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♡ Family Introduction ♡ |
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♡ Family Introduction ♡ |
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Jaroor mitraintezaar rahega....

Waise sanju bhaiya aapke paas pahle supreme tha na? Ye divine kab liya?वेद प्रकाश शर्मा साहब ने एक उपन्यास लिखा था - वर्दी वाला गुंडा । उनके अनुसार एक पुलिस इंस्पेक्टर से बढ़कर उस क्षेत्र का कोई गुंडा नही । बहुत पावर होती है एक इंस्पेक्टर मे ।
लेकिन जब बात पॉलिटिक्स पर आती है तो एक साधारण पुलिस इंस्पेक्टर क्या पुलिस सुपरिटेंडेंट , कमिश्नर , यहां तक कि डायरेक्टर जनरल आफ पुलिस भी एक भीगी बिल्ली की तरह दिखाई देने लगते हैं ।
यह सब हम फिलहाल प्रत्यक्ष रूप से देख ही रहे हैं ।
बटाला को अरेस्ट कर के विजय ने बहुत बड़ा काम किया । एक आले अफसर के आदेश को इंकार कर यानि बटाला को छोड़ने से इंकार कर के उससे भी बड़ा काम किया ।
लेकिन अगर वो अपनी सर्विस से सस्पेंड कर दिया जाए , डिसमिस कर दिया जाए तब वो क्या करेगा !
चीफ मिस्टर से , पुरी पुलिस तंत्र से , उनके पाले हुए अराजक तत्वों से वह कैसे सामना कर पायेगा ?
यह लड़ाई एक अकेले बंदे के वश का नही । जब तक अवाम आप के साथ कंधे से कंधा नही मिलाती तब तक आप उनका बाल भी बांका नही कर सकते ।
यह बहुत ज्यादा अटपटा लगेगा कि एक साधारण पुलिसिए ने एक मुख्य मंत्री को कानूनन कटघरे के अंदर पंहुचा दिया ।
खैर देखते हैं , वकील और इंस्पेक्टर साहब मिलकर क्या इंकलाब लाते हैं !
खुबसूरत अपडेट शर्मा जी ।
आउटस्टैंडिंग एंड अमेजिंग अपडेट ।

intezaar rahega next update ka@raj_sharma ji....Aaj raat tak aajayega bhai, usi me lagunga ab![]()
Thank you very very much avsji bhaiya for your wonderful review#9
इस कहानी में आज के युग के महा-भ्रष्ट दो पेशों के पेशेवर बहुत ही ईमानदार हैं : वकील (रोमेश और वैशाली) और पुलिस (विजय)! ख़ास कर तब, जब दोनों ही अपने अपने पेशों में बहुत सफ़ल भी हैं। ख़ैर, मान लिया - क्योंकि कहानी है
सावंत का खून हो ही गया। और दोषारोपण हुआ है चन्दन दादा पर। वो है तो स्मगलर, लेकिन हमको पहले से पता है कि मुख्यमंत्री भी सावंत को मारने को इच्छुक है। और हत्या के पीछे के सुराग़ मुख्यमंत्री के सुरक्षा विभाग से मिले हैं, इसलिए उस पर शक़ करना किसी पुलिसिए के लिए आत्मघाती होगा।
लेकिन रोमेश का बिना किसी तफ़्तीश के ही ये कहना कि वो बेक़सूर है, बेतुकी सी बात लगी। उसकी तफ़्तीश अभी कहाँ शुरू ही हुई है? हो सकता है मुख्यमंत्री किसी अन्य को मारना/मरवाना चाहता हो? अभी भी उस तीसरे किरदार - मेधा रानी का आना बचा हुआ है।
#10
भाई, ये मुख्यमंत्री को “घेरने” वाली बात वैसी है जैसी कोई चींटी किसी गैंडे को मारना चाहे! कहने सुनने में ठीक लगता है, लेकिन जब तक सरकारी तंत्र का एक बहुत बड़ा हिस्सा आपके साथ न हो, तो ऐसा कुछ होना असंभव है। देश में जब भी कोई राजनेता गिरता है, तो उसके पीछे उसके विपक्ष में बैठे अन्य राजनेताओं, और पूरी सरकारी मशीनरी की भागीदारी होती है। एक अदना इंस्पेक्टर और एक अदना वकील - उनकी किसी मुख्यमंत्री को घेरने की कोई हैसियत नहीं होती। ये उनके लिए बेहद ख़तरनाक़ खेल है।
मायादास ने वैसे सब साफ़ कर दिया। बटाला ने काण्ड किया है, और मुख्यमंत्री इसमें शामिल है।
#11
टेप किया हुआ कुछ भी सौ फ़ीसदी विश्वसनीय नहीं होता, ये रोमेश जैसी मँझे हुए वकील को पता होना चाहिए। एक जैसी आवाज़ के अनेकों लोग हो सकते हैं, और टेप रिकॉर्डर की फिडेलिटी भी पूरी सौ फ़ीसदी नहीं होती। इसलिए टेप किया वार्तालाप कोर्ट केस में विश्वसनीय सबूत नहीं बन सकता।
विजय का सबूत (जुम्मन) अधिक विश्वसनीय है। स्टेनगन का बरामद होना आवश्यक है, क्योंकि वो ही मर्डर वेपन है। स्टेनगन और बटाला के मिलने पर कम से कम ख़ूनी एस्टेब्लिश हो जायेगा। फिर भी, मुख्यमंत्री या उसका सेक्रेटरी दोषी नहीं साबित होंगे। जब तक कि बटाला से जुड़ा कोई तार उन तक न पहुँच जाए।
जैसा कि मैंने सोचा था, सरकारी तंत्र पूरी तरह से विजय के विपक्ष में है -- एस एस पी की हिम्मत ही नहीं है कि बटाला को पकड़ कर रख सके। जबकि वो एक टुच्चा सा गुर्गा है। बहुत कठिन राह है।
तीनों अपडेट बड़े ही तेजी से आगे बढ़े और बहुत ही बढ़िया रहे।![]()
Jo ki aapke kahe mutabik hi hona chahiye.Shandar jabardast update
Bahut hi shandar update he Raj_sharma Bhai,
Ye case itna bhi aasan nahi hone wala he...........
Political aur underworld dono hi jude huye he is case me.......
Keep rocking Bhai
Sahi bole ho abhi mai 2 update piche hu..pura padh kar ek saath review dungi
बहुत ही सुंदर लाजवाब और रोमांचक अपडेट है भाई मजा आ गया
बहुत ही सुंदर और रोमांचक अपडेट है भाई मजा आ गया
Nice update....
To aakhir kar Romesh ki help se Vijay ne Batala ko giraftaar ker leya or ache se kuttaaa bhi ab dekhte hai kaise asli mujrim ko giraft me leta hai Vijay or Romesh or ky ky karta hai
जबरदस्त अपडेट,
विजय ने बहुत अच्छे से सब हैंडल कर लिया है अभी तक लेकिन बटाला को अरेस्ट करने के बाद असली मस्कत करनी पड़ेगी विजय को, अब असली युद्ध शुरू होगा उधर रोमेश खुश है विजय के काम।से लेकिन क्या अब वो खुद सीएम को मना कर पाएगा केस लड़ने से
और विजय ने एक जिगरी दोस्त का फर्ज अदा करते हुए उसे समय से याद दिलाते हुए पैसे भी वापिस।दे।दिए।है
क्या अब सीमा खुश हो पाएगी
या सीमा कुछ।और ही सोच रही है उसकी खामोशी के पीछे क्या चल रहा है,
लेखक साहब ने रॉमेश के ग्रहस्थ जीवन की मुस्किलो को दो अपडेट से भुला।दिया है
देखते है कब नजर पड़ती है उनकी उनके पर्सनॉल जीवन पर
शायद नेक्स्ट अपडेट में कुछ और मशाला पढ़ने को मिले
Bohot badiya update![]()
Behad shandar update he Raj_sharma Bhai,
Ab shuru hoga asli khel...........
Pressure build hoga vijay par department me se bhi aur politically bhi
Keep rocking Bro
Badhiya mast update
Idhar vijay ne romesh ki hint se sare sabut ikatha karke batala tak pahunch gaya romesh ne ab usse dur rahne ke liye kaha kyonki lagta ha ab mayadas ka us per shak ho jayega or kya pata batala ka case usse ladwaye lekin romesh mana kar dega
Kher idhar batala ko nikalne ke liye vijay per pressure dala ja raha ha abhi tak to vijay tika hua ha lekin kahin uski nokri chali gayi to shayd batala nikal jaye police wale hi mile hue han to oron se kya ummid
कहानी तो मुझे इस युग की ही नही लग रही।
Raj_sharma किस दशक की कहानी लिख रहे हो आप?
दशक का खुलासा कर दो तो वकील और इंस्पेक्टर की दयनीय स्तिथि भी क्लियर हो जायेगी।
रोमेश ने अपनी रोशनी से विजय को भी रोशन कर दिया।
विजय ने बहादुरी और दिमाग़ दोनों का इस्तेमाल करके केस को सही रास्ते पर ले ही आया |
अब दोनों के लिए मुश्किलें शुरू होने वाली है
सीमा को अब आप किस रूप मैं पेश करेंगे वो देखना दिलचस्प होगा । अगले अपडेट की प्रतीक्षा रहेगी![]()
Awesome super duper thriller
![]()
Ye raat kab sard hogi
Anyway
Aaj se padhna shuru
Nice and superb update....
Kya baat bhai ji hamesha ki tarah adhbhut lekhni Jabardast superb mast Lajawab dhasu update![]()
![]()
Nice starting
Bahut hi sandaar aur lajwab update hai romi aur vijay dono ek bahut badi hasti State ke CM se panga le rahe hai isme dono ko bahut khtra hia
वेद प्रकाश शर्मा साहब ने एक उपन्यास लिखा था - वर्दी वाला गुंडा । उनके अनुसार एक पुलिस इंस्पेक्टर से बढ़कर उस क्षेत्र का कोई गुंडा नही । बहुत पावर होती है एक इंस्पेक्टर मे ।
लेकिन जब बात पॉलिटिक्स पर आती है तो एक साधारण पुलिस इंस्पेक्टर क्या पुलिस सुपरिटेंडेंट , कमिश्नर , यहां तक कि डायरेक्टर जनरल आफ पुलिस भी एक भीगी बिल्ली की तरह दिखाई देने लगते हैं ।
यह सब हम फिलहाल प्रत्यक्ष रूप से देख ही रहे हैं ।
बटाला को अरेस्ट कर के विजय ने बहुत बड़ा काम किया । एक आले अफसर के आदेश को इंकार कर यानि बटाला को छोड़ने से इंकार कर के उससे भी बड़ा काम किया ।
लेकिन अगर वो अपनी सर्विस से सस्पेंड कर दिया जाए , डिसमिस कर दिया जाए तब वो क्या करेगा !
चीफ मिस्टर से , पुरी पुलिस तंत्र से , उनके पाले हुए अराजक तत्वों से वह कैसे सामना कर पायेगा ?
यह लड़ाई एक अकेले बंदे के वश का नही । जब तक अवाम आप के साथ कंधे से कंधा नही मिलाती तब तक आप उनका बाल भी बांका नही कर सकते ।
यह बहुत ज्यादा अटपटा लगेगा कि एक साधारण पुलिसिए ने एक मुख्य मंत्री को कानूनन कटघरे के अंदर पंहुचा दिया ।
खैर देखते हैं , वकील और इंस्पेक्टर साहब मिलकर क्या इंकलाब लाते हैं !
खुबसूरत अपडेट शर्मा जी ।
आउटस्टैंडिंग एंड अमेजिंग अपडेट ।
Waiting for next update
intezaar rahega....
#9
इस कहानी में आज के युग के महा-भ्रष्ट दो पेशों के पेशेवर बहुत ही ईमानदार हैं : वकील (रोमेश और वैशाली) और पुलिस (विजय)! ख़ास कर तब, जब दोनों ही अपने अपने पेशों में बहुत सफ़ल भी हैं। ख़ैर, मान लिया - क्योंकि कहानी है
सावंत का खून हो ही गया। और दोषारोपण हुआ है चन्दन दादा पर। वो है तो स्मगलर, लेकिन हमको पहले से पता है कि मुख्यमंत्री भी सावंत को मारने को इच्छुक है। और हत्या के पीछे के सुराग़ मुख्यमंत्री के सुरक्षा विभाग से मिले हैं, इसलिए उस पर शक़ करना किसी पुलिसिए के लिए आत्मघाती होगा।
लेकिन रोमेश का बिना किसी तफ़्तीश के ही ये कहना कि वो बेक़सूर है, बेतुकी सी बात लगी। उसकी तफ़्तीश अभी कहाँ शुरू ही हुई है? हो सकता है मुख्यमंत्री किसी अन्य को मारना/मरवाना चाहता हो? अभी भी उस तीसरे किरदार - मेधा रानी का आना बचा हुआ है।
#10
भाई, ये मुख्यमंत्री को “घेरने” वाली बात वैसी है जैसी कोई चींटी किसी गैंडे को मारना चाहे! कहने सुनने में ठीक लगता है, लेकिन जब तक सरकारी तंत्र का एक बहुत बड़ा हिस्सा आपके साथ न हो, तो ऐसा कुछ होना असंभव है। देश में जब भी कोई राजनेता गिरता है, तो उसके पीछे उसके विपक्ष में बैठे अन्य राजनेताओं, और पूरी सरकारी मशीनरी की भागीदारी होती है। एक अदना इंस्पेक्टर और एक अदना वकील - उनकी किसी मुख्यमंत्री को घेरने की कोई हैसियत नहीं होती। ये उनके लिए बेहद ख़तरनाक़ खेल है।
मायादास ने वैसे सब साफ़ कर दिया। बटाला ने काण्ड किया है, और मुख्यमंत्री इसमें शामिल है।
#11
टेप किया हुआ कुछ भी सौ फ़ीसदी विश्वसनीय नहीं होता, ये रोमेश जैसी मँझे हुए वकील को पता होना चाहिए। एक जैसी आवाज़ के अनेकों लोग हो सकते हैं, और टेप रिकॉर्डर की फिडेलिटी भी पूरी सौ फ़ीसदी नहीं होती। इसलिए टेप किया वार्तालाप कोर्ट केस में विश्वसनीय सबूत नहीं बन सकता।
विजय का सबूत (जुम्मन) अधिक विश्वसनीय है। स्टेनगन का बरामद होना आवश्यक है, क्योंकि वो ही मर्डर वेपन है। स्टेनगन और बटाला के मिलने पर कम से कम ख़ूनी एस्टेब्लिश हो जायेगा। फिर भी, मुख्यमंत्री या उसका सेक्रेटरी दोषी नहीं साबित होंगे। जब तक कि बटाला से जुड़ा कोई तार उन तक न पहुँच जाए।
जैसा कि मैंने सोचा था, सरकारी तंत्र पूरी तरह से विजय के विपक्ष में है -- एस एस पी की हिम्मत ही नहीं है कि बटाला को पकड़ कर रख सके। जबकि वो एक टुच्चा सा गुर्गा है। बहुत कठिन राह है।
तीनों अपडेट बड़े ही तेजी से आगे बढ़े और बहुत ही बढ़िया रहे।![]()
Update posted friendsintezaar rahega next update ka@raj_sharma ji....
जरूरत से ज्यादा ईमानदार बनने का नतीजा।#:12
बटाला की गिरफ्तारी का समाचार ही सनसनी खेज था।
सावंत मर्डर केस ने अब एक नया मोड़ ले लिया था। इस नए मोड़ के सामने आते ही स्वयं मायादास एडवोकेट रोमेश के घर पर आ पहुँचा।
"बटाला से वह स्टेनगन भी बरामद कर ली गई है, जिससे मर्डर हुआ।" रोमेश ने कहा।
"तुम किस मर्ज की दवा हो, उसे फौरन जमानत पर बाहर करो भई।" मायादास ने कहा !
"अपनी फीस बोलो, लेके आया हूँ।" उसने अपना ब्रीफकेस रोमेश की तरफ सरकाते हुए कहा।
"मायादास जी, बेशक आप माया में खेलते रहते हैं। लेकिन आपकी जानकारी के लिए मैं सिर्फ इतना बता देना काफी समझता हूँ कि मैंने अपनी आज तक की वकालत की जिन्दगी में किसी मुजरिम का केस नहीं लड़ा, जिसके बारे में मैं अच्छी तरह जानता हूँ कि कत्ल उसी ने किया, अलबत्ता उसे मैं फाँसी के तख्ते पर पहुंचाने में तो मदद कर सकता हूँ, मगर उसका केस लड़ने की तो सोच भी नहीं सकता।"
"मेरा ख्याल है कि तुम नशे में नहीं हो।"
"आपका ख्याल दुरुस्त है मायादास जी, मैं नशे में नहीं हूँ।"
"मगर तुमने तो कहा था, तुम केस लड़ोगे।"
"उस वक्त मैं नशे में रहा होऊंगा।"
"आई सी! नशे में न हम हैं न आप। मैं आपसे केस लड़वाने आया हूँ और आप उसे फाँसी चढ़ाने की सोच बैठे हैं।"
"दूसरे वकील बहुत हैं।"
"नहीं, मिस्टर रोमेश सक्सेना ! वकील सिर्फ तुम ही हो, हम जे.एन. साहब के पी.ए. हैं, और जे.एन. साहब जो कहते हैं, वो ही होना होता है।" मायादास ने फोन का रुख अपनी तरफ किया। जब तक वह नम्बर डायल करता रहा, तब तक सन्नाटा छाया रहा। नम्बर मिलते ही मायादास ने कहा,
"सी.एम. साहब से बात कराओ हम मायादास।" कुछ पल बाद।
"हाँ सर, हम मायादास बोल रहे हैं सर, आपने जिस वकील को पसन्द किया था, उसका नाम रोमेश सक्सेना ही है ना ?"
"हाँ , रोमेश ही है, क्यों ?" दूसरी तरफ से पूछा गया।
"वो केस लड़ने से इंकार करता है। वो वकील कहता है, बटाला को फाँसी पर चढ़ना होगा।"
"उसको फोन दो।" मायादास ने रोमेश की तरफ घूरकर देखा और फिर रिसीवर रोमेश को थमा दिया।
"लो तुम खुद बात कर लो, सी .एम. बोलते हैं।"
रोमेश ने रिसीवर लिया और क्रेडिल पर रखकर कनेक्शन काट दिया।
"बहुत गड़बड़ हो गई मिस्टर वकील।" मायादास उठ खड़ा हुआ,
"तुम जे.एन. साहब को नहीं जानते, इसका मतलब तो वह बताएंगे कि बटाला को पकड़वाने मैं तुम्हारा भी हाथ हो सकता है, क्यों कि इंस्पेक्टर विजय तुम्हारा मित्र भी है।"
"मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता।"
"ठीक है, हम चलते हैं।" जाते-जाते ड्राइंग रूम में खड़ी सीमा पर मायादास ने नजर डाली। उसकी आँखों में एक शैतानी चमक आई, फिर वह मुस्कराया और रोमेश के फ्लैट से बाहर निकल गया।
"तुमने उसे नाराज करके अच्छा नहीं किया रोमेश।" सीमा बोली ,
"कम से कम ये तो सोच लिया होता कि वह मुख्यमंत्री का पी .ए. है। जनार्दन नागा रेड्डी अगर चाहे, तो जज तक को उसका कहा मानना पड़ेगा, तुम तो मामूली से वकील हो।"
"मैं मामूली वकील नहीं हूँ मैडम ! इस गलतफहमी में मत रहना, यह मेरा बिजनेस है। आप इसमें दखल न दें, तो बहुत मेहरबानी होगी। बटाला ने एक एम.पी. का मर्डर किया है। एम.पी. का। जो जनता का चुना हुआ प्रतिनिधि होता है, उसने लाखों लोगों का मर्डर किया है, किसी एक का नहीं, समझी आप।"
"मैं तो सिर्फ़ इतना समझती हूँ कि हमें चीफ मिनिस्टर से दुश्मनी नहीं लेनी चाहिये।" इतना कहकर सीमा अन्दर चली गई। उसी दिन रात को रोमेश ने एक फोन रिसीव किया।
"हैल्लो रोमेश सक्सेना स्पीकिंग।" दूसरी तरफ कुछ पल खामोशी छाई रही, फिर खामोशी टूटी।
"हम जे.एन. बोल रहे हैं, जनार्दन नागा रेड्डी , चीफ मिनिस्टर।"
"कहिये ।"
"कल कोर्ट में हमारा आदमी पेश किया जायेगा, तुम उसके लिए कल वकालत नामा पेश करोगे और उसे तुरन्त जमानत पर रिहा कराओगे, यह हमारा हुक्म है। हम बड़े जिद्दी हैं, हमने भी तय कर लिया है कि तुम ही यह केस लड़ोगे और तुम ही बटाला को रिहा करवाओगे, पसन्द आई हमारी जिद।" इससे पहले कि रोमेश कुछ बोलता , दूसरी तरफ से फोन कट गया।
"गो टू हेल।" रोमेश ने रिसीवर पटक दिया। सुबह वह नित्यक्रम के अनुसार ठीक समय पर कोर्ट के लिए रवाना हो गया। कोई खास बात नहीं थी, इससे पहले भी कई लोग उसे धमकी दे चुके थे, परन्तु उसका मन कभी विचलि त नहीं हुआ था। न जाने आज क्यों उसे बेचैनी-सी लग रही थी। मुम्बई की समुद्री हवा भी उसे अजनबी सी लग रही थी। कोर्ट में उसका मन नहीं लगा। बटाला को पेश किया गया था कोर्ट में, किसी वकील ने उसकी पैरवी नहीं की। अगले तीन दिन की तारीख लगा दी। रोमेश को यह अजीब-सा लगा कि बटाला की पैरवी के लिए कोई वकील नहीं किया गया था। न जाने क्यों उसका दिल असमान्य रूप से धड़कने लगा। शाम को वह घर के लिए रवाना हुआ। वह अपने फ्लैट पर पहुंचा, उसने बेल बजाई। दरवाजा कुछ पल बाद खुला, लेकिन दरवाजा खोलने वाला न तो उसका नौकर था, न सीमा।
एक अजनबी सा फटा-फटा चेहरा नजर आया, जो दरवाजे के बीच खड़ा था। अजीब-सा लम्बा तगड़ा व्यक्ति जो काली जैकेट और पतलून पहने था।
"सॉरी।" रोमेश ने समझा, उसने किसी और के फ्लैट की बेल बजा दी है, "
मैंने अपना फ्लैट समझा था।"
"फ्लैट आपका ही है ।" उस व्यक्ति ने रास्ता दिया, "आइये, आइये।" रोमेश सकपका गया,
"त… तुम।"
"हम तो थोड़ी देर के लिए आपके मेहमान हैं।" रोमेश ने धड़कते दिल से अन्दर कदम रखा, फ्लैट की हालत उसे असामान्य सी लग रही थी, बड़ा अजीब-सा सन्नाटा छाया था। उस शख्स ने रोमेश के अन्दर दाखिल होते ही दरवाजा अन्दर से बन्द कर लिया और रोमेश के पीछे चलने लगा।
"म… मगर…!" रोमेश पलटा।
"बैडरूम में।" उस व्यक्ति ने पीले दाँत चमकाते हुए कहा। रोमेश तेजी के साथ बैडरूम में झपट पड़ा। वहाँ पहुंचते-पहुंचते उसकी साँसें तेज चलने लगी थीं और फिर बैडरूम का दृश्य देखते ही उसकी आँख फट पड़ी, वह जोर से चीखा- "सीमा !"
तभी रिवॉल्वर की नाल उसकी गुद्दी से चिपक गई।
"अब मत चिल्लाना।"
यह उस शख्स की आवाज थी, जिसने दरवाजा खोला था। उसके हाथ में अब रिवॉल्वर था। उसने रोमेश को एक कुर्सी पर धकेल दिया। एक शख्स खिड़की के पास पर्दा डाले खड़ा था। उसके हाथ में जाम था। वह धीरे- धीरे पलटा, जैसे ही उसका चेहरा सामने आया, रोमेश एक बार फिर तिलमिला उठा।
"हरामी ! साले !! मायादास !!!"
बाकी के शब्द मायादास ने पूरे किये,
"बाँध दो इसे।"
कमरे में दो बदमाश और मौजूद थे। उन्हों ने फ़ौरन रोमेश की मुश्कें कसनी शुरू कर दी। रोमेश को इस बीच में एक झापड़ भी पड़ गया था, जिसमें उसका होंठ फट गया। मायादास ने जाम रोमेश के चेहरे पर फेंका ।
"अभी हमने सिर्फ तुम्हारी बीवी के कपड़े उतारे हैं, इसके साथ ऐसा कुछ नहीं किया, जो या तो यह मर जाये या तुम आत्महत्या कर लो। हम तो तुम्हें सिर्फ नमूना दिखाने आये थे, तुम चाहो तो बान्द्रा पुलिस को फोन कर सकते हो, वहाँ से भी कोई मदद नहीं मिलने वाली।"
मायादास घूमकर सीमा के पास पहुँचा। सीमा का मुंह टेप से बन्द किया हुआ था, उसके हाथ पाँव बैड पर बंधे थे और उसके तन पर एक भी कपड़ा नहीं था।
"डियर स्वीट बेबी, तुम अभी भी बहुत हसीन लग रही हो, दिल तो हमारा बहुत मचल रहा है, मगर सी .एम. साहब का हुक्म है कि हम दिल को सम्भालकर रखें, क्यों कि आगे का काम करने का शौक उन्हीं का है।"
''हरामजादे।" रोमेश चीखा। रोमेश के एक थप्पड़ और पड़ा।
"साले अपने आपको हरिश्चन्द्र समझता है।" मायादास गुर्राया,
"अभी तेरे को हम तीन दिन की मोहलत देने आये हैं। जे.एन. साहब की जिद यही है कि तू ही बटाला को छुड़ायेगा। तीन दिन बाद तेरी बीवी के साथ जे.एन. साहब के नाजायज सम्बन्ध बन जायेंगे, इसके बाद इसे हम सबके हवाले कर दिया जायेगा। तेरा नौकर बाथरूम में बेहोश पड़ा है, पानी छिड़क देना , होश आजायेगा।"
मायादास उस समय सिगरेट पी रहा था। उसने सिगरेट सीमा के सीने पर रखकर बुझाई। सीमा केवल तड़पती रह गई, मुँह बन्द होने के कारण चीख भी न सकी। मायादास ने कहा और बाहर निकल गया। उन सबके जाते ही रोमेश हाँफता हुआ जल्दी से उठा। उसकी आँखों में आँसू आ गये थे। उसकी प्यारी पत्नी को इस रूप में देखकर ही रोमेश काँप गया था। उसने सीमा के बन्धन खोले, उसके मुंह से टेप हटाया।
"म… मुझे माफ कर दो डार्लिंग ! मैं बेबस था।"
"शटअप !"
सीमा इतनी जोर से चीखी कि उसे खांसी आ गई, "
"आज के बाद तुम्हारा मेरा कोई वास्ता नहीं रहा, क्यों कि तीन दिन बाद मेरी जो गत बनने वाली है, वह मैं बर्दाश्त नहीं कर सकती।"
सीमा रोती हुई वार्डरोब की तरफ भागी, टॉवल लपेटा और सीधे बाथरूम में चली गई।
"सीमा प्लीज।" वह बाथरूम से ही चीख रही थी,
"आज के बाद हमारा कोई रिश्ता नहीं रहा राजा हरिश्चन्द। मैं अब तुम जैसे कंगले वकील के पास एक पल भी नहीं रहूँगी समझे ?"
"सीमा, मेरी बात तो सुनो, मैं अभी पुलिस को फोन करता हूँ।"
रोमेश ड्राइंगरूम में पहुंचा, पुलिस को फोन मिलाया। बान्द्रा थाने का इंचार्ज अपनी ड्यूटी पर मौजूद था।
"मैं एडवोकेट रोमेश सक्सेना बोल रहा हूँ।"
"यही कहना है ना कि आपके फ्लैट पर मायादास जी कुछ गुण्डों के साथ आये और आपकी बीवी को नंगा कर दिया।"
"त… तुम्हें कैसे मालूम ?"
"वकील साहब, जब तक रेप केस न हो जाये, पुलिस को तंग मत करना, मामूली छेड़छाड़ के मुकदमे हम दर्ज नहीं करते। सॉरी … ।"
फोन कट गया। सीमा अपनी तैयारियों में लग चुकी थी। उसने अपने कपड़े एक सूटकेस में डाले और रोमेश उसे लाख समझाता रहा, मगर सीमा ने एक न सुनी।
"मुझे एक मौका और दो प्लीज।" रोमेश गिड़गिड़ाया।
"एक मौका !" वह बिफरी शेरनी की तरह पलटी,
"तो सुनो, जिस दिन तुम मेरे अकाउंट में पच्चीस लाख रुपया जमा कर दोगे, उस दिन मेरे पास आना, शायद तुम्हें तुम्हारी पत्नी वापिस मिल जाये।"
"पच्चीस लाख? पच्चीस लाख मैं कहाँ से लाऊंगा ? मैं तुम्हारे बिना एक दिन भी नहीं जी सकता।"
"चोरी करो, डाका डालो, कत्ल करो, चाहे जो करो, पच्चीस लाख मेरे खाते में दिखा दो, सीमा तुम्हें मिल जायेगी, वरना कभी मेरी ओर रुख मत करना, कभी नहीं।"
"क… कब तक ? "
"सिर्फ एक महीना।"
"प्लीज ऐसा न करो, दस जनवरी को तो हमारी शादी की वर्षगांठ है। प्लीज मैं तुम्हें वह अंगूठी ला दूँगा।"
"नहीं चाहिये मुझे अंगूठी।" रोमेश ने बहुत कौशिश की, परन्तु सीमा नहीं रुकी और उसे छोड़कर चली गई। फ्लैट से बाहर रोमेश ने टैक्सी को रोकने की भी कौशिश की, परन्तु सीमा नहीं रुकी। रोमेश हताश सा वापिस फ्लैट में पहुँचा।
रोमेश को ध्यान आया कि नौकर बाथरूम में बेहोश पड़ा है। उसने तुरन्त नौकर पर पानी छिड़का। उसे होश आ गया।
"तू जा कर पीछा कर, देख तो सीमा कहाँ गई है ?"
"क… क्या हो गया मालकिन को साहब ?"
"पता नहीं वह हमें छोड़कर चली गई, जा देख। बाहर देख, टैक्सी कर, कुछ भी कर, उसे बुलाकर ला।"
नौकर नंगे पाँव ही बाहर दौड़ पड़ा। रोमेश के कुछ समझ में नहीं आ रहा था क्या करे, क्या न करे? उसका होंठ सूखा हुआ था। बायीं आंख के नीचे भी नील का निशान और सूजन आ गई थी, लेकिन इस सबकी तरफ तो उसका ध्यान ही न था। वह सिगरेट पर सिगरेट फूंक रहा था और उसकी अक्ल जैसे जाम हो कर रह गई थी। फिर उसने विजय का नम्बर मिलाया। विजय फोन पर मिल गया।
"विजय बटाला को छोड़ दे, फ़ौरन छोड़ दे उसे।" रोमेश पागलों की तरह बोल रहा था,
"नहीं छोड़ेगा, तो मैं छुड़ा लूँगा उसे। और सुन, तेरे पास पच्चीस लाख रुपया है?" फोन पर बातचीत से ही विजय ने समझ लिया, दाल में काला है।
"मैं आ रहा हूँ।" विजय ने कहा।
''हाँ जल्दी आना, पच्चीस लाख लेकर आना।"
पन्द्रह मिनट बाद ही विजय और वैशाली रोमेश के फ्लैट पर थे। नौकर तब तक खाली हाथ लौट आया था। दरवाजे पर ही उसने विजय को सारी बात समझा दी। अब विजय और वैशाली का काम था, रोमेश को ढांढस बंधाना।
"पुलिस में रिपोट दर्ज करो उसकी।" विजय बोला।
"न…नहीं। नहीं वह कह रहा था, जब तक रेप नहीं होता, कोई मुकदमा नहीं बनता।"
"प्लीज, आपको क्या हो गया सर?" वैशाली के तो आँखों में आंसू आ गये।
"लीव मी अलोन।"
अचानक रोमेश हिस्टीरियाई अंदाज में चीख पड़ा,
"वह मुझे छोड़कर चली गई, तो चली जाये, चली जाये।"
रोमेश बैडरूम में घुसा और उसने दरवाजा अन्दर से बन्द कर लिया।
"मेरे ख्याल से वैशाली, तुम यहीं रहो। भाभी के इस तरह जाने से रोमेश की दिमागी हालत ठीक नहीं है, मैं जरा बान्द्रा थाने होकर जाता हूँ। देखता हूँ कि कौन थाना इंचार्ज है, जो रेप से नीचे बात ही नहीं करता।"
जारी रहेगा.....![]()