अपडेट 7
अच्छे कामों का अच्छा नतीजा निकलता है!
माया ने जिस तरह से घर के कामों को अपने सर ले लिया, उससे अजय की दोनों माँओं को अपने अपने पतियों के साथ अंतरंग होने के अधिक अवसर मिलने लगे। बाहर के लोगों को आश्चर्य हुआ होगा, लेकिन घर में किसी को भी आश्चर्य नहीं हुआ जब अजय की माँ और ताई माँ दोनों ही कुछ महीनों के अंतराल पर एक बार फिर से प्रेग्नेंट हुईं। अजय की माँ प्रियंका जी का तो ठीक था, लेकिन उसकी ताई माँ, किरण जी का पुनः प्रेग्नेंट होना उनके पुत्र प्रशांत को अच्छा नहीं लगा। शायद इसलिए क्योंकि अब वो स्वयं उस उम्र में था कि शादी कर के अपने बच्चे पैदा कर सके। उसके लिए यह ऐसी ख़ुशी की खबर थी, जिस पर वो स्वयं ख़ुशी नहीं मना सका। वैसे भी वो उस समय इंजीनियरिंग के अंतिम साल में था और आगे की पढ़ाई के लिए अमरीका जाने की तैयारी में था। अपने समय पर ख़ुशियाँ आनी भी शुरू हुईं - किरण जी ने अपने नियत समय पर एक सुन्दर और स्वस्थ बालक को जन्म दिया। प्रियंका जी को पुनः माँ बनने में अभी भी कोई चार महीने शेष थे।
लेकिन फिर वो हुआ जिसकी किसी ने कल्पना भी नहीं करी थी!
एक सड़क दुर्घटना में अनामि जी, उनके नवजात शिशु, और गर्भवती प्रियंका जी की असमय मृत्यु हो गई। कार के ड्राइवर अनामि जी ही थे। प्रियंका जी उनके बगल ही पैसेंजर सीट पर बैठी थीं। दोनों गाड़ी की टकराहट के भीषण धक्के से तत्क्षण मृत हो गए। किरण जी संयोग से पीछे की सीट पर अपने नवजात के साथ बैठी थीं। वो तो बच गईं, लेकिन धक्के में उस शिशु को भी गहरी चोटें आईं। जिससे वो भी ईश्वर को प्रिय हो गया।
एक खुशहाल परिवार एक झटके में कैसे वीरान हो जाता है, कोई इनसे पूछे!
किरण जी सर्वाइवल गिल्ट के कारण अवसाद में चली गईं। उनके मन में होता कि वो भी अपनी चहेती और छोटी बहन जैसी देवरानी, पति, और नवजात शिशु के संग स्वर्गवासी क्यों नहीं गईं! ऐसे में माया दीदी ने ही उनको दिशा दिखाई।
अपनी माँ की मृत्यु के बाद न केवल किरण जी ही, बल्कि अजय भी गुमसुम सा रहने लगा था। भयानक समय था वो! अजय के पिता, अशोक जी अपनी पत्नी और अपने बड़े भाई की मृत्यु से शोकाकुल थे; और किरण जी का हाल तो बयान करने लायक ही नहीं था। ऐसे में अजय ही उन दोनों के उपेक्षा से आहत हो गया था। माया दीदी यथासंभव उसकी देखभाल करतीं, लेकिन अजय के मन में वो अभी भी एक बाहरी सदस्य थीं। इसलिए न तो उसको उनसे उतना स्नेह था और न ही उनके लिए उतना सम्मान। लेकिन माया को समझ आ रहा था सब कुछ! वो स्वयं सयानी थी। एक दिन हिम्मत कर के वो किरण जी के कमरे में गई,
“माँ जी?”
“हम्म?” पुकारे जाने पर किरण जी चौंकी।
“माँ जी... एक बात कहनी थी आपसे...”
“बोल न बेटे... इतना हिचकिचा क्यों रही है तू?”
“छोटा मुँह बड़ी बात वाली बात कहनी है माँ जी,” माया ने कहा, “इसलिए डरती हूँ कि कहीं आप नाराज़ न हो जाएँ!”
“बोल बच्चे! तू अपनी है न! बोल।” माँ ने उसको दिलासा दिया।
“माँ जी, बाबू की भी हालत ठीक नहीं है,” माया ने कहा - वो अजय को प्यार से बाबू कह कर बुलाती थी, “आप लोगों की ही तरह वो भी दुःखी है।”
किरण जी चौंक गईं! बात तो सही थी। अपने अपने ग़म में सभी ऐसे डूबे हुए थे कि उनको अजय का ग़म दिख ही नहीं रहा था।
“वो कुछ दिनों से ठीक से खाना नहीं खा रहा है। मैंने बहुत कोशिश करी, लेकिन एक दो निवालों से अधिक कुछ खाया ही नहीं उसने।”
“सच में?” किरण जी अवाक् रह गईं।
“सच की दीदी होती उसकी तो जबरदस्ती कर के खिला देती,” कहते हुए माया की आँखों में पानी भर गया।
“हे बच्चे, ऐसा अब आगे से कभी मत कहना! छुटकी (प्रियंका जी) ने तुझे बेटी कहा है। उस नाते तू भी मेरी बेटी है!”
“आपने मुझको इतना मान दिया, वो आपका बड़प्पन है माँ जी। लेकिन बाबू आपका बेटा है!” वो हिचकिचाती हुई बोली, “एक बात कहूँ माँ जी?”
“बोल न बच्चे?”
“आप... आप उसको माँ वाला प्यार दे दीजिए न...” माया झिझकते हुए कह रही थी, “आप उसको अपने आँचल में छुपा कर अपनी ममता से उसकी भूख मिटा दीजिए...”
क्या कह दिया था माया ने!
बात तो ठीक थी। अपने नवजात शिशु की असमय मृत्यु के बाद किरण जी की ममता जिस बात की मोहताज थी, उसका उपाय ही तो बता रही थी माया! और अजय अभी भी ‘उतना’ बड़ा नहीं हुआ है कि अपनी माँ के स्तनों से दूध न पी सके...
अचानक से ही किरण जी के मन से अवसाद के बदल छँट गए।
“थैंक यू बेटे,” कह कर किरण जी उठीं, और बोलीं, “तू भी आ मेरे साथ।”
जब दोनों अजय के कमरे में पहुँचीं, तो उसको खिड़की के सामने गुमसुम सा, शून्य को ताकते हुए पाया। किरण जी का दिल टूट गया उस दृश्य को देख कर! सच में - जिस समय अजय को उनकी सबसे अधिक आवश्यकता थी, उसी समय उन्होंने उसका साथ छोड़ दिया था। भला हो इस बच्ची माया का, जिसने उनको सही राह दिखा दी!
“बाबू?” माया ने अजय को पुकारा।
अजय अपनी तन्द्रा से बाहर निकल आया, “दीदी?”
“अज्जू बेटे,” किरण जी उसके बगल बैठती हुई बोलीं, “मुझे माफ़ कर दे बेटे... बहुत बड़ी गलती हो गई मुझसे...”
“माँ...?”
“मेरा बच्चा... तू अब से कभी मत सोचना कि तेरी माँ नहीं हैं... मैं हूँ न... तेरी माँ!”
कह कर किरण जी ने अपने स्तनों को अपनी ब्लाउज़ से स्वतंत्र कर लिया, और कहा, “आ मेरे बच्चे... मेरे पास आ...!”
किरण जी की ममता को जो निकास चाहिए था, वो उनको अजय में मिल गया और अजय जिस ममता का भूखा था, वो उसको अपनी ताई जी, किरण जी में मिल गई।
स्तनपान करते हुए जब उसको एक मिनट हो गया तब किरण जी ने अजय से कहा,
“मेरे बेटू... मैं तुझसे एक बात कहूँ?”
अजय ने माँ के स्तन को मुँह में लिए ही ‘हाँ’ में सर हिलाया।
“जब माया दीदी तुझे खाना खिलने की कोशिश कर रही थीं, तो तूने खाया क्यों नहीं?”
उनकी इस बात पर अजय निरुत्तर हो गया।
“कहीं ऐसा तो नहीं कि तू उसको अपनी दीदी नहीं मानता?”
उसके मन की बात अपनी ताई जी के मुँह से सुन कर अजय शर्मसार हो गया - बात तो सही थी। ढाई साल हो गए थे माया दीदी को घर आये, लेकिन इतने समय में भी वो उनको अपना नहीं सका। माया उसी के साथ सोती, लेकिन वो उससे अलग अलग, खिंचा खिंचा रहता। और तो और, बदमाशी में कभी कभी वो उसको लात मार मार कर बिस्तर से नीचे गिरा देता - लेकिन बहाना ऐसा करता कि जैसे वो स्वयं सो रहा हो। उधर माया पूरी कोशिश करती कि “बाबू” की नींद में खलल न पड़े और वो आराम से सो सके। उसके खाने, पीने, पहनने, ओढ़ने का पूरा ध्यान रखती। स्कूल जाते समय की पूरी व्यवस्था रहती - उसके कपड़े प्रेस रहते, जूते पॉलिश रहते - सब कुछ व्यवस्थित!
वो कुछ कह न सका। लेकिन अपराधबोध उसके चेहरे पर साफ़ दिखाई दे रहा था।
किरण जी ने समझ लिया कि बेटे को अपनी गलती का एहसास हो गया है।
वो बोलीं, “अज्जू... मेरे बच्चे, जैसे तू मेरा बेटा है न, वैसे ही माया मेरी बेटी है... जैसे तू मेरा दूध पी रहा है न, वैसे ही माया भी...” कह कर वो माया की तरफ़ मुखातिब हो कर बोलीं, “... आ जा बिटिया मेरी... आ जा...”
अब आश्चर्यचकित होने की बारी माया की थी। उसने यह उम्मीद तो अपने सबसे सुन्दर सपनों में भी कभी नहीं करी थी! किरण जी के ममतामई आग्रह को वो मना नहीं कर सकती थी। वो भी माँ के स्तन से जा लगी।
आगे आने वाले सालों में यह नए रिश्ते इस परिवार की दिशा बदलने वाले थे - यह किसी को नहीं पता था।
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