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Raj_sharma

यतो धर्मस्ततो जयः ||❣️
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Bhai ye story mene padi hai @hamantstar Bhai ki story to achhi hai par unhone complete nhi ki aacha laga aapne ise shuru kiya lekin aape bhi shuru se SURUAAT ki app vhi se shuru karte jha par hemant Bhai ne choda tha to jyada better hota or sabhi reader ke liye vhi se sabhi update copy kar sakte the aap .......

Vese aap ki bhi story thik hai par aap beeh me nhi chhodna.
Agar story beech se suru karta to beech me hi reh jaati bhai!! Aadhe log to samajh hi nahi baate ki kya hua or kaise hua? Dusri baat kahani me kuch loops the suru se jinko ye writer udhar raha hai, wo waise ke waise rah jaate.
 

Nishant1

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Writer ji ek baat batao jab Sandhya hosh me nhi thi to 1st update me dono ke bich baat kaise ho gai
Agar nashe ki dwa di hai thi to Kya Sandhya jhadte hi hosh me aa gai aur agar aa gai thi to uski time ramn ko dobara yesa vesa karne ke laye mana kar sakati thi
Aur agar sex ki dwa di gai thi to jo dwa diya gaya tha usse 2 log chudne wale the aur yha ramn ki ek chudai se Sandhya ki chudas khatm ho gai
Bura na manna min me jo swal tha islaye puchha
 
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DEVIL MAXIMUM

"सर्वेभ्यः सर्वभावेभ्यः सर्वात्मना नमः।"
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UPDATE 8


वो लड़का रास्ते पर चलते चलते गांव को देखने लगा

लड़का – आज भी वही खुशबू जो बरसों पहले आया करती थी खेतो की वही सड़क वही आम का बगीचा कुछ भी नही बदला सिवाय इस सेल फोन टावर के सिवा कुछ भी नया नहीं है यहां जाने मेरे अपने मुझे आज भी पहचान पाएंगे की नही (मुस्कुराते हुए रास्ते पर चलने लगा चलते हुए कई जगहों से गुजरा जहा उसने देखा खेल कूद का मैदान को देख मुस्कुराते हुए आगे बड़ा और फिर आई नदी जिसे देख हसने लगा)

अंत में सड़क के तीन मोहाने पर पहुंच कर उसके सामने अमरूद का बड़ा सा बगीचा नजर आया उसे देखते ही उसने अपना बैग सड़क पे रख दिया और पेड़ के सामने जाके खड़ा होगया उस पेड़ पे हाथ रख के जैसे कुछ याद करने लगा और तभी उसकी नीली आखों से आसू की एक बूंद निकल आई

लड़का – (हल्की मुस्कुराहट के साथ) बहुत पुराना याराना है तुझसे मेरा बरसों के बाद भी भूले से भी नही भूला मैं तुझे (इतना बोलते ही जाने कैसा गुस्सा आया उसने तुरंत एक पंच उस पेड़ में मार दिया पांच पड़ते ही पेड़ में हल्की दरार आगयी साथ ही उस लड़के को भी हाथ में खरोच लग गई उसके बाद वो लड़का वापस आया रास्ते की तरफ आते ही झुक के जैसे ही अपना बैग उठाया तभी पीछे से कार के हॉर्न के आवाज आई जिसे सुन के

लड़का –(हस्ते हुए) आ गई मेरी ठकुराइन (बोल के कार की तरफ पलट गया)

जी हा ये कार संध्या ठाकुर की थी जो इस वक्त ललिता और मालती के साथ हवेली को लौट रही थी

वो लड़का अपने कदम उस कार की तरफ बढ़ाते हुए नजदीक पहुंचा। और कार के कांच को अपनी हाथ की उंगलियों से खटखटाया कांच निचे होते ही उसके कानो में एक आवाज गूंजी...

संध्या –"कौन हो तुम? कहा जाना है तुम्हे?

और तभी संध्या उस लड़के की नीले आखों को गौर से देखने लगी संध्या उसकी आखों को खो सी गई थी की तभी

मालती – कौन है दीदी?"

एक और आवाज ने उस लड़के के कानो पर दस्तक दी। वो देख तो नहीं सका की किसकी आवाज है, पर आवाज से जरूर पहेचान गया था की ये आवाज किसकी है। पर इससे भी उस लड़के को कोइ फर्क नही पड़ा।

संध्या --"एक लड़का है, कहा जाना है तुम्हे? नए लगते हो इस गांव में

लड़का –(संध्या की बात सुन मुस्कुरा के बोला) मुझे तो आप नई लगती है इस गांव में मैडम नही तो मुझे जरूर पहेचान लेती। मैं तो पुराना चावल हूं इस गांव का। और आप... आप तो इस गांव की बदचलन...आ...मेरा मतलब बहुत ही उच्च हस्ती की ठाकुराइन है। हजारों एकड़ की जमीन है। और आपका नाम मिस संध्या सिंह है। जो बी ए तक की पढ़ाई की है, और वो भी नकल कर कर के पास हुई है। नकल करने वाला कोई और नहीं बल्कि आपके पतिदेव ठाकुर मनन सिंह जी थे। क्या इतना काफी है मेरे गांव का पुराना चावल होने का की कुछ और भी बताऊं।"

संध्या के कान में ऐसी फड़फड़ाती हुई जैसे चिड़िया उड़ गई हो और मुंह खुला का खुला साथ ही आंखो और चेहरे पर आश्चर्य के भाव वो आंखे फाड़े लड़के को बस देखती रह गई...और उस लड़के ने जब संध्या के भाव देखे तो, उसने कांच के अंदर हाथ बढ़ाते हुए संध्या के आंखो के सामने ले जाकर एक चुटकी बजाते हुए...

लड़का --"कहा खो गई आप मैडम? आपने कहीं सच तो नही मान लिया? ये मेरी आदत है यूं अजनबियों से मजाक करने की।"

संध्या होश में तो जरूर आती है, पर अभी भी वो सदमे में थी में थी। पीछे सीट पर बैठी मालती, ललिता का भी कुछ यूं ही हाल था। तीनो को समझ में नहीं आ रहा था की, ये सारी बाते इस लड़के को कैसे मालूम? और ऊपर से कह रहा है की ये मजाक था। संध्या का दिमाग काम करना बंद हो गया था,।

संध्या --" ये...ये तुम मजाक कर ...कर रहे थे?

लड़का --(मन ही मन गुस्से के साथ होठो से मुस्कुरा कर बोला) मैडम कुछ समझा नहीं, आप क्या बोल रही है? वर्ड रिपीट मत करिए, और फिल्मों के जैसा डायलॉग तो मत ही बोलिए, साफ साफ स्पष्ट शब्दों में पूछिए।"

संध्या --"मैं कह रही थी की, क्या तुम सच में मजाक कर रहे थे?"

लड़का --"मैं तो मजाक ही कर रहा था, मगर अक्सर मेरे जानने वाले लोग कहते है की , मेरा मजाक अक्सर सच होता है।"

संध्या , ललिता और मालती अभि भी सदमे में थे। तीनो लड़के के चेहरे को गौर से देख रही थी, पर कुछ समझ नहीं पा रही थी। बस किसी मूर्ति की तरह एकटक लड़के को देखे जा रही थी।

लड़का --"मुझे देख कर हो गया हो तो, कृपया आप मुझे ये बताएंगी की , ठाकुर परम सिंह इंटरमीडिएट कॉलेज के लिए कौन सा रास्ते पर जाना होगा?"

तिनों के चेहरे के रंग उड़े हुए थे, पर तभी संध्या ने पूछा...

संध्या --"नए स्टूडेंट हो ?"

लड़का – (मुस्कुरा के) ये कोई टूरिस्ट प्लेस तो है नही जो कंधे पर बैग रख कर घूमने आ जायेगा कोई।" जाहिर सी बात है मैडम आज से कॉलेज स्टार्ट हुए है तो, इस गांव में स्टूडेंट ही आयेंगे ना।


संध्या --"बाते काफी दिलचस्प करते हो।"

लड़का --"अब क्या करू मैडम , जब सामने इतनी खूबसूरत औरत हो तो दिलचस्पी खुद ब खुद बढ़ जाती है।, वैसे (सीरियस होके) मेरा नाम अभय है। अच्छा लगा आपसे मिलकर संध्या जी।"

ये नाम सुनते ही, पीछे बैठी ललिता और मालती फटक से दरवाजा खोलते हुए गाड़ी से नीचे उतर जाति है। और बहार खड़े अभि को देखने लगती है। संध्या की तो मानो जुबान ही अटक गई हो, गला सुख चला। तीनो के चहरे की हवाइयां उड़ चुकी थी, और संध्या का चेहरा तो देखन लायक था , इस कदर के भाव चेहरे पर थे किं शब्दों में बयां करना नामुमकिन था।

अभय –(मन में) अभि तो शुरुवात है मेरी ठाकुराइन आगे ऐसे ऐसे झटके दूंगा सबको की, झटको को भी झटका लग जायेगा।

अभय --"क्या बात है मैडम, कब से देख रहा हूं,बोल कुछ नही रही हो, सिर्फ गिरगिट की तरह चेहरे के रंग बदल रही हो बस। लगता है इस चीज में महारत हासिल है आपको

संध्या सच में गहरी सोच में पड़ गई थी, वो कुछ समझ नहीं पा रही थी , उसका सिर भी दुखने लगा था। वो कार के अंदर बैठी होश में आते हुए बोली...

संध्या --"आ जाओ बैठो , मैं तुम्हे...हॉस्टल तक छोड़ देती हूं।"

अभय --"ये हुई न काम की बात
फिर (अभय कार में बैठ जाता है)

ललिता और मालती भी सदमे में थी। तो वो भी बिना कुछ बोले कार में बैठ गई। कर हॉस्टल की तरफ चल पड़ी। संध्या चला तो रही थी कार, पर उसका ध्यान पूरा अभय पर था। वो बार बार अभय को अपनी नज़रे घुमा कर देखती । और ये बात अभय को पता थी..

अभय --"मैडम अगर मुझे देख कर हो गया हो तो, प्लीज आगे देख कर गाड़ी चलाए, नही तो अभि अभि जवानी में कदम रखा है मैने, बिना कच्छी कली तोड़े ही शहीद ना हो जाऊ,।

ये सुनकर संध्या के चेहरे पर मुस्कान फैल गई। उसके गोरे गुलाबी गाल देख कर अभय बोला...

अभि --"लगता है खूब बादाम और केसर के दूध पिया है आपने?"

संध्या --(ये सुनकर बोला) क्यूं? तुम ऐसे क्यूं बोल रहे हो"

अभि --"नही बस आपके गुलाबी गाल देख कर बोल दिया मैने, वैसे भी इतनी बड़ी जायदाद है, आपकी बादाम और केसर क्या चीज है आपके लिए।"

संध्या --(अभय की बात सुनकर कुछ सोचते हुए बोली) क्यूं क्या तुम्हारी मां तुम्हे बादाम के दूध नही पिलाती है क्या?"

अभय –(ये सुन कर जोर से हंसने लगा) हाहाहाहाहा हाहाहाहाहा कॉन जन्म देने वाली मां हाहाहाहाहा

संध्या --(अभय को इस तरह हंसता देख संध्या आश्चर्य के भाव में बोली) क्या हुआ कुछ गलत पूंछ लिया क्या और मैं कुछ समझी नहीं, जन्म देने वाली तो मां ही होती है।"

अभि --"इसी लिए आपको बि ए कि डिग्री के लिए नकल करना पड़ा था। मैडम, खैर छोड़ो वो सब , तुम जन्म देने वाली मां की बात कर रही थी ना। तो बात ये है की अगर मेरी मां का बस चलता तो बादाम और केसर वाली दूध की जगह जहर वालीं दूध दे देती। थोड़ा समय लगा पर मैं समझ गया था (गुस्से में) इस लिए तो मैं अपनी मां को ही छोड़ कर भाग गया था घर से

संध्या --(झटके से कार को ब्रेक लगा के बोली) अपनी मां को छोड़ कर भाग गए तुम लेकिन ये... ये ...ये भी तो हो सकता है की तुम्हे अपनी मां को समझने में भूल हुई हो।"

अभय–(संध्या की बात सुनकर, मन ही मन मुस्कुरा के) बिल्कुल सही लगा मेरा दाव बस एक और दाव और फिर गुस्से में बोला) पहेली बार सुन रहा हूं की, एक बच्चे को भी अपनी मां को समझना पड़ता है , तुम्हे इतनी भी अकल नही है की मां बेटे का प्यार पहले से ही समझा समझाया होता है।"

अभय –(कहते हुए जब संध्या की तरफ देखा तो उसकी आंखो से आसुओं किंधरा फुट रही थी। ये देख कर अभय हैरान हुआ और मन में बोला) ये तो सच में रोती है यार

संध्या – अगर तुम्हे बुरा ना लगे तो कुछ पूछ सकती हूं

अभय --"नही, कुछ मत पूछो, तुमने ऑलरेडी ऐसे सवाल पूछ कर हद पार कर दी है। मैं यह पढ़ने आया हूं, और मै नही चाहता की मेरा दिमाग फालतू की बात में उलझे।"


संध्या – नही मैं ये कहना चाहती थी की, अगर तुम्हे हॉस्टल में तकलीफ हो तो , मेरे साथ रह सकते हो।"

अभय --"जब 9 साल की उम्र में घर छोड़ा था , तब तकलीफ नहीं हुई तो अब क्या होगी? तकलीफों से लड़ना आता है मुझे मैडम मैं दो रोटी में ही खुश हु, आपकी हवेली के बादाम और केसर के दूध मुझे नही पचेगा। और वैसे भी तुम्हारा कोई बेटा नहीं है क्या? उसे खिलाओ पराठे देसी घी के भर भर के ।"

संध्या खुद खुद को संभाल नहीं पाई और कार से रोते हुए बाहर निकल जाति है...

ये देख कर अभय भी गुस्से में अपना बैग उठता है और कर से बाहर निकल कर अपने हॉस्टल की तरफ चल पड़ता है, अभय को बाहर जाते देख, खामोश बैठी मालती की भी आंखो में आसुओं की बारिश हो रही थी, वो बस अभय को जाते हुए देखती रहती है.....

पर अभय एक बार भी पीछे मुड़ कर नहीं देखता...
.
.
.
जारी रहेगा ✍️✍️
साथ में एक रिक्वेस्ट है सबसे की प्लीज अब कोई भी जल्दी अपडेट देने की बात मत करना क्यों की कल मॉर्निंग से मैं काम।में बिजी हो जाएगा
अभी मैं 3 से 4 दिन के लिए फ्री था इसलिए कंटीन्यू अपडेट दिया मैने
.
अपडेट आएगा लेकिन 2 से 3 दिन में
 

Rahul Chauhan

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UPDATE 8


वो लड़का रास्ते पर चलते चलते गांव को देखने लगा

लड़का – आज भी वही खुशबू जो बरसों पहले आया करती थी खेतो की वही सड़क वही आम का बगीचा कुछ भी नही बदला सिवाय इस सेल फोन टावर के सिवा कुछ भी नया नहीं है यहां जाने मेरे अपने मुझे आज भी पहचान पाएंगे की नही (मुस्कुराते हुए रास्ते पर चलने लगा चलते हुए कई जगहों से गुजरा जहा उसने देखा खेल कूद का मैदान को देख मुस्कुराते हुए आगे बड़ा और फिर आई नदी जिसे देख हसने लगा)

अंत में सड़क के तीन मोहाने पर पहुंच कर उसके सामने अमरूद का बड़ा सा बगीचा नजर आया उसे देखते ही उसने अपना बैग सड़क पे रख दिया और पेड़ के सामने जाके खड़ा होगया उस पेड़ पे हाथ रख के जैसे कुछ याद करने लगा और तभी उसकी नीली आखों से आसू की एक बूंद निकल आई

लड़का – (हल्की मुस्कुराहट के साथ) बहुत पुराना याराना है तुझसे मेरा बरसों के बाद भी भूले से भी नही भूला मैं तुझे (इतना बोलते ही जाने कैसा गुस्सा आया उसने तुरंत एक पंच उस पेड़ में मार दिया पांच पड़ते ही पेड़ में हल्की दरार आगयी साथ ही उस लड़के को भी हाथ में खरोच लग गई उसके बाद वो लड़का वापस आया रास्ते की तरफ आते ही झुक के जैसे ही अपना बैग उठाया तभी पीछे से कार के हॉर्न के आवाज आई जिसे सुन के

लड़का –(हस्ते हुए) आ गई मेरी ठकुराइन (बोल के कार की तरफ पलट गया)

जी हा ये कार संध्या ठाकुर की थी जो इस वक्त ललिता और मालती के साथ हवेली को लौट रही थी

वो लड़का अपने कदम उस कार की तरफ बढ़ाते हुए नजदीक पहुंचा। और कार के कांच को अपनी हाथ की उंगलियों से खटखटाया कांच निचे होते ही उसके कानो में एक आवाज गूंजी...

संध्या –"कौन हो तुम? कहा जाना है तुम्हे?

और तभी संध्या उस लड़के की नीले आखों को गौर से देखने लगी संध्या उसकी आखों को खो सी गई थी की तभी

मालती – कौन है दीदी?"

एक और आवाज ने उस लड़के के कानो पर दस्तक दी। वो देख तो नहीं सका की किसकी आवाज है, पर आवाज से जरूर पहेचान गया था की ये आवाज किसकी है। पर इससे भी उस लड़के को कोइ फर्क नही पड़ा।

संध्या --"एक लड़का है, कहा जाना है तुम्हे? नए लगते हो इस गांव में

लड़का –(संध्या की बात सुन मुस्कुरा के बोला) मुझे तो आप नई लगती है इस गांव में मैडम नही तो मुझे जरूर पहेचान लेती। मैं तो पुराना चावल हूं इस गांव का। और आप... आप तो इस गांव की बदचलन...आ...मेरा मतलब बहुत ही उच्च हस्ती की ठाकुराइन है। हजारों एकड़ की जमीन है। और आपका नाम मिस संध्या सिंह है। जो बी ए तक की पढ़ाई की है, और वो भी नकल कर कर के पास हुई है। नकल करने वाला कोई और नहीं बल्कि आपके पतिदेव ठाकुर मनन सिंह जी थे। क्या इतना काफी है मेरे गांव का पुराना चावल होने का की कुछ और भी बताऊं।"

संध्या के कान में ऐसी फड़फड़ाती हुई जैसे चिड़िया उड़ गई हो और मुंह खुला का खुला साथ ही आंखो और चेहरे पर आश्चर्य के भाव वो आंखे फाड़े लड़के को बस देखती रह गई...और उस लड़के ने जब संध्या के भाव देखे तो, उसने कांच के अंदर हाथ बढ़ाते हुए संध्या के आंखो के सामने ले जाकर एक चुटकी बजाते हुए...

लड़का --"कहा खो गई आप मैडम? आपने कहीं सच तो नही मान लिया? ये मेरी आदत है यूं अजनबियों से मजाक करने की।"

संध्या होश में तो जरूर आती है, पर अभी भी वो सदमे में थी में थी। पीछे सीट पर बैठी मालती, ललिता का भी कुछ यूं ही हाल था। तीनो को समझ में नहीं आ रहा था की, ये सारी बाते इस लड़के को कैसे मालूम? और ऊपर से कह रहा है की ये मजाक था। संध्या का दिमाग काम करना बंद हो गया था,।

संध्या --" ये...ये तुम मजाक कर ...कर रहे थे?

लड़का --(मन ही मन गुस्से के साथ होठो से मुस्कुरा कर बोला) मैडम कुछ समझा नहीं, आप क्या बोल रही है? वर्ड रिपीट मत करिए, और फिल्मों के जैसा डायलॉग तो मत ही बोलिए, साफ साफ स्पष्ट शब्दों में पूछिए।"

संध्या --"मैं कह रही थी की, क्या तुम सच में मजाक कर रहे थे?"

लड़का --"मैं तो मजाक ही कर रहा था, मगर अक्सर मेरे जानने वाले लोग कहते है की , मेरा मजाक अक्सर सच होता है।"

संध्या , ललिता और मालती अभि भी सदमे में थे। तीनो लड़के के चेहरे को गौर से देख रही थी, पर कुछ समझ नहीं पा रही थी। बस किसी मूर्ति की तरह एकटक लड़के को देखे जा रही थी।

लड़का --"मुझे देख कर हो गया हो तो, कृपया आप मुझे ये बताएंगी की , ठाकुर परम सिंह इंटरमीडिएट कॉलेज के लिए कौन सा रास्ते पर जाना होगा?"

तिनों के चेहरे के रंग उड़े हुए थे, पर तभी संध्या ने पूछा...

संध्या --"नए स्टूडेंट हो ?"

लड़का – (मुस्कुरा के) ये कोई टूरिस्ट प्लेस तो है नही जो कंधे पर बैग रख कर घूमने आ जायेगा कोई।" जाहिर सी बात है मैडम आज से कॉलेज स्टार्ट हुए है तो, इस गांव में स्टूडेंट ही आयेंगे ना।


संध्या --"बाते काफी दिलचस्प करते हो।"

लड़का --"अब क्या करू मैडम , जब सामने इतनी खूबसूरत औरत हो तो दिलचस्पी खुद ब खुद बढ़ जाती है।, वैसे (सीरियस होके) मेरा नाम अभय है। अच्छा लगा आपसे मिलकर संध्या जी।"

ये नाम सुनते ही, पीछे बैठी ललिता और मालती फटक से दरवाजा खोलते हुए गाड़ी से नीचे उतर जाति है। और बहार खड़े अभि को देखने लगती है। संध्या की तो मानो जुबान ही अटक गई हो, गला सुख चला। तीनो के चहरे की हवाइयां उड़ चुकी थी, और संध्या का चेहरा तो देखन लायक था , इस कदर के भाव चेहरे पर थे किं शब्दों में बयां करना नामुमकिन था।

अभय –(मन में) अभि तो शुरुवात है मेरी ठाकुराइन आगे ऐसे ऐसे झटके दूंगा सबको की, झटको को भी झटका लग जायेगा।

अभय --"क्या बात है मैडम, कब से देख रहा हूं,बोल कुछ नही रही हो, सिर्फ गिरगिट की तरह चेहरे के रंग बदल रही हो बस। लगता है इस चीज में महारत हासिल है आपको

संध्या सच में गहरी सोच में पड़ गई थी, वो कुछ समझ नहीं पा रही थी , उसका सिर भी दुखने लगा था। वो कार के अंदर बैठी होश में आते हुए बोली...

संध्या --"आ जाओ बैठो , मैं तुम्हे...हॉस्टल तक छोड़ देती हूं।"

अभय --"ये हुई न काम की बात
फिर (अभय कार में बैठ जाता है)

ललिता और मालती भी सदमे में थी। तो वो भी बिना कुछ बोले कार में बैठ गई। कर हॉस्टल की तरफ चल पड़ी। संध्या चला तो रही थी कार, पर उसका ध्यान पूरा अभय पर था। वो बार बार अभय को अपनी नज़रे घुमा कर देखती । और ये बात अभय को पता थी..

अभय --"मैडम अगर मुझे देख कर हो गया हो तो, प्लीज आगे देख कर गाड़ी चलाए, नही तो अभि अभि जवानी में कदम रखा है मैने, बिना कच्छी कली तोड़े ही शहीद ना हो जाऊ,।

ये सुनकर संध्या के चेहरे पर मुस्कान फैल गई। उसके गोरे गुलाबी गाल देख कर अभय बोला...

अभि --"लगता है खूब बादाम और केसर के दूध पिया है आपने?"

संध्या --(ये सुनकर बोला) क्यूं? तुम ऐसे क्यूं बोल रहे हो"

अभि --"नही बस आपके गुलाबी गाल देख कर बोल दिया मैने, वैसे भी इतनी बड़ी जायदाद है, आपकी बादाम और केसर क्या चीज है आपके लिए।"

संध्या --(अभय की बात सुनकर कुछ सोचते हुए बोली) क्यूं क्या तुम्हारी मां तुम्हे बादाम के दूध नही पिलाती है क्या?"

अभय –(ये सुन कर जोर से हंसने लगा) हाहाहाहाहा हाहाहाहाहा कॉन जन्म देने वाली मां हाहाहाहाहा

संध्या --(अभय को इस तरह हंसता देख संध्या आश्चर्य के भाव में बोली) क्या हुआ कुछ गलत पूंछ लिया क्या और मैं कुछ समझी नहीं, जन्म देने वाली तो मां ही होती है।"

अभि --"इसी लिए आपको बि ए कि डिग्री के लिए नकल करना पड़ा था। मैडम, खैर छोड़ो वो सब , तुम जन्म देने वाली मां की बात कर रही थी ना। तो बात ये है की अगर मेरी मां का बस चलता तो बादाम और केसर वाली दूध की जगह जहर वालीं दूध दे देती। थोड़ा समय लगा पर मैं समझ गया था (गुस्से में) इस लिए तो मैं अपनी मां को ही छोड़ कर भाग गया था घर से

संध्या --(झटके से कार को ब्रेक लगा के बोली) अपनी मां को छोड़ कर भाग गए तुम लेकिन ये... ये ...ये भी तो हो सकता है की तुम्हे अपनी मां को समझने में भूल हुई हो।"

अभय–(संध्या की बात सुनकर, मन ही मन मुस्कुरा के) बिल्कुल सही लगा मेरा दाव बस एक और दाव और फिर गुस्से में बोला) पहेली बार सुन रहा हूं की, एक बच्चे को भी अपनी मां को समझना पड़ता है , तुम्हे इतनी भी अकल नही है की मां बेटे का प्यार पहले से ही समझा समझाया होता है।"

अभय –(कहते हुए जब संध्या की तरफ देखा तो उसकी आंखो से आसुओं किंधरा फुट रही थी। ये देख कर अभय हैरान हुआ और मन में बोला) ये तो सच में रोती है यार

संध्या – अगर तुम्हे बुरा ना लगे तो कुछ पूछ सकती हूं

अभय --"नही, कुछ मत पूछो, तुमने ऑलरेडी ऐसे सवाल पूछ कर हद पार कर दी है। मैं यह पढ़ने आया हूं, और मै नही चाहता की मेरा दिमाग फालतू की बात में उलझे।"


संध्या – नही मैं ये कहना चाहती थी की, अगर तुम्हे हॉस्टल में तकलीफ हो तो , मेरे साथ रह सकते हो।"

अभय --"जब 9 साल की उम्र में घर छोड़ा था , तब तकलीफ नहीं हुई तो अब क्या होगी? तकलीफों से लड़ना आता है मुझे मैडम मैं दो रोटी में ही खुश हु, आपकी हवेली के बादाम और केसर के दूध मुझे नही पचेगा। और वैसे भी तुम्हारा कोई बेटा नहीं है क्या? उसे खिलाओ पराठे देसी घी के भर भर के ।"

संध्या खुद खुद को संभाल नहीं पाई और कार से रोते हुए बाहर निकल जाति है...

ये देख कर अभय भी गुस्से में अपना बैग उठता है और कर से बाहर निकल कर अपने हॉस्टल की तरफ चल पड़ता है, अभय को बाहर जाते देख, खामोश बैठी मालती की भी आंखो में आसुओं की बारिश हो रही थी, वो बस अभय को जाते हुए देखती रहती है.....

पर अभय एक बार भी पीछे मुड़ कर नहीं देखता...
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जारी रहेगा ✍️✍️
साथ में एक रिक्वेस्ट है सबसे की प्लीज अब कोई भी जल्दी अपडेट देने की बात मत करना क्यों की कल मॉर्निंग से मैं काम।में बिजी हो जाएगा
अभी मैं 3 से 4 दिन के लिए फ्री था इसलिए कंटीन्यू अपडेट दिया मैने
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अपडेट आएगा लेकिन 2 से 3 दिन में
BAhut hi shandaar update bhai
Mast shock diya Abhay ne Sandhya ko aur malti kyu to rhi hai use kab se hamdardi thi Abhay ko ,
Per ab to to teeno ( sandhya ,malti aur Lalita ko )

Khair dekhte hai aage kya kya shock deta shock deta hai Sandhya ko Abhay

Koi baat nhi bhai wait ker lenge 2 din tak next update ke liye 😂
 

parkas

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UPDATE 8


वो लड़का रास्ते पर चलते चलते गांव को देखने लगा

लड़का – आज भी वही खुशबू जो बरसों पहले आया करती थी खेतो की वही सड़क वही आम का बगीचा कुछ भी नही बदला सिवाय इस सेल फोन टावर के सिवा कुछ भी नया नहीं है यहां जाने मेरे अपने मुझे आज भी पहचान पाएंगे की नही (मुस्कुराते हुए रास्ते पर चलने लगा चलते हुए कई जगहों से गुजरा जहा उसने देखा खेल कूद का मैदान को देख मुस्कुराते हुए आगे बड़ा और फिर आई नदी जिसे देख हसने लगा)

अंत में सड़क के तीन मोहाने पर पहुंच कर उसके सामने अमरूद का बड़ा सा बगीचा नजर आया उसे देखते ही उसने अपना बैग सड़क पे रख दिया और पेड़ के सामने जाके खड़ा होगया उस पेड़ पे हाथ रख के जैसे कुछ याद करने लगा और तभी उसकी नीली आखों से आसू की एक बूंद निकल आई

लड़का – (हल्की मुस्कुराहट के साथ) बहुत पुराना याराना है तुझसे मेरा बरसों के बाद भी भूले से भी नही भूला मैं तुझे (इतना बोलते ही जाने कैसा गुस्सा आया उसने तुरंत एक पंच उस पेड़ में मार दिया पांच पड़ते ही पेड़ में हल्की दरार आगयी साथ ही उस लड़के को भी हाथ में खरोच लग गई उसके बाद वो लड़का वापस आया रास्ते की तरफ आते ही झुक के जैसे ही अपना बैग उठाया तभी पीछे से कार के हॉर्न के आवाज आई जिसे सुन के

लड़का –(हस्ते हुए) आ गई मेरी ठकुराइन (बोल के कार की तरफ पलट गया)

जी हा ये कार संध्या ठाकुर की थी जो इस वक्त ललिता और मालती के साथ हवेली को लौट रही थी

वो लड़का अपने कदम उस कार की तरफ बढ़ाते हुए नजदीक पहुंचा। और कार के कांच को अपनी हाथ की उंगलियों से खटखटाया कांच निचे होते ही उसके कानो में एक आवाज गूंजी...

संध्या –"कौन हो तुम? कहा जाना है तुम्हे?

और तभी संध्या उस लड़के की नीले आखों को गौर से देखने लगी संध्या उसकी आखों को खो सी गई थी की तभी

मालती – कौन है दीदी?"

एक और आवाज ने उस लड़के के कानो पर दस्तक दी। वो देख तो नहीं सका की किसकी आवाज है, पर आवाज से जरूर पहेचान गया था की ये आवाज किसकी है। पर इससे भी उस लड़के को कोइ फर्क नही पड़ा।

संध्या --"एक लड़का है, कहा जाना है तुम्हे? नए लगते हो इस गांव में

लड़का –(संध्या की बात सुन मुस्कुरा के बोला) मुझे तो आप नई लगती है इस गांव में मैडम नही तो मुझे जरूर पहेचान लेती। मैं तो पुराना चावल हूं इस गांव का। और आप... आप तो इस गांव की बदचलन...आ...मेरा मतलब बहुत ही उच्च हस्ती की ठाकुराइन है। हजारों एकड़ की जमीन है। और आपका नाम मिस संध्या सिंह है। जो बी ए तक की पढ़ाई की है, और वो भी नकल कर कर के पास हुई है। नकल करने वाला कोई और नहीं बल्कि आपके पतिदेव ठाकुर मनन सिंह जी थे। क्या इतना काफी है मेरे गांव का पुराना चावल होने का की कुछ और भी बताऊं।"

संध्या के कान में ऐसी फड़फड़ाती हुई जैसे चिड़िया उड़ गई हो और मुंह खुला का खुला साथ ही आंखो और चेहरे पर आश्चर्य के भाव वो आंखे फाड़े लड़के को बस देखती रह गई...और उस लड़के ने जब संध्या के भाव देखे तो, उसने कांच के अंदर हाथ बढ़ाते हुए संध्या के आंखो के सामने ले जाकर एक चुटकी बजाते हुए...

लड़का --"कहा खो गई आप मैडम? आपने कहीं सच तो नही मान लिया? ये मेरी आदत है यूं अजनबियों से मजाक करने की।"

संध्या होश में तो जरूर आती है, पर अभी भी वो सदमे में थी में थी। पीछे सीट पर बैठी मालती, ललिता का भी कुछ यूं ही हाल था। तीनो को समझ में नहीं आ रहा था की, ये सारी बाते इस लड़के को कैसे मालूम? और ऊपर से कह रहा है की ये मजाक था। संध्या का दिमाग काम करना बंद हो गया था,।

संध्या --" ये...ये तुम मजाक कर ...कर रहे थे?

लड़का --(मन ही मन गुस्से के साथ होठो से मुस्कुरा कर बोला) मैडम कुछ समझा नहीं, आप क्या बोल रही है? वर्ड रिपीट मत करिए, और फिल्मों के जैसा डायलॉग तो मत ही बोलिए, साफ साफ स्पष्ट शब्दों में पूछिए।"

संध्या --"मैं कह रही थी की, क्या तुम सच में मजाक कर रहे थे?"

लड़का --"मैं तो मजाक ही कर रहा था, मगर अक्सर मेरे जानने वाले लोग कहते है की , मेरा मजाक अक्सर सच होता है।"

संध्या , ललिता और मालती अभि भी सदमे में थे। तीनो लड़के के चेहरे को गौर से देख रही थी, पर कुछ समझ नहीं पा रही थी। बस किसी मूर्ति की तरह एकटक लड़के को देखे जा रही थी।

लड़का --"मुझे देख कर हो गया हो तो, कृपया आप मुझे ये बताएंगी की , ठाकुर परम सिंह इंटरमीडिएट कॉलेज के लिए कौन सा रास्ते पर जाना होगा?"

तिनों के चेहरे के रंग उड़े हुए थे, पर तभी संध्या ने पूछा...

संध्या --"नए स्टूडेंट हो ?"

लड़का – (मुस्कुरा के) ये कोई टूरिस्ट प्लेस तो है नही जो कंधे पर बैग रख कर घूमने आ जायेगा कोई।" जाहिर सी बात है मैडम आज से कॉलेज स्टार्ट हुए है तो, इस गांव में स्टूडेंट ही आयेंगे ना।


संध्या --"बाते काफी दिलचस्प करते हो।"

लड़का --"अब क्या करू मैडम , जब सामने इतनी खूबसूरत औरत हो तो दिलचस्पी खुद ब खुद बढ़ जाती है।, वैसे (सीरियस होके) मेरा नाम अभय है। अच्छा लगा आपसे मिलकर संध्या जी।"

ये नाम सुनते ही, पीछे बैठी ललिता और मालती फटक से दरवाजा खोलते हुए गाड़ी से नीचे उतर जाति है। और बहार खड़े अभि को देखने लगती है। संध्या की तो मानो जुबान ही अटक गई हो, गला सुख चला। तीनो के चहरे की हवाइयां उड़ चुकी थी, और संध्या का चेहरा तो देखन लायक था , इस कदर के भाव चेहरे पर थे किं शब्दों में बयां करना नामुमकिन था।

अभय –(मन में) अभि तो शुरुवात है मेरी ठाकुराइन आगे ऐसे ऐसे झटके दूंगा सबको की, झटको को भी झटका लग जायेगा।

अभय --"क्या बात है मैडम, कब से देख रहा हूं,बोल कुछ नही रही हो, सिर्फ गिरगिट की तरह चेहरे के रंग बदल रही हो बस। लगता है इस चीज में महारत हासिल है आपको

संध्या सच में गहरी सोच में पड़ गई थी, वो कुछ समझ नहीं पा रही थी , उसका सिर भी दुखने लगा था। वो कार के अंदर बैठी होश में आते हुए बोली...

संध्या --"आ जाओ बैठो , मैं तुम्हे...हॉस्टल तक छोड़ देती हूं।"

अभय --"ये हुई न काम की बात
फिर (अभय कार में बैठ जाता है)

ललिता और मालती भी सदमे में थी। तो वो भी बिना कुछ बोले कार में बैठ गई। कर हॉस्टल की तरफ चल पड़ी। संध्या चला तो रही थी कार, पर उसका ध्यान पूरा अभय पर था। वो बार बार अभय को अपनी नज़रे घुमा कर देखती । और ये बात अभय को पता थी..

अभय --"मैडम अगर मुझे देख कर हो गया हो तो, प्लीज आगे देख कर गाड़ी चलाए, नही तो अभि अभि जवानी में कदम रखा है मैने, बिना कच्छी कली तोड़े ही शहीद ना हो जाऊ,।

ये सुनकर संध्या के चेहरे पर मुस्कान फैल गई। उसके गोरे गुलाबी गाल देख कर अभय बोला...

अभि --"लगता है खूब बादाम और केसर के दूध पिया है आपने?"

संध्या --(ये सुनकर बोला) क्यूं? तुम ऐसे क्यूं बोल रहे हो"

अभि --"नही बस आपके गुलाबी गाल देख कर बोल दिया मैने, वैसे भी इतनी बड़ी जायदाद है, आपकी बादाम और केसर क्या चीज है आपके लिए।"

संध्या --(अभय की बात सुनकर कुछ सोचते हुए बोली) क्यूं क्या तुम्हारी मां तुम्हे बादाम के दूध नही पिलाती है क्या?"

अभय –(ये सुन कर जोर से हंसने लगा) हाहाहाहाहा हाहाहाहाहा कॉन जन्म देने वाली मां हाहाहाहाहा

संध्या --(अभय को इस तरह हंसता देख संध्या आश्चर्य के भाव में बोली) क्या हुआ कुछ गलत पूंछ लिया क्या और मैं कुछ समझी नहीं, जन्म देने वाली तो मां ही होती है।"

अभि --"इसी लिए आपको बि ए कि डिग्री के लिए नकल करना पड़ा था। मैडम, खैर छोड़ो वो सब , तुम जन्म देने वाली मां की बात कर रही थी ना। तो बात ये है की अगर मेरी मां का बस चलता तो बादाम और केसर वाली दूध की जगह जहर वालीं दूध दे देती। थोड़ा समय लगा पर मैं समझ गया था (गुस्से में) इस लिए तो मैं अपनी मां को ही छोड़ कर भाग गया था घर से

संध्या --(झटके से कार को ब्रेक लगा के बोली) अपनी मां को छोड़ कर भाग गए तुम लेकिन ये... ये ...ये भी तो हो सकता है की तुम्हे अपनी मां को समझने में भूल हुई हो।"

अभय–(संध्या की बात सुनकर, मन ही मन मुस्कुरा के) बिल्कुल सही लगा मेरा दाव बस एक और दाव और फिर गुस्से में बोला) पहेली बार सुन रहा हूं की, एक बच्चे को भी अपनी मां को समझना पड़ता है , तुम्हे इतनी भी अकल नही है की मां बेटे का प्यार पहले से ही समझा समझाया होता है।"

अभय –(कहते हुए जब संध्या की तरफ देखा तो उसकी आंखो से आसुओं किंधरा फुट रही थी। ये देख कर अभय हैरान हुआ और मन में बोला) ये तो सच में रोती है यार

संध्या – अगर तुम्हे बुरा ना लगे तो कुछ पूछ सकती हूं

अभय --"नही, कुछ मत पूछो, तुमने ऑलरेडी ऐसे सवाल पूछ कर हद पार कर दी है। मैं यह पढ़ने आया हूं, और मै नही चाहता की मेरा दिमाग फालतू की बात में उलझे।"


संध्या – नही मैं ये कहना चाहती थी की, अगर तुम्हे हॉस्टल में तकलीफ हो तो , मेरे साथ रह सकते हो।"

अभय --"जब 9 साल की उम्र में घर छोड़ा था , तब तकलीफ नहीं हुई तो अब क्या होगी? तकलीफों से लड़ना आता है मुझे मैडम मैं दो रोटी में ही खुश हु, आपकी हवेली के बादाम और केसर के दूध मुझे नही पचेगा। और वैसे भी तुम्हारा कोई बेटा नहीं है क्या? उसे खिलाओ पराठे देसी घी के भर भर के ।"

संध्या खुद खुद को संभाल नहीं पाई और कार से रोते हुए बाहर निकल जाति है...

ये देख कर अभय भी गुस्से में अपना बैग उठता है और कर से बाहर निकल कर अपने हॉस्टल की तरफ चल पड़ता है, अभय को बाहर जाते देख, खामोश बैठी मालती की भी आंखो में आसुओं की बारिश हो रही थी, वो बस अभय को जाते हुए देखती रहती है.....

पर अभय एक बार भी पीछे मुड़ कर नहीं देखता...
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जारी रहेगा ✍️✍️
साथ में एक रिक्वेस्ट है सबसे की प्लीज अब कोई भी जल्दी अपडेट देने की बात मत करना क्यों की कल मॉर्निंग से मैं काम।में बिजी हो जाएगा
अभी मैं 3 से 4 दिन के लिए फ्री था इसलिए कंटीन्यू अपडेट दिया मैने
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अपडेट आएगा लेकिन 2 से 3 दिन में
Bahut hi shaandar update diya hai DEVIL MAXIMUM bhai....
Nice and awesome update....
 
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