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मोक्ष : तृष्णा से तुष्टि तक

kamdev99008

FoX - Federation of Xossipians
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संसार में केवल 2 ही प्रकृतिक अवश्यकताएँ समस्त चेतन जीव-जंतुओं को पूरी करनी होती हैं
1- भोग : अपने साकार रूप की रक्षा के लिए, उसको ऊर्जा देने के लिए भोग अर्थात भोजन आवश्यक है.... अन्यथा उसका स्वरूप ही समाप्त हो जाएगा.... जिसे हम मृत्यु कहते हैं
2- संभोग : अपने गुण-कर्म की विशेषताओं-विशिष्टताओं (genetics) को आपके संसार छोड़ देने के बाद भी जीवित रखने के लिए ...... संभोग की प्रक्रिया द्वारा प्रजनन किया जाता है।

जबकि वर्तमान युग उपभोग का युग बनता जा रहा है ...........यहाँ पदार्थ से सेवा तक, भावनाओं से सम्बन्धों तक सबका उपभोग किया जा रहा है...........
उपभोग (consumption) एक नकारात्मक और अप्राकृतिक प्रवृत्ति है.... जो साधनों, संसाधनों ही नहीं सम्पूर्ण प्रकृति का ही भक्षण किए जा रही है

आज हर व्यक्ति उपभोग के मद (नशे) में इतना डूब गया है की उसके पास भोग और संभोग का भी "आनंद" लेने का समय नहीं..........बल्कि

वो अपने समय और सुविधा के अनुसार उनका "प्रयोग" कर लेता है............
 
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Iron Man

Try and fail. But never give up trying
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संसार में केवल 2 ही प्रकृतिक अवश्यकताएँ समस्त चेतन जीव-जंतुओं को पूरी करनी होती हैं
1- भोग : अपने साकार रूप की रक्षा के लिए, उसको ऊर्जा देने के लिए भोग अर्थात भोजन आवश्यक है.... अन्यथा उसका स्वरूप ही समाप्त हो जाएगा.... जिसे हम मृत्यु कहते हैं
2- संभोग : अपने गुण-कर्म की विशेषताओं-विशिष्टताओं (genetics) को आपके संसार छोड़ देने के बाद भी जीवित रखने के लिए ...... संभोग की प्रक्रिया द्वारा प्रजनन किया जाता है।

जबकि वर्तमान युग उपभोग का युग बनता जा रहा है ...........यहाँ पदार्थ से सेवा तक, भावनाओं से सम्बन्धों तक सबका उपभोग किया जा रहा है...........
उपभोग (consumption) एक नकारात्मक और अप्राकृतिक प्रवृत्ति है.... जो साधनों, संसाधनों ही नहीं सम्पूर्ण प्रकृति का ही भक्षण किए जा रही है

आज हर व्यक्ति उपभोग के मद (नशे) में इतना डूब गया है की उसके पास भोग और संभोग का भी "आनंद" लेने का समय नहीं..........बल्कि

वो अपने समय और सुविधा के अनुसार उनका "प्रयोग" कर लेता है............
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u.sir.name

Hate girls, except the one reading this.
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संसार में केवल 2 ही प्रकृतिक अवश्यकताएँ समस्त चेतन जीव-जंतुओं को पूरी करनी होती हैं
1- भोग : अपने साकार रूप की रक्षा के लिए, उसको ऊर्जा देने के लिए भोग अर्थात भोजन आवश्यक है.... अन्यथा उसका स्वरूप ही समाप्त हो जाएगा.... जिसे हम मृत्यु कहते हैं
2- संभोग : अपने गुण-कर्म की विशेषताओं-विशिष्टताओं (genetics) को आपके संसार छोड़ देने के बाद भी जीवित रखने के लिए ...... संभोग की प्रक्रिया द्वारा प्रजनन किया जाता है।

जबकि वर्तमान युग उपभोग का युग बनता जा रहा है ...........यहाँ पदार्थ से सेवा तक, भावनाओं से सम्बन्धों तक सबका उपभोग किया जा रहा है...........
उपभोग (consumption) एक नकारात्मक और अप्राकृतिक प्रवृत्ति है.... जो साधनों, संसाधनों ही नहीं सम्पूर्ण प्रकृति का ही भक्षण किए जा रही है

आज हर व्यक्ति उपभोग के मद (नशे) में इतना डूब गया है की उसके पास भोग और संभोग का भी "आनंद" लेने का समय नहीं..........बल्कि

वो अपने समय और सुविधा के अनुसार उनका "प्रयोग" कर लेता है............
Kafi kuch kehna chata hu par shabd nhi mil rahe hai....apne ne insan ke sansarik jivan ka vyakhyan kar diya uski parvarti mein jo change aaya hai woh bta kar....
umid nahi thi ki is forum par itne gehri soch rakhne wale log bhi milenge or jis trh se aapne ise likha hai woh apki lekhan shaili or bhasa ke upar pakad darshata hai....


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kamdev99008

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Kafi kuch kehna chata hu par shabd nhi mil rahe hai....apne ne insan ke sansarik jivan ka vyakhyan kar diya uski parvarti mein jo change aaya hai woh bta kar....
umid nahi thi ki is forum par itne gehri soch rakhne wale log bhi milenge or jis trh se aapne ise likha hai woh apki lekhan shaili or bhasa ke upar pakad darshata hai....


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Abhay bhai.... Meine koi chhupa hua hira kisi koyle ki khan se ya moti samundr ki gahrai se nahin nikaala....
Ye wo sach hai jo jag-jahir hai. .... Lekin na to ham ise janna chahte hain aur na hi manna.... Jaankar bhi anjan bane rahte hain....
 

Akki ❸❸❸

ᴾʀᴏᴜᴅ ᵀᴏ ᴮᴇ ᴴᴀʀʏᴀɴᴠɪ
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संसार में केवल 2 ही प्रकृतिक अवश्यकताएँ समस्त चेतन जीव-जंतुओं को पूरी करनी होती हैं
1- भोग : अपने साकार रूप की रक्षा के लिए, उसको ऊर्जा देने के लिए भोग अर्थात भोजन आवश्यक है.... अन्यथा उसका स्वरूप ही समाप्त हो जाएगा.... जिसे हम मृत्यु कहते हैं
2- संभोग : अपने गुण-कर्म की विशेषताओं-विशिष्टताओं (genetics) को आपके संसार छोड़ देने के बाद भी जीवित रखने के लिए ...... संभोग की प्रक्रिया द्वारा प्रजनन किया जाता है।

जबकि वर्तमान युग उपभोग का युग बनता जा रहा है ...........यहाँ पदार्थ से सेवा तक, भावनाओं से सम्बन्धों तक सबका उपभोग किया जा रहा है...........
उपभोग (consumption) एक नकारात्मक और अप्राकृतिक प्रवृत्ति है.... जो साधनों, संसाधनों ही नहीं सम्पूर्ण प्रकृति का ही भक्षण किए जा रही है

आज हर व्यक्ति उपभोग के मद (नशे) में इतना डूब गया है की उसके पास भोग और संभोग का भी "आनंद" लेने का समय नहीं..........बल्कि

वो अपने समय और सुविधा के अनुसार उनका "प्रयोग" कर लेता है............
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Naina

Nain11ster creation... a monter in me
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संसार में केवल 2 ही प्रकृतिक अवश्यकताएँ समस्त चेतन जीव-जंतुओं को पूरी करनी होती हैं
1- भोग : अपने साकार रूप की रक्षा के लिए, उसको ऊर्जा देने के लिए भोग अर्थात भोजन आवश्यक है.... अन्यथा उसका स्वरूप ही समाप्त हो जाएगा.... जिसे हम मृत्यु कहते हैं
2- संभोग : अपने गुण-कर्म की विशेषताओं-विशिष्टताओं (genetics) को आपके संसार छोड़ देने के बाद भी जीवित रखने के लिए ...... संभोग की प्रक्रिया द्वारा प्रजनन किया जाता है।

जबकि वर्तमान युग उपभोग का युग बनता जा रहा है ...........यहाँ पदार्थ से सेवा तक, भावनाओं से सम्बन्धों तक सबका उपभोग किया जा रहा है...........
उपभोग (consumption) एक नकारात्मक और अप्राकृतिक प्रवृत्ति है.... जो साधनों, संसाधनों ही नहीं सम्पूर्ण प्रकृति का ही भक्षण किए जा रही है

आज हर व्यक्ति उपभोग के मद (नशे) में इतना डूब गया है की उसके पास भोग और संभोग का भी "आनंद" लेने का समय नहीं..........बल्कि

वो अपने समय और सुविधा के अनुसार उनका "प्रयोग" कर लेता है............
संसार में केवल 2 ही प्रकृतिक अवश्यकताएँ समस्त चेतन जीव-जंतुओं को पूरी करनी होती हैं
1- भोग : अपने साकार रूप की रक्षा के लिए, उसको ऊर्जा देने के लिए भोग अर्थात भोजन आवश्यक है.... अन्यथा उसका स्वरूप ही समाप्त हो जाएगा.... जिसे हम मृत्यु कहते हैं
2- संभोग : अपने गुण-कर्म की विशेषताओं-विशिष्टताओं (genetics) को आपके संसार छोड़ देने के बाद भी जीवित रखने के लिए ...... संभोग की प्रक्रिया द्वारा प्रजनन किया जाता है।

जबकि वर्तमान युग उपभोग का युग बनता जा रहा है ...........यहाँ पदार्थ से सेवा तक, भावनाओं से सम्बन्धों तक सबका उपभोग किया जा रहा है...........
उपभोग (consumption) एक नकारात्मक और अप्राकृतिक प्रवृत्ति है.... जो साधनों, संसाधनों ही नहीं सम्पूर्ण प्रकृति का ही भक्षण किए जा रही है

आज हर व्यक्ति उपभोग के मद (नशे) में इतना डूब गया है की उसके पास भोग और संभोग का भी "आनंद" लेने का समय नहीं..........बल्कि

वो अपने समय और सुविधा के अनुसार उनका "प्रयोग" कर लेता है............
इसलिए इसलिए
ये भटकाव अच्छा नहीं इश्क बुरी बला होती है लग जाये तो आसानी से पीछा नहीं छूटता। हम आपको मना तो नहीं कर सकते पर इतना जरुर कहेंगे की प्रीत का स्वाद जो चखा जुबान ने फिर बेगाने हुए जग से समझो..... :lollypop:
 

kamdev99008

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इसलिए इसलिए
ये भटकाव अच्छा नहीं इश्क बुरी बला होती है लग जाये तो आसानी से पीछा नहीं छूटता। हम आपको मना तो नहीं कर सकते पर इतना जरुर कहेंगे की प्रीत का स्वाद जो चखा जुबान ने फिर बेगाने हुए जग से समझो..... :lollypop:
Bhatkav to kahin hai hi nahin naina ji.... Preet aur ghrina ka mein jikr hi nahin karta....
Mein to bhog aur sambhog ka anand lene ko kahta hu......
Sanyasi aur brahmchari na to samajik hote hain... Na samaj ka nirman karte....
Samaj banta hai grihasth se.... Arthat wo jo niyamit roop se bhog aur sambhog ka anand lete hain
 
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संसार में केवल 2 ही प्रकृतिक अवश्यकताएँ समस्त चेतन जीव-जंतुओं को पूरी करनी होती हैं
1- भोग : अपने साकार रूप की रक्षा के लिए, उसको ऊर्जा देने के लिए भोग अर्थात भोजन आवश्यक है.... अन्यथा उसका स्वरूप ही समाप्त हो जाएगा.... जिसे हम मृत्यु कहते हैं
2- संभोग : अपने गुण-कर्म की विशेषताओं-विशिष्टताओं (genetics) को आपके संसार छोड़ देने के बाद भी जीवित रखने के लिए ...... संभोग की प्रक्रिया द्वारा प्रजनन किया जाता है।

जबकि वर्तमान युग उपभोग का युग बनता जा रहा है ...........यहाँ पदार्थ से सेवा तक, भावनाओं से सम्बन्धों तक सबका उपभोग किया जा रहा है...........
उपभोग (consumption) एक नकारात्मक और अप्राकृतिक प्रवृत्ति है.... जो साधनों, संसाधनों ही नहीं सम्पूर्ण प्रकृति का ही भक्षण किए जा रही है

आज हर व्यक्ति उपभोग के मद (नशे) में इतना डूब गया है की उसके पास भोग और संभोग का भी "आनंद" लेने का समय नहीं..........बल्कि

वो अपने समय और सुविधा के अनुसार उनका "प्रयोग" कर लेता है............

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