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DEVIL MAXIMUM

"सर्वेभ्यः सर्वभावेभ्यः सर्वात्मना नमः।"
Prime
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UPDATE 29


अभय , राज , राजू और लल्ला चारो दोस्त ट्रेन की एसी बोगी में चिप के रमन और सरपंच को बीवी उर्मिला की रासलीला देखते रहे कुछ समय बिता था की तभी उर्मिला ने बोलना शुरू किया...

उर्मिला –क्या बात है ठाकुर साहब आज आप बहुत जोश में थे....

रमन –(उर्मिला की बात सुन हल्का मुस्कुरा के) तू चीज ही ऐसी है मेरी जान....

उर्मिला –(मुस्कुरा के) लगता है लल्लीता से मन भर गया है आपका....

रमन – वो साली क्या साथ देगी मेरा उसका दिमाग घुटनो में पड़ा रहता है या तो हवेली में लगी रहेगी या अपनी बेटी के साथ....

उर्मिला – (मू बना के) कितनी बार कहा आपसे मुझे हवेली में रख लो हमेशा के लिए बस आपकी बाहों में रहूंगी हमेशा लेकिन आप हो के सुनते कहा हो....

रमन – तू तो जानती है मेरी रानी मेरे हाथ में कुछ भी नही है....

उर्मिला –ये बात आप जाने कितने सालों से बोल रहे हो ऐसे तो आप कभी हवेली में नही ले जाओगे मुझे.....

रमन – क्या बताओ मेरी रानी पहले तो सब मेरे हाथ में था हवेली की बाग डोर और संध्या भी लेकिन जब से उसका उसका बेटा अभय हवेली से भागा है तब से संध्या मेरे हाथ में नही रही इसीलिए धीरे धीरे इत्मीनान से उसे काबू में करने में लगा हुआ था मैं लेकिन फिर इतने साल बाद एक लौंडे के आ जाने से वो पागल सी हो गई है संध्या जाने कहा कहा से गड़े मुर्दे उखड़ने में लगी है.....

उर्मिला – वही लड़का ना जिसने गांव में आते ही गांव वालो को जमीन आपके हाथ से निकल गई....

रमन – है वही लौंडा की वजह से हुआ है ये सब वो साली उसे अपना बेटा अभय समझ रही है....

उर्मिला – (चौक के) कही सच में वो उसका बेटा अभय तो नही....

रमन – अरे नही मेरी जान वो कोई अभय नही है वो तो डी आई जी शालिनी सिन्हा का बेटा है जो शहर से यहां कॉलेज में पढ़ने आया है....

उर्मिला – शहर से यहां गांव में पढ़ने अजीब बात है.....

रमन – कोई अजीब बात नही है मुफ्त में पढ़ने आया है यहां स्कॉलरशिप मिली है उस लौंडे को , आते ही इत्तेफाक से संध्या से मुलाकात हो गई उसकी रास्ते में जाने क्या बात हुई रास्ते में ऐसी उसे अपना बेटा समझने लगी संध्या तब से हाथ से निकल गई है मेरे.....

उर्मिला – (मुस्कुरा के) इतने साल फायदा भी तो खूब उठाया है आपने ठकुराइन का....

रमन – क्या खाक फायदा मिला मुझे साली गांव की जमीन निकल गई मेरे हाथ से बस एक बार कॉलेज की नीव पड़ जाति उस जमीन पर तो चाह के भी कोई कुछ नही कर पता उस जमीन में डिग्री कॉलेज बनने से लेकिन उस लौंडे ने आके....

उर्मिला – (हस के) तो फिर से ऐसा कुछ कर दो आप जिससे जमीन भी आपकी हो जाय और ठकुराइन भी जैसे आपने दस साल पहले किया था जंगल में मिली बच्चे की लाश को अभय के स्कूल के कपड़े पहना कर उसे अभय साबित कर दिया था....

रमन – नही अभी मैं कुछ नही कर सकता हू संध्या को शक हो गया है मेरे उपर अब उसे भी लगने लगा है इन सब में मेरा भी हाथ है बस सबूत न मिलने की वजह से बचा हुआ हू मै वर्ना अब तक बुरा फस गया होता मैं....

उर्मिला – ठाकुर साहब इस चक्कर में अपनी बेटी को मत भूल जाना आप पूनम आपकी बेटी है ना की उस सरपंच शंकर चौधरी की इतने सालो में उसे मैने शक तक होने नही दिया इस बात का....

रमन – तू चिंता मत कर ऐसा वैसा कुछ नही होने दुगा मैं जरूरत पड़ी तो रास्ते से हटा दुगा उस लौंडे को रही संध्या की बात 3 दिन बाद जन्मदिन है उसका इस बार हवेली में पार्टी जरूर होगी खुद संध्या देगी वो पार्टी उस लौंडे के दिखाने के लिए उस दिन संध्या को मना लूगा मैं और नही भी हुआ ऐसा तो भी कोई बात नही आखिर मेरा भी हक बनता है हवेली और जायदाद पर....

उर्मिला – अब सब कुछ आपके हाथ है ठाकुर साहब मुझे सिर्फ हमारी बेटी की चिंता है.....

रमन – फिक्र मत कर तू चल जल्दी से कपड़े पहन ले...

उर्मिला – (बीच में बात काटते हुए) इतनी भी जल्दी क्या है ठाकुर साहब आज मैं फुरसत से आई हू आपके पास शंकर गया हुआ है शहर काम से और बेटी गई है अपनी सहेली के घर उसके जन्म दिन के लिए आज वही रहेगी वो...

रमन – वाह मेरी जान तूने तो मेरी रात बना दी आज की आजा….

बोल के दोनो शुरू हो गए अपनी काम लीला में जिसके बाद राज , अभय , राजू और लल्ला चुप चाप दबे पांव निकल गए ट्रेन की बोगी से , बाहर आते ही चारो दोस्त जल्दी से अभय की बाइक के पास आ गए तब राज बोला...

राज –(अभय से) तूने देखा और सुना , कुछ समझ आया तुझे...अभय चुप रहा बस अपना सर उपर आसमान में करके के देखता रहा जिसे देख राज बोला...

राज – (हल्का सा हस के) चल चलते है हमलोग यहां से , घर भी जाना है मां और बाब राह देख रहे होगे मेरी...

राज की बात सुन राजू बोला...

राजू – हा यार चल अब रुक के क्या फायदा होगा साली ने अरमान जगा दिया मेरे...

लल्ला – (राजू की बात सुन के) यार ये सरपंच की बीवी साली कंचा माल है यार....

राज –(दोनो की बात सुन के) अबे पगला गए हो क्या बे तुम दोनो....

राजू – अबे ओ ज्यादा शरीफ मत बन अरमान तो तेरे भी जाग गए है नीचे देख के बात कर बे....

राज –(अपनी पैंट में बने तंबू को देख मुस्कुरा के) हा यार वो सरपंच की बीवी ने सच में अरमानों को हिला दियारे....

लल्ला – क्यों अभय बाबू क्या बोलते हो तुम अब तो वो गुस्सा नही दिख रहा है तेरे चेहरे पर लगता है सरपंच की बीवी की जवानी का जादू चल गया है तेरे ऊपर भी.....

राज – (हस्ते हुए) साले तभी मू छुपा रहा है देखो तो जरा साले को....

अभय –(हस्ते हुए) ओय संभाल के राज वर्ना दीदी को बता दुगा तू क्या कर रहा है....

राज – (हस के) हा हा जैसे मैं नही बोलूगा पायल से कुछ भी क्यों बे....बोल कर चारो दोस्त हसने लगे और निकल गए घर की तरफ रास्ते में राजू और लल्ला अपनी साइकिल से घर निकल गए जबकि अभय और राज एक साथ बाइक में हॉस्टल आ गए...

राज – (अभय से) चल भाई हॉस्टल आ गया तेरा....अभय – यार मन नही कर रहा आज अकेले रहने का.....

राज –(हसके) इरादा तो नेक है तेरे....

अभय – नही यार वो बात नही है....

राज –(बात समझ के) देख अभय जो हुआ जैसे हुआ तेरे सामने है सब कुछ कैसा भी हो लेकिन छुपता नही है कभी सामने आ जाता है एक ना एक दिन उस दिन बगीचे में तूने जो बात बोल के निकल गया था वो भी अधूर...

अभय –(राज की बात काट अपना मू बना के) यार तू कहा की बात कहा ले जा रहा है देख जो भी देखा और जो भी सुना मैने सब समझ गया बात को अब जाने दे सब बातो को तू जा घर बड़ी मां राह देख रही होगी तेरी कल मिलते है....

राज बाइक खड़ी करके जाने लगा तभी अभय बोला...

अभय – अबे पैदल जाएगा क्या बाइक से जा रात हो गई है काफी कितना सन्नाटा भी है...

राज – लेकिन कल सुबह तू कैसे आयगा....

अभय – मेरी चिंता मत कर भाई पैदल आ जाऊंगा कल कॉलेज में ले लूगा बाइक तेरे से....

राज घर की तरफ निकल गया और अभय हॉस्टल के अन्दर चला गया कमरे में आते ही दरवाजा बंद करके लेट गया अभय बेड में...

अभय – (अपने आप से बोलने लगा) एक बात तो समझ आ गई ये सारा खेल रमन ठाकुर का खेला हुआ है रमन ठाकुर तुझे लगता है इस खेल को खेल के तू पूरी तरह से कामयाब हो गया है लेकिन नही आज कसम खाता हू मै अपने बाप की गिन गिन के बदला लूगा मैं तुझसे हर उस मार का जो तूने और तेरे बेटे की वजह से मिली बिना वजह उस ठकुराइन से मुझे , वैसा ही खेल को खेलूगा मैं भी , गांव वालो का तूने खून चूसा है ना , ब्याज के साथ उसकी कीमत दिलाऊगा उन गांव वालो को तेरे से मैं , रही उस ठकुराइन की बात सबक उसे भी मिलेगा जरूर लेकिन आराम से जब तक दीदी उसके साथ है मुझे ऐसा वैसा कुछ भी करने नही देगी लेकिन मैं करूंगा तो जरूर (अपनी पॉकेट से मोबाइल निकल के किसी को कॉल कर बोला) हेलो कैसी हो अल्लित्ता....

अलित्ता – (अभय की आवाज सुन के) मस्त हू तुम कैसे हो आज इतने दिन बाद कॉल किया तुमने....

अभय – अच्छा हू मै भी , एक काम है तुमसे....

अलित्ता – हा बोलो ना क्या सेवा करूं तुम्हारी....

अभय – बस कुछ सामान की जरूरत है मुझे...

अलित्ता – क्यों अपनी दीदी से बोल देते वो मना कर देती क्या....

अभय – ऐसी बात नही है अलित्ता असल में दीदी कभी मना नही करेगी मुझे लेकिन मैं दीदी को बिना बताए काम करना चाहता हू.....

अलित्ता –(अभय की बात समझ के) क्या चाहिए तुम्हे बोलो मैं अरेंज करवाती हू जल्द ही.....

अभय – मैं मैसेज करता हू तुम्हे डिटेल्स....

अलित्ता – ठीक है मैसेज करो तुम डिटेल्स परसो तक मिल जाएगा तुम्हे सारा समान.....

अभय – ठीक है और थैंक्यू अलित्ता.....

अलित्ता – (मुस्कुरा के) कोई बात नही तुम्हे जब भी जरूरत हो कॉल कर लेना मुझे ठीक है बाए....

बोल के अभय ने कॉल कट कर मैसेज कर दिया डिटेल को जिसे पड़ के अलित्ता के बगल में बैठे KING 👑 को डिटेल्स दिखाई जिसे देख KING 👑 बोला...

KING 👑 – (डिटेल्स पड़ के) भेज दो ये सामान उसे , लगता है अभय अब अपने कदमों को आगे बड़ा रहा है अकेले बिना किसी की मदद के जरूर कुछ जानकारी मिली है उसे अच्छा है.....

अलित्ता – आखिर ठाकुर का खून है उबाल तो मारेगा ही ना...

KING 👑 – उम्मीद करता हू अभय जो भी काम करने जा रहा हो उससे ठाकुर साहब की आत्मा को शांति मिले....

अलित्ता – हा ऐसा ही होगा जरूर.....

इस तरफ अभय बेड में लेता हुआ था तभी संध्या का कॉल आया जिसे देख अभय ने रुक के कॉल रिसीव कर कान में लगाया...

संध्या – (कुछ सेकंड चुप रहने के बाद) कैसे हो तुम....

अभय – (धीरे से) अच्छा हू....

संध्या – (अभय की आवाज सुन) खाना खा लिया तुमने....

अभय – हा अभी आराम कर रहा हू मै....

संध्या – घर वापस आजा....

अभय – देख मैं तेरे से आराम से बात कर रहा हू इसका मतलब ये नही तेरी फरमाइश भी पूरी करूगा.....

संध्या – 3 दिन बाद एक पार्टी रखी है हवेली में....

अभय –हा जनता हू जन्मदिन जो है तेरा....

संध्या – तुझे याद है तू...तू आएगा ना देख प्लीज माना मत करना तू आगया है ना इसीलिए पहली बार मना रही हू....

अभय – (हस के) मेरा क्या काम है तेरी पार्टी में और भी तो तेरे खास लोग आएंगे उसमे भला मेरे जैसों का कोई मोल नहीं तेरी पार्टी में या कही नौकर तो काम नही पड़ गए तुझे इसीलिए बुला रही है मुझे....

संध्या – ऐसा तो मत बोल कोई नही आएगा बस घर के है लोग...

अभय – लेकिन मेरी गिनती तेरे घर के लोगो में नही आती...

संध्या –(रोते हुए) ऐसा मत बोल सबसे कोई मतलब नहीं मेरा बस तुझ से मतलब है बस तू आजा बदले में जो बोल मैं वो करूगी....

अभय – सिर्फ मेरे लिए इतना बोल रही क्योंकि आज मैं यहां हू उससे पहले कभी सोचा तूने इन गांव वालो का जिनकी जमीनों में कर्ज के नाम पर कब्जा किया जा रहा था जबरन तरीके से तब देखा तूने....

संध्या – तेरे इलावा कोई नही मेरा तूही मेरा सब कुछ है तेरी कसम खा के बोलती हू मुझे सच में कुछ नही पता था इस बारे में....

अभय –(संध्या की ये बात सुन के चुप रह कुछ सेकंड फिर बोला) तू नही जानती इस वजह से कितना कुछ झेला है गांव वालो ने कर्ज के बदले ब्याज पर ब्याज लिया गया उनसे जो रोज तपती धूप में खेती करते ताकी अपने परिवार का पेट भर सके सोच इतने सालो में उनके साथ क्या क्या नहीं हुआ होगा उनके दर्द का कोई अंदाजा नही लगा सकता (रूंधे गले से) अगर बाबा होते ऐसा कभी नहीं होने देते...

बोल के फोन कट कर दिया अभय ने इस तरफ हवेली में संध्या के संग चांदनी बैठी सारी बाते सुन रही थी...

चांदनी – (रोती हुई संध्या को गले लगा के) बस करिए मत रोइए....

संध्या –(आसू पोच के) नही चांदनी आज इतने दिनो बाद उसने मुझ से बात की आराम से बिल्कुल अपने बाबा की तरह सोचता है अपने से पहले दूसरो के बारे में....

चांदनी – आप खुश है ना....

संध्या – बहुत खुश हू आज मैं (चांदनी का हाथ पकड़ के) शुक्रिया चांदनी तुम्हारी वजह से ये हुआ है...

चांदनी – नही ठकुराइन इसमें शुक्रिया जैसी कोई बात नही है ये मेरा फर्ज है अभय भाई है मेरा उसके लिए नही करूंगी तो किसके लिए करूगी....

संध्या – ये तू मुझे ठकुराइन क्यों बोलती रहती है शालिनी जी को बहन माना है मैने तो तू मुझे मासी बोला कर अब से....

चांदनी – लेकिन सिर्फ आपको अकेले में....

संध्या – कोई जरूरत नहीं है सबसे सामने बोलेगी बेझिजक....

चांदनी –(मुस्कुरा के) ठीक है मासी अब खुश हो आप....

संध्या – (गले लगा के) हा बहुत खुश हू , चल अब सोजा कल तुझे मेरे साथ चलना है तुझे दिखाओगी गांव की मीटिंग जहा सरपंच बैठक लगाते है सभी गांव वालो की....

चांदनी – लेकिन वहा पर क्या काम मेरा...

संध्या – (मुस्कुरा के) वो तू कल खुद देख लेना चल अब सोजा सुबह जल्दी चलना है....

चांदनी –(मुस्कुरा के) जैसा आप कहे मासी.....

हस के चांदनी चली गई अपने कमरे में आराम करने चांदनी के जाने के बाद संध्या ने शंकर चौधरी (सरपंच) को कॉल किया..

संध्या –(कॉल पर) हेलो शंकर....

शंकर (सरपंच) – प्रणाम ठकुराइन इतने वक्त याद किया आपने...

संध्या – जी ये कहने के लिए कॉल किया की कल पूरे गांव वालो को बैठक बुलाइए गा और ध्यान रहे सभी गांव वाले होने चाहिए वहा पर..

शंकर (सरपंच) – कुछ जरूरी काम है ठकुराइन....

संध्या – जी कल वही पर बात होगी सबके सामने वक्त पे तयार होके आइए गा.....

बोल के कॉल कट कर दिया जबकि शंकर चौधरी (सरपंच) को शहर गया हुआ था काम से उसने कॉल लगाया रमन ठाकुर को को इस वक्त सरपंच की बीवी उर्मिला के साथ कामलीला में लगा हुआ था....

रमन –(मोबाइल में सरपंच का कॉल देख के उर्मिला से) तूने तो बोला था शंकर शहर गया हुआ है....

उर्मिला – हा क्यों क्या हुआ...

रमन –(अपना मोबाइल दिखा के जिस्म3 शंकर की कॉल आ रही थी) तो इस वक्त क्यों कॉल कर रहा है ये...

उर्मिला –(चौक के) पता नही देखिए जरा क्या बात है...

रमन –(कॉल उठा के स्पीकर में डाल के) हा सरपंच बोल क्या बात है...

शंकर (सरपंच) – हवेली में कोई बात हुई है क्या ठाकुर साहेब...

रमन – नही तो क्यों क्या हुआ...

शंकर (सरपंच) –(संध्या की कही सारी बात बता के) अब क्या करना है ठाकुर साहब...

रमन –(सरपंच की बात सुन हैरान होके) जाने अब क्या खिचड़ी पका रही है ये औरत साली चैन से सास तक लेने नही देती है एक काम कर जो कहा है वो की तू बाकी मैं भी कल रहूंगा वहा पर देखते है क्या करने वाली है ये औरत अब....

उर्मिला –(रमन का कॉल कट होते बोली) ये सब अचानक से क्यों ठाकुर साहब...

रमन –यही बात तो मुझे भी समझ नही आ रही है चल तू कपड़े पहन ले मैं तुझे घर छोड़ देता हू फिर हवेली जाके देखता हू क्या माजरा है ये...इधर हवेली में संध्या ने एक कॉल और मिलाया गीता देवी को...

संध्या – (कॉल पर गीता देवी से) दीदी कैसी हो आप...

गीता देवी – अच्छी हू तूने इतने वक्त कॉल किया सब ठीक तो है न संध्या...

संध्या – हा दीदी सब ठीक है मैने सरपंच को बोल के कल सभी गांव वालो की बैठक बुलवाई है मैं चाहती हू आप सभी गांव की औरतों को साथ लेके आए वहा पर....

गीता देवी –(हैरान होके) ऐसी क्या बात है संध्या ये अचनक से बैठक सभी गांव वालो को....

संध्या – आप ज्यादा सवाल मत पूछिए दीदी बस कल सभी को लेक आ जायेगा.....

गीता देवी –(संध्या को बात सुन के) ठीक है कल आ जाऊंगी
बोल के दोनो ने कॉल कट कर दिया उसी समय राज और सत्य बाबू पास में बैठे थे सत्य बाबू बोले...

सत्य बाबू – क्या बात है सब ठीक तो है ना हवेली में....

गीता देवी – हा सब ठीक है (फिर जो बात हो गई सब बता दिया) देखते है कल क्या होता है बैठक में.....

सत्य बाबू – कमाल की बात आज ही मुझे अभय मिला था....

गीता देवी – अभय मिला था आपको तो घर लेके क्यों नही आए उसे....

सत्य बाबू –यही बोला मैने समझाया उसे....

गीता देवी – फिर क्या बोला अभय.....

सत्य बाबू ने सारी बात बताई जिसे सुन के गीता देवी कुछ बोलने जा रही थी कि तभी राज बीच में बोल पड़ा...

राज –(बातो के बीच में) ओह तो ये बात है तभी मैं सोचूं आज अभय को हुआ क्या है....

गीता देवी और सत्य बाबू एक साथ –(चौक के) क्या हुआ था अभय को....

फिर राज ने सारी घटना बताई लेकिन रमन और उर्मिला की बात छोड़ के जिसे सुन के गीता देवी और सत्य बाबू की आखें बड़ी हो गई...

गीता देवी –(गुस्से में सत्य बाबू से) आप ना कमाल करते हो क्या जरूरत थी अभय को ये बात बताने की बच्चा है वो अभी उसे क्या पता इतने साल उसके ना होने से क्या हुआ है गांव में और आपने उसे ही जिम्मेदार ठहरा दिया भला ये कोई तरीका होता है क्या एक बच्चे से बात करने का....

सत्या बाबू –(अपने सिर पे हाथ रख के) अरे भाग्यवान अभय को बताने का ये मकसद नही था मेरा मैं भी बस यही चाहता था वो संध्या से नफरत ना करे इसीलिए उसे सच बताया था...

गीता देवी –(मू बना के) सच बताने का एक तरीका भी होता है बताना होता तो मैं नही बता सकती थी अभय को सच या राज नही बता सकता था शुक्र है भगवान का कुछ अनर्थ नही हुआ वर्ना मू ना दिखा पाती मैं संध्या को कभी (राज से) और तू भी ध्यान रखना ऐसी वैसी कोई बात नही करना अभय से समझा ना....

राज – ठीक है मां....

गीता देवी – एक बात तो बता तुझे पता था ना अभय की ऐसी हालत है तो तू उसे हॉस्टल में छोड़ के कैसे आ गया घर ले आता उसे या वही रुक जाता , एक काम कर तू अभी जा अभय के पास वही सो जाके जाने कैसा दोस्त है , तू भी इनकी तरह हरकत कर रहा है.....

राज –अरे अरे मां ऐसा कुछ भी नही है अभय ठीक है अब....

गीता देवी – लेकिन अभी तो तूने कहा.....

राज – (अपने सिर पे हाथ रख के) मां बात असल में ये है की वहा पर जब ये सब हुआ तब हम आपस में बात कर रहे थे कि तभी वहा पर रमन और सरपंच की बीवी (उर्मिला) को देख लिया हमने , वो दोनो एक साथ यार्ड में खड़ी एसी वाली बोगी में चढ़ गए फिर....(बोल के चुप हो गया राज)....

गीता देवी – फिर क्या बोल आगे भी....

राज –(झिझक ते हुए) वो...मां....वो...मां....

सत्य बाबू – ये वो मां वो मां क्या लगा रखा आगे बोल क्या हुआ वहा पर.....

राज – देख मां नाराज मत होना तू वो रमन और उर्मिला काकी दोनो एक साथ (बोल के सर झुका दिया राज ने)....

गीता देवी –(बात का मतलब समझ के राज के कान पकड़ बोली) तो तू ये सब देखने गया था क्यों बोल....

राज –आ आ आ आ मां लग रही है मां तेरी कसम खाता हू वो सब देखने नही गए थे मां (फिर पूरी बात बता के)....

सत्या बाबू –(गुस्से में) नीच सिर्फ नीच ही रहता है थू है इसके ठाकुर होंने पर इतनी गिरी हरकत ठाकुर रतन सिंह का नाम मिट्टी में मिला रहा है रमन इससे अच्छा तो मनन ठाकुर था कम से कम भला करता था गांव के लोगो का और ये......

गीता देवी – जाने दीजिए क्या कर सकते है अब इस नीच इंसान का इसकी वजह से संध्या की आज ये हालत है बेटा पास होते हुए भी दूर है वो मां सुनने तक को तरस गई है अभय के मू से सब रमन के वजह से हुआ है जाने इतनी दौलत का क्या करेगा मरने के बाद (राज को देख गुस्से से) और तू अगर फिर कभी ऐसा कुछ हुआ या सुन लिया मैने तेरी खेर नही समझा....

राज –(हल्का हस के) हा मां पक्का....

अगले दिन सुबह अभय कॉलेज गया जहा उसे राज , राजू और लल्ला मिले...

अभय – आज कुछ है क्या कॉलेज में इतना सन्नाटा क्यों है यार....

राजू – अबे आज सुबह सुबह सरपंच ने बैठक बुलाई है गांव के लोगो की सब वही गए है....

अभय –(कुछ सोच के) सरपंच तो शहर गया हुआ था ना इतनी जल्दी कैसे आ गया यार....

राज – अबे कल रात को ठकुराइन का कॉल आया था मां को बोला रही थी सभी औरतों को लेके आने को बैठक में तभी लल्ला आया नही है कॉलेज....

अभय – पायल भी नही दिख रही है यार.....

राजू – हा भाई और नीलम भी नही दिख रही है.....

अभय – ओह हो तो ये बात है मतलब तू लाइन में लगा हुआ है या पता लिया तूने नीलम को....

राजू – भाई मान गई है नीलम बस कभी अकेले में घूमने का मौका नहीं मिलता है यह पर...

राज – मिलेगा मिलेगा जरूर मिलेगा मौका भी लेकिन अभी चल चलते है पंचायत में देखे क्या होने वाला है वहा पर....

बोल के तीनों निकल गए पंचायत की तरफ वहा पर एक तरफ रमन और सरपंच इनके दूसरी तरफ संध्या और साथ में चांदनी , ललिता और मालती बैठे थे और बाकी के सभी गांव वाले मौजूद थे एक तरफ गांव के बच्चे बूढ़े आदमी थे और दूसरी तरफ औरते तब सरपंच ने बोलना शुरू किया...

सरपंच – आज की बैठक हमारे गांव की ठकुराइन ने बुलाई है वह आप सबसे कुछ बात करना चाहती है....

संध्या –(सरपंच की बात सुन खड़ी होके सभी गांव वालो के सामने) काफी वक्त से आप सभी गांव वालो को कई तरह की दिक्कतों का सामना करना पड़ा यहां तक कि आपकी जमीन तक गिरवी में चली गई थी मैं उन सभी गलतियों के लिए आप सब से माफी मांगती हू और ये चाहती हू की आपकी जो भी समस्याएं है खेती को लेके या अनाज को लेके आप बिना झिजक के बताए खुल के मुझे मैं मदद करूगी बदले में कुछ भी नही मागूगी...

सरपंच – (बीच में ठकुराइन से) ठकुराइन गांव वालो को उनकी जमीन मिल गई है वापस उन्हें अब क्या जरूरत किसी चीज की...

संध्या –(बात बीच में काट के) यही बात गांव वाले खुद बोले तो यकीन आए मुझे (सभी गांव वालो से) तो बताए क्या सिर्फ जमीन मिलने पर आप खुश है और कोई समस्या नही आपको....

तभी एक गांव वाला बोला..

गांव वाला – ठकुराइन मैं अपने घर में इकलौता हू कमाने वाला मेरा खेत भी दूर है यहां से पानी वक्त से मिल नही पता है जिस कारण फसल बर्बाद हो जाती है और बैंक का ब्याज तक नहीं दे पता वक्त पर जिसके चलते बैंक वालो ने मेरी खेत की जमीन में कब्जा कर लिया है....

बोल के रोने लगा इसके साथ कई लोगो ने अपनी समस्या बताई खेती और बैंक के कर्जे को लेके जिसे सुन कर संध्या सरपंच को देख के बोली..

संध्या –अब क्या बोलते है आप सरपंच क्या ये काम होता है सरपंच का गांव में क्या इसीलिए आपको गांव में सरपंच के रूप में चुना गया था लगता है अब सरपंची आपके बस की रही नही...

गांव वाला बोला – (हाथ जोड़ के) ठकुराइन कई बार कोशिश की हमने अपनी समस्या आप तक पहुंचाने की लेकिन पिछले कई साल तक हमे ना हवेली की भीतर तो दूर सख्त मना कर दिया गया गांव का कोई बंदा हवेली की तरफ जाएगा भी नही और कॉलेज की जमीन के वक्त भी सरपंच के आगे गांव के कई लोग गिड़ गिड़ाये लेकिन सिवाय मायूसी के इलावा कुछ न मिला हमे....

संध्या –(बात सुनने के बाद गांव वालो से) काफी वक्त से गांव में सरपंची का चुनाव नही हुआ है क्या आपका कोई उम्मीद वार है ऐसा जिसे आप सरपंच के पड़ के लिए समझते हो लेकिन जरूरी नहीं वो आदमी हो औरत भी हो कोई दिक्कत नही...

इस बात से सरपंच के सर पर फूटा एक बॉम्ब साथ ही रमन के कान से धुवा निकलने लगा इतने गांव वालो के सामने संध्या से उसकी कुछ भी कहने की हिम्मत नही हो रही थी...

गांव वाले –(सब गीता देवी को आगे कर) ठकुराइन गीता देवी से बेहतर कोई नहीं संभाल सकता है सरपंच....

संध्या –(मुस्कुरा के) तो ये तय रहा इस बार गांव में सरपंच का पद गीता देवी संभालेगी....

शंकर (सरपंच)–(बीच में बात काट के) ठकुराइन ये गलता है इस तरह आप ये तय नही कर सकती कॉन सरपंच बनेगा कॉन नही इसकी मंजूरी के नियम होते है और कानून भी.....

संध्या –(बात सुन मुस्कुरा के) अच्छा तो जब गांव वालो को जरूरत थी तब कहा थे आप तब याद नही आया आपको नियम कानून जब गांव वालो की जमीन छीनी जा रही थी ब्याज के नाम पर तब चुप क्यों थे आप क्यों नही आए आप हवेली और क्यों नही आवाज उठाई आपने है कोई जवाब आपके पास इसके बाद भी अगर आप शिकायत करना चाहते है तो जाए लेकिन ध्यान रखिए बात का गांव वालो ने बदले में आपकी शिकायत कर दी तब क्या होगा आपका सोच लीजिए गा....

इस बात से जहा सब गांव वाले खुश हो गए इतने साल बाद संध्या का ठकुराइन वाला रूप देख वही सरपंच का मू बंद हो गया कुछ कहने लायक ना बचा और ना ही इन सब के बीच रमन की हिम्मत हुए कुछ बोल सके जबकि अभय ये नजारा देख मुस्कुराए जा रहा था...
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जारी रहेगा✍️✍️
 
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Iron Man

Try and fail. But never give up trying
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अभय , राज , राजू और लल्ला चारो दोस्त ट्रेन की एसी बोगी में चिप के रमन और सरपंच को बीवी उर्मिला की रासलीला देखते रहे कुछ समय बिता था की तभी उर्मिला ने बोलना शुरू किया...

उर्मिला –क्या बात है ठाकुर साहब आज आप बहुत जोश में थे....

रमन –(उर्मिला की बात सुन हल्का मुस्कुरा के) तू चीज ही ऐसी है मेरी जान....

उर्मिला –(मुस्कुरा के) लगता है लल्लीता से मन भर गया है आपका....

रमन – वो साली क्या साथ देगी मेरा उसका दिमाग घुटनो में पड़ा रहता है या तो हवेली में लगी रहेगी या अपनी बेटी के साथ....

उर्मिला – (मू बना के) कितनी बार कहा आपसे मुझे हवेली में रख लो हमेशा के लिए बस आपकी बाहों में रहूंगी हमेशा लेकिन आप हो के सुनते कहा हो....

रमन – तू तो जानती है मेरी रानी मेरे हाथ में कुछ भी नही है....

उर्मिला –ये बात आप जाने कितने सालों से बोल रहे हो ऐसे तो आप कभी हवेली में नही ले जाओगे मुझे.....

रमन – क्या बताओ मेरी रानी पहले तो सब मेरे हाथ में था हवेली की बाग डोर और संध्या भी लेकिन जब से उसका उसका बेटा अभय हवेली से भागा है तब से संध्या मेरे हाथ में नही रही इसीलिए धीरे धीरे इत्मीनान से उसे काबू में करने में लगा हुआ था मैं लेकिन फिर इतने साल बाद एक लौंडे के आ जाने से वो पागल सी हो गई है संध्या जाने कहा कहा से गड़े मुर्दे उखड़ने में लगी है.....

उर्मिला – वही लड़का ना जिसने गांव में आते ही गांव वालो को जमीन आपके हाथ से निकल गई....

रमन – है वही लौंडा की वजह से हुआ है ये सब वो साली उसे अपना बेटा अभय समझ रही है....

उर्मिला – (चौक के) कही सच में वो उसका बेटा अभय तो नही....

रमन – अरे नही मेरी जान वो कोई अभय नही है वो तो डी आई जी शालिनी सिन्हा का बेटा है जो शहर से यहां कॉलेज में पढ़ने आया है....

उर्मिला – शहर से यहां गांव में पढ़ने अजीब बात है.....

रमन – कोई अजीब बात नही है मुफ्त में पढ़ने आया है यहां स्कॉलरशिप मिली है उस लौंडे को , आते ही इत्तेफाक से संध्या से मुलाकात हो गई उसकी रास्ते में जाने क्या बात हुई रास्ते में ऐसी उसे अपना बेटा समझने लगी संध्या तब से हाथ से निकल गई है मेरे.....

उर्मिला – (मुस्कुरा के) इतने साल फायदा भी तो खूब उठाया है आपने ठकुराइन का....

रमन – क्या खाक फायदा मिला मुझे साली गांव की जमीन निकल गई मेरे हाथ से बस एक बार कॉलेज की नीव पड़ जाति उस जमीन पर तो चाह के भी कोई कुछ नही कर पता उस जमीन में डिग्री कॉलेज बनने से लेकिन उस लौंडे ने आके....

उर्मिला – (हस के) तो फिर से ऐसा कुछ कर दो आप जिससे जमीन भी आपकी हो जाय और ठकुराइन भी जैसे आपने दस साल पहले किया था जंगल में मिली बच्चे की लाश को अभय के स्कूल के कपड़े पहना कर उसे अभय साबित कर दिया था....

रमन – नही अभी मैं कुछ नही कर सकता हू संध्या को शक हो गया है मेरे उपर अब उसे भी लगने लगा है इन सब में मेरा भी हाथ है बस सबूत न मिलने की वजह से बचा हुआ हू मै वर्ना अब तक बुरा फस गया होता मैं....

उर्मिला – ठाकुर साहब इस चक्कर में अपनी बेटी को मत भूल जाना आप पूनम आपकी बेटी है ना की उस सरपंच शंकर चौधरी की इतने सालो में उसे मैने शक तक होने नही दिया इस बात का....

रमन – तू चिंता मत कर ऐसा वैसा कुछ नही होने दुगा मैं जरूरत पड़ी तो रास्ते से हटा दुगा उस लौंडे को रही संध्या की बात 3 दिन बाद जन्मदिन है उसका इस बार हवेली में पार्टी जरूर होगी खुद संध्या देगी वो पार्टी उस लौंडे के दिखाने के लिए उस दिन संध्या को मना लूगा मैं और नही भी हुआ ऐसा तो भी कोई बात नही आखिर मेरा भी हक बनता है हवेली और जायदाद पर....

उर्मिला – अब सब कुछ आपके हाथ है ठाकुर साहब मुझे सिर्फ हमारी बेटी की चिंता है.....

रमन – फिक्र मत कर तू चल जल्दी से कपड़े पहन ले...

उर्मिला – (बीच में बात काटते हुए) इतनी भी जल्दी क्या है ठाकुर साहब आज मैं फुरसत से आई हू आपके पास शंकर गया हुआ है शहर काम से और बेटी गई है अपनी सहेली के घर उसके जन्म दिन के लिए आज वही रहेगी वो...

रमन – वाह मेरी जान तूने तो मेरी रात बना दी आज की आजा….

बोल के दोनो शुरू हो गए अपनी काम लीला में जिसके बाद राज , अभय , राजू और लल्ला चुप चाप दबे पांव निकल गए ट्रेन की बोगी से , बाहर आते ही चारो दोस्त जल्दी से अभय की बाइक के पास आ गए तब राज बोला...

राज –(अभय से) तूने देखा और सुना , कुछ समझ आया तुझे...अभय चुप रहा बस अपना सर उपर आसमान में करके के देखता रहा जिसे देख राज बोला...

राज – (हल्का सा हस के) चल चलते है हमलोग यहां से , घर भी जाना है मां और बाब राह देख रहे होगे मेरी...

राज की बात सुन राजू बोला...

राजू – हा यार चल अब रुक के क्या फायदा होगा साली ने अरमान जगा दिया मेरे...

लल्ला – (राजू की बात सुन के) यार ये सरपंच की बीवी साली कंचा माल है यार....

राज –(दोनो की बात सुन के) अबे पगला गए हो क्या बे तुम दोनो....

राजू – अबे ओ ज्यादा शरीफ मत बन अरमान तो तेरे भी जाग गए है नीचे देख के बात कर बे....

राज –(अपनी पैंट में बने तंबू को देख मुस्कुरा के) हा यार वो सरपंच की बीवी ने सच में अरमानों को हिला दियारे....

लल्ला – क्यों अभय बाबू क्या बोलते हो तुम अब तो वो गुस्सा नही दिख रहा है तेरे चेहरे पर लगता है सरपंच की बीवी की जवानी का जादू चल गया है तेरे ऊपर भी.....

राज – (हस्ते हुए) साले तभी मू छुपा रहा है देखो तो जरा साले को....

अभय –(हस्ते हुए) ओय संभाल के राज वर्ना दीदी को बता दुगा तू क्या कर रहा है....

राज – (हस के) हा हा जैसे मैं नही बोलूगा पायल से कुछ भी क्यों बे....बोल कर चारो दोस्त हसने लगे और निकल गए घर की तरफ रास्ते में राजू और लल्ला अपनी साइकिल से घर निकल गए जबकि अभय और राज एक साथ बाइक में हॉस्टल आ गए...

राज – (अभय से) चल भाई हॉस्टल आ गया तेरा....अभय – यार मन नही कर रहा आज अकेले रहने का.....

राज –(हसके) इरादा तो नेक है तेरे....

अभय – नही यार वो बात नही है....

राज –(बात समझ के) देख अभय जो हुआ जैसे हुआ तेरे सामने है सब कुछ कैसा भी हो लेकिन छुपता नही है कभी सामने आ जाता है एक ना एक दिन उस दिन बगीचे में तूने जो बात बोल के निकल गया था वो भी अधूर...

अभय –(राज की बात काट अपना मू बना के) यार तू कहा की बात कहा ले जा रहा है देख जो भी देखा और जो भी सुना मैने सब समझ गया बात को अब जाने दे सब बातो को तू जा घर बड़ी मां राह देख रही होगी तेरी कल मिलते है....

राज बाइक खड़ी करके जाने लगा तभी अभय बोला...

अभय – अबे पैदल जाएगा क्या बाइक से जा रात हो गई है काफी कितना सन्नाटा भी है...

राज – लेकिन कल सुबह तू कैसे आयगा....

अभय – मेरी चिंता मत कर भाई पैदल आ जाऊंगा कल कॉलेज में ले लूगा बाइक तेरे से....

राज घर की तरफ निकल गया और अभय हॉस्टल के अन्दर चला गया कमरे में आते ही दरवाजा बंद करके लेट गया अभय बेड में...

अभय – (अपने आप से बोलने लगा) एक बात तो समझ आ गई ये सारा खेल रमन ठाकुर का खेला हुआ है रमन ठाकुर तुझे लगता है इस खेल को खेल के तू पूरी तरह से कामयाब हो गया है लेकिन नही आज कसम खाता हू मै अपने बाप की गिन गिन के बदला लूगा मैं तुझसे हर उस मार का जो तूने और तेरे बेटे की वजह से मिली बिना वजह उस ठकुराइन से मुझे , वैसा ही खेल को खेलूगा मैं भी , गांव वालो का तूने खून चूसा है ना , ब्याज के साथ उसकी कीमत दिलाऊगा उन गांव वालो को तेरे से मैं , रही उस ठकुराइन की बात सबक उसे भी मिलेगा जरूर लेकिन आराम से जब तक दीदी उसके साथ है मुझे ऐसा वैसा कुछ भी करने नही देगी लेकिन मैं करूंगा तो जरूर (अपनी पॉकेट से मोबाइल निकल के किसी को कॉल कर बोला) हेलो कैसी हो अल्लित्ता....

अलित्ता – (अभय की आवाज सुन के) मस्त हू तुम कैसे हो आज इतने दिन बाद कॉल किया तुमने....

अभय – अच्छा हू मै भी , एक काम है तुमसे....

अलित्ता – हा बोलो ना क्या सेवा करूं तुम्हारी....

अभय – बस कुछ सामान की जरूरत है मुझे...

अलित्ता – क्यों अपनी दीदी से बोल देते वो मना कर देती क्या....

अभय – ऐसी बात नही है अलित्ता असल में दीदी कभी मना नही करेगी मुझे लेकिन मैं दीदी को बिना बताए काम करना चाहता हू.....

अलित्ता –(अभय की बात समझ के) क्या चाहिए तुम्हे बोलो मैं अरेंज करवाती हू जल्द ही.....

अभय – मैं मैसेज करता हू तुम्हे डिटेल्स....

अलित्ता – ठीक है मैसेज करो तुम डिटेल्स परसो तक मिल जाएगा तुम्हे सारा समान.....

अभय – ठीक है और थैंक्यू अलित्ता.....

अलित्ता – (मुस्कुरा के) कोई बात नही तुम्हे जब भी जरूरत हो कॉल कर लेना मुझे ठीक है बाए....

बोल के अभय ने कॉल कट कर मैसेज कर दिया डिटेल को जिसे पड़ के अलित्ता के बगल में बैठे KING 👑 को डिटेल्स दिखाई जिसे देख KING 👑 बोला...

KING 👑 – (डिटेल्स पड़ के) भेज दो ये सामान उसे , लगता है अभय अब अपने कदमों को आगे बड़ा रहा है अकेले बिना किसी की मदद के जरूर कुछ जानकारी मिली है उसे अच्छा है.....

अलित्ता – आखिर ठाकुर का खून है उबाल तो मारेगा ही ना...

KING 👑 – उम्मीद करता हू अभय जो भी काम करने जा रहा हो उससे ठाकुर साहब की आत्मा को शांति मिले....

अलित्ता – हा ऐसा ही होगा जरूर.....

इस तरफ अभय बेड में लेता हुआ था तभी संध्या का कॉल आया जिसे देख अभय ने रुक के कॉल रिसीव कर कान में लगाया...

संध्या – (कुछ सेकंड चुप रहने के बाद) कैसे हो तुम....

अभय – (धीरे से) अच्छा हू....

संध्या – (अभय की आवाज सुन) खाना खा लिया तुमने....

अभय – हा अभी आराम कर रहा हू मै....

संध्या – घर वापस आजा....

अभय – देख मैं तेरे से आराम से बात कर रहा हू इसका मतलब ये नही तेरी फरमाइश भी पूरी करूगा.....

संध्या – 3 दिन बाद एक पार्टी रखी है हवेली में....

अभय –हा जनता हू जन्मदिन जो है तेरा....

संध्या – तुझे याद है तू...तू आएगा ना देख प्लीज माना मत करना तू आगया है ना इसीलिए पहली बार मना रही हू....

अभय – (हस के) मेरा क्या काम है तेरी पार्टी में और भी तो तेरे खास लोग आएंगे उसमे भला मेरे जैसों का कोई मोल नहीं तेरी पार्टी में या कही नौकर तो काम नही पड़ गए तुझे इसीलिए बुला रही है मुझे....

संध्या – ऐसा तो मत बोल कोई नही आएगा बस घर के है लोग...

अभय – लेकिन मेरी गिनती तेरे घर के लोगो में नही आती...

संध्या –(रोते हुए) ऐसा मत बोल सबसे कोई मतलब नहीं मेरा बस तुझ से मतलब है बस तू आजा बदले में जो बोल मैं वो करूगी....

अभय – सिर्फ मेरे लिए इतना बोल रही क्योंकि आज मैं यहां हू उससे पहले कभी सोचा तूने इन गांव वालो का जिनकी जमीनों में कर्ज के नाम पर कब्जा किया जा रहा था जबरन तरीके से तब देखा तूने....

संध्या – तेरे इलावा कोई नही मेरा तूही मेरा सब कुछ है तेरी कसम खा के बोलती हू मुझे सच में कुछ नही पता था इस बारे में....

अभय –(संध्या की ये बात सुन के चुप रह कुछ सेकंड फिर बोला) तू नही जानती इस वजह से कितना कुछ झेला है गांव वालो ने कर्ज के बदले ब्याज पर ब्याज लिया गया उनसे जो रोज तपती धूप में खेती करते ताकी अपने परिवार का पेट भर सके सोच इतने सालो में उनके साथ क्या क्या नहीं हुआ होगा उनके दर्द का कोई अंदाजा नही लगा सकता (रूंधे गले से) अगर बाबा होते ऐसा कभी नहीं होने देते...

बोल के फोन कट कर दिया अभय ने इस तरफ हवेली में संध्या के संग चांदनी बैठी सारी बाते सुन रही थी...

चांदनी – (रोती हुई संध्या को गले लगा के) बस करिए मत रोइए....

संध्या –(आसू पोच के) नही चांदनी आज इतने दिनो बाद उसने मुझ से बात की आराम से बिल्कुल अपने बाबा की तरह सोचता है अपने से पहले दूसरो के बारे में....

चांदनी – आप खुश है ना....

संध्या – बहुत खुश हू आज मैं (चांदनी का हाथ पकड़ के) शुक्रिया चांदनी तुम्हारी वजह से ये हुआ है...

चांदनी – नही ठकुराइन इसमें शुक्रिया जैसी कोई बात नही है ये मेरा फर्ज है अभय भाई है मेरा उसके लिए नही करूंगी तो किसके लिए करूगी....

संध्या – ये तू मुझे ठकुराइन क्यों बोलती रहती है शालिनी जी को बहन माना है मैने तो तू मुझे मासी बोला कर अब से....

चांदनी – लेकिन सिर्फ आपको अकेले में....

संध्या – कोई जरूरत नहीं है सबसे सामने बोलेगी बेझिजक....

चांदनी –(मुस्कुरा के) ठीक है मासी अब खुश हो आप....

संध्या – (गले लगा के) हा बहुत खुश हू , चल अब सोजा कल तुझे मेरे साथ चलना है तुझे दिखाओगी गांव की मीटिंग जहा सरपंच बैठक लगाते है सभी गांव वालो की....

चांदनी – लेकिन वहा पर क्या काम मेरा...

संध्या – (मुस्कुरा के) वो तू कल खुद देख लेना चल अब सोजा सुबह जल्दी चलना है....

चांदनी –(मुस्कुरा के) जैसा आप कहे मासी.....

हस के चांदनी चली गई अपने कमरे में आराम करने चांदनी के जाने के बाद संध्या ने शंकर चौधरी (सरपंच) को कॉल किया..

संध्या –(कॉल पर) हेलो शंकर....

शंकर (सरपंच) – प्रणाम ठकुराइन इतने वक्त याद किया आपने...

संध्या – जी ये कहने के लिए कॉल किया की कल पूरे गांव वालो को बैठक बुलाइए गा और ध्यान रहे सभी गांव वाले होने चाहिए वहा पर..

शंकर (सरपंच) – कुछ जरूरी काम है ठकुराइन....

संध्या – जी कल वही पर बात होगी सबके सामने वक्त पे तयार होके आइए गा.....

बोल के कॉल कट कर दिया जबकि शंकर चौधरी (सरपंच) को शहर गया हुआ था काम से उसने कॉल लगाया रमन ठाकुर को को इस वक्त सरपंच की बीवी उर्मिला के साथ कामलीला में लगा हुआ था....

रमन –(मोबाइल में सरपंच का कॉल देख के उर्मिला से) तूने तो बोला था शंकर शहर गया हुआ है....

उर्मिला – हा क्यों क्या हुआ...

रमन –(अपना मोबाइल दिखा के जिस्म3 शंकर की कॉल आ रही थी) तो इस वक्त क्यों कॉल कर रहा है ये...

उर्मिला –(चौक के) पता नही देखिए जरा क्या बात है...

रमन –(कॉल उठा के स्पीकर में डाल के) हा सरपंच बोल क्या बात है...

शंकर (सरपंच) – हवेली में कोई बात हुई है क्या ठाकुर साहेब...

रमन – नही तो क्यों क्या हुआ...

शंकर (सरपंच) –(संध्या की कही सारी बात बता के) अब क्या करना है ठाकुर साहब...

रमन –(सरपंच की बात सुन हैरान होके) जाने अब क्या खिचड़ी पका रही है ये औरत साली चैन से सास तक लेने नही देती है एक काम कर जो कहा है वो की तू बाकी मैं भी कल रहूंगा वहा पर देखते है क्या करने वाली है ये औरत अब....

उर्मिला –(रमन का कॉल कट होते बोली) ये सब अचानक से क्यों ठाकुर साहब...

रमन –यही बात तो मुझे भी समझ नही आ रही है चल तू कपड़े पहन ले मैं तुझे घर छोड़ देता हू फिर हवेली जाके देखता हू क्या माजरा है ये...इधर हवेली में संध्या ने एक कॉल और मिलाया गीता देवी को...

संध्या – (कॉल पर गीता देवी से) दीदी कैसी हो आप...

गीता देवी – अच्छी हू तूने इतने वक्त कॉल किया सब ठीक तो है न संध्या...

संध्या – हा दीदी सब ठीक है मैने सरपंच को बोल के कल सभी गांव वालो की बैठक बुलवाई है मैं चाहती हू आप सभी गांव की औरतों को साथ लेके आए वहा पर....

गीता देवी –(हैरान होके) ऐसी क्या बात है संध्या ये अचनक से बैठक सभी गांव वालो को....

संध्या – आप ज्यादा सवाल मत पूछिए दीदी बस कल सभी को लेक आ जायेगा.....

गीता देवी –(संध्या को बात सुन के) ठीक है कल आ जाऊंगी
बोल के दोनो ने कॉल कट कर दिया उसी समय राज और सत्य बाबू पास में बैठे थे सत्य बाबू बोले...

सत्य बाबू – क्या बात है सब ठीक तो है ना हवेली में....

गीता देवी – हा सब ठीक है (फिर जो बात हो गई सब बता दिया) देखते है कल क्या होता है बैठक में.....

सत्य बाबू – कमाल की बात आज ही मुझे अभय मिला था....

गीता देवी – अभय मिला था आपको तो घर लेके क्यों नही आए उसे....

सत्य बाबू –यही बोला मैने समझाया उसे....

गीता देवी – फिर क्या बोला अभय.....

सत्य बाबू ने सारी बात बताई जिसे सुन के गीता देवी कुछ बोलने जा रही थी कि तभी राज बीच में बोल पड़ा...

राज –(बातो के बीच में) ओह तो ये बात है तभी मैं सोचूं आज अभय को हुआ क्या है....

गीता देवी और सत्य बाबू एक साथ –(चौक के) क्या हुआ था अभय को....

फिर राज ने सारी घटना बताई लेकिन रमन और उर्मिला की बात छोड़ के जिसे सुन के गीता देवी और सत्य बाबू की आखें बड़ी हो गई...

गीता देवी –(गुस्से में सत्य बाबू से) आप ना कमाल करते हो क्या जरूरत थी अभय को ये बात बताने की बच्चा है वो अभी उसे क्या पता इतने साल उसके ना होने से क्या हुआ है गांव में और आपने उसे ही जिम्मेदार ठहरा दिया भला ये कोई तरीका होता है क्या एक बच्चे से बात करने का....

सत्या बाबू –(अपने सिर पे हाथ रख के) अरे भाग्यवान अभय को बताने का ये मकसद नही था मेरा मैं भी बस यही चाहता था वो संध्या से नफरत ना करे इसीलिए उसे सच बताया था...

गीता देवी –(मू बना के) सच बताने का एक तरीका भी होता है बताना होता तो मैं नही बता सकती थी अभय को सच या राज नही बता सकता था शुक्र है भगवान का कुछ अनर्थ नही हुआ वर्ना मू ना दिखा पाती मैं संध्या को कभी (राज से) और तू भी ध्यान रखना ऐसी वैसी कोई बात नही करना अभय से समझा ना....

राज – ठीक है मां....

गीता देवी – एक बात तो बता तुझे पता था ना अभय की ऐसी हालत है तो तू उसे हॉस्टल में छोड़ के कैसे आ गया घर ले आता उसे या वही रुक जाता , एक काम कर तू अभी जा अभय के पास वही सो जाके जाने कैसा दोस्त है , तू भी इनकी तरह हरकत कर रहा है.....

राज –अरे अरे मां ऐसा कुछ भी नही है अभय ठीक है अब....

गीता देवी – लेकिन अभी तो तूने कहा.....

राज – (अपने सिर पे हाथ रख के) मां बात असल में ये है की वहा पर जब ये सब हुआ तब हम आपस में बात कर रहे थे कि तभी वहा पर रमन और सरपंच की बीवी (उर्मिला) को देख लिया हमने , वो दोनो एक साथ यार्ड में खड़ी एसी वाली बोगी में चढ़ गए फिर....(बोल के चुप हो गया राज)....

गीता देवी – फिर क्या बोल आगे भी....

राज –(झिझक ते हुए) वो...मां....वो...मां....

सत्य बाबू – ये वो मां वो मां क्या लगा रखा आगे बोल क्या हुआ वहा पर.....

राज – देख मां नाराज मत होना तू वो रमन और उर्मिला काकी दोनो एक साथ (बोल के सर झुका दिया राज ने)....

गीता देवी –(बात का मतलब समझ के राज के कान पकड़ बोली) तो तू ये सब देखने गया था क्यों बोल....

राज –आ आ आ आ मां लग रही है मां तेरी कसम खाता हू वो सब देखने नही गए थे मां (फिर पूरी बात बता के)....

सत्या बाबू –(गुस्से में) नीच सिर्फ नीच ही रहता है थू है इसके ठाकुर होंने पर इतनी गिरी हरकत ठाकुर रतन सिंह का नाम मिट्टी में मिला रहा है रमन इससे अच्छा तो मनन ठाकुर था कम से कम भला करता था गांव के लोगो का और ये......

गीता देवी – जाने दीजिए क्या कर सकते है अब इस नीच इंसान का इसकी वजह से संध्या की आज ये हालत है बेटा पास होते हुए भी दूर है वो मां सुनने तक को तरस गई है अभय के मू से सब रमन के वजह से हुआ है जाने इतनी दौलत का क्या करेगा मरने के बाद (राज को देख गुस्से से) और तू अगर फिर कभी ऐसा कुछ हुआ या सुन लिया मैने तेरी खेर नही समझा....

राज –(हल्का हस के) हा मां पक्का....

अगले दिन सुबह अभय कॉलेज गया जहा उसे राज , राजू और लल्ला मिले...

अभय – आज कुछ है क्या कॉलेज में इतना सन्नाटा क्यों है यार....

राजू – अबे आज सुबह सुबह सरपंच ने बैठक बुलाई है गांव के लोगो की सब वही गए है....

अभय –(कुछ सोच के) सरपंच तो शहर गया हुआ था ना इतनी जल्दी कैसे आ गया यार....

राज – अबे कल रात को ठकुराइन का कॉल आया था मां को बोला रही थी सभी औरतों को लेके आने को बैठक में तभी लल्ला आया नही है कॉलेज....

अभय – पायल भी नही दिख रही है यार.....

राजू – हा भाई और नीलम भी नही दिख रही है.....

अभय – ओह हो तो ये बात है मतलब तू लाइन में लगा हुआ है या पता लिया तूने नीलम को....

राजू – भाई मान गई है नीलम बस कभी अकेले में घूमने का मौका नहीं मिलता है यह पर...

राज – मिलेगा मिलेगा जरूर मिलेगा मौका भी लेकिन अभी चल चलते है पंचायत में देखे क्या होने वाला है वहा पर....

बोल के तीनों निकल गए पंचायत की तरफ वहा पर एक तरफ रमन और सरपंच इनके दूसरी तरफ संध्या और साथ में चांदनी , ललिता और मालती बैठे थे और बाकी के सभी गांव वाले मौजूद थे एक तरफ गांव के बच्चे बूढ़े आदमी थे और दूसरी तरफ औरते तब सरपंच ने बोलना शुरू किया...

सरपंच – आज की बैठक हमारे गांव की ठकुराइन ने बुलाई है वह आप सबसे कुछ बात करना चाहती है....

संध्या –(सरपंच की बात सुन खड़ी होके सभी गांव वालो के सामने) काफी वक्त से आप सभी गांव वालो को कई तरह की दिक्कतों का सामना करना पड़ा यहां तक कि आपकी जमीन तक गिरवी में चली गई थी मैं उन सभी गलतियों के लिए आप सब से माफी मांगती हू और ये चाहती हू की आपकी जो भी समस्याएं है खेती को लेके या अनाज को लेके आप बिना झिजक के बताए खुल के मुझे मैं मदद करूगी बदले में कुछ भी नही मागूगी...

सरपंच – (बीच में ठकुराइन से) ठकुराइन गांव वालो को उनकी जमीन मिल गई है वापस उन्हें अब क्या जरूरत किसी चीज की...

संध्या –(बात बीच में काट के) यही बात गांव वाले खुद बोले तो यकीन आए मुझे (सभी गांव वालो से) तो बताए क्या सिर्फ जमीन मिलने पर आप खुश है और कोई समस्या नही आपको....

तभी एक गांव वाला बोला..

गांव वाला – ठकुराइन मैं अपने घर में इकलौता हू कमाने वाला मेरा खेत भी दूर है यहां से पानी वक्त से मिल नही पता है जिस कारण फसल बर्बाद हो जाती है और बैंक का ब्याज तक नहीं दे पता वक्त पर जिसके चलते बैंक वालो ने मेरी खेत की जमीन में कब्जा कर लिया है....

बोल के रोने लगा इसके साथ कई लोगो ने अपनी समस्या बताई खेती और बैंक के कर्जे को लेके जिसे सुन कर संध्या सरपंच को देख के बोली..

संध्या –अब क्या बोलते है आप सरपंच क्या ये काम होता है सरपंच का गांव में क्या इसीलिए आपको गांव में सरपंच के रूप में चुना गया था लगता है अब सरपंची आपके बस की रही नही...

गांव वाला बोला – (हाथ जोड़ के) ठकुराइन कई बार कोशिश की हमने अपनी समस्या आप तक पहुंचाने की लेकिन पिछले कई साल तक हमे ना हवेली की भीतर तो दूर सख्त मना कर दिया गया गांव का कोई बंदा हवेली की तरफ जाएगा भी नही और कॉलेज की जमीन के वक्त भी सरपंच के आगे गांव के कई लोग गिड़ गिड़ाये लेकिन सिवाय मायूसी के इलावा कुछ न मिला हमे....

संध्या –(बात सुनने के बाद गांव वालो से) काफी वक्त से गांव में सरपंची का चुनाव नही हुआ है क्या आपका कोई उम्मीद वार है ऐसा जिसे आप सरपंच के पड़ के लिए समझते हो लेकिन जरूरी नहीं वो आदमी हो औरत भी हो कोई दिक्कत नही...

इस बात से सरपंच के सर पर फूटा एक बॉम्ब साथ ही रमन के कान से धुवा निकलने लगा इतने गांव वालो के सामने संध्या से उसकी कुछ भी कहने की हिम्मत नही हो रही थी...

गांव वाले –(सब गीता देवी को आगे कर) ठकुराइन गीता देवी से बेहतर कोई नहीं संभाल सकता है सरपंच....

संध्या –(मुस्कुरा के) तो ये तय रहा इस बार गांव में सरपंच का पद गीता देवी संभालेगी....

शंकर (सरपंच)–(बीच में बात काट के) ठकुराइन ये गलता है इस तरह आप ये तय नही कर सकती कॉन सरपंच बनेगा कॉन नही इसकी मंजूरी के नियम होते है और कानून भी.....

संध्या –(बात सुन मुस्कुरा के) अच्छा तो जब गांव वालो को जरूरत थी तब कहा थे आप तब याद नही आया आपको नियम कानून जब गांव वालो की जमीन छीनी जा रही थी ब्याज के नाम पर तब चुप क्यों थे आप क्यों नही आए आप हवेली और क्यों नही आवाज उठाई आपने है कोई जवाब आपके पास इसके बाद भी अगर आप शिकायत करना चाहते है तो जाए लेकिन ध्यान रखिए बात का गांव वालो ने बदले में आपकी शिकायत कर दी तब क्या होगा आपका सोच लीजिए गा....

इस बात से जहा सब गांव वाले खुश हो गए इतने साल बाद संध्या का ठकुराइन वाला रूप देख वही सरपंच का मू बंद हो गया कुछ कहने लायक ना बचा और ना ही इन सब के बीच रमन की हिम्मत हुए कुछ बोल सके जबकि अभय ये नजारा देख मुस्कुराए जा रहा था...
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जारी रहेगा✍️✍️
Shandar jabardast super faddu update 👌 🔥
 

dev61901

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Badhiya update bro

Raman or urmila ki sachai sunkar abhay ko sochne per majbur kar diya ha or uske man me apni maa ke prati nafrat thodi kam ho gayi ha lekin puri tarah nahi ab to abhay raman or uske bete se badla lena chhahta ha

Or idhar sandhya ke janmdin per lagta ha kuchh to dhamaal hone wala ha tabhi to abbay ne kuchh saman mangwaye jo lagta ha sabke liye hi surprise honge khaskar raman or sandhya ke liye

Kher idhar pehli bar abhay ne sandhya se aram se phone per bat ki jisse lag raha ha kuchh to nafrat kam hui ha abhay ki but usne sandhya ko lagta ha apni galtiyan sudharne keliye hi kaha ha tabhi to use uski galtiyan gina raha ha


Idhar last me sandhya ne sarpanch or raman ka kand kar diya jahan sarpanch apne pad se nikal chuka ha wahin raman ki ab fat rahi ha kahin agla number uska hi na aa jaye but lagta ha raman or sarpanch itni asani se to chup nahi bethenge filhal to geeta devi ko sarpanch ke roop me chunkee sahi kiya ab dekhte han ki sandhya ke janmdin per kya hoga
 
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Raj_sharma

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ellysperry

Humko jante ho ya hum bhi de apna introduction
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UPDATE 29


अभय , राज , राजू और लल्ला चारो दोस्त ट्रेन की एसी बोगी में चिप के रमन और सरपंच को बीवी उर्मिला की रासलीला देखते रहे कुछ समय बिता था की तभी उर्मिला ने बोलना शुरू किया...

उर्मिला –क्या बात है ठाकुर साहब आज आप बहुत जोश में थे....

रमन –(उर्मिला की बात सुन हल्का मुस्कुरा के) तू चीज ही ऐसी है मेरी जान....

उर्मिला –(मुस्कुरा के) लगता है लल्लीता से मन भर गया है आपका....

रमन – वो साली क्या साथ देगी मेरा उसका दिमाग घुटनो में पड़ा रहता है या तो हवेली में लगी रहेगी या अपनी बेटी के साथ....

उर्मिला – (मू बना के) कितनी बार कहा आपसे मुझे हवेली में रख लो हमेशा के लिए बस आपकी बाहों में रहूंगी हमेशा लेकिन आप हो के सुनते कहा हो....

रमन – तू तो जानती है मेरी रानी मेरे हाथ में कुछ भी नही है....

उर्मिला –ये बात आप जाने कितने सालों से बोल रहे हो ऐसे तो आप कभी हवेली में नही ले जाओगे मुझे.....

रमन – क्या बताओ मेरी रानी पहले तो सब मेरे हाथ में था हवेली की बाग डोर और संध्या भी लेकिन जब से उसका उसका बेटा अभय हवेली से भागा है तब से संध्या मेरे हाथ में नही रही इसीलिए धीरे धीरे इत्मीनान से उसे काबू में करने में लगा हुआ था मैं लेकिन फिर इतने साल बाद एक लौंडे के आ जाने से वो पागल सी हो गई है संध्या जाने कहा कहा से गड़े मुर्दे उखड़ने में लगी है.....

उर्मिला – वही लड़का ना जिसने गांव में आते ही गांव वालो को जमीन आपके हाथ से निकल गई....

रमन – है वही लौंडा की वजह से हुआ है ये सब वो साली उसे अपना बेटा अभय समझ रही है....

उर्मिला – (चौक के) कही सच में वो उसका बेटा अभय तो नही....

रमन – अरे नही मेरी जान वो कोई अभय नही है वो तो डी आई जी शालिनी सिन्हा का बेटा है जो शहर से यहां कॉलेज में पढ़ने आया है....

उर्मिला – शहर से यहां गांव में पढ़ने अजीब बात है.....

रमन – कोई अजीब बात नही है मुफ्त में पढ़ने आया है यहां स्कॉलरशिप मिली है उस लौंडे को , आते ही इत्तेफाक से संध्या से मुलाकात हो गई उसकी रास्ते में जाने क्या बात हुई रास्ते में ऐसी उसे अपना बेटा समझने लगी संध्या तब से हाथ से निकल गई है मेरे.....

उर्मिला – (मुस्कुरा के) इतने साल फायदा भी तो खूब उठाया है आपने ठकुराइन का....

रमन – क्या खाक फायदा मिला मुझे साली गांव की जमीन निकल गई मेरे हाथ से बस एक बार कॉलेज की नीव पड़ जाति उस जमीन पर तो चाह के भी कोई कुछ नही कर पता उस जमीन में डिग्री कॉलेज बनने से लेकिन उस लौंडे ने आके....

उर्मिला – (हस के) तो फिर से ऐसा कुछ कर दो आप जिससे जमीन भी आपकी हो जाय और ठकुराइन भी जैसे आपने दस साल पहले किया था जंगल में मिली बच्चे की लाश को अभय के स्कूल के कपड़े पहना कर उसे अभय साबित कर दिया था....

रमन – नही अभी मैं कुछ नही कर सकता हू संध्या को शक हो गया है मेरे उपर अब उसे भी लगने लगा है इन सब में मेरा भी हाथ है बस सबूत न मिलने की वजह से बचा हुआ हू मै वर्ना अब तक बुरा फस गया होता मैं....

उर्मिला – ठाकुर साहब इस चक्कर में अपनी बेटी को मत भूल जाना आप पूनम आपकी बेटी है ना की उस सरपंच शंकर चौधरी की इतने सालो में उसे मैने शक तक होने नही दिया इस बात का....

रमन – तू चिंता मत कर ऐसा वैसा कुछ नही होने दुगा मैं जरूरत पड़ी तो रास्ते से हटा दुगा उस लौंडे को रही संध्या की बात 3 दिन बाद जन्मदिन है उसका इस बार हवेली में पार्टी जरूर होगी खुद संध्या देगी वो पार्टी उस लौंडे के दिखाने के लिए उस दिन संध्या को मना लूगा मैं और नही भी हुआ ऐसा तो भी कोई बात नही आखिर मेरा भी हक बनता है हवेली और जायदाद पर....

उर्मिला – अब सब कुछ आपके हाथ है ठाकुर साहब मुझे सिर्फ हमारी बेटी की चिंता है.....

रमन – फिक्र मत कर तू चल जल्दी से कपड़े पहन ले...

उर्मिला – (बीच में बात काटते हुए) इतनी भी जल्दी क्या है ठाकुर साहब आज मैं फुरसत से आई हू आपके पास शंकर गया हुआ है शहर काम से और बेटी गई है अपनी सहेली के घर उसके जन्म दिन के लिए आज वही रहेगी वो...

रमन – वाह मेरी जान तूने तो मेरी रात बना दी आज की आजा….

बोल के दोनो शुरू हो गए अपनी काम लीला में जिसके बाद राज , अभय , राजू और लल्ला चुप चाप दबे पांव निकल गए ट्रेन की बोगी से , बाहर आते ही चारो दोस्त जल्दी से अभय की बाइक के पास आ गए तब राज बोला...

राज –(अभय से) तूने देखा और सुना , कुछ समझ आया तुझे...अभय चुप रहा बस अपना सर उपर आसमान में करके के देखता रहा जिसे देख राज बोला...

राज – (हल्का सा हस के) चल चलते है हमलोग यहां से , घर भी जाना है मां और बाब राह देख रहे होगे मेरी...

राज की बात सुन राजू बोला...

राजू – हा यार चल अब रुक के क्या फायदा होगा साली ने अरमान जगा दिया मेरे...

लल्ला – (राजू की बात सुन के) यार ये सरपंच की बीवी साली कंचा माल है यार....

राज –(दोनो की बात सुन के) अबे पगला गए हो क्या बे तुम दोनो....

राजू – अबे ओ ज्यादा शरीफ मत बन अरमान तो तेरे भी जाग गए है नीचे देख के बात कर बे....

राज –(अपनी पैंट में बने तंबू को देख मुस्कुरा के) हा यार वो सरपंच की बीवी ने सच में अरमानों को हिला दियारे....

लल्ला – क्यों अभय बाबू क्या बोलते हो तुम अब तो वो गुस्सा नही दिख रहा है तेरे चेहरे पर लगता है सरपंच की बीवी की जवानी का जादू चल गया है तेरे ऊपर भी.....

राज – (हस्ते हुए) साले तभी मू छुपा रहा है देखो तो जरा साले को....

अभय –(हस्ते हुए) ओय संभाल के राज वर्ना दीदी को बता दुगा तू क्या कर रहा है....

राज – (हस के) हा हा जैसे मैं नही बोलूगा पायल से कुछ भी क्यों बे....बोल कर चारो दोस्त हसने लगे और निकल गए घर की तरफ रास्ते में राजू और लल्ला अपनी साइकिल से घर निकल गए जबकि अभय और राज एक साथ बाइक में हॉस्टल आ गए...

राज – (अभय से) चल भाई हॉस्टल आ गया तेरा....अभय – यार मन नही कर रहा आज अकेले रहने का.....

राज –(हसके) इरादा तो नेक है तेरे....

अभय – नही यार वो बात नही है....

राज –(बात समझ के) देख अभय जो हुआ जैसे हुआ तेरे सामने है सब कुछ कैसा भी हो लेकिन छुपता नही है कभी सामने आ जाता है एक ना एक दिन उस दिन बगीचे में तूने जो बात बोल के निकल गया था वो भी अधूर...

अभय –(राज की बात काट अपना मू बना के) यार तू कहा की बात कहा ले जा रहा है देख जो भी देखा और जो भी सुना मैने सब समझ गया बात को अब जाने दे सब बातो को तू जा घर बड़ी मां राह देख रही होगी तेरी कल मिलते है....

राज बाइक खड़ी करके जाने लगा तभी अभय बोला...

अभय – अबे पैदल जाएगा क्या बाइक से जा रात हो गई है काफी कितना सन्नाटा भी है...

राज – लेकिन कल सुबह तू कैसे आयगा....

अभय – मेरी चिंता मत कर भाई पैदल आ जाऊंगा कल कॉलेज में ले लूगा बाइक तेरे से....

राज घर की तरफ निकल गया और अभय हॉस्टल के अन्दर चला गया कमरे में आते ही दरवाजा बंद करके लेट गया अभय बेड में...

अभय – (अपने आप से बोलने लगा) एक बात तो समझ आ गई ये सारा खेल रमन ठाकुर का खेला हुआ है रमन ठाकुर तुझे लगता है इस खेल को खेल के तू पूरी तरह से कामयाब हो गया है लेकिन नही आज कसम खाता हू मै अपने बाप की गिन गिन के बदला लूगा मैं तुझसे हर उस मार का जो तूने और तेरे बेटे की वजह से मिली बिना वजह उस ठकुराइन से मुझे , वैसा ही खेल को खेलूगा मैं भी , गांव वालो का तूने खून चूसा है ना , ब्याज के साथ उसकी कीमत दिलाऊगा उन गांव वालो को तेरे से मैं , रही उस ठकुराइन की बात सबक उसे भी मिलेगा जरूर लेकिन आराम से जब तक दीदी उसके साथ है मुझे ऐसा वैसा कुछ भी करने नही देगी लेकिन मैं करूंगा तो जरूर (अपनी पॉकेट से मोबाइल निकल के किसी को कॉल कर बोला) हेलो कैसी हो अल्लित्ता....

अलित्ता – (अभय की आवाज सुन के) मस्त हू तुम कैसे हो आज इतने दिन बाद कॉल किया तुमने....

अभय – अच्छा हू मै भी , एक काम है तुमसे....

अलित्ता – हा बोलो ना क्या सेवा करूं तुम्हारी....

अभय – बस कुछ सामान की जरूरत है मुझे...

अलित्ता – क्यों अपनी दीदी से बोल देते वो मना कर देती क्या....

अभय – ऐसी बात नही है अलित्ता असल में दीदी कभी मना नही करेगी मुझे लेकिन मैं दीदी को बिना बताए काम करना चाहता हू.....

अलित्ता –(अभय की बात समझ के) क्या चाहिए तुम्हे बोलो मैं अरेंज करवाती हू जल्द ही.....

अभय – मैं मैसेज करता हू तुम्हे डिटेल्स....

अलित्ता – ठीक है मैसेज करो तुम डिटेल्स परसो तक मिल जाएगा तुम्हे सारा समान.....

अभय – ठीक है और थैंक्यू अलित्ता.....

अलित्ता – (मुस्कुरा के) कोई बात नही तुम्हे जब भी जरूरत हो कॉल कर लेना मुझे ठीक है बाए....

बोल के अभय ने कॉल कट कर मैसेज कर दिया डिटेल को जिसे पड़ के अलित्ता के बगल में बैठे KING 👑 को डिटेल्स दिखाई जिसे देख KING 👑 बोला...

KING 👑 – (डिटेल्स पड़ के) भेज दो ये सामान उसे , लगता है अभय अब अपने कदमों को आगे बड़ा रहा है अकेले बिना किसी की मदद के जरूर कुछ जानकारी मिली है उसे अच्छा है.....

अलित्ता – आखिर ठाकुर का खून है उबाल तो मारेगा ही ना...

KING 👑 – उम्मीद करता हू अभय जो भी काम करने जा रहा हो उससे ठाकुर साहब की आत्मा को शांति मिले....

अलित्ता – हा ऐसा ही होगा जरूर.....

इस तरफ अभय बेड में लेता हुआ था तभी संध्या का कॉल आया जिसे देख अभय ने रुक के कॉल रिसीव कर कान में लगाया...

संध्या – (कुछ सेकंड चुप रहने के बाद) कैसे हो तुम....

अभय – (धीरे से) अच्छा हू....

संध्या – (अभय की आवाज सुन) खाना खा लिया तुमने....

अभय – हा अभी आराम कर रहा हू मै....

संध्या – घर वापस आजा....

अभय – देख मैं तेरे से आराम से बात कर रहा हू इसका मतलब ये नही तेरी फरमाइश भी पूरी करूगा.....

संध्या – 3 दिन बाद एक पार्टी रखी है हवेली में....

अभय –हा जनता हू जन्मदिन जो है तेरा....

संध्या – तुझे याद है तू...तू आएगा ना देख प्लीज माना मत करना तू आगया है ना इसीलिए पहली बार मना रही हू....

अभय – (हस के) मेरा क्या काम है तेरी पार्टी में और भी तो तेरे खास लोग आएंगे उसमे भला मेरे जैसों का कोई मोल नहीं तेरी पार्टी में या कही नौकर तो काम नही पड़ गए तुझे इसीलिए बुला रही है मुझे....

संध्या – ऐसा तो मत बोल कोई नही आएगा बस घर के है लोग...

अभय – लेकिन मेरी गिनती तेरे घर के लोगो में नही आती...

संध्या –(रोते हुए) ऐसा मत बोल सबसे कोई मतलब नहीं मेरा बस तुझ से मतलब है बस तू आजा बदले में जो बोल मैं वो करूगी....

अभय – सिर्फ मेरे लिए इतना बोल रही क्योंकि आज मैं यहां हू उससे पहले कभी सोचा तूने इन गांव वालो का जिनकी जमीनों में कर्ज के नाम पर कब्जा किया जा रहा था जबरन तरीके से तब देखा तूने....

संध्या – तेरे इलावा कोई नही मेरा तूही मेरा सब कुछ है तेरी कसम खा के बोलती हू मुझे सच में कुछ नही पता था इस बारे में....

अभय –(संध्या की ये बात सुन के चुप रह कुछ सेकंड फिर बोला) तू नही जानती इस वजह से कितना कुछ झेला है गांव वालो ने कर्ज के बदले ब्याज पर ब्याज लिया गया उनसे जो रोज तपती धूप में खेती करते ताकी अपने परिवार का पेट भर सके सोच इतने सालो में उनके साथ क्या क्या नहीं हुआ होगा उनके दर्द का कोई अंदाजा नही लगा सकता (रूंधे गले से) अगर बाबा होते ऐसा कभी नहीं होने देते...

बोल के फोन कट कर दिया अभय ने इस तरफ हवेली में संध्या के संग चांदनी बैठी सारी बाते सुन रही थी...

चांदनी – (रोती हुई संध्या को गले लगा के) बस करिए मत रोइए....

संध्या –(आसू पोच के) नही चांदनी आज इतने दिनो बाद उसने मुझ से बात की आराम से बिल्कुल अपने बाबा की तरह सोचता है अपने से पहले दूसरो के बारे में....

चांदनी – आप खुश है ना....

संध्या – बहुत खुश हू आज मैं (चांदनी का हाथ पकड़ के) शुक्रिया चांदनी तुम्हारी वजह से ये हुआ है...

चांदनी – नही ठकुराइन इसमें शुक्रिया जैसी कोई बात नही है ये मेरा फर्ज है अभय भाई है मेरा उसके लिए नही करूंगी तो किसके लिए करूगी....

संध्या – ये तू मुझे ठकुराइन क्यों बोलती रहती है शालिनी जी को बहन माना है मैने तो तू मुझे मासी बोला कर अब से....

चांदनी – लेकिन सिर्फ आपको अकेले में....

संध्या – कोई जरूरत नहीं है सबसे सामने बोलेगी बेझिजक....

चांदनी –(मुस्कुरा के) ठीक है मासी अब खुश हो आप....

संध्या – (गले लगा के) हा बहुत खुश हू , चल अब सोजा कल तुझे मेरे साथ चलना है तुझे दिखाओगी गांव की मीटिंग जहा सरपंच बैठक लगाते है सभी गांव वालो की....

चांदनी – लेकिन वहा पर क्या काम मेरा...

संध्या – (मुस्कुरा के) वो तू कल खुद देख लेना चल अब सोजा सुबह जल्दी चलना है....

चांदनी –(मुस्कुरा के) जैसा आप कहे मासी.....

हस के चांदनी चली गई अपने कमरे में आराम करने चांदनी के जाने के बाद संध्या ने शंकर चौधरी (सरपंच) को कॉल किया..

संध्या –(कॉल पर) हेलो शंकर....

शंकर (सरपंच) – प्रणाम ठकुराइन इतने वक्त याद किया आपने...

संध्या – जी ये कहने के लिए कॉल किया की कल पूरे गांव वालो को बैठक बुलाइए गा और ध्यान रहे सभी गांव वाले होने चाहिए वहा पर..

शंकर (सरपंच) – कुछ जरूरी काम है ठकुराइन....

संध्या – जी कल वही पर बात होगी सबके सामने वक्त पे तयार होके आइए गा.....

बोल के कॉल कट कर दिया जबकि शंकर चौधरी (सरपंच) को शहर गया हुआ था काम से उसने कॉल लगाया रमन ठाकुर को को इस वक्त सरपंच की बीवी उर्मिला के साथ कामलीला में लगा हुआ था....

रमन –(मोबाइल में सरपंच का कॉल देख के उर्मिला से) तूने तो बोला था शंकर शहर गया हुआ है....

उर्मिला – हा क्यों क्या हुआ...

रमन –(अपना मोबाइल दिखा के जिस्म3 शंकर की कॉल आ रही थी) तो इस वक्त क्यों कॉल कर रहा है ये...

उर्मिला –(चौक के) पता नही देखिए जरा क्या बात है...

रमन –(कॉल उठा के स्पीकर में डाल के) हा सरपंच बोल क्या बात है...

शंकर (सरपंच) – हवेली में कोई बात हुई है क्या ठाकुर साहेब...

रमन – नही तो क्यों क्या हुआ...

शंकर (सरपंच) –(संध्या की कही सारी बात बता के) अब क्या करना है ठाकुर साहब...

रमन –(सरपंच की बात सुन हैरान होके) जाने अब क्या खिचड़ी पका रही है ये औरत साली चैन से सास तक लेने नही देती है एक काम कर जो कहा है वो की तू बाकी मैं भी कल रहूंगा वहा पर देखते है क्या करने वाली है ये औरत अब....

उर्मिला –(रमन का कॉल कट होते बोली) ये सब अचानक से क्यों ठाकुर साहब...

रमन –यही बात तो मुझे भी समझ नही आ रही है चल तू कपड़े पहन ले मैं तुझे घर छोड़ देता हू फिर हवेली जाके देखता हू क्या माजरा है ये...इधर हवेली में संध्या ने एक कॉल और मिलाया गीता देवी को...

संध्या – (कॉल पर गीता देवी से) दीदी कैसी हो आप...

गीता देवी – अच्छी हू तूने इतने वक्त कॉल किया सब ठीक तो है न संध्या...

संध्या – हा दीदी सब ठीक है मैने सरपंच को बोल के कल सभी गांव वालो की बैठक बुलवाई है मैं चाहती हू आप सभी गांव की औरतों को साथ लेके आए वहा पर....

गीता देवी –(हैरान होके) ऐसी क्या बात है संध्या ये अचनक से बैठक सभी गांव वालो को....

संध्या – आप ज्यादा सवाल मत पूछिए दीदी बस कल सभी को लेक आ जायेगा.....

गीता देवी –(संध्या को बात सुन के) ठीक है कल आ जाऊंगी
बोल के दोनो ने कॉल कट कर दिया उसी समय राज और सत्य बाबू पास में बैठे थे सत्य बाबू बोले...

सत्य बाबू – क्या बात है सब ठीक तो है ना हवेली में....

गीता देवी – हा सब ठीक है (फिर जो बात हो गई सब बता दिया) देखते है कल क्या होता है बैठक में.....

सत्य बाबू – कमाल की बात आज ही मुझे अभय मिला था....

गीता देवी – अभय मिला था आपको तो घर लेके क्यों नही आए उसे....

सत्य बाबू –यही बोला मैने समझाया उसे....

गीता देवी – फिर क्या बोला अभय.....

सत्य बाबू ने सारी बात बताई जिसे सुन के गीता देवी कुछ बोलने जा रही थी कि तभी राज बीच में बोल पड़ा...

राज –(बातो के बीच में) ओह तो ये बात है तभी मैं सोचूं आज अभय को हुआ क्या है....

गीता देवी और सत्य बाबू एक साथ –(चौक के) क्या हुआ था अभय को....

फिर राज ने सारी घटना बताई लेकिन रमन और उर्मिला की बात छोड़ के जिसे सुन के गीता देवी और सत्य बाबू की आखें बड़ी हो गई...

गीता देवी –(गुस्से में सत्य बाबू से) आप ना कमाल करते हो क्या जरूरत थी अभय को ये बात बताने की बच्चा है वो अभी उसे क्या पता इतने साल उसके ना होने से क्या हुआ है गांव में और आपने उसे ही जिम्मेदार ठहरा दिया भला ये कोई तरीका होता है क्या एक बच्चे से बात करने का....

सत्या बाबू –(अपने सिर पे हाथ रख के) अरे भाग्यवान अभय को बताने का ये मकसद नही था मेरा मैं भी बस यही चाहता था वो संध्या से नफरत ना करे इसीलिए उसे सच बताया था...

गीता देवी –(मू बना के) सच बताने का एक तरीका भी होता है बताना होता तो मैं नही बता सकती थी अभय को सच या राज नही बता सकता था शुक्र है भगवान का कुछ अनर्थ नही हुआ वर्ना मू ना दिखा पाती मैं संध्या को कभी (राज से) और तू भी ध्यान रखना ऐसी वैसी कोई बात नही करना अभय से समझा ना....

राज – ठीक है मां....

गीता देवी – एक बात तो बता तुझे पता था ना अभय की ऐसी हालत है तो तू उसे हॉस्टल में छोड़ के कैसे आ गया घर ले आता उसे या वही रुक जाता , एक काम कर तू अभी जा अभय के पास वही सो जाके जाने कैसा दोस्त है , तू भी इनकी तरह हरकत कर रहा है.....

राज –अरे अरे मां ऐसा कुछ भी नही है अभय ठीक है अब....

गीता देवी – लेकिन अभी तो तूने कहा.....

राज – (अपने सिर पे हाथ रख के) मां बात असल में ये है की वहा पर जब ये सब हुआ तब हम आपस में बात कर रहे थे कि तभी वहा पर रमन और सरपंच की बीवी (उर्मिला) को देख लिया हमने , वो दोनो एक साथ यार्ड में खड़ी एसी वाली बोगी में चढ़ गए फिर....(बोल के चुप हो गया राज)....

गीता देवी – फिर क्या बोल आगे भी....

राज –(झिझक ते हुए) वो...मां....वो...मां....

सत्य बाबू – ये वो मां वो मां क्या लगा रखा आगे बोल क्या हुआ वहा पर.....

राज – देख मां नाराज मत होना तू वो रमन और उर्मिला काकी दोनो एक साथ (बोल के सर झुका दिया राज ने)....

गीता देवी –(बात का मतलब समझ के राज के कान पकड़ बोली) तो तू ये सब देखने गया था क्यों बोल....

राज –आ आ आ आ मां लग रही है मां तेरी कसम खाता हू वो सब देखने नही गए थे मां (फिर पूरी बात बता के)....

सत्या बाबू –(गुस्से में) नीच सिर्फ नीच ही रहता है थू है इसके ठाकुर होंने पर इतनी गिरी हरकत ठाकुर रतन सिंह का नाम मिट्टी में मिला रहा है रमन इससे अच्छा तो मनन ठाकुर था कम से कम भला करता था गांव के लोगो का और ये......

गीता देवी – जाने दीजिए क्या कर सकते है अब इस नीच इंसान का इसकी वजह से संध्या की आज ये हालत है बेटा पास होते हुए भी दूर है वो मां सुनने तक को तरस गई है अभय के मू से सब रमन के वजह से हुआ है जाने इतनी दौलत का क्या करेगा मरने के बाद (राज को देख गुस्से से) और तू अगर फिर कभी ऐसा कुछ हुआ या सुन लिया मैने तेरी खेर नही समझा....

राज –(हल्का हस के) हा मां पक्का....

अगले दिन सुबह अभय कॉलेज गया जहा उसे राज , राजू और लल्ला मिले...

अभय – आज कुछ है क्या कॉलेज में इतना सन्नाटा क्यों है यार....

राजू – अबे आज सुबह सुबह सरपंच ने बैठक बुलाई है गांव के लोगो की सब वही गए है....

अभय –(कुछ सोच के) सरपंच तो शहर गया हुआ था ना इतनी जल्दी कैसे आ गया यार....

राज – अबे कल रात को ठकुराइन का कॉल आया था मां को बोला रही थी सभी औरतों को लेके आने को बैठक में तभी लल्ला आया नही है कॉलेज....

अभय – पायल भी नही दिख रही है यार.....

राजू – हा भाई और नीलम भी नही दिख रही है.....

अभय – ओह हो तो ये बात है मतलब तू लाइन में लगा हुआ है या पता लिया तूने नीलम को....

राजू – भाई मान गई है नीलम बस कभी अकेले में घूमने का मौका नहीं मिलता है यह पर...

राज – मिलेगा मिलेगा जरूर मिलेगा मौका भी लेकिन अभी चल चलते है पंचायत में देखे क्या होने वाला है वहा पर....

बोल के तीनों निकल गए पंचायत की तरफ वहा पर एक तरफ रमन और सरपंच इनके दूसरी तरफ संध्या और साथ में चांदनी , ललिता और मालती बैठे थे और बाकी के सभी गांव वाले मौजूद थे एक तरफ गांव के बच्चे बूढ़े आदमी थे और दूसरी तरफ औरते तब सरपंच ने बोलना शुरू किया...

सरपंच – आज की बैठक हमारे गांव की ठकुराइन ने बुलाई है वह आप सबसे कुछ बात करना चाहती है....

संध्या –(सरपंच की बात सुन खड़ी होके सभी गांव वालो के सामने) काफी वक्त से आप सभी गांव वालो को कई तरह की दिक्कतों का सामना करना पड़ा यहां तक कि आपकी जमीन तक गिरवी में चली गई थी मैं उन सभी गलतियों के लिए आप सब से माफी मांगती हू और ये चाहती हू की आपकी जो भी समस्याएं है खेती को लेके या अनाज को लेके आप बिना झिजक के बताए खुल के मुझे मैं मदद करूगी बदले में कुछ भी नही मागूगी...

सरपंच – (बीच में ठकुराइन से) ठकुराइन गांव वालो को उनकी जमीन मिल गई है वापस उन्हें अब क्या जरूरत किसी चीज की...

संध्या –(बात बीच में काट के) यही बात गांव वाले खुद बोले तो यकीन आए मुझे (सभी गांव वालो से) तो बताए क्या सिर्फ जमीन मिलने पर आप खुश है और कोई समस्या नही आपको....

तभी एक गांव वाला बोला..

गांव वाला – ठकुराइन मैं अपने घर में इकलौता हू कमाने वाला मेरा खेत भी दूर है यहां से पानी वक्त से मिल नही पता है जिस कारण फसल बर्बाद हो जाती है और बैंक का ब्याज तक नहीं दे पता वक्त पर जिसके चलते बैंक वालो ने मेरी खेत की जमीन में कब्जा कर लिया है....

बोल के रोने लगा इसके साथ कई लोगो ने अपनी समस्या बताई खेती और बैंक के कर्जे को लेके जिसे सुन कर संध्या सरपंच को देख के बोली..

संध्या –अब क्या बोलते है आप सरपंच क्या ये काम होता है सरपंच का गांव में क्या इसीलिए आपको गांव में सरपंच के रूप में चुना गया था लगता है अब सरपंची आपके बस की रही नही...

गांव वाला बोला – (हाथ जोड़ के) ठकुराइन कई बार कोशिश की हमने अपनी समस्या आप तक पहुंचाने की लेकिन पिछले कई साल तक हमे ना हवेली की भीतर तो दूर सख्त मना कर दिया गया गांव का कोई बंदा हवेली की तरफ जाएगा भी नही और कॉलेज की जमीन के वक्त भी सरपंच के आगे गांव के कई लोग गिड़ गिड़ाये लेकिन सिवाय मायूसी के इलावा कुछ न मिला हमे....

संध्या –(बात सुनने के बाद गांव वालो से) काफी वक्त से गांव में सरपंची का चुनाव नही हुआ है क्या आपका कोई उम्मीद वार है ऐसा जिसे आप सरपंच के पड़ के लिए समझते हो लेकिन जरूरी नहीं वो आदमी हो औरत भी हो कोई दिक्कत नही...

इस बात से सरपंच के सर पर फूटा एक बॉम्ब साथ ही रमन के कान से धुवा निकलने लगा इतने गांव वालो के सामने संध्या से उसकी कुछ भी कहने की हिम्मत नही हो रही थी...

गांव वाले –(सब गीता देवी को आगे कर) ठकुराइन गीता देवी से बेहतर कोई नहीं संभाल सकता है सरपंच....

संध्या –(मुस्कुरा के) तो ये तय रहा इस बार गांव में सरपंच का पद गीता देवी संभालेगी....

शंकर (सरपंच)–(बीच में बात काट के) ठकुराइन ये गलता है इस तरह आप ये तय नही कर सकती कॉन सरपंच बनेगा कॉन नही इसकी मंजूरी के नियम होते है और कानून भी.....

संध्या –(बात सुन मुस्कुरा के) अच्छा तो जब गांव वालो को जरूरत थी तब कहा थे आप तब याद नही आया आपको नियम कानून जब गांव वालो की जमीन छीनी जा रही थी ब्याज के नाम पर तब चुप क्यों थे आप क्यों नही आए आप हवेली और क्यों नही आवाज उठाई आपने है कोई जवाब आपके पास इसके बाद भी अगर आप शिकायत करना चाहते है तो जाए लेकिन ध्यान रखिए बात का गांव वालो ने बदले में आपकी शिकायत कर दी तब क्या होगा आपका सोच लीजिए गा....

इस बात से जहा सब गांव वाले खुश हो गए इतने साल बाद संध्या का ठकुराइन वाला रूप देख वही सरपंच का मू बंद हो गया कुछ कहने लायक ना बचा और ना ही इन सब के बीच रमन की हिम्मत हुए कुछ बोल सके जबकि अभय ये नजारा देख मुस्कुराए जा रहा था...
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जारी रहेगा✍️✍️
Awesome update bhai
 

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