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Shandaar updateUPDATE 43
दोपहर का वक्त था इस वक्त अभय और शालिनी दोनो अभय के हॉस्टल में आ गए थे अभय अपने कमरे का दरवाजा खोलने जा रहा था कि किसी ने दरवाजा पहले खोल दिया जिसे देख....
अभय –(चौक के) तुम यहां पर कैसे....
सायरा –(मुस्कुरा के) ठकुराइन ने भेजा मुझे....
अभय –लेकिन मैने तो तुम्हे....
सायरा –(बीच में) हा मैने बताया ठकुराइन को वे बोली आज शालिनी जी आई है इसीलिए मुझे यहां वापस भेज दिया हवेली में चांदनी है उनके साथ....
शालिनी –(मुस्कुरा के) कैसी हो सायरा काम कैसा चल रहा है यहां तुम्हारा....
सायरा – मै अच्छी हूँ मैडम बाकी यहां का काम अभी काफी उलझा हुआ है....
शालिनी – हूंमम....
अभय –(दोनो की बात सुन के) मां ये कौन से काम के बारे में बात कर रहे हो आप मैने सायरा से भी पूछा था लेकिन इसने भी नहीं बताया मुझे आखिर बात है क्या मां....
शालिनी – (मुस्कुरा के) इस बारे में तुझे ज्यादा सोचने की जरूरत नहीं है समझा तू सिर्फ पढ़ाई पर ध्यान दे सही वक्त आने पर सब पता चल जाएगा तुझे....
अभय –ठीक है मां, अच्छा अब आप नहा लो फिर साथ में खाना खाते है....
शालीन –(कमरे को देख) तू यहां रहता है इस कमरे में....
सायरा –(अभय के बोलने पहली ही) जी मैडम ये तो शुक्र है कि AC लग गया यहां पर वर्ना ये तो सिर्फ पंखे चला के सोता था इतनी गर्मी में....
शालिनी –(सायरा की बात सुन अभय से) मुझे क्यों नहीं बताया तूने इस बारे में....
अभय –मा आप भी ना जरा जरा सी बात के लिए सोचने लगते हो आप मुझे कोई दिक्कत नहीं हो रही थी यहां रहने में....
शालिनी –(मुस्कुरा के) बात बनाने में आगे है बस , चल ठीक है तयार होके आती हु....
बोल के शालीन चली गई बाथरूम पीछे से....
अभय –(सायरा से) क्या जरूरत थी मां से ये सब बोलने की तेरे चक्कर में मेरी क्लास ना लग जाए कही....
अभय की बात सुन सायरा हसने लगी....
सायरा –(हस्ते हुए) ठीक है , तुम भी जाके नहा लो मैं खाना गरम करके लगाती हूं....
बोल के सायरा चली गई थोड़ी देर बाद तीनों ने मिल के खाना खाया जिसके बाद सायरा बर्तन साफ करके हवेली चली गई....
अभय – मां आप थक गए होगे आप बेड पे आराम करो मै....
शालिनी – तेरे से मिल के मेरी थकान पहले चली गई आराम को छोड़ मेरे साथ बैठ पहले....
बोलते ही अभय बैठ गया शालिनी के साथ....
शालिनी –अब बता जरा संध्या को किस वजह से किडनैप किया गया था....
अभय – पता नहीं मां मै जब खंडर में गया (जो हुआ सब बता के) उसके बाद अस्पताल ले आया और फिर कल (संध्या के कमरे में मोबाइल की बात बता के) मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा है मां आखिर कौन कर रहा है ये सब....
शालिनी –(बात सुन के)एक बात मुझे भी समझ नहीं आई खंडर में ऐसा क्या है जो....
शालिनी ने इतना बोला ही था अभय ने तुरंत हाथ आगे बढ़ा के सिक्के दिखाते हुए....
शालिनी –(सोने के सिक्कों को देख) ये क्या है अभय कहा से मिले तुझे....
अभय –(संध्या के बेहोश होने से पहले की बात बता के) उसके बाद मैं दरवाजे के पास गया काफी ढूंढने पर आपको पता है मुझे क्या पता चला....
शालिनी – क्या पता चला....
अभय –(अपने गले का लॉकेट दिखा के) ये चाबी है उस दरवाजे की जिसके जरिए दरवाजा खोला मैने ओर अन्दर सोना ही सोना भरा हुआ था जाने कितने तरह के सोना था वहां पर मा लेकिन....
शालिनी – लेकिन क्या अभय....
अभय – मां मुझे ये समझ नहीं आ रहा है कि जब इतना खजाना होने के बाद भी मेरे दादा ने क्यों किसी को नहीं बताया उसके बारे में....
शालिनी –(बीच में टोक के) एक मिनिट तूने बताया था कि ये लॉकेट तुझे तेरी मां ने दिया था....
अभय – हा मा बस यही तो बात समझ नहीं आई मुझे सिर्फ उसे ही क्यों पता था और किसी को क्यों नहीं....
शालिनी –(अभय के सर में हाथ फेर के) बेटा ये दौलत है ही एसी चीज अपनो को अपनो के पास ले आती है या दूर कर देती है दुश्मन को दोस्त भी यही बनाती है और दोस्त को दुश्मन भी , तू ये बता तूने किस किस को बताया है इसके बारे में....
अभय – किसी को नहीं बताया मां अपने दोस्तों तक को नहीं बताया मैने....
शालिनी –अब मेरी बात सुन ध्यान से ऐसी बहुत सी बातें है जो तुझे अभी पता नहीं है इसीलिए सबके साथ जैसा है वैसा ही रह और रही इस खजाने की बात तो तू ये जान ले कि ये तेरा ही है सिर्फ....
अभय –(चौक के) क्या लेकिन मां ये....
शालिनी –(बीच में टोक अभय के गाल पे हाथ रख के) मैने कहा ना वक्त आने पर तुझे सब पता चल जाएगा....
अभय –(मुस्कुरा के) ठीक है मां जैसा आप बोलो....
शालिनी – अच्छा अब ये बता कहा है वो मुनीम और शंकर....
अभय –(एक कमरे में इशारा करके) वहा पर है दोनो....
शालिनी –चल मिल के आते है दोनो से....
कमरे में आते ही शंकर जमीन में गद्दा बिछा के आराम कर रहा था वहीं मुनीम बेड में बंधा हुआ था उसके मू में पट्टी बांधी हुई थी गु गु कर रहा था....
अभय –(ये नजारा देख शंकर को उठा के) ये क्या है इसके मू में पट्टी क्यों बंधी....
शंकर – मालिक ये मुनीम बोल बोल के सिर खाएं जा रहा था मेरा....
अभय –क्या बोल के सिर खा रहा था ये....
शंकर – यहां से भागने के लिए....
शंकर की बात सुन अभय चलता हुआ गया मुनीम के पास मू से पट्टी हटा के हाथ पैर खोल के....
अभय – (शालिनी की तरफ इशारा करके) जनता है कौन है ये पुलिस DIG ऑफिसर और मेरी मां....
अभय की बात सुन शंकर डर से तुरंत खड़ा हो गया और मुनीम की आंखे डर और हैरानी से बड़ी हो गई शालिनी को देख के....
मुनीम –(डर से शालिनी के पैर पकड़ के) मुझे माफ कर दीजिए मैडम मै....
इससे पहले मुनीम कुछ बोलता तभी कमरे में एक चाटे की आवाज गूंज उठी.....
चटाआक्ककककककककककक...
मुनीम के गाल में पड़ा था चाटा....
शालिनी –(अभय से) तुम दोनो थोड़ी देर के लिए बाहर जाओ और दरवाजा बंद कर देना....
आज पहली बार अभय ने शालिनी की आखों में बेइंतहा गुस्सा देखा जिसे देख अभय बिना कुछ बोले शंकर को साथ लेके कमरे से बाहर निकल गया और दरवाजा बंद कर दिया करीबन 15 से 20 मिनट के बाद शालिनी दरवाजा खोल बाहर आई सामने अभय को खड़ा पाया....
अभय – (शालिनी के बाहर आते ही) क्या हुआ मां....
शालिनी –(मुस्कुरा के) कुछ भी नहीं, (शंकर से) जा के मुनीम को बांध दो और तुम आराम करो , (अभय से) अच्छा ये बता शाम को क्या करता है तू....
अभय –घूमता हू अपने दोस्तो के साथ....
शालिनी – अच्छी बात है चल मुझे हवेली ले चल....
अभय –(हवेली जाने का सुन के) मा आप सुबह से आए हुए हो आराम तक नहीं किया और अब हवेली जाने की बात पहले आराम कर लो मां फिर जहा बोलो वहा ले चलूंगा आपको....
शालिनी –(मुस्कुरा के) आराम तो करना है बेटा लेकिन वक्त देख क्या हो रहा है शाम होने को आई है अब रात में आराम होगा सीधा अब ये बता तू चलेगा हवेली या मुझे हवेली छोड़ के घूमने जाएगा दोस्तो के साथ....
अभय – मां आप बोलो तो आपके साथ रहूंगा....
शालिनी – कोई न तू मुझे हवेली छोड़ के दोस्तो के साथ घूम ले मै कॉल कर दूंगी तुझे लेने आ जाना....
अभय – ठीक है मां....
बोल के अभय बाइक से निकल गया शालिनी को लेके , हवेली आके शालिनी गेट में उतर के....
शालिनी – मै कॉल करती हु तुझे ठीक है....
अभय – मै इंतजार करूंगा मां....
बोल के अभय निकल गया बाइक से इधर जैसे ही शालिनी हवेली के अन्दर आई सामने हॉल में ललिता , मालती , शनाया , चांदनी और संध्या बैठ बाते कर रहे थे...
शालिनी को देख चांदनी मां बोलने जा रही थी कि तभी....
संध्या – शालिनी जी....
शालिनी का नाम सुन बाकी सबका ध्यान हवेली के गेट की तरफ गया अन्दर आते ही शालिनी ने सबको प्रणाम कर संध्या के बगल आके बैठ गई....
संध्या – आप अकेली आए हो कोई साथ में....
शालिनी – (संध्या के हाथ में अपना हाथ रख के) वो मुझे छोड़ के गया हवेली के बाहर तक लेने आएगा....
संध्या –(हा में सिर हिला के) इनसे मिलिए ये ललिता है रमन की वाइफ और ये मालती है मेरे छोटे देवर प्रेम की वाइफ और इनको आप जानती है ये शनाया है मेरी बहन....
शालिनी – इन्हें कैसे भूल सकती हु मै यही तो पढ़ाती थी मेरे बेटे को स्कूल में....
शालिनी की (मेरे बेटे) बात सुन संध्या जो मुस्कुरा रही थी वो हल्की हो गई जिसे शालिनी ने देख लिया....
शनाया –(शालिनी से) आप क्या लेगी चाय या ठंडा....
शालिनी – (सबको देख जो चाय पी रहे थे) सभी के साथ चाय....
बोल के शनाया चाय लेने चली गई....
शालिनी – (ललिता और मालती से) कैसी है आप दोनों....
ललिता और मालती एक साथ – जी अच्छे है....
शालिनी –(मालती की गोद में बच्चे को देख) आपका बच्चा बहुत सुंदर है कितने साल का हो गया है....
मालती –जी ये लड़की है अभी 3 साल की है....
शालिनी –(मालती से बच्ची को अपनी गोद में लेके) बहुत प्यारी है किसपर गई है ये....
मालती –(हसी रोक के) जी वैसे ये मेरी नहीं है हमारे गांव में पहले थानेदार था ये उसकी बेटी है....
शालिनी –(बात याद आते ही) ओह माफ करिएगा मुझे मै तो भूल ही गई थी....
मालती –(हल्का मुस्कुरा के) जी कोई बात नहीं वैसे भी अब ये मेरी बेटी है और मैं इसकी मां....
शालिनी –(मालती की बात सुन मुस्कुरा के) ये बहुत ही अच्छी बात है मालती तुमसे अच्छी मां इसे नहीं मिल सकती बल्कि मैं कहती हु कि तुम इसकी कस्टडी भी लेलो मै तुम्हारी मदद कर दूंगी इसमें बस 2 से 3 पेपर वर्क में इसकी कस्टडी परमानेंट तुम्हे मिल जाएगी....
संध्या –(शालिनी की बात सुन) आपने बिल्कुल सही कहा शालिनी जी हम तो भूल ही गए थे इस कम को करना....
शालिनी – ये कम मै तुरंत कर दूंगी लेकिन प्लीज पहले तो आप मुझे सिर्फ मेरा नाम लेके बात करो और जी मत लगाना आप....
संध्या – लेकिन आप भी मेरा नाम लेके बात करिएगा प्लीज....
दोनो की बात सुन के सभी मुस्कुराने लगे तब शनाया आई और चाय दी शालिनी को चाय पीते वक्त सबकी नजर बचा के शालिनी ने संध्या को कुछ इशारा किया जिसे समझ के....
संध्या – शालिनी आइए मै आपको अपना कमरा दिखाती हु....
बोल के अपने नौकर को आवाज दी चांदनी और नौकर की मदद से संध्या को अपने कमरे में ले जाया गया जिसके बाद संध्या को आराम करने का बोल के शनाया , ललिता और मालती कमरे से चले गए रह गए सिर्फ शालिनी और चांदनी कमरे में....
संध्या –(शालिनी से) क्या बात है शालिनी आपने इशारे से अकेले में बात करने को क्यों बोला मुझे....
शालिनी –एक बात बताए उस खंडर में जो कुछ भी है उसके बारे में सिर्फ आपको कैसे पता है....
संध्या –(चौक के) आ....आ...आप को कैसे....
शालिनी –(संध्या के हाथ में अपना हाथ रख के) तुम्हारी तरह मै भी मां हू अभय की वो मुझसे कभी कुछ नहीं छुपाता है....
संध्या –(शालिनी की बात सुन गहरी सास लेके) क्या आप कमल ठाकुर को जानती है....
शालिनी –हा अच्छी तरह से....
संध्या – कमल ठाकुर का इकलौते बेटे अर्जुन ठाकुर को भी....
शालिनी – हा उसे भी जानती हू बहुत अच्छे से कई बार मिल चुकी हूँ मै....
संध्या –(मुस्कुरा के) जब मेरा अभय छोटा था उस वक्त 2 साल का तब अर्जुन ठाकुर करीबन 10 साल का था कई बार अर्जुन अपने पिता कमल ठाकुर के साथ यहां आता तो सिर्फ अभय को अपनी गोद में लेके उसके साथ खेलता था जबकि कमल ठाकुर सीधे जाते बड़े ठाकुर के पास मिलने या इनसे (मनन ठाकुर) मिलते थे और साथ ही काफी वक्त से बड़े ठाकुर और कमल ठाकुर मिल कर साथ में व्यापार करने के लिए गांव से बाहर जाया करते थे एक बार बड़े ठाकुर और कमल ठाकुर मिल के विदेश यात्रा पर गए थे अपने साथ में एक जहाज लेके आ रहे थे ताकि विदेश से व्यापार न करके यही समुंदर के रस्ते व्यापार कर सके अपनी जमीन पर तभी समुंदर में तूफान आना शुरू हो रहा था रस्ते में एक टापू पर रुकने का फैसला किया उन्होंने जब तक तूफान न थम जाए उसी वक्त बड़े ठाकुर और कमल ठाकुर उस टापू पर घूम रहे थे और वही पर उन्हें वो खजाना मिला दोनो ने मिल के इसे जहाज में रखवा के समुंदर के रस्ते यहां ले आए लेकिन इतना बड़े खजाने को छिपा के रखने समस्या आ रही थी तब कमल ठाकुर ने इसमें मदद की बड़े ठाकुर की पुरानी वाली हवेली को खंडर के रूप में प्रस्तुत करने का सुझाव दिया कमल ठाकुर ने और बड़े ठाकुर को ये योजना अच्छी लगी और फिर उन्होंने मिल के खंडर में खजाने को छुपा दिया साथ ही कमल ठाकुर ने विदेश जाके खुद एक ताला बनवाया दरवाजे के साथ और यहां लेके उसे बंद कर दिया उसके बाद से खंडर वाली जगह को बड़े ठाकुर ने श्रापित घोषित कर दिया....
शालिनी – अगर बड़े ठाकुर और कमल ठाकुर ने साथ मिल के ये काम किया तो सारा का सारा खजाना सिर्फ बड़े ठाकुर को क्यों दिया कमल ठाकुर ने....
संध्या – एसा नहीं है शालिनी विदेश से आते वक्त रस्ते में ही बड़े ठाकुर और कमल ठाकुर ने मिल के बाट लिया था सब कुछ....
शालिनी – तो फिर बड़े ठाकुर ने खंडर में ही क्यों रखा यहां पर भी रख सकते थे ना....
संध्या – पता नहीं शालिनी वैसे तो मरने से पहले बड़े ठाकुर ने खजाने की चाबी मुझे दी थी लेकिन उससे पहले खजाने के बारे में बड़े ठाकुर ने इनको (मनन ठाकुर) को बताया था और साथ में लेके गए थे वहां पर इनको (मनन ठाकुर) और फिर उसके कुछ साल 2 साल के बाद बड़े ठाकुर बीमार रहने लगे धीरे धीरे ये बीमारी (मनन ठाकुर) इनको भी लग गई पहले बड़े ठाकुर चले गए उसके बाद से जाने कैसे मेरी सास सुनैना ठाकुर अचानक से गायब हो गई....
शालिनी –(बीच में टोकते हुए) एक मिनिट संध्या सुनैना ठाकुर का गायब होना ये कैसे हुआ....
संध्या – विदेश से आने के बाद बड़े ठाकुर ने मेरी सास सुनैना ठाकुर को सब बता दिया था कुछ महीने के बाद मुझे सुनने में आया कि कोई खंडर वाली जमीन लेने के लिए काफी पीछे पड़ा हुआ है बड़े ठाकुर के लेकिन बड़े ठाकुर और कमल ठाकुर साफ मना कर चुके थे उस आदमी को लेकिन तभी कुछ समय के बाद मेरी सास सुनैना ठाकुर ने एक दिन बड़े ठाकुर से खंडर के बारे में बात छेड़ी जिसके बाद बड़े ठाकुर बहुत नाराज हुए थे मेरी सास से और एक दिन रात को मैने देखा मेरी सास किसी से फोन पर बाते कर रही थी छुप छुप के काफी देर तक हस हस के लेकिन मैं जान नहीं पाई कि किस्से बात करती थी मेरी सास , बड़े ठाकुर और सुनैना ठाकुर में एक दिन काफी कहा सुनी हो गई उस वक्त गुस्से में बड़े ठाकुर हवेली से बाहर निकल गए और कुछ देर बाद मेरी सास भी निकल गई बाहर हवेली से जब तक मुझे पता चलता वो हवेली से जा चुकी थी उस दिन (मनन ठाकुर) ये शहर गए हुए थे काम से तब मैने मुनीम से पता लगाने को बोला मेरी सास का काफी देर इंतजार करते करते आखिर कार रात में मेरी सास आई हवेली में कोई अपनी कार से छोड़ने आया था बाहर से ही चला गया था वो मेरी सास अपने कमर में जा रही थी मैं अपने कमरे के दरवाजे से छुप के अपनी सास को जाते हुए देख रही थी बिखरे बाल हाथ की चुड़ी टूटी हुई गले में कई लाल दाग उनको देख के एसा लग रहा था जैसे कि....
शालिनी –(संध्या के कंधे में हाथ रख के) समझ गई मैं संध्या , फिर आगे क्या हुआ....
संध्या – होना क्या था दिन से निकले बड़े ठाकुर अगले दिन हवेली वापस आय आते ही अपने कमरे में गए कुछ देर बाद सुनैना ठाकुर के रोने की आवाज आने लगी और बड़े ठाकुर गुस्से में हवेली से बाहर चले गए रोने की आवाज सुन मै कमरे में गई देखा वहां पर मोबाइल जमीन में टूटा पड़ा है सुनैना ठाकुर एक कोने में बैठ के रो रही थी मैने उनसे काफी पूछा लेकिन कुछ नहीं बताया उन्होंने मुझे उस दिन के बाद जैसे बड़े ठाकुर ने सुनैना ठाकुर से बात करना बंद कर दिया था यहां तक सोते भी अलग थे एक दिन मैने अपनी आखों से देखा बड़े ठाकुर सोफे में सो रहे थे और सुनैना ठाकुर बेड में ये नजारा मैने कई बार देखा एक दिन हिम्मत करके मैने अकेले में बड़े ठाकुर से इस बारे में बात की लेकिन उन्होंने मुस्कुरा के मेरे सिर में हाथ फेरा और बोला....
रतन ठाकुर – संध्या बेटा बड़े अरमानों के साथ तुझे इस हवेली में लाया हु मै अपनी बहू बना के नहीं बल्कि बेटी बना के लाया हूँ तुझे तेरी सेवा मैने देखी है दिल से करती है सेवा सबकी बस एक वादा कर बेटा मुझसे अगर कल को मुझे कुछ हो गया तो तू पूरे परिवार को समेट के रखेंगी....
संध्या –एसी बाते मत बोलिए बाबू जी....
रतन ठाकुर –(हस के) अरे पगली एक न एक दिन तो सबको जाना है अब तू ज्यादा मत सोच बस वादा कर मुझसे....
संध्या – मैं वादा करती हू आपसे बाबू जी....
उसके कुछ समय के बाद से ही तबियत खराब होना शुरू हो गई पहले बाबू जी चले गए कुछ वक्त के बाद ये (मनन ठाकुर) भी चले गए और तब से मैं देख रही हू पूरे परिवार की बाग डोर....
शालिनी – और कमल ठाकुर का क्या हुआ....
संध्या – वो भी बीमारी के कारण दुनिया से विदा हो गए....
शालिनी – और उनका बेटा अर्जुन ठाकुर....
संध्या – कमल ठाकुर के गुजरने के बाद वो आखिरी बार था जब मैने अर्जुन को देख था उसके बाद से कभी न देखा और न सुना मैने अर्जुन के बारे में , उस बेचारे का कमल ठाकुर और उसकी मां के इलावा कोई नहीं था दुनिया में मेरी सास सुनैना ठाकुर की तरह अर्जुन भी जाने कहा चला गया....
शालिनी –(संध्या की सारी बात सुन के) एक बात तो बताओ अभय को वो लॉकेट क्या तुमने दिया था उसे....
संध्या – हा मैने दिया था उसे....
शालिनी –(मुस्कुरा के) तो खजाने की चाबी तुमने अभय को दे दी....
संध्या –(हल्का सा हस के) मेरा असली खजाना सिर्फ वही है बस इसीलिए उसे वो चाबी दे दी मैने....
शालिनी –(अपनी बेटी चांदनी से जो काफी देर से चुप चाप बैठ के सारी बात सुन रही थी) तो चांदनी तेरी तहकीकात कहा तक पहुंची....
चांदनी – घर का भेदी लंका धाय....
शालिनी –(चांदनी की बात सुन) क्या मतलब है तेरा कहने का....
चांदनी – मां हवेली का कोई तो है जो ये सब कर रहा है या करवा रहा है इतना शातिर है वो हर बार दूसरे के कंधे पे बंदूक रख के चलाए जा रहा है जब से अभय गांव आया है कुछ न कुछ गड़बड़ होना शुरू हो रही है हवेली में फिर अभय पे जान लेवा हमला उसके बाद हमारे साथ जो हुआ एक बात तो पक्की है हवेली के लोगो की जानकारी यहां हवेली से बाहर भेजी जा रही है पल पल की....
शालिनी – हवेली में कोई ये सब कर रहा है ये कैसे बोल रही हो तुम....
चांदनी –(अस्पताल में संध्या के बेड की नीचे छुपे मोबाइल की बात बता के) मैने मोबाइल का पता करवाया लास्ट कॉल यहां हवेली से आई थी उसमें इसीलिए मैने यहां हवेली में जिसके पास जो भी जितने भी मोबाइल हो उसकी सारी डिटेल्स निकलवाने के लिए बोल दिया है उम्मीद है कल तक मिल जाएगी डिटेल मुझे....
शालिनी – वैसे तूने एक्शन क्यों नहीं लिया....
चांदनी – मां किसपे एक्शन लू मै किस बिना पे हाथ डालू और किसपे मेरी एक गलती मेरा पर्दा फाश करवा सकती है और दुश्मन को सावधान इसीलिए मैने अपने लोगो को सभी की निगरानी पर रख हुआ है वैसे मा रमन पर भी निगरानी रखी हुई थी मैने लेकिन आपके लाडले ने पहले ही आपको सब बता दिया....
शालिनी – (हस के) क्यों जलन हो रही है क्या तुझे....
चांदनी –भला मुझे क्यों जलन होने लगी मेरे भाई से....
शालिनी –(मुस्कुरा के) मजाक कर रही हूँ तेरे से....
चांदनी –(सीरियाई होके) मां जाने क्यों कभी कभी एसा लगता है जैसे अभय कुछ छुपा रहा है हमसे....
शालिनी –(मुस्कुरा के) हमसे नहीं तुझसे...
चांदनी – मुझ से क्यों....
शालिनी – गांव का सरपंच और मुनीम दोनो ही उसके पास है....
चांदनी –(चौक के) मुनीम कैसे सरपंच का पता था मुझे....
संध्या – (बीच में) उसी ने मेरे पैर का ये हाल किया है....
शालिनी – (संध्या से) तुझे पता है मुनीम के एक पैर की हड्डी तोड़ दी है अभय ने और हॉस्टल में ही उसे लगातार टाचर दिए जा रहा है....
चांदनी –(संध्या के कंधे पे हाथ रख के) देखा मौसी मैने कहा था ना आपसे....
शालिनी – चांदनी आगे का क्या करना है तुम्हे....
चांदनी – पहले अभय और अब मौसी ये दोनो ही इस वक्त खतरे के निशान में आ चुके है अलग रहेंगे तो खतरा बना रहेगा दोनो पे एक साथ रहेंगे खतरा फिर भी रहेगा लेकिन उसे हैंडल तो किया जा सकता है आसानी से तब....
शालिनी –ठीक है अब मेरी बात ध्यान से सुनो....
फिर शालिनी ने कुछ कहा जिसके बाद चांदनी ने हा में सिर हिलाया....
शालिनी – (संध्या से) तुम बिल्कुल भी मत घबराना कुछ नहीं होगा किसी को तेरा अभय तुझे जरूर मिलेगा ये सिर्फ मेरा नहीं बल्कि एक मा का दूसरी मां से वादा है ये....
काफी देर तक एक दूसरे से बात कर रहे थे उसके बाद संध्या से विदा लेके शालिनी कमरे से जाने लगी संध्या के कमरे से बाहर निकल हॉल में आके सबसे विदा ले रही थी कि तभी उनका मोबाइल बजा जिसपे बात करके....
शालिनी –(ललिता शनाया और मालती से) अच्छा अब मुझे इजाजत दीजिए चलती हूँ मै....
ललिता – यही रुक जाते आप....
शालिनी – प्लान तो रुकने का ही था मेरा गांव में कुछ दिन के लिए लेकिन एक इमरजेंसी आ गई है मुझे कल सुबह ही निकलना होगा शहर की तरफ अपने लोगो के साथ....
मालती – रात का खाना हमारे साथ खाइए....
शालिनी –नहीं मालती आज नहीं लेकिन अगली बार जरूर , अच्छा मुझे इजाजत दीजिए अब जल्द ही फिर मुलाक़ात होगी....
बोल के शालिनी हवेली के बाहर निकल गई जहां अभय गेट में खड़ा इंतजार कर रहा था शालिनी को साथ लेके हॉस्टल में आते ही दोनों ने खाना खाया और सो गए जबकि इस तरफ....
औरत –(कॉल में रंजीत सिन्हा से) एक अच्छी खबर है तुम्हारे लिए....
रंजीत सिन्हा –(खुश होके) अच्छा क्या बात है....
औरत –आज शालिनी हवेली आई थी लेकिन जाने से पहले बता के गई कि वो कल सुबह वापस जा रही है शहर....
रंजीत सिन्हा –(चौक के) क्या तुम सच बोल रही हो....
औरत – अरे हा बाबा सच बोल रही हू मै अब तू देख ले मौका और दस्तूर खुद चल के तेरे पास आया है....
रंजीत सिन्हा – (हस्ते हुए) शालिनी के जाते ही अपना अधूरा काम पूरा करूंगा मै....
औरत –लेकिन कैसे....
रंजीत सिन्हा –उसके लिए तुझे संध्या को घुमाना होगा शाम के वक्त हवेली के गेट के पास बने बगीचे में उसी वक्त अपने काम को अंजाम दूंगा मै....
औरत – (मुस्कुरा के) उसके लिए मुझे अकेले कुछ नहीं करना पड़ेगा क्योंकि शाम के वक्त लगभग सभी टहलते है वहां पर....
रंजीत सिन्हा – तो ठीक है शालिनी कल सुबह जाएगी और मैं शाम को अपने काम को अंजाम दूंगा....
बोल के कॉल काट दिया दोनो ने अगली सुबह शालिनी और अभय जल्दी से उठ गए....
शालिनी – अभय जल्दी से तैयार हो जा....
अभय – जल्दी क्यों मां कही जाना है क्या....
शालिनी – हा गीता दीदी के घर चल मिलना है उनसे....
अभय –मां दिन में चलते है अभी कॉलेज जाना है मुझे....
शालिनी – एक काम कर आज कॉलेज मत जा सीधा गीता दीदी के पास चल फिर मुझे जाना है....
अभय –(चौक के) क्या जाना है कहा लेकिन आप कल ही तो आए हो आज जाने की बात....
शालिनी – हा बेटा जरूरी काम आ गया है शहर में मुझे सोचा गीता दीदी से मिल के जाऊं....
अभय –ये गलत बात है मां मैने सोचा आपके साथ रहूंगा गांव घुमाऊंगा आपको लेकिन आप तो आज ही....
शालिनी – (मुस्कुरा के) तो कौन सा हमेशा के लिए जा रही हूँ मै मिलने आऊंगी तेरे से नहीं तो कॉल पे बात कर लिया करना मेरे से और जब मन करे तेरा आ जाना शहर मेरे पास....
इससे पहले अभय कुछ बोलता....
शालिनी –(जल्दी से बोली) अच्छा चल पहले मिलते है गीता दीदी से....
बोल के दोनो निकल गए गीता देवी की तरफ घर में आते ही दरवाजा खटखटाया तो गीता देवी ने दरवाजा खोला....
गीता देवी –(अपने घर शालिनी को देख) अरे आइए शालिनी जी क्या बात है आज सुबह सुबह....
शालिनी – हा असल में मुझे जरूरी काम से वापस शहर जाना पड़ रहा है सोचा जाने से पहले आप से मिल लूं....
गीता देवी – बहुत जल्दी जा रहे हो आप वापस कुछ दिन रुक जाते आप....
शालिनी – पुलिस की नौकरी तो आप मुझसे बेहतर जानते हो दीदी कब कहा से बुलावा आए पता नहीं पड़ता है....
गीता देवी – हा सो तो है शालिनी जी....
अभय – बड़ी मां राज कहा है....
गीता देवी – अंदर कमरे में तैयार हो रहा है कॉलेज जाने के लिए....
गीता देवी की बात सुन अभय कमरे में चल गया राज के पास....
राज – (अभय को देख) अबे तू इतनी सुबह सुबह क्या बात है....
अभय – कुछ नहीं यार वो मां आज ही वापस जा रही है तो मिलने आई है बड़ी मां से....
राज – अरे इतनी जल्दी....
अभय – हा वही तो यार मानती ही नहीं मां बात मेरी....
राज – पुलिस का काम ही ऐसा होता है यार चल ये बता कॉलेज चल रहा है साथ में या बाद में आएगा....
अभय – नहीं यार आज नहीं आऊंगा कॉलेज मां ने मना किया है....
राज – यार मन तो मेरा भी नहीं है आज जाने का....
अभय – तो चल आज तू और मैं साथ में घूमते है मै बड़ी मां से बोल देता हू....
अभय बाहर आके गीता देवी से....
अभय – बड़ी मां आज राज को कॉलेज मत भेजो आज मेरे साथ रहेगा....
शालिनी –(तुरंत बीच में) बहुत अच्छी बात है तू एक कम कर राज के साथ घूम के आजा और साथ में अच्छा सा नाश्ता लेके आ तब तक मैं ओर गीता दीदी बाते करते है आपस में....
बात सुन के अभय और राज निकल गए घर के बाहर उनके जाते ही....
गीता देवी – क्या बात है शालिनी जी आपने उन दोनों को बाहर क्यों भेज दिया नाश्ता तो मैं यही बना देती सबके लिए....
शालिनी – जानती हू दीदी लेकिन उनके सामने आपसे मै वो बात नहीं कर सकती थी इसीलिए बाहर भेज दिया दोनो को....
गीता देवी – क्या बात है शालिनी जी बताए....
उसके बाद शालिनी ने कुछ बात की गीता देवी से काफी देर तक बात चलती रही दोनो की जब तक अभय और राज वापस नहीं आ गए दोनो के आते ही सबने मिल के नाश्ता किया एक दूसरे से विदा लेके निकल गए साथ में राज भी आया हॉस्टल में आते ही शालिनी ने अपना बैग लिया हॉस्टल के बाहर निकल जहां शालिनी की कार खड़ी थी ड्राइवर के साथ कार में समान रख....
शालिनी –(अभय को गले से लगा के) दिल छोटा मत कर मै जल्दी ही आऊंगी तेरे पास तब तक अच्छे से पढ़ाई करना तू....
अभय –(मुस्कुरा के) ठीक है मां....
बोल के शालिनी कार में बैठने लगी कि तभी....
शालिनी – अरे अभय मै शायद अपना बैग तेरे कमरे में भूल गई जाके ले आ....
शालिनी की बात सुन अभय कमरे की तरफ निकल गया उसके जाते ही....
शालिनी – राज मेरी बात ध्यान से सुनो....
उसके बाद शालिनी ने राज से कुछ बात कहने लगी कुछ समय बाद अभय वापस आया बैग लेके जिसे लेके शालिनी ने अभय के सर पे हाथ फेर कार से निकल गई शहर की तरफ अभय पीछे खड़ा कार को जाते हुए देखता रहा जब तक कार उसकी आंख से ओझल नहीं हो गई....
अभय – जब अपना दूर जाता है आपसे कितनी बेचैनी होने लगती है ना राज....
राज –(अभय के कंधे पे हाथ रख देखा तो आसू थे आखों में उसकी अपने हाथ से आसू पोछ गले लगा के) जितना दूर सही लेकिन है तो तेरे दिल में ही चल मायूस मत हो जल्दी आएगी बोला है ना तेरे को चल चलते है घूमने कही....
राज की बात सुन हा में सिर हिला के बाइक से निकलने जा रहे थे कि तभी एक लड़की की प्यारी सी आवाज आई....
लड़की – HELLOOO Mr.ABHAY....
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जारी रहेगा![]()
Shandar jabardast updateUPDATE 43
दोपहर का वक्त था इस वक्त अभय और शालिनी दोनो अभय के हॉस्टल में आ गए थे अभय अपने कमरे का दरवाजा खोलने जा रहा था कि किसी ने दरवाजा पहले खोल दिया जिसे देख....
अभय –(चौक के) तुम यहां पर कैसे....
सायरा –(मुस्कुरा के) ठकुराइन ने भेजा मुझे....
अभय –लेकिन मैने तो तुम्हे....
सायरा –(बीच में) हा मैने बताया ठकुराइन को वे बोली आज शालिनी जी आई है इसीलिए मुझे यहां वापस भेज दिया हवेली में चांदनी है उनके साथ....
शालिनी –(मुस्कुरा के) कैसी हो सायरा काम कैसा चल रहा है यहां तुम्हारा....
सायरा – मै अच्छी हूँ मैडम बाकी यहां का काम अभी काफी उलझा हुआ है....
शालिनी – हूंमम....
अभय –(दोनो की बात सुन के) मां ये कौन से काम के बारे में बात कर रहे हो आप मैने सायरा से भी पूछा था लेकिन इसने भी नहीं बताया मुझे आखिर बात है क्या मां....
शालिनी – (मुस्कुरा के) इस बारे में तुझे ज्यादा सोचने की जरूरत नहीं है समझा तू सिर्फ पढ़ाई पर ध्यान दे सही वक्त आने पर सब पता चल जाएगा तुझे....
अभय –ठीक है मां, अच्छा अब आप नहा लो फिर साथ में खाना खाते है....
शालीन –(कमरे को देख) तू यहां रहता है इस कमरे में....
सायरा –(अभय के बोलने पहली ही) जी मैडम ये तो शुक्र है कि AC लग गया यहां पर वर्ना ये तो सिर्फ पंखे चला के सोता था इतनी गर्मी में....
शालिनी –(सायरा की बात सुन अभय से) मुझे क्यों नहीं बताया तूने इस बारे में....
अभय –मा आप भी ना जरा जरा सी बात के लिए सोचने लगते हो आप मुझे कोई दिक्कत नहीं हो रही थी यहां रहने में....
शालिनी –(मुस्कुरा के) बात बनाने में आगे है बस , चल ठीक है तयार होके आती हु....
बोल के शालीन चली गई बाथरूम पीछे से....
अभय –(सायरा से) क्या जरूरत थी मां से ये सब बोलने की तेरे चक्कर में मेरी क्लास ना लग जाए कही....
अभय की बात सुन सायरा हसने लगी....
सायरा –(हस्ते हुए) ठीक है , तुम भी जाके नहा लो मैं खाना गरम करके लगाती हूं....
बोल के सायरा चली गई थोड़ी देर बाद तीनों ने मिल के खाना खाया जिसके बाद सायरा बर्तन साफ करके हवेली चली गई....
अभय – मां आप थक गए होगे आप बेड पे आराम करो मै....
शालिनी – तेरे से मिल के मेरी थकान पहले चली गई आराम को छोड़ मेरे साथ बैठ पहले....
बोलते ही अभय बैठ गया शालिनी के साथ....
शालिनी –अब बता जरा संध्या को किस वजह से किडनैप किया गया था....
अभय – पता नहीं मां मै जब खंडर में गया (जो हुआ सब बता के) उसके बाद अस्पताल ले आया और फिर कल (संध्या के कमरे में मोबाइल की बात बता के) मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा है मां आखिर कौन कर रहा है ये सब....
शालिनी –(बात सुन के)एक बात मुझे भी समझ नहीं आई खंडर में ऐसा क्या है जो....
शालिनी ने इतना बोला ही था अभय ने तुरंत हाथ आगे बढ़ा के सिक्के दिखाते हुए....
शालिनी –(सोने के सिक्कों को देख) ये क्या है अभय कहा से मिले तुझे....
अभय –(संध्या के बेहोश होने से पहले की बात बता के) उसके बाद मैं दरवाजे के पास गया काफी ढूंढने पर आपको पता है मुझे क्या पता चला....
शालिनी – क्या पता चला....
अभय –(अपने गले का लॉकेट दिखा के) ये चाबी है उस दरवाजे की जिसके जरिए दरवाजा खोला मैने ओर अन्दर सोना ही सोना भरा हुआ था जाने कितने तरह के सोना था वहां पर मा लेकिन....
शालिनी – लेकिन क्या अभय....
अभय – मां मुझे ये समझ नहीं आ रहा है कि जब इतना खजाना होने के बाद भी मेरे दादा ने क्यों किसी को नहीं बताया उसके बारे में....
शालिनी –(बीच में टोक के) एक मिनिट तूने बताया था कि ये लॉकेट तुझे तेरी मां ने दिया था....
अभय – हा मा बस यही तो बात समझ नहीं आई मुझे सिर्फ उसे ही क्यों पता था और किसी को क्यों नहीं....
शालिनी –(अभय के सर में हाथ फेर के) बेटा ये दौलत है ही एसी चीज अपनो को अपनो के पास ले आती है या दूर कर देती है दुश्मन को दोस्त भी यही बनाती है और दोस्त को दुश्मन भी , तू ये बता तूने किस किस को बताया है इसके बारे में....
अभय – किसी को नहीं बताया मां अपने दोस्तों तक को नहीं बताया मैने....
शालिनी –अब मेरी बात सुन ध्यान से ऐसी बहुत सी बातें है जो तुझे अभी पता नहीं है इसीलिए सबके साथ जैसा है वैसा ही रह और रही इस खजाने की बात तो तू ये जान ले कि ये तेरा ही है सिर्फ....
अभय –(चौक के) क्या लेकिन मां ये....
शालिनी –(बीच में टोक अभय के गाल पे हाथ रख के) मैने कहा ना वक्त आने पर तुझे सब पता चल जाएगा....
अभय –(मुस्कुरा के) ठीक है मां जैसा आप बोलो....
शालिनी – अच्छा अब ये बता कहा है वो मुनीम और शंकर....
अभय –(एक कमरे में इशारा करके) वहा पर है दोनो....
शालिनी –चल मिल के आते है दोनो से....
कमरे में आते ही शंकर जमीन में गद्दा बिछा के आराम कर रहा था वहीं मुनीम बेड में बंधा हुआ था उसके मू में पट्टी बांधी हुई थी गु गु कर रहा था....
अभय –(ये नजारा देख शंकर को उठा के) ये क्या है इसके मू में पट्टी क्यों बंधी....
शंकर – मालिक ये मुनीम बोल बोल के सिर खाएं जा रहा था मेरा....
अभय –क्या बोल के सिर खा रहा था ये....
शंकर – यहां से भागने के लिए....
शंकर की बात सुन अभय चलता हुआ गया मुनीम के पास मू से पट्टी हटा के हाथ पैर खोल के....
अभय – (शालिनी की तरफ इशारा करके) जनता है कौन है ये पुलिस DIG ऑफिसर और मेरी मां....
अभय की बात सुन शंकर डर से तुरंत खड़ा हो गया और मुनीम की आंखे डर और हैरानी से बड़ी हो गई शालिनी को देख के....
मुनीम –(डर से शालिनी के पैर पकड़ के) मुझे माफ कर दीजिए मैडम मै....
इससे पहले मुनीम कुछ बोलता तभी कमरे में एक चाटे की आवाज गूंज उठी.....
चटाआक्ककककककककककक...
मुनीम के गाल में पड़ा था चाटा....
शालिनी –(अभय से) तुम दोनो थोड़ी देर के लिए बाहर जाओ और दरवाजा बंद कर देना....
आज पहली बार अभय ने शालिनी की आखों में बेइंतहा गुस्सा देखा जिसे देख अभय बिना कुछ बोले शंकर को साथ लेके कमरे से बाहर निकल गया और दरवाजा बंद कर दिया करीबन 15 से 20 मिनट के बाद शालिनी दरवाजा खोल बाहर आई सामने अभय को खड़ा पाया....
अभय – (शालिनी के बाहर आते ही) क्या हुआ मां....
शालिनी –(मुस्कुरा के) कुछ भी नहीं, (शंकर से) जा के मुनीम को बांध दो और तुम आराम करो , (अभय से) अच्छा ये बता शाम को क्या करता है तू....
अभय –घूमता हू अपने दोस्तो के साथ....
शालिनी – अच्छी बात है चल मुझे हवेली ले चल....
अभय –(हवेली जाने का सुन के) मा आप सुबह से आए हुए हो आराम तक नहीं किया और अब हवेली जाने की बात पहले आराम कर लो मां फिर जहा बोलो वहा ले चलूंगा आपको....
शालिनी –(मुस्कुरा के) आराम तो करना है बेटा लेकिन वक्त देख क्या हो रहा है शाम होने को आई है अब रात में आराम होगा सीधा अब ये बता तू चलेगा हवेली या मुझे हवेली छोड़ के घूमने जाएगा दोस्तो के साथ....
अभय – मां आप बोलो तो आपके साथ रहूंगा....
शालिनी – कोई न तू मुझे हवेली छोड़ के दोस्तो के साथ घूम ले मै कॉल कर दूंगी तुझे लेने आ जाना....
अभय – ठीक है मां....
बोल के अभय बाइक से निकल गया शालिनी को लेके , हवेली आके शालिनी गेट में उतर के....
शालिनी – मै कॉल करती हु तुझे ठीक है....
अभय – मै इंतजार करूंगा मां....
बोल के अभय निकल गया बाइक से इधर जैसे ही शालिनी हवेली के अन्दर आई सामने हॉल में ललिता , मालती , शनाया , चांदनी और संध्या बैठ बाते कर रहे थे...
शालिनी को देख चांदनी मां बोलने जा रही थी कि तभी....
संध्या – शालिनी जी....
शालिनी का नाम सुन बाकी सबका ध्यान हवेली के गेट की तरफ गया अन्दर आते ही शालिनी ने सबको प्रणाम कर संध्या के बगल आके बैठ गई....
संध्या – आप अकेली आए हो कोई साथ में....
शालिनी – (संध्या के हाथ में अपना हाथ रख के) वो मुझे छोड़ के गया हवेली के बाहर तक लेने आएगा....
संध्या –(हा में सिर हिला के) इनसे मिलिए ये ललिता है रमन की वाइफ और ये मालती है मेरे छोटे देवर प्रेम की वाइफ और इनको आप जानती है ये शनाया है मेरी बहन....
शालिनी – इन्हें कैसे भूल सकती हु मै यही तो पढ़ाती थी मेरे बेटे को स्कूल में....
शालिनी की (मेरे बेटे) बात सुन संध्या जो मुस्कुरा रही थी वो हल्की हो गई जिसे शालिनी ने देख लिया....
शनाया –(शालिनी से) आप क्या लेगी चाय या ठंडा....
शालिनी – (सबको देख जो चाय पी रहे थे) सभी के साथ चाय....
बोल के शनाया चाय लेने चली गई....
शालिनी – (ललिता और मालती से) कैसी है आप दोनों....
ललिता और मालती एक साथ – जी अच्छे है....
शालिनी –(मालती की गोद में बच्चे को देख) आपका बच्चा बहुत सुंदर है कितने साल का हो गया है....
मालती –जी ये लड़की है अभी 3 साल की है....
शालिनी –(मालती से बच्ची को अपनी गोद में लेके) बहुत प्यारी है किसपर गई है ये....
मालती –(हसी रोक के) जी वैसे ये मेरी नहीं है हमारे गांव में पहले थानेदार था ये उसकी बेटी है....
शालिनी –(बात याद आते ही) ओह माफ करिएगा मुझे मै तो भूल ही गई थी....
मालती –(हल्का मुस्कुरा के) जी कोई बात नहीं वैसे भी अब ये मेरी बेटी है और मैं इसकी मां....
शालिनी –(मालती की बात सुन मुस्कुरा के) ये बहुत ही अच्छी बात है मालती तुमसे अच्छी मां इसे नहीं मिल सकती बल्कि मैं कहती हु कि तुम इसकी कस्टडी भी लेलो मै तुम्हारी मदद कर दूंगी इसमें बस 2 से 3 पेपर वर्क में इसकी कस्टडी परमानेंट तुम्हे मिल जाएगी....
संध्या –(शालिनी की बात सुन) आपने बिल्कुल सही कहा शालिनी जी हम तो भूल ही गए थे इस कम को करना....
शालिनी – ये कम मै तुरंत कर दूंगी लेकिन प्लीज पहले तो आप मुझे सिर्फ मेरा नाम लेके बात करो और जी मत लगाना आप....
संध्या – लेकिन आप भी मेरा नाम लेके बात करिएगा प्लीज....
दोनो की बात सुन के सभी मुस्कुराने लगे तब शनाया आई और चाय दी शालिनी को चाय पीते वक्त सबकी नजर बचा के शालिनी ने संध्या को कुछ इशारा किया जिसे समझ के....
संध्या – शालिनी आइए मै आपको अपना कमरा दिखाती हु....
बोल के अपने नौकर को आवाज दी चांदनी और नौकर की मदद से संध्या को अपने कमरे में ले जाया गया जिसके बाद संध्या को आराम करने का बोल के शनाया , ललिता और मालती कमरे से चले गए रह गए सिर्फ शालिनी और चांदनी कमरे में....
संध्या –(शालिनी से) क्या बात है शालिनी आपने इशारे से अकेले में बात करने को क्यों बोला मुझे....
शालिनी –एक बात बताए उस खंडर में जो कुछ भी है उसके बारे में सिर्फ आपको कैसे पता है....
संध्या –(चौक के) आ....आ...आप को कैसे....
शालिनी –(संध्या के हाथ में अपना हाथ रख के) तुम्हारी तरह मै भी मां हू अभय की वो मुझसे कभी कुछ नहीं छुपाता है....
संध्या –(शालिनी की बात सुन गहरी सास लेके) क्या आप कमल ठाकुर को जानती है....
शालिनी –हा अच्छी तरह से....
संध्या – कमल ठाकुर का इकलौते बेटे अर्जुन ठाकुर को भी....
शालिनी – हा उसे भी जानती हू बहुत अच्छे से कई बार मिल चुकी हूँ मै....
संध्या –(मुस्कुरा के) जब मेरा अभय छोटा था उस वक्त 2 साल का तब अर्जुन ठाकुर करीबन 10 साल का था कई बार अर्जुन अपने पिता कमल ठाकुर के साथ यहां आता तो सिर्फ अभय को अपनी गोद में लेके उसके साथ खेलता था जबकि कमल ठाकुर सीधे जाते बड़े ठाकुर के पास मिलने या इनसे (मनन ठाकुर) मिलते थे और साथ ही काफी वक्त से बड़े ठाकुर और कमल ठाकुर मिल कर साथ में व्यापार करने के लिए गांव से बाहर जाया करते थे एक बार बड़े ठाकुर और कमल ठाकुर मिल के विदेश यात्रा पर गए थे अपने साथ में एक जहाज लेके आ रहे थे ताकि विदेश से व्यापार न करके यही समुंदर के रस्ते व्यापार कर सके अपनी जमीन पर तभी समुंदर में तूफान आना शुरू हो रहा था रस्ते में एक टापू पर रुकने का फैसला किया उन्होंने जब तक तूफान न थम जाए उसी वक्त बड़े ठाकुर और कमल ठाकुर उस टापू पर घूम रहे थे और वही पर उन्हें वो खजाना मिला दोनो ने मिल के इसे जहाज में रखवा के समुंदर के रस्ते यहां ले आए लेकिन इतना बड़े खजाने को छिपा के रखने समस्या आ रही थी तब कमल ठाकुर ने इसमें मदद की बड़े ठाकुर की पुरानी वाली हवेली को खंडर के रूप में प्रस्तुत करने का सुझाव दिया कमल ठाकुर ने और बड़े ठाकुर को ये योजना अच्छी लगी और फिर उन्होंने मिल के खंडर में खजाने को छुपा दिया साथ ही कमल ठाकुर ने विदेश जाके खुद एक ताला बनवाया दरवाजे के साथ और यहां लेके उसे बंद कर दिया उसके बाद से खंडर वाली जगह को बड़े ठाकुर ने श्रापित घोषित कर दिया....
शालिनी – अगर बड़े ठाकुर और कमल ठाकुर ने साथ मिल के ये काम किया तो सारा का सारा खजाना सिर्फ बड़े ठाकुर को क्यों दिया कमल ठाकुर ने....
संध्या – एसा नहीं है शालिनी विदेश से आते वक्त रस्ते में ही बड़े ठाकुर और कमल ठाकुर ने मिल के बाट लिया था सब कुछ....
शालिनी – तो फिर बड़े ठाकुर ने खंडर में ही क्यों रखा यहां पर भी रख सकते थे ना....
संध्या – पता नहीं शालिनी वैसे तो मरने से पहले बड़े ठाकुर ने खजाने की चाबी मुझे दी थी लेकिन उससे पहले खजाने के बारे में बड़े ठाकुर ने इनको (मनन ठाकुर) को बताया था और साथ में लेके गए थे वहां पर इनको (मनन ठाकुर) और फिर उसके कुछ साल 2 साल के बाद बड़े ठाकुर बीमार रहने लगे धीरे धीरे ये बीमारी (मनन ठाकुर) इनको भी लग गई पहले बड़े ठाकुर चले गए उसके बाद से जाने कैसे मेरी सास सुनैना ठाकुर अचानक से गायब हो गई....
शालिनी –(बीच में टोकते हुए) एक मिनिट संध्या सुनैना ठाकुर का गायब होना ये कैसे हुआ....
संध्या – विदेश से आने के बाद बड़े ठाकुर ने मेरी सास सुनैना ठाकुर को सब बता दिया था कुछ महीने के बाद मुझे सुनने में आया कि कोई खंडर वाली जमीन लेने के लिए काफी पीछे पड़ा हुआ है बड़े ठाकुर के लेकिन बड़े ठाकुर और कमल ठाकुर साफ मना कर चुके थे उस आदमी को लेकिन तभी कुछ समय के बाद मेरी सास सुनैना ठाकुर ने एक दिन बड़े ठाकुर से खंडर के बारे में बात छेड़ी जिसके बाद बड़े ठाकुर बहुत नाराज हुए थे मेरी सास से और एक दिन रात को मैने देखा मेरी सास किसी से फोन पर बाते कर रही थी छुप छुप के काफी देर तक हस हस के लेकिन मैं जान नहीं पाई कि किस्से बात करती थी मेरी सास , बड़े ठाकुर और सुनैना ठाकुर में एक दिन काफी कहा सुनी हो गई उस वक्त गुस्से में बड़े ठाकुर हवेली से बाहर निकल गए और कुछ देर बाद मेरी सास भी निकल गई बाहर हवेली से जब तक मुझे पता चलता वो हवेली से जा चुकी थी उस दिन (मनन ठाकुर) ये शहर गए हुए थे काम से तब मैने मुनीम से पता लगाने को बोला मेरी सास का काफी देर इंतजार करते करते आखिर कार रात में मेरी सास आई हवेली में कोई अपनी कार से छोड़ने आया था बाहर से ही चला गया था वो मेरी सास अपने कमर में जा रही थी मैं अपने कमरे के दरवाजे से छुप के अपनी सास को जाते हुए देख रही थी बिखरे बाल हाथ की चुड़ी टूटी हुई गले में कई लाल दाग उनको देख के एसा लग रहा था जैसे कि....
शालिनी –(संध्या के कंधे में हाथ रख के) समझ गई मैं संध्या , फिर आगे क्या हुआ....
संध्या – होना क्या था दिन से निकले बड़े ठाकुर अगले दिन हवेली वापस आय आते ही अपने कमरे में गए कुछ देर बाद सुनैना ठाकुर के रोने की आवाज आने लगी और बड़े ठाकुर गुस्से में हवेली से बाहर चले गए रोने की आवाज सुन मै कमरे में गई देखा वहां पर मोबाइल जमीन में टूटा पड़ा है सुनैना ठाकुर एक कोने में बैठ के रो रही थी मैने उनसे काफी पूछा लेकिन कुछ नहीं बताया उन्होंने मुझे उस दिन के बाद जैसे बड़े ठाकुर ने सुनैना ठाकुर से बात करना बंद कर दिया था यहां तक सोते भी अलग थे एक दिन मैने अपनी आखों से देखा बड़े ठाकुर सोफे में सो रहे थे और सुनैना ठाकुर बेड में ये नजारा मैने कई बार देखा एक दिन हिम्मत करके मैने अकेले में बड़े ठाकुर से इस बारे में बात की लेकिन उन्होंने मुस्कुरा के मेरे सिर में हाथ फेरा और बोला....
रतन ठाकुर – संध्या बेटा बड़े अरमानों के साथ तुझे इस हवेली में लाया हु मै अपनी बहू बना के नहीं बल्कि बेटी बना के लाया हूँ तुझे तेरी सेवा मैने देखी है दिल से करती है सेवा सबकी बस एक वादा कर बेटा मुझसे अगर कल को मुझे कुछ हो गया तो तू पूरे परिवार को समेट के रखेंगी....
संध्या –एसी बाते मत बोलिए बाबू जी....
रतन ठाकुर –(हस के) अरे पगली एक न एक दिन तो सबको जाना है अब तू ज्यादा मत सोच बस वादा कर मुझसे....
संध्या – मैं वादा करती हू आपसे बाबू जी....
उसके कुछ समय के बाद से ही तबियत खराब होना शुरू हो गई पहले बाबू जी चले गए कुछ वक्त के बाद ये (मनन ठाकुर) भी चले गए और तब से मैं देख रही हू पूरे परिवार की बाग डोर....
शालिनी – और कमल ठाकुर का क्या हुआ....
संध्या – वो भी बीमारी के कारण दुनिया से विदा हो गए....
शालिनी – और उनका बेटा अर्जुन ठाकुर....
संध्या – कमल ठाकुर के गुजरने के बाद वो आखिरी बार था जब मैने अर्जुन को देख था उसके बाद से कभी न देखा और न सुना मैने अर्जुन के बारे में , उस बेचारे का कमल ठाकुर और उसकी मां के इलावा कोई नहीं था दुनिया में मेरी सास सुनैना ठाकुर की तरह अर्जुन भी जाने कहा चला गया....
शालिनी –(संध्या की सारी बात सुन के) एक बात तो बताओ अभय को वो लॉकेट क्या तुमने दिया था उसे....
संध्या – हा मैने दिया था उसे....
शालिनी –(मुस्कुरा के) तो खजाने की चाबी तुमने अभय को दे दी....
संध्या –(हल्का सा हस के) मेरा असली खजाना सिर्फ वही है बस इसीलिए उसे वो चाबी दे दी मैने....
शालिनी –(अपनी बेटी चांदनी से जो काफी देर से चुप चाप बैठ के सारी बात सुन रही थी) तो चांदनी तेरी तहकीकात कहा तक पहुंची....
चांदनी – घर का भेदी लंका धाय....
शालिनी –(चांदनी की बात सुन) क्या मतलब है तेरा कहने का....
चांदनी – मां हवेली का कोई तो है जो ये सब कर रहा है या करवा रहा है इतना शातिर है वो हर बार दूसरे के कंधे पे बंदूक रख के चलाए जा रहा है जब से अभय गांव आया है कुछ न कुछ गड़बड़ होना शुरू हो रही है हवेली में फिर अभय पे जान लेवा हमला उसके बाद हमारे साथ जो हुआ एक बात तो पक्की है हवेली के लोगो की जानकारी यहां हवेली से बाहर भेजी जा रही है पल पल की....
शालिनी – हवेली में कोई ये सब कर रहा है ये कैसे बोल रही हो तुम....
चांदनी –(अस्पताल में संध्या के बेड की नीचे छुपे मोबाइल की बात बता के) मैने मोबाइल का पता करवाया लास्ट कॉल यहां हवेली से आई थी उसमें इसीलिए मैने यहां हवेली में जिसके पास जो भी जितने भी मोबाइल हो उसकी सारी डिटेल्स निकलवाने के लिए बोल दिया है उम्मीद है कल तक मिल जाएगी डिटेल मुझे....
शालिनी – वैसे तूने एक्शन क्यों नहीं लिया....
चांदनी – मां किसपे एक्शन लू मै किस बिना पे हाथ डालू और किसपे मेरी एक गलती मेरा पर्दा फाश करवा सकती है और दुश्मन को सावधान इसीलिए मैने अपने लोगो को सभी की निगरानी पर रख हुआ है वैसे मा रमन पर भी निगरानी रखी हुई थी मैने लेकिन आपके लाडले ने पहले ही आपको सब बता दिया....
शालिनी – (हस के) क्यों जलन हो रही है क्या तुझे....
चांदनी –भला मुझे क्यों जलन होने लगी मेरे भाई से....
शालिनी –(मुस्कुरा के) मजाक कर रही हूँ तेरे से....
चांदनी –(सीरियाई होके) मां जाने क्यों कभी कभी एसा लगता है जैसे अभय कुछ छुपा रहा है हमसे....
शालिनी –(मुस्कुरा के) हमसे नहीं तुझसे...
चांदनी – मुझ से क्यों....
शालिनी – गांव का सरपंच और मुनीम दोनो ही उसके पास है....
चांदनी –(चौक के) मुनीम कैसे सरपंच का पता था मुझे....
संध्या – (बीच में) उसी ने मेरे पैर का ये हाल किया है....
शालिनी – (संध्या से) तुझे पता है मुनीम के एक पैर की हड्डी तोड़ दी है अभय ने और हॉस्टल में ही उसे लगातार टाचर दिए जा रहा है....
चांदनी –(संध्या के कंधे पे हाथ रख के) देखा मौसी मैने कहा था ना आपसे....
शालिनी – चांदनी आगे का क्या करना है तुम्हे....
चांदनी – पहले अभय और अब मौसी ये दोनो ही इस वक्त खतरे के निशान में आ चुके है अलग रहेंगे तो खतरा बना रहेगा दोनो पे एक साथ रहेंगे खतरा फिर भी रहेगा लेकिन उसे हैंडल तो किया जा सकता है आसानी से तब....
शालिनी –ठीक है अब मेरी बात ध्यान से सुनो....
फिर शालिनी ने कुछ कहा जिसके बाद चांदनी ने हा में सिर हिलाया....
शालिनी – (संध्या से) तुम बिल्कुल भी मत घबराना कुछ नहीं होगा किसी को तेरा अभय तुझे जरूर मिलेगा ये सिर्फ मेरा नहीं बल्कि एक मा का दूसरी मां से वादा है ये....
काफी देर तक एक दूसरे से बात कर रहे थे उसके बाद संध्या से विदा लेके शालिनी कमरे से जाने लगी संध्या के कमरे से बाहर निकल हॉल में आके सबसे विदा ले रही थी कि तभी उनका मोबाइल बजा जिसपे बात करके....
शालिनी –(ललिता शनाया और मालती से) अच्छा अब मुझे इजाजत दीजिए चलती हूँ मै....
ललिता – यही रुक जाते आप....
शालिनी – प्लान तो रुकने का ही था मेरा गांव में कुछ दिन के लिए लेकिन एक इमरजेंसी आ गई है मुझे कल सुबह ही निकलना होगा शहर की तरफ अपने लोगो के साथ....
मालती – रात का खाना हमारे साथ खाइए....
शालिनी –नहीं मालती आज नहीं लेकिन अगली बार जरूर , अच्छा मुझे इजाजत दीजिए अब जल्द ही फिर मुलाक़ात होगी....
बोल के शालिनी हवेली के बाहर निकल गई जहां अभय गेट में खड़ा इंतजार कर रहा था शालिनी को साथ लेके हॉस्टल में आते ही दोनों ने खाना खाया और सो गए जबकि इस तरफ....
औरत –(कॉल में रंजीत सिन्हा से) एक अच्छी खबर है तुम्हारे लिए....
रंजीत सिन्हा –(खुश होके) अच्छा क्या बात है....
औरत –आज शालिनी हवेली आई थी लेकिन जाने से पहले बता के गई कि वो कल सुबह वापस जा रही है शहर....
रंजीत सिन्हा –(चौक के) क्या तुम सच बोल रही हो....
औरत – अरे हा बाबा सच बोल रही हू मै अब तू देख ले मौका और दस्तूर खुद चल के तेरे पास आया है....
रंजीत सिन्हा – (हस्ते हुए) शालिनी के जाते ही अपना अधूरा काम पूरा करूंगा मै....
औरत –लेकिन कैसे....
रंजीत सिन्हा –उसके लिए तुझे संध्या को घुमाना होगा शाम के वक्त हवेली के गेट के पास बने बगीचे में उसी वक्त अपने काम को अंजाम दूंगा मै....
औरत – (मुस्कुरा के) उसके लिए मुझे अकेले कुछ नहीं करना पड़ेगा क्योंकि शाम के वक्त लगभग सभी टहलते है वहां पर....
रंजीत सिन्हा – तो ठीक है शालिनी कल सुबह जाएगी और मैं शाम को अपने काम को अंजाम दूंगा....
बोल के कॉल काट दिया दोनो ने अगली सुबह शालिनी और अभय जल्दी से उठ गए....
शालिनी – अभय जल्दी से तैयार हो जा....
अभय – जल्दी क्यों मां कही जाना है क्या....
शालिनी – हा गीता दीदी के घर चल मिलना है उनसे....
अभय –मां दिन में चलते है अभी कॉलेज जाना है मुझे....
शालिनी – एक काम कर आज कॉलेज मत जा सीधा गीता दीदी के पास चल फिर मुझे जाना है....
अभय –(चौक के) क्या जाना है कहा लेकिन आप कल ही तो आए हो आज जाने की बात....
शालिनी – हा बेटा जरूरी काम आ गया है शहर में मुझे सोचा गीता दीदी से मिल के जाऊं....
अभय –ये गलत बात है मां मैने सोचा आपके साथ रहूंगा गांव घुमाऊंगा आपको लेकिन आप तो आज ही....
शालिनी – (मुस्कुरा के) तो कौन सा हमेशा के लिए जा रही हूँ मै मिलने आऊंगी तेरे से नहीं तो कॉल पे बात कर लिया करना मेरे से और जब मन करे तेरा आ जाना शहर मेरे पास....
इससे पहले अभय कुछ बोलता....
शालिनी –(जल्दी से बोली) अच्छा चल पहले मिलते है गीता दीदी से....
बोल के दोनो निकल गए गीता देवी की तरफ घर में आते ही दरवाजा खटखटाया तो गीता देवी ने दरवाजा खोला....
गीता देवी –(अपने घर शालिनी को देख) अरे आइए शालिनी जी क्या बात है आज सुबह सुबह....
शालिनी – हा असल में मुझे जरूरी काम से वापस शहर जाना पड़ रहा है सोचा जाने से पहले आप से मिल लूं....
गीता देवी – बहुत जल्दी जा रहे हो आप वापस कुछ दिन रुक जाते आप....
शालिनी – पुलिस की नौकरी तो आप मुझसे बेहतर जानते हो दीदी कब कहा से बुलावा आए पता नहीं पड़ता है....
गीता देवी – हा सो तो है शालिनी जी....
अभय – बड़ी मां राज कहा है....
गीता देवी – अंदर कमरे में तैयार हो रहा है कॉलेज जाने के लिए....
गीता देवी की बात सुन अभय कमरे में चल गया राज के पास....
राज – (अभय को देख) अबे तू इतनी सुबह सुबह क्या बात है....
अभय – कुछ नहीं यार वो मां आज ही वापस जा रही है तो मिलने आई है बड़ी मां से....
राज – अरे इतनी जल्दी....
अभय – हा वही तो यार मानती ही नहीं मां बात मेरी....
राज – पुलिस का काम ही ऐसा होता है यार चल ये बता कॉलेज चल रहा है साथ में या बाद में आएगा....
अभय – नहीं यार आज नहीं आऊंगा कॉलेज मां ने मना किया है....
राज – यार मन तो मेरा भी नहीं है आज जाने का....
अभय – तो चल आज तू और मैं साथ में घूमते है मै बड़ी मां से बोल देता हू....
अभय बाहर आके गीता देवी से....
अभय – बड़ी मां आज राज को कॉलेज मत भेजो आज मेरे साथ रहेगा....
शालिनी –(तुरंत बीच में) बहुत अच्छी बात है तू एक कम कर राज के साथ घूम के आजा और साथ में अच्छा सा नाश्ता लेके आ तब तक मैं ओर गीता दीदी बाते करते है आपस में....
बात सुन के अभय और राज निकल गए घर के बाहर उनके जाते ही....
गीता देवी – क्या बात है शालिनी जी आपने उन दोनों को बाहर क्यों भेज दिया नाश्ता तो मैं यही बना देती सबके लिए....
शालिनी – जानती हू दीदी लेकिन उनके सामने आपसे मै वो बात नहीं कर सकती थी इसीलिए बाहर भेज दिया दोनो को....
गीता देवी – क्या बात है शालिनी जी बताए....
उसके बाद शालिनी ने कुछ बात की गीता देवी से काफी देर तक बात चलती रही दोनो की जब तक अभय और राज वापस नहीं आ गए दोनो के आते ही सबने मिल के नाश्ता किया एक दूसरे से विदा लेके निकल गए साथ में राज भी आया हॉस्टल में आते ही शालिनी ने अपना बैग लिया हॉस्टल के बाहर निकल जहां शालिनी की कार खड़ी थी ड्राइवर के साथ कार में समान रख....
शालिनी –(अभय को गले से लगा के) दिल छोटा मत कर मै जल्दी ही आऊंगी तेरे पास तब तक अच्छे से पढ़ाई करना तू....
अभय –(मुस्कुरा के) ठीक है मां....
बोल के शालिनी कार में बैठने लगी कि तभी....
शालिनी – अरे अभय मै शायद अपना बैग तेरे कमरे में भूल गई जाके ले आ....
शालिनी की बात सुन अभय कमरे की तरफ निकल गया उसके जाते ही....
शालिनी – राज मेरी बात ध्यान से सुनो....
उसके बाद शालिनी ने राज से कुछ बात कहने लगी कुछ समय बाद अभय वापस आया बैग लेके जिसे लेके शालिनी ने अभय के सर पे हाथ फेर कार से निकल गई शहर की तरफ अभय पीछे खड़ा कार को जाते हुए देखता रहा जब तक कार उसकी आंख से ओझल नहीं हो गई....
अभय – जब अपना दूर जाता है आपसे कितनी बेचैनी होने लगती है ना राज....
राज –(अभय के कंधे पे हाथ रख देखा तो आसू थे आखों में उसकी अपने हाथ से आसू पोछ गले लगा के) जितना दूर सही लेकिन है तो तेरे दिल में ही चल मायूस मत हो जल्दी आएगी बोला है ना तेरे को चल चलते है घूमने कही....
राज की बात सुन हा में सिर हिला के बाइक से निकलने जा रहे थे कि तभी एक लड़की की प्यारी सी आवाज आई....
लड़की – HELLOOO Mr.ABHAY....
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जारी रहेगा![]()
Bahut badhiya start hai bhaiUPDATE 1
तेज हवाऐं चल रही थी। शायद तूफ़ान था क्यूंकि ऐसा लग रहा था मानो अभी इन हवाओं के झोके बड़े-बड़े पेंड़ों को उख़ाड़ फेकेगा। बरसात भी इतनी तेजी से हो रही थी की मानो पूरा संसार ना डूबा दे। बादल की गरज ऐसी थी की उसे सुनकर लोग अपने-अपने घरों में दुबक कर बैठे थे।
जहां एक तरफ इस तूफानी और डरावनी रात में लोग अपने घरों में बैठे थे। वहीं दूसरी तरफ एक लड़का, इस तूफान से लड़ते हुए आगे भागते हुए चले जा रहा था
वो लड़का इस गति से आगे बढ़ रहा था, मानो उसे इस तूफान से कोई डर ही नही। तेज़ चल रही हवाऐं उसे रोकने की बेइंतहा कोशिश करती। वो लड़का बार-बार ज़मीन पर गीरता लेकिन फीर खड़े हो कर तूफान से लड़ते हुए आगे की तरफ बढ़ चलता।
ऐसे ही तूफान से लड़ कर वो एक बड़े बरगद के पेंड़ के नीचे आकर खड़ा हो गया। वो पूरी तरह से भीग चूका था। तेज तूफान की वज़ह से वो ठीक से खड़ा भी नही हो पा रहा था। शायद बहुत थक गया था। वो एक दफ़ा पीछे मुड़ कर गाँव की तरफ देखा। उसकी आंखे नम हो गयी, शायद आंशू भी छलके होंगे मगर बारीश की बूंदे उसके आशूं के बूंदो में मील रहे थे। वो लड़का कुछ देर तक काली अंधेरी रात में गाँव की तरफ देखता रहा, उसे दूर एक कमरे में हल्का उज़ाल दीख रहा था। उसे ही देखते हुए वो बोला...
"मैं जा रहा हूं माँ!!"
और ये बोलकर वो लड़का अपने हांथ से आंशू पोछते हुए वापस पलटते हुए गाँव के आखिरी छोर के सड़क पर अपने कदम बढ़ा दीये....
तूफान शांत होने लगी थी। बरसात भी अब रीमझीम सी हो गयी थी, पर वो लड़का अभी भी उसी गति से उस कच्ची सड़क पर आगे बढ़ा जा रहा था। तभी उस लड़के की कान में तेज आवाज़ पड़ी....
पलट कर देखा तो उसकी आँखें चौंधिंया गयी। क्यूंकि एक तेज प्रकाश उसके चेहरे पर पड़ी थी। उसने अपना हांथ उठाते हुए अपने चेहरे के सामने कीया और उस प्रकाश को अपनी आँखों पर पड़ने से रोका। वो आवाज़ सुनकर ये समझ गया था की ये ट्रेन की हॉर्न की आवाज़ है। कुछ देर बाद जब ट्रेन का इंजन उसे क्रॉस करते हुए आगे नीकला, तो उस लड़के ने अपना हांथ अपनी आँखों के सामने से हटाया। उसके सामने ट्रेन के डीब्बे थे, शायद ट्रेन सीग्नल ना होने की वजह से रुक गयी थी।
उसने देखा ट्रेन के डीब्बे के अंदर लाइट जल रही थीं॥ वो कुछ सोंचते हुए उस ट्रेन को देखते रहा। तभी ट्रेन ने हॉर्न मारा। शायद अब ट्रेन सिग्नल दे रही थी की, ट्रेन चलने वाली है। ट्रेन जैसे ही अपने पहीये को चलायी, वो लड़का भी अपना पैर चलाया, और भागते हुए ट्रेन पर चढ़ जाता है। और चलती ट्रेन के गेट पर खड़ा होकर एक बार फीर से वो उसी गाँव की तरफ देखने लगता है। और एक बार फीर उसकी आँखों के सामने वही कमरा दीखता है जीसमे से हल्का उज़ाला था। और देखते ही देखते ट्रेन ने रफ्तार बढ़ाई और हल्के उज़ाले वाला कमरा भी उसकी आँखों से ओझल हो गया.....
कमरे में हल्की रौशनी थी, एक लैम्प जल रहा था। बीस्तर पर दो ज़ीस्म एक दुसरे में समाने की कोशिश में जुटे थे। मादरजात नग्न अवस्था में दोनो उस बीस्तर पर गुत्थम-गुत्थी हुए काम क्रीडा में लीन थे। कमरे में फैली उज़ाले की हल्की रौशनी में भी उस औरत का बदन चांद की तरह चमक रहा था। उसके उपर लेटा वो सख्श उस औरत के ठोस उरोज़ो को अपने हांथों में पकड़ कर बारी बारी से चुसते हुए अपनी कमर के झटके दे रहा था।
उस औरत की सीसकारी पूरे कमरे में गूंज रही थी। वो औरत अब अपनी गोरी टांगे उठाते हुए उस सख्श के कमर के इर्द-गीर्द रखते हुए शिकंजे में कस लेती है। और एक जोर की चींख के साथ वो उस सख्श को काफी तेजी से अपनी आगोश में जकड़ लेती है और वो सख्श भी चींघाड़ते हुए अपनी कमर उठा कर जोर-जोर के तीन से चार झटके मारता है। और हांफते हुए उस औरत के उपर ही नीढ़ाल हो कर गीर जाता है।
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"बस हो गया तेरा
अब जा अपने कमरे में। आज जो हुआ मैं नही चाहती की कीसी को कुछ पता चले।"
उस औरत की बात सुनकर वो सख्श मुस्कुराते हुए उसके गुलाबी होठों को चूमते हुए, उसके उपर से उठ जाता है और अपने कपड़े पहन कर जैसे ही जाने को होता है। वो बला की खुबसूरत औरत एक बार फीर बोली--
"जरा छुप कर जाना, और ध्यान से गलती से भी अभय के कमरे की तरफ से मत जाना समझे।"
उस औरत की बात सुनकर, वो सख्श एक बार फीर मुस्कुराते हुए बोला--
"वो अभी बच्चा है भाभी, देख भी लीया तो क्या करेगा? और वैसे भी वो तुमसे इतना डरता है, की कीसी से कुछ बोलने की हीम्मत भी नही करेगा।"
उस सख्श की आवाज़ सुनकर, वो औरत बेड पर उठ कर बैठ जाती है और अपनी अंगीयां (ब्रा) को पहनते हुए बोली...
"ना जाने क्यूँ...आज बहुत अज़ीब सी बेचैनी हो रही है मुझे। मैने अभय के सांथ बहुत गलत कीया।"
"ये सब छोड़ो भाभी, अब तूम सो जाओ।"
कहते हुए वो सख्श उस कमरे से बाहर नीकल जाता है। वो औरत अभी भी बीस्तर पर ब्रा पहने बैठी थी। और कुछ सोंच रही थी, तभी उसके कानो में ट्रेन की हॉर्न सुनायी पड़ती है। वो औरत भागते हुए कमरे की उस खीड़की पर पहुंच कर बाहर झाकती है। उसे दूर गाँव की आखिर छोर पर ट्रेन के डीब्बे में जल रही लाईटें दीखी, जैसे ही ट्रेन धीरे-धीरे चली। मानो उस औरत की धड़कने भी धिरे-धिरे बढ़ने लगी....
***********
ट्रेन के गेट पर बैठा वो लड़का, एक टक बाहर की तरफ देखे जा रहा था। आँखों से छलकते आशूं उसके दर्द को बयां कर रहे थे। कहां जा रहा था वो? कीस लिए जा रहा था वो? कुछ नही पता था उसे। अपने चेहरे पर उदासी का चादर ओढ़े कीसी बेज़ान पत्थर की तरह वो ट्रेन की गेट पर गुमसुम सा बैठा था। उसके अगल-बगल कुछ लोग भी बैठे थे। जो उसके गले में लटक रही सोने की महंगी चैन को देख रहे थे। उनकी नज़रों में लालच साफ दीख रही थी। और शायद उस लड़के का सोने का इंतज़ार कर रहे थे। ताकी वो अपना हांथ साफ कर सके।
पर अंदर से टूटा वो परीदां जीसका आज आशियाना भी उज़ड़ गया था। उसकी आँखों से नींद कोषो दूर था। शायद सोंच रहा था की, अपना आशियाना कहां बनाये???
*********
अगली सुबह
सुबह-सुबह संध्या उठते हुए हवेली के बाहर आकर कुर्सी पर बैठ गयी। उसके बगल में रमन सिंह और ललिता भी बैठी थी। तभी वहां एक ३0 साल की सांवली सी औरत अपने हांथ में एक ट्रे लेकर आती है, और सामने टेबल पर रखते हुए सबको चाय देकर चली जाती है।
संध्या चाय की चुस्की लेते हुए बोली...
संध्या -- "तुम्हे पता है ना रमन, आज अभय का जन्मदिन है। मैं चाहती हूँ की, आज ये हवेली दुल्हन की तरह सजे,, सब को पता चलना चाहिए की आज छोटे ठाकुर का जन्मदिन है।"
रमन भी चाय की चुस्कीया लेते हुए बोला...
रमन –(कुटिल मुस्कान के साथ) तुम चिंता मत करो भाभी आज का दिन पूरा गांव याद रहेगा
रमन अभी बोल ही रहा था की, तभी वहां मालती आ गयी
मालती -- "दीदी, अभय को देखा क्या तुमने?"
संध्या – सो रहा होगा वो मालती अब इतनी सुबह सुबह कहा उठता है वो ?
मालती – वो अपने में तो नहीं है , मैं देख कर आ रही हूं ! मुझे लगा कल की मार की वजह से डर के मारे आज जल्दी उठ गया होगा
मालती की बात सुनते ही , संध्या गुस्से से लाल गए और एक झटके में कुर्सी पर से उठते हुए गुस्से में चिल्लाते हुए बोली…
संध्या – बेटा है मेरा वो कोई दुश्मन नही जो मैं उसे डरा धमका के रखूगी हा हो गईं कल मुझसे गलती गुस्से में मारा थोड़ा बहुत तो क्या होगया ?
संध्या को इस तरह चिल्लाते देख मालती शीतलता से बोली…
मालती – अपने आप को झूठी दिलासा क्यों दे रहे हो दीदी ? मुझे नही लगता की कल आपने अभय को थोड़ा बहुत मारा था और वो पहली बार भी नही था
अब तो संध्या जल भुन कर राख सी हो गई क्योंकि मालती की सच बात उसे तीखी मिर्ची की तरह लगी या उसे खुद की हुई गलती का एहसास था
संध्या –( गुस्से में) तू कहना क्या चाहती है मै…मैं भला उससे क्यों नफरत करूगी मेरा बेटा है वो और तुझे लगता है की मुझे उसकी फिक्र नहीं है सिर्फ तुझे है क्या
मालती –(संध्या की बात सुन गुस्से में बोली) मुझे क्या पता दीदी ? अभय तुम्हारा बेटा है मारो चाहे काटो मुझे उससे क्या मुझे वो अपने कमरे में नही दिखा तो पूछने चली आई यहा पे
कहते हुए मालती वहां से चली जाती है। संध्या अपना सर पकड़ कर वही चेयर पर बैठ जाती है। संध्या को इस हालत में देख रमन संध्या के कंधे पर हांथ रखते हुए बोला...
रमन – क्या भाभी आप भी छोटी छोटी बात को दिल में…
रमन अपनी बात पूरी नहीं कर पाया था की संध्या बीच मो बोली
संध्या – रमन तुम जाओ यहां से मुझे कुछ समय के लिए अकेला छोड़ दो
संध्या की गुस्से से भरी आवाज सुनके रमन को लगा अभी यहां से जाना ठीक रहेगा
रमन –(हवेली से बाहर मेन गेट पे आते ही पीछे पलट के संध्या को देख के बोला) बस कुछ वक्त और फिर तू मेरी बन जाएगी
इस तरफ
संध्या अपने सर पे हाथ रख के बैठी गहरी सोच में डूबी हुई थी की तभी दो हाथ संध्या की आखों पे पड़े उसकी आंखे बंद हो गई अपनी आखों पे किसी के हाथ को महसूस कर संध्या के होठों पे मुस्कान आग्यी
संध्या –(गहरी मुस्कान के साथ) नाराज है तू अपनी मां से बस एक बार माफ कर दे तेरी कसम खाती हो अब से मैं ऐसा कुछ नही करोगी जिससे तुझे तकलीफ हो मेरे बच्चे
संध्या की बात सुनते ही अमन जोर से हंसने लगा और अपना हाथ हटाते ही संध्या के सामने जा के खड़ा होगया
संध्या ने अपने सामने अमन को पाया क्यों की उसे लगा ये उसका बेटा अभय है लेकिन ए0ने सामने अमन को देख संध्या की हसी गायब हो गई
अमन –(हस्ते हुए) अरे ताई मां आपको क्या लगा मैं अभय हूं
संध्या –(झूठी मुस्कान के साथ) बदमाश कही का मुझे सच में लगा मेरा बेटा अभय है
अमन –आपको लगता है अभय ऐसा भी कर सकता है अगर वो ऐसा करता तो अभी तक उसको दो थप्पड़ खा चुका होता (बोल के जोर जोर से हंसने लगा)
अमन की ऐसी बात सुन संध्या के मन में गुस्सा आने लगा लेकिन तभी अमन कुछ ऐसा बोला
अमन –(हस्ते हुए) एक बात बताऊं आपको बेचारा अभय कल शाम आपके हाथ की मार खाने के बाद मैने रात को अभय को हवेली से भागते हुए देखा था वो ऐसा भागा की वापस ही नही लौटा
अब चौंकने की बारी संध्या की थी, अमन की बात सुनते ही उसके हांथ-पांव में कंपकपी उठने लगी। वैसे तो धड़कने बढ़ने लगती है, मगर संध्या की मानो धड़कने थमने लगी थी। सुर्ख हो चली आवाज़ और चेहरे पर घबराहट के लक्षण लीए बोल पड़ी...
संध्या –(घभराते हुए) क क्या मतलब है तेरा अ अभय भाग गया हवेली से
अमन –हा कल रात में मैने अभय को हवेली से भागते हुए देखा था मुझे लगा आजाएगा अपने आप और देर रात मैं पानी पीने उठा था तब देखा अभय का कमरा खुला पड़ा है अंडर देखा खाली था कमरा कोई नही था वहा पे
संध्या झट से चेयर पर से उठ खड़ी हुई, और हवेली के अंदर भागी।
संध्या –(डरते हुए चिल्लाने लगी) अभय…अभय…अभय…अभय…अभय
पागलो की तरह संध्या चीखती-चील्लाती अभय के कमरे की तरफ बढ़ी। संध्या की चील्लाहट सुनकर, मालती,ललीता,नीधि और हवेली के नौकर-चाकर भी वहां पहुंच गये। सबने देखा की संध्या पगला सी गयी है। सब हैरान थे, की आखिर क्या हुआ? ललिता ने संध्या को संभालते हुए पूछा
ललिता – क्या हुआ दीदी आप इस्त्रह चिल्ला क्यों रहे हो
संध्या –(रोते हुए) मेरा अभय कहा है
मालती –(ये बात सुन के गुस्से में चिल्ला के) यही बात तो मैं भी पूछने आई थी दीदी क्योंकि अभय सुबह से नही दिख रहा है मुझे
अब संध्या की हालत को लकवा मार गया था। थूक गले के अंदर ही नही जा रहा था। आँखें हैरत से फैली, चेहरे पर बीना कीसी भाव के बेजान नीर्जीव वस्तु की तरह वो धड़ाम से नीचे फर्श पर बैठ गयी। संध्या की हालत पर सब के रंग उड़ गये। ललिता और मालती संध्या को संभालने लगी।
ललिता –(संध्या को संभालते हुए) दीदी घबराओ मत यह कही होगा अभी आजाएगा अभय
सभी की बात सुन संध्या जैसे जिंदा लाश की तरह बन गई थी
संध्या –(सदमे मे) चला गया मुझे छोड़ के चला गया मेरा अभय
इतना बोल संध्या वही जमीन में गिर के बेहोश होगई
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तो कैसा लगा आप सबको ये अपडेट
बताएगा जरूर कहानी में काफी कुछ एडिट कर रहा हूं मैं थोड़ा समय लग रहा है मै ये बात मानता हो
बस मेरी कोशिश यही है की गलती से भी कोई गलती ना हो
कहानी को मैं देवनागरी में जरूर लिख रहा हूं लेकिन मेरे लिए आसान नहीं है आप सब से प्राथना करूंगा कोई गलती हो शब्दो में तो बता जरूर देना
बस साथ बने रहे जैसे मैने अपने दोनो कहानियों को मंजिल तक ले आया इसे भी इसकी मंजिल तक ले आऊंगा
धन्यवाद
ShandarUPDATE 2
गाँव के बीचो-बीच खड़ी आलीशान हवेली में अफरा-तफरा मची थी। पुलिस की ज़िप आकर खड़ी थी। हवेली के बैठके(हॉल) में । संध्या सिंह जोर से चींखती चील्लाती हुई बोली
संध्या --"मुझे मेरा बेटा चाहिए....! चाहे पूरी दुनीया भर में ही क्यूँ ना ढ़ूढ़ना पड़ जाये तुम लोग को? जीतना पैसा चाहिए ले जाओ....!! पर मेरे बच्चे को ढूंढ लाओ...मेरे बच्चे को ढूंढ लाओ...मेरे बच्चे
कहते हुए संध्या जोर-जोर से रोने लगी। सुबह से दोपहर हो गयी थी, पर संध्या की चींखे रुकने का नाम ही नही ले रही थी। गाँव के लोग भी ये खबर सुनकर चौंके हुए थे। और चारो दिशाओं मे अभय के खोज़ खबर में लगे थे। ललिता और मालति को, संध्या को संभाल पाना मुश्किल हो रहा था। संध्या को रह-रह कर सदमे आ रहे थें। कभी वो इस कदर शांत हो जाती मानो जिंदा लाश हो, पर फीर अचानक इस तरह चींखते और चील्लाते हुए सामन को तोड़ने फोड़ने लगती मानो जैसे पागल सी हो गयी हो।
रह-रह कर सदमे आना, संध्या का पछतावा था साथ अपने बेटे से बीछड़ने का गम भी , अभय ने आखिर घर क्यूँ छोड़ा? अपनी माँ का आंचल क्यूँ छोड़ा? इस बात का जवाब सिर्फ अभय के पास था। जो इस आलीशान हवेली को लात मार के चला गया था, कीसी अनजान डगर पर, बीना कीसी मक्सद के और बीना कीसी मंज़ील के।
(कहते हैं बड़ो की डाट-फटकार बच्चो की भलाई के लिए होता है। शायद हो भी सकता है , लेकिन जो प्यार कर सकता है। वो डाट-फटकार नही। प्यार से रिश्ते बनाता है। डाट-फटकार से रिश्ते बीछड़ते है, जैसे आज एक बेटा अपनी माँ से और माँ अपने बेटे से बीछड़ गए। रीश्तो में प्यार कलम में भरी वो स्याही है, जब तक रहेगी कीताब के पन्नो पर लीखेगी। स्याही खत्म तो पन्ने कोरे रह जायेगें। उसी तरह रीश्तो में प्यार खत्म, तो कीताब के पन्नो की तरह ज़िंदगी के पन्ने भी कोरे ही रह जाते हैं।)
हवेली की दीवारों में अभी भी संध्या की चींखे गूंज रही थी की तभी, एक आदमी भागते हुए हवेली के अंदर आया और जोर से चील्लाया
ठाकुर साहब ठाकुर साहब
आवाज़ काभी भारी-भरकम थी, इसलिए हवेली में मौजूद सभी लोगों का ध्यान उस तरफ केंद्रीत कर ली थी। सबसे पहली नज़र उस इंसान पर ठाकुर रमन की पड़ी। रमन ने देखा वो आदमी काफी तेजी से हांफ रहा था, चेहरे पर घबराहट के लक्षणं और पसीने में तार-तार था।
रमन --"क्या हुआ रे दीनू? क्यूँ गला फाड़ रहा है?"
दीनू --(अपने गमझे से माथे के पसीनो को पोछते हुए घबराहट भरी लहज़े में बोला) मालीक...वो, वो गाँव के बाहर वाले जंगल में। ए...एक ब...बच्चे की ल...लाश मीली है।
रमन --(एक नजर संध्या को देखते हुए बोला) ल...लाश क...कैसी लाश?"
उस आदमी की आवाज़ ने, संध्या के अंदर शरीर के अंदरुनी हिस्सो में खून का प्रवाह ही रोक दीया था मानो। संध्या अपनी आँखे फाड़े उस आदमी को ही देख रही थी..
दीनू --"वो...वो मालिक, आप खुद ही देख लें। ब...बाहर ही है।
दीनू का इतना कहना था की, रमन, ललिता, मालती सब लोग भागते हुए हवेली के बाहर की तरफ बढ़े। अगर कोई वही खड़ा था तो वो थी संध्या। अपनी हथेली को महलते हुए, ना जाने चेहरे पर कीस प्रकार के भाव अर्जीत कीये थी, शारिरीक रवैया भी अजीबो-गरीब थी उसकी। कीसी पागल की भाती शारीरीक प्रक्रीया कर रही थी। शायद वो उस बात से डर रही थी, जो इस समय उसके दीमाग में चल रहा था।
शायद संध्या को उस बात की मंजूरी भी मील गयी, जब उसने बाहर रोने-धोने की आवाज़ सुनी। संध्या बर्दाश्त ना कर सकी और अचेत अवस्था में फर्श पर धड़ाम से नीचे गीर पड़ती है
जब संध्या की आंख खुलती है तो, वो अपने आप को, खुद के बिस्तर पर पाती हैं। आंखों के सामने मालती, ललिता, निधी और गांव की तीन से चार औरतें खड़ी थी।
नही..... ऐसा नहीं हो सकता, वो मुझे अकेला छोड़ कर नही जा सकता। कहां है वो?? अभय... अभय...अभय
पगलो की तरह चिल्लाते हुए संध्या अपने कमरे से बाहर निकल कर जल बिन मछ्ली के जैसे तड़पने लगती है। संध्या के पीछे पीछे मालती, ललिता और निधी रोते हुए भागती है
हवेली के बाहर अभी भी गांव वालों की भीड़ लगी थी, मगर जैसे ही संध्या की चीखने और चिल्लाने की आवाजें उन सब के कानों में गूंजती है, सब उठ कर खड़े हो जाते है।
संध्या जैसे ही जोर जोर से रोते - बिलखते हवेली से बाहर निकलती है, तब तक पीछे से मालती उसे पकड़ लेती है।
संध्या --"छोड़ मुझे....!! मैं कहती हूं छोड़ दे मालती, देख वो जा रहा है, मुझे उसे एक बार रोकने दे। नही तो वो चला जायेगा।
संध्या की मानसिक स्थिति हिल चुकी थी, और इसका अंदाजा उसके रवैए से ही लग रहा था, वो मालती से खुद को छुड़ाने का प्रयास करने लगी की तभी....
मालती – दीदी वो जा चुका हैं... अब नही आयेगा, इस हवेली से ही नही, बल्कि इस संसार से भी दूर चला गया है।"
मालती के शब्द संध्या के हलक से निकल रही चिंखो को घुटन में कैद कर देती है। संध्या के हलक से शब्द तो क्या थूंक भी अंदर नही गटक पा रही थी। संध्या किसी मूर्ति की तरह स्तब्ध बेजान एक निर्जीव वस्तु की तरह खड़ी, नीचे ज़मीन पर बैठी रो रही मालती को एक टक देखते रही। और उसके मुंह से शब्द निकले...
संध्या – वो मुझे अकेला छोड़ के नही जा सकता
वो मुझे अकेला छोड़ के नही जा सकता
यह बात बोलते बोलते संध्या हवेली के अंदर की तरफ कदम बढ़ा दी।
गांव के सभी लोग संध्या की हालत पर तरस खाने के अलावा और कुछ नही कर पा रहें थे।।
तुझको का लगता है हरिया? का सच मे ऊ लाश छोटे ठाकुर की थी??"
हवेली से लौट रहे गांव के दो लोग रास्ते पर चलते हुए एक दूसरे से बात कर रहे थे। उस आदमी की बात सुनकर हरिया बोला
ह्वरिया --" वैसे उस लड़के का चेहरा पूरी तरह से ख़राब हो गया था, कुछ कह पाना मुुश्किल है। लेकिन हवेली से छोटे ठाकुर का इस तरह से गायब हो जाना, इसी बात का संकेत हो सकता है कि जरूर ये लाश छोटे ठाकुर की है।"
हरिया की बात सुनकर साथ में चल रहा वो शख्स बोल पड़ा..
मगरू --"ठीक कह रहा है तू हरिया, मैं भी एक बार किसी काम से हवेली गया था तो देखा कि ठकुराइन छोटे मालिक को डंडे से पीट रही थीं, और वो ठाकुर रमन का बच्चा अमनवा वहीं खड़े हंस रहा था। सच बताऊं तो इस तरह से ठकुराइन पिटाई कर रहीं थी की मेरा दिल भर आया, मैं तो हैरान था की आखिर एक मां अपने बेटे को ऐसे कैसे जानवरों की तरह पीट सकती है??"
हरिया --" चलो अच्छा ही हुआ, अब तो सारी संपत्ति का एक अकेला मालिक वो अमनवा ही बन गया। वैसे था बहुत ही प्यारा लड़का, ठाकुर हो कर भी गांव के सब लोगों को इज्जत देता था।
दोनो लोग बाते करते करते अपने घर की तरफ चल रहे थे तभी किसी औरत को आवाज आई
औरत –(पैदल जाते उन दोनो आदमियों से) मगरू भईया इतनी धूप में कहा से आ रहे हो
मगरू –(औरत को देखते हुए) गीता देवी (सामने जाके पैर छूता है) दीदी हवेली से आ रहे है हम दोनो
गीता देवी –हवेली से क्या हुआ भईया कुछ पता चला अभय बाबू का
तभी पीछे से एक आदमी आया
आदमी –(दोनो आदमी को देखते हुए) अरे हरिया , मगरू तुम दोनो तो हवेली गए थे भागते हुए क्या बात होगाई रे
मगरू –अब क्या बताए सत्या बाबू बात ही एसी है
सत्या बाबू –हुआ का है बता तो
मगरू –जंगल में लाश मिली है एक बच्चे की उसके कपड़े देख के समझ आया अभय बाबू की लाश है
गीता देवी और सत्या –(मगरू की बात सुन उनकी आंखे बड़ी हो गई)
मगरू –(आगे बोला) लाश लेके हवेली पहुंचे तब वहा पे लाश वाली बात सुन के सब का रोना निकल गया और संध्या देवी जैसे पत्थर सी जम गई थी
गीता देवी –(आसू पोछते हुए) क्या सच में वो अभय बाबू थे
मगरू – हा दीदी लाश ने अभय बाबू जैसे कपड़े पहने हुए थे अच्छा दीदी चलता हूं अब
इतना बोल के मगरू चला गया
सत्या –(औरत की आंख में आसू देख के) संभाल अपने आप को गीता जाने वाला तो चला गया
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जारी रहेगी![]()
बहुत ही बेहतरीन अपडेट है भाईUPDATE 4
गांव में हर साल एक मेला लगा करता है जहा पे ठकूरो के कुलदेवी का मंदिर था हर साल वहा पे बंजारे आते थे 10 से 15 दिन के लिए और तभी मेला शुरू हो जाता था गांव। में 10 से 15 दिन तक मेले के चलते पूरा गांव इक्कठा हो जाता था जैसे कोई त्योहार हो गांव वाले वहा जाते झूला झूलते बंजारों से नई नई प्रकार के वस्तु खरीदते साथ ही कुल देवी की पूजा करते थे ठाकुरों के साथ और उस वक्त ठाकुर अपने परिवार के साथ मेले में घूमते फिरते थे लेकिन इस बार गांव वालो की हिम्मत जवाब दे गईं थी कर्ज के चलते
इन सब बातो से अंजान हवेली में अभय के गम में डूबी हुई थी संध्या जिसका फायदा उठा रहा था रमन जो गांव वालो को जमीन को हड़प रहा था कर्ज और ब्याज के नाम पे ताकि डिग्री कॉलेज की स्थापना करवा सके जिसकी स्वीकृति रमन को संध्या से लेनी थी हवेली में गमहीन माहोल के चलते रमन इस बारे में बात नही कर पा रहा था संध्या से
जबकि संध्या अमन का मुंह देख कर जीने लगी थीं, लेकिन हर रात अभय की यादों में आंसू बहाती थी, और ये उसका रोज का रूटीन बन गया था।
और इस तरफ गांव वालों की हर रोज़ मीटिंग होती थीं , की ठाकुराइन से जाकर इस बारे में पूछे की उसने ऐसा क्यूं किया? क्यूं उनकी ज़मीन हड़प ली उसने? पर गांव वाले भी ये समय सही नहीं समझे।
दीन बीतता गया, संध्या भी अब नॉर्मल होने लगी थीं, वो अमन को हद से ज्यादा प्यार करने लगी थीं। हर छोटी से छोटी और बड़ी से बड़ी ख्वाहिश अमन की यूं ही पूरी हो जाती।
देखते ही देखते महीने सालों में व्यतीत होने लगे,,
एक दिन की बात है हवेली में सब नाश्ते की टेबल पर बैठे थे, अमन के सामने पड़ी प्लेट मे देसी घी के पराठे पड़े थे। जिसे वो बहुत चाव से खा रहा था। और मालती अमन को ही गौर से देख रही थीं, की संध्या कितने प्यार से अमन को अपने हाथों से खिला रही थीं।
अमन --"बस करो ना बड़ी मां, अब नहीं खाया जाता, मेरा पेट भर गया हैं।"
संध्या --"बस बेटा, ये आखिरी पराठा, हैं। खा ले।"
अमन ने किसी तरह वो पराठा खाया, मालती अभि भी उन दोनो को ही देख रही थीं कि तभी उसे पुरानी बात याद आई।
जब एक दिन इसी तरह से सब नाश्ता कर रहे थे, अभय भी नाश्ता करते हुऐ गपागप ४ पराठे खा चुका था और पांचवा पराठा खाने के लिऐ मांग रहा था तब
संध्या – (पराठा देते हुऐ अभय से बोली) और कितना खायेगा तेरा तो पेट नहीं भर रहा हैं।
अभय –(हस्ते हुए) तेरे हाथ के पराठे जितने खाऊं पेट तो भर जाता है लेकिन दिल नही भरता
वो दृश्य और आज के दृश्य से मालती किस बात का अनुमान लगा रही थीं ये तो नहीं पता, पर तभी संध्या की नज़रे भी मालती पर पड़ती हैं तो पाती हैं की, मालती उसे और अमन को ही देख रही थीं।
मालती को इस तरह दिखते हुऐ संध्या बोल पड़ी...
संध्या --"तू ऐसे क्या देख रही हैं मालती? नज़र लगाएगी क्या मेरे बेटे को?
संध्या की बात मालती के दिल मे चुभ सी गई,और फिर अचानक ही बोल पड़ी।
मालती --"नहीं दीदी बस पुरानी बातें याद आ गई थीं, अभय की।
और कहते हुऐ मालती अपने कमरे में चली जाती है। संध्या मालती को जाते हुऐ वही खड़ी देखती रहती है......
मालती के जाते ही, संध्या भी अपने कमरे में चली गई। संध्या गुम सूम सी अपने बेड पर बैठी थीं, उसे अजीब सी बेचैनी हो रही थीं। वो मालती की कही हुई बात पर गौर करने लगी। वो उस दीन को याद करने लगी जब उसने अभय की जम कर पिटाई की थीं। उस दीन हवेली के नौकर भी अभय की पिटाई देख कर सहम गए थे।
बात कुछ यूं थीं की, रमन हवेली में लहू लुहान हो कर अपना सर पकड़े पहुंचा। संध्या उस समय हवेली के हॉल में ही बैठी थीं। संध्या ने जब देखा की रमन के सर से खून बह रहा है, और रमन अपने सर को हाथों से पकड़ा है, तो संध्या घबरा गई। और सोफे पर से उठते हुऐ बोली...
संध्या --" ये...ये क्या हुआ तुम्हे? सर पर चोट कैसे लग गई?
बोलते हुऐ संध्या ने नौकर को आवाज लगाई और डॉक्टर को बुलाने के लिऐ बोली....
संध्या की बात सुनकर रमन कुछ नहीं बोला, बस अपने खून से सने हांथ को सर पर रखे कराह रहा था। रमन को यूं ख़ामोश दर्द में करहता देख, संध्या गुस्से में बोली....
संध्या --"मैं कुछ पूंछ रही हूं तुमसे? कैसे हुआ ये?
"अरे ये क्या बताएंगे बड़ी ठाकुराइन, मैं बताता हूं..."
इस अनजानी आवाज़ ने सांध्य का ध्यान खींचा, तो पाई सामने मुनीम खड़ा था। मुनीम को देख कर रमन गुस्से में चिल्लाया....
रमन --"मुनीम जी, आप जाओ यहां से, कुछ नहीं हुआ है भाभी। ये बस मेरी गलती की वजह से ही अनजाने में लग गया।"
"नहीं बड़ी ठाकुराइन, झूंठ बोल रहे है छोटे मालिक। ये तो आपके...."
रमन --"मुनीम जी... मैने कहा ना आप जाओ।
रमन ने मुनीम की बात बीच में ही काटते हुऐ बोला। मगर इस बार सांध्या ने जोर देते हुऐ कहा....
संध्या --"मुनीम जी, बात क्या है... साफ - साफ बताओ मुझे?"
संध्या की बात सुनकर, मुनीम बिना देरी के बोल पड़ा....
मुनीम --"वो... बड़ी ठाकुराइन, छोटे मालिक का सर अभय बाबा ने पत्थर मार कर फोड़ दीया।"
ये सुनकर संध्या गुस्से में लाल हो गई.…
संध्या --"अभय ने!! पर वो ऐसा क्यूं करेगा?"
मुनीम --"अब क्या बताऊं बड़ी ठाकुराइन, छोटे मालिक और मै बाग की तरफ़ जा रहे थे, तो देखा अभय बाबा गांव के नीच जाति के बच्चों के साथ खेल-कूद कर रहे थे। पता नहीं कौन थे चमार थे, केवट था या पता नहीं कौन से जाति के थे वो बच्चे। यही देख कर छोटे मालिक ने अभय को डाट दिया, ये कहते हुऐ की अपनी बराबरी के जाति वालों के बच्चों के साथ खेलो, हवेली का नाम मत खराब करो। ये सुन कर अभय बाबा, छोटे मालिक से जुबान लड़ाते हुए बोले
अभय – ये सब मेरे दोस्त है, और दोस्ती जात पात नहीं देखती, अगर इनसे दोस्ती करके इनके साथ खेलने में हवेली का नाम खराब होता है तो हो जाए, मुझे कुछ फरक नहीं पड़ता।"
संध्या --"फिर क्या हुआ?
मुनीम --"फिर क्या बड़ी मालकिन, छोटे मालिक ने अभय बाबा से कहा की, अगर भाभी को पता चला तो तेरी खैर नहीं, तो इस पर अभय बाबा ने कहा, अरे वो तो बकलोल है, दिमाग नाम का चीज़ तो है ही नहीं मेरी मां में, वो क्या बोलेगी, ज्यादा से ज्यादा दो चार थप्पड़ मारेगी और क्या, पर तेरा सर तो मै अभी फोडूंगा। और कहते हुऐ अभय बाबा ने जमीन पर पड़ा पत्थर उठा कर छोटे मालिक को दे मारा, और वहां से भाग गए।"
मुनीम की बात सुनकर तो मानो सांध्य का पारा चरम पर था, गुस्से मे आपने दांत की किटकिती बजाते हुऐ बोली...
सांध्य --"बच्चा समझ कर, मैं उसे हर बार नज़र अंदाज़ करते गई। पर अब तो उसके अंदर बड़े छोटे की कद्र भी खत्म होती जा रही है। आज रमन का सर फोड़ा है, और मेरे बारे में भी बुरा भला बोलने लगा है, हद से ज्यादा ही बिगड़ता जा रहा है, आने दो उसे आज बताती हूं की, मैं कितनी बड़ी बकलोल हूं..."
.... भाभी, भाभी... कहां हो तुम, अंदर हों क्या?
इस आवाज़ ने, सांध्य को भूत काल की यादों से वर्तमान की धरती पर ला पटका, अपनी नम हो चुकी आंखो के कोने से छलक पड़े आंसू के कतरों को अपनी हथेली से पोछते हुऐ, सुर्ख पड़ चुकी आवाज़ में बोली...
सांध्य --"हां, अंदर ही हूं।"
बोलते हुऐ वो दरवाज़े की तरफ़ देखने लगी... कमरे में रमन दाखिल हुआ, और संध्या के करीब आते हुऐ बेड पर उसके बगल में बैठते हुऐ बोला।
रमन --"भाभी, मैने सोचा है की, गांव में पिता जी के नाम से एक डिग्री कॉलेज बनवा जाए, अब देखो ना यहां से शहर काफी दूर है, आस - पास के कई गांव के विद्यार्थी को दूर शहरों में जाकर पढ़ाई करनी पड़ती है। अगर हमने अपना डिग्री कॉलेज बनवा कर मान्यता हंसील कर ली, तो विद्यार्थियों को पढ़ाई में आसानी हो जाएंगी।"
रमन की बात सुनते हुऐ, सांध्य बोली.....
संध्या --"ये तो बहुत अच्छी बात है, तुम्हारे बड़े भैया की भी यही ख्वाहिश थीं, वो अभय के नाम पर डिग्री कॉलेज बनाना चाहते थे, पर अब तो अभय रहा ही नहीं, बनवा दो अभय के नाम से ही... वो नहीं कम।से कम मेरे बच्चे का नाम तो रहेगा।"
रमन --"ओ... हो भाभी, तो पहले ही बताना चाहिए था, मैने तो मान्यता लेने वाले फॉर्म पर पिता जी के नाम से भर कर अप्लाई कर दिया। ठीक हैं मैं मुनीम से कह कर चेंज करवाने की कोशिश करूंगा।"
रमन की बात सुनकर संध्या ने कहा...
संध्या --"नहीं ठीक है, रहने दो। पिता जी का नाम भी ठीक है।"
रमन --"ठीक है भाभी, जैसा तुम कहो।"
और ये कह कर रमन जाने लगा तभी... सन्ध्या ने रमन को रोकते हुऐ....
संध्या --"अ... रमन।"
रमन रुकते हुऐ, संध्या की तरफ़ पलटते हुऐ...
रमन --"हां भाभी।"
संध्या --"एक बात पूंछू??"
संध्या की ठहरी और गहरी आवाज़ में ये बात सुनकर रमन एक पल के लिऐ सोच की उलझन में उलझते हुऐ, उलझे हुऐ स्वर मे बोला...
संध्या --"क्या उस रात अभय ने तुम्हे मेरे कमरे में आते देखा था ?
संध्या की ये बात सुन के रमन हड़बड़ा गया उसे हैरानी होने लगी की इतने साल के बाद आज संध्या ऐसी बात क्यों पूछ रही है
रमान -- (अपना थूक निगलते हुए) म..मु..मुझे नहीं लगता भाभी , अभय ने देखा होगा , वैसे भी वो तो 9 साल का बच्चा था भाभी, उसे भला कैसे पता चलेगा? पर आज इतने सालों बाद क्यूं?"
संध्या अपनी गहरी और करुण्डता भरे लहज़े में बोली...
संध्या – उस मनहूस रात के बाद ना जाने क्यूं , मुझे बेचैनी सी होती रहती है, ऐसा लगता है की मेरा दिल भटक रहा है किसी के लिऐ, मुझे पता है की मेरा दिल मेरे अभय के लिऐ भटकता रहता है, मैं खुद से ही अंदर अंदर लड़ती रहती हूं, रात भर रोती रहती हूं, सोचती हूं की मेरा अभय कही से आ जाए बस, ताकी मैं उसे बता सकूं की मैं उससे कितना प्यार करती हूं, माना की मैने बहुत गलतियां की हैं, मैंने उसे जानवरों की तरह पीटा, पर ये सब सिर्फ़ गुस्से में आकर। मुझसे बहुत बड़ी गलती हो गई, मैं ये ख़ुद को नहीं समझा पा रही हूं, उसे कैसे समझाती। मैं थक गई हूं, जिंदगी बेरंग सी लगने लगी हैं। हर पल उसे भुलाने की कोशिश करती हूं, लेकिन मेरा दिल मुझसे हर बार कहता है की, मेरा अभय आएगा एक दिन जरूर आएगा तू इंतजार कर ? (रोते हुए) हे भगवान क्या करूं? कहां जाऊं? कोई तो राह दिखा दे तू ? नही तो मेरे अभय को वापस भेज दे मेरे पास
कहते हुऐ सन्ध्या फिर रोने लगती है...!
अब रो कर कुछ हासिल नहीं होगा दीदी,"
इस आवाज को सुन रमन और संध्या ने नज़र उठा कर देखा तो सामने मालती खड़ी थीं, संध्या रुवांसी आंखो से मालती की तरफ़ देखते हुऐ थोड़ी चेहरे बेबसी की मुस्कान लाती हुई संध्या मालती से बोली...
संध्या --"एक मां को जब, उसके ही बेटे के लिऐ कोई ताना मारे तो उस मां पर क्या बीतती है, वो एक मां ही समझ सकती है।"
संध्या की बात मालती समझ गई थीं की सन्ध्या का इशारा आज सुबह नाश्ता करते हुऐ उसकी कही हुई बात की तरफ़ थीं
मालती --"अच्छा! तो दीदी आप ताना मारने का बदला ताना मार कर ही ले रही है।"
संध्या को बात भी मालती की बात समझते देरी नहीं लगी, और झट से छटपटाते हुऐ बोली...
संध्या --"नहीं... नहीं, भगवान के लिऐ तू ऐसा ना समझ की, मैं तुझे ताना मार रही हूं। तेरी बात बिलकुल ठीक थीं, मैने कभी अपने अभय को ज्यादा खाना खाने पर ताना मारी थीं, मेरी मति मारी गई थीं, बुद्धि भ्रष्ट हो गई थीं, इस लिऐ ऐसे शब्द मुंह से निकल रहे थे।"
मालती चुप चाप खड़ी संध्या की बात सुनते हुऐ भावुक हो चली आवाज़ मे बोली...
मालती --"भगवान ने मुझे मां बनने का सौभाग्य तो नहीं दीया, पर हां इतना तो पता है दीदी की, बुद्धि हीन मां हो चाहे मति मारी गई मां हो, पागल मां हो चाहे शैतान की ही मां क्यूं ना हो... अपने बच्चे को हर स्थिति में सिर्फ प्यार ही करती है।"
कहते हुऐ मालती रोते हुए अपने कमरे से चली जाति है... और इधर मालती की बातें संध्या को अंदर ही अंदर एक बदचलन मां की उपाधि के तख्ते पर बिठा गई थीं, जो संध्या बर्दाश्त नहीं कर पाई।।
और जोर - जोर से उस कमरे में इस तरह चिल्लाने लगी जैसे पागल खाने में पागल व्यक्ति...
संध्या – ..... हां.... हां मैं एक गिरी हुई औरत हूं, यही सुनना चाहती है ना तू, लेकिन एक बात सुन ले तू भी, मेरे बेटे को मुझसे ज्यादा कोई प्यार नहीं कर सकता है इस दुनिया में...
मालती – अब क्या फ़ायदा दीदी, अब तो प्यार करने वाला रहा ही नहीं... फिर किसको सुना रही हो?"
चिल्लाती हुई संध्या की बात सुनकर मालती भी चिल्लाकर कमरे से बाहर निकलते हुई बोली और फिर वो भी नम आंखों के साथ अपने कमरे में चली गई....इस बीच इन सब बातो के चलते रमन को वहा रुकना खतरे से खाली न लगा इसीलिए चुप चाप कमरे से पहले ही निकल गया रमन
संध्या रोते रोते जाने लगी अपने कमरे की तरफ लेकिन तभी अपने कमरे में ना जाके अभय के कमरे की तरफ चली गई अभय के कमरे को गौर से देखने लगी तभी संध्या की नजर टेबल पर पड़ी जहा अभय पढ़ाई करता था टेबल में रखी अभय की स्कूल की किताबो को देख इसे टेबल की दराज में रखने के दराज को खोलते ही संध्या की नजर पेंटिंग पर पड़ी उसे दराज से नकलते ही संध्या पेंटिंग को देखने लगी हर पेंटिंग के नीचे कुछ लाइनें लिखी थी अभय ने
1 = पेंटिंग
रिश्तों की इस किताब में, माँ-बाप का पन्ना सबसे खास,
उनके बिना ज़िंदगी लगे बिल्कुल उदास।
वो छांव हैं, तपते सूरज में आराम जैसे,
माँ की वो एक नजर, और पापा का वो एक नाम जैसे।
2 = पेंटिंग
ज़िन्दगी में मां बाप के सिवा कोई अपना नहीं होता,
टूट जाए ख्वाब तो सपना पूरा नहीं होता,
ज़िंदगी भर पूजा करूगा अपने मां बाप की ,
क्यों की मां बाप से बड़ा भगवान नहीं होता।
3 = पेंटिंग
तेरे साथ गुजरे लम्हे ही तो
अब मेरे जीने का सहारा है
तुझे कैसे बताऊं बाबा
तेरी यादों का हमें हर हिस्सा प्यारा है बाबा
4 = पेंटिंग
माता पिता के बिना दुनिया की हर चीज कोरी हैं, दुनिया का सबसे सुंदर संगीत मेरी माँ की लोरी हैं..!!
5 = पेंटिंग
जिस के होने से मैं खुद को मुक्कम्मल मानता हूँ, मेरे पिता के बाद मैं बस अपने माँ को जानता हूँ..!!
6 = पेंटिंग
दिल में दर्द सा होता है आँखें ये भर-भर जाती हैं, माँ तेरे साथ बिताये पलों की यादें मुझे जब जब आती हैं।
अभय की बनाई आखरी तस्वीर में सूखे हुए आसू का कतरा देख समझ गई संध्या की तस्वीर बनाते वक्त अभय रो रहा था साथ उसमे लिखी कविता को पड़ के संध्या जमीन में बैठ तस्वीरों को अपने सीने से लगाए रोते रोते बोलने लगी
संध्या – लौट आ लौट आ मेरे बच्चे , तेरी मां तेरे बिना बिल्कुल अधूरी हो गई है , तू जो सजा दे दे सब मंजूर है मुझे , बस एक बार तू लौट के आजा अभय , तुझे कबी नही रोकूगी चाहे कुछ भी कर तू
रोते रोते संध्या जमीन में सो गईं
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Thank you sooo much Neerav bhaiMsst bhai
Kya story me incest part bhi aye ga? Ya ese hi chlti rhe gi?
Thank you sooo dev61901 bhaiKatai nahi
Thank you sooo much mydarlingdhanSuperb fantastic story fabulous