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★ INDEX ★
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♡ Family Introduction ♡ |
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♡ Family Introduction ♡ |
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Besabari se intezaar rahega next update ka Raj_sharma bhai....Sorry bhai aaj nahi ho payega, aaj afternoon se meetings. Me busy chal rahe hai, jo abhi bhi chalegi to ipdate kalor doosri wali story Love in college. ka update aaj aayega wo mai before noon redy kar chuka hu.
Kya to mast update hai ye wala maja aagaya bechari Seema#7
इस मुकदमे के बाद रोमेश को एक सप्ताह के लिए दिल्ली जाना पड़ गया। दिल्ली में उसका एक मित्र था , कैलाश वर्मा। कैलाश वर्मा एक प्राइवेट डिटेक्टिव एजेंसी चलाता था,
और किसी इन्वेस्टीगेशन के मामले में उसने रोमेश की मदद मांगी थी ।
कैलाश वर्मा के पास एक दिलचस्प केस आ गया था ।
"सावंत राव को जानते हो?"
कैलाश ने रोमेश से बातचीत शुरू की।
"एम.पी ., जो पहले स्मगलर हुआ करता था । उसी की बात कर रहे हो?"
"हाँ ।"
कैलाश ने सिगरेट सुलगाते हुए कहा ,
"कत्ल की गुत्थियाँ सुलझाने के मामले में आज न तो तुमसे बेहतर वकील है, और न इंस्पेक्टर।
वैसे तो मेरी एजेंसी से एक से एक
काबिल आदमी जुड़े हुए हैं, मगर यह केस मैंने तुम्हारे लिए रखा है।"
"पर केस है क्या ?"
"एम.पी . सावंत का मामला है ।"
"जहाँ तक मेरी जानकारी है, मैंने उसके मर्डर की न्यूज कहीं नहीं पढ़ी।"
"वह मरा नहीं है, मारे जाने वाला है।"
"तुम कहना क्या चाहते हो?"
"सावंत राव के पास सरकारी सिक्यूरिटी की कोई कमी नहीं है। उसके बाद भी उसे यकीन है कि उसका कत्ल हो के रहेगा।"
"तब तो उसे यह भी पता होगा कि कत्ल कौन करेगा ?"
"अगर उसे यह पता लग जाये, तो वह बच जायेगा।" वर्मा ने कहा।
"कैसे ? क्या उसे वारदात से पहले अन्दर करवा देगा ?" रोमेश मुस्कराया।
"नहीं , बल्कि सावंत उसे खुद ठिकाने लगा देगा। बहरहाल यह हमारा मामला नहीं है, हमें सिर्फ यह पता लगाना है कि उसका मर्डर कौन करना चाहता है, और इसके प्रमाण भी उपलब्ध करने हैं। बस और कुछ नहीं। उसके बाद वह क्या करता है, यह उसका केस है।"
"हूँ” !
केस दिलचस्प है, क्या वह पुलिस या अन्य किसी सरकारी महकमे से जांच नहीं करवा सकता ?"
"उसे यकीन है कि इन महकमों की जांच सही नहीं होगी। अलबत्ता मर्डर करने वाले से भी यह लोग जा मिलेंगे और फिर उसे दुनिया की कोई ताकत नहीं बचा पायेगी।
वी .आई.पी . सर्किल में हमारी एजेंसी की खासी गुडविल है, और हम भरोसेमंद लोगों में गिने जाते हैं, और यह भी जानते हैं कि हम हर फील्ड में बेहतरीन टीम रखते हैं, और सिर्फ अपने ही मुल्क में नहीं बाहरी देशों में भी हमारी पकड़ है।
मैं तुम्हें यह जानकारी एकत्रित करने का मेहनताना पचास हजार रुपया दूँगा ।"
"तुमने क्या तय किया ?"
"कुल एक लाख रुपया तय है ।"
रोमेश को उस अंगूठी का ध्यान आया, जो उसकी पत्नी को पसन्द थी। इस एक डील मेंणअंगूठी खरीदी जा सकती थी, और वह सीमा को खुश कर सकता था। यूँ भी उनकी
एनिवर्सरी आ रही थी और वह इसी मौके पर यह तगादानि बटा देना चाहता था ।
"मंजूर है । अब जरा मुझे यह भी बताओ कि क्या सावंत को किसी पर शक है ? या तुम वहाँ तक पहुंचे हो?"
"हमारे सामने तीन नाम हैं, उनमें से ही कोई एक है, पहला नाम चन्दन दादा भाई का है।
यह सावंत के पुराने धंधों का प्रतिद्वन्द्वी है, पहले सावंत का पार्टनर भी रहा है, फिर प्रतिद्वन्द्वी ! इनकी आपस में पहले भी कुछ झड़पें हो चुकी हैं, तुम्हें बसंत पोलिया मर्डर
कांड तो याद होगा।"
"हाँ , शायद पोलिया चन्दन का सिपहसालार था ।"
"सावंत ने उसे मरवाया था। क्यों कि पोलिया पहले सावंत का सिपहसालार रह चुका था, और सावंत से गद्दारी करके चन्दन से जा मिला था। बाद में सावंत ने राजनीति में कदम रखा और एम.पी. बन गया। एम.पी . बनने के बाद उसका धंधा भी बन्द हो गया और अब उसकी छत्रछाया में बाकायदा एक बड़ा सिंडीकेट काम कर रहा था। सबसे अधिक खतरा चन्दन को है, इसलिये चन्दन उसका जानी दुश्मन है।"
"ठीक । " रोमेश सब बातें एक डायरी में नोट करने लगा।
"दो नम्बर पर है ।" वह आगे बोला , "मेधा रानी ।"
"मेधा-रानी , हीरोइन ?"
"हाँ , तमिल हीरोइन मेधा -रानी ! जो अब हिन्दी फिल्मों की जबरदस्त अदाकारा बनी हुई है। मेधा- रानी सावंत का क्यों कत्ल करना चाहेगी यह वजह सावंत ने हमें नहीं बताई।"
"तुमने जानी भी नहीं ?"
"नहीं , अभी हमने उस पर काम नहीं किया। शायद सावंत ने इसलिये नहीं बताया ,
क्यों कि यह मैटर उसकी प्राइवेट लाइफ से अटैच हो सकता है।"
"चलो , आगे ।"
"तीसरा नाम अत्यन्त महत्वपूर्ण है। जनार्दन नागा रेड्डी । यानी जे.एन.।"
"यानि कि चीफ मिनिस्टर जे.एन.?" रोमेश उछल पड़ा।
"हाँ , वही ।
सावंत का सबसे प्रबल राजनैतिक प्रतिदन्द्वी। यह तीन हस्तियां हमारे सामने हैं, और तीनो ही अपने-अपने क्षेत्र की महत्वपूर्ण हस्तियां हैं। सावंत की मौत का रास्ता इन तीन गलियारों में से किसी एक से गुजरता है, और यह पता लगाना तुम्हारा काम है। बोलो।"
"तुम रकम का इन्तजाम करो और समझो काम हो गया।"
"ये लो दस हजार।" कैलाश ने नोटों की एक गड्डी निकालते हुए कहा, "बाकी चालीस काम होने के बाद।"
रोमेश ने रकम पकड़ ली।
जब वह वापिस मुम्बई पहुँचा, तो उसके सामने सीमा ने कुछ बिल रख दिये।
"सात हजार रुपए स्वयं का बिल।" रोमेश चौंका,
"डार्लिंग ! कम से कम मेरी माली
हालत का तो ध्यान रखा करो।"
"भुगतान नहीं कर सकते, तो कोई बात नहीं। मैं अपने कजन से कह दूंगी, वह भर देगा।"
"तुम्हारा कजन आखिर है कौन? मैंने तो कभी उसकी शक्ल नहीं देखी, बार-बार तुम उसका नाम लेती रहती हो।"
"तुम जानते हो रोमी ! वह पहले भी कई मौकों पर हमारी मदद कर चुका है, कभी मौका आएगा तो मिला भी दूंगी।"
"ये लो , सबके बिल चुकता कर दो।" रोमेश ने दस हजार की रकम सीमा को थमा दी।
"क्या तुमने उस मुकदमे की फीस नहीं ली, वह लड़की वैशाली कई बार चक्कर लगा चुकी है। पहले तो उसने फोन किया, मैंने कहा नहीं है, फिर खुद आई। शायद सोच रही होगी कि मैंने झूठ कह दिया होगा।"
"ऐसा वह क्यों सोचेगी?"
"मैंने पूछा था काम क्या है, कुछ बताया नहीं। कहीं केस का पेमेन्ट देने तो नहीं आई थी?"
"उस बेचारी के पास मेरी फीस देने का इन्तजाम नहीं है।"
"अखबार में तो छपा था कि उसके घर एक लाख रुपया पहुंच गया था, और इसी रकम से तुमने इन्वेस्टीगेशन शुरू की थी।"
"वह रकम कोर्ट कस्टडी में है, और उसे मिलनी भी नहीं है। वह रकम कमलनाथ की है, और कमलनाथ को तब तक नहीं मिलेगी, जब तक वह बरी नहीं होगा।"
"तो तुमने फ्री काम किया।"
"नहीं जितनी मेरी फीस थी , वह मुझे मिल गयी थी।"
"कितनी फीस ?"
"इस केस में मेरी सफलता ही मेरी सबसे बड़ी फीस है, तुम तो जानती ही हो। चुनौती भरा केस था।"
"तुम्हें तो वकील की बजाय समाज सेवी होना चाहिये, अरे हाँ याद आया, माया दास के भी दो तीन फोन आ चुके हैं।"
"मायादास कौन?"
"मिस्टर माया दास, चीफ मिनिस्टर जे.एन.साहब के सेकेट्री हैं।"
रोमेश उछल पड़ा।
"क्या मैसेज था माया दास का?"
"कहा जैसे ही आप आएं, एक फोन नम्बर पर उनसे बात कर लें। नम्बर छोड़ दिया है अपना।"
इतना कहकर सीमा ने एक टेलीफोन नम्बर बता दिया। रोमेश ने फोन नम्बर अपनी डायरी में नोट कर लिया।
"यह माया दास का भला हमसे क्या काम पड़ सकता है ?"
"आप वकील हैं। हो सकता है कि कोई केस हैण्डओवर करना हो।"
"इस किस्म के लोगों के लिए अदालतों या कानून की कोई वैल्यू नहीं होती। तब भला इन्हें वकीलों की जरूरत कैसे पेश आयेगी?"
"आप खुद ही किसी रिजल्ट पर पहुंचने के लिए बेकार ही माथा पच्ची कर रहे हैं, एक फोन करो और मालूम कर लो न डियर एडवोकेट सर।"
"शाम को फुर्सत से करूंगा, अभी तो मुझे कुछ काम निबटाने हैं, लगता है अब हमारे दिन फिरने वाले हैं। अच्छे कामों के भी अच्छे पैसे मिल सकते हैं, वह दिल्ली में मेरा एक दोस्त है ना जो डिटेक्टिव एजेंसी चलाता है।"
"कैलाश वर्मा?"
"हाँ , वही । उसने एक केस दिया है, मेरे लिए वह काम मुश्किल से एक हफ्ते का है, दस हजार रुपया उसी सिलसिले में एडवांस मिला था, डार्लिंग इस बार मैं अपना …।"
तभी डोरबेल बजी ।
"देखो तो कौन है?" रोमेश ने नौकर से पूछा।
नौकर दरवाजे पर गया, कुछ पल में वापिस आकर बताया, "इंस्पेक्टर साहब हैं। साथ में वह लड़की भी है, जो पहले भी आई थी।"
"अच्छा उन्हें अन्दर बुलाओ।" रोमेश आकर ड्राइंगरूम में बैठ गया।
"हैल्लो रोमेश।" विजय, वैशाली के साथ अन्दर आया।
"तुमको कैसे पता चला, मैं दिल्ली से लौट आया।" रोमेश ने हाथ मिलाते हुए कहा।
"भले ही तुम दिग्गज सही, मगर पुलिस वाले तो हम भी हैं। हमने मालूम कर लिया था, कि जनाब का रिजर्वेशन राजधानी से है, और फिर हमें मुम्बई सेन्ट्रल स्टेशन के पुलिस
इंचार्ज ने भी फोन कर दिया था।"
"ऐसी घोर विपत्ति क्या थी? क्या वैशाली पर फिर कोई मुसीबत आयी है?"
"नहीं भई! हम तो जॉली मूड में हैं। हाँ, काम कुछ वैशाली का ही है।"
"क्या तुम्हारे भाई ने फिर कुछ कर लिया ?"
"नहीं उसने तो कुछ नहीं किया , सिवाय प्रायश्चित करने के। असल में बात यह है कि वैशाली तुम्हारी सरपरस्ती में प्रैक्टिस शुरू करना चाहती है, इसके आदर्श तो तुम बन गये हो रोमेश।"
"ओह तो यह बात थी।"
"यानि अभी यह होगा कि तुम मुलजिम पकड़ा करोगे और यह छुड़ाया करेगी। चित्त भी अपनी और पट भी।"
उसी समय सीमा ने ड्राइंगरूम में कदम रखा।
''नमस्ते भाभी।" दोनों ने सीमा का अभिवादन किया।
"इस मामले में तुम जरा अपनी भाभी की भी परमीशन ले लो।" रोमेश बोला , “तो पूरी ग्रीन लाइट हो जायेगी।"
"भाभी जरा इधर आना तो।" विजय उठ खड़ा हुआ, "आपसे जरा प्राइवेट बात करनी है।"
विजय अब सीमा को एक कमरे में ले गया।
"बात ये है भाभी कि वैशाली अपनी मंगेतर है, और उसने एक जिद ठान ली है, कि जब तक वकील नहीं बनेगी, शादी नहीं करेगी। वकील भी ऐसा वैसा नहीं, रोमेश जैसा।"
"अरे तो इसमें मैं क्या कर सकती हूँ, एक बात और सुन लो विजय।"
"क्या भाभी ?"
"मेरी सलाह मानो, तो उसे सिलाई बुनाई का कोर्स करवा दो। कम से कम घर बैठे कुछ तो कमा के देगी। इन जैसी वकील बन गई, तो सारी जिन्दगी रोता रहेगा।"
"मुझे उससे कुछ अर्निंग थोड़े करवानी है। बस उसका शौक पूरा हो जाये।"
"सिर पकड़कर आधी-आधी रात तक रोती रहती हूँ मैं। तू भी ऐसे ही रोएगा।"
"क… क्यों ?"
"अब तुझसे अपनी कंगाली छिपी है क्या?"
"भाभी वैसे तो घर ठीक-ठाक चलता ही है। हाँ , ऐशो आराम की चीज में जरूर कुछ कमी है, मगर मेरे साथ ऐसा कोई लफड़ा नहीं होने का।"
"तुम्हारे साथ तो और भी होगा।"
"कैसे ?"
"तू मुजरिम पकड़ेगा, यह छुड़ा देगी। फिर होगी तेरे सर्विस बुक में बैड एंट्री! मुजरिम बरी होने के बाद इस्तगासे करेंगे, मानहानि का दावा करेंगे, फिर तू आधी रात क्या सारी -सारी रात रोएगा। मैं कहती हूँ कि उसे कोई स्कूल खुलवा दो या फिर ब्यूटी पार्लर।"
"ओह नो भाभी ! मुझे तो उसे वकील ही बनाना है।"
"बनाना है तो बना, बाद में रोने मेरे पास नहीं आना।"
"अब तुम जरा रोमेश से तो कह दो, उस जैसा तो वही बना सकता है।"
"सबके सब पागल हैं, यही थी प्राइवेट बात। मैं कह दूंगी, बस।"
थोड़ी देर में दोनों ड्राइंग रूम में आ गये। उस वक्त रोमेश कानून की बुनियादी परिभाषा वैशाली को समझा रहा था।
''कानून की देवी की आँखों पर पट्टी इसलिये पड़ी होती है, क्यों कि वहाँ जज्बात, भावनायें नहीं सुनी जाती। कई बार देखा भी गलत हो सकता है, बस जरूरत होती है सिर्फ सबूतों की।"
''लो इन्होंने तो पाठ भी पढाना शुरू कर दिया।'' सीमा ने कहा ,
"चल वैशाली , जरा मेरे साथ किचन तो देख ले, यह किचन भी बड़े काम की चीज है। यहाँ भी जज्बात काम नहीं करते, प्याज टमाटर काम करते हैं।"
सब एक साथ हँस पड़े। और सीमा के साथ वैशाली किचन में चली गई।
जारी रहेगा...![]()
Kafi had tak Romesh ne bat sahii kahee apni Bivi Seema se# 8
रोमेश घर पर ही था , शाम हो गयी थी। वह आज सीमा के साथ किसी अच्छे होटल
में डिनर के मूड में था, उसी समय फोन की घंटी बज उठी, फोन खुद रमेश ने उठाया।
''एडवोकेट रोमेश सक्सेना स्पीकिंग।''
''नमस्ते वकील साहब, हम माया दास बोल रहे हैं।''
''माया दास कौन?''
''आपकी श्रीमती ने कुछ बताया नहीं क्या, हम चीफ मिनिस्टर जे.एन.साहब के पी.ए. हैं।''
''कहिए कैसे कष्ट किया?''
"कष्ट की बात तो फोन पर बताना उचित नहीं होगा, मुलाकात का वक्त तय कर लिया
जाये, आज का डिनर हमारे साथ हो जाये, तो कैसा हो?"
"क्षमा कीजिए, आज तो मैं कहीं और बिजी हूँ।''
''तो फिर कल का वक़्त तय कर लें, शाम को आठ बजे होटल ताज में दो सौ पांच नंबर सीट हमारी ही है, बारह महीने हमारी ही होती है।''
रोमेश को भी जे.एन. में दिलचस्पी थी , उसे कैलाश वर्मा का काम भी निबटाना था , यही सोचकर उसने हाँ कर दी।
''ठीक है, कल आठ बजे।''
"सीट नंबर दो सौ पांच ! होटल ताज!'' माया दास ने इतना कहकर फोन कट कर दिया।
कुछ ही देर में सीमा तैयार होकर आ गई। बहुत दिनों बाद अपनी प्यारी पत्नी के साथ वह बाहर डिनर कर रहा था, वह सीमा को लेकर चल पड़ा। डिनर के बाद दोनों काफी देर तक जुहू पर घूमते रहे। रात के बारह बजे कहीं जा कर वापसी हो पायी।
अगले दिन वह माया दास से मिला।
माया दास खद्दर के कुर्ते पजामे में था, औसत कद का सांवले रंग का नौजवान था,
देखने से यू.पी. का लगता था, दोनों हाथों में चमकदार पत्थरों की 4 अंगूठियां पहने हुए था और गले में छोटे दाने के रुद्राक्ष डाले हुए था।
"हाँ , तो क्या पियेंगे? व्हिस्की, स्कॉच, शैम्पैन?''
"मैं काम के समय पीता नहीं हूँ, काम खत्म होने पर आपके साथ डिनर भी लेंगे, कानून की भाषा के अंतर्गत जो कुछ भी किया जाये, होशो -हवास में किया जाये, वरना कोई एग्रीमेंट वेलिड नहीं होता।"
"देखिये, हम आपसे एक केस पर काम करवाना चाहते हैं।" माया-दास ने केस की बात सीधे ही शुरू कर दी।
''किस किस्म का केस है?"
"कत्ल का।"
रोमेश सम्भलकर बैठ गया।
"वैसे तो सियासत में कत्लो-गारत कोई नई बात नहीं। ऐसे मामलों से हम लोग सीधे खुद ही निबट लेते हैं, मगर यह मामला कुछ दूसरे किस्म का है। इसमें वकील की जरूरत पड़ सकती है। वकील भी ऐसा, जो मुलजिम को हर रूप में बरी करवा दे।"
"और वह फन मेरे पास है।''
''बिल्कुल उचित, जो शख्स इकबाले जुर्म के मुलजिम को इतने नाटकीय ढंग से बरी करा सकता है, वह हमारे लिए काम का है। हमने तभी फैसला कर लिया था कि केस आपसे लड़वाना होगा।''
"मुलजिम कौन है? और वह किसके कत्ल का मामला है?"
''अभी कत्ल नहीं हुआ, नहीं कोई मुलजिम बना है।''
''क्या मतलब?" रोमेश दोबारा चौंका।
मायादास गहरी मुस्कान होंठों पर लाते हुए बोला,
"कुछ बोलने से पहले एक बात और
बतानी है। जो आप सुनेंगे, वह बस आप तक रहे। चाहे आप केस लड़े या न लड़े।"
''हमारे देश में हर केस गोपनीय रखा जाता है, केवल वकील ही जानता है कि उसका मुवक्किल दोषी है या निर्दोष, आप मेरे पेशे के नाते मुझ पर भरोसा कर सकते हैं।''
''तो यूं जान लो कि शहर में एक बहुत महत्वपूर्ण व्यक्ति का कत्ल जल्द ही होने जा रहा है, और यह भी कि उसे कत्ल करने वाला हमारा आदमी होगा। मरने वाले को भी पूर्वाभास है, कि हम उसे मरवा सकते हैं। इसलिये उसने अपने कत्ल के बाद का भी जुगाड़ जरूर किया होगा। उस वक्त हमें आपकी जरूरत पड़ेगी। अगर पुलिस कोई दबाव में आकर पंगा ले, तो कातिल अग्रिम जमानत पर बाहर होना चाहिये। अगर उस पर मर्डर
केस लगता है, तो वह बरी होना चाहिये। यह कानूनी सेवा हम आपसे लेंगे, और धन की सेवा जो आप कहोगे, हम करेंगे।''
"जे.एन. साहब ऐसा पंगा क्यों ले रहे हैं?"
"यह आपके सोचने की बात नहीं, सियासत में सब जायज होता है। एक लॉबी उसके खिलाफ है, जिससे उन्हें मुख्यमंत्री पद से हटाने का प्रपंच चलाया हुआ है।
''एम.पी . सावंत !"
माया-दास एकदम चुप हो गया,उसके चेहरे पर चौंकने के भाव उभरे, ललाट की रेखाए तन गई, परंतु फिर वह जल्दी ही सामान्य होता चला गया।
''पहले डील के लिए हाँ बोलो, केस लेना है? और रकम क्या लगेगी। बस फिर पत्ते खोले जायेंगे, फिर भी हम कत्ल से पहले यह नहीं बतायेंगे कि कौन मरने वाला है।''
माया दास ने कुर्ते की जेब में हाथ डाला और दस हज़ार की गड्डी निकालकर बीच मेज पर रख दी, ''एडवांस !''
"मान लो कि केस लड़ने की नौबत ही नहीं आती।"
"तो यह रकम तुम्हारी।"
"फिलहाल यह रकम आप अपने पास ही रखिये, मैं केस हो जाने के बाद ही केस की स्थिति देखकर फीस तय करता हूँ।"
"ठीक है, हमें कोई एतराज नहीं। अगले हफ्ते अखबारों में पढ़ लेना, न्यूज़ छपने के तुरंत बाद ही हम तुमसे संपर्क करेंगे।''
डिनर के समय माया दास ने इस संबंध में कोई बात नहीं की। वह समाज सेवा की बातें करता रहा, कभी-कभी जे.एन. की नेकी पर चार चांद लगाता रहा।
"कभी मिलाएंगे आपको सी.एम. से।"
"हूँ",
मिल लेंगे। कोई जल्दी भी नहीं है।"
रमेश साढ़े बारह बजे घर पहुँचा। जब वह घर पहुँचा, तो अच्छे मूड में था, उसके कुछ किए बिना ही सारा काम हो गया था। उसने माया दास की आवाज पॉकेट रिकॉर्डर में टेप कर ली थी, और कैलाश वर्मा के लिए इतना ही सबक पर्याप्त था। यह बात साफ हो गई कि सावंत के मर्डर का प्लान जे.एन. के यहाँ रचा जा रहा है। उसकी बाकी की पेमेंट खरी हो गई थी।
वह जब चाहे, यह रकम उठा सकता था। उसे इस बात की बेहद खुशी थी।
जब वह बेडरूम में पहुँचा, तो सीमा को नदारद पा कर उसे एक धक्का सा लगा। उसने नौकर को बुलाया।
''मेमसा हब कहाँ हैं?"
"वह तो साहब अभी तक क्लब से नहीं लौटी।''
"क्लब ! क्लब !! आखिर किसी चीज की हद होती है, कम से कम यह तो देखना चाहिये कि हमारी क्या आमदनी है।''
रोमेश ने सिगरेट सुलगा ली और काफी देर तक बड़बड़ाता रहा।
"कही सीमा , किसी और से?'' यह विचार भी उसके मन में घुमड़ रहा था, वह इस विचार को तुरंत दिमाग से बाहर निकाल फेंकता, परन्तु विचार पुनः घुमड़ आता और उसका सिर पकड़ लेता।
निसंदेह सीमा एक खूबसूरत औरत थी। उनकी मोहब्बत कॉलेज के जमाने से ही परवान चढ़ चुकी थी। सीमा उससे 2 साल जूनियर थी। बाद में सीमा ने एयरहोस्टेस की नौकरी कर ली और रोमेश ने वकालत। वकालत के पेशे में रोमेश ने शीघ्र ही अपना सिक्का जमा लिया। इस बीच सीमा से उसका फासला बना रहा, किन्तु उनका पत्र और टेलीफोन पर संपर्क बना रहता था।
रोमेश ने अंततः सीमा से विवाह कर लिया, और विवाह के साथ ही सीमा की नौकरी भी छूट गई। रमेश ने उसे सब सुख-सुविधा देने का वादा तो किया, परंतु पूरा ना कर सका। घर-गृहस्थी में कोई कमी नहीं थी, लेकिन सीमा के खर्चे दूसरे किस्म के थे। सीमा जब घर लौटी, तो रात का एक बज रहा था। रोमेश को पहली बार जिज्ञासा हुई कि देखे उसे छोड़ने कौन आया है? एक कंटेसा गाड़ी उसे ड्रॉप करके चली गई। उस कार में कौन था, वह नजर नहीं आया।
रोमेश चुपचाप बैड पर लेट गया।
सीमा के बैडरूम में घुसते ही शराब की बू ने भी अंदर प्रवेश किया। सीमा जरूरत से ज्यादा नशे में थी। उसने अपना पर्स एक तरफ फेंका और बिना कपड़े बदले ही बैड पर धराशाई हो गई।
''थोड़ी देर हो गई डियर।'' वह बुदबुदाई,
''सॉरी।''
रोमेश ने कोई उत्तर नहीं दिया।
सीमा करवट लेकर सो गई।
सुबह ही सुबह हाजी बशीर आ गया। हाजी बशीर एक बिल्डर था, लेकिन मुम्बई का बच्चा-बच्चा जानता था, कि हाजी का असली धंधा तस्करी है। वह फिल्मों में भी फाइनेंस करता था, और कभी-कभार जब गैंगवार होती थी, तो बशीर का नाम सुर्खियों में आ जाता था।
''मैं आपका काम नहीं कर सकता हाजी साहब।"
"पैसे बोलो ना भाई ! ऐसा कैसे धंधा चलाता है? अरे तुम्हारा काम लोगों को छुड़ाना है। वकील ऐसा बोलेगा, तो अपन लोगों का तो साला कारोबार ही बंद हो जायेगा।"
वह बात कहते हुए हाजी ने ब्रीफकेस खोल दिया।
''इसमें एक लाख रुपया है। जितना उठाना हो , उठा लो। पण अपुन का काम होने को मांगता है। करी-मुल्ला नशे में गोली चला दिया। अरे इधर मुम्बई में हमारे आदमी ने पहले कोई मर्डर नहीं किया। मगर करी-मुल्लाह हथियार सहित दबोच लिया गया वहीं के वहीं। और वह क्या है, गोरेगांव का थाना इंचार्ज सीधे बात नहीं करता। वरना अपुन इधर काहे को आता।''
''इंस्पेक्टर विजय रिश्वत नहीं लेता।"
''यही तो घपला है यार! देखो, हमको मालूम है कि तुम छुड़ा लेगा। चाहे साला कैसा ही मुकदमा हो।''
''हाजी साहब, मैं किसी मुजरिम को छुड़ाने का ठेका नहीं लेता, उसको अंदर करने का काम करता हूँ।"
"तुम पब्लिक प्रॉसिक्यूटर तो है नहीं।"
"आप मेरा वक्त खराब न करें, किसी और वकील का इंतजाम करें।"
"ये रख।"
उसने ब्री फकेस रोमेश की तरफ घुमाया।
रोमेश ने उसे फटाक से बंद किया,
''गेट आउट! आई से गेट आउट!!''
''कैसा वकील है यार तू।'' बशीर का साथी गुर्रा उठा, “बशीर भाई इतना तो किसी के आगे नहीं झुकते, अबे अगर हमको खुंदक आ गई तो।"
बशीर ने तुरंत उसको थप्पड़ मार दिया।
''किसी पुलिस वाले से और किसी वकील से कभी इस माफिक बात नहीं करने का। अपुन लोगों का धंधा इन्हीं से चलता है। समझा !'' हाजी ने ब्रीफकेस उठा लिया,
''रोमेश भाई, घर में आई दौलत कभी ठुकरानी नहीं चाहिये। पैसा सब कुछ होता है, हमारी नसीहत याद रखना।"
इतना कहकर हाजी बाहर निकल गया। उसके जाते ही सीमा, रोमेश के पास टपक पड़ी।
"एक लाख रुपये को फिर ठोकर मार दी तुमने रोमेश ! वह भी हाजी के।"
''दस लाख भी न लूँ।'' रोमेश ने सीमा की बात बीच में काटते हुए कहा ।
''तुम फिर अपने आदतों की दुहाई दोगे, वही कहोगे कि किसी अपराधी के लिए केस नहीं लड़ना। तलाशते रहो निर्दोषों को और करते रहो फाके।"
"हमारे घर में अकाल नहीं पड़ रहा है कोई। सब कुछ है खाने पहनने को। हाँ अगर कमी है, तो सिर्फ क्लबों में शराब पीने की।''
"तो तुम सीधा मुझ पर हमला कर रहे हो।''
"हमला नहीं नसीहत मैडम ! नसीहत! जो औरतें अपने पति की परवाह किए बिना रात एक-एक बजे तक क्लबों में शराब पीती रहेंगी, उनका फ्यूचर अच्छा नहीं होता । डार्कहोता है।"
"शराब तुम नहीं पीते क्या? क्या तुम होटलों में अपने दोस्तों के साथ गुलछर्रे नहीं उड़ाते? रात तो तुम ताज में थे। अगर तुम ताज में डिनर ले सकते हो, शराब पी सकते हो , तो फिर मुझे पाबंदी क्यों?"
"मैं कारोबार से गया था।"
"क्या कमाया वहाँ? वहाँ भी कोई अपराधी ही होगा। बहुत हो चुका रोमेश ! मैं अभी भी खत्म नहीं हो गई, मुझे फिर से नौकरी भी मिल सकती है।"
"याद रखो सीमा , आज के बाद तुम शराब नहीं पियोगी।''
"तुम भी नहीं पियोगे।"
"नहीं पियूँगा।"
''सिगरेट भी नहीं पियोगे।"
"नहीं , तुम जो कहोगी, वह करूंगा। मगर तुम शराब नहीं पियोगी और अगर किसी क्लब में जाना भी हो, तो मेरे साथ जाओगी। वो इसलिये कि नंबर एक, मैं तुमसे बेइन्तहा प्यार करता हूँ, और नंबर दो, तुम मेरी पत्नी हो।"
अगर उसी समय वैशाली न आ गई होती , तो हंगामा और भी बढ़ सकता था। वैशाली के आते ही दोनों चुप हो गये और हँसकर अपने-अपने कामों में लग गये।
वैशाली कोर्ट से लौटी , तो विजय से जा कर मिली । दोनों एक रेस्टोरेंट में बैठे थे ।
"शादी के बाद क्या ऐसा ही होता है विजय ?"
"ऐसा क्या ?"
"बीवी क्लबों में जाती हो। बिना हसबैंड के शराब पीती हो। और फिर झगड़ा, छोटी -छोटी बात पर झगड़ा। लाइफ में क्या पैसा इतना जरूरी है कि पति-पत्नी में दरार डाल दे?''
''पता नहीं तुम क्या बहकी-बहकी बातें कर रही हो?''
''दरअसल मैंने आज भैया-भाभी की सब बातें सुनली थीं । फ्लैट का दरवाजा खुला था , मैं अंदर आ गई थी, और मैंने उनकी सब बातें सुन लीं।''
''भैया -भाभी ?"
''रोमेश भैया की।"
''ओह ! क्या हुआ था?" विजय ने पूछा।
''हाजी बशीर एक लाख रुपये लेकर आया था, उसका कोई आदमी बंद हो गया है, रोमेश भैया बता रहे थे, तुम्हारे थाने का केस है।''
''अच्छा ! अच्छा !! करीमुल्ला की बात कर रहा होगा। रात उसने एक आदमी को नशे में गोली मार दी, हमें भी उसकी बहुत दिनों से तलाश थी, मगर यह बशीर वहाँ कैसे पहुंच गया?''
वैशाली ने सारी बातें बता डालीं ।
''ओह ! तो यह बात थी।'' विजय ने गहरी सांस ली।
''क्या हम लोग इसमें कुछ कर सकते हैं? कोई ऐसा काम जो रोमेश भैया और भाभी में झगड़ा ही ना हो।''
''एक काम हो सकता है।'' विजय ने कुछ सोचकर कहा, ''रोमेश की मैरिज एनिवर्सरी आने वाली है, इस मौके पर एक पार्टी की जाये और फिर रोमेश के हाथों एक गिफ्ट भाभी को दिलवाया जाये, गिफ्ट पाते ही सारा लफड़ा ही खत्म हो जायेगा।''
''ऐसा क्या ?''
''अरे जानेमन, कभी-कभी छोटी बात भी बड़ा रूप धारण कर लेती है, एक बार सीमा भाभी ने झावेरी वालों के यहाँ एक अंगूठी पसंद की थी, उस वक्त रोमेश के पास भुगतान के लिए पैसे न थे, और उसने वादा किया कि शादी की आने वाली सालगिरह पर एक अंगूठी ला देगा। यह अंगूठी रोमेश आज तक नहीं खरीद सका। कभी-कभार तो इस अंगूठी का किस्सा ही तकरार का कारण बन जाता है, अंगूठी मिलते ही भाभी खुश हो जायेगी और बस टेंशन खत्म।''
''मगर वह अंगूठी है कितने की ?''
''उस वक्त तो पचास हज़ार की थी, अब ज्यादा से ज्यादा साठ हज़ार की हो गई होगी।''
''इतने पैसे आएंगे कहाँ से ?"
"कोई चक्कर तो चलाना ही होगा।''
जारी रहेगा......![]()
Thank you very much for your valuable review and support bhaiKafi had tak Romesh ne bat sahii kahee apni Bivi Seema se
Kher
Dekhte hai Vijay or Vashali kya kerte hai is mamle me
@DEVIL MAXIMUM Thanks brotherKya to mast update hai ye wala maja aagaya bechari Seema
.
Ab dekhte hai Romesh baboo kya kya krne wale hai or kaise banayge Vashali ko Vakil
For your wonderful support 
Bahut hi shandar update he Raj_sharma Bro,
CM ke PA ki sabhi baat romy ne record kar li he..........ab uska dilli wala case to done ho gaya.....
Vijay aur vaishali jarur koi na koi scheme lagayenge............romy aur seema ki anniversary ka gift shayad ye dono hi arrange kare
Keep rocking Bro
Mai to tumhe aacha aadmi samjhta tha raj bhai tum to mohalle mai talak karwani wali chachi nikle
Bechare Romesh babu ke lanka laga rahe ho…
Ye twist mast daal diya Romesh ka wife ke upar shaq karne ka aur ye chal kya raha h abhi katal hua h nahi karne wala aur hone wala apni apni taiyari pahle kar rhe hai…
Nice update keep it up
What an story yaar
starting thodi si ha thodi si ajib thi ...than its beacoms into a suspance....now this into a love great idea great writer
Raj_sharma भाई जी, लीजिए - हम भी आपकी कहानी पर पहुँच ही गए।
पहले छः अपडेट शायद मुख्य पात्रों को जमाने में लग गए : रोमेश - सीमा, और विजय - वैशाली। इन्ही पात्रों के इर्द गिर्द चलेगी कहानी। ये हालिया दो अपडेट ही शायद मुख्य कहानी का हिस्सा हैं। तो उसी की बातें करते हैं।
सावंत राव को अपनी हत्या होने का अंदेशा है, और सबसे पहले चीफ़ मिनिस्टर जनार्दन नागा रेड्डी पर ही शक जाता है। लेकिन जैसा कि अनगिनत कहानियाँ पढ़ने से हमको ट्रेनिंग मिली है कि जिस पर ऑब्वियस शक़ हो, वो खूनी नहीं होता - तो उस लॉजिक से मुख्यमंत्री जी शायद ये खून न करें/करवाएँ। लेकिन रोमेश के हिसाब से सावंत का मर्डर मुख्यमंत्री ही करवाने वाला है। ख़ैर, तो बचे, चन्दन दादा और मेधा-रानी। अभी उनकी तरफ़ से पत्ते फेंके जाने बाकी हैं, इसलिए कुछ कहा नहीं जा सकता। सबसे बड़ी बात, क़त्ल किसका होगा, वो नहीं पता। अंदेशा होना एक अलग बात है, लेकिन टार्गेट होना अलग। क्या पता इतना शोर मचा कर मिस्टर राव ही किसी को अपने रास्ते से हटा देना चाहते हों?
रोमेश की प्रसिद्धि बात का बतंगड़ होने के कारण हुई है - जिसको उसने छुड़ाया, वो पहले से ही बेगुनाह था। यह बात लोगों को समझ आनी चाहिए। गुनहगार को वो नहीं छुड़ाता शायद। लेकिन जो भी केस उसको अप्प्रोच कर रहे हैं, वो सभी गुनहगार लग रहे हैं। क़रीमुल्लाह ने खून किया, इसलिए रोमेश उसका केस नहीं लेना चाहता। यह बात सीमा ने भी साफ़ कर दी। राव वाले केस में अभी तक मर्डर हुआ ही नहीं है, लिहाज़ा कोई मुल्ज़िम/मुज़रिम है ही नहीं।
सीमा इतनी ख़र्चीली क्यों है, समझ में नहीं आया। शौक़ होना अलग बात है, फ़िज़ूलख़र्ची अलग! और अगर उसकी नौकरी छूट गई थी, तो अन्य नौकरियाँ भी मिल सकती हैं। भूतपूर्व एयरहोस्टेस को हॉस्पिटैलिटी इंडस्ट्री में नौकरी मिलना कठिन नहीं होना चाहिए। उसके कज़िन से रोमेश की मुलाकात भी नहीं हुई है, जो बड़े ही रहस्य की बात है। देर रात क्लब में जाना… थोड़ा पेंचीदा चरित्र लग रहा है सीमा का। हाँलाकि सामान्य तौर पर देखने पर वो अच्छी, और मित्रवत महिला मालूम होती है। तो चक्कर क्या है? क्या वो कोई हाई-क्लास प्रॉस्टिट्यूट है? लेकिन ऐसे रहस्य छुपाने कठिन हैं, ख़ास कर जब विजय स्वयं पुलिस में है।
वैशाली का विजय की मंगेतर बनने का सफर बड़ा ही तेज रहा। कोई संकेत ही नहीं मिला। इसलिए कहानी का वो पहलू भी इंटरेस्टिंग है। लेकिन चूंकि कहानी थ्रिलर है, तो शायद इन बातों पर ध्यान न गया हो।
न जाने क्यों लगता है कि कोई गुनाह ‘घर’ में ही होगा/होने वाला है।
सबसे अच्छी बात मुझे जो पसंद आई वो है कहानी की रफ़्तार। घटनाक्रम तेजी से आगे बढ़ता है। जो ठीक भी है। हर बात का डिटेल्ड वर्णन करना ज़रूरी नहीं है। सधी हुई भाषा है, तीखा (शार्प) लेखन है। पढ़ने में आनंद आता है, और आगे के लिए रूचि बनती है।
बहुत बढ़िया Raj_sharma भाई!![]()
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Bahut khoob shandar Lajawab Jabardast superb ekdum dhasu update
Shandar jabardast update![]()
Bahut hi badhiya or thrilling update
Savant rao ka katl hone wala ha or jo katl karne wala ha usne ronesh ko approach kiya ha ki katil ko chhudane ke liye chal kya raha ha dono taraf se romesh ko approach hui ha romesh ke kiye to asani se case sulajh gaya usne maya das ko mana to kar diya jisse sawant rav ko bacha sake or uski payment bhi mil sake lekin dekhte han kya pata katla kisi or ka ho jaye ya fir savant rao ko koi or mar de dekhte han
Idhar romesh ne somu ko kya bacha liya sab uske pas mujrimo ko chhudane ke kiye aa rahe han lekin koi nahi janta ki somu to nirdosh tha lekin ye to apradhi ko chhudane ke liye aa rahe han jo romesh kabhi nahi karna chahega chhahe koi kitne hi paise de de use
Idhar seema ka alg chhakkar ha romes ki life me pahle hi itni uljhane han or uper se biwi alag se pareshan kar rahi ha idhar romesh ko seema per shak ho gaya ha lekin seema aisa kyon kar rahi ha idhar seema ke secret cousin ke bare me bhi mahi bataya gaya ha
Idhar vaishali or vijay apna dimag chala rahe han romesh or seema ke bich sab sulah karne ke liye dekhte kamyab ho oate han ya nahi
शानदार अपडेट,
कहानी अभी रफ्तार पकड़ रही है और इंटरस्टिंग बनती जा रही है,
Behtareen
Waiting for next
Jasusi aur suspense se bharpur, awesome, curious update
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Bahut hi mazedaar update, Romesh ko to dono side se case mil raha hai. Jiska khoon hone wala hai, aur jo khoon krne wala hai..
वैशाली गरीब थी , उसकी माली हालात ठीक नही थी इसलिए रोमेश साहब ने उससे कोई फीस की डिमांड नही की , यह समझ मे आता है लेकिन , जब क्लाइंट अमीर लोग हों , रसूखदार लोग हों , बड़े बड़े सांसद या चीफ मिनिस्टर तक हों तब फीस के मामले मे इतना भी दरियादिली नही दिखाना चाहिए ।
एक चीफ मिनिस्टर और केस की फीस महज एक लाख रुपए , यह नाइंसाफी है । ऐसा लगता है या तो रोमेश साहब साठ - सत्तर के युग मे जी रहे हैं या उन्हे धन-दौलत की कोई खास जरूरत नही है ।
हमारे सुप्रीम कोर्ट के मशहूर वकील एक सुनवाई पर चालीस पचास लाख चार्ज करते हैं । उस हिसाब से रोमेश साहब कम से कम चार पांच लाख रुपए चार्ज तो कर ही सकते है ।
रोमेश साहब फाइनेंशियल प्रॉब्लम के साथ साथ पर्सनल प्रॉब्लम से भी जूझ रहे है । अपनी पत्नी को ठीक तरह से टैकल करें , ठीक तरह से हैंडल करें अन्यथा यह प्रॉब्लम उनके लिए आगे चलकर काफी नुकसानदेह होगी ।
वैसे इस बार का केस काफी दिलचस्प है । सासंद सावंत साहब को अपनी हत्या का अंदेशा है और चीफ मिनिस्टर के सेक्रेटरी ने इस भावी हत्या की बात भी कबूल कर ली है । वजह वही पोलिटिकल स्वार्थ ।
मतलब यह केस पुरी तरह साफ साफ है ।
लेकिन क्या रोमेश साहब इस कत्ल को होने से रोक पायेंगे ? क्या वो डायरेक्ट चीफ मिनिस्टर से पंगा ले सकते है ?
या फिर कोई और ही ट्विस्ट आने वाला है इस केस मे ?
खुबसूरत अपडेट शर्मा जी । बेहतरीन थ्रिलर स्टोरी लिख रहे है आप । एक परफेक्ट जासूसी उपन्यास की तरह ।
आउटस्टैंडिंग एंड जगमग जगमग ।
और सुप्रीम मेम्बर शीप के लिए बधाई आपको ।
Somu ki toh seth ji ne chupke se maar liab dekte hai waise ye Vaishali mast hai
kahi lead herione toh nhi
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Besabari se intezaar rahega next update ka Raj_sharma bhai....
Kafi had tak Romesh ne bat sahii kahee apni Bivi Seema se
Kher
Dekhte hai Vijay or Vashali kya kerte hai is mamle me
Superb thriller ,vakil aur police inspector ke beech mein upyukt samvad# 9
अगले हफ्ते रोमेश से विजय की मुलाकात हुई ।
"गुरु ।'' विजय बोला, ''कुछ मदद करोगे।''
"तुम्हारा तो कोई-ना-कोई मरता ही रहता है,अब कौन मर गया?''
"कोई नहीं यार, बस कुछ रुपयों की जरूरत आ पड़ी।''
"रुपए और मेरे पास।'' रोमेश ने गर्दन झटकी।
''अबे यार, अर्जेंट मामला है। किसी की जिंदगी मौत का सवाल है। मुझे हर हालत में साठ हज़ार का इंतजाम करना है। तुम बताओ कितना कर सकते हो? एक महीने बाद तुम चाहे मुझसे साठ के साठ हज़ार ले लेना। ज्यादा भी ले लेना, चलेगा।''
रोमेश कुछ देर तक सोचता रहा, शादी की सालगिरह एक माह बाद आने वाली थी। कैलाश वर्मा ने उसे तीस हज़ार दिये थे, बाकी बाद में देने को कहा था। तीस हज़ार विजय के काम आ गये, तो उससे जरूरत पड़ने पर साठ ले सकता था, और साठ हज़ार में सीमा के लिए अंगूठी खरीदकर प्रेजेंट दे सकता था।
''तीस हज़ार में काम चल जा येगा ?''
''बेशक चलेगा, दौड़कर चलेगा।''
''ठीक है तीस दिये।'' विजय जानता था, रोमेश स्वाभिमानी व्यक्ति है। अगर विजय उसकी स्थिति को भांपते हुए तीस हज़ार की मदद की पेशकश करता, तो शायद रोमेश ऑफर ठुकरा देता। न ही वह किसी से उधार मांगने वाला था। लेकिन इस तरह से दाँव फेंककर विजय ने उसे चक्रव्यूह में फांस लि या था।
''साठ हज़ार खर्च करके मुझे एक लाख बीस हज़ार मिल जायेगा, जिसमें से साठ हज़ार तुम्हारा समझो, क्यों कि आधी रकम तुम्हारी है।''
"मैं तुमसे तुम्हारा बिजनेस नहीं पूछूंगा कि ऐसा कौन सा धंधा है? जाहिर है तुम कोई खोटा धंधा तो करोगे नहीं, मुझे एक महीने में रिटर्न कर देना। साठ ही लूँगा। और ध्यान रखना, मैं कभी किसी से उधार नहीं पकड़ता।''
"मुझे मालूम है।"
विजय ने यह पंगा ले तो लिया था, अब उसके सामने समस्या यह थी कि बाकी के तीस का इंतजाम कैसे करे? उसकी ऊपर की कोई कमाई तो थी नहीं। उसके सामने अब दो विकल्प थे। उसकी माँ ने बहू के लिए कुछ आभूषण बनवाए हुए थे। पिता का स्वर्गवास हुए तो चार साल गुजर चुके थे।
विजय का एक भाई और था, जो छोटा था और बड़ौदा में इंजीनियरिंग की शिक्षा प्राप्त कर रहा था। उसका भार भी विजय के कंधों पर हो ता था। माँ ने अपनी सारी कमाई से बस एक मकान बनाया था और बहू के लिए जेवर जोड़े थे। इन आभूषणों की स्वामिनी तो वैशाली थी।
माँ ने भी वैशाली को पसंद कर लिया था और जल्दी उसकी सगाई होने वाली थी। अड़चन सिर्फ यह थी कि वैशाली शादी से पहले कोई मुकदमा लड़कर जीतना चाहती थी।
वैशाली रोमेश की असिस्टेंट थी और रोमेश के मुकदमे को देखती थी। व्यक्तिगत रूप से अभी तक उसे कोई केस मिला भी नहीं था। आभूषणों को गिरवी रख तीस हज़ार का प्रबंध करना, यह एक तरीका था या फिर मकान के कागजात रखकर रकम मिल सकती थी।
वह सोचने लगा कि तीस हज़ार की रकम, वह साल भर में किसी तरह चुकता कर देगा और गिरवी रखी वस्तु वापस मिल जायेगी। अंत में उसने तय किया कि आभूषण रख देगा।
रोमेश की घरेलू जिंदगी में अब छोटी-छोटी बातों पर झगड़े होने लगे थे। अगर इस वर्ष रोमेश अपनी पत्नी को अंगूठी प्रेजेंट कर न पाया, तो कोई तूफ़ान भी आ सकता था। सीमा ने अब क्लब जाना बंद कर दिया था। यह बात रोमेश ने उसे एक दिन बताई।
"जब वह एयरहोस्टेज रही होगी, तब उसे यह लत पड़ गई थी। उसके कुछ दोस्त भी होंगे, जो जाहिर है कि ऊंचे घरानों के होंगे। मैंने सोचा था वह खुद समझकर घरेलू जिंदगी में लौट आयेगी, मगर ऐसा नहीं हो पाया। जाहिर है, मैंने भी कभी उसके प्रोग्रामों में दखल नहीं दिया। मगर फिर हद होने लगी, मैं जो कमाऊँ वह उसे क्लबों में ठिकाने लगा देती थी। और फिर मैं उसके लिए अंगूठी तक नहीं खरीद सका।''
''अब क्या दिक्कत है, उस दिन के बाद भाभी ने क्लब छोड़ दिया, शराब छोड़ दी, अब तो तुम्हें शादी की सालगिरह पर जोरदार पार्टी दे देनी चाहिये।''
''उसके मन के अंधड़ को मैं समझता हूँ। वह मुझसे रुठ गई है यार, क्या करूं?"
"इस बार अंगूठी दे ही देना, क्या कीमत है उसकी?"
''अठावन हज़ार हो गई है।''
"साठ हज़ार मिलते ही अबकी बार मत चूकना चौहान। बस फिर सब गिले-शिकवे दूर हो जायेंगे।''
दस दिन बाद ही एक धमाका हुआ। सभी अखबार सावंत की सनसनी खेज हत्या की वारदात से रंगे हुए थे। टी.वी., रेडियो हर जगह एक ही प्रमुख समाचार था, एम.पी . सावंत की बर्बर हत्या कर दी गई। सावंत को स्टेनगन से शूट किया गया था और उसके शरीर में आठ गोलियां धंस गई थीं।
यह घटना गोरेगांव के एक क्रासिंग पर घटी थी। इंस्पेक्टर विजय तुरंत ही पूरी फोर्स के साथ घटना स्थल पर पहुंच गया। एम.पी . सावंत की जिस समय हत्या की गई, वह उस समय एक बुलेटप्रूफ कार में था। उसके साथ दो गनर भी मौजूद थे। दोनों गनर बुरी तरह घायल थे। घटना इस प्रकार बताई जाती थी- सावंत गाड़ी में बैठा था, अचानक इंजन की खराबी से गाड़ी रास्ते में रुक गई। गोरेगांव के इलाके में एक चौराहे के पास ड्राइवर और गनर ने धक्के देकर उसे किनारे लगाया।
उस समय सावंत को कहीं जल्दी जाना था। वह गाड़ी से उतरकर टैक्सी देखने लगा, तभी हादसा हुआ।
एक टैक्सी सावंत के पास रुकी। ठीक उसी तरह जैसे सवारी उतरती है, टैक्सी के पीछे का द्वार खुला और एक नकाबपोश प्रकट हुआ। इससे पहले कि सावंत कुछ कह पाता, नकाबपोश ने निहायत फिल्मी अंदाज में स्टेनगन से गोलियों की बौछार कर डाली। गनर फायरिंग सुनकर पलटे कि उन पर भी फायर खोल दिये गये, गनर गाड़ी के पीछे दुबक गये। एक के कंधे पर गोली लगी थी और दूसरे की टांग में दो गोलियां बताई गई।
ड्राइवर गाड़ी के पीछे छिप गया था। नकाबपोश जिस टैक्सी से उतरा था, उसी से फरार हो गया। पुलिस को टैक्सी की तलाशी शुरू करनी थी।
विजय इस घटना के कारण उन दिनों बहुत व्यस्त हो गया। उस इलाके के बहुत से बदमाशों की धरपकड़ की, चारों तरफ मुखबिर लगा दिये और फिर रोमेश ने तीन दिन बाद ही समाचार पत्र में पढ़ा कि सावंत के कत्ल के जुर्म में चंदन को आरोपित कर दिया गया है।
चंदन अंडर ग्राउंड था और पुलिस उसे तलाश कर रही थी। विजय ने दावा किया कि उसने मामला खोज दिया है, अब केवल हत्यारे की गिरफ्तारी होना बाकी है।
चंदन अभी तस्करी का धंधा करता था और कभी वह सावंत का पार्टनर हुआ करता था।
विजय की इस तफ्तीश से रोमेश को भारी कोफ्त हुई। उसने विजय को फोन पर तलाशना शुरू किया , करीब चार-पांच घंटे बाद शाम को खुद विजय का फोन आया।
"क्या बात है?तुम मुझे क्यों तलाश रहे हो? भई जरा बहुत व्यस्तता बढ़ी हुई है, पढ़ ही रहे होगे अखबारों में।"
''वह सब पढ़ने के बाद ही तो तुम्हारी तलाश शुरू की।''
"कोई खास बात?"
"खास बात यह है कि अगर तुमने चंदन को गिरफ्तार किया, तो मैं उसका मुकदमा फ्री लडूँगा। " इतना कहकर रोमेश ने फोन डिसकनेक्ट कर दिया।
विजय हैलो-हैलो करता रह गया। रोमेश की इस चेतावनी के बाद विजय का अपने स्थान पर रुके रहना सम्भव न था। सारे जरूरी काम छोड़कर वह रोमेश की तरफ दौड़ पड़ा। रोमेश उसका ही इंतजार कर रहा था।
''तुम्हारे इस फैसले का क्या मतलब हुआ, क्या तुम्हें मेरी ईमानदारी के ऊपर शक है?"
"ईमानदारी पर नहीं, तफ्तीश पर।"
"क्या कहते हो यार, मेरे पास पुख्ता सबूत हैं, एक बार वह मेरे हाथ आ जाये। फिर देखना मैं कैसे अपने डिपार्टमेंट की नाक ऊंची करता हूँ। एस.एस.पी. कह रहे थे कि सी .एम. साहब खुद केस में दिलचस्पी रखते हैं, और केस सलझाने वाले को अवार्ड तक मिलने की उम्मीद है। उनका कहना है कि हत्यारा चाहे जितनी बड़ी हैसियत क्यों ना रखता हो, बख्शा न जाये।"
''और तुम बड़ी बहादुरी से चंदन के पीछे हाथ धो कर पड़ गये, यह चंदन का क्लू तुम्हें कहाँ से मिल गया?"
"एम.पी. के सिक्योरिटी डिपार्टमेंट से। एम.पी. ने इस संबंध में गुप्त रूप से डॉक्यूमेंट भी तैयार किए थे। उसे तो उसकी मौत के बाद ही खोला जाना था। वह मेरे पास हैं और उनमें सारा मामला दर्ज है।
एम.पी. सावंत के डॉक्यूमेंट को पढ़ने के बाद सारा मामला साफ हो जाता है। वह सारी फाइल एस.एस.पी . को पहुँचा दी है मैंने। एम.पी . ने खुद उसे तैयार किया था और इस मामले में किसी प्राइवेट एजेंसी से भी मदद ली गई, उस एजेंसी ने भी चंदन को दोषी ठहरा या था। ''
''क्या बकते हो ?''
''अरे यार मैं ठीक कह रहा हूँ, मगर तुम किस आधार पर चंदन का केस लड़ने की ताल ठोक रहे हो।''
''इसलिये कि चंदन उसका कातिल नहीं है।''
''चंदन के स्थान पर उसका कोई गुर्गा हो सकता है।''
''वह भी नहीं है, तुम्हारे डिपार्टमेंट की मैं मिट्टी पलीत कर के रख दूँगा, और तुम अवार्ड की बात कर रहे हो। तुम नीचे जाओगे, सब इंस्पेक्टर बन जाओगे, लाइन हाजिर मिलोगे।''
जारी रहेगा…..![]()