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Fantasy ब्रह्माराक्षस

park

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अध्याय सैंतालिस

इस वक्त काल विजय आश्रम में हर तरफ अफरा तफरी का माहौल बन गया था बहुत सालों बाद आज तीनो आश्रम एक हो कर कार्य कर रहे थे तीनो आश्रमों ने अपने अपने कार्य निर्धारित कर लिए थे

सबसे पहले काल दृष्टि आश्रम उसने अपने सभी शिष्यों और गुरुओं को पूरे धरती में अलग अलग जगह फैला कर जितने भी अच्छाई और सच्चाई के पक्ष में योध्दा थे उनको एकत्रित करने और कालविजय आश्रम लाने के लिए भेज दिया था

तो वही काल दिशा आश्रम उसने सभी योध्दाओ के लिए अस्त्रों और कुटियाओं का निर्माण शुरू कर दिया था और साथ ही मे वो जंगल जंगल घूम कर जो भी औषधि वनस्पति उन्हे दिखती उसे एकत्रित करके आश्रम ले आते

तो वही काल विजय आश्रम 3 भाग में बट गया था


पहला भाग जख्मी गुरुओं की देखभाल और उपचार में शांति की मदद कर रहे थे

तो दूसरा भाग काल दृष्टि और दिशा आश्रम के बलवान योध्दा थे उन्हे मायावी युद्ध प्रशिक्षण देकर तैयार कर रहे थे

तो तीसरा भाग शहर में जो उन सबके परिवार थे उनकी सुरक्षा में जुट गये थे

तो वही इन सबका मार्गदर्शन और नेतृत्व खुद गुरु सिँह (दिग्विजय) और गुरु वानर (गौरव) कर रहे थे तो वही शांति और प्रिया भद्रा और बाकियों के इलाज मे लगे हुए थे

यही सब मे इनका पुरा एक दिन निकल गया था और इस एक दिन में भद्रा के अलावा सबके हालत सुधर गए थे जिससे सब खुश भी थे और चिंता मे भी थे

तो वही पाताल लोक के एक अंधेरी गुफा में इस वक़्त एक बूढ़ा असुर एक बड़ी सी मूर्ति के सामने बैठ कर की हवन कर रहा था


उसके हर एक आहुति से हवन कुंड की अग्नि उस गुफा के छत से जा टकरा रही थी और अभी वो असुर अपने मे व्यस्त था कि तभी उस गुफा में मायासुर आया

उसकी हालत देखकर लग रहा था जैसे कि वो उस कैदखाने से सीधा यही आ गया है और जैसे ही मायासुर उस हवनकुंड के पास पहुँचा तो वैसे ही उस कुंड की अग्नि अपने आप बुझ गयी

जिससे वो असुर दंग रह गया और जब उस बूढ़े असुर ने मायासुर को देखा तो उसकी आँखे क्रोध से लाल हो गयी थी और वो मायासुर की तरफ देखकर गरज पड़ा

असुर :- मायासुर ये क्या हाल बना रखा है तुमने अपना और तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई इस समय यहाँ आने की पता नही है क्या मे यहाँ पर अपनी साधना कर रहा हूँ तुमने पूरी साधना पर पानी डाल दिया

मायासुर:- माफ करना असुर गुरु लेकिन बात ही ऐसी है कि मे खुदको रोक न पाया

असुर :- ऐसी क्या बात है क्या तुमने उन सप्तऋषियों को मेरे दिये हुए श्रपित कवचों मे कैद कर लिया है क्या और सारे महासुरों के प्रतिबिंब कहाँ है

मायासुर :- वो सारे प्रतिबिंब मारे गये

जब मायासुर ने ये कहा तो उस असुर के पैरों तले से जमीन खिसक गयी और वो तुरंत गुस्से मे मायासुर को बोलने लगा

असुर :- मैने तुम्हे पहले ही कहाँ था ना की उस राघवेंद्र (महागुरु) को कालस्त्र का इस्तेमाल करने से पहले कवच मे कैद कर देना

मायासुर :- मैने आपके कहे मुताबिक ही किया था असुर गुरु लेकिन उस बालक ने आकर सब खराब कर दिया

उसके बाद मायासुर ने उस असुर गुरु को सारी बाते बता दी जिसे सुनकर असुर गुरु भी दंग रह गया

असुर:- क्या कह रहे हो तुम जानते हो न महा धारक का सामने आकर युद्ध करने का अर्थ समझते हो अब वो समय ज्यादा दूर नही जब अच्छाई और बुराई का महासंग्राम आरंभ होगा

मायासुर:- उससे मुझे फरक नहीं पड़ता मुझे आप ये बताओ की जो मैने आपसे माँगा था वो आपने किया की नही

असुर:- नही अब हम ऐसा कुछ नहीं करने वाले अगर जो तुम बोल रहे हो वैसा हुआ तो समस्त संसार में एक ऐसा युद्ध आरंभ हो जायेगा जिसके कारण हर जगह केवल विनाश ही विनाश होगा जिसमे क्या इंसान और क्या असुर सब खतम हो जायेगा

जब उस असुर गुरु ने ये कहा तो मायासुर का पारा पुरा चढ़ गया और उसने तुरंत ही उस असुर गुरु का गला पकड़ कर हवा में उठा लिया

मायासुर:- तु मुझे मना कर रहा है शायद तुम भूल गए की कैसे तुम एक ढोंगी से असुर कुल के गुरु बने तुम्हारा मान सम्मान ज्ञान सब इस मायासुर के माया के नतीजा है

इतना बोलके मायासुर ने उस असुर को जमीन पर फेक दिया

मायासुर:- आज अगर मेरे पास मेरी शक्तियाँ होती तो मुझे तुम्हारी कोई जरूरत नही थी ठीक है अगर तुम्हे नही करना है तो मे कोई दूसरा रास्ता ढूंढ लूँगा बस तुम उस शस्त्र का आवहान करो जिससे हर असुर को मारा जा सकता हैं

असुर :- अब तुम्हे वो अस्त्र क्यों चाहिए तुम नही जानते उसका आवहान करना पाताल लोक के नियमों के खिलाफ है

असुर की बात सुनने के बाद तुरंत ही मायासुर ने अपनी तलवार निकाल कर सीधा उसका गला काट दिया जिससे उस गुरु की चीख निकल गयी

परंतु अगले ही पल उसका सर फिर से उसके धड़ पर था और जब उस गुरु ने ये महसूस किया तो डर के मारे उसकी साँसे तेज हो गयी थी उसकी आँखों में केवल भय था मायासुर का भय

मायासुर:- अभी तो सिर्फ मैने अपनी माया से तुम्हारे सर कटने का छलावा बनाया था उसी मे तुम्हारी ये हालत हो गयी सोचो अगर तुम ऐसे ही मुझे टॉकते रहे तो असल मे मै तुम्हारे साथ क्या करूँगा बाकी तुम समझदार हो

ये बोलके मायासुर वहा से निकल गया और पीछे रह गया डर से काँपता हुआ असुर गुरु

तो वही दूसरी तरफ कालविजय आश्रम में महा गुरु और बाकी गुरुओं को होश आ गया था शिवाये भद्रा के

तो वही जब सबको होश आया तो वो सभी युद्ध की तैयारियां होते देखकर दंग हो गए जिसके बाद दिग्विजय ने उन्हे सारे हालातों से अवगत कराया और सब सुनकर वो सभी भी आने वाले युद्ध की कल्पना करने लगे

जिसके बाद उन तीनों गुरुओं ने अपने अपने अस्त्रों का आवहान किया परंतु उनके लाख कोशिशों के बाद भी अग्नि जल और काल अस्त्र उन्हे शक्तियाँ प्रदान नही कर रहे थे और न ही वो पहले जैसे चमक रहे थे

ऐसा लग रहा था कि मानो उनमे कोई शक्तियाँ है ही नही वो शक्तिहीन हो गए है जो देखकर सारे अस्त्र धारक दंग हो गए थे और साथ मे ही अब आगे के लिए सोच कर उन्हे डर भी लग रहा था कि

अब जब महायुद्ध आरंभ होगा तब इस दुनिया को बचाने के लिए सबसे बड़ी शक्ति ही उनके पास नही होगी और यही सब सोचकर ये बात उन्होंने अपने तक ही सीमित रखी


आश्रम के किसी भी अन्य सदस्य को ये बात नही बताई जिससे सबका विश्वास टूटे न उनके हौसले की जगह भय न लेले और फिर गुरु अग्नि ने भी मस्तिष्क तरंगों के जरिये अपने बचे कुचे शिष्यों को भी काल विजय आश्रम बुला लिया

तो वही मायासुर असुर गुरु के गुफा से निकल कर सीधा अपने महल मे चला गया और अपने महल के छत पर वो यहाँ से वहा टहलने लगा जैसे कि किसी बड़ी परेशानी का हल ढूंढ रहा हो

और तुरंत ही वो टहलते हुए रुक गया उसके चेहरे पर एक जंग जितने वाली मुस्कान आ गयी थी और फिर वो तुरंत अपने घर से गायब हो कर कही चला गया

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आज के लिए इतना ही

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Nice and superb update....
 
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parkas

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सबसे पहले काल दृष्टि आश्रम उसने अपने सभी शिष्यों और गुरुओं को पूरे धरती में अलग अलग जगह फैला कर जितने भी अच्छाई और सच्चाई के पक्ष में योध्दा थे उनको एकत्रित करने और कालविजय आश्रम लाने के लिए भेज दिया था

तो वही काल दिशा आश्रम उसने सभी योध्दाओ के लिए अस्त्रों और कुटियाओं का निर्माण शुरू कर दिया था और साथ ही मे वो जंगल जंगल घूम कर जो भी औषधि वनस्पति उन्हे दिखती उसे एकत्रित करके आश्रम ले आते

तो वही काल विजय आश्रम 3 भाग में बट गया था


पहला भाग जख्मी गुरुओं की देखभाल और उपचार में शांति की मदद कर रहे थे

तो दूसरा भाग काल दृष्टि और दिशा आश्रम के बलवान योध्दा थे उन्हे मायावी युद्ध प्रशिक्षण देकर तैयार कर रहे थे

तो तीसरा भाग शहर में जो उन सबके परिवार थे उनकी सुरक्षा में जुट गये थे

तो वही इन सबका मार्गदर्शन और नेतृत्व खुद गुरु सिँह (दिग्विजय) और गुरु वानर (गौरव) कर रहे थे तो वही शांति और प्रिया भद्रा और बाकियों के इलाज मे लगे हुए थे

यही सब मे इनका पुरा एक दिन निकल गया था और इस एक दिन में भद्रा के अलावा सबके हालत सुधर गए थे जिससे सब खुश भी थे और चिंता मे भी थे

तो वही पाताल लोक के एक अंधेरी गुफा में इस वक़्त एक बूढ़ा असुर एक बड़ी सी मूर्ति के सामने बैठ कर की हवन कर रहा था


उसके हर एक आहुति से हवन कुंड की अग्नि उस गुफा के छत से जा टकरा रही थी और अभी वो असुर अपने मे व्यस्त था कि तभी उस गुफा में मायासुर आया

उसकी हालत देखकर लग रहा था जैसे कि वो उस कैदखाने से सीधा यही आ गया है और जैसे ही मायासुर उस हवनकुंड के पास पहुँचा तो वैसे ही उस कुंड की अग्नि अपने आप बुझ गयी

जिससे वो असुर दंग रह गया और जब उस बूढ़े असुर ने मायासुर को देखा तो उसकी आँखे क्रोध से लाल हो गयी थी और वो मायासुर की तरफ देखकर गरज पड़ा

असुर :- मायासुर ये क्या हाल बना रखा है तुमने अपना और तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई इस समय यहाँ आने की पता नही है क्या मे यहाँ पर अपनी साधना कर रहा हूँ तुमने पूरी साधना पर पानी डाल दिया

मायासुर:- माफ करना असुर गुरु लेकिन बात ही ऐसी है कि मे खुदको रोक न पाया

असुर :- ऐसी क्या बात है क्या तुमने उन सप्तऋषियों को मेरे दिये हुए श्रपित कवचों मे कैद कर लिया है क्या और सारे महासुरों के प्रतिबिंब कहाँ है

मायासुर :- वो सारे प्रतिबिंब मारे गये

जब मायासुर ने ये कहा तो उस असुर के पैरों तले से जमीन खिसक गयी और वो तुरंत गुस्से मे मायासुर को बोलने लगा

असुर :- मैने तुम्हे पहले ही कहाँ था ना की उस राघवेंद्र (महागुरु) को कालस्त्र का इस्तेमाल करने से पहले कवच मे कैद कर देना

मायासुर :- मैने आपके कहे मुताबिक ही किया था असुर गुरु लेकिन उस बालक ने आकर सब खराब कर दिया

उसके बाद मायासुर ने उस असुर गुरु को सारी बाते बता दी जिसे सुनकर असुर गुरु भी दंग रह गया

असुर:- क्या कह रहे हो तुम जानते हो न महा धारक का सामने आकर युद्ध करने का अर्थ समझते हो अब वो समय ज्यादा दूर नही जब अच्छाई और बुराई का महासंग्राम आरंभ होगा

मायासुर:- उससे मुझे फरक नहीं पड़ता मुझे आप ये बताओ की जो मैने आपसे माँगा था वो आपने किया की नही

असुर:- नही अब हम ऐसा कुछ नहीं करने वाले अगर जो तुम बोल रहे हो वैसा हुआ तो समस्त संसार में एक ऐसा युद्ध आरंभ हो जायेगा जिसके कारण हर जगह केवल विनाश ही विनाश होगा जिसमे क्या इंसान और क्या असुर सब खतम हो जायेगा

जब उस असुर गुरु ने ये कहा तो मायासुर का पारा पुरा चढ़ गया और उसने तुरंत ही उस असुर गुरु का गला पकड़ कर हवा में उठा लिया

मायासुर:- तु मुझे मना कर रहा है शायद तुम भूल गए की कैसे तुम एक ढोंगी से असुर कुल के गुरु बने तुम्हारा मान सम्मान ज्ञान सब इस मायासुर के माया के नतीजा है

इतना बोलके मायासुर ने उस असुर को जमीन पर फेक दिया

मायासुर:- आज अगर मेरे पास मेरी शक्तियाँ होती तो मुझे तुम्हारी कोई जरूरत नही थी ठीक है अगर तुम्हे नही करना है तो मे कोई दूसरा रास्ता ढूंढ लूँगा बस तुम उस शस्त्र का आवहान करो जिससे हर असुर को मारा जा सकता हैं

असुर :- अब तुम्हे वो अस्त्र क्यों चाहिए तुम नही जानते उसका आवहान करना पाताल लोक के नियमों के खिलाफ है

असुर की बात सुनने के बाद तुरंत ही मायासुर ने अपनी तलवार निकाल कर सीधा उसका गला काट दिया जिससे उस गुरु की चीख निकल गयी

परंतु अगले ही पल उसका सर फिर से उसके धड़ पर था और जब उस गुरु ने ये महसूस किया तो डर के मारे उसकी साँसे तेज हो गयी थी उसकी आँखों में केवल भय था मायासुर का भय

मायासुर:- अभी तो सिर्फ मैने अपनी माया से तुम्हारे सर कटने का छलावा बनाया था उसी मे तुम्हारी ये हालत हो गयी सोचो अगर तुम ऐसे ही मुझे टॉकते रहे तो असल मे मै तुम्हारे साथ क्या करूँगा बाकी तुम समझदार हो

ये बोलके मायासुर वहा से निकल गया और पीछे रह गया डर से काँपता हुआ असुर गुरु

तो वही दूसरी तरफ कालविजय आश्रम में महा गुरु और बाकी गुरुओं को होश आ गया था शिवाये भद्रा के

तो वही जब सबको होश आया तो वो सभी युद्ध की तैयारियां होते देखकर दंग हो गए जिसके बाद दिग्विजय ने उन्हे सारे हालातों से अवगत कराया और सब सुनकर वो सभी भी आने वाले युद्ध की कल्पना करने लगे

जिसके बाद उन तीनों गुरुओं ने अपने अपने अस्त्रों का आवहान किया परंतु उनके लाख कोशिशों के बाद भी अग्नि जल और काल अस्त्र उन्हे शक्तियाँ प्रदान नही कर रहे थे और न ही वो पहले जैसे चमक रहे थे

ऐसा लग रहा था कि मानो उनमे कोई शक्तियाँ है ही नही वो शक्तिहीन हो गए है जो देखकर सारे अस्त्र धारक दंग हो गए थे और साथ मे ही अब आगे के लिए सोच कर उन्हे डर भी लग रहा था कि

अब जब महायुद्ध आरंभ होगा तब इस दुनिया को बचाने के लिए सबसे बड़ी शक्ति ही उनके पास नही होगी और यही सब सोचकर ये बात उन्होंने अपने तक ही सीमित रखी


आश्रम के किसी भी अन्य सदस्य को ये बात नही बताई जिससे सबका विश्वास टूटे न उनके हौसले की जगह भय न लेले और फिर गुरु अग्नि ने भी मस्तिष्क तरंगों के जरिये अपने बचे कुचे शिष्यों को भी काल विजय आश्रम बुला लिया

तो वही मायासुर असुर गुरु के गुफा से निकल कर सीधा अपने महल मे चला गया और अपने महल के छत पर वो यहाँ से वहा टहलने लगा जैसे कि किसी बड़ी परेशानी का हल ढूंढ रहा हो

और तुरंत ही वो टहलते हुए रुक गया उसके चेहरे पर एक जंग जितने वाली मुस्कान आ गयी थी और फिर वो तुरंत अपने घर से गायब हो कर कही चला गया

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आज के लिए इतना ही

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Bahut hi shaandar update diya hai VAJRADHIKARI bhai....
Nice and awesome update....
 

Rusev

Banned
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199
अध्याय छियालीस

कुमार की बाते सुनकर मेरा भी मन घबराने लगा था और ये भी सच था कि जब मेरा खुद पर भरोषा नहीं था तब भी कुमार ने मुझे विश्वास दिलाया था इसीलिए आज मुझे भी उसपर भरोशा करना होगा और यही सोचकर मैने अपना शरीर कुमार के हवाले कर दिया

तो वही दूसरी तरफ कालविजय आश्रम में जैसे ही महागुरु द्वारा लगाया हुआ कवच हटा तो वही सभी को इस का पता चल गया था जिसके बाद सभी गुरु तुरंत महागुरु के कुटिया के तरफ चल पड़े

लेकिन उन्हे वहा कोई नहीं मिला जिससे सभी चिंतित हो गए और अभी वो कुछ करते उससे पहले ही वहा प्रिया महागुरु को लेकर पहुँच गयी और जब सभी ने महागुरु की हालत देखी तो सभी डर गए और तुरंत उनके पास पहुँच गए

जहाँ सबसे पहले शांति ने महागुरु को एक कमरे मे ले जाकर उनका इलाज करने लगी तो वही महागुरु को देखकर न सिर्फ अस्त्र धारकों के मन में बल्कि पूरे आश्रम के वतावरण मे डर का माहौल बन गया था

और हो भी क्यों न महागुरु अब तक पूरे आश्रम के सबसे ज्यादा ताकतवर जादूगर और योध्दा थे और उनकी ऐसी हालत का होना और आश्रम के उपर से कवच का हटना इसका अर्थ साफ था की अब पाप और पुण्य का युद्ध ज्यादा दूर नही है

जिसके बारे मे सोचकर सभी अस्त्र धारक चिंता मे आ गए थे तो वही प्रिया ने भी फैक्टरी मे हुई सारी बातें बता दी जिसके बाद जहाँ सभी भद्रा की कामयाबी से खुश थे

तो वही कालस्त्र के खोने का डर भी उनके मन मे था तो वही शांति भद्रा के लिए चींता कर रही थी और बाकी सभी उस समझाने की कोशिश कर रहे थे की तभी प्रिया को उसके द्वारा बनाया हुआ कवच टूटने का अंदेशा हो गया

जिससे अब वो भी चिंता करने लगी थी और जब सबने ये सुना तो अब सबको चिंता होने लगी और फिर सारे अस्त्र धारक उस फैक्टरी के तरफ जाने लगे

तो वही उस पर्वत पर अभी कुमार ने पूरी तरह से भद्रा के शरीर पर काबू कर लिया था और अभी वो आसमान मे चाँद को देख रहा था लेकिन अचंभे की बात ये थी की कुमार के आँखों में आँसू थे

कुमार:- मुझे माफ करना माँ मे जानता हूँ कि आप उन असुरों की कैद में कितना तड़प रही हो आप और पिताजी वहा हर पल तिल तिल मर रहे हो मुझसे उम्मीद लगाए बैठे हो लेकिन मे आपको बचाने नही आ पा रहा हूँ उसके पीछे भी मेरी कमजोरी है अगर मैने अभी आपको छुड़ा दिया तो असुरों के साथ ब्रम्हराक्षस भी सचेत हो जायेंगे और ऐसा हुआ तो वो मेरे उन तक पहुँचने से पहले ही हर तरह तबाही मचा देंगे जिसके लिए अभी तीनों लोकों मे कोई तैयार नहीं है और मे जानता हूँ कि आप अपने भलाई के लिए तीनों लोकों के निर्दोष जीवों के प्राण संकट में आ जाए ऐसा नहीं चाहोगे

इतना बोलके उसने अपनी आँखों को बंद किया और उनमे आये ही आँसुओं को पोंछ कर साफ कर दिया और जब उसने अपनी आँखे खोली तो उन आँखों में आँसू नही तो एक विश्वास था एक बेटे का क्रोध था बदला लेने की अटल भावना थी

कुमार (जोश में) :-लेकिन अब आपको ज्यादा इंतज़ार नही करना होगा मे आपको वचन देता हूँ कि आज से 30 दिनों के अंदर मे आपका पुत्र आपको और हमारी पूरी प्रजा को उन दुष्ट पापियों के चंगुल से छुडाऊंगा ये प्रतिज्ञा है मेरी

इतना बोलते हुए उसके आँखों से एक बूंद निकल के जमीन पर गिर गई और फिर कुमार ने उन दोनों श्रपित कवचों को अपने दोनों हाथों मे पकड़ लिए और उन्हे अपनी पूरी ताकत से दबाने लगा और साथ मे ही अपनी आँखे बंद करके कुछ मंत्र भी बोलने लगा

और वो जैसे मंत्र बोले जा रहा था और जैसे जैसे वो मंत्र बोले जा रहा था वैसे ही उन श्रपित कवचों मे हल्की हल्की दरार पड़ने लगी थी और साथ मे ही कुमार के आँख और नाक से खून भी निकलने लगा था

तो वही उन श्रापित कवचों को पूरी ताकत से दबाने की वजह से उसके हाथ भी जल रहे थे उस इस वक़्त इतनी पीड़ा हो रही थी कि वो इतने दर्द के मारे मर ही जायेगा

और अभी उसने उन श्रपित कवचों पर दबाव बढ़ाया था कि तभी उन श्रपित कवचों से सफेद रोशनी निकलने लगी और देखते ही देखते एक जोरदार धमाके के साथ वो कवच टूट गए और उस मेसे दोनों ही गुरु जमीन पर गिरे हुए थे

और उन दोनों के उपर ही उन दोनों के अस्त्र एक शक्ति पुंज के रूप मे घूम रहे थे तो वही उस धमाके के कारण कुमार की भी हालत बुरी हो गयी थी उसे बहुत सारी चोटे भी आई थी उसका चेहरा खून से सन गया था

और इस वक्त वो अपने घुटनों पर आ गया था उसकी हालत देखकर लग रहा था कि वो कभी भी बेहोश हो सकता हैं और अभी वो खुद की हालत संभाल रहा था कि तभी उसे वहा पर किसी के आने की आवाज आने लगी जिसे सुनकर वो सतर्क हो गया

और जब उसने अपने सामने उड़ते शक्तिपुंजों को देखा तो वो उन्हे सुरक्षित करने के लिए आगे बढ़ कर उन्हे अपने कब्जे में लेने लगा की तभी उन शक्तिपुंजों मेसे एक ऊर्जा निकल कर सीधा उसे लगी जिससे वो अपनी जगह से उड़ थोड़ी दूरी पर जो पेड़ था उससे टकरा गया और फिर बेहोश हो गया

तो वही उसके बेहोश होते ही वो दोनों अस्त्र भी अपने अस्त्र रूप में आकर किसी आम अस्त्र के तरह वही धरती पर गिर गए अभी ये सब हुआ ही था कि तभी वहा सारे अस्त्र धारक भी पहुँच गए थे

हुआ यू की जब ये सभी फैक्टरी के पास पहुंचे तो फैक्टरी का हाल देखकर प्रिया और शांति का बुरा हाल हो गया था तो वही बाकी गुरुओं ने जब असुरों का हाल देखा तो सब हैरान हो गए थे

और अभी वो सभी फैक्टरी के पास पहुँचते इससे पहले ही उन्हे सामने वाले पहाड़ से एक बड़े धमाके की आवाज आयी जिसे सुनकर उनके साथ साथ बाकी जो पुलिस और अग्निशमन के अधिकारी थे उनका ध्यान भी उस धमाके पर गया


लेकिन इससे पहले की वो आगे बढ़ते दिग्विजय ने अपने पद का फायदा उठा कर उन सबको वही रोक दिया और खुद बाकी गुरुओं के साथ पहाड़ की तरफ चल पड़े और जब वो वहा पहुँचे

तो वहा का हाल देख कर सब दंग रह गए तो वही भद्रा को बेहोश देखकर प्रिया और शांति तुरंत ही उसके पास पहुँच तो वही बाकी लोगों ने दिलावर और साहिल (गुरु जल और गुरु अग्नि) को अपने साथ लिया

और फिर उन सबने वहा जमीन पर निष्क्रिय पड़े अस्त्रों को भी अपने कब्जे मे ले लिया और इससे पहले की कोई और वहा पहुँचे वो सभी दूसरे रास्ते से पहाड़ी से निकल कर कालविजय आश्रम की तरफ चल पड़े

तो वही दूसरी तरफ उसी अंधेरे गुफा में आज एक अलग ही वातावरण था इस वक्त सभी मायूस थे लेकिन उनके मायूसी का कारण उनकी कैद नही बल्कि उनके महारानी दमयंती की बिगड़ी हालत थी

हुआ यू की जब कुमार ने भद्रा के शरीर पर कब्ज़ा करते ही दमयंती को अहसास हो ने लगा था और जब कुमार की आँख से आँसू निकल कर जमीन पर गिरा तो उस वक्त दमयंती के मन को ऐसा लगा की उसका पुत्र उसे बुला रहा है

जिस वजह से वो कुमार को आवाज देने लगी और उसकी यही हाल देखकर वहा त्रिलोकेश्वर और बाकी सब मायूस हो गए परंतु उन्हे ये पता नही था कि अब उनकी ये मायूसी उनकी खुशियों मे बदलने वाली है

अभी वो सब अपने महारानी की हालत देखकर उनके इष्ट से प्राथना कर रहे थे की तभी वहा मायासुर चीखते हुए आ गया जिसे देखकर वहा सब हैरान हो गए थे क्योंकि मायासुर इस वक़्त पुरा खून से नहाया हुआ था और क्रोध के वजह से उसकी आँखे पूरी लाल रंग की हो गयी थी

तो वही जब वो चीखते हुए आया तो सबको लगा की आज वो त्रिलोकेश्वर और दमयंती को जिंदा नही छोड़ेगा लेकिन तभी मायासुर उनके कमरे मे जाने के बजाए सीधा मित्र के कमरे मे घुस गया (जिसका नाम शिबू था)

और जैसे ही वो शिबू के कमरे में पहुँचा तो तुरंत उसने शिबू को लात मारकर जमीन पर गिरा दिया जो देखकर सब दंग रह गए थे और इससे पहले शिबू फिर से खड़ा हो पाता की मायासुर ने फिर से एक लात उसके पेट में जड़ दी और फिर बिना रुके वो शिबू को मारते जा रहा था

तो वही शिबू जमीन पर पड़े बस दर्द से कराह रहा था ऐसा नहीं था कि वो मायासुर का सामना नही कर सकता था वो बेशक कर सकता था लेकिन वो जानता था कि ये कैद मायासुर के ही माया से बनी है और यहाँ जो मायासुर चाहे वही होगा इसीलिए वो शांत था

और जब शिबू को मारकर थक गया तब उसने शिबू को उठाकर कैदखाने की दीवार से चिपका दिया और एक हाथ से उसका गला पकड़ उसे हवा मे उठाने लगा जिससे अब शिबू का भी दम घुटने लगा था

मायासुर:- मुर्ख तुझे क्या लगा तु मेरे खिलाफ असुरों के खिलाफ हथियार उठा लेगा और हमारे खिलाफ जंग का ऐलान कर देगा और मे बस तमाशा देखूंगा

शिबू:- ये क्या बोल रहे हो तुम पागल हो गए हो क्या पिछले 20 से भी अधिक वर्षों से मे यहाँ तुम्हारे कैद में हूँ

मायासुर:- अच्छा तुम यह कैद में थे लेकिन तुम्हारा वो साथी उसका क्या जिसकी तुम मदद कर रहे हो असुरों को मारने मे

शिबू:- ऐसा कुछ नहीं है मायासुर मेरा किसी भी साथी को जिंदा छोड़ा भी है क्या तुमने सबको तो मार दिया अब कोन बचा है

मायासुर:- अच्छा तो वो बच्चा कौन है जो तुम्हारी दोनों मायावी तलवारों का इस्तेमाल कर रहा है जिन्हे तुम्हारे अलावा कोई छु भी नही सकता अब बोलो क्या तुमने नही दी अपनी तलवारे उस बालक को

जब मायासुर ने ये कहा तो उस कैद खाने मे मौजूद हर एक जन दंग रह गए यहाँ तक की त्रिलोकेश्वर और दमयंती भी शिबू भी कुछ समझ नही पा रहा था

क्योंकि जिन तलवारों की बात मायासुर कर रहा था वो शिबू ने केवल भद्रा को दी थी और उनके हिसाब से भद्रा मर गया था लेकिन जब शिबू ने कुछ समय पहले दमयंती का हाल और फिर मायासुर की बात को जब एक दूसरे से जोड़ा तो उसे सब समझ में आ गया

और उसके दिमाग में पूरी बात साफ हो गयी और फिर जब उसने गौर से मायासुर का हाल देखा तो वो देखकर शिबू जोरों से हँसने लगा तो वही शिबू को हँसता देखकर मायासुर का क्रोध और भी बढ़ गया

और वो फिर से शिबू को मारने लगा लेकिन इस बार शिबू दर्द से कराहने बदले हँसे जा रहा था और जब मायासुर थक गया तो उसने शिबू को उठाकर दीवार पर दे मारा और खुद अपने साथियों के साथ वहा से चला गया

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आज के लिए इतना ही

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Nice update bro
 
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kas1709

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अध्याय सैंतालिस

इस वक्त काल विजय आश्रम में हर तरफ अफरा तफरी का माहौल बन गया था बहुत सालों बाद आज तीनो आश्रम एक हो कर कार्य कर रहे थे तीनो आश्रमों ने अपने अपने कार्य निर्धारित कर लिए थे

सबसे पहले काल दृष्टि आश्रम उसने अपने सभी शिष्यों और गुरुओं को पूरे धरती में अलग अलग जगह फैला कर जितने भी अच्छाई और सच्चाई के पक्ष में योध्दा थे उनको एकत्रित करने और कालविजय आश्रम लाने के लिए भेज दिया था

तो वही काल दिशा आश्रम उसने सभी योध्दाओ के लिए अस्त्रों और कुटियाओं का निर्माण शुरू कर दिया था और साथ ही मे वो जंगल जंगल घूम कर जो भी औषधि वनस्पति उन्हे दिखती उसे एकत्रित करके आश्रम ले आते

तो वही काल विजय आश्रम 3 भाग में बट गया था


पहला भाग जख्मी गुरुओं की देखभाल और उपचार में शांति की मदद कर रहे थे

तो दूसरा भाग काल दृष्टि और दिशा आश्रम के बलवान योध्दा थे उन्हे मायावी युद्ध प्रशिक्षण देकर तैयार कर रहे थे

तो तीसरा भाग शहर में जो उन सबके परिवार थे उनकी सुरक्षा में जुट गये थे

तो वही इन सबका मार्गदर्शन और नेतृत्व खुद गुरु सिँह (दिग्विजय) और गुरु वानर (गौरव) कर रहे थे तो वही शांति और प्रिया भद्रा और बाकियों के इलाज मे लगे हुए थे

यही सब मे इनका पुरा एक दिन निकल गया था और इस एक दिन में भद्रा के अलावा सबके हालत सुधर गए थे जिससे सब खुश भी थे और चिंता मे भी थे

तो वही पाताल लोक के एक अंधेरी गुफा में इस वक़्त एक बूढ़ा असुर एक बड़ी सी मूर्ति के सामने बैठ कर की हवन कर रहा था


उसके हर एक आहुति से हवन कुंड की अग्नि उस गुफा के छत से जा टकरा रही थी और अभी वो असुर अपने मे व्यस्त था कि तभी उस गुफा में मायासुर आया

उसकी हालत देखकर लग रहा था जैसे कि वो उस कैदखाने से सीधा यही आ गया है और जैसे ही मायासुर उस हवनकुंड के पास पहुँचा तो वैसे ही उस कुंड की अग्नि अपने आप बुझ गयी

जिससे वो असुर दंग रह गया और जब उस बूढ़े असुर ने मायासुर को देखा तो उसकी आँखे क्रोध से लाल हो गयी थी और वो मायासुर की तरफ देखकर गरज पड़ा

असुर :- मायासुर ये क्या हाल बना रखा है तुमने अपना और तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई इस समय यहाँ आने की पता नही है क्या मे यहाँ पर अपनी साधना कर रहा हूँ तुमने पूरी साधना पर पानी डाल दिया

मायासुर:- माफ करना असुर गुरु लेकिन बात ही ऐसी है कि मे खुदको रोक न पाया

असुर :- ऐसी क्या बात है क्या तुमने उन सप्तऋषियों को मेरे दिये हुए श्रपित कवचों मे कैद कर लिया है क्या और सारे महासुरों के प्रतिबिंब कहाँ है

मायासुर :- वो सारे प्रतिबिंब मारे गये

जब मायासुर ने ये कहा तो उस असुर के पैरों तले से जमीन खिसक गयी और वो तुरंत गुस्से मे मायासुर को बोलने लगा

असुर :- मैने तुम्हे पहले ही कहाँ था ना की उस राघवेंद्र (महागुरु) को कालस्त्र का इस्तेमाल करने से पहले कवच मे कैद कर देना

मायासुर :- मैने आपके कहे मुताबिक ही किया था असुर गुरु लेकिन उस बालक ने आकर सब खराब कर दिया

उसके बाद मायासुर ने उस असुर गुरु को सारी बाते बता दी जिसे सुनकर असुर गुरु भी दंग रह गया

असुर:- क्या कह रहे हो तुम जानते हो न महा धारक का सामने आकर युद्ध करने का अर्थ समझते हो अब वो समय ज्यादा दूर नही जब अच्छाई और बुराई का महासंग्राम आरंभ होगा

मायासुर:- उससे मुझे फरक नहीं पड़ता मुझे आप ये बताओ की जो मैने आपसे माँगा था वो आपने किया की नही

असुर:- नही अब हम ऐसा कुछ नहीं करने वाले अगर जो तुम बोल रहे हो वैसा हुआ तो समस्त संसार में एक ऐसा युद्ध आरंभ हो जायेगा जिसके कारण हर जगह केवल विनाश ही विनाश होगा जिसमे क्या इंसान और क्या असुर सब खतम हो जायेगा

जब उस असुर गुरु ने ये कहा तो मायासुर का पारा पुरा चढ़ गया और उसने तुरंत ही उस असुर गुरु का गला पकड़ कर हवा में उठा लिया

मायासुर:- तु मुझे मना कर रहा है शायद तुम भूल गए की कैसे तुम एक ढोंगी से असुर कुल के गुरु बने तुम्हारा मान सम्मान ज्ञान सब इस मायासुर के माया के नतीजा है

इतना बोलके मायासुर ने उस असुर को जमीन पर फेक दिया

मायासुर:- आज अगर मेरे पास मेरी शक्तियाँ होती तो मुझे तुम्हारी कोई जरूरत नही थी ठीक है अगर तुम्हे नही करना है तो मे कोई दूसरा रास्ता ढूंढ लूँगा बस तुम उस शस्त्र का आवहान करो जिससे हर असुर को मारा जा सकता हैं

असुर :- अब तुम्हे वो अस्त्र क्यों चाहिए तुम नही जानते उसका आवहान करना पाताल लोक के नियमों के खिलाफ है

असुर की बात सुनने के बाद तुरंत ही मायासुर ने अपनी तलवार निकाल कर सीधा उसका गला काट दिया जिससे उस गुरु की चीख निकल गयी

परंतु अगले ही पल उसका सर फिर से उसके धड़ पर था और जब उस गुरु ने ये महसूस किया तो डर के मारे उसकी साँसे तेज हो गयी थी उसकी आँखों में केवल भय था मायासुर का भय

मायासुर:- अभी तो सिर्फ मैने अपनी माया से तुम्हारे सर कटने का छलावा बनाया था उसी मे तुम्हारी ये हालत हो गयी सोचो अगर तुम ऐसे ही मुझे टॉकते रहे तो असल मे मै तुम्हारे साथ क्या करूँगा बाकी तुम समझदार हो

ये बोलके मायासुर वहा से निकल गया और पीछे रह गया डर से काँपता हुआ असुर गुरु

तो वही दूसरी तरफ कालविजय आश्रम में महा गुरु और बाकी गुरुओं को होश आ गया था शिवाये भद्रा के

तो वही जब सबको होश आया तो वो सभी युद्ध की तैयारियां होते देखकर दंग हो गए जिसके बाद दिग्विजय ने उन्हे सारे हालातों से अवगत कराया और सब सुनकर वो सभी भी आने वाले युद्ध की कल्पना करने लगे

जिसके बाद उन तीनों गुरुओं ने अपने अपने अस्त्रों का आवहान किया परंतु उनके लाख कोशिशों के बाद भी अग्नि जल और काल अस्त्र उन्हे शक्तियाँ प्रदान नही कर रहे थे और न ही वो पहले जैसे चमक रहे थे

ऐसा लग रहा था कि मानो उनमे कोई शक्तियाँ है ही नही वो शक्तिहीन हो गए है जो देखकर सारे अस्त्र धारक दंग हो गए थे और साथ मे ही अब आगे के लिए सोच कर उन्हे डर भी लग रहा था कि

अब जब महायुद्ध आरंभ होगा तब इस दुनिया को बचाने के लिए सबसे बड़ी शक्ति ही उनके पास नही होगी और यही सब सोचकर ये बात उन्होंने अपने तक ही सीमित रखी


आश्रम के किसी भी अन्य सदस्य को ये बात नही बताई जिससे सबका विश्वास टूटे न उनके हौसले की जगह भय न लेले और फिर गुरु अग्नि ने भी मस्तिष्क तरंगों के जरिये अपने बचे कुचे शिष्यों को भी काल विजय आश्रम बुला लिया

तो वही मायासुर असुर गुरु के गुफा से निकल कर सीधा अपने महल मे चला गया और अपने महल के छत पर वो यहाँ से वहा टहलने लगा जैसे कि किसी बड़ी परेशानी का हल ढूंढ रहा हो

और तुरंत ही वो टहलते हुए रुक गया उसके चेहरे पर एक जंग जितने वाली मुस्कान आ गयी थी और फिर वो तुरंत अपने घर से गायब हो कर कही चला गया

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आज के लिए इतना ही

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Nice update.....
 

Rusev

Banned
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अध्याय छियालीस

कुमार की बाते सुनकर मेरा भी मन घबराने लगा था और ये भी सच था कि जब मेरा खुद पर भरोषा नहीं था तब भी कुमार ने मुझे विश्वास दिलाया था इसीलिए आज मुझे भी उसपर भरोशा करना होगा और यही सोचकर मैने अपना शरीर कुमार के हवाले कर दिया

तो वही दूसरी तरफ कालविजय आश्रम में जैसे ही महागुरु द्वारा लगाया हुआ कवच हटा तो वही सभी को इस का पता चल गया था जिसके बाद सभी गुरु तुरंत महागुरु के कुटिया के तरफ चल पड़े

लेकिन उन्हे वहा कोई नहीं मिला जिससे सभी चिंतित हो गए और अभी वो कुछ करते उससे पहले ही वहा प्रिया महागुरु को लेकर पहुँच गयी और जब सभी ने महागुरु की हालत देखी तो सभी डर गए और तुरंत उनके पास पहुँच गए

जहाँ सबसे पहले शांति ने महागुरु को एक कमरे मे ले जाकर उनका इलाज करने लगी तो वही महागुरु को देखकर न सिर्फ अस्त्र धारकों के मन में बल्कि पूरे आश्रम के वतावरण मे डर का माहौल बन गया था

और हो भी क्यों न महागुरु अब तक पूरे आश्रम के सबसे ज्यादा ताकतवर जादूगर और योध्दा थे और उनकी ऐसी हालत का होना और आश्रम के उपर से कवच का हटना इसका अर्थ साफ था की अब पाप और पुण्य का युद्ध ज्यादा दूर नही है

जिसके बारे मे सोचकर सभी अस्त्र धारक चिंता मे आ गए थे तो वही प्रिया ने भी फैक्टरी मे हुई सारी बातें बता दी जिसके बाद जहाँ सभी भद्रा की कामयाबी से खुश थे

तो वही कालस्त्र के खोने का डर भी उनके मन मे था तो वही शांति भद्रा के लिए चींता कर रही थी और बाकी सभी उस समझाने की कोशिश कर रहे थे की तभी प्रिया को उसके द्वारा बनाया हुआ कवच टूटने का अंदेशा हो गया

जिससे अब वो भी चिंता करने लगी थी और जब सबने ये सुना तो अब सबको चिंता होने लगी और फिर सारे अस्त्र धारक उस फैक्टरी के तरफ जाने लगे

तो वही उस पर्वत पर अभी कुमार ने पूरी तरह से भद्रा के शरीर पर काबू कर लिया था और अभी वो आसमान मे चाँद को देख रहा था लेकिन अचंभे की बात ये थी की कुमार के आँखों में आँसू थे

कुमार:- मुझे माफ करना माँ मे जानता हूँ कि आप उन असुरों की कैद में कितना तड़प रही हो आप और पिताजी वहा हर पल तिल तिल मर रहे हो मुझसे उम्मीद लगाए बैठे हो लेकिन मे आपको बचाने नही आ पा रहा हूँ उसके पीछे भी मेरी कमजोरी है अगर मैने अभी आपको छुड़ा दिया तो असुरों के साथ ब्रम्हराक्षस भी सचेत हो जायेंगे और ऐसा हुआ तो वो मेरे उन तक पहुँचने से पहले ही हर तरह तबाही मचा देंगे जिसके लिए अभी तीनों लोकों मे कोई तैयार नहीं है और मे जानता हूँ कि आप अपने भलाई के लिए तीनों लोकों के निर्दोष जीवों के प्राण संकट में आ जाए ऐसा नहीं चाहोगे

इतना बोलके उसने अपनी आँखों को बंद किया और उनमे आये ही आँसुओं को पोंछ कर साफ कर दिया और जब उसने अपनी आँखे खोली तो उन आँखों में आँसू नही तो एक विश्वास था एक बेटे का क्रोध था बदला लेने की अटल भावना थी

कुमार (जोश में) :-लेकिन अब आपको ज्यादा इंतज़ार नही करना होगा मे आपको वचन देता हूँ कि आज से 30 दिनों के अंदर मे आपका पुत्र आपको और हमारी पूरी प्रजा को उन दुष्ट पापियों के चंगुल से छुडाऊंगा ये प्रतिज्ञा है मेरी

इतना बोलते हुए उसके आँखों से एक बूंद निकल के जमीन पर गिर गई और फिर कुमार ने उन दोनों श्रपित कवचों को अपने दोनों हाथों मे पकड़ लिए और उन्हे अपनी पूरी ताकत से दबाने लगा और साथ मे ही अपनी आँखे बंद करके कुछ मंत्र भी बोलने लगा

और वो जैसे मंत्र बोले जा रहा था और जैसे जैसे वो मंत्र बोले जा रहा था वैसे ही उन श्रपित कवचों मे हल्की हल्की दरार पड़ने लगी थी और साथ मे ही कुमार के आँख और नाक से खून भी निकलने लगा था

तो वही उन श्रापित कवचों को पूरी ताकत से दबाने की वजह से उसके हाथ भी जल रहे थे उस इस वक़्त इतनी पीड़ा हो रही थी कि वो इतने दर्द के मारे मर ही जायेगा

और अभी उसने उन श्रपित कवचों पर दबाव बढ़ाया था कि तभी उन श्रपित कवचों से सफेद रोशनी निकलने लगी और देखते ही देखते एक जोरदार धमाके के साथ वो कवच टूट गए और उस मेसे दोनों ही गुरु जमीन पर गिरे हुए थे

और उन दोनों के उपर ही उन दोनों के अस्त्र एक शक्ति पुंज के रूप मे घूम रहे थे तो वही उस धमाके के कारण कुमार की भी हालत बुरी हो गयी थी उसे बहुत सारी चोटे भी आई थी उसका चेहरा खून से सन गया था

और इस वक्त वो अपने घुटनों पर आ गया था उसकी हालत देखकर लग रहा था कि वो कभी भी बेहोश हो सकता हैं और अभी वो खुद की हालत संभाल रहा था कि तभी उसे वहा पर किसी के आने की आवाज आने लगी जिसे सुनकर वो सतर्क हो गया

और जब उसने अपने सामने उड़ते शक्तिपुंजों को देखा तो वो उन्हे सुरक्षित करने के लिए आगे बढ़ कर उन्हे अपने कब्जे में लेने लगा की तभी उन शक्तिपुंजों मेसे एक ऊर्जा निकल कर सीधा उसे लगी जिससे वो अपनी जगह से उड़ थोड़ी दूरी पर जो पेड़ था उससे टकरा गया और फिर बेहोश हो गया

तो वही उसके बेहोश होते ही वो दोनों अस्त्र भी अपने अस्त्र रूप में आकर किसी आम अस्त्र के तरह वही धरती पर गिर गए अभी ये सब हुआ ही था कि तभी वहा सारे अस्त्र धारक भी पहुँच गए थे

हुआ यू की जब ये सभी फैक्टरी के पास पहुंचे तो फैक्टरी का हाल देखकर प्रिया और शांति का बुरा हाल हो गया था तो वही बाकी गुरुओं ने जब असुरों का हाल देखा तो सब हैरान हो गए थे

और अभी वो सभी फैक्टरी के पास पहुँचते इससे पहले ही उन्हे सामने वाले पहाड़ से एक बड़े धमाके की आवाज आयी जिसे सुनकर उनके साथ साथ बाकी जो पुलिस और अग्निशमन के अधिकारी थे उनका ध्यान भी उस धमाके पर गया


लेकिन इससे पहले की वो आगे बढ़ते दिग्विजय ने अपने पद का फायदा उठा कर उन सबको वही रोक दिया और खुद बाकी गुरुओं के साथ पहाड़ की तरफ चल पड़े और जब वो वहा पहुँचे

तो वहा का हाल देख कर सब दंग रह गए तो वही भद्रा को बेहोश देखकर प्रिया और शांति तुरंत ही उसके पास पहुँच तो वही बाकी लोगों ने दिलावर और साहिल (गुरु जल और गुरु अग्नि) को अपने साथ लिया

और फिर उन सबने वहा जमीन पर निष्क्रिय पड़े अस्त्रों को भी अपने कब्जे मे ले लिया और इससे पहले की कोई और वहा पहुँचे वो सभी दूसरे रास्ते से पहाड़ी से निकल कर कालविजय आश्रम की तरफ चल पड़े

तो वही दूसरी तरफ उसी अंधेरे गुफा में आज एक अलग ही वातावरण था इस वक्त सभी मायूस थे लेकिन उनके मायूसी का कारण उनकी कैद नही बल्कि उनके महारानी दमयंती की बिगड़ी हालत थी

हुआ यू की जब कुमार ने भद्रा के शरीर पर कब्ज़ा करते ही दमयंती को अहसास हो ने लगा था और जब कुमार की आँख से आँसू निकल कर जमीन पर गिरा तो उस वक्त दमयंती के मन को ऐसा लगा की उसका पुत्र उसे बुला रहा है

जिस वजह से वो कुमार को आवाज देने लगी और उसकी यही हाल देखकर वहा त्रिलोकेश्वर और बाकी सब मायूस हो गए परंतु उन्हे ये पता नही था कि अब उनकी ये मायूसी उनकी खुशियों मे बदलने वाली है

अभी वो सब अपने महारानी की हालत देखकर उनके इष्ट से प्राथना कर रहे थे की तभी वहा मायासुर चीखते हुए आ गया जिसे देखकर वहा सब हैरान हो गए थे क्योंकि मायासुर इस वक़्त पुरा खून से नहाया हुआ था और क्रोध के वजह से उसकी आँखे पूरी लाल रंग की हो गयी थी

तो वही जब वो चीखते हुए आया तो सबको लगा की आज वो त्रिलोकेश्वर और दमयंती को जिंदा नही छोड़ेगा लेकिन तभी मायासुर उनके कमरे मे जाने के बजाए सीधा मित्र के कमरे मे घुस गया (जिसका नाम शिबू था)

और जैसे ही वो शिबू के कमरे में पहुँचा तो तुरंत उसने शिबू को लात मारकर जमीन पर गिरा दिया जो देखकर सब दंग रह गए थे और इससे पहले शिबू फिर से खड़ा हो पाता की मायासुर ने फिर से एक लात उसके पेट में जड़ दी और फिर बिना रुके वो शिबू को मारते जा रहा था

तो वही शिबू जमीन पर पड़े बस दर्द से कराह रहा था ऐसा नहीं था कि वो मायासुर का सामना नही कर सकता था वो बेशक कर सकता था लेकिन वो जानता था कि ये कैद मायासुर के ही माया से बनी है और यहाँ जो मायासुर चाहे वही होगा इसीलिए वो शांत था

और जब शिबू को मारकर थक गया तब उसने शिबू को उठाकर कैदखाने की दीवार से चिपका दिया और एक हाथ से उसका गला पकड़ उसे हवा मे उठाने लगा जिससे अब शिबू का भी दम घुटने लगा था

मायासुर:- मुर्ख तुझे क्या लगा तु मेरे खिलाफ असुरों के खिलाफ हथियार उठा लेगा और हमारे खिलाफ जंग का ऐलान कर देगा और मे बस तमाशा देखूंगा

शिबू:- ये क्या बोल रहे हो तुम पागल हो गए हो क्या पिछले 20 से भी अधिक वर्षों से मे यहाँ तुम्हारे कैद में हूँ

मायासुर:- अच्छा तुम यह कैद में थे लेकिन तुम्हारा वो साथी उसका क्या जिसकी तुम मदद कर रहे हो असुरों को मारने मे

शिबू:- ऐसा कुछ नहीं है मायासुर मेरा किसी भी साथी को जिंदा छोड़ा भी है क्या तुमने सबको तो मार दिया अब कोन बचा है

मायासुर:- अच्छा तो वो बच्चा कौन है जो तुम्हारी दोनों मायावी तलवारों का इस्तेमाल कर रहा है जिन्हे तुम्हारे अलावा कोई छु भी नही सकता अब बोलो क्या तुमने नही दी अपनी तलवारे उस बालक को

जब मायासुर ने ये कहा तो उस कैद खाने मे मौजूद हर एक जन दंग रह गए यहाँ तक की त्रिलोकेश्वर और दमयंती भी शिबू भी कुछ समझ नही पा रहा था

क्योंकि जिन तलवारों की बात मायासुर कर रहा था वो शिबू ने केवल भद्रा को दी थी और उनके हिसाब से भद्रा मर गया था लेकिन जब शिबू ने कुछ समय पहले दमयंती का हाल और फिर मायासुर की बात को जब एक दूसरे से जोड़ा तो उसे सब समझ में आ गया

और उसके दिमाग में पूरी बात साफ हो गयी और फिर जब उसने गौर से मायासुर का हाल देखा तो वो देखकर शिबू जोरों से हँसने लगा तो वही शिबू को हँसता देखकर मायासुर का क्रोध और भी बढ़ गया

और वो फिर से शिबू को मारने लगा लेकिन इस बार शिबू दर्द से कराहने बदले हँसे जा रहा था और जब मायासुर थक गया तो उसने शिबू को उठाकर दीवार पर दे मारा और खुद अपने साथियों के साथ वहा से चला गया

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आज के लिए इतना ही

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Nice update 6bro
अध्याय सैंतालिस

इस वक्त काल विजय आश्रम में हर तरफ अफरा तफरी का माहौल बन गया था बहुत सालों बाद आज तीनो आश्रम एक हो कर कार्य कर रहे थे तीनो आश्रमों ने अपने अपने कार्य निर्धारित कर लिए थे

सबसे पहले काल दृष्टि आश्रम उसने अपने सभी शिष्यों और गुरुओं को पूरे धरती में अलग अलग जगह फैला कर जितने भी अच्छाई और सच्चाई के पक्ष में योध्दा थे उनको एकत्रित करने और कालविजय आश्रम लाने के लिए भेज दिया था

तो वही काल दिशा आश्रम उसने सभी योध्दाओ के लिए अस्त्रों और कुटियाओं का निर्माण शुरू कर दिया था और साथ ही मे वो जंगल जंगल घूम कर जो भी औषधि वनस्पति उन्हे दिखती उसे एकत्रित करके आश्रम ले आते

तो वही काल विजय आश्रम 3 भाग में बट गया था


पहला भाग जख्मी गुरुओं की देखभाल और उपचार में शांति की मदद कर रहे थे

तो दूसरा भाग काल दृष्टि और दिशा आश्रम के बलवान योध्दा थे उन्हे मायावी युद्ध प्रशिक्षण देकर तैयार कर रहे थे

तो तीसरा भाग शहर में जो उन सबके परिवार थे उनकी सुरक्षा में जुट गये थे

तो वही इन सबका मार्गदर्शन और नेतृत्व खुद गुरु सिँह (दिग्विजय) और गुरु वानर (गौरव) कर रहे थे तो वही शांति और प्रिया भद्रा और बाकियों के इलाज मे लगे हुए थे

यही सब मे इनका पुरा एक दिन निकल गया था और इस एक दिन में भद्रा के अलावा सबके हालत सुधर गए थे जिससे सब खुश भी थे और चिंता मे भी थे

तो वही पाताल लोक के एक अंधेरी गुफा में इस वक़्त एक बूढ़ा असुर एक बड़ी सी मूर्ति के सामने बैठ कर की हवन कर रहा था


उसके हर एक आहुति से हवन कुंड की अग्नि उस गुफा के छत से जा टकरा रही थी और अभी वो असुर अपने मे व्यस्त था कि तभी उस गुफा में मायासुर आया

उसकी हालत देखकर लग रहा था जैसे कि वो उस कैदखाने से सीधा यही आ गया है और जैसे ही मायासुर उस हवनकुंड के पास पहुँचा तो वैसे ही उस कुंड की अग्नि अपने आप बुझ गयी

जिससे वो असुर दंग रह गया और जब उस बूढ़े असुर ने मायासुर को देखा तो उसकी आँखे क्रोध से लाल हो गयी थी और वो मायासुर की तरफ देखकर गरज पड़ा

असुर :- मायासुर ये क्या हाल बना रखा है तुमने अपना और तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई इस समय यहाँ आने की पता नही है क्या मे यहाँ पर अपनी साधना कर रहा हूँ तुमने पूरी साधना पर पानी डाल दिया

मायासुर:- माफ करना असुर गुरु लेकिन बात ही ऐसी है कि मे खुदको रोक न पाया

असुर :- ऐसी क्या बात है क्या तुमने उन सप्तऋषियों को मेरे दिये हुए श्रपित कवचों मे कैद कर लिया है क्या और सारे महासुरों के प्रतिबिंब कहाँ है

मायासुर :- वो सारे प्रतिबिंब मारे गये

जब मायासुर ने ये कहा तो उस असुर के पैरों तले से जमीन खिसक गयी और वो तुरंत गुस्से मे मायासुर को बोलने लगा

असुर :- मैने तुम्हे पहले ही कहाँ था ना की उस राघवेंद्र (महागुरु) को कालस्त्र का इस्तेमाल करने से पहले कवच मे कैद कर देना

मायासुर :- मैने आपके कहे मुताबिक ही किया था असुर गुरु लेकिन उस बालक ने आकर सब खराब कर दिया

उसके बाद मायासुर ने उस असुर गुरु को सारी बाते बता दी जिसे सुनकर असुर गुरु भी दंग रह गया

असुर:- क्या कह रहे हो तुम जानते हो न महा धारक का सामने आकर युद्ध करने का अर्थ समझते हो अब वो समय ज्यादा दूर नही जब अच्छाई और बुराई का महासंग्राम आरंभ होगा

मायासुर:- उससे मुझे फरक नहीं पड़ता मुझे आप ये बताओ की जो मैने आपसे माँगा था वो आपने किया की नही

असुर:- नही अब हम ऐसा कुछ नहीं करने वाले अगर जो तुम बोल रहे हो वैसा हुआ तो समस्त संसार में एक ऐसा युद्ध आरंभ हो जायेगा जिसके कारण हर जगह केवल विनाश ही विनाश होगा जिसमे क्या इंसान और क्या असुर सब खतम हो जायेगा

जब उस असुर गुरु ने ये कहा तो मायासुर का पारा पुरा चढ़ गया और उसने तुरंत ही उस असुर गुरु का गला पकड़ कर हवा में उठा लिया

मायासुर:- तु मुझे मना कर रहा है शायद तुम भूल गए की कैसे तुम एक ढोंगी से असुर कुल के गुरु बने तुम्हारा मान सम्मान ज्ञान सब इस मायासुर के माया के नतीजा है

इतना बोलके मायासुर ने उस असुर को जमीन पर फेक दिया

मायासुर:- आज अगर मेरे पास मेरी शक्तियाँ होती तो मुझे तुम्हारी कोई जरूरत नही थी ठीक है अगर तुम्हे नही करना है तो मे कोई दूसरा रास्ता ढूंढ लूँगा बस तुम उस शस्त्र का आवहान करो जिससे हर असुर को मारा जा सकता हैं

असुर :- अब तुम्हे वो अस्त्र क्यों चाहिए तुम नही जानते उसका आवहान करना पाताल लोक के नियमों के खिलाफ है

असुर की बात सुनने के बाद तुरंत ही मायासुर ने अपनी तलवार निकाल कर सीधा उसका गला काट दिया जिससे उस गुरु की चीख निकल गयी

परंतु अगले ही पल उसका सर फिर से उसके धड़ पर था और जब उस गुरु ने ये महसूस किया तो डर के मारे उसकी साँसे तेज हो गयी थी उसकी आँखों में केवल भय था मायासुर का भय

मायासुर:- अभी तो सिर्फ मैने अपनी माया से तुम्हारे सर कटने का छलावा बनाया था उसी मे तुम्हारी ये हालत हो गयी सोचो अगर तुम ऐसे ही मुझे टॉकते रहे तो असल मे मै तुम्हारे साथ क्या करूँगा बाकी तुम समझदार हो

ये बोलके मायासुर वहा से निकल गया और पीछे रह गया डर से काँपता हुआ असुर गुरु

तो वही दूसरी तरफ कालविजय आश्रम में महा गुरु और बाकी गुरुओं को होश आ गया था शिवाये भद्रा के

तो वही जब सबको होश आया तो वो सभी युद्ध की तैयारियां होते देखकर दंग हो गए जिसके बाद दिग्विजय ने उन्हे सारे हालातों से अवगत कराया और सब सुनकर वो सभी भी आने वाले युद्ध की कल्पना करने लगे

जिसके बाद उन तीनों गुरुओं ने अपने अपने अस्त्रों का आवहान किया परंतु उनके लाख कोशिशों के बाद भी अग्नि जल और काल अस्त्र उन्हे शक्तियाँ प्रदान नही कर रहे थे और न ही वो पहले जैसे चमक रहे थे

ऐसा लग रहा था कि मानो उनमे कोई शक्तियाँ है ही नही वो शक्तिहीन हो गए है जो देखकर सारे अस्त्र धारक दंग हो गए थे और साथ मे ही अब आगे के लिए सोच कर उन्हे डर भी लग रहा था कि

अब जब महायुद्ध आरंभ होगा तब इस दुनिया को बचाने के लिए सबसे बड़ी शक्ति ही उनके पास नही होगी और यही सब सोचकर ये बात उन्होंने अपने तक ही सीमित रखी


आश्रम के किसी भी अन्य सदस्य को ये बात नही बताई जिससे सबका विश्वास टूटे न उनके हौसले की जगह भय न लेले और फिर गुरु अग्नि ने भी मस्तिष्क तरंगों के जरिये अपने बचे कुचे शिष्यों को भी काल विजय आश्रम बुला लिया

तो वही मायासुर असुर गुरु के गुफा से निकल कर सीधा अपने महल मे चला गया और अपने महल के छत पर वो यहाँ से वहा टहलने लगा जैसे कि किसी बड़ी परेशानी का हल ढूंढ रहा हो

और तुरंत ही वो टहलते हुए रुक गया उसके चेहरे पर एक जंग जितने वाली मुस्कान आ गयी थी और फिर वो तुरंत अपने घर से गायब हो कर कही चला गया

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आज के लिए इतना ही

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dhparikh

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अध्याय सैंतालिस

इस वक्त काल विजय आश्रम में हर तरफ अफरा तफरी का माहौल बन गया था बहुत सालों बाद आज तीनो आश्रम एक हो कर कार्य कर रहे थे तीनो आश्रमों ने अपने अपने कार्य निर्धारित कर लिए थे

सबसे पहले काल दृष्टि आश्रम उसने अपने सभी शिष्यों और गुरुओं को पूरे धरती में अलग अलग जगह फैला कर जितने भी अच्छाई और सच्चाई के पक्ष में योध्दा थे उनको एकत्रित करने और कालविजय आश्रम लाने के लिए भेज दिया था

तो वही काल दिशा आश्रम उसने सभी योध्दाओ के लिए अस्त्रों और कुटियाओं का निर्माण शुरू कर दिया था और साथ ही मे वो जंगल जंगल घूम कर जो भी औषधि वनस्पति उन्हे दिखती उसे एकत्रित करके आश्रम ले आते

तो वही काल विजय आश्रम 3 भाग में बट गया था


पहला भाग जख्मी गुरुओं की देखभाल और उपचार में शांति की मदद कर रहे थे

तो दूसरा भाग काल दृष्टि और दिशा आश्रम के बलवान योध्दा थे उन्हे मायावी युद्ध प्रशिक्षण देकर तैयार कर रहे थे

तो तीसरा भाग शहर में जो उन सबके परिवार थे उनकी सुरक्षा में जुट गये थे

तो वही इन सबका मार्गदर्शन और नेतृत्व खुद गुरु सिँह (दिग्विजय) और गुरु वानर (गौरव) कर रहे थे तो वही शांति और प्रिया भद्रा और बाकियों के इलाज मे लगे हुए थे

यही सब मे इनका पुरा एक दिन निकल गया था और इस एक दिन में भद्रा के अलावा सबके हालत सुधर गए थे जिससे सब खुश भी थे और चिंता मे भी थे

तो वही पाताल लोक के एक अंधेरी गुफा में इस वक़्त एक बूढ़ा असुर एक बड़ी सी मूर्ति के सामने बैठ कर की हवन कर रहा था


उसके हर एक आहुति से हवन कुंड की अग्नि उस गुफा के छत से जा टकरा रही थी और अभी वो असुर अपने मे व्यस्त था कि तभी उस गुफा में मायासुर आया

उसकी हालत देखकर लग रहा था जैसे कि वो उस कैदखाने से सीधा यही आ गया है और जैसे ही मायासुर उस हवनकुंड के पास पहुँचा तो वैसे ही उस कुंड की अग्नि अपने आप बुझ गयी

जिससे वो असुर दंग रह गया और जब उस बूढ़े असुर ने मायासुर को देखा तो उसकी आँखे क्रोध से लाल हो गयी थी और वो मायासुर की तरफ देखकर गरज पड़ा

असुर :- मायासुर ये क्या हाल बना रखा है तुमने अपना और तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई इस समय यहाँ आने की पता नही है क्या मे यहाँ पर अपनी साधना कर रहा हूँ तुमने पूरी साधना पर पानी डाल दिया

मायासुर:- माफ करना असुर गुरु लेकिन बात ही ऐसी है कि मे खुदको रोक न पाया

असुर :- ऐसी क्या बात है क्या तुमने उन सप्तऋषियों को मेरे दिये हुए श्रपित कवचों मे कैद कर लिया है क्या और सारे महासुरों के प्रतिबिंब कहाँ है

मायासुर :- वो सारे प्रतिबिंब मारे गये

जब मायासुर ने ये कहा तो उस असुर के पैरों तले से जमीन खिसक गयी और वो तुरंत गुस्से मे मायासुर को बोलने लगा

असुर :- मैने तुम्हे पहले ही कहाँ था ना की उस राघवेंद्र (महागुरु) को कालस्त्र का इस्तेमाल करने से पहले कवच मे कैद कर देना

मायासुर :- मैने आपके कहे मुताबिक ही किया था असुर गुरु लेकिन उस बालक ने आकर सब खराब कर दिया

उसके बाद मायासुर ने उस असुर गुरु को सारी बाते बता दी जिसे सुनकर असुर गुरु भी दंग रह गया

असुर:- क्या कह रहे हो तुम जानते हो न महा धारक का सामने आकर युद्ध करने का अर्थ समझते हो अब वो समय ज्यादा दूर नही जब अच्छाई और बुराई का महासंग्राम आरंभ होगा

मायासुर:- उससे मुझे फरक नहीं पड़ता मुझे आप ये बताओ की जो मैने आपसे माँगा था वो आपने किया की नही

असुर:- नही अब हम ऐसा कुछ नहीं करने वाले अगर जो तुम बोल रहे हो वैसा हुआ तो समस्त संसार में एक ऐसा युद्ध आरंभ हो जायेगा जिसके कारण हर जगह केवल विनाश ही विनाश होगा जिसमे क्या इंसान और क्या असुर सब खतम हो जायेगा

जब उस असुर गुरु ने ये कहा तो मायासुर का पारा पुरा चढ़ गया और उसने तुरंत ही उस असुर गुरु का गला पकड़ कर हवा में उठा लिया

मायासुर:- तु मुझे मना कर रहा है शायद तुम भूल गए की कैसे तुम एक ढोंगी से असुर कुल के गुरु बने तुम्हारा मान सम्मान ज्ञान सब इस मायासुर के माया के नतीजा है

इतना बोलके मायासुर ने उस असुर को जमीन पर फेक दिया

मायासुर:- आज अगर मेरे पास मेरी शक्तियाँ होती तो मुझे तुम्हारी कोई जरूरत नही थी ठीक है अगर तुम्हे नही करना है तो मे कोई दूसरा रास्ता ढूंढ लूँगा बस तुम उस शस्त्र का आवहान करो जिससे हर असुर को मारा जा सकता हैं

असुर :- अब तुम्हे वो अस्त्र क्यों चाहिए तुम नही जानते उसका आवहान करना पाताल लोक के नियमों के खिलाफ है

असुर की बात सुनने के बाद तुरंत ही मायासुर ने अपनी तलवार निकाल कर सीधा उसका गला काट दिया जिससे उस गुरु की चीख निकल गयी

परंतु अगले ही पल उसका सर फिर से उसके धड़ पर था और जब उस गुरु ने ये महसूस किया तो डर के मारे उसकी साँसे तेज हो गयी थी उसकी आँखों में केवल भय था मायासुर का भय

मायासुर:- अभी तो सिर्फ मैने अपनी माया से तुम्हारे सर कटने का छलावा बनाया था उसी मे तुम्हारी ये हालत हो गयी सोचो अगर तुम ऐसे ही मुझे टॉकते रहे तो असल मे मै तुम्हारे साथ क्या करूँगा बाकी तुम समझदार हो

ये बोलके मायासुर वहा से निकल गया और पीछे रह गया डर से काँपता हुआ असुर गुरु

तो वही दूसरी तरफ कालविजय आश्रम में महा गुरु और बाकी गुरुओं को होश आ गया था शिवाये भद्रा के

तो वही जब सबको होश आया तो वो सभी युद्ध की तैयारियां होते देखकर दंग हो गए जिसके बाद दिग्विजय ने उन्हे सारे हालातों से अवगत कराया और सब सुनकर वो सभी भी आने वाले युद्ध की कल्पना करने लगे

जिसके बाद उन तीनों गुरुओं ने अपने अपने अस्त्रों का आवहान किया परंतु उनके लाख कोशिशों के बाद भी अग्नि जल और काल अस्त्र उन्हे शक्तियाँ प्रदान नही कर रहे थे और न ही वो पहले जैसे चमक रहे थे

ऐसा लग रहा था कि मानो उनमे कोई शक्तियाँ है ही नही वो शक्तिहीन हो गए है जो देखकर सारे अस्त्र धारक दंग हो गए थे और साथ मे ही अब आगे के लिए सोच कर उन्हे डर भी लग रहा था कि

अब जब महायुद्ध आरंभ होगा तब इस दुनिया को बचाने के लिए सबसे बड़ी शक्ति ही उनके पास नही होगी और यही सब सोचकर ये बात उन्होंने अपने तक ही सीमित रखी


आश्रम के किसी भी अन्य सदस्य को ये बात नही बताई जिससे सबका विश्वास टूटे न उनके हौसले की जगह भय न लेले और फिर गुरु अग्नि ने भी मस्तिष्क तरंगों के जरिये अपने बचे कुचे शिष्यों को भी काल विजय आश्रम बुला लिया

तो वही मायासुर असुर गुरु के गुफा से निकल कर सीधा अपने महल मे चला गया और अपने महल के छत पर वो यहाँ से वहा टहलने लगा जैसे कि किसी बड़ी परेशानी का हल ढूंढ रहा हो

और तुरंत ही वो टहलते हुए रुक गया उसके चेहरे पर एक जंग जितने वाली मुस्कान आ गयी थी और फिर वो तुरंत अपने घर से गायब हो कर कही चला गया

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आज के लिए इतना ही

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Nice update....
 
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