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Fantasy ब्रह्माराक्षस

park

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अध्याय सातवा

जब सुबह शांति की नींद खुली तो उसे कल जो भी हुआ वो फिर एक बार याद आ गया जिसके बारे में सोचने से ही उसके चेहरे पर मुस्कान आ गई उसी मुस्कान के साथ वो धीरे से अपने बिस्तर पर से उठी और फ्रेश होने बाथरुम की तरफ जाने लगी

तो वही जब वो नहा रही थी तब उसका हाथ जब उसके स्थानो के उपर आ गया तो उसकी एक मादक सिसकारी निकल आयी और धीरे से उसने अपनी आंखे बंद की और धीरे-धीरे सिसकते हुए अपने स्तनों को मसलने लगी

जिससे उन्हें भी अब मदहोशी चढ़ने लगी और ऐसे ही अपने स्तन मसलते हुए उनका हाथ उनके जांघों के यहां आ गया जहां पर कल मेंने हाथ रखा था उन्हें उठाने के लिए और अपने हाथ को भी उसी जगह पर रख कर उन्हें ऐसा लगने लगा कि वो मेरा ही हाथ है

जिससे उनकी मदहोशी अब ठरक मे बदल गई थी और वो अब अपने हाथ को मेरा हाथ समझते हुए वो उसे धीरे-धीरे अपने चुत की तरफ़ ले जाने लगी और जैसे ही उनका हाथ उनके चुत के दाने से टकराया वैसे ही वो सिसकारी लेते हुए झरने लगीं

और जब वो झरने लगीं तो उनका शरीर ऐसे काँपने लगा कि जैसे उनके बदन को किसी ने बिजली का झटका दे दिया था जिससे वो वहीं फर्श पर बैठ गयी और हांफने लगीं

और जब उन्होंने अपने इस चरमसुख को अनुभव किया तो उनकी आखें अपने आप बंद हो गई और जैसे ही उन्होंने अपनी आखें बंद की वैसे उनके आखों के सामने कल की ही घटना आने लगी थी जिससे उनके चेहरे पर शर्मीली मुस्कान छा गई

जिसके बाद वो उठीं और फ्रेश होके मेरे घर की तरफ निकल पडी लेकिन तब तक मे वहां से निकल चुका था लेकिन उनकी मुलाकात सत्येंद्र काका से हुई जिन्होंने उन्हें मेरे आज सुबह के किस्से के बारे में बता दिया जिससे वो और चिंता मे आ गई

तो वहीं इस वक्त मे एक बड़ी बिल्डिंग के सामने खड़ा था ये बिल्डिंग किसी और की नहीं बल्कि गुरु नंदी (शैलेश) के ऑफिस की इमारत थी मेंने दो पल उस इमारत को देखने के बाद अपने मन में चल रहे विचारों को शांत किया और अंदर की तरफ चल दिया

जब मे उनके कैबिन के बाहर पहुंचा तो अंदर से मुझे कुछ आवाजें सुनायी दे रही थी ऐसा लग रहा था कि जैसे वो अपने बेटे से बात कर रहे हैं और अभी ग़ुस्से मे हैं

वही जब अंदर सन्नाटा हुआ तो मे अंदर चला गया लेकिन अंदर गुरु नंदी के अलावा कोई और नहीं था शायद वो फोन पर बात कर रहे थे अभीं मे कैबिन के गेट पर था कि तभी उनका ध्यान मेरे उपर गया

गुरु नंदी :- अरे भद्रा बेटा तुम आज यहा कैसे

में :- प्रणाम गुरु नंदी

शैलेश :- अरे यहां पर मुझे गुरु नंदी मत बुलाओ मुझे तुम अंकल कह कर बुलाओ

में :- ठीक है अंकल वैसे मे यहा आया था आपसे एक मदद मांगने

शैलेश :- अरे बेटा मेने तुम्हें पहले ही कहा था कि तुम मेरे परिवार जैसे हो इसीलिए ये मदद मत माँगों कल तुम्हारा जन्मदिन था तो उसका तोहफा माँगों

में :- शायद मे कुछ ज्यादा ही मांग लू इसीलिए बुरा मत मानना आपने s3 होटल (प्रिया के पिता के होटल का नाम) के बारे में सुना ही होगा

शैलेश :- हाँ सुना है और वो तो पिछले कुछ दिनों से हमारे साथ डील करने के लिए कोशिश कर रहा हैं

में :- मुझे उसी के बारे में कुछ बात करनी है मे चाहता हूं कि आप उनके साथ डील को फाइनल कर दे

शैलेश :- अच्छा और अचानक उनपर ये एहसान क्यु

में :- उनका उधार है मेरे पर बस वो चुकाना है

शैलेश :- ठीक है वैसे भी उनके साथ डील करना हमारे लिए भी अच्छा मुनाफा कमाने के लिए अवसर था और अब तुमने सिफारिश डाल दी है तो उनसे डील फाइनल होने से कोई रोक नहीं सकता

में :- धन्यवाद अंकल आप इस मदद के बदले भविष्य में कुछ भी मांग सकते हो मे मना नहीं करूंगा

शैलेश :- अरे ये कोई मदद नहीं बल्कि तुम्हारा जन्मदिन का तोहफा है समझे और हाँ उस दिग्विजय से भी जाकर मिल लो जब शहर आए हों उससे तुम मिले भी नहीं हो वो गुस्सा है तुमसे

मे :- ठीक है उनसे भी मिल लूँगा अब मे चलता हूं

इतना बोलकर मे वहाँ से निकल गया

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आज के लिए इतना ही

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Nice and superb update....
 

kas1709

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अध्याय सातवा

जब सुबह शांति की नींद खुली तो उसे कल जो भी हुआ वो फिर एक बार याद आ गया जिसके बारे में सोचने से ही उसके चेहरे पर मुस्कान आ गई उसी मुस्कान के साथ वो धीरे से अपने बिस्तर पर से उठी और फ्रेश होने बाथरुम की तरफ जाने लगी

तो वही जब वो नहा रही थी तब उसका हाथ जब उसके स्थानो के उपर आ गया तो उसकी एक मादक सिसकारी निकल आयी और धीरे से उसने अपनी आंखे बंद की और धीरे-धीरे सिसकते हुए अपने स्तनों को मसलने लगी

जिससे उन्हें भी अब मदहोशी चढ़ने लगी और ऐसे ही अपने स्तन मसलते हुए उनका हाथ उनके जांघों के यहां आ गया जहां पर कल मेंने हाथ रखा था उन्हें उठाने के लिए और अपने हाथ को भी उसी जगह पर रख कर उन्हें ऐसा लगने लगा कि वो मेरा ही हाथ है

जिससे उनकी मदहोशी अब ठरक मे बदल गई थी और वो अब अपने हाथ को मेरा हाथ समझते हुए वो उसे धीरे-धीरे अपने चुत की तरफ़ ले जाने लगी और जैसे ही उनका हाथ उनके चुत के दाने से टकराया वैसे ही वो सिसकारी लेते हुए झरने लगीं

और जब वो झरने लगीं तो उनका शरीर ऐसे काँपने लगा कि जैसे उनके बदन को किसी ने बिजली का झटका दे दिया था जिससे वो वहीं फर्श पर बैठ गयी और हांफने लगीं

और जब उन्होंने अपने इस चरमसुख को अनुभव किया तो उनकी आखें अपने आप बंद हो गई और जैसे ही उन्होंने अपनी आखें बंद की वैसे उनके आखों के सामने कल की ही घटना आने लगी थी जिससे उनके चेहरे पर शर्मीली मुस्कान छा गई

जिसके बाद वो उठीं और फ्रेश होके मेरे घर की तरफ निकल पडी लेकिन तब तक मे वहां से निकल चुका था लेकिन उनकी मुलाकात सत्येंद्र काका से हुई जिन्होंने उन्हें मेरे आज सुबह के किस्से के बारे में बता दिया जिससे वो और चिंता मे आ गई

तो वहीं इस वक्त मे एक बड़ी बिल्डिंग के सामने खड़ा था ये बिल्डिंग किसी और की नहीं बल्कि गुरु नंदी (शैलेश) के ऑफिस की इमारत थी मेंने दो पल उस इमारत को देखने के बाद अपने मन में चल रहे विचारों को शांत किया और अंदर की तरफ चल दिया

जब मे उनके कैबिन के बाहर पहुंचा तो अंदर से मुझे कुछ आवाजें सुनायी दे रही थी ऐसा लग रहा था कि जैसे वो अपने बेटे से बात कर रहे हैं और अभी ग़ुस्से मे हैं

वही जब अंदर सन्नाटा हुआ तो मे अंदर चला गया लेकिन अंदर गुरु नंदी के अलावा कोई और नहीं था शायद वो फोन पर बात कर रहे थे अभीं मे कैबिन के गेट पर था कि तभी उनका ध्यान मेरे उपर गया

गुरु नंदी :- अरे भद्रा बेटा तुम आज यहा कैसे

में :- प्रणाम गुरु नंदी

शैलेश :- अरे यहां पर मुझे गुरु नंदी मत बुलाओ मुझे तुम अंकल कह कर बुलाओ

में :- ठीक है अंकल वैसे मे यहा आया था आपसे एक मदद मांगने

शैलेश :- अरे बेटा मेने तुम्हें पहले ही कहा था कि तुम मेरे परिवार जैसे हो इसीलिए ये मदद मत माँगों कल तुम्हारा जन्मदिन था तो उसका तोहफा माँगों

में :- शायद मे कुछ ज्यादा ही मांग लू इसीलिए बुरा मत मानना आपने s3 होटल (प्रिया के पिता के होटल का नाम) के बारे में सुना ही होगा

शैलेश :- हाँ सुना है और वो तो पिछले कुछ दिनों से हमारे साथ डील करने के लिए कोशिश कर रहा हैं

में :- मुझे उसी के बारे में कुछ बात करनी है मे चाहता हूं कि आप उनके साथ डील को फाइनल कर दे

शैलेश :- अच्छा और अचानक उनपर ये एहसान क्यु

में :- उनका उधार है मेरे पर बस वो चुकाना है

शैलेश :- ठीक है वैसे भी उनके साथ डील करना हमारे लिए भी अच्छा मुनाफा कमाने के लिए अवसर था और अब तुमने सिफारिश डाल दी है तो उनसे डील फाइनल होने से कोई रोक नहीं सकता

में :- धन्यवाद अंकल आप इस मदद के बदले भविष्य में कुछ भी मांग सकते हो मे मना नहीं करूंगा

शैलेश :- अरे ये कोई मदद नहीं बल्कि तुम्हारा जन्मदिन का तोहफा है समझे और हाँ उस दिग्विजय से भी जाकर मिल लो जब शहर आए हों उससे तुम मिले भी नहीं हो वो गुस्सा है तुमसे

मे :- ठीक है उनसे भी मिल लूँगा अब मे चलता हूं

इतना बोलकर मे वहाँ से निकल गया

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आज के लिए इतना ही

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Nice update....
 

VAJRADHIKARI

Hello dosto
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Bhai update bahot jabardast tha par bahot chhota tha bhai thora bara update do naa parne me bahot maja aayga please try karo dost bara update ka. Next update ka intajaar rahegaa bhai 👍👍👍👍👍👍👍👍👍👍👌👌👌👌👌👌👌👌
Bahut hi sunder or chota update tha mitr .....
बहुत ही जल्द बड़ा अपडेट आएगा निश्चित रहे मित्रों
 

Mast fakir

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अध्याय पहला

जैसे कि सबने पढ़ा कि कैसे अच्छाई को मिली नई शक्तियों के कारण अच्छाई के साथ देने वाले लोग अपने ही साथियों से ईर्ष्या करने लगे उन्हें अपने ही साथियों से जलन होने लगी जिसका फायदा बुराई का पक्ष लिया करता है

और इसी जलन का शिकार बना एक साधु और साध्वी का जोड़ा दोनों भी विवाहित थे और पूरे संसार के मायावी शक्तियों से पूर्णतः शिक्षित और जानकार थे और वो अपनी सभी शक्तियों का प्रयोग केवल संसार के भलाई के लिए करते थे जिससे वो सब जगह पर प्रसिद्ध होने लगे लेकिन उनके आसपास के लोगों को यह अछा नहीं लगता था इसी के चलते उन्होंने एक षड्यंत्र का निर्माण किया और उन साधु साध्वी का रूप लेकर एक महान विद्वान साधु के यज्ञ स्थान पर संभोग क्रिया करने लगे

जिससे वो यज्ञ निष्फल हो गया और वो साधु क्रोधित हो गए लेकिन वो दोनों बहरूपिये वहां से भाग निकले लेकिन उस साधु ने उनका नकली चेहरा देख लिया था जिससे वह सीधे उन साधु साध्वी के घर जा पहुचे जहा वो दोनों अपने अजन्मे पुत्र के लिए प्राथना कर रहे थे

और जब उन्होंने उस साधु को अपने द्वार पर देखा तो वो आती प्रसन्न हो उठे परंतु उनका क्रोधित चेहरा देख कर डर गए और उनसे इस क्रोध का कारण पूछने लगे लेकिन उस साधु ने बिना कुछ कहे और बिना कुछ सुने उन्हें अक्षम्य श्राप दे दिया जिसके परिणामस्वरूप उनकी मृत्यु हो जाती लेकिन उनके किए पुण्य कर्म के कारण उनकी मृत्यु नहीं हुई परंतु वो असुर रूप मे परावर्तित हो गए लेकिन उनके कर्मों और ज्ञान के वजह से वो ब्रम्हाराक्षस बन गए

और जब उन दोनों को इस षड्यंत्र का पता चला तो उन्होंने उन सभी साधुओं का अंत कर दिया और उन्हें भी अपने तरह ही ब्रह्माराक्षस का रूप लेने के लिए मजबूर कर दिया और तब से जो भी वेद पाठ करने वाला ज्ञानी विद्वान साधु या व्यक्ति कोई भी अक्षम्य अपराध करता वो ब्रह्माराक्षस का रूप लेने के लिए मजबूर हो जाते इसीलिए उनका स्थान पाताल लोक मे हो गया और उस दिन से वो दोनों साधु साध्वी पाताल लोक मे रहकर भी अच्छाई का साथ देते परंतु इस वजह से उनका पुत्र जिसने इस संसार मे कदम भी नहीं रखा था वो मृत्यु को प्राप्त हो गया और इस का पूर्ण दोष उन्हीं ज्ञानी साधु पर आया जिसने श्राप दिया था इसी कारण वह भी ब्रह्माराक्षस के रूप में परावर्तित हो गया

तो वही इस तरह पूरे संसार में इस बात का खुलासा हो गया और सभी साधु महात्मा अपने अपने दुष्कर्म की माफ़ी पाने के लिए उसका प्रायश्चित करने के लिए अलग अलग तरीके करने लगे लेकिन विधि के विधान और कर्मों के फल से कोई बच ना सका और इस तरह ब्रह्माराक्षस प्रजाति का निर्माण हुआ

तो वही इस सब के ज्ञात होते ही सप्तऋषियों ने एक आपातकालीन बैठक बुलायी और फिर सबने मिलकर फैसला किया कि हर 100 सालों में अस्त्रों की जिम्मेदारी वह अपने उत्तराधिकारी को देकर अपने कर्मों का दंड पाने के लिए मुक्त हो जाएंगे और तभी से यह नियम को लागू किया गया

तो वही उन साधु साध्वी जो अब ब्रह्माराक्षस प्रजाति के सम्राट और साम्राज्ञी के रूप मे थे वो भी उन सप्त अस्त्रों की सुरक्षा के लिए अपना योगदान देने लगे और इसी वजह से उन सप्तऋषियों ने मिलके अपनी सप्त शक्ति से उन दोनों को इंसानी रूप देने का फैसला किया लेकिन इसके लिए उन्हें उचित विद्या और मंत्र नहीं मिल पा रहा था इसी वजह से वो हर पल उन अस्त्रों की शक्ति को और अधिक जानने का प्रयास करते रहे और जब उन्हें उस मंत्र का पता चला तो उन्होंने तुरंत उसका इस्तेमाल उन दोनों पर किया लेकिन वो निष्फल हो गया जिससे सभी लोग निराश होकर अपने अपने नियमित कार्यों में लाग गए

और समय का पहिया अपनी गति से चलने लगा कई शतक गुजर गए सप्तर्षियों की कई पीढ़ियों को शस्त्र धारक बनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ था परंतु जैसे जैसे संसार में पाप का साम्राज्य स्थापित होने लगा तो अस्त्रों ने भी अपने धारक के चुनाव को और अधिक कठिन और लगभग नामुमकिन बना दिया जिस वजह से कोई भी व्यक्ति अब धारक नहीं बन पाई और उनको उन अस्त्रों की सुरक्षा की जिम्मेदारी दी गई और उन अस्त्रों की शक्तियां ना होने के कारण सब चिंतित होने लगे क्यूंकि जब पाप का साम्राज्य स्थापित हुआ तब से लेकर अब तक बुराई के पक्ष ने असीमित मायावी शक्तियों को ग्रहण कर लिया था और वह महा शक्ति शाली हो गए थे इसी कारण से अब अस्त्रों की सुरक्षा खतरे में पड़ गई थी तब उन्हीं दो साधु साध्वी ने जिनका नाम त्रिलोकेश्वर और दमयन्ती था

उन्होंने अपने ग्यान और ब्रह्माराक्षस की शक्तियों के मदद से नए सप्तर्षियों को वो अलौकिक ग्यान और विद्या प्रदान की जिसका पता केवल देवता और असुरों को था और जब वह ग्यान सप्तर्षियों को प्राप्त हुआ तो बहुत से असुर और बुराई के पक्ष के अन्य साथी क्रोधित हो गए और उन्होंने उन दोनों के खिलाफ षडयंत्र रचना शुरू कर दिया जिसमें उनका साथ खुद ब्रह्माराक्षसोँ ने दिया लेकिन सब जानते थे कि उनपर सीधा हमला करने से वो सभी मारे जाते इसीलिए उन्होंने छल का सहारा लेना सही समझा

तो वही जब कलयुग का आरंभ हुआ तो असुरों को यह सही समय लगा और उन्होंने अपने सालों पुराना बदला लेने के लिए योजना बनाना शुरू कर दिया और फिर वो समय आया जब पूरे संसार में कलयुग का प्रभाव फैल गया और अच्छाई का पक्ष कमजोर पड़ने लगा लेकिन तभी उस वक़्त के सप्तर्षियों ने प्राचीन ग्रंथों में से कई सारी प्राचीन विद्या सीख ली जिनको प्राचीन काल में अस्त्रों की शक्तियों के आगे तुच्छ समझकर भुला दिया गया था उन्हीं शक्तियों मे उन सप्तर्षियों को कुछ ऐसे मंत्र मिले जिनसे उन अस्त्रों की शक्तियों को जागृत करके इस्तेमाल किया जा सकता था परंतु उन अस्त्रों के धारक की शक्तियों के आगे ये मंत्र तुच्छ समझे जाने जाते थे इसीलिए अब तक इनके बारे में जानकारी किसी को भी नहीं थी परंतु समय की मांग ने सबको ईन शक्तियों से मिला दिया था

१/०१/२००२

इस तारिक को एक बहुत ही विचित्र घटना घटीं इतिहास में पहली बार एक ब्रह्माराक्षस जन्म लेने वाला था यह बात हर जगह पर आग की तरह फैल गई क्यूंकि मृत्यु के बाद बहुत से ज्ञानी विद्वान लोग ब्रह्माराक्षस बने हुए थे लेकिन जिसका जन्म ही ब्रह्माराक्षस की रूप मे हुआ हो ऐसा यह पहला बालक था और उसके माता पिता कोई और नहीं बल्कि ब्रह्माराक्षस प्रजाति के सम्राट और साम्राज्ञी थे और जब एक ब्रह्माराक्षस ने सम्राज्ञी की हालत देखी तो उसने बताया कि जो बालक श्राप के प्रभाव से मारा गया था वो पुनर्जन्म लेने वाला है लेकिन इस बार वो बालक जन्म से ही ब्रह्माराक्षस होगा और वो सभी से ज्यादा शक्तिशाली होगा ये सब बताने वाला ब्रह्माराक्षस और कोई नहीं वही साधु था जिसने त्रिलोकेश्वर और दमयन्ती को श्राप दिया था

ऐसे ही १ वर्ष बीत गया और वो समय आ गया जब साम्राज्ञी दमयन्ती अपने बालक को जन्म देने वाली थी लेकिन असुरों के छल से इस वक्त तक सम्राट और साम्राज्ञी दोनों बेहद कमजोर हो गए थे और जब दमयन्ती ने बच्चे को जन्म दिया तो वहां मौजूद सभी चकित रह गए क्यूंकि बालक इंसानी रूप मे था जिससे सब लोग निराश हो गए शिवाय सम्राट और साम्राज्ञी के क्यूंकि उन्हें एहसास हो गया था कि ये इंसानी रूप सप्तअस्त्रों की शक्ति का नतीज़ा है जिस शक्ति का इस्तेमाल उन दोनों को इंसानी रूप देने के लिए हुआ था परंतु सबको लगा कि वो निष्फल हो गई लेकिन असल मे वो शक्ति उन दोनों के शरीर में समा गई थी और अब वो पूर्ण शक्ति उस बालक के अंदर थी

अभी वो दोनों इस बात की खुशिया मना पाते उससे पहले ही उन पर आक्रमण हो गया जो कि उनके अपने साथियों ने किया था साम्राज्ञी तो बालक को जन्म देने वजह से और असुरों द्वारा किए गए छल से अत्याधिक कमजोर थी तो वही कमजोर तो सम्राट भी थे लेकिन उन्होंने अपनी बची हुई सभी शक्ति को एकत्रित कर के अपने पुत्र के लिए एक विशेष प्रकार के कवच का निर्माण किया जिससे उस बच्चे के शक्तियों का एहसास होना बंद हो गया और उन्होंने उस बालक को अपने जादू से कहीं दूर भेज दिया लेकिन इस सब के कारण वो बेहद कमजोर हो गए और इसी का फायदा उठाकर असुरों ने उन्हें कैद कर दिया और उनका हुकुम माने ऐसे ब्रह्माराक्षस को सम्राट घोषित किया गया

उन्होंने त्रिलोकेश्वर और दमयन्ती को मारने का भी प्रयास किया परंतु ब्रह्माराक्षस को मारने के लिए ब्रम्हास्त्र की जरूरत होती है जो उनके पास नहीं था और ना वो इतने सक्षम थे कि ब्रम्हास्त्र जैसी शक्ति का इस्तेमाल कर सके

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आज के लिए इतना ही

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Nice update bro. Bus Itna Time date English mein likho like {1/01/2002}
 

dhparikh

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अध्याय सातवा

जब सुबह शांति की नींद खुली तो उसे कल जो भी हुआ वो फिर एक बार याद आ गया जिसके बारे में सोचने से ही उसके चेहरे पर मुस्कान आ गई उसी मुस्कान के साथ वो धीरे से अपने बिस्तर पर से उठी और फ्रेश होने बाथरुम की तरफ जाने लगी

तो वही जब वो नहा रही थी तब उसका हाथ जब उसके स्थानो के उपर आ गया तो उसकी एक मादक सिसकारी निकल आयी और धीरे से उसने अपनी आंखे बंद की और धीरे-धीरे सिसकते हुए अपने स्तनों को मसलने लगी

जिससे उन्हें भी अब मदहोशी चढ़ने लगी और ऐसे ही अपने स्तन मसलते हुए उनका हाथ उनके जांघों के यहां आ गया जहां पर कल मेंने हाथ रखा था उन्हें उठाने के लिए और अपने हाथ को भी उसी जगह पर रख कर उन्हें ऐसा लगने लगा कि वो मेरा ही हाथ है

जिससे उनकी मदहोशी अब ठरक मे बदल गई थी और वो अब अपने हाथ को मेरा हाथ समझते हुए वो उसे धीरे-धीरे अपने चुत की तरफ़ ले जाने लगी और जैसे ही उनका हाथ उनके चुत के दाने से टकराया वैसे ही वो सिसकारी लेते हुए झरने लगीं

और जब वो झरने लगीं तो उनका शरीर ऐसे काँपने लगा कि जैसे उनके बदन को किसी ने बिजली का झटका दे दिया था जिससे वो वहीं फर्श पर बैठ गयी और हांफने लगीं

और जब उन्होंने अपने इस चरमसुख को अनुभव किया तो उनकी आखें अपने आप बंद हो गई और जैसे ही उन्होंने अपनी आखें बंद की वैसे उनके आखों के सामने कल की ही घटना आने लगी थी जिससे उनके चेहरे पर शर्मीली मुस्कान छा गई

जिसके बाद वो उठीं और फ्रेश होके मेरे घर की तरफ निकल पडी लेकिन तब तक मे वहां से निकल चुका था लेकिन उनकी मुलाकात सत्येंद्र काका से हुई जिन्होंने उन्हें मेरे आज सुबह के किस्से के बारे में बता दिया जिससे वो और चिंता मे आ गई

तो वहीं इस वक्त मे एक बड़ी बिल्डिंग के सामने खड़ा था ये बिल्डिंग किसी और की नहीं बल्कि गुरु नंदी (शैलेश) के ऑफिस की इमारत थी मेंने दो पल उस इमारत को देखने के बाद अपने मन में चल रहे विचारों को शांत किया और अंदर की तरफ चल दिया

जब मे उनके कैबिन के बाहर पहुंचा तो अंदर से मुझे कुछ आवाजें सुनायी दे रही थी ऐसा लग रहा था कि जैसे वो अपने बेटे से बात कर रहे हैं और अभी ग़ुस्से मे हैं

वही जब अंदर सन्नाटा हुआ तो मे अंदर चला गया लेकिन अंदर गुरु नंदी के अलावा कोई और नहीं था शायद वो फोन पर बात कर रहे थे अभीं मे कैबिन के गेट पर था कि तभी उनका ध्यान मेरे उपर गया

गुरु नंदी :- अरे भद्रा बेटा तुम आज यहा कैसे

में :- प्रणाम गुरु नंदी

शैलेश :- अरे यहां पर मुझे गुरु नंदी मत बुलाओ मुझे तुम अंकल कह कर बुलाओ

में :- ठीक है अंकल वैसे मे यहा आया था आपसे एक मदद मांगने

शैलेश :- अरे बेटा मेने तुम्हें पहले ही कहा था कि तुम मेरे परिवार जैसे हो इसीलिए ये मदद मत माँगों कल तुम्हारा जन्मदिन था तो उसका तोहफा माँगों

में :- शायद मे कुछ ज्यादा ही मांग लू इसीलिए बुरा मत मानना आपने s3 होटल (प्रिया के पिता के होटल का नाम) के बारे में सुना ही होगा

शैलेश :- हाँ सुना है और वो तो पिछले कुछ दिनों से हमारे साथ डील करने के लिए कोशिश कर रहा हैं

में :- मुझे उसी के बारे में कुछ बात करनी है मे चाहता हूं कि आप उनके साथ डील को फाइनल कर दे

शैलेश :- अच्छा और अचानक उनपर ये एहसान क्यु

में :- उनका उधार है मेरे पर बस वो चुकाना है

शैलेश :- ठीक है वैसे भी उनके साथ डील करना हमारे लिए भी अच्छा मुनाफा कमाने के लिए अवसर था और अब तुमने सिफारिश डाल दी है तो उनसे डील फाइनल होने से कोई रोक नहीं सकता

में :- धन्यवाद अंकल आप इस मदद के बदले भविष्य में कुछ भी मांग सकते हो मे मना नहीं करूंगा

शैलेश :- अरे ये कोई मदद नहीं बल्कि तुम्हारा जन्मदिन का तोहफा है समझे और हाँ उस दिग्विजय से भी जाकर मिल लो जब शहर आए हों उससे तुम मिले भी नहीं हो वो गुस्सा है तुमसे

मे :- ठीक है उनसे भी मिल लूँगा अब मे चलता हूं

इतना बोलकर मे वहाँ से निकल गया

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आज के लिए इतना ही

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Nice update....
 

VAJRADHIKARI

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अध्याय आठवां

अभीं मे गुरु सिंह (दिग्विजय) से मिलने के लिए RAW headquarters के बाहर खड़ा था और जैसे ही मे अंदर जाने लगा तो वहाँ के गार्ड ने मुझे वही पर रोक दिया और पहचान जानने के बाद उसने गुरु सिँह से भी इस बात की पुष्टि की जिसके बाद उसने मुझे अंदर जाने दिया है और जब मे गुरु सिँह के कैबिन के अंदर पहुचा तो वहाँ पर वो कोई फाइल पढ़ रहे थे और जब उन्होंने मुझे देखा तो उन्होंने वो फाइल साइड में रख दी

दिग्विजय :- अब मौका मिला है जनाब को हमसे मिलने के लिए इतने बिजी हो गए शहर आकर

मैं :- ऐसा नहीं है गुरु सिँह वो मुझे लगा आप बिजी होंगे इसीलिए नहीं आया

दिग्विजय :- सबसे पहले शहर में किसी भी अस्त्र धारक को गुरु कहके नहीं बुलाना है मुझे तुम सर कहकर बुला सकते हो या फिर नाम लेके बोलो मुझे कोई आपत्ति नहीं है

मैं :- नहीं सर ठीक है

दिग्विजय :- बताओ आज यहां का रास्ता कैसे भूल गए

मैं :- कुछ नहीं बस नए साल की बधाई देने के लिए आया था

दिग्विजय :- तुम्हे भी नए साल और जन्मदिन की बधाई हो

मै :- धन्यवाद आपका

दिग्विजय :- तो बताओ तुम्हारे सपने क्या है आगे क्या करना चाहते हो तुम

मैं :- सपने

गुरु सिँह के मुह से सपने सुनकर मुझे आज सुबह का सपना याद आ गया जिससे मेरे चेहरे पर चिंता की लकीरें उठ आयी और उन लकीरों को गुरु सिँह ने अच्छे से पकड़ लिया था

दिग्विजय :- बताओ क्या बात है भद्रा क्या छुपा रहे हो तुम

मै :- कुछ भी तो नहीं है लेकिन आप ये क्यु पूछ रहे हो

दिग्विजय :- देखो भद्रा इस रॉ के काम ने मुझे एक बुरी आदत लगा दी है कि मे झूठ जलदी पकड़ लेता हु इसीलिए सच बताओ

मैं उनकी बात सुनकर मे थोड़ी देर सोच मे पड़ गया और फिर मेने गुरु सिँह को आज के सपने के बारे में सब कुछ बता दिया

दिग्विजय :- अच्छा तो यह बात है मुझे लगा ही था कि तुम्हारे साथ ऐसा होगा

मैं :- मतलब

दिग्विजय :- देखो भद्रा मे शुरू से ही तुम्हे आश्रम में रखने के खिलाफ था क्यूँकी मे जानता था कि जब तुम बड़े होगे और तुम्हारी बौद्धिक क्षमता बढ़ेगी तो असुर राक्षस प्रेत अस्त्र ये सारी बातें तुम्हारे दिमाग को इतना चिंतित कर देगी की तुम हर समय उसी के बारे में सोचते रहोगे और मे ये सब ऐसे ही नहीं बोल रहा हूँ ब्लकि मेंने और हम सभी अस्त्र धारकों ने भी ये सब सहा है और इसी वजह से मेंने महागुरु से बोलकर तुम्हें शहर बुलाया था कि तुम यहा रहकर अपने दिमाग को शांति दो लेकिन तुम यहा रहकर भी उसी सब के बारे में सोचते हो अपने दिमाग को आराम दो भद्रा

जब गुरु सिँह मुझे ये सब बता रहे थे थे तब मे भी उनकी कहीं हर एक बात पर विचार कर रहा था और उनकी कहीं हर एक बात सच थी के यहा आने के बाद भी आश्रम और अस्त्रों के बारे में ही सोच रहा था

मैं :- ठीक है जैसा आपने कहा वैसे ही होगा मे अब अपने दिमाग को आराम दूँगा

दिग्विजय :- वैसे ये लो तुम्हारे जन्मदिन का तोहफा मुझे पता है कि तुम्हें तोहफे लेना पसंद नहीं है लेकिन यह मेरा आशिर्वाद समझ कर रख लो

इतना बोलकर उन्होंने मेरे तरफ एक चावी फेंकी जिसे लेके मे जब बाहर आया तो वहा से मेरी बाइक नहीं थी और जब इस बारे में मेंने गार्ड से पूछा तो उसने एक जीप की तरफ इशारा किया जिसे देखकर के समझ गया कि यही मेरा तोहफा है

और फिर मे वो जीप लेके निकल पड़ा अपने घर के तरफ तो वही जब मे घर पहुचा तो मेरे रूम का लॉक खुला हुआ था और जब मे घर का दरवाजा खोलने का प्रयास किया तो दरवाजा अंदर से लॉक था

और जब मेरे दरवाजे पर दस्तक देने के बाद जब दरवाज़ा खुला तो मे दंग रह गया क्यूँ की मुझे लगा था कि हमेशा के तरह सत्येंद्र काका होंगे लेकिन दरवाजा खोलने वाला कोई और नहीं बल्कि शांति थी

जिसे देख कर मेरे मन में फिर से उनकी नंगे शरीर के चित्र आने लगे जिससे मे थोड़ा घबरा रहा था तो वही मेरे शरीर मे वो सब सोचकर फिर से विद्युत तरंग दौड़ने लगे थे

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आज के लिए इतना ही

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