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Romance फ़िर से

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avsji

Weaving Words, Weaving Worlds.
Supreme
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दोस्तों - इस अपडेट सूची को स्टिकी पोस्ट बना रहा हूँ!
लेकिन इसका यह मतलब नहीं कि केवल पढ़ कर निकल लें। यह केवल आपकी सुविधा के लिए है। चर्चा बंद नहीं होनी चाहिए :)

अपडेट 1; अपडेट 2; अपडेट 3; अपडेट 4; अपडेट 5; अपडेट 6; अपडेट 7; अपडेट 8; अपडेट 9; अपडेट 10; अपडेट 11; अपडेट 12; अपडेट 13; अपडेट 14; अपडेट 15; अपडेट 16; अपडेट 17; अपडेट 18; अपडेट 19; अपडेट 20; अपडेट 21; अपडेट 22; अपडेट 23; अपडेट 24; अपडेट 25; अपडेट 26; अपडेट 27; अपडेट 28; अपडेट 29; अपडेट 30; अपडेट 31; अपडेट 32; अपडेट 33; अपडेट 34; अपडेट 35; अपडेट 36; अपडेट 37; अपडेट 38; अपडेट 39; अपडेट 40; अपडेट 41; अपडेट 42; अपडेट 43; अपडेट 44; अपडेट 45; अपडेट 46; अपडेट 47; अपडेट 48; अपडेट 49; अपडेट 50; अपडेट 51; अपडेट 52; अपडेट 53; अपडेट 54; अपडेट 55; अपडेट56; अपडेट57; अपडेट 58; अपडेट 59; अपडेट 60; अपडेट 61; अपडेट 62; अपडेट 63; अपडेट 64; अपडेट 65; अपडेट 66;
 
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parkas

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अपडेट 35:


“आई ऍम सॉरी, रूचि,” उसने जल्दी से निक्कर पहनते हुए कहा, “दैट यू हैड टू सी दैट,”

“लेकिन वो था क्या?” इस बार रूचि ने ज़ोर दे कर पूछा।

“डोंट यू एवर फ़ील... एक्साइटेड?” अजय ने उल्टा प्रश्न पूछा।

“व्हाट?”

“तुमको कभी एक्साइटमेंट नहीं फ़ील होता? ... सेक्सुअल एक्साइटमेंट,”

“कैसी बातें कर रहे हो?” रूचि ने सकुचाते हुए कहा।

ऐसी बातें कोई किसी से कैसे कहे?

“मुझको होता है...” अजय ने उसकी बात को नज़रअंदाज़ करते हुए कहा, “इसलिए मैं उसको शांत कर रहा था।”

“कैसे?” न जाने रूचि ने क्यों पूछ लिया।

“व्हेन माय पीनस गेट्स हार्ड, आई स्ट्रोक इट... टिल आई इजैकुलेट,”

“इजैकुलेट?”

अजय ने ‘हाँ’ में सर हिलाया, “टिल सीमन कम्स आउट ऑफ़ इट,” उसने समझाते हुए कहा।

यह बात रूचि को पता थी।

“एंड... दैट कॉम्स यू डाउन?”

अजय ने ‘हाँ’ में सर हिलाया।

“तुम कैसे करती हो?” अजय ने रूचि से पूछा।

“हट्ट! बेशर्म कहीं के... लड़कियों से ऐसी बातें करता है कोई...”

“क्यों? लड़कियाँ ह्यूमन नहीं होतीं क्या? उनमें कोई फ़ीलिंग्स नहीं होतीं?”

“हाँ हाँ... होती हैं। लेकिन ऐसे नहीं पूछा जाता उनसे कुछ!”

“क्या करती हो फिर तुम?” अजय ने कुरेदा, “हाऊ डू यू कॉम डाउन?”

“अजय... मत पूछो प्लीज़,”

“ओके! सॉरी, रूचि!”

“नहीं सॉरी वाली बात नहीं है अजय! बट इट इस नॉट समथिंग दैट वन आस्क्स अ गर्ल!”

“इसीलिए आई ऍम सॉरी,” अजय ने संजीदगी से कहा, “बोथ फॉर आस्किंग इट एंड आल्सो फॉर व्हाट यू सॉ बिफोर,”

“नहीं अजय,” रूचि बोली, “अच्छा छोड़ो ये सब! आज की क्लासेज़ डिसकस कर लें?”

“ओके!”

“एंड हू नोस...” रूचि ने थोड़ा शरमाते और थोड़ी शरारत से कहा, “आई माइसेल्फ माइट टेल यू आल अबाउट इट समटाइम,”

“ओके!”

रूचि ने कुछ कहा नहीं... बस अनिश्चित सी बैठी रही।

“क्या बात है रूचि? मन में कोई और बात भी है क्या?”

रूचि ने अभी भी कुछ नहीं कहा, लेकिन उसके चेहरे का भाव बदल गया।

“क्या बात है? कह दो अब...” अजय ने कहा, “ऐसे मन में कुछ न रखो। हम दोनों अच्छे दोस्त हैं न?”

“व्वो... बात दरअसल ये है कि... कल... कल शाम... मैंने... वो... तुमको आंटी का... आंटी जी का...”

अजय ने उसको अबूझ सी नज़र से देखा और फिर मुस्कुराने लगा। इस रहस्योद्घाटन पर लज्जित होने की आवश्यकता नहीं थी। यह कोई अपराध नहीं था। यह तो अजय और माया की ख़ुशकिस्मती थी कि उन दोनों को अपनी माँ की शुद्ध ममता इस उम्र में भी मिल रही थी।

“तो तुमने मुझे माँ का दूधू पीते देख लिया?”

रूचि ने चौंक कर अजय को देखा, फिर ‘हाँ’ में सर हिलाया।

“ओके, देन लेट मी टेल यू एवरीथिंग,”

कह कर अजय ने अपनी दोनों माताओं की प्रेग्नेंसी, अपने ताऊ जी और माँ की मृत्यु, और उसके बाद की परिस्थितियों के बारे में बताया। यह भी कि कैसे माया दीदी के कहने पर माँ ने उन दोनों को ही स्तनपान कराना शुरू किया था, जो अभी तक चल रहा था। रूचि यह सब सुन कर आश्चर्यचकित हो गई।

“यार ये अमेज़िंग है न!”

“क्या?”

“यही कि माँ तुम दोनों की इतना प्यार करती हैं,”

रूचि ने नोटिस नहीं किया कि उसने किरण जी को ‘माँ’ कह कर सम्बोधित किया था।

“सभी की माँएँ करती हैं,”

“हाँ... लेकिन इस तरह से नहीं!” रूचि ने कहा।

“रूचि... यार... आई नो कि मेरी फ़ैमिली बाकियों से अलग है। अब देखो न, मेरी दीदी, मेरी सगी दीदी नहीं हैं... लेकिन ओनेस्टली, वो मेरी सगी दीदी से बढ़ कर है।” अजय ने ठहरते हुए बताया, “... और माँ! माँ भी मेरी सगी माँ नहीं हैं। लेकिन अपने बेटे से ज़्यादा वो मुझे प्यार करती हैं।”

“अजय, आई अंडरस्टैंड इट... ट्रस्ट मी!”

“थैंक यू, रूचि!”

रूचि ने गहरी साँस ली और बोली, “चलो, अब काम कर लें?”

“यस मैम,”

अगले तीन घण्टे तक दोनों आज जो पढ़ाया गया था, वो सब डिसकस किया और जो भी काम छुट्टियों में करने को मिले थे, वो सब निबटाए। रूचि चाहती थी कि कमल भी सब कर लेता, लेकिन अजय ने उसको समझा दिया कि वो सुनिश्चित करेगा कि कमल सब काम समय पर निबटा ले। जब दोनों को फुर्सत हुई तब तक शाम हो गई थी।

रूचि ने अपनी रिस्टवॉच को देख कर चौंकते हुए कहा, “अरे यार... ये तो बहुत देर हो गई! माँ परेशान हो रही होंगीं,”

“ओह,” अजय ने भी दीवार घड़ी में समय देख कर कहा, “हाँ... तीन घण्टे हो गए और पता ही नहीं चला,”

“चलती हूँ,”

“ओके,”

रूचि ने जल्दी जल्दी सारा सामान अपने बैग में भरा और सीढ़ियाँ उतरती हुई नीचे आ गई। अजय उसके पीछे पीछे ही चलता हुआ आ गया।

“अरे बेटा,” किरण जी ने जैसे ही रूचि को देखा वो बोलीं, “आ गए दोनों? बहुत देर तक पढ़ाई हुई आज तो!”

“जी आंटी जी, छुट्टियों में जो भी काम करने थे, सब हो गए!”

“अरे बढ़िया है फिर तो!” किरण जी ने कहा, “आओ, कुछ खाना खा लो।”

“नहीं आंटी जी,” रूचि बोली, “पहले ही बहुत देर हो गई है।”

“अरे! उस बात की चिंता न करो। ... मैंने तेरे घर में बात कर ली है। तेरी माँ ने उठाया था फ़ोन।” किरण जी ने बताया, “उनसे कह दिया है कि हम बिटिया को खाना खिला कर ही वापस भेजेंगे!”

“हा हा हा... आंटी जी! आप भी न!”

“क्यों? यहाँ का खाना पसंद नहीं है?”

“यहाँ का सब कुछ पसंद है आंटी जी, सब कुछ!” उसने बुदबुदाते हुए कहा, “सब कुछ!”


**


रूचि को उसके घर छोड़ने अजय और अशोक जी दोनों गए।

अजय अभी भी कार चलाना सीख रहा था, इसलिए अशोक जी उसको अकेले कार चलाने नहीं देना चाहते थे। लेकिन वो इस बात से खुश थे कि अजय का ड्राइविंग में नियंत्रण और समझ बहुत अच्छी हो गई थी। उसका कारण उनको पता था, लेकिन फिर भी वो खुश ज़रूर थे। बेटा जब पुरुषों जैसा व्यवहार करने लगता है, तब पिता की चिंता कई गुणा कम हो जाती है और अभिमान कई गुणा बढ़ जाता है।

अजय ने उनको रागिनी के बारे में बताया हुआ था। ऐसे में अजय के जीवन में रूचि के आने की उम्मीद से अब उनको उसके भविष्य के बारे में भी कम चिंता होने लगी थी।

“बेटा,” अशोक जी बोले, “राणा भाई साहब के घर के जैसे ही मेरा भी मन हो रहा है कि हमारे यहाँ भी अच्छा माहौल बने। पूजा पाठ हो... स्वस्थ माहौल हो।”

“बिल्कुल पापा,” अजय बोला, “आप सही कह रहे हैं।”

“और अब इस त्यौहार से बेहतर समय क्या हो सकता है यह शुरू करने का!”

“जी पापा! क्यों न इस बार हवन करवाएँ...”

“हाँ, वो भी... तुमको गाँव गए हुए कितना समय हो गया?”

“पता नहीं पापा... शायद... दस साल?”

“हम्म...”

“क्यों? क्या हुआ पापा?”

“कुछ नहीं। ऐसे ही पूछा,” वो बोले, फिर बात बदलते हुए बोले, “वैसे, आई ऍम हैप्पी कि तुम और रूचि साथ में टाइम बिताते हो...”

“पापा!”

“अरे, क्या हो गया? इतनी अच्छी लड़की है वो!” अशोक जी बोले, “मुझे बहुत अच्छी लगती है वो... भाभी को भी,”

अजय मुस्कुराया।

“तुम दोनों सेम यूनिवर्सिटीज़ में अप्लाई करो।” अशोक जी ने सुझाया, “आई विल पे फ़ॉर ट्यूशन... फॉर बोथ ऑफ़ यू,”

“क्यों पापा?” अजय बोला, “मैं तो स्कॉलरशिप ले कर जाना चाहता हूँ... रूचि भी!”

“फैंटास्टिक! तो अगर फुल स्कॉलरशिप नहीं मिलती है, तो जो डिफरेंस रहेगा, मैं दूँगा!”

“और रूचि के पेरेंट्स क्या कहेंगे? आप किस हक़ से उसकी पढ़ाई का ख़र्च देना चाहते हैं?”

“अरे! क्या गलत है अपनी बहू की पढ़ाई पर ख़र्च करने में?”

“बहू! हा हा हा हा हा! पापा!! आप भी न!”

“हा हा हा... देखो बेटे, बिटिया जाने वाली है, तो मन में अलग तरह के विचार आने लगते हैं न... एक बिटिया जाए, तो दूसरी आये!”

“पापा, लेकिन पैट्रिशिया भाभी तो आ ही रही हैं न,”

“हाँ, बात सही है... लेकिन वो अमेरिका में आ रही है।”

अजय मुस्कुराया।

“कभी कभी प्रशांत से निराशा होती है।”

“डोंट वरी पापा, सब ठीक होगा।”

“नहीं नहीं... वो नहीं। मन करता है न कि वो भी यहाँ होता। साथ में हमारे!”

“हम्म्म... आई नो पापा!” अजय बोला, “लेकिन भैया का भी सोचना चाहिए न? उनकी लाइफ... उनका कैरियर... और फिर अमेरिका एक अच्छा देश है।”

“तुम भी यहाँ नहीं रहना चाहते?”

“नहीं पापा। मैं तो आपके और माँ के पास ही रहना चाहता हूँ। आप दोनों जहाँ होंगे, वहीं मैं भी रहूँगा!”

“और रूचि?”

“मतलब?”

“मतलब, वो कहाँ रहना चाहती है?”

“इतनी बात नहीं हुई है पापा।”

“तुमको पसंद तो है न वो?”

“अच्छी लड़की है वो पापा,” अजय बोला, “लेकिन... उसको ले कर कोई रोमांटिक थॉट्स नहीं हैं...”

“मतलब वो तुमको अट्रैक्ट नहीं करती?”

“अच्छी लगती है पापा, लेकिन... लेकिन न जाने किस बात को ले कर मन में दुविधा है!”

“क्यों?”

“पता नहीं पापा,”

“कोई और पसंद है?”

“पापा!”

“अरे क्या पापा! और तुम कोई छोटे बच्चे तो नहीं हो। कोई पसंद हो तो बताओ,”

“पसंद तो है,”

“कौन?”

“मेरी टीचर है पापा,”

“डू आई नो हर?”

“शायद मिले हों,” अजय थोड़ा रुक कर बोला, “पापा, आई ऍम नॉट सेइंग कि मुझे उनसे शादी करनी है... लेकिन मुझे वो अच्छी लगती हैं।”

“हाँ हाँ... नाम तो बताओ?”

“शशि... शशि सिंह!”

“शशि... हम्म्म... मैथ्स टीचर न?”

अजय ने ‘हाँ’ में सर हिलाया।

“यार,” अशोक जी ने हँसते हुए कहा, “तेरी टीचर से कैसे बात चलाएँ? आई मीन सही तो रहेगी, लेकिन उसको सच भी तो नहीं बता सकते!”

“पापा!”

“हम ये सोच रहे थे कि अपने बेटे के लिए प्यारी सी लड़की लाएँगे... और हमारे बेटे को ‘मेरा नाम जोकर’ फ़िल्म बनानी है!” अशोक जी ने विनोदपूर्वक कहा।

“हा हा हा हा!” उनकी बात पर अजय ठहाके मार कर हँसने लगा, “पापा! मैं ये नहीं कह रहा हूँ कि मुझे शशि मैम से शादी करनी है। मैं बस ये कह रहा हूँ कि मुझे उनकी क़्वालिटीज़ वाली लड़की चाहिए!”

“रूचि कैसी है? उसमें कैसी क्वालिटीज़ हैं?”

“आई थिंक शी इस बेटर!”

“देयर यू गो!” अशोक जी बोले, “फिर तो कोई प्रॉब्लम ही नहीं है! ... रूचि में मन लगाओ न!”

अजय ने एक फ़ीकी सी मुस्कान दी।

“नहीं सच में! अगर तुम इंटरेस्टेड हो, तो जैसे माया बिटिया के साथ किया था... मैं और भाभी जा कर रूचि बिटिया के पैरेंट्स से बात कर लेंगे।” अशोक जी ने उत्साह से कहा, “सारी प्रॉब्लम ही ख़तम हो जाएगी!”

**
Bahut hi badhiya update diya hai avsji bhai....
Nice and beautiful update....
 
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kas1709

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अगले दिन तीनों अपने डॉक्टर की रेकमेंडेशन पर दिल्ली के एक बड़े अस्पताल में जाते हैं अपना पूरा चेकअप करवाने। जाते समय वो अपने साथ माया को भी ले लेते हैं। अशोक जी किशोर राणा जी को भी सपरिवार साथ में चलने को कहते हैं, लेकिन वो उनको बताते हैं कि वो एक महीने में स्वयं जाने वाले हैं, और वो भी अपना पूरा चेकअप करवाएँगे। शरीर का पूरा चेकअप करवाने में समय लगता है, ख़ास कर तब जब आप एलर्जी के लिए भी टेस्ट करवा रहे हों। लिहाज़ा सब कुछ पूरा होने में लगभग सारा दिन निकल गया। उसके बाद अशोक जी अपने ऑफिस के लिए निकल गए, और अजय और किरण जी माया को राणा साहब के यहाँ छोड़ कर अपने घर आ गए।

जब वो अजय ‘वापस’ आया था, तब से उसने एक अंतर देखा था अपने शरीर में - सेक्स को ले कर प्रबल इच्छा महसूस होती थी उसको। कुछ वर्षों के खट्टे अनुभवों के कारण अजय को स्तम्भन होना ही बंद हो गया था। रागिनी जैसी ज़हरीली औरत के संग, और फिर अकारण ही जेल की सैर ने विपरीत लिंग के लिए होने वाले सहज आकर्षण भाव को लगभग समाप्त कर दिया था। लेकिन वापस किशोरवय होने के बाद अब वो सारे भाव वापस आ गए थे। इस उम्र में यह स्वाभाविक ही है। वयस्क अजय इन बातों से अच्छी तरह से वाक़िफ़ था। अधिकतर समय वो स्वयं को नियंत्रित रखता था, लेकिन ख़ास तौर पर सुबह उठने के बाद जो स्तम्भन उसको महसूस होता, वो बिना किसी प्रयास के शांत नहीं हो पाता था। किसी किशोरवय लड़के के लिए वो प्रयास प्रायः हस्तमैथुन ही होते हैं। तो सुबह उठ कर सबसे पहला काम यही होने लगा। उसके बाद भी दिन में कई बार उसको कठोर स्तम्भन महसूस होता ही रहता - लेकिन उन पर नियंत्रण रखना अपेक्षाकृत आसान था।

लेकिन आज अस्पताल में कई बार ऐसे घटनाक्रम हुए कि घर वापस आ कर अजय को फिर से कठोर स्तम्भन महसूस हो रहा था। घटनाक्रम, जैसे कि अस्पताल में एक महिला नर्स के सामने पूर्ण नग्न होना। वो नर्स कोई ख़ास सुन्दर भी नहीं थी - लेकिन हाँ, उसका शरीर अवश्य ही स्वस्थ आकार लिए हुए था, और अच्छे अनुपात में उसके शरीर के सभी कटाव थे। उसके सामने ही जब अजय का लिंग कठोर होने लगा, तो अजय को बहुत ही लज्जा महसूस हुई। लेकिन नर्स ने मुस्कुरा कर उस बात को नज़रअंदाज़ कर दिया और उसको समझाया कि यह एक सामान्य बात है, और वो कुछ ही समय में ‘ठीक’ हो जाएगा।

अब घर वापस आ कर अजय के मन में उस घटना की पुनरावृत्ति हो रही थी, और निराशाजनक रूप से रागिनी के साथ बिताए हुए अंतरंग समय की यादें भी ताज़ा हो रही थीं।

ये ज़हरीली नागिनें इतनी सुन्दर क्यों होती हैं?

उसको आज भी याद है कि सुहाग सेज पर बैठी हुई उसकी नई-नवेली दुल्हन, रागिनी, कोई शर्माती, सकुचाती लड़की नहीं थी, बल्कि साक्षात् माया-मोहिनी थी, जिसको पहले से ही अंदाज़ा था कि उसका कौन सा लीवर दबाने से वो किस खाने जा कर बैठेगा। गुलाब के फूलों की पंखुड़ियों से सजी सेज पर रागिनी कोई घूँघट वूँघट काढ़े नहीं बैठी थी - उसकी साड़ी का आँचल ख़तरनाक़ तरीके से नीचे कुछ इस तरह से ढलका हुआ था कि उसकी लाल रंग की तंग ब्लाउज में से उसके स्तनों के बीच की सीधी, गहरी, और लम्बी रेखा अजय को साफ़ दिखाई दे रही थी। वो रेखा उसको ऐसे लुभा रही थी, जैसे सुधा से भरा पुष्प मधुमक्खी को लुभाता है! उसकी बड़ी बड़ी, कजरारी आँखें अजय को ही देख रही थीं... उसके होंठों पर क़ातिल मुस्कान थी। कुल मिला कर रागिनी ऐसी लग रही थी कि जैसे वो कोई प्रतिबंधित फल - forbidden fruit - हो! और जो फल प्रतिबंधित होते हैं, उनको खाने का मन भी करता है और उनको खा कर अघाया भी नहीं जा सकता है।

तो अजय ने अपने उस नव-विवाहित फल को अच्छे से खाया! सुहागरात जो शुरू हुई, वो कब सुहाग-सुबह और लगभग सुहाग-दोपहरिया बन गई, उन दोनों को पता ही न चला! पता भी कैसे चलता? रागिनी का हर अंग बड़ी फुर्सत से तराशा हुआ था ईश्वर ने! उसके स्तन ऐसे थे कि लगता था कि अगर उनको थोड़ा दबा कर पिया जाए, तो आम के रस जैसा मीठा रस निकल पड़ेगा उनमें से! उसके भरे भरे, रसीले होंठ ऐसे थे जिनको चूमे बिना नहीं रहा जा सकता था। उसके नितम्ब ऐसे ठोस थे, कि उनको हथेलियों से कुचल मसल कर मुलायम करने का मन होने लगे! और उसकी योनि ऐसी थी कि सृष्टि की हर बूँद से उसको भरने का मन करे।

नवविवाहित रागिनी और अजय ने वो आदि-युगीन खेल पाँच बार खेला, और खेल खेल कर पस्त हो गए। बिस्तर पर अपना खेल शुरू कर के कब दोनों ज़मीन पर आ गिरे, पता ही न चला। पूरी तरह आदिम, पूरी तरह वासना से पूर्ण खेल! एक दूसरे में गुत्थमगुत्थ हो कर, एकदम नग्न, दीन दुनिया से बेसुध! सूरज सर पर चढ़ आने को हो आया था, लेकिन दोनों का कोई अता पता ही नहीं था... ऐसे में माँ आई थीं दोनों को जगाने। दोनों को नग्न अवस्था में एक दूसरे से लिपटा हुआ देख कर उनको बहुत संतोष हुआ। होता भी क्यों न - अपने परिवार के खुशहाल भविष्य के लिए उन्होंने क्या क्या सोचा हुआ था! माया की शादी में चूक हो गई थी, लेकिन लगता है कि कम से कम अजय का वैवाहिक जीवन सुख से रहेगा!

थके अलसाए हुए थे दोनों... लेकिन फिर भी, माँ द्वारा जगाये जाने के बाद एक बार फिर से रमण में रत हो गए। उसके बाद दोनों ने साथ में नहाया और तैयार हो कर नीचे आ गए। लगातार छः सत्रों के सम्भोग के कारण दोनों के ही संवेदनशील अंगों में जलन और मीठी पीड़ा महसूस हो रही थी। रागिनी ने लखनवी चिकनकारी किया हुआ एक सूती शलवार कुर्ता पहना था... उसके अंदर कुछ भी नहीं। यही दशा अजय की भी थी। उसने भी एक ढीला सा सूती पजामा कुर्ता पहना हुआ था... उसके अंदर कुछ नहीं। किसी संस्कारी बहू की तरह रागिनी ने तीन बार माँ के पैर छुए! वो इतनी सी बात पर निहाल हो गईं। अजय भी इतनी सी बात पर लरज गया।

अपनी बहू की तक़लीफ़ किरण जी को समझ में आ गई थी। उन्होंने अजय को शहद की शीशी पकड़ाई और कहा कि बहू के निप्पल पर शहद लगा दे - उसको आराम मिलेगा। अजय को समझा कि शायद माँ ने अभी ही यह काम करने को कहा है। उसने आनन फ़ानन में रागिनी का कुर्ता उतार फेंका और उसके चूचकों पर शहद लगाने लगा। जो स्तन ऐसे हों जिनको देख कर ऐसा लगे कि अगर उनको थोड़ा दबा दिया जाय तो उनमें से आम के रस जैसा मीठा रस निकल पड़ेगा, अगर उन पर शहद जैसा मीठा रस लगा रहे हों, तो उनको पिये बिना कैसे रहा जा सकता है? अगले ही पल रागिनी के चूचक अजय के मुँह में मिठास घोलने लगे थे।

‘अरे कुछ देर के लिए रुक जा नालायक,’ माँ ने उसको एक मीठी झिड़की दी थी, ‘कुछ तो सब्र कर ले,’

उनकी इस बात पर तीनों कैसे हँसे थे! रागिनी कैसे माँ के सीने में सिमट गई थी!

केवल एक ही दिन में रागिनी ने अजय को पूरी तरह से अपने मोह-पाश में बाँध लिया था... और माँ को भी! माँ ने ढूँढा था उसको अपने लाडले के लिए... वो बहुत खुश थीं कि अजय को उनकी पसंद की हुई लड़की अच्छी लगी। उधर, अजय स्वयं को दुनिया का सबसे भाग्यशाली इंसान मानने लगा था। न तो उसको अभी पता था कि रागिनी की असलियत क्या है, और न ही माँ को! लेकिन वो एक अलग बात थी।

इस समय समस्या यह थी कि अजय के अनुभव वयस्कों वाले थे और शरीर किशोरों का! पूरी ऊर्जा से लबरेज! दिन के अनुभवों और रागिनी की यादें... इस समय बेहद कठोर स्तम्भन था उसका और बिना उसको शांत किए अजय को चैन नहीं आने वाला था।

कमरे के साथ लगे बाथरूम में जा कर उसने अपनी पैन्ट्स और चड्ढी उतारीं, और अपने लिंग को अपनी हथेली में ले कर वो उसको सहलाने लगा। पहले धीरे धीरे और फिर थोड़ा तेजी से।

किशोरवय होने के अपने अलग ही लाभ होते हैं।

एक लाभ होता है अभूतपूर्व कामुक ऊर्जा! इतने वर्षों के बाद उसके जीवन में फिर से वो समय आया था जहाँ वो फिर से हस्तमैथुन का आनंद ले पा रहा था... इसलिए वो उस आनंद को जल्दी समाप्त नहीं होने देना चाहता था। अपने हाथ की गति को घटाते - बढ़ाते वो उस अद्भुत निस्सीम आनंद को नियंत्रित और देर तक महसूस करने लगा। लेकिन हर बात का अंत होता ही है। करीब पाँच मिनट की इस स्वयं-सेवा के बाद उसको स्खलन होने लगा और वो आँखें बंद किये, सिसकारते हुए उसका आनंद लेता रहा। फिर गहरी साँसे ले कर, स्वयं को संयत कर के उसने अपने हाथ और लिंग को सिंक में साफ़ किया और अपने कमरे में वापस आ गया।

... और कमरे में आते ही रूचि को अपने सामने खड़ा देख कर उसका चेहरा फ़क्क रह गया।

“रु...ची...” अजय हकबका कर थोड़ी ऊँची आवाज़ में बोला, “तुम... तुम यहाँ... क्या कर रही हो?”

“म्म्ममैं...?”

रूचि ने थोड़े समय पहले जो दृश्य देखे थे, वो अभी भी उनके कारण हतप्रभ थी। यह सब उसने आज से पहले बस सुना ही था, कभी देखा नहीं था। अजय को यूँ मॉस्चरबेट करते देखना रोचक भी था और डरावना भी! उत्तेजित लिंग ऐसा दिखता है, यह उसने पहली बार जाना। किताबी या कही-सुनी बात जानना अलग बात होती है, प्रैक्टिकल बात अलग!

अजय इस समय कमर के नीचे नग्न था - शायद वो रूचि की उपस्थिति के कारण उस तथ्य को भूल गया था।

“हाँ तुम... यहाँ? इस समय?”

“तुम्ही ने तो कहा था आज मिलने को,” रूचि ने कहा।

“मैंने?”

“हाँ... तुमने बताया था न कि तुम आज कॉलेज मिस करने वाले हो,” रूचि अब तक थोड़ी संयत हो चली थी - लेकिन बस, थोड़ी ही, “और छुट्टियों से पहले ही सब कुछ ‘कवर’ कर लेना चाहते हो,”

“ओह,” अजय को याद आया, “हाँ! यस, सॉरी! ... सॉरी यार!”

कहते हुए वो अपनी अलमारी की तरफ़ बढ़ा।

रूचि आश्चर्यचकित थी - जो अंग कुछ ही समय पहले इमामदस्ता की मूसली जैसा कठोर और मोटा था, अब वो किसी बड़े पिल्लू जैसा मुलायम और सिकुड़ा हुआ हो गया था। करिश्माई अंग!

“ले... लेकिन तुम क्या कर रहे थे?”
Nice update....
 
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“आई ऍम सॉरी, रूचि,” उसने जल्दी से निक्कर पहनते हुए कहा, “दैट यू हैड टू सी दैट,”

“लेकिन वो था क्या?” इस बार रूचि ने ज़ोर दे कर पूछा।

“डोंट यू एवर फ़ील... एक्साइटेड?” अजय ने उल्टा प्रश्न पूछा।

“व्हाट?”

“तुमको कभी एक्साइटमेंट नहीं फ़ील होता? ... सेक्सुअल एक्साइटमेंट,”

“कैसी बातें कर रहे हो?” रूचि ने सकुचाते हुए कहा।

ऐसी बातें कोई किसी से कैसे कहे?

“मुझको होता है...” अजय ने उसकी बात को नज़रअंदाज़ करते हुए कहा, “इसलिए मैं उसको शांत कर रहा था।”

“कैसे?” न जाने रूचि ने क्यों पूछ लिया।

“व्हेन माय पीनस गेट्स हार्ड, आई स्ट्रोक इट... टिल आई इजैकुलेट,”

“इजैकुलेट?”

अजय ने ‘हाँ’ में सर हिलाया, “टिल सीमन कम्स आउट ऑफ़ इट,” उसने समझाते हुए कहा।

यह बात रूचि को पता थी।

“एंड... दैट कॉम्स यू डाउन?”

अजय ने ‘हाँ’ में सर हिलाया।

“तुम कैसे करती हो?” अजय ने रूचि से पूछा।

“हट्ट! बेशर्म कहीं के... लड़कियों से ऐसी बातें करता है कोई...”

“क्यों? लड़कियाँ ह्यूमन नहीं होतीं क्या? उनमें कोई फ़ीलिंग्स नहीं होतीं?”

“हाँ हाँ... होती हैं। लेकिन ऐसे नहीं पूछा जाता उनसे कुछ!”

“क्या करती हो फिर तुम?” अजय ने कुरेदा, “हाऊ डू यू कॉम डाउन?”

“अजय... मत पूछो प्लीज़,”

“ओके! सॉरी, रूचि!”

“नहीं सॉरी वाली बात नहीं है अजय! बट इट इस नॉट समथिंग दैट वन आस्क्स अ गर्ल!”

“इसीलिए आई ऍम सॉरी,” अजय ने संजीदगी से कहा, “बोथ फॉर आस्किंग इट एंड आल्सो फॉर व्हाट यू सॉ बिफोर,”

“नहीं अजय,” रूचि बोली, “अच्छा छोड़ो ये सब! आज की क्लासेज़ डिसकस कर लें?”

“ओके!”

“एंड हू नोस...” रूचि ने थोड़ा शरमाते और थोड़ी शरारत से कहा, “आई माइसेल्फ माइट टेल यू आल अबाउट इट समटाइम,”

“ओके!”

रूचि ने कुछ कहा नहीं... बस अनिश्चित सी बैठी रही।

“क्या बात है रूचि? मन में कोई और बात भी है क्या?”

रूचि ने अभी भी कुछ नहीं कहा, लेकिन उसके चेहरे का भाव बदल गया।

“क्या बात है? कह दो अब...” अजय ने कहा, “ऐसे मन में कुछ न रखो। हम दोनों अच्छे दोस्त हैं न?”

“व्वो... बात दरअसल ये है कि... कल... कल शाम... मैंने... वो... तुमको आंटी का... आंटी जी का...”

अजय ने उसको अबूझ सी नज़र से देखा और फिर मुस्कुराने लगा। इस रहस्योद्घाटन पर लज्जित होने की आवश्यकता नहीं थी। यह कोई अपराध नहीं था। यह तो अजय और माया की ख़ुशकिस्मती थी कि उन दोनों को अपनी माँ की शुद्ध ममता इस उम्र में भी मिल रही थी।

“तो तुमने मुझे माँ का दूधू पीते देख लिया?”

रूचि ने चौंक कर अजय को देखा, फिर ‘हाँ’ में सर हिलाया।

“ओके, देन लेट मी टेल यू एवरीथिंग,”

कह कर अजय ने अपनी दोनों माताओं की प्रेग्नेंसी, अपने ताऊ जी और माँ की मृत्यु, और उसके बाद की परिस्थितियों के बारे में बताया। यह भी कि कैसे माया दीदी के कहने पर माँ ने उन दोनों को ही स्तनपान कराना शुरू किया था, जो अभी तक चल रहा था। रूचि यह सब सुन कर आश्चर्यचकित हो गई।

“यार ये अमेज़िंग है न!”

“क्या?”

“यही कि माँ तुम दोनों की इतना प्यार करती हैं,”

रूचि ने नोटिस नहीं किया कि उसने किरण जी को ‘माँ’ कह कर सम्बोधित किया था।

“सभी की माँएँ करती हैं,”

“हाँ... लेकिन इस तरह से नहीं!” रूचि ने कहा।

“रूचि... यार... आई नो कि मेरी फ़ैमिली बाकियों से अलग है। अब देखो न, मेरी दीदी, मेरी सगी दीदी नहीं हैं... लेकिन ओनेस्टली, वो मेरी सगी दीदी से बढ़ कर है।” अजय ने ठहरते हुए बताया, “... और माँ! माँ भी मेरी सगी माँ नहीं हैं। लेकिन अपने बेटे से ज़्यादा वो मुझे प्यार करती हैं।”

“अजय, आई अंडरस्टैंड इट... ट्रस्ट मी!”

“थैंक यू, रूचि!”

रूचि ने गहरी साँस ली और बोली, “चलो, अब काम कर लें?”

“यस मैम,”

अगले तीन घण्टे तक दोनों आज जो पढ़ाया गया था, वो सब डिसकस किया और जो भी काम छुट्टियों में करने को मिले थे, वो सब निबटाए। रूचि चाहती थी कि कमल भी सब कर लेता, लेकिन अजय ने उसको समझा दिया कि वो सुनिश्चित करेगा कि कमल सब काम समय पर निबटा ले। जब दोनों को फुर्सत हुई तब तक शाम हो गई थी।

रूचि ने अपनी रिस्टवॉच को देख कर चौंकते हुए कहा, “अरे यार... ये तो बहुत देर हो गई! माँ परेशान हो रही होंगीं,”

“ओह,” अजय ने भी दीवार घड़ी में समय देख कर कहा, “हाँ... तीन घण्टे हो गए और पता ही नहीं चला,”

“चलती हूँ,”

“ओके,”

रूचि ने जल्दी जल्दी सारा सामान अपने बैग में भरा और सीढ़ियाँ उतरती हुई नीचे आ गई। अजय उसके पीछे पीछे ही चलता हुआ आ गया।

“अरे बेटा,” किरण जी ने जैसे ही रूचि को देखा वो बोलीं, “आ गए दोनों? बहुत देर तक पढ़ाई हुई आज तो!”

“जी आंटी जी, छुट्टियों में जो भी काम करने थे, सब हो गए!”

“अरे बढ़िया है फिर तो!” किरण जी ने कहा, “आओ, कुछ खाना खा लो।”

“नहीं आंटी जी,” रूचि बोली, “पहले ही बहुत देर हो गई है।”

“अरे! उस बात की चिंता न करो। ... मैंने तेरे घर में बात कर ली है। तेरी माँ ने उठाया था फ़ोन।” किरण जी ने बताया, “उनसे कह दिया है कि हम बिटिया को खाना खिला कर ही वापस भेजेंगे!”

“हा हा हा... आंटी जी! आप भी न!”

“क्यों? यहाँ का खाना पसंद नहीं है?”

“यहाँ का सब कुछ पसंद है आंटी जी, सब कुछ!” उसने बुदबुदाते हुए कहा, “सब कुछ!”


**


रूचि को उसके घर छोड़ने अजय और अशोक जी दोनों गए।

अजय अभी भी कार चलाना सीख रहा था, इसलिए अशोक जी उसको अकेले कार चलाने नहीं देना चाहते थे। लेकिन वो इस बात से खुश थे कि अजय का ड्राइविंग में नियंत्रण और समझ बहुत अच्छी हो गई थी। उसका कारण उनको पता था, लेकिन फिर भी वो खुश ज़रूर थे। बेटा जब पुरुषों जैसा व्यवहार करने लगता है, तब पिता की चिंता कई गुणा कम हो जाती है और अभिमान कई गुणा बढ़ जाता है।

अजय ने उनको रागिनी के बारे में बताया हुआ था। ऐसे में अजय के जीवन में रूचि के आने की उम्मीद से अब उनको उसके भविष्य के बारे में भी कम चिंता होने लगी थी।

“बेटा,” अशोक जी बोले, “राणा भाई साहब के घर के जैसे ही मेरा भी मन हो रहा है कि हमारे यहाँ भी अच्छा माहौल बने। पूजा पाठ हो... स्वस्थ माहौल हो।”

“बिल्कुल पापा,” अजय बोला, “आप सही कह रहे हैं।”

“और अब इस त्यौहार से बेहतर समय क्या हो सकता है यह शुरू करने का!”

“जी पापा! क्यों न इस बार हवन करवाएँ...”

“हाँ, वो भी... तुमको गाँव गए हुए कितना समय हो गया?”

“पता नहीं पापा... शायद... दस साल?”

“हम्म...”

“क्यों? क्या हुआ पापा?”

“कुछ नहीं। ऐसे ही पूछा,” वो बोले, फिर बात बदलते हुए बोले, “वैसे, आई ऍम हैप्पी कि तुम और रूचि साथ में टाइम बिताते हो...”

“पापा!”

“अरे, क्या हो गया? इतनी अच्छी लड़की है वो!” अशोक जी बोले, “मुझे बहुत अच्छी लगती है वो... भाभी को भी,”

अजय मुस्कुराया।

“तुम दोनों सेम यूनिवर्सिटीज़ में अप्लाई करो।” अशोक जी ने सुझाया, “आई विल पे फ़ॉर ट्यूशन... फॉर बोथ ऑफ़ यू,”

“क्यों पापा?” अजय बोला, “मैं तो स्कॉलरशिप ले कर जाना चाहता हूँ... रूचि भी!”

“फैंटास्टिक! तो अगर फुल स्कॉलरशिप नहीं मिलती है, तो जो डिफरेंस रहेगा, मैं दूँगा!”

“और रूचि के पेरेंट्स क्या कहेंगे? आप किस हक़ से उसकी पढ़ाई का ख़र्च देना चाहते हैं?”

“अरे! क्या गलत है अपनी बहू की पढ़ाई पर ख़र्च करने में?”

“बहू! हा हा हा हा हा! पापा!! आप भी न!”

“हा हा हा... देखो बेटे, बिटिया जाने वाली है, तो मन में अलग तरह के विचार आने लगते हैं न... एक बिटिया जाए, तो दूसरी आये!”

“पापा, लेकिन पैट्रिशिया भाभी तो आ ही रही हैं न,”

“हाँ, बात सही है... लेकिन वो अमेरिका में आ रही है।”

अजय मुस्कुराया।

“कभी कभी प्रशांत से निराशा होती है।”

“डोंट वरी पापा, सब ठीक होगा।”

“नहीं नहीं... वो नहीं। मन करता है न कि वो भी यहाँ होता। साथ में हमारे!”

“हम्म्म... आई नो पापा!” अजय बोला, “लेकिन भैया का भी सोचना चाहिए न? उनकी लाइफ... उनका कैरियर... और फिर अमेरिका एक अच्छा देश है।”

“तुम भी यहाँ नहीं रहना चाहते?”

“नहीं पापा। मैं तो आपके और माँ के पास ही रहना चाहता हूँ। आप दोनों जहाँ होंगे, वहीं मैं भी रहूँगा!”

“और रूचि?”

“मतलब?”

“मतलब, वो कहाँ रहना चाहती है?”

“इतनी बात नहीं हुई है पापा।”

“तुमको पसंद तो है न वो?”

“अच्छी लड़की है वो पापा,” अजय बोला, “लेकिन... उसको ले कर कोई रोमांटिक थॉट्स नहीं हैं...”

“मतलब वो तुमको अट्रैक्ट नहीं करती?”

“अच्छी लगती है पापा, लेकिन... लेकिन न जाने किस बात को ले कर मन में दुविधा है!”

“क्यों?”

“पता नहीं पापा,”

“कोई और पसंद है?”

“पापा!”

“अरे क्या पापा! और तुम कोई छोटे बच्चे तो नहीं हो। कोई पसंद हो तो बताओ,”

“पसंद तो है,”

“कौन?”

“मेरी टीचर है पापा,”

“डू आई नो हर?”

“शायद मिले हों,” अजय थोड़ा रुक कर बोला, “पापा, आई ऍम नॉट सेइंग कि मुझे उनसे शादी करनी है... लेकिन मुझे वो अच्छी लगती हैं।”

“हाँ हाँ... नाम तो बताओ?”

“शशि... शशि सिंह!”

“शशि... हम्म्म... मैथ्स टीचर न?”

अजय ने ‘हाँ’ में सर हिलाया।

“यार,” अशोक जी ने हँसते हुए कहा, “तेरी टीचर से कैसे बात चलाएँ? आई मीन सही तो रहेगी, लेकिन उसको सच भी तो नहीं बता सकते!”

“पापा!”

“हम ये सोच रहे थे कि अपने बेटे के लिए प्यारी सी लड़की लाएँगे... और हमारे बेटे को ‘मेरा नाम जोकर’ फ़िल्म बनानी है!” अशोक जी ने विनोदपूर्वक कहा।

“हा हा हा हा!” उनकी बात पर अजय ठहाके मार कर हँसने लगा, “पापा! मैं ये नहीं कह रहा हूँ कि मुझे शशि मैम से शादी करनी है। मैं बस ये कह रहा हूँ कि मुझे उनकी क़्वालिटीज़ वाली लड़की चाहिए!”

“रूचि कैसी है? उसमें कैसी क्वालिटीज़ हैं?”

“आई थिंक शी इस बेटर!”

“देयर यू गो!” अशोक जी बोले, “फिर तो कोई प्रॉब्लम ही नहीं है! ... रूचि में मन लगाओ न!”

अजय ने एक फ़ीकी सी मुस्कान दी।

“नहीं सच में! अगर तुम इंटरेस्टेड हो, तो जैसे माया बिटिया के साथ किया था... मैं और भाभी जा कर रूचि बिटिया के पैरेंट्स से बात कर लेंगे।” अशोक जी ने उत्साह से कहा, “सारी प्रॉब्लम ही ख़तम हो जाएगी!”

**
Nice update....
 
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एक नवयुवक की सोच वैवाहिक सम्बन्ध को लेकर जो कुछ होती है वह जरूरी नही कि तजुर्बेकार व्यक्ति की सोच भी वही होगी । वह तजुर्बेकार जो इस लड्डू का सेवन कर चुका है ।
और हमारे अजय साहब मौजूदा हालात मे एक तजुर्बेकार व्यक्ति के श्रेणी मे आते है ।
अध्यापिका शशी के प्रति आकर्षण और सहपाठी रूचि के प्रति उदासीनता अजय साहब के इस सोच को दर्शा रहा है ।
कहते है दूध का जला छाछ को भी फूंक-फूंक कर पीता है । अजय साहब का वैवाहिक जीवन छाछ को फूंक-फूंक कर पीने की प्रेरणा दे रहा है ।
भाई , जब जमाने मे मुहब्बत की कमी पाते है लोग , सागर - ओ - मीना से अक्सर दिल बहलाते है लोग । हमने तो बस यही किया । :D


वैसे रूचि और अजय ने कुछ ऐसी बातें करी जिस से लोग अक्सर कतराते हैं , खासकर अपने मातृ भाषा और हिंदी मे । यह इंग्लिश भी गजब की लेंग्वेज है , आप सीरियस से भी सीरियस , बोल्ड से भी बोल्ड बातें कहकर निकल जाते हैं और किसी को बुरा नही लगता ।
सच मे इंग्लिश इज फनी लेंग्वेज ।

रागिनी जी की हल्की झलक दिखाई पड़ी इस अपडेट मे ।
झलक तो जगमग जगमग की तरह थी पर चर्चा बाद मे करेंगे ।

खुबसूरत अपडेट अमर भाई ।
 

Surajs13

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Bhai bahut wait karaya, main har din check karta hu ki aapka koi update aaya kya, please koshish kijiyega ki hafte me 1 update padhne ko mil jaye.

Mujhe laga tha ki ruchi ke sath nahi Sashi mam ke sath kahani aage badhegi par ab lagta hai sare gharwale mil kar ruchi ko apni bahu bana kar hi rahenge.

Aur sashi mam bhi 15 din ke liye gayi hai i mean who knows ki wo agli class sindoor lagake aur mangalsutra pahn kar le.
It will be a big surprise for ajay.

padh ke sukun mila, ummid hai agla bhag jaldi padhne ko milega
 

avsji

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बहुत सुंदर
रूचि को लेकर भी तन मन और धन (पढाई का खर्चा) सारे ताने-बाने बुने जाने शुरू हो गये हैं

लेकिन हमारे अज्जू बॉस अभी निर्णय नहीं ले पा रहे

अज्जू भाई ने ऐसा झटका खाया है कि क्या कहें!
लेकिन रूचि एक बढ़िया ऑप्शन लग तो रही है... :)
 

avsji

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एक नवयुवक की सोच वैवाहिक सम्बन्ध को लेकर जो कुछ होती है वह जरूरी नही कि तजुर्बेकार व्यक्ति की सोच भी वही होगी । वह तजुर्बेकार जो इस लड्डू का सेवन कर चुका है ।
और हमारे अजय साहब मौजूदा हालात मे एक तजुर्बेकार व्यक्ति के श्रेणी मे आते है ।

अज्जू भाई ने मिर्ची के लड्डू खाए हैं। वो तजुर्बा शायद ही कोई लेना चाहता हो।
मेरा यह मानना है कि व्यक्ति की मूल प्रवृत्ति नहीं बदलती - इसलिए किसी विशेष अवसर पर कोई व्यक्ति ठीक वैसा ही व्यवहार करता है, जैसा कि उससे उम्मीद की जा सकती है।
तो ऐसे में क्या अजय वापस रागिनी से मिलना भी चाहेगा? मेरे ख़्याल से नहीं।
अजय वैसा आदमी है जिसको महिलाओं से कोई अच्छा तजुर्बा नहीं है - कणिका (भाभी) और रागिनी दोनों लगभग समान ही रहीं।

अध्यापिका शशी के प्रति आकर्षण और सहपाठी रूचि के प्रति उदासीनता अजय साहब के इस सोच को दर्शा रहा है ।
कहते है दूध का जला छाछ को भी फूंक-फूंक कर पीता है । अजय साहब का वैवाहिक जीवन छाछ को फूंक-फूंक कर पीने की प्रेरणा दे रहा है ।
भाई , जब जमाने मे मुहब्बत की कमी पाते है लोग , सागर - ओ - मीना से अक्सर दिल बहलाते है लोग । हमने तो बस यही किया । :D

शशि के प्रति आकर्षण इसलिए है क्योंकि वो "हमउम्र" है। हा हा हा हा!
वहीं रूचि उससे बारह साल छोटी! कुछ लोगों के मन में ऐसी लड़की पा कर लड्डू फूटने लगेंगे, और कुछ के मन में अपराधबोध!
एक और बात रही - पिछले अपडेट में यह बात बताई गई है कि रागिनी अजय की माँ की पसंद की थी।
तो संभव है कि इस बार अजय अपने लिए खुद लड़की ढूँढ़ना चाहे।

वैसे रूचि और अजय ने कुछ ऐसी बातें करी जिस से लोग अक्सर कतराते हैं , खासकर अपने मातृ भाषा और हिंदी मे । यह इंग्लिश भी गजब की लेंग्वेज है , आप सीरियस से भी सीरियस , बोल्ड से भी बोल्ड बातें कहकर निकल जाते हैं और किसी को बुरा नही लगता ।
सच मे इंग्लिश इज फनी लेंग्वेज ।

जी भाई - यह बात तो है। हा हा! :)

रागिनी जी की हल्की झलक दिखाई पड़ी इस अपडेट मे ।
झलक तो जगमग जगमग की तरह थी पर चर्चा बाद मे करेंगे ।

खुबसूरत अपडेट अमर भाई ।

बहुत बहुत धन्यवाद संजू भाई :)
 

avsji

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Bhai bahut wait karaya, main har din check karta hu ki aapka koi update aaya kya, please koshish kijiyega ki hafte me 1 update padhne ko mil jaye.

सूरज भाई - इंतज़ार करवाने का कारण यह है कि समय ही नहीं मिल रहा है।
रोज़ी - रोटी का काम सबसे पहले है... ये सब कुछ बहुत बाद में!
जैसी मेरी लिखने की स्टाइल है, उसमें समय बहुत लगता है। इसलिए धैर्य रखें। :)

Mujhe laga tha ki ruchi ke sath nahi Sashi mam ke sath kahani aage badhegi par ab lagta hai sare gharwale mil kar ruchi ko apni bahu bana kar hi rahenge.

शशि के साथ अजय की सम्भावना की झलक दिखाई तो है मैंने। ;)
साथ बने रहिए... बताते हैं सब!

Aur sashi mam bhi 15 din ke liye gayi hai i mean who knows ki wo agli class sindoor lagake aur mangalsutra pahn kar le.
It will be a big surprise for ajay.

हम्म्म! केला हो जाएगा अजय का तो!

padh ke sukun mila, ummid hai agla bhag jaldi padhne ko milega

कोशिश रहेगी भाई - लेकिन कह नहीं सकता।
थोड़ा समय मिला था, तो बस दो ही पैराग्राफ लिख सका।

साथ बने रहें !
 

kamdev99008

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वैसे रूचि और अजय ने कुछ ऐसी बातें करी जिस से लोग अक्सर कतराते हैं , खासकर अपने मातृ भाषा और हिंदी मे । यह इंग्लिश भी गजब की लेंग्वेज है , आप सीरियस से भी सीरियस , बोल्ड से भी बोल्ड बातें कहकर निकल जाते हैं और किसी को बुरा नही लगता ।
सच मे इंग्लिश इज फनी लेंग्वेज ।
यह विशेषता अंग्रेजी की नहीं मानवीय मानसिकता की है।
हम कितना भी अंग्रेजी या अन्य कोई भी भाषा जानते हों, भावनात्मक जुड़ाव हमेशा हमारी मातृभाषा से ही वास्तविक होता है।
इसीलिए हम अपनी मातृभाषा को मर्यादा की संवेदनशीलता के अनुसार ही कहना और सुनना पसंद करते हैं थोड़ा सा चूकते ही बात दिल और दिमाग दोनों पर बहुत गहरा असर डाल देती है। परिहास या उत्तेजना में हम बहुत कुछ अमर्यादित भी कह लेते हैं लेकिन कभी कभी वो भी बहुत गहरी फांस की तरह मन में चुभने लगती है। अमिट छाप।

जबकि किसी अन्य भाषा में कुछ भी कहा जाये, सामान्यतः उसके सार को ग्रहण कर लिया जाता है, शब्दों को नहीं। शब्दों को उसी समय या कुछ समय‌ बाद अनदेखा कर दिया जाता है..... इसीलिए हम अंग्रेजी में वो सब भी बहुत आसानी से कह सुन लेते हैं जो अंग्रेजी मातृभाषा वाले भावनात्मक रूप से मर्यादा का ध्यान रखते हुए ही कहते सुनते या ना कहना चाहते हैं ना सुनना चाहते हैं
जैसा कि मैंने अंग्रेजी की प्रसिद्ध फोरम लिट*इरोटिका पर देखा है वहां की कहानियों में भी सामाजिक संवाद में 'फक' और 'डिक' 'एसहोल' ही नहीं 'शिट' भी एक अमर्यादित अपशब्द माना जाता है जिसे सिर्फ किसी खास से मजाक/उत्तेजना में या किसी पर गुस्से में ही बोला जाता है


जबकि हमारे यहां सिर्फ कहानियों में ही नहीं वास्तविक जीवन में भी हम साधारण रूप से इन शब्दों को बहुत हल्के स्तर पर कह सुन कर भुला देते हैं क्षणिक आवेश के बाद
 
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