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Fantasy ब्रह्माराक्षस

park

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228
अध्याय छह

इस वक़्त एक अंधेरी गुफा के बाहर एक के बाद एक 3 मायावी द्वार खुल गए उन तीनों द्वार से 3 लोग बाहर आए जिनमें 1 पुरुष था तो 2 स्त्रिया जब उन तीनों ने एक दूसरे को देखा तो वो दोनों स्त्रिया तुरंत उस पुरुष के सामने झुक गई

दोनों (एक साथ) :- असुर सेनापति मायासुर की जय हो

मायासुर :- उठ जाओ मोहिनी और कामिनी

जैसे ही उस मायासुर ने दोनों को उठने के लिए कहा वैसे ही उन तीनों के रूप बदल गए और फिर उसी आसुरी रूप में उस गुफा के अंदर चल दिये और जैसे ही वो अंदर जाने लगे तो उस अंधेरी गुफा में हल्का सा प्रकाश फैलने लगा और जैसे ही वो गुफा के अंतिम छोर पर पहुंचे तो

उन तीनों ने अपने हाथ आगे किए जिससे उन तीनों के हाथ में एक एक चाभी आ गई और जैसे ही woh चाबियां उनके हाथ मे प्रकट हुए तो वैसे ही वहां एक और मायावी द्वार खुल गया

जिसमें से वो तीनों पहुच गए किसी कैदखाने जैसी जगह पर जहा पर हर एक कमरे से केवल और केवल लोगों की दर्द से निकलती चीखें ही सुनायी दे रही थी और उन सब कमरों के आखिर में एक कमरा और था जिसमें से चीखें तो नही लेकिन 2 लोगों के रोने की आवाज सुनाई दे रही थी

जब वो तीनों उस कमरे के पास पहुंचे तो वो रोने की आवाज बंद हो गई और जैसे ही वो उस कमरे के सामने आए वैसे ही उस कमरे में उजाला फैल गया उस कमरे में कोई और नहीं बल्कि त्रिलोकेश्वर और दमयन्ती थे जिन्हें असुरों ने सालों पहले क़ैद किया था

वो दोनों अपने राक्षसी रूप में ही मौजूद थे दोनों को बाँध के रखा था दोनों के शरीर पर कई सारे घाव लगे हुए थे उन्हें देखने से ही लग रहा था कि उन्हें किसीने बहुत पीटा है उन्हीं के बगल में चाबुक भी जमीन पर पड़े हुए थे

मायासुर :- कैसे हो त्रिलोकेश्वर हमारी मेहमान नवाजी पसंद तो आ रही है ना

उसकी बात सुनकर दोनों भी सिर्फ उसे ग़ुस्से से घूरे जा रहे थे जो देखकर वो तीनों असुर ज़ोरों से हंसने लगे

मायासूर :- वैसे मानना पड़ेगा इतने सालों से पीड़ा सहते हुए आ रहे हो लेकिन अभी तक तुमनें तुम्हारें पुत्र को कहा छुपाया है अभी तक हमे पता लगने नहीं दिया बहुत अच्छे पिता हो तुम लेकिन पति उतने भी अच्छे नहीं हो इतने सालो से अपनी पत्नी को पीटते हुए देख रहे हों लेकिन अभी तक तुमनें उसका दर्द मिटाने के लिए कुछ भी नहीं किया

त्रिलोकेश्वर :- अगर ऐसी बात है तो मेरे हाथ खोलकर मुझे बाहर निकाल फ़िर मे तूझे दिखाता हूँ कि मैं क्या हूँ

मायासुर :- अच्छी बात है लेकिन उसके लिए अभी समय नहीं है वैसे अगर तुम अपने पुत्र के बारे में बता दो फ़िर असुर राज़ से माफ़ी की भीख मांगो तो हो सकता है कि वो तुम्हे इस पीड़ा से मुक्ति दे दे

दमयन्ती :- तुम किस पीड़ा की बात कर रहे हों अरे तुम जो हमे मार रहे हो वो हमे पीड़ा नहीं दे रही है बल्कि तुम्हारें प्रति हमारे अंदर की क्रोधाग्नि को और भड़का रही है जिसका इस्तेमाल तुम तीनों की चिता जलाने के लिए किया जाएगा हाँ अगर तुम हमे छोड़ दो और माफी की भीख माँगों तो हो सकता है कि हम तुम्हारे अंत को कम दर्दनाक बनाए

मायासुर :- तुम्हरी ये हिम्मत की तुम हमसे ऐसे बात करो अब तुम्हारा अंत निश्चित है लेकिन उससे पहले तुम्हें इतनी पीड़ा दूँगा की तुम खुद मौत की भीख माँगों

इतना बोलकर वो वहाँ से निकलने लगा और तुरंत ही जो चाबुक जमीन पर गिरे हुए थे वो हवा में उड़ने लगे और उन मेसे बिजली की तरंग निकलने लगी और फिर उन दोनों के उपर लगातार उस चाबुक से वार होने लगा लेकिन वो दर्द से तड़पने के बदले हसने लगे और जोर से चिल्लाने लगे

दोनों :- (चिल्लाकर ) बदला लिया जाएगा हर जुल्म का हर घाव का तुम्हारी पूरी असुर प्रजाति मौत की भीख मांगेगी लेकिन उन्हें मिलेगा तो सिर्फ दर्द बेशुमार दर्द

तो वही मे ये सब सपने के माध्यम से देख पा रहा था लेकिन सब कुछ धुंधला था ना मुझे कुछ समझ आ रहा था और नाही मुझे कुछ साफ़ दिख रहा था परंतु जब उन दोनों पर चाबुक बरसने लगे तो ऐसा लगा कि वो चाबुक मुझ पर बरस रहे हैं जिससे मे एक चीख के साथ उठ गया

जैसे ही मेरी आँख खुली तो मेंने देखा कि मे अपने ही कमरे में था और पूरी तरह से पसीने से भिगा हुआ था और मेरी सासें भी फुल चुकी थी ऐसा लग रहा था कि कोई महा शक्तियों से भरा ऊर्जा स्त्रोत ने मेरा गला दबा कर रखा हो

अभी मे इस सब के बारे में सोच ही रहा था कि तभी मेरे घर के दरवाजे पर दस्तक होने लगी लेकिन मे अपने ख़यालों मे इतना गुम था कि मुझे कुछ सुनायीं ही नहीं दे रहा था और जब मेरे तरफ से कोई जवाब नहीं मिला तो बाहर वाले व्यक्ती ने तुरंत दरवाज़ा तोड़ दिया

ये व्यक्ती कोई और नहीं बल्कि जिस घर में मैं रहता हूं उसके मालिक है दिल के बड़े नेक है और शहर में अकेले ही है ये और इनका परिवार एक दिन साथ घूमने जा रहे थे तभी एक हादसे का शिकार हो गए और ये भी मारे जाते लेकिन इनको कुछ साधुओं ने बचा लिया और इनके उपचार के लिए इन्हें काल दृष्टि आश्रम ले गए और तबसे ही ये आश्रम के लिए वफादार है भले ही इन्हें आश्रम की असलियत नहीं पता लेकिन फिर भी यह आश्रम के द्वारा दिये गये हर आदेश का पालन करने के लिए हमेशा तैयार रहते हैं इनका नाम सत्येंद्र है

सत्येन्द्र :- क्या हुआ भद्रा तुम ऐसे चिल्लाए क्यु

में :- कुछ नहीं काका बस बुरा सपना था

सत्येन्द्र :- थोड़ा कम सोचा करो तो ऐसे सपने नहीं आयेंगे तुम फ्रेश हो जाओ मे नाश्ता लेके आता हूं

इतना बोलकर वो चले गए और उनके जाते ही मेंने तुरंत अपने आप को काबु किया और ध्यान लगाकर खुद को बड़ी मुश्किल से काबु किया और फिर नहाने चला गया और अभी फिलहाल कॉलेज मे कुछ खास नहीं था तो मे चल दिया काका के घर और वहां नाश्ता कर ने के बाद मे चल प़डा अपना उधार चुकाने

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आज के लिए इतना ही

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Nice and superb update....
 
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kas1709

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अध्याय छह

इस वक़्त एक अंधेरी गुफा के बाहर एक के बाद एक 3 मायावी द्वार खुल गए उन तीनों द्वार से 3 लोग बाहर आए जिनमें 1 पुरुष था तो 2 स्त्रिया जब उन तीनों ने एक दूसरे को देखा तो वो दोनों स्त्रिया तुरंत उस पुरुष के सामने झुक गई

दोनों (एक साथ) :- असुर सेनापति मायासुर की जय हो

मायासुर :- उठ जाओ मोहिनी और कामिनी

जैसे ही उस मायासुर ने दोनों को उठने के लिए कहा वैसे ही उन तीनों के रूप बदल गए और फिर उसी आसुरी रूप में उस गुफा के अंदर चल दिये और जैसे ही वो अंदर जाने लगे तो उस अंधेरी गुफा में हल्का सा प्रकाश फैलने लगा और जैसे ही वो गुफा के अंतिम छोर पर पहुंचे तो

उन तीनों ने अपने हाथ आगे किए जिससे उन तीनों के हाथ में एक एक चाभी आ गई और जैसे ही woh चाबियां उनके हाथ मे प्रकट हुए तो वैसे ही वहां एक और मायावी द्वार खुल गया

जिसमें से वो तीनों पहुच गए किसी कैदखाने जैसी जगह पर जहा पर हर एक कमरे से केवल और केवल लोगों की दर्द से निकलती चीखें ही सुनायी दे रही थी और उन सब कमरों के आखिर में एक कमरा और था जिसमें से चीखें तो नही लेकिन 2 लोगों के रोने की आवाज सुनाई दे रही थी

जब वो तीनों उस कमरे के पास पहुंचे तो वो रोने की आवाज बंद हो गई और जैसे ही वो उस कमरे के सामने आए वैसे ही उस कमरे में उजाला फैल गया उस कमरे में कोई और नहीं बल्कि त्रिलोकेश्वर और दमयन्ती थे जिन्हें असुरों ने सालों पहले क़ैद किया था

वो दोनों अपने राक्षसी रूप में ही मौजूद थे दोनों को बाँध के रखा था दोनों के शरीर पर कई सारे घाव लगे हुए थे उन्हें देखने से ही लग रहा था कि उन्हें किसीने बहुत पीटा है उन्हीं के बगल में चाबुक भी जमीन पर पड़े हुए थे

मायासुर :- कैसे हो त्रिलोकेश्वर हमारी मेहमान नवाजी पसंद तो आ रही है ना

उसकी बात सुनकर दोनों भी सिर्फ उसे ग़ुस्से से घूरे जा रहे थे जो देखकर वो तीनों असुर ज़ोरों से हंसने लगे

मायासूर :- वैसे मानना पड़ेगा इतने सालों से पीड़ा सहते हुए आ रहे हो लेकिन अभी तक तुमनें तुम्हारें पुत्र को कहा छुपाया है अभी तक हमे पता लगने नहीं दिया बहुत अच्छे पिता हो तुम लेकिन पति उतने भी अच्छे नहीं हो इतने सालो से अपनी पत्नी को पीटते हुए देख रहे हों लेकिन अभी तक तुमनें उसका दर्द मिटाने के लिए कुछ भी नहीं किया

त्रिलोकेश्वर :- अगर ऐसी बात है तो मेरे हाथ खोलकर मुझे बाहर निकाल फ़िर मे तूझे दिखाता हूँ कि मैं क्या हूँ

मायासुर :- अच्छी बात है लेकिन उसके लिए अभी समय नहीं है वैसे अगर तुम अपने पुत्र के बारे में बता दो फ़िर असुर राज़ से माफ़ी की भीख मांगो तो हो सकता है कि वो तुम्हे इस पीड़ा से मुक्ति दे दे

दमयन्ती :- तुम किस पीड़ा की बात कर रहे हों अरे तुम जो हमे मार रहे हो वो हमे पीड़ा नहीं दे रही है बल्कि तुम्हारें प्रति हमारे अंदर की क्रोधाग्नि को और भड़का रही है जिसका इस्तेमाल तुम तीनों की चिता जलाने के लिए किया जाएगा हाँ अगर तुम हमे छोड़ दो और माफी की भीख माँगों तो हो सकता है कि हम तुम्हारे अंत को कम दर्दनाक बनाए

मायासुर :- तुम्हरी ये हिम्मत की तुम हमसे ऐसे बात करो अब तुम्हारा अंत निश्चित है लेकिन उससे पहले तुम्हें इतनी पीड़ा दूँगा की तुम खुद मौत की भीख माँगों

इतना बोलकर वो वहाँ से निकलने लगा और तुरंत ही जो चाबुक जमीन पर गिरे हुए थे वो हवा में उड़ने लगे और उन मेसे बिजली की तरंग निकलने लगी और फिर उन दोनों के उपर लगातार उस चाबुक से वार होने लगा लेकिन वो दर्द से तड़पने के बदले हसने लगे और जोर से चिल्लाने लगे

दोनों :- (चिल्लाकर ) बदला लिया जाएगा हर जुल्म का हर घाव का तुम्हारी पूरी असुर प्रजाति मौत की भीख मांगेगी लेकिन उन्हें मिलेगा तो सिर्फ दर्द बेशुमार दर्द

तो वही मे ये सब सपने के माध्यम से देख पा रहा था लेकिन सब कुछ धुंधला था ना मुझे कुछ समझ आ रहा था और नाही मुझे कुछ साफ़ दिख रहा था परंतु जब उन दोनों पर चाबुक बरसने लगे तो ऐसा लगा कि वो चाबुक मुझ पर बरस रहे हैं जिससे मे एक चीख के साथ उठ गया

जैसे ही मेरी आँख खुली तो मेंने देखा कि मे अपने ही कमरे में था और पूरी तरह से पसीने से भिगा हुआ था और मेरी सासें भी फुल चुकी थी ऐसा लग रहा था कि कोई महा शक्तियों से भरा ऊर्जा स्त्रोत ने मेरा गला दबा कर रखा हो

अभी मे इस सब के बारे में सोच ही रहा था कि तभी मेरे घर के दरवाजे पर दस्तक होने लगी लेकिन मे अपने ख़यालों मे इतना गुम था कि मुझे कुछ सुनायीं ही नहीं दे रहा था और जब मेरे तरफ से कोई जवाब नहीं मिला तो बाहर वाले व्यक्ती ने तुरंत दरवाज़ा तोड़ दिया

ये व्यक्ती कोई और नहीं बल्कि जिस घर में मैं रहता हूं उसके मालिक है दिल के बड़े नेक है और शहर में अकेले ही है ये और इनका परिवार एक दिन साथ घूमने जा रहे थे तभी एक हादसे का शिकार हो गए और ये भी मारे जाते लेकिन इनको कुछ साधुओं ने बचा लिया और इनके उपचार के लिए इन्हें काल दृष्टि आश्रम ले गए और तबसे ही ये आश्रम के लिए वफादार है भले ही इन्हें आश्रम की असलियत नहीं पता लेकिन फिर भी यह आश्रम के द्वारा दिये गये हर आदेश का पालन करने के लिए हमेशा तैयार रहते हैं इनका नाम सत्येंद्र है

सत्येन्द्र :- क्या हुआ भद्रा तुम ऐसे चिल्लाए क्यु

में :- कुछ नहीं काका बस बुरा सपना था

सत्येन्द्र :- थोड़ा कम सोचा करो तो ऐसे सपने नहीं आयेंगे तुम फ्रेश हो जाओ मे नाश्ता लेके आता हूं

इतना बोलकर वो चले गए और उनके जाते ही मेंने तुरंत अपने आप को काबु किया और ध्यान लगाकर खुद को बड़ी मुश्किल से काबु किया और फिर नहाने चला गया और अभी फिलहाल कॉलेज मे कुछ खास नहीं था तो मे चल दिया काका के घर और वहां नाश्ता कर ने के बाद मे चल प़डा अपना उधार चुकाने

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आज के लिए इतना ही

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dhparikh

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अध्याय छह

इस वक़्त एक अंधेरी गुफा के बाहर एक के बाद एक 3 मायावी द्वार खुल गए उन तीनों द्वार से 3 लोग बाहर आए जिनमें 1 पुरुष था तो 2 स्त्रिया जब उन तीनों ने एक दूसरे को देखा तो वो दोनों स्त्रिया तुरंत उस पुरुष के सामने झुक गई

दोनों (एक साथ) :- असुर सेनापति मायासुर की जय हो

मायासुर :- उठ जाओ मोहिनी और कामिनी

जैसे ही उस मायासुर ने दोनों को उठने के लिए कहा वैसे ही उन तीनों के रूप बदल गए और फिर उसी आसुरी रूप में उस गुफा के अंदर चल दिये और जैसे ही वो अंदर जाने लगे तो उस अंधेरी गुफा में हल्का सा प्रकाश फैलने लगा और जैसे ही वो गुफा के अंतिम छोर पर पहुंचे तो

उन तीनों ने अपने हाथ आगे किए जिससे उन तीनों के हाथ में एक एक चाभी आ गई और जैसे ही woh चाबियां उनके हाथ मे प्रकट हुए तो वैसे ही वहां एक और मायावी द्वार खुल गया

जिसमें से वो तीनों पहुच गए किसी कैदखाने जैसी जगह पर जहा पर हर एक कमरे से केवल और केवल लोगों की दर्द से निकलती चीखें ही सुनायी दे रही थी और उन सब कमरों के आखिर में एक कमरा और था जिसमें से चीखें तो नही लेकिन 2 लोगों के रोने की आवाज सुनाई दे रही थी

जब वो तीनों उस कमरे के पास पहुंचे तो वो रोने की आवाज बंद हो गई और जैसे ही वो उस कमरे के सामने आए वैसे ही उस कमरे में उजाला फैल गया उस कमरे में कोई और नहीं बल्कि त्रिलोकेश्वर और दमयन्ती थे जिन्हें असुरों ने सालों पहले क़ैद किया था

वो दोनों अपने राक्षसी रूप में ही मौजूद थे दोनों को बाँध के रखा था दोनों के शरीर पर कई सारे घाव लगे हुए थे उन्हें देखने से ही लग रहा था कि उन्हें किसीने बहुत पीटा है उन्हीं के बगल में चाबुक भी जमीन पर पड़े हुए थे

मायासुर :- कैसे हो त्रिलोकेश्वर हमारी मेहमान नवाजी पसंद तो आ रही है ना

उसकी बात सुनकर दोनों भी सिर्फ उसे ग़ुस्से से घूरे जा रहे थे जो देखकर वो तीनों असुर ज़ोरों से हंसने लगे

मायासूर :- वैसे मानना पड़ेगा इतने सालों से पीड़ा सहते हुए आ रहे हो लेकिन अभी तक तुमनें तुम्हारें पुत्र को कहा छुपाया है अभी तक हमे पता लगने नहीं दिया बहुत अच्छे पिता हो तुम लेकिन पति उतने भी अच्छे नहीं हो इतने सालो से अपनी पत्नी को पीटते हुए देख रहे हों लेकिन अभी तक तुमनें उसका दर्द मिटाने के लिए कुछ भी नहीं किया

त्रिलोकेश्वर :- अगर ऐसी बात है तो मेरे हाथ खोलकर मुझे बाहर निकाल फ़िर मे तूझे दिखाता हूँ कि मैं क्या हूँ

मायासुर :- अच्छी बात है लेकिन उसके लिए अभी समय नहीं है वैसे अगर तुम अपने पुत्र के बारे में बता दो फ़िर असुर राज़ से माफ़ी की भीख मांगो तो हो सकता है कि वो तुम्हे इस पीड़ा से मुक्ति दे दे

दमयन्ती :- तुम किस पीड़ा की बात कर रहे हों अरे तुम जो हमे मार रहे हो वो हमे पीड़ा नहीं दे रही है बल्कि तुम्हारें प्रति हमारे अंदर की क्रोधाग्नि को और भड़का रही है जिसका इस्तेमाल तुम तीनों की चिता जलाने के लिए किया जाएगा हाँ अगर तुम हमे छोड़ दो और माफी की भीख माँगों तो हो सकता है कि हम तुम्हारे अंत को कम दर्दनाक बनाए

मायासुर :- तुम्हरी ये हिम्मत की तुम हमसे ऐसे बात करो अब तुम्हारा अंत निश्चित है लेकिन उससे पहले तुम्हें इतनी पीड़ा दूँगा की तुम खुद मौत की भीख माँगों

इतना बोलकर वो वहाँ से निकलने लगा और तुरंत ही जो चाबुक जमीन पर गिरे हुए थे वो हवा में उड़ने लगे और उन मेसे बिजली की तरंग निकलने लगी और फिर उन दोनों के उपर लगातार उस चाबुक से वार होने लगा लेकिन वो दर्द से तड़पने के बदले हसने लगे और जोर से चिल्लाने लगे

दोनों :- (चिल्लाकर ) बदला लिया जाएगा हर जुल्म का हर घाव का तुम्हारी पूरी असुर प्रजाति मौत की भीख मांगेगी लेकिन उन्हें मिलेगा तो सिर्फ दर्द बेशुमार दर्द

तो वही मे ये सब सपने के माध्यम से देख पा रहा था लेकिन सब कुछ धुंधला था ना मुझे कुछ समझ आ रहा था और नाही मुझे कुछ साफ़ दिख रहा था परंतु जब उन दोनों पर चाबुक बरसने लगे तो ऐसा लगा कि वो चाबुक मुझ पर बरस रहे हैं जिससे मे एक चीख के साथ उठ गया

जैसे ही मेरी आँख खुली तो मेंने देखा कि मे अपने ही कमरे में था और पूरी तरह से पसीने से भिगा हुआ था और मेरी सासें भी फुल चुकी थी ऐसा लग रहा था कि कोई महा शक्तियों से भरा ऊर्जा स्त्रोत ने मेरा गला दबा कर रखा हो

अभी मे इस सब के बारे में सोच ही रहा था कि तभी मेरे घर के दरवाजे पर दस्तक होने लगी लेकिन मे अपने ख़यालों मे इतना गुम था कि मुझे कुछ सुनायीं ही नहीं दे रहा था और जब मेरे तरफ से कोई जवाब नहीं मिला तो बाहर वाले व्यक्ती ने तुरंत दरवाज़ा तोड़ दिया

ये व्यक्ती कोई और नहीं बल्कि जिस घर में मैं रहता हूं उसके मालिक है दिल के बड़े नेक है और शहर में अकेले ही है ये और इनका परिवार एक दिन साथ घूमने जा रहे थे तभी एक हादसे का शिकार हो गए और ये भी मारे जाते लेकिन इनको कुछ साधुओं ने बचा लिया और इनके उपचार के लिए इन्हें काल दृष्टि आश्रम ले गए और तबसे ही ये आश्रम के लिए वफादार है भले ही इन्हें आश्रम की असलियत नहीं पता लेकिन फिर भी यह आश्रम के द्वारा दिये गये हर आदेश का पालन करने के लिए हमेशा तैयार रहते हैं इनका नाम सत्येंद्र है

सत्येन्द्र :- क्या हुआ भद्रा तुम ऐसे चिल्लाए क्यु

में :- कुछ नहीं काका बस बुरा सपना था

सत्येन्द्र :- थोड़ा कम सोचा करो तो ऐसे सपने नहीं आयेंगे तुम फ्रेश हो जाओ मे नाश्ता लेके आता हूं

इतना बोलकर वो चले गए और उनके जाते ही मेंने तुरंत अपने आप को काबु किया और ध्यान लगाकर खुद को बड़ी मुश्किल से काबु किया और फिर नहाने चला गया और अभी फिलहाल कॉलेज मे कुछ खास नहीं था तो मे चल दिया काका के घर और वहां नाश्ता कर ने के बाद मे चल प़डा अपना उधार चुकाने

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parkas

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अध्याय छह

इस वक़्त एक अंधेरी गुफा के बाहर एक के बाद एक 3 मायावी द्वार खुल गए उन तीनों द्वार से 3 लोग बाहर आए जिनमें 1 पुरुष था तो 2 स्त्रिया जब उन तीनों ने एक दूसरे को देखा तो वो दोनों स्त्रिया तुरंत उस पुरुष के सामने झुक गई

दोनों (एक साथ) :- असुर सेनापति मायासुर की जय हो

मायासुर :- उठ जाओ मोहिनी और कामिनी

जैसे ही उस मायासुर ने दोनों को उठने के लिए कहा वैसे ही उन तीनों के रूप बदल गए और फिर उसी आसुरी रूप में उस गुफा के अंदर चल दिये और जैसे ही वो अंदर जाने लगे तो उस अंधेरी गुफा में हल्का सा प्रकाश फैलने लगा और जैसे ही वो गुफा के अंतिम छोर पर पहुंचे तो

उन तीनों ने अपने हाथ आगे किए जिससे उन तीनों के हाथ में एक एक चाभी आ गई और जैसे ही woh चाबियां उनके हाथ मे प्रकट हुए तो वैसे ही वहां एक और मायावी द्वार खुल गया

जिसमें से वो तीनों पहुच गए किसी कैदखाने जैसी जगह पर जहा पर हर एक कमरे से केवल और केवल लोगों की दर्द से निकलती चीखें ही सुनायी दे रही थी और उन सब कमरों के आखिर में एक कमरा और था जिसमें से चीखें तो नही लेकिन 2 लोगों के रोने की आवाज सुनाई दे रही थी

जब वो तीनों उस कमरे के पास पहुंचे तो वो रोने की आवाज बंद हो गई और जैसे ही वो उस कमरे के सामने आए वैसे ही उस कमरे में उजाला फैल गया उस कमरे में कोई और नहीं बल्कि त्रिलोकेश्वर और दमयन्ती थे जिन्हें असुरों ने सालों पहले क़ैद किया था

वो दोनों अपने राक्षसी रूप में ही मौजूद थे दोनों को बाँध के रखा था दोनों के शरीर पर कई सारे घाव लगे हुए थे उन्हें देखने से ही लग रहा था कि उन्हें किसीने बहुत पीटा है उन्हीं के बगल में चाबुक भी जमीन पर पड़े हुए थे

मायासुर :- कैसे हो त्रिलोकेश्वर हमारी मेहमान नवाजी पसंद तो आ रही है ना

उसकी बात सुनकर दोनों भी सिर्फ उसे ग़ुस्से से घूरे जा रहे थे जो देखकर वो तीनों असुर ज़ोरों से हंसने लगे

मायासूर :- वैसे मानना पड़ेगा इतने सालों से पीड़ा सहते हुए आ रहे हो लेकिन अभी तक तुमनें तुम्हारें पुत्र को कहा छुपाया है अभी तक हमे पता लगने नहीं दिया बहुत अच्छे पिता हो तुम लेकिन पति उतने भी अच्छे नहीं हो इतने सालो से अपनी पत्नी को पीटते हुए देख रहे हों लेकिन अभी तक तुमनें उसका दर्द मिटाने के लिए कुछ भी नहीं किया

त्रिलोकेश्वर :- अगर ऐसी बात है तो मेरे हाथ खोलकर मुझे बाहर निकाल फ़िर मे तूझे दिखाता हूँ कि मैं क्या हूँ

मायासुर :- अच्छी बात है लेकिन उसके लिए अभी समय नहीं है वैसे अगर तुम अपने पुत्र के बारे में बता दो फ़िर असुर राज़ से माफ़ी की भीख मांगो तो हो सकता है कि वो तुम्हे इस पीड़ा से मुक्ति दे दे

दमयन्ती :- तुम किस पीड़ा की बात कर रहे हों अरे तुम जो हमे मार रहे हो वो हमे पीड़ा नहीं दे रही है बल्कि तुम्हारें प्रति हमारे अंदर की क्रोधाग्नि को और भड़का रही है जिसका इस्तेमाल तुम तीनों की चिता जलाने के लिए किया जाएगा हाँ अगर तुम हमे छोड़ दो और माफी की भीख माँगों तो हो सकता है कि हम तुम्हारे अंत को कम दर्दनाक बनाए

मायासुर :- तुम्हरी ये हिम्मत की तुम हमसे ऐसे बात करो अब तुम्हारा अंत निश्चित है लेकिन उससे पहले तुम्हें इतनी पीड़ा दूँगा की तुम खुद मौत की भीख माँगों

इतना बोलकर वो वहाँ से निकलने लगा और तुरंत ही जो चाबुक जमीन पर गिरे हुए थे वो हवा में उड़ने लगे और उन मेसे बिजली की तरंग निकलने लगी और फिर उन दोनों के उपर लगातार उस चाबुक से वार होने लगा लेकिन वो दर्द से तड़पने के बदले हसने लगे और जोर से चिल्लाने लगे

दोनों :- (चिल्लाकर ) बदला लिया जाएगा हर जुल्म का हर घाव का तुम्हारी पूरी असुर प्रजाति मौत की भीख मांगेगी लेकिन उन्हें मिलेगा तो सिर्फ दर्द बेशुमार दर्द

तो वही मे ये सब सपने के माध्यम से देख पा रहा था लेकिन सब कुछ धुंधला था ना मुझे कुछ समझ आ रहा था और नाही मुझे कुछ साफ़ दिख रहा था परंतु जब उन दोनों पर चाबुक बरसने लगे तो ऐसा लगा कि वो चाबुक मुझ पर बरस रहे हैं जिससे मे एक चीख के साथ उठ गया

जैसे ही मेरी आँख खुली तो मेंने देखा कि मे अपने ही कमरे में था और पूरी तरह से पसीने से भिगा हुआ था और मेरी सासें भी फुल चुकी थी ऐसा लग रहा था कि कोई महा शक्तियों से भरा ऊर्जा स्त्रोत ने मेरा गला दबा कर रखा हो

अभी मे इस सब के बारे में सोच ही रहा था कि तभी मेरे घर के दरवाजे पर दस्तक होने लगी लेकिन मे अपने ख़यालों मे इतना गुम था कि मुझे कुछ सुनायीं ही नहीं दे रहा था और जब मेरे तरफ से कोई जवाब नहीं मिला तो बाहर वाले व्यक्ती ने तुरंत दरवाज़ा तोड़ दिया

ये व्यक्ती कोई और नहीं बल्कि जिस घर में मैं रहता हूं उसके मालिक है दिल के बड़े नेक है और शहर में अकेले ही है ये और इनका परिवार एक दिन साथ घूमने जा रहे थे तभी एक हादसे का शिकार हो गए और ये भी मारे जाते लेकिन इनको कुछ साधुओं ने बचा लिया और इनके उपचार के लिए इन्हें काल दृष्टि आश्रम ले गए और तबसे ही ये आश्रम के लिए वफादार है भले ही इन्हें आश्रम की असलियत नहीं पता लेकिन फिर भी यह आश्रम के द्वारा दिये गये हर आदेश का पालन करने के लिए हमेशा तैयार रहते हैं इनका नाम सत्येंद्र है

सत्येन्द्र :- क्या हुआ भद्रा तुम ऐसे चिल्लाए क्यु

में :- कुछ नहीं काका बस बुरा सपना था

सत्येन्द्र :- थोड़ा कम सोचा करो तो ऐसे सपने नहीं आयेंगे तुम फ्रेश हो जाओ मे नाश्ता लेके आता हूं

इतना बोलकर वो चले गए और उनके जाते ही मेंने तुरंत अपने आप को काबु किया और ध्यान लगाकर खुद को बड़ी मुश्किल से काबु किया और फिर नहाने चला गया और अभी फिलहाल कॉलेज मे कुछ खास नहीं था तो मे चल दिया काका के घर और वहां नाश्ता कर ने के बाद मे चल प़डा अपना उधार चुकाने

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आज के लिए इतना ही

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Bahut hi shaandar update diya hai VAJRADHIKARI bhai....
Nice and lovely update....
 

VAJRADHIKARI

Hello dosto
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144
अध्याय सातवा

जब सुबह शांति की नींद खुली तो उसे कल जो भी हुआ वो फिर एक बार याद आ गया जिसके बारे में सोचने से ही उसके चेहरे पर मुस्कान आ गई उसी मुस्कान के साथ वो धीरे से अपने बिस्तर पर से उठी और फ्रेश होने बाथरुम की तरफ जाने लगी

तो वही जब वो नहा रही थी तब उसका हाथ जब उसके स्थानो के उपर आ गया तो उसकी एक मादक सिसकारी निकल आयी और धीरे से उसने अपनी आंखे बंद की और धीरे-धीरे सिसकते हुए अपने स्तनों को मसलने लगी

जिससे उन्हें भी अब मदहोशी चढ़ने लगी और ऐसे ही अपने स्तन मसलते हुए उनका हाथ उनके जांघों के यहां आ गया जहां पर कल मेंने हाथ रखा था उन्हें उठाने के लिए और अपने हाथ को भी उसी जगह पर रख कर उन्हें ऐसा लगने लगा कि वो मेरा ही हाथ है

जिससे उनकी मदहोशी अब ठरक मे बदल गई थी और वो अब अपने हाथ को मेरा हाथ समझते हुए वो उसे धीरे-धीरे अपने चुत की तरफ़ ले जाने लगी और जैसे ही उनका हाथ उनके चुत के दाने से टकराया वैसे ही वो सिसकारी लेते हुए झरने लगीं

और जब वो झरने लगीं तो उनका शरीर ऐसे काँपने लगा कि जैसे उनके बदन को किसी ने बिजली का झटका दे दिया था जिससे वो वहीं फर्श पर बैठ गयी और हांफने लगीं

और जब उन्होंने अपने इस चरमसुख को अनुभव किया तो उनकी आखें अपने आप बंद हो गई और जैसे ही उन्होंने अपनी आखें बंद की वैसे उनके आखों के सामने कल की ही घटना आने लगी थी जिससे उनके चेहरे पर शर्मीली मुस्कान छा गई

जिसके बाद वो उठीं और फ्रेश होके मेरे घर की तरफ निकल पडी लेकिन तब तक मे वहां से निकल चुका था लेकिन उनकी मुलाकात सत्येंद्र काका से हुई जिन्होंने उन्हें मेरे आज सुबह के किस्से के बारे में बता दिया जिससे वो और चिंता मे आ गई

तो वहीं इस वक्त मे एक बड़ी बिल्डिंग के सामने खड़ा था ये बिल्डिंग किसी और की नहीं बल्कि गुरु नंदी (शैलेश) के ऑफिस की इमारत थी मेंने दो पल उस इमारत को देखने के बाद अपने मन में चल रहे विचारों को शांत किया और अंदर की तरफ चल दिया

जब मे उनके कैबिन के बाहर पहुंचा तो अंदर से मुझे कुछ आवाजें सुनायी दे रही थी ऐसा लग रहा था कि जैसे वो अपने बेटे से बात कर रहे हैं और अभी ग़ुस्से मे हैं

वही जब अंदर सन्नाटा हुआ तो मे अंदर चला गया लेकिन अंदर गुरु नंदी के अलावा कोई और नहीं था शायद वो फोन पर बात कर रहे थे अभीं मे कैबिन के गेट पर था कि तभी उनका ध्यान मेरे उपर गया

गुरु नंदी :- अरे भद्रा बेटा तुम आज यहा कैसे

में :- प्रणाम गुरु नंदी

शैलेश :- अरे यहां पर मुझे गुरु नंदी मत बुलाओ मुझे तुम अंकल कह कर बुलाओ

में :- ठीक है अंकल वैसे मे यहा आया था आपसे एक मदद मांगने

शैलेश :- अरे बेटा मेने तुम्हें पहले ही कहा था कि तुम मेरे परिवार जैसे हो इसीलिए ये मदद मत माँगों कल तुम्हारा जन्मदिन था तो उसका तोहफा माँगों

में :- शायद मे कुछ ज्यादा ही मांग लू इसीलिए बुरा मत मानना आपने s3 होटल (प्रिया के पिता के होटल का नाम) के बारे में सुना ही होगा

शैलेश :- हाँ सुना है और वो तो पिछले कुछ दिनों से हमारे साथ डील करने के लिए कोशिश कर रहा हैं

में :- मुझे उसी के बारे में कुछ बात करनी है मे चाहता हूं कि आप उनके साथ डील को फाइनल कर दे

शैलेश :- अच्छा और अचानक उनपर ये एहसान क्यु

में :- उनका उधार है मेरे पर बस वो चुकाना है

शैलेश :- ठीक है वैसे भी उनके साथ डील करना हमारे लिए भी अच्छा मुनाफा कमाने के लिए अवसर था और अब तुमने सिफारिश डाल दी है तो उनसे डील फाइनल होने से कोई रोक नहीं सकता

में :- धन्यवाद अंकल आप इस मदद के बदले भविष्य में कुछ भी मांग सकते हो मे मना नहीं करूंगा

शैलेश :- अरे ये कोई मदद नहीं बल्कि तुम्हारा जन्मदिन का तोहफा है समझे और हाँ उस दिग्विजय से भी जाकर मिल लो जब शहर आए हों उससे तुम मिले भी नहीं हो वो गुस्सा है तुमसे

मे :- ठीक है उनसे भी मिल लूँगा अब मे चलता हूं

इतना बोलकर मे वहाँ से निकल गया

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आज के लिए इतना ही

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sunoanuj

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Bahut hi sunder or chota update tha mitr .....
 

big king

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अध्याय सातवा

जब सुबह शांति की नींद खुली तो उसे कल जो भी हुआ वो फिर एक बार याद आ गया जिसके बारे में सोचने से ही उसके चेहरे पर मुस्कान आ गई उसी मुस्कान के साथ वो धीरे से अपने बिस्तर पर से उठी और फ्रेश होने बाथरुम की तरफ जाने लगी

तो वही जब वो नहा रही थी तब उसका हाथ जब उसके स्थानो के उपर आ गया तो उसकी एक मादक सिसकारी निकल आयी और धीरे से उसने अपनी आंखे बंद की और धीरे-धीरे सिसकते हुए अपने स्तनों को मसलने लगी

जिससे उन्हें भी अब मदहोशी चढ़ने लगी और ऐसे ही अपने स्तन मसलते हुए उनका हाथ उनके जांघों के यहां आ गया जहां पर कल मेंने हाथ रखा था उन्हें उठाने के लिए और अपने हाथ को भी उसी जगह पर रख कर उन्हें ऐसा लगने लगा कि वो मेरा ही हाथ है

जिससे उनकी मदहोशी अब ठरक मे बदल गई थी और वो अब अपने हाथ को मेरा हाथ समझते हुए वो उसे धीरे-धीरे अपने चुत की तरफ़ ले जाने लगी और जैसे ही उनका हाथ उनके चुत के दाने से टकराया वैसे ही वो सिसकारी लेते हुए झरने लगीं

और जब वो झरने लगीं तो उनका शरीर ऐसे काँपने लगा कि जैसे उनके बदन को किसी ने बिजली का झटका दे दिया था जिससे वो वहीं फर्श पर बैठ गयी और हांफने लगीं

और जब उन्होंने अपने इस चरमसुख को अनुभव किया तो उनकी आखें अपने आप बंद हो गई और जैसे ही उन्होंने अपनी आखें बंद की वैसे उनके आखों के सामने कल की ही घटना आने लगी थी जिससे उनके चेहरे पर शर्मीली मुस्कान छा गई

जिसके बाद वो उठीं और फ्रेश होके मेरे घर की तरफ निकल पडी लेकिन तब तक मे वहां से निकल चुका था लेकिन उनकी मुलाकात सत्येंद्र काका से हुई जिन्होंने उन्हें मेरे आज सुबह के किस्से के बारे में बता दिया जिससे वो और चिंता मे आ गई

तो वहीं इस वक्त मे एक बड़ी बिल्डिंग के सामने खड़ा था ये बिल्डिंग किसी और की नहीं बल्कि गुरु नंदी (शैलेश) के ऑफिस की इमारत थी मेंने दो पल उस इमारत को देखने के बाद अपने मन में चल रहे विचारों को शांत किया और अंदर की तरफ चल दिया

जब मे उनके कैबिन के बाहर पहुंचा तो अंदर से मुझे कुछ आवाजें सुनायी दे रही थी ऐसा लग रहा था कि जैसे वो अपने बेटे से बात कर रहे हैं और अभी ग़ुस्से मे हैं

वही जब अंदर सन्नाटा हुआ तो मे अंदर चला गया लेकिन अंदर गुरु नंदी के अलावा कोई और नहीं था शायद वो फोन पर बात कर रहे थे अभीं मे कैबिन के गेट पर था कि तभी उनका ध्यान मेरे उपर गया

गुरु नंदी :- अरे भद्रा बेटा तुम आज यहा कैसे

में :- प्रणाम गुरु नंदी

शैलेश :- अरे यहां पर मुझे गुरु नंदी मत बुलाओ मुझे तुम अंकल कह कर बुलाओ

में :- ठीक है अंकल वैसे मे यहा आया था आपसे एक मदद मांगने

शैलेश :- अरे बेटा मेने तुम्हें पहले ही कहा था कि तुम मेरे परिवार जैसे हो इसीलिए ये मदद मत माँगों कल तुम्हारा जन्मदिन था तो उसका तोहफा माँगों

में :- शायद मे कुछ ज्यादा ही मांग लू इसीलिए बुरा मत मानना आपने s3 होटल (प्रिया के पिता के होटल का नाम) के बारे में सुना ही होगा

शैलेश :- हाँ सुना है और वो तो पिछले कुछ दिनों से हमारे साथ डील करने के लिए कोशिश कर रहा हैं

में :- मुझे उसी के बारे में कुछ बात करनी है मे चाहता हूं कि आप उनके साथ डील को फाइनल कर दे

शैलेश :- अच्छा और अचानक उनपर ये एहसान क्यु

में :- उनका उधार है मेरे पर बस वो चुकाना है

शैलेश :- ठीक है वैसे भी उनके साथ डील करना हमारे लिए भी अच्छा मुनाफा कमाने के लिए अवसर था और अब तुमने सिफारिश डाल दी है तो उनसे डील फाइनल होने से कोई रोक नहीं सकता

में :- धन्यवाद अंकल आप इस मदद के बदले भविष्य में कुछ भी मांग सकते हो मे मना नहीं करूंगा

शैलेश :- अरे ये कोई मदद नहीं बल्कि तुम्हारा जन्मदिन का तोहफा है समझे और हाँ उस दिग्विजय से भी जाकर मिल लो जब शहर आए हों उससे तुम मिले भी नहीं हो वो गुस्सा है तुमसे

मे :- ठीक है उनसे भी मिल लूँगा अब मे चलता हूं

इतना बोलकर मे वहाँ से निकल गया

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आज के लिए इतना ही

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Bhai update bahot jabardast tha par bahot chhota tha bhai thora bara update do naa parne me bahot maja aayga please try karo dost bara update ka. Next update ka intajaar rahegaa bhai 👍👍👍👍👍👍👍👍👍👍👌👌👌👌👌👌👌👌
 
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