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Thriller The cold night (वो सर्द रात) (completed)

despicable

त्वयि मे'नन्या विश्वरूपा
Supreme
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शानदार अपडेट सीमा डार्लिंग का ज़िक्र हुआ आख़िर वो चित्रा क्लब का एड्रेस मिलेगा क्या कुछ काम था अपून को उधर ।
जे एन के अब ये दिन आ गये की नामज़द रिपोर्ट करवानी पड़ गई है
बशीर का भी खूब जलवा है की आजा लड़ ले जिगरा है तो ।

बटाला अच्छे से धुलने वाला है विजय के हाथो पक्का अगले अपडेट मैं ।

विजय ने अपनी दोस्ती और फ़र्ज़ दोनों को खूब निभाया है आगे क्या वाक़ई मैं उस ने सीमा से कुछ बात की होगी,
देखते है क्या रोमेश दिल्ली जाएगा ।

अगर गया तो 10 जनवरी को जे एन इंतज़ार मैं ना लुढ़क जाये।
बेहतरीन तरीक़े से कहानी को आगे बढ़ाने के किए आभार भाई ।
 

Iron Man

Try and fail. But never give up trying
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# 19

पिटने वाले बटाला के आदमी थे और पीटने वाले बशीर के आदमी थे।

रोमेश ने अपनी चाल से इन दोनों गैंगों को भिड़वा दिया था। बटाला को अभी यह समझ नहीं आ रहा था कि बशीर के आदमी उसके आदमियों से क्यों भिड़ गये ?

"यह इत्तफाक भी हो सकता है।" मायादास ने कहा-
"तुम्हारे लोगों की गाड़ी उनसे टकरा गई। वह इलाका बशीर का था। इसलिये उसका पाला भी भारी था।"

"मेरे लोग बोलते हैं, नाके पर आते ही खुद उन लोगों ने टक्कर मारी थी।" बटाला बोला,

"फोन पे भी जब तक हम छुड़ाते, उनको पीटा पुलिस वालों ने।"

"काहे को पीटा, तुम किस मर्ज की दवा है ? साले का होटल बंद काहे नहीं करवा दिया? अपुन को अब बशीर से पिटना होगा क्या ? इस साले बशीर को ही खल्लास कर देने का।"

"अरे यार तुम तो हर वक्त खल्लास करने की सोचते हो। अभी नहीं करने का ना बटाला बाबा।"

"बशीर से बोलो, हमसे माफ़ी मांगे। नहीं तो हम गैंगवार छेड़ देगा।"

"हम बशीर से बात करेंगे।"

"अबी करो, अपुन के सामने।" बटाला अड़ गया,

"उधर घाट कोपर में साला हमारा थू-थू होता, अपुन का आदमी पिटेगा तो पूरी मुम्बई को खल्लास कर देगा अपुन।"

"अजीब अहमक है।" मायादास बड़बड़ाया। बटाला ने पास रखा फोन उठाया और मायादास के पास आ गया।
उसने फोन स्टूल पर रखकर बशीर का नंबर डायल किया। रिंग जाते ही उसने मायादास की तरफ सिर किया था।

"तुम्हारा आदमी पुलिस स्टेशन से तो छुड़वा ही दिया ना।" मायादास ने कहा। बटाला ने कोई उत्तर नहीं दिया। फिर फोन पर बोला,

"लाइन दो हाजी बशीर को।" कुछ रुककर बोला, "जे.एन. साहब के पी .ए. मायादास बोलते हैं इधर से।" फिर उसने फोन का रिसीवर मायादास को थमा दिया।

"बात करो इससे। बोलो इधर हमसे माफ़ी मांगेगा, नहीं तो आज वो मरेगा।" मायादास ने सिर हिलाया और बटाला को चुप रहने का इशारा किया।

"हाँ, हम मायादास।" मायादास ने कहा, "बटाला के लोगों से तुम्हारे लोगों का क्या लफड़ा हुआ भई?" मायादास ने पूछा।

"कुछ खास नहीं।" फोन पर बशीर ने कहा,

"इस किस्म के झगड़े तो इन लोगों में होते ही रहते हैं, सब दारु पिये हुए थे। मेरे को तो बाद में पता चला कि वह बटाला के लोग है, सॉरी भाई।"

"बटाला बहुत गुस्से में है।"

"क्या इधर ही बैठा है?"

"हाँ, इधर ही है।"

"उसको फोन दो, हम खुद उससे माफ़ी मांग लेते हैं।" मायादास ने फोन बटाला को दिया।

"अ…अपुन बटाला दादा बोलता, काहे को मारा तेरे लोगों ने ?"

"दारू पियेला वो लोग।"

"अगर हम दारु पी के तुम्हारा होटल पर आ गया तो ?"


"देखो बटाला, तुम्हारी हमसे तो कोई दुश्मनी है नहीं, यह जो हुआ उसके लिए तो हम माफ़ी मांग लेते है। मगर आगे तुमको भी एक बात का ख्याल रखना होगा।"

"किस बात का ख्याल ?"

"एडवोकेट रोमेश मेरा दोस्त है, उसके पीछे तेरे लोग क्यों पड़े हैं ?"

बटाला सुनकर ही चुप हो गया, उसने मायादास की तरफ देखा।

"जवाब नहीं मिला मुझे।"

"इस बारे में मायादास जी से बात करो। मगर याद रहे, ऐसा गलती फिर नहीं होने को मांगता।


तुम्हारे दोस्त का पंगा हमसे नहीं है। उसका पंगा जे.एन. साहब से है। बात करो मायादास जी से, वह बोलेगा तो अपुन वो काम नहीं करेगा।

" रिसीवर माया दास को दे दिया बटाला ने। "कनेक्शन रोमेश से अटैच है।" बटाला ने कहा।

"हाँ।" माया दास ने फोन पर कहा, "पूरा मामला बताओ बशीर मियां।"

"रोमेश मेरा दोस्त है, बटाला के आदमी उसकी चौकसी क्यों कर रहे हैं ?"

"अगर बात रोमेश की है बशीर, तो यूँ समझो कि तुम बटाला से नहीं हमसे पंगा ले रहे हो। लड़ना चाहते हो हमसे? यह मत सोच लेना कि जे.एन. चीफ मिनिस्टर नहीं है, सीट पर न होते हुए भी वे चीफ मिनिस्टर ही हैं और तीन चार महीने बाद फिर इसी सीट पर होंगे, हम तुम्हें बर्बाद कर देंगे।"

"मैं समझा यह मामला बटाला तक ही है।"

"नहीं, बटाला को हमने लगाया है काम पर।"

"मगर मैं भी तो उसकी हिफाजत का वादा कर चुका हूँ, फिर कैसे होगा?" बशीर बिना किसी दबाव के बोला।

"गैंगवार चाहते हो क्या?"

"मैं उसकी हिफाजत की बात कर रहा हूँ, गैंगवार की नहीं।

सेंट्रल मिनिस्टर पोद्दार से बात करा दूँ आपकी, अगर वो कहेंगे गैंगवार होनी है तो…!"

पोद्दार का नाम सुनकर माया दास कुछ नरम पड़ गया ।

"देखो हम तुम्हें एक गारंटी तो दे सकते हैं, रोमेश की जान को किसी तरह का खतरा तब तक नहीं है, जब तक वह खुद कोई गलत कदम नहीं उठाता। वह तुम्हारा दोस्त है तो उसको बोलो, जे.एन. साहब को फोन पर धमकाना बंद करे और अपने काम-से-काम रखे, वही उसकी हिफाजत की गारंटी है।"


"जे.एन. सा हब को क्या कहता है वह?"

"जान से मारने की धमकी देता है।"

"क्या बोलते हो माया दास जी ? वह तो वकील है, किसी बदमाश तक का मुकदमा तो लड़ता नहीं और आप कह रहे हैं।"

"हम बिलकुल सही बोल रहे हैं। उससे बोलो जे.एन. साहब को फोन न किया करे, बस उसे कुछ नहीं होने का।"

"ऐसा है तो फिर हम बोलेगा।"

"इसी शर्त पर हमारा तुम्हारा कॉम्प्रोमाइज हो सकता है, वरना गैंगवार की तैयारी करो।" इतना कहकर माया दास ने फोन काट दिया।

रोमेश के विरुद्ध अब जे.एन. की तरफ से नामजद रिपोर्ट दर्ज हो चुकी थी। उसी समय नौकर ने इंस्पेक्टर के आने की खबर दी।

"बुला लाओ अंदर।" मायादास ने कहा और फिर बटाला से बोला,

"बशीर के अगले फोन का इन्तजार करना होगा, उसके बाद सोचेंगे कि क्या करना है। अब मामला सीधा हमसे आ जुड़ा है, तुम भी गैंगवार की तैयारी शुरू कर दो।"

तभी विजय अंदर आया। बटाला को देखकर वह ठिठका।

"आओ इंस्पेक्टर विजय।" बटाला ने दांत चमकाते हुए कहा। अब मायादास चौंका और फिर स्थिति भांपकर बोला:-

"बटाला अब तुम जाओ।"

"बड़ा तीस-मार-खां दरोगा है यह मायादास जी ! एक प्राइवेट बिल्डिंग में अपुन की सारी रात ठुकाई करता रहा, अपुन को इससे भी हिसाब चुकाना है।"

"ऐ !" विजय ने अपना रूल उसके सीने पर रखते हुए ठकठकाया,

"तुमको अपनी चौड़ी छाती पर नाज है न, कल मैं तेरे बार में प्राइवेट कपड़े पहनके आऊँगा और अगर तू वहाँ भी हमसे पिट गया तो घाटकोपर ही नहीं, मुम्बई छोड़ देना। नहीं तो जीना हराम कर दूँगा तेरा और तू यह मत समझना कि तू जमानत करवाकर बच गया, तुझे फांसी तक ले जाऊँगा।"

"अरे यह क्या हो रहा है बटाला, निकलो यहाँ से।"

"कल रात अपने बार में मिलना।" बटाला का कंधा ठकठका कर विजय ने फिर से याद दिलाया।

"मिलेगा अपुन, जरूर मिलेगा।" बटाला गुर्राता हुआ बाहर निकल गया।

"यह बटाला ऐसे ही इधर आ गया था, तुम तो जानते ही हो इंस्पेक्टर चुनाव में ऐसे लोगों की जरूरत पड़ती है, सबको फिट रखना पड़ता है। नेता बनने के लिए क्या नहीं करना पड़ता।"

"लीडर की परिभाषा समझाने की जरूरत नहीं। गांधी भी लीडर थे, सुभाष भी लीडर थे, इन लोगों से पूरी ब्रिटिश हुकूमत घबरा गई थी और उन्हें यह देश छोड़ना पड़ा। लेकिन मुझे यह तो बता दो कि इनके पास कितने गुंडे थे, कितने कातिल थे? खैर इस बात से कुछ हासिल नहीं होना, बटाला जैसे लोगों की मेरी निगाह में कोई अहमियत नहीं हुआ करती, मुझे सिर्फ अपनी ड्यूटी से मतलब है। आपने एफ़.आई.आर. में रोमेश सक्सेना को नामजद किया है?"

"हाँ, वही फोन पर धमकी देता था।"

"कोई सबूत है इसका?" विजय ने पूछा।

"हमारे लोगों ने उसे फोन करते देखा है और फिर हमारे पास उसकी आवाज भी टेप है। इसके अलावा उसने खुद कहा था कि वह रोमेश सक्सेना है।"

"टेप की आवा ज सबूत नहीं होती, कोई भी किसी की आवाज बना सकता है। फिल्मों में डबिंग आर्टिस्टों का कमाल तो आपने देखा सुना होगा।"

"यहाँ कोई फ़िल्म नहीं बन रही इंस्पेक्टर। यहाँ हमने किसी को नामजद किया है। इन्क्वारी तुम्हारे पास है, उसको गिरफ्तार करना तुम्हारी ड्यूटी है और उसे दस जनवरी तक जमानत पर न छूटने देना भी तुम्हारा काम है।"

"शायद आप यह भूल गये हैं कि वह एक चोटी का वकील है। वह ऐसा शख्स है, जो आज तक कोई मुकदमा नहीं हारा। उसे दुनिया की कोई पुलिस केवल शक के आधार पर अंदर नहीं रोक सकती। हम उसे अरेस्ट तो कर सकते हैं, मगर जमानत पर हमारा वश नहीं चलेगा और अरेस्ट करके भी मैं अपनी नौकरी खतरे में नहीं डाल सकता।"

"या तुम अपने दोस्त को गिरफ्तार नहीं करना चाहते ?"

"वर्दी पहनने के बाद मेरा कोई दोस्त नहीं होता। और यकीन मानिए, पुलिस कमिश्नर भी अगर खुद चाहें तो उसे गिरफ्तार नहीं कर सकते। अगर यह साबित हो जाये कि उसने आपको फोन पर धमकी दी, तो भी नहीं।"

"आई.सी.! लेकिन आपने हमारे बचाव के लिए क्या व्यवस्था की है? केवल कमांडो या कुछ और भी ? हम यह चाहते हैं कि रोमेश सक्सेना उस दिन जे.एन. तक किसी कीमत पर न पहुंचने पाये, उसका क्या प्रबंध है ?"

"है, मैंने सोच लिया है। अगर वाकई इस शख्स से जे.एन. साहब को खतरा है, जबकि मैं समझता हूँ, उससे किसी को कोई खतरा हो ही नहीं सकता। वह खुद कानून का बड़ा आदर करता है।"

"उसके बावजूद भी हम चुप तो नहीं बैठेंगे।"

"हाँ, वही बता रहा हूँ। मैं उसे नौ तारीख को रात राजधानी से दिल्ली रवाना कर दूँगा। मेरे पास तगड़ा आधार है।"

"क्या? "

"सीमा भाभी इन दिनों दिल्ली में रह रही हैं। दस जनवरी को रोमेश की शादी की सालगिरह है। देखिये, वह इस वक्त बहुत टूटा हुआ है। लेकिन वह अपनी बीवी को बहुत प्यार करता है। मैं वह अंगूठी उसे दूँगा, जो वह अपनी पत्नी को शादी की सालगिरह पर देना चाहता है। मैं कहूँगा कि मैं सीमा भाभी से बात कर चुका हूँ और अंगूठी का उपहार पाते ही उनका गुस्सा ठन्डा हो जायेगा, रोमेश सब कुछ भूलकर दिल्ली चला जायेगा।"

"और दिल्ली में उसकी पत्नी से मुलाकात न हो पायी तो?"

"यह बाद की बात है, बहरहाल वह दस तारीख को दिल्ली पहुँचेगा। मैंने उसे जो जगह बताई है, वह एक क्लब है, जहाँ सीमा भाभी रात को दस बजे के आसपास पहुंचती हैं। रोमेश उसी क्लब में अपनी पत्नी का इन्तजार करेगा और मैं समझता हूँ, उसी समय उनका झगड़ा भी खत्म हो लेगा। वहाँ रात को जो भी हो, वह फिलहाल विषय नहीं है। विषय ये है कि रोमेश दस तारीख की रात यहाँ मुम्बई में नहीं होगा। जे.एन. साहब से कह दें कि वह चाहें तो स्वयं मुम्बई सेन्ट्रल पर नौ तारीख को पहुंचकर राजधानी से उसे जाते देख सकते हैं।"

"हम इस प्लान से सन्तुष्ट हैं इंस्पेक्टर !"

"वैसे हमारे चार कमाण्डो तो आपके साथ हैं ही।"

"ओ. के.! कुछ लेंगे ?"

"नो थैंक्यू।" वहाँ से विजय सीधा रोमेश के फ्लैट पर पहुँचा। रोमेश उस समय अपने फ्लैट पर ही था।

"मैंने तुम्हें कहा था कि ग्यारह जनवरी से पहले इधर मत आना। अगर तुम जे.एन. की नामजद रिपोर्ट पर कार्यवाही करने आये हो, तो मैं तुम्हें बता दूँ कि इस सिलसिले में मैं अग्रिम जमानत करवा चुका हूँ। अगर तुम पेपर देखना चाहते हो, तो देख सकते हो।"

"नहीं, मैं किसी सरकारी काम से नहीं आया। मैं कुछ देने आया हूँ।"

"क्या?"

"तुम्हें ध्यान होगा रोमेश, तुमने मुझे तीस हजार रुपये दिये थे, बदले में मैंने साठ हजार देने का वादा किया था।”

"मैं जानता हूँ, तुम ऐसा कोई धन्धा नहीं कर सकते, जहाँ रुपया एक महीने में दुगना हो जाता हो। तुम्हें जरूरत थी, मैंने दे दिया, क्या रुपया लौटाने आये हो?"

"नहीं, यह गिफ्ट देने आया हूँ।" विजय ने अंगूठी निकाली और रोमेश के हाथ में रख दी, रोमेश ने पैक खोलकर देखा।

"ओह, तो यह बात है। लेकिन विजय हम बहुत लेट हो चुके हैं, अब कोई फायदा नहीं।"

"कुछ लेट नहीं हुए, भाभी दिल्ली में हैं। मैंने पता निकाल लिया है। 10 जनवरी का दिन तुम्हारी जिन्दगी का सबसे महत्वपूर्ण दिन है। भाभी को पछतावा तो है पर वह आत्मसम्मान की वजह से लौट नहीं सकती। तुम जाओ रोमेश ! वह चित्रा क्लब में जाती हैं। वहाँ जब तुम्हें दस जनवरी की रात देखेगी, तो सारे गिले-शिकवे दूर हो जायेंगे। यह अंगूठी देना भाभी को और फिर सब ठीक हो जायेगा।”


"ऐसा तो नहीं हैं विजय, तुमने 10 जनवरी को मुझे बाहर भेजने का प्लान बना लिया हो?"

"नहीं, ऐसा मेरा कोई प्लान नहीं। मैं इसकी जरूरत भी नहीं समझता, क्यों कि मैं जानता हूँ कि तुम किसी का कत्ल नहीं कर सकते। मैं तो तुम्हारी जिन्दगी में एक बार फिर वही खुशियां लौटाना चाहता हूँ और ये रहा तुम्हारा रिजर्वेशन टिकट।" विजय ने राजधानी का टिकट रोमेश को पकड़ा दिया।

"नौ तारीख का है, दस जनवरी को तुम अपनी शादी की सालगिरह भाभी के साथ मनाओगे। विश यू गुडलक ! मैं तुम्हें नौ को मुम्बई सेन्ट्रल पर मिलूँगा।"

"अगर सचमुच ऐसा ही है, तो मैं जरूर जाऊंगा।" विजय ने हाथ मिलाया और बाहर आ गया।

विजय के दिमाग का बोझ अब काफी हल्का हो गया था। हालांकि उसने अपनी तरफ से जे.एन. को सुरक्षित कर दिया था, परन्तु वह खुद भी जे.एन. को कटघरे में खड़ा करने के लिए लालायित था। चाहकर भी वह सावंत मर्डर केस में अभी तक जे. एन. का वारंट हासिल नहीं कर पाया था। फिर उसे बटाला का ख्याल आया। वह बटाला का गुरुर तोड़ना चाहता था।

जे.एन. भले ही उसकी पकड़ से दूर था, परन्तु बटाला को उसकी बद्तमीजी का सबक वह पढ़ाना चाहता था। उसकी पुलिसिया जिन्दगी इन दिनों अजीब कशमकश से गुजर रही थी, एक तरफ तो वह जे.एन. की हिफाजत कर रहा था और दूसरी तरफ जे.एन. को सावंत मर्डर केस में बांधना चाहता था। सावंत के पक्ष में जो सियासी लोग पहले उसका साथ दे रहे थे, अचानक सब शांत हो गये थे।



जारी रहेगा…..✍️✍️
Shandar jabardast update 👌
 

Raj_sharma

यतो धर्मस्ततो जयः ||❣️
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सीमा भी शामिल है क्या??

क्योंकि रोमेश बैठेगा तो जरूर राजधानी में, लेकिन दिल्ली तक पहुंचे या न पहुंचे।
Wo kaise possible hai bhai? Wo Delhi me hai, per romesh jayega ya nahi? Ye sochne wali baat hai,
Thanks for your valuable review ❣️
 

Raj_sharma

यतो धर्मस्ततो जयः ||❣️
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शानदार अपडेट सीमा डार्लिंग का ज़िक्र हुआ आख़िर वो चित्रा क्लब का एड्रेस मिलेगा क्या कुछ काम था अपून को उधर ।
जे एन के अब ये दिन आ गये की नामज़द रिपोर्ट करवानी पड़ गई है
बशीर का भी खूब जलवा है की आजा लड़ ले जिगरा है तो ।

बटाला अच्छे से धुलने वाला है विजय के हाथो पक्का अगले अपडेट मैं ।

विजय ने अपनी दोस्ती और फ़र्ज़ दोनों को खूब निभाया है आगे क्या वाक़ई मैं उस ने सीमा से कुछ बात की होगी,
देखते है क्या रोमेश दिल्ली जाएगा ।

अगर गया तो 10 जनवरी को जे एन इंतज़ार मैं ना लुढ़क जाये।
बेहतरीन तरीक़े से कहानी को आगे बढ़ाने के किए आभार भाई ।
Aage wale updates me iska bhi jabaab mil sakta hai, thanks for your wonderful review bhai, ❣️
 

Raj_sharma

यतो धर्मस्ततो जयः ||❣️
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बहुत ही शानदार मोड़ पर आ गई है कहानी... बहुत ही शानदार अपडेट भाई
Thank you very much for your valuable review and support bhai ❣️
 

Rekha rani

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Jabardast update,
Romesh ne city me gangwar ke halat paida kar diye hai
Bashir ko ab malum pada ki romesh ka asal dushman jn Reddy hai
Udhar vijay apna alag khel khel rha hai
Aur remesh ko city se bahar bhejane me safal hota dikh rha hai ya ek tarah se usne romesh ki hi madad kr di aur wo bhi ek gawah ban jayega aage jakar
 

dev61901

" Never let an old flame burn you twice "
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Badhiya update

Idhar romesh ke chakkar me do gang bhidte bhidte rah gayi ha kher abhi to mahol shant ha age dekhte han kya hota h

Idhar vijay ka lagta ha panga hone wala ha batala ke sath garma garmi ka mahol to ban chuka ha

Idhar vijay ne to tagdi planing kar rakhi ha 10 january ko romesh ko bahar bhejne ki udhar romesh bhi tayaar ho gaya ha apni biwi se milne ke liye 10 january ko ab dekhte han ki romesh jata ha ya nahi agar jayega to JN ko kon marega
 

avsji

Weaving Words, Weaving Worlds.
Supreme
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बढ़िया! विजय द्वारा रोमेश का सीमा से मिलने जाने की ज़िद करना एक ट्विस्ट तो है।
इस बात को रोमेश ने नहीं सोचा रहेगा... लेकिन वो समझ रहा है कि विजय ने ऐसा क्यों किया। वो दिल्ली जाएगा या नहीं, वो देखने वाली बात होगी।
मायादास की सलाह अच्छी थी - बिना सोचे बूझे, किसी को मारा नहीं जा सकता। जे एन ने सही किया उसकी सलाह मान कर।
लेकिन, रोमेश का पूरा प्लान समझ में नहीं आया। अब तो जे एन का सस्पेंस भी ख़तम हो गया है - नहीं तो शायद डर के मारे मर जाता! क्या पता!
बढ़िया अपडेट्स थे दोनों :)
 
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