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UPDATE 11 | UPDATE 12 | UPDATE 13 | UPDATE 14 | UPDATE 15 | UPDATE 16 | UPDATE 20 |
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Superb update
नए साल का पहला जाम आपके नाम
HAPPY NEW YEAR FRIENDS....
UPDATE 53
ललिता – (कमरे में आते हुए) क्या बाते चल रही है दोनो में....
अभय –(ललिता को कमरे में आते देख के) कुछ नहीं चाची मै पूछ रहा था मा से अपने बारे में बताएं कुछ लेकिन देखो बताने से पहले ही जाने क्यों आंसू आ गए इनके आखों में भला ऐसा भी होता है क्या बात बात में आखों में आसू आ जाते है ईनके....
ललिता –(अभय के सिर में हाथ फेर के) दस साल तक तेरे बिना कैसे रही है दीदी या तो दीदी जानती है या सिर्फ हवेली के लोग उसी बात को याद करके आसू तो आएंगे लल्ला....
अभय – अब तो आ गया हूँ ना मै चाची अब क्या डरना मै कौन सा कही जाने वाला हु अब....
ललिता – (मुस्कुरा के) बाते बनाने में तू एक कदम आगे है लल्ला (संध्या से) बता दो दीदी कब तक अपने मन में दबा के रखोगे बात को बता दो आप लल्ला को जानने का हक है पूरा....
इसके बाद संध्या ने अपना बीता कल बताना शुरू किया जैसे मनन ठाकुर से मुलाकात प्रेम होना शादी होना फिर हवेली आना अपनी सास सुनैना ठाकुर से मिलना साथ ही कमल ठाकुर और सुनंदा ठाकुर के बारे में बताना साथ उनके बेटे अर्जुन के लिए बताना और फिर ठाकुर रतन के गुजरने से लेके सुनैना ठाकुर के अचानक गायब हो जाने की बात बताना साथ मनन ठाकुर के गुजरने की बात बता के रोने लगना जिसे देख....
अभय –(संध्या के आसू अपने हाथ से पोछ के) रो मत तू जाने क्यों तुझे रोता देख मेरा दिल दुखने लगता है....
संध्या – (रोते हुए अभय को गले लगा के) मुझसे मार खाते वक्त भी तू कभी कुछ नहीं बोलता था कभी अपनी सफाई नहीं देता था ताकि मेरा दिल न दुखे और मै अभागन जाने क्यों तुझपे हाथ उठा देती थी हर बार....
बोल के संध्या रो रही थी जिसे ललिता चुप कराने लगती है जिसके बाद....
अभय – (मुस्कुरा के) ये तो तेरा हक है तो मैं कैसे तेरा हक छीन लेता भला....
संध्या – (रोते हुए) काश मैने तुझसे पूछा होता तेरे से तो शायद तू हमे छोड़ के कभी नहीं जाता....
अभय – मै हवेली छोड़ के चला गया था लेकिन क्यों क्या सिर्फ तेरी मार के कारण तो नहीं हो सकता है फिर क्यों चला गया था मैं तुझे छोड़ के और कहा....
अभय का सवाल सुन संध्या के मू से शब्द नहीं निकल पा रहे थे जिसे देख ललिता ने संध्या के हाथ पे अपना हाथ रख के बोली....
ललिता – मै बताती हु लल्ला....
संध्या – (रोते हुए ललिता का हाथ दबा के) ललिता....
ललिता – बताने दो दीदी जरूरी है अभय का जानना सच को....
अभय – ऐसी क्या बात है चाची जो मां आपको रोक रही है....
ललिता – लल्ला ये जो कुछ भी हुआ सब मेरी वजह से हुआ था तेरी मां तो सिर्फ मदद कर रही थी हमारी....
अभय –(चौक के) हमारी मतलब....
ललिता – हा लल्ला हमारी मतलब मेरी और रमन की तेरे चाचा हम दोनो का घर बसा रहे इसीलिए दीदी हमारी मदद कर रही थी लेकिन उसके बदले कुछ ऐसा हुआ जो नहीं होना चाहिए था....
अभय – चाची अब पहेली मत बुझाओ आप बात क्या हुई थी बताओ आप....
ललिता – मेरा और रमन का रिश्ता कमजोर होता जा रहा था जिसका पता हवेली में किसी को नहीं था काफी वक्त से ये बंद कमरे में चल रहा था एक दिन मैं और रमन कमरे में बात करते हुए झगड़ने लगे और तभी दीदी कमरे में आ गई जिसे देख....
संध्या – (चौक के) क्या बात है रमन , ललिता तुम दोनो इस तरह झगड़ क्यों रहे हो....
रमन – कुछ नहीं भाभी इसका दिमाग खराब हो गया है जरा जरा सी बात पर झगड़ना करने की आदत हो गई है इसकी....
बोल के रमन कमरे से बाहर चला गया जिसके बाद....
संध्या – (ललिता से) क्या बात है ललिता किस लिए झगड़ रहे थे तुम दोनो हुआ क्या है....
संध्या के पूछने पर ललिता ने काफी टालने की कोशिश की आखिरी में हर कर....
ललिता – इनकी कमजोरी के कारण दीदी काफी दिन से मैं जब भी इनके साथ आगे बढ़ने को कोशिश करती हूँ जाने क्यों....
बोल के चुप हो गई ललिता जिसे देख....
संध्या – बोल न चुप क्यों हो गई तू हुआ क्या बता तो....
ललिता –(रोते हुए) दीदी जाने क्यों बिस्तर में आते ही ये मेरे साथ कुछ नहीं करते मै जब भी पूछती तो बोलते नहीं हो पा रहा है मुझसे....
बोल के ललिता रोने लगी तब संध्या उसके सिर में हाथ फेरने लगी जिसके बाद....
ललिता –(रोते हुए) दीदी अब आप ही बताओ क्या करू मैं क्या अपनी इच्छा और शरीर की प्यास को कैसे रोकूं मै और जाने क्यों इनसे कुछ हो नहीं पा रहा है मैने बोला इलाज करा लो अपना डॉक्टर से तो मुझे साफ मना कर देते है अब क्या करू मैं दीदी....
संध्या – (कुछ सोच के) तू चिंता मत कर मैं कल बात करूंगी रमन से तू अभी आराम कर....
और फिर अगले दिन गांव में खेती का काम रमन देख रहा था तब संध्या खेत की तरफ आ गई रमन को एक तरफ बुला के उससे खेत के काम के बारे में बात करने लगी और तभी बीच में संध्या ने रमन से बात छेड़ दी....
संध्या – (रमन से) क्यों झगड़ा कर रहा है तू ललिता से रमन....
रमन – (गुस्से में) तो आखिर उसने आपको बता दिया सारी बात....
संध्या – (समझाते हुए) देख रमन उसने जो कहा इसमें कोई गलत नहीं है बीवी है तेरी अपने पति से नहीं बोलेगी तो किससे बोलेगी देख रमन अगर कोई दिक्कत है तो उसका इलाज भी होता है तेरे इस तरह झगड़ने से भला क्या हासिल होगा तुझे या ललिता को....
रमन – भाभी बात ऐसी नहीं है....
संध्या – अगर बात ऐसी नहीं है तो क्या बात है....
रमन – भाभी सच तो ये है कि मैं जाने क्यों आपको इस तरह अकेला देख मुझे अच्छा नहीं लगता जब से मनन गया है तब से आपकी हसी जैसे कही खो सी गई है मैं सिर्फ आपको खुश देखना चाहता हु....
संध्या – (हैरान होके) तू कहना क्या चाहता है....
रमन – भाभी मै आपसे प्यार करने लगा हु आपके चेहरे पर पहले जैसी खुशी देखना चाहता हु....
संध्या – तू होश में तो है रमन जनता है तू क्या बोले जा रहा है....
रमन – हा भाभी मै पूरे होश में हूँ जब भी आपको इस तरह देखता हु मेरा दिल बेचैन हो जाता है दिन रात बस आपके बारे में सोचता हूँ....
संध्या – (गुस्से में) देख रमन तूने अभी तो बोल दिया ये बात दोबारा मै नहीं सुनना चाहती ये सब बात....
बोल के संध्या जाने लगी तभी रमन ने संध्या का हाथ पकड़ के....
रमन – (आंख में आसू लिए) भाभी मेरा प्यार झूठा नहीं सच्चे दिल से आपको चाहता हु मै आपको , एक बार मेरी तरफ देखो भाभी और बोल दो क्या मुझमें आपको मनन नहीं दिखता क्या मेरी आंखों में आपको मनन की तरह वो प्यार नजर नहीं आता....
संध्या – (आंख में हल्की नमी के साथ) देख रमन ऐसी बात बोल के मुझे कमजोर मत कर मनन के जाने के बाद बड़ी मुश्किल से संभाला है मैने अभय और अपने आप को (अपने आसू पोछ) मै यहां सिर्फ तेरे और ललिता के बारे में बात करने आई थी और अगर तू सच में मुझे खुश देखना चाहता है तो अच्छा रहेगा तू सिर्फ ललिता पर ध्यान दे मेरी वजह से अपनी और ललिता की जिंदगी बर्बाद मत कर....
बोल के संध्या निकल गई हवेली की तरफ हवेली में आते ही....
ललिता – (संध्या से) दीदी आपकी बात हुई रमन से....
संध्या – हा बात हुई मेरी....
ललिता – इलाज कराने को मान गए वो....
संध्या – ललिता ऐसी कोई बात नहीं है....
फिर रमन के साथ हुई सारी बात बता के....
संध्या – फिलहाल मैने उसे समझा दिया है अब तू भी इस बात को आगे मत बढ़ाना मै नहीं चाहती मेरे वजह से तुम दोनो की जिंदगी में कोई दिक्कत आए....
ललिता – (अभय से) उसके बाद मुझे लगा सब ठीक हो जाएगा लेकिन शायद ऐसा सोचना वहम था मेरा क्योंकि रमन को समझाने पर भी उसमें कोई भी फर्क नहीं आया बल्कि रमन उसके बाद से किसी न किसी बहाने से दीदी के साथ कभी खेती, कभी मजदूरों की मजदूरी को लेके चर्चा करता था जिसमें अच्छा खासा वक्त रमन बिताने लगा था दीदी के साथ कई बार दीदी ने उसे बीच में इस बारे में बात छेड़ी लेकिन रमन काम की बात आगे कर के टाल देता था और फिर इस बीच रमन ने एक खेल खेलना शुरू किया....
अभय – कौन सा खेल और किसके साथ चाची....
ललिता – (अभय से) तेरे साथ खेल खेलना शुरू किया था रमन ने....
अभय – मेरे साथ मै कुछ समझा नहीं....
ललिता – रमन हर बार कुछ न कुछ कांड करता जिस वजह से तुझे मार खाने को मिलती दीदी (संध्या) से जब इससे भी उसका मन नहीं भरा तो अमन को भी इसमें शामिल कर लिया जिस वजह से हर रोज किसी न किसी शिकायत से दीदी (संध्या) को गुस्सा आजाता जिस वजह से दीदी तुझे डांटती, मारती ये सब करके रमन तेरे अन्दर नफरत भरने लगा था दीदी (संध्या) के लिए जिस वजह से तू नफरत करने लगे दीदी से और फिर आई वो मनहूस रात जिसके बाद सब कुछ बदल गया....
अभय – (चौक के) मतलब क्या हुआ था उस रात को....
ललिता – (बात को याद करते हुए) मुझे ज्यादा कुछ खास याद नहीं लेकिन इतना याद है उस रात हम सब खाना साथ में खा रहे थे तब दीदी ने रमन और मुझे खाने के बाद अपने कमरे में आने को बोला था ताकि रमन से खेती के खाता बही बनाने के बारे में बात करने के बाद हम दोनों की समस्या दूर हुई या नहीं उस बारे में बात करे , खाने के बाद आखिर में मैने दूध पीने के बाद अपने कमरे में आई कपड़े बदलने जिसके बाद जाने क्यों मेरी आंखे भारी होने लगी और अपने बेड में लेट गई फिर क्या हुआ मुझे नहीं पता जब मैं जागी तब मै कमरे में थी उठ के कमरे का दरवाजा खोल के देखा तब रमन दीदी (संध्या) के कमरे से बाहर निकल रहा था तब मेरे पास आते ही मुस्कुरा के दरवाजा बंद कर मेरा हाथ पकड़ के बिस्तर में ले आया इस बात से मै बहुत खुश हो गई बेड में आते ही....
रमन – (ललिता की सारी खोलते हुए) आज मेरी मुराद पूरी हुई....
ललिता – अच्छा ऐसी क्या बात है मुझे भी बताओ....
रमन – (मुस्कुरा के) अभी अभी मै भोग लगा के आ रहा हूँ संध्या का सच में क्या मस्त मॉल है मजा आ गया....
ललिता – (आंख बड़ी करते हुए) ये क्या बकवास कर रहे हो तुम....
रमन – बकवास नहीं सच बोल रहा हूँ मैं बहुत वक्त से तमन्ना थी जो आज पूरी हो गई मेरी और जल्द ही ये तमन्ना हर रोज पूरी करूंगा मैं....
ललिता – तुम झूठ बोल रहे हो दीदी एसा हरगिज नहीं कर सकती है कभी भी....
रमन – (मुस्कुराते हुए) तेरे मानने या ना मानने से सच बदल नहीं जाएगा जल्द ही तुझे ये नजारा देखने को भी मिलेगा जब मैं संध्या को तेरे सामने इसी बिस्तर में मसलू गा हर रोज....
ललिता – (गुस्से में) तुम सच में गिरे हुए इंसान हो रमन अपनी भाभी के साथ छी शर्म नहीं आई तुम्हे ये सब करते क्या सोच रही होगी तुम्हारे बारे में और तुम....
रमन –(मुस्कुरा के) इसमें ज्यादा सोचने की जरूरत नहीं है तुम्हे , जानती है मुझे मनन समझ के मेरी बाहों में समाई हुई थी उसे लग रहा था कि मैं मनन हूँ सब कुछ भूल के बस मुझमें समा गई थी संध्या (बोल के हस्ते हुए ललिता से) वैसे भी भूलों मत वो अकेली है और कितने दिन तक अपने शरीर की प्यास को रोक के रखेगी वो है तो एक मामूली औरत ही ना आखिर , बस तू देखती जा कुछ ही दिनों के बाद संध्या और मैं एक कमरे में सोया करेंगे और उसके कुछ महीनों के बाद मेरे नाम से पेट फूला के घूमेगी....
ललिता –(गुस्से में रमन को बेड से धक्का देते हुए) हरामजादे अपनी हवस को प्यार का नाम दे रहा था तू दीदी (संध्या) की बात सुन एक पल मुझे लगा शायद दीदी (संध्या) को इस तरह देख मेरी तरह तुझे भी बुरा लगता होगा शायद इसीलिए तू अनजाने में प्यार कर बैठा दीदी (संध्या) से लेकिन नहीं तू सिर्फ हवस का पुजारी है प्यार का मतलब तक पता नहीं तुझे इससे पहले तू फिर कोई चाल चले दीदी (संध्या) के साथ मैं तेरे इस सपने को चकना चूर कर दूंगी तेरी सारी सच्चाई बता दूंगी दीदी को....
रमन – (गुस्से में ललिता की गर्दन पकड़ के) अगर गलती से भी तू मेरे बीच में आई तो याद रखना संध्या को मैं किसी ना किसी तरह कभी ना कभी पा लूंगा लेकिन तुझसे जिंदगी भर के लिए रिश्ता तोड़ दूंगा मै और बच्चों को दूर कर दूंगा वो अलग इसीलिए गलती से भी मेरे बीच में आने की सोचना भी मत समझी....
बोल के रमन , ललिता की गर्दन छोड़ के कमरे से निकल गया रमन के जाते ही ललिता खांसते हुए लंबी सास लेके रोने लगी थी....
ललिता – (रोते हुए अभय से) उस दिन सिर्फ अपने बच्चों के खातिर मै चुप रही काश एक बार हिम्मत जुटा कर मैने दीदी को सारा सच बता दिया होता तो शायद इतने साल तक रमन ने जो किया गांव वालों के साथ वो कभी ना होता....
अभय –(ललिता की सारी बात सुनने के बाद उसके आंसू पोछते हुए) मत रो चाची जो हो गया सो हो गया उन बातों के लिए रोने से क्या फायदा अब....
अभय की बात सुन हल्का मुस्कुरा के ललिता ने प्यार से अभय के गाल पर हाथ फेरा जिसके बाद....
अभय – (संध्या से) उस रात तूने रमन को खेती के खाता बही की बात के लिए बुलाया था कमरे में तब क्या हुआ था ऐसा जिस वजह से तू रमन को बाबा (मनन) समझ बैठी....
संध्या – उस रात खाने के वक्त मेरा मन नहीं कर रहा था खाने का बस आधी रोटी खाने के बाद मै तेरे कमरे में आई थी देखने लेकिन तू सोया हुआ था तुझे इस तरह भूखा सोता देख उस रात मुझे बहुत दुख हो रहा था क्योंकि मैने दिन में तुझे बहुत मार मारी थी जिस वजह से तू खाना खाने नहीं आया था अगले दिन तेरा जनम दिन था तब मैने सोच लिया था चाहे कुछ भी हो जाएं अब कभी तेरे पर हाथ नहीं उठाऊंगी सुबह हवेली को दुल्हन की तरह तैयार करवा के धूम धाम से तेरा जनम दिन मनाऊंगी लेकिन शायद किस्मत को कुछ और ही मंजूर था....
अभय – (संध्या के कंधे पर हाथ रख के) क्या हुआ था उस रात को ऐसा....
संध्या – (दूसरी तरफ अपना मू करके) अपने कमरे में आने के बाद दूध पीते हुए खाता बही देख रही थी थोड़ी देर के बाद रमन अकेले आया कमरे में तब हम खाता बही खोल के उसीकी बात करने लगे तब मैं रमन से उसके और ललिता के बारे में बात छेड़ दी जिसके बाद....
रमन – (मेरा हाथ पकड़ के) भाभी उस दिन के बाद मैने बहुत कोशिश की लेकिन मैं नहीं भूल पा रहा आपको , भाभी मै सच्चे दिल से प्यार करता हु आपको बिल्कुल वैसे ही जैसे मनन करता था मैं आपके बिना नहीं रह सकता हूँ भाभी....
संध्या – देखो रमन मैने पहले भी कहा और फिर से....
रमन – (बात को काट के बीच में) एक बार मेरी आखों में देख के बोल दो भाभी क्या इसमें आपको मनन की तरह प्यार नजर नहीं आता , क्या मुझमें आपको मनन नजर नहीं आता....
रमन की बात सुन जाने ऐसा क्या हो गया मुझे मै रमन को देखने लगी गोर से ऐसा लगा मेरे सामने मनन मेरा हाथ पकड़े बैठे है मुस्कुराते हुए और मै सब कुछ भूल के उसके गले लग गई मनन बोलते बोलते जाने कब हम बेड में आ गए इतना आगे बढ़ गए हम जिसका कोई होश नहीं था मुझे लेकिन जब होश आया मुझे तब रमन को अपने साथ पाया तब रमन भाभी बोल के मेरे ऊपर....
बोल के संध्या रोने लगी जिसे देख अभय ने कंधे पे हाथ रख अपनी तरफ संध्या को घुमाया जिसके बाद संध्या रोते हुए बिना अभय को देखे उसके गले लग के रो रही थी जिसके बाद अभय प्यार से संध्या के सिर पर हाथ फेरता रहा थोड़ी देर बाद संध्या का रोना कम हुआ तब गले से अलग कर अभय ने पानी पिलाया संध्या को जिसके बाद....
अभय – (संध्या के आसू पोछते हुए) जब ये सब हुआ तब तूने क्या किया....
संध्या – (सिसकते हुए) जब मुझे होश आया तब तक बहुत देर हो चुकी थी अपने आप पर काबू रख मैने रमन को कमरे से जाने को बोल दिया मै नहीं चाहती थी किसी को कुछ पता चले वर्ना क्या जवाब देती हवेली में सबको की मै अपने कमरे में देवर के साथ अकेले क्या कर रही थी इतनी देर रात को , बात आगे ना बड़े इसीलिए मैने चुप रहना बेहतर समझा....
बोल के संध्या चुप हो गई....
अभय – क्या हुआ चुप क्यों हो गई तू फिर क्या हुआ मेरे जनम दिन पर....
संध्या – (रोते हुए) अगले दिन निकलते ही हमारी सारी खुशियों को मेरी ही नजर लग गई....
अभय – क्या , मै कुछ समझा नहीं हुआ क्या ऐसा....
ललिता –(रोती हुई संध्या के कंधे पर हाथ रख अभय से) जिस रात ये सब हुआ तू उसी रात हवेली छोड़ के चल गया था....
अभय – लेकिन क्यों....
संध्या – (रोते हुए अभय के गले लग के) क्योंकि तूने उस रात मुझे रमन के साथ देख लिया था बेड पर....
अपनी बात बोल के संध्या सीने पे अपना सिर रख अभय के रोए जा रही थी जिसे अभय उसके सिर पर हाथ फेर चुप कराने में लगा था जिसके बाद....
संध्या – (रोते हुए अभय से) मैने जानबूझ के ये सब नहीं किया था तेरी कसम मुझे नहीं पता ये सब कैसे हो गया....
ललिता – दीदी सच बोल रही है लल्ला ये सब रमन का किया धरा है तेरे बाबा के गुजरने के बाद से ही रमन की गंदी नजर दीदी (संध्या) पर पड़ी हुई थी झूठे प्यार की बाते कर दीदी (संध्या) को पाने में लगा हुआ था....
अभय – (संध्या के आसू पोछ के) मत रो तू जो हो गया उसपर रोके क्या फायदा अच्छा ये बता मै हवेली छोड़ के कहा चला गया था....
फिर संध्या ने अभय को शालिनी और चांदनी के बारे में बात बताई कैसे उनसे मिला उनके साथ रहना शालिनी को मां मानना और चांदनी को दीदी कैसे स्कूल में शनाया से मिलना उसके बाद कैसे अभय गांव वापस आया फिर क्या हुआ ये सारी बात बताने लगी संध्या जिसके बाद....
अभय – (मुस्कुरा के) तभी जाने क्यों शालिनी जी को मां बोलने का मन होता है मुझे....
अभय के मू से ये बात सुन संध्या का चेहरा एक पल के लिए मुरझा गया जिसके बाद....
ललिता – (अभय और संध्या से) अच्छा मै चलती हूँ रात काफी हो गई है सो जाओ आप लोग सुबह मिलते है....
बोल के ललिता जाने लगी कमरे के दरवाजे तक ही आई थी कि तभी....
अभय – चाची....
ललिता – (पलट के) क्या लल्ला....
अभय – जिस रात ये सब हुआ उस रात आपकी आंखे अचानक से भारी कैसे हो गई इस बारे में आपने कभी सोचा (संध्या से) उसी रात तेरे साथ जो हुआ कैसे हुआ तुझे भी नहीं पता है क्या इस बारे में तूने कभी पता लगाया....
ललिता – तू क्या बोलना चाहता है लल्ला....
अभय – (ललिता और संध्या से) खाना खाने के बाद आप दोनो को दूध किसने दिया था....
संध्या और ललिता एक साथ – मालती ने....
अभय – तो अपने कभी चाची से जानने की कोशिश नहीं की इस बारे में....
अभय की बात सुन संध्या और ललिता जैसे जम से गए दोनो एक दूसरे को देख के दिल दिमाग में अपने आप से एक ही सवाल कर रहे थे क्या उस रात मालती ने दूध में कुछ मिला के उनको दिया था लेकिन क्यों और किस लिए दोनो को इस तरह खामोश देख....
अभय – (संध्या और ललिता से) इस सवाल का जवाब तो सिर्फ मालती चाची दे सकती है....
ललिता – (गुस्से में) अभी जाके मैं पूछती हू मालती से क्यों किया उसने ऐसा हमारे साथ....
अभय – (ललिता का हाथ पकड़ के) और आपको लगता है मालती चाची इसका जवाब तुरंत दे देगी आपको कभी नहीं चाची अगर सच में उन्होंने ये किया है तो किसी ना किसी बहाने बात को ताल देगी क्योंकि कई साल बीत चुके है इस बात को....
संध्या – तू कहना क्या चाहता है....
अभय – मालती चाची से बात जरूर होगी लेकिन अभी नहीं जब हवेली में सिर्फ हम लोग हो और कोई नहीं....
ललिता – ठीक है लल्ला (मुस्कुरा के) चल काफी रात हो चुकी है आराम से सो जा कल सुबह मिलते है....
बोल के ललिता कमरे से चली गई उसके जाते ही अभय ने दरवाजा बंद कर संध्या के पास आके बेड में लेट गया....
अभय – (संध्या को बेड में लेटाते हुए) अब ज्यादा मत सोच तू इस बारे आर कर....
संध्या – (अभय को देखते हुए) तू नाराज तो नहीं है ना फिर से....
अभय – (मुस्कुरा के संध्या के गाल पर हाथ फेरते हुए) मै क्यों नाराज होने लगा तेरे से और वैसे भी इस खूबसूरत चेहरे को देख कोई कैसे नाराज हो सकता है भला....
संध्या – (मुस्कुरा के) तू बाते बहुत बना लेता है
अभय – (मुस्कुरा के) अब तो साथ हूँ तेरे फिर इन आखों में ये नमी क्यों....
संध्या – डर लगता है कही फिर से दूर हो जाएं मुझसे....
अभय – (मुस्कुरा के)
हसोंगी तो जीत जाओगी
रोगी तो दिल दुखाओगी
चाहे पास रहूं ना रहूं
हमेशा अपने साथ पाओगी....
संध्या – (मुस्कुरा के) ये शायरी कहा से सिखा तूने....
अभय – (मुस्कुरा के) सीखी नहीं पढ़ी थी मेरे कमरे में एक डायरी मिली थी मुझे उसमें लिखी थी....
संध्या – डायरी कौन से डायरी....
अभय – पता नहीं उसमें नाम लिखा था राज का खजाना....
संध्या – (मुस्कुरा के) हा तेरा ही दोस्त राज की डायरी है वो उसने तुझे दी थी बचपन से वही तो तेरे पक्के दोस्त रहे है राज , राजू और लल्ला....
अभय – (मुस्कुरा के) तो अब से तू भी बन जा दोस्त मेरी....
संध्या – मै दोस्त बन जाऊ लेकिन मैं....
अभय – (बीच में बात काट के) बस अब ज्यादा मत सोच इस बारे में दोस्त बन जा मै चाहता हूँ तेरा दोस्त बन के तुझे हमेशा खुश रखूं ताकि बात बात पर तेरी आंखों में नमी ना आए....
संध्या – (मुस्कुरा के) तू साथ है तो इन आखों में कभी नमी नहीं आएगी....
अभय – और दोस्त बन जाएगी तो खुशी कभी जाएगी नहीं तेरी इन आखों से....
इस बात से दोनो मुस्कुरा के गले लग के सो गए दोनो....
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जारी रहेगा
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So Sorry Friends Meri Marriage ke karan aapko itna wait karna pada update ke leye lekin kya karta aap samj sakte ho Marriage se pehle or uske bad time kitna milta hai aap samj sakte ho
Lazwaab superb updateUPDATE 54
एक तरफ हवेली में संध्या और ललिता मिल के अभय के सामने बीते हुए कल के पन्नों को पलटने में लगी थी हवेली में वहां से काफी दूर राज के घर में रात का खाना खाने के बाद सत्या बाबू घर के आंगन में बैठ के अपने बेटे राज से बाते कर रहे थे....
सत्या बाबू – (राज से) अभय कैसा है अब....
राज – वो ठीक है बाबा हवेली आ गया है जल्दी ही कॉलेज भी आना शुरू कर देगा....
सत्या बाबू – हम्ममम , दामिनी से मिला तू....
राज – हा मिला बाबा लेकिन ये यहां पर कैसे ये तो अपने मां बाप के साथ शहर चली गई थी हमेशा के लिए वही पढ़ने लगी थी फिर अचानक से यहां कैसे आना हुआ वो भी आपके साथ....
सत्या बाबू – बेटा अब से दामिनी यही रहेगी हमारे साथ....
राज – (चौक के) हमारे साथ क्या मतलब बाबा इसके मा बाप वो....
सत्या बाबू – (बीच में बात काट के) बेटा दामिनी के मा बाप का रोड एक्सिडेंट हो गया था इसीलिए उन्होंने मुझे शहर बुलाया था अपने पास कोई रिश्तेदार नहीं है उनका इस दुनिया में सिवाय उनकी एक लौती बेटी दामिनी के सिवा उनका कोई नहीं था दामिनी के बाबा से मरते वक्त मैने वादा किया कि दामिनी अब से मेरी जिम्मेदारी है इसीलिए उसे यहां ले आया मै....
राज – हम्ममम आपने अच्छा किया बाबा....
सत्या बाबू – राज मैने और तेरी मां ने तेरे बचपन में ही दामिनी के मां बाप से बात करके तेरा और दामिनी का रिश्ता जोड़ दिया था....
अपने पिता की बात सुन राज का चेहरा मुरझा गया जिसे देख....
सत्या बाबू – (राज का मुरझाया चेहरा देख) अरे मै सिर्फ तुझे बता रहा हूँ बात , आगे बढ़ने को नहीं बोल रहा हूँ वैसे भी दामिनी के मां बाप रहे नहीं और मै जनता हूँ तू किसी और को पसंद करता है (सिर पे हाथ फेर के) तू दामिनी की फिकर मत कर अभी के लिए तू पढ़ाई पर ध्यान दे और दामिनी की मदद कर दिया कर उसकी जिम्मेदारी हमारी है , चल तू जाके सोजा कल कॉलेज भी जाना है न....
बात करके राज अपने कमरे में जाने लगा दरवाजे तक आते ही राज ने देखा दामिनी एक तरफ दरवाजे के पीछे खड़ी राज और सत्या बाबू की बात सुन रही थी तभी राज को सामने खड़ा देख कमरे में चली गई लेकिन उसके जाने से पहले राज ने दामिनी की आंख में आसू की बूंद देख ली थी राज उसे रोकने की कोशिश करता लेकिन तब तक दामिनी कमरे में जा चुकी थी जिसे देख राज भी चुप चाप अपने कमरे में चला गया सोने लेकिन अफसोस पूरी रात राज और दामिनी कमरे में लेटे गुजरी लेकिन नींद दोनो की आंखों से गायब हो चुकी थी एक नए सवेरे के साथ सुबह की शुरुवात हो गई थी हवेली में जहा एक कमरे में संध्या और अभय गले लगे एक साथ सो रहे थे वहीं धीरे से उनके कमरे में कोई चुपके से बेड के पास आता है दोनो के एक साथ सोता देख धीरे से अभय के सिर पर हाथ फेरता है और तभी अभय की आंख धीरे से खुल जाती है अपने सामने खड़े शक्श को देख....
अभय – (मुस्कुरा के) मां....
अभय की आवाज से संध्या की नींद खुल जाती है अपने सामने शालिनी को देख के....
संध्या – आप इतनी सुबह सुबह....
शालिनी – (मुस्कुरा के) अभय को देखने का मन हुआ इसीलिए आ गई माफ करना....
संध्या –(मुस्कुरा के) इसमें माफी मांगने जैसा कुछ नहीं है अभय आपका भी बेटा हैं....
शालिनी – (अभय से) अब कैसा लग रहा है तुझे नींद अच्छी आई रात में....
अभय – बहुत अच्छा लग रहा है मां और रात में तो बहुत सुकून की नींद आई मुझे....
शालिनी – (मुस्कुरा के) चल ठीक है अगर तेरा मन हो तो वॉक पर चलेगा....
अभय – हा बिल्कुल मै अभी फ्रेश होके आता हूँ....
बोल के अभय फ्रेश होने चला गया जिसके बाद....
शालिनी – (संध्या से) तू खुश है न अब....
संध्या – बहुत खुश हूँ कल रात मैने अभय को सब बता दिया....
शालिनी – ये अच्छा किया तूने....
फिर शालिनी के साथ अभय निकल गया हवेली के बाहर वॉक करने जहा पर मिली....
अलीता – (अभय को देख के) कैसे हो देवर जी सुबह सुबह वॉक पर बहुत अच्छी बात है....
अभय – भाभी आप रोज सुबह वॉक करते हो....
अलीता – हा क्यों....
अभय – तब तो अच्छा रहेगा मुझे अकेले रोज सुबह वॉक करना नहीं पड़ेगा....
अलीता – वो तो वैसे भी नहीं करना पड़ेगा....
अभय – मतलब....
अलीता –(मुस्कुरा के) वो देखो सामने....
अपने सामने देखा जहां पर सोनिया और चांदनी वॉक कर रहे थे....
अभय – ओह दीदी भी वॉक कर रही है....
अलीता – इसीलिए तो कहा देवर जी आपको अकेले वॉक नहीं करना पड़ेगा चलो वॉक करते है साथ में....
कुछ समय बाद सब वापस हवेली आके तैयार होके नाश्ता करने बैठे थे हॉल में....
संध्या – (अभय से) तू यहां बैठ अब से यही बैठा करेगा तू ये हवेली के मालिक की कुर्सी है समझा....
अभय – तब तो इसमें तुझे बैठना चाहिए....
संध्या – (मुस्कुरा के) मै बैठूं या तू क्या फर्क पड़ता है इसमें....
शालिनी – (मुस्कुरा के) बिल्कुल सही कहा संध्या ने दोनो में कोई बैठे बात तो एक ही है ना....
नाश्ता करते वक्त अभय एक के बाद एक पराठा खाए जा रहा था जिसे देख....
मालती – अभय आराम से कर नाश्ता जल्दी जल्दी क्यों खा रहा है....
अभय – क्या करू चाची पराठे इतने अच्छे बने है कि पेट भर जाए लेकिन दिल नहीं भर रहा है मेरा....
ललिता – (मुस्कुराते हुए) बिल्कुल क्यों न भरेगा दिल आखिर इतने सालों के बाद दीदी ने बनाए है पराठे तेरे लिए....
अभय – अरे वाह तभी मै सोचूं आज के पराठे में इतना स्वाद कैसा आ रहा है मजा आ गया नाश्ते का आज तो....
संध्या – (मुस्कुराते हुए) चल जल्दी से नाश्ता करके तैयार होजा आज पंचायत चलना है तुझे मेरे साथ....
रमन – (चौक के) पंचायत में लेकिन वहां पर अभय का क्या काम भला....
संध्या – गांव वाले से मिलवाना है अभय को उन्हें भी पता चले उनका अभय ठाकुर वापस आ गया है....
संध्या की बात जहां सब मुस्कुरा रहे थे वही रमन के साथ अमन की हसी गायब थी कुछ समय के बाद संध्या और अभय पंचायत में थे जहां पर संध्या और गीता देवी ने मिल के सभी गांव वाले से अभय को मिलवाया जहा आज गांव के कई औरते हैरानी से संध्या को देख रही थी जो आज अभय के साथ चिपक के खड़ी थी जिसे देख उन्हें यकीन नहीं हो रहा था कि ये वही संध्या है जो एक वक्त अभय पर हाथ उठाया करती थी और आज उसी के साथ चिपक के खड़ी है लेकिन गीता देवी के मुखिया होने के कारण कोई औरत कुछ नहीं बोल पाई लेकिन अभय जरूर हैरान था इस बात से जब गांव के लोग संध्या को ठकुराइन , मालकिन बोल के बात कर रहे थे तब संध्या भी रोब से बात कर रही थी सबसे कुछ समय के बाद सबसे विदा लेके संध्या और अभय निकल गए हवेली की तरफ रस्ते में अभय गोर से देखे जा रहा था संध्या को....
संध्या – (अभय को देख के) क्या हुआ ऐसे गौर से क्या देख रहा है....
अभय – देख रहा हूँ आज गांव की पंचायत में सभी गांव वाले तुझे मालकिन , ठकुराइन बोल के बात कर रहे थे और तू भी बिल्कुल ठकुराइन वाले अंदाज में बाते कर रही थी....
संध्या – (हस के) तो इसमें क्या हुआ....
अभय – (मुस्कुरा के) कुछ नहीं बस सोच रहा था 2 दिन से जिसकी आंखों में जरा जरा सी बात में आसू आ रहे थे मेरे सामने , आज गांव की पंचायत में (हस्ते हुए) मै तुझे नाजुक सा समझ रहा था लेकिन तू तो तेज निकली....
संध्या – (अभय बात सुन हस्ते हुए) कल से पहले मैं खुद को एक कमजोर औरत समझती थी लेकिन....
बोल के संध्या चुप हो गई जिसे देख....
अभय – लेकिन क्या बोल न....
संध्या – तेरे साथ खुद को महफूज समझती हूँ....
अभय –(मुस्कुरा के कंधे पे हाथ रख के) मै हमेशा तेरे साथ रहूंगा हर कदम पर (बात बदल के) वैसे तुझपे ठकुराइन नाम बहुत जचता है जैसे सब गांव वाले बार बार बोल रहे थे प्रणाम ठकुराइन , जी ठकुराइन , हा ठकुराइन , अगर तू चुनाव में खड़ी हो गई तब तो सब यही बोलेगी ठकुराइन की जय हो....
बोल के दोनो हंसने लगे साथ में हवेली आ गए कार से उतर के हस्ते हुए हवेली के अन्दर आ के जहां चांदनी , सोनिया , शालिनी , अलीता , ललिता और मालती एक साथ हॉल में बैठे थे और दोनो को एक साथ हस्त देख....
चांदनी– (संध्या और अभय को हंसता देख) क्या बात है किस बात पे इतना हंसा जा रहा है....
अभय – (हस्ते हुए) दीदी पंचायत की बात....
शालिनी – (मुस्कुरा के) ऐसी कौन सी बात हो गई जिसपे इतनी हसी आ रही है....
अभय – नमस्ते ठकुराइन , जी ठकुराइन , ठकुराइन की जय हो....
बोल के हस्ते हुए अभय भाग के कमरे मे चला गया जिसके बाद....
ललिता – (हस्ते हुए संध्या से) इसे क्या हुआ दीदी इतना जोर से हस्ते हुए भाग क्यों गया....
ललिता की बात सुन संध्या ने सारी बात बता दी जिसके बाद सब हंसने लगे....
ललिता –(मुस्कुरा के) आज बरसो के बाद हवेली में सबकी हसी गूंज रही है....
अलीता – (मुस्कुरा के) क्यों ना हूँ चाची आखिर देवर किसका है....
अलीता की बात सुन सब फिर से मुस्कुराने लगे....
लेकिन कोई था जो रसोई के दरवाजे के पीछे से छिप के ये नजारा देख रहा था जिसके बाद हॉल में सबके सामने आया तब....
संध्या – अरे उर्मिला कही जा रही हो क्या....
उर्मिला – वो ठकुराइन बाहर तक जाना है कुछ सामान लाना था वो....
संध्या –(उर्मिला की बात समझ उसे पैसे देते हुए) देख उर्मिला ये तेरा भी घर है इसीलिए हक से मांग लिया कर तू सोचा या शरमाया मत कर तुझे जो चाहिए ले आ , पैसे चाहिए हो तो और लेले....
उर्मिल – नहीं नहीं ठकुराइन इतने बहुत है पैसे बचा के वापस कर दूंगी....
ललिता – उर्मिला इस तरह बात करके अपने आप को पराया मत समझ तू भी इस परिवार का हिस्सा है किसी भी चीज के लिए संकोच करने की जरूरत नहीं है तुझे ठीक है....
उर्मिला – जी ठकुराइन....
संध्या – ठकुराइन नहीं सिर्फ दीदी बोला कर जैसे ललिता और मालती बोलते है ठीक है....
उर्मिला – (मुस्कुरा के) ठीक है दीदी....
बोल के उर्मिला निकल गई हवेली के बाहर खेर में आते ही जहां एक तरफ रमन खड़ा खेतों का काम देख रहा था तभी उर्मिला को सामने से आता देख बगीचे की तरफ निकल गया कमरे में आते ही थोड़ी देर बाद उर्मिला आई कमरे में जिसके बाद....
रमन – (उर्मिला को अपनी बाहों में लेके) बहुत इंतजार कराया तूने मेरी जान....
बोल के उर्मिला की सारी और ब्लाउज खोलने लगा....
उर्मिला – (मुस्कुरा के) इंतजार तो आप कराते हो मुझे ठाकुर साहब अब तो हवेली में हूँ मैं फिर भी आप देखते तक नहीं....
रमन –(उर्मिला की ब्रा खोलते हुए) तू जानती है हवेली पर कोई ना कोई होता है गलती से भी किसी की नजर पड़ गई तो सारे किए कराए पर पानी फिर जाएगा अपने....
रमन – अब छोड़ ये सब फालतू की बात पहले मुझे शांत कर दे मेरी जान....
बोल के उर्मिला को होठ चूमने लगता है रमन चूमते चूमते नीचे खिसक के स्तन चूसने लगता है जिससे उर्मिला की सिसकिया गूंजने लगती है कमरे में
उर्मिला – (सिसकियां लेते हुए) मैने कब रोका आपको ठाकुर साहब ये आपका जिस्म है जो चाहे वो करे आप आहहहहह....
उर्मिला – ऊममममम (लंड को हाथ में पकड़ के) ठाकुर साहब काफी गरम लग रहा है हथियार आपका
रमन – ये तो हर रोज गरम रहता है मेरी जान इसे राहत तो तब तक नहीं मिलेगी जब तक इसे इसकी असली मंजिल नहीं मिल जाती....
उर्मिला – (हल्का मुस्कुरा के रमन के लंड को सहलाते हुए) जिद छोड़ दीजिए ठाकुर साहब ठकुराइन आपके हाथ नहीं आने वाली....
उर्मिला की बात सुन रमन ने कंधे पर हाथ रख नीचे झुकाया इशारे को समझ उर्मिला ने मुस्कुरा के रमन के लंड को चूसना शुरू किया....
रमन – आहहहहहह मेरी जान जो मजा उसमें है वो किसी में नहीं साली मिली भी तो कुछ देर के लिए और ऐसा नशा दे गई आज तक नहीं उतर पाया....
रमन बात करते करते उर्मिला का सिर पकड़ के लंड को उसके मू में पूरा ठूसे जा रहा था जिसे उर्मिला को तकलीफ हो रही थी लेकिन उसे समझ आ गया था रमन के दिमाग में इस समय संध्या घूम रही है जीस वजह से उसका जोश बढ़ गया है....
उर्मिला – (लंड मू से बाहर निकाल के खांसते हुए) आज तो आप कुछ ज्यादा ही जोश में लगते है ठाकुर साहब....
रमन – तूने तो याद दिला दी संध्या की मेरी जान....
उर्मिला – (मुस्कुराते हुए) तो आज आप मुझे संध्या समझ लीजिए ठाकुर साहब....
रमन – (मुस्कुराते हुए) समझूं क्या , तक तुझे सिर्फ संध्या समझ के ही तो भोगता आया हूँ मेरी जान....
बोलके चूत चूसने लगा जिसके वजह से उर्मिला सिसकियां लेंने लगी....
उर्मिला – आहहहहहह ऊमममममम ठाकुर साहब आराम से आहहहहहह
रमन पूरे जोश के साथ लगा हुआ था उर्मिला के साथ उसके जोश को देख ऐसा लग रहा था वो सच में उर्मिला को संध्या समझ के भोगने में लगा हुआ है जिसके कारण उर्मिला लगातार लम्बी सिसकिया लिए जा रही थी....
और उसी जोश के साथ रमन ने उर्मिला को लेता के लंड को सीधा चूत में पूरा डाल दिया....
उर्मिला –(चीखते हुए) आाआऐययईईईईईईईईई धीरे करिए ठाकुर साहब मै कही भागी नहीं जा रही हूँ....
लेकिन रमन कोतो जैसे कुछ भी सुनाई नहीं दे रहा था अपने जोश के आगे क्योंकि रमन पूरा लंड बाहर निकाल कर पूरा एक ही बार मे अंदर डाल रहा था जिस वजह से उर्मिला लगातार चीख रही थी आवाज बाहर ना जाए अपने मू पे हाथ रख के चीख रही थी....
रमन जोश में अपने धक्के तेज किए जा रहा था
अब कमरे में ठप ठप की आवाज़ सुनाई दे रही थी ऑर इसके साथ ही उर्मिला के मुँह से """आअहह आआहह आआअहह" की आवाज़े सुनाई दे रही थी....
रमन – (सिसकियों के साथ) ओहहहह मेरी जान बहुत दम है तेरी बुर में बहुत मजा आ रहा है तेरी बुर कितनी गर्म है रे,,,,ऊममममम
ऊममममम....
उर्मिला – (सिसकी लेते हुए) आपका हथियार भी तो बहुत जानदार है ठाकुर साहब,,,,सहहहहह आहहहहहह,,, ऐसा लग रहा है किसी ने कोई लोहे का मोटा छड मेरी बुर में डाल रहा
हो,,, आहहहहहह ऊमममममममम
कुछ समय बाद रमन ने उर्मिला की कमर को पकड़ के अपने ऊपर ले आया अब उर्मिला कमर उचका कर जैसे घोड़े की सवारी करने में लगी हुई थी....
कुछ मिनिट में उर्मिला ने अपना पानी छोड़ दिया जिससे रमन ने उसे घोड़ी बना के पीछे से उर्मिला की सवारी करने लगा....
धीरे धीरे रमन अपनी रफ्तार बढ़ाने लगा था उर्मिला की कमर को दोनों हाथों से कस के जकड़े रहने के वजह से उर्मिला को जलन होने लगी थी....
उर्मिला – (दर्द में) धीरे करिए ठाकुर साहब आहहहह आहहहहह जलन हो रही है
रमन अनसुना कर तेजी से आ0ने अंतिम पड़ाव पर आने को तैयारी कर रहा था....
कुछ हे सकें बाद रमन अपने अंतिम पड़ाव पर आखिर कर आ ही गया....
एक के बाद एक वीर्य की पिचकारी उर्मिला के चूत में छोड़ता चला गया जिसके बाद दोनो लंबी सास लेते हुए....
उर्मिला – आज ठकुराइन कुछ ज्यादा ही खुश लग रही थी....
रमन – अच्छा और वो किस लिए....
उर्मिला – आज अभय के साथ गांव की पंचायत से बहुत हस्ते हुए वापस आई है ठकुराइन....
रमन – (गुस्से में) ये सपोला जब से वापस आया है तब से नाक में दम कर दिया है इसने अच्छा होता ये बचपन में ही मर गया होता तो आज ऐसा नहीं होता....
उर्मिला – आप इतना गुस्सा मत हो ठाकुर साहब मुझे पता है आप कोई ना कोई हल निकाल ही लोगे इसका....
रमन – इसकी वजह से राजेश से भी संपर्क टूट गया है मेरा....
उर्मिला – वो नया थानेदार वो भला क्या काम का आपके....
रमन – काम का तो है आखिर है तो वो संध्या का ही दोस्त कॉलेज के वक्त से....
उर्मिला – लेकिन वो क्या करेगा इसमें आपकी मदद....
रमन – कर सकता है मदद मेरी उसके लिए मानना पड़ेगा उसे....
उर्मिला – लेकिन कैसे....
रमन – तू कर दे मदद मेरी इसमें....
उर्मिला – (हैरान होके) मै कैसे मदद कर सकती हु इसमें....
रमन – (मुस्कुरा के) एक बार उसे खुश कर दे अपने जलवे दिखा के....
उर्मिला – लेकिन मैं ही क्यों....
रमन – क्योंकि जो तू कर सकती है वो कोई और नहीं कर सकता है बस किसी तरह उसे अपने हुस्न की बोतल में उतार दे तू उसके बाद उस सपोले का ऐसा इंतजाम करूंगा कोई हवेली के साथ पूरे गांव जान नहीं पाएगा अभय को धरती निगल गई या आसमान....
उर्मिला – लेकिन राजेश से बात होती है आपकी अभी भी....
रमन – उस हादसे के बाद नहीं हुई रुक अभी करता हूँ (राजेश को कॉल मिला के) कैसे हो राजेश....
राजेश – कैसा होना चाहिए मुझे....
रमन – अभी भी नाराज हो क्या यार....
राजेश – यहां मेरी जिंदगी जहन्नुम बनती जा रही है और तुम्हे नाराजगी की लगी है....
रमन – (हैरानी से) ऐसा क्या होगया है....
राजेश – उस DIG शालिनी की वजह से ये सब हो रहा है साली जब से गांव में आई है चैन की सास नहीं लेने दे रही है जब से तेरे गोदाम वाला कांड हुआ है....
रमन – हा यार नुकसान उसमें मुझे बहुत हुआ है इसीलिए मैने अपना मोबाइल बंद करके रखा है जिसके पैसे है वो खून पी जायेगे मेरा इसीलिए , चल छोड़ यार थूक दे गुस्से को और ये बता खाली कब है तू....
राजेश – कल की छुट्टी ली हुई है मैने तुम बताओ....
रमन – अच्छा है कल तेरे लिए एक तोहफा भेज रहा हूँ अच्छे से इस्तमाल करना....
राजेश – (ना समझते हुए) क्या मतलब मै समझा नहीं....
रमन – कल दोपहर में तेरा तोहफा तेरे दरवाजे में आके मिलेगा तुझे सब समझ जाएगा तू कल बात करता हू मैं....
बोल के कॉल कट कर दिया रमन ने....
रमन – (उर्मिला से) कल तू राजेश के घर चली जाना हवेली में कोई भी बहाना करके....
उर्मिला – (सोचते हुए) क्या मेरा जाना सही रहेगा....
रमन – (मुस्कुरा के) इतना भी मत सोच तू ये समझ तू मेरे या अपने लिए नहीं हमारी बेटी के लिए कर रही है अपनों के लिए कभी कभी कुर्बानी देनी पड़ती है हमें....
उर्मिला – ठीक है ठाकुर साहब मै कल जाऊंगी....
बोल के उर्मिला चली गई हवेली की तरफ पीछे से रमन मुस्कुराते हुए कमरे से बाहर निकल आया तभी उसके मोबाइल में किसी अनजाने नंबर से कॉल आया जिसे उठाते ही सामने वाली की आवाज सुन एक पल के लिए रमन की आंख बड़ी हो गई लेकिन अगले ही पल हा हा करके जवाब देते हुए सामने वाले की बात सुनने लगा ध्यान से जिसके बाद कॉल कट कर....
रमन – (हस्ते हुए) बस कुछ दिन और जी ले अभय जल्द ही तेरी मौत का वक्त आ रहा है....
जबकि इस तरफ राज सुबह घर से सीधा दामिनी को लेके कॉलेज चला गया जहा शनाया की मदद से दामिनी को कॉलेज में ऐडमिशन मिल गया जिसके बाद राज ने अपने दोस्तों से दामिनी को मिलाया क्लास शुरू होते ही दामिनी के साथ नीलम और नूर बैठे थे तभी क्लॉस में आते ही अमन की नजर दामिनी पर पड़ी उसके साथ अमन के 2 दोस्तो ने भी देख के चौक गए दामिनी को यहां पर लेकिन उस समय किसी ने कुछ नहीं बोला कॉलेज की छुट्टी के वक्त....
अमन का दोस्त 1 – अबे ये लड़की यहां कैसे ये तो शहर में थी....
अमन – तुझे कैसे पता.....
अमन का दोस्त 2 – अबे इसके मा बाप का एक्सीडेंट हो गया था शहर में अस्पताल में आते ही मर गए थे वो दोनो....
अमन – अच्छा लेकिन तुम दोनो को कैसे पता ये सब....
अमन का दोस्त 1 – (मुस्कुरा के) वो इसलिए जिस गांव में हम रहते है इसका बाप वहां का मुखिया था बस इसी वजह से किसी की हिम्मत नहीं होती थी गांव के मुखिया की बेटी पे हाथ डालने की वर्ना कब का इस कली को फूल बना दिन होता हमने....
बोल के दोनो हंसने लगे....
अमन – तो अभी कौन सा समय बीत गया है बना देते है इसे फूल....
अमन का दोस्त 2 – संभाल के इसे पूनम मत समझना अमन ये बहुत ही तेज लड़की है शहर से आई है....
अमन – कोई बात नहीं प्यार से आ गई तो ठीक नहीं तो जबरदस्ती उठा लेगे अपने तरीके से....
बोल के तीनों दोस्त मुस्कुराने लगे....
रात के वक्त हवेली में सब सोने चले गए थे लेकिन एक कमरे में....
अभय – (संध्या से) आज गांव की पंचायत में एक बात कई परिवारों को एक साथ देख सोच रहा था मैं....
संध्या – क्या सोच रहा था तू....
अभय – दादी (सुनैना) के बारे में कहा चली गई होगी अचानक से कहा होगी जाने किस हाल में होगी यही सोच रहा था....
संध्या – हम्ममम पता तो हमने भी बहुत लगाने की कोशिश की लेकिन माजी का कही कुछ पता नहीं चला....
अभय – उनका कोई दोस्त रिश्तेदार कोई है ऐसा जिसके पास जा सकती हो दादी....
संध्या – ऐसा कोई नहीं है गांव में और गांव के बाहर , शालिनी ने भी काफी कोशिश की थी लेकिन उनको भी पता नहीं चला माजी (सुनैना) का....
अभय – (संध्या को देख जो सोच में गुम थी) अब तू किस सोच में डूबी हुई है....
संध्या – क्या मालती सच में ऐसा कुछ कर सकती है अगर हा तो उसके बाद से आज तक कुछ और किया क्यों नहीं या ये सिर्फ हमें लग रहा है....
अभय – ऐसा भी हो सकता है उसके बाद भी उसने कुछ किया हो जिसका पता किसी को भी ना हो , देख तेरी और चाची की बात सुन के मैने अंदाजा लगाया था क्योंकि हवेली में और कोई ऐसा करने की सोच नहीं सकता था तब तो बचा रमन , लेकिन रमन तो खाना खा के सीधा कमरे में आया था तो बची सिर्फ मालती चाची उन्होंने ही तुझे और चाची को दूध दिया था कमरे में....
संध्या – तुझे लगता है इतने साल पुरानी बात पूछने पर मालती सही जवाब देगी....
अभय – मुश्किल है बल्कि टाल देगी....
संध्या – सच बोलूं तो मुझे डर सा लगने लगा है अब इस हवेली में , अभय हम कही और चले चलते है छोटे से घर में रह लेगे कम से कम....
अभय – (बीच में बात काट के) ये क्या सोचे जा रही है तू और डर किस बात का अब मै हूँ ना तेरे साथ घबरा मत मेरे होते कुछ नहीं होगा तुझे....
संध्या – नहीं अभय अब तक जो कुछ हुआ है उसके बाद मैने फैसला कर लिया तेरे ठीक होते ही हम यहां से कही दूर चले जाएंगे भले एक कमरे के मकान में सही कम से कम चैन से रहेंगे....
अभय – और छोड़ दे भूल जाय इन गांव वालों को देखा नहीं आज कैसे गांव वाले बातों बातों में हर कोई अपनी छोटी से छोटी दिक्कत तेरे सामने रख रहा था किस लिए बस इस उम्मीद पे कि ठकुराइन ही उनकी परेशानी दूर कर सकती है अब ऐसे में सिर्फ अपने बारे में सोच के हम छोड़ दे इन गांव वालों को (संध्या का हाथ पकड़ अपने पिता की तस्वीर के सामने लाके) देख इस तस्वीर को और बता क्या बाबा अगर होते तो क्या वो भी यही करते....
संध्या – (अभय के गले लग के) गांव की भलाई करके भी क्या मिला था उन्हें एक लाइलाज बीमारी जिसने हमेशा हमेशा के लिए छीन लिया मुझसे सब कुछ मेरा (रोते हुए) अभय मै एक बार दूसरों की बातों में आके तेरे साथ गलत कर चुकी हूँ जिसकी सजा मैंने कई साल तक झेली है लेकिन अब जान के भी गलती नहीं करना चाहती....
अभय – मैने पहले भी कहा फिर कहता हूँ कुछ नहीं होगा तुझे और मै तुझे कभी छोड़ के नहीं जाऊंगा हमेशा साथ रहूंगा तेरे अपने मन से ये डर निकाल दे तू और ये जरा जरा सी बात पर अपनी आंखों में आसू मत लाया कर तुझे रोता देख मेरा दिल दुखने लगता है (तस्वीर की तरफ इशारा करके) वो देख जरा इस तस्वीर में कितनी सुंदर मुस्कुराहट है तेरी , ऐसी मुस्कुराहट के साथ हमेशा देखना चाहता हूँ मैं तुझे....
अभय की बात सुन संध्या हल्का सा हस देती है जिसे देख....
अभय – वैसे बाबा भी अच्छा हस रहे है Hamndsome Man लेकिन बाल अच्छे नहीं है....
संध्या – (अभय की बाल वाली बात सुन) धत ऐसे बोलते है क्या....
बोलते ही दोनो मुस्कुराने लगे....
अभय – चल सोते है कल खेतों में घूमने जाऊंगा चलेगी साथ मेरे....
संध्या – मौसम देख रहा है बारिश कभी भी हो सकती है....
अभय – जाना कल है अभी रात में नहीं अब कल की कल सोचेंगे अभी आराम करते है....
हवेली में ये दोनों तो सो गए लेकिन एक घर में एक लड़की गुम सूम सी बैठे अकेले कमरे में आखों में नमी लिए एक फोटो को देखे जा रही थी तभी पीछे से चुपके से कोई था जो उसे देख रहा था धीरे से कमरे में आके....
राज – अब तक जाग रही हो....
दामिनी –(हल्की मुस्कान के साथ) और तुम भी अब तक सोए नहीं....
राज –
इस सफर पर नींद ऐसी खो गई
हम ना सोए रात थक कर सो गई....
राज – किसकी याद में आंसू बहाए जा रहे है....
दामिनी – (राज को फोटो दिखाते हुए) मां बाबा....
राज – (फोटो देख के)
एक कल हमारे पीछे है
एक कल हमारे बाद
आज आज की बात करो
आज हमारे साथ....
दामिनी – (मुस्कुरा के) अच्छी शायरी कर लेते हो तुम....
राज – और बाते भी अच्छी कर लेता हूँ....
दामिनी – एक बात पूछूं....
राज – हा पूछो ना....
दामिनी – इतने सालों में तुम्हे कभी याद आई मेरी....
राज – याद तो बहुत आई तुम्हारी सोचा मिलूं तुमसे फिर बाबा से पता चला तुम शहर चली गई पढ़ने फिर क्या था यहां अपने दोस्तों के साथ वक्त गुजारता फिर एक दिन मेरा दोस्त (अभय) भी चल गया छोड़ कर उस वक्त दिल बहुत रोया मेरा ये सोच के जिसे भी अपना समझा वो जाने क्यों छोड़ के चल जाता है मुझे इसीलिए उस दिन से किसी से न दोस्ती की मैने....
दामिनी – अभय वही है ना जिसे अस्पताल में देख था....
राज – है वहीं है....
दामिनी – फिर वापस कब आया....
राज – (अभय के जाने से लेके आने की बात बता बताई बस अभय के घर की बात न बता के) बस तब से उसके साथ ही अपना सारा वक्त गुजारता हूँ....
दामिनी – (मुस्कुरा के) बहुत खास है ना अभय तुम्हारे लिए....
राज – (मुस्कुरा के) हा बहुत खास है वो गांव में वही एक इकलौता ठाकुर है जिसने गांव के लोगों के साथ कभी उच्च नीच की सोचे बिना सबसे मिल के रहता है....
दामिनी – बहुत किस्मत वाला है अभय तुम्हारा साथ जो है उसके साथ कम से कम....
राज – (दामिनी की बात समझ के) तुम इतने वक्त शहर में रही लेकिन कभी आई नहीं मिलने....
दामिनी – बाबा बोलते थे पहले पढ़ लिख ले उसके बाद खुद लेने आऊंगा फिर एक दिन बाबा का कॉल आया तो बोले किसी कम से शहर आ रहे है मां के साथ तुझे साथ लेके आयेगे गांव आगे की पढ़ाई गांव के कॉलेज में करना राज के साथ लेकिन वो शहर तक पहुंचे ही नहीं और उनका एक्सीडेंट हो गया रस्ते में....
बोल के दामिनी रोने लगी जिसकी आवाज सुन गीता देवी कमरे में आ गई दामिनी को रोता देख....
गीता देवी – (दामिनी को गले लगा के) क्या हुआ दामिनी तू रो क्यों रही है....
राज – मां वो दामिनी अपने और शहर के बारे में बता रही थी मुझे फिर अपने मां और बाबा की बात बता के रोने लगी....
गीता देवी –(दामिनी को चुप कराते हुए) बस बेटा रो मत हम है ना तेरे साथ तू अकेली नहीं है बेटा (दामिनी के आसू पोछते हुए) मैने वादा किया था तेरे मा बाबा से तू हमेशा हमारे साथ रहेगी बेटा....
राज एक तरफ चुप चाप खड़ा अपनी मां की सारी बात सुन रहा था पानी का ग्लास दामिनी को देते हुए....
राज – पानी पी लो दामिनी....
ग्लास लेके दामिनी के पानी पीते ही घर के दरवाजे से सत्या बाबू गीता देवी को आवाज लगते हुए घर में आ गए जिसके बाद....
गीता देवी – राज तेरे बाबा आ गए है तू बैठ दामिनी के साथ मै अभी आती हूँ....
बोल के गीता देवी कमरे के बाहर चलो गई....
राज – (बात बदल ते हुए) मुझे तो पता भी नहीं था तू रोती भी है....
दामिनी – मुझे चिड़ाओ मत अगर चिढ़ाना है तो अपनी वाली के पास जाओ....
राज –
ये बारिश का मौसम बहुत तड़पाता है
वो बस मुझे ही दिल से चाहता है
लेकिन वो मिलने आए भी तो कैसे?उसके पास न रेनकोट है और ना छाता है....
दामिनी – (जोर से हस्ते हुए) ये किस्से पाला पड़ गया तेरा....
राज – किस्मत की बात है यार क्या करू मैं....
दामिनी – (हस्ते हुए) कोई और संस्कारों वाली नहीं मिली क्या तुझे या तूने सारे संस्कार त्याग तो नहीं कर दिए कही....
राज – संस्कार की बात मत कर पगली तू
अरे हम तो TEMPEL RUN भी चप्पल उतार के खेलते है....
दामिनी – (हस्ते हुए) तू और तेरी शायरी इस कमरे में घूम रहे छोटे मच्छर की तरह है जिसका कुछ नहीं हो सकता कभी....
राज –
कौन कहता है बड़ा साइज सब पे भारी है
कभी एक मच्छर के साथ रात गुजारी है....
दामिनी – (हस्ते हुए) तू जा अपने कमरे में ज्यादा देर साथ रहा मेरे तो पेट दर्द हो जाएगा मेरे....
राज –
कभी पसंद ना आए साथ मेरा तो बता देना
हम दिल पर पत्थर रख के तुम्हे गोली मार देगे
बड़ी आई ना पसंद करने वाली....
बस इतना बोलना था राज की....
दामिनी – (हैरानी से) तू गोली मरेगा मुझे , मै तेरा खून पी जाऊंगी....
बोल के दामिनी चप्पल उठा के राज के पीछे भागी लेकिन उससे पहले राज कमरे से भाग गया कमरे के बाहर खड़े गीता देवी और सत्या बाबू दोनो को इस तरह देख और बात सुन मुस्कुरा रहे थे दोनो....
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