- 6,492
- 29,707
- 204
![Screenshot-2024-0430-223534 Screenshot-2024-0430-223534](https://i.ibb.co/mBhQjNZ/Screenshot-2024-0430-223534.png)
UPDATE 1 | UPDATE 2 | UPDATE 3 | UPDATE 4 | UPDATE 5 | UPDATE 6 | UPDATE 7 | UPDATE 8 | UPDATE 9 | UPDATE 10 |
UPDATE 11 | UPDATE 12 | UPDATE 13 | UPDATE 14 | UPDATE 15 | UPDATE 16 | UPDATE 20 |
Last edited:
UPDATE 1 | UPDATE 2 | UPDATE 3 | UPDATE 4 | UPDATE 5 | UPDATE 6 | UPDATE 7 | UPDATE 8 | UPDATE 9 | UPDATE 10 |
UPDATE 11 | UPDATE 12 | UPDATE 13 | UPDATE 14 | UPDATE 15 | UPDATE 16 | UPDATE 20 |
NoBhai aap keh rhe ho fonts chote ke lye baki her koi fonts bade ke lye bolta hai
Koshish kerta ho normal size ka update deke
Fir batana aap
Nice bhai acha likh rahe ho tarika acha h story par focus zyada h mujhe story wali chiz pasand h na ki wahi sab jo yaha hota hUPDATE 2
गाँव के बीचो-बीच खड़ी आलीशान हवेली में अफरा-तफरा मची थी। पुलिस की ज़िप आकर खड़ी थी। हवेली के बैठके(हॉल) में । संध्या सिंह जोर से चींखती चील्लाती हुई बोली
संध्या --"मुझे मेरा बेटा चाहिए....! चाहे पूरी दुनीया भर में ही क्यूँ ना ढ़ूढ़ना पड़ जाये तुम लोग को? जीतना पैसा चाहिए ले जाओ....!! पर मेरे बच्चे को ढूंढ लाओ...मेरे बच्चे को ढूंढ लाओ...मेरे बच्चे
कहते हुए संध्या जोर-जोर से रोने लगी। सुबह से दोपहर हो गयी थी, पर संध्या की चींखे रुकने का नाम ही नही ले रही थी। गाँव के लोग भी ये खबर सुनकर चौंके हुए थे। और चारो दिशाओं मे अभय के खोज़ खबर में लगे थे। ललिता और मालति को, संध्या को संभाल पाना मुश्किल हो रहा था। संध्या को रह-रह कर सदमे आ रहे थें। कभी वो इस कदर शांत हो जाती मानो जिंदा लाश हो, पर फीर अचानक इस तरह चींखते और चील्लाते हुए सामन को तोड़ने फोड़ने लगती मानो जैसे पागल सी हो गयी हो।
रह-रह कर सदमे आना, संध्या का पछतावा था साथ अपने बेटे से बीछड़ने का गम भी , अभय ने आखिर घर क्यूँ छोड़ा? अपनी माँ का आंचल क्यूँ छोड़ा? इस बात का जवाब सिर्फ अभय के पास था। जो इस आलीशान हवेली को लात मार के चला गया था, कीसी अनजान डगर पर, बीना कीसी मक्सद के और बीना कीसी मंज़ील के।
(कहते हैं बड़ो की डाट-फटकार बच्चो की भलाई के लिए होता है। शायद हो भी सकता है , लेकिन जो प्यार कर सकता है। वो डाट-फटकार नही। प्यार से रिश्ते बनाता है। डाट-फटकार से रिश्ते बीछड़ते है, जैसे आज एक बेटा अपनी माँ से और माँ अपने बेटे से बीछड़ गए। रीश्तो में प्यार कलम में भरी वो स्याही है, जब तक रहेगी कीताब के पन्नो पर लीखेगी। स्याही खत्म तो पन्ने कोरे रह जायेगें। उसी तरह रीश्तो में प्यार खत्म, तो कीताब के पन्नो की तरह ज़िंदगी के पन्ने भी कोरे ही रह जाते हैं।)
हवेली की दीवारों में अभी भी संध्या की चींखे गूंज रही थी की तभी, एक आदमी भागते हुए हवेली के अंदर आया और जोर से चील्लाया
ठाकुर साहब ठाकुर साहब
आवाज़ काभी भारी-भरकम थी, इसलिए हवेली में मौजूद सभी लोगों का ध्यान उस तरफ केंद्रीत कर ली थी। सबसे पहली नज़र उस इंसान पर ठाकुर रमन की पड़ी। रमन ने देखा वो आदमी काफी तेजी से हांफ रहा था, चेहरे पर घबराहट के लक्षणं और पसीने में तार-तार था।
रमन --"क्या हुआ रे दीनू? क्यूँ गला फाड़ रहा है?"
दीनू --(अपने गमझे से माथे के पसीनो को पोछते हुए घबराहट भरी लहज़े में बोला) मालीक...वो, वो गाँव के बाहर वाले जंगल में। ए...एक ब...बच्चे की ल...लाश मीली है।
रमन --(एक नजर संध्या को देखते हुए बोला) ल...लाश क...कैसी लाश?"
उस आदमी की आवाज़ ने, संध्या के अंदर शरीर के अंदरुनी हिस्सो में खून का प्रवाह ही रोक दीया था मानो। संध्या अपनी आँखे फाड़े उस आदमी को ही देख रही थी..
दीनू --"वो...वो मालिक, आप खुद ही देख लें। ब...बाहर ही है।
दीनू का इतना कहना था की, रमन, ललिता, मालती सब लोग भागते हुए हवेली के बाहर की तरफ बढ़े। अगर कोई वही खड़ा था तो वो थी संध्या। अपनी हथेली को महलते हुए, ना जाने चेहरे पर कीस प्रकार के भाव अर्जीत कीये थी, शारिरीक रवैया भी अजीबो-गरीब थी उसकी। कीसी पागल की भाती शारीरीक प्रक्रीया कर रही थी। शायद वो उस बात से डर रही थी, जो इस समय उसके दीमाग में चल रहा था।
शायद संध्या को उस बात की मंजूरी भी मील गयी, जब उसने बाहर रोने-धोने की आवाज़ सुनी। संध्या बर्दाश्त ना कर सकी और अचेत अवस्था में फर्श पर धड़ाम से नीचे गीर पड़ती है
जब संध्या की आंख खुलती है तो, वो अपने आप को, खुद के बिस्तर पर पाती हैं। आंखों के सामने मालती, ललिता, निधी और गांव की तीन से चार औरतें खड़ी थी।
नही..... ऐसा नहीं हो सकता, वो मुझे अकेला छोड़ कर नही जा सकता। कहां है वो?? अभय... अभय...अभय
पगलो की तरह चिल्लाते हुए संध्या अपने कमरे से बाहर निकल कर जल बिन मछ्ली के जैसे तड़पने लगती है। संध्या के पीछे पीछे मालती, ललिता और निधी रोते हुए भागती है
हवेली के बाहर अभी भी गांव वालों की भीड़ लगी थी, मगर जैसे ही संध्या की चीखने और चिल्लाने की आवाजें उन सब के कानों में गूंजती है, सब उठ कर खड़े हो जाते है।
संध्या जैसे ही जोर जोर से रोते - बिलखते हवेली से बाहर निकलती है, तब तक पीछे से मालती उसे पकड़ लेती है।
संध्या --"छोड़ मुझे....!! मैं कहती हूं छोड़ दे मालती, देख वो जा रहा है, मुझे उसे एक बार रोकने दे। नही तो वो चला जायेगा।
संध्या की मानसिक स्थिति हिल चुकी थी, और इसका अंदाजा उसके रवैए से ही लग रहा था, वो मालती से खुद को छुड़ाने का प्रयास करने लगी की तभी....
मालती – दीदी वो जा चुका हैं... अब नही आयेगा, इस हवेली से ही नही, बल्कि इस संसार से भी दूर चला गया है।"
मालती के शब्द संध्या के हलक से निकल रही चिंखो को घुटन में कैद कर देती है। संध्या के हलक से शब्द तो क्या थूंक भी अंदर नही गटक पा रही थी। संध्या किसी मूर्ति की तरह स्तब्ध बेजान एक निर्जीव वस्तु की तरह खड़ी, नीचे ज़मीन पर बैठी रो रही मालती को एक टक देखते रही। और उसके मुंह से शब्द निकले...
संध्या – वो मुझे अकेला छोड़ के नही जा सकता
वो मुझे अकेला छोड़ के नही जा सकता
यह बात बोलते बोलते संध्या हवेली के अंदर की तरफ कदम बढ़ा दी।
गांव के सभी लोग संध्या की हालत पर तरस खाने के अलावा और कुछ नही कर पा रहें थे।।
तुझको का लगता है हरिया? का सच मे ऊ लाश छोटे ठाकुर की थी??"
हवेली से लौट रहे गांव के दो लोग रास्ते पर चलते हुए एक दूसरे से बात कर रहे थे। उस आदमी की बात सुनकर हरिया बोला
ह्वरिया --" वैसे उस लड़के का चेहरा पूरी तरह से ख़राब हो गया था, कुछ कह पाना मुुश्किल है। लेकिन हवेली से छोटे ठाकुर का इस तरह से गायब हो जाना, इसी बात का संकेत हो सकता है कि जरूर ये लाश छोटे ठाकुर की है।"
हरिया की बात सुनकर साथ में चल रहा वो शख्स बोल पड़ा..
मगरू --"ठीक कह रहा है तू हरिया, मैं भी एक बार किसी काम से हवेली गया था तो देखा कि ठकुराइन छोटे मालिक को डंडे से पीट रही थीं, और वो ठाकुर रमन का बच्चा अमनवा वहीं खड़े हंस रहा था। सच बताऊं तो इस तरह से ठकुराइन पिटाई कर रहीं थी की मेरा दिल भर आया, मैं तो हैरान था की आखिर एक मां अपने बेटे को ऐसे कैसे जानवरों की तरह पीट सकती है??"
हरिया --" चलो अच्छा ही हुआ, अब तो सारी संपत्ति का एक अकेला मालिक वो अमनवा ही बन गया। वैसे था बहुत ही प्यारा लड़का, ठाकुर हो कर भी गांव के सब लोगों को इज्जत देता था।
दोनो लोग बाते करते करते अपने घर की तरफ चल रहे थे तभी किसी औरत को आवाज आई
औरत –(पैदल जाते उन दोनो आदमियों से) मगरू भईया इतनी धूप में कहा से आ रहे हो
मगरू –(औरत को देखते हुए) गीता देवी (सामने जाके पैर छूता है) दीदी हवेली से आ रहे है हम दोनो
गीता देवी –हवेली से क्या हुआ भईया कुछ पता चला अभय बाबू का
तभी पीछे से एक आदमी आया
आदमी –(दोनो आदमी को देखते हुए) अरे हरिया , मगरू तुम दोनो तो हवेली गए थे भागते हुए क्या बात होगाई रे
मगरू –अब क्या बताए सत्या बाबू बात ही एसी है
सत्या बाबू –हुआ का है बता तो
मगरू –जंगल में लाश मिली है एक बच्चे की उसके कपड़े देख के समझ आया अभय बाबू की लाश है
गीता देवी और सत्या –(मगरू की बात सुन उनकी आंखे बड़ी हो गई)
मगरू –(आगे बोला) लाश लेके हवेली पहुंचे तब वहा पे लाश वाली बात सुन के सब का रोना निकल गया और संध्या देवी जैसे पत्थर सी जम गई थी
गीता देवी –(आसू पोछते हुए) क्या सच में वो अभय बाबू थे
मगरू – हा दीदी लाश ने अभय बाबू जैसे कपड़े पहने हुए थे अच्छा दीदी चलता हूं अब
इतना बोल के मगरू चला गया
सत्या –(औरत की आंख में आसू देख के) संभाल अपने आप को गीता जाने वाला तो चला गया
.
.
.
जारी रहेगीn
First page pe manual INDEX banaya hai bhaiBhai index bhi bana do
Bilkul bhai jaisa aap chaho waisa sahiNoFonts chota nahi hoga bro.