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Rajizexy

❣️and let ❣️
Supreme
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UPDATE 5

अब हवेली का एक ही राजकुमार था, वो था अमन जिसे काफी प्यार और दुलार मिल रहा था। और यही प्यार और दुलार के चलते वो एकदम बिगड़ गया था। गांव वालो से प्यार से तो कभी वो बात ही नही करता था, अपने ठाकुर होने का घमंड दिखाने में वो हमेशा आगे रहेता था।

अमन अब 11 वी में पढ़ता था। स्कूल भी खुद की थी, इसलिए हमेशा रुवाब में रहता था। स्कूल के चपरासी से लेकर अध्यापक तक किसी का भी इज्जत नहीं करता था। आस पास के गांव से पड़ने आने वाले कुछ ठाकुरों के घर के बच्चो के साथ, वो अपनी दोस्ती बना कर रखा था, और गांव के आम लड़के , जो पढ़ने आते , उन पर वो लोग अपना शिकंजा कसते थे।

एक दिन अमन स्कूल के ग्राउंड में क्रिकेट खेल रहा था। दो गोल बनी थीं। एक ठाकुरों की, और दूसरी गांव के आम लडको की। स्कूल का ग्राउंड खचखच दर्शको से भरा था। गांव के जवान , बुजुर्ग, महिला, और छोटे - छोटे बच्चे सब क्रिकेट का आनंद ले रहे थे।


ये स्कूल के तरफ से मैच नही हो रहा था, दरअसल ये सिलसिला तब से शुरू हुआ था , जब ठाकुर परम सिंह अपनी जवानी के दिन में क्रिकेट खेलते थे। वो हर साल ठाकुरों और गांव के आम लोगो के बीच क्रिकेट का मैच करवाते थे , और जितने वालो को अच्छा खासा इनाम अर्जित किया जाता था। ठाकुर परम सिंह जाति - पाती में कभी भेदभाव नहीं देखते थे। और अगर कभी गांव वाले मैच जीतते थे तो दिल खोल कर दान करते थे। क्रिकेट का मैच भी उनके दान करने का एक अलग नजरिया था।

पूरा ग्राउंड शोर - शराबे में मस्त था। वही गांव के ठाकुरों के बैठने के लिए काफी अच्छी व्यवस्था बनाई गई थी। जहां, ठाकुर रमन सिंह, सन्ध्या सिंह, मालती सिंह, ललिता सिंह और उसकी खूबसूरत बेटी बैठी थीं। पास में ही गांव के सरपंच और उनका परिवार भी बैठा था।

सरपंच के परिवार में उसकी पत्नी , उर्मिला चौधरी,और बेटी पूनम चौधरी बैठी थी। पूनम और रमन की बेटी दोनों ही खूबसूरत थी। पर ये दोनो को एक लड़की टक्कर दे रही थी। और उस लड़की से इन दोनो की बहुत खुन्नस थी। वो लड़की ना ही किसी ठाकुरों के घराने से थी नही किसी चौधरी या उच्च जाति से। वो तो उसी गांव के एक मामूली किसान मंगलू की बेटी थीं। जो बचपन में अपने हीरो अभय के साथ खूब खेलती थीं।

पर आज वो 15 साल की हो गई थी। और उसी ग्राउंड में गांव की औरतों के बीच बैठी क्रिकेट के इस खेल का लुफ्त उठाने आई थीं। गहरे हरे रंग की सूट सलवार में वो किसी परी की तरह लग रही थी लोगो का उसके प्रति देखने का नजरिया ही बदल गया था।

और ये चिंता उसके बाप मंगलू को कुछ ज्यादा ही सता रही थी। स्कूल में ठाकुरों के बच्चे अपनी किस्मत आजमाने में बाज नही आते थे, पर ठाकुर अमन सिंह उस लड़की का बहुत बड़ा आशिक था। इस लिए तो बचपन में उस लड़की को अभय के साथ खेलता देख इनकी गांड़ लाल हो जाया करती थी। और किसी न किसी बहाने से ये महाशय अभय को फंसा कर उसकी मां संध्या सिंह से पिटवा देते थे। और संध्या सिंह का भी अमन लाडला ही हुआ करता था क्योंकि हवेली में अमन हर वक्त संध्या के सामने शराफत में रहता था और अमन इस बात का फायदा उठाता जिसके चलते उसकी बाते भी आग में घी तरह काम कर जाती थी।

पर कहते है ना, जिसके दिल मे जो बस गया फिर किसी और का आना पहाड़ को एक जगह से हटा कर दूसरी जगह करने जैसा था। उसी तरह अभय उस परी के दिल में अपना एक खूबसूरत आशियाना बना चुका था। जो आज अभय के जाने के बाद भी , ये महाशय उस लड़की के दिल में अपना आशियाना तो छोड़ो एक घास-फूस की कुटिया भी नही बना पाए। पर छोरा है बड़ा जिद्दी, अभि भी प्रयास में लगा है। चलो देखते है, अभय की गैर मौजूदगी में क्या ये महाशय कामयाब होते है ?

ग्राउंड खचाखच भरा था, आस पड़ोस के गांव भी क्रिकेट का वो शानदार खेल देखने आए थे। ये कोई ऐसा वैसा खेल नही था। ये खेल ठाकुरों और गांव के आम लोगो के बीच का खेल था।

इस खेल में 15 से 17 साल के युवा लडको ने भाग लिया था। कहा एक तरफ ठाकुर अमन सिंह अपने टीम का कप्तान था। तो वही दूसरी तरफ भी अमन के हमउम्र का ही एक लड़का कप्तान था, नाम था राज। खेल शुरू हुई, दोनो कप्तान ग्राउंड पर आए और निर्धारक द्वारा सिक्का उछाला गया और निर्दय का फैसला अमन के खाते में गया।

अमन ने पहले बल्लेबाजी करने का फैसला किया। राज ने अपनी टीम का क्षेत्र रक्षण अच्छी तरह से लगाया। मैच स्टार्ट हुए, बल्लेबाजी के लिए पहले अमन और सरपंच का बेटा सुनील आया। शोरगुल के साथ मैच आरंभ हुआ ।

अमन की टीम बल्लेबाजी में मजबूत साबित हो रही थी, अमन एकतरफ से काफी अच्छी बल्लेबाजी करते हुए अच्छे रन बटोर रहा था वही अमन की बल्लेबाजी पर लोगो की तालिया बरस रही थी, साथ ही ठाकुर परिवार से संध्या , मालती और ललिता थे, उन्हें देख कर ऐसा लग रहा था मानो उन के हाथ ही नही रुक रहे हो। चेहरे पर खुशी साफ दिख रही थी। तालिया को पिटती हुई जोर जोर से चिल्ला कर वो अमन का हौसला अफजाई भी कर रहे थे। गांव के औरतों की नज़रे तो एक पल के लिए मैच से हटकर सिर्फ संध्या पर ही अटक गई थी होती भी क्यों ना गांव की तरफ से खेल रहे लड़को परेशान होता देख उन्हें अच्छा नही लग रहा था के तभी
मैच देख रही गांव की औरतों के झुंड में से एक औरत बोली

जरा देखो तो ठाकुराइन को, देखकर लगता नही की बेटे के मौत का गम है। कितनी खिलखिला कर हंसते हुए तालिया बजा रही है।"

पहेली औरत की बात सुनकर , दूसरी औरत बोली...

"अरे, जैसे तुझे कुछ पता ही न हो, अभय बाबा तो नाम के बेटे थे ठाकुराइन के, पूरा प्यार तो ठाकुराइन इस अमन पर ही लुटती थी, अच्छा हुआ अभय बाबू को भगवान का दरबार मिल गया। इस हवेली में तो तब तक ही सब कुछ सही था जब तक बड़े मालिक जिंदा थे।"

शांति --"सही कह रही है तू निम्मो,, अच्छे और भले इंसान को भगवान जल्दी ही बुला लेता है। अब देखो ना , अभय बाबू ये जाति पाती की दीवार तोड़ कर हमारे बच्चो के साथ खेलने आया करते थे साथ ही अपनी गीता दीदी को बड़ी मां बोलते थे अभय बाबू और एक ये अमन है, इतनी कम उम्र में ही जाति पति का कांटा दिल और दिमाग में बो कर बैठा है।"

गांव की औरते यूं ही आपस में बाते कर रही थी, और इधर अमन 100 रन के करीब था। सिर्फ एक रन से दूर था। अगला ओवर राज का था, तो इस समय बॉल उसके हाथ में था। राज ने अपने सभी साथी खिलाड़ियों को एकत्रित किया था और उनसे कुछ तो बाते कर रहा था, या ये भी कह सकते हो की कप्तान होने के नाते अपने खिलाड़ी को कुछ समझा रहा था। तभी अमन अपने अहंकार में चूर राज के गोल से होते हुए, बैटिंग छोर की तरफ जा रहा था , तभी वो राज को देखते हुए बोला...

अमन --"बेटा अभी जा जाकर सिख, ये क्रिकेट का मैच है। तुम्हारे बस का खेल नही है।"

अमन की बात सुनकर राज ने बॉल उछलते और कैच करते हुए उसकी तरफ बढ़ा और अमन के नजदीक आकर बोला...

राज --"लो शुरुआत हो गयी बोलिंग की, दर्शकों की भीड़ भी भारी है,
विरोधी भी बजाएंगे तालियाँ जमकर अब मेरी बॉलिंग की बारी है।

राज की ऐसी शायरी सुनकर, अमन के पास कोई जवाब ना था जिसके चलते उसे गुस्सा आ गया, और क्रिकेट पिच पर ही राज का कॉलर पकड़ लिया। ये रवैया देख कर सब के सब असमंजस में पड़ गए , गांव के बैठे हुए लोग भी अपने अपने स्थान से खड़े हो गए, संध्या के साथ साथ बाकी बैठे उच्च जाति के लोग भी हक्का बक्का गए की ये अमन क्या कर रहा , झगड़ा क्यूं कर रहा है?

लेकिन तभी अमन की नजर एक तरफ गई वहा कुछ देखता है और फिर पलट के मुस्कुराते हुए राज को देखता है और तभी मैच के निर्धारक वहा पहुंच कर अमन को राज से दूर ले जाते है। राज को गुस्सा नही आया बल्कि अमन के इस रवाइए से हैरान था और अभी जो हुआ उस बारे में सोच के अमन की तरफ देख रहा था साथ उस तरफ देखा जहा अमन ने देखा था लेकिन अब वहा कोई नही था

मैच शुरू हुई, पहेली पारी का अंतिम ओवर था जो राज फेंक रहा था। राज ने पहला बॉल डाला और अमन ने बल्ला घुमाते हुए एक शानदार शॉट मारा और गेंद ग्राउंड के बाहर, और इसी के साथ अमन का 100 रन पूरा हुआ। अमन अपनी मेहनत का काम पर अहंकार का कुछ ज्यादा ही प्रदर्शन कर रहा था। और एक तरफ अमन के 100 रन पूरा करने की खुशी में संध्या , मालती और ललिता खड़ी होकर तालिया पीट रही थी गांव वाले भी अमन के अच्छे खेल पर उसके लिए तालिया से सम्मान जाता रहे थे।

पहेली पारी का अंत हो चुका था 15 ओवर के मैच में 170 रन का लक्ष्य मिला था राज की टीम को।
पारी की शुरुआत में राज और उसका एक साथी खिलाड़ी आए। पर नसीब ने धोखा दिया और पहले ओवर की पहली गेंद पर ही अमन ने राज की खिल्ली उड़ा दी। गांव वालो का चेहरा उदास हो गया। क्युकी राज ही टीम का असली खिलाड़ी था जो इतने विशाल लक्ष्य को हासिल कर सकता था। राज के जाते ही राज के टीम के अन्य खिलाड़ी में आत्मविश्वास की कमी ने अपना पैर पसार दिया। और देखते ही देखते एक एक करके उनके विकेट गिरते चले गए।

मात्र 8 ओवर के मैच में ही राज की टीम ऑल आउट हो गई और बेहद ही बुरी तरह से मैच से पराजित हुए। राज के चेहरे पर पराजय की वो लकीरें साफ उमड़ी हुई दिख रही थी। वो काफी हताश था, जो गांव वाले उसके चेहरे को देख कर ही पता लगा चुके थे। राज गुमसुम सा अपने चेहरे को अपनी हथेलियों में छुपाए नीचे मुंह कर कर बैठा था। राज की ऐसी स्थिति देख कर गांव वालो का भी दिल भर आया। क्योंकि राज ने मैच को जीतने के लिए काफी अभ्यास किया था। पर नतीजन वो एक ओवर भी क्रीच पर खड़ा ना हो सका जिसका सामना उसे मैच की पराजय से करना पड़ा।
कोई कुछ नही बोल रहा था। राज का तकलीफ हर कोई समझ सकता था। मैच का समापन हो चुका था। अमन को उसकी अच्छे प्रदर्शन के लिए पुरस्कृत किया गया। वो भी गांव की ठाकुराइन संध्या के हाथों। एक चमचमाती बाइक की चाभी संध्या के हाथो से अमन को पुरस्कृत किया गया। पुरस्कृत करते हुए संध्या के मुख से निकला...

संध्या --"शाबाश...

अमन ने खुशी खुशी बाइक चाभी को लेते हुए अपने हाथ को ऊपर उठाते हुए अपने पुरस्कार की घोषणा की और अपनी बाइक को चालू कर के घूमने निकल गया इस तरफ गांव वाले भी हताश होके जाने लगे अपने घर की तरफ जबकि एक तरफ राज अकेला गुमसुम सा चले जा रहा था के तभी पीछे से किसी ने उसके कंधे पे हाथ रखा जैसे ही राज पीछे पलटा अपने कंधे पे हाथ रखने वाले शख्स को देख के हैरान रह गया

राज – मालकिन आप

संध्या – क्या तुम किसी और के आने की सोच रहे थे

राज – नही मालकिन बस आपको अचानक देख के चौक गया था मैं

संध्या – कोई बात नही मैं बस ये कहने आई थी तुमने बहुत अच्छा खेल खेला लेकिन उदास मत हो खेल में हार जीत होती रहती है

राज – (बे मन से) जी मालकिन

संध्या – तुम अभय के वही दोस्त राज हो ना जो अक्सर अपनी शायरी सुनाता रहता था सबको

राज – जी मालकिन बस कभी कभी

संध्या – बहुत अच्छी शायरी करते हो मैने पढ़ी थी तुम्हारे शायरी खैर चलती हू अच्छा लगा तुमसे मिलके

इतना बोल के संध्या वहा से चली गई इधर राज बस देखता रह गया जाते हुए संध्या को

कुछ दिन बाद गांव में रमन ने जोर शोरो से कॉलेज की नीव खड़ी कर दी थी। देख कर ही लग रहा था की काफी भव्य कॉलेज का निर्माण होने वाला था। वैसे भी रमन ने डिग्री कॉलेज की मान्यता लेने की सोची थी तो कॉलेज भी उसी के अनुसार भी तो होगा।

इस तरफ संध्या का प्यार अमन के लिए दिन दुगनी रात चौगुनी हो रहा था तो, वही अमन एक तरफ अहंकार की आंधी में उड़ रहा था। अब अमन भी 12 वि में प्रवेश कर चुका था।

संध्या अमन को ही अपना बेटा मान कर जीने लगी थी। अब तो मालती के ताने भी उसे सिर्फ हवा ही लगते थे। जिसकी वजह से मालती भी अपने आज में जीने लगी थी। और वो भी अभय की यादों से दूर होती जा रही थी। हवेली में कुछ लोगो को लगाने लगा था की अभय हवेली के लिए बस एक नाम बनकर रह गया है। जो कभी कभी ही यादों में आता था। साथ ही ऊनलोगो को लगता था की शायद संध्या भी समझ चुकी होगी की अब रोने गाने से कुछ फर्क पड़ने वाला नही है , अभय अब तो वापस आने से रहा । इसीलिए वो भी उसकी यादों से तौबा कर चुकी होगी। लेकिन उन लोगो को क्या पता था की संध्या आज भी रोज रात में अभय की तस्वीर को सीने से लगाए रात भर उसकी याद में तड़पती है
.
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जारी रहेगा ✍️✍️
Superb update dear maximum
✔️✔️✔️✔️✔️✔️✔️
💯💯💯💯💯
🌟🌟🌟
 

DEVIL MAXIMUM

"सर्वेभ्यः सर्वभावेभ्यः सर्वात्मना नमः।"
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Bahut hi lajawaab update


Bhai Sandhya Aman ko apne beta Maan ker jeene lagi hai , isme nayi baat kya hai usne hamesha se hi Aman ko hi apna beta mana hai ,aur ab to ek aur bahana mil gya hai Sandhya ko Aman ko pyaar aur dulaar kerne ka
Bhai lagta hai aap abhi bhi old story smj rhe ho use bhi thoda dhyan se read kro bhai
.
Verna meri itni mehnat krna bekar hai is story pe
 

Rahul Chauhan

Active Member
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Bhai lagta hai aap abhi bhi old story smj rhe ho use bhi thoda dhyan se read kro bhai
.
Verna meri itni mehnat krna bekar hai is story pe
Nhi Bhai Mai samjh rha hoon phir bhi
Aapne likha hai ki sayad sandhya hi Abhay ko nhi samjh payi , aisi kaun si maa hai jo apne chote se bete ko nhi samjh payi aur na hi kabhi abhay ki galti janne ki koshish ki ,ki abhay ki galti kya hai ,jo use bataya gya abhay ke baare me , bina such jaane hi abhay ko peet deti thi ,

Kya aisa hoga jab Sandhya ko abhay ka such pata chalega aur Aman ka bhi ,
Phir agar Aman galti kerta hai to kya Sandhya Aman hko waise hi saja degi jaise abhay ko deti thi


Baaki aap story likhiye , hum to bas apna opinion de rhe hai ,
 
Last edited:

Riky007

उड़ते पंछी का ठिकाना, मेरा न कोई जहां...
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अब हवेली का एक ही राजकुमार था, वो था अमन जिसे काफी प्यार और दुलार मिल रहा था। और यही प्यार और दुलार के चलते वो एकदम बिगड़ गया था। गांव वालो से प्यार से तो कभी वो बात ही नही करता था, अपने ठाकुर होने का घमंड दिखाने में वो हमेशा आगे रहेता था।

अमन अब 11 वी में पढ़ता था। स्कूल भी खुद की थी, इसलिए हमेशा रुवाब में रहता था। स्कूल के चपरासी से लेकर अध्यापक तक किसी का भी इज्जत नहीं करता था। आस पास के गांव से पड़ने आने वाले कुछ ठाकुरों के घर के बच्चो के साथ, वो अपनी दोस्ती बना कर रखा था, और गांव के आम लड़के , जो पढ़ने आते , उन पर वो लोग अपना शिकंजा कसते थे।

एक दिन अमन स्कूल के ग्राउंड में क्रिकेट खेल रहा था। दो गोल बनी थीं। एक ठाकुरों की, और दूसरी गांव के आम लडको की। स्कूल का ग्राउंड खचखच दर्शको से भरा था। गांव के जवान , बुजुर्ग, महिला, और छोटे - छोटे बच्चे सब क्रिकेट का आनंद ले रहे थे।


ये स्कूल के तरफ से मैच नही हो रहा था, दरअसल ये सिलसिला तब से शुरू हुआ था , जब ठाकुर परम सिंह अपनी जवानी के दिन में क्रिकेट खेलते थे। वो हर साल ठाकुरों और गांव के आम लोगो के बीच क्रिकेट का मैच करवाते थे , और जितने वालो को अच्छा खासा इनाम अर्जित किया जाता था। ठाकुर परम सिंह जाति - पाती में कभी भेदभाव नहीं देखते थे। और अगर कभी गांव वाले मैच जीतते थे तो दिल खोल कर दान करते थे। क्रिकेट का मैच भी उनके दान करने का एक अलग नजरिया था।

पूरा ग्राउंड शोर - शराबे में मस्त था। वही गांव के ठाकुरों के बैठने के लिए काफी अच्छी व्यवस्था बनाई गई थी। जहां, ठाकुर रमन सिंह, सन्ध्या सिंह, मालती सिंह, ललिता सिंह और उसकी खूबसूरत बेटी बैठी थीं। पास में ही गांव के सरपंच और उनका परिवार भी बैठा था।

सरपंच के परिवार में उसकी पत्नी , उर्मिला चौधरी,और बेटी पूनम चौधरी बैठी थी। पूनम और रमन की बेटी दोनों ही खूबसूरत थी। पर ये दोनो को एक लड़की टक्कर दे रही थी। और उस लड़की से इन दोनो की बहुत खुन्नस थी। वो लड़की ना ही किसी ठाकुरों के घराने से थी नही किसी चौधरी या उच्च जाति से। वो तो उसी गांव के एक मामूली किसान मंगलू की बेटी थीं। जो बचपन में अपने हीरो अभय के साथ खूब खेलती थीं।

पर आज वो 15 साल की हो गई थी। और उसी ग्राउंड में गांव की औरतों के बीच बैठी क्रिकेट के इस खेल का लुफ्त उठाने आई थीं। गहरे हरे रंग की सूट सलवार में वो किसी परी की तरह लग रही थी लोगो का उसके प्रति देखने का नजरिया ही बदल गया था।

और ये चिंता उसके बाप मंगलू को कुछ ज्यादा ही सता रही थी। स्कूल में ठाकुरों के बच्चे अपनी किस्मत आजमाने में बाज नही आते थे, पर ठाकुर अमन सिंह उस लड़की का बहुत बड़ा आशिक था। इस लिए तो बचपन में उस लड़की को अभय के साथ खेलता देख इनकी गांड़ लाल हो जाया करती थी। और किसी न किसी बहाने से ये महाशय अभय को फंसा कर उसकी मां संध्या सिंह से पिटवा देते थे। और संध्या सिंह का भी अमन लाडला ही हुआ करता था क्योंकि हवेली में अमन हर वक्त संध्या के सामने शराफत में रहता था और अमन इस बात का फायदा उठाता जिसके चलते उसकी बाते भी आग में घी तरह काम कर जाती थी।

पर कहते है ना, जिसके दिल मे जो बस गया फिर किसी और का आना पहाड़ को एक जगह से हटा कर दूसरी जगह करने जैसा था। उसी तरह अभय उस परी के दिल में अपना एक खूबसूरत आशियाना बना चुका था। जो आज अभय के जाने के बाद भी , ये महाशय उस लड़की के दिल में अपना आशियाना तो छोड़ो एक घास-फूस की कुटिया भी नही बना पाए। पर छोरा है बड़ा जिद्दी, अभि भी प्रयास में लगा है। चलो देखते है, अभय की गैर मौजूदगी में क्या ये महाशय कामयाब होते है ?

ग्राउंड खचाखच भरा था, आस पड़ोस के गांव भी क्रिकेट का वो शानदार खेल देखने आए थे। ये कोई ऐसा वैसा खेल नही था। ये खेल ठाकुरों और गांव के आम लोगो के बीच का खेल था।

इस खेल में 15 से 17 साल के युवा लडको ने भाग लिया था। कहा एक तरफ ठाकुर अमन सिंह अपने टीम का कप्तान था। तो वही दूसरी तरफ भी अमन के हमउम्र का ही एक लड़का कप्तान था, नाम था राज। खेल शुरू हुई, दोनो कप्तान ग्राउंड पर आए और निर्धारक द्वारा सिक्का उछाला गया और निर्दय का फैसला अमन के खाते में गया।

अमन ने पहले बल्लेबाजी करने का फैसला किया। राज ने अपनी टीम का क्षेत्र रक्षण अच्छी तरह से लगाया। मैच स्टार्ट हुए, बल्लेबाजी के लिए पहले अमन और सरपंच का बेटा सुनील आया। शोरगुल के साथ मैच आरंभ हुआ ।

अमन की टीम बल्लेबाजी में मजबूत साबित हो रही थी, अमन एकतरफ से काफी अच्छी बल्लेबाजी करते हुए अच्छे रन बटोर रहा था वही अमन की बल्लेबाजी पर लोगो की तालिया बरस रही थी, साथ ही ठाकुर परिवार से संध्या , मालती और ललिता थे, उन्हें देख कर ऐसा लग रहा था मानो उन के हाथ ही नही रुक रहे हो। चेहरे पर खुशी साफ दिख रही थी। तालिया को पिटती हुई जोर जोर से चिल्ला कर वो अमन का हौसला अफजाई भी कर रहे थे। गांव के औरतों की नज़रे तो एक पल के लिए मैच से हटकर सिर्फ संध्या पर ही अटक गई थी होती भी क्यों ना गांव की तरफ से खेल रहे लड़को परेशान होता देख उन्हें अच्छा नही लग रहा था के तभी
मैच देख रही गांव की औरतों के झुंड में से एक औरत बोली

जरा देखो तो ठाकुराइन को, देखकर लगता नही की बेटे के मौत का गम है। कितनी खिलखिला कर हंसते हुए तालिया बजा रही है।"

पहेली औरत की बात सुनकर , दूसरी औरत बोली...

"अरे, जैसे तुझे कुछ पता ही न हो, अभय बाबा तो नाम के बेटे थे ठाकुराइन के, पूरा प्यार तो ठाकुराइन इस अमन पर ही लुटती थी, अच्छा हुआ अभय बाबू को भगवान का दरबार मिल गया। इस हवेली में तो तब तक ही सब कुछ सही था जब तक बड़े मालिक जिंदा थे।"

शांति --"सही कह रही है तू निम्मो,, अच्छे और भले इंसान को भगवान जल्दी ही बुला लेता है। अब देखो ना , अभय बाबू ये जाति पाती की दीवार तोड़ कर हमारे बच्चो के साथ खेलने आया करते थे साथ ही अपनी गीता दीदी को बड़ी मां बोलते थे अभय बाबू और एक ये अमन है, इतनी कम उम्र में ही जाति पति का कांटा दिल और दिमाग में बो कर बैठा है।"

गांव की औरते यूं ही आपस में बाते कर रही थी, और इधर अमन 100 रन के करीब था। सिर्फ एक रन से दूर था। अगला ओवर राज का था, तो इस समय बॉल उसके हाथ में था। राज ने अपने सभी साथी खिलाड़ियों को एकत्रित किया था और उनसे कुछ तो बाते कर रहा था, या ये भी कह सकते हो की कप्तान होने के नाते अपने खिलाड़ी को कुछ समझा रहा था। तभी अमन अपने अहंकार में चूर राज के गोल से होते हुए, बैटिंग छोर की तरफ जा रहा था , तभी वो राज को देखते हुए बोला...

अमन --"बेटा अभी जा जाकर सिख, ये क्रिकेट का मैच है। तुम्हारे बस का खेल नही है।"

अमन की बात सुनकर राज ने बॉल उछलते और कैच करते हुए उसकी तरफ बढ़ा और अमन के नजदीक आकर बोला...

राज --"लो शुरुआत हो गयी बोलिंग की, दर्शकों की भीड़ भी भारी है,
विरोधी भी बजाएंगे तालियाँ जमकर अब मेरी बॉलिंग की बारी है।

राज की ऐसी शायरी सुनकर, अमन के पास कोई जवाब ना था जिसके चलते उसे गुस्सा आ गया, और क्रिकेट पिच पर ही राज का कॉलर पकड़ लिया। ये रवैया देख कर सब के सब असमंजस में पड़ गए , गांव के बैठे हुए लोग भी अपने अपने स्थान से खड़े हो गए, संध्या के साथ साथ बाकी बैठे उच्च जाति के लोग भी हक्का बक्का गए की ये अमन क्या कर रहा , झगड़ा क्यूं कर रहा है?

लेकिन तभी अमन की नजर एक तरफ गई वहा कुछ देखता है और फिर पलट के मुस्कुराते हुए राज को देखता है और तभी मैच के निर्धारक वहा पहुंच कर अमन को राज से दूर ले जाते है। राज को गुस्सा नही आया बल्कि अमन के इस रवाइए से हैरान था और अभी जो हुआ उस बारे में सोच के अमन की तरफ देख रहा था साथ उस तरफ देखा जहा अमन ने देखा था लेकिन अब वहा कोई नही था

मैच शुरू हुई, पहेली पारी का अंतिम ओवर था जो राज फेंक रहा था। राज ने पहला बॉल डाला और अमन ने बल्ला घुमाते हुए एक शानदार शॉट मारा और गेंद ग्राउंड के बाहर, और इसी के साथ अमन का 100 रन पूरा हुआ। अमन अपनी मेहनत का काम पर अहंकार का कुछ ज्यादा ही प्रदर्शन कर रहा था। और एक तरफ अमन के 100 रन पूरा करने की खुशी में संध्या , मालती और ललिता खड़ी होकर तालिया पीट रही थी गांव वाले भी अमन के अच्छे खेल पर उसके लिए तालिया से सम्मान जाता रहे थे।

पहेली पारी का अंत हो चुका था 15 ओवर के मैच में 170 रन का लक्ष्य मिला था राज की टीम को।
पारी की शुरुआत में राज और उसका एक साथी खिलाड़ी आए। पर नसीब ने धोखा दिया और पहले ओवर की पहली गेंद पर ही अमन ने राज की खिल्ली उड़ा दी। गांव वालो का चेहरा उदास हो गया। क्युकी राज ही टीम का असली खिलाड़ी था जो इतने विशाल लक्ष्य को हासिल कर सकता था। राज के जाते ही राज के टीम के अन्य खिलाड़ी में आत्मविश्वास की कमी ने अपना पैर पसार दिया। और देखते ही देखते एक एक करके उनके विकेट गिरते चले गए।

मात्र 8 ओवर के मैच में ही राज की टीम ऑल आउट हो गई और बेहद ही बुरी तरह से मैच से पराजित हुए। राज के चेहरे पर पराजय की वो लकीरें साफ उमड़ी हुई दिख रही थी। वो काफी हताश था, जो गांव वाले उसके चेहरे को देख कर ही पता लगा चुके थे। राज गुमसुम सा अपने चेहरे को अपनी हथेलियों में छुपाए नीचे मुंह कर कर बैठा था। राज की ऐसी स्थिति देख कर गांव वालो का भी दिल भर आया। क्योंकि राज ने मैच को जीतने के लिए काफी अभ्यास किया था। पर नतीजन वो एक ओवर भी क्रीच पर खड़ा ना हो सका जिसका सामना उसे मैच की पराजय से करना पड़ा।
कोई कुछ नही बोल रहा था। राज का तकलीफ हर कोई समझ सकता था। मैच का समापन हो चुका था। अमन को उसकी अच्छे प्रदर्शन के लिए पुरस्कृत किया गया। वो भी गांव की ठाकुराइन संध्या के हाथों। एक चमचमाती बाइक की चाभी संध्या के हाथो से अमन को पुरस्कृत किया गया। पुरस्कृत करते हुए संध्या के मुख से निकला...

संध्या --"शाबाश...

अमन ने खुशी खुशी बाइक चाभी को लेते हुए अपने हाथ को ऊपर उठाते हुए अपने पुरस्कार की घोषणा की और अपनी बाइक को चालू कर के घूमने निकल गया इस तरफ गांव वाले भी हताश होके जाने लगे अपने घर की तरफ जबकि एक तरफ राज अकेला गुमसुम सा चले जा रहा था के तभी पीछे से किसी ने उसके कंधे पे हाथ रखा जैसे ही राज पीछे पलटा अपने कंधे पे हाथ रखने वाले शख्स को देख के हैरान रह गया

राज – मालकिन आप

संध्या – क्या तुम किसी और के आने की सोच रहे थे

राज – नही मालकिन बस आपको अचानक देख के चौक गया था मैं

संध्या – कोई बात नही मैं बस ये कहने आई थी तुमने बहुत अच्छा खेल खेला लेकिन उदास मत हो खेल में हार जीत होती रहती है

राज – (बे मन से) जी मालकिन

संध्या – तुम अभय के वही दोस्त राज हो ना जो अक्सर अपनी शायरी सुनाता रहता था सबको

राज – जी मालकिन बस कभी कभी

संध्या – बहुत अच्छी शायरी करते हो मैने पढ़ी थी तुम्हारे शायरी खैर चलती हू अच्छा लगा तुमसे मिलके

इतना बोल के संध्या वहा से चली गई इधर राज बस देखता रह गया जाते हुए संध्या को

कुछ दिन बाद गांव में रमन ने जोर शोरो से कॉलेज की नीव खड़ी कर दी थी। देख कर ही लग रहा था की काफी भव्य कॉलेज का निर्माण होने वाला था। वैसे भी रमन ने डिग्री कॉलेज की मान्यता लेने की सोची थी तो कॉलेज भी उसी के अनुसार भी तो होगा।

इस तरफ संध्या का प्यार अमन के लिए दिन दुगनी रात चौगुनी हो रहा था तो, वही अमन एक तरफ अहंकार की आंधी में उड़ रहा था। अब अमन भी 12 वि में प्रवेश कर चुका था।

संध्या अमन को ही अपना बेटा मान कर जीने लगी थी। अब तो मालती के ताने भी उसे सिर्फ हवा ही लगते थे। जिसकी वजह से मालती भी अपने आज में जीने लगी थी। और वो भी अभय की यादों से दूर होती जा रही थी। हवेली में कुछ लोगो को लगाने लगा था की अभय हवेली के लिए बस एक नाम बनकर रह गया है। जो कभी कभी ही यादों में आता था। साथ ही ऊनलोगो को लगता था की शायद संध्या भी समझ चुकी होगी की अब रोने गाने से कुछ फर्क पड़ने वाला नही है , अभय अब तो वापस आने से रहा । इसीलिए वो भी उसकी यादों से तौबा कर चुकी होगी। लेकिन उन लोगो को क्या पता था की संध्या आज भी रोज रात में अभय की तस्वीर को सीने से लगाए रात भर उसकी याद में तड़पती है
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जारी रहेगा ✍️✍️
अभय का भी कुछ हाल चाल बताओ।

वैसे ये मालती कौन है, रमन की बीवी तो ललिता है न?
 

DEVIL MAXIMUM

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Nhi Bhai Mai samjh rha hoon phir bhi
Aapne likha hai ki sayad sandhya hi Abhay ko nhi samjh payi , aisi kaun si maa hai jo apne chote se bete ko nhi samjh payi aur na hi kabhi abhay ki galti janne ki koshish ki ,ki abhay ki galti kya hai ,jo use bataya gya abhay ke baare me , bina such jaane hi abhay ko peet deti thi ,

Kya aisa hoga jab Sandhya ko abhay ka such pata chalega aur Aman ka bhi ,
Phir agar Aman galti kerta hai to kya Sandhya Aman hko waise hi saja degi jaise abhay ko deti thi


Baaki aap story likhiye , hum to bas apna opinion de rhe hai ,
Bhai Bina aap sbhi ke opinion ke story aage jaa sakti hai ky esa lagta hai aapko
Bilkul nhi bhai
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Sandhya esa Q krti thi apne bete Abhay ke sath

Q her koi bas yahe dekh raha hai ki Sandhya her waqt Abhay pe julm krti thi lekin koi ye nhi dekh raha hai ki update me iske elava or bhi kuch baate hai km se km us baat ko smjo koi sabka opinion bas Sandhya ko leke dia Jaa Raha hai
Jaise aaj he dekh lo
Aaj bhi Sirf Sandhya ki bat ki gai logo ne lekin kisi ne ye nahi jaana chah aakhir Raj ke sath Cricket ke maidaan me jo hua wo ky tha
Bhai mere meri bat ko plz glt Mt smjna plz bus aap sbhi update read krye dhyn se aap khud b khud smj jaoge kuch batte
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Baki rhe bat itna marna Abhay ko or Aman ko pyar to jara aap khud socho ky Sandhya her waqt Abhay ya Aman ke sath hoti thi jisse use pata chle ki kon shi or kon glat hai
OR
Abi tk aap sb sirf Sandhya ka pehloo dekh rhe ho
Abhi to Abhay ka ek Pehloo baki hai aakhir Q her waqt itne maar khata tha Abhay apni Maa Sandhya se kya Abhay ne such bataya Sandhya ko kabhi
Ya
Sandhya ne suna he nhi
Ky ye sb baate abhi tak jaane ko mili hai aapko bhai nahi na jald he sb pata chlega bhai thoda wait kro bus
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Mai bhi is story me ek dum se direct update nhi de Raha ho edit krke km se km 2 se 3 bar read krta ho update ko tbhi post krta ho taki glti se bhi koi galti ho to sahi ker sko use
 
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अभय का भी कुछ हाल चाल बताओ।

वैसे ये मालती कौन है, रमन की बीवी तो ललिता है न?
Abhay ka hal chal bhi jld milne wala hai bhai
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Or shyad Story me Abhay ki Maa Sandhya ke elava uski 2 chachiyaa bhi hai na bhai 😉
 
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