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अध्याय आठवां
अभीं मे गुरु सिंह (दिग्विजय) से मिलने के लिए RAW headquarters के बाहर खड़ा था और जैसे ही मे अंदर जाने लगा तो वहाँ के गार्ड ने मुझे वही पर रोक दिया और पहचान जानने के बाद उसने गुरु सिँह से भी इस बात की पुष्टि की जिसके बाद उसने मुझे अंदर जाने दिया है और जब मे गुरु सिँह के कैबिन के अंदर पहुचा तो वहाँ पर वो कोई फाइल पढ़ रहे थे और जब उन्होंने मुझे देखा तो उन्होंने वो फाइल साइड में रख दी
दिग्विजय :- अब मौका मिला है जनाब को हमसे मिलने के लिए इतने बिजी हो गए शहर आकर
मैं :- ऐसा नहीं है गुरु सिँह वो मुझे लगा आप बिजी होंगे इसीलिए नहीं आया
दिग्विजय :- सबसे पहले शहर में किसी भी अस्त्र धारक को गुरु कहके नहीं बुलाना है मुझे तुम सर कहकर बुला सकते हो या फिर नाम लेके बोलो मुझे कोई आपत्ति नहीं है
मैं :- नहीं सर ठीक है
दिग्विजय :- बताओ आज यहां का रास्ता कैसे भूल गए
मैं :- कुछ नहीं बस नए साल की बधाई देने के लिए आया था
दिग्विजय :- तुम्हे भी नए साल और जन्मदिन की बधाई हो
मै :- धन्यवाद आपका
दिग्विजय :- तो बताओ तुम्हारे सपने क्या है आगे क्या करना चाहते हो तुम
मैं :- सपने
गुरु सिँह के मुह से सपने सुनकर मुझे आज सुबह का सपना याद आ गया जिससे मेरे चेहरे पर चिंता की लकीरें उठ आयी और उन लकीरों को गुरु सिँह ने अच्छे से पकड़ लिया था
दिग्विजय :- बताओ क्या बात है भद्रा क्या छुपा रहे हो तुम
मै :- कुछ भी तो नहीं है लेकिन आप ये क्यु पूछ रहे हो
दिग्विजय :- देखो भद्रा इस रॉ के काम ने मुझे एक बुरी आदत लगा दी है कि मे झूठ जलदी पकड़ लेता हु इसीलिए सच बताओ
मैं उनकी बात सुनकर मे थोड़ी देर सोच मे पड़ गया और फिर मेने गुरु सिँह को आज के सपने के बारे में सब कुछ बता दिया
दिग्विजय :- अच्छा तो यह बात है मुझे लगा ही था कि तुम्हारे साथ ऐसा होगा
मैं :- मतलब
दिग्विजय :- देखो भद्रा मे शुरू से ही तुम्हे आश्रम में रखने के खिलाफ था क्यूँकी मे जानता था कि जब तुम बड़े होगे और तुम्हारी बौद्धिक क्षमता बढ़ेगी तो असुर राक्षस प्रेत अस्त्र ये सारी बातें तुम्हारे दिमाग को इतना चिंतित कर देगी की तुम हर समय उसी के बारे में सोचते रहोगे और मे ये सब ऐसे ही नहीं बोल रहा हूँ ब्लकि मेंने और हम सभी अस्त्र धारकों ने भी ये सब सहा है और इसी वजह से मेंने महागुरु से बोलकर तुम्हें शहर बुलाया था कि तुम यहा रहकर अपने दिमाग को शांति दो लेकिन तुम यहा रहकर भी उसी सब के बारे में सोचते हो अपने दिमाग को आराम दो भद्रा
जब गुरु सिँह मुझे ये सब बता रहे थे थे तब मे भी उनकी कहीं हर एक बात पर विचार कर रहा था और उनकी कहीं हर एक बात सच थी के यहा आने के बाद भी आश्रम और अस्त्रों के बारे में ही सोच रहा था
मैं :- ठीक है जैसा आपने कहा वैसे ही होगा मे अब अपने दिमाग को आराम दूँगा
दिग्विजय :- वैसे ये लो तुम्हारे जन्मदिन का तोहफा मुझे पता है कि तुम्हें तोहफे लेना पसंद नहीं है लेकिन यह मेरा आशिर्वाद समझ कर रख लो
इतना बोलकर उन्होंने मेरे तरफ एक चावी फेंकी जिसे लेके मे जब बाहर आया तो वहा से मेरी बाइक नहीं थी और जब इस बारे में मेंने गार्ड से पूछा तो उसने एक जीप की तरफ इशारा किया जिसे देखकर के समझ गया कि यही मेरा तोहफा है
और फिर मे वो जीप लेके निकल पड़ा अपने घर के तरफ तो वही जब मे घर पहुचा तो मेरे रूम का लॉक खुला हुआ था और जब मे घर का दरवाजा खोलने का प्रयास किया तो दरवाजा अंदर से लॉक था
और जब मेरे दरवाजे पर दस्तक देने के बाद जब दरवाज़ा खुला तो मे दंग रह गया क्यूँ की मुझे लगा था कि हमेशा के तरह सत्येंद्र काका होंगे लेकिन दरवाजा खोलने वाला कोई और नहीं बल्कि शांति थी
जिसे देख कर मेरे मन में फिर से उनकी नंगे शरीर के चित्र आने लगे जिससे मे थोड़ा घबरा रहा था तो वही मेरे शरीर मे वो सब सोचकर फिर से विद्युत तरंग दौड़ने लगे थे
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आज के लिए इतना ही
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Beautiful update but very short update
Yaar thoda bde bhi update do
Nice and superb update.....अध्याय आठवां
अभीं मे गुरु सिंह (दिग्विजय) से मिलने के लिए RAW headquarters के बाहर खड़ा था और जैसे ही मे अंदर जाने लगा तो वहाँ के गार्ड ने मुझे वही पर रोक दिया और पहचान जानने के बाद उसने गुरु सिँह से भी इस बात की पुष्टि की जिसके बाद उसने मुझे अंदर जाने दिया है और जब मे गुरु सिँह के कैबिन के अंदर पहुचा तो वहाँ पर वो कोई फाइल पढ़ रहे थे और जब उन्होंने मुझे देखा तो उन्होंने वो फाइल साइड में रख दी
दिग्विजय :- अब मौका मिला है जनाब को हमसे मिलने के लिए इतने बिजी हो गए शहर आकर
मैं :- ऐसा नहीं है गुरु सिँह वो मुझे लगा आप बिजी होंगे इसीलिए नहीं आया
दिग्विजय :- सबसे पहले शहर में किसी भी अस्त्र धारक को गुरु कहके नहीं बुलाना है मुझे तुम सर कहकर बुला सकते हो या फिर नाम लेके बोलो मुझे कोई आपत्ति नहीं है
मैं :- नहीं सर ठीक है
दिग्विजय :- बताओ आज यहां का रास्ता कैसे भूल गए
मैं :- कुछ नहीं बस नए साल की बधाई देने के लिए आया था
दिग्विजय :- तुम्हे भी नए साल और जन्मदिन की बधाई हो
मै :- धन्यवाद आपका
दिग्विजय :- तो बताओ तुम्हारे सपने क्या है आगे क्या करना चाहते हो तुम
मैं :- सपने
गुरु सिँह के मुह से सपने सुनकर मुझे आज सुबह का सपना याद आ गया जिससे मेरे चेहरे पर चिंता की लकीरें उठ आयी और उन लकीरों को गुरु सिँह ने अच्छे से पकड़ लिया था
दिग्विजय :- बताओ क्या बात है भद्रा क्या छुपा रहे हो तुम
मै :- कुछ भी तो नहीं है लेकिन आप ये क्यु पूछ रहे हो
दिग्विजय :- देखो भद्रा इस रॉ के काम ने मुझे एक बुरी आदत लगा दी है कि मे झूठ जलदी पकड़ लेता हु इसीलिए सच बताओ
मैं उनकी बात सुनकर मे थोड़ी देर सोच मे पड़ गया और फिर मेने गुरु सिँह को आज के सपने के बारे में सब कुछ बता दिया
दिग्विजय :- अच्छा तो यह बात है मुझे लगा ही था कि तुम्हारे साथ ऐसा होगा
मैं :- मतलब
दिग्विजय :- देखो भद्रा मे शुरू से ही तुम्हे आश्रम में रखने के खिलाफ था क्यूँकी मे जानता था कि जब तुम बड़े होगे और तुम्हारी बौद्धिक क्षमता बढ़ेगी तो असुर राक्षस प्रेत अस्त्र ये सारी बातें तुम्हारे दिमाग को इतना चिंतित कर देगी की तुम हर समय उसी के बारे में सोचते रहोगे और मे ये सब ऐसे ही नहीं बोल रहा हूँ ब्लकि मेंने और हम सभी अस्त्र धारकों ने भी ये सब सहा है और इसी वजह से मेंने महागुरु से बोलकर तुम्हें शहर बुलाया था कि तुम यहा रहकर अपने दिमाग को शांति दो लेकिन तुम यहा रहकर भी उसी सब के बारे में सोचते हो अपने दिमाग को आराम दो भद्रा
जब गुरु सिँह मुझे ये सब बता रहे थे थे तब मे भी उनकी कहीं हर एक बात पर विचार कर रहा था और उनकी कहीं हर एक बात सच थी के यहा आने के बाद भी आश्रम और अस्त्रों के बारे में ही सोच रहा था
मैं :- ठीक है जैसा आपने कहा वैसे ही होगा मे अब अपने दिमाग को आराम दूँगा
दिग्विजय :- वैसे ये लो तुम्हारे जन्मदिन का तोहफा मुझे पता है कि तुम्हें तोहफे लेना पसंद नहीं है लेकिन यह मेरा आशिर्वाद समझ कर रख लो
इतना बोलकर उन्होंने मेरे तरफ एक चावी फेंकी जिसे लेके मे जब बाहर आया तो वहा से मेरी बाइक नहीं थी और जब इस बारे में मेंने गार्ड से पूछा तो उसने एक जीप की तरफ इशारा किया जिसे देखकर के समझ गया कि यही मेरा तोहफा है
और फिर मे वो जीप लेके निकल पड़ा अपने घर के तरफ तो वही जब मे घर पहुचा तो मेरे रूम का लॉक खुला हुआ था और जब मे घर का दरवाजा खोलने का प्रयास किया तो दरवाजा अंदर से लॉक था
और जब मेरे दरवाजे पर दस्तक देने के बाद जब दरवाज़ा खुला तो मे दंग रह गया क्यूँ की मुझे लगा था कि हमेशा के तरह सत्येंद्र काका होंगे लेकिन दरवाजा खोलने वाला कोई और नहीं बल्कि शांति थी
जिसे देख कर मेरे मन में फिर से उनकी नंगे शरीर के चित्र आने लगे जिससे मे थोड़ा घबरा रहा था तो वही मेरे शरीर मे वो सब सोचकर फिर से विद्युत तरंग दौड़ने लगे थे
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आज के लिए इतना ही
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Nice update.....अध्याय आठवां
अभीं मे गुरु सिंह (दिग्विजय) से मिलने के लिए RAW headquarters के बाहर खड़ा था और जैसे ही मे अंदर जाने लगा तो वहाँ के गार्ड ने मुझे वही पर रोक दिया और पहचान जानने के बाद उसने गुरु सिँह से भी इस बात की पुष्टि की जिसके बाद उसने मुझे अंदर जाने दिया है और जब मे गुरु सिँह के कैबिन के अंदर पहुचा तो वहाँ पर वो कोई फाइल पढ़ रहे थे और जब उन्होंने मुझे देखा तो उन्होंने वो फाइल साइड में रख दी
दिग्विजय :- अब मौका मिला है जनाब को हमसे मिलने के लिए इतने बिजी हो गए शहर आकर
मैं :- ऐसा नहीं है गुरु सिँह वो मुझे लगा आप बिजी होंगे इसीलिए नहीं आया
दिग्विजय :- सबसे पहले शहर में किसी भी अस्त्र धारक को गुरु कहके नहीं बुलाना है मुझे तुम सर कहकर बुला सकते हो या फिर नाम लेके बोलो मुझे कोई आपत्ति नहीं है
मैं :- नहीं सर ठीक है
दिग्विजय :- बताओ आज यहां का रास्ता कैसे भूल गए
मैं :- कुछ नहीं बस नए साल की बधाई देने के लिए आया था
दिग्विजय :- तुम्हे भी नए साल और जन्मदिन की बधाई हो
मै :- धन्यवाद आपका
दिग्विजय :- तो बताओ तुम्हारे सपने क्या है आगे क्या करना चाहते हो तुम
मैं :- सपने
गुरु सिँह के मुह से सपने सुनकर मुझे आज सुबह का सपना याद आ गया जिससे मेरे चेहरे पर चिंता की लकीरें उठ आयी और उन लकीरों को गुरु सिँह ने अच्छे से पकड़ लिया था
दिग्विजय :- बताओ क्या बात है भद्रा क्या छुपा रहे हो तुम
मै :- कुछ भी तो नहीं है लेकिन आप ये क्यु पूछ रहे हो
दिग्विजय :- देखो भद्रा इस रॉ के काम ने मुझे एक बुरी आदत लगा दी है कि मे झूठ जलदी पकड़ लेता हु इसीलिए सच बताओ
मैं उनकी बात सुनकर मे थोड़ी देर सोच मे पड़ गया और फिर मेने गुरु सिँह को आज के सपने के बारे में सब कुछ बता दिया
दिग्विजय :- अच्छा तो यह बात है मुझे लगा ही था कि तुम्हारे साथ ऐसा होगा
मैं :- मतलब
दिग्विजय :- देखो भद्रा मे शुरू से ही तुम्हे आश्रम में रखने के खिलाफ था क्यूँकी मे जानता था कि जब तुम बड़े होगे और तुम्हारी बौद्धिक क्षमता बढ़ेगी तो असुर राक्षस प्रेत अस्त्र ये सारी बातें तुम्हारे दिमाग को इतना चिंतित कर देगी की तुम हर समय उसी के बारे में सोचते रहोगे और मे ये सब ऐसे ही नहीं बोल रहा हूँ ब्लकि मेंने और हम सभी अस्त्र धारकों ने भी ये सब सहा है और इसी वजह से मेंने महागुरु से बोलकर तुम्हें शहर बुलाया था कि तुम यहा रहकर अपने दिमाग को शांति दो लेकिन तुम यहा रहकर भी उसी सब के बारे में सोचते हो अपने दिमाग को आराम दो भद्रा
जब गुरु सिँह मुझे ये सब बता रहे थे थे तब मे भी उनकी कहीं हर एक बात पर विचार कर रहा था और उनकी कहीं हर एक बात सच थी के यहा आने के बाद भी आश्रम और अस्त्रों के बारे में ही सोच रहा था
मैं :- ठीक है जैसा आपने कहा वैसे ही होगा मे अब अपने दिमाग को आराम दूँगा
दिग्विजय :- वैसे ये लो तुम्हारे जन्मदिन का तोहफा मुझे पता है कि तुम्हें तोहफे लेना पसंद नहीं है लेकिन यह मेरा आशिर्वाद समझ कर रख लो
इतना बोलकर उन्होंने मेरे तरफ एक चावी फेंकी जिसे लेके मे जब बाहर आया तो वहा से मेरी बाइक नहीं थी और जब इस बारे में मेंने गार्ड से पूछा तो उसने एक जीप की तरफ इशारा किया जिसे देखकर के समझ गया कि यही मेरा तोहफा है
और फिर मे वो जीप लेके निकल पड़ा अपने घर के तरफ तो वही जब मे घर पहुचा तो मेरे रूम का लॉक खुला हुआ था और जब मे घर का दरवाजा खोलने का प्रयास किया तो दरवाजा अंदर से लॉक था
और जब मेरे दरवाजे पर दस्तक देने के बाद जब दरवाज़ा खुला तो मे दंग रह गया क्यूँ की मुझे लगा था कि हमेशा के तरह सत्येंद्र काका होंगे लेकिन दरवाजा खोलने वाला कोई और नहीं बल्कि शांति थी
जिसे देख कर मेरे मन में फिर से उनकी नंगे शरीर के चित्र आने लगे जिससे मे थोड़ा घबरा रहा था तो वही मेरे शरीर मे वो सब सोचकर फिर से विद्युत तरंग दौड़ने लगे थे
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आज के लिए इतना ही
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Nice update....अध्याय आठवां
अभीं मे गुरु सिंह (दिग्विजय) से मिलने के लिए RAW headquarters के बाहर खड़ा था और जैसे ही मे अंदर जाने लगा तो वहाँ के गार्ड ने मुझे वही पर रोक दिया और पहचान जानने के बाद उसने गुरु सिँह से भी इस बात की पुष्टि की जिसके बाद उसने मुझे अंदर जाने दिया है और जब मे गुरु सिँह के कैबिन के अंदर पहुचा तो वहाँ पर वो कोई फाइल पढ़ रहे थे और जब उन्होंने मुझे देखा तो उन्होंने वो फाइल साइड में रख दी
दिग्विजय :- अब मौका मिला है जनाब को हमसे मिलने के लिए इतने बिजी हो गए शहर आकर
मैं :- ऐसा नहीं है गुरु सिँह वो मुझे लगा आप बिजी होंगे इसीलिए नहीं आया
दिग्विजय :- सबसे पहले शहर में किसी भी अस्त्र धारक को गुरु कहके नहीं बुलाना है मुझे तुम सर कहकर बुला सकते हो या फिर नाम लेके बोलो मुझे कोई आपत्ति नहीं है
मैं :- नहीं सर ठीक है
दिग्विजय :- बताओ आज यहां का रास्ता कैसे भूल गए
मैं :- कुछ नहीं बस नए साल की बधाई देने के लिए आया था
दिग्विजय :- तुम्हे भी नए साल और जन्मदिन की बधाई हो
मै :- धन्यवाद आपका
दिग्विजय :- तो बताओ तुम्हारे सपने क्या है आगे क्या करना चाहते हो तुम
मैं :- सपने
गुरु सिँह के मुह से सपने सुनकर मुझे आज सुबह का सपना याद आ गया जिससे मेरे चेहरे पर चिंता की लकीरें उठ आयी और उन लकीरों को गुरु सिँह ने अच्छे से पकड़ लिया था
दिग्विजय :- बताओ क्या बात है भद्रा क्या छुपा रहे हो तुम
मै :- कुछ भी तो नहीं है लेकिन आप ये क्यु पूछ रहे हो
दिग्विजय :- देखो भद्रा इस रॉ के काम ने मुझे एक बुरी आदत लगा दी है कि मे झूठ जलदी पकड़ लेता हु इसीलिए सच बताओ
मैं उनकी बात सुनकर मे थोड़ी देर सोच मे पड़ गया और फिर मेने गुरु सिँह को आज के सपने के बारे में सब कुछ बता दिया
दिग्विजय :- अच्छा तो यह बात है मुझे लगा ही था कि तुम्हारे साथ ऐसा होगा
मैं :- मतलब
दिग्विजय :- देखो भद्रा मे शुरू से ही तुम्हे आश्रम में रखने के खिलाफ था क्यूँकी मे जानता था कि जब तुम बड़े होगे और तुम्हारी बौद्धिक क्षमता बढ़ेगी तो असुर राक्षस प्रेत अस्त्र ये सारी बातें तुम्हारे दिमाग को इतना चिंतित कर देगी की तुम हर समय उसी के बारे में सोचते रहोगे और मे ये सब ऐसे ही नहीं बोल रहा हूँ ब्लकि मेंने और हम सभी अस्त्र धारकों ने भी ये सब सहा है और इसी वजह से मेंने महागुरु से बोलकर तुम्हें शहर बुलाया था कि तुम यहा रहकर अपने दिमाग को शांति दो लेकिन तुम यहा रहकर भी उसी सब के बारे में सोचते हो अपने दिमाग को आराम दो भद्रा
जब गुरु सिँह मुझे ये सब बता रहे थे थे तब मे भी उनकी कहीं हर एक बात पर विचार कर रहा था और उनकी कहीं हर एक बात सच थी के यहा आने के बाद भी आश्रम और अस्त्रों के बारे में ही सोच रहा था
मैं :- ठीक है जैसा आपने कहा वैसे ही होगा मे अब अपने दिमाग को आराम दूँगा
दिग्विजय :- वैसे ये लो तुम्हारे जन्मदिन का तोहफा मुझे पता है कि तुम्हें तोहफे लेना पसंद नहीं है लेकिन यह मेरा आशिर्वाद समझ कर रख लो
इतना बोलकर उन्होंने मेरे तरफ एक चावी फेंकी जिसे लेके मे जब बाहर आया तो वहा से मेरी बाइक नहीं थी और जब इस बारे में मेंने गार्ड से पूछा तो उसने एक जीप की तरफ इशारा किया जिसे देखकर के समझ गया कि यही मेरा तोहफा है
और फिर मे वो जीप लेके निकल पड़ा अपने घर के तरफ तो वही जब मे घर पहुचा तो मेरे रूम का लॉक खुला हुआ था और जब मे घर का दरवाजा खोलने का प्रयास किया तो दरवाजा अंदर से लॉक था
और जब मेरे दरवाजे पर दस्तक देने के बाद जब दरवाज़ा खुला तो मे दंग रह गया क्यूँ की मुझे लगा था कि हमेशा के तरह सत्येंद्र काका होंगे लेकिन दरवाजा खोलने वाला कोई और नहीं बल्कि शांति थी
जिसे देख कर मेरे मन में फिर से उनकी नंगे शरीर के चित्र आने लगे जिससे मे थोड़ा घबरा रहा था तो वही मेरे शरीर मे वो सब सोचकर फिर से विद्युत तरंग दौड़ने लगे थे
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आज के लिए इतना ही
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