अपडेट 39
रूचि सिहर गई!
‘बाप रे!’ रूचि ने सोचा, ‘ऐसा भी कोई करता है क्या!’
“अ...जय...” उसने प्रत्यक्षतः किसी तरह कहा।
“डरो नहीं रूचि! मैं कुछ ऐसा वैसा नहीं करूँगा...”
हाँ... इतना विश्वास तो था ही रूचि को अजय पर!
रूचि ने हथियार डाल दिए।
आप हर बात कण्ट्रोल नहीं कर सकते। अजय को अपने स्तन दिखाना... महसूस करवाना उसके स्वयं के नियंत्रण में था। लेकिन उसके बाद अजय का क्या हाल होगा, उस दृश्य का उस पर क्या प्रभाव होगा, वो उसको नग्न देख कर क्या क्या करेगा, रूचि उन बातों को कण्ट्रोल नहीं कर सकती थी। वो यह बात समझती थी। लेकिन वो चाहती थी कि यह सब ‘तनावपूर्ण’ बातें उन दोनों के सिस्टम से निकल जाए, और वो दोनों आगे सामान्य से हो कर, घनिष्ठ मित्रों... नहीं, प्रेमियों की तरह रह सकें!
ख़ैर...
अजय ने उसके योनि मुख को थोड़ा सा खोला... क्या देखा उसने, केवल वो ही बता सकता है। लेकिन फिर उसने अंत में उसकी योनि के मुख को चूमा और फिर मुस्कुराते हुए उठ बैठा।
“रूचि?” उसने कहा।
“हम्म?”
“कितनी छोटी सी है ये यार...!”
“क्या?”
“तुम्हारी...” अजय ‘चूत’ शब्द बोलना चाहता था, लेकिन वो ठहर गया।
रूचि एक संभ्रांत परिवार की लड़की थी, और शायद ऐसे शब्द सुन कर वो बुरा मान जाए! गाली गलौज वाली भाषा शायद ही कोई लड़की पसंद करती हो, ख़ास कर ऐसे अंतरंग और रोमांटिक माहौल के समय!
उसने दो तीन पल सोचा और कहा, “... तुम्हारी छोटी बहन!”
उसकी बात सुन कर रूचि बिना आवाज़ के हँसने लगी, और उसकी हँसी के साथ उसके स्तन बड़े ही क्यूट तरीके से हिलने लगे। उसके साथ ही अजय का दिल भी! लेकिन किसी तरह उसने स्वयं पर नियंत्रण किया।
“और क्या! देखो न... कितनी छोटू सी है! ‘ये’ इसके अंदर जा ही नहीं पाएगा...”
“क्या?” रूचि ने पूछा, “क्या नहीं जा पायेगा?”
“ये!” कह कर अजय घुटनों के बल हो कर बैठ गया।
उसने कब अपनी पैन्ट्स की ज़िप खोल कर अपने लिंग को बाहर निकाल लिया था, रूचि को पता नहीं चला था। लेकिन इस समय उसके सामने अजय का स्तंभित लिंग प्रदर्शित था... केवल लिंग। रूचि को उस दिन की बात याद आ गई, जब उसने अजय को हस्त-मैथुन करते देख लिया था।
रूचि ने देखा - हाँ, यह एक स्वस्थ और मज़बूत लिंग लग रहा था! उत्सुकतावश उसने अजय का लिंग पकड़ा - कठोर... लेकिन मुलायम भी! तना हुआ, लेकिन उसकी त्वचा में एक ढीलापन भी! और... गर्म! कैसा विरोधाभास लिया हुआ अंग है ये! और उसकी मोटाई उसकी अपनी कलाई से भी अधिक! एक स्वस्थ और मज़बूत अंग! उसको इस अंग का क्या और कैसे इस्तेमाल होता है, अच्छे से पता था। लेकिन,
“इसको मेरे अंदर क्यों जाना है?” उसने भोलेपन से पूछा।
“आज नहीं,” अजय ने समझाते हुए कहा, “लेकिन जब हमारी शादी होगी, तब तो जायेगा न?”
“क्यों?” रूचि ने उसको छेड़ते हुए कहा, “हम्म? हम्म?”
“अरे! हस्बैंड वाइफ करते हैं न सेक्स...”
“अच्छा जी! तो आपको मेरे साथ सेक्स भी करना है!” रूचि ने उसको छेड़ा, “उंगली क्या पकड़ाई, आपको अब तो कलाई भी पकड़नी है! क्यों? हम्म?”
“कलाई नहीं,” अजय ने शिष्टता से कहा, “तुम्हारा हाथ थामने का इरादा है! उम्र भर के लिए!”
सुन कर रूचि के दिल को संतोष हो आया।
बालपन भोला होता है। अनावश्यक बातों के लिए उसमें समय नहीं होता। सामाजिक जटिलताओं की समझ नहीं होती और न ही उनकी आवश्यकता ही होती है। इसीलिए कहते हैं, कि बचपन की मोहब्बत सरल और सच्ची होती है।
“थामोगे हाथ मेरा?”
“हाँ... हमेशा के लिए।” अजय बोला।
“तुम मुझसे शादी भी करोगे?”
“हाँ! और नहीं तो कैसे? ... तभी तो हमारे बेबीज़ होंगे!” अजय ने उम्मीद भरे अंदाज़ में कहा, “मुझसे बेबीज़ करोगी न?”
अजय ने जान-बूझ कर ऐसी बात करी कि उन दोनों के बीच उम्र का भोलापन बना रहे।
रूचि उसकी इस बात पर मुस्कुरा दी,
“अज्जू... मैंने अभी तक इस बारे में कुछ सोचा नहीं!” उसने कहा, “कुछ दिनों पहले तक तो बेबीज़ के पापा का ही पता नहीं था मुझको,”
कह कर वो हँसने लगी। अजय भी उसके साथ ही हँसने लगा।
“तो वो सर्च ख़तम हुई?”
“हाँ,” रूचि इस बात पर शर्मा गई, “... लगता तो है!”
“गुड!” अजय संतुष्ट हो कर बोला, “तुम माँ को और पापा को बहुत पसंद हो!”
“सच में?”
अजय ने ‘हाँ’ में सर हिलाया।
“अज्जू...” रूचि ने बड़े प्यार से पूछा, “तुमको चाहिए बेबीज़?”
उसको अपने अजन्मे बच्चे की याद हो आई, जिसको रागिनी ने गिरा दिया था। दिल में एक टीस सी उठ गई।
“हाँ...” उसने सामान्य आवाज़ रखते हुए कहा, “किसका मन नहीं होता पापा बनने का?”
वो मुस्कुराई, “अच्छा! कितने?”
“तीन चार...”
“चार! बाप रे,”
“और क्या! इतना बड़ा घर है... खूब सारे बच्चे होंगे तो अच्छा लगेगा न... चहल पहल बनी रहेगी,”
अजय की इस बात पर रूचि ने अपनी उँगलियाँ अजय के बालों में उलझा दीं, और बड़े प्यार से बोली, “हो जाता है सब।”
“क्या?” अजय समझ नहीं पाया कि रूचि ने यह किस बात पर कहा।
“तुम्हारा ‘ये’...” रूचि ने जिस हाथ में अजय का लिंग पकड़ा हुआ था, उसको लिंग पर पकड़े हुए ही हिलाया, “छोटा भाई... मेरी छोटी बहन में आ जाएगा, जब ज़रुरत होगी,”
“तुमको कैसे पता?”
“मम्मी ने बताया था...”
उसके इस रहस्योद्घाटन पर अजय ने उत्सुकतापूर्वक अपनी त्यौरी चढ़ाई।
रूचि बोलती रही, “एक दिन मैंने उनको बताया कि मैंने इसमें अपनी फोरफिंगर डालने की कोशिश करी... लेकिन वो मुश्किल से अंदर जा पा रही थी! ... तो उन्होंने मुझे सेक्स के बारे में समझाया... और यह भी समझाया कि हस्बैंड वाइफ को चाहिए कि वो एक दूसरे को खूब प्यार करें... तब सब हो जाता है।”
“सच में?” अजय ने खुश होते हुए कहा।
रूचि ने मुस्कुराते हुए ‘हाँ’ में सर हिलाया।
“नाइस...” कह कर अजय ने अपने लिंग को रूचि की योनि के होंठों से सटा दिया।
“क्या कर रहे हो?” रूचि ने चिहुँकते हुए कहा।
“मेरा छोटा भाई, तुम्हारी छोटी बहन को पप्पी ले रहा है,”
अंतरंग क्षणों में ऐसी हँसोड़ बातें!
“अज्जू... तुम बहुत भोलू हो!” रूचि को उसकी बात पर हँसी आ गई।
एक दूसरे के सामने नग्न हो कर ऐसे हँसी मज़ाक करना... अब उसके लिए अजय के सामने नग्न होना कोई ऐसी बड़ी... तनाव वाली बात नहीं रह गई थी। अच्छा हुआ कि यह उनके सिस्टम से बाहर निकल गया। अजय अब उसके बराबर आ कर लेट गया और उसने वापस अपने होठों को उसके चूचक पर रख दिया... और धीरे-धीरे, बड़े प्यार से, उसके स्तनों के अदृश्य रस को फिर से चूसने लगा।
“अज्जू बेटे,” अचानक ही नीचे से माँ की आवाज़ आई।
वो चौंक कर रूचि के सीने से अलग हुआ।
“हाँ माँ?” उसने ऊँची आवाज़ में उत्तर दिया।
“बेटे नीचे आओ! भाई साहब और बहन जी जाने वाले हैं!”
“ठीक है माँ,” उसने अनिच्छा से कहा, “बस पाँच से दस मिनट में आते हैं माँ!”
कह कर अजय ने रूचि को अपने आलिंगन में खींचा, और उसके होंठों पर अपने होठों को रख कर उसे अपने आगोश में भर लिया। आज उनके बीच की दूरी मिट चुकी थी, और वे बस एक-दूसरे के एहसास में डूब चुके थे।
“तुम मेरे लिए कितनी खास हो रूचि… शायद मैं तुमको समझा न पाऊँ,” अजय ने उसकी आँखों में देखते हुए कहा।
रूचि ने हल्की मुस्कान के साथ उसकी आँखों को अपने होठों से छुआ और धीरे से उसकी बाहों में समा गई,
“तुम भी अज्जू...” वो बोली, “तुम भी मेरे लिए सबसे ख़ास हो! सबसे स्पेशल!”
फिर कुछ पलों बाद रूचि ने उसको याद दिलाया कि उन दोनों को नीचे बुलाया जा रहा है।
बड़ी अनिच्छा से दोनों अलग हुए। अजय उठ कर रूचि के कपड़े उठा लाया। उसी दौरान उसने उसके अधोवस्त्रों से उसके शरीर की माप को समझ लिया। रूचि ने भी देखा कि वो बड़ी चालाकी से उसकी ब्रा और पैंटी के लेबल को पढ़ रहा है, लेकिन उसने कुछ कहा नहीं। बस मुस्कुरा कर रह गई। अपनी प्रेमिका के बारे में इस तरह की अंतरंग उत्सुकता रखने में कोई बुराई नहीं है... पापा भी तो माँ के बारे में सब जानते हैं! वो भी उनकी ब्रा पैंटीज़ खरीदते ही हैं। तो अगर अजय भी उसके बारे में जानता है, तो कोई बुराई नहीं।
बाहर निकलने से पहले अजय ने कहा, “रूचि, थैंक यू! आज मैं बहुत खुश हूँ!”
“मैं भी,”
“हम आगे भी प्यार करेंगे...” उसने जब ये कहा तो रूचि कुछ कहने को हुई... लेकिन उसकी बात काट कर अजय ने तेजी से कहा, “लेकिन आई प्रॉमिस, कि हमारी पढ़ाई लिखाई, और ऍप्लिकेशन्स पर कोई बुरा इफ़ेक्ट नहीं आएगा!”
वो संतोषपूर्वक मुस्कुराई, “पक्का?”
अजय ने ‘हाँ’ में सर हिलाते हुए कहा, “हमको साथ में आगे बढ़ना है न!”
रूचि मुस्कुराई, और अजय के होंठों को चूम कर बोली, “हाँ!”
थोड़ी देर में रूचि वापस तैयार हो गई और दोनों बाहर आ गए।
अजय का कमरा अब भी उसी मद्धम रौशनी में डूबा हुआ था... वहाँ की हवा में दोनों के प्यार के एहसास की महक घुल गई थी।
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