अपडेट 35:
“आई ऍम सॉरी, रूचि,” उसने जल्दी से निक्कर पहनते हुए कहा, “दैट यू हैड टू सी दैट,”
“लेकिन वो था क्या?” इस बार रूचि ने ज़ोर दे कर पूछा।
“डोंट यू एवर फ़ील... एक्साइटेड?” अजय ने उल्टा प्रश्न पूछा।
“व्हाट?”
“तुमको कभी एक्साइटमेंट नहीं फ़ील होता? ... सेक्सुअल एक्साइटमेंट,”
“कैसी बातें कर रहे हो?” रूचि ने सकुचाते हुए कहा।
ऐसी बातें कोई किसी से कैसे कहे?
“मुझको होता है...” अजय ने उसकी बात को नज़रअंदाज़ करते हुए कहा, “इसलिए मैं उसको शांत कर रहा था।”
“कैसे?” न जाने रूचि ने क्यों पूछ लिया।
“व्हेन माय पीनस गेट्स हार्ड, आई स्ट्रोक इट... टिल आई इजैकुलेट,”
“इजैकुलेट?”
अजय ने ‘हाँ’ में सर हिलाया, “टिल सीमन कम्स आउट ऑफ़ इट,” उसने समझाते हुए कहा।
यह बात रूचि को पता थी।
“एंड... दैट कॉम्स यू डाउन?”
अजय ने ‘हाँ’ में सर हिलाया।
“तुम कैसे करती हो?” अजय ने रूचि से पूछा।
“हट्ट! बेशर्म कहीं के... लड़कियों से ऐसी बातें करता है कोई...”
“क्यों? लड़कियाँ ह्यूमन नहीं होतीं क्या? उनमें कोई फ़ीलिंग्स नहीं होतीं?”
“हाँ हाँ... होती हैं। लेकिन ऐसे नहीं पूछा जाता उनसे कुछ!”
“क्या करती हो फिर तुम?” अजय ने कुरेदा, “हाऊ डू यू कॉम डाउन?”
“अजय... मत पूछो प्लीज़,”
“ओके! सॉरी, रूचि!”
“नहीं सॉरी वाली बात नहीं है अजय! बट इट इस नॉट समथिंग दैट वन आस्क्स अ गर्ल!”
“इसीलिए आई ऍम सॉरी,” अजय ने संजीदगी से कहा, “बोथ फॉर आस्किंग इट एंड आल्सो फॉर व्हाट यू सॉ बिफोर,”
“नहीं अजय,” रूचि बोली, “अच्छा छोड़ो ये सब! आज की क्लासेज़ डिसकस कर लें?”
“ओके!”
“एंड हू नोस...” रूचि ने थोड़ा शरमाते और थोड़ी शरारत से कहा, “आई माइसेल्फ माइट टेल यू आल अबाउट इट समटाइम,”
“ओके!”
रूचि ने कुछ कहा नहीं... बस अनिश्चित सी बैठी रही।
“क्या बात है रूचि? मन में कोई और बात भी है क्या?”
रूचि ने अभी भी कुछ नहीं कहा, लेकिन उसके चेहरे का भाव बदल गया।
“क्या बात है? कह दो अब...” अजय ने कहा, “ऐसे मन में कुछ न रखो। हम दोनों अच्छे दोस्त हैं न?”
“व्वो... बात दरअसल ये है कि... कल... कल शाम... मैंने... वो... तुमको आंटी का... आंटी जी का...”
अजय ने उसको अबूझ सी नज़र से देखा और फिर मुस्कुराने लगा। इस रहस्योद्घाटन पर लज्जित होने की आवश्यकता नहीं थी। यह कोई अपराध नहीं था। यह तो अजय और माया की ख़ुशकिस्मती थी कि उन दोनों को अपनी माँ की शुद्ध ममता इस उम्र में भी मिल रही थी।
“तो तुमने मुझे माँ का दूधू पीते देख लिया?”
रूचि ने चौंक कर अजय को देखा, फिर ‘हाँ’ में सर हिलाया।
“ओके, देन लेट मी टेल यू एवरीथिंग,”
कह कर अजय ने अपनी दोनों माताओं की प्रेग्नेंसी, अपने ताऊ जी और माँ की मृत्यु, और उसके बाद की परिस्थितियों के बारे में बताया। यह भी कि कैसे माया दीदी के कहने पर माँ ने उन दोनों को ही स्तनपान कराना शुरू किया था, जो अभी तक चल रहा था। रूचि यह सब सुन कर आश्चर्यचकित हो गई।
“यार ये अमेज़िंग है न!”
“क्या?”
“यही कि माँ तुम दोनों की इतना प्यार करती हैं,”
रूचि ने नोटिस नहीं किया कि उसने किरण जी को ‘माँ’ कह कर सम्बोधित किया था।
“सभी की माँएँ करती हैं,”
“हाँ... लेकिन इस तरह से नहीं!” रूचि ने कहा।
“रूचि... यार... आई नो कि मेरी फ़ैमिली बाकियों से अलग है। अब देखो न, मेरी दीदी, मेरी सगी दीदी नहीं हैं... लेकिन ओनेस्टली, वो मेरी सगी दीदी से बढ़ कर है।” अजय ने ठहरते हुए बताया, “... और माँ! माँ भी मेरी सगी माँ नहीं हैं। लेकिन अपने बेटे से ज़्यादा वो मुझे प्यार करती हैं।”
“अजय, आई अंडरस्टैंड इट... ट्रस्ट मी!”
“थैंक यू, रूचि!”
रूचि ने गहरी साँस ली और बोली, “चलो, अब काम कर लें?”
“यस मैम,”
अगले तीन घण्टे तक दोनों आज जो पढ़ाया गया था, वो सब डिसकस किया और जो भी काम छुट्टियों में करने को मिले थे, वो सब निबटाए। रूचि चाहती थी कि कमल भी सब कर लेता, लेकिन अजय ने उसको समझा दिया कि वो सुनिश्चित करेगा कि कमल सब काम समय पर निबटा ले। जब दोनों को फुर्सत हुई तब तक शाम हो गई थी।
रूचि ने अपनी रिस्टवॉच को देख कर चौंकते हुए कहा, “अरे यार... ये तो बहुत देर हो गई! माँ परेशान हो रही होंगीं,”
“ओह,” अजय ने भी दीवार घड़ी में समय देख कर कहा, “हाँ... तीन घण्टे हो गए और पता ही नहीं चला,”
“चलती हूँ,”
“ओके,”
रूचि ने जल्दी जल्दी सारा सामान अपने बैग में भरा और सीढ़ियाँ उतरती हुई नीचे आ गई। अजय उसके पीछे पीछे ही चलता हुआ आ गया।
“अरे बेटा,” किरण जी ने जैसे ही रूचि को देखा वो बोलीं, “आ गए दोनों? बहुत देर तक पढ़ाई हुई आज तो!”
“जी आंटी जी, छुट्टियों में जो भी काम करने थे, सब हो गए!”
“अरे बढ़िया है फिर तो!” किरण जी ने कहा, “आओ, कुछ खाना खा लो।”
“नहीं आंटी जी,” रूचि बोली, “पहले ही बहुत देर हो गई है।”
“अरे! उस बात की चिंता न करो। ... मैंने तेरे घर में बात कर ली है। तेरी माँ ने उठाया था फ़ोन।” किरण जी ने बताया, “उनसे कह दिया है कि हम बिटिया को खाना खिला कर ही वापस भेजेंगे!”
“हा हा हा... आंटी जी! आप भी न!”
“क्यों? यहाँ का खाना पसंद नहीं है?”
“यहाँ का सब कुछ पसंद है आंटी जी, सब कुछ!” उसने बुदबुदाते हुए कहा, “सब कुछ!”
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रूचि को उसके घर छोड़ने अजय और अशोक जी दोनों गए।
अजय अभी भी कार चलाना सीख रहा था, इसलिए अशोक जी उसको अकेले कार चलाने नहीं देना चाहते थे। लेकिन वो इस बात से खुश थे कि अजय का ड्राइविंग में नियंत्रण और समझ बहुत अच्छी हो गई थी। उसका कारण उनको पता था, लेकिन फिर भी वो खुश ज़रूर थे। बेटा जब पुरुषों जैसा व्यवहार करने लगता है, तब पिता की चिंता कई गुणा कम हो जाती है और अभिमान कई गुणा बढ़ जाता है।
अजय ने उनको रागिनी के बारे में बताया हुआ था। ऐसे में अजय के जीवन में रूचि के आने की उम्मीद से अब उनको उसके भविष्य के बारे में भी कम चिंता होने लगी थी।
“बेटा,” अशोक जी बोले, “राणा भाई साहब के घर के जैसे ही मेरा भी मन हो रहा है कि हमारे यहाँ भी अच्छा माहौल बने। पूजा पाठ हो... स्वस्थ माहौल हो।”
“बिल्कुल पापा,” अजय बोला, “आप सही कह रहे हैं।”
“और अब इस त्यौहार से बेहतर समय क्या हो सकता है यह शुरू करने का!”
“जी पापा! क्यों न इस बार हवन करवाएँ...”
“हाँ, वो भी... तुमको गाँव गए हुए कितना समय हो गया?”
“पता नहीं पापा... शायद... दस साल?”
“हम्म...”
“क्यों? क्या हुआ पापा?”
“कुछ नहीं। ऐसे ही पूछा,” वो बोले, फिर बात बदलते हुए बोले, “वैसे, आई ऍम हैप्पी कि तुम और रूचि साथ में टाइम बिताते हो...”
“पापा!”
“अरे, क्या हो गया? इतनी अच्छी लड़की है वो!” अशोक जी बोले, “मुझे बहुत अच्छी लगती है वो... भाभी को भी,”
अजय मुस्कुराया।
“तुम दोनों सेम यूनिवर्सिटीज़ में अप्लाई करो।” अशोक जी ने सुझाया, “आई विल पे फ़ॉर ट्यूशन... फॉर बोथ ऑफ़ यू,”
“क्यों पापा?” अजय बोला, “मैं तो स्कॉलरशिप ले कर जाना चाहता हूँ... रूचि भी!”
“फैंटास्टिक! तो अगर फुल स्कॉलरशिप नहीं मिलती है, तो जो डिफरेंस रहेगा, मैं दूँगा!”
“और रूचि के पेरेंट्स क्या कहेंगे? आप किस हक़ से उसकी पढ़ाई का ख़र्च देना चाहते हैं?”
“अरे! क्या गलत है अपनी बहू की पढ़ाई पर ख़र्च करने में?”
“बहू! हा हा हा हा हा! पापा!! आप भी न!”
“हा हा हा... देखो बेटे, बिटिया जाने वाली है, तो मन में अलग तरह के विचार आने लगते हैं न... एक बिटिया जाए, तो दूसरी आये!”
“पापा, लेकिन पैट्रिशिया भाभी तो आ ही रही हैं न,”
“हाँ, बात सही है... लेकिन वो अमेरिका में आ रही है।”
अजय मुस्कुराया।
“कभी कभी प्रशांत से निराशा होती है।”
“डोंट वरी पापा, सब ठीक होगा।”
“नहीं नहीं... वो नहीं। मन करता है न कि वो भी यहाँ होता। साथ में हमारे!”
“हम्म्म... आई नो पापा!” अजय बोला, “लेकिन भैया का भी सोचना चाहिए न? उनकी लाइफ... उनका कैरियर... और फिर अमेरिका एक अच्छा देश है।”
“तुम भी यहाँ नहीं रहना चाहते?”
“नहीं पापा। मैं तो आपके और माँ के पास ही रहना चाहता हूँ। आप दोनों जहाँ होंगे, वहीं मैं भी रहूँगा!”
“और रूचि?”
“मतलब?”
“मतलब, वो कहाँ रहना चाहती है?”
“इतनी बात नहीं हुई है पापा।”
“तुमको पसंद तो है न वो?”
“अच्छी लड़की है वो पापा,” अजय बोला, “लेकिन... उसको ले कर कोई रोमांटिक थॉट्स नहीं हैं...”
“मतलब वो तुमको अट्रैक्ट नहीं करती?”
“अच्छी लगती है पापा, लेकिन... लेकिन न जाने किस बात को ले कर मन में दुविधा है!”
“क्यों?”
“पता नहीं पापा,”
“कोई और पसंद है?”
“पापा!”
“अरे क्या पापा! और तुम कोई छोटे बच्चे तो नहीं हो। कोई पसंद हो तो बताओ,”
“पसंद तो है,”
“कौन?”
“मेरी टीचर है पापा,”
“डू आई नो हर?”
“शायद मिले हों,” अजय थोड़ा रुक कर बोला, “पापा, आई ऍम नॉट सेइंग कि मुझे उनसे शादी करनी है... लेकिन मुझे वो अच्छी लगती हैं।”
“हाँ हाँ... नाम तो बताओ?”
“शशि... शशि सिंह!”
“शशि... हम्म्म... मैथ्स टीचर न?”
अजय ने ‘हाँ’ में सर हिलाया।
“यार,” अशोक जी ने हँसते हुए कहा, “तेरी टीचर से कैसे बात चलाएँ? आई मीन सही तो रहेगी, लेकिन उसको सच भी तो नहीं बता सकते!”
“पापा!”
“हम ये सोच रहे थे कि अपने बेटे के लिए प्यारी सी लड़की लाएँगे... और हमारे बेटे को ‘मेरा नाम जोकर’ फ़िल्म बनानी है!” अशोक जी ने विनोदपूर्वक कहा।
“हा हा हा हा!” उनकी बात पर अजय ठहाके मार कर हँसने लगा, “पापा! मैं ये नहीं कह रहा हूँ कि मुझे शशि मैम से शादी करनी है। मैं बस ये कह रहा हूँ कि मुझे उनकी क़्वालिटीज़ वाली लड़की चाहिए!”
“रूचि कैसी है? उसमें कैसी क्वालिटीज़ हैं?”
“आई थिंक शी इस बेटर!”
“देयर यू गो!” अशोक जी बोले, “फिर तो कोई प्रॉब्लम ही नहीं है! ... रूचि में मन लगाओ न!”
अजय ने एक फ़ीकी सी मुस्कान दी।
“नहीं सच में! अगर तुम इंटरेस्टेड हो, तो जैसे माया बिटिया के साथ किया था... मैं और भाभी जा कर रूचि बिटिया के पैरेंट्स से बात कर लेंगे।” अशोक जी ने उत्साह से कहा, “सारी प्रॉब्लम ही ख़तम हो जाएगी!”
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