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Fantasy ब्रह्माराक्षस

goyalabhishek818

Abhishek
191
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43
अध्याय आठवां

अभीं मे गुरु सिंह (दिग्विजय) से मिलने के लिए RAW headquarters के बाहर खड़ा था और जैसे ही मे अंदर जाने लगा तो वहाँ के गार्ड ने मुझे वही पर रोक दिया और पहचान जानने के बाद उसने गुरु सिँह से भी इस बात की पुष्टि की जिसके बाद उसने मुझे अंदर जाने दिया है और जब मे गुरु सिँह के कैबिन के अंदर पहुचा तो वहाँ पर वो कोई फाइल पढ़ रहे थे और जब उन्होंने मुझे देखा तो उन्होंने वो फाइल साइड में रख दी

दिग्विजय :- अब मौका मिला है जनाब को हमसे मिलने के लिए इतने बिजी हो गए शहर आकर

मैं :- ऐसा नहीं है गुरु सिँह वो मुझे लगा आप बिजी होंगे इसीलिए नहीं आया

दिग्विजय :- सबसे पहले शहर में किसी भी अस्त्र धारक को गुरु कहके नहीं बुलाना है मुझे तुम सर कहकर बुला सकते हो या फिर नाम लेके बोलो मुझे कोई आपत्ति नहीं है

मैं :- नहीं सर ठीक है

दिग्विजय :- बताओ आज यहां का रास्ता कैसे भूल गए

मैं :- कुछ नहीं बस नए साल की बधाई देने के लिए आया था

दिग्विजय :- तुम्हे भी नए साल और जन्मदिन की बधाई हो

मै :- धन्यवाद आपका

दिग्विजय :- तो बताओ तुम्हारे सपने क्या है आगे क्या करना चाहते हो तुम

मैं :- सपने

गुरु सिँह के मुह से सपने सुनकर मुझे आज सुबह का सपना याद आ गया जिससे मेरे चेहरे पर चिंता की लकीरें उठ आयी और उन लकीरों को गुरु सिँह ने अच्छे से पकड़ लिया था

दिग्विजय :- बताओ क्या बात है भद्रा क्या छुपा रहे हो तुम

मै :- कुछ भी तो नहीं है लेकिन आप ये क्यु पूछ रहे हो

दिग्विजय :- देखो भद्रा इस रॉ के काम ने मुझे एक बुरी आदत लगा दी है कि मे झूठ जलदी पकड़ लेता हु इसीलिए सच बताओ

मैं उनकी बात सुनकर मे थोड़ी देर सोच मे पड़ गया और फिर मेने गुरु सिँह को आज के सपने के बारे में सब कुछ बता दिया

दिग्विजय :- अच्छा तो यह बात है मुझे लगा ही था कि तुम्हारे साथ ऐसा होगा

मैं :- मतलब

दिग्विजय :- देखो भद्रा मे शुरू से ही तुम्हे आश्रम में रखने के खिलाफ था क्यूँकी मे जानता था कि जब तुम बड़े होगे और तुम्हारी बौद्धिक क्षमता बढ़ेगी तो असुर राक्षस प्रेत अस्त्र ये सारी बातें तुम्हारे दिमाग को इतना चिंतित कर देगी की तुम हर समय उसी के बारे में सोचते रहोगे और मे ये सब ऐसे ही नहीं बोल रहा हूँ ब्लकि मेंने और हम सभी अस्त्र धारकों ने भी ये सब सहा है और इसी वजह से मेंने महागुरु से बोलकर तुम्हें शहर बुलाया था कि तुम यहा रहकर अपने दिमाग को शांति दो लेकिन तुम यहा रहकर भी उसी सब के बारे में सोचते हो अपने दिमाग को आराम दो भद्रा

जब गुरु सिँह मुझे ये सब बता रहे थे थे तब मे भी उनकी कहीं हर एक बात पर विचार कर रहा था और उनकी कहीं हर एक बात सच थी के यहा आने के बाद भी आश्रम और अस्त्रों के बारे में ही सोच रहा था

मैं :- ठीक है जैसा आपने कहा वैसे ही होगा मे अब अपने दिमाग को आराम दूँगा

दिग्विजय :- वैसे ये लो तुम्हारे जन्मदिन का तोहफा मुझे पता है कि तुम्हें तोहफे लेना पसंद नहीं है लेकिन यह मेरा आशिर्वाद समझ कर रख लो

इतना बोलकर उन्होंने मेरे तरफ एक चावी फेंकी जिसे लेके मे जब बाहर आया तो वहा से मेरी बाइक नहीं थी और जब इस बारे में मेंने गार्ड से पूछा तो उसने एक जीप की तरफ इशारा किया जिसे देखकर के समझ गया कि यही मेरा तोहफा है

और फिर मे वो जीप लेके निकल पड़ा अपने घर के तरफ तो वही जब मे घर पहुचा तो मेरे रूम का लॉक खुला हुआ था और जब मे घर का दरवाजा खोलने का प्रयास किया तो दरवाजा अंदर से लॉक था

और जब मेरे दरवाजे पर दस्तक देने के बाद जब दरवाज़ा खुला तो मे दंग रह गया क्यूँ की मुझे लगा था कि हमेशा के तरह सत्येंद्र काका होंगे लेकिन दरवाजा खोलने वाला कोई और नहीं बल्कि शांति थी

जिसे देख कर मेरे मन में फिर से उनकी नंगे शरीर के चित्र आने लगे जिससे मे थोड़ा घबरा रहा था तो वही मेरे शरीर मे वो सब सोचकर फिर से विद्युत तरंग दौड़ने लगे थे

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आज के लिए इतना ही

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Beautiful update but very short update
Yaar thoda bde bhi update do
 
Last edited:

park

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अध्याय आठवां

अभीं मे गुरु सिंह (दिग्विजय) से मिलने के लिए RAW headquarters के बाहर खड़ा था और जैसे ही मे अंदर जाने लगा तो वहाँ के गार्ड ने मुझे वही पर रोक दिया और पहचान जानने के बाद उसने गुरु सिँह से भी इस बात की पुष्टि की जिसके बाद उसने मुझे अंदर जाने दिया है और जब मे गुरु सिँह के कैबिन के अंदर पहुचा तो वहाँ पर वो कोई फाइल पढ़ रहे थे और जब उन्होंने मुझे देखा तो उन्होंने वो फाइल साइड में रख दी

दिग्विजय :- अब मौका मिला है जनाब को हमसे मिलने के लिए इतने बिजी हो गए शहर आकर

मैं :- ऐसा नहीं है गुरु सिँह वो मुझे लगा आप बिजी होंगे इसीलिए नहीं आया

दिग्विजय :- सबसे पहले शहर में किसी भी अस्त्र धारक को गुरु कहके नहीं बुलाना है मुझे तुम सर कहकर बुला सकते हो या फिर नाम लेके बोलो मुझे कोई आपत्ति नहीं है

मैं :- नहीं सर ठीक है

दिग्विजय :- बताओ आज यहां का रास्ता कैसे भूल गए

मैं :- कुछ नहीं बस नए साल की बधाई देने के लिए आया था

दिग्विजय :- तुम्हे भी नए साल और जन्मदिन की बधाई हो

मै :- धन्यवाद आपका

दिग्विजय :- तो बताओ तुम्हारे सपने क्या है आगे क्या करना चाहते हो तुम

मैं :- सपने

गुरु सिँह के मुह से सपने सुनकर मुझे आज सुबह का सपना याद आ गया जिससे मेरे चेहरे पर चिंता की लकीरें उठ आयी और उन लकीरों को गुरु सिँह ने अच्छे से पकड़ लिया था

दिग्विजय :- बताओ क्या बात है भद्रा क्या छुपा रहे हो तुम

मै :- कुछ भी तो नहीं है लेकिन आप ये क्यु पूछ रहे हो

दिग्विजय :- देखो भद्रा इस रॉ के काम ने मुझे एक बुरी आदत लगा दी है कि मे झूठ जलदी पकड़ लेता हु इसीलिए सच बताओ

मैं उनकी बात सुनकर मे थोड़ी देर सोच मे पड़ गया और फिर मेने गुरु सिँह को आज के सपने के बारे में सब कुछ बता दिया

दिग्विजय :- अच्छा तो यह बात है मुझे लगा ही था कि तुम्हारे साथ ऐसा होगा

मैं :- मतलब

दिग्विजय :- देखो भद्रा मे शुरू से ही तुम्हे आश्रम में रखने के खिलाफ था क्यूँकी मे जानता था कि जब तुम बड़े होगे और तुम्हारी बौद्धिक क्षमता बढ़ेगी तो असुर राक्षस प्रेत अस्त्र ये सारी बातें तुम्हारे दिमाग को इतना चिंतित कर देगी की तुम हर समय उसी के बारे में सोचते रहोगे और मे ये सब ऐसे ही नहीं बोल रहा हूँ ब्लकि मेंने और हम सभी अस्त्र धारकों ने भी ये सब सहा है और इसी वजह से मेंने महागुरु से बोलकर तुम्हें शहर बुलाया था कि तुम यहा रहकर अपने दिमाग को शांति दो लेकिन तुम यहा रहकर भी उसी सब के बारे में सोचते हो अपने दिमाग को आराम दो भद्रा

जब गुरु सिँह मुझे ये सब बता रहे थे थे तब मे भी उनकी कहीं हर एक बात पर विचार कर रहा था और उनकी कहीं हर एक बात सच थी के यहा आने के बाद भी आश्रम और अस्त्रों के बारे में ही सोच रहा था

मैं :- ठीक है जैसा आपने कहा वैसे ही होगा मे अब अपने दिमाग को आराम दूँगा

दिग्विजय :- वैसे ये लो तुम्हारे जन्मदिन का तोहफा मुझे पता है कि तुम्हें तोहफे लेना पसंद नहीं है लेकिन यह मेरा आशिर्वाद समझ कर रख लो

इतना बोलकर उन्होंने मेरे तरफ एक चावी फेंकी जिसे लेके मे जब बाहर आया तो वहा से मेरी बाइक नहीं थी और जब इस बारे में मेंने गार्ड से पूछा तो उसने एक जीप की तरफ इशारा किया जिसे देखकर के समझ गया कि यही मेरा तोहफा है

और फिर मे वो जीप लेके निकल पड़ा अपने घर के तरफ तो वही जब मे घर पहुचा तो मेरे रूम का लॉक खुला हुआ था और जब मे घर का दरवाजा खोलने का प्रयास किया तो दरवाजा अंदर से लॉक था

और जब मेरे दरवाजे पर दस्तक देने के बाद जब दरवाज़ा खुला तो मे दंग रह गया क्यूँ की मुझे लगा था कि हमेशा के तरह सत्येंद्र काका होंगे लेकिन दरवाजा खोलने वाला कोई और नहीं बल्कि शांति थी

जिसे देख कर मेरे मन में फिर से उनकी नंगे शरीर के चित्र आने लगे जिससे मे थोड़ा घबरा रहा था तो वही मेरे शरीर मे वो सब सोचकर फिर से विद्युत तरंग दौड़ने लगे थे

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आज के लिए इतना ही

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Nice and superb update.....
 

kas1709

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अध्याय आठवां

अभीं मे गुरु सिंह (दिग्विजय) से मिलने के लिए RAW headquarters के बाहर खड़ा था और जैसे ही मे अंदर जाने लगा तो वहाँ के गार्ड ने मुझे वही पर रोक दिया और पहचान जानने के बाद उसने गुरु सिँह से भी इस बात की पुष्टि की जिसके बाद उसने मुझे अंदर जाने दिया है और जब मे गुरु सिँह के कैबिन के अंदर पहुचा तो वहाँ पर वो कोई फाइल पढ़ रहे थे और जब उन्होंने मुझे देखा तो उन्होंने वो फाइल साइड में रख दी

दिग्विजय :- अब मौका मिला है जनाब को हमसे मिलने के लिए इतने बिजी हो गए शहर आकर

मैं :- ऐसा नहीं है गुरु सिँह वो मुझे लगा आप बिजी होंगे इसीलिए नहीं आया

दिग्विजय :- सबसे पहले शहर में किसी भी अस्त्र धारक को गुरु कहके नहीं बुलाना है मुझे तुम सर कहकर बुला सकते हो या फिर नाम लेके बोलो मुझे कोई आपत्ति नहीं है

मैं :- नहीं सर ठीक है

दिग्विजय :- बताओ आज यहां का रास्ता कैसे भूल गए

मैं :- कुछ नहीं बस नए साल की बधाई देने के लिए आया था

दिग्विजय :- तुम्हे भी नए साल और जन्मदिन की बधाई हो

मै :- धन्यवाद आपका

दिग्विजय :- तो बताओ तुम्हारे सपने क्या है आगे क्या करना चाहते हो तुम

मैं :- सपने

गुरु सिँह के मुह से सपने सुनकर मुझे आज सुबह का सपना याद आ गया जिससे मेरे चेहरे पर चिंता की लकीरें उठ आयी और उन लकीरों को गुरु सिँह ने अच्छे से पकड़ लिया था

दिग्विजय :- बताओ क्या बात है भद्रा क्या छुपा रहे हो तुम

मै :- कुछ भी तो नहीं है लेकिन आप ये क्यु पूछ रहे हो

दिग्विजय :- देखो भद्रा इस रॉ के काम ने मुझे एक बुरी आदत लगा दी है कि मे झूठ जलदी पकड़ लेता हु इसीलिए सच बताओ

मैं उनकी बात सुनकर मे थोड़ी देर सोच मे पड़ गया और फिर मेने गुरु सिँह को आज के सपने के बारे में सब कुछ बता दिया

दिग्विजय :- अच्छा तो यह बात है मुझे लगा ही था कि तुम्हारे साथ ऐसा होगा

मैं :- मतलब

दिग्विजय :- देखो भद्रा मे शुरू से ही तुम्हे आश्रम में रखने के खिलाफ था क्यूँकी मे जानता था कि जब तुम बड़े होगे और तुम्हारी बौद्धिक क्षमता बढ़ेगी तो असुर राक्षस प्रेत अस्त्र ये सारी बातें तुम्हारे दिमाग को इतना चिंतित कर देगी की तुम हर समय उसी के बारे में सोचते रहोगे और मे ये सब ऐसे ही नहीं बोल रहा हूँ ब्लकि मेंने और हम सभी अस्त्र धारकों ने भी ये सब सहा है और इसी वजह से मेंने महागुरु से बोलकर तुम्हें शहर बुलाया था कि तुम यहा रहकर अपने दिमाग को शांति दो लेकिन तुम यहा रहकर भी उसी सब के बारे में सोचते हो अपने दिमाग को आराम दो भद्रा

जब गुरु सिँह मुझे ये सब बता रहे थे थे तब मे भी उनकी कहीं हर एक बात पर विचार कर रहा था और उनकी कहीं हर एक बात सच थी के यहा आने के बाद भी आश्रम और अस्त्रों के बारे में ही सोच रहा था

मैं :- ठीक है जैसा आपने कहा वैसे ही होगा मे अब अपने दिमाग को आराम दूँगा

दिग्विजय :- वैसे ये लो तुम्हारे जन्मदिन का तोहफा मुझे पता है कि तुम्हें तोहफे लेना पसंद नहीं है लेकिन यह मेरा आशिर्वाद समझ कर रख लो

इतना बोलकर उन्होंने मेरे तरफ एक चावी फेंकी जिसे लेके मे जब बाहर आया तो वहा से मेरी बाइक नहीं थी और जब इस बारे में मेंने गार्ड से पूछा तो उसने एक जीप की तरफ इशारा किया जिसे देखकर के समझ गया कि यही मेरा तोहफा है

और फिर मे वो जीप लेके निकल पड़ा अपने घर के तरफ तो वही जब मे घर पहुचा तो मेरे रूम का लॉक खुला हुआ था और जब मे घर का दरवाजा खोलने का प्रयास किया तो दरवाजा अंदर से लॉक था

और जब मेरे दरवाजे पर दस्तक देने के बाद जब दरवाज़ा खुला तो मे दंग रह गया क्यूँ की मुझे लगा था कि हमेशा के तरह सत्येंद्र काका होंगे लेकिन दरवाजा खोलने वाला कोई और नहीं बल्कि शांति थी

जिसे देख कर मेरे मन में फिर से उनकी नंगे शरीर के चित्र आने लगे जिससे मे थोड़ा घबरा रहा था तो वही मेरे शरीर मे वो सब सोचकर फिर से विद्युत तरंग दौड़ने लगे थे

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आज के लिए इतना ही

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Nice update.....
 

dhparikh

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अध्याय आठवां

अभीं मे गुरु सिंह (दिग्विजय) से मिलने के लिए RAW headquarters के बाहर खड़ा था और जैसे ही मे अंदर जाने लगा तो वहाँ के गार्ड ने मुझे वही पर रोक दिया और पहचान जानने के बाद उसने गुरु सिँह से भी इस बात की पुष्टि की जिसके बाद उसने मुझे अंदर जाने दिया है और जब मे गुरु सिँह के कैबिन के अंदर पहुचा तो वहाँ पर वो कोई फाइल पढ़ रहे थे और जब उन्होंने मुझे देखा तो उन्होंने वो फाइल साइड में रख दी

दिग्विजय :- अब मौका मिला है जनाब को हमसे मिलने के लिए इतने बिजी हो गए शहर आकर

मैं :- ऐसा नहीं है गुरु सिँह वो मुझे लगा आप बिजी होंगे इसीलिए नहीं आया

दिग्विजय :- सबसे पहले शहर में किसी भी अस्त्र धारक को गुरु कहके नहीं बुलाना है मुझे तुम सर कहकर बुला सकते हो या फिर नाम लेके बोलो मुझे कोई आपत्ति नहीं है

मैं :- नहीं सर ठीक है

दिग्विजय :- बताओ आज यहां का रास्ता कैसे भूल गए

मैं :- कुछ नहीं बस नए साल की बधाई देने के लिए आया था

दिग्विजय :- तुम्हे भी नए साल और जन्मदिन की बधाई हो

मै :- धन्यवाद आपका

दिग्विजय :- तो बताओ तुम्हारे सपने क्या है आगे क्या करना चाहते हो तुम

मैं :- सपने

गुरु सिँह के मुह से सपने सुनकर मुझे आज सुबह का सपना याद आ गया जिससे मेरे चेहरे पर चिंता की लकीरें उठ आयी और उन लकीरों को गुरु सिँह ने अच्छे से पकड़ लिया था

दिग्विजय :- बताओ क्या बात है भद्रा क्या छुपा रहे हो तुम

मै :- कुछ भी तो नहीं है लेकिन आप ये क्यु पूछ रहे हो

दिग्विजय :- देखो भद्रा इस रॉ के काम ने मुझे एक बुरी आदत लगा दी है कि मे झूठ जलदी पकड़ लेता हु इसीलिए सच बताओ

मैं उनकी बात सुनकर मे थोड़ी देर सोच मे पड़ गया और फिर मेने गुरु सिँह को आज के सपने के बारे में सब कुछ बता दिया

दिग्विजय :- अच्छा तो यह बात है मुझे लगा ही था कि तुम्हारे साथ ऐसा होगा

मैं :- मतलब

दिग्विजय :- देखो भद्रा मे शुरू से ही तुम्हे आश्रम में रखने के खिलाफ था क्यूँकी मे जानता था कि जब तुम बड़े होगे और तुम्हारी बौद्धिक क्षमता बढ़ेगी तो असुर राक्षस प्रेत अस्त्र ये सारी बातें तुम्हारे दिमाग को इतना चिंतित कर देगी की तुम हर समय उसी के बारे में सोचते रहोगे और मे ये सब ऐसे ही नहीं बोल रहा हूँ ब्लकि मेंने और हम सभी अस्त्र धारकों ने भी ये सब सहा है और इसी वजह से मेंने महागुरु से बोलकर तुम्हें शहर बुलाया था कि तुम यहा रहकर अपने दिमाग को शांति दो लेकिन तुम यहा रहकर भी उसी सब के बारे में सोचते हो अपने दिमाग को आराम दो भद्रा

जब गुरु सिँह मुझे ये सब बता रहे थे थे तब मे भी उनकी कहीं हर एक बात पर विचार कर रहा था और उनकी कहीं हर एक बात सच थी के यहा आने के बाद भी आश्रम और अस्त्रों के बारे में ही सोच रहा था

मैं :- ठीक है जैसा आपने कहा वैसे ही होगा मे अब अपने दिमाग को आराम दूँगा

दिग्विजय :- वैसे ये लो तुम्हारे जन्मदिन का तोहफा मुझे पता है कि तुम्हें तोहफे लेना पसंद नहीं है लेकिन यह मेरा आशिर्वाद समझ कर रख लो

इतना बोलकर उन्होंने मेरे तरफ एक चावी फेंकी जिसे लेके मे जब बाहर आया तो वहा से मेरी बाइक नहीं थी और जब इस बारे में मेंने गार्ड से पूछा तो उसने एक जीप की तरफ इशारा किया जिसे देखकर के समझ गया कि यही मेरा तोहफा है

और फिर मे वो जीप लेके निकल पड़ा अपने घर के तरफ तो वही जब मे घर पहुचा तो मेरे रूम का लॉक खुला हुआ था और जब मे घर का दरवाजा खोलने का प्रयास किया तो दरवाजा अंदर से लॉक था

और जब मेरे दरवाजे पर दस्तक देने के बाद जब दरवाज़ा खुला तो मे दंग रह गया क्यूँ की मुझे लगा था कि हमेशा के तरह सत्येंद्र काका होंगे लेकिन दरवाजा खोलने वाला कोई और नहीं बल्कि शांति थी

जिसे देख कर मेरे मन में फिर से उनकी नंगे शरीर के चित्र आने लगे जिससे मे थोड़ा घबरा रहा था तो वही मेरे शरीर मे वो सब सोचकर फिर से विद्युत तरंग दौड़ने लगे थे

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आज के लिए इतना ही

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Nice update....
 

VAJRADHIKARI

Hello dosto
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भाई अभी मे इस कहानी के सभी पात्रों को उनके जगह पर अच्छे से सेट कर रहा हूं इसीलिए अपडेट थोड़े छोटे है जब सभी पात्र अपनी जगह पे पहुच जाएंगे तब आपको सभी बड़े तो नहीं लेकिन नॉर्मल अपडेट मिलेंगे
 

VAJRADHIKARI

Hello dosto
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अध्याय नौवां

अभी मे शांति को देख रहा था कि तभी शांति ने मुझे खुदको ऐसे घूरते हुए देख लिया जिससे उसके चेहरे पर मुस्कान आ गई जिसके बाद उसने मुझे हिलाकर होश में लाया

में :- शांति तुम यहा

शांति :- क्यूँ नहीं आ सकती क्या मे

मैं :- नहीं ऐसा नहीं है वो मुझे लगा कि कल के वजह से तुम मुझसे गुस्सा होगी

शांति :- मे क्यू गुस्सा होने लगी क्या वो तुमने जान बूझकर किया था

में :- नहीं लेकिन फिर भी....

शांति :- बस अब कुछ मत बोलो और हाँ मे तुमसे गुस्सा नहीं हु ब्लकि मे तुमसे कभी गुस्सा हो ही नहीं सकती

में :- अच्छा और ऐसा क्या है मुझ मे जो तुम मुझसे गुस्सा नहीं हो सकती

शांति :- क्यूंकि वो मेें तुमसे.. मे तुमसे

में :- आगे भी तो बोलो

शांति (एक सास मे) :- मे तुमसे प्यार करती हू आज से नहीं बल्कि जब मेंने पहली बार देखा था तब से ही जब मेंने पहली बार तुम्हें देखा था तभी मे तुम्हारे प्यार मे तुम्हारे आँखों में खो गई थी लेकिन अब तक मे तुमसे ये सब कह नहीं पायी थी लेकिन अब कहती हूँ कि मैं तुमसे प्यार करती हूँ

शांति की बात सुनकर मे दंग रह गया था मे कभी सोच भी नहीं सकता था कि शांति मुझसे प्रेम करती हैं और इसी वजह से शायद वो पहले से ही मुझे अपने दोस्त की तरह ही बर्ताव किया करती थी तो वही मुझे ऐसे एक जगह शांत खड़ा देखकर शांति को लगने लगा था कि उनका प्यार मे स्वीकार नहीं करूंगा जिस वजह से उनके आँखों में नमी आ गई

शांति :- कोई बात नहीं भद्रा अगर तुम मेरे प्यार को अस्वीकार कर दोगे तो भी मे तुम्हरी वही दोस्त रहूंगी जो पहले थी मेरे तरफ से कोई जोर जबरदस्ती नहीं है

इतना बोलकर वो जाने लगी थी कि तभी मेंने उनके हाथ को पकड़ लिया और उन्हें खींच कर अपने से चिपका लिया और एक हाथ से उनके आँखों से आसुओं को पोछने लगा तो दूसरे हाथ को उनके कमर में डाल कर उन्हें अपने बाहों में भरकर उनसे बात करने लगा

में :- बस खुद ही सवाल पूछती हो और खुद ही जवाब देती हो दूसरों को सोचने का तो समय दो

इतना बोलकर मे उसके जवाब का इंतजार कर रहा था लेकिन वो तो मेरे हाथ को अपने कमर पर और खुदको मेरी बाहों में देखकर मदहोशी मे कहीं गुम हो गई थी जिस वजह से उसे होश में लाने के लिए मेने के लिए मेने उनके कमर पर हल्की सी चिमटी काटी

जिससे वो होश में आ गई और फिर खुदको मेरी बाहों में पाकर उसने अपने चेहरे को शर्म से झुका दिया

जिसे मेने अपने हांथों से पकड़ कर उपर किया जिसके बाद वो तुरंत ही मेरे गले लग गई और फिर उन्होंने अपने चेहरे को तुरंत मेरे सीने में छुपा दिया

शांति :- कुछ देर ऐसे ही खड़े रहो जिससे मुझे पता चले कि ये सपना नहीं सच है

उनकी बात मानकर मे वैसे ही उन्हें बाहों में भरकर कुछ देर खड़ा रहा लेकिन इस वजह से हम दोनों के साथ कुछ और भी खड़ा होने लगा था

हुआ यू की जब शांति ने मुझे अपने बाहों में भर लिया तब उसके स्तन मेरे छाती मे दब गए जिससे जो एहसास हुआ वो किसी भी तरह से स्वर्ग से कम नहीं था तो वही शांति के शरीर से आती सुगंध जो मुझे हर पल मदहोश करती जा रही थी

जिस वजह से नीचे मेरा मूसल भी खड़ा हो गया था और जब वो साड़ी के उपर से ही शांति को चुभने लगा तो वो पूरी तरह से शर्म मे डूब गई और मुझसे अलग हो कर मेरे गालों पर हल्के से मारकर

शांति :- शरारत मत करो

इतना बोलकर वो जाने लगी थी कि मेंने उन्हें फिर से अपनी बाहों में भर लिया

में :- शरारती से प्यार किया है तो शरारतों को तो झेलना पड़ेगा

इतना बोलकर मेने और कसकर उन्हें गले से लगा लिया जिससे हम दोनों के भी मुह से सिसकारी निकल गई हुआ यू की जब मेने शांति को अपने बाहों में ले लिया तो मेरा lund सीधा उनकी चुत से टकरा गया तो वही उनके निप्पल जो कि मदहोशी के कारण तन गए थे वो मेरे सीने में चुभने लगे जिससे मेरी भी सिसकारी निकल गई

जिसके बाद जब हम दोनों ने एक दूसरे के आखों मे देखा तो हम दोनों के ही आखों मे मदहोशी चढ़ी हुई थी जिससे जब हम दोनों ने एक दूसरे के आखों मे देखा तो हम दोनों अपना आपा खोने लगे और हमारे होंठ कब एक दूसरे के होंठों से चिपक गए हमे पता भी नहीं चला

हम दोनों एक दूसरे के साथ इसी पल में गुम हो गए थे कि तभी मेरा फोन बजने लगा जिससे हम दोनों होश में आ गए और हमारे होश में आते ही शांति शर्माते हुए मेरे रूम मे घुस गई और जब मेंने अपना फोन देखा तो रवि का था फिर उससे कुछ समय बात करने के बाद मे शांति के पास पहुंच गया जो कि मेरे बेड पर बैठी थी

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आज के लिए इतना ही

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