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Fantasy ब्रह्माराक्षस

VAJRADHIKARI

Hello dosto
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अध्याय पचहत्तर

मे जब कालविजय आश्रम पहुंचा तो मे हैरान रह गया क्योंकि वहाँ का पुरा आसमान लाल हो गया था जैसे आसमान मे खून उतर आया हो और जब मे आश्रम में पहुँचा तो वहाँ की हालत और भी खराब थी वहाँ आश्रम की सारी जगह पर केवल तबाही ही दिखाई दे रही थी

ये सब देखकर मे बहुत हैरान हो गया था जिसके बाद में आश्रम मे यहाँ वहाँ घूम कर हर तरफ देख रहा था कि तभी मेरी नज़र एक कोने में गयी जहाँ आश्रम का ही एक आदमी दर्द से कराह रहा था

जब मे उसके पास पहुँचा तब तक उसका काफी खून निकल चुका था इसीलिए मैने सबसे पहले उसके उपर अपने शक्तियों का इस्तेमाल कर उसके घाव और दर्द का उपचार किया जिसके बाद वो मुझे मेरे जाने के बाद यहाँ जो कुछ भी हुआ वो सब बताने लगा

और जब मैने सब सुना तो मेरे आँखों में खून उतर आया था मुझे क्रोध उन असुरों से ज्यादा खुद पर आ रहा था क्योंकि वहाँ जो भी हुआ उसका जिम्मेदार मे भी था

क्योंकि अगर मैने अपना अभियान थोड़ा जल्दी खतम कर लिया होता तो आज ये सब नही होता महागुरु और बाकी सब को इस तरह युद्ध क्षेत्र मे प्रवेश नही करना पड़ता

ये सब सोचकर मैने अपनी ऊर्जा को एकत्रित किया और फिर मैने एक और मायावी द्वार प्रकट किया और चला गया सीधा युद्ध क्षेत्र के अंदर

और जब मे वहाँ पहुंचा तो वहाँ का हाल देखकर मे हैरान रह गया मेरा क्रोध सातवे आसमान पर पहुँच गया मेरे सामने नजारा ही कुछ ऐसा था

कुछ देर पहले

इस वक़्त दोनों पक्ष ही पक्ष एक दूसरे के सामने थे जहाँ दमयंती त्रिलोकेश्वर और शिबू को देखकर मायासुर पूरी तरह से हैरान था

क्योंकि वो अपने पाताल लोक के राज को संभालने और इस युद्ध की तैयारी मे इतना मशगुल हो गया था की उसे इस बात का पता ही नही चला की ये तीनो अपनी पूरी प्रजा के साथ उसकी कैद से आज़ाद हो गए है

और आज जब उसने इनको अपने सामने युद्ध मे देखा तो वो दंग रह गया था लेकिन उसने जल्द ही खुद पर काबू पा लिया था या फिर ऐसा भी कह सकते हो की उसके अंदर के हैवान और अहंकार दोनों ने मायासुर की सुध बुद्ध हर ली थी

इसीलिए तो उसने बिना ये जाने की उनको कैद से आज़ाद किसने और क्यों कराया बिना ये सोचे की आगे युद्ध का अब क्या अंजाम होगा सीधा अपने सभी सिपाहियों को आक्रमण का आदेश दे दिया

और उसके आदेश देते ही उसकी सेना और साथ मे ही महासुरों की सेना ने भी आक्रमण बोल दिया तो वही अपने शत्रु को अपनी तरफ इतनी तेजी से बढ़ते देख कर सत्य पक्ष ने भी अपने हत्यारों पर अपनी पकड़ कस ली थी

और अपने कदमों को अपने शत्रु की तबाही के और बड़ा दिये थे उसी के साथ महागुरु ने अपने धनुष से तीरों की वर्षा करना आरंभ कर दिया था ये एक निर्णायक युध्द था

इसीलिए यहाँ केवल शत्रु पक्ष की तबाही ही हर एक योध्दा का संकल्प था और इसी संकल्प के चलते जिन मानवों पर महासुरों ने सम्मोहन विद्या का प्रयोग किया था

वो सब भी इस महायुद्ध के यज्ञ मे अपने प्राणों की आहुति डाल रहे थे महागुरु aur बाकी के गुरुजन जहाँ अपने सप्त अस्त्रों का इस्तेमाल न करके वो केवल महागुरु द्वारा मिले अस्त्रों का ही केवल इस्तेमाल कर रहे थे

जिसे देखकर मायासुर और सभी महासुर उन्हे कमजोर समझ रहे थे और इसी वजह से महासुरों ने भी शांति से ये मुकाबला देखने का विचार त्याग कर वो सब भी इस युद्ध मे अपनी शक्तियों का जौहर दिखाने का ठान लिया

जिसके चलते अपने शक्तियों का जौहर दिखाने सबसे पहले ज्वालासुर मैदान मे उतारा उसने आते ही अच्छाई के पक्ष के उपर अपने अग्नि शक्ति से आक्रमण किया

लेकिन उसकी अग्नि किसी को कुछ हानि पहुंचा पाती उससे पहले ही गुरु अग्नि उस भयंकर अग्नि के सामने आकर खड़े हो गए और जैसे ही वो अग्नि उनके पास पहुंची वैसे ही गुरु अग्नि ने अपने अग्नि अस्त्र को जाग्रुत किया

जिसके वजह से जैसे ही वो अग्नि उनसे टकराई तो अग्नि अस्त्र ने तुरंत उस वार को अपने अंदर समा लिया और जैसे ही उनके शरीर से अग्नि अस्त्र की ऊर्जा प्रवाहित होने लगी

तो उस ऊर्जा को महसूस करके मायासुर और सभी महासुरों के पैरों तले से जमीन ही खिसक गयी और इससे पहले की वो लोग संभल पाते

उससे पहले ही महागुरु ने अपने कालास्त्र का इस्तेमाल करके असुरों की सारी सेना के मस्तिष्क में ऐसा भ्रम बना दिया जिससे वो सभी अपने शत्रुओं को छोड़कर अपने साथियों पर ही आक्रमण करने लगे थे

और जब मायासुर ने ये देखा तो उसने तुरंत ही अपनी माया की मदद से सभी सिपाहियों के मस्तिष्क से उस भ्रम को निकाल दिया और फिर उस मैदान मे शुरू हुआ एक महायुद्ध एक असल महायुद्ध अब तक जो चल रहा था वो तो जैसे एक तरह का शक्ति प्रदर्शन चल रहा था

लेकिन जब उन्हे सप्त अस्त्रों की उपस्थिति का एहसास हुआ तो अब महासुरों ने भी युद्ध को अब गंभीरता से लेना आरंभ कर दिया था हर किसीने अपने अपने प्रतिध्वंधि को चुन लिया था अब उस युद्ध क्षेत्र मे कुछ इस तरह से मुकाबला शुरू हो गया था

गुरु नंदी == गजासूर

गुरु जल == विशांतक

गुरु वानर == केशासुर

गुरु अग्नि == ज्वालासुर

गुरु सिँह == बलासुर

गुरु पृथ्वी (शांति) == महादंश

महागुरु == क्रोधासुर

प्रिया और दमयंती :- कामिनी और मोहिनी

शिबू :- मायासुर

त्रिलोकेश्वर पूरी सेना के साथ असुरी सेना से उलझ रहा था

हर कोई अपने प्रतुध्वंधि को खतम करने के इरादे से युद्ध कर रहा था दोनों ही तरफ मुकाबला बराबरी का चल रहा था

तो वही जब मायासुर ने युद्ध को अपने हाथ से निकलता महसूस किया तो उसने हर बार की तरह छल कपट से युद्ध करना आरंभ कर दिया और शिबू के दिमाग मे ऐसा भ्रम निर्माण हुआ

जिससे उसे अपने सामने 10 मायासुर दिखने लगे थे जिससे वो हैरान हो गया था और उसे समझ नही आ रहा था की इन मेसे कौन असली है और कौन नकली और इसी मे उलझ कर उसने सभी मायासुर पर अंधा धुंध वार करना शुरू कर दिया

जिससे मायासुर को तो कुछ हानि नही पहुँच रही थी लेकिन वो हर बार शिबू के पीछे आकर उसपर आक्रमण कर देता जिससे शिबू को गहरी चोटे भी आई थी अपनी योजना को सफल होते देख अब मायासुर बिन्धास्त हो गया था

लेकिन उसकी ये चाल ज्यादा देर न चल सकी वो अपने घमंड मे शायद ये भूल गया था कि वो और शिबू दोनों भी एक ही गुरु के शिष्य है

जैसे ही शिबू को मायासुर के इस छल का पता चला उसने तुरंत ही आक्रमण करना रोक दिया और अपने मन को शांत कर के उसने असली मायासुर का पता लगाने का प्रयास किया

और जैसे ही मायासुर ने शिबू पर वार करने का प्रयास किया वैसे ही उसकी भनक शिबू को लग गयी और उसने मायासुर के वार करने से पहले ही उस पर पलट वार कर दिया

जिससे मायासुर कुछ कदम पीछे की और खिसक गए तो वही चोटिल होने के वजह से शिबू भी बेहोश हो गया था

तो वही महासुरों से युद्ध करते वक्त अब सभी गुरुओं को थोड़ी परेशानी होने लगी थी जो स्वाभाविक थी वो सभी केवल मामूली अस्त्र धारक थे मामूली मानव थे उनके शरीर की कुछ बंधने थी

वो इस महान शक्ति स्त्रोत का उस तरह इस्तेमाल नही कर पा रहे थे जैसे भद्रा या कोई अन्य महा धारक कर पाते तो वही सभी गुरुओं की इस कमजोरी को सभी महासुरों ने देख लिया

जो देखकर सारे महासुरों ने भी अपनी संपूर्ण ऊर्जा का इस्तेमाल किया जिससे अब सभी गुरुओं के लिए परेशानी और बढ़ गयी थी जिससे अब सभी गुरुओं को बहुत चोटें भी आई थी

जिन्हे देखकर प्रिया और दमयंती का ध्यान भटक रहा था जिसका फायदा उठा कर मोहिनी और कामिनी ने भी उन दोनों पर प्राणघाती आक्रमण किया जिससे वो दोनों भी गंभीर रूप से चोटिल हो गयी थी और ये वही समय था जब भद्रा ने युद्ध क्षेत्र मे प्रवेश किया था

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आज के लिए इतना ही

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sunoanuj

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Adhbhut ek dum romanchak or rongte khade kar dene wala updates…

Jabardast VAJRADHIKARI 👏🏻👏🏻👏🏻👏🏻
 

krish1152

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nice update
 

park

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अध्याय पचहत्तर

मे जब कालविजय आश्रम पहुंचा तो मे हैरान रह गया क्योंकि वहाँ का पुरा आसमान लाल हो गया था जैसे आसमान मे खून उतर आया हो और जब मे आश्रम में पहुँचा तो वहाँ की हालत और भी खराब थी वहाँ आश्रम की सारी जगह पर केवल तबाही ही दिखाई दे रही थी

ये सब देखकर मे बहुत हैरान हो गया था जिसके बाद में आश्रम मे यहाँ वहाँ घूम कर हर तरफ देख रहा था कि तभी मेरी नज़र एक कोने में गयी जहाँ आश्रम का ही एक आदमी दर्द से कराह रहा था

जब मे उसके पास पहुँचा तब तक उसका काफी खून निकल चुका था इसीलिए मैने सबसे पहले उसके उपर अपने शक्तियों का इस्तेमाल कर उसके घाव और दर्द का उपचार किया जिसके बाद वो मुझे मेरे जाने के बाद यहाँ जो कुछ भी हुआ वो सब बताने लगा

और जब मैने सब सुना तो मेरे आँखों में खून उतर आया था मुझे क्रोध उन असुरों से ज्यादा खुद पर आ रहा था क्योंकि वहाँ जो भी हुआ उसका जिम्मेदार मे भी था

क्योंकि अगर मैने अपना अभियान थोड़ा जल्दी खतम कर लिया होता तो आज ये सब नही होता महागुरु और बाकी सब को इस तरह युद्ध क्षेत्र मे प्रवेश नही करना पड़ता


ये सब सोचकर मैने अपनी ऊर्जा को एकत्रित किया और फिर मैने एक और मायावी द्वार प्रकट किया और चला गया सीधा युद्ध क्षेत्र के अंदर

और जब मे वहाँ पहुंचा तो वहाँ का हाल देखकर मे हैरान रह गया मेरा क्रोध सातवे आसमान पर पहुँच गया मेरे सामने नजारा ही कुछ ऐसा था

कुछ देर पहले

इस वक़्त दोनों पक्ष ही पक्ष एक दूसरे के सामने थे जहाँ दमयंती त्रिलोकेश्वर और शिबू को देखकर मायासुर पूरी तरह से हैरान था

क्योंकि वो अपने पाताल लोक के राज को संभालने और इस युद्ध की तैयारी मे इतना मशगुल हो गया था की उसे इस बात का पता ही नही चला की ये तीनो अपनी पूरी प्रजा के साथ उसकी कैद से आज़ाद हो गए है


और आज जब उसने इनको अपने सामने युद्ध मे देखा तो वो दंग रह गया था लेकिन उसने जल्द ही खुद पर काबू पा लिया था या फिर ऐसा भी कह सकते हो की उसके अंदर के हैवान और अहंकार दोनों ने मायासुर की सुध बुद्ध हर ली थी

इसीलिए तो उसने बिना ये जाने की उनको कैद से आज़ाद किसने और क्यों कराया बिना ये सोचे की आगे युद्ध का अब क्या अंजाम होगा सीधा अपने सभी सिपाहियों को आक्रमण का आदेश दे दिया

और उसके आदेश देते ही उसकी सेना और साथ मे ही महासुरों की सेना ने भी आक्रमण बोल दिया तो वही अपने शत्रु को अपनी तरफ इतनी तेजी से बढ़ते देख कर सत्य पक्ष ने भी अपने हत्यारों पर अपनी पकड़ कस ली थी

और अपने कदमों को अपने शत्रु की तबाही के और बड़ा दिये थे उसी के साथ महागुरु ने अपने धनुष से तीरों की वर्षा करना आरंभ कर दिया था ये एक निर्णायक युध्द था


इसीलिए यहाँ केवल शत्रु पक्ष की तबाही ही हर एक योध्दा का संकल्प था और इसी संकल्प के चलते जिन मानवों पर महासुरों ने सम्मोहन विद्या का प्रयोग किया था

वो सब भी इस महायुद्ध के यज्ञ मे अपने प्राणों की आहुति डाल रहे थे महागुरु aur बाकी के गुरुजन जहाँ अपने सप्त अस्त्रों का इस्तेमाल न करके वो केवल महागुरु द्वारा मिले अस्त्रों का ही केवल इस्तेमाल कर रहे थे

जिसे देखकर मायासुर और सभी महासुर उन्हे कमजोर समझ रहे थे और इसी वजह से महासुरों ने भी शांति से ये मुकाबला देखने का विचार त्याग कर वो सब भी इस युद्ध मे अपनी शक्तियों का जौहर दिखाने का ठान लिया

जिसके चलते अपने शक्तियों का जौहर दिखाने सबसे पहले ज्वालासुर मैदान मे उतारा उसने आते ही अच्छाई के पक्ष के उपर अपने अग्नि शक्ति से आक्रमण किया


लेकिन उसकी अग्नि किसी को कुछ हानि पहुंचा पाती उससे पहले ही गुरु अग्नि उस भयंकर अग्नि के सामने आकर खड़े हो गए और जैसे ही वो अग्नि उनके पास पहुंची वैसे ही गुरु अग्नि ने अपने अग्नि अस्त्र को जाग्रुत किया

जिसके वजह से जैसे ही वो अग्नि उनसे टकराई तो अग्नि अस्त्र ने तुरंत उस वार को अपने अंदर समा लिया और जैसे ही उनके शरीर से अग्नि अस्त्र की ऊर्जा प्रवाहित होने लगी

तो उस ऊर्जा को महसूस करके मायासुर और सभी महासुरों के पैरों तले से जमीन ही खिसक गयी और इससे पहले की वो लोग संभल पाते

उससे पहले ही महागुरु ने अपने कालास्त्र का इस्तेमाल करके असुरों की सारी सेना के मस्तिष्क में ऐसा भ्रम बना दिया जिससे वो सभी अपने शत्रुओं को छोड़कर अपने साथियों पर ही आक्रमण करने लगे थे

और जब मायासुर ने ये देखा तो उसने तुरंत ही अपनी माया की मदद से सभी सिपाहियों के मस्तिष्क से उस भ्रम को निकाल दिया और फिर उस मैदान मे शुरू हुआ एक महायुद्ध एक असल महायुद्ध अब तक जो चल रहा था वो तो जैसे एक तरह का शक्ति प्रदर्शन चल रहा था


लेकिन जब उन्हे सप्त अस्त्रों की उपस्थिति का एहसास हुआ तो अब महासुरों ने भी युद्ध को अब गंभीरता से लेना आरंभ कर दिया था हर किसीने अपने अपने प्रतिध्वंधि को चुन लिया था अब उस युद्ध क्षेत्र मे कुछ इस तरह से मुकाबला शुरू हो गया था

गुरु नंदी == गजासूर

गुरु जल == विशांतक

गुरु वानर == केशासुर

गुरु अग्नि == ज्वालासुर

गुरु सिँह == बलासुर

गुरु पृथ्वी (शांति) == महादंश

महागुरु == क्रोधासुर

प्रिया और दमयंती :- कामिनी और मोहिनी

शिबू :- मायासुर

त्रिलोकेश्वर पूरी सेना के साथ असुरी सेना से उलझ रहा था

हर कोई अपने प्रतुध्वंधि को खतम करने के इरादे से युद्ध कर रहा था दोनों ही तरफ मुकाबला बराबरी का चल रहा था

तो वही जब मायासुर ने युद्ध को अपने हाथ से निकलता महसूस किया तो उसने हर बार की तरह छल कपट से युद्ध करना आरंभ कर दिया और शिबू के दिमाग मे ऐसा भ्रम निर्माण हुआ

जिससे उसे अपने सामने 10 मायासुर दिखने लगे थे जिससे वो हैरान हो गया था और उसे समझ नही आ रहा था की इन मेसे कौन असली है और कौन नकली और इसी मे उलझ कर उसने सभी मायासुर पर अंधा धुंध वार करना शुरू कर दिया


जिससे मायासुर को तो कुछ हानि नही पहुँच रही थी लेकिन वो हर बार शिबू के पीछे आकर उसपर आक्रमण कर देता जिससे शिबू को गहरी चोटे भी आई थी अपनी योजना को सफल होते देख अब मायासुर बिन्धास्त हो गया था

लेकिन उसकी ये चाल ज्यादा देर न चल सकी वो अपने घमंड मे शायद ये भूल गया था कि वो और शिबू दोनों भी एक ही गुरु के शिष्य है

जैसे ही शिबू को मायासुर के इस छल का पता चला उसने तुरंत ही आक्रमण करना रोक दिया और अपने मन को शांत कर के उसने असली मायासुर का पता लगाने का प्रयास किया

और जैसे ही मायासुर ने शिबू पर वार करने का प्रयास किया वैसे ही उसकी भनक शिबू को लग गयी और उसने मायासुर के वार करने से पहले ही उस पर पलट वार कर दिया

जिससे मायासुर कुछ कदम पीछे की और खिसक गए तो वही चोटिल होने के वजह से शिबू भी बेहोश हो गया था

तो वही महासुरों से युद्ध करते वक्त अब सभी गुरुओं को थोड़ी परेशानी होने लगी थी जो स्वाभाविक थी वो सभी केवल मामूली अस्त्र धारक थे मामूली मानव थे उनके शरीर की कुछ बंधने थी

वो इस महान शक्ति स्त्रोत का उस तरह इस्तेमाल नही कर पा रहे थे जैसे भद्रा या कोई अन्य महा धारक कर पाते तो वही सभी गुरुओं की इस कमजोरी को सभी महासुरों ने देख लिया

जो देखकर सारे महासुरों ने भी अपनी संपूर्ण ऊर्जा का इस्तेमाल किया जिससे अब सभी गुरुओं के लिए परेशानी और बढ़ गयी थी जिससे अब सभी गुरुओं को बहुत चोटें भी आई थी

जिन्हे देखकर प्रिया और दमयंती का ध्यान भटक रहा था जिसका फायदा उठा कर मोहिनी और कामिनी ने भी उन दोनों पर प्राणघाती आक्रमण किया जिससे वो दोनों भी गंभीर रूप से चोटिल हो गयी थी और ये वही समय था जब भद्रा ने युद्ध क्षेत्र मे प्रवेश किया था

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आज के लिए इतना ही

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Nice and superb update....
 

Gurdep

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अध्याय चौसठ

गुरु वानर :- याद रखना कुमार इन सबसे लड़ने जाने से पहले तुम्हे उस अस्त्र को जरूर पाना है

मै :- आप निश्चित रहियेगा सप्तऋषियों मे आपको भरोशा दिलाता हूं की जिस युद्ध को आपने शतकों पहले अधूरा छोड़ा था उसी युद्ध को मे अंजाम तक पहॅुचाऊँगा

सभी गुरु एक साथ :- विजयी भवः

इतना बोलके वो सभी वहाँ से गायब हो गए और उस जगह पर तेज प्रकाश फैल गया था जिससे मेरी आँखे बंद हो गयी थी और जब आँखे खोली तो मे अपने कमरे मे मौजूद था


मेरे आस पास प्रिया और शांति दोनों मौजूद थे जिनके सोते हुए मासूमियत से भरे चेहरे देखकर मेरे चेहरे पर भी मुस्कान आ गयी जिसके बाद मे धीरे से अपनी जगह से उठकर बाहर चला गया

और सप्तगुरुओं द्वारा सिखाये हुए विद्याओं का अभ्यास करने लगा और जब अभ्यास पूर्ण हुआ तो मे उनके द्वारा दी ही पहेली के बारे में सोचने लगा की मुझे जन्म के बाद मुझे पहली बार अस्त्रों की ऊर्जा महसूस हुई थी

मे उसके बारे में सोचने लगा हर बार मे उसके जवाब के नजदीक पहुँचता लेकिन बीच मे ही कुछ हो जाता जिससे मे मुड़कर उसी जगह आ जाता जहाँ अभी मै मौजूद था

ऐसे ही सोचते हुए रात कब गुजर गयी और सुबह कब शुरू हो गयी मुझे भी पता नही चला अभी ब्रम्ह मुहूर्त शुरू था इसीलिए आश्रम मे कोई उठा नही था

(ब्रम्ह मुहूर्त :- चंद्र ढलने के बाद और सूर्य उगने से पहले का समय सुबह 3 से 5 के बीच का समयकाल)

इस ब्रम्ह मुहूर्त के मनमोहक दृश्य की सुंदरता मे गुम होकर मे इस वक़्त आश्रम के पीछे वाली नदी के पास पहुँच गया था स्नान के लिए जब मे वहाँ पहुँचा तो


उस जगह की शांतता और वहाँ के वातावरण में फैली हुई शीतलता मे मेरे मन मे भी एक अजीब सी सुकून और शांति की भावना आ गयी थी बिल्कुल वैसी ही की तपती गर्मी मे लगातार 4-5 घंटे घूमकर आने के बाद ac की ठंडी हवाँ मै बैठने को मिले

वैसा ही हाल अभी मेरा था ऐसे वातावरण मे स्नान करने का लुफ्त उठाने के बाद जब मेरा दिल और दिमाग दोनों मे ही असीम सुख और शांतता छा गयी तो मे भी उस सुख और शांती को और अच्छे से महसूस करने के लिए मे ध्यान मे बैठ गया

और ध्यान मे बैठने के बाद मे शांत दिमाग से मे उस पहेली के बारे मे सोचने लगा और ऐसा करते ही मेरे दिमाग मे मेरे जन्म के बाद होने वाली सारी चीजे किसी चलचित्र के तरह दिखने लगी

जो देखके मुझे मेरी पहली का जवाब भी मिल गया जब बचपन मे मैं गुरु राघवेंद्र को मिला था तो उन्होंने मेरे अस्तित्व का पता लगाने हेतु मेरे उपर कालास्त्र की शक्तियाँ इस्तेमाल की थी

और जब उन्होंने ऐसा किया था तभी मेरे शरीर मे उनके अस्त्र की ऊर्जा महसूस हुई थी जो सोचते ही मेरा ध्यान टूट गया और जब मेने अपनी आँखे खोली तो पाया कि अभी धीरे धीरे सूरज उगने लग गया था

जो देखके मे तुरंत खड़ा हो गया और चारों तरफ कोई न कोई सबूत ढूँढने लगा लेकिन मुझे वहाँ कुछ नही मिला जो देखकर मे निराश हो गया था और अभी मे आश्रम मे वापिस लौट रहा था की तभी मेरी नज़र वहाँ पर बहती हुई नदी पर पड़ी

जिसके अंदर मुझे कुछ चमकती ही चीज दिखाई देने लगी लेकिन वो चीज नदी में गहराई मे थी जिसे देखकर मेने सीधा नदी मे छलांग लगा दी लेकिन मे जितना उस चमकती चीज के पास पहुँचता

वो उतनी ही नदी मे और गहराई मे चली जाती कुछ समय ऐसे ही नाकाम कोशिश करने के बाद मेरे दिमाग में एक और तरीका आ गया उस चीज तक पहुँचने का और उसके लिए मे तुरंत नदी से बाहर निकल आया


और नदी के किनारे पर आके खड़ा हो गया और फिर मेने अपने जल अस्त्र की मदद से उस नदी के सारे पानी को गायब कर दिया जिससे उस जगह पर अब मुझे वो चीज साफ साफ दिखाई दे रही थी

और वो चीज कुछ और नही बल्कि एक लोहे का बक्शा था जो पानी मे रहने के बाद भी बिल्कुल सही सलामत था उसपर जरा सी भी जंग नही चढ़ी थी

और जब में उस बक्शे को खोलकर देखा तो उसमे एक संदेशा पत्र था जिसको में पढ़ा तो पता चला की उसे गुरु जल ने ही लिखा था

संदेश :- शब्बाश भद्रा हमे पता था की तुम इस संदेश तक पहुँच जाओगे अब तुम्हे इस संदेश पत्र को संभालकर रखना है और अब तुम्हे उस महास्त्र को पाने के लिए और 7 पड़ावों को पार करना होगा हर पड़ाव तुम्हे तुम्हारे मंजिल के करीब लेकर जायेगा और जब तुम उन सातों पड़ावों को पर कर लोगे तो तुम्हे मिलेगा अजेय अस्त्र जिससे तुम उन सातों महासुरों को मार पाओगे दूसरे पडाव तक पहुँचने के लिए तुम्हारी सहायता ये संदेश ही करेगा

मेरे इतना पढ़ते ही वो पत्र और बक्शा दोनों जल के राख हो गए और उनमे लगी आग से वहाँ पर मुझे कुछ चित्र दिखने लगे वो चित्र दिखने मे बड़े खतरनाक लग रहे थे


क्योंकि जिस भी इलाके के ये चित्र थे उस पूरे इलाके मे ज्वालामुखी भरे हुए थे कुछ विशाल ज्वालामुखी थे तो कुछ छोटे ज्वालामुखी थे और जिन जगहों पर ज्वालामुखी नही थे वहाँ पर नुकीले और प्राणघाती ज्वाला काँच(obsidian) थे

जिनपर गलती से भी पैर पड़ जाता तो उसकी तपिश उसी वक़्त जला के राख कर देती बस एक बात अच्छी दिख रही थी और वो ये की वहाँ पर सारे ज्वालामुखी सुप्त अवस्था मे थे

लेकिन फिर भी उनके मुख से निकालने वाली वो भाँप इतनी गरम महसूस हो रही थी की वो आँखों को साफ दिख रही थी

जिसके बाद वो चित्र गायब हो गया और मेने भी उस नदी का फिर पहले की तरह भर दिया जहाँ एक तरफ ये सब हो रहा था

तो वही रात मे महागुरु के कुटिया मे इस वक्त मेरे प्रिया और शांति को छोड़कर सब मौजूद थे सारे गुरु शिबू और मेरे माता पिता भी

गुरु वानर :- तो सम्राट आपके कहे मुताबिक आपने भद्रा को सुरक्षित रखने के लिए हमारे आश्रम मै भेजा लेकिन अभी भी मे समझ नही पा रहा हूँ की आपने उस वक्त आश्रम पर लगा हुआ कवच को कैसे निष्क्रिय किया

पिता जी :- सर्वप्रथम आप हमे अपना मित्र समझिये सम्राट हम तब थे जब हम हमारे सिंहासन पर विराजमान थे लेकिन अब हम केवल त्रिलोकेश्वर है और रही बात कवच की तो वो हमने निष्क्रिय नही किया था

पिताजी की बात सुनकर सब दंग रह गए थे क्योंकि वो पिछले 20 सालों से इस सवाल का जवाब ढूँढने की कोशिश कर रहे थे लेकिन उन्हे मिल नही था और मेरे अस्तित्व की असलियत जानने के बाद उन्हे लगा था की ये सालों पुरानी अनसुलझी पहेली का जवाब उन्हे आज मिल जायेगा लेकिन ऐसा कुछ नही हुआ बल्कि बात जहाँ थी वही आके रुक गयी थी अभी कोई कुछ और बोलता की तभी महागुरु बोलने लगे

महागुरु :- कोई अपने सिंहासन या राजपाठ से सम्राट नही बनता बल्कि उनके कर्म उनके प्रति प्रजा का विश्वास और आदर उन्हे खुद ब खुद सम्राट की उपाधि दे देती हैं और रही उस कवच की बात तो आप सब इस बात को भूल रहे हैं कि भद्रा के शरीर मे बाल्यकाल से ही सप्त ऊर्जा समाई हुई है और जो कवच मेने बनाया है वो किसी भी अस्त्र धारक या कोई ऐसा जिसके अंदर सप्तस्त्रों का अंश भी हो उसे रोक नही सकता हैं

गुरु जल :- ये सब तो ठीक है लेकिन अब आगे क्या मतलब अब हम क्या करेंगे हमारे पास अब सप्त अस्त्र नही है और आने वाले महासंग्राम मे हम मुकाबला कैसे करेंगे कैसे महासुरों और शुक्राचार्य के सेना का सामना करेंगे

गुरु सिँह :- अपने बल हिम्मत और जज्बे से

गुरु वानर:- अपने ज्ञान से

शिबू :- सबसे बढ़कर एकता से हम उनका सामना करेंगे और उन्हे पछाड़ देंगे

महागुरु :- अब आपको आपके सवाल का जवाब मिल गया होगा क्यों दिलावर

ऐसे ही कुछ देर बाते करने के बाद सभी अपने कक्ष मे जाकर सो जाते है उन्हे पता नही था की सुबह उन्हे एक साथ कितने सारे झटके मिलने वाले है

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आज के लिए इतना ही

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NICE UPDATE BHAI THANKS AMAZING
 
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Reactions: parkas

Gurdep

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अध्याय पैंसठ

अभी सुबह हो गयी थी और आश्रम में सभी लोग उठ चुके थे और जब प्रिया की नींद खुली तो उसने देखा की भद्रा वहाँ पर नही है उसे लगा की वो बाहर बाकी गुरुओं के साथ मिलकर आगे की योजना बना रहा होगा

इसीलिए उसने इस बात पर ध्यान न देते हुए उसने शांति को भी जगाया जिसके बाद दोनों ही बाहर आके भद्रा को ढूँढने लगी लेकिन उन्हे वो कही नही मिला

और ऐसे ही भद्रा को ढूँढते हुए वो दोनों महागुरु के कुटिया के पास पहुँच गये जहाँ पर महागुरु उन्हे दिखे तो उन्होंने उनसे भद्रा के बारे मे पूछा तो उन्हे भी इस बारे मे कोई जानकारी नही थे


जिससे अब उन दोनों के मन में भद्रा के लिए चिंता होने लगी थी जिसके वजह से वो अब भद्रा को ढूँढने के लिए पुरा आश्रम छान लिया लेकिन उन्हे भद्रा कही नही मिला उन्होंने आश्रम के पीछे वाली नदी के पास जाकर देखा तो वहाँ भी उन्हे कुछ नही मिला

हुआ यू की नदी मे से वो संदेश मिलने के बाद भद्रा उन चित्र में दिखाई जगह को ढूँढने के लिए ध्यान मे बैठा था और कोई उसके इस कार्य मे बाधा न डाल पाए

इसीलिए उसने आश्रम के पास बने हुए जंगल मे जाकर ध्यान लगाने का फैसला किया था तो वही जब प्रिया और शांति को भद्रा कही नही दिखा तो उन्होंने ये बात आश्रम में सबको बता दी

जिससे अब सारे गुरु शिबू और भद्रा के माँ बाबा सभी भद्रा को ढूँढने के लिए लग गए लेकिन उनको भद्रा कही नही मिला और जब सभी ढूंढ रहे थे की तभी सबको को महा शक्तिशाली और भयानक ऊर्जा शक्ति का आभास हुआ


जो महसूस करते ही सभी सतर्क हो गए थे सबको पहले लगा की ये भद्रा के ऊर्जा शक्ति का एहसास है लेकिन जब उन्होंने भद्रा की युद्ध मैदान में सातों अस्त्रों की शक्तियों को पाने के बाद जो ऊर्जा शक्ति उन्हे महसूस हुआ था

उसके मुकाबले ये ऊर्जा शक्ति बहुत ज्यादा शक्तिशाली और भयानक लग रही थी जिसके बाद वो सभी भद्रा को ढूँढने का छोड़कर उस उर्जशक्ति को ढूँढने लगे जिससे अब वहाँ पर सभी सतर्क होने लगे थे और जब उन्होंने इस ऊर्जा शक्ति का पीछा किया

तो वो उसी जगह पहुँच गए जहाँ पर भद्रा ध्यान लगा रहा था और जब सबने भद्रा को देखा तो सब दंग रह गए क्योंकि इस वक्त भद्रा के शरीर किसी हीरे की तरह चमक रहा था

और उसके शरीर के कपड़े पूरी तरीके से काले थे उसकी कमर पर दो खंजर थे तो दूसरी तरफ दो तलवारे लटक रही थी उसके पीठ पर एक गोल ढाल थी तो उसके सर पर दो सिंग उगे हुए थे

जो की उसके कपड़ो के तरह काले थे तो वही उसके आँखों से खून आँसुओं की तरह बह रहे थे जब सबने भद्रा का ये रूप देखा तो सब हैरान और परेशान हो गए थे तो वही शिबू और भद्रा के माता पिता के चेहरे पर एक मुस्कान आ गयी थी जो देखकर महागुरु ने उनसे पूछा

महागुरु :- सम्राट आप तीनो मुस्कुरा रहे है लेकिन क्यों भद्रा का ये भयानक रूप क्या आप को पता है ये क्यों है इतना अजीब रूप भद्रा ठीक तो है ना

शिबू :- ठीक ये कैसी बात कर रहे हो महागुरु भद्रा को कुछ हुआ ही किधर है ये जो भद्रा का रूप है यही उसका असली अवतार है ब्रम्ह राक्षस का अवतार कुमार का अवतार

शिबू के ये बोलने से सभी को एक बड़ा झटका लगा था मेरा असली रूप ऐसा होगा ये किसीने सोचा भी नही था अभी कोई कुछ और बोलता की तभी मैने अपनी आँखे खोल दी

और जब मैने मेरी आँखे खोली तो सबको और एक झटका लगा क्योंकि मेरी आँखे पूरी तरह से लाल हो गयी थी जो देखकर सब एक बार के लिए डर गए थे

और जब मैने अपने सामने सबको ऐसे डरे हुए देखा तो मुझे खुदकी हालत का अंदाजा हो गया जिसके बाद मैने फिर से खुदको आम इंसानो जैसे रूप दे दिया

मै :- मुझे आप सब से बहुत जरूरी बात करनी है मुझे आश्रम के सभा गृह मे मिलिए

इतना बोलके मे वहाँ से चला गया अपने चेहरे पर लगा खून धोने तो वही सप्त गुरुओं से शिक्षा ग्रहण करने बाद और उनकी ली गई परीक्षा के बाद से मेरी शक्ति ऊर्जा पहले से कई गुना अधिक बढ़ गयी थी


जिसका असर मेरे आवाज पर भी हुआ था मेरी आवाज पहले से भी ज्यादा गहरी और गंभीर हो गयी थी जिसे सुनकर वहाँ खड़े सब के बदन पर रुएँ खड़ी हो गयी थी

जिसके बाद मे जब वहाँ से थोड़ा दूर पहुंचा तो मेने अपने शक्ति ऊर्जा को फिर से काबू कर लिया जिससे मेरे चारो तरफ एक छलावे का कवच निर्माण कर दिया जिससे मेरी असली ऊर्जा कोई महसूस न कर पाए जिसके बाद सभी सभाग्रुह मे जमा हो गए थे

मै :- आप सभी जानते है कि हमारे उपर युद्ध की तलवार लटक रही है लेकिन वो का गिरेगी ये हमे अभी तक पता नही है लेकिन अब हमारे पास केवल 14 दिनों का समय है इन 14 दिनों के पूर्ण होते ही ये संसार एक महा विनाशकारी युद्ध का साक्षी बनेगा जो युद्ध किसी के हार से नही बल्कि किसी एक पक्ष के संपूर्ण विनाश से होगा

गुरु वानर :- भद्रा तुम्हे कैसे पता की हमारे पास केवल 14 दिनों का समय है

मै :- मेरे अस्त्रों ने बताया (झूठ मे चाहता तो सबको सप्त ऋषियों के बारे मे बता सकता था लेकिन इसके लिए उन्होंने ही मना किया था)

मै :- तो सर्वप्रथम मे सबको उनके जिम्मेदारियों से अवगत करा देता हूँ सबसे पहले दैत्य सम्राट शिबू गुरु अग्नि और गुरु वानर आप तीनो सभी योद्धाओं और सैनिकों को युद्ध प्रशिक्षण दोगे

तो गुरु सिंह बाबा (त्रिलोकेश्वर) और गुरु नंदी आप तीनो सभी उन जगहों पर ध्यान दोगे जहाँ से असुर प्रवेश कर सकते है और उन जगहों पर अलग अलग जाल बिछाओगे ये काम आपको इस तरह करना है कि किसी को पता न चले

जिसके बाद महागुरु, गुरु वानर आप दोनों सभी सेनापतियों के लिए मायावी अस्त्रों का निर्माण करेंगे और महागुरु आप सभी गुरुओं को भी अपने तरह दिव्यास्त्रों का ज्ञान प्रदान कीजिये

तो वही शांति प्रिया और माँ (दमयंती) आप सभी योद्धाओं और सैनिकों के लिए दवाइयाँ और जड़ीबूटियों का इंतेज़ाम करेंगे और साथ मे ही आप तीनों आश्रम में रहकर उसकी सुरक्षा और यहाँ पर मौजूद सभी योद्धाओं की सुरक्षा और सेहत का ध्यान रखेंगे

साथ मे शांति तुम पशु पक्षीयों को आश्रम के चारों तरफ किसी गुप्तचर की तरह बिछा दो जिससे यहाँ पर शत्रु पक्ष कभी भी आकसमात आक्रमण न कर पाए

ये सब बताते हुए में फिर से एक बार मेरी आवाज को भारी और गंभीर कर दिया था जिससे कोई भी इन बातों को भूल कर भी दुलक्ष ना कर पाए

मै :- अब सभी सातों गुरु मेरे सामने आये

मेरे आवाज की गंभीरता की वजह से कोई भी सवाल पूछ ही नही पा रहा था और सब मे जैसा कह रहा था वैसे ही कर रहे थे मेरे कहे मुताबिक सभी जन वैसा ही करते हुए मेरे सामने आकर खड़े हो गए

जिसके बाद मेने अपने हाथों को जोड़कर आँखों को बंद करके कुछ मंत्र जपने लगा जिससे मेरे शरीर से सातों अस्त्र निकालकर अपने पुराने धारक के शरीर मे समा गए


जो देखकर वहाँ सभी हैरान हो गए उन्हे समझ नही आ रहा था की आखिर ये मेने क्यों किया और सबसे बड़ा सवाल कैसे किया क्योंकि अस्त्र अपने मालिक को छोड़के दूसरे के पास तीन ही परिस्थितियों मे जाते है

जो तीनो परिस्थितिया अभी के हालत मेल नही बना रहे थे सबसे पहला धारक मर जाए ये सरासर असम्भव था

दूसरा अगर अस्त्र को जबरदस्ती छिना जाए तब जो भी अस्त्रों को बचाने के लिए अपने प्राण दांव पर लगायेगा और खुद को साबित करेगा

या तीसरा धारक खुद के स्वेच्छा से उनका त्याग कर दे लेकिन ये भी तभी होगा जब अस्त्र धारक पूरी तरह से उनका त्याग करे


लेकिन ये भी नामुमकिन था क्योंकि अगर ऐसे होता तो मुझे इतनी पीड़ा और कठिनाइयों का सामना करना पड़ता की उसमे मेरे प्राण भी चले जाते लेकिन ऐसा भी कुछ नही हुआ था

ये देखने से ऐसा लग रहा था कि जैसे मैने अपनी किसी छोटी मोटी शक्ति उन्हे दी हो अपने अस्त्र वापिस पाकर सारे अस्त्र धारक खुश थे तो वही सब मेरे इस आकासमात फैसले से हैरान थे

किसी को समझ नही आ रहा था की मैने ऐसा किस कारण से किया लेकिन मेरे ऊर्जा शक्ति को महसूस करके मेरा असली रूप देखकर और मेरी आवाज सुनकर किसी मे हिम्मत नहीं थी कि मुझसे सीधा आकर ये सवाल पूछे की तभी मैने अपना अगला फैसला सुनाया जिससे सब और भी हैरान रह गये

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आज के लिए इतना ही

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अभी सुबह हो गयी थी और आश्रम में सभी लोग उठ चुके थे और जब प्रिया की नींद खुली तो उसने देखा की भद्रा वहाँ पर नही है उसे लगा की वो बाहर बाकी गुरुओं के साथ मिलकर आगे की योजना बना रहा होगा

इसीलिए उसने इस बात पर ध्यान न देते हुए उसने शांति को भी जगाया जिसके बाद दोनों ही बाहर आके भद्रा को ढूँढने लगी लेकिन उन्हे वो कही नही मिला

और ऐसे ही भद्रा को ढूँढते हुए वो दोनों महागुरु के कुटिया के पास पहुँच गये जहाँ पर महागुरु उन्हे दिखे तो उन्होंने उनसे भद्रा के बारे मे पूछा तो उन्हे भी इस बारे मे कोई जानकारी नही थे


जिससे अब उन दोनों के मन में भद्रा के लिए चिंता होने लगी थी जिसके वजह से वो अब भद्रा को ढूँढने के लिए पुरा आश्रम छान लिया लेकिन उन्हे भद्रा कही नही मिला उन्होंने आश्रम के पीछे वाली नदी के पास जाकर देखा तो वहाँ भी उन्हे कुछ नही मिला

हुआ यू की नदी मे से वो संदेश मिलने के बाद भद्रा उन चित्र में दिखाई जगह को ढूँढने के लिए ध्यान मे बैठा था और कोई उसके इस कार्य मे बाधा न डाल पाए

इसीलिए उसने आश्रम के पास बने हुए जंगल मे जाकर ध्यान लगाने का फैसला किया था तो वही जब प्रिया और शांति को भद्रा कही नही दिखा तो उन्होंने ये बात आश्रम में सबको बता दी

जिससे अब सारे गुरु शिबू और भद्रा के माँ बाबा सभी भद्रा को ढूँढने के लिए लग गए लेकिन उनको भद्रा कही नही मिला और जब सभी ढूंढ रहे थे की तभी सबको को महा शक्तिशाली और भयानक ऊर्जा शक्ति का आभास हुआ


जो महसूस करते ही सभी सतर्क हो गए थे सबको पहले लगा की ये भद्रा के ऊर्जा शक्ति का एहसास है लेकिन जब उन्होंने भद्रा की युद्ध मैदान में सातों अस्त्रों की शक्तियों को पाने के बाद जो ऊर्जा शक्ति उन्हे महसूस हुआ था

उसके मुकाबले ये ऊर्जा शक्ति बहुत ज्यादा शक्तिशाली और भयानक लग रही थी जिसके बाद वो सभी भद्रा को ढूँढने का छोड़कर उस उर्जशक्ति को ढूँढने लगे जिससे अब वहाँ पर सभी सतर्क होने लगे थे और जब उन्होंने इस ऊर्जा शक्ति का पीछा किया

तो वो उसी जगह पहुँच गए जहाँ पर भद्रा ध्यान लगा रहा था और जब सबने भद्रा को देखा तो सब दंग रह गए क्योंकि इस वक्त भद्रा के शरीर किसी हीरे की तरह चमक रहा था

और उसके शरीर के कपड़े पूरी तरीके से काले थे उसकी कमर पर दो खंजर थे तो दूसरी तरफ दो तलवारे लटक रही थी उसके पीठ पर एक गोल ढाल थी तो उसके सर पर दो सिंग उगे हुए थे

जो की उसके कपड़ो के तरह काले थे तो वही उसके आँखों से खून आँसुओं की तरह बह रहे थे जब सबने भद्रा का ये रूप देखा तो सब हैरान और परेशान हो गए थे तो वही शिबू और भद्रा के माता पिता के चेहरे पर एक मुस्कान आ गयी थी जो देखकर महागुरु ने उनसे पूछा

महागुरु :- सम्राट आप तीनो मुस्कुरा रहे है लेकिन क्यों भद्रा का ये भयानक रूप क्या आप को पता है ये क्यों है इतना अजीब रूप भद्रा ठीक तो है ना

शिबू :- ठीक ये कैसी बात कर रहे हो महागुरु भद्रा को कुछ हुआ ही किधर है ये जो भद्रा का रूप है यही उसका असली अवतार है ब्रम्ह राक्षस का अवतार कुमार का अवतार

शिबू के ये बोलने से सभी को एक बड़ा झटका लगा था मेरा असली रूप ऐसा होगा ये किसीने सोचा भी नही था अभी कोई कुछ और बोलता की तभी मैने अपनी आँखे खोल दी

और जब मैने मेरी आँखे खोली तो सबको और एक झटका लगा क्योंकि मेरी आँखे पूरी तरह से लाल हो गयी थी जो देखकर सब एक बार के लिए डर गए थे

और जब मैने अपने सामने सबको ऐसे डरे हुए देखा तो मुझे खुदकी हालत का अंदाजा हो गया जिसके बाद मैने फिर से खुदको आम इंसानो जैसे रूप दे दिया

मै :- मुझे आप सब से बहुत जरूरी बात करनी है मुझे आश्रम के सभा गृह मे मिलिए

इतना बोलके मे वहाँ से चला गया अपने चेहरे पर लगा खून धोने तो वही सप्त गुरुओं से शिक्षा ग्रहण करने बाद और उनकी ली गई परीक्षा के बाद से मेरी शक्ति ऊर्जा पहले से कई गुना अधिक बढ़ गयी थी


जिसका असर मेरे आवाज पर भी हुआ था मेरी आवाज पहले से भी ज्यादा गहरी और गंभीर हो गयी थी जिसे सुनकर वहाँ खड़े सब के बदन पर रुएँ खड़ी हो गयी थी

जिसके बाद मे जब वहाँ से थोड़ा दूर पहुंचा तो मेने अपने शक्ति ऊर्जा को फिर से काबू कर लिया जिससे मेरे चारो तरफ एक छलावे का कवच निर्माण कर दिया जिससे मेरी असली ऊर्जा कोई महसूस न कर पाए जिसके बाद सभी सभाग्रुह मे जमा हो गए थे

मै :- आप सभी जानते है कि हमारे उपर युद्ध की तलवार लटक रही है लेकिन वो का गिरेगी ये हमे अभी तक पता नही है लेकिन अब हमारे पास केवल 14 दिनों का समय है इन 14 दिनों के पूर्ण होते ही ये संसार एक महा विनाशकारी युद्ध का साक्षी बनेगा जो युद्ध किसी के हार से नही बल्कि किसी एक पक्ष के संपूर्ण विनाश से होगा

गुरु वानर :- भद्रा तुम्हे कैसे पता की हमारे पास केवल 14 दिनों का समय है

मै :- मेरे अस्त्रों ने बताया (झूठ मे चाहता तो सबको सप्त ऋषियों के बारे मे बता सकता था लेकिन इसके लिए उन्होंने ही मना किया था)

मै :- तो सर्वप्रथम मे सबको उनके जिम्मेदारियों से अवगत करा देता हूँ सबसे पहले दैत्य सम्राट शिबू गुरु अग्नि और गुरु वानर आप तीनो सभी योद्धाओं और सैनिकों को युद्ध प्रशिक्षण दोगे

तो गुरु सिंह बाबा (त्रिलोकेश्वर) और गुरु नंदी आप तीनो सभी उन जगहों पर ध्यान दोगे जहाँ से असुर प्रवेश कर सकते है और उन जगहों पर अलग अलग जाल बिछाओगे ये काम आपको इस तरह करना है कि किसी को पता न चले

जिसके बाद महागुरु, गुरु वानर आप दोनों सभी सेनापतियों के लिए मायावी अस्त्रों का निर्माण करेंगे और महागुरु आप सभी गुरुओं को भी अपने तरह दिव्यास्त्रों का ज्ञान प्रदान कीजिये

तो वही शांति प्रिया और माँ (दमयंती) आप सभी योद्धाओं और सैनिकों के लिए दवाइयाँ और जड़ीबूटियों का इंतेज़ाम करेंगे और साथ मे ही आप तीनों आश्रम में रहकर उसकी सुरक्षा और यहाँ पर मौजूद सभी योद्धाओं की सुरक्षा और सेहत का ध्यान रखेंगे

साथ मे शांति तुम पशु पक्षीयों को आश्रम के चारों तरफ किसी गुप्तचर की तरह बिछा दो जिससे यहाँ पर शत्रु पक्ष कभी भी आकसमात आक्रमण न कर पाए

ये सब बताते हुए में फिर से एक बार मेरी आवाज को भारी और गंभीर कर दिया था जिससे कोई भी इन बातों को भूल कर भी दुलक्ष ना कर पाए

मै :- अब सभी सातों गुरु मेरे सामने आये

मेरे आवाज की गंभीरता की वजह से कोई भी सवाल पूछ ही नही पा रहा था और सब मे जैसा कह रहा था वैसे ही कर रहे थे मेरे कहे मुताबिक सभी जन वैसा ही करते हुए मेरे सामने आकर खड़े हो गए

जिसके बाद मेने अपने हाथों को जोड़कर आँखों को बंद करके कुछ मंत्र जपने लगा जिससे मेरे शरीर से सातों अस्त्र निकालकर अपने पुराने धारक के शरीर मे समा गए


जो देखकर वहाँ सभी हैरान हो गए उन्हे समझ नही आ रहा था की आखिर ये मेने क्यों किया और सबसे बड़ा सवाल कैसे किया क्योंकि अस्त्र अपने मालिक को छोड़के दूसरे के पास तीन ही परिस्थितियों मे जाते है

जो तीनो परिस्थितिया अभी के हालत मेल नही बना रहे थे सबसे पहला धारक मर जाए ये सरासर असम्भव था

दूसरा अगर अस्त्र को जबरदस्ती छिना जाए तब जो भी अस्त्रों को बचाने के लिए अपने प्राण दांव पर लगायेगा और खुद को साबित करेगा

या तीसरा धारक खुद के स्वेच्छा से उनका त्याग कर दे लेकिन ये भी तभी होगा जब अस्त्र धारक पूरी तरह से उनका त्याग करे


लेकिन ये भी नामुमकिन था क्योंकि अगर ऐसे होता तो मुझे इतनी पीड़ा और कठिनाइयों का सामना करना पड़ता की उसमे मेरे प्राण भी चले जाते लेकिन ऐसा भी कुछ नही हुआ था

ये देखने से ऐसा लग रहा था कि जैसे मैने अपनी किसी छोटी मोटी शक्ति उन्हे दी हो अपने अस्त्र वापिस पाकर सारे अस्त्र धारक खुश थे तो वही सब मेरे इस आकासमात फैसले से हैरान थे

किसी को समझ नही आ रहा था की मैने ऐसा किस कारण से किया लेकिन मेरे ऊर्जा शक्ति को महसूस करके मेरा असली रूप देखकर और मेरी आवाज सुनकर किसी मे हिम्मत नहीं थी कि मुझसे सीधा आकर ये सवाल पूछे की तभी मैने अपना अगला फैसला सुनाया जिससे सब और भी हैरान रह गये

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आज के लिए इतना ही

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अध्याय छियासठ

इस वक्त सभी अस्त्र धारक और बाकी सभी मेरे ऐसे आकासमात अस्त्रों का त्याग करने से परेशान थे की तभी मैने अपने अगले फैसले के बारे में बता दिया जिससे वो सभी हैरान हो गए

मै :- आप सबको मे अपने अगले फैसले के बारे मे बताना चाहता हूँ कि मे आज से अगले 10 दिनों तक एक अज्ञात प्रवास पर जा रहा हूँ जहाँ मे अकेला जाऊंगा तब तक आप सभी मेरे कह मुकाबिक यहाँ पर बदलाव कर दीजियेगा क्योंकि मेरे वापस आते ही यहाँ पर एक ऐसा युद्ध रूपी हवन आरंभ होगा जिसमे हर किसी को अपने प्राणों को आहुति के रूप मृत्यु की अग्नि मे डालने होंगे

मेरे अचानक आश्रम छोड़कर 10 दिनों के लिए प्रवास पर जाने का सोचकर सभी और भी ज्यादा हैरान हो गए थे वो भी ऐसे प्रवास पर जिसकी न कोई मंजिल थी और न ही कोई रास्ता मालूम था


एक ऐसा अज्ञात प्रवास वो भी ऐसे समय पर जब युद्ध हमारे सर पर पहुँच गया है सभी लोग मेरे फैसले से हैरान थे लेकिन कोई कुछ बोल नही पा रहा था आखिर कार प्रिया ने थोड़ी हिम्मत रखते हुए वहाँ फैले सन्नाटे को खतम करने का फैसला किया

प्रिया :- भद्रा मे ये नही पूछूँगी की तुम क्यों जा रहे हो और न ही ये पूछूँगी की तुम कहाँ जा रहे हो मुझे यकीन है कि तुम जो भी करोगे उसमे सबका भला होगा भी मे ये कहना चाहती हूँki तुम जहाँ भी जा रहे हो वहाँ मे भी तुम्हारे साथ आऊँगी

मै :- नही प्रिया इस प्रवास पर मे अकेला ही जाऊंगा

प्रिया :- लेकिन

मै :- प्रिया तुमने मुझे वचन दिया था न की मेरे जीवन के हर अभियान में मेरा साथ दोगी

प्रिया :- हाँ याद है और उसी के लिए तो मे तुम्हारे साथ आना चाहती हूँ

मै :- लेकिन मुझे तुम्हारी मदद अज्ञात प्रवास मे नही बल्कि यहाँ आश्रम में जरूरत है

प्रिया :- ठीक है तुम चिंता मत करो मे सब संभाल लुंगी

अभी प्रिया को मैने शांत किया था कि तभी महागुरु मेरे सामने आ गए

महागुरु :- भद्रा अगर तुम्हारा ये प्रवास इतना जरूरी है तो तुमने अपनी सर्व शक्तिशाली ऊर्जा सप्तस्त्रों की ताकत का त्याग कर दिया ऐसा क्यों

मै :- क्योंकि सप्तस्त्रों की सात्विक ऊर्जा के साथ मे कुमार की तमसिक ऊर्जा का इस्तेमाल नही कर पा रहा हूँ और इस युद्ध मे मुझे सप्तस्त्रों के साथ कुमार की शक्तियों की भी जरूरत है इसीलिए में ये कदम उठाया (झूठ)

मेरे इस कारण के बाद सबके चेहरे से कुछ उलझन के भाव कम हो गए थे क्योंकि अब तक सबको या लगता हैं कि सात्विक और तमसिक शक्तियां कभी भी एक साथ नही हो सकते


और सबके इसी गलतफहमी का मैने फायदा उठाया मे उन्हे सच बता सकता था लेकिन ऐसा करने के लिए सप्तऋषियों ने मना किया था वो नही चाहते थे की मेरी असली ताकत और असली ऊर्जा का पता किसी को भी अंतिम युद्ध से पहले चले

मेरे सप्तस्त्रों के त्याग करने के पीछे दो प्रमुख कारण थे सबसे पहला तो ये की मुझे पता है की भले ही महासुरों के पुनर्जन्म लेने मे अभी 14 दिनों की अवधी अभी शेश है इस कालावधि मे भी असुर धरती पर आक्रमण कर सकते है


जिससे लढने के लिए इन सबको अस्त्रों की जरूरत होगी क्योंकि आम लोगों से भरी जगह पर कोई भी दिव्यस्त्र इस्तेमाल नही कर सकते और नही आम अस्त्रों से असुरों को कुछ फरक नही पड़ता

ऐसे हालत में ये सप्तस्त्रों की शक्ति ही हमारी सबसे बड़ी उम्मीद थी तो वही दूसरा कारण था कि अभी मेरे शरीर मे इतनी सप्तस्त्रों की ऊर्जा थी की मे बिना अस्त्रों के भी उनके शक्तियों का इस्तेमाल कर सकता था

फिर कुछ देर और सबसे बात करने के बाद मे चल पड़ा अपने अज्ञात प्रवास के तरफ जहाँ मुझे उन 7 पड़ावों को पार करना था जिनके बारे मे मुझे कुछ भी ज्ञान नही था मे कुछ नही जानता था


बस इतना जानता था कि वो पड़ाव मुझे और मेरे काबिलियत को उसकी चरम सिमा तक परखेंगे जो मेरे लिए बिल्कुल भी आसान नही होने वाला था मेरे पास इस प्रवास को आगे बढ़ाने के लिये केवल 1 ही सुराग था

और वो थे वो चित्र जिनके बारे मे भी मुझे ज्यादा कुछ पता नही था बस इतना मालूम था कि वो जगह पृथ्वी पर ही है और जितना मैने भूगोल में पढ़ा है तो जरूर वो जगह इंडोनेशिया मे ही होगी


क्योंकि भूगोल के अनुसार इंडोनेशिया में दुनिया में सबसे अधिक सक्रिय ज्वालामुखी हैं और यह दुनिया के उन स्थानों में से एक है जो प्रशांत रिंग ऑफ फायर (Pacific Ring of Fire) के भीतर स्थित हैं

यह 25,000 मील (40,000 किमी) घोड़े की नाल के आकार का क्षेत्र है जो प्रशांत महासागर की सीमा पर है इसीलिए इतना तो तय था की जो जगह मैने देखी ये वही जगह है


लेकिन अब सवाल ये था की वहाँ मौजूद इतने सारे ज्वालामुखी मेसे अपने काम का कोनसा है जब मुझे इस सवाल का जवाब नही मिला तो मैने उस समय पर छोड़ दिया और चल पड़ा इंडोनेशिया के प्रशांत रिंग ऑफ फायर (Pacific Ring of Fire) के तरफ

वहाँ पहुँचकर मैंने देखा कि जितना मैने चित्र में देखा था उसके मुकाबले यहाँ कुछ ज्यादा ही आग भड़क रही है इन ज्वालामुखियों के अंदर पहले सिर्फ धुआ निकल रहा था लेकिन अब तो सीधे आग की लपेटे निकल रही है वो भी भयानक वाली


जो पूरे के पूरे इंसान की हड्डी के साथ पिघला दे तो वही जहां मैं खड़ा था बहा कि जमीन तक गर्म होने लगी थी जबकी में मुख्य ज्वालामुखी से 5 किमी दूर खड़ा था जमीन का तापमान बहुत बढ़ चुका था

जमीन का तापमान कितना था इसका अंदाज़ा लगाना भी मुश्किल है जब मे वहाँ के मुख्य ज्वालामुखी तक पहुंचा तो वहाँ की गर्मी ने ही संकेत दे दिया की यही मेरी मंजिल है

वहाँ गर्मी ऐसी थी की मानो मे ज्वालामुखी के पास नही बल्कि उसके भीतर खड़ा हूँ तो वही जब मैने उस ज्वालामुखी के चोटी पर जाके उसकी गहराई नापने की कोशिश की तो मुझे उसके अंदर केवल अंधकार दिख रहा था

मै (मन मे) :- ज्वालामुखी गहरा कितना है ये बताना तो घास मे सुई ढूँढने से भी ज्यादा मुश्किल है

लेकिन ये मुझे करना तो था ही इसलिए मैं उड़ता हुआ उसके अंदर कुछ दूरी तक पहुंच गया और जब मे वहाँ से नीचे देखने लगा तो मुझे वहाँ आग के अलावा कुछ नहीं दिख रहा था

इसलिए मैंने अपने हाथों को जॊडा और अपनी अग्नि शक्ति को जागृत किया और उसके अगले ही पल में ज्वालामुखी के मुँह में तेजी से घुस गया और जब मुझे अपने पैरों तले जमीन का आभास हुआ

तो मैने तुरंत अपनी आँखे खोल दी और जैसे ही मैंने अपनी आंखों को खोला तो मैं सामने का नजारा देखकर एकदम हैरान रह

गया

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मैंने अपने हाथों को जॊडा और अपनी अग्नि शक्ति को जागृत किया और उसके अगले ही पल में ज्वालामुखी के मुँह में तेजी से घुस गया और जब मुझे अपने पैरों तले जमीन का आभास हुआ

तो मैने तुरंत अपनी आँखे खोल दी और जैसे ही मैंने अपनी आंखों को खोला तो मैं सामने का नजारा देखकर एकदम हैरान रह गया क्योंकि मैंने जब अपनी आंखें खोलीं तो मुझे कोई अलग ही जगह दिख रही थी


ऐसा लग रहा था कि जैसे ये ज्वालामुखी सिर्फ एक रास्ता है और ये रास्ता जा किधर रहा था ये तो पता नहीं था लेकिन ये जगह थी बड़ी ख़तरनाक जहाँ बाहर में एक ज्वालामुखी से डर रहा था और यहाँ इस जगह पर तो हर तरफ आग ही आग थी

हर जगह छोटे छोटे ज्वालामुखी फट रहे थे गर्म लावा बह रहा था बल्की ये कहना गलत नहीं होगा कि उसी गर्म लावा की नदी बह रही थी जो हर चीज़ को पिघला रही थी इस पल मैं झूठ नहीं बोलूंगा

मुझे गर्मी लग रही थी आग की तपिश मुझे महसुस हो रही थी ऐसा लग रहा था जैसे इस जगह पर आते ही मेरी ताकत गायब हो गई है या अब मुझे ये ऐसा ही करना होगा बिना किसी शक्ति के जो करना असंभव था

ये लावा मुझे पल भर में पिघला देगा ये बात मुझे अच्छे से पता थी लेकिन हमें अस्त्र को हासिल करना है तो ये तो सहना ही पड़ेगा फिर चाहे कुछ भी क्यू ना हो जाए.

मैंने अपनी आँखों को बंद कर दिये और सबसे पहले आदिदेव का स्मरण किया फिर अपने सभी गुरु और माता पिता का स्मरण किया जिससे मेरे अंदर एक नई ताकत का जनम हुआ


ये नई ताकत संकेत था कि मैं अब तैयार हूं आगे बढ़ने के लिए अब मैंने चारो तरफ ध्यान से देखना शुरू किया आख़िर कहा हो सकता है अगला पत्र तो मेरी नज़र लावा की नदी में एक जगह पर रुकी

लावा के बिल्कुल बीचो बीच एक बेहद ही चमकदार चीज़ तैर रही थी ये देखकर मुझे समझ आया कि यही है मेरी मंज़िल लेकिन मुश्किल तो अब शुरू होने वाली थी क्योंकि वो लावा के एकदम बीच में था

और वहाँ तक पहुंचने का कोई और रास्ता भी नहीं दिख रहा था सिवाय एक के और वो था की मैं तैर कर वहाँ तक जाऊ जो संभव नहीं था वहाँ तक पहुंचने से पहले ही मैं पिघल जाऊंगा किसी आइसक्रीम की तरह

लेकिन आगे तो बढ़ना ही था इसीलिए मैंने अपने हाथो को जोड़ा वहाँ खड़े खड़े ही ध्यान लगाना शुरू किया अभी मे ध्यान में ही था की तभी मुझे मेरे आँखों के सामने कुछ दृश्य दिखने लगे

ये दृश्य उस वक़्त के थे जब मेरे सपने में गुरु अग्नि मुझे शिक्षा दे रहे थे जहाँ उन्होंने मुझे अग्नि से जोड़ने के एक छलावे का निर्माण किया था जिसमे मे एक ऐसे कमरे मे था

जिसे चारों तरफ से एक भयानक अग्नि ने घेर लिया था जिससे बचने का एक ही रास्ता था उस भयानक अग्नि के अंदर कूद कर दूसरे बाजू चले जाना जहाँ गुरु अग्नि खड़े थे

गुरु अग्नि :- क्या कर रहे हो कुमार जल्दी से आग मे कुदिये आप जितनी देर करोगे उतनी ही ये अग्नि भयानक रूप लेगी

मैं- तो मै क्या करूं गुरु अग्नि ये आग मुझे भस्म कर देगी. मैं आपकी तरफ कभी पहुँच ही नहीं पाऊंगा

गुरु अग्नि :- ये सब इसलिए तुम्हे लग रहा है क्योंकि तुम हद से ज्यादा डर रहे हो और एक बात हमेशा याद रखना की अग्नि डर को महसुस कर लेती है और तुम्हारे उसी डर को सच बना देती है. इसलिए तुम्हें ये सब लग रहा है की तुम कभी भी यहाँ पहुँच ही नहीं पाओगे तुम्हें अपने मन से डर को निकलना होगा वर्ना सच में तुम वही भस्म हो जाओगे.

मैं :- मैं पूरी तरह से कोशिश कर रहा हूं गुरु अग्नि परंतु पता नहीं क्यों ये डर मुझे परेशान कर रहा है मै अपने शक्तियों को एकाग्र नही कर पा रहा हूँ

गुरु अग्नि:-- ध्यान लगाओ कुमार याद है न तुम्हे गुरु जल ने क्या कहाँ था अस्त्र तुम्हे शक्तिशाली नही बनाते बल्कि तुम अस्त्रों को शक्तिशाली बनाते हो अपने उपर विश्वास करो

इसी के साथ मेरा ध्यान टूट गया और जब मैने अपनी आँखे खोली तो मेरे आँखों में डर नही था और न ही चेहरे पर किसी भी तरह की परेशानी थी

बल्कि चेहरे पर एक रहस्यमयी मुस्कान थी और फिर धीरे धीरे मे आगे बढ़ने लगा और फिर जो हुआ वो बहुत ही आश्चर्य जनक था मे उस दहकते हुए लावा पर ऐसे चल रहा था कि जैसे मे किसी लाल रंग की कालीन पर चल रहा हूँ

और ऐसे ही चलते हुए मुझे कुछ हो नही रहा था लेकिन मेरे कपड़े जलने जरूर लगे थे जिसके बाद मै ऐसे ही चलते हुए मै तुरंत उस दूसरे बक्शे तक पहुँच गया था


और उस बक्शे को पाते ही मै पूरी तेजी से उड़ते हुए उस ज्वालामुखी से बाहर निकल गया और जैसे ही मे वहाँ से बाहर निकला मैने तुरंत कुमार के वस्त्रों को धारण कर लिया

केवल वस्त्रों को धारण किया था उसके रूप को नही और जैसे ही मैने उस बक्शे को खोला तो उसमे भी पहले की तरह एक पत्र था जिसे छूते ही वो खुल गया और हवा मे उड़ते हुए मेरे सामने आ गया

संदेश :- शब्बाश भद्रा हमे पता था की तुम इस संदेश तक पहुँच जाओगे अब तुम्हे इस संदेश पत्र को भी पहले पत्र के तरह संभालकर रखना है और अब तुमने अजेय अस्त्र की तरफ एक और कदम आगे बढ़ चुके हो पर याद रखना हर पड़ाव पहले पड़ाव से और भी ज्यादा खतरनाक और मुश्किल होगा अब तीसरे पडाव तक पहुँचने के लिए तुम्हारी सहायता ये संदेश ही करेगा

मेरे इतना पढ़ते ही वो पत्र और बक्शा दोनों धुआँ बनकर गायब हो गए और उस धुए ने एक गोलाकार रूप ले लिया और उस रूप मे मुझे कुछ चित्र दिखने लगे वो चित्र दिखने मे बड़े खतरनाक लग रहे थे

ऐसा लग रहा था की जैसे उस जगह पर कोई तूफ़ान आया है हर तरफ तबाही मची हुई थी जमीन पर कुछ अजीबो गरीब निशान बने हुए थे और जब मैने उन अजीबोगरीब निशानों को ध्यान से देखा


तो मेरे हाँथ पाँव कांपने लगे क्योंकि वो निशान कुछ और नही बल्कि साँप थे वो भी हज़ारों की तादाद में थे जिन्हे देखकर अभी मे सोच ही रहा था कि तभी वो दृश्य बदल गए

और मेरे सामने एक और जगह दिखने लगी जिसकी जमीन बिल्कुल बुद्धि बल के जैसी थी एक खाना सफेद और एक खाना काले रंग का था ये जगह मुझे अजीब दिख रही थी

क्योंकि एक तरफ जहाँ पर पुराने दृश्य किसी न किसी तरह से प्राकृतिक रूप से निर्मित थे तो वही ये दृश्य मुझे मायावी लग रहा था और जो सफेद खाने थे वो काले खाने से उपर उठी हुई थी

और सभी खानों के चारों तरफ एक नीली रोशनी निकल रही थी और फिर वो दृश्य भी गायब हो गए और साथ मे ही वो गोलाकार धुआ भी गायब हो गया था

जिसके बाद में वही पर खड़ा हो कर इस दृश्य के बारे में सोचने लगा की तभी मेरे दिमाग की बत्ती जली की इतने सारे सांप पृथ्वी लोक पर एक ही जगह पर एक साथ मिल सकते है और वो है ब्राज़ील मे स्थित सर्प द्वीप (snake island)

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आज के लिए इतना ही

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NICE UPDATE BHAI THANKS AMAZING AWESOME FANTASTIC UPDATE BHAI
 
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