धारक न जाने कैसे लेकिन शिबू की तलवारे हासिल कर ली है
शुक्राचार्य :- ये असंभव है शिबू की तलवारे तमसिक ऊर्जा से बनी है और कोई भी अस्त्र किसी भी तमसिक ऊर्जा धारक को अपने महाधारक के रूप मे नही चुन सकती न जाने अब आदिदेव कोनसा खेल खेल रहे है
मायासुर :- आपको क्रोध नही आ रहा है कि शिबू आपके विरुद्ध उन अच्छाई के पक्ष का साथ दे रहा है जबकि वो भी मेरे जैसे आपका ही शिष्य है
शुक्राचार्य :- अगर वो ये नही करता तो जरूर मे उसे अपने शिष्य के रूप में न स्वीकारता
मायासुर :- मतलब
शुक्राचार्य :- वो भी मेरा शिष्य है और अगर वो खुदको कैद से आजाद करने की खुदके मकसद को पुरा करने के लिए कोशीश न करता तो मेरी शिक्षा व्यर्थ होती
मायासुर:- आपकी बातें मुझे समझ मे नही आती गुरुवर बस में इतना जानता हूं कि अगर कोई मेरे रास्ते में काँटा बनेगा तो उसे मे निकालकर आग के दर्ये मे फेक दूँगा
शुक्राचार्य :- विजयी भव:
अपने गुरुदेव का आशीर्वाद प्राप्त करने के बाद मायासुर वहा से निकल गया और उसके बाद शुक्राचार्य फिर से अपनी साधना मे बैठे गए
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आज के लिए इतना ही
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Excellent updateअध्याय अड़तालिस
इस वक़्त सारे अस्त्र धारक महागुरु के कुटिया मे जमा हो कर आगे के बारे में विचार विमर्श कर रहे थे
दिग्विजय:- महागुरु अब आगे क्या करना है
महागुरु:- आज पूरे जीवन मे पहली बार खुद को इतना कमजोर महसूस कर रहा हूँ न जाने क्यों अस्त्र हमे अपनी शक्तियां नही देना चाहते या उनकी ही शक्तियां सुप्त हो गयी है कुछ पता नही चल रहा है
प्रिया:- मुझे भद्रा की चिंता हो रही है कही उसको कुछ
शैलेश:- हिम्मत मत हारो प्रिया भद्रा को कुछ नही होगा उसके साथ पृथ्वी अस्त्र है
गौरव:- लेकिन मुझे अभी भी नही समझ आ रहा की ये अस्त्र अचानक से निष्क्रिय क्यों हो गए
साहिल:- कही अब अस्त्र हमे खुदके काबिल न समझ पा रहे हो असुरों से मिले हार के कारण
दिग्विजय:- नही ऐसा नहीं हो सकता इसके पीछे कुछ और कारण है महागुरु दिलावर और गौरव तुम दोनों को अस्त्रों के बारे में हम सब से अधिक ज्ञान है आप तीनों सोचिये कि ऐसा कैसे हो सकता हैं
दिग्विजय की बात सुनकर तीनों सोच मे पड़ गए और जल्द ही महागुरु के दिमाग की बत्ती जल उठी
महागुरु:- जितना मैने पड़ा है उस हिसाब से ऐसा 3 वजहों से ही हो सकता हैं
महागुरु की बात सुनकर सबके कान खड़े हो गये और सब महागुरु की बात ध्यान से सुनने लगे
महागुरु :- जैसा मैने पढ़ा था कि अस्त्रों को निष्क्रिय करने के लिए उसके धारक को जान से मार दिया जाए तो अस्त्र अपना नया धारक चुनने तक निष्क्रिय हो जाता हैं
शैलेश :- और दूसरा कारण
गौरव:- दूसरा कारण यह है कि अगर अस्त्र धारक खुद से ही अपने अस्त्र का त्याग कर दे
शांति :- अब तक बताये हुए दोनों ही कारण गलत है तो अब तीसरा कारण क्या है
दिलावर:- तीसरा कारण यह है कि अगर कोई जबरदस्ती अस्त्र को उनके धारक से छिने या चुरा ले तो अस्त्र खुद को सुप्त अवस्था मे डाल देता है लेकिन जब धारक उसे वापस पाने की कोशीश करता है तब अस्त्र फिर से सक्रिय हो जाता हैं
दिग्विजय:- ये कारण हो सकता हैं लेकिन ये अस्त्र फिर से सक्रिय क्यों नही हो रहे हैं
अब तक हुए सभी बातों को लेकर सभी बड़े चिंता मे आ गए थे और सब दिग्विजय की बात सुनकर सोच मे पड़ गए थे की तभी महागुरु के चेहरे के भाव ऐसे थे की जैसे उन्होंने इस गुत्थी को सुलझा दिया है लेकिन न जाने क्यों वो शांत बैठे हुए थे
तो वही दूसरी तरफ मायासुर से इतनी बुरी तरीके से पिटने के बाद भी शिबू अब तक हँसे जा रहा था जो देखकर त्रिलोकेश्वर और दमयंती दोनों हैरान थे
त्रिलोकेश्वर द्वारा लगातार पूछने के बाद भी उसकी हंसी रुकने का नाम नही ले रही थी और जब शिबू थोड़ा शांत हुआ तो दमयंती ने उसे पूछा
दमयंती :- शिबू क्या हुआ तुम इतना हँस क्यों रहे हो मायासुर से इतना पिटने के बाद भी तुम शांत नही हो रहे हो
शिबू:- मे अपनी पिटाई पर नही बल्कि जो मायासुर और बाकी सब असुरों का जो हाल होने वाला है उस पर हँस रहा था
त्रिलोकेश्वर :- मतलब क्या कहना चाहते हो तुम
शिबू :- तुम अभी तक समझे नही मित्र तेरा बेटा हमारी उम्मीद कुमार भद्रा अभी तक जिंदा है और उसीने मायासुर का ये हाल किया है
शिबू की बात सुनकर जहाँ दमयंती भावुक हो कर रोने लगी थी तो वही त्रिलोकेश्वर अब तक शांत था जैसे किसी सोच मे गुम है
शिबू (दमयंती से) :- सम्राज्ञी अब रोने का नही बल्कि हँसने का अपना सालों पुराना बदला लेने का समय है असुरों के अंत हमारे आज़ादी का समय है महायुद्ध का आगाज़ अब हो चुका
त्रिलोकेश्वर :- तुम सच कह रहे हो लेकिन मुझे ये समझ नही आ रहा है कि हम उसकी जीव ऊर्जा को महसूस क्यों नही कर पा रहे हैं हम उससे मस्तिष्क तरंगों से भी संपर्क नही कर पा रहे हैं
शिबू:- इसमें कोनसी बड़ी बात है तुम्ही ने कहा था न की तुमसे मुझसे हम सबसे बड़ी ताकत है सप्तचक्रों की और ये तो हम पहले से जानते है की उस कालविजय आश्रम में महागुरु ने सबसे शक्तिशाली कवच लगाया है
त्रिलोकेश्वर (चिल्लाके) :- मेरे भाईयों मेरे प्रजाजन अब हमारी आज़ादी ज्यादा दूर नही है लेकिन यह सोचके खुदको कमजोर मत पड़ने देना क्योंकि इसके बाद हमे एक महासंग्राम का हिस्सा भी बनना पड़ेगा जो आसान नही होगा
त्रिलोकेश्वर की बात सुनकर हर कोई उसके नाम के नारे लगाने लगा था और अब से उस कैद खाने मे हर कोई आने वाले युद्ध के लिए खुदको तैयार करने लगा था
तो वही इन सब से दूर एक बर्फीले जगह पर मायासुर लगातार चलते जा रहा था उसके पूरे शरीर पर बर्फ गिरी हुई थी और अभी वो चलते हुए एक कुटिया के पास पहुंचा और जैसे ही उसने उस कुटिया के आंगन मे कदम रखा
तो उस जगह की सारी ठंड गायब हो गई और उसके बदले वहा के वातावरण में एक आरामदायक उष्णता फैल गयी और अभी वो उस कुटिया मे प्रवेश करता की तभी उस कुटिया से एक साधु बाहर निकल कर आया जिसके आते ही मायासुर उसके सामने अपने घुटने टेक दिए
मायासुर:- महान असुर कुल गुरु शुक्राचार्य की जय हो
शुक्राचार्य:- आज मेरे इस शिष्य को अपने गुरु की याद कैसे आ गयी
मायासुर :- गुरुदेव बात ही गंभीर है जिसके लिए मुझे आपकी इस बरसों पुरानी साधना मे विघ्न डालना पड़ा
शुक्राचार्य:- क्यों जिस ढोंगी को तुमने मेरे स्थान पर असुर गुरु बनाया है उसके पास इसका हल नहीं है क्या
मायासुर :- कैसी बात करते हो गुरुदेव आपकी सामने उसकी क्या मिसाल और आपको एकांत में रखने की युक्ति भी आपकी ही थी और उस ढोंगी को आपका स्थान देने की युक्ति मैने इसीलिए की थी कि उस वजह से असुर बालको को वही शिक्षा वही ज्ञान मिले जो मे चाहू
शुक्राचार्य:- इसीलिए तो तुम मेरे सबसे प्रिय शिष्य हो मायासुर अब बताओ क्या समस्या है कि तुम यहाँ आने के लिए मजबूर हो गए
मायासुर :- समस्या एक नही दो है गुरुदेव सबसे पहले तो उस ढोंगी ने हमारा कार्य करने से मना कर दिया है मुझे उससे गद्दारी की गंध आ रही हैं
शुक्राचार्य :- वो ढोंगी इस लायक है ही नहीं की वो हमारे इस महान कार्य को पुरा कर सके इसीलिए मैने पहले ही उस कार्य को अंजाम दे दिया है और बस कुछ दिन और फिर हमारा कार्य पुरा हो जायेगा
मायासुर :- जय हो गुरुदेव मुझे पता था कि आप के पास मेरे हर समस्या का हल है अब सबसे बड़ी समस्या महाधारक ने जनम ले लिया है और पृथ्वी अस्त्र को धारण कर लिया है
शुक्राचार्य :- इसमे भी कोई समस्या नही है महाधारक का जन्म होना तय था जब सातों अस्त्रों को अपना अपना महा धारक मिलेगा तभी तो हमारा मकसद पूर्ण होगा
मायासुर :- ये आप क्या कह रहे हो अगर सातों अस्त्र के महा धारक आ गए तो हमारे रास्ते मे कठिनाईयां बढ़ जायेगी
शुक्राचार्य :- कोई भी बड़ी शक्ति पाने के लिए अंगारो पर तो चलना पड़ता है मायासुर बिना घोर तपस्या के मनचाहा वरदान नही मिलता
मायासुर :- मै समझ गया गुरुवर लेकिन उस पृथ्वी अस्त्र धारक न जाने कैसे लेकिन शिबू की तलवारे हासिल कर ली है
शुक्राचार्य :- ये असंभव है शिबू की तलवारे तमसिक ऊर्जा से बनी है और कोई भी अस्त्र किसी भी तमसिक ऊर्जा धारक को अपने महाधारक के रूप मे नही चुन सकती न जाने अब आदिदेव कोनसा खेल खेल रहे है
मायासुर :- आपको क्रोध नही आ रहा है कि शिबू आपके विरुद्ध उन अच्छाई के पक्ष का साथ दे रहा है जबकि वो भी मेरे जैसे आपका ही शिष्य है
शुक्राचार्य :- अगर वो ये नही करता तो जरूर मे उसे अपने शिष्य के रूप में न स्वीकारता
मायासुर :- मतलब
शुक्राचार्य :- वो भी मेरा शिष्य है और अगर वो खुदको कैद से आजाद करने की खुदके मकसद को पुरा करने के लिए कोशीश न करता तो मेरी शिक्षा व्यर्थ होती
मायासुर:- आपकी बातें मुझे समझ मे नही आती गुरुवर बस में इतना जानता हूं कि अगर कोई मेरे रास्ते में काँटा बनेगा तो उसे मे निकालकर आग के दर्ये मे फेक दूँगा
शुक्राचार्य :- विजयी भव:
अपने गुरुदेव का आशीर्वाद प्राप्त करने के बाद मायासुर वहा से निकल गया और उसके बाद शुक्राचार्य फिर से अपनी साधना मे बैठे गए
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आज के लिए इतना ही
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