अपडेट 33:
“रूचि बेटे,” किरण जी रूचि के नीचे आने का इंतज़ार कर रही थीं।
जैसा कि पाठकों को ज्ञात है कि रूचि अक्सर ही अजय या फिर कमल के घर चली जाती थी कंबाइंड स्टडीज़ के लिए। अब नवरात्रि शुरू हो गए थे, और वो आज अजय के यहाँ आई हुई थी। दो दिनों में कॉलेज में छुट्टी होने वाली थी। माया अपने वायदे के मुताबिक़ कमल के यहाँ थी। क़रीब दो घण्टे की पढ़ाई के बाद रूचि अब वहाँ से निकल रही थी।
“जी, आंटी जी?”
“कैसी हो बच्चे?”
“एकदम फर्स्ट क्लास, आंटी जी!” रूचि की मुस्कान चौड़ी हो गई।
किरण जी से बात कर के उसको हमेशा ही ख़ुशी मिलती थी। उनका ममतामई व्यवहार उसको बहुत भाता था।
गुप्त रूप से रूचि के मन में एक बात अवश्य आती थी कि अगर अजय से उसकी शादी हो जाती है, वो कैसा रहेगा!
वो अभूतपूर्व तरीके से अजय की ओर आकर्षित होती जा रही थी। दो तीन महीने पहले वो सोच भी नहीं रही थी कि उसके मन में अजय के लिए ऐसे भाव पैदा होने लगेंगे! लेकिन अब हो रहे थे। उसको अपनी भावनाओं से थोड़ा डर भी लगता और आनंद भी आता। अभी तक वो केवल पढ़ाई में ही डूबी रहती आई थी। इसलिए यह अनुभव, यह विचार भिन्न थे।
पढ़ाई करते समय वो अक्सर ही अजय के बगल बैठती... कभी कभी बहुत क़रीब। इतने क़रीब बैठने पर उसको अजय के शरीर की सुगंध आती थी। उसकी बाँहों की माँस पेशियाँ मज़बूत थीं। किशोरवय लड़के बहुत हैंडसम नहीं होते, लेकिन रूचि समझती थी कि कुछ ही वर्षों में जैसे जैसे अजय जवान होगा, वो बहुत हैंडसम हो जाएगा। वो भी कोई कम सुन्दर नहीं थी। दोनों की जोड़ी अच्छी जमेगी - यह विचार उसके मन में जब भी आता, उसके होंठों पर अनायास ही एक मीठी सी मुस्कान आ जाती।
उसने अभी तक जो देखा समझा था, उसके हिसाब से जो लड़की भी इस घर में आएगी, वो बहुत लकी होने वाली थी। उसको अब तक पता चल गया था कि इस परिवार में लड़कियों की उच्च शिक्षा या फिर कैरियर बनाने को लेकर बहुत प्रोत्साहन मिलता है। यह बढ़िया बात थी जो रूचि के मन माफ़िक थी। उधर, अजय तो अच्छा था ही - उसके मम्मी पापा दोनों बहुत अच्छे थे। माया दीदी भी अच्छी थीं। कमल भी! इन सबके बारे में सोचते हुए उसको अपने ‘परिवार’ जैसा ही लगता था।
“एक बात कहनी है तुमसे,”
“हाँ, कहिये न आंटी जी?”
“देख बेटे,” उन्होंने जैसे उसको समझाते हुए कहा, “हमारी बिटिया तो इस पूरे नवरात्रि में अपनी ससुराल में रहेगी। ... तो हम - मेरा मतलब अजय के पापा और मैं - सोच रहे थे कि क्यों न तुम आ जाओ यहाँ, पूजा के दिन?”
“जी? मैं?”
“हाँ... क्यों? देख बच्चे, हर साल पूजा में माया बिटिया साथ होती है हमारे... तो उसके यूँ अचानक से न होने से इतना सुन्दर सा पर्व अधूरा अधूरा सा लगेगा। इसलिए सोचा कि अगर तुम यहाँ हो... तो...” किरण ही ने अचानक से बात बदल दी, “लेकिन तुम्हारे यहाँ भी तो होगी पूजा... कोई बात नहीं।”
“आंटी जी, थैंक यू फॉर आस्किंग मी!” रूचि ने खुश होते हुए कहा, “हमारे यहाँ कोई पूजा तो नहीं होती, लेकिन मम्मी पापा से पूछ कर मैं आ ज़रूर सकती हूँ!”
वो मुस्कुराती हुई बोलीं और बड़े प्यार से रूचि के सर और गाल को सहलाती हुई बोलीं, “सच में? बहुत बढ़िया बेटे! ... माँ हूँ न... क्या करूँ! बेटियों के रहने से घर में रौनक रहती न! अब इसको देखो,” किरण जी ने सीढ़ियाँ उतर कर आते हुए अजय को देख कर कहा, “इसका हर काम टू द पॉइंट रहता है। एकदम बोर तरीके का! लड़कों से बस काम करवा लो... रौनक वौनक इनके बस की नहीं है!”
उनकी बात पर रूचि हँसने लगी।
अजय समझ नहीं पाया कि बात क्या थी आख़िर!
“चलती हूँ आंटी जी,”
“हाँ बेटे!”
“नमस्ते आंटी जी,”
“खुश रहो बेटे,”
“बाय,” उसने अजय से कहा।
“बाय रूचि!”
रूचि के जाने के कुछ देर तक अजय दरवाज़े की तरफ़ ही देखता रहा, फिर किरण जी की तरफ़ देख कर बोला, “क्या हो गया माँ? रूचि से मेरे बारे में कुछ कह रही थीं आप?”
“अगर कह रही थी तो क्या? जानना चाहता है क्या कुछ?” उन्होंने जैसे अजय को छेड़ते हुए कहा।
“नहीं माँ, कुछ नहीं जानना मुझे।”
“लेकिन मुझे जानना है,”
“क्या माँ?”
“कैसी लगती है वो तुझे?”
“अच्छी लगती है, क्यों?”
“मुझे भी अच्छी लगती है,”
“अच्छी बात है माँ,”
“इसीलिए उसको पूजा में बुलाया है!”
“क्या? आप भी न माँ!”
“क्यों? क्या हो गया?”
“अगर उसको पूजा पाठ करना पसंद नहीं हुआ तो?”
“कोई बात नहीं। कुछ नहीं तो आ कर हमारे साथ बैठेगी। फिर साथ में खाना पीना करेंगे हम सब जने...” किरण जी ने कहा, “नॉट अ गुड आईडिया?”
“हा हा हा हा... आपने बुला ही लिया है, तो सब गुड है माँ।” अजय ने कहा, फिर अचानक से बात बदलते हुए बोला, “माँ याद है न? कल हम सभी डॉक्टर के यहाँ जा रहे हैं... कॉम्प्रिहेन्सिव मेडिकल चेकअप के लिए।”
“अरे साल में दो बार करवाते ही हैं। अब ये क्या नई मुसीबत है?”
“दो बार करवाते हैं, तो तीसरी बार भी करवाया जा सकता है न माँ?” अजय ने चुहल करते हुए कहा, “मैं तो बस इतना चाहता हूँ कि हम सब हेल्दी रहें। हैप्पी रहें।”
“अरे मेरा बच्चा,” किरण जी ने बड़े दुलार से कहा, “क्यों नहीं रहेंगे रे हम सभी हेल्दी एंड हैप्पी? तू है न हमारे साथ... हमारा सायना बेटा!”
और ऐसा कह कर उन्होंने अजय को अपने आलिंगन में भर लिया। फिर दोनों अंदर आ कर सोफ़े पर बैठ गए।
“अच्छा सुन,”
“हाँ माँ?”
“तू ठीक तो है न?”
“हाँ... क्यों क्या हो गया माँ?”
“जब से माया अपने ससुराल गई है, तब से तूने दूधू नहीं पिया?” किरण जी ने थोड़ी चिंतातुर आवाज़ में पूछा, “इतने दिन हो गए... और... सब भरा भरा भी लग रहा है,”
“ओह, आई ऍम सॉरी माँ!”
“कोई बात नहीं,” उन्होंने ब्लाउज़ खोलते हुए कहा, “अब पी ले,”
“यस मॉम,”
कह कर अजय उनकी गोद में लेट गया और इंतज़ार करने लगा।
“काम में आज कल कुछ अधिक ही बिजी हो गया हूँ माँ,”
“हाँ... मैंने भी देखा है वो। पढ़ाई तो अच्छी चल रही है, लेकिन तू और भी किसी काम में बिज़ी लगता है!”
“हाँ माँ... बात दरअसल ये है कि भैया की तरह मैं भी हायर स्टडीज़ करना चाहता हूँ।”
कह कर उसने उनका एक स्तन पीना शुरू कर दिया।
शायद दूध का दबाव किरण जी के स्तनों पर इतना अधिक हो गया था, कि जब उसकी पहली धार छूटी तो उनको एक चुभने वाला दर्द महसूस हुआ। लेकिन उसके ठीक बाद उनको राहत भी महसूस हुई। किरण जी दो पल के लिए चुप हो गईं। जब उनको थोड़ी राहत मिली तो उन्होंने पूछा,
“तू भी चला जाएगा?”
“माँ,” स्तनपान करना रोक कर उसने कहना शुरू किया।
“नहीं नहीं! जा... अच्छा है। बच्चे खूब तरक़्क़ी करते हैं तो माँ बाप को अच्छा लगता है,” किरण जी ने एक फ़ीकी हँसी हँसते हुए कहा, “लेकिन मेरा मन ये सोच कर बैठ रहा है कि माया की शादी होने जा रही है दो ही महीने में... और फिर अगले साल तक तू भी!”
“माँ, दीदी तो यहीं हैं... दिल्ली में ही।” अजय ने जैसे माँ को मनाते हुए कहा।
“हाँ, वो भी है।”
“माँ, लेकिन मैं पढ़ाई कर के यहाँ वापस आना चाहता हूँ,”
“सच में बेटे?”
“हाँ माँ... यहाँ सभी हैं। मैं वहाँ अमेरिका में क्या करूँगा? वापस आ कर अपना सॉफ्टवेयर का बिज़नेस करूँगा,”
“किसका?”
“कम्प्युटर का माँ,”
किरण जी को अजय की बात सुन कर संतोष हुआ।
“रूचि का क्या प्लान है?”
“रूचि का मुझे कैसे पता चलेगा माँ?”
“क्यों? अपने प्लान्स शेयर नहीं करते तुम दोनों?”
“वो भी पढ़ना चाहती है माँ, लेकिन उसके बाद का नहीं पता मुझको!”
“वो भी तेरे सॉफ्ट कम्प्युटर बिज़नेस में साथ नहीं हो सकती?”
“हो सकती है माँ,” अजय बोला, “लेकिन आप मुझसे अधिक रूचि में क्यों इंटरेस्टेड हैं?”
“कुछ नहीं... अच्छी लगती है वो मुझे,” किरण जी बोलीं, “तुझे भी तो अच्छी लगती है न?”
“हाँ माँ, अच्छी लड़की है... मेहनती... इंटेलीजेंट...”
“सुन्दर?”
“हाँ, सुन्दर भी...”
किरण जी मुस्कुराईं, लेकिन उन्होंने इस बात को आगे नहीं बढ़ाया।
कुछ देर स्तनपान करने के बाद अजय बोला, “माँ... आई विल मिस डूईंग इट,”
“वैसे... नाऊ यू शुड स्टॉप डूईंग इट,” किरण जी ने कहा, “तुम और माया दोनों ही बड़े हो गए हो!”
“कोई बड़े वड़े नहीं हुए हैं माँ,” अजय ने राज़ की बात खोलते हुए कहा, “दीदी की सास तो उनको अपना दूध पिला रही हैं आज कल!”
“व्हाट! क्या कह रहा है तू?”
“हाँ माँ, हा हा हा हा... दीदी ने खुद बताया।”
“हे प्रभु,” किरण जी ने ईश्वर को धन्यवाद देते हुए कहा, “तेरा लाख लाख शुक्र है प्रभु! ऐसे ही मेरे बच्चों पर अपनी दया बनाए रखना,”
“हाँ माँ, माया दीदी कोई कम किस्मत वाली नहीं हैं,”
“भगवान करें, तेरी भी किस्मत माया के जैसी ही हो,”
अजय ने कुछ कहा नहीं, लेकिन उसने भी मन ही मन ईश्वर को और प्रजापति जी को धन्यवाद किया। अब तो स्वयं परमपिता ने उसके जीवन की दिशा बदल दी है। उम्मीद तो यही की जा सकती है न कि सब कुछ बीते समय से बेहतर होगा!
“वैसे एक बात है,” किरण जी ने कहा, “जब बच्चे दूध पीना बंद कर देते हैं, तो माँ को दूध बनना भी बंद हो जाता है,”
“व्हाट?”
“और क्या! तो तेरे जाते ही दूध की सप्लाई बंद,” किरण जी ने हँसते हुए कहा।
“फिर?”
“क्या फिर? फिर कुछ नहीं!”
“माँ आपको फिर कैसे दूध आएगा?”
“नहीं आएगा... आई ऍम पास्ट इट...”
“कोई तो तरीका होगा न?”
“हा हा हा... हाँ है,”
“क्या माँ?”
“मुझको कोई बेबी हो जाए,”
“ओह,” अजय ने कहा... फिर बात की गहराई को समझते हुए बोला, “ओओओओह...”
“हाँ, अब समझा!” किरण जी बोलीं, “इसलिए इसको जितना पॉसिबल हो, मेरा आशीर्वाद समझ कर पी लो,”
“यस मॉम!”
**