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Romance फ़िर से

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avsji

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दोस्तों - इस अपडेट सूची को स्टिकी पोस्ट बना रहा हूँ!
लेकिन इसका यह मतलब नहीं कि केवल पढ़ कर निकल लें। यह केवल आपकी सुविधा के लिए है। चर्चा बंद नहीं होनी चाहिए :)

अपडेट 1; अपडेट 2; अपडेट 3; अपडेट 4; अपडेट 5; अपडेट 6; अपडेट 7; अपडेट 8; अपडेट 9; अपडेट 10; अपडेट 11; अपडेट 12; अपडेट 13; अपडेट 14; अपडेट 15; अपडेट 16; अपडेट 17; अपडेट 18; अपडेट 19; अपडेट 20; अपडेट 21; अपडेट 22; अपडेट 23; अपडेट 24; अपडेट 25; अपडेट 26; अपडेट 27; अपडेट 28; अपडेट 29; अपडेट 30; अपडेट 31; अपडेट 32; अपडेट 33; अपडेट 34; अपडेट 35; अपडेट 36; अपडेट 37; अपडेट 38; अपडेट 39; अपडेट 40; अपडेट 41; अपडेट 42; अपडेट 43; अपडेट 44; अपडेट 45; अपडेट 46; अपडेट 47; अपडेट 48; अपडेट 49; अपडेट 50; अपडेट 51; अपडेट 52; अपडेट 53; अपडेट 54; अपडेट 55; अपडेट56; अपडेट57; अपडेट 58; अपडेट 59; अपडेट 60; अपडेट 61; अपडेट 62; अपडेट 63; अपडेट 64; अपडेट 65; अपडेट 66;
 
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Rihanna

Don't get too close dear, you may burn yourself up
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माया ‘दीदी’ अजय से कोई पाँच साल बड़ी थीं।

वो उसकी सगी दीदी नहीं थीं।

माया दीदी की माँ एक नटिन थीं, और उनके पिता का कोई ठिकाना या कोई ज्ञान नहीं था किसी को। अजय के माता पिता अक्सर सड़क पर माया और उनकी माँ को नटों वाला खेल तमाशे दिखाते हुए देखते थे। अनेकों खेल तमाशे - जैसे कलाबाज़ियाँ दिखाना, आग के वृत्त में से कूद फाँद करना, मुँह से ही किसी बेढब चीज़ को सम्हालना, एक छोटे से पहिए पर बैलेंस बनाना इत्यादि! एक बार अचानक ही वो दोनों सड़क पर दिखने बंद हो गए, तो उनको लगा कि शायद नटों का डेरा उठ गया वहाँ से। लेकिन कुछ दिनों बाद उनको फिर से माया दिखी। पूछने पर माया से ही उनको पता चला कि कोई सप्ताह भर पहले रस्सी पर चलने वाला तमाशा दिखाते हुए माया की माँ कोई चौदह फुट की ऊंचाई नीचे गिर गईं। और कोई चोट होती तो कोई बात नहीं थी, लेकिन बदकिस्मती ऐसी कि वो सर के बल गिरीं, और उस दुर्घटना में उनकी गर्दन टूट गई।

एक अकेली, निःसहाय, लेकिन जवान लड़की की इस समाज में क्या दुर्दशा हो सकती है, यह सभी जानते हैं! कोई बड़ी बात नहीं थी कि कल वो वेश्यावृत्ति के काले संसार में फंस जाती! और न जाने क्या आकर्षण हुआ अजय के माता पिता को माया से कि वो उसको अकेली न छोड़ सके। इसलिए अजय के माता पिता, माया को अपने घर लिवा लाए। वो एक समय था और आज का समय है - माया इस परिवार का अभिन्न अंग बन गई थी। अवश्य ही वो कानूनी तौर पर उनकी पुत्री न बन सकीं, लेकिन शीघ्र ही वो हर मायनों में उनकी पुत्री अवश्य बन गईं।

अजय के माता पिता चाहते थे कि अजय की ही भाँति वो भी पढ़ लिख सके, लेकिन एक उम्र हो जाने पर कुछ लोगों को पढ़ने लिखने का मन नहीं करता। बहुत सी बाधाएँ आ जाती हैं। माया के साथ भी यही हुआ। उसको स्कूली ड्रेस पहन कर स्कूल जाना अखरता। वैसे भी एक सयानी लड़की अगर नौवीं दसवीं की क्लास में बैठे, तो उसको तो उसको, उसके सहपाठियों को भी अजीब लगता। सब उसको ‘दीदी’ कहते - आदर से नहीं, चिढ़ाने के लिए! तो इस तरह कुछ दिन स्कूल में पढ़ने की असफल कोशिश करने के बाद, एक दिन उन्होंने ‘अपने’ माता पिता से कह दिया कि वो स्कूल नहीं जाना चाहतीं। हाँ, पढ़ना अवश्य चाहती हैं। इसलिए घर पर ही रह कर जो पढ़ाई लिखाई हो सके, वो करने को तत्पर हैं... और बस उतना ही करना चाहती हैं।

लेकिन उनकी इच्छा गृहकार्य में निपुण होने की थी, जिससे वो अपने आश्रयदाताओं की देखभाल कर सकें। यह भी ठीक था। अधिक समय नहीं लगा कि माया दीदी को घर के लगभग हर काम करने में निपुणता हासिल हो गई। भिन्न भिन्न प्रकार के भोजन पकाना, घर को ठीक तरीके से सहेज कर रखना, घर की साज-सज्जा, और बाहर पौधों की देखभाल करना इत्यादि उनको बखूबी आ गया था। और इन पाँच सालों में पहले तो अजय की माँ प्रियंका, और फिर बाद में केवल उसकी ताई माँ किरण ने होम-स्कूलिंग कर के माया को प्राईवेट से हाई स्कूल और इण्टर दोनों पास करवा दिया।

माया के लिए पूर्व में यह मुक़ाम हासिल कर पाना भी लगभग असंभव था। पढ़ना लिखना एक काम होता है, लेकिन एक स्वस्थ सुरक्षित जीवन जी पाना अलग! उसको पहले यकीन ही नहीं हुआ कि कोई संभ्रांत परिवार उसको यूँ अपना सकता है। उसको पहले पहले लगता था कि अगर और कुछ नहीं तो वो इस घर की नौकरानी बनेगी। वो भी उसके लिए कोई खराब स्थिति नहीं थी। जिस तरह से उसका रहन सहन था, और जिस जिस तरह के लोगों से उसका पाला पड़ता था, उसके हिसाब से किसी बड़े घर की नौकरानी बनना एक अच्छी बात थी। कभी कभी उसको शक़ भी होता कि कहीं घर के दोनों मर्द (अजय के ताऊ जी, अनामि, और उसके पिता जी, अशोक) उसके साथ कुछ करना तो नहीं चाहते, लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं हुआ। उल्टा, दोनों ही उसको बड़े प्रेम से, बड़े आदर से, और अपनी बेटी समान ही रखते।

शीघ्र ही परिवार के शुद्ध प्रेम ने माया की शंकाओं पर विजय प्राप्त कर ली।

लेकिन सभी से इतर, अजय को माया से अलग ही प्रकार की चिढ़ थी।

बहुत से कारण थे इस बात के। एक तो यह कि अचानक से घर का एकलौता पुत्र होने का आनंद माया के आने के कारण कम हो गया था। लोग उस पर कम और माया पर अधिक ध्यान देते - हाँलाकि यह बात पूरी तरह से गलत थी, लेकिन एक बारह साल का लड़का और क्या सोचे? दूसरा कारण यह था कि उसको अब अपना कमरा माया के साथ शेयर करना पड़ता। घर में पाँच कमरे थे - बाहर के नौकर या चौकीदार का कमरा छोड़ कर। एक एक कमरा तो मम्मी-पापा और ताऊ जी और ताई जी का था। एक कमरा प्रशांत भैया का और एक कमरा अजय का। एक कमरा गेस्ट्स के लिए था। ऊपर नीचे दो हॉल थे, और एक डाइनिंग हाल था। प्रशांत भैया - अजय के चचेरे बड़े भाई और अनामि और किरण जी के एकलौते बेटे - ने अभी अभी इंजीनियरिंग की पढ़ाई शुरू करी थी, और उनका जीवन थोड़ा अलग हो गया था। लेकिन फिर भी वो अपना कमरा छोड़ने वाले नहीं थे। उनको बहुत गुस्सा आता अगर कोई उनके कमरे में प्रविष्ट भी होता तो! गेस्ट रूम में माया को रखा नहीं जा सकता था। लिहाज़ा, ले दे कर एक अजय का ही कमरा शेष था। इसलिए अपना कमरा शेयर करने की मजबूरी से उसको माया से और भी चिढ़न महसूस होती।

माया की ऐसी कोई इच्छा नहीं थी कि वो अजय के ‘क्षेत्र’ में अतिक्रमण करे। वो अपने सर पर एक छत्र-छाया पा कर ही धन्य हो गई थी। वो अजय के कमरे में, उससे दूर ज़मीन पर सोती - हाँलाकि प्रियंका जी और किरण जी ने उसको अजय के साथ ही सोने को कहा था। फिर भी अजय की चिढ़न कम नहीं हुई। कुछ दिन तो ऐसे ही चला, लेकिन एक दिन माया से एक गुनाह-ए-अज़ीम हो गया। शायद उसने अजय की किसी पसंदीदा वस्तु को छू लिया। मारे गुस्से के अजय ने माया के एक स्तन पर इतनी ज़ोर से दबाया (चिकोटी काटी) कि दर्द के मारे उस बेचारी की आँखों से आँसू निकल गए। शरीर पर लगी चोट बर्दाश्त हो भी जाती है, लेकिन जो चोट मन पर लगती है, उसका निदान आसान नहीं। बेचारी कोमल हृदय वाली माया अगले कई दिनों तक अपने आपको कोसती रही और सोचती रही कि वो ऐसा क्या करे कि ‘बाबू’ (अजय के लिए माया का प्यार वाला नाम) उससे इस तरह से नाराज़ न हो।

अवश्य ही वो अजय के दिल में स्थान न बना पाई हो, लेकिन बाकी परिवार के साथ वो जल्दी ही घुल-मिल गई। और तो और, अजय आशाओं के विपरीत प्रशांत भैया भी माया को बुरा नहीं कहते थे। उल्टा, वो उसको पसंद भी करते थे। माया में भी अब अंतर आ गया था। एक प्रेम-भरे परिवार की छत्र-छाया में आ कर वो निखर गई, और संभ्रांत और सौम्य भी दिखने लगी। उसका शरीर भी सुन्दर तरीक़े से भर गया। कोई उसका पुराना जानने वाला उसको देख कर पहचान नहीं सकता था।

**
Iss update me kaafi jankari hath lgi...

Maya ek bohut pyara character malum pad rha h... Hope utna hi accha bhi ho... Aur ye jaan kar bhi accha lga ki ajay k parivar me se kisi ne bhi maya k saath galat harkat nhi ki...

Ajay ka frustration bhi smjh aata h... Jab sabko ghar me apne apne rooms available ho par ek aapko hi share krna pde to chidh hoti hi h.... I hv shared my room with my family members during certain times so I know 😆

Ab shyd iss time... Ajay koshish krega ki uska rishta maya se accha bann sake... Shyd maya hi ek potential heroine nikle? But wo muh bole bhai behan h... It feels wrong 😆 but sage to ni h na... Chances kam h par imposible kuch bhi nhi...

Ek question tha mera... Aapne kaha tha ki ajay ki consciousness ateet me aayi h...

To uske shareer ka kya hua? Present me jo shareer tha uska kya hua? Nd agar ajay ki consciousness ateet me aa gyi... To ateet me jo ajay ki consciousness thi uska kya hua? 🤔

Mujhe thoda confusion ho rha h... Mera doubt clear kar dijiyega.. keep writing sir ji... 🤗
 

Aakash.

sᴡᴇᴇᴛ ᴀs ғᴜᴄᴋ
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Annual Story Contest - XForum
Hello everyone!
We are thrilled to present the annual story contest of XForum!
"The Ultimate Story Contest" (USC).

"Win cash prizes up to Rs 8500!"


Jaisa ki aap sabko maloom hai abhi pichhle hafte hi humne USC ki announcement ki hai or abhi kuch time pehle Rules and Queries thread bhi open kiya hai or Chit Chat thread toh pehle se hi Hindi section mein khula hai.

Well iske baare mein thoda aapko bata dun ye ek short story contest hai jisme aap kisi bhi prefix ki short story post kar sakte ho, jo minimum 700 words and maximum 8000 words ke bich honi chahiye (Story ke words count karne ke liye is tool ka use kare — Characters Tool) . Isliye main aapko invitation deta hun ki aap is contest mein apne khayaalon ko shabdon kaa roop dekar isme apni stories daalein jisko poora XForum dekhega, Ye ek bahot accha kadam hoga aapke or aapki stories ke liye kyunki USC ki stories ko poore XForum ke readers read karte hain.. Aap XForum ke sarvashreshth lekhakon mein se ek hain. aur aapki kahani bhi bahut acchi chal rahi hai. Isliye hum aapse USC ke liye ek chhoti kahani likhne ka anurodh karte hain. hum jaante hain ki aapke paas samay ki kami hai lekin iske bawajood hum ye bhi jaante hain ki aapke liye kuch bhi asambhav nahi hai.

Aur jo readers likhna nahi chahte woh bhi is contest mein participate kar sakte hain "Best Readers Award" ke liye. Aapko bas karna ye hoga ki contest mein posted stories ko read karke unke upar apne views dene honge.

Winning Writer's ko well deserved Cash Awards milenge, uske alawa aapko apna thread apne section mein sticky karne ka mouka bhi milega taaki aapka thread top par rahe uss dauraan. Isliye aapsab ke liye ye ek behtareen mouka hai XForum ke sabhi readers ke upar apni chhaap chhodne ka or apni reach badhaane kaa.. Ye aap sabhi ke liye ek bahut hi sunehra avsar hai apni kalpanao ko shabdon ka raasta dikha ke yahan pesh karne ka. Isliye aage badhe aur apni kalpanao ko shabdon mein likhkar duniya ko dikha de.

Entry thread 25th March ko open ho chuka matlab aap apni story daalna shuru kar sakte hain or woh thread 25th April 2025 tak open rahega is dauraan aap apni story post kar sakte hain. Isliye aap abhi se apni Kahaani likhna shuru kardein toh aapke liye better rahega.

Aur haan! Kahani ko sirf ek hi post mein post kiya jaana chahiye. Kyunki ye ek short story contest hai jiska matlab hai ki hum kewal chhoti kahaniyon ki ummeed kar rahe hain. Isliye apni kahani ko kayi post / bhaagon mein post karne ki anumati nahi hai. Agar koi bhi issue ho toh aap kisi bhi staff member ko Message kar sakte hain.

Important Links:
- Chit Chat Thread (For discussions)
- Review Thread (For reviews)
- Rules & Queries Thread (For contest details)
- Entry Thread (To submit your story)

Prizes
Position Rewards
Winner 3500 ₹ + image Award + 7000 Likes + 30-day Sticky Thread (Stories)
1st Runner-Up 2000 ₹ + image1 Award + 5000 Likes + 15-day Sticky Thread (Stories)
2nd Runner-Up 1000 ₹ + 3000 Likes + 7-day Sticky Thread (Stories)
3rd Runner-Up 500 ₹ + 3000 Likes
Best Supporting Reader (Top 3) 500 ₹ (Each) + image2 Award + 1000 Likes
Reporting Plagiarized Stories imag3 200 Likes per valid report


Regards, XForum Staff
 

avsji

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यह विशेषता अंग्रेजी की नहीं मानवीय मानसिकता की है।
हम कितना भी अंग्रेजी या अन्य कोई भी भाषा जानते हों, भावनात्मक जुड़ाव हमेशा हमारी मातृभाषा से ही वास्तविक होता है।
इसीलिए हम अपनी मातृभाषा को मर्यादा की संवेदनशीलता के अनुसार ही कहना और सुनना पसंद करते हैं थोड़ा सा चूकते ही बात दिल और दिमाग दोनों पर बहुत गहरा असर डाल देती है। परिहास या उत्तेजना में हम बहुत कुछ अमर्यादित भी कह लेते हैं लेकिन कभी कभी वो भी बहुत गहरी फांस की तरह मन में चुभने लगती है। अमिट छाप।

यह बहुत ही भिन्न और रोचक बात कही है आपने!
ऐसा सोचा नहीं था मैंने... बात सही लग रही है। अपरिचित / अन्य भाषा में किसी को गरियाने में बुरा नहीं लगता। चाहे अंग्रेजी में करें, या स्पेनिश में!
लेकिन अपनी मातृ - भाषा में गाली देना ऐसा लगता है जैसे अपनी ही माँ को गाली दे दी हो (शायद इसलिए भी क्योंकि मन में अभी भी थोड़ी सेंसिबिलिटी और संवेदनशीलता बची हुई है)!

जबकि किसी अन्य भाषा में कुछ भी कहा जाये, सामान्यतः उसके सार को ग्रहण कर लिया जाता है, शब्दों को नहीं। शब्दों को उसी समय या कुछ समय‌ बाद अनदेखा कर दिया जाता है..... इसीलिए हम अंग्रेजी में वो सब भी बहुत आसानी से कह सुन लेते हैं जो अंग्रेजी मातृभाषा वाले भावनात्मक रूप से मर्यादा का ध्यान रखते हुए ही कहते सुनते या ना कहना चाहते हैं ना सुनना चाहते हैं
जैसा कि मैंने अंग्रेजी की प्रसिद्ध फोरम लिट*इरोटिका पर देखा है वहां की कहानियों में भी सामाजिक संवाद में 'फक' और 'डिक' 'एसहोल' ही नहीं 'शिट' भी एक अमर्यादित अपशब्द माना जाता है जिसे सिर्फ किसी खास से मजाक/उत्तेजना में या किसी पर गुस्से में ही बोला जाता है

सही है।

जबकि हमारे यहां सिर्फ कहानियों में ही नहीं वास्तविक जीवन में भी हम साधारण रूप से इन शब्दों को बहुत हल्के स्तर पर कह सुन कर भुला देते हैं क्षणिक आवेश के बाद

बहुत ही बढ़िया लेख!
ज्ञानवर्धक! 🙏
 

avsji

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avsji bhai next update kab tak aayega?

भाई साहब -- फ़ोरम से आज कल अनुपस्थिति का कारण ये है कि हमारी कंपनी ने हमको जो सेल्स का टारगेट दिया है, उसको पूरा करने में हमारा भरता बना जा रहा है।
डंकापति जी, अपने राज्यकाल में हम जैसे अकिंचनों के चूतड़ों पर ही डंका बजा रहे हैं। 😂😂😂
न तो क्लाइंट और न ही हम ठीक से धंधा कर पा रहे हैं।
लेकिन ढिठाई भी है - कोशिश जारी है! बोनस का लालच... और बच्चों की उम्मीदें पूरी करने में लगे हुए हैं।
चार दिन का त्रास और बचा हुआ है! उसके बाद ही अपडेट आएगा - अगर नौकरी बची रही तो!
 

avsji

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Iss update me kaafi jankari hath lgi...

Maya ek bohut pyara character malum pad rha h... Hope utna hi accha bhi ho... Aur ye jaan kar bhi accha lga ki ajay k parivar me se kisi ne bhi maya k saath galat harkat nhi ki...

बेटी बना कर लाये हैं... ग़लत हरक़तें कैसे करेंगे?
मेरी कहानियों में लोगों का चरित्र पुख़्ता होता है - कोई दूषित चरित्र का नहीं होता।
वैसा सोचना मेरे लिए कठिन है - घर में तीन तीन लड़कियाँ हैं... उनसे कैसे आँखें मिलाऊँगा? :pray:

Ajay ka frustration bhi smjh aata h... Jab sabko ghar me apne apne rooms available ho par ek aapko hi share krna pde to chidh hoti hi h.... I hv shared my room with my family members during certain times so I know 😆

ये किशोरवय अजय है। बचकाना है।
लेकिन माया मन की अच्छी है। वो उसको अपना छोटा भाई मानती है।

Ab shyd iss time... Ajay koshish krega ki uska rishta maya se accha bann sake... Shyd maya hi ek potential heroine nikle? But wo muh bole bhai behan h... It feels wrong 😆 but sage to ni h na... Chances kam h par imposible kuch bhi nhi...

ये सब नहीं होता मेरी कहानी में। लेकिन पढ़ती रहें - क्या पता!
कई बार कहानी के किरदार खुद ही कहानी की दिशा तय करने लगते हैं...

Ek question tha mera... Aapne kaha tha ki ajay ki consciousness ateet me aayi h...


To uske shareer ka kya hua? Present me jo shareer tha uska kya hua? Nd agar ajay ki consciousness ateet me aa gyi... To ateet me jo ajay ki consciousness thi uska kya hua? 🤔

Mujhe thoda confusion ho rha h... Mera doubt clear kar dijiyega.. keep writing sir ji... 🤗

इस प्रश्न का 'समुचित' उत्तर तो शायद ही कोई दे सके।

वो इसलिए है क्योंकि यह एक सैद्धांतिक और दार्शनिक प्रश्न है। किसी की चेतना ने आज तक इस तरह से "यात्रा" नहीं करी है।
लेकिन मैंने कहानी में आपके इन प्रश्नों का उत्तर देने की कोशिश करी है। शायद आगे के अपडेट्स में आएगा।

जब आप अपने कम्प्यूटर में कोई सॉफ्टवेयर "अपडेट" करते हैं, तो उस सॉफ्टवेयर के पुराने वर्ज़न का क्या होता है?
वैसे ही भविष्य से आई हुई चेतना ने अजय की पुरानी चेतना को अपडेट कर दिया है।

दार्शनिक परिप्रेक्ष्य लें, तो संसार का अस्तित्व हमारी चेतना से ही निश्चित होता है। जब तक हम जीवित हैं, तब तक संसार भी है।
हमारे जाते ही "हमारे लिए" संसार का होना समाप्त हो जाता है। सोचिये ज़रा इस बारे में।

संसार बाकी लोगों के लिए अस्तित्व में रहता है। लेकिन उसके लिए नहीं, जो मृत हो गया।
संसार की सच्चाई - उसका होना या न होना - आपकी चेतना पर निर्भर है। भविष्य वाले अजय की चेतना निकल गई, इसलिए वो संसार भी समाप्त हो गया है।

शायद ही अब उस 30 वर्षीय अजय के शरीर की चर्चा होगी इस कहानी में।

आशा है कि यह उत्तर संतोषजनक है।
 

avsji

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चैत्र शुक्ल प्रतिपदा विक्रम संवत्सर भारतीय नववर्ष की मंगल शुभकामनाएँ।

इस कहानी में पाठकों की रूचि भी काम में क्लाइंट्स की रूचि जितनी ही प्रतीत होती है।
न कोई चर्चा और न ही कोई कमेंट! ख़ैर!
इस बार सेल्स का टार्गेट पूरा नहीं होना था, तो नहीं ही हुआ। मतलब बोनस भी नहीं आने वाला।
आशा है कि अगला फाइनेंसियल ईयर इस बार से बेहतर हो।

आज के अपडेट्स में “रूचि” का जो रूप दिखने वाला है, आशा है कि कहानी में सभी की रूचि वापस आ जाएगी! 😂
 
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avsji

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अपडेट 36


इस बार की नवरात्रि और दशहरा दोनों - मतलब अजय और कमल के परिवारों - में अत्यधिक उल्लास से बीते।

राणा परिवार में हवन और रात्रिभोज का आयोजन किया गया था और वहाँ समस्त ठाकुर (अजय) परिवार भी आमंत्रित था। राणा परिवार के यहाँ रात्रिभोज पर जाने से पहले अजय के घर पर भी हवन का आयोजन था और वहाँ दिन में भोजन का आयोजन था। और उस आयोजन में रूचि आमंत्रित थी... नहीं, केवल रूचि ही नहीं, उसके मम्मी पापा भी आमंत्रित थे।

रूचि के मम्मी पापा को भी अजय और उसके परिवार से मिलने की इच्छा थी।

उनकी बेटी पिछले कुछ समय में अजय में इतना इंटरेस्ट लेने लगी थी, इसलिए वो भी चाहते थे कि अजय और उसके परिवार को जाना समझा जाए। रूचि के मम्मी पापा दोनों ही सरकारी और अर्ध-सरकारी महकमे में उच्च पदों में काम करते थे। रूचि के पापा एक अर्ध-सरकारी ताप विद्युत कंपनी में डिप्टी जनरल मैनेजर थे, और उसकी मम्मी एक केंद्रीय सरकारी बैंक में! उन दोनों ने भी प्रेम विवाह किया था - और यह उस समय किया था जब मध्यम-वर्गीय परिवारों में प्रेम विवाह करना सामान्य बात नहीं होती थी। एक ही बेटी थी उनकी और उसकी परवरिश में उन्होंने कोई कमी नहीं छोड़ी थी। मध्यम-वर्गीय परिवार की ही तरह उनकी इच्छा थी कि रूचि अपने जीवन में, अपने कैरियर में कोई बड़ा मुक़ाम हासिल करे। पढ़ाई लिखाई में उसकी मेधा को देख कर उन दोनों को बहुत सुकून होता। लेकिन पिछले कुछ समय से उसके व्यवहार में बदलाव देखना महसूस किया था उन्होंने - नहीं, वो अभी भी अपने दायित्व से विमुख नहीं हुई थी... बस उसके सामाजिक व्यवहार में महती बदलाव आ गया था। जिस लड़की की गिन चुन कर दो ही सहेलियाँ थीं, उसकी अचानक से ही किसी लड़के से दोस्ती हो जाए तो माँ बाप को संशय होता ही है।

कम्बाइंड स्टडीज़ का कह कर रूचि घर से जाती थी, तो उसकी मम्मी को घबराहट होती रहती। जवान होते बच्चे... कब उनके कदम फिसल जाएँ, कह नहीं सकते। लेकिन उन्होंने उसको रोका नहीं। रोकते भी कैसे? जब से वो अजय के यहाँ आने लगी तब से रूचि का खुद का परफॉरमेंस पहले से अच्छा हो गया था। हाँ - वो कभी कभी सेकंड आती थी लेकिन उसके नंबर पहले से बेहतर रहते। और उन समयों में अजय ही फर्स्ट आता। मतलब साफ़ था - अजय भी एक मेधावी लड़का था और दोनों का साथ होना एक अच्छी घटना थी। अगर उसके कारण उनकी बेटी थोड़ा कम अंतर्मुखी हो रही है, तो अच्छी बात थी। जीवन में केवल पढ़ाई लिखाई ही सब कुछ नहीं होता। सामाजिक स्तर पर भी व्यक्ति को सक्रीय होना पड़ता है। धीरे धीरे अजय और रूचि को ले कर उनकी चिंता कम होने लगी।

फिर अभी रूचि ने बताया कि अजय की माँ ने उसको पूजा पर आमंत्रित किया था।

यह एक अलग तरह की घटना थी। रूचि की माँ ने उस बाबत रूचि से अजय और उसके परिवार के बारे में बहुत से प्रश्न किया जिससे वो अजय की माँ की ‘असली’ मंशा भाँप सकें। रूचि ने भी पूरी ईमानदारी से अपनी मम्मी के हर प्रश्न का उत्तर दिया। जहाँ रूचि की माँ के मन से अनेकों शंकाएँ दूर हो गईं, वहीं उनके मन में एक और शंका कन्फर्म भी हो गई - वो समझ गईं कि उनकी बेटी को अजय से प्यार हो गया है। इस बोध के साथ साथ एक और शंका उनके मन में आ गई - वो यह की शायद अजय के माँ बाप भी उनकी रूचि को पसंद करते हैं। यह एक अनोखा बोध था उनके लिए। जिस रूचि को वो अभी तक नन्ही बच्ची समझती रही थीं, वो बड़ी हो गई थी। माँ बाप के लिए अपने बच्चों को बड़ा हुआ मानना एक कठिन कार्य है, जो बहुत ही कम माँ बाप कर पाते हैं... स्वीकार पाते हैं।

फिर दो दिन पहले उनको अजय की माँ का फ़ोन आया।

अजय की माँ ने अपना परिचय देते हुए उन सभी को... सपरिवार... पूजा और तत्पश्चात भोजन के लिए आमंत्रित किया। इस तरह के निमंत्रण के बाद किसी शंका के शेष रहने का कोई स्थान नहीं था। वैसे यह एक अच्छी बात थी। यह एक अवसर भी था अजय और उसके परिवार से मिलने का। प्यार होना कोई गलत बात नहीं है। अगर अजय अच्छा लड़का है - जो कि लगता है वो है - और उसका परिवार भी अच्छा है, तो भविष्य में उन दोनों का ब्याह क्यों नहीं हो सकता? उन्होंने यही सब बातें अपने पति को भी बताईं, और वो भी सहमत थे। लेकिन वो चाहते थे कि उनकी बेटी गृहस्थी के झमेले में फिलहाल न पड़े। वो पढ़े, आगे बढ़े... कम से कम ग्रेजुएशन कर ले, जिससे वो अपने खुद के पैरों पर खड़ी हो सके और अपने हस्बैंड के ऊपर निर्भर न रहे। पाठकों को समझना चाहिए कि ये बातें एक मिडिल-क्लास वैल्यू सिस्टम का अभिन्न अंग हैं। हम मध्यम-वर्गीय लोग, रोज़ी रोटी के जुगाड़ के अलावा अधिक कुछ सोच नहीं पाते। जो लोग धन्ना सेठ होते हैं, वो अलग सोचते हैं। ख़ैर, उनके लिए अजय और उसके माँ बाप कैसे हैं, यह जानना ज़रूरी था।

अजय के घर को बाहर से ही देखने से पता चल रहा था कि उनकी अपेक्षा बहुत संपन्न लोग हैं ये! और घर के अंदर आ कर वो बात भी सच साबित हो गई। घर के भीतर उनके वैभव और समृद्धि का अच्छा प्रदर्शन था - अच्छा... भद्दा नहीं। सब कुछ बहुत सुरुचिपूर्ण तरीके से रखा और सजाया गया था। सागौन और शीशम के फर्नीचर, सुरुचिपूर्ण पर्दे, महँगी लाइटें, कालीनें, ताम्बे और चाँदी की प्लेटों पर उकेरे हुए भित्तिचित्र, बहुत सी पुरानी और विख्यात पेंटिंग्स... ऐसे ही अनेकों चिह्न जो इस परिवार की धनाढ्यता को प्रदर्शित करते हैं। मध्यमवर्गीय परिवार चाहे कितना भी कह ले, या कोशिश कर ले, लेकिन धन, ऐश्वर्य और वैभव को देख कर वो चकाचौंध हो ही जाता है। और हो भी क्यों न? आख़िर उसी ऐश्वर्य और वैभव को पाने की लालसा और अभिलाषा में वो अपना पूरा जीवन बिता देता है। एक बात थी लेकिन जो रूचि के माँ बाप को बहुत भली लगी - वो यह कि इतने ऐश्वर्य और वैभव के बाद भी वहाँ उसका भद्दा प्रदर्शन नहीं था। अन्यथा जिनके पास नया नया पैसा आया होता है, वो उनके सर चढ़ जाता है। लेकिन यह परिवार वैसा नहीं था... सरलता थी यहाँ।

जिस तरह से अजय की माँ रूचि से मिलीं, उससे रूचि को ले कर उनकी मंशा भी प्रदर्शित हो रही थी। रूचि के माँ बाप दोनों समझ गए कि अजय की माँ मन ही मन में रूचि को अपने बहू के रूप में चाहती हैं। अशोक जी भी बड़ी आत्मीयता से उन दोनों से मिले। दोनों ही हवन को ले कर बहुत व्यस्त थे, लेकिन फिर भी उन्होंने रूचि के माता पिता को समुचित समय दिया और उनका स्वागत किया - वो मुख्य-अतिथि जो ठहरे! दोनों को नाश्ता ऑफर किया गया, लेकिन उन्होंने कहा कि पूजा के बाद ही वो सभी साथ में भोजन करेंगे। जैसी सादगी घर की साज सज्जा में दिख रही थी, वही सादगी अशोक जी और किरण जी के व्यवहार में भी दिख रही थी। अचानक से ही उनको अपनी रूचि को इस घर की बहू के रूप में देखना एक अच्छा विचार लगने लगा। अब जो भी था, अजय से मिल कर देख समझ लेने का था।

हवन और पूजा पाठ में ऐसा कुछ उल्लेखनीय कार्य नहीं होता जिसको यहाँ कहानी में लिखा जाए। बस यह कहना उचित होगा कि बंदोबस्त बढ़िया था। हवन का बंदोबस्त हाँलाकि जल्दी में किया गया था, फिर भी सब कुछ बढ़िया से हो गया। सुरुचिपूर्ण भोजन था, जिसको घर में ही पकाया गया था। खाने की टेबल पर रूचि के माँ बाप अजय के करीब बैठे, और रूचि अजय के माँ बाप के करीब। सभी ने आत्मीय बातचीत करते हुए स्वादिष्ट भोजन का आनंद उठाया। खाने के बाद रूचि के माँ बाप और अजय के माँ बाप आपस में बातें करने में मशगूल हो गए, तो रूचि और अजय, वहाँ से उठ कर अजय के कमरे में चले गए।
 

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कमरे में पहुँचते ही रूचि ने अजय से कहा,

“अजय,”

“हम्म?”

“डू यू लाइक मी?” रूचि ने बड़ी कोमलता से पूछा।

किसी व्यक्ति की मानसिक उम्र चाहे कुछ भी हो, ऐसे प्रश्नों पर अचकचा जाना लाज़मी ही है। अजय कोई अपवाद नहीं था।

“क्या?” वो बोला, “क्या कहा तुमने?”

“डू यू लाइक मी?” रूचि ने अपना प्रश्न दोहरा दिया - लेकिन इस बार उसके चेहरे पर एक तरह का आत्मविश्वास दिख रहा था, और उसकी आँखों में एक नन्ही सी चमक!

“हाँ,” अजय ने एक क्षण रुक कर कहा, “बहोत!”

रूचि अच्छी तो लगती थी। तो उस बात को स्वीकार करने में क्या ख़राबी?

“यू श्योर?”

हाँ - अजय रूचि को पसंद तो करता ही था। अच्छी लड़की है वो... बुद्धिमति, सुन्दर, ग्रेसफुल! रूचि उसको पसंद थी। लेकिन हाल ही में माँ और पापा के उकसाने के बाद से रूचि को पसंद करने के उसके नज़रिए में थोड़ा अंतर आ गया था।

“हाँ... क्या हो गया रूचि? ऐसे क्यों पूछ रही हो?” अंततः अजय ने ठहरते हुए पूछा, “आई लाइक यू वैरी मच! तुम बहुत अच्छी लड़की हो... मुझको बहुत पसंद हो!”

“दोस्त के जैसे?”

“दोस्त के जैसे भी...” अजय ने कहा, लेकिन अपनी बात को उसने पूरा नहीं किया।

यह अच्छी बात रही। हाँ, दोस्त के जैसे भी... लेकिन दोस्त से अलग भी।

रूचि ने कुछ कहा नहीं... लेकिन वो दो तीन कदम चल कर अजय के पास आ कर खड़ी हो गई, और झिझकते हुए उसने अजय का एक हाथ थाम लिया। दोनों ही के लिए यह एक अप्रत्याशित सी बात थी। ऐसा नहीं था कि दोनों एक दूसरे को छूते नहीं थे। बहुत छूते थे... लेकिन यह अलग बात थी। छूना और हाथ थामने ने अंतर था। रूचि की छुवन में अलग ही आत्मीयता थी।

दोनों ही कुछ पल चुप रहे। अंत में अजय ने ही चुप्पी तोड़ी,

“रूचि... क्या हुआ? सब ठीक है?”

रूचि नर्वस हो कर मुस्कुराई, फिर झिझकते हुए उसने अजय का हाथ अपने कुर्ते के ऊपर ही अपने एक स्तन पर रख दिया।

रूचि की इस हरकत से दोनों को ही जैसे बिजली का एक झटका सा लगा हो। दोनों ही चौंक गए - रूचि अपने स्तन पर पहली बार किसी पुरुष का स्पर्श पा कर, और अजय इतने वर्षों बाद अपनी हथेली में एक युवा स्तन का स्पर्श पा कर! रूचि का शरीर छरहरा था और उसके अनुपात में अपनी उम्र के हिसाब के सामान्य स्तन से छोटे स्तन होने के बाद भी वो उसके शरीर पर उन्नत दिखते थे। उसके स्तन को स्पर्श कर के अजय को उसके ठोस होने का भी अनुभव हुआ।

“रू...चि...” अजय ने अविश्वास भरे स्वर में कहा।

लेकिन उसने अपना हाथ उसके स्तन से हटाया नहीं। रूचि ने किसी उम्मीद में ही यह काम किया रहा होगा - लिहाज़ा उसके स्तन से हाथ हटाना उसके लिए एक अपमानजनक कार्य होता।

“अजय,” रूचि ने फुसफुसाते हुए कहा, “तुम भी मुझे पसंद हो... केवल एक दोस्त के जैसे ही नहीं...” वो एक क्षण को झिझकी, “आई लाइक यू...”

“ओह रूचि...” कह कर अजय ने रूचि को अपने आलिंगन में भर के उसके होंठों को चूम लिया।

रूचि को आशा थी कि अजय ऐसा कुछ करेगा। आज के सभी अनुभव रूचि के लिए अनोखे साबित होने वाले थे। किसी से अपने प्रेम का इज़हार करना... किसी का स्पर्श अपने शरीर पर महसूस करना... किसी का चुम्बन अपने होंठों पर महसूस करना... सब कुछ पहली बार हो रहा था। सब कुछ अनोखा! सबसे अच्छी बात यह थी कि अजय ने उसका प्रेम स्वीकार लिया था।

एक बार चूम कर मन नहीं भरता। इसलिए दोनों फिर से, और फिर से, और फिर से एक दूसरे को चूमते रहे। पहले तो रूचि थोड़ा तनाव महसूस कर रही थी, लेकिन फिर वो संयत हो कर इस नए अनुभव का आनंद लेने लगी।

बार बार चूमने के कारण उसको हँसी आ गई। अजय को भी।

अंत में जब दोनों के बीच चुम्बनों का आदान प्रदान रुका, तो अजय बोला, “बहुत पसंद हो तुम मुझे रूचि,”

वो मुस्कुराई, “अगर मैं न कहती, तो तुम मुझसे कभी ये कहते?”

“हाँ... शायद...”

रूचि की मुस्कराहट लगभग हँसी में बदल गई, “झूठे,”

अजय ने मुस्कुराते हुए वापस अपने दोनों हथेलियों में उसके दोनों स्तनों को थाम लिया, और थोड़ा दबाया।

“ब्यूटीफुल...” उसके मुँह से निकल ही गया।

“बिना देखे?” रूचि ने उसको छेड़ते हुए कहा।

अजय मुस्कुराया, “देखने का मन तो है...”

“अच्छा जी?”

“हाँ! और आज से नहीं... कई दिनों से!” अजय ने उसके स्तनों को थोड़ा दबाते हुए अपनी तरफ़ से पासा फेंका।

“अच्छा...” रूचि ने उसको छेड़ते हुए कहा, “तो अपनी दोस्त के बारे में ऐसा ऐसा सोचते हो तुम?”

“दोस्त इतनी पसंद भी तो है,”

“हा हा हा...” वो हँसने लगी, “मौका मिल रहा है तो चौका मार रहे हो!”

अजय ने हँसते हुए रूचि को फिर से चूमा।

“तो देख लो... जल्दी से!”

“सच में रूचि? आर यू सीरियस?” अजय को यकीन ही नहीं हुआ कि रूचि कुछ ऐसा कह देगी।

“हाँ! मैं तुमको टीज़ नहीं करना चाहती अजय।” रूचि ने समझदारी से कहा, “हम दोनों साथ में पढ़ते हैं... ऐसे में हमारे बीच को अननेसेसरी टेंशन हो जाने से हमारी पढ़ाई का नुक़सान होगा।”

“टेंशन क्यों होगा? हम एक दूसरे को पसंद करते हैं न!”

“हाँ, लेकिन तुम्हारा मन होता है न... मुझे ‘वैसा’ देखने के लिए?”

उसकी बात पर अजय को हँसी आ गई, लेकिन उसने अपनी हँसी को दबा लिया।

“अजय, मैं तुम्हारे साथ किसी तरह के एंटीसिपेशन में नहीं रहना चाहती! ... तुम मुझको बहुत दिनों से पसंद हो, इसलिए मैं तुमसे अपने मन की बात साफ़ साफ़ कह देना चाहती थी।”

“वाओ रूचि! यू आर अमेज़िंग!”

“आई नो,” रूचि ने कहा और फिर अधीरता से बोली, “अच्छा... डू यू वांट टू डू इट, ऑर आई डू इट?”

“ऑफ़ कोर्स आई वांट टू डू इट,” अजय ने कहा।

लेकिन फिर उसको लगा कि शायद रूचि ने कुछ और पूछा है।

उसने आगे पूछा, “क्या?”

“रिमूव माय क्लोथ्स, यू डूफस!” रूचि ने हँसते हुए, लेकिन धीमे से कहा।

“मे आई?”

रूचि ने हल्के से मुस्कुराते हुए ‘हाँ’ में सर हिलाया।

आश्चर्य की बात थी कि अजय जैसा अनुभवी ‘आदमी’ भी इस समय नर्वस था। कोई छः - साढ़े छः साल हो गए थे ऐसा कुछ किए! जब से रागिनी के साथ उसके रिलेशनशिप का सत्यानाश हुआ था, तब से उसको किसी अन्य लड़की का संग पाने की प्रेरणा ही नहीं आई थी। लेकिन अब अचानक से ही रूचि जैसी लड़की उसके जीवन में आ गई थी। क्या किस्मत थी!

अजय ने हाथ बढ़ा कर रूचि के कुर्ते के बटन खोलने शुरू कर दिए। कुछ क्षणों की बात थी, लेकिन उसको ऐसा लग रहा था कि जैसे कई मिनट बीत गए। अंततः रूचि के कुर्ते के सारे बटन खुल गए। रूचि के अपने दोनों हाथ ऊपर उठा दिए। इतना इशारा काफी था। अजय ने उसके कुर्ते का निचला सिरा पकड़ कर उसके कुर्ते को उसके शरीर से अलग कर दिया। उसने एक साधारण सी, सफ़ेद रंग की ब्रा पहनी हुई थी। उसको उस रूप में देख कर अजय का लिंग एक क्षण के दसवें हिस्से में कठोर हो कर खड़ा हो गया। लेकिन रूचि को वो बात फिलहाल पता नहीं चली।

उसने अजय की आँखों में देखा... उसकी आँखें रूचि के ब्रा में छुपे हुए स्तनों पर ही केंद्रित थीं। अनायास ही उसके होंठो पर एक सरल सी मुस्कान आ गई। वो कुछ और नहीं कर रहा था, इसलिए रूचि उसके सामने मुड़ गई - जिससे उसकी पीठ अजय के सामने आ जाए। यह इशारा भी अजय समझ गया। उसने उसकी ब्रा का क्लास्प खोल दिया। अब ब्रा उतरने के लिए तैयार थी। रूचि ने इस बार अजय के पहल करने का इंतज़ार नहीं किया और खुद ही अपनी ब्रा उतार कर उसके सामने हो गई।
 

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रूचि के स्तन बड़े नहीं थे - बस उसके शरीर के हिसाब से बड़े थे। रूचि का शरीर छरहरा था... वो देखने में अपनी उम्र से छोटी भी लगती थी। उसके चूचक सामान्य आकार के थे... मटर के दानों जितनी। उसके एरोला उसके स्तनों के कोई एक तिहाई आकार के थे, और उनका रंग उसके चूचकों के रंग से अपेक्षाकृत हल्का था। युवा शरीर होने के कारण उसके स्तनों पर गुरुत्व का प्रभाव नगण्य था। कमरे में दिन की रौशनी परदे से छन कर अंदर आ रही थी और उस कारण से रौशनी की चमक थोड़ी मद्धम हो गई थी। वही रौशनी रूचि पूरे शरीर पर भी पड़ रही थी, जिससे उसका सौंदर्य और भी निखर उठा था। बहुत सुन्दर लग रही थी रूचि! अजय उसको अवाक् हो कर बस देखे ही जा रहा था।

“कैसे हैं?” रूचि ने पूछा - यह अच्छी तरह जानते हुए भी कि उसके स्तन अजय को कैसे लगे होंगे।

“ब्यूटी...फुलेस्ट...” अजय बस इतना ही कह पाया।

रूचि खिलखिला कर हँस दी।

अजय ने फिर से अपनी हथेलियों में रूचि के स्तनों को भर लिया।

“तुम बहुत सुन्दर हो रूचि!” अजय ने धीमे स्वर में कहा।

रूचि शरमा गई और हल्की मुस्कान के साथ उसने अपना चेहरा अजय के सीने में छुपा लिया। उसकी गर्म साँसों को अजय अपने सीने पर महसूस कर पा रहा था।

“आई वांट टू किस देम...” अजय ने कहा।

रूचि ने ‘हाँ’ में सर हिलाया और थोड़ा पीछे हट गई। अजय उसके एक स्तन के पास आ गया। उसकी साँसों की गर्माहट रूचि को अपने स्तन पर महसूस हो रही थी। जो होने वाला था, उसका सोच कर रूचि के चूचकों में कड़ापन आ गया था। फिर अजय ने प्यार से उसके स्तन को चूमा, फिर उसने उसके चूचक पर अपने होंठ रख दिए। ये इतने संवेदनशील अंग होते हैं कि स्त्री हो या पुरुष - किसी को भी इनको छुए जाने से एक सनसनी सी... या गुदगुदी सी ज़रूर महसूस होगी! रूचि तो ख़ैर एक युवा लड़की थी! उसके दिल की धड़कनें तेज़ हो गईं। अजय के स्पर्श में एक अनकही चाहत थी... जिसके कारण अब वो भी एक अलग ही तरह के रोमांटिक और कामुक उन्माद का आनंद महसूस कर रही थी। और जब अजय ने उसके चूचक को चूसा, तब रूचि की साँसें अस्थिर हो गईं।

समय जैसे ठहर सा गया।

यह वो अनुभव था, जिसकी उसने केवल कल्पना ही करी थी। और जब वो मूर्त रूप से उसके सामने प्रस्तुत हुआ, तो रूचि ने समझा कि ये वैसा अनुभव नहीं था जिसकी वो कल्पना कर रही थी... बल्कि उससे बहुत ही भिन्न अनुभव था। कल्पनातीत! वो समझती थी कि जब अजय उसके चूचक को चूसेगा, तो उसको बहुत आनंद मिलेगा - लेकिन वो इस तरह का - एक्स्टैटिक आनंद होगा, उसको अंदाज़ा नहीं था!

दोनों कुछ बोल नहीं रहे थे।

अजय तो स्तनपान में मगन था और रूचि उसकी हरकतों से उठने वाली मीठी कामुक तरंगों के आनंद में मगन थी! कमरे में नीचे से चारों लोगों की बातचीत और हँसने की धीमी आवाज़ें यहाँ सुनाई दे रही थीं।

कुछ देर तक अजय बारी बारी से उसके दोनों स्तनों को पीता रहा। उसने ध्यान नहीं दिया, लेकिन इतनी देर तक कामुक रूप से उकसाने से रूचि को रति-निष्पत्ति हो गई। अजय ने महसूस किया कि एक समय रूचि का शरीर कुछ अधिक ही तड़प और ऐंठ रहा था, लेकिन उसने यह सोच कर नज़रअंदाज़ कर दिया कि शायद उसको कुछ अधिक ही गुदगुदी महसूस हो रही हो। रूचि को रति-निष्पत्ति हो गई थी... और ये तब था जब अजय ने उसको नीचे छुवा तक भी नहीं! उस बात को सोच कर रूचि के शरीर में सिहरन दौड़ गई... उसके रौंगटे खड़े हो गए!

अजय ने इस बीच उसकी शलवार का नाड़ा खोल दिया था और चूँकि शलवार का कपड़ा चिकना सा था, वो अपने आप ज़मीन पर ढेर हो गया।

अब जा कर रूचि का नियंत्रण वापस आया।

“सब आज ही कर लोगे?” उसने अनियंत्रित और फुसफुसाहट भरी आवाज़ में पूछा।

“नहीं... बस देखना है!” अजय ने उसकी पैंटी सरकाते हुए कहा, “... आगे टेंशन नहीं चाहिए!”

“गंदे हो तुम...” रूचि की आवाज़ काँप रही थी।

लेकिन उसको अजय के आश्वासन से राहत मिली। अजय उसकी उम्मीदों पर पूरी तरह खरा उतर रहा था। उसको उम्मीद थी कि जब वो उससे अपने प्यार का इज़हार करेगी, तो अजय उसको स्वीकार कर लेगा। उसको उम्मीद थी कि अजय उसके अंतरंग होने की पहल से बुरा नहीं मानेगा और उसके साथ ही खेल में शामिल हो जाएगा। उसको यह भी उम्मीद थी कि वो रूचि की दी हुई छूट का नाजायज़ फायदा नहीं उठाएगा और उसका सम्मान करेगा... लेकिन वो यह भी चाहती थी कि अजय अपनी तरफ़ से भी पहल करे और उसको वैसे अनुभव दे, जिनसे वो अभी तक अनभिज्ञ थी। फिलहाल वो सब कुछ हो रहा था।

आज सुबह जब वो उठी थी, तब उसने अपने मन में कुछ निर्णय ज़रूर लिए थे। अजय से अपने प्रेम का इज़हार, उसको अपने मन की बात बताना उस प्लान में शामिल था। लेकिन यह सब ऐसा होगा, उसको पता नहीं था। थोड़ा संशय तो था कि उसके मम्मी पापा कैसा व्यवहार करेंगे! लड़की के माँ बाप होना एक बहुत बड़ा भार होता है, जो लोग अपने सर लिए फिरते हैं। लेकिन यहाँ आ कर अपने मम्मी पापा के चेहरे पर संतोष और गर्व के भाव पढ़ कर वो भी संयत हो गई। वो जान गई कि उनको अजय और उसकी फैमिली बहुत पसंद आई है।

कुछ ही देर में अजय, पूर्ण रूप से नग्न रूचि को अपनी बाहों में उठाए अपने बिस्तर की तरफ़ ले जा रहा था, और उसके गले में अपनी बाहें डाले रूचि प्यार से उसको देख रही थी। अजय ने उसको सम्हाल कर बिस्तर पर लिटा दिया और कुछ देर यूँ ही निहारता रहा। उसको ऐसे अपनी तरफ देखते देख कर रूचि शर्म की लाली से रंग गई।

“क्या?” रूचि से रहा नहीं गया।

अजय उत्तर में केवल मुस्कुराया।

“बोलो न... नहीं तो मुझे बहुत शरम आएगी,”

“बहुत सुन्दर...” अजय इतना ही कह पाया, “बहुत सुन्दर हो तुम रूचि!”

‘बढ़िया!’ रूचि ने अजय के मुँह से अपने सौंदर्य की बढ़ाई सुन कर अपने मन में सोचा।

उधर अजय रूचि के पैरों के सामने की तरफ़ बैठा और उसकी जाँघों को खोल कर उसकी योनि का जायज़ा लेने लगा। अनायास ही उसको रागिनी की याद हो आई। अब तो उसके बारे में कुछ भी ठीक से कहा नहीं जा सकता। जिस तरह की चालू लड़की थी वो, ज़रूर ही उसके कई यार रहे होंगे! वो तो अजय ही मूर्ख था जो केवल उसकी सुंदरता को उसका गुण मान बैठा। उसने अपने मन से रागिनी को बाहर झटका! उसके मुकाबले रूचि की योनि कच्ची थी। हाँलाकि वो कानूनन बालिग़ हो गई थी, लेकिन अभी भी लड़की जैसा ही शरीर था उसका। प्रकृति मनुष्य के बनाये नियमों को नहीं मानती। वो ऐसा नहीं करती कि अट्ठारह साल से एक दिन पहले कोई बच्चा हो, और उसके ठीक एक दिन बाद वयस्क हो जाए! यह बोझ मनुष्य का है।

जब उसने रागिनी को पहली बार नग्न देखा, तो उसने अपनी योनि की वैक्सिंग कराई हुई थी... इसलिए उसकी योनि पूरी तरह से चिकनी थी। लेकिन रूचि ने वैसा कुछ नहीं किया था... लिहाज़ा उसकी योनि पर बाल थे। लेकिन रूचि की योनि पर जो बाल थे, वो कोमल थे... और विरल थे। उनको छूने पर कड़ापन नहीं, बल्कि मुलायम रोंयें सा एहसास हो रहा था। उसकी योनि के होंठ मुलायम, लेकिन भरे हुए थे। दोनों होंठ आपस में सटे हुए थे और एक सीधी, ऊर्ध्व लकीर का निर्माण कर रहे थे।

रागिनी के साथ अपने अनुभवों के अनुसार वो समझता था कि कोई भी लड़की अपनी योनि को प्यार किया जाना पसंद करती है। तो उसने रूचि की योनि को चूम लिया।
 

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रूचि सिहर गई!

‘बाप रे!’ रूचि ने सोचा, ‘ऐसा भी कोई करता है क्या!’

“अ...जय...” उसने प्रत्यक्षतः किसी तरह कहा।

“डरो नहीं रूचि! मैं कुछ ऐसा वैसा नहीं करूँगा...”

हाँ... इतना विश्वास तो था ही रूचि को अजय पर!

रूचि ने हथियार डाल दिए।

आप हर बात कण्ट्रोल नहीं कर सकते। अजय को अपने स्तन दिखाना... महसूस करवाना उसके स्वयं के नियंत्रण में था। लेकिन उसके बाद अजय का क्या हाल होगा, उस दृश्य का उस पर क्या प्रभाव होगा, वो उसको नग्न देख कर क्या क्या करेगा, रूचि उन बातों को कण्ट्रोल नहीं कर सकती थी। वो यह बात समझती थी। लेकिन वो चाहती थी कि यह सब ‘तनावपूर्ण’ बातें उन दोनों के सिस्टम से निकल जाए, और वो दोनों आगे सामान्य से हो कर, घनिष्ठ मित्रों... नहीं, प्रेमियों की तरह रह सकें!

ख़ैर...

अजय ने उसके योनि मुख को थोड़ा सा खोला... क्या देखा उसने, केवल वो ही बता सकता है। लेकिन फिर उसने अंत में उसकी योनि के मुख को चूमा और फिर मुस्कुराते हुए उठ बैठा।

“रूचि?” उसने कहा।

“हम्म?”

“कितनी छोटी सी है ये यार...!”

“क्या?”

“तुम्हारी...” अजय ‘चूत’ शब्द बोलना चाहता था, लेकिन वो ठहर गया।

रूचि एक संभ्रांत परिवार की लड़की थी, और शायद ऐसे शब्द सुन कर वो बुरा मान जाए! गाली गलौज वाली भाषा शायद ही कोई लड़की पसंद करती हो, ख़ास कर ऐसे अंतरंग और रोमांटिक माहौल के समय!

उसने दो तीन पल सोचा और कहा, “... तुम्हारी छोटी बहन!”

उसकी बात सुन कर रूचि बिना आवाज़ के हँसने लगी, और उसकी हँसी के साथ उसके स्तन बड़े ही क्यूट तरीके से हिलने लगे। उसके साथ ही अजय का दिल भी! लेकिन किसी तरह उसने स्वयं पर नियंत्रण किया।

“और क्या! देखो न... कितनी छोटू सी है! ‘ये’ इसके अंदर जा ही नहीं पाएगा...”

“क्या?” रूचि ने पूछा, “क्या नहीं जा पायेगा?”

“ये!” कह कर अजय घुटनों के बल हो कर बैठ गया।

उसने कब अपनी पैन्ट्स की ज़िप खोल कर अपने लिंग को बाहर निकाल लिया था, रूचि को पता नहीं चला था। लेकिन इस समय उसके सामने अजय का स्तंभित लिंग प्रदर्शित था... केवल लिंग। रूचि को उस दिन की बात याद आ गई, जब उसने अजय को हस्त-मैथुन करते देख लिया था।

रूचि ने देखा - हाँ, यह एक स्वस्थ और मज़बूत लिंग लग रहा था! उत्सुकतावश उसने अजय का लिंग पकड़ा - कठोर... लेकिन मुलायम भी! तना हुआ, लेकिन उसकी त्वचा में एक ढीलापन भी! और... गर्म! कैसा विरोधाभास लिया हुआ अंग है ये! और उसकी मोटाई उसकी अपनी कलाई से भी अधिक! एक स्वस्थ और मज़बूत अंग! उसको इस अंग का क्या और कैसे इस्तेमाल होता है, अच्छे से पता था। लेकिन,

“इसको मेरे अंदर क्यों जाना है?” उसने भोलेपन से पूछा।

“आज नहीं,” अजय ने समझाते हुए कहा, “लेकिन जब हमारी शादी होगी, तब तो जायेगा न?”

“क्यों?” रूचि ने उसको छेड़ते हुए कहा, “हम्म? हम्म?”

“अरे! हस्बैंड वाइफ करते हैं न सेक्स...”

“अच्छा जी! तो आपको मेरे साथ सेक्स भी करना है!” रूचि ने उसको छेड़ा, “उंगली क्या पकड़ाई, आपको अब तो कलाई भी पकड़नी है! क्यों? हम्म?”

“कलाई नहीं,” अजय ने शिष्टता से कहा, “तुम्हारा हाथ थामने का इरादा है! उम्र भर के लिए!”

सुन कर रूचि के दिल को संतोष हो आया।

बालपन भोला होता है। अनावश्यक बातों के लिए उसमें समय नहीं होता। सामाजिक जटिलताओं की समझ नहीं होती और न ही उनकी आवश्यकता ही होती है। इसीलिए कहते हैं, कि बचपन की मोहब्बत सरल और सच्ची होती है।

“थामोगे हाथ मेरा?”

“हाँ... हमेशा के लिए।” अजय बोला।

“तुम मुझसे शादी भी करोगे?”

“हाँ! और नहीं तो कैसे? ... तभी तो हमारे बेबीज़ होंगे!” अजय ने उम्मीद भरे अंदाज़ में कहा, “मुझसे बेबीज़ करोगी न?”

अजय ने जान-बूझ कर ऐसी बात करी कि उन दोनों के बीच उम्र का भोलापन बना रहे।

रूचि उसकी इस बात पर मुस्कुरा दी,

“अज्जू... मैंने अभी तक इस बारे में कुछ सोचा नहीं!” उसने कहा, “कुछ दिनों पहले तक तो बेबीज़ के पापा का ही पता नहीं था मुझको,”

कह कर वो हँसने लगी। अजय भी उसके साथ ही हँसने लगा।

“तो वो सर्च ख़तम हुई?”

“हाँ,” रूचि इस बात पर शर्मा गई, “... लगता तो है!”

“गुड!” अजय संतुष्ट हो कर बोला, “तुम माँ को और पापा को बहुत पसंद हो!”

“सच में?”

अजय ने ‘हाँ’ में सर हिलाया।

“अज्जू...” रूचि ने बड़े प्यार से पूछा, “तुमको चाहिए बेबीज़?”

उसको अपने अजन्मे बच्चे की याद हो आई, जिसको रागिनी ने गिरा दिया था। दिल में एक टीस सी उठ गई।

“हाँ...” उसने सामान्य आवाज़ रखते हुए कहा, “किसका मन नहीं होता पापा बनने का?”

वो मुस्कुराई, “अच्छा! कितने?”

“तीन चार...”

“चार! बाप रे,”

“और क्या! इतना बड़ा घर है... खूब सारे बच्चे होंगे तो अच्छा लगेगा न... चहल पहल बनी रहेगी,”

अजय की इस बात पर रूचि ने अपनी उँगलियाँ अजय के बालों में उलझा दीं, और बड़े प्यार से बोली, “हो जाता है सब।”

“क्या?” अजय समझ नहीं पाया कि रूचि ने यह किस बात पर कहा।

“तुम्हारा ‘ये’...” रूचि ने जिस हाथ में अजय का लिंग पकड़ा हुआ था, उसको लिंग पर पकड़े हुए ही हिलाया, “छोटा भाई... मेरी छोटी बहन में आ जाएगा, जब ज़रुरत होगी,”

“तुमको कैसे पता?”

“मम्मी ने बताया था...”

उसके इस रहस्योद्घाटन पर अजय ने उत्सुकतापूर्वक अपनी त्यौरी चढ़ाई।

रूचि बोलती रही, “एक दिन मैंने उनको बताया कि मैंने इसमें अपनी फोरफिंगर डालने की कोशिश करी... लेकिन वो मुश्किल से अंदर जा पा रही थी! ... तो उन्होंने मुझे सेक्स के बारे में समझाया... और यह भी समझाया कि हस्बैंड वाइफ को चाहिए कि वो एक दूसरे को खूब प्यार करें... तब सब हो जाता है।”

“सच में?” अजय ने खुश होते हुए कहा।

रूचि ने मुस्कुराते हुए ‘हाँ’ में सर हिलाया।

“नाइस...” कह कर अजय ने अपने लिंग को रूचि की योनि के होंठों से सटा दिया।

“क्या कर रहे हो?” रूचि ने चिहुँकते हुए कहा।

“मेरा छोटा भाई, तुम्हारी छोटी बहन को पप्पी ले रहा है,”

अंतरंग क्षणों में ऐसी हँसोड़ बातें!

“अज्जू... तुम बहुत भोलू हो!” रूचि को उसकी बात पर हँसी आ गई।

एक दूसरे के सामने नग्न हो कर ऐसे हँसी मज़ाक करना... अब उसके लिए अजय के सामने नग्न होना कोई ऐसी बड़ी... तनाव वाली बात नहीं रह गई थी। अच्छा हुआ कि यह उनके सिस्टम से बाहर निकल गया। अजय अब उसके बराबर आ कर लेट गया और उसने वापस अपने होठों को उसके चूचक पर रख दिया... और धीरे-धीरे, बड़े प्यार से, उसके स्तनों के अदृश्य रस को फिर से चूसने लगा।

“अज्जू बेटे,” अचानक ही नीचे से माँ की आवाज़ आई।

वो चौंक कर रूचि के सीने से अलग हुआ।

“हाँ माँ?” उसने ऊँची आवाज़ में उत्तर दिया।

“बेटे नीचे आओ! भाई साहब और बहन जी जाने वाले हैं!”

“ठीक है माँ,” उसने अनिच्छा से कहा, “बस पाँच से दस मिनट में आते हैं माँ!”

कह कर अजय ने रूचि को अपने आलिंगन में खींचा, और उसके होंठों पर अपने होठों को रख कर उसे अपने आगोश में भर लिया। आज उनके बीच की दूरी मिट चुकी थी, और वे बस एक-दूसरे के एहसास में डूब चुके थे।

“तुम मेरे लिए कितनी खास हो रूचि… शायद मैं तुमको समझा न पाऊँ,” अजय ने उसकी आँखों में देखते हुए कहा।

रूचि ने हल्की मुस्कान के साथ उसकी आँखों को अपने होठों से छुआ और धीरे से उसकी बाहों में समा गई,

“तुम भी अज्जू...” वो बोली, “तुम भी मेरे लिए सबसे ख़ास हो! सबसे स्पेशल!”

फिर कुछ पलों बाद रूचि ने उसको याद दिलाया कि उन दोनों को नीचे बुलाया जा रहा है।

बड़ी अनिच्छा से दोनों अलग हुए। अजय उठ कर रूचि के कपड़े उठा लाया। उसी दौरान उसने उसके अधोवस्त्रों से उसके शरीर की माप को समझ लिया। रूचि ने भी देखा कि वो बड़ी चालाकी से उसकी ब्रा और पैंटी के लेबल को पढ़ रहा है, लेकिन उसने कुछ कहा नहीं। बस मुस्कुरा कर रह गई। अपनी प्रेमिका के बारे में इस तरह की अंतरंग उत्सुकता रखने में कोई बुराई नहीं है... पापा भी तो माँ के बारे में सब जानते हैं! वो भी उनकी ब्रा पैंटीज़ खरीदते ही हैं। तो अगर अजय भी उसके बारे में जानता है, तो कोई बुराई नहीं।

बाहर निकलने से पहले अजय ने कहा, “रूचि, थैंक यू! आज मैं बहुत खुश हूँ!”

“मैं भी,”

“हम आगे भी प्यार करेंगे...” उसने जब ये कहा तो रूचि कुछ कहने को हुई... लेकिन उसकी बात काट कर अजय ने तेजी से कहा, “लेकिन आई प्रॉमिस, कि हमारी पढ़ाई लिखाई, और ऍप्लिकेशन्स पर कोई बुरा इफ़ेक्ट नहीं आएगा!”

वो संतोषपूर्वक मुस्कुराई, “पक्का?”

अजय ने ‘हाँ’ में सर हिलाते हुए कहा, “हमको साथ में आगे बढ़ना है न!”

रूचि मुस्कुराई, और अजय के होंठों को चूम कर बोली, “हाँ!”

थोड़ी देर में रूचि वापस तैयार हो गई और दोनों बाहर आ गए।

अजय का कमरा अब भी उसी मद्धम रौशनी में डूबा हुआ था... वहाँ की हवा में दोनों के प्यार के एहसास की महक घुल गई थी।

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