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Yasasvi3

😈Devil queen 👑
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UPDATE 11


इधर गांव में आज खुशी का माहौल था। सब गांव वाले अपनी अपनी जमीन पकड़ बेहद खुश थे। और सब से ज्यादा खुश मंगलू लग रहा था। गांव के लोगो की भीड़ इकट्ठा थी। तभी मंगलू ने कहा...

मंगलू -- सुनो, सुनो सब लोग। वो लड़का हमारे लिए फरिश्ता बन कर आया है। अगर आज वो नही होता तो, आने वाले कुछ महीनो में हमारी जमीनों पर कॉलेज बन गया होता। इसी लिए मैने सोचा है, की क्यूं ना हम सब उस लड़के पास जाकर उसे कल होने वाले भूमि पूजन में एक खास दावत दे पूरे गांव वालो की तरफ से।

आदमी –(सहमति देते हुए) सही कहते हो मंगलू, हम सबको ऐसा करना चाहिए।

मंगलू -- तो एक काम करते है, मैं और बनवारी उस लड़के को आमंत्रित करने जा रहे है कल के लिए। और तुम सब लोग कल के कार्यक्रम की तयारी शुरू करो। कल के भूमि पूजन में उस लड़के के लिए दावत रखेजाएगी गांव में ये दिन हमारे लिए त्योहार से कम नहीं है

मंगलू की बात सुनकर सभी गांव वाले हर्ष और उल्लास के साथ हामी भरते है। उसके बाद मंगलू और बनवारी दोनो हॉस्टल की तरफ निकल रहे थे की तभी...

पूरे गांव में आज खुशी की हवा सी चल रही थी। सभी मरद , बूढ़े, बच्चे , औरते और जवान लड़कियां सब मस्ती में मग्न थे। राज भी अपने दोस्तो के साथ गांव वालो के साथ मजा ले रहा था।

राज के साथ खड़ा राजू बोला...

राजू -- यार राज, ये लड़का आखिर है कौन? जिसके आगे ठाकुराइन भी भीगी बिल्ली बन कर रह गई।

राज -- हां यार, ये बात तो मुझे भी कुछ समझ नहीं आई। पर जो भी हो, उस हरामी ठाकुर का मुंह देखने लायक था। और सब से मजे की बात तो ये है, की वो हमारे इसी कॉलेज पढ़ने आया है। कल जब कॉलेज में उस हरामी अमन का इससे सामना होगा तो देखना कितना मज़ा आएगा!! अमन की तो पुंगी बजने वाली है, अब उसका ठाकुराना उसकी गांड़ में घुसेगा।

राजू -- ये बात तूने एक दम सच कही अजय, कल कॉलेज में मजा आयेगा।

गीता देवी – अरे राज क्या कर रहा है तू , इधर आ जरा

राज – हा मां बता क्या काम है

गीता देवी – तू भी चला जा मंगलू के संग मिल के आजाना उस लड़के से

राज – मैं तो रोज ही मिलूगा मां वो और हम एक ही कॉलेज पे एक ही क्लास में है , तुझे मिलना है तो तू चली जा काकी के संग

गीता देवी –(कुछ सोच के मंगलू को बोलती है) मंगलू भईया सुनो जरा

मंगलू – जी दीदी बताए

गीता देवी – भईया उस लड़के को दावत पे आमंत्रित के लिए आप दोनो अकेले ना जाओ हम भी साथ चलती है उसने अकेले इतना कुछ किया हम गांव वालो के लिए तो इतना तो कर ही सकते है हम भी

जहा एक तरफ सब गांव वाले इस खुशी के मौके पे अभय को कल के भूमि पूजन के साथ दावत पे आमंत्रित के लिए मानने जा रहे थे। वही दूसरी तरफ, पायल एक जी शांत बैठी थी।

पायल की खामोशी उसकी सहेलियों से देखी नही जा रही थी। वो लोग पायल के पास जाकर बैठ गई, और पायल को झिंझोड़ते हुए बोली।

नूर – कम से कम आज तो थोड़ा मुस्कुरा दे पता नही आखिरी बार तुझे कब मुस्कुराते हुए देखी थी। देख पायल इस तरह से तो जिंदगी चलने से रही, तू मेरी सबसे पक्की सहेली है, तेरी उदासी मुझे भी अंदर ही अंदर खाए जाति है। थोड़ा अपने अतीत से नीकल फिर देख जिंदगी कितनी हसीन है।

पायल-- (अपनी सहेली की बात सुनकर बोली) क्या करू नूर? वो हमेशा मेरे जहन में घूमता रहे है, मैं उसे एक पल के लिए भी नही भूला पा रही हूं। उसके साथ हाथ पकड़ कर चलना, और ना जाने क्या क्या, ऐसा लगता है जैसे कल ही हुआ है ये सब। क्या करू? कहा ढूंढू उसे, कुछ समझ में नहीं आ रहा है?

नूर -- (पायल की बात सुनकर बोली) तू तो दीवानी हो गई है री, पर समझ मेरी लाडो, अब वो लौट कर...

पायल -- (अपना हाथ नूर के मुंह पर रखते हुए) फिर कभी ऐसा मत बोलना नूर। (कहते हुए पायल वहा से चली जाति है)

इस तरफ मंगलू , बनवारी , गीता देवी और एक औरत के साथ जा रहे थे चलते चलते रास्ते में ही अभय उनको दिख गया जो अकेले मैदान में बैठा आसमान को देख रहा था तभी मंगलू और बनवारी चले गए अभय के सामने

मंगलू – कैसे हो बेटा

अभय --(अनजान बनते हुए) मैं ठीक हूं अंकल, आप तो वही है ना जो कल उस खेत में...

मंगलू -- ठीक कहा बेटा, में वही हूं जिसे तुमने कल ठकुराइन के सामने गिड़गिड़ाते हुए देखा था। क्या करता बेटा? यही एक उम्मीद तो बची थी सिर्फ हम गांव वालो में। की शायद गिड़गिड़ाने से हमे हमारी जमीन मिल जाए। पर हम वो कर के भी थक चुके थे। निराश हो चुके थे। पर शायद भगवान ने तुम्हे भेज दिया हम गरीबों के दुख पर खुशियों की बौछार करने के लिए।

अभय -- (सारी बात को समझते हुए) मैं कुछ समझा नही अंकल? मैने तो सिर्फ वो पेड़ ना काटने की आवाज उठाई थी, जो कानून गलत नही है। बस बाकी और मैने कुछ नही किया।

अभय की बात सुनकर, मंगलू की आंखो से आसूं टपक पड़े, ये देख कर अभय बोला...

अभय -- अरे अंकल आ... आप क्यूं ऐसे....?

मंगलू -- आज तक सिर्फ सुना था बेटा, की सच और ईमानदारी की पानी से पनपा पौधा कभी उखड़ता नही है। आज यकीन भी हो गया।

अभय -- माफ कीजिएगा अंकल, लेकिन मैं आपकी बातों को समझ नही पा रहा हूं।

अभय की दुविधा दूर करते हुए मंगलू ने कहा...

मंगलू -- जिस पेड़ को कल तुमने कटने से बचाया है। उस पेड़ को इस गांव के ठाकुर मनन सिंह और उनके बेटे अभय सिंह ने अपने हाथों से लगाया था। जब तक ठाकुर साहब थे, ये गांव भी उसी पौधे की तरह हरा भरा खिलता और बड़ा होता गया। खुशियां तो मानो इस गांव का नसीब बन कर आई थी, ठाकुर साहब का बेटा...अभय बाबा , मानो उनकी ही परछाई थे वो। कोई जाति पति का भेद भाव नही दिल खोल कर हमारे बच्चो के साथ खेलते। हमे कभी ऐसा नहीं लगा की ये इस हवेली के छोटे ठाकुर है, बल्कि हमे ऐसा लगता था की वो बच्चा हमारे ही आंगन का है। उसका मुस्कुराता चेहरा आज भी हम गांव वालो के दिल से नही निकला और शायद कभी निकलेगा भी नही। ना जाने कैसा सैलाब आया , पहले हमारे भगवान जैसे ठाकुर साहब को ले डूबी, फिर एक तूफान जो इस मुस्कुराते चेहरे को भी हमसे दूर कर दिया।

कहते हुए मंगलू की आंखो से उस दुख की धारा फूट पड़ी। अभय के लिए भी ये बहुत कठिन था। उसका दिल कर रहा था की वो बता दे की, काका उस तूफान में भटका वो मुस्कुराता चेहरा आज फिर से लौट आया है। पर वो नही कह सका। अपनी दिल की बात दिल में ही समेट कर रह गया। अभय का दिल भी ये सुन कर भर आया, की उसे कितना प्यार करते है सब गांव वाले। जिस प्यार की बारिश के लिए वो अपनी मां के ऊपर टकटकी लगाए रहता था वही प्यार गांव वालो के दिल में पनप रहा था। भाऊक हो चला अभय, सुर्ख आवाज में बोला...

अभि -- मैं समझ सकता हूं आपकी हालत अंकल।

ये सुनकर मंगलू अपनी आंखो से बह रहे उस आसूं को पूछते हुए बोला...

मंगलू -- बेटा, हमारे यहां कल हम भूमि पूजन का उत्सव मनाते है, पर इस बार हमे ऐसा लगा था शायद हमारे पास ये जमीन नही है। इस लिए हम अपनी भूमि का पूजा नही कर पाए। पर आज तुम्हारी वजह से हमारी जमीनें हमारी ही है। इस लिए कल रात हमने ये उत्सव रखा है, तो हम सब गांव वालो की तरफ से मैं तुम्हे आमंत्रित करने आया हूं। आना जरूर बेटा।

मंगलू की बात सुनकर, अभय का दिल जोर जोर से धड़कने लगा। वो खुद से बोला...

अभय – मन में (मैं कैसे भूल सकता हूं ये दिन)

मंगलू -- (अभय को गुमसुम देख) क्या हुआ बेटा? कोई परेशानी है?

अभय --(चौकते हुए) न... नही, काका। कोई परेशानी नहीं, मैं कल ज़रूर आऊंगा।

अभय की बात सुन मंगलू अपने लोगो के साथ खुशी खुशी विदा लेके चला गया जबकि अभय बैठ के आसमान को देखने लगा तभी पीछे से किसी औरत ने आवाज दी

औरत – साहेब जी आप अकेले क्यों बैठे हो यहां पे

अभय पलट के अपने सामने औरतों को देखता है तो झट से खड़ा हो जाता है

अभय – नही कुछ नही आंटी जी ऐसे ही बैठा..

औरत –(अभय को गौर से देखते हुए) बहुत ही अच्छी जगह चुनी है आपने जानते हो यहां पर बैठ के मन को जो शांति मिलती है वो कही नही मिलती

अभय – हा मुझे भी यहां बहुत सुकून मिल रहा है आंटी

औरत – अगर आप बुरा ना मानो एक बात पूछूं

अभय – हा पूछो ना आ

औरत – आपको खाने में क्या क्या पसंद है

अभय – मुझे सब कुछ पसंद है लेकिन सबसे ज्यादा पराठे पसंद है

औरत – मेरे बेटे को पराठे बहुत पसंद है मै बहुत अच्छे पराठे बनाती हूं देखना मेरे हाथ के गोभी के पराठे खा के मजा आजाएगा आपको

अभय – (जोर से हस्ते हुए) आपको पता है बड़ी मां मुझे गोभी के पराठे....

बोलने के बाद जैसे ही अभय ने औरत की तरफ नजर घुमाई देखा उसकी आखों में आसू थे

गीता देवी – (आंख में आसू लिए) तुझे देखते ही मुझे लगने लगा था तू ही हमारा अभय है

अभय –(रोते हुए) बड़ी मां (बोलते ही गीता देवी ने अभय को गले से लगा लिया)

गीता देवी – क्यों चला गया था रे छोर के हमे एक बार भी नही सोचा तूने अपनी बड़ी मां के लिए

अभय – (रूंधे गले से) मैं...मैं...मुझे माफ कर दो बड़ी मां

गीता देवी – (आसू पोंछ के) चल घर चल तू मेरे साथ

अभय – नही बड़ी मां अभी नही आ सकता मै....

तभी पीछे से किसी ने आवाज दी.... गीता

अभय – (धीरे से जल्दी में बोला) बड़ी मां गांव में किसी को भी पता नहीं चलना चाहीए मेरे बारे में मैं आपको बाद में सब बताऊग

सत्या बाबू – गीता यहां क्या कर रही हो (अभय को देख के) अरे बाबू साहेब आप भी यहां पे

गीता देवी – कल गांव में भूमि पूजन रखा है साथ ही गांव वालो ने खास इनके लिए दावत भी रखी है उसी के लिए मानने आए थे हम सब बाकी तो चले गए मैने सोचा हाल चाल ले लू

सत्या बाबू – ये तो बहुत अच्छी बात बताए तुमने गीता

गीता देवी – (अभय से) अच्छा आप कल जरूर आना इंतजार करेगे आपका (बोल के सत्या बाबू और गीता देवी निकल गए वहा से)

सत्या बाबू – गीता आज सुबह सुबह मैं मिला था बाबू साहब से उनसे बाते करते वक्त जाने दिल में अभय बाबा का ख्याल आया था उनके जैसे नीली आखें

गीता देवी –(मुस्कुराते हुए) ये हमारे अभय बाबा ही है

सत्या बाबू –(चौकते हुए) लेकिन कैसे खेर छोड़ो उनको साथ लेके क्यों नही चली घर में राज को पता चलेगा कितनी खुश हो जाएगा चलो अभी लेके चलते है....

गीता देवी – (बीच में टोकते हुए) शांति से काम लीजिए आप और जरा ठंडे दिमाग से सोचिए इतने वक्त तक अभय बाबा घर से दूर रहे अकेले और अब इतने सालो बाद वापस आए कॉलेज में एडमिशन लेके वो भी अपने गांव में आपको ये सब बाते अजीब नही लगती है

सत्या बाबू – हा बात अजीब तो है

गीता देवी – अभय ने माना किया है मुझे बताने से किसी को भी आप भी ध्यान रख्येगा गलती से भी किसी को पता न चले अभय के बारे में और राज को भी मत बताना आप वो खुद बताएगा अपने आप

सत्या बाबू – ठीक है , आज मैं बहुत खुश हो गीता अभय बाबा के आते ही गांव वालो की जमीन की समस्या हल हो गए देखना गीता एक दिन बड़े ठाकुर की तरह अभय बाबा भी गांव में खुशीयो की बारिश करेगे

गीता देवी और सत्या बाबू बात करते हुए निकल गए घर के लिए जबकि इस तरफ रमन ओर मुनीम आपस में बाते कर रहे थे

रमन – (पेड़ के नीचे बैठा सिगरेट का कश लेते हुए) मुनीम, मैने तुझे समझाया था। की भाभी के पास तू दुबारा मत जाना, फिर भी तू क्यूं गया?

मुनीम -- (घबराहट में) अरे मा...मालिक मैं तो इस लिए गया था की। मैं मालकिन को ये यकीन दिला सकू की सब गलती मेरी ही है।

रमन -- (गुस्से में) तुझे यहां पे यकीन दिलाने की पड़ी है। और उधर मेरे हाथो से इतना बड़ा खजाना निकल गया। साला...कॉलेज बनवाने के नाम पर मैने गांव वालो की ज़मीन हथिया लि थी अब क्या जवाब दुगा मैं उन लोगो को साला मजाक बन के रह जाएगा मेरा सबके सामने जैसे कल रात गांव वालो के सामने हुआ और वो हराम का जना वो छोकरा जाने कहा

(कहते हुए रमन की जुबान कुछ सोच के एक पल के लिए खामोश हो गई...)

रमन -- ऐ मुनीम...क्या लगता है तुझे ये छोकरा कौन है? कही ये सच में....?

मुनीम -- शुभ शुभ बोलो मालिक? इसीलिए उस लाश को रखवाया था मैने जंगल में तभी अगले दिन लाश मिली थी गांव वालो को?

रमन – धीरे बोल मुनीम के बच्चे इन पेड़ों के भी कान होते है , तू नही था वहा पर , कल रात को जिस तरह से वो छोकरा भाभीं से बात कर रहा था ऐसा लग रहा था जैसे बड़ी नफरत हो उसमे उपर से हवेली में जो हुआ और यहां तू अपनी...

मुनीम – (बीच में बात काटते हुए) मालिक मैं सिर्फ यह कहना चाहता हूं ऐसी कोई बात नही है? जरूर ये छोकरा आप के ही किसी दुश्मन का मोहरा होगा। जो घर की चंद बाते बोलकर ठाकुराइन को ये यकीन दिलाना चाहता है की, वो उन्ही का बेटा है।

रमन -- और उस ठाकुराइन को यकीन भी हो गया। मुनीम मुझे ये सपोला बहुत खतरनाक लग रहा है, फन निकलने से पहले ही इससे कुचल देना ही बेहतर होगा। आते ही धमाका कर दिया।

मुनीम -- जी मालिक, वो भी बिना आवाज वाला।

ये सुनकर तो रमन का चेहरा गुस्से से लाल हो गया, जिसे देख मुनीम के छक्के छूट गए...

रमन -- मुनीम, जरा संभल के बोला कर। नही तो मेरा धमाका तुझ पर भारी पड़ सकता है। बोलने से पहले समझ लिया कर की उस बात का कोई गलत मतलब मेरे लिए तो नही।

मुनीम रमन से गिड़गिड़ा कर बोला...

रमन -- (हाथ जोड़ते हुए) गलती हो गई मालिक, आगे से ध्यान रखूंगा। आप चिंता मत करो, उस सपोले को दूध मैं अच्छी तरह से पिलाऊंगा।
मुनीम की बात सुनते ही, रमन झट से बोल पड़ा...

रमन -- नही अभी ऐसा कुछ करने की जरूरत नहीं है भाभी का पूरा ध्यान उस छोकरे पर ही है। अगर उसे कुछ भी हुआ, तो भाभी अपनी ठाकुरानी गिरी दिखाने में वक्त नहीं लगाएगी। और अब तो उस पर मेरा दबदबा भी नही रहा। कहीं वो एक एक कर के सारे पन्ने पलटते ना लग जाए , तू समझा ना मैं क्या कह रहा हूं?

मुनीम -- समझ गया मालिक मतलब उस सपोले को सिर्फ पिटारे में कैद कर के रखना है, और समय आने पर उसे मसलना है।

मुनीम की बात सुनकर रमन कुछ बोला तो नही पर सिगरेट की एक कश लेते हुए मुस्कुराया और वहा से चल दिया..

सुबह से शाम होने को आई हवेली में संध्या का मन उतावला हो रहा था अभय से मिलने के लिए काम से फुरसत पा कर संध्या अपनी कार से निकल गई हॉस्टल के तरफ तभी रास्ते में संध्या ने कार को रोक के सामने देखा आम के बगीचे में एक लड़कि अकेली बैठी थी पेड़ के नीचे उसे देख के संध्या कार से उतर के वहा जाने लगी

संध्या – पायल तू यहां पे अकेले

पायल – ठकुराइन आप , जी मैं..वो..वो

संध्या –(बात को कटते हुए) सब जानती हू मै तू और अभय अक्सर यहां आया करते थे ना घूमने है ना पायल

पायल – नही ठकुराइन जी बल्कि वो ही मुझे अपने साथ लाया करता था जबरदस्ती , उसी की वजह से मेरी भी आदत बन गई यहां आने की , जाने वो कब आएगा , बोलता था मेरे लिए चूड़ियां लेके आएगा अच्छी वाली और एक बार आपके कंगन लेके आगया था ठकुराइन , मुझे ये चूड़ी कंगन नही चाहिए बस वो चाहिए

कहते हुए पायल की आंखो में आसूं आ गए, ये देख कर संध्या खुद को रोक नहीं पाई और आगे बढ़कर पायल को अपने सीने से लगा लेती है, और भाऊक हो कर बोली...

संध्या -- बहुत प्यार करती है ना तू उसे आज भी?

पायल एक पल के लिए तो ठाकुराइन का इतना प्यार देखकर हैरान रह गई। फिर ठाकुराइन की बातो पर गौर करते हुए बोली...

पायल -- प्यार क्या होता है, वो तो पता नही । लेकिन उसकी याद हर पल आती रहती है।

पायल की बात सुनकर संध्या की आंखो में भी आसूं छलक गए और वो एक बार कस के पायल को अपने सीने से चिपका लेती है।

संध्या पायल को अपने सीने से चिपकाई वो सुर्ख आवाज में बोली...

संध्या -- तू भी मुझसे बहुत नाराज़ होगी ना पायल ?

संध्या की बात सुनकर, पायल संध्या से अलग होते हुए बोली...

पायल -- आपसे नाराज़ नहीं हु मै, हां लेकिन आप जब भी बेवजह अभय को मरती थी तब मुझे आप पर बहुत गुस्सा आता था। कई बार अभय से पूछती थी की, तुम्हारी मां तुम्हे इतना क्यूं मरती है? तो मुस्कुराते हुए बोलता था की, मारती है तो क्या हुआ बाद में उसी जख्मों पर रोते हुए प्यार से मलहम भी तो लगाती है मेरी मां। थोड़ा गुस्से वाली है मेरी मां पर प्यार बहुत करती है। उसके मुंह से ये सुनकर आपके ऊपर से सारा गुस्सा चला जाता था।

पायल की बातो ने संध्या की आंखो को दरिया बना दी। वो एक शब्द नही बोल पाई, शायद अंदर ही अंदर तड़प रही थी और रो ना पाने की वजह से गला भी दुखने लगा था। फिर भी वो अपनी आवाज पर काबू पाते हुए बोली...

संध्या --(अपने हाथ से पायल के आसू पोंछ के) पायल अगर तुझे एतराज ना हो कल का भूमि पूजन मैं तेरे साथ करना चाहती हूं क्या तू इजाजत देगी मुझे

पायल – जी ठकुराइन अगर आप चाहे हर साल मैं आपके साथ भूमि पूजन करूगी।

संध्या – देख अंधेरा होने को है आजा मैं तुझे घर छोर देती हूं (अपनी कार में पायल को घर छोर के जैसे ही संध्या आगे चल ही रही थी की सामने अभय उसे जाता हुआ मिला)

संध्या –(कार रोक के) हॉस्टल जा रहे हो आओ कार में आजाओ मैं छोर देती हूं

संध्या की बात सुनकर, अभय मुस्कुराते हुए बोला...

अभय -- आप को परेशान होने की जरूरत नहीं है मैडम। मैं चला जाऊंगा । और वैसे भी हॉस्टल कौन सा दूर है यहां से।

संध्या -- दूर तो नही है, पर फिर भी।

कहते हुए संध्या का चेहरा उदासी में लटक गया। ये देख कर अभय ने कुछ सोचा और फिर बोला...


अभय -- ठीक है चलिए चलता हूं मैं

ये सुनकर संध्या का चेहरा फूल की तरह खिल गया अभय के कार में बैठते ही संध्या ने कार आगे बड़ा दी कुछ दूर चलने के बाद अभय ने बोला...

अभय -- तुझे लगता है ना की मैं तेरा बेटा हूं तो अब तू मेरे मुंह से भी सुन ले, हां मैं ही अभय हूं।

ये सुनते ही संध्या एक जोरदार ब्रेक लगाते हुए कार को रोक देती है अभय के मुंह से सुनकर तो उसकी खुशी का ठिकाना ही न था। उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था की वो क्या बोले? वो तुरंत ही जोर जोर से रोने लगती है, और उसके मुंह से सिर्फ गिड़गिड़ाहट की आवाज ही निकल रही थी...

हाथ बढ़ाते हुए उसने अपना हाथ अभय के हाथ पर रखा तो अभय ने दूर झटक दिया। ये देख संध्या का दिल तड़प कर रह गया...

संध्या -- मुझे पता है, तुम मुझसे नाराज़ हो। मैने गलती ही ऐसी की है की, उसकी माफी नहीं है। तुम्हे मुझे जो सजा देनी है दो, मारो, पीटो, काटो, जो मन में आए...मुझसे यूं नाराज न हो। बड़े दिनों बाद दिल को सुकून मिला है। लेकिन मेरी किस्मत तो देखो मैं मेरा बेटा मेरी आंखो के सामने है और मैं उसे गले भी नही लगा पा रही हूं। कैसे बताऊं तुम्हे की मैं कितना तड़प रही हूं?

रोते हुऐ संध्या अपने दिल की हालत बयां कर रही थी। और अभय शांत बैठा उसकी बातो सुन रहा था।
संध्या ने जब देखा अभय कुछ नही बोल रहा है तो, उसका दिल और ज्यादा घबराने लगा। मन ही मन भगवान से यही गुहार लगी रही थी की, उसे उसका बेटा माफ कर दे...

संध्या -- मु...मुझे तो कुछ समझ ही नही आ रहा है की, मैं ऐसा क्या बोलूं या क्या करूं जिससे तुम मान जाओ। तुम ही बताओ ना की मैं क्या करूं?

ये सुनकर अभय हंसने लगा...अभय को इस तरह से हंसता देख संध्या का दिल एक बार फिर से रो पड़ा। वो समझ गई की, उसकी गिड़गिड़ाहट अभय के लिए मात्र एक मजाक है और कुछ नही और तभी अभय बोला...

अभय -- कुछ नही कर सकती तू। हमारे रास्ते अलग है। और मेरे रास्ते पे तेरे कदमों के निशान भी न पड़ने दू मैं। और तू सब कुछ ठीक करने की बात करती है। मुझे तुझसे कोई हमदर्दी नही है। तेरे ये आंसू मेरे लिए समुद्र का वो कतरा है है जो किसी काम का नही। क्या हुआ? कहा गई तेरी वो ठकुराइनो वाली आवाज? मुनीम इससे आज खाना मत देना। मुनीम ये स्कूल ना जाय तो इसे पेड़ से बांध कर रखना। अमन तू तो मेरा राजा बेटा है। आज से उस लड़की के साथ तुझे देखा तो तेरी खाल उधेड़ लूंगी।

अभय -- मैं उस लड़की के साथ तब भी था, आज भी हू और कल भी रहूंगा। बहुत उधेड़ी है तूने मेरी खाल। अच्छा लग रहा है, बड़ा सुकून मिल रहा है, तेरी हालत देख कर। (अभय जोर से हंसते हुए) ...तुम ही बताओ की मैं क्या करू? की तुम मान जाओ। हा... हा... हा। नौटंकी बाज़ तो तू है ही। क्या हुआ...वो तेरा राजा बेटा कहा गया? उससे प्यार नही मिल रहा है क्या अब तुझे? नही मिलता होगा, वो क्या है ना अपना अपना ही होता है, शायद तुझे मेरे जाने के पता चला होगा। अरे तुझे शर्म है क्या ? तू किस मुंह से मेरे सामने आती है, कभी खुद से पूछती है क्या? बेशर्म है तू, तुझे कुछ फर्क नही पड़ता...

संध्या बस चुप चाप बैठी मग्न हो कर रो रही थी मगर अब चिल्लाई...

संध्या – हा... हा बेशर्म हूं मैं, घटिया औरत हूं मैं। मगर तेरी मां हूं मैं। तू मुझे इस तरह नही छोड़ सकता। जन्म दिया है तुझे मैने। तेरी ये जिंदगी मुझसे जुड़ी है, इस तरह से अलग हो जाए ऐसा मैं होने नही दूंगी।

संध्या की चिल्लाहट सुन कर, अभय एक बार मुस्कुराया और बोला...

अभय -- तो ठीक है, लगी रह तू अपनी जिंदगी को मेरी जिंदगी से जोड़ने में।

ये कहते हुए अभय कार से जैसे ही नीचे उतरने को हुआ, संध्या ने अभय का हाथ पकड़ लिया। और किसी भिखारी की तरह दया याचना करते हुए अभय से बोली...

संध्या -- ना जा छोड़ के, कोई नही है तेरे सिवा मेरा। कुछ अच्छा नहीं लगता जब तू मेरे पास नहीं रहता। रह जा ना मेरे साथ, तू किसी कोने में भी रखेगा मुझे वहा पड़ा रहूंगी, सुखी रोटी भी ला कर देगा वो भी खा लूंगी, बस मुझे छोड़ कर ना जा। रुक जा ना, तेरे साथ रहने मन कर रहा है।

संध्या की करुण वाणी अगर इस समय कोई भी सुन लेता तो शत प्रतिशत पिघल जाता, उसने अपने दिल के हर वो दर्द को शब्दो में बयान कर दी थी। इस बार अभय भी थोड़ा भाऊक हो कर बड़े ही प्यार से बोला...

अभय -- याद है तुझे, मैं भी कभी यही बोला करता था तुझसे। जब रात को तू मुझे सुलाने आती थी। मैं भी तेरा हाथ पकड़ कर बोलता था, रह जा ना मां, तेरे साथ अच्छा लगता है। तू पास रहती है तो मुझे बहुत अच्छी नींद आती है, रुक जा ना मां, मेरे पास ही सो जा। मगर तू नही रुकी तब तुझे बहीखाता बनाना होता हिसाब देखना होता और उस रात को भी यही कहा था तुझे , लेकिन उस रात किसी और को तेरे साथ सोना था। याद है या बताऊ कॉन आया था सोने तेरे कमरे में......

संध्या – नहीं...चुप हो जा। तेरे पैर पड़ती हूं।

कहते हुए संध्या ने अभय का हाथ छोड़ दिया, और दूसरी तरफ मुंह घुमा लिया। ना जाने क्या हुआ उसे, ना रो रही थी ना कुछ बोल रही थी, बस बेबस सी पड़ी थी....

उसकी ऐसी हालत देख कर अभय जाने के लिए पलट गया और बिना पलते एक बार फिर बोला...

अभय -- जाते जाते तुझे एक बात बता दूं। तू गुलाब का वो फूल है, जिसके चारो तरफ सिर्फ कांटे ही कांटे है। सिर्फ एक मैं ही था, जो तुझे उन काटो से बचा सकता था। मगर तूने मुझे पतझड़ के सूखे हुए उस पत्ते की तरह खुद से अलग कर दिया की अब मैं भी तेरे चारों तरफ बिछे काटों को देखकर सुकून महसूस करता हूं...

ये कहकर अभय वहा से चला जाता है, संध्या बेचारी अपनी नजर उठा कर अंधेरे में अपने बेटे को देखना चाही, मगर कार के बाहर उसे सिर्फ अंधेरा ही दिखा......
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.
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जारी रहेगा ✍️✍️
Bhot hi visfotak update...khanai ka vastavikata me aapne bhot aache tarike se handle kiya....very grateful ki is khani ko aap jesa writer mila....🤔aap kuch kaam se busy the abhi bhi h to itlah kar dijiga and ha update dene ke baad ek baar mantion.... thank you for this prissious update and waiting for your next update
 

parkas

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UPDATE 11


इधर गांव में आज खुशी का माहौल था। सब गांव वाले अपनी अपनी जमीन पकड़ बेहद खुश थे। और सब से ज्यादा खुश मंगलू लग रहा था। गांव के लोगो की भीड़ इकट्ठा थी। तभी मंगलू ने कहा...

मंगलू -- सुनो, सुनो सब लोग। वो लड़का हमारे लिए फरिश्ता बन कर आया है। अगर आज वो नही होता तो, आने वाले कुछ महीनो में हमारी जमीनों पर कॉलेज बन गया होता। इसी लिए मैने सोचा है, की क्यूं ना हम सब उस लड़के पास जाकर उसे कल होने वाले भूमि पूजन में एक खास दावत दे पूरे गांव वालो की तरफ से।

आदमी –(सहमति देते हुए) सही कहते हो मंगलू, हम सबको ऐसा करना चाहिए।

मंगलू -- तो एक काम करते है, मैं और बनवारी उस लड़के को आमंत्रित करने जा रहे है कल के लिए। और तुम सब लोग कल के कार्यक्रम की तयारी शुरू करो। कल के भूमि पूजन में उस लड़के के लिए दावत रखेजाएगी गांव में ये दिन हमारे लिए त्योहार से कम नहीं है

मंगलू की बात सुनकर सभी गांव वाले हर्ष और उल्लास के साथ हामी भरते है। उसके बाद मंगलू और बनवारी दोनो हॉस्टल की तरफ निकल रहे थे की तभी...

पूरे गांव में आज खुशी की हवा सी चल रही थी। सभी मरद , बूढ़े, बच्चे , औरते और जवान लड़कियां सब मस्ती में मग्न थे। राज भी अपने दोस्तो के साथ गांव वालो के साथ मजा ले रहा था।

राज के साथ खड़ा राजू बोला...

राजू -- यार राज, ये लड़का आखिर है कौन? जिसके आगे ठाकुराइन भी भीगी बिल्ली बन कर रह गई।

राज -- हां यार, ये बात तो मुझे भी कुछ समझ नहीं आई। पर जो भी हो, उस हरामी ठाकुर का मुंह देखने लायक था। और सब से मजे की बात तो ये है, की वो हमारे इसी कॉलेज पढ़ने आया है। कल जब कॉलेज में उस हरामी अमन का इससे सामना होगा तो देखना कितना मज़ा आएगा!! अमन की तो पुंगी बजने वाली है, अब उसका ठाकुराना उसकी गांड़ में घुसेगा।

राजू -- ये बात तूने एक दम सच कही अजय, कल कॉलेज में मजा आयेगा।

गीता देवी – अरे राज क्या कर रहा है तू , इधर आ जरा

राज – हा मां बता क्या काम है

गीता देवी – तू भी चला जा मंगलू के संग मिल के आजाना उस लड़के से

राज – मैं तो रोज ही मिलूगा मां वो और हम एक ही कॉलेज पे एक ही क्लास में है , तुझे मिलना है तो तू चली जा काकी के संग

गीता देवी –(कुछ सोच के मंगलू को बोलती है) मंगलू भईया सुनो जरा

मंगलू – जी दीदी बताए

गीता देवी – भईया उस लड़के को दावत पे आमंत्रित के लिए आप दोनो अकेले ना जाओ हम भी साथ चलती है उसने अकेले इतना कुछ किया हम गांव वालो के लिए तो इतना तो कर ही सकते है हम भी

जहा एक तरफ सब गांव वाले इस खुशी के मौके पे अभय को कल के भूमि पूजन के साथ दावत पे आमंत्रित के लिए मानने जा रहे थे। वही दूसरी तरफ, पायल एक जी शांत बैठी थी।

पायल की खामोशी उसकी सहेलियों से देखी नही जा रही थी। वो लोग पायल के पास जाकर बैठ गई, और पायल को झिंझोड़ते हुए बोली।

नूर – कम से कम आज तो थोड़ा मुस्कुरा दे पता नही आखिरी बार तुझे कब मुस्कुराते हुए देखी थी। देख पायल इस तरह से तो जिंदगी चलने से रही, तू मेरी सबसे पक्की सहेली है, तेरी उदासी मुझे भी अंदर ही अंदर खाए जाति है। थोड़ा अपने अतीत से नीकल फिर देख जिंदगी कितनी हसीन है।

पायल-- (अपनी सहेली की बात सुनकर बोली) क्या करू नूर? वो हमेशा मेरे जहन में घूमता रहे है, मैं उसे एक पल के लिए भी नही भूला पा रही हूं। उसके साथ हाथ पकड़ कर चलना, और ना जाने क्या क्या, ऐसा लगता है जैसे कल ही हुआ है ये सब। क्या करू? कहा ढूंढू उसे, कुछ समझ में नहीं आ रहा है?

नूर -- (पायल की बात सुनकर बोली) तू तो दीवानी हो गई है री, पर समझ मेरी लाडो, अब वो लौट कर...

पायल -- (अपना हाथ नूर के मुंह पर रखते हुए) फिर कभी ऐसा मत बोलना नूर। (कहते हुए पायल वहा से चली जाति है)

इस तरफ मंगलू , बनवारी , गीता देवी और एक औरत के साथ जा रहे थे चलते चलते रास्ते में ही अभय उनको दिख गया जो अकेले मैदान में बैठा आसमान को देख रहा था तभी मंगलू और बनवारी चले गए अभय के सामने

मंगलू – कैसे हो बेटा

अभय --(अनजान बनते हुए) मैं ठीक हूं अंकल, आप तो वही है ना जो कल उस खेत में...

मंगलू -- ठीक कहा बेटा, में वही हूं जिसे तुमने कल ठकुराइन के सामने गिड़गिड़ाते हुए देखा था। क्या करता बेटा? यही एक उम्मीद तो बची थी सिर्फ हम गांव वालो में। की शायद गिड़गिड़ाने से हमे हमारी जमीन मिल जाए। पर हम वो कर के भी थक चुके थे। निराश हो चुके थे। पर शायद भगवान ने तुम्हे भेज दिया हम गरीबों के दुख पर खुशियों की बौछार करने के लिए।

अभय -- (सारी बात को समझते हुए) मैं कुछ समझा नही अंकल? मैने तो सिर्फ वो पेड़ ना काटने की आवाज उठाई थी, जो कानून गलत नही है। बस बाकी और मैने कुछ नही किया।

अभय की बात सुनकर, मंगलू की आंखो से आसूं टपक पड़े, ये देख कर अभय बोला...

अभय -- अरे अंकल आ... आप क्यूं ऐसे....?

मंगलू -- आज तक सिर्फ सुना था बेटा, की सच और ईमानदारी की पानी से पनपा पौधा कभी उखड़ता नही है। आज यकीन भी हो गया।

अभय -- माफ कीजिएगा अंकल, लेकिन मैं आपकी बातों को समझ नही पा रहा हूं।

अभय की दुविधा दूर करते हुए मंगलू ने कहा...

मंगलू -- जिस पेड़ को कल तुमने कटने से बचाया है। उस पेड़ को इस गांव के ठाकुर मनन सिंह और उनके बेटे अभय सिंह ने अपने हाथों से लगाया था। जब तक ठाकुर साहब थे, ये गांव भी उसी पौधे की तरह हरा भरा खिलता और बड़ा होता गया। खुशियां तो मानो इस गांव का नसीब बन कर आई थी, ठाकुर साहब का बेटा...अभय बाबा , मानो उनकी ही परछाई थे वो। कोई जाति पति का भेद भाव नही दिल खोल कर हमारे बच्चो के साथ खेलते। हमे कभी ऐसा नहीं लगा की ये इस हवेली के छोटे ठाकुर है, बल्कि हमे ऐसा लगता था की वो बच्चा हमारे ही आंगन का है। उसका मुस्कुराता चेहरा आज भी हम गांव वालो के दिल से नही निकला और शायद कभी निकलेगा भी नही। ना जाने कैसा सैलाब आया , पहले हमारे भगवान जैसे ठाकुर साहब को ले डूबी, फिर एक तूफान जो इस मुस्कुराते चेहरे को भी हमसे दूर कर दिया।

कहते हुए मंगलू की आंखो से उस दुख की धारा फूट पड़ी। अभय के लिए भी ये बहुत कठिन था। उसका दिल कर रहा था की वो बता दे की, काका उस तूफान में भटका वो मुस्कुराता चेहरा आज फिर से लौट आया है। पर वो नही कह सका। अपनी दिल की बात दिल में ही समेट कर रह गया। अभय का दिल भी ये सुन कर भर आया, की उसे कितना प्यार करते है सब गांव वाले। जिस प्यार की बारिश के लिए वो अपनी मां के ऊपर टकटकी लगाए रहता था वही प्यार गांव वालो के दिल में पनप रहा था। भाऊक हो चला अभय, सुर्ख आवाज में बोला...

अभि -- मैं समझ सकता हूं आपकी हालत अंकल।

ये सुनकर मंगलू अपनी आंखो से बह रहे उस आसूं को पूछते हुए बोला...

मंगलू -- बेटा, हमारे यहां कल हम भूमि पूजन का उत्सव मनाते है, पर इस बार हमे ऐसा लगा था शायद हमारे पास ये जमीन नही है। इस लिए हम अपनी भूमि का पूजा नही कर पाए। पर आज तुम्हारी वजह से हमारी जमीनें हमारी ही है। इस लिए कल रात हमने ये उत्सव रखा है, तो हम सब गांव वालो की तरफ से मैं तुम्हे आमंत्रित करने आया हूं। आना जरूर बेटा।

मंगलू की बात सुनकर, अभय का दिल जोर जोर से धड़कने लगा। वो खुद से बोला...

अभय – मन में (मैं कैसे भूल सकता हूं ये दिन)

मंगलू -- (अभय को गुमसुम देख) क्या हुआ बेटा? कोई परेशानी है?

अभय --(चौकते हुए) न... नही, काका। कोई परेशानी नहीं, मैं कल ज़रूर आऊंगा।

अभय की बात सुन मंगलू अपने लोगो के साथ खुशी खुशी विदा लेके चला गया जबकि अभय बैठ के आसमान को देखने लगा तभी पीछे से किसी औरत ने आवाज दी

औरत – साहेब जी आप अकेले क्यों बैठे हो यहां पे

अभय पलट के अपने सामने औरतों को देखता है तो झट से खड़ा हो जाता है

अभय – नही कुछ नही आंटी जी ऐसे ही बैठा..

औरत –(अभय को गौर से देखते हुए) बहुत ही अच्छी जगह चुनी है आपने जानते हो यहां पर बैठ के मन को जो शांति मिलती है वो कही नही मिलती

अभय – हा मुझे भी यहां बहुत सुकून मिल रहा है आंटी

औरत – अगर आप बुरा ना मानो एक बात पूछूं

अभय – हा पूछो ना आ

औरत – आपको खाने में क्या क्या पसंद है

अभय – मुझे सब कुछ पसंद है लेकिन सबसे ज्यादा पराठे पसंद है

औरत – मेरे बेटे को पराठे बहुत पसंद है मै बहुत अच्छे पराठे बनाती हूं देखना मेरे हाथ के गोभी के पराठे खा के मजा आजाएगा आपको

अभय – (जोर से हस्ते हुए) आपको पता है बड़ी मां मुझे गोभी के पराठे....

बोलने के बाद जैसे ही अभय ने औरत की तरफ नजर घुमाई देखा उसकी आखों में आसू थे

गीता देवी – (आंख में आसू लिए) तुझे देखते ही मुझे लगने लगा था तू ही हमारा अभय है

अभय –(रोते हुए) बड़ी मां (बोलते ही गीता देवी ने अभय को गले से लगा लिया)

गीता देवी – क्यों चला गया था रे छोर के हमे एक बार भी नही सोचा तूने अपनी बड़ी मां के लिए

अभय – (रूंधे गले से) मैं...मैं...मुझे माफ कर दो बड़ी मां

गीता देवी – (आसू पोंछ के) चल घर चल तू मेरे साथ

अभय – नही बड़ी मां अभी नही आ सकता मै....

तभी पीछे से किसी ने आवाज दी.... गीता

अभय – (धीरे से जल्दी में बोला) बड़ी मां गांव में किसी को भी पता नहीं चलना चाहीए मेरे बारे में मैं आपको बाद में सब बताऊग

सत्या बाबू – गीता यहां क्या कर रही हो (अभय को देख के) अरे बाबू साहेब आप भी यहां पे

गीता देवी – कल गांव में भूमि पूजन रखा है साथ ही गांव वालो ने खास इनके लिए दावत भी रखी है उसी के लिए मानने आए थे हम सब बाकी तो चले गए मैने सोचा हाल चाल ले लू

सत्या बाबू – ये तो बहुत अच्छी बात बताए तुमने गीता

गीता देवी – (अभय से) अच्छा आप कल जरूर आना इंतजार करेगे आपका (बोल के सत्या बाबू और गीता देवी निकल गए वहा से)

सत्या बाबू – गीता आज सुबह सुबह मैं मिला था बाबू साहब से उनसे बाते करते वक्त जाने दिल में अभय बाबा का ख्याल आया था उनके जैसे नीली आखें

गीता देवी –(मुस्कुराते हुए) ये हमारे अभय बाबा ही है

सत्या बाबू –(चौकते हुए) लेकिन कैसे खेर छोड़ो उनको साथ लेके क्यों नही चली घर में राज को पता चलेगा कितनी खुश हो जाएगा चलो अभी लेके चलते है....

गीता देवी – (बीच में टोकते हुए) शांति से काम लीजिए आप और जरा ठंडे दिमाग से सोचिए इतने वक्त तक अभय बाबा घर से दूर रहे अकेले और अब इतने सालो बाद वापस आए कॉलेज में एडमिशन लेके वो भी अपने गांव में आपको ये सब बाते अजीब नही लगती है

सत्या बाबू – हा बात अजीब तो है

गीता देवी – अभय ने माना किया है मुझे बताने से किसी को भी आप भी ध्यान रख्येगा गलती से भी किसी को पता न चले अभय के बारे में और राज को भी मत बताना आप वो खुद बताएगा अपने आप

सत्या बाबू – ठीक है , आज मैं बहुत खुश हो गीता अभय बाबा के आते ही गांव वालो की जमीन की समस्या हल हो गए देखना गीता एक दिन बड़े ठाकुर की तरह अभय बाबा भी गांव में खुशीयो की बारिश करेगे

गीता देवी और सत्या बाबू बात करते हुए निकल गए घर के लिए जबकि इस तरफ रमन ओर मुनीम आपस में बाते कर रहे थे

रमन – (पेड़ के नीचे बैठा सिगरेट का कश लेते हुए) मुनीम, मैने तुझे समझाया था। की भाभी के पास तू दुबारा मत जाना, फिर भी तू क्यूं गया?

मुनीम -- (घबराहट में) अरे मा...मालिक मैं तो इस लिए गया था की। मैं मालकिन को ये यकीन दिला सकू की सब गलती मेरी ही है।

रमन -- (गुस्से में) तुझे यहां पे यकीन दिलाने की पड़ी है। और उधर मेरे हाथो से इतना बड़ा खजाना निकल गया। साला...कॉलेज बनवाने के नाम पर मैने गांव वालो की ज़मीन हथिया लि थी अब क्या जवाब दुगा मैं उन लोगो को साला मजाक बन के रह जाएगा मेरा सबके सामने जैसे कल रात गांव वालो के सामने हुआ और वो हराम का जना वो छोकरा जाने कहा

(कहते हुए रमन की जुबान कुछ सोच के एक पल के लिए खामोश हो गई...)

रमन -- ऐ मुनीम...क्या लगता है तुझे ये छोकरा कौन है? कही ये सच में....?

मुनीम -- शुभ शुभ बोलो मालिक? इसीलिए उस लाश को रखवाया था मैने जंगल में तभी अगले दिन लाश मिली थी गांव वालो को?

रमन – धीरे बोल मुनीम के बच्चे इन पेड़ों के भी कान होते है , तू नही था वहा पर , कल रात को जिस तरह से वो छोकरा भाभीं से बात कर रहा था ऐसा लग रहा था जैसे बड़ी नफरत हो उसमे उपर से हवेली में जो हुआ और यहां तू अपनी...

मुनीम – (बीच में बात काटते हुए) मालिक मैं सिर्फ यह कहना चाहता हूं ऐसी कोई बात नही है? जरूर ये छोकरा आप के ही किसी दुश्मन का मोहरा होगा। जो घर की चंद बाते बोलकर ठाकुराइन को ये यकीन दिलाना चाहता है की, वो उन्ही का बेटा है।

रमन -- और उस ठाकुराइन को यकीन भी हो गया। मुनीम मुझे ये सपोला बहुत खतरनाक लग रहा है, फन निकलने से पहले ही इससे कुचल देना ही बेहतर होगा। आते ही धमाका कर दिया।

मुनीम -- जी मालिक, वो भी बिना आवाज वाला।

ये सुनकर तो रमन का चेहरा गुस्से से लाल हो गया, जिसे देख मुनीम के छक्के छूट गए...

रमन -- मुनीम, जरा संभल के बोला कर। नही तो मेरा धमाका तुझ पर भारी पड़ सकता है। बोलने से पहले समझ लिया कर की उस बात का कोई गलत मतलब मेरे लिए तो नही।

मुनीम रमन से गिड़गिड़ा कर बोला...

रमन -- (हाथ जोड़ते हुए) गलती हो गई मालिक, आगे से ध्यान रखूंगा। आप चिंता मत करो, उस सपोले को दूध मैं अच्छी तरह से पिलाऊंगा।
मुनीम की बात सुनते ही, रमन झट से बोल पड़ा...

रमन -- नही अभी ऐसा कुछ करने की जरूरत नहीं है भाभी का पूरा ध्यान उस छोकरे पर ही है। अगर उसे कुछ भी हुआ, तो भाभी अपनी ठाकुरानी गिरी दिखाने में वक्त नहीं लगाएगी। और अब तो उस पर मेरा दबदबा भी नही रहा। कहीं वो एक एक कर के सारे पन्ने पलटते ना लग जाए , तू समझा ना मैं क्या कह रहा हूं?

मुनीम -- समझ गया मालिक मतलब उस सपोले को सिर्फ पिटारे में कैद कर के रखना है, और समय आने पर उसे मसलना है।

मुनीम की बात सुनकर रमन कुछ बोला तो नही पर सिगरेट की एक कश लेते हुए मुस्कुराया और वहा से चल दिया..

सुबह से शाम होने को आई हवेली में संध्या का मन उतावला हो रहा था अभय से मिलने के लिए काम से फुरसत पा कर संध्या अपनी कार से निकल गई हॉस्टल के तरफ तभी रास्ते में संध्या ने कार को रोक के सामने देखा आम के बगीचे में एक लड़कि अकेली बैठी थी पेड़ के नीचे उसे देख के संध्या कार से उतर के वहा जाने लगी

संध्या – पायल तू यहां पे अकेले

पायल – ठकुराइन आप , जी मैं..वो..वो

संध्या –(बात को कटते हुए) सब जानती हू मै तू और अभय अक्सर यहां आया करते थे ना घूमने है ना पायल

पायल – नही ठकुराइन जी बल्कि वो ही मुझे अपने साथ लाया करता था जबरदस्ती , उसी की वजह से मेरी भी आदत बन गई यहां आने की , जाने वो कब आएगा , बोलता था मेरे लिए चूड़ियां लेके आएगा अच्छी वाली और एक बार आपके कंगन लेके आगया था ठकुराइन , मुझे ये चूड़ी कंगन नही चाहिए बस वो चाहिए

कहते हुए पायल की आंखो में आसूं आ गए, ये देख कर संध्या खुद को रोक नहीं पाई और आगे बढ़कर पायल को अपने सीने से लगा लेती है, और भाऊक हो कर बोली...

संध्या -- बहुत प्यार करती है ना तू उसे आज भी?

पायल एक पल के लिए तो ठाकुराइन का इतना प्यार देखकर हैरान रह गई। फिर ठाकुराइन की बातो पर गौर करते हुए बोली...

पायल -- प्यार क्या होता है, वो तो पता नही । लेकिन उसकी याद हर पल आती रहती है।

पायल की बात सुनकर संध्या की आंखो में भी आसूं छलक गए और वो एक बार कस के पायल को अपने सीने से चिपका लेती है।

संध्या पायल को अपने सीने से चिपकाई वो सुर्ख आवाज में बोली...

संध्या -- तू भी मुझसे बहुत नाराज़ होगी ना पायल ?

संध्या की बात सुनकर, पायल संध्या से अलग होते हुए बोली...

पायल -- आपसे नाराज़ नहीं हु मै, हां लेकिन आप जब भी बेवजह अभय को मरती थी तब मुझे आप पर बहुत गुस्सा आता था। कई बार अभय से पूछती थी की, तुम्हारी मां तुम्हे इतना क्यूं मरती है? तो मुस्कुराते हुए बोलता था की, मारती है तो क्या हुआ बाद में उसी जख्मों पर रोते हुए प्यार से मलहम भी तो लगाती है मेरी मां। थोड़ा गुस्से वाली है मेरी मां पर प्यार बहुत करती है। उसके मुंह से ये सुनकर आपके ऊपर से सारा गुस्सा चला जाता था।

पायल की बातो ने संध्या की आंखो को दरिया बना दी। वो एक शब्द नही बोल पाई, शायद अंदर ही अंदर तड़प रही थी और रो ना पाने की वजह से गला भी दुखने लगा था। फिर भी वो अपनी आवाज पर काबू पाते हुए बोली...

संध्या --(अपने हाथ से पायल के आसू पोंछ के) पायल अगर तुझे एतराज ना हो कल का भूमि पूजन मैं तेरे साथ करना चाहती हूं क्या तू इजाजत देगी मुझे

पायल – जी ठकुराइन अगर आप चाहे हर साल मैं आपके साथ भूमि पूजन करूगी।

संध्या – देख अंधेरा होने को है आजा मैं तुझे घर छोर देती हूं (अपनी कार में पायल को घर छोर के जैसे ही संध्या आगे चल ही रही थी की सामने अभय उसे जाता हुआ मिला)

संध्या –(कार रोक के) हॉस्टल जा रहे हो आओ कार में आजाओ मैं छोर देती हूं

संध्या की बात सुनकर, अभय मुस्कुराते हुए बोला...

अभय -- आप को परेशान होने की जरूरत नहीं है मैडम। मैं चला जाऊंगा । और वैसे भी हॉस्टल कौन सा दूर है यहां से।

संध्या -- दूर तो नही है, पर फिर भी।

कहते हुए संध्या का चेहरा उदासी में लटक गया। ये देख कर अभय ने कुछ सोचा और फिर बोला...


अभय -- ठीक है चलिए चलता हूं मैं

ये सुनकर संध्या का चेहरा फूल की तरह खिल गया अभय के कार में बैठते ही संध्या ने कार आगे बड़ा दी कुछ दूर चलने के बाद अभय ने बोला...

अभय -- तुझे लगता है ना की मैं तेरा बेटा हूं तो अब तू मेरे मुंह से भी सुन ले, हां मैं ही अभय हूं।

ये सुनते ही संध्या एक जोरदार ब्रेक लगाते हुए कार को रोक देती है अभय के मुंह से सुनकर तो उसकी खुशी का ठिकाना ही न था। उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था की वो क्या बोले? वो तुरंत ही जोर जोर से रोने लगती है, और उसके मुंह से सिर्फ गिड़गिड़ाहट की आवाज ही निकल रही थी...

हाथ बढ़ाते हुए उसने अपना हाथ अभय के हाथ पर रखा तो अभय ने दूर झटक दिया। ये देख संध्या का दिल तड़प कर रह गया...

संध्या -- मुझे पता है, तुम मुझसे नाराज़ हो। मैने गलती ही ऐसी की है की, उसकी माफी नहीं है। तुम्हे मुझे जो सजा देनी है दो, मारो, पीटो, काटो, जो मन में आए...मुझसे यूं नाराज न हो। बड़े दिनों बाद दिल को सुकून मिला है। लेकिन मेरी किस्मत तो देखो मैं मेरा बेटा मेरी आंखो के सामने है और मैं उसे गले भी नही लगा पा रही हूं। कैसे बताऊं तुम्हे की मैं कितना तड़प रही हूं?

रोते हुऐ संध्या अपने दिल की हालत बयां कर रही थी। और अभय शांत बैठा उसकी बातो सुन रहा था।
संध्या ने जब देखा अभय कुछ नही बोल रहा है तो, उसका दिल और ज्यादा घबराने लगा। मन ही मन भगवान से यही गुहार लगी रही थी की, उसे उसका बेटा माफ कर दे...

संध्या -- मु...मुझे तो कुछ समझ ही नही आ रहा है की, मैं ऐसा क्या बोलूं या क्या करूं जिससे तुम मान जाओ। तुम ही बताओ ना की मैं क्या करूं?

ये सुनकर अभय हंसने लगा...अभय को इस तरह से हंसता देख संध्या का दिल एक बार फिर से रो पड़ा। वो समझ गई की, उसकी गिड़गिड़ाहट अभय के लिए मात्र एक मजाक है और कुछ नही और तभी अभय बोला...

अभय -- कुछ नही कर सकती तू। हमारे रास्ते अलग है। और मेरे रास्ते पे तेरे कदमों के निशान भी न पड़ने दू मैं। और तू सब कुछ ठीक करने की बात करती है। मुझे तुझसे कोई हमदर्दी नही है। तेरे ये आंसू मेरे लिए समुद्र का वो कतरा है है जो किसी काम का नही। क्या हुआ? कहा गई तेरी वो ठकुराइनो वाली आवाज? मुनीम इससे आज खाना मत देना। मुनीम ये स्कूल ना जाय तो इसे पेड़ से बांध कर रखना। अमन तू तो मेरा राजा बेटा है। आज से उस लड़की के साथ तुझे देखा तो तेरी खाल उधेड़ लूंगी।

अभय -- मैं उस लड़की के साथ तब भी था, आज भी हू और कल भी रहूंगा। बहुत उधेड़ी है तूने मेरी खाल। अच्छा लग रहा है, बड़ा सुकून मिल रहा है, तेरी हालत देख कर। (अभय जोर से हंसते हुए) ...तुम ही बताओ की मैं क्या करू? की तुम मान जाओ। हा... हा... हा। नौटंकी बाज़ तो तू है ही। क्या हुआ...वो तेरा राजा बेटा कहा गया? उससे प्यार नही मिल रहा है क्या अब तुझे? नही मिलता होगा, वो क्या है ना अपना अपना ही होता है, शायद तुझे मेरे जाने के पता चला होगा। अरे तुझे शर्म है क्या ? तू किस मुंह से मेरे सामने आती है, कभी खुद से पूछती है क्या? बेशर्म है तू, तुझे कुछ फर्क नही पड़ता...

संध्या बस चुप चाप बैठी मग्न हो कर रो रही थी मगर अब चिल्लाई...

संध्या – हा... हा बेशर्म हूं मैं, घटिया औरत हूं मैं। मगर तेरी मां हूं मैं। तू मुझे इस तरह नही छोड़ सकता। जन्म दिया है तुझे मैने। तेरी ये जिंदगी मुझसे जुड़ी है, इस तरह से अलग हो जाए ऐसा मैं होने नही दूंगी।

संध्या की चिल्लाहट सुन कर, अभय एक बार मुस्कुराया और बोला...

अभय -- तो ठीक है, लगी रह तू अपनी जिंदगी को मेरी जिंदगी से जोड़ने में।

ये कहते हुए अभय कार से जैसे ही नीचे उतरने को हुआ, संध्या ने अभय का हाथ पकड़ लिया। और किसी भिखारी की तरह दया याचना करते हुए अभय से बोली...

संध्या -- ना जा छोड़ के, कोई नही है तेरे सिवा मेरा। कुछ अच्छा नहीं लगता जब तू मेरे पास नहीं रहता। रह जा ना मेरे साथ, तू किसी कोने में भी रखेगा मुझे वहा पड़ा रहूंगी, सुखी रोटी भी ला कर देगा वो भी खा लूंगी, बस मुझे छोड़ कर ना जा। रुक जा ना, तेरे साथ रहने मन कर रहा है।

संध्या की करुण वाणी अगर इस समय कोई भी सुन लेता तो शत प्रतिशत पिघल जाता, उसने अपने दिल के हर वो दर्द को शब्दो में बयान कर दी थी। इस बार अभय भी थोड़ा भाऊक हो कर बड़े ही प्यार से बोला...

अभय -- याद है तुझे, मैं भी कभी यही बोला करता था तुझसे। जब रात को तू मुझे सुलाने आती थी। मैं भी तेरा हाथ पकड़ कर बोलता था, रह जा ना मां, तेरे साथ अच्छा लगता है। तू पास रहती है तो मुझे बहुत अच्छी नींद आती है, रुक जा ना मां, मेरे पास ही सो जा। मगर तू नही रुकी तब तुझे बहीखाता बनाना होता हिसाब देखना होता और उस रात को भी यही कहा था तुझे , लेकिन उस रात किसी और को तेरे साथ सोना था। याद है या बताऊ कॉन आया था सोने तेरे कमरे में......

संध्या – नहीं...चुप हो जा। तेरे पैर पड़ती हूं।

कहते हुए संध्या ने अभय का हाथ छोड़ दिया, और दूसरी तरफ मुंह घुमा लिया। ना जाने क्या हुआ उसे, ना रो रही थी ना कुछ बोल रही थी, बस बेबस सी पड़ी थी....

उसकी ऐसी हालत देख कर अभय जाने के लिए पलट गया और बिना पलते एक बार फिर बोला...

अभय -- जाते जाते तुझे एक बात बता दूं। तू गुलाब का वो फूल है, जिसके चारो तरफ सिर्फ कांटे ही कांटे है। सिर्फ एक मैं ही था, जो तुझे उन काटो से बचा सकता था। मगर तूने मुझे पतझड़ के सूखे हुए उस पत्ते की तरह खुद से अलग कर दिया की अब मैं भी तेरे चारों तरफ बिछे काटों को देखकर सुकून महसूस करता हूं...

ये कहकर अभय वहा से चला जाता है, संध्या बेचारी अपनी नजर उठा कर अंधेरे में अपने बेटे को देखना चाही, मगर कार के बाहर उसे सिर्फ अंधेरा ही दिखा......
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जारी रहेगा ✍️✍️
Bahut hi badhiya update diya hai DEVIL MAXIMUM bhai....
Nice and beautiful update....
 

DEVIL MAXIMUM

"सर्वेभ्यः सर्वभावेभ्यः सर्वात्मना नमः।"
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Bhot hi visfotak update...khanai ka vastavikata me aapne bhot aache tarike se handle kiya....very grateful ki is khani ko aap jesa writer mila....🤔aap kuch kaam se busy the abhi bhi h to itlah kar dijiga and ha update dene ke baad ek baar mantion.... thank you for this prissious update and waiting for your next update
🙂Thank you Thank you Sooo mucchhhh Yasasvi3
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Koshish yhe rhegi meri aage bhi update aapko pasand aay
 

WhiteDragon

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UPDATE 11


इधर गांव में आज खुशी का माहौल था। सब गांव वाले अपनी अपनी जमीन पकड़ बेहद खुश थे। और सब से ज्यादा खुश मंगलू लग रहा था। गांव के लोगो की भीड़ इकट्ठा थी। तभी मंगलू ने कहा...

मंगलू -- सुनो, सुनो सब लोग। वो लड़का हमारे लिए फरिश्ता बन कर आया है। अगर आज वो नही होता तो, आने वाले कुछ महीनो में हमारी जमीनों पर कॉलेज बन गया होता। इसी लिए मैने सोचा है, की क्यूं ना हम सब उस लड़के पास जाकर उसे कल होने वाले भूमि पूजन में एक खास दावत दे पूरे गांव वालो की तरफ से।

आदमी –(सहमति देते हुए) सही कहते हो मंगलू, हम सबको ऐसा करना चाहिए।

मंगलू -- तो एक काम करते है, मैं और बनवारी उस लड़के को आमंत्रित करने जा रहे है कल के लिए। और तुम सब लोग कल के कार्यक्रम की तयारी शुरू करो। कल के भूमि पूजन में उस लड़के के लिए दावत रखेजाएगी गांव में ये दिन हमारे लिए त्योहार से कम नहीं है

मंगलू की बात सुनकर सभी गांव वाले हर्ष और उल्लास के साथ हामी भरते है। उसके बाद मंगलू और बनवारी दोनो हॉस्टल की तरफ निकल रहे थे की तभी...

पूरे गांव में आज खुशी की हवा सी चल रही थी। सभी मरद , बूढ़े, बच्चे , औरते और जवान लड़कियां सब मस्ती में मग्न थे। राज भी अपने दोस्तो के साथ गांव वालो के साथ मजा ले रहा था।

राज के साथ खड़ा राजू बोला...

राजू -- यार राज, ये लड़का आखिर है कौन? जिसके आगे ठाकुराइन भी भीगी बिल्ली बन कर रह गई।

राज -- हां यार, ये बात तो मुझे भी कुछ समझ नहीं आई। पर जो भी हो, उस हरामी ठाकुर का मुंह देखने लायक था। और सब से मजे की बात तो ये है, की वो हमारे इसी कॉलेज पढ़ने आया है। कल जब कॉलेज में उस हरामी अमन का इससे सामना होगा तो देखना कितना मज़ा आएगा!! अमन की तो पुंगी बजने वाली है, अब उसका ठाकुराना उसकी गांड़ में घुसेगा।

राजू -- ये बात तूने एक दम सच कही अजय, कल कॉलेज में मजा आयेगा।

गीता देवी – अरे राज क्या कर रहा है तू , इधर आ जरा

राज – हा मां बता क्या काम है

गीता देवी – तू भी चला जा मंगलू के संग मिल के आजाना उस लड़के से

राज – मैं तो रोज ही मिलूगा मां वो और हम एक ही कॉलेज पे एक ही क्लास में है , तुझे मिलना है तो तू चली जा काकी के संग

गीता देवी –(कुछ सोच के मंगलू को बोलती है) मंगलू भईया सुनो जरा

मंगलू – जी दीदी बताए

गीता देवी – भईया उस लड़के को दावत पे आमंत्रित के लिए आप दोनो अकेले ना जाओ हम भी साथ चलती है उसने अकेले इतना कुछ किया हम गांव वालो के लिए तो इतना तो कर ही सकते है हम भी

जहा एक तरफ सब गांव वाले इस खुशी के मौके पे अभय को कल के भूमि पूजन के साथ दावत पे आमंत्रित के लिए मानने जा रहे थे। वही दूसरी तरफ, पायल एक जी शांत बैठी थी।

पायल की खामोशी उसकी सहेलियों से देखी नही जा रही थी। वो लोग पायल के पास जाकर बैठ गई, और पायल को झिंझोड़ते हुए बोली।

नूर – कम से कम आज तो थोड़ा मुस्कुरा दे पता नही आखिरी बार तुझे कब मुस्कुराते हुए देखी थी। देख पायल इस तरह से तो जिंदगी चलने से रही, तू मेरी सबसे पक्की सहेली है, तेरी उदासी मुझे भी अंदर ही अंदर खाए जाति है। थोड़ा अपने अतीत से नीकल फिर देख जिंदगी कितनी हसीन है।

पायल-- (अपनी सहेली की बात सुनकर बोली) क्या करू नूर? वो हमेशा मेरे जहन में घूमता रहे है, मैं उसे एक पल के लिए भी नही भूला पा रही हूं। उसके साथ हाथ पकड़ कर चलना, और ना जाने क्या क्या, ऐसा लगता है जैसे कल ही हुआ है ये सब। क्या करू? कहा ढूंढू उसे, कुछ समझ में नहीं आ रहा है?

नूर -- (पायल की बात सुनकर बोली) तू तो दीवानी हो गई है री, पर समझ मेरी लाडो, अब वो लौट कर...

पायल -- (अपना हाथ नूर के मुंह पर रखते हुए) फिर कभी ऐसा मत बोलना नूर। (कहते हुए पायल वहा से चली जाति है)

इस तरफ मंगलू , बनवारी , गीता देवी और एक औरत के साथ जा रहे थे चलते चलते रास्ते में ही अभय उनको दिख गया जो अकेले मैदान में बैठा आसमान को देख रहा था तभी मंगलू और बनवारी चले गए अभय के सामने

मंगलू – कैसे हो बेटा

अभय --(अनजान बनते हुए) मैं ठीक हूं अंकल, आप तो वही है ना जो कल उस खेत में...

मंगलू -- ठीक कहा बेटा, में वही हूं जिसे तुमने कल ठकुराइन के सामने गिड़गिड़ाते हुए देखा था। क्या करता बेटा? यही एक उम्मीद तो बची थी सिर्फ हम गांव वालो में। की शायद गिड़गिड़ाने से हमे हमारी जमीन मिल जाए। पर हम वो कर के भी थक चुके थे। निराश हो चुके थे। पर शायद भगवान ने तुम्हे भेज दिया हम गरीबों के दुख पर खुशियों की बौछार करने के लिए।

अभय -- (सारी बात को समझते हुए) मैं कुछ समझा नही अंकल? मैने तो सिर्फ वो पेड़ ना काटने की आवाज उठाई थी, जो कानून गलत नही है। बस बाकी और मैने कुछ नही किया।

अभय की बात सुनकर, मंगलू की आंखो से आसूं टपक पड़े, ये देख कर अभय बोला...

अभय -- अरे अंकल आ... आप क्यूं ऐसे....?

मंगलू -- आज तक सिर्फ सुना था बेटा, की सच और ईमानदारी की पानी से पनपा पौधा कभी उखड़ता नही है। आज यकीन भी हो गया।

अभय -- माफ कीजिएगा अंकल, लेकिन मैं आपकी बातों को समझ नही पा रहा हूं।

अभय की दुविधा दूर करते हुए मंगलू ने कहा...

मंगलू -- जिस पेड़ को कल तुमने कटने से बचाया है। उस पेड़ को इस गांव के ठाकुर मनन सिंह और उनके बेटे अभय सिंह ने अपने हाथों से लगाया था। जब तक ठाकुर साहब थे, ये गांव भी उसी पौधे की तरह हरा भरा खिलता और बड़ा होता गया। खुशियां तो मानो इस गांव का नसीब बन कर आई थी, ठाकुर साहब का बेटा...अभय बाबा , मानो उनकी ही परछाई थे वो। कोई जाति पति का भेद भाव नही दिल खोल कर हमारे बच्चो के साथ खेलते। हमे कभी ऐसा नहीं लगा की ये इस हवेली के छोटे ठाकुर है, बल्कि हमे ऐसा लगता था की वो बच्चा हमारे ही आंगन का है। उसका मुस्कुराता चेहरा आज भी हम गांव वालो के दिल से नही निकला और शायद कभी निकलेगा भी नही। ना जाने कैसा सैलाब आया , पहले हमारे भगवान जैसे ठाकुर साहब को ले डूबी, फिर एक तूफान जो इस मुस्कुराते चेहरे को भी हमसे दूर कर दिया।

कहते हुए मंगलू की आंखो से उस दुख की धारा फूट पड़ी। अभय के लिए भी ये बहुत कठिन था। उसका दिल कर रहा था की वो बता दे की, काका उस तूफान में भटका वो मुस्कुराता चेहरा आज फिर से लौट आया है। पर वो नही कह सका। अपनी दिल की बात दिल में ही समेट कर रह गया। अभय का दिल भी ये सुन कर भर आया, की उसे कितना प्यार करते है सब गांव वाले। जिस प्यार की बारिश के लिए वो अपनी मां के ऊपर टकटकी लगाए रहता था वही प्यार गांव वालो के दिल में पनप रहा था। भाऊक हो चला अभय, सुर्ख आवाज में बोला...

अभि -- मैं समझ सकता हूं आपकी हालत अंकल।

ये सुनकर मंगलू अपनी आंखो से बह रहे उस आसूं को पूछते हुए बोला...

मंगलू -- बेटा, हमारे यहां कल हम भूमि पूजन का उत्सव मनाते है, पर इस बार हमे ऐसा लगा था शायद हमारे पास ये जमीन नही है। इस लिए हम अपनी भूमि का पूजा नही कर पाए। पर आज तुम्हारी वजह से हमारी जमीनें हमारी ही है। इस लिए कल रात हमने ये उत्सव रखा है, तो हम सब गांव वालो की तरफ से मैं तुम्हे आमंत्रित करने आया हूं। आना जरूर बेटा।

मंगलू की बात सुनकर, अभय का दिल जोर जोर से धड़कने लगा। वो खुद से बोला...

अभय – मन में (मैं कैसे भूल सकता हूं ये दिन)

मंगलू -- (अभय को गुमसुम देख) क्या हुआ बेटा? कोई परेशानी है?

अभय --(चौकते हुए) न... नही, काका। कोई परेशानी नहीं, मैं कल ज़रूर आऊंगा।

अभय की बात सुन मंगलू अपने लोगो के साथ खुशी खुशी विदा लेके चला गया जबकि अभय बैठ के आसमान को देखने लगा तभी पीछे से किसी औरत ने आवाज दी

औरत – साहेब जी आप अकेले क्यों बैठे हो यहां पे

अभय पलट के अपने सामने औरतों को देखता है तो झट से खड़ा हो जाता है

अभय – नही कुछ नही आंटी जी ऐसे ही बैठा..

औरत –(अभय को गौर से देखते हुए) बहुत ही अच्छी जगह चुनी है आपने जानते हो यहां पर बैठ के मन को जो शांति मिलती है वो कही नही मिलती

अभय – हा मुझे भी यहां बहुत सुकून मिल रहा है आंटी

औरत – अगर आप बुरा ना मानो एक बात पूछूं

अभय – हा पूछो ना आ

औरत – आपको खाने में क्या क्या पसंद है

अभय – मुझे सब कुछ पसंद है लेकिन सबसे ज्यादा पराठे पसंद है

औरत – मेरे बेटे को पराठे बहुत पसंद है मै बहुत अच्छे पराठे बनाती हूं देखना मेरे हाथ के गोभी के पराठे खा के मजा आजाएगा आपको

अभय – (जोर से हस्ते हुए) आपको पता है बड़ी मां मुझे गोभी के पराठे....

बोलने के बाद जैसे ही अभय ने औरत की तरफ नजर घुमाई देखा उसकी आखों में आसू थे

गीता देवी – (आंख में आसू लिए) तुझे देखते ही मुझे लगने लगा था तू ही हमारा अभय है

अभय –(रोते हुए) बड़ी मां (बोलते ही गीता देवी ने अभय को गले से लगा लिया)

गीता देवी – क्यों चला गया था रे छोर के हमे एक बार भी नही सोचा तूने अपनी बड़ी मां के लिए

अभय – (रूंधे गले से) मैं...मैं...मुझे माफ कर दो बड़ी मां

गीता देवी – (आसू पोंछ के) चल घर चल तू मेरे साथ

अभय – नही बड़ी मां अभी नही आ सकता मै....

तभी पीछे से किसी ने आवाज दी.... गीता

अभय – (धीरे से जल्दी में बोला) बड़ी मां गांव में किसी को भी पता नहीं चलना चाहीए मेरे बारे में मैं आपको बाद में सब बताऊग

सत्या बाबू – गीता यहां क्या कर रही हो (अभय को देख के) अरे बाबू साहेब आप भी यहां पे

गीता देवी – कल गांव में भूमि पूजन रखा है साथ ही गांव वालो ने खास इनके लिए दावत भी रखी है उसी के लिए मानने आए थे हम सब बाकी तो चले गए मैने सोचा हाल चाल ले लू

सत्या बाबू – ये तो बहुत अच्छी बात बताए तुमने गीता

गीता देवी – (अभय से) अच्छा आप कल जरूर आना इंतजार करेगे आपका (बोल के सत्या बाबू और गीता देवी निकल गए वहा से)

सत्या बाबू – गीता आज सुबह सुबह मैं मिला था बाबू साहब से उनसे बाते करते वक्त जाने दिल में अभय बाबा का ख्याल आया था उनके जैसे नीली आखें

गीता देवी –(मुस्कुराते हुए) ये हमारे अभय बाबा ही है

सत्या बाबू –(चौकते हुए) लेकिन कैसे खेर छोड़ो उनको साथ लेके क्यों नही चली घर में राज को पता चलेगा कितनी खुश हो जाएगा चलो अभी लेके चलते है....

गीता देवी – (बीच में टोकते हुए) शांति से काम लीजिए आप और जरा ठंडे दिमाग से सोचिए इतने वक्त तक अभय बाबा घर से दूर रहे अकेले और अब इतने सालो बाद वापस आए कॉलेज में एडमिशन लेके वो भी अपने गांव में आपको ये सब बाते अजीब नही लगती है

सत्या बाबू – हा बात अजीब तो है

गीता देवी – अभय ने माना किया है मुझे बताने से किसी को भी आप भी ध्यान रख्येगा गलती से भी किसी को पता न चले अभय के बारे में और राज को भी मत बताना आप वो खुद बताएगा अपने आप

सत्या बाबू – ठीक है , आज मैं बहुत खुश हो गीता अभय बाबा के आते ही गांव वालो की जमीन की समस्या हल हो गए देखना गीता एक दिन बड़े ठाकुर की तरह अभय बाबा भी गांव में खुशीयो की बारिश करेगे

गीता देवी और सत्या बाबू बात करते हुए निकल गए घर के लिए जबकि इस तरफ रमन ओर मुनीम आपस में बाते कर रहे थे

रमन – (पेड़ के नीचे बैठा सिगरेट का कश लेते हुए) मुनीम, मैने तुझे समझाया था। की भाभी के पास तू दुबारा मत जाना, फिर भी तू क्यूं गया?

मुनीम -- (घबराहट में) अरे मा...मालिक मैं तो इस लिए गया था की। मैं मालकिन को ये यकीन दिला सकू की सब गलती मेरी ही है।

रमन -- (गुस्से में) तुझे यहां पे यकीन दिलाने की पड़ी है। और उधर मेरे हाथो से इतना बड़ा खजाना निकल गया। साला...कॉलेज बनवाने के नाम पर मैने गांव वालो की ज़मीन हथिया लि थी अब क्या जवाब दुगा मैं उन लोगो को साला मजाक बन के रह जाएगा मेरा सबके सामने जैसे कल रात गांव वालो के सामने हुआ और वो हराम का जना वो छोकरा जाने कहा

(कहते हुए रमन की जुबान कुछ सोच के एक पल के लिए खामोश हो गई...)

रमन -- ऐ मुनीम...क्या लगता है तुझे ये छोकरा कौन है? कही ये सच में....?

मुनीम -- शुभ शुभ बोलो मालिक? इसीलिए उस लाश को रखवाया था मैने जंगल में तभी अगले दिन लाश मिली थी गांव वालो को?

रमन – धीरे बोल मुनीम के बच्चे इन पेड़ों के भी कान होते है , तू नही था वहा पर , कल रात को जिस तरह से वो छोकरा भाभीं से बात कर रहा था ऐसा लग रहा था जैसे बड़ी नफरत हो उसमे उपर से हवेली में जो हुआ और यहां तू अपनी...

मुनीम – (बीच में बात काटते हुए) मालिक मैं सिर्फ यह कहना चाहता हूं ऐसी कोई बात नही है? जरूर ये छोकरा आप के ही किसी दुश्मन का मोहरा होगा। जो घर की चंद बाते बोलकर ठाकुराइन को ये यकीन दिलाना चाहता है की, वो उन्ही का बेटा है।

रमन -- और उस ठाकुराइन को यकीन भी हो गया। मुनीम मुझे ये सपोला बहुत खतरनाक लग रहा है, फन निकलने से पहले ही इससे कुचल देना ही बेहतर होगा। आते ही धमाका कर दिया।

मुनीम -- जी मालिक, वो भी बिना आवाज वाला।

ये सुनकर तो रमन का चेहरा गुस्से से लाल हो गया, जिसे देख मुनीम के छक्के छूट गए...

रमन -- मुनीम, जरा संभल के बोला कर। नही तो मेरा धमाका तुझ पर भारी पड़ सकता है। बोलने से पहले समझ लिया कर की उस बात का कोई गलत मतलब मेरे लिए तो नही।

मुनीम रमन से गिड़गिड़ा कर बोला...

रमन -- (हाथ जोड़ते हुए) गलती हो गई मालिक, आगे से ध्यान रखूंगा। आप चिंता मत करो, उस सपोले को दूध मैं अच्छी तरह से पिलाऊंगा।
मुनीम की बात सुनते ही, रमन झट से बोल पड़ा...

रमन -- नही अभी ऐसा कुछ करने की जरूरत नहीं है भाभी का पूरा ध्यान उस छोकरे पर ही है। अगर उसे कुछ भी हुआ, तो भाभी अपनी ठाकुरानी गिरी दिखाने में वक्त नहीं लगाएगी। और अब तो उस पर मेरा दबदबा भी नही रहा। कहीं वो एक एक कर के सारे पन्ने पलटते ना लग जाए , तू समझा ना मैं क्या कह रहा हूं?

मुनीम -- समझ गया मालिक मतलब उस सपोले को सिर्फ पिटारे में कैद कर के रखना है, और समय आने पर उसे मसलना है।

मुनीम की बात सुनकर रमन कुछ बोला तो नही पर सिगरेट की एक कश लेते हुए मुस्कुराया और वहा से चल दिया..

सुबह से शाम होने को आई हवेली में संध्या का मन उतावला हो रहा था अभय से मिलने के लिए काम से फुरसत पा कर संध्या अपनी कार से निकल गई हॉस्टल के तरफ तभी रास्ते में संध्या ने कार को रोक के सामने देखा आम के बगीचे में एक लड़कि अकेली बैठी थी पेड़ के नीचे उसे देख के संध्या कार से उतर के वहा जाने लगी

संध्या – पायल तू यहां पे अकेले

पायल – ठकुराइन आप , जी मैं..वो..वो

संध्या –(बात को कटते हुए) सब जानती हू मै तू और अभय अक्सर यहां आया करते थे ना घूमने है ना पायल

पायल – नही ठकुराइन जी बल्कि वो ही मुझे अपने साथ लाया करता था जबरदस्ती , उसी की वजह से मेरी भी आदत बन गई यहां आने की , जाने वो कब आएगा , बोलता था मेरे लिए चूड़ियां लेके आएगा अच्छी वाली और एक बार आपके कंगन लेके आगया था ठकुराइन , मुझे ये चूड़ी कंगन नही चाहिए बस वो चाहिए

कहते हुए पायल की आंखो में आसूं आ गए, ये देख कर संध्या खुद को रोक नहीं पाई और आगे बढ़कर पायल को अपने सीने से लगा लेती है, और भाऊक हो कर बोली...

संध्या -- बहुत प्यार करती है ना तू उसे आज भी?

पायल एक पल के लिए तो ठाकुराइन का इतना प्यार देखकर हैरान रह गई। फिर ठाकुराइन की बातो पर गौर करते हुए बोली...

पायल -- प्यार क्या होता है, वो तो पता नही । लेकिन उसकी याद हर पल आती रहती है।

पायल की बात सुनकर संध्या की आंखो में भी आसूं छलक गए और वो एक बार कस के पायल को अपने सीने से चिपका लेती है।

संध्या पायल को अपने सीने से चिपकाई वो सुर्ख आवाज में बोली...

संध्या -- तू भी मुझसे बहुत नाराज़ होगी ना पायल ?

संध्या की बात सुनकर, पायल संध्या से अलग होते हुए बोली...

पायल -- आपसे नाराज़ नहीं हु मै, हां लेकिन आप जब भी बेवजह अभय को मरती थी तब मुझे आप पर बहुत गुस्सा आता था। कई बार अभय से पूछती थी की, तुम्हारी मां तुम्हे इतना क्यूं मरती है? तो मुस्कुराते हुए बोलता था की, मारती है तो क्या हुआ बाद में उसी जख्मों पर रोते हुए प्यार से मलहम भी तो लगाती है मेरी मां। थोड़ा गुस्से वाली है मेरी मां पर प्यार बहुत करती है। उसके मुंह से ये सुनकर आपके ऊपर से सारा गुस्सा चला जाता था।

पायल की बातो ने संध्या की आंखो को दरिया बना दी। वो एक शब्द नही बोल पाई, शायद अंदर ही अंदर तड़प रही थी और रो ना पाने की वजह से गला भी दुखने लगा था। फिर भी वो अपनी आवाज पर काबू पाते हुए बोली...

संध्या --(अपने हाथ से पायल के आसू पोंछ के) पायल अगर तुझे एतराज ना हो कल का भूमि पूजन मैं तेरे साथ करना चाहती हूं क्या तू इजाजत देगी मुझे

पायल – जी ठकुराइन अगर आप चाहे हर साल मैं आपके साथ भूमि पूजन करूगी।

संध्या – देख अंधेरा होने को है आजा मैं तुझे घर छोर देती हूं (अपनी कार में पायल को घर छोर के जैसे ही संध्या आगे चल ही रही थी की सामने अभय उसे जाता हुआ मिला)

संध्या –(कार रोक के) हॉस्टल जा रहे हो आओ कार में आजाओ मैं छोर देती हूं

संध्या की बात सुनकर, अभय मुस्कुराते हुए बोला...

अभय -- आप को परेशान होने की जरूरत नहीं है मैडम। मैं चला जाऊंगा । और वैसे भी हॉस्टल कौन सा दूर है यहां से।

संध्या -- दूर तो नही है, पर फिर भी।

कहते हुए संध्या का चेहरा उदासी में लटक गया। ये देख कर अभय ने कुछ सोचा और फिर बोला...


अभय -- ठीक है चलिए चलता हूं मैं

ये सुनकर संध्या का चेहरा फूल की तरह खिल गया अभय के कार में बैठते ही संध्या ने कार आगे बड़ा दी कुछ दूर चलने के बाद अभय ने बोला...

अभय -- तुझे लगता है ना की मैं तेरा बेटा हूं तो अब तू मेरे मुंह से भी सुन ले, हां मैं ही अभय हूं।

ये सुनते ही संध्या एक जोरदार ब्रेक लगाते हुए कार को रोक देती है अभय के मुंह से सुनकर तो उसकी खुशी का ठिकाना ही न था। उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था की वो क्या बोले? वो तुरंत ही जोर जोर से रोने लगती है, और उसके मुंह से सिर्फ गिड़गिड़ाहट की आवाज ही निकल रही थी...

हाथ बढ़ाते हुए उसने अपना हाथ अभय के हाथ पर रखा तो अभय ने दूर झटक दिया। ये देख संध्या का दिल तड़प कर रह गया...

संध्या -- मुझे पता है, तुम मुझसे नाराज़ हो। मैने गलती ही ऐसी की है की, उसकी माफी नहीं है। तुम्हे मुझे जो सजा देनी है दो, मारो, पीटो, काटो, जो मन में आए...मुझसे यूं नाराज न हो। बड़े दिनों बाद दिल को सुकून मिला है। लेकिन मेरी किस्मत तो देखो मैं मेरा बेटा मेरी आंखो के सामने है और मैं उसे गले भी नही लगा पा रही हूं। कैसे बताऊं तुम्हे की मैं कितना तड़प रही हूं?

रोते हुऐ संध्या अपने दिल की हालत बयां कर रही थी। और अभय शांत बैठा उसकी बातो सुन रहा था।
संध्या ने जब देखा अभय कुछ नही बोल रहा है तो, उसका दिल और ज्यादा घबराने लगा। मन ही मन भगवान से यही गुहार लगी रही थी की, उसे उसका बेटा माफ कर दे...

संध्या -- मु...मुझे तो कुछ समझ ही नही आ रहा है की, मैं ऐसा क्या बोलूं या क्या करूं जिससे तुम मान जाओ। तुम ही बताओ ना की मैं क्या करूं?

ये सुनकर अभय हंसने लगा...अभय को इस तरह से हंसता देख संध्या का दिल एक बार फिर से रो पड़ा। वो समझ गई की, उसकी गिड़गिड़ाहट अभय के लिए मात्र एक मजाक है और कुछ नही और तभी अभय बोला...

अभय -- कुछ नही कर सकती तू। हमारे रास्ते अलग है। और मेरे रास्ते पे तेरे कदमों के निशान भी न पड़ने दू मैं। और तू सब कुछ ठीक करने की बात करती है। मुझे तुझसे कोई हमदर्दी नही है। तेरे ये आंसू मेरे लिए समुद्र का वो कतरा है है जो किसी काम का नही। क्या हुआ? कहा गई तेरी वो ठकुराइनो वाली आवाज? मुनीम इससे आज खाना मत देना। मुनीम ये स्कूल ना जाय तो इसे पेड़ से बांध कर रखना। अमन तू तो मेरा राजा बेटा है। आज से उस लड़की के साथ तुझे देखा तो तेरी खाल उधेड़ लूंगी।

अभय -- मैं उस लड़की के साथ तब भी था, आज भी हू और कल भी रहूंगा। बहुत उधेड़ी है तूने मेरी खाल। अच्छा लग रहा है, बड़ा सुकून मिल रहा है, तेरी हालत देख कर। (अभय जोर से हंसते हुए) ...तुम ही बताओ की मैं क्या करू? की तुम मान जाओ। हा... हा... हा। नौटंकी बाज़ तो तू है ही। क्या हुआ...वो तेरा राजा बेटा कहा गया? उससे प्यार नही मिल रहा है क्या अब तुझे? नही मिलता होगा, वो क्या है ना अपना अपना ही होता है, शायद तुझे मेरे जाने के पता चला होगा। अरे तुझे शर्म है क्या ? तू किस मुंह से मेरे सामने आती है, कभी खुद से पूछती है क्या? बेशर्म है तू, तुझे कुछ फर्क नही पड़ता...

संध्या बस चुप चाप बैठी मग्न हो कर रो रही थी मगर अब चिल्लाई...

संध्या – हा... हा बेशर्म हूं मैं, घटिया औरत हूं मैं। मगर तेरी मां हूं मैं। तू मुझे इस तरह नही छोड़ सकता। जन्म दिया है तुझे मैने। तेरी ये जिंदगी मुझसे जुड़ी है, इस तरह से अलग हो जाए ऐसा मैं होने नही दूंगी।

संध्या की चिल्लाहट सुन कर, अभय एक बार मुस्कुराया और बोला...

अभय -- तो ठीक है, लगी रह तू अपनी जिंदगी को मेरी जिंदगी से जोड़ने में।

ये कहते हुए अभय कार से जैसे ही नीचे उतरने को हुआ, संध्या ने अभय का हाथ पकड़ लिया। और किसी भिखारी की तरह दया याचना करते हुए अभय से बोली...

संध्या -- ना जा छोड़ के, कोई नही है तेरे सिवा मेरा। कुछ अच्छा नहीं लगता जब तू मेरे पास नहीं रहता। रह जा ना मेरे साथ, तू किसी कोने में भी रखेगा मुझे वहा पड़ा रहूंगी, सुखी रोटी भी ला कर देगा वो भी खा लूंगी, बस मुझे छोड़ कर ना जा। रुक जा ना, तेरे साथ रहने मन कर रहा है।

संध्या की करुण वाणी अगर इस समय कोई भी सुन लेता तो शत प्रतिशत पिघल जाता, उसने अपने दिल के हर वो दर्द को शब्दो में बयान कर दी थी। इस बार अभय भी थोड़ा भाऊक हो कर बड़े ही प्यार से बोला...

अभय -- याद है तुझे, मैं भी कभी यही बोला करता था तुझसे। जब रात को तू मुझे सुलाने आती थी। मैं भी तेरा हाथ पकड़ कर बोलता था, रह जा ना मां, तेरे साथ अच्छा लगता है। तू पास रहती है तो मुझे बहुत अच्छी नींद आती है, रुक जा ना मां, मेरे पास ही सो जा। मगर तू नही रुकी तब तुझे बहीखाता बनाना होता हिसाब देखना होता और उस रात को भी यही कहा था तुझे , लेकिन उस रात किसी और को तेरे साथ सोना था। याद है या बताऊ कॉन आया था सोने तेरे कमरे में......

संध्या – नहीं...चुप हो जा। तेरे पैर पड़ती हूं।

कहते हुए संध्या ने अभय का हाथ छोड़ दिया, और दूसरी तरफ मुंह घुमा लिया। ना जाने क्या हुआ उसे, ना रो रही थी ना कुछ बोल रही थी, बस बेबस सी पड़ी थी....

उसकी ऐसी हालत देख कर अभय जाने के लिए पलट गया और बिना पलते एक बार फिर बोला...

अभय -- जाते जाते तुझे एक बात बता दूं। तू गुलाब का वो फूल है, जिसके चारो तरफ सिर्फ कांटे ही कांटे है। सिर्फ एक मैं ही था, जो तुझे उन काटो से बचा सकता था। मगर तूने मुझे पतझड़ के सूखे हुए उस पत्ते की तरह खुद से अलग कर दिया की अब मैं भी तेरे चारों तरफ बिछे काटों को देखकर सुकून महसूस करता हूं...

ये कहकर अभय वहा से चला जाता है, संध्या बेचारी अपनी नजर उठा कर अंधेरे में अपने बेटे को देखना चाही, मगर कार के बाहर उसे सिर्फ अंधेरा ही दिखा......
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जारी रहेगा ✍️✍️
Jabardast update bro
 

Tiger 786

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UPDATE 1

तेज हवाऐं चल रही थी। शायद तूफ़ान था क्यूंकि ऐसा लग रहा था मानो अभी इन हवाओं के झोके बड़े-बड़े पेंड़ों को उख़ाड़ फेकेगा। बरसात भी इतनी तेजी से हो रही थी की मानो पूरा संसार ना डूबा दे। बादल की गरज ऐसी थी की उसे सुनकर लोग अपने-अपने घरों में दुबक कर बैठे थे।


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जहां एक तरफ इस तूफानी और डरावनी रात में लोग अपने घरों में बैठे थे। वहीं दूसरी तरफ एक लड़का, इस तूफान से लड़ते हुए आगे भागते हुए चले जा रहा था

वो लड़का इस गति से आगे बढ़ रहा था, मानो उसे इस तूफान से कोई डर ही नही। तेज़ चल रही हवाऐं उसे रोकने की बेइंतहा कोशिश करती। वो लड़का बार-बार ज़मीन पर गीरता लेकिन फीर खड़े हो कर तूफान से लड़ते हुए आगे की तरफ बढ़ चलता।

ऐसे ही तूफान से लड़ कर वो एक बड़े बरगद के पेंड़ के नीचे आकर खड़ा हो गया। वो पूरी तरह से भीग चूका था। तेज तूफान की वज़ह से वो ठीक से खड़ा भी नही हो पा रहा था। शायद बहुत थक गया था। वो एक दफ़ा पीछे मुड़ कर गाँव की तरफ देखा। उसकी आंखे नम हो गयी, शायद आंशू भी छलके होंगे मगर बारीश की बूंदे उसके आशूं के बूंदो में मील रहे थे। वो लड़का कुछ देर तक काली अंधेरी रात में गाँव की तरफ देखता रहा, उसे दूर एक कमरे में हल्का उज़ाल दीख रहा था। उसे ही देखते हुए वो बोला...


"मैं जा रहा हूं माँ!!"

और ये बोलकर वो लड़का अपने हांथ से आंशू पोछते हुए वापस पलटते हुए गाँव के आखिरी छोर के सड़क पर अपने कदम बढ़ा दीये....

तूफान शांत होने लगी थी। बरसात भी अब रीमझीम सी हो गयी थी, पर वो लड़का अभी भी उसी गति से उस कच्ची सड़क पर आगे बढ़ा जा रहा था। तभी उस लड़के की कान में तेज आवाज़ पड़ी....
पलट कर देखा तो उसकी आँखें चौंधिंया गयी। क्यूंकि एक तेज प्रकाश उसके चेहरे पर पड़ी थी। उसने अपना हांथ उठाते हुए अपने चेहरे के सामने कीया और उस प्रकाश को अपनी आँखों पर पड़ने से रोका। वो आवाज़ सुनकर ये समझ गया था की ये ट्रेन की हॉर्न की आवाज़ है। कुछ देर बाद जब ट्रेन का इंजन उसे क्रॉस करते हुए आगे नीकला, तो उस लड़के ने अपना हांथ अपनी आँखों के सामने से हटाया। उसके सामने ट्रेन के डीब्बे थे, शायद ट्रेन सीग्नल ना होने की वजह से रुक गयी थी।


उसने देखा ट्रेन के डीब्बे के अंदर लाइट जल रही थीं॥ वो कुछ सोंचते हुए उस ट्रेन को देखते रहा। तभी ट्रेन ने हॉर्न मारा। शायद अब ट्रेन सिग्नल दे रही थी की, ट्रेन चलने वाली है। ट्रेन जैसे ही अपने पहीये को चलायी, वो लड़का भी अपना पैर चलाया, और भागते हुए ट्रेन पर चढ़ जाता है। और चलती ट्रेन के गेट पर खड़ा होकर एक बार फीर से वो उसी गाँव की तरफ देखने लगता है। और एक बार फीर उसकी आँखों के सामने वही कमरा दीखता है जीसमे से हल्का उज़ाला था। और देखते ही देखते ट्रेन ने रफ्तार बढ़ाई और हल्के उज़ाले वाला कमरा भी उसकी आँखों से ओझल हो गया.....

कमरे में हल्की रौशनी थी, एक लैम्प जल रहा था। बीस्तर पर दो ज़ीस्म एक दुसरे में समाने की कोशिश में जुटे थे। मादरजात नग्न अवस्था में दोनो उस बीस्तर पर गुत्थम-गुत्थी हुए काम क्रीडा में लीन थे। कमरे में फैली उज़ाले की हल्की रौशनी में भी उस औरत का बदन चांद की तरह चमक रहा था। उसके उपर लेटा वो सख्श उस औरत के ठोस उरोज़ो को अपने हांथों में पकड़ कर बारी बारी से चुसते हुए अपनी कमर के झटके दे रहा था।

उस औरत की सीसकारी पूरे कमरे में गूंज रही थी। वो औरत अब अपनी गोरी टांगे उठाते हुए उस सख्श के कमर के इर्द-गीर्द रखते हुए शिकंजे में कस लेती है। और एक जोर की चींख के साथ वो उस सख्श को काफी तेजी से अपनी आगोश में जकड़ लेती है और वो सख्श भी चींघाड़ते हुए अपनी कमर उठा कर जोर-जोर के तीन से चार झटके मारता है। और हांफते हुए उस औरत के उपर ही नीढ़ाल हो कर गीर जाता है।


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"बस हो गया तेरा

अब जा अपने कमरे में। आज जो हुआ मैं नही चाहती की कीसी को कुछ पता चले।"

उस औरत की बात सुनकर वो सख्श मुस्कुराते हुए उसके गुलाबी होठों को चूमते हुए, उसके उपर से उठ जाता है और अपने कपड़े पहन कर जैसे ही जाने को होता है। वो बला की खुबसूरत औरत एक बार फीर बोली--

"जरा छुप कर जाना, और ध्यान से गलती से भी अभय के कमरे की तरफ से मत जाना समझे।"

उस औरत की बात सुनकर, वो सख्श एक बार फीर मुस्कुराते हुए बोला--

"वो अभी बच्चा है भाभी, देख भी लीया तो क्या करेगा? और वैसे भी वो तुमसे इतना डरता है, की कीसी से कुछ बोलने की हीम्मत भी नही करेगा।"

उस सख्श की आवाज़ सुनकर, वो औरत बेड पर उठ कर बैठ जाती है और अपनी अंगीयां (ब्रा) को पहनते हुए बोली...

"ना जाने क्यूँ...आज बहुत अज़ीब सी बेचैनी हो रही है मुझे। मैने अभय के सांथ बहुत गलत कीया।"

"ये सब छोड़ो भाभी, अब तूम सो जाओ।"

कहते हुए वो सख्श उस कमरे से बाहर नीकल जाता है। वो औरत अभी भी बीस्तर पर ब्रा पहने बैठी थी। और कुछ सोंच रही थी, तभी उसके कानो में ट्रेन की हॉर्न सुनायी पड़ती है। वो औरत भागते हुए कमरे की उस खीड़की पर पहुंच कर बाहर झाकती है। उसे दूर गाँव की आखिर छोर पर ट्रेन के डीब्बे में जल रही लाईटें दीखी, जैसे ही ट्रेन धीरे-धीरे चली। मानो उस औरत की धड़कने भी धिरे-धिरे बढ़ने लगी....
***********
ट्रेन के गेट पर बैठा वो लड़का, एक टक बाहर की तरफ देखे जा रहा था। आँखों से छलकते आशूं उसके दर्द को बयां कर रहे थे। कहां जा रहा था वो? कीस लिए जा रहा था वो? कुछ नही पता था उसे। अपने चेहरे पर उदासी का चादर ओढ़े कीसी बेज़ान पत्थर की तरह वो ट्रेन की गेट पर गुमसुम सा बैठा था। उसके अगल-बगल कुछ लोग भी बैठे थे। जो उसके गले में लटक रही सोने की महंगी चैन को देख रहे थे। उनकी नज़रों में लालच साफ दीख रही थी। और शायद उस लड़के का सोने का इंतज़ार कर रहे थे। ताकी वो अपना हांथ साफ कर सके।
पर अंदर से टूटा वो परीदां जीसका आज आशियाना भी उज़ड़ गया था। उसकी आँखों से नींद कोषो दूर था। शायद सोंच रहा था की, अपना आशियाना कहां बनाये???
*********
अगली सुबह
सुबह-सुबह संध्या उठते हुए हवेली के बाहर आकर कुर्सी पर बैठ गयी। उसके बगल में रमन सिंह और ललिता भी बैठी थी। तभी वहां एक ३0 साल की सांवली सी औरत अपने हांथ में एक ट्रे लेकर आती है, और सामने टेबल पर रखते हुए सबको चाय देकर चली जाती है।
संध्या चाय की चुस्की लेते हुए बोली...
संध्या -- "तुम्हे पता है ना रमन, आज अभय का जन्मदिन है। मैं चाहती हूँ की, आज ये हवेली दुल्हन की तरह सजे,, सब को पता चलना चाहिए की आज छोटे ठाकुर का जन्मदिन है।"
रमन भी चाय की चुस्कीया लेते हुए बोला...
रमन –(कुटिल मुस्कान के साथ) तुम चिंता मत करो भाभी आज का दिन पूरा गांव याद रहेगा
रमन अभी बोल ही रहा था की, तभी वहां मालती आ गयी
मालती -- "दीदी, अभय को देखा क्या तुमने?"
संध्या – सो रहा होगा वो मालती अब इतनी सुबह सुबह कहा उठता है वो ?
मालती – वो अपने में तो नहीं है , मैं देख कर आ रही हूं ! मुझे लगा कल की मार की वजह से डर के मारे आज जल्दी उठ गया होगा
मालती की बात सुनते ही , संध्या गुस्से से लाल गए और एक झटके में कुर्सी पर से उठते हुए गुस्से में चिल्लाते हुए बोली…
संध्या – बेटा है मेरा वो कोई दुश्मन नही जो मैं उसे डरा धमका के रखूगी हा हो गईं कल मुझसे गलती गुस्से में मारा थोड़ा बहुत तो क्या होगया ?
संध्या को इस तरह चिल्लाते देख मालती शीतलता से बोली…
मालती – अपने आप को झूठी दिलासा क्यों दे रहे हो दीदी ? मुझे नही लगता की कल आपने अभय को थोड़ा बहुत मारा था और वो पहली बार भी नही था
अब तो संध्या जल भुन कर राख सी हो गई क्योंकि मालती की सच बात उसे तीखी मिर्ची की तरह लगी या उसे खुद की हुई गलती का एहसास था
संध्या –( गुस्से में) तू कहना क्या चाहती है मै…मैं भला उससे क्यों नफरत करूगी मेरा बेटा है वो और तुझे लगता है की मुझे उसकी फिक्र नहीं है सिर्फ तुझे है क्या
मालती –(संध्या की बात सुन गुस्से में बोली) मुझे क्या पता दीदी ? अभय तुम्हारा बेटा है मारो चाहे काटो मुझे उससे क्या मुझे वो अपने कमरे में नही दिखा तो पूछने चली आई यहा पे
कहते हुए मालती वहां से चली जाती है। संध्या अपना सर पकड़ कर वही चेयर पर बैठ जाती है। संध्या को इस हालत में देख रमन संध्या के कंधे पर हांथ रखते हुए बोला...
रमन – क्या भाभी आप भी छोटी छोटी बात को दिल में…
रमन अपनी बात पूरी नहीं कर पाया था की संध्या बीच मो बोली
संध्या – रमन तुम जाओ यहां से मुझे कुछ समय के लिए अकेला छोड़ दो
संध्या की गुस्से से भरी आवाज सुनके रमन को लगा अभी यहां से जाना ठीक रहेगा
रमन –(हवेली से बाहर मेन गेट पे आते ही पीछे पलट के संध्या को देख के बोला) बस कुछ वक्त और फिर तू मेरी बन जाएगी
इस तरफ
संध्या अपने सर पे हाथ रख के बैठी गहरी सोच में डूबी हुई थी की तभी दो हाथ संध्या की आखों पे पड़े उसकी आंखे बंद हो गई अपनी आखों पे किसी के हाथ को महसूस कर संध्या के होठों पे मुस्कान आग्यी
संध्या –(गहरी मुस्कान के साथ) नाराज है तू अपनी मां से बस एक बार माफ कर दे तेरी कसम खाती हो अब से मैं ऐसा कुछ नही करोगी जिससे तुझे तकलीफ हो मेरे बच्चे

संध्या की बात सुनते ही अमन जोर से हंसने लगा और अपना हाथ हटाते ही संध्या के सामने जा के खड़ा होगया

संध्या ने अपने सामने अमन को पाया क्यों की उसे लगा ये उसका बेटा अभय है लेकिन ए0ने सामने अमन को देख संध्या की हसी गायब हो गई

अमन –(हस्ते हुए) अरे ताई मां आपको क्या लगा मैं अभय हूं

संध्या –(झूठी मुस्कान के साथ) बदमाश कही का मुझे सच में लगा मेरा बेटा अभय है

अमन –आपको लगता है अभय ऐसा भी कर सकता है अगर वो ऐसा करता तो अभी तक उसको दो थप्पड़ खा चुका होता (बोल के जोर जोर से हंसने लगा)

अमन की ऐसी बात सुन संध्या के मन में गुस्सा आने लगा लेकिन तभी अमन कुछ ऐसा बोला

अमन –(हस्ते हुए) एक बात बताऊं आपको बेचारा अभय कल शाम आपके हाथ की मार खाने के बाद मैने रात को अभय को हवेली से भागते हुए देखा था वो ऐसा भागा की वापस ही नही लौटा
अब चौंकने की बारी संध्या की थी, अमन की बात सुनते ही उसके हांथ-पांव में कंपकपी उठने लगी। वैसे तो धड़कने बढ़ने लगती है, मगर संध्या की मानो धड़कने थमने लगी थी। सुर्ख हो चली आवाज़ और चेहरे पर घबराहट के लक्षण लीए बोल पड़ी...
संध्या –(घभराते हुए) क क्या मतलब है तेरा अ अभय भाग गया हवेली से
अमन –हा कल रात में मैने अभय को हवेली से भागते हुए देखा था मुझे लगा आजाएगा अपने आप और देर रात मैं पानी पीने उठा था तब देखा अभय का कमरा खुला पड़ा है अंडर देखा खाली था कमरा कोई नही था वहा पे
संध्या झट से चेयर पर से उठ खड़ी हुई, और हवेली के अंदर भागी।
संध्या –(डरते हुए चिल्लाने लगी) अभय…अभय…अभय…अभय…अभय
पागलो की तरह संध्या चीखती-चील्लाती अभय के कमरे की तरफ बढ़ी। संध्या की चील्लाहट सुनकर, मालती,ललीता,नीधि और हवेली के नौकर-चाकर भी वहां पहुंच गये। सबने देखा की संध्या पगला सी गयी है। सब हैरान थे, की आखिर क्या हुआ? ललिता ने संध्या को संभालते हुए पूछा
ललिता – क्या हुआ दीदी आप इस्त्रह चिल्ला क्यों रहे हो
संध्या –(रोते हुए) मेरा अभय कहा है
मालती –(ये बात सुन के गुस्से में चिल्ला के) यही बात तो मैं भी पूछने आई थी दीदी क्योंकि अभय सुबह से नही दिख रहा है मुझे
अब संध्या की हालत को लकवा मार गया था। थूक गले के अंदर ही नही जा रहा था। आँखें हैरत से फैली, चेहरे पर बीना कीसी भाव के बेजान नीर्जीव वस्तु की तरह वो धड़ाम से नीचे फर्श पर बैठ गयी। संध्या की हालत पर सब के रंग उड़ गये। ललिता और मालती संध्या को संभालने लगी।
ललिता –(संध्या को संभालते हुए) दीदी घबराओ मत यह कही होगा अभी आजाएगा अभय

सभी की बात सुन संध्या जैसे जिंदा लाश की तरह बन गई थी

संध्या –(सदमे मे) चला गया मुझे छोड़ के चला गया मेरा अभय

इतना बोल संध्या वही जमीन में गिर के बेहोश होगई
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.
.
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तो कैसा लगा आप सबको ये अपडेट
बताएगा जरूर कहानी में काफी कुछ एडिट कर रहा हूं मैं थोड़ा समय लग रहा है मै ये बात मानता हो
बस मेरी कोशिश यही है की गलती से भी कोई गलती ना हो
कहानी को मैं देवनागरी में जरूर लिख रहा हूं लेकिन मेरे लिए आसान नहीं है आप सब से प्राथना करूंगा कोई गलती हो शब्दो में तो बता जरूर देना

बस साथ बने रहे जैसे मैने अपने दोनो कहानियों को मंजिल तक ले आया इसे भी इसकी मंजिल तक ले आऊंगा

धन्यवाद
Awesome update
 

Tiger 786

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UPDATE 2



गाँव के बीचो-बीच खड़ी आलीशान हवेली में अफरा-तफरा मची थी। पुलिस की ज़िप आकर खड़ी थी। हवेली के बैठके(हॉल) में । संध्या सिंह जोर से चींखती चील्लाती हुई बोली

संध्या --"मुझे मेरा बेटा चाहिए....! चाहे पूरी दुनीया भर में ही क्यूँ ना ढ़ूढ़ना पड़ जाये तुम लोग को? जीतना पैसा चाहिए ले जाओ....!! पर मेरे बच्चे को ढूंढ लाओ...मेरे बच्चे को ढूंढ लाओ...मेरे बच्चे

कहते हुए संध्या जोर-जोर से रोने लगी। सुबह से दोपहर हो गयी थी, पर संध्या की चींखे रुकने का नाम ही नही ले रही थी। गाँव के लोग भी ये खबर सुनकर चौंके हुए थे। और चारो दिशाओं मे अभय के खोज़ खबर में लगे थे। ललिता और मालति को, संध्या को संभाल पाना मुश्किल हो रहा था। संध्या को रह-रह कर सदमे आ रहे थें। कभी वो इस कदर शांत हो जाती मानो जिंदा लाश हो, पर फीर अचानक इस तरह चींखते और चील्लाते हुए सामन को तोड़ने फोड़ने लगती मानो जैसे पागल सी हो गयी हो।

रह-रह कर सदमे आना, संध्या का पछतावा था साथ अपने बेटे से बीछड़ने का गम भी , अभय ने आखिर घर क्यूँ छोड़ा? अपनी माँ का आंचल क्यूँ छोड़ा? इस बात का जवाब सिर्फ अभय के पास था। जो इस आलीशान हवेली को लात मार के चला गया था, कीसी अनजान डगर पर, बीना कीसी मक्सद के और बीना कीसी मंज़ील के।

(कहते हैं बड़ो की डाट-फटकार बच्चो की भलाई के लिए होता है। शायद हो भी सकता है , लेकिन जो प्यार कर सकता है। वो डाट-फटकार नही। प्यार से रिश्ते बनाता है। डाट-फटकार से रिश्ते बीछड़ते है, जैसे आज एक बेटा अपनी माँ से और माँ अपने बेटे से बीछड़ गए। रीश्तो में प्यार कलम में भरी वो स्याही है, जब तक रहेगी कीताब के पन्नो पर लीखेगी। स्याही खत्म तो पन्ने कोरे रह जायेगें। उसी तरह रीश्तो में प्यार खत्म, तो कीताब के पन्नो की तरह ज़िंदगी के पन्ने भी कोरे ही रह जाते हैं।)

हवेली की दीवारों में अभी भी संध्या की चींखे गूंज रही थी की तभी, एक आदमी भागते हुए हवेली के अंदर आया और जोर से चील्लाया

ठाकुर साहब ठाकुर साहब

आवाज़ काभी भारी-भरकम थी, इसलिए हवेली में मौजूद सभी लोगों का ध्यान उस तरफ केंद्रीत कर ली थी। सबसे पहली नज़र उस इंसान पर ठाकुर रमन की पड़ी। रमन ने देखा वो आदमी काफी तेजी से हांफ रहा था, चेहरे पर घबराहट के लक्षणं और पसीने में तार-तार था।

रमन --"क्या हुआ रे दीनू? क्यूँ गला फाड़ रहा है?"

दीनू --(अपने गमझे से माथे के पसीनो को पोछते हुए घबराहट भरी लहज़े में बोला) मालीक...वो, वो गाँव के बाहर वाले जंगल में। ए...एक ब...बच्चे की ल...लाश मीली है।

रमन --(एक नजर संध्या को देखते हुए बोला) ल...लाश क...कैसी लाश?"

उस आदमी की आवाज़ ने, संध्या के अंदर शरीर के अंदरुनी हिस्सो में खून का प्रवाह ही रोक दीया था मानो। संध्या अपनी आँखे फाड़े उस आदमी को ही देख रही थी..

दीनू --"वो...वो मालिक, आप खुद ही देख लें। ब...बाहर ही है।

दीनू का इतना कहना था की, रमन, ललिता, मालती सब लोग भागते हुए हवेली के बाहर की तरफ बढ़े। अगर कोई वही खड़ा था तो वो थी संध्या। अपनी हथेली को महलते हुए, ना जाने चेहरे पर कीस प्रकार के भाव अर्जीत कीये थी, शारिरीक रवैया भी अजीबो-गरीब थी उसकी। कीसी पागल की भाती शारीरीक प्रक्रीया कर रही थी। शायद वो उस बात से डर रही थी, जो इस समय उसके दीमाग में चल रहा था।

शायद संध्या को उस बात की मंजूरी भी मील गयी, जब उसने बाहर रोने-धोने की आवाज़ सुनी। संध्या बर्दाश्त ना कर सकी और अचेत अवस्था में फर्श पर धड़ाम से नीचे गीर पड़ती है
जब संध्या की आंख खुलती है तो, वो अपने आप को, खुद के बिस्तर पर पाती हैं। आंखों के सामने मालती, ललिता, निधी और गांव की तीन से चार औरतें खड़ी थी।

नही..... ऐसा नहीं हो सकता, वो मुझे अकेला छोड़ कर नही जा सकता। कहां है वो?? अभय... अभय...अभय

पगलो की तरह चिल्लाते हुए संध्या अपने कमरे से बाहर निकल कर जल बिन मछ्ली के जैसे तड़पने लगती है। संध्या के पीछे पीछे मालती, ललिता और निधी रोते हुए भागती है

हवेली के बाहर अभी भी गांव वालों की भीड़ लगी थी, मगर जैसे ही संध्या की चीखने और चिल्लाने की आवाजें उन सब के कानों में गूंजती है, सब उठ कर खड़े हो जाते है।

संध्या जैसे ही जोर जोर से रोते - बिलखते हवेली से बाहर निकलती है, तब तक पीछे से मालती उसे पकड़ लेती है।

संध्या --"छोड़ मुझे....!! मैं कहती हूं छोड़ दे मालती, देख वो जा रहा है, मुझे उसे एक बार रोकने दे। नही तो वो चला जायेगा।

संध्या की मानसिक स्थिति हिल चुकी थी, और इसका अंदाजा उसके रवैए से ही लग रहा था, वो मालती से खुद को छुड़ाने का प्रयास करने लगी की तभी....

मालती – दीदी वो जा चुका हैं... अब नही आयेगा, इस हवेली से ही नही, बल्कि इस संसार से भी दूर चला गया है।"

मालती के शब्द संध्या के हलक से निकल रही चिंखो को घुटन में कैद कर देती है। संध्या के हलक से शब्द तो क्या थूंक भी अंदर नही गटक पा रही थी। संध्या किसी मूर्ति की तरह स्तब्ध बेजान एक निर्जीव वस्तु की तरह खड़ी, नीचे ज़मीन पर बैठी रो रही मालती को एक टक देखते रही। और उसके मुंह से शब्द निकले...

संध्या – वो मुझे अकेला छोड़ के नही जा सकता
वो मुझे अकेला छोड़ के नही जा सकता

यह बात बोलते बोलते संध्या हवेली के अंदर की तरफ कदम बढ़ा दी।

गांव के सभी लोग संध्या की हालत पर तरस खाने के अलावा और कुछ नही कर पा रहें थे।।

तुझको का लगता है हरिया? का सच मे ऊ लाश छोटे ठाकुर की थी??"
हवेली से लौट रहे गांव के दो लोग रास्ते पर चलते हुए एक दूसरे से बात कर रहे थे। उस आदमी की बात सुनकर हरिया बोला

ह्वरिया --" वैसे उस लड़के का चेहरा पूरी तरह से ख़राब हो गया था, कुछ कह पाना मुुश्किल है। लेकिन हवेली से छोटे ठाकुर का इस तरह से गायब हो जाना, इसी बात का संकेत हो सकता है कि जरूर ये लाश छोटे ठाकुर की है।"

हरिया की बात सुनकर साथ में चल रहा वो शख्स बोल पड़ा..

मगरू --"ठीक कह रहा है तू हरिया, मैं भी एक बार किसी काम से हवेली गया था तो देखा कि ठकुराइन छोटे मालिक को डंडे से पीट रही थीं, और वो ठाकुर रमन का बच्चा अमनवा वहीं खड़े हंस रहा था। सच बताऊं तो इस तरह से ठकुराइन पिटाई कर रहीं थी की मेरा दिल भर आया, मैं तो हैरान था की आखिर एक मां अपने बेटे को ऐसे कैसे जानवरों की तरह पीट सकती है??"

हरिया --" चलो अच्छा ही हुआ, अब तो सारी संपत्ति का एक अकेला मालिक वो अमनवा ही बन गया। वैसे था बहुत ही प्यारा लड़का, ठाकुर हो कर भी गांव के सब लोगों को इज्जत देता था।

दोनो लोग बाते करते करते अपने घर की तरफ चल रहे थे तभी किसी औरत को आवाज आई

औरत –(पैदल जाते उन दोनो आदमियों से) मगरू भईया इतनी धूप में कहा से आ रहे हो

मगरू –(औरत को देखते हुए) गीता देवी (सामने जाके पैर छूता है) दीदी हवेली से आ रहे है हम दोनो

गीता देवी –हवेली से क्या हुआ भईया कुछ पता चला अभय बाबू का

तभी पीछे से एक आदमी आया

आदमी –(दोनो आदमी को देखते हुए) अरे हरिया , मगरू तुम दोनो तो हवेली गए थे भागते हुए क्या बात होगाई रे

मगरू –अब क्या बताए सत्या बाबू बात ही एसी है

सत्या बाबू –हुआ का है बता तो

मगरू –जंगल में लाश मिली है एक बच्चे की उसके कपड़े देख के समझ आया अभय बाबू की लाश है

गीता देवी और सत्या –(मगरू की बात सुन उनकी आंखे बड़ी हो गई)

मगरू –(आगे बोला) लाश लेके हवेली पहुंचे तब वहा पे लाश वाली बात सुन के सब का रोना निकल गया और संध्या देवी जैसे पत्थर सी जम गई थी

गीता देवी –(आसू पोछते हुए) क्या सच में वो अभय बाबू थे

मगरू – हा दीदी लाश ने अभय बाबू जैसे कपड़े पहने हुए थे अच्छा दीदी चलता हूं अब

इतना बोल के मगरू चला गया

सत्या –(औरत की आंख में आसू देख के) संभाल अपने आप को गीता जाने वाला तो चला गया
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जारी रहेगी ✍️
Superb update
 

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UPDATE 3


अगले दिन गांव की पंचायत में

ये क्या बात हुई मुखिया जी, किं ठाकुराइन ने हमे हमारा खेत देने से इंकार कर रही है। हम खाएंगे क्या? एक हमारा खेत ही तो था। जिसके सहारे हम सब गांव वाले अपना पेट पालते है। अब अगर ठाकुराइन ने वो भी ले लिया तो , हम क्या करेंगे ?"

गांव में बैठी पंचायत के बीच एक 45 साल का आदमी खड़ा होकर बोल रहा था। पंचायत में भीड़ काफी ज्यादा थी। सब लोग की नज़रे मुखिया जी पर ही अटकी था।

मुनीम – ये मुखिया क्या बोलेगा? मुखिया थोड़ी ना तुम लोग को कर्ज दिया है, चना खिला के!! अरे कर्ज तो तुम लोग ने ठकुराइन से लिया था। तो फैसला भी ठकुराइन ही करेंगी ना। चना खिला के और ठाकुराइन ने फैसला कर लिया है। की अब वो जमीन उनकी हुई, जिनपर वो एक कॉलेज बनवाना चाहती है....समझे तुम लोग....चना खिला के

पर मुनीम जी, ठाकुराइन ने तो हम सब गांव वालों से ऐसा कुछ नही कहा था"

आदमी – तुम लोगो को ये सब बात बताना जरूरी नहीं, समझती ठकुराइन

इस अनजान आवाज़ ने गांव वालों का ध्यान केंद्रित किया, और जैसे ही अपनी अपनी नज़रे घुमा कर देखें, तो पाया की ठाकुर रमन सिंह खड़ा था। ठाकुर को देखते ही सब गांव वाले अपने अपने हाथ जोड़ते हुए गिड़ गिड़ाने लगे..


पर मालिक हम तो, भूखे मार जायेंगे। हमारे बच्चे का क्या होगा? क्या खिलाएंगे हम उन्हे? जरा सोचिए मालिक।??"

तू चिंता मत कर सत्या,, हम किसी के साथ अन्याय नहीं होने देंगे। हमने तुम सब के बारे में पहले से ही सोच रखा था।"

ठाकुर के मु से ये शब्द सुनकर, गांव वालों के चहरे पर एक आशा की किरण उभरने लगीं थी की तभी

रमन – आज से तुम सब लोग, हमारे खेतो, बाग बगीचे और स्कूलों काम करोगे। मैं तुमसे वादा करता हूं,की दो वक्त की रोटी हर दिन तुम सब के थाली में पड़ोसी हुई मिलेगी।"

गांव वालो ये सुन कर सन्न्न रह गए, उन्हे लगा था की , ठाकुर रमन सिंह उन्हे इनकी जमीन लौटने आया है, मगर ये तो कुछ और ही था। ठाकुर की बात सुनकर वहा गुस्से में लोग तिलमिला पड़े l और अपने सर बंधी पगड़ी को अपने गांठने खोलकर एक झटके में नीचे फेंकते हुए बोला...

सत्या --"शाबाश! ठाकुर, दो वक्त के रोटी बदले हमसे गुलामिं करवान चाहते हो, मगर याद रखना ठाकुर, सत्या ना आज तक कभी किसी की गुलामी की हैं.... ना आगे करेगा।"

सत्या की बात सुनकर, ठाकुर रमन सिंह हंसते हुए बोला.

रमन – भाई, मैं तो बस गांव की भलाई के बारे में सोच रहा था, भला हम क्यों गुलाम पालने लगे? जैसी तुम लोगी की मर्जी, अगर तुम लोग को अपनी जमीन चाहिए, तो लाओ ब्याज सहित पैसा, और छुड़वा लो अपनी जमीन लेकिन सिर्फ तीन महीने, सिर्फ तीन महीने के समय देता हूं...उसके बाद जमीन हमारी। चलता हूं मुखिया जी...राम राम"

ये बोलकर ठाकुर रमन, अपनी गाड़ी में बैठकर वहां से चला जाता हैं....

गांव वाले अभि भी अपना हाथ जोड़े खड़े थे, फर्क सिर्फ इतना था की, अब उन सब की आंखे भी बेबसी और लाचारी के वजह से नम थी.....

गांव के लोग काफ़ी दुखी थे, उन्हे ये अंदाजा भी ना था की ठाकुराइन ऐसा भी कर सकती है!!

इधर हवेली में , संध्या अपने कमरे में गुम सूम सी बैठी थीं, शरीर में जान तो थी, पर देख कर ऐसा लग रहा था मानो कोई निर्जीव सी वस्तु है, आपने बेटे के गम में सदमा खाई हुई संध्या, बेड पर बैठी हुई अपने हाथों में अपने बेटे की तस्वीर लिए उसे एकटक निहार जा रही थी।

संध्या की आंखों से लगातार आंसू छलकते जा रहे थे, वो इस तरह से अपने बेटे की तस्वीर देख रही थीं मानो उसका बेटा उसके सामने ही बैठा हो। संध्या अभय की तस्वीर देखते - देखते अचानक संध्या को कुछ दिन पहले की वो रात याद आ गई जब उसका बेटा अभय बोल रहा था

अभय – मां आज मेरे साथ सोजा तू

संध्या – देख अभय आज मुझे काफी कम है बही खाता जांचना है खेतो का और अब तू बड़ा हो रहा है अकेले सोया कर

अभय – कल कर लेना तू मां आज मेरे साथ सोजा मन है तेरे साथ सोने का

संध्या – जिद मत कर अभय और कोन सा तू मेरी बात मानता है जब देखो बस शैतानी करता रहता है क्या लगती हो मैं तेरी

अभय –(मुस्कुरा के बोलता है)

कौन मेरा
मेरा क्या तू लागे
क्यों तू बंधे मन से
मन के धागे
बस चले ना क्यों मेरा तेरे आगे
कौन मेरा
मेरा क्या तू लागे


अभय संध्या के गले लग के
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छोर कर ना तू कभी दूर अब जाना तुझको कसम है
साथ रहना जो भी है तू झूठ या सच है
या भरम है
अपना बनाने का जतन
कर ही चुके अब तो
बहियां पकड़ कर आज चल मैं दू बता सबको
कौन मेरा
मेरा क्या तू लागे
क्यों तू बंधे मन से मन के धागे

उस लम्हे को याद करके संध्या अभय की तस्वीर को अपने सीने से लगाकर जोर जोर से रोने लगती है। संध्या की रोने की आवाज उसके कमरे से बाहर तक जा रही थी।

जिसे सुनकर मालती, ललिता भागते हुए उसके कमरे में आ गईं। और बेड पर बैठते हुऐ, संध्या को सम्हालने लगती हैं।

हालत तो मालती और ललिता की भी ठीक नहीं थी, अभय के जाने के बाद सब को ये हवेली सुनी सुनी सी लग रही थी,

मालती ने संध्या के आंसुओ को पोछते हुऐ, समझते हुए बोली.

मालती --"मैं आपकी हालत समझ सकती हूं दीदी, मगर अब जो चला गया वो भला लौट कर कैसे आएगा? ज़िद छोड़ दो दीदी, और चलो कुछ खा लो।

मालती की बात का संध्या पर कुछ असर न हुआ, वो तो बस अभय का तस्वीर सीने से लगाए बस रोए जा रही थीं। मालती से भी बर्दाश्त नहीं हुआ और उसकी आंखो से भी पानी छलक पड़ते हैं। लेकिन फिर भी मालती और ललिता ने संध्या को बहुत समझने की कोशिश की, पर संध्या तो सिर्फ़ सुन रही थीं, और जवाब में उसके पास सिर्फ़ आंसू थे और कुछ नहीं।।

तभी एक हांथ संध्या के कंधे पर पड़ा और साथ ही साथ एक आवाज भी....

अमन – चुप हो जाओ बड़ी मां, तुम ऐसे मत रोया करो, मुझे अच्छा नहीं लगता, क्या मैं तुम्हारा बेटा नहीं हूं, क्या तुम मुझसे प्यार नहीं करती??"

आवाज कानों में जाते ही, संध्या अपने भीगी पलकें उठाती हैं, तो पाई सामने अमन खड़ा था जो इस वक्त उसके कंधो पर हांथ रखे उसे दिलासा दे रहा था। अमन को देखते ही संध्या, जोर जोर से रोते हुऐ उसे अपनी बाहों में भर लेती हैं....

संध्या --"अब तो बस तू ही सहारा हैं, वो तो मुझसे नाराज़ हो कर ना जाने कहां चला गया हैं!!?"

अमन --"तो फ़िर चुप हो जाओ, और चलो खान खा लो, नहीं तो मैं भी नहीं खाऊंगा, तुम्हे पता हैं मैं भी कल से भूंखा हूं।"

अमन की बात सुनकर , संध्या एक बार फिर अमन को अपने सीने से लगा लेती हैं। उसके बाद ललिता दो थाली मे खाना लेकर आती हैं, संध्या से एक भी निवाला अंदर नहीं जा रहा था , पर अमन का चेहरा देखते हुऐ वो खाना खाने लगती हैं....
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