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Romance फ़िर से

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avsji

Weaving Words, Weaving Worlds.
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दोस्तों - इस अपडेट सूची को स्टिकी पोस्ट बना रहा हूँ!
लेकिन इसका यह मतलब नहीं कि केवल पढ़ कर निकल लें। यह केवल आपकी सुविधा के लिए है। चर्चा बंद नहीं होनी चाहिए :)

अपडेट 1; अपडेट 2; अपडेट 3; अपडेट 4; अपडेट 5; अपडेट 6; अपडेट 7; अपडेट 8; अपडेट 9; अपडेट 10; अपडेट 11; अपडेट 12; अपडेट 13; अपडेट 14; अपडेट 15; अपडेट 16; अपडेट 17; अपडेट 18; अपडेट 19; अपडेट 20; अपडेट 21; अपडेट 22; अपडेट 23; अपडेट 24; अपडेट 25; अपडेट 26; अपडेट 27; अपडेट 28; अपडेट 29; अपडेट 30; अपडेट 31; अपडेट 32; अपडेट 33; अपडेट 34; अपडेट 35; अपडेट 36; अपडेट 37; अपडेट 38; अपडेट 39; अपडेट 40; अपडेट 41; अपडेट 42; अपडेट 43; अपडेट 44; अपडेट 45; अपडेट 46; अपडेट 47; अपडेट 48; अपडेट 49; अपडेट 50; अपडेट 51; अपडेट 52; अपडेट 53; अपडेट 54; अपडेट 55; अपडेट56; अपडेट57; अपडेट 58; अपडेट 59; अपडेट 60; अपडेट 61; अपडेट 62; अपडेट 63; अपडेट 64; अपडेट 65; अपडेट 66;
 
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avsji

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अपडेट 32:


अगले सप्ताह - हॉगवर्ट्स :

मॉर्निंग प्रेयर्स के समय, पूरी सभा से थोड़ी दूर, शशि और श्रद्धा एक गहरे वार्तालाप में डूबे हुए थे। दोनों के चेहरों पर चिंता की लक़ीरें साफ़ दिखाई दे रही थीं। अजय ने नोटिस किया कि शशि मैम चिंतित हैं... श्रद्धा मैम भी।

शशि मैम अजय की पसंदीदा टीचर थीं। उनके साथ वो बड़ी आसानी से बात कर पाता था - ‘वापस’ आने से पहले भी। वो मेहनत करतीं थीं और अपने स्टूडेंट्स की सफ़लता के लिए चिंतित भी रहती थीं। उनके डेडिकेशन को देख कर छात्र और छात्राएँ भी पढ़ने में मन लगाते थे और मेहनत करते थे। इसलिए यह कहना कि अजय शशि मैम की तरफ़ आकर्षित था, यह कोई अतिशयोक्ति नहीं थी। एक स्टूडेंट का अपनी टीचर के प्रति आकर्षण कोई नई बात नहीं है। अनेकों बार हो चुका है यह और आगे भी अनेकों बार होता ही रहेगा। उसके मन में एक दो बार ख़याल आया कि वो कभी उनसे अपने मन की बात कह दे। लेकिन समझ नहीं आया कि कैसे कहे! यह सम्बन्ध अनुचित होता है न!

उधर शशि मैम भी न केवल उसके ज्ञान से प्रभावित थीं, बल्कि उसके व्यक्तित्व से भी। अजय जिस तरह से खुद को कैरी करता था, उसकी अदा में गाम्भीर्य था... एक अलग सा ठहराव था और उसके अंदाज़ में गज़ब का आत्मविश्वास था। उसको अपने विषय में बहुत ज्ञान था - शायद शशि से भी अधिक... और शशि इस बात को समझती भी थी। लेकिन जो बात अजय को उनकी नज़र में बाक़ियों से अलग करती थी, वो यह थी कि अजय को अपने ज्ञान का अभिमान रत्ती भर भी नहीं था। सभी से वो बड़े आदर से बातें करता था - चाहे कोई भी हो! टीचर्स हों या स्टूडेंट्स... वो सभी से बहुत आदरपूर्वक बातें करता था। यहाँ तक कि निचली कक्षाओं के स्टूडेंट्स से भी वो “आप” “आप” कर के ही बातें करता था। केवल अपने निकटतम मित्रों से ही वो “तुम” कह के बातें करता था। वो इसलिए क्योंकि उस सम्बोधन में एक अपनापन होता है। यह सभी बातें शशि को बहुत पसंद आती थीं। अगर किसी आदमी में ऐसे गुण हों, तो वो आदमी किसी भी स्त्री को पसंद आता है। न तो रूचि ही अपवाद थी और न ही शशि।

ख़ैर...

वापस आने के बाद से अजय के मन में अपने प्रियजनों के लिए रक्षा-भाव इतना बढ़ गया था कि वो हमेशा इसी कोशिश में रहता था कि वो यथासंभव सभी की मदद कर सके। शशि और श्रद्धा मैम को यूँ चिंतित देख कर उससे रहा नहीं जा रहा था। क्लास में भी शशि मैम थोड़ी अन्यमनस्क सी प्रतीत हुईं। क्लास के बाद जो थोड़ा समय था, उसमें अजय ने उनसे उनकी चिंता का कारण पूछा, तो वो टाल गईं। बाद में श्रद्धा मैम भी बहुत ही चिंतित दिखाई दीं। उनका मन शायद ही क्लास में हो! पढ़ाते समय भी बहुत सी गलतियाँ करीं उन्होंने। बाकी स्टूडेंट्स तो नहीं समझ सके, लेकिन अजय को समझ में आया। लेकिन वो चुप ही रहा।

क्लास के बाद उसने श्रद्धा मैम के पास जा कर पूछा,

“मैम... उम्... कोई प्रॉब्लम है क्या?”

“क्या मतलब अजय?”

“मैम, कोई प्रॉब्लम हो तो प्लीज़ बताईए। इफ आई कैन हेल्प, आई विल!”

“ओह, आई डोंट नो अजय!” श्रद्धा ने गहरी साँस भरी, “ओह प्लीज़ लीव इट,”

और बात आई गई हो गई।

लेकिन अगले दिन फिर से वही हालत थी। आज तो श्रद्धा मैम अन्य दिनों की अपेक्षा बहुत ही अस्त-व्यस्त लग रही थीं। हमेशा ही वो प्रेस किये हुए कपड़े पहनी दिखाई देतीं, बाल इत्यादि सुव्यवस्थित रहते... लेकिन आज वो अजीब सी लग रही थीं। ऐसा लग रहा था कि वो रात में ठीक से सोई भी नहीं हैं। आँखों के नीचे एक काला घेरा बन गया था।

अब उससे रहा नहीं गया। लंच ब्रेक में वो स्टाफ़रूम में गया।

इस समय वो दोनों ही रहती थीं वहाँ - कोई पंद्रह मिनट तक। यह बात उसको पता थी।

“मैम,” अजय ने दरवाज़े को अदब से खटका कर कहा, “मे आई कम इन?”

“अजय, ओह डोंट बी सो फॉर्मल,” शशि ने कहा, “आओ न!”

अजय अंदर आया।

उसको देखते हुए शशि ने कहा, “क्या बात है?”

“यही तो मैं पूछना चाहता हूँ मैम कि बात क्या है?”

“क्या मतलब?”

“इतना तो मुझे समझ में आता है कि या तो आपको या फिर श्रद्धा मैम किसी परेशानी में हैं... एंड इफ आई ऍम करेक्ट, तो श्रद्धा मैम...”

उसकी बात पर शशि और श्रद्धा की आँखें दो पल को मिलीं।

श्रद्धा कुछ कहती, उसके पहले ही शशि ने कहा, “अजय... बात थोड़ी नाज़ुक है।”

“मैम बताईए न... आई कैन हेल्प! इफ नॉट मी, देन माय फादर कैन... प्लीज बताइये...”

“अजय... बात दरअसल ये है कि श्रद्धा के मकान मालिक ने बिना किसी नोटिस दिए उसको घर से निकाल दिया...”

“व्हाट? ऐसे कैसे?”

“बोला कि नवरात्रि में गाँव से कई मेहमान आ रहे हैं इसलिए मकान वापस चाहिए।”

“ही जस्ट वांट्स मोर रेंट,” श्रद्धा ने बताया, “ये सब बहाना है। उस समय भी मैंने जैसे तैसे कर के रेंट कम करवा लिया था, लेकिन आज कल इतनी डिमांड है कि क्या करूँ।”

“उसने माँगा था क्या आप से अधिक रेंट?”

“हाँ... इशारों में कहा था उसने। लेकिन जितना देती हूँ, उससे डेढ़ गुना कैसे दूँ? ऊपर से उसको सिक्योरिटी डिपाजिट भी चाहिए!” कहते कहते वो रोआँसी हो गई, “अभी अभी तो नौकरी शुरू करी है... न सेविंग है न कुछ। कुछ बचेगा ही नहीं।”

“कितना माँग रहा था?”

श्रद्धा ने उसको बताया।

“हम्म्म... और इसलिए उसने आपको घर से निकाल दिया?”

श्रद्धा ने कुछ कहा नहीं। लेकिन उसकी आँख से आँसू निकल गए।

“अभी कहाँ रह रही हैं आप?”

“एक धर्मशाला में। जो थोड़े बहुत फर्नीचर थे, उनमें से भी कई चोरी हो गए।” कहते कहते श्रद्धा का गला भर आया।

अजय ने इस विषय पर कुछ कहा नहीं। वो समझता था कि जब मुसीबत आती है, तो व्यक्ति केवल उसका निस्तारण चाहता है, समाधान चाहता है। कोई लफ़्फ़ाज़ी नहीं चाहता... लक्ष्य-विहीन सहानुभूति नहीं चाहता। उसने दो क्षण सोचा, फिर शशि से बोला,

“मैम, मैं स्टाफरूम का फ़ोन यूज़ कर लूँ?”

“अजय डू व्हाटएवर! लेकिन अगर इसकी हेल्प कर सको, तो बहुत एहसान होगा,” शशि ने लगभग हाथ जोड़ दिए।

“मैम, प्लीज़ ऐसे मत बोलिए... प्लीज़ जस्ट गिव मी अ फ्यू मिनट्स... लेट मी सी व्हाट कैन बी डन...”

कह कर अजय ने पहले अशोक जी को और फिर उनके कहने पर उनके दो और मित्रों को फ़ोन किया। बातें कोई पच्चीस मिनट तक चलीं। तब तक लंच ब्रेक भी बीत गया। श्रद्धा को बहुत बुरा लग रहा था कि उसके कारण अजय ने खाना नहीं खाया, लेकिन ऐसी मामूली बात की अजय को कोई परवाह नहीं थी। जिसने जेल की मार तीन साल तक झेली हो, उसके लिए ऐसी छोटी बातों का कोई मतलब ही नहीं रहता। कुछ समय बाद स्टाफरूम के फ़ोन पर एक साल आया। अशोक जी ने किया था, अजय के लिए।

बातें समाप्त होते होते अजय के होंठों पर मुस्कान आ गई।

“मैम,” उसने श्रद्धा से कहा, “घर का बंदोबस्त हो गया है।”

“ओह गॉड... थैंक यू सो मच, अजय!” श्रद्धा ने अपने तहे दिल से अजय का शुक्रिया अदा किया।

“नो वरीस, मैम! वन बीएचके है...”

“मतलब?”

“ओह, मतलब... एक कमरा, एक हॉल, और किचन! अटैच्ड बाथरूम है...”

“बढ़िया! अभी के घर से तो बेहतर है,” शशि ने कहा।

“मकान मालिक ने कहा है कि आप आज ही आ सकती हैं।”

“लेकिन अजय, रेंट भी ज़्यादा होगा न?”

“नहीं मैम, अभी जो आपका रेंट है, वही!”

“व्हाट! आर यू श्योर?”

“मैम, ये आपने नए मकान मालिक मेरे पापा के दोस्त हैं। उनको कोई रेंट वेंट नहीं चाहिए, लेकिन फ़्री में नहीं दे सकते हैं न!” अजय मुस्कुराया, “इसलिए आपसे उतना ही रेंट लेंगे जितना आप अभी दे रही हैं। उनको चाहिए कि कोई सलीक़े से उनके घर को रख सके,”

“वॉव,” शशि बोली, “आज भी ऐसे लोग हैं?”

अजय मुस्कुराया।

बात तो सही है - एक एक पैसे के लिए लोग एक दूसरे को बेचने पर अमादा हैं। ऐसे में कोई इतना दिलदार मिल जाए, तो क्या कहना!

“और उन्होंने कहा है कि आप आज ही आ सकती हैं।” अजय ने आगे बताया, “किस धर्मशाला में हैं आप?”

श्रद्धा ने बताया।

“ठीक है। मेरे एक मनोहर भैया हैं... वो आपका सारा सामान आज शाम को शिफ़्ट करवा देंगे।” अजय ने सुझाया, “मैं घर कॉल कर दूँगा... वो आपके वहाँ पहुँचने से पहले ही वहाँ रहेंगे!”

“नहीं अजय! पहले ही तुम्हारा इतना एहसान हैं,”

मैम,” अजय ने शर्मिंदा होते हुए कहा, “आप ऐसी बात क्यों कह रही हैं? आप एक दिन छुट्टी ले लीजिए... आज आराम से शिफ़्ट हो जाईए और कल सब कुछ अनपैक कर लीजिये।”

“ओह अजय, थैंक यू सो मच!”

“मैम, आई ऍम वैरी हैप्पी टू हेल्प!” अजय ने हाथ जोड़ कर कहा, “कोई और नीड हो, तो बताईएगा... प्लीज़ डोंट हेसिटेट!”

“ओह गॉड! यही बहुत है,” श्रद्धा बोली, “थैंक यू अजय!”

“थैंक यू अजय,” शशि ने भी उसको धन्यवाद किया।

अजय इतनी बार दोनों को धन्यवाद करने से मना किया था, लेकिन फिर भी दोनों बार बार उसको थैंक यू थैंक यू कह रही थीं। वो बस अंत में निराशा में सर हिला कर रहा गया।

“नहीं अजय,” शशि ने कहा, “ऐसे मत करो। तुमने आज बहुत अच्छा काम किया है। ... आई वांटेड टू हेल्प, लेकिन वो क्या है कि मैं कुछ दिनों के छुट्टी पर जा रही हूँ,”

“ओह! ऑल गुड मैम?” अजय ने पूछा।

“ऑल गुड, अजय,” शशि ने कहा, “पर्सनल काम है! लेकिन दो या तीन सप्ताह में वापस आ जाऊँगी!”

“ओके!”

“देयर विल बी अ सब्स्टीट्यूट! ... लेकिन तुमको रिकमेन्डेशन मैं ही दूँगी! चिंता न करो!”

“मैम कोई बात ही नहीं है,” अजय बोला, फिर श्रद्धा की तरफ़ मुखातिब हो कर बोला, “मैम, आप बिल्कुल चिंता मत करिए। अगर कोई परेशानी हो, तो ज़रूर बता दीजिएगा,”

“ठीक है,” श्रद्धा ने कहा, “थैंक यू सो मच अजय,”

“यू आर मोस्ट वेलकम, मैम!” अजय ने प्रसन्न हो कर कहा, “यू आर मोस्ट वेलकम,”

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अपडेट 33:


“रूचि बेटे,” किरण जी रूचि के नीचे आने का इंतज़ार कर रही थीं।

जैसा कि पाठकों को ज्ञात है कि रूचि अक्सर ही अजय या फिर कमल के घर चली जाती थी कंबाइंड स्टडीज़ के लिए। अब नवरात्रि शुरू हो गए थे, और वो आज अजय के यहाँ आई हुई थी। दो दिनों में कॉलेज में छुट्टी होने वाली थी। माया अपने वायदे के मुताबिक़ कमल के यहाँ थी। क़रीब दो घण्टे की पढ़ाई के बाद रूचि अब वहाँ से निकल रही थी।

“जी, आंटी जी?”

“कैसी हो बच्चे?”

“एकदम फर्स्ट क्लास, आंटी जी!” रूचि की मुस्कान चौड़ी हो गई।

किरण जी से बात कर के उसको हमेशा ही ख़ुशी मिलती थी। उनका ममतामई व्यवहार उसको बहुत भाता था।

गुप्त रूप से रूचि के मन में एक बात अवश्य आती थी कि अगर अजय से उसकी शादी हो जाती है, वो कैसा रहेगा!

वो अभूतपूर्व तरीके से अजय की ओर आकर्षित होती जा रही थी। दो तीन महीने पहले वो सोच भी नहीं रही थी कि उसके मन में अजय के लिए ऐसे भाव पैदा होने लगेंगे! लेकिन अब हो रहे थे। उसको अपनी भावनाओं से थोड़ा डर भी लगता और आनंद भी आता। अभी तक वो केवल पढ़ाई में ही डूबी रहती आई थी। इसलिए यह अनुभव, यह विचार भिन्न थे।

पढ़ाई करते समय वो अक्सर ही अजय के बगल बैठती... कभी कभी बहुत क़रीब। इतने क़रीब बैठने पर उसको अजय के शरीर की सुगंध आती थी। उसकी बाँहों की माँस पेशियाँ मज़बूत थीं। किशोरवय लड़के बहुत हैंडसम नहीं होते, लेकिन रूचि समझती थी कि कुछ ही वर्षों में जैसे जैसे अजय जवान होगा, वो बहुत हैंडसम हो जाएगा। वो भी कोई कम सुन्दर नहीं थी। दोनों की जोड़ी अच्छी जमेगी - यह विचार उसके मन में जब भी आता, उसके होंठों पर अनायास ही एक मीठी सी मुस्कान आ जाती।

उसने अभी तक जो देखा समझा था, उसके हिसाब से जो लड़की भी इस घर में आएगी, वो बहुत लकी होने वाली थी। उसको अब तक पता चल गया था कि इस परिवार में लड़कियों की उच्च शिक्षा या फिर कैरियर बनाने को लेकर बहुत प्रोत्साहन मिलता है। यह बढ़िया बात थी जो रूचि के मन माफ़िक थी। उधर, अजय तो अच्छा था ही - उसके मम्मी पापा दोनों बहुत अच्छे थे। माया दीदी भी अच्छी थीं। कमल भी! इन सबके बारे में सोचते हुए उसको अपने ‘परिवार’ जैसा ही लगता था।

“एक बात कहनी है तुमसे,”

“हाँ, कहिये न आंटी जी?”

“देख बेटे,” उन्होंने जैसे उसको समझाते हुए कहा, “हमारी बिटिया तो इस पूरे नवरात्रि में अपनी ससुराल में रहेगी। ... तो हम - मेरा मतलब अजय के पापा और मैं - सोच रहे थे कि क्यों न तुम आ जाओ यहाँ, पूजा के दिन?”

“जी? मैं?”

“हाँ... क्यों? देख बच्चे, हर साल पूजा में माया बिटिया साथ होती है हमारे... तो उसके यूँ अचानक से न होने से इतना सुन्दर सा पर्व अधूरा अधूरा सा लगेगा। इसलिए सोचा कि अगर तुम यहाँ हो... तो...” किरण ही ने अचानक से बात बदल दी, “लेकिन तुम्हारे यहाँ भी तो होगी पूजा... कोई बात नहीं।”

“आंटी जी, थैंक यू फॉर आस्किंग मी!” रूचि ने खुश होते हुए कहा, “हमारे यहाँ कोई पूजा तो नहीं होती, लेकिन मम्मी पापा से पूछ कर मैं आ ज़रूर सकती हूँ!”

वो मुस्कुराती हुई बोलीं और बड़े प्यार से रूचि के सर और गाल को सहलाती हुई बोलीं, “सच में? बहुत बढ़िया बेटे! ... माँ हूँ न... क्या करूँ! बेटियों के रहने से घर में रौनक रहती न! अब इसको देखो,” किरण जी ने सीढ़ियाँ उतर कर आते हुए अजय को देख कर कहा, “इसका हर काम टू द पॉइंट रहता है। एकदम बोर तरीके का! लड़कों से बस काम करवा लो... रौनक वौनक इनके बस की नहीं है!”

उनकी बात पर रूचि हँसने लगी।

अजय समझ नहीं पाया कि बात क्या थी आख़िर!

“चलती हूँ आंटी जी,”

“हाँ बेटे!”

“नमस्ते आंटी जी,”

“खुश रहो बेटे,”

“बाय,” उसने अजय से कहा।

“बाय रूचि!”

रूचि के जाने के कुछ देर तक अजय दरवाज़े की तरफ़ ही देखता रहा, फिर किरण जी की तरफ़ देख कर बोला, “क्या हो गया माँ? रूचि से मेरे बारे में कुछ कह रही थीं आप?”

“अगर कह रही थी तो क्या? जानना चाहता है क्या कुछ?” उन्होंने जैसे अजय को छेड़ते हुए कहा।

“नहीं माँ, कुछ नहीं जानना मुझे।”

“लेकिन मुझे जानना है,”

“क्या माँ?”

“कैसी लगती है वो तुझे?”

“अच्छी लगती है, क्यों?”

“मुझे भी अच्छी लगती है,”

“अच्छी बात है माँ,”

“इसीलिए उसको पूजा में बुलाया है!”

“क्या? आप भी न माँ!”

“क्यों? क्या हो गया?”

“अगर उसको पूजा पाठ करना पसंद नहीं हुआ तो?”

“कोई बात नहीं। कुछ नहीं तो आ कर हमारे साथ बैठेगी। फिर साथ में खाना पीना करेंगे हम सब जने...” किरण जी ने कहा, “नॉट अ गुड आईडिया?”

“हा हा हा हा... आपने बुला ही लिया है, तो सब गुड है माँ।” अजय ने कहा, फिर अचानक से बात बदलते हुए बोला, “माँ याद है न? कल हम सभी डॉक्टर के यहाँ जा रहे हैं... कॉम्प्रिहेन्सिव मेडिकल चेकअप के लिए।”

“अरे साल में दो बार करवाते ही हैं। अब ये क्या नई मुसीबत है?”

“दो बार करवाते हैं, तो तीसरी बार भी करवाया जा सकता है न माँ?” अजय ने चुहल करते हुए कहा, “मैं तो बस इतना चाहता हूँ कि हम सब हेल्दी रहें। हैप्पी रहें।”

“अरे मेरा बच्चा,” किरण जी ने बड़े दुलार से कहा, “क्यों नहीं रहेंगे रे हम सभी हेल्दी एंड हैप्पी? तू है न हमारे साथ... हमारा सायना बेटा!”

और ऐसा कह कर उन्होंने अजय को अपने आलिंगन में भर लिया। फिर दोनों अंदर आ कर सोफ़े पर बैठ गए।

“अच्छा सुन,”

“हाँ माँ?”

“तू ठीक तो है न?”

“हाँ... क्यों क्या हो गया माँ?”

“जब से माया अपने ससुराल गई है, तब से तूने दूधू नहीं पिया?” किरण जी ने थोड़ी चिंतातुर आवाज़ में पूछा, “इतने दिन हो गए... और... सब भरा भरा भी लग रहा है,”

“ओह, आई ऍम सॉरी माँ!”

“कोई बात नहीं,” उन्होंने ब्लाउज़ खोलते हुए कहा, “अब पी ले,”

“यस मॉम,”

कह कर अजय उनकी गोद में लेट गया और इंतज़ार करने लगा।

“काम में आज कल कुछ अधिक ही बिजी हो गया हूँ माँ,”

“हाँ... मैंने भी देखा है वो। पढ़ाई तो अच्छी चल रही है, लेकिन तू और भी किसी काम में बिज़ी लगता है!”

“हाँ माँ... बात दरअसल ये है कि भैया की तरह मैं भी हायर स्टडीज़ करना चाहता हूँ।”

कह कर उसने उनका एक स्तन पीना शुरू कर दिया।

शायद दूध का दबाव किरण जी के स्तनों पर इतना अधिक हो गया था, कि जब उसकी पहली धार छूटी तो उनको एक चुभने वाला दर्द महसूस हुआ। लेकिन उसके ठीक बाद उनको राहत भी महसूस हुई। किरण जी दो पल के लिए चुप हो गईं। जब उनको थोड़ी राहत मिली तो उन्होंने पूछा,

“तू भी चला जाएगा?”

“माँ,” स्तनपान करना रोक कर उसने कहना शुरू किया।

“नहीं नहीं! जा... अच्छा है। बच्चे खूब तरक़्क़ी करते हैं तो माँ बाप को अच्छा लगता है,” किरण जी ने एक फ़ीकी हँसी हँसते हुए कहा, “लेकिन मेरा मन ये सोच कर बैठ रहा है कि माया की शादी होने जा रही है दो ही महीने में... और फिर अगले साल तक तू भी!”

“माँ, दीदी तो यहीं हैं... दिल्ली में ही।” अजय ने जैसे माँ को मनाते हुए कहा।

“हाँ, वो भी है।”

“माँ, लेकिन मैं पढ़ाई कर के यहाँ वापस आना चाहता हूँ,”

“सच में बेटे?”

“हाँ माँ... यहाँ सभी हैं। मैं वहाँ अमेरिका में क्या करूँगा? वापस आ कर अपना सॉफ्टवेयर का बिज़नेस करूँगा,”

“किसका?”

“कम्प्युटर का माँ,”

किरण जी को अजय की बात सुन कर संतोष हुआ।

“रूचि का क्या प्लान है?”

“रूचि का मुझे कैसे पता चलेगा माँ?”

“क्यों? अपने प्लान्स शेयर नहीं करते तुम दोनों?”

“वो भी पढ़ना चाहती है माँ, लेकिन उसके बाद का नहीं पता मुझको!”

“वो भी तेरे सॉफ्ट कम्प्युटर बिज़नेस में साथ नहीं हो सकती?”

“हो सकती है माँ,” अजय बोला, “लेकिन आप मुझसे अधिक रूचि में क्यों इंटरेस्टेड हैं?”

“कुछ नहीं... अच्छी लगती है वो मुझे,” किरण जी बोलीं, “तुझे भी तो अच्छी लगती है न?”

“हाँ माँ, अच्छी लड़की है... मेहनती... इंटेलीजेंट...”

“सुन्दर?”

“हाँ, सुन्दर भी...”

किरण जी मुस्कुराईं, लेकिन उन्होंने इस बात को आगे नहीं बढ़ाया।

कुछ देर स्तनपान करने के बाद अजय बोला, “माँ... आई विल मिस डूईंग इट,”

“वैसे... नाऊ यू शुड स्टॉप डूईंग इट,” किरण जी ने कहा, “तुम और माया दोनों ही बड़े हो गए हो!”

“कोई बड़े वड़े नहीं हुए हैं माँ,” अजय ने राज़ की बात खोलते हुए कहा, “दीदी की सास तो उनको अपना दूध पिला रही हैं आज कल!”

“व्हाट! क्या कह रहा है तू?”

“हाँ माँ, हा हा हा हा... दीदी ने खुद बताया।”

“हे प्रभु,” किरण जी ने ईश्वर को धन्यवाद देते हुए कहा, “तेरा लाख लाख शुक्र है प्रभु! ऐसे ही मेरे बच्चों पर अपनी दया बनाए रखना,”

“हाँ माँ, माया दीदी कोई कम किस्मत वाली नहीं हैं,”

“भगवान करें, तेरी भी किस्मत माया के जैसी ही हो,”

अजय ने कुछ कहा नहीं, लेकिन उसने भी मन ही मन ईश्वर को और प्रजापति जी को धन्यवाद किया। अब तो स्वयं परमपिता ने उसके जीवन की दिशा बदल दी है। उम्मीद तो यही की जा सकती है न कि सब कुछ बीते समय से बेहतर होगा!

“वैसे एक बात है,” किरण जी ने कहा, “जब बच्चे दूध पीना बंद कर देते हैं, तो माँ को दूध बनना भी बंद हो जाता है,”

“व्हाट?”

“और क्या! तो तेरे जाते ही दूध की सप्लाई बंद,” किरण जी ने हँसते हुए कहा।

“फिर?”

“क्या फिर? फिर कुछ नहीं!”

“माँ आपको फिर कैसे दूध आएगा?”

“नहीं आएगा... आई ऍम पास्ट इट...”

“कोई तो तरीका होगा न?”

“हा हा हा... हाँ है,”

“क्या माँ?”

“मुझको कोई बेबी हो जाए,”

“ओह,” अजय ने कहा... फिर बात की गहराई को समझते हुए बोला, “ओओओओह...”

“हाँ, अब समझा!” किरण जी बोलीं, “इसलिए इसको जितना पॉसिबल हो, मेरा आशीर्वाद समझ कर पी लो,”

“यस मॉम!”

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Ajju Landwalia

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“रूचि बेटे,” किरण जी रूचि के नीचे आने का इंतज़ार कर रही थीं।

जैसा कि पाठकों को ज्ञात है कि रूचि अक्सर ही अजय या फिर कमल के घर चली जाती थी कंबाइंड स्टडीज़ के लिए। अब नवरात्रि शुरू हो गए थे, और वो आज अजय के यहाँ आई हुई थी। दो दिनों में कॉलेज में छुट्टी होने वाली थी। माया अपने वायदे के मुताबिक़ कमल के यहाँ थी। क़रीब दो घण्टे की पढ़ाई के बाद रूचि अब वहाँ से निकल रही थी।

“जी, आंटी जी?”

“कैसी हो बच्चे?”

“एकदम फर्स्ट क्लास, आंटी जी!” रूचि की मुस्कान चौड़ी हो गई।

किरण जी से बात कर के उसको हमेशा ही ख़ुशी मिलती थी। उनका ममतामई व्यवहार उसको बहुत भाता था।

गुप्त रूप से रूचि के मन में एक बात अवश्य आती थी कि अगर अजय से उसकी शादी हो जाती है, वो कैसा रहेगा!

वो अभूतपूर्व तरीके से अजय की ओर आकर्षित होती जा रही थी। दो तीन महीने पहले वो सोच भी नहीं रही थी कि उसके मन में अजय के लिए ऐसे भाव पैदा होने लगेंगे! लेकिन अब हो रहे थे। उसको अपनी भावनाओं से थोड़ा डर भी लगता और आनंद भी आता। अभी तक वो केवल पढ़ाई में ही डूबी रहती आई थी। इसलिए यह अनुभव, यह विचार भिन्न थे।

पढ़ाई करते समय वो अक्सर ही अजय के बगल बैठती... कभी कभी बहुत क़रीब। इतने क़रीब बैठने पर उसको अजय के शरीर की सुगंध आती थी। उसकी बाँहों की माँस पेशियाँ मज़बूत थीं। किशोरवय लड़के बहुत हैंडसम नहीं होते, लेकिन रूचि समझती थी कि कुछ ही वर्षों में जैसे जैसे अजय जवान होगा, वो बहुत हैंडसम हो जाएगा। वो भी कोई कम सुन्दर नहीं थी। दोनों की जोड़ी अच्छी जमेगी - यह विचार उसके मन में जब भी आता, उसके होंठों पर अनायास ही एक मीठी सी मुस्कान आ जाती।

उसने अभी तक जो देखा समझा था, उसके हिसाब से जो लड़की भी इस घर में आएगी, वो बहुत लकी होने वाली थी। उसको अब तक पता चल गया था कि इस परिवार में लड़कियों की उच्च शिक्षा या फिर कैरियर बनाने को लेकर बहुत प्रोत्साहन मिलता है। यह बढ़िया बात थी जो रूचि के मन माफ़िक थी। उधर, अजय तो अच्छा था ही - उसके मम्मी पापा दोनों बहुत अच्छे थे। माया दीदी भी अच्छी थीं। कमल भी! इन सबके बारे में सोचते हुए उसको अपने ‘परिवार’ जैसा ही लगता था।

“एक बात कहनी है तुमसे,”

“हाँ, कहिये न आंटी जी?”

“देख बेटे,” उन्होंने जैसे उसको समझाते हुए कहा, “हमारी बिटिया तो इस पूरे नवरात्रि में अपनी ससुराल में रहेगी। ... तो हम - मेरा मतलब अजय के पापा और मैं - सोच रहे थे कि क्यों न तुम आ जाओ यहाँ, पूजा के दिन?”

“जी? मैं?”

“हाँ... क्यों? देख बच्चे, हर साल पूजा में माया बिटिया साथ होती है हमारे... तो उसके यूँ अचानक से न होने से इतना सुन्दर सा पर्व अधूरा अधूरा सा लगेगा। इसलिए सोचा कि अगर तुम यहाँ हो... तो...” किरण ही ने अचानक से बात बदल दी, “लेकिन तुम्हारे यहाँ भी तो होगी पूजा... कोई बात नहीं।”

“आंटी जी, थैंक यू फॉर आस्किंग मी!” रूचि ने खुश होते हुए कहा, “हमारे यहाँ कोई पूजा तो नहीं होती, लेकिन मम्मी पापा से पूछ कर मैं आ ज़रूर सकती हूँ!”

वो मुस्कुराती हुई बोलीं और बड़े प्यार से रूचि के सर और गाल को सहलाती हुई बोलीं, “सच में? बहुत बढ़िया बेटे! ... माँ हूँ न... क्या करूँ! बेटियों के रहने से घर में रौनक रहती न! अब इसको देखो,” किरण जी ने सीढ़ियाँ उतर कर आते हुए अजय को देख कर कहा, “इसका हर काम टू द पॉइंट रहता है। एकदम बोर तरीके का! लड़कों से बस काम करवा लो... रौनक वौनक इनके बस की नहीं है!”

उनकी बात पर रूचि हँसने लगी।

अजय समझ नहीं पाया कि बात क्या थी आख़िर!

“चलती हूँ आंटी जी,”

“हाँ बेटे!”

“नमस्ते आंटी जी,”

“खुश रहो बेटे,”

“बाय,” उसने अजय से कहा।

“बाय रूचि!”

रूचि के जाने के कुछ देर तक अजय दरवाज़े की तरफ़ ही देखता रहा, फिर किरण जी की तरफ़ देख कर बोला, “क्या हो गया माँ? रूचि से मेरे बारे में कुछ कह रही थीं आप?”

“अगर कह रही थी तो क्या? जानना चाहता है क्या कुछ?” उन्होंने जैसे अजय को छेड़ते हुए कहा।

“नहीं माँ, कुछ नहीं जानना मुझे।”

“लेकिन मुझे जानना है,”

“क्या माँ?”

“कैसी लगती है वो तुझे?”

“अच्छी लगती है, क्यों?”

“मुझे भी अच्छी लगती है,”

“अच्छी बात है माँ,”

“इसीलिए उसको पूजा में बुलाया है!”

“क्या? आप भी न माँ!”

“क्यों? क्या हो गया?”

“अगर उसको पूजा पाठ करना पसंद नहीं हुआ तो?”

“कोई बात नहीं। कुछ नहीं तो आ कर हमारे साथ बैठेगी। फिर साथ में खाना पीना करेंगे हम सब जने...” किरण जी ने कहा, “नॉट अ गुड आईडिया?”

“हा हा हा हा... आपने बुला ही लिया है, तो सब गुड है माँ।” अजय ने कहा, फिर अचानक से बात बदलते हुए बोला, “माँ याद है न? कल हम सभी डॉक्टर के यहाँ जा रहे हैं... कॉम्प्रिहेन्सिव मेडिकल चेकअप के लिए।”

“अरे साल में दो बार करवाते ही हैं। अब ये क्या नई मुसीबत है?”

“दो बार करवाते हैं, तो तीसरी बार भी करवाया जा सकता है न माँ?” अजय ने चुहल करते हुए कहा, “मैं तो बस इतना चाहता हूँ कि हम सब हेल्दी रहें। हैप्पी रहें।”

“अरे मेरा बच्चा,” किरण जी ने बड़े दुलार से कहा, “क्यों नहीं रहेंगे रे हम सभी हेल्दी एंड हैप्पी? तू है न हमारे साथ... हमारा सायना बेटा!”

और ऐसा कह कर उन्होंने अजय को अपने आलिंगन में भर लिया। फिर दोनों अंदर आ कर सोफ़े पर बैठ गए।

“अच्छा सुन,”

“हाँ माँ?”

“तू ठीक तो है न?”

“हाँ... क्यों क्या हो गया माँ?”

“जब से माया अपने ससुराल गई है, तब से तूने दूधू नहीं पिया?” किरण जी ने थोड़ी चिंतातुर आवाज़ में पूछा, “इतने दिन हो गए... और... सब भरा भरा भी लग रहा है,”

“ओह, आई ऍम सॉरी माँ!”

“कोई बात नहीं,” उन्होंने ब्लाउज़ खोलते हुए कहा, “अब पी ले,”

“यस मॉम,”

कह कर अजय उनकी गोद में लेट गया और इंतज़ार करने लगा।

“काम में आज कल कुछ अधिक ही बिजी हो गया हूँ माँ,”

“हाँ... मैंने भी देखा है वो। पढ़ाई तो अच्छी चल रही है, लेकिन तू और भी किसी काम में बिज़ी लगता है!”

“हाँ माँ... बात दरअसल ये है कि भैया की तरह मैं भी हायर स्टडीज़ करना चाहता हूँ।”

कह कर उसने उनका एक स्तन पीना शुरू कर दिया।

शायद दूध का दबाव किरण जी के स्तनों पर इतना अधिक हो गया था, कि जब उसकी पहली धार छूटी तो उनको एक चुभने वाला दर्द महसूस हुआ। लेकिन उसके ठीक बाद उनको राहत भी महसूस हुई। किरण जी दो पल के लिए चुप हो गईं। जब उनको थोड़ी राहत मिली तो उन्होंने पूछा,

“तू भी चला जाएगा?”

“माँ,” स्तनपान करना रोक कर उसने कहना शुरू किया।

“नहीं नहीं! जा... अच्छा है। बच्चे खूब तरक़्क़ी करते हैं तो माँ बाप को अच्छा लगता है,” किरण जी ने एक फ़ीकी हँसी हँसते हुए कहा, “लेकिन मेरा मन ये सोच कर बैठ रहा है कि माया की शादी होने जा रही है दो ही महीने में... और फिर अगले साल तक तू भी!”

“माँ, दीदी तो यहीं हैं... दिल्ली में ही।” अजय ने जैसे माँ को मनाते हुए कहा।

“हाँ, वो भी है।”

“माँ, लेकिन मैं पढ़ाई कर के यहाँ वापस आना चाहता हूँ,”

“सच में बेटे?”

“हाँ माँ... यहाँ सभी हैं। मैं वहाँ अमेरिका में क्या करूँगा? वापस आ कर अपना सॉफ्टवेयर का बिज़नेस करूँगा,”

“किसका?”

“कम्प्युटर का माँ,”

किरण जी को अजय की बात सुन कर संतोष हुआ।

“रूचि का क्या प्लान है?”

“रूचि का मुझे कैसे पता चलेगा माँ?”

“क्यों? अपने प्लान्स शेयर नहीं करते तुम दोनों?”

“वो भी पढ़ना चाहती है माँ, लेकिन उसके बाद का नहीं पता मुझको!”

“वो भी तेरे सॉफ्ट कम्प्युटर बिज़नेस में साथ नहीं हो सकती?”

“हो सकती है माँ,” अजय बोला, “लेकिन आप मुझसे अधिक रूचि में क्यों इंटरेस्टेड हैं?”

“कुछ नहीं... अच्छी लगती है वो मुझे,” किरण जी बोलीं, “तुझे भी तो अच्छी लगती है न?”

“हाँ माँ, अच्छी लड़की है... मेहनती... इंटेलीजेंट...”

“सुन्दर?”

“हाँ, सुन्दर भी...”

किरण जी मुस्कुराईं, लेकिन उन्होंने इस बात को आगे नहीं बढ़ाया।

कुछ देर स्तनपान करने के बाद अजय बोला, “माँ... आई विल मिस डूईंग इट,”

“वैसे... नाऊ यू शुड स्टॉप डूईंग इट,” किरण जी ने कहा, “तुम और माया दोनों ही बड़े हो गए हो!”

“कोई बड़े वड़े नहीं हुए हैं माँ,” अजय ने राज़ की बात खोलते हुए कहा, “दीदी की सास तो उनको अपना दूध पिला रही हैं आज कल!”

“व्हाट! क्या कह रहा है तू?”

“हाँ माँ, हा हा हा हा... दीदी ने खुद बताया।”

“हे प्रभु,” किरण जी ने ईश्वर को धन्यवाद देते हुए कहा, “तेरा लाख लाख शुक्र है प्रभु! ऐसे ही मेरे बच्चों पर अपनी दया बनाए रखना,”

“हाँ माँ, माया दीदी कोई कम किस्मत वाली नहीं हैं,”

“भगवान करें, तेरी भी किस्मत माया के जैसी ही हो,”

अजय ने कुछ कहा नहीं, लेकिन उसने भी मन ही मन ईश्वर को और प्रजापति जी को धन्यवाद किया। अब तो स्वयं परमपिता ने उसके जीवन की दिशा बदल दी है। उम्मीद तो यही की जा सकती है न कि सब कुछ बीते समय से बेहतर होगा!

“वैसे एक बात है,” किरण जी ने कहा, “जब बच्चे दूध पीना बंद कर देते हैं, तो माँ को दूध बनना भी बंद हो जाता है,”

“व्हाट?”

“और क्या! तो तेरे जाते ही दूध की सप्लाई बंद,” किरण जी ने हँसते हुए कहा।

“फिर?”

“क्या फिर? फिर कुछ नहीं!”

“माँ आपको फिर कैसे दूध आएगा?”

“नहीं आएगा... आई ऍम पास्ट इट...”

“कोई तो तरीका होगा न?”

“हा हा हा... हाँ है,”

“क्या माँ?”

“मुझको कोई बेबी हो जाए,”

“ओह,” अजय ने कहा... फिर बात की गहराई को समझते हुए बोला, “ओओओओह...”

“हाँ, अब समझा!” किरण जी बोलीं, “इसलिए इसको जितना पॉसिबल हो, मेरा आशीर्वाद समझ कर पी लो,”

“यस मॉम!”

**

Sabhi updates ek se badhkar ek he avsji Bhai,

Ajay ne badi hi maturity ke sath apni teacher ki ghar wali problem ko suljha diya...........khair ye wala Ajay to vaise bhi mature & experienced hi he

Ruchi ke man me bhi Ajay ke liye prem ke ankur fut pade he...........aur Kiran ji ko bhi ab vo hi chahiye apne ghar me bahu ke rup me........

Khair abhi kaise kuch keh sakte he.............kaal ke garbh me kya chhipa he.........sirf vo hi janta he.............

Keep rocking Bro
 

Sushil@10

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अपडेट 32:


अगले सप्ताह - हॉगवर्ट्स :

मॉर्निंग प्रेयर्स के समय, पूरी सभा से थोड़ी दूर, शशि और श्रद्धा एक गहरे वार्तालाप में डूबे हुए थे। दोनों के चेहरों पर चिंता की लक़ीरें साफ़ दिखाई दे रही थीं। अजय ने नोटिस किया कि शशि मैम चिंतित हैं... श्रद्धा मैम भी।

शशि मैम अजय की पसंदीदा टीचर थीं। उनके साथ वो बड़ी आसानी से बात कर पाता था - ‘वापस’ आने से पहले भी। वो मेहनत करतीं थीं और अपने स्टूडेंट्स की सफ़लता के लिए चिंतित भी रहती थीं। उनके डेडिकेशन को देख कर छात्र और छात्राएँ भी पढ़ने में मन लगाते थे और मेहनत करते थे। इसलिए यह कहना कि अजय शशि मैम की तरफ़ आकर्षित था, यह कोई अतिशयोक्ति नहीं थी। एक स्टूडेंट का अपनी टीचर के प्रति आकर्षण कोई नई बात नहीं है। अनेकों बार हो चुका है यह और आगे भी अनेकों बार होता ही रहेगा। उसके मन में एक दो बार ख़याल आया कि वो कभी उनसे अपने मन की बात कह दे। लेकिन समझ नहीं आया कि कैसे कहे! यह सम्बन्ध अनुचित होता है न!

उधर शशि मैम भी न केवल उसके ज्ञान से प्रभावित थीं, बल्कि उसके व्यक्तित्व से भी। अजय जिस तरह से खुद को कैरी करता था, उसकी अदा में गाम्भीर्य था... एक अलग सा ठहराव था और उसके अंदाज़ में गज़ब का आत्मविश्वास था। उसको अपने विषय में बहुत ज्ञान था - शायद शशि से भी अधिक... और शशि इस बात को समझती भी थी। लेकिन जो बात अजय को उनकी नज़र में बाक़ियों से अलग करती थी, वो यह थी कि अजय को अपने ज्ञान का अभिमान रत्ती भर भी नहीं था। सभी से वो बड़े आदर से बातें करता था - चाहे कोई भी हो! टीचर्स हों या स्टूडेंट्स... वो सभी से बहुत आदरपूर्वक बातें करता था। यहाँ तक कि निचली कक्षाओं के स्टूडेंट्स से भी वो “आप” “आप” कर के ही बातें करता था। केवल अपने निकटतम मित्रों से ही वो “तुम” कह के बातें करता था। वो इसलिए क्योंकि उस सम्बोधन में एक अपनापन होता है। यह सभी बातें शशि को बहुत पसंद आती थीं। अगर किसी आदमी में ऐसे गुण हों, तो वो आदमी किसी भी स्त्री को पसंद आता है। न तो रूचि ही अपवाद थी और न ही शशि।

ख़ैर...

वापस आने के बाद से अजय के मन में अपने प्रियजनों के लिए रक्षा-भाव इतना बढ़ गया था कि वो हमेशा इसी कोशिश में रहता था कि वो यथासंभव सभी की मदद कर सके। शशि और श्रद्धा मैम को यूँ चिंतित देख कर उससे रहा नहीं जा रहा था। क्लास में भी शशि मैम थोड़ी अन्यमनस्क सी प्रतीत हुईं। क्लास के बाद जो थोड़ा समय था, उसमें अजय ने उनसे उनकी चिंता का कारण पूछा, तो वो टाल गईं। बाद में श्रद्धा मैम भी बहुत ही चिंतित दिखाई दीं। उनका मन शायद ही क्लास में हो! पढ़ाते समय भी बहुत सी गलतियाँ करीं उन्होंने। बाकी स्टूडेंट्स तो नहीं समझ सके, लेकिन अजय को समझ में आया। लेकिन वो चुप ही रहा।

क्लास के बाद उसने श्रद्धा मैम के पास जा कर पूछा,

“मैम... उम्... कोई प्रॉब्लम है क्या?”

“क्या मतलब अजय?”

“मैम, कोई प्रॉब्लम हो तो प्लीज़ बताईए। इफ आई कैन हेल्प, आई विल!”

“ओह, आई डोंट नो अजय!” श्रद्धा ने गहरी साँस भरी, “ओह प्लीज़ लीव इट,”

और बात आई गई हो गई।

लेकिन अगले दिन फिर से वही हालत थी। आज तो श्रद्धा मैम अन्य दिनों की अपेक्षा बहुत ही अस्त-व्यस्त लग रही थीं। हमेशा ही वो प्रेस किये हुए कपड़े पहनी दिखाई देतीं, बाल इत्यादि सुव्यवस्थित रहते... लेकिन आज वो अजीब सी लग रही थीं। ऐसा लग रहा था कि वो रात में ठीक से सोई भी नहीं हैं। आँखों के नीचे एक काला घेरा बन गया था।

अब उससे रहा नहीं गया। लंच ब्रेक में वो स्टाफ़रूम में गया।

इस समय वो दोनों ही रहती थीं वहाँ - कोई पंद्रह मिनट तक। यह बात उसको पता थी।

“मैम,” अजय ने दरवाज़े को अदब से खटका कर कहा, “मे आई कम इन?”

“अजय, ओह डोंट बी सो फॉर्मल,” शशि ने कहा, “आओ न!”

अजय अंदर आया।

उसको देखते हुए शशि ने कहा, “क्या बात है?”

“यही तो मैं पूछना चाहता हूँ मैम कि बात क्या है?”

“क्या मतलब?”

“इतना तो मुझे समझ में आता है कि या तो आपको या फिर श्रद्धा मैम किसी परेशानी में हैं... एंड इफ आई ऍम करेक्ट, तो श्रद्धा मैम...”

उसकी बात पर शशि और श्रद्धा की आँखें दो पल को मिलीं।

श्रद्धा कुछ कहती, उसके पहले ही शशि ने कहा, “अजय... बात थोड़ी नाज़ुक है।”

“मैम बताईए न... आई कैन हेल्प! इफ नॉट मी, देन माय फादर कैन... प्लीज बताइये...”

“अजय... बात दरअसल ये है कि श्रद्धा के मकान मालिक ने बिना किसी नोटिस दिए उसको घर से निकाल दिया...”

“व्हाट? ऐसे कैसे?”

“बोला कि नवरात्रि में गाँव से कई मेहमान आ रहे हैं इसलिए मकान वापस चाहिए।”

“ही जस्ट वांट्स मोर रेंट,” श्रद्धा ने बताया, “ये सब बहाना है। उस समय भी मैंने जैसे तैसे कर के रेंट कम करवा लिया था, लेकिन आज कल इतनी डिमांड है कि क्या करूँ।”

“उसने माँगा था क्या आप से अधिक रेंट?”

“हाँ... इशारों में कहा था उसने। लेकिन जितना देती हूँ, उससे डेढ़ गुना कैसे दूँ? ऊपर से उसको सिक्योरिटी डिपाजिट भी चाहिए!” कहते कहते वो रोआँसी हो गई, “अभी अभी तो नौकरी शुरू करी है... न सेविंग है न कुछ। कुछ बचेगा ही नहीं।”

“कितना माँग रहा था?”

श्रद्धा ने उसको बताया।

“हम्म्म... और इसलिए उसने आपको घर से निकाल दिया?”

श्रद्धा ने कुछ कहा नहीं। लेकिन उसकी आँख से आँसू निकल गए।

“अभी कहाँ रह रही हैं आप?”

“एक धर्मशाला में। जो थोड़े बहुत फर्नीचर थे, उनमें से भी कई चोरी हो गए।” कहते कहते श्रद्धा का गला भर आया।

अजय ने इस विषय पर कुछ कहा नहीं। वो समझता था कि जब मुसीबत आती है, तो व्यक्ति केवल उसका निस्तारण चाहता है, समाधान चाहता है। कोई लफ़्फ़ाज़ी नहीं चाहता... लक्ष्य-विहीन सहानुभूति नहीं चाहता। उसने दो क्षण सोचा, फिर शशि से बोला,

“मैम, मैं स्टाफरूम का फ़ोन यूज़ कर लूँ?”

“अजय डू व्हाटएवर! लेकिन अगर इसकी हेल्प कर सको, तो बहुत एहसान होगा,” शशि ने लगभग हाथ जोड़ दिए।

“मैम, प्लीज़ ऐसे मत बोलिए... प्लीज़ जस्ट गिव मी अ फ्यू मिनट्स... लेट मी सी व्हाट कैन बी डन...”

कह कर अजय ने पहले अशोक जी को और फिर उनके कहने पर उनके दो और मित्रों को फ़ोन किया। बातें कोई पच्चीस मिनट तक चलीं। तब तक लंच ब्रेक भी बीत गया। श्रद्धा को बहुत बुरा लग रहा था कि उसके कारण अजय ने खाना नहीं खाया, लेकिन ऐसी मामूली बात की अजय को कोई परवाह नहीं थी। जिसने जेल की मार तीन साल तक झेली हो, उसके लिए ऐसी छोटी बातों का कोई मतलब ही नहीं रहता। कुछ समय बाद स्टाफरूम के फ़ोन पर एक साल आया। अशोक जी ने किया था, अजय के लिए।

बातें समाप्त होते होते अजय के होंठों पर मुस्कान आ गई।

“मैम,” उसने श्रद्धा से कहा, “घर का बंदोबस्त हो गया है।”

“ओह गॉड... थैंक यू सो मच, अजय!” श्रद्धा ने अपने तहे दिल से अजय का शुक्रिया अदा किया।

“नो वरीस, मैम! वन बीएचके है...”

“मतलब?”

“ओह, मतलब... एक कमरा, एक हॉल, और किचन! अटैच्ड बाथरूम है...”

“बढ़िया! अभी के घर से तो बेहतर है,” शशि ने कहा।

“मकान मालिक ने कहा है कि आप आज ही आ सकती हैं।”

“लेकिन अजय, रेंट भी ज़्यादा होगा न?”

“नहीं मैम, अभी जो आपका रेंट है, वही!”

“व्हाट! आर यू श्योर?”

“मैम, ये आपने नए मकान मालिक मेरे पापा के दोस्त हैं। उनको कोई रेंट वेंट नहीं चाहिए, लेकिन फ़्री में नहीं दे सकते हैं न!” अजय मुस्कुराया, “इसलिए आपसे उतना ही रेंट लेंगे जितना आप अभी दे रही हैं। उनको चाहिए कि कोई सलीक़े से उनके घर को रख सके,”

“वॉव,” शशि बोली, “आज भी ऐसे लोग हैं?”

अजय मुस्कुराया।

बात तो सही है - एक एक पैसे के लिए लोग एक दूसरे को बेचने पर अमादा हैं। ऐसे में कोई इतना दिलदार मिल जाए, तो क्या कहना!

“और उन्होंने कहा है कि आप आज ही आ सकती हैं।” अजय ने आगे बताया, “किस धर्मशाला में हैं आप?”

श्रद्धा ने बताया।

“ठीक है। मेरे एक मनोहर भैया हैं... वो आपका सारा सामान आज शाम को शिफ़्ट करवा देंगे।” अजय ने सुझाया, “मैं घर कॉल कर दूँगा... वो आपके वहाँ पहुँचने से पहले ही वहाँ रहेंगे!”

“नहीं अजय! पहले ही तुम्हारा इतना एहसान हैं,”

मैम,” अजय ने शर्मिंदा होते हुए कहा, “आप ऐसी बात क्यों कह रही हैं? आप एक दिन छुट्टी ले लीजिए... आज आराम से शिफ़्ट हो जाईए और कल सब कुछ अनपैक कर लीजिये।”

“ओह अजय, थैंक यू सो मच!”

“मैम, आई ऍम वैरी हैप्पी टू हेल्प!” अजय ने हाथ जोड़ कर कहा, “कोई और नीड हो, तो बताईएगा... प्लीज़ डोंट हेसिटेट!”

“ओह गॉड! यही बहुत है,” श्रद्धा बोली, “थैंक यू अजय!”

“थैंक यू अजय,” शशि ने भी उसको धन्यवाद किया।

अजय इतनी बार दोनों को धन्यवाद करने से मना किया था, लेकिन फिर भी दोनों बार बार उसको थैंक यू थैंक यू कह रही थीं। वो बस अंत में निराशा में सर हिला कर रहा गया।

“नहीं अजय,” शशि ने कहा, “ऐसे मत करो। तुमने आज बहुत अच्छा काम किया है। ... आई वांटेड टू हेल्प, लेकिन वो क्या है कि मैं कुछ दिनों के छुट्टी पर जा रही हूँ,”

“ओह! ऑल गुड मैम?” अजय ने पूछा।

“ऑल गुड, अजय,” शशि ने कहा, “पर्सनल काम है! लेकिन दो या तीन सप्ताह में वापस आ जाऊँगी!”

“ओके!”

“देयर विल बी अ सब्स्टीट्यूट! ... लेकिन तुमको रिकमेन्डेशन मैं ही दूँगी! चिंता न करो!”

“मैम कोई बात ही नहीं है,” अजय बोला, फिर श्रद्धा की तरफ़ मुखातिब हो कर बोला, “मैम, आप बिल्कुल चिंता मत करिए। अगर कोई परेशानी हो, तो ज़रूर बता दीजिएगा,”

“ठीक है,” श्रद्धा ने कहा, “थैंक यू सो मच अजय,”

“यू आर मोस्ट वेलकम, मैम!” अजय ने प्रसन्न हो कर कहा, “यू आर मोस्ट वेलकम,”

**
Awesome update and nice story
अपडेट 33:


“रूचि बेटे,” किरण जी रूचि के नीचे आने का इंतज़ार कर रही थीं।

जैसा कि पाठकों को ज्ञात है कि रूचि अक्सर ही अजय या फिर कमल के घर चली जाती थी कंबाइंड स्टडीज़ के लिए। अब नवरात्रि शुरू हो गए थे, और वो आज अजय के यहाँ आई हुई थी। दो दिनों में कॉलेज में छुट्टी होने वाली थी। माया अपने वायदे के मुताबिक़ कमल के यहाँ थी। क़रीब दो घण्टे की पढ़ाई के बाद रूचि अब वहाँ से निकल रही थी।

“जी, आंटी जी?”

“कैसी हो बच्चे?”

“एकदम फर्स्ट क्लास, आंटी जी!” रूचि की मुस्कान चौड़ी हो गई।

किरण जी से बात कर के उसको हमेशा ही ख़ुशी मिलती थी। उनका ममतामई व्यवहार उसको बहुत भाता था।

गुप्त रूप से रूचि के मन में एक बात अवश्य आती थी कि अगर अजय से उसकी शादी हो जाती है, वो कैसा रहेगा!

वो अभूतपूर्व तरीके से अजय की ओर आकर्षित होती जा रही थी। दो तीन महीने पहले वो सोच भी नहीं रही थी कि उसके मन में अजय के लिए ऐसे भाव पैदा होने लगेंगे! लेकिन अब हो रहे थे। उसको अपनी भावनाओं से थोड़ा डर भी लगता और आनंद भी आता। अभी तक वो केवल पढ़ाई में ही डूबी रहती आई थी। इसलिए यह अनुभव, यह विचार भिन्न थे।

पढ़ाई करते समय वो अक्सर ही अजय के बगल बैठती... कभी कभी बहुत क़रीब। इतने क़रीब बैठने पर उसको अजय के शरीर की सुगंध आती थी। उसकी बाँहों की माँस पेशियाँ मज़बूत थीं। किशोरवय लड़के बहुत हैंडसम नहीं होते, लेकिन रूचि समझती थी कि कुछ ही वर्षों में जैसे जैसे अजय जवान होगा, वो बहुत हैंडसम हो जाएगा। वो भी कोई कम सुन्दर नहीं थी। दोनों की जोड़ी अच्छी जमेगी - यह विचार उसके मन में जब भी आता, उसके होंठों पर अनायास ही एक मीठी सी मुस्कान आ जाती।

उसने अभी तक जो देखा समझा था, उसके हिसाब से जो लड़की भी इस घर में आएगी, वो बहुत लकी होने वाली थी। उसको अब तक पता चल गया था कि इस परिवार में लड़कियों की उच्च शिक्षा या फिर कैरियर बनाने को लेकर बहुत प्रोत्साहन मिलता है। यह बढ़िया बात थी जो रूचि के मन माफ़िक थी। उधर, अजय तो अच्छा था ही - उसके मम्मी पापा दोनों बहुत अच्छे थे। माया दीदी भी अच्छी थीं। कमल भी! इन सबके बारे में सोचते हुए उसको अपने ‘परिवार’ जैसा ही लगता था।

“एक बात कहनी है तुमसे,”

“हाँ, कहिये न आंटी जी?”

“देख बेटे,” उन्होंने जैसे उसको समझाते हुए कहा, “हमारी बिटिया तो इस पूरे नवरात्रि में अपनी ससुराल में रहेगी। ... तो हम - मेरा मतलब अजय के पापा और मैं - सोच रहे थे कि क्यों न तुम आ जाओ यहाँ, पूजा के दिन?”

“जी? मैं?”

“हाँ... क्यों? देख बच्चे, हर साल पूजा में माया बिटिया साथ होती है हमारे... तो उसके यूँ अचानक से न होने से इतना सुन्दर सा पर्व अधूरा अधूरा सा लगेगा। इसलिए सोचा कि अगर तुम यहाँ हो... तो...” किरण ही ने अचानक से बात बदल दी, “लेकिन तुम्हारे यहाँ भी तो होगी पूजा... कोई बात नहीं।”

“आंटी जी, थैंक यू फॉर आस्किंग मी!” रूचि ने खुश होते हुए कहा, “हमारे यहाँ कोई पूजा तो नहीं होती, लेकिन मम्मी पापा से पूछ कर मैं आ ज़रूर सकती हूँ!”

वो मुस्कुराती हुई बोलीं और बड़े प्यार से रूचि के सर और गाल को सहलाती हुई बोलीं, “सच में? बहुत बढ़िया बेटे! ... माँ हूँ न... क्या करूँ! बेटियों के रहने से घर में रौनक रहती न! अब इसको देखो,” किरण जी ने सीढ़ियाँ उतर कर आते हुए अजय को देख कर कहा, “इसका हर काम टू द पॉइंट रहता है। एकदम बोर तरीके का! लड़कों से बस काम करवा लो... रौनक वौनक इनके बस की नहीं है!”

उनकी बात पर रूचि हँसने लगी।

अजय समझ नहीं पाया कि बात क्या थी आख़िर!

“चलती हूँ आंटी जी,”

“हाँ बेटे!”

“नमस्ते आंटी जी,”

“खुश रहो बेटे,”

“बाय,” उसने अजय से कहा।

“बाय रूचि!”

रूचि के जाने के कुछ देर तक अजय दरवाज़े की तरफ़ ही देखता रहा, फिर किरण जी की तरफ़ देख कर बोला, “क्या हो गया माँ? रूचि से मेरे बारे में कुछ कह रही थीं आप?”

“अगर कह रही थी तो क्या? जानना चाहता है क्या कुछ?” उन्होंने जैसे अजय को छेड़ते हुए कहा।

“नहीं माँ, कुछ नहीं जानना मुझे।”

“लेकिन मुझे जानना है,”

“क्या माँ?”

“कैसी लगती है वो तुझे?”

“अच्छी लगती है, क्यों?”

“मुझे भी अच्छी लगती है,”

“अच्छी बात है माँ,”

“इसीलिए उसको पूजा में बुलाया है!”

“क्या? आप भी न माँ!”

“क्यों? क्या हो गया?”

“अगर उसको पूजा पाठ करना पसंद नहीं हुआ तो?”

“कोई बात नहीं। कुछ नहीं तो आ कर हमारे साथ बैठेगी। फिर साथ में खाना पीना करेंगे हम सब जने...” किरण जी ने कहा, “नॉट अ गुड आईडिया?”

“हा हा हा हा... आपने बुला ही लिया है, तो सब गुड है माँ।” अजय ने कहा, फिर अचानक से बात बदलते हुए बोला, “माँ याद है न? कल हम सभी डॉक्टर के यहाँ जा रहे हैं... कॉम्प्रिहेन्सिव मेडिकल चेकअप के लिए।”

“अरे साल में दो बार करवाते ही हैं। अब ये क्या नई मुसीबत है?”

“दो बार करवाते हैं, तो तीसरी बार भी करवाया जा सकता है न माँ?” अजय ने चुहल करते हुए कहा, “मैं तो बस इतना चाहता हूँ कि हम सब हेल्दी रहें। हैप्पी रहें।”

“अरे मेरा बच्चा,” किरण जी ने बड़े दुलार से कहा, “क्यों नहीं रहेंगे रे हम सभी हेल्दी एंड हैप्पी? तू है न हमारे साथ... हमारा सायना बेटा!”

और ऐसा कह कर उन्होंने अजय को अपने आलिंगन में भर लिया। फिर दोनों अंदर आ कर सोफ़े पर बैठ गए।

“अच्छा सुन,”

“हाँ माँ?”

“तू ठीक तो है न?”

“हाँ... क्यों क्या हो गया माँ?”

“जब से माया अपने ससुराल गई है, तब से तूने दूधू नहीं पिया?” किरण जी ने थोड़ी चिंतातुर आवाज़ में पूछा, “इतने दिन हो गए... और... सब भरा भरा भी लग रहा है,”

“ओह, आई ऍम सॉरी माँ!”

“कोई बात नहीं,” उन्होंने ब्लाउज़ खोलते हुए कहा, “अब पी ले,”

“यस मॉम,”

कह कर अजय उनकी गोद में लेट गया और इंतज़ार करने लगा।

“काम में आज कल कुछ अधिक ही बिजी हो गया हूँ माँ,”

“हाँ... मैंने भी देखा है वो। पढ़ाई तो अच्छी चल रही है, लेकिन तू और भी किसी काम में बिज़ी लगता है!”

“हाँ माँ... बात दरअसल ये है कि भैया की तरह मैं भी हायर स्टडीज़ करना चाहता हूँ।”

कह कर उसने उनका एक स्तन पीना शुरू कर दिया।

शायद दूध का दबाव किरण जी के स्तनों पर इतना अधिक हो गया था, कि जब उसकी पहली धार छूटी तो उनको एक चुभने वाला दर्द महसूस हुआ। लेकिन उसके ठीक बाद उनको राहत भी महसूस हुई। किरण जी दो पल के लिए चुप हो गईं। जब उनको थोड़ी राहत मिली तो उन्होंने पूछा,

“तू भी चला जाएगा?”

“माँ,” स्तनपान करना रोक कर उसने कहना शुरू किया।

“नहीं नहीं! जा... अच्छा है। बच्चे खूब तरक़्क़ी करते हैं तो माँ बाप को अच्छा लगता है,” किरण जी ने एक फ़ीकी हँसी हँसते हुए कहा, “लेकिन मेरा मन ये सोच कर बैठ रहा है कि माया की शादी होने जा रही है दो ही महीने में... और फिर अगले साल तक तू भी!”

“माँ, दीदी तो यहीं हैं... दिल्ली में ही।” अजय ने जैसे माँ को मनाते हुए कहा।

“हाँ, वो भी है।”

“माँ, लेकिन मैं पढ़ाई कर के यहाँ वापस आना चाहता हूँ,”

“सच में बेटे?”

“हाँ माँ... यहाँ सभी हैं। मैं वहाँ अमेरिका में क्या करूँगा? वापस आ कर अपना सॉफ्टवेयर का बिज़नेस करूँगा,”

“किसका?”

“कम्प्युटर का माँ,”

किरण जी को अजय की बात सुन कर संतोष हुआ।

“रूचि का क्या प्लान है?”

“रूचि का मुझे कैसे पता चलेगा माँ?”

“क्यों? अपने प्लान्स शेयर नहीं करते तुम दोनों?”

“वो भी पढ़ना चाहती है माँ, लेकिन उसके बाद का नहीं पता मुझको!”

“वो भी तेरे सॉफ्ट कम्प्युटर बिज़नेस में साथ नहीं हो सकती?”

“हो सकती है माँ,” अजय बोला, “लेकिन आप मुझसे अधिक रूचि में क्यों इंटरेस्टेड हैं?”

“कुछ नहीं... अच्छी लगती है वो मुझे,” किरण जी बोलीं, “तुझे भी तो अच्छी लगती है न?”

“हाँ माँ, अच्छी लड़की है... मेहनती... इंटेलीजेंट...”

“सुन्दर?”

“हाँ, सुन्दर भी...”

किरण जी मुस्कुराईं, लेकिन उन्होंने इस बात को आगे नहीं बढ़ाया।

कुछ देर स्तनपान करने के बाद अजय बोला, “माँ... आई विल मिस डूईंग इट,”

“वैसे... नाऊ यू शुड स्टॉप डूईंग इट,” किरण जी ने कहा, “तुम और माया दोनों ही बड़े हो गए हो!”

“कोई बड़े वड़े नहीं हुए हैं माँ,” अजय ने राज़ की बात खोलते हुए कहा, “दीदी की सास तो उनको अपना दूध पिला रही हैं आज कल!”

“व्हाट! क्या कह रहा है तू?”

“हाँ माँ, हा हा हा हा... दीदी ने खुद बताया।”

“हे प्रभु,” किरण जी ने ईश्वर को धन्यवाद देते हुए कहा, “तेरा लाख लाख शुक्र है प्रभु! ऐसे ही मेरे बच्चों पर अपनी दया बनाए रखना,”

“हाँ माँ, माया दीदी कोई कम किस्मत वाली नहीं हैं,”

“भगवान करें, तेरी भी किस्मत माया के जैसी ही हो,”

अजय ने कुछ कहा नहीं, लेकिन उसने भी मन ही मन ईश्वर को और प्रजापति जी को धन्यवाद किया। अब तो स्वयं परमपिता ने उसके जीवन की दिशा बदल दी है। उम्मीद तो यही की जा सकती है न कि सब कुछ बीते समय से बेहतर होगा!

“वैसे एक बात है,” किरण जी ने कहा, “जब बच्चे दूध पीना बंद कर देते हैं, तो माँ को दूध बनना भी बंद हो जाता है,”

“व्हाट?”

“और क्या! तो तेरे जाते ही दूध की सप्लाई बंद,” किरण जी ने हँसते हुए कहा।

“फिर?”

“क्या फिर? फिर कुछ नहीं!”

“माँ आपको फिर कैसे दूध आएगा?”

“नहीं आएगा... आई ऍम पास्ट इट...”

“कोई तो तरीका होगा न?”

“हा हा हा... हाँ है,”

“क्या माँ?”

“मुझको कोई बेबी हो जाए,”

“ओह,” अजय ने कहा... फिर बात की गहराई को समझते हुए बोला, “ओओओओह...”

“हाँ, अब समझा!” किरण जी बोलीं, “इसलिए इसको जितना पॉसिबल हो, मेरा आशीर्वाद समझ कर पी लो,”

“यस मॉम!”

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Amazing update
 

KinkyGeneral

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अगर वो - मतलब उसकी चेतना - अपने भूतकाल में आ गया है, तो उसके ख़ुद का कोई अस्तित्व है भी या नहीं? अगर वो ख़ुद ‘यहाँ’ है, तो ‘वहाँ’ कौन है? और अगर वो ‘वहाँ’ नहीं है, तो माँ के साथ कौन है? यह सोचते ही उसका शरीर पसीने से नहा गया।

बाप रे! भूत, भविष्य, और वर्तमान के खेल में वो ऐसा फँसा है कि अनजाने ही उसने माँ को भीषण तकलीफ़ में झोंक दिया है।
एक बार तो लगा जैसे edge of tomorrow फ़िल्म जैसा scene हो जाएगा, अजय सब कुछ सही करने के लिए पर्यास करेगा परंतु फिर घूम-घाम कर बात नहीं बन पायेगी और वो फिर उसी रात को जाग जाएगा और सब ठीक करने के लिए नई रणनीति पे काम करेगा। खैर ये सब फ़िल्म में ही हो सकता है इसे लिखने में तो लेखक ही थक जाएगा और पढ़ने वाले भी शायद ऊभ जायें।

अगर यह सब वास्तव मे हुआ तो इसका मतलब यह हुआ कि विधाता ने प्रकृति के नियम को ही पुरी तरह चेंज कर के रख दिया । यमराज और चित्रगुप्त बस नाम मात्र के ही यमराज , चित्रगुप्त रह गए ।
SANJU ( V. R. ) भैया यदि आप यमराज चित्रगुप्त को validation दे सकते हैं तो क्या multiverse के विषय में भी थोड़ा सा विचार कर सकते हैं, क्या हो कि अजय की यह समृति ही बस बदली (स्वप्न की वजह से) हो परंतु यह अजय दूसरे किसी ब्रह्माण्ड में हो?

(बहरहाल, कहानी काफ़ी आगे बढ़ गई होगी, अब तक तो सब साफ़ हो ही गया होगा।)
 
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स्टूडेंट का अपनी अध्यापिका से प्यार होना कोई अचरज की बात नही है । लेकिन यह प्यार नही एक क्रश होता है , एक लगाव होता है , एक सम्मोहन होता है जो बाद मे टूट जाता है ।
वैसे स्टूडेंट और टीचर के बीच अक्सर एक ऐसा अपनापन का रिश्ता बन जाता है जिसकी यादें जेहन मे हमेशा के लिए कैद हो जाती है । मै खुद अपने किसी टीचर को भूल नही पाया । इस का कारण उन सभी टीचर का मेरे प्रति खास लगाव और प्रेम ही था । मुझे आज भी याद है जब मेरे विवाह के रिसेप्शन पार्टी मे लगभग सभी टीचर्स आए थे और मुझे अपने आशिर्वाद से अनुग्रहीत किया था ।

इस सब्जेक्ट को राज कपूर साहब ने अपनी फिल्म ' मेरा नाम जोकर ' मे बहुत ही खूबसूरती से दर्शाया है ।

इस अपडेट मे , अगर थोड़ा-बहुत मजाक की बात करें तो जब टीचर या कोई मैच्योर औरत खुबसूरत है और कुछ परेशानी मे है तो लड़के वगैर निमंत्रण के उनकी मदद करने पहुंच ही जाते है । :D
खैर यह तो मजाक मे कहा पर रियल मे , अजय ने श्रद्धा मैम की मदद कर बहुत ही बढ़िया काम किया ।

इधर हमारे हीरो का तो पता नही पर हीरोइन ' रूचि ' की रूचि अवश्य हीरो मे दिखाई देने लगी है । अगर यह रिश्ता परवान चढ़ा तो अजय और रूचि दोनो के लिए अच्छी बात होगी ।

बहुत ही खूबसूरत अपडेट अमर भाई ।
 

parkas

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अपडेट 32:


अगले सप्ताह - हॉगवर्ट्स :

मॉर्निंग प्रेयर्स के समय, पूरी सभा से थोड़ी दूर, शशि और श्रद्धा एक गहरे वार्तालाप में डूबे हुए थे। दोनों के चेहरों पर चिंता की लक़ीरें साफ़ दिखाई दे रही थीं। अजय ने नोटिस किया कि शशि मैम चिंतित हैं... श्रद्धा मैम भी।

शशि मैम अजय की पसंदीदा टीचर थीं। उनके साथ वो बड़ी आसानी से बात कर पाता था - ‘वापस’ आने से पहले भी। वो मेहनत करतीं थीं और अपने स्टूडेंट्स की सफ़लता के लिए चिंतित भी रहती थीं। उनके डेडिकेशन को देख कर छात्र और छात्राएँ भी पढ़ने में मन लगाते थे और मेहनत करते थे। इसलिए यह कहना कि अजय शशि मैम की तरफ़ आकर्षित था, यह कोई अतिशयोक्ति नहीं थी। एक स्टूडेंट का अपनी टीचर के प्रति आकर्षण कोई नई बात नहीं है। अनेकों बार हो चुका है यह और आगे भी अनेकों बार होता ही रहेगा। उसके मन में एक दो बार ख़याल आया कि वो कभी उनसे अपने मन की बात कह दे। लेकिन समझ नहीं आया कि कैसे कहे! यह सम्बन्ध अनुचित होता है न!

उधर शशि मैम भी न केवल उसके ज्ञान से प्रभावित थीं, बल्कि उसके व्यक्तित्व से भी। अजय जिस तरह से खुद को कैरी करता था, उसकी अदा में गाम्भीर्य था... एक अलग सा ठहराव था और उसके अंदाज़ में गज़ब का आत्मविश्वास था। उसको अपने विषय में बहुत ज्ञान था - शायद शशि से भी अधिक... और शशि इस बात को समझती भी थी। लेकिन जो बात अजय को उनकी नज़र में बाक़ियों से अलग करती थी, वो यह थी कि अजय को अपने ज्ञान का अभिमान रत्ती भर भी नहीं था। सभी से वो बड़े आदर से बातें करता था - चाहे कोई भी हो! टीचर्स हों या स्टूडेंट्स... वो सभी से बहुत आदरपूर्वक बातें करता था। यहाँ तक कि निचली कक्षाओं के स्टूडेंट्स से भी वो “आप” “आप” कर के ही बातें करता था। केवल अपने निकटतम मित्रों से ही वो “तुम” कह के बातें करता था। वो इसलिए क्योंकि उस सम्बोधन में एक अपनापन होता है। यह सभी बातें शशि को बहुत पसंद आती थीं। अगर किसी आदमी में ऐसे गुण हों, तो वो आदमी किसी भी स्त्री को पसंद आता है। न तो रूचि ही अपवाद थी और न ही शशि।

ख़ैर...

वापस आने के बाद से अजय के मन में अपने प्रियजनों के लिए रक्षा-भाव इतना बढ़ गया था कि वो हमेशा इसी कोशिश में रहता था कि वो यथासंभव सभी की मदद कर सके। शशि और श्रद्धा मैम को यूँ चिंतित देख कर उससे रहा नहीं जा रहा था। क्लास में भी शशि मैम थोड़ी अन्यमनस्क सी प्रतीत हुईं। क्लास के बाद जो थोड़ा समय था, उसमें अजय ने उनसे उनकी चिंता का कारण पूछा, तो वो टाल गईं। बाद में श्रद्धा मैम भी बहुत ही चिंतित दिखाई दीं। उनका मन शायद ही क्लास में हो! पढ़ाते समय भी बहुत सी गलतियाँ करीं उन्होंने। बाकी स्टूडेंट्स तो नहीं समझ सके, लेकिन अजय को समझ में आया। लेकिन वो चुप ही रहा।

क्लास के बाद उसने श्रद्धा मैम के पास जा कर पूछा,

“मैम... उम्... कोई प्रॉब्लम है क्या?”

“क्या मतलब अजय?”

“मैम, कोई प्रॉब्लम हो तो प्लीज़ बताईए। इफ आई कैन हेल्प, आई विल!”

“ओह, आई डोंट नो अजय!” श्रद्धा ने गहरी साँस भरी, “ओह प्लीज़ लीव इट,”

और बात आई गई हो गई।

लेकिन अगले दिन फिर से वही हालत थी। आज तो श्रद्धा मैम अन्य दिनों की अपेक्षा बहुत ही अस्त-व्यस्त लग रही थीं। हमेशा ही वो प्रेस किये हुए कपड़े पहनी दिखाई देतीं, बाल इत्यादि सुव्यवस्थित रहते... लेकिन आज वो अजीब सी लग रही थीं। ऐसा लग रहा था कि वो रात में ठीक से सोई भी नहीं हैं। आँखों के नीचे एक काला घेरा बन गया था।

अब उससे रहा नहीं गया। लंच ब्रेक में वो स्टाफ़रूम में गया।

इस समय वो दोनों ही रहती थीं वहाँ - कोई पंद्रह मिनट तक। यह बात उसको पता थी।

“मैम,” अजय ने दरवाज़े को अदब से खटका कर कहा, “मे आई कम इन?”

“अजय, ओह डोंट बी सो फॉर्मल,” शशि ने कहा, “आओ न!”

अजय अंदर आया।

उसको देखते हुए शशि ने कहा, “क्या बात है?”

“यही तो मैं पूछना चाहता हूँ मैम कि बात क्या है?”

“क्या मतलब?”

“इतना तो मुझे समझ में आता है कि या तो आपको या फिर श्रद्धा मैम किसी परेशानी में हैं... एंड इफ आई ऍम करेक्ट, तो श्रद्धा मैम...”

उसकी बात पर शशि और श्रद्धा की आँखें दो पल को मिलीं।

श्रद्धा कुछ कहती, उसके पहले ही शशि ने कहा, “अजय... बात थोड़ी नाज़ुक है।”

“मैम बताईए न... आई कैन हेल्प! इफ नॉट मी, देन माय फादर कैन... प्लीज बताइये...”

“अजय... बात दरअसल ये है कि श्रद्धा के मकान मालिक ने बिना किसी नोटिस दिए उसको घर से निकाल दिया...”

“व्हाट? ऐसे कैसे?”

“बोला कि नवरात्रि में गाँव से कई मेहमान आ रहे हैं इसलिए मकान वापस चाहिए।”

“ही जस्ट वांट्स मोर रेंट,” श्रद्धा ने बताया, “ये सब बहाना है। उस समय भी मैंने जैसे तैसे कर के रेंट कम करवा लिया था, लेकिन आज कल इतनी डिमांड है कि क्या करूँ।”

“उसने माँगा था क्या आप से अधिक रेंट?”

“हाँ... इशारों में कहा था उसने। लेकिन जितना देती हूँ, उससे डेढ़ गुना कैसे दूँ? ऊपर से उसको सिक्योरिटी डिपाजिट भी चाहिए!” कहते कहते वो रोआँसी हो गई, “अभी अभी तो नौकरी शुरू करी है... न सेविंग है न कुछ। कुछ बचेगा ही नहीं।”

“कितना माँग रहा था?”

श्रद्धा ने उसको बताया।

“हम्म्म... और इसलिए उसने आपको घर से निकाल दिया?”

श्रद्धा ने कुछ कहा नहीं। लेकिन उसकी आँख से आँसू निकल गए।

“अभी कहाँ रह रही हैं आप?”

“एक धर्मशाला में। जो थोड़े बहुत फर्नीचर थे, उनमें से भी कई चोरी हो गए।” कहते कहते श्रद्धा का गला भर आया।

अजय ने इस विषय पर कुछ कहा नहीं। वो समझता था कि जब मुसीबत आती है, तो व्यक्ति केवल उसका निस्तारण चाहता है, समाधान चाहता है। कोई लफ़्फ़ाज़ी नहीं चाहता... लक्ष्य-विहीन सहानुभूति नहीं चाहता। उसने दो क्षण सोचा, फिर शशि से बोला,

“मैम, मैं स्टाफरूम का फ़ोन यूज़ कर लूँ?”

“अजय डू व्हाटएवर! लेकिन अगर इसकी हेल्प कर सको, तो बहुत एहसान होगा,” शशि ने लगभग हाथ जोड़ दिए।

“मैम, प्लीज़ ऐसे मत बोलिए... प्लीज़ जस्ट गिव मी अ फ्यू मिनट्स... लेट मी सी व्हाट कैन बी डन...”

कह कर अजय ने पहले अशोक जी को और फिर उनके कहने पर उनके दो और मित्रों को फ़ोन किया। बातें कोई पच्चीस मिनट तक चलीं। तब तक लंच ब्रेक भी बीत गया। श्रद्धा को बहुत बुरा लग रहा था कि उसके कारण अजय ने खाना नहीं खाया, लेकिन ऐसी मामूली बात की अजय को कोई परवाह नहीं थी। जिसने जेल की मार तीन साल तक झेली हो, उसके लिए ऐसी छोटी बातों का कोई मतलब ही नहीं रहता। कुछ समय बाद स्टाफरूम के फ़ोन पर एक साल आया। अशोक जी ने किया था, अजय के लिए।

बातें समाप्त होते होते अजय के होंठों पर मुस्कान आ गई।

“मैम,” उसने श्रद्धा से कहा, “घर का बंदोबस्त हो गया है।”

“ओह गॉड... थैंक यू सो मच, अजय!” श्रद्धा ने अपने तहे दिल से अजय का शुक्रिया अदा किया।

“नो वरीस, मैम! वन बीएचके है...”

“मतलब?”

“ओह, मतलब... एक कमरा, एक हॉल, और किचन! अटैच्ड बाथरूम है...”

“बढ़िया! अभी के घर से तो बेहतर है,” शशि ने कहा।

“मकान मालिक ने कहा है कि आप आज ही आ सकती हैं।”

“लेकिन अजय, रेंट भी ज़्यादा होगा न?”

“नहीं मैम, अभी जो आपका रेंट है, वही!”

“व्हाट! आर यू श्योर?”

“मैम, ये आपने नए मकान मालिक मेरे पापा के दोस्त हैं। उनको कोई रेंट वेंट नहीं चाहिए, लेकिन फ़्री में नहीं दे सकते हैं न!” अजय मुस्कुराया, “इसलिए आपसे उतना ही रेंट लेंगे जितना आप अभी दे रही हैं। उनको चाहिए कि कोई सलीक़े से उनके घर को रख सके,”

“वॉव,” शशि बोली, “आज भी ऐसे लोग हैं?”

अजय मुस्कुराया।

बात तो सही है - एक एक पैसे के लिए लोग एक दूसरे को बेचने पर अमादा हैं। ऐसे में कोई इतना दिलदार मिल जाए, तो क्या कहना!

“और उन्होंने कहा है कि आप आज ही आ सकती हैं।” अजय ने आगे बताया, “किस धर्मशाला में हैं आप?”

श्रद्धा ने बताया।

“ठीक है। मेरे एक मनोहर भैया हैं... वो आपका सारा सामान आज शाम को शिफ़्ट करवा देंगे।” अजय ने सुझाया, “मैं घर कॉल कर दूँगा... वो आपके वहाँ पहुँचने से पहले ही वहाँ रहेंगे!”

“नहीं अजय! पहले ही तुम्हारा इतना एहसान हैं,”

मैम,” अजय ने शर्मिंदा होते हुए कहा, “आप ऐसी बात क्यों कह रही हैं? आप एक दिन छुट्टी ले लीजिए... आज आराम से शिफ़्ट हो जाईए और कल सब कुछ अनपैक कर लीजिये।”

“ओह अजय, थैंक यू सो मच!”

“मैम, आई ऍम वैरी हैप्पी टू हेल्प!” अजय ने हाथ जोड़ कर कहा, “कोई और नीड हो, तो बताईएगा... प्लीज़ डोंट हेसिटेट!”

“ओह गॉड! यही बहुत है,” श्रद्धा बोली, “थैंक यू अजय!”

“थैंक यू अजय,” शशि ने भी उसको धन्यवाद किया।

अजय इतनी बार दोनों को धन्यवाद करने से मना किया था, लेकिन फिर भी दोनों बार बार उसको थैंक यू थैंक यू कह रही थीं। वो बस अंत में निराशा में सर हिला कर रहा गया।

“नहीं अजय,” शशि ने कहा, “ऐसे मत करो। तुमने आज बहुत अच्छा काम किया है। ... आई वांटेड टू हेल्प, लेकिन वो क्या है कि मैं कुछ दिनों के छुट्टी पर जा रही हूँ,”

“ओह! ऑल गुड मैम?” अजय ने पूछा।

“ऑल गुड, अजय,” शशि ने कहा, “पर्सनल काम है! लेकिन दो या तीन सप्ताह में वापस आ जाऊँगी!”

“ओके!”

“देयर विल बी अ सब्स्टीट्यूट! ... लेकिन तुमको रिकमेन्डेशन मैं ही दूँगी! चिंता न करो!”

“मैम कोई बात ही नहीं है,” अजय बोला, फिर श्रद्धा की तरफ़ मुखातिब हो कर बोला, “मैम, आप बिल्कुल चिंता मत करिए। अगर कोई परेशानी हो, तो ज़रूर बता दीजिएगा,”

“ठीक है,” श्रद्धा ने कहा, “थैंक यू सो मच अजय,”

“यू आर मोस्ट वेलकम, मैम!” अजय ने प्रसन्न हो कर कहा, “यू आर मोस्ट वेलकम,”

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Bahut hi shaandar update diya hai avsji bhai....
Nice and lovely update....
 

parkas

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“रूचि बेटे,” किरण जी रूचि के नीचे आने का इंतज़ार कर रही थीं।

जैसा कि पाठकों को ज्ञात है कि रूचि अक्सर ही अजय या फिर कमल के घर चली जाती थी कंबाइंड स्टडीज़ के लिए। अब नवरात्रि शुरू हो गए थे, और वो आज अजय के यहाँ आई हुई थी। दो दिनों में कॉलेज में छुट्टी होने वाली थी। माया अपने वायदे के मुताबिक़ कमल के यहाँ थी। क़रीब दो घण्टे की पढ़ाई के बाद रूचि अब वहाँ से निकल रही थी।

“जी, आंटी जी?”

“कैसी हो बच्चे?”

“एकदम फर्स्ट क्लास, आंटी जी!” रूचि की मुस्कान चौड़ी हो गई।

किरण जी से बात कर के उसको हमेशा ही ख़ुशी मिलती थी। उनका ममतामई व्यवहार उसको बहुत भाता था।

गुप्त रूप से रूचि के मन में एक बात अवश्य आती थी कि अगर अजय से उसकी शादी हो जाती है, वो कैसा रहेगा!

वो अभूतपूर्व तरीके से अजय की ओर आकर्षित होती जा रही थी। दो तीन महीने पहले वो सोच भी नहीं रही थी कि उसके मन में अजय के लिए ऐसे भाव पैदा होने लगेंगे! लेकिन अब हो रहे थे। उसको अपनी भावनाओं से थोड़ा डर भी लगता और आनंद भी आता। अभी तक वो केवल पढ़ाई में ही डूबी रहती आई थी। इसलिए यह अनुभव, यह विचार भिन्न थे।

पढ़ाई करते समय वो अक्सर ही अजय के बगल बैठती... कभी कभी बहुत क़रीब। इतने क़रीब बैठने पर उसको अजय के शरीर की सुगंध आती थी। उसकी बाँहों की माँस पेशियाँ मज़बूत थीं। किशोरवय लड़के बहुत हैंडसम नहीं होते, लेकिन रूचि समझती थी कि कुछ ही वर्षों में जैसे जैसे अजय जवान होगा, वो बहुत हैंडसम हो जाएगा। वो भी कोई कम सुन्दर नहीं थी। दोनों की जोड़ी अच्छी जमेगी - यह विचार उसके मन में जब भी आता, उसके होंठों पर अनायास ही एक मीठी सी मुस्कान आ जाती।

उसने अभी तक जो देखा समझा था, उसके हिसाब से जो लड़की भी इस घर में आएगी, वो बहुत लकी होने वाली थी। उसको अब तक पता चल गया था कि इस परिवार में लड़कियों की उच्च शिक्षा या फिर कैरियर बनाने को लेकर बहुत प्रोत्साहन मिलता है। यह बढ़िया बात थी जो रूचि के मन माफ़िक थी। उधर, अजय तो अच्छा था ही - उसके मम्मी पापा दोनों बहुत अच्छे थे। माया दीदी भी अच्छी थीं। कमल भी! इन सबके बारे में सोचते हुए उसको अपने ‘परिवार’ जैसा ही लगता था।

“एक बात कहनी है तुमसे,”

“हाँ, कहिये न आंटी जी?”

“देख बेटे,” उन्होंने जैसे उसको समझाते हुए कहा, “हमारी बिटिया तो इस पूरे नवरात्रि में अपनी ससुराल में रहेगी। ... तो हम - मेरा मतलब अजय के पापा और मैं - सोच रहे थे कि क्यों न तुम आ जाओ यहाँ, पूजा के दिन?”

“जी? मैं?”

“हाँ... क्यों? देख बच्चे, हर साल पूजा में माया बिटिया साथ होती है हमारे... तो उसके यूँ अचानक से न होने से इतना सुन्दर सा पर्व अधूरा अधूरा सा लगेगा। इसलिए सोचा कि अगर तुम यहाँ हो... तो...” किरण ही ने अचानक से बात बदल दी, “लेकिन तुम्हारे यहाँ भी तो होगी पूजा... कोई बात नहीं।”

“आंटी जी, थैंक यू फॉर आस्किंग मी!” रूचि ने खुश होते हुए कहा, “हमारे यहाँ कोई पूजा तो नहीं होती, लेकिन मम्मी पापा से पूछ कर मैं आ ज़रूर सकती हूँ!”

वो मुस्कुराती हुई बोलीं और बड़े प्यार से रूचि के सर और गाल को सहलाती हुई बोलीं, “सच में? बहुत बढ़िया बेटे! ... माँ हूँ न... क्या करूँ! बेटियों के रहने से घर में रौनक रहती न! अब इसको देखो,” किरण जी ने सीढ़ियाँ उतर कर आते हुए अजय को देख कर कहा, “इसका हर काम टू द पॉइंट रहता है। एकदम बोर तरीके का! लड़कों से बस काम करवा लो... रौनक वौनक इनके बस की नहीं है!”

उनकी बात पर रूचि हँसने लगी।

अजय समझ नहीं पाया कि बात क्या थी आख़िर!

“चलती हूँ आंटी जी,”

“हाँ बेटे!”

“नमस्ते आंटी जी,”

“खुश रहो बेटे,”

“बाय,” उसने अजय से कहा।

“बाय रूचि!”

रूचि के जाने के कुछ देर तक अजय दरवाज़े की तरफ़ ही देखता रहा, फिर किरण जी की तरफ़ देख कर बोला, “क्या हो गया माँ? रूचि से मेरे बारे में कुछ कह रही थीं आप?”

“अगर कह रही थी तो क्या? जानना चाहता है क्या कुछ?” उन्होंने जैसे अजय को छेड़ते हुए कहा।

“नहीं माँ, कुछ नहीं जानना मुझे।”

“लेकिन मुझे जानना है,”

“क्या माँ?”

“कैसी लगती है वो तुझे?”

“अच्छी लगती है, क्यों?”

“मुझे भी अच्छी लगती है,”

“अच्छी बात है माँ,”

“इसीलिए उसको पूजा में बुलाया है!”

“क्या? आप भी न माँ!”

“क्यों? क्या हो गया?”

“अगर उसको पूजा पाठ करना पसंद नहीं हुआ तो?”

“कोई बात नहीं। कुछ नहीं तो आ कर हमारे साथ बैठेगी। फिर साथ में खाना पीना करेंगे हम सब जने...” किरण जी ने कहा, “नॉट अ गुड आईडिया?”

“हा हा हा हा... आपने बुला ही लिया है, तो सब गुड है माँ।” अजय ने कहा, फिर अचानक से बात बदलते हुए बोला, “माँ याद है न? कल हम सभी डॉक्टर के यहाँ जा रहे हैं... कॉम्प्रिहेन्सिव मेडिकल चेकअप के लिए।”

“अरे साल में दो बार करवाते ही हैं। अब ये क्या नई मुसीबत है?”

“दो बार करवाते हैं, तो तीसरी बार भी करवाया जा सकता है न माँ?” अजय ने चुहल करते हुए कहा, “मैं तो बस इतना चाहता हूँ कि हम सब हेल्दी रहें। हैप्पी रहें।”

“अरे मेरा बच्चा,” किरण जी ने बड़े दुलार से कहा, “क्यों नहीं रहेंगे रे हम सभी हेल्दी एंड हैप्पी? तू है न हमारे साथ... हमारा सायना बेटा!”

और ऐसा कह कर उन्होंने अजय को अपने आलिंगन में भर लिया। फिर दोनों अंदर आ कर सोफ़े पर बैठ गए।

“अच्छा सुन,”

“हाँ माँ?”

“तू ठीक तो है न?”

“हाँ... क्यों क्या हो गया माँ?”

“जब से माया अपने ससुराल गई है, तब से तूने दूधू नहीं पिया?” किरण जी ने थोड़ी चिंतातुर आवाज़ में पूछा, “इतने दिन हो गए... और... सब भरा भरा भी लग रहा है,”

“ओह, आई ऍम सॉरी माँ!”

“कोई बात नहीं,” उन्होंने ब्लाउज़ खोलते हुए कहा, “अब पी ले,”

“यस मॉम,”

कह कर अजय उनकी गोद में लेट गया और इंतज़ार करने लगा।

“काम में आज कल कुछ अधिक ही बिजी हो गया हूँ माँ,”

“हाँ... मैंने भी देखा है वो। पढ़ाई तो अच्छी चल रही है, लेकिन तू और भी किसी काम में बिज़ी लगता है!”

“हाँ माँ... बात दरअसल ये है कि भैया की तरह मैं भी हायर स्टडीज़ करना चाहता हूँ।”

कह कर उसने उनका एक स्तन पीना शुरू कर दिया।

शायद दूध का दबाव किरण जी के स्तनों पर इतना अधिक हो गया था, कि जब उसकी पहली धार छूटी तो उनको एक चुभने वाला दर्द महसूस हुआ। लेकिन उसके ठीक बाद उनको राहत भी महसूस हुई। किरण जी दो पल के लिए चुप हो गईं। जब उनको थोड़ी राहत मिली तो उन्होंने पूछा,

“तू भी चला जाएगा?”

“माँ,” स्तनपान करना रोक कर उसने कहना शुरू किया।

“नहीं नहीं! जा... अच्छा है। बच्चे खूब तरक़्क़ी करते हैं तो माँ बाप को अच्छा लगता है,” किरण जी ने एक फ़ीकी हँसी हँसते हुए कहा, “लेकिन मेरा मन ये सोच कर बैठ रहा है कि माया की शादी होने जा रही है दो ही महीने में... और फिर अगले साल तक तू भी!”

“माँ, दीदी तो यहीं हैं... दिल्ली में ही।” अजय ने जैसे माँ को मनाते हुए कहा।

“हाँ, वो भी है।”

“माँ, लेकिन मैं पढ़ाई कर के यहाँ वापस आना चाहता हूँ,”

“सच में बेटे?”

“हाँ माँ... यहाँ सभी हैं। मैं वहाँ अमेरिका में क्या करूँगा? वापस आ कर अपना सॉफ्टवेयर का बिज़नेस करूँगा,”

“किसका?”

“कम्प्युटर का माँ,”

किरण जी को अजय की बात सुन कर संतोष हुआ।

“रूचि का क्या प्लान है?”

“रूचि का मुझे कैसे पता चलेगा माँ?”

“क्यों? अपने प्लान्स शेयर नहीं करते तुम दोनों?”

“वो भी पढ़ना चाहती है माँ, लेकिन उसके बाद का नहीं पता मुझको!”

“वो भी तेरे सॉफ्ट कम्प्युटर बिज़नेस में साथ नहीं हो सकती?”

“हो सकती है माँ,” अजय बोला, “लेकिन आप मुझसे अधिक रूचि में क्यों इंटरेस्टेड हैं?”

“कुछ नहीं... अच्छी लगती है वो मुझे,” किरण जी बोलीं, “तुझे भी तो अच्छी लगती है न?”

“हाँ माँ, अच्छी लड़की है... मेहनती... इंटेलीजेंट...”

“सुन्दर?”

“हाँ, सुन्दर भी...”

किरण जी मुस्कुराईं, लेकिन उन्होंने इस बात को आगे नहीं बढ़ाया।

कुछ देर स्तनपान करने के बाद अजय बोला, “माँ... आई विल मिस डूईंग इट,”

“वैसे... नाऊ यू शुड स्टॉप डूईंग इट,” किरण जी ने कहा, “तुम और माया दोनों ही बड़े हो गए हो!”

“कोई बड़े वड़े नहीं हुए हैं माँ,” अजय ने राज़ की बात खोलते हुए कहा, “दीदी की सास तो उनको अपना दूध पिला रही हैं आज कल!”

“व्हाट! क्या कह रहा है तू?”

“हाँ माँ, हा हा हा हा... दीदी ने खुद बताया।”

“हे प्रभु,” किरण जी ने ईश्वर को धन्यवाद देते हुए कहा, “तेरा लाख लाख शुक्र है प्रभु! ऐसे ही मेरे बच्चों पर अपनी दया बनाए रखना,”

“हाँ माँ, माया दीदी कोई कम किस्मत वाली नहीं हैं,”

“भगवान करें, तेरी भी किस्मत माया के जैसी ही हो,”

अजय ने कुछ कहा नहीं, लेकिन उसने भी मन ही मन ईश्वर को और प्रजापति जी को धन्यवाद किया। अब तो स्वयं परमपिता ने उसके जीवन की दिशा बदल दी है। उम्मीद तो यही की जा सकती है न कि सब कुछ बीते समय से बेहतर होगा!

“वैसे एक बात है,” किरण जी ने कहा, “जब बच्चे दूध पीना बंद कर देते हैं, तो माँ को दूध बनना भी बंद हो जाता है,”

“व्हाट?”

“और क्या! तो तेरे जाते ही दूध की सप्लाई बंद,” किरण जी ने हँसते हुए कहा।

“फिर?”

“क्या फिर? फिर कुछ नहीं!”

“माँ आपको फिर कैसे दूध आएगा?”

“नहीं आएगा... आई ऍम पास्ट इट...”

“कोई तो तरीका होगा न?”

“हा हा हा... हाँ है,”

“क्या माँ?”

“मुझको कोई बेबी हो जाए,”

“ओह,” अजय ने कहा... फिर बात की गहराई को समझते हुए बोला, “ओओओओह...”

“हाँ, अब समझा!” किरण जी बोलीं, “इसलिए इसको जितना पॉसिबल हो, मेरा आशीर्वाद समझ कर पी लो,”

“यस मॉम!”

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Bahut hi badhiya update diya hai avsji bhai....
Nice and beautiful update....
 

avsji

Weaving Words, Weaving Worlds.
Supreme
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Sabhi updates ek se badhkar ek he avsji Bhai,

Ajay ne badi hi maturity ke sath apni teacher ki ghar wali problem ko suljha diya...........khair ye wala Ajay to vaise bhi mature & experienced hi he

Ruchi ke man me bhi Ajay ke liye prem ke ankur fut pade he...........aur Kiran ji ko bhi ab vo hi chahiye apne ghar me bahu ke rup me........

Khair abhi kaise kuch keh sakte he.............kaal ke garbh me kya chhipa he.........sirf vo hi janta he.............

Keep rocking Bro

अज्जू भाई - बहुत बहुत धन्यवाद!
अजय को "वापस" आए हुए बस कुछ ही सप्ताह हुए हैं। इसलिए कुछ बातें बहुत तेजी से बदली हैं, और कुछ और बातों को बदलने में समय लग रहा है।
रूचि किरण जी को बहुत पसंद आ रही है। किस किस को पसंद आएगी, वो देखने वाली बात है।
अजय का जीवन पूरा सुखमय हो जाएगा या फिर उसमें कोई समस्या आएगी, वो भी एक बात है।
देखते हैं - साथ बने रहिए।
अपडेट्स देने में समय लग रहा है क्योंकि मार्च का महीना है और टारगेट पूरे करने हैं (जो पूरे होते दिख नहीं रहे हैं)!
 
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